दिल्ली Archives - Inditales https://inditales.com/hindi/category/भारत/दिल्ली/ श्रेष्ठ यात्रा ब्लॉग Mon, 12 Jun 2023 04:46:51 +0000 en-US hourly 1 https://wordpress.org/?v=6.7.2 भारतीय संसद भवन नई दिल्ली में अभ्यागमन के अनुभव https://inditales.com/hindi/sansad-bhavan-dilli-ka-bhraman/ https://inditales.com/hindi/sansad-bhavan-dilli-ka-bhraman/#respond Wed, 15 Mar 2023 02:30:10 +0000 https://inditales.com/hindi/?p=2998

जब भी भारतीय संसद में संसदीय सत्र चल रहा हो अथवा प्रश्नोत्तर काल हो या बजट सत्र चल रहा हो तो हम में से अधिकाँश देशवासियों की दृष्टि, संसद भवन की कार्यवाही देखने के लिए दूरदर्शन अथवा अन्य माध्यमों पर केन्द्रित होती हैं। ध्यान संसदीय गतिविधियों एवं हमारे जीवन पर उनके परिणामों के प्रभावों पर […]

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जब भी भारतीय संसद में संसदीय सत्र चल रहा हो अथवा प्रश्नोत्तर काल हो या बजट सत्र चल रहा हो तो हम में से अधिकाँश देशवासियों की दृष्टि, संसद भवन की कार्यवाही देखने के लिए दूरदर्शन अथवा अन्य माध्यमों पर केन्द्रित होती हैं। ध्यान संसदीय गतिविधियों एवं हमारे जीवन पर उनके परिणामों के प्रभावों पर केन्द्रित होता है। कुछ नवीन अध्यादेश जारी किये जाते हैं, कुछ में परिवर्तन किये जाते हैं, बजट सत्र में कर दरों में परिवर्तन किये जाते हैं, वस्तुओं एवं उत्पादनों पर कर लगाए अथवा हटाये जाते हैं, जिससे वस्तुओं के मूल्य में वृद्धि अथवा कमी होती है।

संसद भवन नई दिल्ली
संसद भवन नई दिल्ली

इन सब का हमारे जीवन पर कम या अधिक प्रमाण में प्रभाव पड़ता है। कुछ वस्तुओं के क्रय त्वरित किये जाते हैं तो कुछ के क्रय को हम कुछ समय के लिए टाल देते हैं। इन सब के विषय में जानने के लिए हमारी दृष्टि संचार माध्यमों पर गढ़ी रहती हैं जहाँ संसद भवन के भीतर नेताओं को विभिन्न विषयों पर चर्चा करते दिखाया जाता है।

भारतीय संसद भवन का भ्रमण

संचार माध्यम पर संसद भवन के चित्र देखते ही मुझे मेरे राज्य सभा दर्शन का स्मरण हो आया। मेरे ध्यान में आया कि मैंने उसके विषय में अपने संस्मरण लिखे ही नहीं हैं। यद्यपि संसद भवन, लोक सभा अथवा राज्य सभा कोई पर्यटन गंतव्य नहीं है, किन्तु मुझे यह कहने में गर्व अनुभव हो रहा है कि इनके दर्शन किसी भी पर्यटन गंतव्य के भ्रमण या दर्शन की तुलना में कम भी नहीं है।

कदाचित आपको यह ज्ञात ना हो, आप संसद भवन के दर्शन करने जा सकते हैं। दर्शक दीर्घा में बैठकर संसद की कार्यवाही देख सकते हैं। १० वर्ष की आयु से नीचे के दर्शकों को संसद भवन के भीतर जाने की अनुमति नहीं है, उससे अधिक आयु के दर्शक संसद में जा सकते हैं।

संसद भवन की यात्रा
संसद भवन की यात्रा

संसद भवन परिसर में राज्य सभा दर्शन का प्रवेश पत्र प्राप्त करने के लिए आवश्यक व्यवहार का विस्तृत विवरण, राज्य सभा के वेबस्थल पर उपलब्ध है। लोक सभा दर्शन के प्रवेश पत्र के लिए, इसी प्रकार के आवश्यक व्यवहार का विवरण प्राप्त करने में मुझे गूगल देवता ने कोई सहायता नहीं की। मेरे अनुमान से उसकी प्रक्रिया भिन्न नहीं होगी।

एक आवश्यकता यह है कि संसद का कोई सदस्य अथवा राज्य सभा का कोई अधिकारी आपका परिचित होना चाहिए। वे आपके लिए आगंतुक प्रवेश पत्र प्राप्त करने के लिए आपकी ओर से निवेदन प्रस्तुत करेंगे जिसके द्वारा आपको संसद में प्रवेश मिलेगा।

दर्शक दीर्घाएं

राज्य सभा के भवन के प्रथम तल पर अनेक दीर्घाएं हैं जो सभासदों के कक्ष के ऊपर स्थित है। वहाँ से सभा के क्रियाकलापों का अवलोकन किया जा सकता है। आम जनता के लिए नियत दर्शक दीर्घा के अतिरिक्त पाँच अन्य दीर्घाएं हैं। पत्रकारों एवं संवाददाताओं के लिए पत्रकार दीर्घा है।  विधायकों, संसद सदस्यों के पतियों अथवा पत्नियों तथा अन्य सार्वजनिक गणमान्य व्यक्तियों के लिए विशिष्ट आगंतुक दीर्घा है।

राज्यसभा की कार्यवाही को देखने के लिए आये लोकसभा के सदस्यों के लिए लोकसभा सदस्य दीर्घा है। एक विशेष दीर्घा राज्यों के राज्यपालों, राष्ट्रपति के अतिथियों, अन्य आमंत्रित राज्य प्रमुखों के लिए निहित की गयी है। एक अधिकारी दीर्घा है जो उन सरकारी अधिकारियों के लिए है जिन्हें सभा की आवश्यक चर्चाओं में भाग लेने ले लिए बुलाया जाता है।

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एक आम नागरिक होने के नाते हमारे लिए आम दर्शक दीर्घा में बैठने की सुविधा होती है। इस दीर्घा में १६० दर्शकों के बैठने की व्यवस्था है। इस दीर्घा में बैठने के लिए प्रवेश पत्र दिया जाता है जो केवल एक घंटे की अवधि के लिए होता है। प्रवेश पत्र में समयावधि इंगित रहती है।

राज्यसभा दर्शन का अनुभव

यूँ तो आप राज्य सभा की सम्पूर्ण जीवंत कार्यवाही को दूरदर्शन पर उत्तम रीति से देख सकते हैं। देख सकते हैं कि किस प्रकार हमारे चयनित सांसद सभी समस्याओं के निवारण का प्रयास करते हैं, नवीन प्रकल्पों के लिए प्रयत्नरत रहते हैं, आदि। किन्तु वहाँ व्यक्तिगत रूप से उपस्थित होकर, उन्ही के साथ एक ही भवन में बैठकर यह सब देखना स्वयं में एक रोमांचक अनुभव होता है।

संसद भवन नई दिल्ली
संसद भवन नई दिल्ली

सदस्यों द्वारा पालन किया जाने वाला औपचारिक शिष्टाचार देखना मेरे लिए अत्यंत अनूठा था। वे सभी सभा के अध्यक्ष को संबोधित करते हुए अपने विचार रखते हैं। राज्यसभा में सभाध्यक्ष भारत के उप-राष्ट्रपति होते हैं। वे आपस में चर्चा करते हुए भी सभाध्यक्ष को संबोधित करते हुए, उनके माध्यम से ही चर्चा करते हैं। उन्हें देख मुझे शाला की कक्षा का स्मरण हो आया जहाँ एक समान बेंचों में विराजमान विद्यार्थियों को आपस में वार्तालाप करने की अनुमति नहीं होती है। वे केवल अपने शिक्षक/शिक्षिका के माध्यम से ही आपस में चर्चा कर सकते हैं।

अनुवाद

सभा की एक अन्य अनूठी विशेषता है कान में सुनने के यंत्र, हैडफोन। सभा की कार्यवाही जिस भाषा में हो रही है, उस भाषा के अतिरिक्त किसी भाषा में चर्चा को सुनने के लिए आप इनका प्रयोग कर सकते हैं। आप अपने अनुसार भाषा का चयन कर सकते हैं। सभा में ही कहीं विशेष अनुवादक बैठे होते हैं जो सभा की कार्यवाही का जीवंत अनुवाद करते हैं जिसे हम इन यत्रों के द्वारा कान में सीधे सुन सकते हैं।

वे अनुवाद में इतने दक्ष होते हैं कि आप को यह आभास भी नहीं होगा कि सदस्य किसी अन्य भाषा में संवाद कर रहे हैं। कई बार सदस्य अपने स्थानीय भाषा में संवाद करते हैं जो सभा के अधिकाँश सदस्यों के लिए समझना संभव नहीं होता है। आपको जिस भाषा में सुनना है, आप उसके अनुसार संख्या क्रमांक का चयन कर सुन सकते हैं।

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मुझे इस भव्य इमारत के चारों ओर स्थित, स्तंभों से अलंकृत, गलियारों में भ्रमण करना भी अत्यंत भाया। संसद भवन को चित्रों में हमने अनेक अवसरों पर देखा है। किन्तु उसमें प्रत्यक्ष भ्रमण करना अत्यंत रोमांचकारी था। यह एक भव्य व विशाल संरचना है जिसके चारों ओर चौड़ा गलियारा है। उद्यान में महात्मा गांधी की विशाल प्रतिमा है। उनकी प्रतिमा को देख एक विचार मन में कौंधा, आज वे जीवित होते तो वे इस पाषाणी प्रतिमा में नहीं, अपितु संसद भवन के भीतर होते।

संसद भवन के आगंतुकों/दर्शकों के लिए शिष्टाचार

दर्शक दीर्घा तक पहुँचने तक आपको जो सुरक्षा जांच की प्रक्रियाओं से जाना पड़ेगा, उनके विषय में आपको बताना चाहती हूँ। आपको अपने साथ कुछ भी ले जाने की अनुमति नहीं है। मोबाइल फोन नहीं, कैमरा नहीं, पेन व कागज नहीं। कदाचित एक छोटा बटुआ जिसमें केवल कुछ पैसे हों, आप ले जा सकते हैं।

