Comments on: सांझी कला – ब्रज वृंदावन की पारंपरिक अलंकरण कला https://inditales.com/hindi/braj-vrindavan-ki-sanjhi-kala/ श्रेष्ठ यात्रा ब्लॉग Sat, 13 Mar 2021 13:45:47 +0000 hourly 1 https://wordpress.org/?v=6.7.4 By: Anuradha Goyal https://inditales.com/hindi/braj-vrindavan-ki-sanjhi-kala/#comment-792 Sat, 13 Mar 2021 13:45:47 +0000 https://inditales.com/hindi/?p=2195#comment-792 In reply to Chandrahas Shikkenavis.

धन्यवाद चंद्रहास जी

]]>
By: Chandrahas Shikkenavis https://inditales.com/hindi/braj-vrindavan-ki-sanjhi-kala/#comment-791 Sat, 13 Mar 2021 13:15:42 +0000 https://inditales.com/hindi/?p=2195#comment-791 मीताजी एवं अनुराधाजी
ब्रज और वृंदावन का नाम आते ही मन बालकृष्ण की नटखट अदाओं और उनके व्दारा गोपीओ संग रची रास- लीलामें मग्न हो जाता है.
आपके इस लेखमें सांझी का विस्तृत वर्णन और उसकी महत्ता के बारे मे लिखा है वह अतुलनीय है.
हमने बचपन मे धार के आजु बाजु के गांवोमे बहुतही छोटी छोटी सांझीयों को देखा है.
आपके लेख से प्रतित होता है की इसकी व्युत्पत्ति राधाजी ने अपने रुठे सखाको मनाने के लिए की थी. ब्रज और वृंदावन तो कृष्ण भक्ति के केंद्रबिंदु है.वहाँ के लोग हमेशां ही भक्तिरस में डुबे रहते है.इसका सुंदर वर्णन लेख में निहित है.
वहां की अष्टभुजा वाली विशाल और मनमोहक कलाकृतिओं से भरपुर सांझी परंपरागत होते हुवे भी मनकी स्थिती की द्योतक होती है.पितृपक्षमे भी इसकी महत्ता जानकर आश्चर्य हुवा.
विस्तृत जानकारी से भरपुर और रोचक लेख हेतु आपको बहुत बहुत धन्यवाद.

]]>
By: Anuradha Goyal https://inditales.com/hindi/braj-vrindavan-ki-sanjhi-kala/#comment-790 Sat, 13 Mar 2021 11:50:33 +0000 https://inditales.com/hindi/?p=2195#comment-790 In reply to प्रदीप खोपकर.

जी, यह कला उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश में पितृपक्ष में और पंजाब, हरियाणा में नवरात्री में बने जाती है।।

]]>
By: प्रदीप खोपकर https://inditales.com/hindi/braj-vrindavan-ki-sanjhi-kala/#comment-789 Sat, 13 Mar 2021 11:07:18 +0000 https://inditales.com/hindi/?p=2195#comment-789 अनुराधा जी, ब्रज-वृंदावन की लोक कला “सांझी उत्सव “ को वर्णित करता बहुत ही सुंदर आलेख । वास्तव में हमारे देश के लगभग हर क्षेत्र की अपनी पारंपरिक लोक कलायें है कुछ लोक कलायें तो आज भी जीवित है, उन्हीं में से एक सांझी कला हैं । मध्यप्रदेश के मालवा क्षेत्र के ग्रामीण भागों में इसे “संजा “ कहा जाता है ।छोटी छोटी बालिकाओं द्वारा दिवार पर गोबर और मिट्टी से विभिन्न आकृतियाँ बनाकर फुलों और रंगीन चमकीले काग़ज़ से इन आकृतियों को सजाया जाता है । प्रतिदिन अलग-अलग आकृतियाँ बनाई जाती हैं । इनकी पूजा में पारंपरिक लोक गीत भी गाये जाते हैं ।सामान्यतः यह उत्सव पितृपक्ष के दौरान मनाया जाता है । यह संतोष की बात है कि म.प्र.के मालवांचल में यह लोककला आज भी जीवित हैं ।
ज्ञानवर्धक आलेख हेतु धन्यवाद!

]]>
By: Anuradha Goyal https://inditales.com/hindi/braj-vrindavan-ki-sanjhi-kala/#comment-784 Tue, 09 Mar 2021 12:45:05 +0000 https://inditales.com/hindi/?p=2195#comment-784 In reply to Sanjay jain.

जी, मैंने भी पंजाब में घरों में सांझी पूजा होते देखी है

]]>
By: Sanjay jain https://inditales.com/hindi/braj-vrindavan-ki-sanjhi-kala/#comment-783 Tue, 09 Mar 2021 11:19:51 +0000 https://inditales.com/hindi/?p=2195#comment-783 वाकई पुराने सांस्कृतिक कार्यक्रम जो कि सामूहिक हो या घरों में मनाए जाते थे उनका अपनेआप एक अलग ही आकर्षण था, अब काफी कुछ तो खत्म हो चुके है या खत्म होने की कगार पर है जो हो रहे उनके स्वरूप भी बदल चुके है, जो आपने व्रन्दावन में सांझी कला का बहुत ही सुंदर व मनभावन वर्णन किया है, ऐसा ही हमारे मध्य प्रदेश के मालवा व निमाड़ क्षेत्र में भी कुंवारी कन्याओं के द्वारा संध्या के समय घर की दीवारों पर गोबर व मिट्टी से विभिन्न प्रकार की आकृतियां बनाती थी जिसे लोकपर्व संजा माता बोलते है फिर उसकी पूजा जैसी थाली में दीपक लगाकर, फिर पूजा करती थी और कई लोकगीत गाती थी उसमें से एक गीत है संजा तू थारे घर जा, थारी माय मारेगी की कुटेगी……। ऐसे ही कन्याए बहुत सारे लोकगीत गाती थी, शायद अभी भी गांवों में यह प्रथा चल रही होगी। 70 के दशक में तो हमारे इंदौर शहर में भी मैने यह कार्यक्रम होते देखे है।????????????

]]>