गोवा Archives - Inditales https://inditales.com/hindi/category/भारत/गोवा/ श्रेष्ठ यात्रा ब्लॉग Tue, 22 Aug 2023 06:02:57 +0000 en-US hourly 1 https://wordpress.org/?v=6.7.2 गोवा प्रदेश पर १४ सर्वोत्कृष्ट पुस्तकें https://inditales.com/hindi/goa-par-sarvashreshth-pustaken/ https://inditales.com/hindi/goa-par-sarvashreshth-pustaken/#respond Wed, 13 Dec 2023 02:30:45 +0000 https://inditales.com/hindi/?p=3343

गोवा देशी एवं विदेशी पर्यटकों का अत्यंत लोकप्रिय गंतव्य है। यह भारत के सर्वोत्तम पर्यटन स्थलों में से एक है। गोवा में पर्यटकों के लिए सर्वाधिक शांतिदायक क्रियाकलाप है, समुद्रतट पर बैठकर अपनी मनपसंद पुस्तक पढ़ना। यह किसी स्वप्न से कम नहीं होता। तत्पश्चात सूर्यास्त के समय उसी पुस्तक एवं समुद्र में डूबते सूर्य के […]

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गोवा देशी एवं विदेशी पर्यटकों का अत्यंत लोकप्रिय गंतव्य है। यह भारत के सर्वोत्तम पर्यटन स्थलों में से एक है। गोवा में पर्यटकों के लिए सर्वाधिक शांतिदायक क्रियाकलाप है, समुद्रतट पर बैठकर अपनी मनपसंद पुस्तक पढ़ना। यह किसी स्वप्न से कम नहीं होता। तत्पश्चात सूर्यास्त के समय उसी पुस्तक एवं समुद्र में डूबते सूर्य के साथ अपना छायाचित्र खिंचवाना भी एक अविस्मरणीय स्मृति होती है। गोवा का समुद्रतट हो, उस पर पुस्तक भी गोवा पर हो तो यह सोने पर सुहागा के समान होता है।

गोवा पर पुस्तकें मैं सन् २०१४ में गोवा स्थानांतरित हुई थी। मैं जब भी किसी नवीन स्थल में स्थानांतरित होती हूँ, तो जाने से पूर्व मैं उस स्थान के विषय में सम्पूर्ण जानकारी एकत्र करने का प्रयास करती हूँ। इसके लिए मैं उस स्थान से संबंधित अनेक पुस्तकें पढ़ती हूँ। गोवा स्थानांतरण से पूर्व मैंने इस लघु राज्य के विषय में कोई भी पुस्तक नहीं पढ़ी थी। एक छोटी यात्रा मार्गदर्शिका भी नहीं। इससे पूर्व मैं जब भी गोवा भ्रमण के लिए आई थी, केवल समुद्र तटों एवं उसके आसपास की दुकानों में ही अपना पूरा समय व्यतीत किया था।

गोवा आने के पश्चात मैंने इसकी सड़कों को छाना, दूर-सुदूर गांवों में घूमी, एक बड़े शहर से आकर एक छोटे नगर के जीवन में स्वयं को ढाला। मैंने गोवा के अनेक आयामों के विषय में जानकारी प्राप्त की। किन्तु गोवा के विषय में मेरी सर्वाधिक जानकारी मुझे उन पुस्तकों से प्राप्त हुई जो गोवा राज्य पर लिखी गई हैं। गोवा को सही मायने में जानने के लिए इन पुस्तकों को पढ़ना अत्यंत आवश्यक है। आईए मैं आपको गोवा पर आधारित कुछ उत्तम पुस्तकों के विषय में बताती हूँ-

गोवा पर कुछ अकाल्पनिक पुस्तकें

कैथरीना कक्कर द्वारा लिखित ‘मूविंग टू गोवा’

यह पुस्तक अमेजॉन भारत अथवा अमेजॉन अमेरिका से खरीद सकते हैं।

यूँ तो गोवा में आकर बसना अनेक लोगों के लिए किसी स्वप्न से कम नहीं है। सन् २०१४ में मुझे भी गोवा में आकर बसने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। मेरे गोवा में आकर बसने का समय एवं इस पुस्तक के प्रकाशन का समय लगभग एक ही था। इस पुस्तक में लिखे एक एक शब्द को मैंने भी अनुभव किया है।

यदि आप भी गोवा में रहना चाहते हैं तो गोवा के जीवन में अपने आप को ढालने के लिए जो मानसिक तैयारी की आवश्यकता है, उसे जानने के लिए यह पुस्तक अवश्य पढ़ें। गोवा के विषय में अनेक ऐसे तथ्य हैं जिन्हे केवल वही जानता है जो यहाँ आकर बसा है। जैसे, आप सदैव ही ‘बाहर वाले’ रहेंगे।

इस पुस्तक में लेखिका ने गोवा के अनेक आयामों का उल्लेख किया है जिन्हे आप एक पर्यटक के रूप में नहीं जान सकते। जैसे, गोवा के आंतरिक क्षेत्र, यहाँ के विभिन्न समुदाय, गोवा एवं इसकी भाषा के प्रति असीम प्रेम इत्यादि। इस पुस्तक के माध्यम से आप उन ‘बाहरी’ लोगों के जीवन में भी झाँक सकते हैं। यदि आप गोवा आकर बसना चाहते हैं तो वो आपका भावी जीवन भी हो सकता है ।

प्रजल साखरदांडे द्वारा लिखित ‘गोवा गोल्ड गोवा सिल्वर’

यह पुस्तक अमेजॉन भारत से खरीद सकते हैं।

डॉ. प्रजल साखरदांडे गोवा में इतिहास के सुप्रसिद्ध प्राध्यापक हैं। अपने २० वर्षों के शोध के उपरांत उन्होंने गोवा के इतिहास पर एक प्रामाणिक पुस्तक लिखी है। इस पुस्तक में उन्होंने गोवा के प्रागैतिहासिक काल से आधुनिक काल तक की यात्रा का वर्णन किया है। यह अत्यंत विस्तृत व व्यापक पुस्तक है जो ऐतिहासिक तथ्यों से परिपूर्ण है। उनमें अनेक ऐसे प्रामाणिक तथ्य हैं जिनके विषय में अधिक लोग नहीं जानते क्योंकि गोवा का लोकप्रिय इतिहास अधिकतर पुर्तगाली काल के चारों ओर ही सीमित है।

जिन्हे भी गोवा के प्राचीन, मध्यवर्गी एवं आधुनिक इतिहास को सूक्ष्मता से समझने में रुचि हो तो उनके लिए यह अति उत्तम पुस्तक है।

प्रा. डॉ. प्रजल साखरदांडे को अपनी पुस्तक के विषय में चर्चा करते सुनिए।

मारिया ऑरोरा कॉउटो की पुस्तक ‘गोवा – अ डॉटरस् स्टोरी’

यह पुस्तक अमेजॉन भारत अथवा अमेजॉन अमेरिका से खरीद सकते हैं।

मारिया ऑरोरा कॉउटो गोवा के संभ्रांत वर्ग से संबंध रखती हैं। उन्हे गोवा में बहुधा राजसी सम्मान से संबोधित किया जाता है। यद्यपि उनके माता-पिता गोवा के स्थायी निवासी थे, तथापि उनका अध्ययन कर्नाटक में हुआ तथा कुछ समय वे बिहार में भी रहीं।

गोवा की स्वतंत्रता एवं भारत के साथ एकीकरण के पश्चात, भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी की पत्नी के रूप में वे पुनः गोवा आयीं जब उनके पति का गोवा स्थानांतरण हुआ। उन्होंने इस पुस्तक के माध्यम से गोवा की बेटी के रूप में अपने विचार व्यक्त किये हैं। इसमें गोवा एवं उसके इतिहास के विषय में एक संभ्रांत ईसाई के विचार प्रस्तुत हैं। पक्षपात का आभास हो सकता है। फिर भी यह पढ़ने लायक पुस्तक है।

वेंडल रॉड्रिक्स द्वारा लिखित ‘ग्रीन रूम’

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गोवा पर लिखी ग्रीन रूम वह प्रथम पुस्तक है जो मैंने गोवा पहुंचते से ही पढ़ी थी। मैं वेंडल रॉड्रिक्स की सराहना करती हूँ कि गोवा में रहते हुए ही उन्होंने फैशन के क्षेत्र में अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रसिद्धि प्राप्त की तथा अपना सफल व्यवसाय स्थापित किया। उन्होंने देश-विदेश की अनेक यात्राएं की हैं। उन्होंने ‘गोवा के पुत्र’ के रूप में यह पुस्तक लिखी है। उन्होंने इस पुस्तक में एक हिन्दू क्षत्रिय समुदाय तक अपनी जड़ें ढूंढकर प्रस्तुत की हैं। फैशन के क्षेत्र में व्यवसाय स्थापित करते हुए उनकी जो व्यक्तिगत यात्रा रही, उसके माध्यम से उन्होंने गोवा के विषय में चर्चा की है। यह पुस्तक मोटी अवश्य है किन्तु इसकी परख अत्यंत गहरी है।

‘द हिप्पी ट्रैल – अ हिस्ट्री’ – शरीफ जेमी एवं ब्रायन आयरलैंड

यह पुस्तक अमेजॉन भारत अथवा अमेजॉन अमेरिका से खरीद सकते हैं।

गोवा वह स्थान है जहां १९६० तथा १९७० के दशकों में हिप्पियों की कुप्रसिद्ध यात्रा समाप्त होती थी। उस समय अनेक हिप्पियों ने गोवा को अपना घर बनाया था तथा वे गोवा छोड़कर जाना नहीं चाहते थे। इस पुस्तक में दोनों लेखकों ने अंजुना के विशालतम नग्न वसाहत में अपने जीवन का उल्लेख करते हुए गोवा, विशेषतः अंजुना के विषय में चर्चा की है।

गोवा के उन गांवों में हिप्पियों का एक छोटा समुदाय अब भी निवास करता है। गोवा पर्यटन की जड़ें भी इस हिप्पी संस्कृति तक जाती हैं। हिप्पी समुदाय ने गोवा की छवि पर इतना प्रभाव डाला है कि गोवा के विषय में अनेक लोगों की यह धारणा अब भी बनी हुई है। इस पुस्तक में गोवा के अतिरिक्त इस हिप्पी यात्रा के अन्य स्थानों के विषय में भी उल्लेख किया गया है।

अनंत प्रियोलकर द्वारा लिखित ‘द गोवा इन्क्विज़िशन’

यह पुस्तक अमेजॉन भारत अथवा अमेजॉन अमेरिका से खरीद सकते हैं।

यह पुस्तक उन लोगों के लिए अत्यंत उपयोगी है जो गोवा के इतिहास के विषय में गंभीरता से अध्ययन करना चाहते हैं। इस पुस्तक में गोवा के पुर्तगाली शासनकाल के सर्वाधिक काले इतिहास का उल्लेख किया गया है। पुस्तक की सामग्री समकालीन भुक्तभोगियों से प्रत्यक्ष प्राप्त हुई है। जैसे, अभिलेखीय सामग्री, यात्रियों के संस्मरण, कैदियों के संस्मरण इत्यादि। मैंने इसे टुकड़ों टुकड़ों में पढ़ा है। यह गोवा के इतिहास पर अत्यंत उपयोगी संदर्भ पुस्तक है।

मारिओ डे मिरांडा की पुस्तकें

यह पुस्तक अमेजॉन भारत अथवा अमेजॉन अमेरिका से खरीद सकते हैं।

मारिओ मिरांडा गोवा के चिन्हक कलाकार हैं। उनके हास्यचित्र एवं व्यंगचित्र सम्पूर्ण राज्य में अनेक स्थानों पर चित्रित हैं। गोवा के अनेक पुस्तकों में भी उनके चित्रों का प्रयोग किया गया है। गोवा के जनजीवन पर आधारित उनके व्यंगचित्र बारीकियों से परिपूर्ण होते हैं। अनेक पुस्तकें उनकी यात्राओं पर हैं तो असंख्य पुस्तकें उनके हास्यचित्रों व व्यंगचित्रों पर हैं। अनेक पुस्तकों पर उनके चित्रों का प्रयोग किया गया है तो कई पुस्तकें उन पर भी लिखी गई हैं। आपकी जिसमें रुची हो आप वह पुस्तक पढ़ें।

और पढ़ें: सम्पूर्ण गोवा में मारिओ मिरांडा

‘गोवा एण्ड द ब्लू माउंटेनस्’ – रिचर्ड बर्टन

यह पुस्तक अमेजॉन भारत अथवा अमेजॉन अमेरिका से खरीद सकते हैं।

सन् १८५१ में प्रकाशित यह पुस्तक मेरी घरेलू पुस्तकालय में गत २० वर्षों से सहेज कर रखी हुई है। कामसूत्र का अंग्रेजी में अनुवाद करने वाले इस प्रसिद्ध लेखक द्वारा लिखित उनकी इस प्रथम पुस्तक को पढ़ना मेरे लिए अब भी शेष है। इसमें १९वीं. सदी में उनके द्वारा की गई यात्राओं के संस्मरण हैं। ऐसे यात्रा संस्मरण एक प्रकार से समय की मोहर हैं जो किसी भी गंतव्य की उस समयावधि की स्मृतियों को सदा के लिए अमर कर देते हैं। आशा करती हूँ कि मैं यह पुस्तक शीघ्र पढ़ पाऊँ।

गोवा पर दो अन्य प्रसिद्ध अकाल्पनीय पुस्तकें हैं, मनोहर शेट्टी द्वारा लिखित ‘फेरी क्रॉसिंग’ तथा ‘गोवा ट्रैवलस्’।

गोवा पर काल्पनिक पुस्तकें

‘टेरेसा’स् मैन एण्ड अदर स्टोरीस फ्रॉम  गोवा’ – दामोदर मौजो

यह पुस्तक अमेजॉन भारत अथवा अमेजॉन अमेरिका से खरीद सकते हैं।

दामोदर मौजो गोवा के सर्वाधिक प्रसिद्ध लेखकों में से एक हैं। वे साहित्य अकादमी पुरस्कार विजेता भी हैं। वे कोंकणी भाषा में लघु कथाएं एवं उपन्यास लिखते हैं। उनकी अधिकतर रचनाओं का अंग्रेजी में अनुवाद हो चुका है। उनकी कथाओं में गोवा की सुगंध होती है। गोवा के ग्रामीण भागों की जीवनी उनकी रचनाओं का विशेष तत्व है। लघु कथाओं का यह संग्रह आपको अनेक मानवी भावनाओं एवं दुविधाओं के उतार-चढ़ाव से लेकर जाएगा जो आप अपने दैनिक जीवन में जीते हैं। मानवी मुखौटों के पीछे के उनके असली चेहरे से आपको अवगत कराएगा। ये सभी भावुक कथाएं गोवा पर आधारित हैं।

किश्वर देसाई द्वारा रचित ‘द सी ऑफ इनोसेन्स’

यह पुस्तक अमेजॉन भारत  से खरीद सकते हैं।

नशा, जुआ तथा वेश्यावृत्ति गोवा पर्यटन पर आधारित अर्थव्यवस्था का काला सत्य है। स्थानीय नागरिक जितना चाहें अस्वीकार करें अथवा भर्त्सना करें, ये अस्तित्व में हैं। अपनी इस अप्रतिम रचना के द्वारा किश्वर देसाई आपको वित्तीय निवेशकों, स्थानीय अपराधी संगठनों तथा नेताओं द्वारा बुने जाल से परिचित कराते हैं जो गोवा के समुद्रतटों के भाग भी हैं। यह कहानी मन में गोवा के प्रति कुछ कड़वाहट ला सकती है किन्तु यह अत्यंत रोमांचक एवं सनसनीखेज कहानी है।

वेंडल रॉड्रिक्स द्वारा लिखित पोसकें

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आपने पोसकें यह शब्द कदाचित कभी नहीं सुना होगा। मुझे भी इसका अर्थ तब तक ज्ञात नहीं था जब तक मैंने यह पुस्तक पढ़ने के लिए नहीं ली थी। ये वे परित्यक्त बच्चे हैं जो गोवा के उच्चवर्गीय आलीशान भवनों में बड़े होते हैं तथा उनमें रहने वाले सम्पन्न परिवारों से विचित्र संबंध जोड़ते हैं। सत्य कथाओं पर आधारित यह पुस्तक गोवा के उस रूप को चित्रित करती है जिसके विषय में अधिकांश लोग नहीं जानते। यह एक छोटी सी पुस्तक है जिसके साथ गोवा के अनेक व्यंजनों की पाकविधि भी आती है। पाककला में रुचि रखने वालों को भी इस पुस्तक को पढ़ने का कारण मिल जाता है।

‘लेट मी टेल यू अबाउट क्विंटा’ – साविया वेगस

यह पुस्तक अमेजॉन भारत से खरीद सकते हैं।

यह गोवा के समाज की एक भयावह कथा है। गोवा के लोग किसी बाहरी व्यक्ति को कैसे आँकते हैं तथा कैसे उन्हे कठोरता से बाहरी ही आभास कराते रहते हैं, इसके विषय में यह एक अंदरूनी दृष्टिकोण है। इसमें रहस्यमय एवं असाधारण दृष्टिकोण भी हैं जो प्राचीन दक्षिण गोवा के ग्रामीण परिवेश में रची इस कहानी को पहेली की एक परत से ढँक देते हैं। यह कथा परिवर्तन के विषय में चर्चा करती है। गोवा वासियों के जीवन में व्यवस्था परिवर्तन का प्रभाव दर्शाती है। गोवा के गांवों में रहने की देशी एवं विदेशी चाह का उन पर जो प्रभाव पड़ रहा है, उस विषय को भी यह कथा छूती है। यह किसी भीतरी व्यक्ति की विचारधारा पर आधारित कथा है।

‘इन्साइड/आउट: न्यू राइटिंग फ्रॉम गोवा – ऐन एंथोलॉजी’

यह पुस्तक अमेजॉन भारत अथवा अमेजॉन अमेरिका से खरीद सकते हैं।

गोवा के प्रकाशकों द्वारा प्रकाशित यह काल्पनिक एवं अकाल्पनिक लेखनों का संग्रह है जो गोवा पर आधारित हैं। इसमें गोवावासियों, अल्प-कालीन गोवावासियों, गोवा में नवीन रहवासियों तथा उन लोगों पर आधारित कथाएं हैं जो गोवा छोड़कर जा चुके हैं। यह एक खिचड़ी के समान है जिसमें अगली कथा के विषय में तनिक भर भी अनुमान नहीं रहता है। कुछ कथाएं गोवा की संस्कृति में गहरी गड़ी हुई हैं तो कुछ आपको भूतकाल में ले जाती हैं। कुछ कहानियाँ भीतरी दृष्टिकोण प्रस्तुत करती हैं। यह खिचड़ी अत्यंत रोचक है।

जेस्सिका फालेरो द्वारा लिखित ‘आफ्टरलाइफ – घोस्ट स्टोरीस फ्रॉम गोवा’

यह पुस्तक अमेजॉन से खरीद सकते हैं।

यह पुस्तक इससे उत्तम लिखी जा सकती थी। फिर भी यह आपके समक्ष गोवा की भुतहा कथाएं लेकर आती है। विश्वास कीजिए, कहानियाँ अनेक हैं।

क्या आप गोवा पर आधारित अन्य किसी अप्रतिम पुस्तक के विषय में जानते हैं जो मैं पढ़ सकती हूँ? निम्न टिप्पणी खंड में उसका उल्लेख अवश्य कीजिए।

अमेजॉन के सहयोगी के रूप में इंडिटेलस् आपकी खरीदी से कमाता है। किन्तु इससे आपके खर्चे पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा।

अनुवाद: मधुमिता ताम्हणे

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दक्षिण गोवा के पर्यटन आकर्षण – छुट्टियों का सर्वोत्तम आनंद लें https://inditales.com/hindi/dakshin-goa-paryatak-sthal/ https://inditales.com/hindi/dakshin-goa-paryatak-sthal/#respond Wed, 31 May 2023 02:30:56 +0000 https://inditales.com/hindi/?p=3071

गोवा एक लोकप्रिय पर्यटन गंतव्य है। पर्यटन की दृष्टि से इसके दो भाग हैं, उत्तर गोवा एवं दक्षिण गोवा। गोवा राज्य के दो जिले भी यही हैं। पर्यटक अधिकांशतः उत्तर गोवा के पर्यटन स्थलों को ही प्रमुख मानते हैं तथा वहीं भ्रमण करते हैं। किन्तु दक्षिण गोवा में भी पर्यटन आकर्षणों की कोई कमी नहीं […]

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गोवा एक लोकप्रिय पर्यटन गंतव्य है। पर्यटन की दृष्टि से इसके दो भाग हैं, उत्तर गोवा एवं दक्षिण गोवा। गोवा राज्य के दो जिले भी यही हैं। पर्यटक अधिकांशतः उत्तर गोवा के पर्यटन स्थलों को ही प्रमुख मानते हैं तथा वहीं भ्रमण करते हैं। किन्तु दक्षिण गोवा में भी पर्यटन आकर्षणों की कोई कमी नहीं है। वहाँ के समुद्रतट तो अप्रतिम हैं ही, प्रकृति ने दक्षिण गोवा को अनेक आकर्षक जलप्रपातों, सघन वन्यजीव अभयारण्यों तथा लुभावने ग्रामीण क्षेत्रों से संवारा है तो अनेक दर्शनीय बांधों, समृद्ध धरोहरों, विविध संग्रहालयों, संपन्न ऐतिहासिक स्थलों जैसे आकर्षणों से अलंकृत किया है।

गोवा में निवास करते हुए मैंने गोवा के दक्षिणी भागों को निकट से देखा है। दीर्घ ग्रीष्म ऋतु, मनमोहक वर्षा ऋतु तथा लघु किन्तु लुभावने शीत ऋतु में दक्षिण गोवा की सुन्दरता को अनुभव किया है। आईये मैं आपको दक्षिण गोवा के विभिन्न आकर्षक पर्यटन स्थलों का भ्रमण कराती हूँ।

मैंने दक्षिण गोवा के विविध पर्यटन स्थलों के विषय में यहाँ चर्चा की है। आप अपनी रूचि तथा पर्यटन समयावधि व ऋतु के अनुसार इनका चुनाव कर सकते हैं।

दक्षिण गोवा के दर्शनीय पर्यटन आकर्षण

दक्षिण गोवा के समुद्रतट

दक्षिण गोवा के समुद्रतट उत्तर गोवा के समुद्रतटों से भिन्न हैं। गोवा राज्य के दक्षिणी भागों में स्थित समुद्रतटों की बालू महीन व लगभग श्वेत रंग की है। किसी भी शुष्क दिवस में यदि आप इस महीन बालू पर अपने पैर रखेंगे तो आपको ऐसा प्रतीत होगा मानो आपने रेशम की ढेर पर पैर रख दिया हो। पैर यहाँ की चिकनी महीन बालू में धंसने लग जाते हैं। यहाँ की बालू पूर्णतः श्वेत नहीं है, अपितु लगभग श्वेत रंग की है।

दक्षिण गोवा के समुद्र तट
दक्षिण गोवा के समुद्र तट

यहाँ के समुद्रतटों का आनंद उठाने का सर्वोत्तम समय है, प्रातःकाल सूर्योदय से पूर्व तथा संध्याकाल सूर्यास्त के समय। आप यहाँ समुद्रतट पर पैदल सैर कर सकते हैं, दौड़ सकते हैं, जल में क्रीड़ा कर सकते हैं या कहीं बैठकर अप्रतिम दृश्यों को निहार सकते हैं। कुछ समुद्रतटों पर रोमांचक जलक्रीड़ाओं की सुविधाएं भी उपलब्ध हैं। वहीं जलपानगृहों में स्वादिष्ट व्यंजन भी उपलब्ध होते हैं। समुद्रतटों पर स्थित इन जलपानगृहों को शैक कहते हैं।

हवाई जहाज से गोवा के ऊपर उड़ते हुए आप नीचे देखें तो आपको गोवा का लंबा समुद्रतट दृष्टिगोचर होगा। गोवा का समुद्रतट लगभग १३२ किलोमीटर लम्बा है जिसके विभिन्न स्थानों पर भिन्न भिन्न नाम हैं जो उससे जुड़े गाँवों के नामों से व्युत्पन्न हैं।

लोकप्रिय समुद्रतट

दक्षिण गोवा के सर्वाधिक लोकप्रिय समुद्रतटों में पालोले, अगोंडा, मोबोर, बेतूल, बेनौलिम, तितली, गलजीबाग, कोल्वा, उतोर्दा आदि सम्मिलित हैं।

दक्षिण गोवा के सभी समुद्रतट अत्यंत सुन्दर हैं। आपके ठहरने का स्थान तथा समुद्रतट तक पहुँचने के लिए वाहन की सुविधाओं के अनुसार आप उनका चुनाव कर सकते हैं। कोल्वा समुद्रतट सुन्दर तो है ही, यह समुद्रतट रोमांचक जलक्रीड़ाओं के लिए भी लोकप्रिय है। आप यहाँ पैरासेलिंग कर सकते हैं। ऊपर से नीचे का दृश्य बहुत आकर्षक प्रतीत होता है। उतोर्दा एक शांत समुद्रतट है। कोल्वा समुद्रतट पर उत्तर की दिशा में पैदल चलें तो कुछ दूरी के पश्चात आप उतोर्दा पहुँच जायेंगे, जहाँ आप लगभग अकेले भ्रमण कर रहे होंगे। यहाँ शैक भी अल्प संख्या में हैं।

यूँ तो पर्यटक गोवा में इन समुद्रतटों का आनंद उठाने के लिए आते हैं, किन्तु यहाँ आने का सर्वोत्तम समय प्रातःकाल एवं संध्याकाल है। दोपहर की उष्णता में समुद्रतटों में भ्रमण करना असुविधाजनक हो सकता है। तो प्रातः एवं संध्या के मध्य काल में गोवा में क्या करें? दक्षिण गोवा में समुद्रतटों के अतिरिक्त भी कई प्रकार के पर्यटन आकर्षण उपलब्ध हैं। उनके विषय में जानकारी प्राप्त कर अपनी यात्रा व भ्रमण नियोजित करें एवं उनका आनंद उठायें।

दक्षिण गोवा के जलप्रपात

यदि आप वर्षा ऋतु में गोवा भ्रमण के लिए आये हुए हैं, अर्थात् जून मास से सितम्बर मास तक, इस काल में अधिकांश समुद्रतटों में जाना सुलभ व सुखद नहीं होता। इस काल में गोवा के ग्रामीण भाग अत्यंत आकर्षक हो जाते हैं। भिन्न भिन्न स्थानों पर अनेक जलप्रपात अपनी चरम आकर्षण में होते हैं। अधिकाँश जलप्रपातों तक पहुँचने के लिए वनीय क्षेत्र में पदयात्रा करनी पड़ती है। किन्तु उनमें कुछ जलप्रपात ऐसे हैं जहाँ तक पहुँचने के लिए अधिक श्रम नहीं करना पड़ता है।

कुस्केम/कुस्कें जलप्रपात

कोटिगाओ राष्ट्रीय उद्यान के भीतर छुपा हुआ यह कुस्कें जलप्रपात एक अत्यंत मनोरम जलप्रपात है। यह एक मौसमी जलप्रपात है। इसीलिए इसके अवलोकन व आनंद लेने का सर्वोत्तम समय है, वर्षा ऋतु का अंतिम चरण या उसके तुरंत पश्चात अथवा मानसून के मध्य जब भी वर्षा कुछ समय विश्राम करना चाहती हो।

कुस्केम जलप्रपात
कुस्केम जलप्रपात

यहाँ तक पहुँचने के लिए किंचित पदयात्रा करनी पड़ती है। साथ ही सही मार्ग में बने रहने के लिए उद्यान के भीतर निवास करते गाँववासियों की सहायता लेनी पड़ेगी।