आपकी वस्तुओं को सुरक्षित रखने के लिए संग्रह खिड़कियाँ हैं जहाँ आप अपने व्यक्तिगत सामान को रख सकते हैं। किन्तु आप अपनी वस्तुओं को गाड़ी में अथवा घर पर ही छोड़ दें तो उत्तम होगा।

राज्य सभा में अनुराधा गोयल
राज्य सभा में अनुराधा गोयल

अनेक स्थानों पर, प्रत्येक तल पर सुरक्षा कर्मचारियों द्वारा आपकी सुरक्षा जाँच होगी। भवन के भीतर भी बैठने के शिष्टाचार होते हैं। आपको सावधान मुद्रा में ही बैठना आवश्यक है। आप विश्राम मुद्रा में, पीठ झुकाकर, एक पर एक पैर डालकर आदि नहीं बैठ सकते। इसके अतिरिक्त, अधिक हिलने-डुलने की भी अनुमति नहीं होती है।

यदि आप अनभिज्ञता से भी इनमें से कोई भी प्रतिबंधित व्यवहार करते हैं तो आपको तुरंत सूचित किया जाएगा। आपसे सम्पूर्ण शान्ति की अपेक्षा की जाती है। इसका अर्थ है, आप स्वयं पूर्णतः शान्ति बनाते हुए नीचे निर्वाचित सदस्यों द्वारा मचाये शोरगुल को सुनें, यह अपेक्षा की जाती है।

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मैं जब राज्य सभा की कार्यवाही के दर्शन करने यहाँ आयी थी, तब वहाँ प्रश्नोत्तर काल चल रहा था। कुछ प्रश्नों के उपरांत विपक्षी दल के सदस्य सभा का बहिष्कार करते हुए बाहर चले गए थे। मुझे अनेक राजनैतिक नेताओं को देखने का अवसर मिला। वहाँ कुछ व्यापारी गण एवं चित्रपट के सितारे भी उपस्थित थे। दर्शन के उपरांत हमें राज्य सभा की एक स्मरिका भी भेंट स्वरूप दी गयी।

राज्यसभा का दर्शन एक अनोखा अनुभव था। विद्यालय में सामाजिक विज्ञान की कक्षाओं एवं पुस्तकों से राज्यसभा के विषय में जो ज्ञान प्राप्त हुआ था, उसे प्रत्यक्ष देखना व अनुभव करना अत्यंत रोमांचकारी था।

आप यहाँ पर संसद संग्रहालय एवं संसद पुस्तकालय भी देख सकते हैं।

संसद टीवी पर मेरा साक्षात्कार

गत वर्ष मुझे संसद टीवी के कार्यक्रम इतिहास में भाग लेने का सुअवसर प्राप्त हुआ। मुझे भारत के मंदिरों पर बात करने के लिए आमंत्रित किया गया था। इस बार मुझे संसद भवन का स्टूडियो देखने को मिला। आप मेरा साक्षात्कार यहाँ देख सकते हैं।

 

अनुवाद: मधुमिता ताम्हणे

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आधुनिक दिल्ली के प्राचीन मंदिर जो आज भी जीवंत हैं https://inditales.com/hindi/dilli-ke-prachin-mandir/ https://inditales.com/hindi/dilli-ke-prachin-mandir/#respond Wed, 25 May 2022 02:30:46 +0000 https://inditales.com/hindi/?p=2691

दिल्ली! विश्व के प्राचीनतम जीवंत नगरों में से एक! महाभारत के पांडवों की राजधानी इन्द्रप्रस्थ के रूप में इसकी स्थापना की गयी थी। इसने अपने जीवनकाल में अनेक सम्राटों व उनके साम्राज्यों को देखा है। अनेक युगों को जिया है। वे सभी युग इस महानगरी में किसी ना किसी रूप में अब भी जीवित हैं। […]

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दिल्ली! विश्व के प्राचीनतम जीवंत नगरों में से एक! महाभारत के पांडवों की राजधानी इन्द्रप्रस्थ के रूप में इसकी स्थापना की गयी थी। इसने अपने जीवनकाल में अनेक सम्राटों व उनके साम्राज्यों को देखा है। अनेक युगों को जिया है। वे सभी युग इस महानगरी में किसी ना किसी रूप में अब भी जीवित हैं। आज इस महानगरी का रूप परिवर्तित हो गया है। लाल बलुआ शिलाओं द्वारा निर्मित अनेक विशालकाय संरचनाएं अब इसकी पहचान बन चुकी हैं।

दिल्ली के प्राचीन मंदिर

दिल्ली में प्राचीनकाल से अनेक मंदिर निर्मित किये जाते रहे हैं। उनमें से अनेक प्राचीन मंदिर अब भी उपस्थित हैं एवं जीवंत हैं किन्तु वे इस विशालकाय आधुनिक नगर की पृष्ठभूमि में चले गये हैं। आईये मेरे साथ, हम सब मिलकर दिल्ली के कुछ प्राचीन जीवंत मंदिरों की धरोहरों को पुनः उजागर करें।

दिल्ली के देवी मंदिर

एक काल में दिल्ली का नाम योगिनीपुर था। जहाँ तक मुझे जानकारी है, यहाँ अनेक योगिनी मंदिर थे जिन्हें कदाचित यन्त्र की रूपरेखा में स्थापित किया गया था। क्या यह संभव है कि २७ हिन्दू एवं जैन मंदिरों को ध्वस्त कर निर्मित किया गया कुतुब संकुल वास्तव में योगिनी मंदिरों का केंद्र था? कदाचित! आईये मैं आपको दिल्ली के कुछ प्राचीनतम देवी मंदिरों के विषय में बताऊँ, जो अब भी जीवंत हैं:

महरौली का योगमाया मंदिर

देवी योगमाया मंदिर - दिल्ली
देवी योगमाया मंदिर – दिल्ली

इस क्षेत्र में यह इकलौता मंदिर है जो असंख्य यातनाएं सहन करने के पश्चात भी जीवित बच गया है। यह कुतुब मीनार के पृष्ठभाग में स्थित है। यह एक लघु मंदिर हैं जिसमें देवी को पिंडी के रूप में पूजा जाता है। ऐसा माना जाता है कि देवी यहाँ कन्या रूप में विराजमान हैं। यह वही कन्या है जिसने गोकुल में यशोदा माता की संतान के रूप में जन्म लिया था। एक आकाशवाणी के उपरांत वासुदेव ने उसके स्थान पर मथुरा के कारागृह में जन्मे नन्हे कृष्ण को सुला दिया था तथा नवजात कन्या को अपने साथ मथुरा ले आये थे। कंस के हाथों से मुक्त हो कर वह कन्या विंध्यांचल में देवी विंध्यवासिनी के रूप में स्थपित हो गयी थी।

दिल्ली के योगमाया मंदिर पर हमारा संस्करण पढ़ें तथा उनके विषय में विस्तार में जानें।

कालकाजी मंदिर

श्री कालकाजी मंदिर - नई दिल्ली
श्री कालकाजी मंदिर – नई दिल्ली

कालकाजी मंदिर नई दिल्ली के प्राचीनतम शक्ति मंदिरों में से एक है। इस मंदिर के कारण इसके आसपास के क्षेत्र का तथा अब नवीन मेट्रो रेल स्थानक का नाम भी कालकाजी पड़ा है। जिस पहाड़ी पर यह मंदिर स्थित है, उस पहाड़ी को प्राचीन काल में सूर्यकूट कहा जाता था। इसी कारण देवी को सूर्यकूट निवासिनी भी कहा जाता है। इसी तथ्य को मंदिर के १२ द्वार भी वर्णित करते हैं। मंदिर के १२ द्वार १२ आदित्यों एवं १२ राशियों का प्रतिनिधित्व करते हैं जिनमें वर्ष भर में सूर्य का प्रवास होता है।

दुर्गासप्तशती की कथा में भी कालका देवी का उल्लेख किया गया है जहां कालका देवी चंड-मुंड एवं रक्तबीज जैसे असुरों पर विजय प्राप्त करती हैं।

दक्षिण दिल्ली की भीड़-भाड़ के मध्य स्थित यह मंदिर हमें अतीत में ले जाता है। मंदिर के बाहर दुकानों की वैसी ही पंक्ति है जैसे किसी भी अन्य मंदिर के बाहर होती है। इन दुकानों में देवी को अर्पित किये जाने वाले चढ़ावे की वस्तुओं की विक्री होती है।

यद्यपि मंदिर किंचित छोटा है तथापि भीतर स्थापित देवी का विग्रह अत्यंत सुन्दर प्रतीत होता है। अपनी अव्यक्त उर्जा से वह हमें सम्मोहित सा कर देता है। समीप ही दूधिया भैरव का एक मंदिर है जहां दूध चढ़ाया जाता है। मुझे मंदिर के आसपास अनेक छोटे मंदिर दृष्टिगोचर हुए किन्तु उनके विषय में वर्णन करने से पूर्व मुझे शांति से उनके दर्शन करने होंगे। मुझे स्मरण है मैंने वहां मंदिर के निकट निवास करते एक बाबा की छोटी सी कुटिया देखी थी। उस कुटिया का दर्शन स्वयं में एक अनोखा अनुभव था।

वर्तमान में जो मंदिर यहाँ स्थित है उसका निर्माण १८वीं सदी में मराठाओं ने करवाया था। प्राचीन मंदिर अवश्य इसी स्थान पर स्थित रहा होगा। लोगों का मानना है कि महाभारत युद्ध से पूर्व कृष्ण एवं अर्जुन ने योगमाया मंदिर एवं इस कालकाजी मंदिर में देवियों के दर्शन किये थे। यह वही स्थान है जहां आक्रान्ता मोहम्मद घोरी के आक्रमण से स्वयं का रक्षण करने हेतु चौहान वंश की स्त्रियों के साथ महारानी संयोगिता चौहान ने भी अग्नि में आत्मदाह किया था। कुछ ऐतिहासिक सन्दर्भों में इसे ‘सतियों की याद’ भी कहा जाता है।