दूधसागर जलप्रपात

गोवा का सर्वाधिक लोकप्रिय जलप्रपात किसी के लिए अज्ञात नहीं है। जी हाँ, दूधसागर जलप्रपात। कर्णाटक एवं गोवा राज्यों की सीमा पर स्थित यह जलप्रपात भी भगवान महावीर अभयारण्य एवं मोल्लेम राष्ट्रीय उद्यान के मध्य स्थित है। मानसून में तथा उसके तुरंत पश्चात यह एक विहंगम जलप्रपात बन जाता है जिसकी तीव्रता शनैः शनैः कम होती जाती है।

दूधसागर जलप्रपात गोवा
दूधसागर जलप्रपात गोवा

यदि मैं आपसे कहूँ कि इस जलप्रपात के अवलोकन का सर्वोत्तम साधन रेलगाड़ी है, तो आप आश्चर्यचकित हो जायेंगे। यह रेलगाड़ियाँ दक्षिण-पश्चिम रेल मार्ग पर दौड़ती हैं जिनके भीतर से आप इस भव्य जलप्रपात का अवलोकन कर सकते हैं। कुछ ऐसी रेलगाड़ियाँ भी उपलब्ध है जो पर्यटकों को यहाँ तक लाती एवं ले जाती हैं किन्तु उनकी संख्या अधिक नहीं है।

दूधसागर झरने तक पहुँचने के लिए सड़क मार्ग भी है जो भगवान महावीर वन्यजीव अभयारण्य से होकर जाता है। यह मार्ग हरे-भरे जंगल एवं कलकल करती नदियों के भीतर से जाता है जो अत्यंत रोमांचक व मनमोहक होता है।

इसके लिए वनविभाग की अनुमति लेना आवश्यक है। सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए केवल वन विभाग की जीपों को ही अनुमति प्राप्त है कि वे आपको मोल्लेम गाँव से दूधसागर तक ले जाएँ व वापिस लायें। यह पर्यटन मानसून के पश्चात आरंभ होता है तथा इसकी आरंभ तिथि भी वन विभाग ही निश्चित करता है।

नेत्रावली जलप्रपात

नेत्रावली जलप्रपात
नेत्रावली जलप्रपात

नेत्रावली जलप्रपात अत्यंत सघन नेत्रावली वन्यजीव अभयारण्य के भीतर स्थित है। यहाँ तक पहुँचने के लिए पदभ्रमण एवं एक प्रशिक्षित गाइड की आवश्यकता होती है।

दक्षिण गोवा के वन्यजीव अभयारण्य

गोवा राज्य को प्रकृति ने अनेक नदियों, समुद्रतटों, द्वीपों, वन्यजीव अभयारण्यों व हरे-भरे सघन वनों से अलंकृत किया है। प्रकृति यहाँ की जैव-विविधता का पोषण भी करती है तथा संरक्षण भी करती है। गोवा में प्रकृति के सानिध्य में कुछ समय अवश्य व्यतीत करें, यहाँ के प्राकृतिक सौंदर्य का आनंद लें, वन्यप्राणियों एवं पक्षियों का अवलोकन करें। दक्षिण गोवा के प्राकृतिक मणियों का आनंद उठाने के लिए आप इन स्थानों पर जा सकते हैं,

बोंडला वन्यजीव अभयारण्य एवं चिड़ियाघर

बोंडला वन्यजीव अभयारण्य एवं चिड़ियाघर आपको गोवा के ग्रामीण क्षेत्रों के सघन वनों का आनंद लेने, पक्षियों का अवलोकन करने व उनकी चहचहाहट सुनने का अवसर प्रदान करता है।

बोंडला के जीव जंतु
बोंडला के जीव जंतु

सौभाग्य से आपको प्राकृतिक वातावरण में विचरण करते कुछ वन्य प्राणियों के दर्शन भी हो सकते हैं। साथ ही आपको चिड़ियाघर के वन्यजीवों के अवलोकन का भी अवसर देता है। जल स्त्रोतों के तटों पर मगरमच्छों को देखना ना भूलें।

कोटिगाओ वन्यजीव अभयारण्य

कोटिगाओ वन्यजीव अभयारण्य किसी वनीय प्रदेश में विचरण करने व पदभ्रमण करने का मेंरा सर्वप्रिय स्थान है।

कोटिगाव के प्राकृतिक दृश्य
कोटिगाव के प्राकृतिक दृश्य

आप यहाँ शांति से विचरण कर सकते हैं, वृक्षों पर चढ़ सकते हैं तथा ऊँचाई से वन का दर्शन कर सकते हैं।

भगवान महावीर अभयारण्य एवं मोल्लेम राष्ट्रीय उद्यान

भगवान महावीर अभयारण्य एवं मोल्लेम राष्ट्रीय उद्यान का भ्रमण आप दूधसागर जलप्रपात के अवलोकन के साथ नियोजित कर सकते हैं।

दक्षिण गोवा के संग्रहालय

गोवा के संग्रहालयों ने गोवा के विविध धरोहरी संपत्ति को अनेक अनूठी रीतियों से संरक्षित व प्रदर्शित किया है। उनमें से कुछ हैं,

गोवा चित्र एवं चक्र संग्रहालय

गोवा चित्र एवं चक्र संग्रहालय राज्य की जातीय पृष्ठभूमि एवं उसके चक्र को समर्पित है। बनोलिम नगर में स्थित इस संग्रहालय में गोवा की पारंपरिक जीवनशैली से संबंधित वस्तुओं का संग्रह है।

गोवा एक कृषि प्रधान राज्य रहा है। इस संग्रहालय में भी कृषि संबंधित अनेक वस्तुएं देखी जा सकती है। गोवा के इस संग्रहालय द्वारा आप मानवशास्त्र व समाजशास्त्र के उस अनमोल चक्र को समझ सकेंगे जिस पर मानवजाति समय समय पर अग्रसर होती रहती है।

बिगफूट संग्रहालय, क्रॉस/क्रूस संग्रहालय एवं पुर्तगाली धरोहर को संजोया एक पुर्तगाली निवास

दक्षिण गोवा के संग्रहालय
दक्षिण गोवा के संग्रहालय

गोवा की पुरातन संस्कृति एवं जीवनशैली को सादगी भरी अनूठी रीति से समझना हो तो आप बिगफूट संग्रहालय अवश्य जाएँ। क्या आप जानते हैं कि ईसाइयों के क्रॉस अथवा क्रूस का विश्व भर में विशालतम संग्रह गोवा में ही है?

नौसेना उड्डयन संग्रहालय/ Naval Aviation Museum

इस संग्रहालय में नौसेना के इतिहास एवं नौसैनिक हवाई जहाज़ों को प्रदर्शित किया है। इस संग्रहालय में आप आइ एन एस विराट का एक प्रतिरूप भी देख सकते हैं।

दक्षिण गोवा के ग्रामीण भाग, बाँध एवं वनस्पति उद्यान

गोवा राज्य में अन्जुने बाँध तथा अमथाने बांध जैसे छोटे बाँध हैं तो इसके दक्षिणी भाग में एक अत्यंत ही अनूठा बाँध है, सालावाली अथवा सलौलिम बाँध। डकबिल स्पिलवे तकनीक से निर्मित यह बाँध अर्धगोलाकार है जिसमें कोई भी द्वार नहीं है। बाँध का अतिरिक्त जल वापिस नदी में गिर जाता है जो उसे वहाँ से समुद्र तक ले जाती है।

दक्षिण गोवा के गाँव
दक्षिण गोवा के गाँव

मानसून ऋतु में यह बाँध अत्यंत दर्शनीय हो जाता है। यह झरने जैसा ही प्रतीत होता है।

सालावाली बाँध एवं वनस्पति उद्यान

डकबिल स्पिलवे तकनीक से निर्मित सालावली/सलौलिम बाँध स्वयं में एक अनूठा बाँध है। इसका सम्पूर्ण परिसर हराभरा एवं विस्तृत है।

सलौलिम बाँध
सलौलिम बाँध

यहाँ का वनस्पति उद्यान भी अत्यंत समृद्ध है। वनस्पति उद्यान में रूचि रखने वालों के लिए यह एक उत्तम अवसर है।

बुडबुड ताल अथवा बुलबुलों वाला सरोवर एवं मसाला उद्यान

दक्षिण गोवा के नेत्रावली क्षेत्र में स्थित गोपीनाथ मंदिर के जलकुंड की एक अद्भुत विशेषता है। इसके समीप ताली बजाने पर इसके भीतर से बुलबुले निकलते हैं। आप भी अनुभव करना चाहते हैं? तो बुडबुड ताल अवश्य जाएँ। इसके समीप ही मसाला उद्यान है जहाँ होमस्टे की सुविधाएं भी उपलब्ध हैं। नेत्रावली जलप्रपात भी समीप ही स्थित है।

गोवा में इसके अतिरिक्त भी अनेक मसाला उद्यान हैं जहाँ वे आपको भिन्न भिन्न प्रकार के मसालों के पौधे व वृक्ष दिखाते हैं। जिन मसालों का हम भोजन बनाने में प्रयोग करते हैं, उनके पौधे अथवा वृक्ष देखना, उनकी खेती के विभिन्न चरणों को जानना आदि स्वयं में एक अनोखा अनुभव होता है।

तितली संरक्षण व संवर्धन उद्यान

यह एक चिकित्सक पति-पत्नी का व्यक्तिगत प्रयास है जो प्रकृति संरक्षण एवं संवर्धन की ओर एक सराहनीय उपलब्धि है। इस तितली संरक्षण उद्यान में गोवा में पायी जाने वाली तितलियों की लगभग सभी प्रजातियों का संवर्धन किया जा रहा है। यहाँ आपको प्राकृतिक परिप्रेक्ष्य में तितलियों के संवर्धन के विभिन्न चरणों की भी जानकारी प्राप्त होगी।

दक्षिण गोवा के मंदिर

प्राचीनकाल में गोवा के सम्पूर्ण दक्षिणी भाग में अनेक मंदिर थे। पुर्तगाली आक्रमणकारियों ने उनमें से अधिकाँश मंदिरों को नष्ट कर दिया था। कई मंदिरों के पुरोहित देवी-देवताओं के विग्रहों को लेकर फोंडा के राजा की शरण आये थे जहाँ उन मंदिरों का पुनः निर्माण किया गया। आकर्षक स्थापत्य शैली में निर्मित गोवा के मंदिरों की भव्यता आपको अचंभित कर देगी। हमने गोवा के सर्वाधिक आकर्षक व लोकप्रिय प्रमुख मंदिरों की सूची बनाई है जिनका अवलोकन आप आधे दिन में पूर्ण कर सकते हैं।

यदि आप अपना गोवा भ्रमण सुनियोजित कर सकें तो आप यहाँ के देवकी कृष्ण मंदिर में आयोजित चिखल कालो उत्सव देख सकते हैं। यह एक उल्हासपूर्ण उत्सव होता है। उसी प्रकार साखली के अनंत मंदिर में आयोजित देवदीपावली का उत्सव भी अत्यंत दर्शनीय होता है। ऐसे उत्सव आपने अन्यथा कहीं नहीं देखे होंगे।

गोवा के ऐतिहासिक धरोहर

पुर्तगाली युग के निवासस्थान

गोवा की प्राचीन राजधानी का नाम था, चांदोर। चांदोर में अब उस युग की धरोहर के नाम पर अधिक कुछ शेष नहीं है। किन्तु यहाँ पुर्तगाली युग की कुछ विशाल भव्य इमारतें अब भी शेष हैं। उनमें से मेनेजेस ब्रेगेन्ज़ा जैसे कुछ निवास स्थान सार्वजनिक दर्शन के लिए खुले रहते हैं।

रशोल सेमिनरी/पादरी शिक्षा संस्थान

एशिया की प्राचीनतम एवं विशालतम सेमिनरी अथवा पादरियों की शिक्षा संस्थानों में से एक, रशोल सेमिनरी गोवा में है। इस परिसर की संरचना एवं वास्तुशैली दर्शनीय है।

दक्षिण गोवा के प्राचीन दर्शनीय स्थल

क्या आप जानते हैं, विश्व की प्राचीनतम ज्ञात भंवरजाल अथवा शैलचित्र दक्षिण गोवा की एक नदी के तल पर स्थित है? उन्हें देखने के लिए आपको उसगलीमोल या पन्सोईमोल जाना पड़ेगा। शरावती नदी के तट पर आप विविध प्रकार के शैलोत्कीर्ण देखेंगे जिनमें पशुओं, मानव जन्म के दृश्यों आदि को प्रदर्शित किया गया है। वहाँ भंवरजाल अथवा भूलभुलैया के समान प्राचीन शैलचित्र भी हैं। प्रागैतिहासिक काल के ये शैलोत्कीर्ण गोवा राज्य में पनपते अखंड जीवंत सभ्यता के सर्वोत्तम साक्ष्य हैं।

इन शैलोत्कीर्णों के समीप ही प्राचीन रिवोना गुफाएं भी हैं।

दक्षिण गोवा में पक्षी दर्शन

दक्षिण गोवा में पक्षी दर्शन
दक्षिण गोवा में पक्षी दर्शन

गोवा राज्य लघुतम राज्य होने के पश्चात भी भारत के सर्वाधिक जैव-विविधता युक्त राज्यों में से एक है। गोवा के लगभग सभी खेतों, आर्द्र भूमि तथा नदी तट पर आप विविध प्रजातियों के प्रवासी एवं अप्रवासी पक्षी देख सकते हैं। मेरा सुझाव है कि आप दक्षिण गोवा के मायना जैसे शांत ग्रामीण भागों में पदभ्रमण करें। विशेषतः प्रातःकाल में आपको यहाँ अनेक प्रकार के पक्षियों के दर्शन होंगे।

रोमांचक पदभ्रमण

यदि आप पश्चिमी घाटों एवं अन्य छोटे-बड़े पहाड़ियों पर चढ़ना चाहते है अथवा वनीय क्षेत्रों में सुनियोजित रोमांचक पदयात्रा करना चाहते हैं तो गोवा राज्य में विभिन्न प्रकार के रोमांचक पदयात्राएं आयोजित किये जाते हैं।

रीस मागोस दुर्ग जैसे अनेक सार्वजनिक स्थलों पर गोवा के सुपुत्र एवं लोकप्रिय व्यंगचित्रकार मारिओ मिरांडा के व्यंगचित्र प्रदर्शित किये गए हैं। उनका प्रत्येक व्यंगचित्र स्वयं में एक व्यंगकथा कहता है।

इनमें से आपकी रूचि किन किन में है? दक्षिण गोवा में अपनी छुट्टियों का सर्वाधिक आनंद उठायें।

अनुवाद: मधुमिता ताम्हणे

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गोवा के सुप्रसिद्ध म्हापसा बाज़ार की सैर https://inditales.com/hindi/goa-ka-shukravaar-mapusa-bazaar/ https://inditales.com/hindi/goa-ka-shukravaar-mapusa-bazaar/#respond Wed, 01 Feb 2023 02:30:35 +0000 https://inditales.com/hindi/?p=2946

म्हापसा गोवा की चार प्रमुख नगरियों में से एक है। प्राचीन युग से यह उत्तर गोवा का व्यापार केंद्र रहा है। गोवा के निवासी अब भी म्हापसा बाज़ार पर अत्यंत मोहित रहते हैं। यहाँ तक कि म्हापसा नगरी का नाम भी म्हापसा बाज़ार से आया है जो अब इसकी पहचान बन गया है। आप सब […]

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म्हापसा गोवा की चार प्रमुख नगरियों में से एक है। प्राचीन युग से यह उत्तर गोवा का व्यापार केंद्र रहा है। गोवा के निवासी अब भी म्हापसा बाज़ार पर अत्यंत मोहित रहते हैं। यहाँ तक कि म्हापसा नगरी का नाम भी म्हापसा बाज़ार से आया है जो अब इसकी पहचान बन गया है।

म्हापसा बाज़ार गोवा
म्हापसा बाज़ार गोवा

आप सब ने गोवा के मडगांव नगर के विषय में सुना ही होगा। जैसे मडगांव दक्षिण गोवा का केंद्र बिंदु है, वही स्थान उत्तर गोवा में म्हापसा का है। पणजी नगर ने गोवा एवं गोवा-वासियों के जीवन में विलंब से प्रवेश किया था। म्हापसा शब्द की व्युत्पत्ति माप शब्द से हुई है जिसका अर्थ है मापना। किसी व्यापारिक क्षेत्र का नाम इससे अधिक उपयुक्त नहीं हो सकता। व्यंगय में लोग इसे महा पिशे अर्थात महान पागलों की नगरी भी कहते हैं।

म्हापसा बाज़ार

म्हापसा एवं इसके आसपास के क्षेत्रों से लोग प्रत्येक शुक्रवार को आवश्यक वस्तुएँ क्रय करने हेतु म्हापसा बाज़ार आते हैं। लोग इस बाज़ार को अब भी शुक्रवार से जोड़कर ही देखते हैं क्योंकि प्रत्येक शुक्रवार को यहाँ पारंपरिक बाज़ार भरता था। यह और बात है कि आजकल सप्ताह के अन्य दिनों में भी म्हापसा बाज़ार उतना ही चहल-पहल एवं भीड़ भाड़ भरा होता है। सप्ताह के अन्य दिनों में भिन्न गाँवों में यह बाज़ार भरता है।

जड़ी बूटियाँ - म्हापसा बाज़ार
जड़ी बूटियाँ – म्हापसा बाज़ार

इतिहास की दृष्टि से देखें तो जो बाज़ार आज हम देखते हैं, उसका आरंभ १९६० में हुआ था। अर्थात १९६१ में प्राप्त गोवा मुक्ति से ठीक एक वर्ष पूर्व। यह गोवा का प्रथम योजनाबद्ध एवं आयोजित बाज़ार है। इसे उस काल का शॉपिंग मॉल कह सकते हैं। दुकानों की गलियों के मध्य खुले स्थान होते हैं जहां व्यापारिक वस्तुओं की लदाई व उतराई की जा सकती है। कुछ इतिहासकारों का मानना है कि यह स्थान सिपाहियों द्वारा बाज़ार पर निगरानी रखने हेतु नियोजित किया गया था। दुकानों के समक्ष समानांतर जाते हुए स्तम्भ युक्त गलियारे प्रमाण हैं।

कंकना पाव
कंकना पाव

बाज़ार को इस प्रकार नियोजित किया गया है कि एक प्रकार की वस्तुएं एक ही गली में उपलब्ध हो जाती हैं। उसी प्रकार भिन्न वस्तुओं के लिए भिन्न गालियाँ नियोजित हैं। जैसे सुनारों की सभी दुकानें एक गली में स्थित हैं तो कपड़ों की दुकानें दूसरी गली में। अंतिम गली बहुधा उन वस्तुओं के लिए होती है जिन्हे आप बाज़ार के अंत में खरीदना चाहते हैं। जैसे मछली तथा उसी प्रकार की अन्य वस्तुएं।

शकुंतला की प्रतिमा

बाज़ार चौक में फव्वारे के रूप में शकुंतला की प्रतिमा है। हम सब जानते हैं कि शकुंतला उत्तराखंड के कण्वाश्रम में पली–बढ़ी है। उसका गोवा से क्या संबंध? अपने आसपास पूछताछ करिये। कदाचित आपको इसका उत्तर प्राप्त हो जाएगा।

गोवा के मसाले
गोवा के मसाले

पारंपरिक रूप से गोवा के दूर-सुदूर गांवों से यहाँ बाज़ार में बेचने के लिए अनेक प्रकार की ताजी वस्तुएं लायी जाती थीं। आज भी आप अधिकतर उसी प्रकार की वस्तुएं यहाँ देखेंगे। किन्तु समय के साथ हुए परिवर्तन की भी झलक दिखाई पड़ ही जाती है। खरीददारों के इच्छानुरूप वस्तुएं लाने का प्रयत्न व्यापारी सदैव करते हैं, फिर वह चीनी वस्तु ही क्यों ना हो।

बाज़ार में नानबाई अर्थात डबलरोटी वालों के क्षेत्र में जाना ना भूलें। यहाँ गोवा के कई डबलरोटी वाले अनेक प्रकार की ताजी डबलरोटियों के प्रकार लेकर आते हैं। जैसे पोई, काकना, उने, पाव इत्यादि। दैनिक प्रयोग के लिए कई लोग यहाँ से डबलरोटियाँ ले जाते हैं। आप देख सकते हैं कैसे डबलरोटीवाले के हाथ जल्दी जल्दी इन डबलरोटियों को समाचारपत्र में बांधते हैं। देखते हो देखते उनकी टोकरी रिक्त होने लगती है।

म्हापसा के कुम्हार
म्हापसा के कुम्हार

बाज़ार का मेरा सर्वाधिक प्रिय भाग है गोवा के कुम्हार।

बाज़ार का पिछला भाग केलों एवं टोकरियों को समर्पित है। सींक की टोकरियों को बुनने वाली अधिकतर स्त्रियाँ हैं। वे यहाँ टोकरियाँ, छोटी थैलियाँ तथा हस्त पंखे इत्यादि लाकर बेचती हैं। गोवा में विवाह के अवसर पर दो टोकरियाँ, एक पर्स तथा एक हस्त पंखे का उपहार वधू को दिया जाता है। मेरे गाइड के अनुसार यह कला इसी परंपरा के कारण अब भी जीवित है।

१९६० से पूर्व, यह बाज़ार आज के बाज़ार के समीप स्थित गलियों में भरता था। उस क्षेत्र को अब अँगोद कहा जाता है। यह शब्द कन्नड भाषा के शब्द अंगदी से व्युत्पन्न है जिसका अर्थ बाज़ार है। आप जब यहाँ की दुकानों के फलक देखेंगे तो आपको पते पर यह शब्द अंकित दृष्टिगोचर होगा।

शांतादुर्गा धारगल

म्हापसा की ग्रामदेवी शांतादुर्गा हैं। अब वे धारगल में निवास करती हैं जो चापोरा नदी के उस पार, यहाँ से लगभग १४ की. मी. दूर है। गोवा में पुर्तगालियों के आक्रमण के समय उन्हे यहाँ से धारगल में स्थानांतरित किया गया था। उन्हे अब भी म्हापसा की अधिष्ठात्री देवी माना जाता है।

शांतादुर्गा मंदिर
शांतादुर्गा मंदिर

म्हापसा के निवासी किसी भी महत्वपूर्ण अथवा नवीन कार्य आरंभ करने से पूर्व देवी का आशीर्वाद लेने वहाँ अवश्य जाते हैं। होली के समान कई उत्सवों का शुभारंभ धारगल के मंदिर में किया जाता है। तत्पश्चात लोग अपने गाँव में उत्सव मनाते हैं।

पुराने बस स्थानक के समक्ष एक गृह के भीतर एक छोटा शांतादुर्गा मंदिर आप देखेंगे। देवी को म्हापसा से धारगल स्थानांतरित करते समय उन्हे अस्थायी समय के लिए यहाँ बिठाया गया था। उनकी स्मृति में यह छोटा मंदिर बनाया गया है। जब मैं यहाँ आई थी तब यह मंदिर बंद था। किन्तु ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे भक्तगण इस मंदिर में दर्शनार्थ आते रहते हैं। कदाचित आपको दर्शन प्राप्त हो जाएँ।

म्हापसा नगरी की बाहरी सीमाओं पर चार दिशाओं में ४ देव हैं जिन्हे राष्ट्रोली कहा जाता है। लोग जब भी नगर से बाहर यात्रा पर जाते थे तब वे संबंधित मंदिर में दर्शन करते थे। जैसे दक्षिण में प्रसिद्ध बोडगेश्वर मंदिर है।

हनुमान मंदिर

आप जब बाज़ार अथवा बस स्थानक की ओर आयेंगे तो आपके समक्ष एक उजला केसरिया रंग का मंदिर दिखेगा जिसे आप चाह कर भी अनदेखा नहीं कर सकते। इस मंदिर के अधिष्ठात्र देव दक्षिणमुखी मारुति हैं। उनका मुख दक्षिण दिशा की ओर है।

दक्षिणमुखी हनुमान मंदिर - म्हापसा
दक्षिणमुखी हनुमान मंदिर – म्हापसा

ऐसा कहा जाता है कि लगभग २०० वर्षों पूर्व इस मंदिर के स्थान पर एक दुकान थी। उस दुकान का स्वामी एक हनुमान भक्त था। उसने चंदन की लकड़ी द्वारा निर्मित हनुमान की एक मूर्ति लाकर दुकान के भीतर स्थापित की थी। चूंकि दुकान का मुख दक्षिण की ओर था, हनुमान जी की मूर्ति भी दक्षिणमुखी स्थापित हुई। जब वे हनुमानजी की पूजा अर्चना करते थे तब अन्य भक्तगण भी उनके साथ आराधना में सम्मिलित हो जाते थे। धीरे धीरे भक्तों की संख्या में वृद्धि होने लगी तथा यह दुकान मंदिर में परिवर्तित हो गई।

म्हापसा तथा स्वतंत्रता आंदोलन

गोवा की एक स्वतंत्रता सेनानी सुधाताई जोशी एक आम सभा को संबोधित करने म्हापसा आई थीं। ‘जय हिन्द’ का उद्घोष करने के अपराध में उन्हे बंदी बनाया गया था। उन पर अर्थदंड लगाकर उन्हे कारागृह में कुछ वर्षों के लिए बंद किया गया था। इस विषय में और जानकारी प्राप्त करने के लिए इस फेसबुक पन्ने पर जाइए।

मुकुंद पुण्डलिक कामत-धाकणकर एवं उनके साथियों को बैंक एवं पुलिस स्थानक लूटने का प्रयत्न करने के अपराध में अंगोला निर्वासित किया गया था। इस नगर के एक मार्ग का नामकरण उन्ही के नाम पर किया गया है। वे गोवा के पूर्व मुख्य मंत्री स्व. श्री मनोहर पार्रिकर के सगे-संबंधी भी थे।

मारुति मंदिर के समीप लगे एक सूचना पट्टिका पर बारदेज तालुका के हुतात्मा स्वतंत्रता सेनानियों के नाम अंकित हैं। म्हापसा बारदेज तालुका के अंतर्गत एक नगर है।

चाचा नेहरू बागीचा

म्हापसा की गलियों में पुरानी गाड़ियाँ
म्हापसा की गलियों में पुरानी गाड़ियाँ

मारुति मंदिर के समक्ष एक बच्चों के खेलने के लिए एक बगीचा है। बच्चों के लिए इस बगीचे का मुख्य आकर्षण है धूसर रंग की तथा हाथी के आकार की एक फिसलपट्टी। मुझे बताया गया कि स्थानीय निवासियों को इस हाथी को अखंड रखने के लिए अनेक संघर्ष करने पड़े थे।

पुस्तकालय

मारुति मंदिर से आगे बढ़ने पर आपको एक और मंदिर दिखेगा। उजले पीले रंग का यह मंदिर लक्ष्मी नारायण मंदिर है।

मार्ग में आप एक प्राचीन पुस्तकालय देखेंगे। मुझे यहाँ कई दर्जी तथा आधुनिक वस्त्रों की दुकानें भी दिखीं। दवाई की एक प्रसिद्ध दुकान भी थी। किसी समय प्रसिद्ध वैद्य अपने निवासस्थान पर ही बीमार व्यक्तियों को जाँचते थे। उनमें से कुछ अब भी इस सेवा में सक्रिय हैं।

समीप ही श्वेत भित्तियों से घिरा हुआ एक चौक है जिसके मध्य में अंबेडकर की एक मूर्ति है। यह पुराना बस स्थानक था। यद्यपि बसों ने तो कुछ काल के पश्चात पदार्पण किया था, तथापि नगर से धारगल अथवा शिओली तक यात्रियों को तांगा अथवा बैलगाड़ी द्वारा ही जाना पड़ता था। उससे आगे उन्हे पैदल ही जाना पड़ता था।

इसके समीप अट्टई पुस्तकालय है जिसका नाम फादर अट्टई पर रखा गया था। फादर अट्टई पादरी नहीं थे, अपितु एक समाजसेवी थे।

स्विस चैपल

नगर के मध्य में एक छोटा श्वेत रंग का उजला चैपल है जो ईसाइयों का पूजास्थल है। इसे स्विस चैपल क्यों कहते हैं यह कोई नहीं जानता। दूर की संभावना यह हो सकती है कि इसमें स्विस वास्तुकला की कुछ झलक दिखाई पड़ती है।

स्विस चैपल म्हापसा गोवा
स्विस चैपल म्हापसा गोवा

कुछ आगे जाने पर अलंकार सिनेमगृह है जो अब निष्क्रिय है। इस पर बाहुबली चलचित्र का विज्ञापन अब भी चिपका हुआ है जो इस सिनेमगृह में दिखाई जाने वाली अंतिम फिल्म थी। इसके बाहर छोटी छोटी गुमटियाँ हैं जो संध्या ७ बजे के पश्चात खुलती हैं। और तब यह स्थान अत्यंत क्रियाशील एवं गुंजायमान हो जाता है। यह म्हापसा का रात्रि का स्ट्रीट फूड बाज़ार बन जाता है। यहाँ एक बप्पा गुमटी है जो विशेषतः इसलिए प्रसिद्ध है कि गोवा के पूर्व मुख्य मंत्री स्व. श्री मनोहर पार्रिकर यहाँ कई बार आते थे। उन्होंने अनेक बार यहाँ अपने साथियों के साथ पार्टी बैठकें भी आयोजित की थीं तथा राजनैतिक विचार विमर्ष किया था। यह स्थान मीठे पेय के लिए प्रसिद्ध है।

गोवा के घर
गोवा के घर

आसपास सैर करते हुए कुछ समय बिताईए। लेटराइट पत्थर द्वारा निर्मित कुछ निवास अत्यंत मनमोहक हैं तो कुछ जर्जर स्थिति में भी हैं।

खाने-पीने के कुछ प्रसिद्ध स्थल

बाबाजी कैफै – मारुति मंदिर के एक ओर स्थित है। लिमसी यहाँ का प्रसिद्ध पुदीना डला नींबू शिकंजी है। यह कैफै नगर के युवाओं की मनपसंद बैठक है।

वृंदावन – यह प्रथम अल्पाहारगृह है जहां इडली बनाने का यंत्र लाया गया था। इस तथ्य ने इस अल्पाहारगृह को प्रसिद्धि दिलाई थी। कहा जाता है कि लोग यहाँ विशेष रूप से यह देखने आते थे कि यह यंत्र कैसा दिखता है। इसे देख यह विश्वास होता है कि एक बार पाई प्रसिद्धि आप के साथ सदैव रह सकती है।

ले जार्डिन –  एक समय यह नगर का बड़ा भोजनालय था।

म्हापसा बाज़ार यात्रा सुझाव

पणजी तथा मडगाव से म्हापसा तक सार्वजनिक परिवहन द्वारा आसानी से पहुँचा जा सकता है।

खाने-पीने की उत्तम सुविधाएं उपलब्ध हैं। कुछ के नाम उपरोक्त उल्लेख किए गए हैं।

म्हापसा के साथ आप पास के कुछ अन्य गाँव भी घूम सकते हैं, जैसे मोइरा, अलदोना, असागाव तथा अंजुना

ठहरने के लिए भी अनेक उत्तम सुविधाएं उपलब्ध हैं। गोवा पर्यटन विकास निगम द्वारा संचालित म्हापसा रेज़िडन्सी भी उनमें से एक है।

म्हापसा बाज़ार में विशेषतः शुक्रवार के दिन बहुत लोग आते हैं। इसीलिए इस बाज़ार को शुक्रवार बाज़ार अथवा फ्राइडे मार्केट भी कहा जाता है। आजकल यह बाजार सप्ताह के सभी दिन ग्राहकों एवं विक्रेताओं की चहल-पहल से भरा रहता है।

अनुवाद: मधुमिता ताम्हणे

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प्राचीन पुराण वर्णित म्हालसा नारायणी मंदिर वेर्णा गोवा https://inditales.com/hindi/mahalasa-narayani-mandir-verna-goa/ https://inditales.com/hindi/mahalasa-narayani-mandir-verna-goa/#respond Wed, 28 Sep 2022 02:30:46 +0000 https://inditales.com/hindi/?p=2808

म्हालसा नारायणी मंदिर अथवा महालसा नारायणी मंदिर गोवा के प्रमुख मंदिरों में से एक है। फोंडा के मार्दोल में स्थित म्हालसा नारायणी मंदिर के मैंने अनेक बार दर्शन किये हैं। कुछ वर्ष पूर्व मैंने गोवा के मंदिरों के विषय में Goa Temple Trail नामक संस्करण लिखा था। मार्दोल का म्हालसा नारायणी मंदिर उस संस्करण में सम्मिलित […]

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म्हालसा नारायणी मंदिर अथवा महालसा नारायणी मंदिर गोवा के प्रमुख मंदिरों में से एक है। फोंडा के मार्दोल में स्थित म्हालसा नारायणी मंदिर के मैंने अनेक बार दर्शन किये हैं। कुछ वर्ष पूर्व मैंने गोवा के मंदिरों के विषय में Goa Temple Trail नामक संस्करण लिखा था। मार्दोल का म्हालसा नारायणी मंदिर उस संस्करण में सम्मिलित है। किन्तु जब मैंने देवी से सम्बंधित प्राचीन साहित्यों का वाचन आरम्भ किया, एक तथ्य ने मेरा ध्यान खींचा। अनेक स्थानों पर म्हालसा देवी का उल्लेख गोमान्तक क्षेत्र से जोड़कर किया गया था। इसने मुझे यह सोचने पर बाध्य कर दिया कि कदाचित वे गोवा की प्राचीनतम अधिष्ठात्री देवी हैं।

म्हालसा नारायणी मंदिर गोवा
म्हालसा नारायणी मंदिर गोवा

तब मैंने डॉ. मोहन पाई द्वारा लिखित पुस्तक ‘For the love of Mandovi’ पढ़ी जिसमें १६वीं शताब्दी के गोवा के विषय में वर्णन किया गया है, जब पुर्तगालियों ने इस धरती पर अपना अधिपत्य जमाकर यहाँ के मंदिरों को ध्वस्त करना आरम्भ किया था। इस पुस्तक में वरण्यपुरम अथवा वरुणापुरम में स्थित देवी म्हालसा के मंदिर के विषय में प्रमुखता से वर्णन किया गया है। जैसे पुराण में लिखा गया है, इस पुस्तक से भी यही अनुमान लगता है कि यह मंदिर इस क्षेत्र के विशालतम मंदिरों में से एक था।

म्हालसा देवी से सम्बंधित दंतकथाएं

मंदिर के पुरोहितजी के अनुसार, अनेक वर्ष पूर्व देवी वायु के रूप में गोमान्तक आयी थीं। विराजमान होने के लिए उन्होंने उपयुक्त स्थान की खोज आरम्भ की। अंत में वे वरण्यपुरम में स्थायी हो गयीं। वहां के लोगों ने उन्हें पेयजल की कमी के विषय में जानकारी दी। तब देवी ने अपने पैर के अंगूठे से धरती को भेदकर एक सरोवर की रचना की, जहां से पेयजल का सोता फूट पड़ा।

उस स्थान का नाम पड़ा, नुपुर तीर्थ। नुपुर देवी के चरणों के आभूषण का नाम है। देवी के यहाँ विराजमान होते ही उनके लिए एक मंदिर की रचना हुई। समीप ही लेटराइट (लोह खनिज) की शिलाओं द्वारा एक अन्य विशाल जलकुंड की भी संरचना की गयी। मेरे अनुमान से ये दोनों जलकुंड धरती के भीतर एक ही जलस्त्रोत से जुड़े हुए हैं। यह स्थान  वरण्यपुरम के सामाजिक जीवन का केंद्र बिंदु बन गया था जो साथ ही साथ, एक प्रमुख व विशाल व्यापारिक केंद्र भी बना।

सागर मंथन कथा

म्हालसा नारायणी का सम्बन्ध सागर मंथन की पौराणिक कथा से भी है। भगवान विष्णु ने सागर मंथन से प्राप्त अमृत का वितरण करने के लिए मोहिनी अवतार धारण किया था। अमृत का पान करने के लिए स्वरभानु नामक एक असुर भी देवताओं की पंक्ति में कपट से बैठ गया था। भगवान विष्णु ने सुदर्शन चक्र से उस असुर के दो भाग कर दिए थे। असुर का सर राहु कहलाया तथा उसके धड़ को केतु कहा गया। भगवान विष्णु ने मोहिनी के रूप में राहु का पीछा किया। म्हालसा नामक पहाड़ी पर जाकर मोहिनी ने राहु का वध किया तथा उसके ऊपर खड़ी हो गयी। भगवान विष्णु का यही अवतार म्हालसा नारायणी के रूप में अमर हो गया। उन्हें राहु मर्दिनी भी कहा जाता है। यद्यपि मुझे यह जानकारी नहीं मिल पायी कि क्या राहु से सम्बंधित कोई धार्मिक अनुष्ठान का यहाँ आयोजन किया जाता है।

म्हालसा नारायणी मंदिर की पुष्करणी
म्हालसा नारायणी मंदिर की पुष्करणी

अन्य पौराणिक मान्यताओं के अनुसार देवी म्हालसा मल्हारी मार्तंड अर्थात् खंडोबा की पत्नी है। खंडोबा भगवान शिव के ही एक रूप हैं जिन्हें देश के पश्चिमी भागों में बड़ी श्रद्धा से पूजा जाता है। म्हालसा नारायणी मंदिर से कुछ  ही दूरी पर मल्हारी मार्तंड का मंदिर भी है। कदाचित मल्हारी मार्तंड का यह मंदिर पूर्वकालीन म्हालसा नारायणी मंदिर परिसर का ही एक भाग रहा होगा। एक प्रकार से देखा जाए तो यह कथा पहली कथा से असम्बद्ध नहीं है। ऐसा कहा जाता है कि भगवान शिव मोहिनी पर मोहित हो गए थे। इसी कारण उन्होंने खंडोबा का मानवी अवतार ग्रहण किया था ताकि वे म्हालसा से विवाह कर सकें।

एक अन्य दंतकथा के अनुसार म्हालसा देवी पार्वती का ही एक रूप है। मणि एवं मल्ला नामक असुरों का वध करने के लिए भगवान शिव ने भैरव का तथा देवी पार्वती ने म्हालसा का अवतार ग्रहण किया था।

वेर्णा का म्हालसा नारायणी मंदिर

आज मैंने वेर्णा के म्हालसा मंदिर के दर्शन की योजना बनाई है। इसके परिसर व मंदिर का इन्ही दिनों उसी स्थान पर पुनर्निर्माण किया गया है, जहां वह पूर्व में स्थित था। आज वेर्णा गोवा का आद्यौगिक जिला बन चुका है। उसमें विभिन्न प्रकार के अनेक कारखाने एवं कार्यालय हैं। यहाँ तक कि, जब मैं सर्वप्रथम गोवा आयी थी, मेरा कार्यालय भी वेर्णा में ही था। वह भी इस मंदिर के समीप। किन्तु इस मंदिर के दर्शन की योजना को साकार होने में सात वर्ष व्यतीत हो गए। एक कहावत भी है कि आप देवी के मंदिर तभी जा सकते हैं, जब देवी स्वयं ऐसा चाहे।

रुद्राक्ष शिला से बना प्राचीन कूप
रुद्राक्ष शिला से बना प्राचीन कूप

पहाड़ी की तलहटी पर स्थित यह नवीन मंदिर कदाचित गोवा के विशालतम मंदिरों में से एक है।

मंदिर का जलकुंड भी मेरे द्वारा देखे गए गोवा के अन्य मंदिरों के जलकुण्डों से अपेक्षाकृत विशाल है। स्वच्छ लेटराइट शिलाओं द्वारा निर्मित जलकुंड अत्यंत सुन्दर प्रतीत होता है।

जलकुंड के एक कोने में एक गोलाकार कुआं है। वह इतना स्वच्छ था कि मुझे लगा, वह भी मंदिर के समान एक नवीन संरचना है। किन्तु मुझे बताया गया कि वह कुआं प्राचीन मंदिर का मूल प्राचीन कुआं है।

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म्हालसा नारायणी मंदिर का इतिहास

आरम्भ से ही यह मंदिर वरुणापुरम में स्थित था जिसे अब वेर्णा कहते हैं। १६वीं शताब्दी में पुर्तगालियों ने इसे पूर्णतः ध्वस्त कर दिया था। कालांतर में फोंडा के मर्दोल गाँव में इस मंदिर की स्थापना की गई, जहां वह अब भी स्थित है। मंदिर के मूल स्थान पर अब एक नवीन मंदिर की संरचना की गयी है। म्हालसा के अन्य मंदिर पैठन, नेवासा, कारवार, कुमटा, कासरगोड तथा हरिखंडिगे इत्यादि स्थानों में भी हैं। म्हालसा अनेक सारस्वत ब्राह्मण परिवारों एवं कुछ अन्य समुदायों की कुलदेवी हैं।

म्हालसा नारायणी मंदिर का स्थापत्य

इस मंदिर का स्थापत्य अत्यंत अनूठा है। इसे एक संकुल के समान निर्मित करने की योजना है जिसके कुछ भागों का निर्माण अब भी शेष है। प्रवेश द्वार पर लगे मानचित्र में मंदिर संकुल के विभिन्न भागों का वर्णन है।

श्री म्हालसा नारायणी मंदिर संकुल - गोवा
श्री म्हालसा नारायणी मंदिर संकुल

मुख्य मंदिर में एक अत्यंत ही विशाल मंडप है जिसकी छत आयताकार वक्रीय गुम्बद के समान है। ग्रेनाइट शिलाओं द्वारा निर्मित इसके चमचमाते तल पर इस गुम्बद का प्रतिबिम्ब इतना स्पष्ट झलकता है कि जब आप उस तल पर चलते हैं तो ऐसा प्रतीत होता है मानो आप गुम्बद से लटके हैं। इसका श्रेय मंदिर प्रबंधन को भी जाता है जो मंदिर को अत्यंत स्वच्छ रखते हैं। इस मंदिर के निर्माण में प्रचुर मात्रा में ग्रेनाइट शिलाओं का प्रयोग किया गया है।

मंदिर के भीतर का दृश्य
मंदिर के भीतर का दृश्य

नवीन मंदिर एवं प्राचीन जलकुंड एक दूसरे के समक्ष स्थित हैं। मंदिर के एक ओर बच्चों की पाठशाला है तथा दूसरी ओर कल्याणमंडप अथवा विवाह मंडप है। मंदिर एवं जलकुंड के चारों ओर सुन्दर बगीचे हैं जिनका उत्तम रखरखाव किया जाता है।

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म्हालसा नारायणी का विग्रह

देवी की प्रतिमा कृष्ण वर्णीय शिला में निर्मित है। मुझे बताया गया कि यह प्रतिमा गोवा में ही स्थानीय शिल्पकारों ने गढ़ी है। मेरी तीव्र अभिलाषा है कि मुझे उन उत्कृष्ट शिल्पकारों से भेंट करने का अवसर शीघ्र ही प्राप्त हो ताकि मैं उनका अभिनन्दन कर सकूं तथा उनकी कला के विषय में जान सकूं।

देवी म्हालसा नारायणी का विग्रह
देवी म्हालसा नारायणी का विग्रह

देवी ने अपनी चार भुजाओं में क्रमशः त्रिशूल, तलवार, असुर का शीष तथा एक पात्र पकड़ा है। उन्होंने यज्ञोपवीत भी धारण किया हुआ है। यह किंचित असाधारण है क्योंकि यज्ञोपवीत साधारणतः पुरुष धारण करते हैं। वे एक असुर के ऊपर खड़ी हैं जिसका कदाचित उन्होंने वध किया है।

मेरे अनुमान से यह उनका देवी अवतार है क्योंकि खंडोबा की पत्नी के रूप में उन्हें सामान्यतः खंडोबा के साथ अश्वारोहण करते दर्शाया जाता है।

मनोहारी चंद्रशिला
मनोहारी चंद्रशिला

मुख्य विग्रह के दोनों ओर दो अन्य प्रतिमाएं हैं। वे भी उत्कृष्ट रूप से उत्कीर्णित हैं। उनके बाईं ओर अर्धनारीश्वर की प्रतिमा है जो भगवान शिव तथा देवी पार्वती का संयुक्त रूप है। दाहिनी ओर हरिहर की प्रतिमा है जो भगवान शिव एवं भगवान विष्णु का संयुक्त रूप है।

देवी के बायीं ओर एक लघु मंदिर है जिसके भीतर शारदाम्बा की प्रतिमा है। वहीं, दाहिनी ओर भी एक लघु मंदिर है जो आदि शंकराचार्यजी को समर्पित है। प्रत्येक मंदिर के प्रवेशद्वार पर सुन्दर चंद्रशिला है, जैसा हमारे प्राचीन मंदिरों में सामान्यतः होता था।

६४ योगिनी मंदिर

मुख्य मंदिर के बाहर, दाहिनी ओर स्वर्णाकर्षण भैरव का मंदिर है। इसका शाब्दिक अर्थ है, भैरव जो स्वर्ण को आकर्षित करने में समर्थ है। उनके दाहिनी ओर एक अनूठा ६४ योगिनी मंदिर है। मैंने इससे पूर्व ओडिशा के ६४ योगिनी मंदिर एवं मध्य प्रदेश का ६४ योगिनी मंदिर देखे हैं। किन्तु मुझे यह ज्ञात नहीं था कि मेरे अपने गोवा के आँगन में भी एक ६४ योगिनी मंदिर है। यह मंदिर मेरे द्वारा देखे गए अन्य ६४ योगिनी मंदिरों की तुलना में अत्यंत लघु है किन्तु इसमें भी पूर्ण रूप से उसी क्रम व रचना का पालन किया गया है।

६४ योगिनी मंदिर
६४ योगिनी मंदिर

इसमें भी एक गोलाकार में ६४ योगिनियाँ हैं। मंदिर के बाहर एक फलक पर सभी ६४ योगिनियों के क्रमवार नाम लिखे हुए हैं। मध्य में संहार भैरव की प्रतिमा है जो संहार का प्रतीक है। गोलाकार में अप्रतिम रूप से उत्कीर्णित सभी ६४ योगिनियों को देखते ही मेरे रोंगटे खड़े हो गए। मैं अत्यंत रोमांचित हो गयी। मंदिर का जालीदार द्वार बंद था जिसके कारण मैं उन्हें दूर से ही देख पायी। मंदिर के पट खोलने के लिए वहां कोई उपस्थित नहीं था। अन्य ६४ योगिनी मंदिरों की तुलना में इसमें दो भिन्नताएं हैं। एक, यह अत्यंत लघु है। दूसरा, अन्य मंदिरों के समान सभी ६४ योगिनियों को मुक्तांगण में ना रखते हुए उन्हें एक छोटे से मंदिर के भीतर रखा गया था, जिस पर छत भी थी।

इस संकुल में ६४ योगिनी मंदिर के दर्शन के पश्चात मेरे मस्तिष्क में एक प्रश्न कौंधने लगा। क्या गोवा में पूर्व से ही ६४ योगिनी मंदिर उपस्थित था? यदि नहीं, तो मंदिर के नवीन निर्माताओं के मस्तिष्क में यह योजना कैसे आयी? उन्होंने इस मंदिर के लिए ६४ योगिनियों के क्रमवार नाम कैसे चुने? उन्होंने किस अगम का पालन किया था? मेरी खोज अब भी जारी है।

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म्हालसा नारायणी मंदिर के उत्सव

देवी मंदिर का सर्वाधिक महत्वपूर्ण एवं बड़ा उत्सव, बिना किसी संदेह के, नवरात्रि ही है।

इसके अतिरिक्त, मंदिर में राम नवमी का उत्सव भी धूमधाम से मनाया जाता है जिसमें भगवान राम की उत्सव मूर्ति का पूजन किया जाता है। इस अवसर पर झूले का भी आयोजन किया जाता है।

म्हालसा नारायणी मंदिर का वार्षिक उत्सव प्रति वर्ष चैत्र मास के कृष्ण पक्ष की षष्ठी से अष्टमी तक मनाया जाता है। यह लगभग चैत्र नवरात्रि के पश्चात आता है।

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नुपुर तीर्थ एवं हनुमान मंदिर

ऐसी मान्यता है कि नुपुर तीर्थ को देवी ने खोद कर स्वयं बनाया था। यह मुख्य मंदिर से कुछ ही दूरी पर स्थित है। यह एक छोटा चौकोर जलकुंड है जो एक भूमिगत जलस्त्रोत से जुड़ा हुआ है। इसके एक कोने में एक छोटा सा मंदिर है जिसके भीतर एक शिवलिंग है।

प्राचीन नुपुर तीर्थ
प्राचीन नुपुर तीर्थ

जलकुंड के भीतर जाने का द्वार बंद था। आप बाहर से ही जलकुंड के दर्शन कर सकते हैं। जलकुंड के समीप लगे सूचना पटल के अनुसार यह प्राचीन जलकुंड उसके भीतर स्थित जलस्त्रोत के पुनरुद्धार एवं जल संचयन परियोजना का भाग है।

हनुमान एवं परशुराम मंदिर गोवा
हनुमान एवं परशुराम मंदिर गोवा

तीर्थ के समीप, वास्तव में सड़क के समीप एक नवीन हनुमान मंदिर है। हनुमान मंदिर का स्थापत्य भी मुख्य म्हालसा मंदिर के स्थापत्य से मेल खाता है। हनुमान के विग्रह के दाहिनी ओर परशुराम का मंदिर है तथा बाईं ओर काल भैरव का मंदिर है।

मल्हारी मार्तंड अथवा खंडोबा मंदिर

यह मंदिर म्हालसा नारायणी मंदिर का ही एक भाग होते हुए भी उससे कुछ किलोमीटर दूर स्थित है। दोनों ही मंदिर वेर्णा औद्योगिक क्षेत्र में स्थित हैं। इस मंदिर का मंडप अब भी निर्माणाधीन है।

मल्हारी खंडोबा मंदिर का द्वार
मल्हारी खंडोबा मंदिर का द्वार

मुख्य मंदिर के भीतर एक शिवलिंग स्थापित है। मंदिर की चौखट पर की गयी अप्रतिम उत्कीर्णन ने मेरा मन मोह लिया था। उस पर दोनों ओर द्वारपाल भी उत्कीर्णित थे।

बाहर एक छोटा सा मंदिर है जिसके भीतर एक प्राचीन मूर्ति के अवशेष तथा एक त्रिशूल संरक्षित किया गया था। उसके बाहर लगे पटल पर ‘श्री मल्हाराया नमः’ लिखा हुआ था।

म्हालसा नारायणी मंदिर एवं संकुल के अन्य मंदिरों के दर्शन के पश्चात घर वापिस आते समय मुझे ऐसा प्रतीत हो रहा था मानो गोवा के इतिहास से मेरी अन्तरंग भेंट हुई है। गोवा के इतिहास का वह भाग, जिसका उल्लेख पुराणों में है तथा जिसका पुनरुद्धार किया जा रहा है। उसने मेरे मन में उसे अधिक विस्तार से जानने की आकांक्षा उत्पन्न कर दी है। खोज करने के लिए मन में अनेक जिज्ञासाएं उत्पन्न हो गयी हैं।

आप जब भी गोवा में आयें, इस मनमोहक म्हालसा नारायणी मंदिर संकुल के दर्शन अवश्य करिए। मंदिर के विषय में अधिक जानकारी के लिए मंदिर के इस अधिकारिक वेबस्थल पर संपर्क करें।

अनुवाद: मधुमिता ताम्हणे

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चंद्रेश्वर भूतनाथ मंदिर गोवा की पहाड़ी पर एक प्राचीन मंदिर https://inditales.com/hindi/prachin-chandreshwar-bhutnath-mandir-goa/ https://inditales.com/hindi/prachin-chandreshwar-bhutnath-mandir-goa/#respond Wed, 20 Jul 2022 02:30:43 +0000 https://inditales.com/hindi/?p=2741

चंद्रेश्वर भूतनाथ मंदिर गोवा के प्राचीनतम मंदिरों में से एक है। इस मंदिर ने गोवा की प्राचीन राजधानी को अपना नाम प्रदान किया था, चंद्रपुर, जिसे अब चांदोर कहा जाता है। यह मंदिर गोवा के पारोड़ा नामक स्थान पर स्थित है। चंद्रेश्वर भूतनाथ की कथा चंद्रेश्वर का अर्थ है चन्द्रमा का ईश्वर। यह भगवान शिव […]

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चंद्रेश्वर भूतनाथ मंदिर गोवा के प्राचीनतम मंदिरों में से एक है। इस मंदिर ने गोवा की प्राचीन राजधानी को अपना नाम प्रदान किया था, चंद्रपुर, जिसे अब चांदोर कहा जाता है। यह मंदिर गोवा के पारोड़ा नामक स्थान पर स्थित है।

चंद्रेश्वर भूतनाथ की कथा

चंद्रेश्वर का अर्थ है चन्द्रमा का ईश्वर। यह भगवान शिव का ही एक नाम है। यह सर्व विदित है कि भगवान शिव अपने मस्तक पर अर्धचंद्र धारण करते हैं। मंदिर के प्रवेश द्वार पर सागर मंथन का भित्तिचित्र है जो चन्द्रमा के उद्भव की कथा कहता है। सागर मंथन द्वारा प्राप्त अनेक बहुमूल्य वस्तुओं में चन्द्रमा भी है जो अमृत प्राप्ति से पूर्व प्राप्त हुआ था।

गोवा का प्राचीन चंद्रेश्वर भूतनाथ मंदिर
गोवा का प्राचीन चंद्रेश्वर भूतनाथ मंदिर

गोवा से चन्द्रमा का एक अन्य सम्बन्ध भी है। ऐसी मान्यता है कि गोमान्तक के पर्वतों पर ही कृष्ण एवं बलराम ने जरासंध से युद्ध किया था। ऐसा माना जाता है कि कृष्ण का शंख भी इसी क्षेत्र से प्राप्त हुआ था। हम सब जानते हैं कि कृष्ण एक चंद्रवंशी हैं।

संयोग से, गोवा के अनेक शासकों का नाम चन्द्र से सम्बंधित है, जैसे चन्द्रगुप्त मौर्य एवं चंद्रादित्य। इस मंदिर का श्रेय भोज सम्राट चंद्रवर्मन को जाता है। इस मंदिर का उल्लेख इस क्षेत्र के ५वीं-६वीं शताब्दी के प्राचीनतम ताम्रपत्रों में मिलता है। इसका अर्थ है कि इस मंदिर का निर्माण ४थी शताब्दी या उससे पूर्व किया गया था।

मुझे ज्ञात हुआ कि स्कन्द पुराण के सह्याद्री खंड में भी इसका उल्लेख है। स्कन्द पुराण के इस खंड का मेरा अध्ययन  अभी शेष है।

चंद्रेश्वर भूतनाथ मंदिर

यह मंदिर मडगांव से लगभग २६ किलोमीटर दूर, दक्षिण गोवा के केपें तालुका में स्थित है। मुख्य मार्ग से ही मंदिर का महाद्वार दृष्टिगोचर होता है। यहीं से हमें मंदिर के लिए विमार्ग लेना पड़ता है। महाद्वार को भैरवों, स्कंदों तथा स्वयं भगवान शिव की सुन्दर मूर्तियों से अलंकृत किया गया है। सूर्य अस्त होते ही इस महाद्वार को विद्युत् प्रकाश से जगमगाया किया जाता है जिसके कारण यह दूर से ही दिखाई देने लगता है।

शंख भैरव मंदिर

महाद्वार पार करते ही जिस मंदिर पर आपकी प्रथम दृष्टी पड़ती है, वह है शंख भैरव मंदिर। शंख भैरव का यह मंदिर ठेठ गोवा शैली में निर्मित है। शंख भैरव की लिंग रूप में उपासना की जाती है।

यह मंदिर पूर्णिमा के दिन बंद रहता है। अन्य दिनों में यह केवल प्रातः आरती एवं संध्या आरती के लिए ही खोला जाता है।

यहाँ से पहाड़ी की चोटी तक पहुँचने के लिए सौम्य चढ़ाई आरम्भ हो जाती है।

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सिद्ध भैरव, काल भैरव तथा कमण्डलु तीर्थ