झंडेवाला देवी का मंदिर

झंडेवाला देवी मंदिर आदि शक्ति का मंदिर है। इसकी खोज बदरी भगत नामक एक भक्त द्वारा हुई थी। ऐसा माना जाता है कि देवी ने स्वयं उसके स्वप्न में आकर उसे अपने विग्रह के विषय में जानकारी प्रदान की थी। प्राप्त विग्रह में दोनों हाथ नहीं थे। अतः उस विग्रह में चाँदी के हाथ जोड़े गए हैं। आज भी वह मूर्ति मुख्य गुफा मंदिर में पूजी जाती है जो मंदिर के निचले तल पर स्थित है।

झंडेवाला आदि शक्ति मंदिर - दिल्ली के प्राचीन मंदिर
झंडेवाला आदि शक्ति मंदिर – दिल्ली के प्राचीन मंदिर

मुख्य मन्दिर में इसी विग्रह का प्रतिरूप स्थापित किया गया है। मुख्य मूर्ति के एक ओर महाकाली तथा दूसरी ओर महासरस्वती की प्रतिमाएं हैं। अर्थात् मुख्य मूर्ति महालक्ष्मी का रूप है। मंदिर का शिखर कलश की आकृति का है। परम्पराओं के अनुसार कलश देवी का प्रतिनिधित्व करता है। बाह्य भित्तियों पर नवदुर्गा की प्रतिमाएं हैं।

समीप ही महालक्ष्मी, गणेश, अन्नपूर्णा, दुर्गा, शीतला माता एवं कामधेनु के छोटे छोटे मंदिर हैं। कोने में स्थित एक मंदिर के भीतर देवी की अखंड ज्योत प्रज्वलित रहती है। मंदिर के पृष्ठभाग में किंचित ऊँचे तल पर स्थित एक विशाल कक्ष में एक शिवलिंग स्थापित है। यह शिवलिंग अपेक्षाकृत आधुनिक प्रतीत होता है।

मंदिर की कथा की प्रतिलिपि प्रवेशद्वार पर स्थित मंदिर कार्यालय से प्राप्त की जा सकती है।

काली मंदिर – बंगला साहिब मार्ग

यह एक छोटा सा मंदिर है जिसके विषय में मुझे इसलिए ज्ञात हुआ क्योंकि मैं इसके निकट ही रह रही थी। उत्तर भारत के अन्य देवी मंदिरों के अनुरूप इस मंदिर में भी देवी का एक छोटा विग्रह है जिसके चारों ओर चाँदी के उत्कीर्णित पटल हैं। मैं प्रातः काल देवी के दर्शनार्थ पहुँची थे। देवी के विग्रह पर ताजे पुष्पों का श्रृंगार किया हुआ था।

बंगला साहिब मार्ग स्थित काली मंदिर
बंगला साहिब मार्ग स्थित काली मंदिर

मंदिर के भीतर एक गुफा है जहां देवी की पिंडी रूप में पूजा-अर्चना की जाती है। बालाजी एवं महालक्ष्मी का भी एक गुफा रूपी मंदिर है। एक शिवलिंग भी है जिसे स्वयंभू माना जाता है। साथ ही एक नवग्रह मंडल है।

मंदिर की सूचना पटल के अनुसार मंदिर कम से कम ५०० वर्ष प्राचीन है। उस काल में यहाँ एक टीला था जिस पर साधू आराधना किया करते थे। नई दिल्ली के निर्माण की रूपरेखा आकलन के समय भी इस मंदिर को इसके मूल स्थान पर ही रखा गया था।

दिल्ली के अन्य प्राचीन मंदिर

भैरों मंदिर

पांडवकालीन भैरों मंदिर
पांडवकालीन भैरों मंदिर

पुराना किला के बाह्य प्रांगण में स्थित यह भैरों मंदिर महाभारत कालीन माना जाता है। ऐसी मान्यता है कि यह मूर्ति पांडू पुत्र भीम द्वारा यहाँ लाई गयी है। किवदंतियों के अनुसार भीम ने यहाँ सिद्धियाँ प्राप्त की थी। भैरव मंदिर एकमात्र मंदिर है जहां भक्त उन्हें मदिरा अर्पित कर सकते हैं। अनेक श्रद्धालु मदिरा की लत को त्यागने की प्रतिज्ञा करते हुए अंतिम मदिरा विग्रह को अर्पित करने आते हैं। रविवार के दिन बड़ी संख्या में दर्शनार्थी यहाँ आते हैं।

कुंती मंदिर

पुराना किला स्थित कुंती देवी मंदिर
पुराना किला स्थित कुंती देवी मंदिर

यह मंदिर भी पुराना किला परिसर के भीतर स्थित है। नाम से ऐसा प्रतीत होता है कि यह मंदिर पांडवों की माता कुंती का है। यह एक अत्यंत ही छोटा मंदिर है जिसने काल के थपेड़ों को आश्चर्यजनक रूप से सफलतापूर्वक सहन किया है।

पुराना किला परिसर में एक शीतला माता मंदिर भी था किन्तु कुछ दशक पूर्व वह विकास कार्य को समर्पित हो गया है।

कटरा नील का शिवालय

कटरा नील पुरानी दिल्ली के चांदनी चौक क्षेत्र में स्थित एक प्राचीन बस्ती  है। इस क्षेत्र में अनेक प्राचीन शिवालय हैं जिनमें अधिकाँश शिवालय हवेलियों के भीतर स्थित हैं। जिन शिवालयों के मैंने दर्शन किये, उनमें से कुछ हैं, धूमीमल शिवालय, घंटेश्वर महादेव आदि। दिल्ली के छोटे से क्षेत्र में इतनी बड़ी संख्या में छोटे छोटे  शिवालय अथवा प्राचीन मंदिरों की उपस्थिति कदाचित इस ओर संकेत करती है कि दिल्ली के सम्पूर्ण इस्लाम काल में इस क्षेत्र में सशक्त हिन्दू वसाहत उपस्थित रही होगी।

गौरी शंकर मंदिर

यह मंदिर लाल किले से भी दृष्टिगोचर होता है। दिल्ली वासियों ने प्रतिवर्ष स्वतंत्रता दिवस समारोह के समय इस मंदिर को लाल किले से अवश्य देखा होगा। इस मंदिर के भीतर उपस्थित शिवलिंग को ८०० वर्षों से भी अधिक प्राचीन माना जाता है। दंतकथाओं के अनुसार यह लिंग एक वृद्ध पीपल वृक्ष के समीप स्थित था। मराठा योद्धा अप्पा गंगाधर राव ने इस मंदिर के निर्माण का स्वप्न देखा था। उन्होंने प्रतिज्ञा की कि युद्ध में विजय प्राप्त करने पर वे यहाँ मंदिर का निर्माण करायेंगे। वे युद्ध में विजयी हुए तथा उन्होंने इस मंदिर का निर्माण भी कराया।

बनखंडी महादेव

पुरानी दिल्ली रेलवे स्टेशन के पास स्थित बनखंडी महादेव मंदिर
पुरानी दिल्ली रेलवे स्टेशन के पास स्थित बनखंडी महादेव मंदिर

यह मंदिर प्राचीन दिल्ली रेल स्थानक के समक्ष स्थित है। इसका नाम इस ओर संकेत करता है कि यह एक शिव मंदिर है जो प्राचीन काल में वन के भीतर स्थित था। मैंने अनेक वर्ष पूर्व इस मंदिर के दर्शन किये थे। उस समय अनेक साधू यात्री यहाँ निवास कर रहे थे। यह एक मंदिर संकुल है जिस के भीतर अनेक छोटे छोटे मंदिर हैं। मंदिर के बाहर घंटियाँ लटकाई हुई हैं। भक्तगण बाहर से भी घंटियाँ बजाकर प्रार्थना करते हुए आगे जा सकते हैं।

चित्रगुप्त मंदिर

एक काल में दिल्ली को कायस्थों की नगरी कहा जाता था। कायस्थों को संपत्ति का लेखा-जोखा रखने व बही खाता लिखने वाले मुनीमों का वंश कहा जाता है। हिन्दू धर्म की मान्यताओं के अनुसार कायस्थ धर्मराज श्री चित्रगुप्त की सन्तानें  हैं। चित्रगुप्त मनुष्यों के पाप-पुण्य का लेखा-जोखा कर उनके साथ न्याय करते हैं। अतः, बहीखाते रखने वाले देव चित्रगुप्त कायस्थों के आराध्य हैं, इसमें आश्चर्य नहीं है। दिल्ली के हृदयस्थल में चित्रगुप्त भगवान के नाम पर एक मार्ग भी है। उसी मार्ग के एक छोर पर भगवान चित्रगुप्त का हवेली सदृश मंदिर है।

चित्रगुप्त मंदिर नई दिल्ली
चित्रगुप्त मंदिर नई दिल्ली

इन्ही दिनों ही मैंने इस मंदिर के दर्शन किये थे, तभी मुझे ज्ञात हुआ कि यह मंदिर एक परिवार के स्वामित्व के अंतर्गत आता है। वह पुरोहित परिवार छः पीढ़ियों से इस मंदिर की सेवा करता आ रहा है। मुझे यह भी बताया गया कि कायस्थों के १२ गोत्र वास्तव में चित्रगुप्त एवं उनकी दो पत्नियों, इरावती एवं नंदिनी के १२ पुत्र हैं। वे हैं, कुलश्रेष्ठ, माथुर, गौड़, भटनागर, सक्सेना, अम्बष्ठ, निगम, कर्ण, श्रीवास्तव, सुर्यध्वज, वाल्मिकी एवं अष्टाना(अस्थाना)।

एक अत्यंत विशाल परिसर के भीतर स्थित यह चित्रगुप्त मंदिर किंचित छोटा है। परिसर के भीतर मुख्य मंदिर के पृष्ठभाग में एक शनि मंदिर है। परिसर में अनेक देवी-देवताओं के विग्रह हैं जिनमें एक विग्रह हनुमान जी का भी है।

पुजारीजी ने मुझे बताया कि भाई दूज के दिन मंदिर में चित्रगुप्त की कथा बांची जाती है। भाई दूज को यम द्वितीया भी कहते हैं जो दीपावली पर्व के दो दिवस पश्चात आती है। यह कथा सम्पूर्ण वर्ष में केवल एक दिवस ही कही जाती है। मैंने यहाँ भक्तगणों को संध्या के समय मंदिर परिसर में स्थित पौधों के नीचे कार्तिक दीप प्रज्ज्वलित करते भी देखा। मंदिर की भित्तियों पर अभिलेखित आरती में कायस्थ समाज की कथा प्रस्फुटित होती है।

यह मंदिर दिल्ली की ऐसी धरोहर है जिसके विषय में अधिक लोगों को जानकारी नहीं है।

सूर्य मंदिर

हम सब जानते हैं कि एक सूर्य मंदिर सूरजकुंड में स्थित था जो तकनीकी रूप से हरियाणा में स्थित है किन्तु राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र(NCR) का एक भाग है। दिल्ली में अन्य सूर्य मंदिर भी अवश्य रहे होंगे क्योंकि दिल्ली में सूर्य परिवार के अन्य सदस्यों की भलीभांति उपस्थिति है। दिल्ली में अनेक शनि मंदिर हैं जो सूर्य के पुत्र हैं। दिल्ली से बहने वाली यमुना नदी सूर्य की पुत्री है। दिल्ली के प्राचीनतम क्षेत्र को महरौली कहते हैं जिसकी व्युत्पत्ति मिहिर शब्द से हुई है। सूर्य का एक नाम मिहिर भी है।

कोणार्क, मोढेरा अथवा कश्मीर जैसे भारत के अन्य स्थानों के सूर्य मंदिरों की तुलना में कदाचित दिल्ली में उपस्थित कोई भी सूर्य मंदिर के अब अवशेष मात्र भी बचे नहीं हैं।

दिल्ली के जैन मंदिर

सम्पूर्ण दिल्ली में अनेक जैन मंदिर हैं। वे दिल्ली के प्राचीनतम जीवंत पुरातन मंदिरों में से हैं। उनमें से कुछ इस प्रकार हैं:

लाल मंदिर

यह दिल्ली के सभी जैन मंदिरों में से सर्वाधिक लोकप्रिय जैन मंदिर है क्योंकि यह लाल किले के ठीक समक्ष स्थित है तथा इसका भी वही रंग है जो लाल किले का है। यह मंदिर दिगंबर जैन अनुयायियों का मंदिर है। इसमें सभी जैन तीर्थंकरों की प्रतिमाएं हैं। परिसर के भीतर एक विशाल पुस्तकालय भी है।

दिगंबर जैन लाल मंदिर दिल्ली
दिगंबर जैन लाल मंदिर दिल्ली

इस मंदिर से सम्बंधित मेरी स्मृतियों में पक्षियों के एक अस्पताल का प्रमुख स्थान है जो मंदिर परिसर का ही एक भाग है। यह स्वयं में एक अत्यंत विशेष अस्पताल है जहां सभी रोगग्रस्त एवं घायल पक्षियों पर उपचार किया जाता है। यहाँ पक्षियों को तब तक रखा जाता है तथा उनकी देखभाल की जाती है, जब तक वे पूर्णतः स्वस्थ होकर स्वतन्त्र रूप से जीवन जीने में सक्षम ना हो जाएँ।

नौघारा जैन मंदिर

श्वेताम्बर जैन अनुयायियों का यह मंदिर नौघरा में, किनारी बाजार एवं परांठे वाली गली, दोनों के अंत में स्थित है। प्रथम तल पर स्थित यह मंदिर अविश्वसनीय रूप से सुन्दर है। मंदिर की सुन्दरता का आनंद उठाते हुए आप कुछ समय यहाँ आसानी से व्यतीत कर सकते हैं। हमने जब इस मंदिर के दर्शन किये थे तब वहां के पुरोहितों ने हमें अत्यंत आत्मीयता व प्रेम से सम्पूर्ण मदिर के दर्शन कराये थे तथा तीर्थंकरों की कथाएं भी सुनाई थीं।

मंदिर में छायाचित्रीकरण की अनुमति नहीं है।

दादाबाड़ी जैन मंदिर

प्राचीन दादाबाड़ी जैन मंदिर
प्राचीन दादाबाड़ी जैन मंदिर

यह मंदिर महरौली-गुरुग्राम मार्ग पर स्थित है। अधिकतर यात्री मंदिर का पटल तो देखते हैं किन्तु मंदिर के लिए एक लघु विमार्ग लेने में चूक जाते हैं।

दादाबाड़ी जैन मंदिर के विषय में हमारा विस्तृत संस्करण पढ़ें।

इन मंदिरों के अतिरिक्त कालीबाड़ी एवं बिरला मंदिर भी हैं जो मंदिर मार्ग पर स्थित हैं। ये दोनों मंदिर लगभग १०० वर्ष प्राचीन हैं। ये दिल्ली के नवयुगीन मंदिरों में सर्वप्रथम मंदिर हैं।

इनके अतिरिक्त यदि आप दिल्ली के किसी अन्य प्राचीन मंदिर अथवा मंदिरों के विषय में जानते हैं, जिनका उल्लेख करने में मैं चूक गयी हूँ, तो मुझे उनकी जानकारी अवश्य दें। हम उन्हें इस संस्करण में अवश्य सम्मिलित करेंगे।

अनुवाद: मधुमिता ताम्हणे

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योगमाया मंदिर – महरौली स्थित दिल्ली का शक्ति पीठ https://inditales.com/hindi/yogmaya-mandir-shaktipeeth-delhi/ https://inditales.com/hindi/yogmaya-mandir-shaktipeeth-delhi/#comments Wed, 03 Jun 2020 02:30:11 +0000 https://inditales.com/hindi/?p=1956

महरौली में स्थित योगमाया मंदिर संभवतः दिल्ली का प्राचीनतम जीवंत मंदिर है। यह मंदिर प्रसिद्ध कुतुब मीनार संकुल के ठीक पृष्ठभाग में स्थित है। महरौली स्वयं भी दिल्ली के प्राचीनतम आवासीय क्षेत्रों में से एक है। यह इस्लाम-पूर्व काल की प्रथम राजधानी रहा है। उस काल के सभी शासकों ने यहाँ से शासन किया था। […]

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महरौली में स्थित योगमाया मंदिर संभवतः दिल्ली का प्राचीनतम जीवंत मंदिर है। यह मंदिर प्रसिद्ध कुतुब मीनार संकुल के ठीक पृष्ठभाग में स्थित है।

देवी योगमाया मंदिर - दिल्ली
देवी योगमाया मंदिर – दिल्ली

महरौली स्वयं भी दिल्ली के प्राचीनतम आवासीय क्षेत्रों में से एक है। यह इस्लाम-पूर्व काल की प्रथम राजधानी रहा है। उस काल के सभी शासकों ने यहाँ से शासन किया था। एक काल में यह एक सशक्त हिन्दू व जैन क्षेत्र था। किन्तु इस क्षेत्र को इस्लामिक क्षेत्र में परिवर्तित करने के लिए इसकी इस छाप को अधिकांशतः नष्ट कर दिया गया। मंदिरों को नष्ट कर मस्जिदों का निर्माण किया गया। ऊंची ऊंची मीनारों का निर्माण कराया गया।

एक मंदिर जो इन विनाशकारी आक्रमणों से अप्रभावित बचा रहा, वह था योगमाया मंदिर। जब आप कुतुब संकुल से महरौली बस स्थानक की ओर जाएंगे, तब आप अपने दाहिने ओर एक पत्थर का प्रवेश द्वार देखेंगे जिसके दोनों ओर द्वार को अलंकृत करते दो सिंहों की प्रतिमाएं हैं। प्रवेश द्वार से भीतर प्रवेश करने के पश्चात  जब आप लगभग १५० मीटर आगे बढ़ेंगे तब आप अपनी बाईं ओर यह मंदिर देखेंगे।

जैन शास्त्रों में दिल्ली के इस महरौली क्षेत्र को योगिनीपुर कहा गया है। कदाचित इस मंदिर के नाम पर ही इस क्षेत्र का नामकरण किया गया था। दादाबाड़ी जैसे अनेक प्राचीन जैन मंदिर अब भी इस क्षेत्र में अस्तित्व में हैं। इन्हे देख इस संबंध को समझना कठिन नहीं है।

योगमाया की लोककथा

 योगमाया मंदिर या जोगमाया मंदिर एक प्राचीन हिन्दू मंदिर है। यह मंदिर ५००० वर्षों से भी अधिक प्राचीन माना जाता है। इसका अर्थ है यह द्वापर युग का मंदिर है जब महाभारत युद्ध हुआ था।

देवी योगमाया को आदि शक्ति महालक्ष्मी का अवतार माना जाता है। यह ५१ शक्तिपीठों में से एक है। ऐसी मान्यता है कि यहाँ देवी सती का मस्तक यहाँ गिरा था जो यहाँ एक पिंडी के रूप में उपस्थित है। योगमाया देवी को सत्व गुण प्रधान देवी माना जाता है। इसीलिए इस मंदिर में किसी भी प्रकार की बलि, निरामिष आहार एवं सुरा के अर्पण पर प्रतिबंध है।

योगमाया श्री कृष्ण की भगिनी थी जो कृष्ण के पालक माता-पिता यशोदा एवं नन्द की पुत्री थी। जब देवकी एवं वासुदेव के आठवें पुत्र का वध करने की मंशा से कसं कारागृह पहुंचा तथा कृष्ण के भ्रम में उसके स्थान पर लेटी यशोदा एवं नन्द की पुत्री को उठकर भित्ति पर पटका तब वह उसके हाथ से छूटकर आकाश में लुप्त गई। जाते जाते बालिका ने भविष्यवाणी की कि कसं की मृत्यु विष्णु के जिस आठवें अवतार के हाथों होगी, उसने जन्म ले लिया है। तत्पश्चात वह बालिका विंध्याचल पर्वत पर जाकर वहाँ विंध्यावासिनी के रूप में निवास करने लगी। वहाँ पर्वत के ऊपर उन्हे समर्पित एक मंदिर भी है। दुर्गा सप्तशती में भी यह उल्लेख है कि इस समय चक्र में उन्होंने यशोदा एवं नन्द की पुत्री के रूप में जन्म लिया है।

कुछ विद्वानों का मानना है कि योगमाया देवी का मस्तक दिल्ली में है तथा उनके चरण विंध्याचल में हैं।