पहाड़ी पर आधी दूरी तक चढ़ने के उपरान्त आप एक बड़ी इमारत के समीप पहुंचेंगे जहां वाहन खड़ी करने के लिए नियत स्थान हैं। यह चंद्रेश्वर भूतनाथ मंदिर संकुल का एक भाग है। भक्तगण यहाँ विश्राम तथा जलपान  आदि कर सकते हैं। दो प्राचीन लघु मंदिर हैं जिनके समीप आप एक प्राचीन तीर्थ अथवा जलकुंड देखेंगे। दोनों भैरव मंदिर हैं जिनमें एक काल भैरव मंदिर है तथा दूसरा सिद्ध भैरव। जलकुंड को कमण्डलु तीर्थ कहा जाता है। इस तीर्थ के जल से चन्द्रनाथ का अभिषेक किया जाता है।

सिद्ध भैरव, काल भैरव और कमण्डलु तीर्थ
सिद्ध भैरव, काल भैरव और कमण्डलु तीर्थ

कमण्डलु तीर्थ के अतिरिक्त मंदिर के दो अन्य तीर्थ भी हैं जिनके नाम हैं, कपिल तीर्थ तथा गणेश तीर्थ। पुरोहित जी ने मुझे बताया कि दोनों तीर्थ घने वन के भीतर स्थित हैं तथा उन तक पहुंचना सुगम्य नहीं है।

मुख्य मंदिर तक पहुँचने के लिए बनी सीढ़ियों का आरम्भ इसी स्थान से होता है। सीढ़ियाँ अत्यंत सुगम हैं। इसके दोनों ओर सहारे एवं सुरक्षा के लिए बाड़ भी हैं। इसके अतिरिक्त पक्की सड़क भी है जहां से आप वाहन द्वारा अगले बिंदु तक पहुँच सकते हैं। यहां भी एक भैरव मंदिर है। यहाँ बंदरों से सावधान रहें तथा खाने-पीने की वस्तुओं को सुरक्षित रखें।

सीढ़ियों के आरम्भ में कुछ प्राचीन शैल शिल्प हैं। यद्यपि मैं उनमें से अधिकतर शिल्पों की पहचान करने में असमर्थ थी तथापि वे एक प्राचीन मंदिर की ओर संकेत करते हैं।

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भैरव मंदिर एवं चाय की दुकान

सीढ़ियाँ चढ़ते हुए लगभग आधी दूरी पार करते ही आप पुनः एक लघु भैरव मंदिर देखेंगे जिसमें लिंग के रूप में एक शिला स्थापित है। यह एक खुला मंदिर है जिसमें लिंग के ऊपर केवल एक मंडप है। लिंग के ऊपर अर्पित किये ताजे पुष्प, प्रज्ज्वलित दीप एवं धूपबत्ती से निकलती सुगंध यह दर्शा रही थी कि यहाँ नियमित रूप से पूजा अर्चना की जाती है।

मंदिर के समक्ष एक पम्प हाउस है।

मंदिर के समीप एक चाय की दुकान है जो थकावट दूर करने के लिए एक लोकप्रिय स्थान है। महामारी के चलते भक्तों की घटती संख्या के कारण यह दुकान बंद थी।

इस बिंदु पर भी आपके समक्ष विकल्प है कि आप वाहन से ही अगले पड़ाव तक जाएँ अथवा सीढ़ियाँ चढ़ें।

मुख्य मंदिर

आप एक उच्चतम बिंदु तक ही वाहन ले जा सकते हैं। यहाँ से आपको भी लगभग १०० सीढ़ियाँ चढ़नी ही पड़ेंगी। यूँ तो सीढ़ियाँ अत्यंत सुगम हैं, आपको इसकी पूर्व जानकारी हो तो आप मानसिक रूप से सज्ज रहेंगे।

सीढ़ियाँ समाप्त होते ही आप चटक पीले रंग के तोरण से युक्त द्वार पर पहुंचेंगे। इस तोरण द्वार के आधार को देखना ना भूलें। यह एक प्राचीन शैल द्वार का आधार है। भीतर प्रवेश करते ही दाहिनी ओर आप ठेठ गोवा शैली का एक मंदिर देखेंगे।

चंद्रेश्वर भूतनाथ मंदिर पर सागर मंथन का दृश्य
चंद्रेश्वर भूतनाथ मंदिर पर सागर मंथन का दृश्य

बाईं ओर दो विशाल टिन शेड हैं। मुझे बताया गया कि मंदिर के रथों को यहाँ रखा जाता है। यह मंदिर अश्वों एवं हाथियों की प्रतिकृतियों से युक्त रथों के लिए लोकप्रिय है जिनमें एक अश्व चाँदी का है। मंदिर के एक ओर एक प्राचीन बरगद का वृक्ष है जिसके समीप एक दीपस्तंभ है। मंदिर के निकट कुछ शैल प्रतिमाएं थीं जो नवीन प्रतीत हो रही थीं। कदाचित ये प्रतिमाएं किसी नवीन प्रकल्प के लिए सज्ज हो रही थीं। समीप ही एक यज्ञशाला है जिसके द्वार उस समय बंद थे जब हम वहां दर्शन के लिए पहुंचे थे।

मंदिर के प्रवेश द्वार के ऊपर सागर मंथन का विशाल शिल्प इस मंदिर का सर्वोत्तम वैशिष्ट्य है। सागर मंथन से निकली प्रत्येक वस्तु को यहाँ चित्रित किया गया है। मंदिर के भीतर प्रवेश करते ही आप एक विशाल सभा मंडप में पहुंचेंगे जहाँ से आगे आप मंदिर के मुख्य मंडप में जा सकते हैं।

चंद्रेश्वर मंदिर

चंद्रेश्वर मंदिर एक अत्यंत आकर्षक मंदिर है। मंडप के चारों ओर लकड़ी पर विभिन्न रंगों में नक्काशी की गयी है। मुख्य मंदिर के भीतर स्थापित स्वयंभू शिवलिंग पर एक आवरण चढ़ाया हुआ है। शिवलिंग के पीछे चंद्रेश्वर की प्रतिमा है। मुख्य मंदिर के चारों ओर नवदुर्गा, गणपति, विष्णु तथा महालक्ष्मी की शैल प्रतिमाएं हैं।

चंद्रेश्वर भगवान्
चंद्रेश्वर भगवान्

ऐसी मान्यता है कि पूर्णिमा की रात्रि में चन्द्रमा का प्रकाश शिवलिंग पर पड़ता है। मुझे यह भी बताया गया कि लेटराइट के लिंग से जल रिसता है। इस अद्भुत दृश्य के दर्शन करने के लिए मैंने पूर्णिमा की संध्या पर ही मंदिर के दर्शन का नियोजन किया था। किन्तु पुरोजित जी ने मुझे जानकारी दी कि जब से इस मूल लघु मंदिर के ऊपर मंडप स्थापित किया गया है तथा इसके समक्ष सभा मंडप का निर्माण किया गया है, तब से इस अद्भुत दृश्य के दर्शन दुर्लभ हो गए हैं। केवल चैत्र पूर्णिमा की रात्रि को यह दृश्य दिखाई पड़ता है।

महालक्ष्मी एवं महाविष्णु की प्राचीन प्रतिमाएं
महालक्ष्मी एवं महाविष्णु की प्राचीन प्रतिमाएं

मैं सोच में पड़ गयी कि कैसे बिना सोचे समझे किये गए विस्तार से हम हमारी प्राचीन अभियांत्रिकी अचंभों को यूँ ही खो रहे हैं।

मंदिर के भीतर रामायण कथा और पालकी
मंदिर के भीतर रामायण कथा और पालकी

भीतर स्थित मूल लघु मंदिर शिलाओं द्वारा निर्मित है। इसके चारों ओर की गयी संरचनाओं के कारण अब इस मूल शैल मंदिर का द्वार चौखट ही दृश्य है।

मंडप के भीतर चाँदी की एक सुन्दर पालकी है जिसे प्रत्येक सोमवार को बाहर निकाला जाता है। मंडप की भित्तियों पर रामायण, विष्णु के अवतारों एवं देवी के महिषासुरमर्दिनी जैसे अवतारों से सम्बंधित दृश्यों के शिल्प हैं। भूमि को श्वेत-श्याम रंगों के चौकोर खण्डों से सज्जित किया गया है जो ऊपर स्थित शिल्पों की रंगबिरंगी छटा के विरुद्ध एक सुन्दर विरोधाभास उत्पन्न करते हैं। षटकोणीय बेलनाकार शिखर के शीर्ष पर एक स्वर्ण कलश स्थापित है। शीर्ष पर एक केसरिया ध्वज भी फहराया गया है। शिखर पर भगवान शिव के मानवी मुख सहित शिवलिंग एवं भूतनाथ के शिल्प उत्कीर्णित हैं।

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भूतनाथ मंदिर

भूतनाथ मंदिर
भूतनाथ मंदिर

भूतनाथ मंदिर चंद्रेश्वर मंदिर के समीप स्थित एक भिन्न कक्ष के भीतर है। यह मंदिर मूल मंदिर के समीप स्थित है जहां एक त्रिकोणीय शिला को भूतनाथ के रूप में पूजा जाता है। इसके चारों ओर लकड़ी का कटघरा है जिस पर सुन्दर आकृतियाँ उत्कीर्णित की गयी हैं। भूतनाथ भगवान शिव के एक गण हैं। भूतनाथ के समीप एक हुक्का रखा हुआ था। शिला के दोनों ओर सुन्दर नंदादीप प्रज्ज्वलित कर लटकाए हुए थे। शिला के पृष्ठभाग में शिव का त्रिशूल खड़ा था।

प्राचीन काल में भगवान शिव एवं भूतनाथ के मूल मंदिर इस प्रकार निर्मित थे कि वे दोनों एक दूसरे को देख पाते थे।

तुलसी वृन्दावन एवं प्राचीन शैल प्रतिमाएं

मंदिर की परिक्रमा के समय आप इसके पृष्ठ भाग में स्थित एक बड़ा तुलसी वृन्दावन देखेंगे। इसके समीप आप एक प्राचीन शिवलिंग एवं प्राचीन शैल मंदिर के कुछ अवशेष देखेंगे। हनुमान की एक प्राचीन शैल प्रतिमा तुलसी वृन्दावन की भित्ति पर गढ़ी हुई है।

परिसर के कोने में, एक वृक्ष के नीचे नंदी की एक भंगित प्राचीन मूर्ति थी जिसके दो भाग हो चुके थे।

इस मंदिर में शिवरात्रि, नवरात्रि, श्रावण सोमवार तथा दशहरा जैसे उत्सव धूमधाम से मनाये जाते हैं।

चैत्र शुक्ल एकादशी से पूर्णिमा, इन पांच दिवसों तक रथ उत्सव मनाया जाता है। प्रत्येक दिवस एक नवीन रथ शोभायात्रा के लिए बाहर निकाला जाता है। अंतिम दिवस महारथ की शोभायात्रा निकाली जाती है।

चन्द्रनाथ पर्वत की चोटी से अप्रतिम परिदृश्यों के अद्भुत दृश्य

देवदर्शन एवं मंदिर की आतंरिक सुन्दरता का मन भर के आनंद लेने के पश्चात हम मंदिर से बाहर आये तथा मंदिर के चारों ओर परिक्रमा करने लगे। हमें आभास हुआ कि हम गोवा की सर्वाधिक ऊँचाई पर विचरण कर रहे थे। यहाँ से चारों ओर के परिदृश्यों का अप्रतिम दृश्य दिखाई देता है। गोवा को प्रकृति ने खुले हाथों से जो संपदा प्रदान की है, उसका हमने शांति से मनपूर्वक आनंद उठाया। चन्द्रनाथ पर्वत चारों ओर हरियाली से ओतप्रोत तराई से घिरा हुआ है जिसके उस पार हरी-भरी घाटियों की पंक्तियाँ हैं। उन्हें निहारते आप घंटों बिता सकते हैं। ऊंचाई पर होने के कारण यहाँ सदा वायु बहती रहती है।

चन्द्रनाथ पर्वत अत्यंत विशाल है। मुझे ऐसा प्रतीत होता है कि प्राचीन काल में भक्तगण इसकी परिक्रमा करते रहे होंगे। तराई एवं घाटियों पर सघन वन हैं। मुझे बताया गया कि इन वनों में अनेक प्रकार के औषधीय पौधे एवं वृक्ष हैं। गाँव के वरिष्ठ निवासियों को इन औषधीय सम्पदाओं की जानकारी है तथा वे इसका उपयोग भी करते हैं। आशा है नयी पीढी इस धरोहर को सहेज कर रखने में सक्षम एवं सफल हो सके तथा अधिक से अधिक लोगों की इसकी जानकारी मुहैय्या कराये। वनों में वनीय पशु-पक्षी भी अवश्य होंगे किन्तु हमें इधर-उधर कूदते-फांदते वानर ही दृष्टिगोचर हुए।

मुझे जानकारी मिली कि चन्द्रनाथ पर्वत पर रोहण करने के लिए एक प्राचीन मार्ग भी है जहां वाहन नहीं जा सकते। वहां पैदल ही चढ़ना पड़ता है। अच्छे स्वास्थ्य के लोगों अथवा रोहण में प्रशिक्षित यात्रियों के लिए ही वह सुगम्य है।

पर्वत के समीप से कुशावती नदी बहती है।

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चंद्रेश्वर भूतनाथ मंदिर का भ्रमण – एक विडियो

चंद्रेश्वर भूतनाथ मंदिर में हमारे भ्रमण का विडियो मैंने IndiTales YouTube channel पर प्रेषित किया है। इसे देखकर आप को इस स्थान के विषय में पूर्व जानकारी प्राप्त होगी जिससे आपको अपनी यात्रा नियोजित करने में आसानी होगी।

चामुंडेश्वरी शांतादुर्गा मंदिर

जुडवाँ देवियाँ, चामुंडेश्वरी एवं शांतादुर्गा को समर्पित यह मंदिर चंद्रेश्वर भूतनाथ मंदिर के महाद्वार से लगभग २ किलोमीटर दूर स्थित है। कुशावती नदी के ऊपर स्थित पुल को पार कर हम घुडोआवडे गाँव पहुंचे जहां यह मंदिर स्थित है।

चामुंडेश्वरी शांतादुर्गा मंदिर
चामुंडेश्वरी शांतादुर्गा मंदिर

हम बिना पूर्वनियोजन किये अनायास ही इस मंदिर तक पहुँच गए थे। उस समय यहाँ जत्रा अर्थात् मंदिर का वार्षिक उत्सव चल रहा था। यह अपेक्षाकृत एक विशाल मंदिर है जिसके भीतर दोनों देवियाँ कंधे से कंधा मिलाकर खड़ी हैं। दोनों मूर्तियाँ अत्यंत सुन्दर हैं जिनके ऊपर से दृष्टी हटाये नहीं हटती हैं।

श्री उद्दंगी प्रसन्न
श्री उद्दंगी प्रसन्न

उसी परिसर में मैंने एक अनोखा मंदिर देखा जिसका नाम था, श्री उद्दंगी प्रसन्न। यहाँ दीमकों का एक बड़ा टीला था जिसके समक्ष एक बड़ी नागा मूर्ति स्थापित थी। मुझे यह जानकारी थी कि शांतादुर्गा अथवा सातेरी का मूल स्थान दीमक का टीला होता है किन्तु यह प्रथम मंदिर है जहां मैंने वास्तव में दीमक के टीले को देवी के रूप में पूजे जाते देखा है।

इस मंदिर का सम्बन्ध चंद्रेश्वर भूतनाथ मंदिर से है क्योंकि वार्षिक उत्सवों के समय दोनों मंदिरों के देव एवं देवियाँ एक दूसरे से भेंट करते हैं।

सातेरी मंदिर

महाद्वार के निकट एक नवीन सातेरी मंदिर निर्माणाधीन है। बंद होने के कारण हमने बाहर से मंदिर के दर्शन किये एवं वापिस घर के लिए निकल पड़े।

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चंद्रेश्वर भूतनाथ मंदिर के दर्शन के लिए कुछ यात्रा सुझाव

  • चन्द्रनाथ पर्वत एवं मंदिर के अवलोकन के लिए कम से कम २ घंटों का समय लग सकता है। यदि आप सीढ़ियों से जाना चाहते हैं तो कुछ समक अधिक लगेगा।
  • यदि आप मंदिर के देव की शोभायात्रा अर्थात् पालकी के दर्शन करना चाहते हैं तो सोमवार के दिन यहाँ आईये। अन्यथा चैत्र मास में पधारें जो लगभग मार्च/अप्रैल के महीने में पड़ता है।
  • सार्वजनिक परिवहन सेवा केवल पर्वत की तलहटी पर स्थित मुख्य मार्ग तक पहुँचाती है। पर्वत शिखर तक पहुँचाने के लिए यह सेवा उपलब्ध नहीं है। मंदिर तक आप पैदल चढ़ सकते हैं अथवा निजी वाहन द्वारा पहुँच सकते हैं।
  • खाद्य एवं पेय पदार्थों की सुविधाएँ न्यूनतम हैं। इसका ध्यान रखकर अपनी यात्रा नियोजित करें।

अनुवाद: मधुमिता ताम्हणे

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पूर्व-पुर्तगाली गोवा पर श्री प्रजल साखरदांडे से एक चर्चा https://inditales.com/hindi/poorva-purtagali-goa-prajal-sakhardande/ https://inditales.com/hindi/poorva-purtagali-goa-prajal-sakhardande/#respond Wed, 04 May 2022 02:30:04 +0000 https://inditales.com/hindi/?p=2668

अनुराधा – डीटूर्स में आज हमारे साथ चर्चा कर रहे हैं, प्रा. प्रजल साखरदांडे। प्रा. प्रजल साखरदांडे गोवा के धेम्पे कला एवं विज्ञान विद्यालय में इतिहास के प्राध्यापक हैं। वे “Goa Heritage Action Group” के उपाध्यक्ष भी हैं। “Goa Heritage Action Group” गोवा की विरासतों के संरक्षण एवं परिरक्षण कार्य की ओर अग्रसर है। प्रा. […]

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अनुराधा – डीटूर्स में आज हमारे साथ चर्चा कर रहे हैं, प्रा. प्रजल साखरदांडे। प्रा. प्रजल साखरदांडे गोवा के धेम्पे कला एवं विज्ञान विद्यालय में इतिहास के प्राध्यापक हैं। वे “Goa Heritage Action Group” के उपाध्यक्ष भी हैं। “Goa Heritage Action Group” गोवा की विरासतों के संरक्षण एवं परिरक्षण कार्य की ओर अग्रसर है। प्रा. प्रजल गोवा पर सर्वाधिक प्रामाणिक रूप से लिखे गए साहित्यों में से एक के लेखक भी हैं जो एक पुस्तक के रूप में है। Goa Gold Goa Silver नामक इस पुस्तक में गोवा पर उनके दो दशकों के शोध कार्य का संकलन है। आईये पूर्व-पुर्तगाली गोवा तथा गोवा से सम्बंधित अन्य महत्वपूर्ण तथ्यों पर उनके शोध के विषय में जानने का प्रयास करते हैं।

प्रा. प्रजल – नमस्कार अनुराधाजी। मेरा परिचय देने के लिए धन्यवाद। जी हाँ, “Goa Gold Goa Silver Her History Her Heritage from Earliest times to 2019” नामक मेरी पुस्तक का कुछ दिनों पूर्व ही विमोचन हुआ है। यह पुस्तक तीन भागों में विभाजित है, पुर्तगाली गोवा, पूर्व-पुर्तगाली गोवा तथा मुक्ति पश्चात गोवा।

पूर्व-पुर्तगाली गोवा के अज्ञात तथ्य

अनुराधा – पुर्तगालियों द्वारा अधिग्रहण के पश्चात के गोवा के विषय में हम बहुत कुछ जानते हैं। किन्तु प्राचीन गोवा अथवा पूर्व-पुर्तगाली गोवा के विषय में हमारी जानकारी न्यूनतम है। स्कन्द पुराण के सह्याद्री खंड एवं महाभारत में गोवा का उल्लेख प्राप्त होता है। महालसा नारायणी का उल्लेख भी अनेक शास्त्रों में किया गया है किन्तु अधिक जानकारी उपलब्ध नहीं है। मैं जानना चाहती हूँ कि गोवा का कितने समय पूर्व का इतिहास उपलब्ध है?

प्रा. प्रजल –  जब हम पूर्व-पुर्तगाली गोवा के इतिहास की चर्चा करें तो हमें भूवैज्ञानिक समय-मापक्रम की सहायता लेनी पड़ेगी। हमें उस काल में जाना पडेगा जब गोवा का निर्माण हुआ था, जिससे परशुराम की दंतकथा भी जुड़ी हुई है। है। अर्थात् हम ट्रांजेमाईट नाईस(Trondjemeitic Gneiss) शिस्ट(Schist ) शैलसमूहों की चर्चा कर रहे हैं। परशुराम, जिन्हें भगवान विष्णु का छठा अवतार माना जाता है, वे अपने साथ ९६ सारस्वत परिवारों को लेकर सह्याद्री आये थे तथा उन्हें वहां बसाना चाहते थे। उस समय गोवा नामक कोई स्थान नहीं था। सह्याद्री की तलहटी तक समुद्र का जल था। अतः उन्होंने अरम्बोल से समुद्र की ओर तीर भेद कर समुद्र को पीछे जाने की आज्ञा दी। वह तीर जहां गिरा उसे बाण-हल्ली कहा गया जो कालांतर में बाणावली हो गया। परशुराम की आज्ञा पाकर समुद्र पीछे हटा जिससे गोमान्तक की भूमि या गोवा की उत्पत्ति हुई। यह हुई चर्चा गोवा की उत्पत्ति से सम्बंधित पौराणिक दंतकथा की।

गोवा के आदिवासी समुदाय

सारस्वत समुदाय ने सदा इस तथ्य की वैद्यता सिद्ध करने का प्रयत्न किया कि उन्होंने ही गोवा की रचना की है। यहाँ हम एक सत्य भूल रहे हैं कि सारस्वत समुदाय के आने से पूर्व यहाँ अनेक आदिवासी समुदाय निवास करते थे, जैसे गौडा, कुनबी, वेलिप, खारवी इत्यादि, जिन्होंने गाँवकरी पद्धति अर्थात् ग्राम समुदाय की स्थापना की थी। इसके लिए हमें इतिहास में सहस्त्रों वर्ष पूर्व जाने की आवश्यकता है। कुशावती नदी के तट पर प्राप्त पन्सोइमल शैलचित्र इस तथ्य का प्रमाण हैं। इन शिलाओं पर उत्कीर्णन ऐसे ही किसी आदिवासी समुदाय ने किया होगा। अतः गोवा अत्यंत प्राचीन है। पर्यटन विभाग द्वारा प्रसारित सीमित तथ्यों से गोवा की काल्पनिक छवि यह निर्मित होती है कि गोवा अब भी पुर्तगाली एवं इसाई है, यहाँ कोई भी हिन्दू नहीं है इत्यादि।

आपके संस्करण के माध्यम से मैं यह कहना चाहता हूँ कि गोवा पूर्णतः भारतीय है। भौगोलिक, ऐतिहासिक, सांस्कृतिक एवं धार्मिक, सभी रूपों से गोवा प्राचीन काल से भारत का भाग है। पुर्तागाली गोवा में सन १५१० से १९६१ तक थे। अधिकारिक रूप से उन्होंने सम्पूर्ण गोवा पर राज भी नहीं किया था। गोवा से बाहर के लोगों की कल्पना है कि गोवा पूर्णतः इसाई है। यह सत्य नहीं है। लोगों ने ऐसी असत्य धरणा बना ली है।

पन्सोइमल शैलचित्र – पूर्व-पुर्तगाली गोवा

अनुराधा – आपने पन्सोइमल शैलचित्र का उल्लेख किया। यहाँ पर एक विशाल लेबिरिन्थ अथवा भ्रमिका उत्कीर्णित है। मैंने कहीं पढ़ा था कि यह विश्व की प्राचीनतम ज्ञात भ्रमिका है। इस विषय में आपका तर्क क्या है?

प्रा. प्रजल – मैं नहीं जानता कि यह विश्व की प्राचीनतम भ्रमिका है अथवा नहीं, किन्तु यह भ्रमिका अत्यंत रोचक है। इसके संबध में अनेक मत व्यक्त किये गए हैं। एक मत के अनुसार शामानी धर्म अथवा जीववादी धर्म के आदिवासियों द्वारा बनाए गए सकेंद्रित वृत्त ब्रह्माण्ड को दर्शाते हैं। वे इसका सम्बन्ध खगोलीय स्थितियों से जोड़ते थे। इसका सम्बन्ध विज्ञान, कुण्डलिनी तथा पंचांग इत्यादि से भी जोड़ते थे। मेरे मतानुसार इसे समझना आसान नहीं है। मैंने कनाडा तथा वाशिंगटन के संग्रहालयों में भी इसी प्रकार की भ्रमिकाएं देखी हैं। सम्पूर्ण विश्व भर में ऐसी भ्रमिकाएं हैं। पन्सोइमल का यह शैलचित्र गोवा के प्राचीनतम शैलचित्रों में से एक हो सकता है।

गुफाएं एवं तलघर

पूर्व-पुर्तगाली गोवा
पूर्व-पुर्तगाली गोवा

अनुराधा – कदाचित आकाशीय अध्ययन के लिए यह एक प्राचीन वेधशाला हो सकती है। यदि हम कालक्रम में कुछ आगे बढ़ें तो गोवा में क्या देखेंगे?

प्रा. प्रजल – हम गोवा में अनेक गुफाएं देखेंगे, जैसे चिखली में तीन भूमिगत तलघर हैं। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के सदस्यों के साथ हमने भी उनका सर्वेक्षण किया था। १९६५ में जर्मनी की एक महिला, ग्रीट्ली मिट्टर वार्नर, ने इन गुफाओं की खोज की थी। उन्हें वहां मिट्टी के पात्रों के अंश मिले थे जो उन गुफाओं में मानव जीवन की ओर संकेत करते हैं। यह जुआरी नदी के किनारे स्थित है। जुआरी, मांडवी, कुशावती इत्यादि गोवा की नदियों के तीर आप इस प्रकार के शैलचित्र तथा गुफाएं देख सकते हैं। यहाँ समुद्री जीवाश्म भी दिख जाते हैं। इसका सीधा अर्थ है कि गोवा अत्यंत प्राचीन स्थल है।

नदी घाटी सभ्यता

अनुराधा –  जी हाँ गोवा की धरोहर अत्यंत प्राचीन है। समय चक्र में कुछ और आगे बढ़ते हैं। मैं जानना चाहती हूँ कि गोवा में कौन सी ज्ञात सभ्यता सर्वप्रथम अस्तित्व में आयी।

प्रा. प्रजल – जब इस क्षेत्र में मानवी वसाहत का आरम्भ हुआ तब यहाँ म्हादेई नदी घाटी सभ्यता, कुशावती नदी घाटी सभ्यता तथा जुआरी नदी घाटी सभ्यता अस्तित्व में आयीं। लोग नदी के किनारे बसने लगे। इसके पश्चात गाँवकरी प्रणाली की स्थापना हुई। तत्पश्चात राजवंश चरण का आगमन हुआ। गोवा के इतिहास में राजवंश का सर्वप्रथम ऐतिहासिक प्रमाण राजा देवराज भोज हैं। ऐतिहासिक सूत्रों के अनुसार राजा देवराज भोज गोवा के प्रथम राजा थे जिन्होंने ४ई. से ७ई. के मध्य गोवा पर राज किया था। अतः ४थी से ६वीं शताब्दी तक भोज राजवंश ने राज किया। तत्पश्चात ७वीं शताब्दी में कोंकण मौर्य तथा बादामी चालुक्य राजाओं ने शासन किया था।

गोवा की प्रथम महारानी कर्णाटक की विजय भट्टारिका थीं जो पुलकेशिन द्वितीय की पुत्रवधू थीं। पुलकेशिन द्वितीय दक्षिण के सम्राट थे जिन्होंने उत्तरी भारत के राजा हर्षवर्धन को परास्त किया था। उसके पश्चात गोवा पर महाराष्ट्र के शिलाहार वंश, कर्णाटक के कदंब वंश, बाहमानियों, आदिल शाह, तत्पश्चात पुर्तगालियों ने अधिपत्य स्थापित किया।

गोवा के शासक – पूर्व-पुर्तगाली गोवा

अनुराधा –  इन शासकों में से सबसे लम्बे काल तक किसने शासन किया था?