महाभारत एवं योगमाया

कुछ सूत्रों के अनुसार इस मंदिर का निर्माण स्वयं श्री कृष्ण ने किया था। यह उस समय की कथा है जब श्री कृष्ण एवं अर्जुन महाभारत युद्ध के समय इस योगमाया मंदिर में आराधना करने आए थे। जब युद्ध में जयद्रथ ने अर्जुन पुत्र अभिमन्यु का वध किया था तब अर्जुन ने प्रतिज्ञा की थी कि वे आगामी संध्याकाल तक जयद्रथ का वध कर देंगे अन्यथा स्वयं अग्नि में प्राण अर्पण कर देंगे। अगले दिन कौरवों ने सम्पूर्ण दिवस जयद्रथ को अर्जुन से दूर रखा। इससे जयद्रथ का वध असंभव होने लगा था।

उस समय कृष्ण एवं अर्जुन इस मंदिर में आए तथा देवी से सहायता की गुहार लगाई। देवी ने अपनी माया से अल्पकालीन सूर्य ग्रहण की स्थिति उत्पन्न कर दी। संध्या के भ्रम में जब जयद्रथ असावधान हुआ तब अर्जुन ने जयद्रथ का वध किया।

एक अन्य किवदंती में यह कहा गया है कि महाभारत युद्ध के उपरांत युधिष्ठिर ने इस मंदिर का निर्माण किया था।

जहां तक मेरा प्रश्न है, मैं इसी तथ्य से संतुष्ट हूँ कि यह एक प्राचीन मंदिर है तथा यहाँ योगमाया की अनवरत पूजा अर्चना की जाती है।

महरौली के योगमाया मंदिर का इतिहास

योगमाया चौहान राजाओं की कुलदेवी हैं। चौहान राजाओं ने दिल्ली के किला राय पिथौरा से राजपाट संभाला था।

आप सोचते होंगे कि यह प्राचीन मंदिर दिल्ली में हुए अनेकों आक्रमणों से कैसे सुरक्षित बच पाया? एक लंबे समय तक यह मंदिर शब्दशः आक्रमणों की आंधी के मध्य में स्थित था। सर्वप्रथम इस पर गजनी ने आक्रमण किया, तत्पश्चात इस्लामी आक्रमणकारियों ने। १६ वीं. सदी के मध्य में हिन्दू सम्राट विक्रमादित्य हेमू ने इस मंदिर का नवीनीकरण किया था।

१७ वी. सदी के अंत में औरंगजेब ने सभी मंदिरों को नष्ट करने का आदेश दिया था जिसमें यह मंदिर भी सम्मिलित था। ऐसा कहा जाता है कि इस मंदिर को ध्वस्त करने की चेष्टा करते समय औरंगजेब की सेना को विचित्र अनुभव हुए। दिन के समय वे मंदिर का जितना भाग नष्ट करते थे, रात्रि के समय मंदिर पुनः सम्पूर्ण हो जाता था। इस प्रक्रिया में वे अपने हाथों को खोने लगे थे। यह सम्पूर्ण प्रक्रिया थमने का नाम ही नहीं ले रही थी। तब औरंगजेब ने हार मान ली। इस प्रकार यह मंदिर बच गया। इस मंदिर के चारों ओर आप एक लंबा कक्ष देखेंगे। आक्रमणकारी इसे एक मस्जिद में परिवर्तित करना चाह रहे थे। स्मरण रहे कि मंदिर की संरचना सदैव चौकोर होती है तथा मस्जिद का कक्ष लंबा होता है। यह बाहरी कक्ष का अब मंदिर के भंडार गृह के रूप में उपयोग किया जाता है जहां यहाँ की निशुल्क भोजन व्यवस्था के लिए खाद्य पदार्थों का भंडारण किया जाता है।

हम ऐसा कह सकते हैं कि देवी माँ के उपासक स्थानीय निवासियों ने ही इस मंदिर को अब तक सुरक्षित एवं संरक्षित रखा है।

बहुत कम लोग यह जानते हैं कि भारत की प्रसिद्ध १८५७ की क्रांति की योजना भी इस मंदिर के प्रांगण में बनाई गई थी।

इस मंदिर को दिल्ली में महाभारत काल के पाँच जीवंत मंदिरों में से एक माना जाता है। एक अन्य प्राचीन मंदिर है भैरव मंदिर जो पुराना किला के बाहर स्थित है। यह पांडवों के इंद्रप्रस्थ नगरी की भूमि थी। अन्य प्राचीन मंदिर निगम बोध घाट के समीप तथा पुरानी दिल्ली की गलियों में स्थित हैं, जैसे खारी बाउली।

योगमाया मंदिर के दर्शन

अवस्थिति की दृष्टि से यह मंदिर लाल कोट की भित्तियों के भीतर स्थित है। लाल कोट तोमर राजाओं द्वारा ८ वीं. सदी में निर्मित दिल्ली का दुर्ग है। मंदिर के समीप एक सूर्य मंदिर भी था किन्तु अब उसका कहीं अता-पता नहीं है।

यह अपेक्षाकृत छोटा मंदिर है। यदि आपको इसके दीर्घकालीन इतिहास की जानकारी नहीं हो तो आप यह मंदिर सहज ही अनदेखा कर सकते हैं। मुझे बताया गया कि मंदिर की उत्तर दिशा में एक जलकुंड अथवा जोहड़ है जिसका नाम अनंग ताल है। किन्तु मैं इसे ढूंढ नहीं पायी।

मंदिर न्यास

योगमाया मंदिर का प्रबंधन अब एक न्यास द्वारा किया जाता है। वत्स पुरोहितों के एक परिवार ने सदियों से इस मंदिर की देखरेख की है। मैंने मंदिर के गर्भगृह के भीतर पूजा-अर्चना करती एक प्रौड़ स्त्री से चर्चा की। वह स्त्री इसी वत्स परिवार की बड़ी बहू है। उन्होंने मुझे बताया कि वत्स परिवार अब अत्यंत विशाल हो जाने के कारण वे बारी बारी से मंदिर में पूजा करते हैं। उस वर्ष मंदिर में पूजा-अर्चना का दायित्व उनके परिवार पर था।

उनके हाथों में दुर्गा सप्तशती की एक प्रति थी। उन्होंने जानकारी दी कि अभी जो मंदिर वहाँ है वह ६० वर्षों से अधिक प्राचीन नहीं है। मंदिर का छोटा सा गर्भगृह, जिसे देवी का भवन कहा जाता है, सैकड़ों वर्ष प्राचीन है। इतने वर्षों में गर्भगृह के भीतर कोई भी परिवर्तन नहीं किया गया है। हाँ, संगमरमर एवं टाइलें अवश्य कालांतर में जोड़े गए हैं।

दैनंदिनी अनुष्ठान

वस्त्रों एवं पुष्पों से ढँकी देवी की जो छवि आप देखते हैं वह देवी की मूल प्रतिमा पर ढंका एक आवरण है। जैसा कि मैंने पूर्व में भी लिखा है, मूल देवी एक कुएं के समान संरचना के भीतर पिंडी स्वरूप में विराजमान हैं।

वत्स पुरोहित परिवार की बड़ी बहू ने मुझे मंदिर के दैनिक अनुष्ठानों के विषय में विस्तृत जानकारी दी जिसमें देवी का स्नान एवं शृंगार अनुष्ठान सम्मिलित हैं जो प्रतिदिन दो बार किये जाते हैं। जल, दूध,दही एवं मध द्वारा उनका स्नान अनुष्ठान पूर्ण किया जाता है जिन्हे अनुष्ठान के पश्चात चरणामृत अथवा प्रसाद के रूप में भक्तों में वितरित किया जाता है। देवी का शृंगार पुरुष करते हैं। गर्भगृह अत्यं लघु होने के कारण अधिक लोग एक साथ भीतर नहीं जा सकते हैं।

उन्होंने मुझे समझाया कि देवी शक्ति रूप में विद्यमान हैं तथा शक्ति के संग शिव सदैव विराजमान रहते हैं। समीप स्थित शिवलिंग की ओर संकेत करते हुए उन्होंने मेरा ध्यान इस ओर आकर्षित किया कि शिवलिंग के आधार का स्तर देवी की पीठिका के स्तर से किंचित ऊंचा है। उन्होंने मुख्य मंदिर से लगे एक लंबे कक्ष की ओर संकेत करते हुए मुझे बताया कि वह कक्ष औरंगजेब द्वारा मंदिर को मस्जिद में परिवर्तित करने के प्रयास के तहत बनाया गया था।

उन्होंने मुझे मंदिर की छत को अलंकृत करते सुंदर पंखे दिखाए। छत के मध्य में लगा बड़ा पंखा भारत के राष्ट्रपति ने ‘फूल वालों की सैर’ उत्सव के उपलक्ष में मंदिर को भेंट स्वरूप प्रदान किया था। अन्य पंखे अन्य सरकारी अधिकारियों द्वारा प्रदान किये गए हैं।

वत्स पुरोहित परिवार की बड़ी बहू से वार्तालाप करना इस मंदिर में मेरे भ्रमण का सर्वाधिक रोचक भाग था। जब वे मंदिर के विषय में जानकारी प्रदान कर रही थीं तब उनका वात्सल्य छुपाये नहीं छुप रहा था। उन्होंने जिन तथ्यों की जानकारी दी एवं जिस प्रकार दी, वह देवी के प्रति उनकी सम्पूर्ण भक्ति दर्शा रहा था।

उनके स्वरों में देवी के प्रति कृतज्ञता थी तथा परमानन्द की अनुभूति थी जो उनके प्रिय देवी के संग समय व्यतीत कर पाने के कारण वे अनुभव के रही थीं। आज के काल में ऐसे किसी व्यक्ति से भेंट होना सहज संभव नहीं है। मंदिर में देवी दर्शन के लिए जो भी आ रहा था वह इनके चरण स्पर्श भी कर रहा था। वे सभी को उदारता से आशीष दे रही थीं। उनका सम्पूर्ण व्यक्तित्व भक्तिभाव एवं वात्सल्य में ओतप्रोत था मानो देवी स्वयं उनमें विद्यमान हैं। उनके साथ बैठना, उन्हे निहारना तथा उनसे वार्तालाप करना, मेरे लिए साक्षात देवी के अनुग्रह के समान था।

नवरात्रि

सभी देवी मंदिरों के समान योगमाया मंदिर का भी सर्वाधिक महत्वपूर्ण एवं विशाल उत्सव है नवरात्रि। दोनों प्रमुख नवरात्रियों में से शरद नवरात्रि, जो लगभग अक्टूबर मास में आती है, अधिक उत्साह से मनाया जाता है।