प्रा. प्रजल – ९०६ ई. से १३५६ ई. तक का कदंब काल दीर्घतम काल था। इस काल को संस्कृति का स्वर्णिम काल कहा जाता है। ताम्बडी सुर्ला में महादेव का शैल मंदिर एक अप्रतिम मंदिर है जो कदंब काल में निर्मित अनेक शैल मंदिरों में से इकलौता जीवित मंदिर है। गोवा के पर्यटकों को इस मंदिर के दर्शन अवश्य करना चाहिए। गोवा में कदंब काल के अन्य मंदिर भी हैं। जैसे कुर्डी गाँव में कदंब वंश के संस्थापक राजा सष्टदेव प्रथम द्वारा निर्मित एक महादेव मंदिर था जिसे अब सालावाली बाँध के समीप स्थानांतरित किया गया है। राजा नारायणदेव ने भी अनेक मंदिरों का निर्माण करवाया था। सप्तकोटेश्वर उनके कुलदेवता थे।

कदंब शासकों ने, विशेषरूप से महारानी कमला देवी ने, शिक्षण को बढ़ावा दिया था। उन्होंने ब्रह्मपुरी एवं अग्रहार जैसे शिक्षण संस्थानों को अपने निरिक्षण में लिया था। अनेक मंदिरों को संरक्षण दिया था। अतः, गोवा में कदंब काल की अनेक विरासतें हैं।

अनुराधा –  कदंब काल की विरासतें अब भी जीवित हैं। यहाँ तक कि गोवा राज्य परिवहन का नाम भी उसी वंश से सम्बंधित है।

प्रा. प्रजल – जी हाँ। हमारे राज्य परिवहन का नाम भी कदंब परिवहन निगम है जिसका आरम्भ १९८० में हुआ था। इसे कदंबा बस कहा जाता है तथा कदंब वंश का राजचिन्ह, सिंह ही निगम के चिन्ह के रूप में बसों पर चित्रित है।

सप्तकोटेश्वर मंदिर – पूर्व-पुर्तगाली गोवा

अनुराधा –  मैंने कुछ समय पूर्व ही दीवार द्वीप पर सप्तकोटेश्वर मंदिर के अवशेषों के दर्शन किये थे। उसके कुण्ड तथा १०८ लघु मंदिरों के अवशेषों को भी देखा था। वहां स्थित रिक्त आलों को देख ऐसा प्रतीत होता है कि किसी समय उनके भीतर मूर्तियाँ रही होंगी। उनके भीतर कौन सी मूर्तियाँ थीं? अब वह मूर्तियाँ कहाँ है?

प्रा. प्रजल – दीवार द्वीप पर स्थित सप्तकोटेश्वर मंदिर का जलकुंड अत्यंत सुन्दर है। दीवार द्वीप को दीपों का द्वीप अथवा द्वीप वाटिका या दीपावाटी कहा जाता था। इसे देववाडी भी कहा जाता था जिसका अर्थ है देवों का वाड़ा। यहाँ सप्तकोटेश्वर मंदिर का निर्माण १२वीं सदी में कदंब राजाओं ने करवाया था। कालांतर में इस मंदिर ने अनेक अत्याचार सहे। बाहमानियों ने इसे नष्ट किया, जिसके पश्चात विजयनगर सम्राटों ने इसका पुनर्निर्माण कराया। १५४१ में इसे पुनः पुर्तगालियों ने ध्वस्त किया। इसके शिवलिंग को सुरक्षित नदी के उस पार, नार्वें में ले जाया गया। तत्पश्चात १६६८ में शिवाजी महाराज ने नार्वें में ही मंदिर का पुनर्निर्माण करवाया। यह मंदिर अब भी गर्व से अपनी विजय-गाथा कह रहा है। इसे एक तीर्थ माना जाता है। अतः कदंब शासकों द्वारा गोवा में स्थापित सप्तकोटेश्वर मंदिर गोवावासियों को अत्यंत प्रिय है।

मूर्तियाँ

अनुराधा –  मंदिर के जलकुंड के रिक्त आलों के भीतर कौन सी मूर्तियाँ थीं? अब वे मूर्तियाँ कहाँ हैं? क्या आपके पास इस विषय में कोई जानकारी है?

प्रा. प्रजल – उन मूर्तियों के विषय में कोई जानकारी उपलब्ध नहीं है। केवल लिंग के विषय में ज्ञात है। पुर्तगाली उस लिंग का प्रयोग कपड़े धोने के लिए करते थे। इसके पश्चात इस लिंग को एक लघु गुफा मंदिर में स्थानांतरित कर दिया गया। किन्तु आलों के भीतर की मूर्तियों के सम्बन्ध में कोई जानकारी नहीं है। कदाचित उस क्षेत्र के अधिक उत्खनन से हमें यह जानकारी प्राप्त हो सकती है।

अनुराधा –  इस प्रकार की घटनाओं के पश्चात भारत की अनेक मूर्तियाँ किसी ना किसी संग्रहालय पहुँच जाती हैं। जब मैं इस मंदिर के विषय में संस्करण लिख रही थी तब मैंने अनेक गोवावासियों से इस विषय में जानने का प्रयास भी किया था, किन्तु किसी को भी इसकी जानकारी नहीं है। यह अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण है।

प्रा. प्रजल – जी, यह दुर्भाग्यपूर्ण है। सप्तकोटेश्वर मंदिर के विषय में एक तथ्य आपको बताना चाहता हूँ. इसे दक्षिण कोंकण काशी भी कहा जाता है। स्थानीय लोग इसे एक तीर्थ मानते हैं। पुर्तगालियों से पूर्व, लोगों का मानना था कि यदि आप किसी कारणवश काशी नहीं जा सकते तो आप सप्तकोटेश्वर के ही दर्शन कीजिये। आज भी इसे पोन्ने तीर्थ कहते हैं जिसका अर्थ है, प्राचीन तीर्थ।

गोवा के मंदिर – पूर्व-पुर्तगाली गोवा

अनुराधा –  प्रजल जी, हमें गोवा के अन्य प्राचीन मंदिरों के विषय में भी बताएं।

प्रा. प्रजल –  जी। विचुन्द्रें में नारायणदेव की एक सुन्दर प्रतिमा है। यह प्रतिमा कदंब शिलाहार काल की है तथा उनका मंदिर प्राचीनतम मंदिरों में से एक है। इनके अतिरिक्त कुर्डी महादेव मंदिर, ताम्बडी सुर्ला महादेव मंदिर तथा ओपा खांडेपार सप्तकोटेश्वर मंदिर भी हैं। इस प्रकार गोवा के गाँवों में अनेक पुरातन मंदिर हैं जिनमें अनेक मंदिर पूर्व में गुफा मंदिर थे। हमने शिगाओ में, दूधसागर प्रपात की तल में, एक गुफा मंदिर देखा जहाँ बाघ की आराधना की जाती थी। शिगाओं में ही, दूधसागर नदी के तल में, एक शिला पर आदि गणपति की छाप भी देखी।

इनके अतिरिक्त, चंद्रेश्वर मंदिर है जहां भोज राजा पूजा-अर्चना करते थे। उन्होंने परोड़ा पर्वत पर चंद्रेश्वर को समर्पित एक गुफा मंदिर भी बनाया जिसे चंद्रेश्वर भूतनाथ मंदिर कहते हैं। भूतनाथ आदिवासियों के मूल तांत्रिक आराध्य थे। इस प्रकार के अनेक मंदिर आप गोवा में देख सकते हैं। इसीलिए मैं पुनः यह कहना चाहता हूँ कि गोवा के विषय में लोगों की जो समझ है कि यहाँ कोई हिन्दू नहीं है, कोई मंदिर नहीं है, यह कदापि सत्य नहीं है। इस साक्षात्कार के माध्यम से मैं भारत की जनता को यह सूचना देना चाहता हूँ कि गोवा का एक दूसरा आयाम भी है जो लोगों की समझ से पूर्णतः विपरीत है।

पुस्तक का मुखपृष्ठ

अनुराधा –  प्रजलजी, आपकी पुस्तक के बाह्य मुखपृष्ठ पर एक सुन्दर चित्र है। इसे देखकर यह कोई पहेली प्रतीत होती है। क्या आप बताएँगे कि वह क्या है?

प्रा. प्रजल – जी। २९ मई २००८ का दिन था जब मैं नार्वें गया था। मुझे वहां गाँव में कई अनूठी वस्तुएं प्राप्त हुईं। हम एक पहाड़ी पर गए जहां मुझे एक स्वस्तिक मिला। दो पट्टिकाएं थीं, एक स्वस्तिक पट्टिका तथा एक चौकोर खणों की पट्टिका जिसके मध्य में स्वस्तिक था।मैं नहीं जानता कि यह किसी भ्रमिका का भाग हैं अथवा किसी प्रकार की कुण्डलिनी इत्यादि का यन्त्र है। किन्तु मुझे चौकोर खणों की पट्टिका अत्यंत रोचक प्रतीत हुई। मैं उस पर मोहित हो गया। इसीलिए मैंने अपने पुस्तक के मुखपृष्ठ पर लगाने के लिए इसका चुनाव किया। वहां खंडहरों में एक छोटा मंदिर भी था जो स्लेटी शिला में निर्मित था। उस पर अधिक शोध की आवश्यकता है।

अनुराधा –  यह गोवा के बाहर से आया होगा क्योंकि गोवा में तो स्लेटी शिलाएं नहीं हैं।

प्रा. प्रजल – ये शिलाएं अनमोड़ घाट क्षेत्र से आयी हो सकती हैं अन्यथा यह कदंब काल की भी हो सकती हैं क्योंकि कदंब काल के मंदिरों में उन्होंने इसी प्रकार की शैलखटी शिलाओं का प्रयोग किया था जिन पर शिल्पकारी आसान होती है।

अनुराधा –  ये अपूर्ण प्रतीत होती हैं। इन्हें देख कर ऐसा आभास होता है मानो इन पर शिल्पकारी का कार्य अब भी जारी है।

प्रा. प्रजल – हो सकता है। इसके एक ओर स्वस्तिक भी है किन्तु मैंने उसे अपनी पुस्तक के मुखपृष्ठ का भाग नहीं बनाया ताकि मेरी पुस्तक को लोग हिन्दू विशेष पुस्तक ना माने। मेरी पुस्तक के मुखपृष्ठ पर अब धर्मनिरपेक्ष चित्र है।

गुफाएं एवं सुरंग

अनुराधा –  यह अत्यंत रोचक है क्योंकि इस चित्र को देखते ही मस्तिष्क में अनेक प्रश्न उभरते हैं तथा उनके उत्तर पाने की अभिलाषा प्रबल हो जाती है। प्रजल जी, आगे बढ़ते हुए मैं आपसे गोवा की गुफाओं के विषय में जानना चाहती हूँ। मैंने हर्वले गाँव में कुछ प्राचीन गुफाएं तथा दक्षिण गोवा में रिवोणा की गुफाएं देखीं थी। सप्तकोटेश्वर मंदिर के समीप भी कुछ जैन गुफाएं हैं जहाँ मैंने बाघ आराधना के चिन्ह देखे थे। ये सभी किस काल की हैं? इनका प्रयोग किसने किया था?

प्रा. प्रजल –  गोवा में हमने अनेक गुफाओं एवं सुरंगों को खोजा है। वेरणा में हमने एक भूमिगत सुरंग देखी है। यह सुरंग अत्यंत लम्बी थी जिसे हमने पूर्ण रूप से पार की है। चिखली में हमने अनेक गुफाएं एवं सुरंगे ढूँढी। इजोर्शी नामक गाँव में हमें एक भूमिगत गुफा भी मिली। एक ओर हमने गोवा के सर्वोच्च पर्वत शिखर पर प्राकृतिक गुफाएं देखी जहां हमने कुछ समय व्यतीत किया था, वहीं पर कुछ पुरापाषाण युग एवं उससे पूर्व काल की मानवी वसाहत की गुफाएं भी देखीं। कुछ गुफाएं जैन एवं बौद्ध भिक्षुओं की हैं। वहीं कुछ गुफाएं हिन्दू काल की हैं। इस प्रकार गोवा में अनेक प्रकार की गुफाएं हैं।

हर्वलें की गुफाएं

हिन्दू धर्म बौद्ध धर्म आने से पूर्व से ही अस्तित्व में था। किन्तु जहां तक हर्वलें गुफाओं का प्रश्न है, ये गुफाएं बौद्ध गुफाएं हो सकती हैं जिनके भीतर कालान्तर में शिवलिंग स्थापित किये गए हैं। किन्तु इनका कोई प्रमाण नहीं है। इन शिवलिंगों को भोज राजा कपालिवर्मन के युग का माना जाता है। एक शिलालेख में समीप स्थित उदकपाद जलप्रपात का उल्लेख किया गया है। इन शिवलिंगों को ६ठी शताब्दी में स्थापित किया गया है। इसका अर्थ है कि ये गुफाएं इससे पूर्व अस्तित्व में थीं।

गोवा की विभिन्न गुफाओं का भिन्न भिन्न प्रकार से प्रयोग किया जाता था। रिवोणा की गुफाओं में एक गुप्त कक्ष के भीतर एक मुनि आकर ध्यान में बैठते हैं। इस स्थान को ऋषिवन भी कहते हैं। थीवी में हमने एक गुफा को खोजकर उसका संरक्षण किया था। ये आवासीय गुफा थी। कालांतर में इसके भीतर शिवलिंग स्थापित किया गया था। बिचोली के लामगाँव में भी गुफाएं हैं। अतः आवास, ध्यान तथा अनेक अन्य प्रयोजनों के लिए इन गुफाओं का प्रयोग किया जाता था। ये सभी गुफाएं पुर्तगालियों से पूर्व की हैं।

गुफाओं के विषय में मुझे यह अत्यंत रोचक प्रतीत होता है कि आप किसी भी बुजुर्ग से किसी गुफा के सम्बन्ध में प्रश्न पूछें तो उनका एक आम उत्तर होता है कि ये गुफायें पांडवों ने बनाई हैं। लोक मान्यताओं के अनुसार गोवा की सभी गुफाएं भी पांडव गुफाएं हैं। वे तो यह भी कहते हैं कि ताम्बडी सुर्ला का निर्माण कदंब वंश ने नहीं, अपितु पांडवों ने किया है। यह अनुभव आपने भी किया होगा।

अनुराधा –  जी। एक यात्री के रूप में मेरा यह अनुमान है कि ये प्राचीन गुफाएं यात्रियों के लिए बनाई जाती थीं ताकि वे विश्राम कर सकें, रात्रि व्यतीत कर सकें। यह शोध करना आवश्यक है कि क्या इन गुफाओं के मध्य की दूरी एक दिवस में पदयात्रा द्वारा पूर्ण की जा सकती है?

प्रा. प्रजल – जी।

मंदिरों के उत्सव

अनुराधा – भारत के मंदिरों के अत्यंत अनोखे उत्सव होते हैं। मुझे भिन्न भिन्न मंदिरों में जाना तथा उनके विषय में जानना अत्यंत भाता है। मैंने गोवा के अनेक मंदिरों के उत्सवों में भी भाग लिया है, जैसे त्रिपुरारी पूर्णिमा का मध्यरात्री नौका उत्सव, चिखल कालो का विश्व-स्तर का माटी उत्सव, अनूठा शीशा रन्नी इत्यादि। इन उत्सवों का भारत के अन्य भागों से क्या सम्बन्ध है? ये देव एवं इन उत्सवों की पृष्ठभागीय कथाएं सभी स्थलों पर समान ही है किन्तु इन उत्सवों के आयोजनों में भिन्नता आ जाती है। जैसे चिखल कालो उत्सव का सम्बन्ध कृष्ण से है। यह उत्सव देवकी-कृष्ण मंदिर के समक्ष मनाया जाता है जिसमें वे खेल खेले जाते हैं जो कृष्ण स्वयं खेलते थे।

गोवा के उत्सव अत्यंत विशेष होते हुए भी विश्व के अन्य क्षेत्रों के हिन्दू उत्सवों से किसी ना किसी प्रकार से जुड़े हुए हैं। आपका इस विषय में क्या मत है?

प्रा. प्रजल – गोवा के उत्सवों में कुछ दीपावली जैसे देशव्यापी उत्सव हैं तो कुछ गणेश उत्सव जैसे राज्य विशेष उत्सव हैं। इनके अतिरिक्त कुछ स्थानिक उत्सव हैं, कुछ लोक उत्सव हैं तथा कुछ ऐसे उत्सव हैं जिनमें जादू-टोना तथा झाड-फूंक की क्रियाएं भी सम्मिलित होती हैं।

जात्रा

दृष्टांत के लिए नार्वें में एक जात्रा होती है जिसे भूतांची जात्रा कहते हैं। यह स्त्रियों के भूतों का उत्सव है। ऐसी मान्यता है कि जब कोई गर्भवती हिन्दू स्त्री मातृत्व का आनंद प्राप्त करने से पूर्व ही प्रसव के समय मृत्यु को प्राप्त होती है, वे भूत बन जाती हैं। ऐसा कहा जाता है कि उनकी अतृप्त आत्माएँ नार्वें के इस उत्सव की रात्रि में सक्रिय हो जाती हैं। इस उत्सव में मशना देवी (मशना, स्मशान शब्द का अपभ्रंश है) की आराधना की जाती है। ये सभी अतृप्त आत्माएँ यहीं आती हैं। मैं अपने विद्यार्थियों से साथ यह उत्सव देखने गया था। वहां के स्थानिकों ने हमें सूर्यास्त के पश्चात वहां से जाने के लिए कहा अन्यथा आईवान्तिन अर्थात् अतृप्त स्त्रियों की आत्माएँ हम पर आक्रमण करेंगी। उन्होंने एक व्यक्ति का उदाहरण दिया जिसने उन आत्माओं को चुनौती दी थी। दूसरे दिन उसकी मृत देह एक वृक्ष से लटकती पायी गयी। कथाएं एवं मान्यताएं जो भी हों, यह उत्सव नार्वें में अब भी मनाया जाता है।

दसरो

पेडने में एक उत्सव मनाया जाता है जिसका नाम है दसरो। ऐसा कहा जाता है कि यहाँ देह में से भूतकाढा अर्थात भूत निकालने की प्रक्रिया की जाती है। इनके अतिरिक्त, एक उत्सव है, शीशारन्नी जहां चार व्यक्ति शयनावस्था में अपने सिरों को जोड़कर चूल्हा बनाते हैं तथा उस चूल्हे में भात पकाया जाता है। वे उस भात में रक्त की बूँदें भी मिलाते हैं। तत्पश्चात वह भात प्रसाद के रूप में लोगों में बांटा जाता है। चोरोत्सव अर्थात् चोरों का उत्सव नामक भी एक उत्सव है जो सत्तरी तालुका के जर्मे तथा करंजोल में आयोजित किया जाता है। इसमें लोगों को कंठ तक धरती में गाड़ा जाता है। ऐसा माना जाता है कि जिसने भी प्राचीनकाल में चोरी की हो, कोई पाप किया हो अथवा हत्या की हो, वे इस प्रकार का अनुष्ठान कर पश्चाताप करते हैं। इससे उनका पाप समाप्त हो जाता है।

अनुराधा – यह एक प्रकार से प्राचीन घटनाओं एवं स्मृतियों को पुनः सजीव करने की प्रथा प्रतीत होती है। शीशारन्नी एवं चोरोत्सव के विषय में भी मेरा अनुमान है कि प्राचीन काल में हुई किसी घटना को इन अनुष्ठानों के माध्यम से स्मरण किया जाता है। बाहर से आकर गोवा में छह वर्ष व्यतीत करने के पश्चात मैं यह कह सकती हूँ कि अपने गाँवों में गोवा एक प्राचीन भारत की सभ्यता को जी रहा है। अपनी स्मृतियों को पुनर्जीवित कर रहा है। यह प्राचीन काल की हिन्दू संस्कृति है। यह शहरी हिन्दू सभ्यता अथवा तीर्थ स्थलों की हिन्दू मान्यताओं से भिन्न हैं। यह कठिन है किन्तु फिर भी पूर्ण रूप से हिन्दू उत्सव हैं क्योंकि ये सभी उत्सव मंदिरों में देवों के समक्ष मनाये जाते हैं।

अब आप हमें बताएं कि कदंब शासकों के पश्चात गोवा पर किन महत्वपूर्ण शासकों ने शासन किया था?

शासक राजवंश – पूर्व-पुर्तगाली गोवा

प्रा. प्रजल –  कदंब शासकों के पश्चात गोवा पर विजयनगर साम्राज्य का अधिपत्य स्थापित हुआ। विजयनगर कर्णाटक का अत्यंत शक्तिशाली साम्राज्य था। उनकी सदा बाहमानियों से शत्रुता रही। सम्पूर्ण १४वीं एवं १५वीं शताब्दी में गोवा पर कभी विजयनगर तो कभी बाहमानियों का आधिपत्य रहा। घोड़ों के व्यापार पर सम्पूर्ण अधिकार प्राप्त करने के प्रयोजन से वे गोवा पर आधिपत्य स्थापित करने के लिए आपस में युद्ध करते रहे। उस काल में अरब के व्यापारी पुराने गोवा में घोड़ों का अत्यंत लाभप्रद व्यापार कर रहे थे। जिसे “ए-एला” कहा जाता था। इसी कारण गोवा का आधिपत्य इन दो शक्तियों के मध्य डोलता रहा।

विजयनगर साम्राज्य

अनुराधा – क्या गोवा में विजयनगर साम्राज्य को कोई चिन्ह शेष है?

प्रा. प्रजल – जी हाँ। कुडने गाँव में स्थित जैन मंदिर १५वीं शताब्दी के विजयनगर साम्राज्य की देन है। बांदोड़ा की जैन बसदी, नेमिनाथ बसदी भी विजयनगर काल की है। अतः विजयनगर साम्राज्य के प्रत्यक्ष अवशेष तो हैं ही, साथ ही सप्तकोटेश्वर जैसे मंदिर के रूप में भी उनकी छाप है जिसे सर्वप्रथम कदंब साम्राज्य ने निर्मित किया, तत्पश्चात विजयनगर साम्राज्य ने उनका नवीनीकरण किया। बांदोड़ा के नागेशी मंदिर में प्रदर्शित एक शिलालेख में विजयनगर राजा, देवराया प्रथम का नाम एवं समय वर्ष १४१३ उल्लेखित है। गोवा में विजयनगर साम्राज्य की अमिट छाप है।

अनुराधा – विजयनगर साम्राज्य के पश्चात बहमानियों का शासन था कि आदिलशाह का?

प्रा. प्रजल – १४९८ में आदिलशाह का साम्राज्य था। उसके पश्चात पुर्तगालियों ने १५१० में गोवा को अधिकृत किया।

अनुराधा – इसके पश्चात की ऐतिहासिक घटनाएं जनता भलीभांति जानती है।

पुर्तगाली काल

प्रा. प्रजल –  पुर्तगाली काल का इतिहास लोग भलीभांति इसलिए जानते हैं क्योंकि पुर्तगाली उत्तम इतिहासकार थे तथा उन्होंने सभी घटनाक्रमों का क्रमवार आलेखन किया है। पणजी अभिलेखागार में आपको सभी पुर्तगाली संलेख मिल जायेंगे। मैंने स्वयं भी उनसे ही जानकारी एकत्र की है।

अनुराधा – १५वीं व १६वीं सदी के पश्चात से हमारे पास सम्पूर्ण भारत में उत्तम ऐतिहासिक प्रलेखन उपलब्ध हैं। हमारे पास मुगल काल के भी ऐतिहासिक प्रलेखन उपलब्ध हैं क्योंकि वे घटनाएँ समयचक्र में अधिक प्राचीन नहीं हैं, साथ ही तब तक ऐतिहासिक घटनाओं के प्रलेखन की प्रथा आरम्भ हो गयी थी। किन्तु आश्चर्य होता है कि ३५० वर्षों का कदंब शासन मुगल काल से अधिक होने के पश्चात भी अधिक ऐतिहासिक प्रमाण उपलब्ध नहीं है।

प्रा. प्रजल – जी। मुगलों ने ३३२ वर्षों तक राज किया था। कदंब साम्राज्य उससे अधिक था।

अनुराधा – कुछ समय पूर्व मेरे कुछ जानकार गिनती कर रहे थे कि किन किन शासकों ने भारत में मुगलों से अधिक समय तक राज किया था, क्योंकि लोगों में यह भ्रान्ति है कि मुगलों का साम्राज्य सर्वाधिक समय तक था।

प्रा. प्रजल –  वस्तुतः, गोवा पर चोल, अहोम, पंड्या इत्यादि राजवंशों का भी अनेक वर्षों तक साम्राज्य था। किन्तु इनके विषय में अधिक सिखाया नहीं जाता तथा इनके विषय में जनता के ज्ञानकोष में भी अधिक कुछ उपलब्ध नहीं है।

अनुराधा – सही इतिहास पढ़ाना अत्यंत आवश्यक है। विद्यालयों में इतिहास को भी वही मान व महत्ता दी जानी चाहिए जो विज्ञान अथवा गणित को प्राप्त है। जितना प्रगाड़ सम्बन्ध हमारा  विज्ञान से है, उतना ही विशेष सम्बन्ध हमारा इतिहास से है। भूतकाल के बिना भविष्य काल गढ़ना संभव नहीं है।

प्रा. प्रजल –  गोवा ही नहीं, भारत के सभी भागों का अपना इतिहास है जिसे जानना व समझना आवश्यक है। कश्मीर का भी एक महान इतिहास है। सुगंधा एवं दिद्दा जैसी रानियों ने वहाँ राज किया था। उल्लाल की रानी अब्बक्का चौता ने पुर्तगालियों से युद्ध किया था।  कित्तूर की रानी चेन्नम्मा ने अंग्रेजों से युद्ध किया था।

गोवा के महत्वपूर्ण दर्शनीय ऐतिहासिक स्थल

अनुराधा – आज के इस साक्षात्कार के अंत में मैं चाहती हूँ कि आप श्रोताओं को गोवा के कुछ सर्वाधिक महत्वपूर्ण ऐतिहासिक दर्शनीय स्थलों के विषय में बताएं जिससे उन्हें गोवा को जानने व समझने में आसानी होगी।

प्रा. प्रजल –  इसके लिए उन्हें कुशावती नदी के तीर स्थित पन्सोइमल शैलचित्र के स्थल पर जाना चाहिये। पुराना गोवा देखना चाहिए। गोवा की प्रथम राजधानी चांदोर, तम्बडी सुर्ला मंदिर, ओपा का सप्तकोटेश्वर मंदिर, दिवे द्वीप का सप्तकोटेश्वर मंदिर या पोर्ने तीर्थ, मर्दोल का महालसा मंदिर, सालावली बाँध के निकट कुर्डी का महादेव मंदिर इत्यादि के दर्शन करना व समझना चाहिए। पर्यटक सालावली बाँध देखने तो आते हैं किन्तु महादेव मंदिर नहीं देखते जिसे कुर्डी से लाकर पुनः संरचित किया है। इसे मूलतः कदंब राजा शिष्टदेव प्रथम ने बनवाया था।

गोवा पर्यटन

अनुराधा – मैं हृदय से आशा करती हूँ कि गोवा पर्यटन इसका संज्ञान ले तथा आपका सहयोग लेकर पूर्व-पुर्तगाली गोवा पर्यटन स्थलों को प्रकाश में लेकर आये। मैं जानती हूँ कि आपसे जानने के लिए अब भी बहुत कुछ शेष है, किन्तु हमें आज का साक्षात्कार यहीं समाप्त करना पड़ेगा। आशा है कि आपसे शीघ्र ही पुनः भेंट होगी।

डीटूर्स में आने के लिए आपका धन्यवाद। यह हमारा सौभाग्य था कि हमें आपसे इतना कुछ जानने एवं समझने का अवसर प्राप्त हुआ।

प्रा. प्रजल –  गोवा की संस्कृति के अनुसार, इन शब्दों से मैं आपसे आज्ञा लेता हूँ, देव बरे करों