फूल वालों की सैर

ऐसा कहा जाता है की फूल वालों की सैर उत्सव का आरंभ बहादुर शाह जफर ने किया था। कुछ का मानना है कि अकबर ने इस उत्सव का आरंभ तब किया था जब अपने निर्वासित पुत्र के सुरक्षित वापसी की प्रार्थना लिए अकबर की पत्नी देवी के दर्शन हेतु यहाँ आई थी।

फूलवालों की सैर के अर्पित पंखे
फूलवालों की सैर के अर्पित पंखे

प्रारंभ में यह उत्सव श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी के दिन आयोजित किया जाता था जो वर्ष ऋतु के मध्य में आता है। इसे संयोग ही कहेंगे कि विंध्याचल के विंध्यवासिनी मंदिर में श्रावण मास में ही कजरी गाई जाती है। वर्ष ऋतु एवं देवी के मध्य इस संबंध का भेद मैं जान नहीं पायी। आज के आधुनिक एवं धर्म-निरपेक्ष काल में यह उत्सव सितंबर-अक्टूबर मास में मनाया जाता है। इसका अर्थ है कि कभी कभी यह आयोजन पित्रपक्ष श्राद्ध काल में भी हो जाता है।

कदाचित संयोगवश, यह उत्सव उसी समय मनाया जाता था जब भाद्रपद मास की शुक्ल अष्टमी में प्राचीन इन्द्र ध्वज उत्सव का आयोजन किया जाता था। आपको स्मरण होगा, दिल्ली इन्द्र की भूमि है तथा वर्ष ऋतु में इन्द्र की आराधना एक परंपरा थी।

कुछ समय पूर्व तक शाहजहानाबाद के लोग फूल वालों की सैर उत्सव में भाग लेने पैदल चलते हुए योगमाया मंदिर पहुंचते थे। वे पुष्पों से बने हस्तपंखे बुधवार के दिन योगमाया मंदिर में अर्पित करते थे तथा गुरुवार के दिन बाबा कुतबुद्दीन बख्तियार काकी की दरगाह पर चढ़ाते थे। यह एक विशाल पिकनिक के समान दृश्य होता था जब शहरी जनता बाहर आकर वन में आनंदोत्सव मानती थी।

यह उत्सव इस मंदिर का एक प्रकार से नवीन युग की धरोहर है जहां उत्सव हमारे धर्म एवं आस्था से अधिक श्रेष्ठ हो जाते हैं तथा समुदाय केंद्रित अधिक हो जाते हैं। मंदिर की पुजारिन ने यह बताया कि अधिकतर भक्तगण  दोनों धार्मिक स्थलों के दर्शन करते हैं।

मंदिर की सादगी

इसकी पुरातनता एवं किवदंतियों को एक ओर रखकर मंदिर की ओर दृष्टि डालें तो यह एक अत्यंत सादगी युक्त मंदिर है। बाहरी भित्तियों पर अनियमित रूप से कलाकारी की गई है। मंदिर के चारों ओर घरों की इतनी सघनता है कि दूर से मंदिर का शिखर दृष्टिगोचर नहीं होता। मुख्य मार्ग पर स्थित मंदिर का प्रवेश द्वार मंदिर का सर्वाधिक अलंकृत भाग है। यदि आप अद्भुत वास्तुशिल्प एवं संरचना की भव्यता ढूंढ रहे हैं तो निश्चित रूप से यह मंदिर उस खांचे में नहीं बैठता। आप इस मंदिर के दर्शन करने आईए इसकी अनेक अद्भुत किवदंतियों व कथाओं के लिए तथा निश्चित रूप से इसकी युगों युगों से जीवित रहने की दृढ़ता देखने के लिए।

योगमाया मंदिर पे विष्णु
योगमाया मंदिर पे विष्णु

मंदिर से बाहर आकर आप पैदल चलते हुए आस-पास के क्षेत्र का अवलोकन कर सकते हैं। यहाँ आप कुछ महंगी वस्त्रों की दुकानें एवं कुछ प्राचीन स्मारकों का आनंद ले सकते हैं। सैर करते हुए यहाँ की संस्कृति एवं धरोहर को आत्मसात करिए तथा दिल्ली के जीवंत इतिहास का अनुभव लीजिए।

दिल्ली के इतिहास को और जानने के लिए आप ‘महरौली धरोहर सैर’ कर सकते हैं अथवा ‘महरौली पुरातत्व उद्यान’ के दर्शन कर सकते हैं।

अन्य योगमाया मंदिर

सम्पूर्ण भारत में अनेक मंदिर हैं जो योगमाया को समर्पित हैं।

इनमें कुछ हैं:

  • वाराणसी के निकट विंध्याचल में विंध्यवासिनी
  • बाड़मेर का योगमाया मंदिर
  • जोधपुर का योगमाया मंदिर
  • वृंदावन का योगमाया मंदिर
  • मुल्तन जो वर्तमान में पाकिस्तान में है
  • केरल में अलमथुरुथी
  • त्रिपुरा में अगरतला के निकट योगमाया मंदिर

दिल्ली के अन्य देवी मंदिरों में कालकाजी मंदिर तथा झंडेवाली मंदिर सम्मिलित हैं। यदि आपको देवी के अन्य मंदिरों के विषय में जानकारी हो तो अवश्य साझा करें। हम उसे अपने संस्करण में अवश्य सम्मिलित करेंगे।

अनुवाद: मधुमिता ताम्हणे

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नयी दिल्ली का राष्ट्रीय संग्रहालय- १० मुख्य आकर्षण https://inditales.com/hindi/must-see-national-museum-new-delhi/ https://inditales.com/hindi/must-see-national-museum-new-delhi/#comments Wed, 06 Sep 2017 02:30:23 +0000 https://inditales.com/hindi/?p=431

नयी दिल्ली स्थित राष्ट्रीय संग्रहालय का मेरी जिंदगी में एक महत्वपूर्ण स्थान है। यही वह स्थान है जहां से मुझे कला इतिहास व प्राचीन भारतीय कलात्मक क्रियाकलापों के सम्बन्ध में जानकारी प्राप्त हुई थी। वास्तव में यह कला को जानने व सराहने वालों के लिए एक विशाल कलाकृति भण्डार है। इस संग्रहालय के गलियारों से […]

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राष्ट्रीय संग्रहालय - नई दिल्ली नयी दिल्ली स्थित राष्ट्रीय संग्रहालय का मेरी जिंदगी में एक महत्वपूर्ण स्थान है। यही वह स्थान है जहां से मुझे कला इतिहास व प्राचीन भारतीय कलात्मक क्रियाकलापों के सम्बन्ध में जानकारी प्राप्त हुई थी। वास्तव में यह कला को जानने व सराहने वालों के लिए एक विशाल कलाकृति भण्डार है। इस संग्रहालय के गलियारों से गुजरते, इन संग्रहों को निहारते ऐसा प्रतीत होता है मानो कोई बहुमूल्य खजाना हाथ लग गया हो। अपने गुड़गाव निवास के दौरान मैं अक्सर इस संग्रहालय में आती थी। यहाँ स्थित पुस्तकालय के पुस्तकों का अध्ययन करने में मेरी बेहद रूचि हुआ करती थी। इन्ही यादों को इतने वर्षों के बाद फिर ताज़ा करने हेतु मैंने एक पूरा दिन इस संग्रहालय में बिताया। समय के अभाव के रहते कुछ और दिन इस संग्रहालय का आनंद उठाने की अपनी इच्छा को बड़ी कठिनाई से दबाया।

दिल्ली राष्ट्रीय संग्रहालय के १० बेहतरीन आकर्षण

अपने इस संस्मरण में मैं आपको दिल्ली स्थित राष्ट्रीय संग्रहालय में १० बेहद ख़ास आकर्षण के बारे में बताना चाहूंगी जिन्हें आप अपने संग्रहालय भ्रमण के दौरान अवश्य देखें। आशा करती हूँ कि मेरे इस संस्मरण को पढ़ने के उपरांत आप जरूर इस संग्रहालय के अवलोकन का निश्चय करंगे।

राष्ट्रीय संग्रहालय की इमारत नयी दिल्ली के मास्टर प्लान का एक हिस्सा थी जिसका निर्माण ख़ास तौर पर संग्रहालय की स्थापना हेतु ही किया गया था।

१) हड़प्पा की नृत्यांगना

सिन्धु घटी की नृत्यांगना एवं मुद्राएँ
सिन्धु घटी की नृत्यांगना एवं मुद्राएँ

आप सब ने सिन्धु घाटी सभ्यता के बारे में विद्यालय के पुस्तकों में अवश्य पढ़ा होगा। हड़प्पा की इस प्रसिद्ध नृत्यांगना के बारे में भी आप सब जानते होंगे। इस नृत्यांगना की मूर्ति को आप दिल्ली स्थित राष्ट्रीय संग्रहालय में प्रत्यक्ष निहार सकते हैं। छोटे से आसन पर खड़ी यह मूर्ति अपेक्षा से विपरीत, बेहद छोटी है। सिर्फ ४ इंच की इस छोटी सी मूर्ति के नैन-नक्श व हाव-भाव निहारने हेतु थोड़ा झुकने की आवश्यकता है। तभी आप देख सकतें हैं कि कैसे इस नृत्यांगना ने अपना चूड़ियों से भरा हाथ अपनी कमर पर रखा हुआ है और बालों को जूड़े के आकार में बांध कर कैसे आत्मसम्मान से अपना सर उठाया हुआ है।

हड़प्पा की इस नृत्यांगना की मूर्ति को मोम ढलाई पद्धति द्वारा पीतल धातु में बनाया गया है। मोहनजोदाड़ो में खुदाई के दौरान पाई गयी इस प्रकार की दो मूर्तियों में दूसरी मूर्ति पाकिस्तान के करांची संग्रहालय में रखी गयी है।