पूर्व-पुर्तगाली गोवा पर प्रजल साखरदांडे से हुई चर्चा की लिखित प्रतिलिपि IndiTales Internship Program के अंतर्गत हर्षिल गुप्ता ने तैयार की।  ऑनलाइन प्रकाशन के लिए संकलित।

अनुवाद: मधुमिता ताम्हणे

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शिरगाँव की लइराई देवी – गोवा की सात बहने और एक भाई के मंदिर https://inditales.com/hindi/lairai-goa-ki-saat-behne-mandir/ https://inditales.com/hindi/lairai-goa-ki-saat-behne-mandir/#respond Wed, 26 Jan 2022 02:30:55 +0000 https://inditales.com/hindi/?p=2475

गोवा के विषय में लोकप्रिय धारणा के ठीक विपरीत, गोवा एक मंदिरों का प्रदेश है। गोवा में प्रति व्यक्ति जितने मंदिर हैं, भारत के किसी अन्य भाग में कदाचित ही होंगे। यहाँ अनेक गौड़ सारस्वत मंदिर हैं जो मुख्यतः गोवा के गौड़ सारस्वत ब्राह्मण परिवारों के कुल देवताओं के मंदिर हैं। इनके अतिरिक्त गोवा में […]

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गोवा के विषय में लोकप्रिय धारणा के ठीक विपरीत, गोवा एक मंदिरों का प्रदेश है। गोवा में प्रति व्यक्ति जितने मंदिर हैं, भारत के किसी अन्य भाग में कदाचित ही होंगे। यहाँ अनेक गौड़ सारस्वत मंदिर हैं जो मुख्यतः गोवा के गौड़ सारस्वत ब्राह्मण परिवारों के कुल देवताओं के मंदिर हैं। इनके अतिरिक्त गोवा में मंदिरों के भिन्न भिन्न समूह हैं। आईये मैं आपको लइराई मंदिर समूह के विषय में बताती हूँ जिसका सम्बन्ध गोवा की सात बहनें एवं एक भाई की कथा से है। इस देवालय समूह के अंतर्गत सात प्राचीन मंदिर हैं जो मुख्यतः मांडवी नदी के उत्तर में स्थित हैं।

गोवा की सात बहनें एवं एक भाई की कथा

एक समय की कथा है, सात बहनें एवं एक भाई हाथी पर सवार होकर गोवा की धरती पर पहुंचे। ऐसा कहा गया है कि वे किसी घाटी से होते हुए गोवा पहुंचे थे।

लइराई मंदिर - शीरगाँव गोवा
लइराई मंदिर – शीरगाँव गोवा

आठों भाई-बहन बिचोली होते हुए मयें(मायेम) गाँव पहुंचे। वे जिस हाथी पर सवार होकर यहाँ पहुंचे थे, उस हाथी का विग्रह आप मयें गाँव के निकट वडन्यार में देख सकते हैं। यह माया-केलबाई अथवा केलम्बिका मंदिर के समीप स्थित है। इसे पहाड़ी के ऊपर लेटराइट शिला में उत्कीर्णित किया है।

एक दिन बड़ी बहन केलबाई ने अपने भाई खेतोबा को चूल्हा जलाने के लिए अंगारे लाने  के लिए भेजा। उसे आने में विलम्ब होता देख केलबाई ने अपनी बहन लइराई को उसे ढूँढने भेजा। लइराई ने देखा कि खेतोबा अन्य बालकों के संग खेल में व्यस्त था। कुपित होकर उसने अपने भाई की पीठ पर पाँव से ठोकर मारने का प्रयास किया। खेतोबा ने एक ओर झुक कर स्वयं को इस आघात से बचाया। आहत खेतोबा ने बहन के संग वापिस लौटने से मना कर दिया तथा वहां से बैंगिणी गाँव चला गया। जब केलबाई को पूर्ण वृत्तान्त ज्ञात हुआ तो उन्होंने भाई के गृह त्यागकर चले जाने की घटना के लिए स्वयं को उत्तरदायी माना। इसलिए उन्होंने मुलगाँव जाकर तप किया। अपने प्रण के अनुसार वे अपने सर पर जलते अंगारे रखकर चलीं। उनके साथ उनके पांच सौ अनुयायी भी थे, जिन्हें धोंड कहते हैं।

बहन केलबाई के निर्णय को देख कर लइराई को पश्चाताप हुआ तथा उन्होंने भी एक पावन स्थल पर जाने का निर्णय लिया। अतः वे शिरगांव में जाकर कर तप करने लगीं। प्रायश्चित के रूप में वे अंगारों पर चलीं। उनके संग उनके सात सौ अनुयायी अर्थात् धोंड भी थे। उनकी स्मृति में भक्त गण आज भी वार्षिक जात्रा में अग्नि वेदी के अंगारों पर चलते हैं।

उन्हें देख मोरजई भी जल में जाने का निर्णय लेती हैं। ऐसा माना जाता है कि कालान्तर में उनकी प्रतिमा मछुआरों को मिली जिन्होंने मोर्जी गांव में उसकी स्थापना कराई।

एक बहन, अन्जीदीपा ने कारवार के समीप अन्जिदीप नामक द्वीप पर स्थायी होने का निश्चय किया।

शीतलाई ने धरती का त्याग कर पाताल में स्थायी होने का निर्णय लिया।

मोरजई देवी मंदिर - मोर्जी गाँव गोवा
मोरजई देवी मंदिर – मोर्जी गाँव गोवा

वर्तमान में सातों बहनें सात भिन्न स्थानों पर निवास करती हैं।

  • शिरगाँव में लइराई
  • मुलगाँव में केलबाई
  • मयें(मायेम) में महामाई
  • म्हापसा में मीराबाई
  • मोर्जी में मोरजई
  • कारवार के समीप अन्जिदीप द्वीप पर अन्जीदीपा – मंदिर अब शेष नहीं है।
  • शीतलाई पाताल चली गयीं।

इन स्थानों पर अब भी इन देवियों के मंदिर हैं जहां उनकी आराधना की जाती है।

शिरगाँव का लइराई मंदिर

बिचोली तालुका में स्थित शिरगाँव एक छोटा सा गाँव है जहां लगभग ३०० परिवारों के लगभग ३००० सदस्य निवास करते हैं। यह एक अनोखा गाँव है जहां किसी प्रकार की हिंसा नहीं होती है। किसी पशु की हत्या नहीं की जाती है। काजू तथा नारियल से किसी भी प्रकार की मदिरा नहीं निकली जाती है। गाँव में किसी भी प्रकार का सामिष भोजन नहीं खाया जाता है। यहाँ तक कि अंडे भी वर्ज्य हैं। जो गांववासी तामसिक भोजन करना चाहें, वे गाँव के बाहर जाकर उन्हें ग्रहण करते हैं। गाँव के भीतर घोड़ों का प्रवेश प्रतिबंधित है। जब तक गाँव में दत्तात्रय का मंदिर नहीं था, वहां कुत्ते भी नहीं थे।

लइराई मंदिर का द्वार
लइराई मंदिर का द्वार

गाँव के मध्य में पीले-नारंगी रंग में देवी का भव्य मंदिर है। यहाँ लइराई को कलश के रूप में पूजा जाता है। गर्भगृह के मध्य में एक कलश स्थापित है जिसे देवी के रूप में अलंकृत किया जाता है। यह कलश गर्भ का प्रतिनिधित्व करता है जो सर्व उत्पत्ति का द्योतक है। पुरोहितजी ने मुझे जानकारी दी कि यहाँ देवी के त्रिगुणात्मक आदिशक्ति रूप की आराधना की जाती है। वे एक अनभिव्यक्त उर्जा हैं जिनसे सबकी उत्पत्ति होती है।

देवी का चित्र

मंदिर के एक ओर देवी का २४० वर्ष प्राचीन चित्र है। इस चित्र में उन्हें हरी साड़ी धारण की हुई स्त्री के रूप में, एक कलश की सीमा के भीतर चित्रित किया है। इस चित्र को देखते ही आपको राजा रवि वर्मा के द्वारा चित्रित चित्रों का स्मरण हो आएगा। वस्तुतः, यह चित्र राजा रवि वर्मा के द्वारा चित्रित चित्रों से अधिक प्राचीन है। कदाचित राजा रवि वर्मा ने इस चित्र से ही प्रेरणा प्राप्त की हो। इस चित्र से यह भी ज्ञात होता है कि यह शैली राजा रवि वर्मा के पूर्व भी अस्तित्व में थी।

मंदिर अपेक्षाकृत सादा है। इसका मंडप विशाल है किन्तु मंडप को कालांतर में जोड़ा गया है।

लइराई देवी का वार्षिकोत्सव या जात्रा
लइराई देवी का वार्षिकोत्सव या जात्रा

वैशाख शुक्ल पंचमी के दिन लइराई की वार्षिक जात्रा आयोजित की जाती है। १५ फीट चौड़ी, १५ फीट लम्बी तथा २१ फीट ऊंची अग्नि वेदी तैयार की जाती है। देवी द्वारा अंगारों पर चलने की स्मृति में भक्तगण भी इस वेदी के अंगारों पर चलते हैं। मैं सोच में पड़ गयी कि लइराई केवल एक कथा की पात्र हैं या वास्तव में वे हमारी पूर्वज हैं?

इस जात्रा के अतिरिक्त, नवरात्रि भी मंदिर का प्रमुख उत्सव है, जो देवी मंदिर होने के कारण स्वाभाविक भी है। पुरोहितजी ने कहा कि शरद नवरात्रि के प्रत्येक दिवस मंदिर में चंडीपाठ का पठन किया जाता है।

देवी को मोगरे के पुष्प अर्पित किये जाते हैं।

मंदिर के उत्कृष्ट रूप से उत्कीर्णित लकड़ी के द्वार अत्यंत सुन्दर हैं। मंदिर के चारों ओर स्थित घरों में भी इसी प्रकार के उत्कृष्ट द्वार हैं।

इस मंदिर से लगभग एक किलोमीटर दूर देवी का मूलस्थान है। शिरगाँव में प्रवेश करने से पूर्व देवी सर्वप्रथम इस स्थान पर स्थानापन्न हुई थीं। यहाँ भी उनका उजाले पीले रंग में एक मंदिर है। यहाँ देवी के रूप में चींटियों की एक वाल्मीकि की पूजा की जाती है। समीप ही ग्राम पुरुष का मंदिर है। उसके भीतर कुछ अनोखी शैल प्रतिमाएं हैं जो शिवलिंग सदृश प्रतीत होने के पश्चात भी शिवलिंग नहीं हैं।

मुलगाँव की केलबाई

सबसे बड़ी बहन केलबाई का मुलगाँव में एक विशाल मंदिर है। यह शिरगांव से लगभग ५ किलोमीटर दूर है। केलबाई की विग्रह रूप में पूजा की जाती है। उनके विग्रह में उनके दोनों हाथों में केले के पुष्प हैं। उनके दोनों ओर दो हाथी हैं। गर्भगृह के भीतर उनकी सुन्दर शैल प्रतिमा को देख वे गजलक्ष्मी प्रतीत होती हैं। मुझे स्मरण है, मैंने गोवा राज्य संग्रहालाय में भी ऐसी प्रतिमाएं देखी हैं।

मुलगांव की केल्बाई देवी
मुलगांव की केल्बाई देवी

जिस दिन मैं केलबाई मंदिर गयी थी, वहां अनेक सुहागिनें हल्दी-कुमकुम का उत्सव मनाने पधारी हुई थीं। उन्होंने मुझे भी उत्सव में भाग लेने के लिए आमंत्रित किया। देवी केलबाई के मंदिर में अनेक स्त्रियों के हाथों हल्दी-कुमकुम प्राप्त करना मेरे लिए देवी का वरदान ही था।

मंदिर के बाहर एक मंडप है जिसके भीतर पेठ रखा है, जो सर पर अंगारे रखकर चलने का पात्र है। इस मंदिर का वार्षिक उत्सव चैत्र मास की शुक्ल पंचमी को आयोजित किया जाता है।

केलबाई को अबोली के पुष्प अर्पित किये जाते हैं।

मयें का महामाया अथवा माया-केलबाई मंदिर

यह एक छोटा सा मंदिर है जिसके भीतर देवी की सुन्दर शैल प्रतिमा है। मूल मंदिर कदाचित इससे भी लघु था जिसे इस मंदिर के भीतर देखा जा सकता है। मंदिर के भीतर विशाल बेलनाकार स्तंभ हैं तथा इसकी छत गुम्बददार है। गलियारे में लकड़ी के स्तंभ हैं तथा गोवा के ठेठ बाल्काओ के समान बैठक क्षेत्र हैं। मंदिर के नवीन मंडप के निर्माण का कार्य जारी है जो मंदिर से अपेक्षाकृत अत्यंत विशाल है।

मएँ गाँव की महामाया देवी
मएँ गाँव की महामाया देवी

प्रत्येक चैत्र शुक्ल अष्टमी के दिवस इस मंदिर का वार्षिक उत्सव आयोजित किया जाता है। इस समय सबसे बड़ी बहन केलबाई अपनी छोटी बहन महामाया से दो दिवसों के लिए भेंट करने आती हैं। उन्हें एक मुखौटे के रूप में बेंत के संदूक में लाया जाता है। मैंने ऐसी कथा कोल्हापुर के महालक्ष्मी मंदिर के विषय में भी सुनी थी जो त्र्यम्बोली देवी अथवा तेम्बलाई देवी से भेंट करने जाती हैं।

सात बहनों के मंदिरों में से मुझे यह मंदिर सर्वाधिक शांत एवं दैवी शक्ति से उर्जावान प्रतीत हुआ।

मोर्जी की मोरजई देवी

मैंने इस मंदिर के दर्शन दो ध्येयों को ध्यान में रखकर किये थे, एक था सात बहनों के दर्शन तथा दूसरा इस मंदिर में की गयी कावी कला का अवलोकन। इस मंदिर में देवी महिषासुरमर्दिनी के रूप में स्थित हैं। पुरोहितजी ने मुझे देवी की उत्सव मूर्ति भी दिखाई जो मुख्य मूर्ति की सटीक प्रतिकृति है।

महिषासुरमर्दिनी के रूप में मोर्जई देवी
महिषासुरमर्दिनी के रूप में मोर्जई देवी

इस मंदिर का नवीनीकरण कुछ दिन पूर्व ही किया गया है। इस पर श्वेत व लाल रंग में स्थानीय कावी कला द्वारा आकृतियाँ चित्रित की गयी हैं। मंदिर की बाहरी व भीतरी भित्तियाँ, छत, झरोखों की चौखटें, यहाँ तक कि आसपास स्थित लघु मंदिरों पर भी कावी कला द्वारा अलंकरण किया गया है।

विडियो : मोर्जी के मोरजई मंदिर पर गोवा की कावी कला

इंडीटेल के यूट्यूब चैनल YouTube channel IndiTales पर कावी कला का विडियो देखिये।

मंदिर के समीप एक लघु जलकुंड है। इस गाँव में देवी के दो अन्य मंदिर भी हैं जो इस मंदिर के समीप ही स्थित हैं।

मोरजई मंदिर की वार्षिक जात्रा श्रावण मास की कृष्ण त्रयोदशी के दिवस आयोजित की जाती है।

म्हापसा की मीराबाई अथवा मिराबिलिस

मीराबाई मंदिर को अब सेंट जेरोम गिरिजाघर में परिवर्तित कर दिया गया है। मीराबाई अब मिलाग्रेस के नाम से जानी जाती हैं। जैसा कि मैंने अपनी पुस्तक ‘Lotus In The Stone’ में कहा है, मंदिर संस्कृति के कुछ डोरे अब भी जीवित हैं। मीराबाई को तेल अर्पित किया जाता था। गिरिजाघर के भीतर देवी को मिलाग्रेस के रूप में पूजा जाता है। वहीं उनकी एक प्रतिमा गिरिजाघर के बाहर भी है जिस पर भक्त तेल अर्पित करते हैं। गोवा के अन्य अनेक स्थानिकों के समान, मीराबाई के कुछ भक्तों ने भी धर्म परिवर्तन कर लिया है।

लइराई मन्दिर से मीराबाई के लिए एक हांडी में तेल भेजा जाता है। उसी प्रकार मीराबाई की ओर से लइराई के लिए मोगरे के पुष्पों की टोकरी भेजी जाती है।

अन्जिदीप/अन्जेदिवा द्वीप पर अन्जीदीपा का मंदिर

जितना मुझे ज्ञात है तथा जितनी जानकारी मैंने इन पांच मंदिरों में एकत्र की, किसी को भी अन्जीदीपा के मंदिर के अस्तित्व की जानकारी नहीं है। जहाँ तक अन्जिदीप द्वीप का प्रश्न है, यह द्वीप अब नौसेना के अधीन है। वहां जाने के लिए उनकी अनुमति आवश्यक है। इतिहासकारों के किसी भी प्रलेखन में वहां ऐसे किसी मंदिर का उल्लेख नहीं है। या तो वहां कभी कोई मंदिर था ही नहीं, यदि मंदिर था भी, तो वह समय के साथ नष्ट हो चुका है। वैसे भी कहावत है, यदि भक्त भगवान का स्मरण ना करें तो वे भी सदा के लिए खो जाते हैं।

बैंगिणी गाँव का खेतोबा मंदिर

खेतोबा की मूर्ति
खेतोबा की मूर्ति

सात बहनों के भाई, खेतोबा का मंदिर बैंगिणी में है जिस पर रंगों की सर्वाधिक छटा है। खेतोबा की पाषाणी प्रतिमा प्राचीन प्रतीत होती है। वे कमल आसन पर आरूढ़ हैं। उनकी प्रतिमा को चन्दन से अलंकृत किया जाता है। यह प्रतिमा किंचित झुकी हुई है। जैसा की कथा में उल्लेख है, उनकी बहन लइराई ने उनकी पीठ पर लात मारने का प्रयास किया था जिससे बचने के लिए वे एक ओर झुक गए थे।

यह एक छोटा मंदिर है जहां तक पहुँचने के लिए मार्ग भी संकरा है।

हम जब यहाँ पहुंचे, उनकी संध्या आरती की जा रही थी।

खेतोबा की आरती सुनें।

हाथी

सात बहन एवं एक भाई जिस गज पर आरूढ़ होकर आये थे, उस गज की प्रतिमा मयें के महामाया मंदिर से कुछ दूरी पर, एक पहाड़ी के ऊपर स्थित है। उस तक पहुँचने के लिए लेटराइट या रुद्राक्ष शिला की सुन्दर सीढ़ियाँ हैं। जब हम वहां पहुंचे, अन्धकार हो चुका था। किन्तु हम एक बाल हाथी की प्रतिमा को देख पाए। उस हाथी की व्यवस्थित रूप से देखभाल एवं आराधना की जाती है।

तो यह थी कथा गोवा के सात बहनों एवं एक भाई की। क्या आपने क्षेत्र की भी ऐसी ही कोई रोचक कथा है?

अनुवाद: मधुमिता ताम्हणे

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हर्वले गाँव – गोवा में पांडव गुफाएं, वल्लभाचार्य बैठक और जलप्रपात https://inditales.com/hindi/harvale-goa-pandav-gufa-waterfall/ https://inditales.com/hindi/harvale-goa-pandav-gufa-waterfall/#comments Wed, 09 Jun 2021 02:30:52 +0000 https://inditales.com/hindi/?p=2314

गोवा के उत्तर गोवा जिले में स्थित बिचोली गाँव के आगे हर्वले नामक एक गाँव है। इसे अर्वलेम भी कहा जाता है। यहाँ स्थित, ६० फीट ऊंचा, बारहमासी जल-प्रपात एवं अनेक किवदंतियों से जुड़ा, प्राचीन गुफाओं का एक समूह, इस गाँव के ना केवल गौरव हैं, अपितु मुख्य परिचायक भी हैं। गोवा के इस शांतिपूर्ण […]

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गोवा के उत्तर गोवा जिले में स्थित बिचोली गाँव के आगे हर्वले नामक एक गाँव है। इसे अर्वलेम भी कहा जाता है। यहाँ स्थित, ६० फीट ऊंचा, बारहमासी जल-प्रपात एवं अनेक किवदंतियों से जुड़ा, प्राचीन गुफाओं का एक समूह, इस गाँव के ना केवल गौरव हैं, अपितु मुख्य परिचायक भी हैं। गोवा के इस शांतिपूर्ण गाँव में विचरण करने से पूर्व मैं इस गाँव के विषय में केवल इतना ही जानती थी। जिस दिन मैं हर्वले गाँव के अवलोकन के लिए वहां पहुंची, मूसलाधार वर्षा हो रही थी।

हर्वले गाँव - गोवा में पांडव
हर्वले गाँव – गोवा में पांडव

हरियाली से ओतप्रोत, गोवा के ग्रामीण क्षेत्रों से होकर हम हर्वले गाँव की ओर जा रहे थे। चित्ताकर्षक दृश्यों से मन आनंदविभोर हो उठा था। उत्तर गोवा के कई छोटे-बड़े गाँवों से होते हुए, प्रकृति की सुन्दरता को आत्मसात करते हुए, घुमावदार रास्ते से हम हर्वले गाँव पहुंचे।

गोवा के हर्वले गाँव की खोज

प्राचीन रुद्रेश्वर मंदिर

हर्वले गाँव में प्रवेश करते ही सर्वप्रथम हमारा साक्षात्कार प्राचीन गुफाओं से हुआ। किन्तु मूसलाधार वर्षा अनवरत सक्रिय थी। अतः गुफाओं के अवलोकन को विलंबित कर हम आगे बढे तथा रुद्रेश्वर महादेव मंदिर पहुंचे। मंदिर की सूचना पट्टिका पर इस क्षेत्र का नाम ‘तीर्थ क्षेत्र’ अंकित था। इसका तात्पर्य है कि यह स्थान सनातन धर्मावलम्बियों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। मंदिर के भीतर प्रवेश करते ही हमारी दृष्टी एक अप्रतिम शिवलिंग पर केन्द्रित हो गयी जिसके ऊपर चांदी का आवरण था, जैसे फोंडा के मंगेशी मंदिर के शिवलिंग पर है। गुरूजी से वार्तालाप करने के उद्देश्य से मैं वहीं उनके समीप बैठ गयी। गुरूजी ने मुझे बताया कि यह स्वयंभू शिवलिंग है, अर्थात् मानव निर्मित नहीं, अपितु स्वयं उद्भवित लिंग है।

प्राचीन रुद्रेश्वर महादेव मंदिर
प्राचीन रुद्रेश्वर महादेव मंदिर

यह मंदिर सहस्त्रों वर्ष प्राचीन माना जाता है। मंदिर अवश्य प्राचीन प्रतीत होता है। इसके समक्ष एक नवीन सभागृह निर्माणाधीन है। मंदिर के एक ओर मंदिर के गुरूजी का आवास है। उनका आवास गोवा की ठेठ वास्तु शैली में निर्मित एक विशाल एवं सुन्दर निवास गृह है।

रुद्रेश्वर महादेव शिवलिंग
रुद्रेश्वर महादेव शिवलिंग

मैंने भीतर प्रवेश किया तथा गुरूजी से मंदिर से सम्बंधित कथा कहने का आग्रह किया। उनसे मुझे ज्ञात हुआ कि यह मंदिर भगवान शिव के रूद्र रूप को समर्पित है। इस मंदिर की एक अन्य विशेषता है कि हिन्दू धर्म के अनुयायी अपने स्वर्गवासी परिजनों के श्राद्ध संस्कार के लिए इस मंदिर में आते हैं। स्वर्गवासी परिजनों के अस्थियों को समीप स्थित जल-प्रपात से निर्मित नदी के जल में प्रवाहित करते हैं। आगे उन्होंने मुझे गोवा की  इन विरासती धरोहरों, प्राचीन गुफाओं एवं जल-प्रपात से सम्बंधित अनेक कथाएं सुनाईं। तत्पश्चात, उन्होंने नदी के दूसरे छोर पर स्थित एक मंदिर की ओर संकेत किया जो जैन गुजराती समुदाय से सम्बन्ध रखता है। मुझे यह आभास हो गया था कि गोवा के ग्रामीण क्षेत्र पर्यटन के अंतर्गत अनेक स्थल हैं जिनके अवलोकन का सौभाग्य मुझे प्राप्त हो रहा है।

हर्वले जल प्रपात का विडियो

वर्षा ने कुछ क्षणों का विराम लिया हुआ था। अतः मैंने गोवा के इस बारहमासी जल-प्रपात की ओर जाने का निश्चय किया। कुछ सीढ़ियाँ चढ़कर मैं एक अवलोकन मंच पर पहुँची। यह मंच सर्वोत्तम अवलोकन बिंदु पर विशेष रूप से जल-प्रपात को देखने के लिए निर्मित प्रतीत होता है। यहाँ से जल-प्रपात का उत्तम दृश्य प्राप्त होता है। मंच पर पहुंचते ही जल-प्रपात से उठते तुषार की बूंदों ने हमारा स्वागत किया।

जल-प्रपात का जल ऊंचाई से अत्यंत वेग से गिर रहा था तथा परवर्तित होकर उछल रहे बूंदों से अठखेलियाँ खेल रहा था। उनके संगम से उत्पन्न तुषार के कारण जल-प्रपात के निचले भाग में धुंए जैसा वातावरण उत्पन्न हो गया था। जल-प्रपात के कोलाहल एवं चारों ओर उड़ते तुषार के कारण हमारा सम्पूर्ण अस्तित्व अन्यत्र वातावरण से असम्बद्ध हो चुका था। कुछ क्षण मंत्रमुग्ध सी मैं जल-प्रपात एवं उसके आसपास के वातावरण को निहारती रही। तत्पश्चात अपने कैमरे में उनकी छवि को स्थाई रूप से संजोने लगी। जल-प्रपात से उड़ती जल की बूँदें तथा तुषार भरे वातावरण के कारण छायाचित्रीकरण कठिन हो रहा था।

फिर भी, प्रयत्न पूर्वक मैंने आपके लिए यह लघु चलचित्र  संकलित किया है। आप जब भी गोवा भ्रमण के लिए आयें तथा गोवा के ग्रामीण क्षेत्रों में यदि आपकी रूचि हो तो यह विडियो आपके लिए ही है। इसे अवश्य देखें।

लोहे का पुल
लोहे का पुल

जल-प्रपात का जल एक जलाशय में गिरता है। वहां से निकलती एक जलधारा रुद्रेश्वर मंदिर की परिक्रमा करती है। तत्पश्चात वनों एवं गाँवों से होते हुए वह जलधारा मेरी प्रिय नदी माण्डवी से जा मिलती है। मंदिर के गुरूजी ने बताया था कि इस जलाशय की रचना पांडव भीम ने की थी। हर्वले की गुफाओं में वास करते समय उन्होंने एक अन्यत्र जल स्त्रोत से जल यहाँ की ओर पथान्तरित किया था।

महाप्रभु वल्लभाचार्य बैठक

लोहे के एक छोटे से सेतु को पार कर मैं नदिया के उस पार पहुँची। कुछ ऊपर चढ़कर मैं एक अन्य मंदिर में पहुँची। अधिकारिक रूप से यह स्थान ४३वें महाप्रभु वल्लभाचार्य की बैठक के रूप में जाना जाता है जो एक गुजराती संत थे। मुझे बताया गया कि गुजराती भाषा के ५०० वर्षों से भी अधिक प्राचीन ग्रंथों में इस स्थान का विस्तृत रूप से उल्लेख किया गया है। उनमें रुद्रेश्वर मंदिर, जल-प्रपात एवं गुफाओं का भी उल्लेख है। उस दिन मंदिर बंद होने के कारण, आरम्भ में, मुझे किसी अन्य दिवस उपस्थित होने का निर्देश दिया गया। किन्तु निवेदन करने पर पुजारी जी बाहर आये तथा उन्होंने दर्शन के लिए मंदिर के द्वार खोल दिए।

महाप्रभु वल्लभाचार्य के पदचिन्ह
महाप्रभु वल्लभाचार्य के पदचिन्ह

इस मंदिर में किसी मूर्ति की पूजा नहीं होती। अपितु लेटराइट शिला पर अंकित गुरु के पदचिन्हों की आराधना की जाती है। गुरु महाप्रभु वल्लभाचार्यजी किसी काल में यहाँ आये थे तथा प्रवचन दिया था। कौन सोच सकता है कि गोवा के किसी दूरस्थ गाँव में गुजरात का एक अंश जीवित है। यदि आप विरासती धरोहरों में रूचि रखते है तो गोवा के धरोहरों का अवलोकन अवश्य करें। गोवा में ऐसे धरोहरों की असीमित संपत्ति जो है।

हर्वले की गुफाएं – गोवा की अनोखी धरोहर

जब तक हम वापिस हर्वले की गुफाओं के समीप पहुंचे, वर्षा ने हम पर उपकार कर दिया था। भारत में देखे अनेक गुफाओं में से यह सर्वाधिक सामान्य एवं सादी उत्खनित गुफाएं हैं। लेटराइट की एक विशाल शिला को काटकर ६ कक्षों की रचना की गई है। उनपर किसी भी प्रकार का उत्कीर्णन अथवा नक्काशी नहीं है। इसका प्रमुख कारण शिला का प्रकार हो सकता है क्योंकि लेटराइट शिला पर किसी भी प्रकार का सूक्ष्म उत्कीर्णन कठिन है।

हर्वले में गोवा की पांडव गुफाएं
हर्वले में गोवा की पांडव गुफाएं

५ कक्षों में काले ग्रेनाईट शिला में निर्मित ५ शिवलिंग स्थापित हैं। किवदंतियों के अनुसार, अज्ञातवास के समय, पांडव भ्राता यहाँ आकर कुछ काल निवास किये थे। ५ कक्षों में वे पृथक रूप से शिव की आराधना करते थे। छठा कक्ष द्रौपदी का रसोईघर था। यह छठा कक्ष अत्यंत जिज्ञासा उत्पन्न करता है। किसी आधुनिक रसोईघर के सामान इस कक्ष में भी एक ओर रसोई बनाने के लिए एक चबूतरा है। इस चबूतरे पर सामान आकार के एवं सामान दूरी पर ८ गड्ढे हैं जो चूल्हों के सामान प्रतीत होते हैं।

ये गड्ढे चूल्हें है, यह केवल एक अनुमान है। हो सकता है कि ये गड्ढे ऊपर से टपकते जल के प्रहार से बने हों। किन्तु कक्ष के भीतर जाते ही, प्रथम दर्शन में ऐसा प्रतीत होता है मानो हम एक आधुनिक रसोईघर में प्रवेश कर रहे हैं।

और पढ़ें: पन्सोइमोल का प्रागैतिहासिक शैल-कलाकृतियाँ

गुफाएं हिन्दू हैं या बौद्ध?