सिन्धु घाटी सभ्यता को समर्पित इस गलियारे में आप कई हड़प्पा मुद्राएँ देखेंगे। यह मुद्राएँ भी अपेक्षा से विपरीत, बेहद छोटी हैं। इन पर जानवर व लिपियां खुदी हुई हैं। इस गलियारे में आप मिट्टी के खिलौने, समाधि पत्थर, मिट्टी के बर्तन इत्यादि भी देख सकते हैं। हरियाणा के राखीगड़ी में स्थित सिंधुघाटी सभ्यता की खुदाई के दौरान प्राप्त एक महिला का कंकाल भी यहाँ रखा हुआ है।

२) चोल कांस्य में निर्मित नटराज की मूर्ति

चोल कांस्य में नटराज प्रतिमा
चोल कांस्य में नटराज प्रतिमा

चोलवंशी तमिलनाडु के तंजावुर के निवासी थे जिन्होंने ९ वीं. से १३ वीं. शताब्दी तक दक्षिण भारत, श्री लंका, मालदीव व जावा के कुछ हिस्सों पर राज किया था। काव्य, नाटक, संगीत, नृत्य व शिलाशिल्प के अतिरिक्त कांसे की बनी मूर्तियों के लिए प्रसिद्ध थे। चोल कांस्य में बनी कुछ बेहतरीन वस्तुएं चेन्नई के एग्मोर संग्रहालय व तंजावुर के मराठा महल में देखीं जा सकतीं हैं। दिल्ली स्थित राष्ट्रीय संग्रहालय में भी चोल कांसे में बनी कलाकृतियों का अद्भुत संग्रह है। इनमें मुख्य है प्रसिद्ध नटराज की मूर्ति। यदि समय का अभाव हो तो कांस्य गलियारे में स्थित इस नटराज की मूर्ति के दर्शन पर्याप्त आनंद प्रदान करने में सक्षम है।

हालांकि कांस्य गलियारे में देश के कोने कोने से हर काल की मूर्तियाँ रखीं हुईं हैं। जैसे हिमाचल से पंचमुखी शिवलिंग और स्वच्छंद भैरवी, दक्षिण भारत से कृष्ण द्वारा कालिया नाग मर्दन और कई देवियों की मूर्तियाँ, उत्तर भारत से गरुड़ पर विराजमान विष्णु-लक्ष्मी और सूर्य की मूर्तियाँ।

और पढ़ें – चोल कांस्य

३) बुद्ध के अस्थि अवशेष

बुद्ध के अस्थि अवशेष - राष्ट्रीय संग्रहालय - नई दिल्ली
बुद्ध के अस्थि अवशेष – राष्ट्रीय संग्रहालय – नई दिल्ली

जब भगवान् बुद्ध का शरीर अग्नि द्वारा भस्म में परिणित किया गया था, तब उनकी अस्थियों को ८ बराबर हिस्सों में बांटा गया था। इन्हें ८ स्तूपों का निर्माण कर उन में रखा गया था। कहा जाता है कि सम्राट अशोक ने इनमें से ७ स्तूपों के अस्थियों को ८४००० स्तूपों में बांट दिया था। इकलौता अछूता स्तूप नेपाल के लुम्बिनी के समीप रामनगर में स्थित है। बाद में इनमें से कुछ स्तूपों की खुदाई के पश्चात इन अस्थि अवशेषों का और विभाजन हुआ। दिल्ली स्थित राष्ट्रीय संग्रहालय में भी थाई स्वर्ण संदूक में भगवान् बुद्ध के अस्थि अवशेष रखे हुए हैं।

आप इस अस्थि स्मृति-चिन्ह को श्रद्धा नमन अर्पित कर सकतें हैं परन्तु पुष्प इत्यादि का अर्पण वर्जित है। इस बुद्ध कक्ष में पत्थर व धातु में बनी बुद्ध की कई प्रतिमाएं प्रदर्शित की गयी हैं।

४) दिल्ली स्थित राष्ट्रीय संग्रहालय के लघुचित्र

कशी के मंदिरों का लघु चित्र
कशी के मंदिरों का लघु चित्र

दिल्ली स्थित राष्ट्रीय संग्रहालय में सम्पूर्ण भारत के लघुचित्रों का सर्वाधिक और कह सकते हैं की सर्वश्रेठ संग्रह है। एक विशाल गलियारे में असंख्य चित्रकारियाँ रखीं हुईं हैं हालांकि यह चित्रकारियाँ किसी शैली या बनावट के अंतर्गत संगठित व सुव्यवस्थित नहीं रखी गयी हैं, फिर भी एक एक लघुचित्र अपने आप में अति उत्कृष्ट रचना है।

एक मसौदे के रूप में लिपटा रखा वाराणसी शहर का नक्शा, कुछ सूक्ष्म चित्रकारों द्वारा बनाए गए आत्मचित्र, सूक्ष्म चित्रीकरण में उपयोगी उपकरण व विधियां, जटिल गणितीय समीकरण की तरह दिखतीं जैन मंडल इत्यादि प्रमुख आकर्षण हैं।

रामायण का दृश्य - लघु चित्र दीर्घा - राष्ट्रीय संग्रहालय - नई दिल्ली
रामायण का दृश्य – लघु चित्र दीर्घा – राष्ट्रीय संग्रहालय – नई दिल्ली

सूक्ष्म चित्रों की कला का आनंद उठाने व उसे सराहने हेतु, दिल्ली स्थित राष्ट्रीय संग्रहालय का यह लघुचित्र गलियारा सर्वोत्तम स्थान है। यहाँ अलग अलग घराने व पद्धत की शैलियाँ प्रदर्शित हैं। मुग़ल, राजस्थानी, पहाड़ी और दख्खनी लघु चित्र मुख्य आकर्षण है। हालांकि यह लघुचित्र मुख्यतः धार्मिक कथाओं और राजसी दृश्यों पर आधारित है, कहीं कहीं आम आदमी के जीवन पर बने लघुचित्र भी दिखाई पड़ते हैं। एक छोटे से स्थान पर इतना कुछ दर्शाना यह इस कला की ख़ास विशेषता है। उदाहरणतः यहाँ प्रदर्शित एक लघुचित्र में कमल की पंखुड़ियों पर बनाए सिक्खों के १० गुरु।

सलाह: संग्रहालय में एक विक्रय केंद्र है जहां से आप बारामासा या रामायण जैसे विषयों पर बनाए गए लघुचित्र श्रंखला की प्रतिकृतियाँ खरीद सकतें हैं।

५) बहुमूल्य भारतीय जवाहरातों का अलंकार संग्रह

अलंकार - राष्ट्रीय संग्रहालय का आभूषण संग्रह
अलंकार – राष्ट्रीय संग्रहालय का आभूषण संग्रह

इस संग्रहालय के अलंकार जवाहरात संग्रह में रखे करीब २५० बेहद खूबसूरत जेवर आपको मंत्रमुग्ध करने में सक्षम हैं। इस अतिसुरक्षित कक्ष के बीचोंबीच, इस खजाने की सुरक्षा में रत, यक्ष की प्रतिमा रखी है। स्वर्ण व बहुमूल्य रत्नों में गढ़ी सूक्ष्म कलाकारी युक्त जवाहरातों का बेहतरीन प्रदर्शन यहाँ देखने को मिलता है।

यहाँ मेरा पसंदीदा जेवर है एक हार जिस पर कई लघुचित्र बनाए गए हैं। स्वर्ण व उत्कृष्ट कला का अद्वितीय नमूना है यह हार।

बहुमूल्य जेवर - राष्ट्रीय संग्रहालय - नई दिल्ली
बहुमूल्य जेवर – राष्ट्रीय संग्रहालय – नई दिल्ली

इस संग्रह में मंदिर के देवी देवताओं हेतु बनाए गए जेवरों का भी समावेश है। साथ ही राज परिवारों द्वारा पहने गए जवाहरात भी यहाँ रखे हुए हैं। इन जवाहरातों का दर्शन ह्रदय में कई मीठी इच्छाएं जागृत कर देतीं हैं, खासकर महिलाओं के लिए।

संग्रहालय के वेबसाइट पर भी इन्हें देखा जा सकता है।

६) गंजीफा ताश के पत्ते

गंजीफा
गंजीफा

गंजीफा के पत्ते वर्तमान में प्रचलित ताश के पत्तों का मूल रूप हैं। प्राचीन काल में इन्हें हाथों से बना कर रंगा जाता था। इन पर धार्मिक कथाओं से सम्बंधित चित्रकारी की जाती थी। भगवान् विष्णु के दशावतार इनमें प्रमुख है।

दिल्ली स्थित राष्ट्रीय संग्रहालय में इन गंजीफा ताश के पत्तों को सजावटी कला गलियारा व लघुचित्र गलियारा, दोनों में देख सकतें हैं। इनके अलावा यहाँ अन्य पटियों के खेल, जैसे शतरंज, सांप-सीड़ी इत्यादि, के भी प्राचीन रूप प्रदर्शित किये हुए हैं।

मेरी दिली इच्छा है कि इन खेलों को हमारे आने वाली पीढ़ियों के लिए पुनर्जीवित किया जाय।

आप इस चलचित्र में बिश्नुपुर के श्री फौजदार को गंजीफा ताश खेलने की विधि बताते देख सकतें हैं।

७) हाथीदांत की कलाकृतियाँ

हाथीदांत की कलाकृतियाँ
हाथीदांत की कलाकृतियाँ

दिल्ली स्थित राष्ट्रीय संग्रहालय में हाथीदांत से बने भिन्न भिन्न ख़ूबसूरत कलाकृतियाँ रखीं हुईं हैं। भगवान् की दया से इन कलाकृतियों का अपार संग्रह इस संग्रहालय में उपलब्ध है। इन्हें देखकर ही संतुष्ट होने व इन्हें सहेजकर रखने की आवश्यकता है, क्योंकि हाथीदांत का व्यापार अब प्रतिबंधित है। इस कारण अब यह कला लुप्त हो चुकी है। संग्रहालय के सजावटी कला गलियारे में हाथीदांत से बने सूक्ष्म से लेकर विशाल आकार की कलाकृतियाँ रखीं हुईं हैं। यूँ तो हर एक कलाकृति बेहद खूबसूरती से बनी हुई है, इनमें मेरी पसंदीदा कलाकृतियाँ है-

• हाथीदांत में बनी भगवान् विष्णु के दशावतारों की गढ़ी व रंगी सुन्दर प्रतिकृतियाँ
• हाथीदांत की नक्काशीदार डिबिया
• नक्काशीदार हाथीदांत द्वारा बनाया गया मंदिर