ये गुफाएं आरम्भ से हिन्दू थीं अथवा बौद्ध, यह चर्चा का विषय है। कक्षों के भीतर स्थापित शिवलिंगों से तो ऐसा प्रतीत होता है कि इन गुफाओं का भूतकाल एवं वर्त्तमान काल हिन्दू धर्म से सम्बंधित है। किन्तु ऐसा भी कहा जाता है कि गुफाओं के निकट बुद्ध की आवक्ष प्रतिमा भी प्राप्त हुई थी। बुद्ध की ऐसी ही एक अन्य आवक्ष प्रतिमा दक्षिण गोवा के रिवोना गुफाओं से भी प्राप्त हुई थी। गोवा में बौद्ध धर्म के केवल यही ज्ञात चिन्ह उपस्थित हैं। किन्तु पड़ोसी राज्यों, कर्णाटक एवं महाराष्ट्र में बौद्ध धर्म के चिन्ह बहुतायत में दृष्टिगोचर होते हैं।

और पढ़ें: चोर्ला घाट – गोवा के हरियाली भरे ग्रामीण परिवेश की अप्रतिम झलक

मेरे अनुमान से भारत में उपस्थित अधिकतर गुफाओं का उत्खनन ३ई.पू. के पश्चात ही हुआ था। बोध गया की बराबर गुफाएं भारत के प्राचीनतम गुफा समूह हैं। हर्वले गुफाओं की कटाई भी उन्ही गुफाओं समान है। इन गुफाओं का प्रयोग कदाचित उन धुमक्कड़ गवैयों ने किया होगा जो उस काल में इस स्थान पर प्रचलित धर्म का पालन करते थे। प्राचीन काल में इनका प्रयोग उन तीर्थयात्रियों ने भी किया होगा जो अपने स्वर्गवासी परिजनों की स्मृति में धार्मिक अनुष्ठान कराने रुद्रेश्वर मंदिर आये होंगे। उस काल में कदाचित इनका प्रयोग इस क्षेत्र से जाते व्यापारियों ने भी किया होगा।

यदि आप प्रत्येक स्थान की संस्कृति एवं इतिहास में रूचि रखते हैं तथा गोवा भ्रमण करना चाहते हैं तो गोवा भ्रमण स्थलों की यात्रा सूची में हर्वले गुफाओं का नाम अवश्य सम्मिलित करें।

कुछ ही वर्ग किलोमीटर के छोटे से क्षेत्र में विचरण करते हुए मेरा साक्षात्कार अनेक ऐतिहासिक तत्वों से हुआ। अनेक कथाएं, भिन्न भिन्न धर्म तथा प्राकृतिक सौंदर्य से एक साथ सामना हुआ। मेरा महान भारत मुझे आश्चर्यचकित करने में सदेव अग्रसर रहता है।

अनुवाद: मधुमिता ताम्हणे

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दीवार द्वीप – गोवा की मांडवी नदी में प्रकृति एवं धरोहर का आनंद https://inditales.com/hindi/divar-dweep-mandavi-nadi-goa/ https://inditales.com/hindi/divar-dweep-mandavi-nadi-goa/#comments Wed, 24 Jun 2020 02:30:27 +0000 https://inditales.com/hindi/?p=1811

गोवा में पक्षी दर्शन के लिए मेरे सर्वाधिक प्रिय स्थलों में से एक है यह दीवार द्वीप। यह गोवा के मांडवी नदी के मुहाने पर स्थित दो द्वीपों में से एक है। रिबंदर अथवा पुराना गोवा से द्वीप के इस छोर पर पहुँचने के लिए फेरी नौका ही एकमात्र साधन है। यूं तो यह एक […]

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गोवा में पक्षी दर्शन के लिए मेरे सर्वाधिक प्रिय स्थलों में से एक है यह दीवार द्वीप। यह गोवा के मांडवी नदी के मुहाने पर स्थित दो द्वीपों में से एक है। रिबंदर अथवा पुराना गोवा से द्वीप के इस छोर पर पहुँचने के लिए फेरी नौका ही एकमात्र साधन है। यूं तो यह एक साधारण फेरी नौका है जो लोगों एवं उनके वाहनों को मुख्य भूमि से द्वीप तक ले जाती है।

फेरी यात्रा के दोनों छोरों का जीवन अत्यंत भिन्न है। ऐसा प्रतीत होता है मानो हम एक भिन्न विश्व में प्रवेश कर रहे हों। नगरी परिवेश के प्रत्येक चिन्ह को पीछे छोड़ते हुए हम दीवार द्वीप के शांत एवं निर्मल ग्रामीण वातावरण में प्रवेश करते हैं। द्वीप पर उतरते ही गांवों की ओर एक संकरा मार्ग जाता है जिसके दोनों ओर धान के खेत एवं तालाब हैं। प्रातःकाल एवं संध्या के समय आप यहाँ लोगों को खेतों में कार्य करते तथा जल में मछली पकड़ते देख सकते हैं।

दीवार द्वीप को ले जाती फेरी नाव
दीवार द्वीप को ले जाती फेरी नाव

मैं दीवार द्वीप में कई बार भ्रमण कर चुकी हूँ। अधिकांशतः हम द्वीप को घेरे हुए मैंग्रोव (समुद्री/ खारे पानी के किनारे पनपनेवाली झाड़ियाँ) के चारों ओर पदभ्रमण करते तथा केकड़ों एवं अन्य जीवों को ढूंढते थे। कभी पक्षियों को ढूंढते एवं उनका पीछा करते थे। एक बार मुझे प्रसिद्ध वेलनेस रिज़ॉर्ट देवाया द्वारा भोजन हेतु आमंत्रित किया गया था। उस समय मैने द्वीप के दूसरे छोर में भी भ्रमण किया था। एक बार मैं गोवा के अप्रवाही जल पर सवारी के अभियान में भाग ले रही थी। उस समय मुझे बॉलीवूड के प्रसिद्ध अभिनेता एवं उनकी पत्नी द्वारा संचालित एक अप्रतिम रिज़ॉर्ट में कुछ समय व्यतीत करने का भी अवसर प्राप्त हुआ था।

एक समय हम केवल गाड़ी में बैठकर दीवार द्वीप की सड़कें नाप रहे थे। जब भी प्रकृति के किसी मनमोहक दृश्य पर हमारी दृष्टि पड़ती, हम वहीं रुक जाते। हमने रुक रुक कर द्वीप के सुंदर रंगीन घरों को भी देखा।

गोवा की मांडवी नदी
गोवा की मांडवी नदी

एक बार मैं द्वीप पर आयोजित प्रसिद्ध वार्षिक उत्सव, बोंडेरम उत्सव का आनंद उठाने यहाँ आई थी। यह वर्षा का उत्सव प्रत्येक वर्ष अगस्त मास में आयोजित किया जाता है।

इस बार मैंने दीवार द्वीप के कुछ प्राचीन धरोहरों के दर्शन करने का निश्चय किया। दीवार द्वीप में मैंने जिन स्थलों एवं धरोहरों के दर्शन किये, उन्हे आपसे बांटने के लिए यहाँ प्रस्तुत कर रही हूँ।

दीवार द्वीप का इतिहास

दीवार शब्द की व्युत्पत्ति देववाड़ी शब्द से हुई है जिसका अर्थ है देव की वाड़ी अथवा वह स्थान जहां देव निवास करते हैं। मौखिक इतिहासों के अनुसार दीवार द्वीप मंदिरों से भरा स्थल था तथा यहाँ लोग निवास नहीं करते थे। यह पूर्ण रूप से एक तीर्थ स्थल था। द्वीप के दूसरी ओर एक गाँव है जिसका नाम अब बिचोली है। इसका भूतपूर्ण नाम भटग्राम था। तो क्या मंदिरों के पुजारी इस द्वीप पर रहते थे। कदाचित!!

गोवा का दीवार द्वीप
गोवा का दीवार द्वीप

दीपवाड़ी नाम कालांतर में दिवाड़ी बन गया। यहाँ के स्थानीय निवासी इसे अब भी दिवाड़ी कहते हैं। 16 वीं. शताब्दी के मध्य में जब पुर्तगाली यहाँ आए तथा इस द्वीप पर आधिपत्य स्थापित किया तभी से इस सुन्दर द्वीप का नाम अपभ्रंशित हो कर दीवार द्वीप हो गया। वास्तव में जब पुर्तगालियों ने गोवा में पदार्पण किया था तब सर्वप्रथम दीवार द्वीप पर ही आधिपत्य स्थापित किया था। इसके लिए उन्होंने यहाँ के कई प्राचीन मंदिरों को नष्ट किया था। सप्तकोटेश्वर मंदिर उनमें प्रमुख है। पूर्तगलियों से रक्षण करने के लिए स्थानीय निवासी इस मंदिर की प्रतिमा को जल के दूसरी ओर स्थित हिंडले (नारवे) गाँव में ले गए जहां 17 वीं. शताब्दी में शिवाजी महाराज ने उनके लिए मंदिर बनाया था। कई मायनों में यह गोवा के पीठासीन देव हैं।

सप्तकोटेश्वर, यह शब्द 7 कोटी अर्थात 7 करोड़ से उत्पन्न है। सांकेतिक रूप से इसका अर्थ है कि इस मंदिर में अनेक तपस्वियों ने आराधना की थी। यहाँ के अन्य मंदिर है, गणेश मंदिर, महामाया मंदिर तथा द्वारकेश्वर मंदिर।
वर्तमान में दीवार में तीन प्रमुख गाँव हैं। पियादेद, मलार तथा नारोआ।

दीवार नद-द्वीप के मंदिर

हम जब दीवार द्वीप में भ्रमण कर रहे थे, मेरी दृष्टि सतत इस मनोरम द्वीप में चारों ओर मंदिरों के चिन्हों को खोज रही थी। मुझे मेरे प्रयास में कुछ सफलता भी प्राप्त हुई।

शक्ति गणेश मंदिर

चर्च ऑफ़ पुर लास्य ऑफ़ पायटी
चर्च ऑफ़ पुर लास्य ऑफ़ पायटी

पियादेद में, एक पहाड़ी के शीर्ष पर एक गिरिजाघर है जिसका नाम है, ‘आवर लेडी ऑफ पाइटी’। इसके अग्र भाग की भित्तियों पर गोवा के उन निवासियों के चित्र हैं जो ईसाई धर्म प्रचार के लिए गोवा से श्रीलंका में स्थित जाफना गए थे। गिरिजाघर के एक ओर कब्रस्तान है। यह वही कब्रस्तान है जहां किसी समय गणेश मंदिर था। आप इस कब्रस्तान के भीतर प्राचीन गणेश मंदिर का तोरण अब भी देख सकते हैं। यह तोरण इस मंदिर के गर्भगृह का भाग था।

पहाड़ी के शीर्ष से घुमावदार मांडवी नदी का दृश्य अत्यंत लुभावना है। मार्ग से नदी के इस घुमाव को कदाचित आप ढूंढ ना पाएं। इस दृश्य का आनंद लेने के लिए आपको मार्ग से किंचित दूर जाकर ऊपर उठकर देखना पड़ेगा। मंदिर परिवर्तित गिरिजाघर की भित्तियों के ऊपर खड़ी होकर मैंने यह दृश्य देखा था।

शक्ति गणेश मंदिर - दीवार
शक्ति गणेश मंदिर – दीवार

मेरे दाहिनी ओर चटक पीले एवं गुलाबी रंग में रंगा एक उजला मंदिर झांक रहा था। अतः हम पहाड़ी से नीचे उतरते हुए उसकी ओर बढ़े। कुछ दूरी पर हमें एक सुंदर जलद्वार दिख रहा था। एक कच्चा मार्ग हमें एक छोटे से मंदिर की ओर ले आया जो मूल पुरुष अर्थात राखणदार को समर्पित है। राखणदार वह देवात्मा है जो हमारा रक्षण करते हैं। वे बहुधा गाँव के पूर्वज होते हैं। मंदिर से एक तल नीचे, मार्ग के उस पार, एक बड़ा मंदिर था जो अपेक्षाकृत नवीन प्रतीत हो रहा था। वहाँ लगे एक सूचना पटल के अनुसार वह शक्ति गणेश मंदिर था।

गणपति मूर्ति - शक्ति गणेश मंदिर
गणपति मूर्ति – शक्ति गणेश मंदिर

ठेठ समकालीन गोवा पद्धति में निर्मित इस मंदिर के भीतर काली शिला में बनी गणेशजी की अप्रतिम मूर्ति है। मंदिर के पुजारी ने मुझे बताया कि यह नवनिर्मित मंदिर है तथा प्रतिमा भी नवीन है। गणेशजी की मूल प्रतिमा पुर्तगाली आततायियों की यातनाओं के रहते अब फोंडा तालुका के खंडोला में विस्थापित है।

हनुमान मंदिर

हनुमान मंदिर - दीवार द्वीप, गोवा
हनुमान मंदिर – दीवार द्वीप, गोवा

एक तल और नीचे आने पर आपको एक छोटा मंदिर दृष्टिगोचर होगा जो हनुमानजी को समर्पित है। उत्कीर्णित स्तंभों व उत्कीर्णित मंच युक्त श्वेत रंग का यह सुंदर मंदिर पारंपरिक वास्तुशैली में निर्मित है। मंदिर के गर्भगृह के भीतर स्थित हनुमानजी की प्रतिमा श्वेत संगमरमर में निर्मित है, वहीं मंदिर के बाहर काले रंग के एक मंच पर स्थित उनकी प्रतिमा काली शिला द्वारा निर्मित है। इसी काले रंग की प्रतिमा पर भक्तगण तेल चढ़ाते हैं।

प्राचीन बनयान पेड़ - दीवार द्वीप
प्राचीन बनयान पेड़ – दीवार द्वीप

मंदिर के बाहर एक विशाल बड़ का वृक्ष है। इसके तने पर लिपटे पवित्र धागों को देख इस तथ्य का आभास होता है कि इस वृक्ष की पूजा की जाती है।

नारोआ के १०८ मंदिर एवं पोरणे तीर्थ तली या कुंड

दीवार द्वीप का प्राचीन कुंड
दीवार द्वीप का प्राचीन कुंड

पोरणे तीर्थ का अर्थ है प्राचीन तीर्थस्थल। यह सप्तकोटेश्वर मंदिर का मूल स्थान है जो कदंब राजाओं के कुलदेवता थे। कदंब साम्राज्य के सिक्कों एवं ताम्रपत्र आलेखों में इस मंदिर का उल्लेख प्राप्त होता है। इस मंदिर को सर्वप्रथम उन्ही बहमानी राजाओं ने नष्ट किया था जिन्होंने १४ वीं. शताब्दी में इस्लाम धर्म को अपनाया था। तत्पश्चात १४ वीं. शताब्दी के अंत में विजयनगर के सम्राटों ने इस मंदिर का पुनर्निर्माण करवाया था। सन् १५४० में पुर्तगालियों ने इस मंदिर को पूर्णतः ध्वस्त कर दिया था।

यह संरचना गोवा के कदंब वंश के काल की है जो आपको १०-१२वीं. सदी में ले जाएगी। यह अब एक पुरातात्विक स्थल है।

१०८ पोरणे तीर्थ - दीवार द्वीप
१०८ पोरणे तीर्थ – दीवार द्वीप

अब जो संरचना यहाँ दिखाई देती है, वह एक अनियमित आकार के जलकुंड की है जिसके चारों ओर मंदिर के समान आले हैं। ये कुल १०८ आलें अथवा सूक्ष्म मंदिर हैं। जलकुंड के चारों और में जल तक पहुँचने के लिए असमतल सीढ़ियाँ हैं। लैटेराइट शिला में निर्मित यह जलकुंड अपने खंडहर रूप में भी अत्यंत सुंदर प्रतीत होता है। मूलतः इसे कोटी तीर्थ कहा जाता था, परंतु इसे अब पोरणे तीर्थ कहा जाता है।

मंदिर के भीतर एवं पार्श्व भित्तियों पर स्थित आलों के भीतर कोई भी मूर्ति नहीं है। तथापि, यदि आप इन्हे समीप से देखेंगे तो आपको इन आलों के भीतर छिद्र दृष्टिगोचर होंगे जो यह दर्शाते हैं कि किसी समय इन आलों के भीतर मूर्तियाँ स्थापित रही होंगी। कुंड के चारों ओर भ्रमण करते समय मैं बीच बीच में इन आलों के भीतर हाथ फिरा रही थी। अपने मानस पटल में उन मूर्तियों की काल्पनिक चित्र प्रस्तुत करने का प्रयास कर रही थी जो कभी इन १०८ सूक्ष्म मंदिरों में स्थापित रहे होंगे। क्या वे शिवलिंग थे? हो सकते हैं क्योंकि भगवान शिव यहाँ के प्रमुख देव हैं। अथवा क्या यहाँ भगवान शिव के गणों की प्रतिमाएं थीं या हिंदू देव-देवताओं का सम्मिश्रण था?

१०८ मंदिर - दीवार द्वीप
१०८ मंदिर – दीवार द्वीप

यहाँ भारतीय पुरातात्विक सर्वेक्षण विभाग का एक सूचना पटल लगाया हुआ है जिस पर इस स्थान के विषय में किंचित जानकारी दी गई है। इसके पार आपको स्वयं ही अनुमान लगाना होगा अथवा जानकारी एकत्र करनी होगी।

हटकेश्वर महादेव देवस्थान

पोरणे तीर्थ से आगे बढ़ने पर आप अप्रवाही जल के एक और प्रसार तक पहुंचेंगे। यहाँ से आपको इस छोटे मंदिर के सिवाय दूर दूर तक कोई संरचना दृष्टिगोचर नहीं होगी। इसके एक किनारे पर केवल यह हटकेश्वर मंदिर स्थित है। सम्पूर्ण दृश्य अत्यंत मनोहारी प्रतीत होता है।

हटकेश्वर महादेव मंदिर - दीवार द्वीप
हटकेश्वर महादेव मंदिर – दीवार द्वीप

इस दुमंजिली इमारत के दूसरे तल पर मंदिर स्थित है। इसका उद्देश्य कदाचित मंदिर को सम्पूर्ण वर्ष जल स्तर से ऊपर रखने की मंशा रही होगी। मंदिर के भीतर एक छोटे से मंच पर एक छोटा सा शिवलिंग स्थापित है। साथ ही नंदी की प्रतिमा बाहर स्थापित है। प्रथम तल से सम्पूर्ण दृश्य अत्यंत चित्ताकर्षक है। सघन हरियाली से घिरी अप्रवाही जल की शांत नदी के ऊपर अनेक पक्षी उड़ रहे थे। दूर दूर तक कोई व्यक्ति दिखाई नहीं दे रहा था।

मंदिर के ठीक सामने शमशान घाट का मैदान है। प्रत्येक वर्ष इस मैदान में जात्रा का आयोजन किया जाता है। मुझे बताया गया कि इसी स्थान पर मुंडन जैसे संस्कारों का भी आयोजन किया जाता है।

मैं यहाँ दीपावली के पर्व से कुछ दिनों पश्चात ही आई थी। चारों ओर दीपावली उत्सव मनाने के चिन्ह स्पष्ट दृष्टिगोचर हो रहे थे।

हमने श्वेत एवं नीले रंग में रंगी एक सुंदर बेलनाकार संरचना देखी। मेरा प्रथम अनुमान था कि कदाचित यह संरचना एक पुराना कुआं है। किन्तु तालाबंद होने के कारण हम यह पता नहीं कर पाए कि यह संरचना क्या है। इसके एक भाग पर ईसाई चैपल अवश्य बनाया गया है।

नवीन सप्तकोटेश्वर मंदिर

हम एक फेरी नौका द्वारा द्वीप के उस पार नारवे गाँव पहुंचे। यह सप्तकोटेश्वर मंदिर की नवीन भूमि है।

हम जैसे ही द्वीप के उस पार पहुंचे, मैंने चटक चमकीले रंगों में रंगे कई मंदिर देखे। उनमें से एक था महामाया मशान देवी मंदिर। मेरे अनुमान से यह उस शवदाह गृह के प्रांगण में है जिसे हमने उस पार से देखा था। शांतादुर्गा पिलेर्णकरीण मंदिर एवं रवलनाथ मंदिर भी थे। इसके पश्चात हम जहां पहुंचे वहाँ से हमें सप्तकोटेश्वर मंदिर का शीर्ष दृष्टिगोचर हो रहा था।

नवीन सप्तकोटेश्वर मंदिर - नदी के उस पार
नवीन सप्तकोटेश्वर मंदिर – नदी के उस पार

यह मंदिर पूर्णतः नवीनीकरण प्रक्रिया के अधीन है। यहाँ के देव की पूजा अर्चना अभी सप्तकोटेश्वर मंदिर परिसर में स्थित भैरव मंदिर के भीतर की जाती है। मैंने भगवान के समक्ष प्रार्थना की, तत्पश्चात मंदिर को सूक्ष्मता से निहारना आरंभ किया। १६६८ ईस्वी में शिवाजी महाराज द्वारा निर्मित इस मंदिर की वास्तुकला ठेठ गोवा शैली में है। मंडप के भीतर मोटे स्तम्भ तथा गर्भगृह की ओर खुलते कई द्वार इस शैली की विशेषताएँ हैं।

सप्तकोटेश्वर मंदिर कुंड
सप्तकोटेश्वर मंदिर कुंड

यद्यपि भगवान की प्रतिमा भैरव मंदिर के भीतर स्थानांतरित की गई है, तथापि मुख्य शिवलिंग अब भी मंदिर के भीतर ही स्थित है। शिवलिंग के समक्ष एक दीप प्रज्ज्वलित किया हुआ था। मंदिर के बाहर स्थित नंदी की प्रतिमा को एक वस्त्र द्वारा ढाँका हुआ था ताकि उसे निर्माण गतिविधी जनित क्षतियों से बचाया जा सके। मंदिर की बाहरी भित्तियों पर कावी कला के विभिन्न आकृतियों को परखा जा रहा था। मैंने अनुमान लगाया कि मंदिर की बाहरी भित्तियों को कावी कलाकृतियों से सजाये जाने की योजना है। कल्पना मात्र से मन प्रफुल्लित हो उठा। गोवा के प्राचीनतम मंदिर को गोवा की मूल कला द्वारा सज्जित करना, इससे उत्तम क्या हो सकता है।

आर्या दुर्गा मंदिर - गोवा
आर्या दुर्गा मंदिर – गोवा

इस मंदिर का जलकुंड अत्यंत मनमोहक है। पूर्णतः चौकोर आकार का यह जलकुंड शांत वातावरण में मंत्रमुग्ध कर देता है। चारों ओर फूलदार वृक्ष तथा मसालों के बाग हैं। मध्य में पत्थर का एक छोटा गोलाकार मंच है। मुझे बताया गया कि उत्सवों के दिनों में इस मंच पर भगवान को बिठाया जाता है।

जैन गुफ़ाएं

भारतीय पुरातात्विक सर्वेक्षण विभाग की सूचना पट्टिका के अनुसार मंदिर के समीप ही जैन गुफाएँ है। हमने इनके विषय में आसपास के लोगों से जानकारी एकत्र की तथा गुफा की ओर चलना आरंभ किया। मार्ग जलकुंडों के समीप से होकर जा रहा था। कुछ जलकुंडों में सुंदर कमल भी खिले हुए थे। हमने कई मसाले के बागों को भी पार किया। इनमें मुख्यतः सुपारी के वृक्ष थे जिनके तनों से लिपटी काली मिर्च की लताएं उसे चार चाँद लगा रही थीं। हमने कई घर देखे जो इन बागों के अंदर थे। वहाँ तक पहुँचने के लिए पक्के रास्ते भी नहीं थे।

जैन गुफ़ा में बाघ की मूर्ति
जैन गुफ़ा में बाघ की मूर्ति

हमने एक घर के समक्ष रुककर गुफा के मार्ग के विषय में अधिक जानकारी प्राप्त करने का प्रयत्न किया। वे लोग इतने निर्मल तथा उत्साही थे कि उनमें से एक सज्जन गुफा का मार्ग दिखाने के लिए हमारे साथ आ गये। एक सँकरे मार्ग से होते हुए हम एक छोटे झरने के समीप पहुंचे जिसके दोनों ओर दो प्राचीन गुफ़ाएं थीं। एक गुफा के ऊपर एक चौकी पर बाघ की आकृति उत्कीर्णित थी। हमें बताया गया कि रात्रिकाल में बाघ अब भी इस क्षेत्र में भ्रमण करते हैं। कभी कभी वे इस झरने का जल पीने भी आते हैं।

हमने दोनों गुफ़ाएं देखीं। भारतीय पुरातात्विक सर्वेक्षण विभाग की सूचना पट्टिका के अनुसार यहाँ कहीं ब्राह्मी अभिलेख भी हैं। किन्तु मैं इन्हे ढूंढ नहीं पायी। दक्षिण गोवा की रिवण गुफाओं अथवा समीप ही स्थित अर्वले गुफाओं से ये अपेक्षाकृत छोटे हैं।

कुछ ही दूरी पर एक और गुफा है। किन्तु वहाँ जाने के लिए कुछ दूर पदयात्रा करनी पड़ती। मैंने इसे किसी और दिन के लिए छोड़ दिया।

बिचोली के अन्य मंदिर

वापिस आते समय हम बिचोली के कुछ अन्य मंदिरों पर भी रुके। वे हैं –

वैताल मंदिर - बिचोलि गोवा
वैताल मंदिर – बिचोलि गोवा

वेताल मंदिर – यह एक सुंदर मंदिर है। इसके भीतर उससे भी सुंदर पंचधातु में निर्मित वेताल की विशाल प्रतिमा है।
वन देवी मंदिर – वेताल मंदिर के एक ओर वन देवी के दो मंदिर हैं। एक को छोटा एवं दूसरे को बड़ा मंदिर कहा जाता है। छोटे मंदिर के भीतर चांदी की एक अत्यंत छोटी व सुंदर प्रतिमा है।

वन देवी मंदिर - गोवा
वन देवी मंदिर – गोवा

यह वास्तव में मंदिर संकुल है जिसके भीतर अनेक मंदिर हैं। एक मंदिर के भीतर मुझे भगवान शिव का निराकार रूप दिखा जो ठीक वैसा ही था जैसा मैंने काणकोण के मलिकार्जुन मंदिर में देखा था।

मैंने सपने में भी कल्पना नहीं की थी कि मनोहारी दीवार द्वीप के सुंदर मंदिरों के दर्शन करते मैं अपना एक सम्पूर्ण दिवस बिता सकती हूँ।

आप भी अपने आगामी गोवा भ्रमण के समय दीवार द्वीप के नयनरम्य वातावरण में विचरण करने पर अवश्य विचार करें।

गोवा के नद-द्वीप दीवार के दर्शन के लिए यात्रा सुझाव

दीवार द्वीप का नैसर्गिक सौंदर्य
दीवार द्वीप का नैसर्गिक सौंदर्य

दीवार द्वीप पर आप फेरी नौका द्वारा ही जा सकते हैं। वहाँ जाने के लिए रिबंदर, पुराना गोवा तथा नेरवा इस तीन स्थानों से फेरी सुविधाएँ उपलब्ध हैं। ये सुविधाएं प्रातः ६ बजे से संध्या ८ बजे तक जारी रहती हैं।

घबराईए नहीं। आप इन फेरी नौकाओं पर अपनी गाड़ियों समेत जा सकते हैं। अतः आपको गाड़ियों की अतिरिक्त सुविधाओं की आवश्यकता नहीं होती।

यदि आप इस द्वीप के उत्तम दर्शन पाना चाहते हैं तथा इसकी सुंदरता का सच्चा अनुभव पाना चाहते हैं तो साइकल चलाते हुए यहाँ के मनोरम वातावरण को निहारने पर विचार करें। इसके संबंध में अधिक जानकारी आप गोवा पर्यटन के वेबस्थल से पा सकते हैं।

अनुवाद: मधुमिता ताम्हणे

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गोवा का भुतहा होता कुर्डी गाँव जो साल में ११ महीने जलमग्न रहता है https://inditales.com/hindi/goa-haunted-curdi-gaon/ https://inditales.com/hindi/goa-haunted-curdi-gaon/#respond Wed, 22 Apr 2020 02:30:11 +0000 https://inditales.com/hindi/?p=1834

कुर्डी गाँव सन १९८३ तक एक जीता जागता गाँव था। तब से यह एक भूतिया गाँव बन के रह गया है। यह गाँव गोवा के सालावली बाँध के जल में वर्ष के लगभग ११ मास जलमग्न रहता है। मानसून से पहले, गोवा में जिसका पदार्पण जून मास में होता है, बाँध का जल स्तर नीचे […]

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कुर्डी गाँव सन १९८३ तक एक जीता जागता गाँव था। तब से यह एक भूतिया गाँव बन के रह गया है। यह गाँव गोवा के सालावली बाँध के जल में वर्ष के लगभग ११ मास जलमग्न रहता है। मानसून से पहले, गोवा में जिसका पदार्पण जून मास में होता है, बाँध का जल स्तर नीचे चला जाता है। उन्ही दिनों यह गाँव कुछ समय के लिए पुनः प्रकट होता है।

गोवा के कुर्डी गाँव का सोमेश्वर मंदिर
गोवा के कुर्डी गाँव का सोमेश्वर मंदिर

गाँव के एक समय अस्तित्व रखते घर, मंदिर, गुफाएं तथा पगडंडियाँ ३५ वर्ष से जलमग्न होने के बाद भी अपना अस्तित्व बनाए रखने का असफल प्रयास कर रही हैं। भय है कि किसी दिन उनका यह प्रयास पूर्णतः निष्फल हो जाएगा।

अतः, कुर्डी गाँव के दर्शन करना, गोवा के इतिहास के उस भाग के दर्शन करने के समान था, जो हम जानते हैं कि हमारी भावी पीढ़ी को कदाचित देखने नहीं मिलेगा। यदि इस सभ्यता के कुछ अंश बच भी जाएँ, तो उनकी अवस्था प्रत्येक बीतते वर्ष के साथ बिगड़ती जायेगी।

कुर्डी गाँव कब देखें?

गोवा के कुर्डी गाँव के दर्शन करने के लिए एक छोटी सी समयावधि प्राप्त होती है। मई मास का उत्तरार्ध इस गाँव के दर्शन करने के लिए सर्वोत्तम समय है। आप मानसून आगमन के पूर्वानुमान की जानकारी ले लें तथा उस के अनुसार जितना विलम्ब संभव हो, उतने विलम्ब से जाएँ। किन्तु ध्यान रहे, गोवा में पूर्व-मानसून के आगमन से भी पूर्व यहाँ की यात्रा नियोजित करें।

गाँव का कितना भाग एवं कितने ऐतिहासिक अंश आप यहाँ देख सकेंगे यह जल स्तर निर्भर करता है। जलस्तर जितना नीचे होगा, उतना ही अधिक अंश आप देख सकेंगे। इसलिए सोमेश्वर मंदिर जैसे ऊंचाई पर स्थित कुछ स्थल को छोड़कर प्रत्येक वर्ष आप यहाँ किंचित भिन्न दृश्य देखेंगे।

कुर्डी गाँव का इतिहास

कुर्डी गाँव के खण्डहर
कुर्डी गाँव के खण्डहर

सालावली बाँध की कल्पना गोवा के प्रथम मुख्य मंत्री द्वारा १९७० के दशक के अंत में की गयी थी। बाँध के जलग्रहण क्षेत्र को निर्मित करने के लिए केवल कुर्डी ही नहीं, गोवा के सांगे तालुका के लगभग १७ गाँवों को स्थानांतरित किया गया था। १९८३-८४ में सब गांव वासियों को समीप के वेलिप एवं वल्किनी गाँवों में स्थानांतरित किया गया था।

कुर्डी गाँव कुशावती नदी के तट पर बसा हुआ था। नदी तट के समीप एक टेकड़ी के ऊपर सोमेश्वर मंदिर स्थित है। एक समय अपने चारों ओर बसे कुर्डी गाँव का स्मरण कराता यह मंदिर आज भी उस टेकड़ी पर गर्व से खड़ा है।

कुर्डी से जुड़े अनोखे तथ्य

कुर्डी गाँव प्रसिद्ध शास्त्रीय गायिका पद्म विभूषण मोगूबाई कुर्डीकर का निवास स्थान था। आपने स्वर सम्राज्ञी स्वर्गीय सुश्री किशोरी अमोणकर जी के विषय में अवश्य सुना होगा। किशोरी जी मोगूबाई कुर्डीकर की सुपुत्री थीं एवं स्वयं एक पारंगत शास्त्रीय गायिका थीं। हो सकता है, मोगूबाई ने अपना बालपन यहाँ बिताया होगा हलाँकि उन्होंने शास्त्रीय संगीत में पांडित्य एवं व्यवसाय मुंबई में ही प्राप्त किया।

उनका जलमग्न निवास कुर्डी का सर्वाधिक आकर्षण का स्थल है। तीव्र ग्रीष्म ऋतू में जैसे ही जलस्तर नीचे जाता है, पर्यटक यहाँ आकर इसे ढूँढने का प्रयास करते हैं। हमारे कुर्डी दर्शन का एक कारण यह भी था। इस गाँव के अन्य गणमान्य व्यक्ति हैं, गणेश वेलिप एवं श्रीराम कुर्डीकर।

कुर्डी गाँव के मंदिर

भारत का ग्रामीण जनजीवन मंदिरों के चारों ओर ही केन्द्रित रहता है। मंदिर केवल धार्मिक श्रद्धा का केंद्र ही नहीं था, अपितु सर्व सामाजिक कार्यकलापों का भी केंद्रबिंदु होते हैं।

श्री सोमेश्वर मंदिर

श्री सोमेश्वर प्रसन्न मंदिर - कुर्डी गोवा
श्री सोमेश्वर प्रसन्न मंदिर – कुर्डी गोवा

यह गाँव का प्रमुख मंदिर रहा होगा। इसके दो तलों का गर्भगृह अब भी गर्व से खड़ा है। इसके भीतर सोमेश्वर नाम का शिवलिंग स्थापित है। मैंने इस मंदिर के विषय में जो कुछ पढ़ा है, उसके अनुसार गांववासी इस लिंग को स्वयंभू लिंग मानते हैं। इसीलिए इस मंदिर को स्थानांतरित नहीं किया गया।

सोमेश्वर मंदिर की भित्ति पर इस मंदिर की मूल छवि छायाचित्र के रूप में लगाई हुई है। इस चित्र के अनुसार मूल मंदिर वर्तमान स्थिति से कहीं अधिक विशाल था। मंदिर के भीतर पत्थर की पटिया है जिस पर १२ चिन्ह खुदे हुए हैं। कदाचित ये चिन्ह १२ मास अथवा १२ राशिचिन्ह के प्रतीक हैं। चूंकि मंदिर बंद था, मैं इन चिन्हों को देख नहीं पायी।

सोमेश्वर महादेव मंदिर का दीपस्तंभ
सोमेश्वर महादेव मंदिर का दीपस्तंभ

मंदिर के दीपस्तंभ पर जलमग्न होने के चिन्ह स्पष्ट दृष्टिगोचर हो रहे थे किन्तु यह अब भी गर्व से खड़ा, सोमेश्वर मंदिर एवं कुर्डी के स्वर्णिम दिवसों का साक्षी बन कर।

मंदिर के समक्ष कंक्रीट की संरचना है जिसे ‘शेज़ो’ कहा जाता है। इनमें वृत्ताकार तोरण युक्त दो द्वार हैं जिनमें एक मंदिर की ओर तथा दूसरा उस पार स्थित नदी की ओर मुख किये हुए है। यह कदाचित कलाकारों का साजसज्जा कक्ष था। मंदिर एवं नदी के मध्य एक प्रदर्शन मंच था जिस पर कलाकार अपनी कला का प्रदर्शन करते थे। इसका प्रयोग मंदिर एवं कलाकारों के लिए संगीत कक्ष एवं गोदाम के रूप में भी किया जाता था।

२०१६ के पश्चात से, कुर्डी गाँव के मूल निवासी यहाँ वार्षिक कुर्डी उत्सव का आयोजन करते हैं जिसमें वे यहाँ एकत्र होकर पूजा अर्चना करते हैं। मैं इस कुर्डी उत्सव के तुरंत पश्चात यहाँ आयी थी। उत्सव एवं पूजा अर्चना के चिन्ह चारों ओर स्पष्ट दिखाई पड़ रहे थे।

कुर्डी महादेव मंदिर

स्थानान्तरण से पूर्व यह महादेव मंदिर कुर्डी में स्थित था। बाँध निर्माण से पूर्व इस मंदिर को सालावली बाँध के समीप एक सुरक्षित स्थान पर स्थानांतरित किया गया है। १२वी. शताब्दी में निर्मित इस मंदिर को सावधानी पूर्वक, एक एक पत्थर पृथक कर उसी क्रम में नवीन स्थान पर पुनर्निर्मित किया गया है। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग ने इस कार्य को इतनी कुशलता से पूर्ण किया है कि उन्हें अपनी सफलता पर गर्व अनुभव होना उचित है। वे अवश्य सराहना के पात्र हैं। किसी संरचना को इस प्रकार स्थानांतरित किया गया हो, ऐसी इमारतें अधिक नहीं होंगी।

यह मंदिर अब सालावली बाँध के समीप स्थित है। इसकी शिलाओं पर भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग द्वारा स्थानान्तरण किये जाने के चिन्ह शिला-क्रमांक के रूप में अंकित हैं। इन्हें देख आप अनुमान लगा सकते हैं कि इसे किस प्रकार क्रमवार स्थानांतरित किया गया होगा।

देवी माँ की छवि

लेटराइट की एक चट्टान पर देवी माँ की विशाल छवि उकेरी गयी थी। स्थानान्तरण के समय इस चट्टान को कुशलता पूर्वक धरती के निकाल कर दक्षिण गोवा के वेरणा गाँव ले जाया गया। वेरणा के मूल महालसा नारायणी मंदिर के समीप रखी इस चट्टान को आप अपनी आगामी भेंट के समय अवश्य देखें।

गुफाएं

रिवोणा गुफाओं के समान कुर्डी गाँव में भी चट्टानों में कटी कुछ गुफाएं हैं। इन्हें खोजना अब आसान नहीं है। हाँ इतना कह सकती हूँ कि बाँध परियोजना के परितंत्र में ये कहीं छुपी हुई हैं।

कुर्डी दर्शन

पिछले कुछ वर्षों से प्रत्येक मई मास में कुर्डी गाँव के दर्शन करने की अभिलाषा हृदय में थी। यह छोटी सी समयावधि किसी न किसी कारणवश तुरंत गुजर जाती थी एवं मुझे इसके दर्शन का अवसर ही नहीं मिल पाता था। इस वर्ष मुझे वह स्वर्णिम अवसर मिल ही गया जब एक दिन हमने प्रातः गाड़ी निकाली एवं कुर्डी गाँव के आकर्षणों को खोजने निकल पड़े।
मार्ग में हमने रिवोणा की गुफाएं ढूँढी। इन्हें ढूंढने में अत्यंत रोमांचित भी अनुभव किया। इनके साथ ही आप कुशावती नदी के तल पर स्थित पन्सैमोल शैलचित्र भी देख सकते हैं। इन्हें देखने के लिए भी मई का मास सर्वोत्तम है। समीप ही गोवा का बुलबुलों वाला बुड़बुड़े ताल एवं कोटिगाव वन्यजीव अभ्यारण्य है। आप चाहें तो, इसी यात्रा में इनके भी दर्शन कर सकते हैं।

कुर्डी के आस पास जलमग्न स्थान
कुर्डी के आस पास जलमग्न स्थान

जैसे जैसे हम कुर्डी गाँव के समीप पहुँच रहे थे, मार्ग संकरा होता जा रहा था तथा जंगल घना होता जा रहा था। मार्ग का अनुसरण करते हुए हम एक ऐसे गाँव में पहुंचे जहां कुर्डी के निवासियों को स्थानांतरित किया गया है। इस गाँव की सर्वाधिक विशाल संरचना उजले पीले रंग में रंगा एक अपेक्षाकृत नवीन किन्तु छोटा मंदिर है।

छोटे छोटे शिवलिंग
छोटे छोटे शिवलिंग

इस मंदिर के चारों ओर हमें धरती पर कई शिवलिंग दिखाई दिए। इन शिवलिंगों के तीन ओर छोटी भित्तियाँ निर्मित थीं। हम समझ नहीं पाए कि क्या यह योनी का मौलिक रूप है? हमने वहां के निवासियों से जानकारी प्राप्त करने का प्रयास किया किन्तु वे अधिक जानकारी नहीं दे पाए। उन्होंने केवल यही कहा कि इन्हें पूर्वजों ने स्थापित किया है।

सालावली का जलग्रहण क्षेत्र

सलावली का जलग्रहण क्षेत्र
सलावली का जलग्रहण क्षेत्र

कुर्डी गाँव पहुँचने हेतु दिशा निर्देश प्राप्त कर हमने गाड़ी एक कच्चे मार्ग पर उतार ली। संकरा कच्चा मार्ग अचानक हमें एक विशाल खुले क्षेत्र में ले आया। हमारे समक्ष कुछ दूरी पर हमें जल स्त्रोत दिखाई पड़ रहा था। जल स्त्रोत के उस पार कुछ दूरी पर सूखे दलदली क्षेत्र में हमें कुछ खँडहर दृष्टिगोचर हो रहे थे। खँडहर दूर थे। यहाँ से कुछ समझ नहीं आ रहा था कि वे क्या हैं।

हम कुछ और आगे बढ़ें। जल स्त्रोत के समीप से आगे जाकर हम खँडहरों की प्रथम खेप के समीप पहुंचे। अधिकांशतः सूखी धरातल अब भी कई स्थानों पर नम थी। हम असमंजस में थे कि इन पर पैर रखें कि नहीं। कहीं पैर दलदल में धंस तो नहीं जायेंगे? कुछ दुर्घटना होने की स्थिति में समीप कोई सहायतार्थ भी उपलब्ध नहीं था।

जलमग्न कुर्डी गाँव के खँडहर

जलमग्न रहने के बाद भी तन कर खड़े हैं यह तने
जलमग्न रहने के बाद भी तन कर खड़े हैं यह तने

दलदल में धँसे पत्थरों को सुरक्षित जानकार हम उन पर पाँव रखकर खंडहरों की ओर बढ़े। मैंने स्वयं को कुछ टूटी भित्तियों से घिरा पाया। कदाचित ये किसी के निवासस्थान के अवशेष थे। एक ओर तुलसी वृन्दावन था जिसे देख हमने निवास के अग्रभाग का अनुमान लगाया। मुझे दलदली धरती पर एक अस्पष्ट रेखा दिखाई दी। यह कदाचित सड़क थी जिसके दोनों ओर घर थे।

दलदली धरती पर, जलस्त्रोत के चारों ओर तथा इसके भीतर स्थित एक छोटे मिट्टी के टापू पर नारियल के पेड़ों के अनेक ठूंठ थे। पिछले ३५ वर्षों से निरंतर जलमग्न रहते हुए भी ये अब तक वहां खड़े अपना अस्तित्व बनाए रखे हुए हैं। प्रत्येक वर्ष कुछ समय के लिए जल से बाहर आकर सूर्य की किरणों का आनंद उठाते हैं। जल ने इन ठूंठों पर आकृतियाँ बनायी हुई हैं। समय ना गंवाते हुए कुछ मकड़ियों ने उन पर अपने जाले भी बना लिए थे। सब कुछ अत्यंत भूतिया प्रतीत हो रहा था। यदि मैं यहाँ संध्या के पश्चात आयी होती तो मैं निःसंदेह ही इन्हें आपस में वार्तालाप करते भूतप्रेत मान लेती।

गाँव पहुँचने के पश्चात पहली बार मुझे एक अलौकिक अनुभूति हुई। भानगढ दुर्ग जैसे प्रेतबाधित स्थलों में प्राप्त अनुभूति से ये भिन्न अनुभव था।

खरीज़

खरीज़
खरीज़

संकरे मार्ग से हम आगे बढे। समक्ष हमारे मार्ग में धरती पर आड़ी खरीज निर्मित थी। धरती की चट्टानों को काटकर खाई बनायी हुई थी। इन्हें ‘खरीज़’ कहा जाता है। यह खरीज़ मानव निर्मित था या प्राकृतिक रूप से जल द्वारा कटकर बना था, यह नहीं जान पायी। देखने पर तो यह मानवनिर्मित प्रतीत हो रहा था जो कदाचित कुछ निचले स्थानों को जोड़ने हेतु बनाया गया था। खाई के उस पार, पत्थर की सूली निर्मित थी जिसके चारों ओर छोटी शिलाएं रख कर उसे सीमाबंद किया गया था। खाई के ऊपर निर्मित एक छोटे से पुलिये से हम आगे बढ़े।

कुर्डी महोत्सव की चिन्ह
कुर्डी महोत्सव की चिन्ह

भिन्न भिन्न आकार के जलस्त्रोतों के समीप से जाते हुए अंततः हमें एक ऊंची संरचना दिखाई पड़ी। इसे देखते ही मैंने जान लिया कि यह श्रीस्थल का सोमेश्वर महादेव मंदिर है। इस पर नवीन रंगरोगन किया गया था। चारों ओर पताकाएं फड़फड़ा रही थी।

सोमेश्वर महादेव - एक स्वयंभू लिंग
सोमेश्वर महादेव – एक स्वयंभू लिंग

मंदिर बंद था। द्वार के सलाखों से हम लिंग के दर्शन कर पा रहे थे। मैंने मन ही मन प्रार्थना की। तत्पश्चात मंदिर के चारों ओर अवलोकन आरम्भ किया। मुख्य मंदिर के आसपास किसी अन्य मंदिर के अस्तित्व को खोजने लगी। मुझे योनी सहित कुछ शिवलिंग दिखाई दिए। इसी शिला द्वारा निर्मित कुछ भंगित प्रतिमाएं भी थीं। उनमें से कुछ पर हल्दी-कुमकुम अर्पित किये हुए थे। मुझे बताया गया था कि एक समय यहाँ एक वेताल मंदिर भी था। बहुत खोजा किन्तु मुझे उसके अस्तित्व के कोई चिन्ह दृष्टिगोचर नहीं हुए।

सोमेश्वर मंदिर के एक पुराना चित्र
सोमेश्वर मंदिर के एक पुराना चित्र

मैं कल्पना करने लगी, प्रत्येक महाशिवरात्रि, चैत्र पूर्णिमा तथा दशहरा के उत्सव में यह कैसा प्रतीत होगा।

प्राचीन शिवलिंग
प्राचीन शिवलिंग

टेकड़ी पर स्थित इस मंदिर से मैंने जब चारों ओर दृष्टी दौड़ाई, वहां के परिदृश्यों ने मुझे मोह लिया। नुकीली पहाड़ियों की श्रंखला एवं शांत जल पर पड़ते उनके प्रतिबिम्ब मुझे हतप्रभ कर रहे थे। मुझे ऐसा प्रतीत हो रहा था मानो मैं एक प्याले के मध्य में खड़ी हूँ जिसकी भित्तियाँ नुकीली पहाड़ियों से बनी हैं तथा मेरे चारों ओर जल के कई पोखर हैं।

कुशावती नदी का सामीप्य

लगभग ढहते हुए ‘शेज़ो’ को पार कर मैं कुशावती नदी की ओर जाते मार्ग पर चल पड़ी। इसे ‘पाज़’ कहते हैं। यहाँ इस जलमग्न गाँव के सर्वाधिक सघन खँडहर हैं।

शेज़ो
शेज़ो

दाहिनी ओर एक निवासस्थान से सटा एक कुआं था। कुआँ अखंडित एवं सुव्यवस्थित था। समीप ही एक सुन्दर तुलसी वृन्दावन था जो इस घर में रहते परिवार के सर्वाधिक शक्तिशाली सदस्य होने का प्रमाण देता प्रतीत हो रहा था। उस पर तुलसी का पौधा नहीं था। किन्तु मुझे ऐसा प्रतीत हुआ जैसे किसी समय इसके भीतर लगी तुलसी से ही इसने अपनी शक्ति अर्जित की होगी।

खुशावती नदी का तट
खुशावती नदी का तट

कुछ दूरी पर एक मंच था। कदाचित अपने समृद्ध काल में इस मंच पर कलाकारों ने अपनी कला का प्रदर्शन किया होगा। यहाँ मेरी दृष्टी टेराकोटा में उत्कीर्णित एक टुकड़े पर पड़ी। यह किसी उत्कीर्णित भित्ति का भाग होगा। यहाँ-वहां बिखरे द्वार के चौखट एवं लकड़ी के कोष्टकों के टुकड़े क्षय के विभिन्न चरणों में थे।

मोगूबाई कुर्डीकर के निवासस्थान का अधिकांश भाग अब भी जलमग्न था। उसका कुछ भाग ही हमें जल के बाहर दिखाई दिया। जल स्तर अत्यंत नीचे होने की स्थिति में ही हम उनका सम्पूर्ण घर देख सकते हैं। उनके निवासस्थान से जब मैंने अपनी दृष्टी सोमेश्वर मंदिर की ओर डाली, मंदिर अत्यंत ऊंचा प्रतीत हुआ। इतनी ऊंचाई पर स्थित मंदिर भी वर्षा के जल में जलमग्न हो जाता है, यह कल्पना से परे है।

एक चौकोर मंच, जिस पर पालकी के समय बाहर निकाली गयी उत्सव मूर्ति रखी जाती थी, अब भी आप देख सकते हैं। एक मांड भी है जहां कदाचित विभिन्न उत्सव आयोजित किये गए होंगे।

मंदिर के समीप

मंदिर के दूसरी ओर एक छोटा चौकोर मंच था जिस पर पूजा अर्पण किये जाने के चिन्ह स्पष्ट विदित थे। यहाँ से लगभग १०० मीटर की दूरी पर ऊंची खड़ी शिलाएं धरती पर गड़ी हुई थीं। जहां अन्य शिलाएं साधारण थे, वहीं एक शिलाखंड पर कुछ उत्कीर्णित था। उन्हें गोलाकार में धरती पर खड़ा किया गया था। उनकी पृष्ठभागीय कथा यदि है, तो मुझे ज्ञात नहीं।

मंदिर के आप पास खुदाई किये हुए पत्थर
मंदिर के आप पास खुदाई किये हुए पत्थर

कुछ दूर पत्थरों के एक ढेर पर एक झंडा फड़फड़ा रहा था। इस ढेर के चारों ओर भी शिलाखंडों को रखकर सीमा बनायी गयी थी।

यहाँ एक घंटे से कुछ अधिक समय बिताकर हम यहाँ से वापिस आ गए।

कुर्डी में एक अद्भुत प्रकार की सुन्दरता एवं आकर्षण है। यह आपको आनंदित करने के साथ साथ दुखी भी करता है। यह मुझे जैसलमेर के निकर स्थित कुल्धारा गाँव का स्मरण कराता है।

कुछ तो शक्ति है इस तुलसी वृन्दावन में
कुछ तो शक्ति है इस तुलसी वृन्दावन में

इन खंडहरों को देख अत्यंत दुःख होता है। किन्तु यहाँ का परिदृश्य अत्यंत ही मनमोहक है। यह परिदृश्य एवं ये अद्भुत खँडहर वर्ष में केवल कुछ ही दिन दृष्टिगोचर होते हैं, यह तथ्य इन्हें और भी मूल्यवान बना देता है।

कुर्डी गाँव के निवासियों को विस्थापित करने के पश्चात सालावली बाँध बनाया गया था जिसके जल की आपूर्ति सम्पूर्ण दक्षिण गोवा में की जाती है। दक्षिण गोवा के निवासी निश्चित रूप से कुर्डी निवासियों के आभारी होंगे जिनके कारण आज उन्हें भरपूर पेयजल की प्राप्ति होती है।

जलमग्न कुर्डी गाँव का एक विडियो

पुनः प्रकट हुए इस जलमग्न कुर्डी गाँव की मेरी यात्रा का एक विडियो आपके समक्ष प्रस्तुत है।

यात्रा सुझाव

• कुर्डी गाँव मडगांव से दक्षिण-पूर्वी दिशा में लगभग ३०कि.मी. की दूरी पर स्थित है। यात्रा का अंतिम भाग किंचित भ्रामक है। आप जब भी यहाँ आयें, प्रयत्न कर समूह में आना उचित होगा।
• अपने साथ पर्याप्त पेयजल रखें। मई मास अत्यंत ऊष्ण होता है। सूर्य की तपती किरणों से बचने के लिए कोई आश्रय भी नहीं है।
• यहाँ किसी भी प्रकार का खाद्य पदार्थ उपलब्ध नहीं है। अतः अपने साथ इच्छानुसार खाद्यपदार्थ रखें। किन्तु इस संवेदनशील स्थल की मर्यादा का ध्यान रखते हुए इस स्थान को गन्दा न करें।
• आरामदायक जूते पहनें ताकि आप इन खंडहरों में आसानी से ऊपर-नीचे जा सकते हैं।
• नम प्रतीत होने पर धरती को जांच कर ही उस पर पैर रखें। धरती दलदली भी हो सकती है।
• ध्यान रखें, यह एक वनीय प्रदेश है। यहाँ आपको कई प्रकार के जीव-जंतु दिखाई पड़ सकते हैं।
• इस स्थान के अवलोकन के लिए केवल दिन के समय ही आयें। रात्रि से पूर्व वापिस आ जाएँ।
• यहाँ की कुछ भी वस्तु वापिस लाने का प्रयत्न ना करें। विशेषतः वनीय क्षेत्र की वस्तुएं।

अनुवाद: मधुमिता ताम्हणे

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