एक एक कलाकृति बेहद नाजुक व महीन प्रतीत होती है मानो हाथ लगाने पर टूट जायेगी। परन्तु इतने वर्षों से इसे सहेज कर रखा गया है। इनमें से आपको कौन सी कलाकृति पसंद आई मैं जरूर जानना चाहूंगी।

८) तंजावुर की चित्रकारी

शिव-पारवती एवं राम-सीता विवाह - तंजावुर कला शैली
शिव-पारवती एवं राम-सीता विवाह – तंजावुर कला शैली

यह अपेक्षाकृत छोटा व बेहद खूबसूरत गलियारा है। दक्षिण भारत के तंजावुर व मैसूर की भव्य रंगीन चित्रकारियाँ हर तरफ रंग बिखेरतीं प्रतीत होतीं हैं। इन चित्रों में भगवान् शिव का नटराज रूप व कृष्ण भगवान् का माखनचोर बाल रूप मुख्य विषय हैं। इनमें मेरी पसंदीदा चित्रकारी प्राचीन भारतीय साहित्य में प्रसिद्ध व भव्य दो विवाह दृश्य हैं, शिव-पार्वती विवाह और राम-सीता विवाह। इन दोनों विवाह दृश्यों पर चित्रित चित्रकारी मैंने अब तक कहीं और नहीं देखी।

नटराज रूप में शिवलीला का चित्र भी मेरा पसंदीदा चित्र है। मुझे यहाँ विठोबा, पंचमुखी हनुमान जैसे अनोखे चित्रों को भी देखने का सुअवसर प्राप्त हुआ।

९) भारतीय लिपियों की कथा

भारतीय लिपि कथा
भारतीय लिपि कथा

हमने कई बार पढ़ा व अपने बड़ों से सुना कि वर्तमान काल में प्रचलित लिपियों का मूल प्राचीन स्वरुप एक ही है। दिल्ली स्थित राष्ट्रीय संग्रहालय में लिपि की इसी यात्रा को दर्शाती एक विशाल तालिका रखी हुई है जिस पर प्राचीन लिपि को कई काल व कई पीढ़ियों में रूप को बदलते देख व समझ सकतें हैं। यह अनोखा परिवर्तन आपको अचंभित कर देगा।

१०) लकड़ी का नक्काशीदार द्वार

लकड़ी का नक्काशीदार द्वार
लकड़ी का नक्काशीदार द्वार

संग्राहलय के मूर्तिकक्ष में रखे गए पाषाणी मूर्तियों के बीच आप की नजर एक अनोखे लकड़ी के दरवाजे पर अवश्य पड़ेगी। नक्काशीदार लकड़ी के खणों से बना यह द्वार कई कहानियां कहता है। इस दरवाजे का निचला हिस्सा अतिउपयोग और इतने ऋतुओं को सहने के कारण घिस गया है। जैसा कि यहाँ बताया गया है, यह दरवाजा १४ वीं. शताब्दी में उत्तरप्रदेश के कटारमल में बनाया गया है।

दिल्ली स्थित राष्ट्रीय संग्रहालय में देश के कोने कोने से, हर युग में बनीं वस्तुओं का अपार संग्रह है। इसके मुख्य प्रवेशद्वार से अन्दर जाते से ही आपको इनके दर्शन प्रारम्भ हो जायेंगे। आशा है कि मेरा यह संस्मरण आपके दर्शन आनंद पर खरा उतरेगा। यदि आप चाहें तो मैं एक पूरा संस्मरण यहाँ प्रदर्शित पाषाणी मूर्तिकला पर लिख सकती हूँ।

दिल्ली स्थित राष्ट्रीय संग्रहालय के दर्शन हेतु सलाह

शिव-लीला
शिव-लीला

• सोमवार व सभी सार्वजनिक अवकाशों को छोड़कर दिल्ली का राष्ट्रीय संग्रहालय हर दिन प्रातः १० बजे से सांझ ५ बजे तक खुला रहता है।
• पर्यटकों की सुविधा के लिए श्रव्य परिदार्शिका उपलब्ध है।
• कुछ नियत समयों पर इस संग्रहालय का निर्धारित व निर्देशित दौरा भी उपलब्ध है। आप सही समय की जानकारी टिकट खिड़की से प्राप्त कर सकतें हैं।
• इस संग्रहालय में फोटो खींचना वर्जित नहीं है और कैमरे के अलग से शुल्क भी नहीं है। हालांकि कुछ स्थानों पर इन कलाकृतियों को नष्ट होने से बचाने हेतु अतिरिक्त रोशनाई या फ़्लैश वर्जित है।
• दिल्ली स्थित राष्ट्रीय संग्रहालय में दो कलाकृतियाँ विक्रयकेंद्र हैं, एक टिकट खिड़की के पिछवाड़े में व दूसरी इमारत की पहली मंजिल पर। यहाँ आपको कई अनोखे उपहार व यादगार वस्तुएं मिल जायेंगीं।
• इमारत के तहखाने में स्थित जलपानगृह में सादा भोजन उपलब्ध है। मुख्य इमारत में भी एक नवीन उपाहार गृह बनाया गया है। इन दोनों स्थानों पर आप जलपान ग्रहण कर सकतें हैं। गलियारों में भ्रमण के दौरान आप थक जाएँ तो यहाँ बैठ थोड़ा सुस्ता सकतें हैं।

हिंदी अनुवाद : मधुमिता ताम्हणे

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पुरानी दिल्ली की गलियों के 10 प्रसिद्ध बाजार https://inditales.com/hindi/10-old-delhi-bazaars-shopping/ https://inditales.com/hindi/10-old-delhi-bazaars-shopping/#comments Wed, 10 May 2017 02:30:47 +0000 https://inditales.com/hindi/?p=239

पुरानी दिल्ली के सबसे अच्छे बाजार जो अपनी इन खासियतों के लिए जाने जाते हैं जैसे - खारी बावली मसलों के लिए प्रसिद्ध है, नई सड़क किताबों की नगरी है, बल्लीमारान जूतों के लिए मशहूर है, चावडी बाजार निमंत्रण पत्रों और पीतल की वस्तुओं के लिए विख्यात है, मीना बाजार अपने गौरवशाली अतीत के लिए नामवर है, दरीबा कलां और सीताराम बाजार गहनों के लिए प्रचलित है, भागीरथ महल घरेलू सजावटी वस्तुओं के लिए प्रख्यात है, तो किनारी बाजार कपड़ों के लिए नामी जगह है।

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पुरानी दिल्ली बाज़ारपुरानी दिल्ली के बाजारों के बारे में बात करें तो शायद खरीदारी से हमारा मन कभी नहीं भरेगा। यहां के कुछ जाने-माने बाजारों के बारे में तो आपको पता ही होगा। जैसे कि चाँदनी चौक के बारे में तो आपने सुना ही होगा। यहां पर बहुत अच्छा और स्वादिष्ट खाना मिलता है। भोजन प्रेमियों के बीच यह जगह बहुत प्रचलित है। लेकिन चाँदनी चौक का यह क्षेत्र अब बहुत बड़े बाजार में तब्दील हो गया है। आज दिल्ली का यह सबसे चर्चित स्थान खरीदारी के लिए स्वर्ग माना जाता है। तथा भारत के व्यापक हिस्से के लिए यह व्यापार के प्रमुख केंद्र का कार्य भी करता है।

वैसे देखा जाए तो अपने पसंदीदा बाजार तक पहुँचने के लिए पुरानी दिल्ली की इन भीड़ भरी पतली सी गलियों से गुजरते हुए जाना बहुत कठिन है। तो चलिये चाँदनी चौक के कुछ नामी बाजारों में घूम कर आएं, जो दिल्ली के सबसे अच्छे बाजारों में गिने जाते हैं।

खारी बावली – मसालों का सबसे बड़ा बाजार

खारी बावली - पुरानी दिल्ली
खारी बावली – पुरानी दिल्ली

खारी बावली पुरानी दिल्ली का सबसे सुरभित बाजार है, जो हमेशा विविध प्रकार के मसालों की सुगंध से महकता रहता है। यह शायद, दुनिया में मसालों का सबसे बड़ा बाजार है। लेकिन यात्रा और पाक काला के पेशेवरों द्वारा मसालों से भरे-पूरे इस बाजार के साथ पूरा न्याय नहीं हो पाया है। अगर आप इस बाजार में घूमेंगे तो आपको यहां की दुकानों में व्यवस्थित रूप से रखे हुए मसालों के ढेर दिखेंगे। तो दुकानों के बाहर बोरियों में रखी हुई मसालों की सामग्री की वस्तुएं, जैसे लाल मिर्च नज़र आएगी। इन में से जो मसाले थोडे महंगे होते हैं, जैसे केसर, उन्हें छोटे-छोटे बक्सों में रखा जाता है, जिनपर उनकी कीमत लिखी गयी होती है।

यहीं पे पास में ही गड़ोडिया हवेली है, आप चाहें तो वहां जा सकते हैं। इस हवेली की छत से शाहजहांबाद में फैली विरासत देखी जा सकती है। यहां से आप नीचे स्थित खारी बावली का उपर से दिखनेवाला सुंदर सा नज़ारा भी देख सकते हैं। जहां पर मसालों की विविध सामग्री, जैसे हल्दी के टुकडे, लाल मिर्च तथा सामग्री की अन्य वस्तुओं को सुखाते हुए देखा जा सकता है।

खारी बावली फतेहपुरी मस्जिद के ठीक पीछे बसा हुआ है, जिसे ढूंढने में आपको ज्यादा कठिनाई नहीं होती। अगर आपको लगे कि आप रास्ता भटक गए हैं, तो बेझिजक किसी से भी पूछ लीजिये या फिर मसालों की सुगंध की ओर चलते जाइए।

दरीबा कलां – चाँदी की गली

दरीबां कलां - चांदी के गहने
दरीबां कलां – चांदी के गहने

यह महिलाओं की पसंदीदा गली है, खासकर उन महिलाओं की जिन्हें चाँदी के गहने बहुत पसंद है। यहां के छोटे-बड़े सारे दुकान चाँदी की वस्तुओं से भरे हुए हैं, जिनमें से अधिकतर गहने बेचते हुए दिखाई देते हैं। लेकिन इन में कुछ दुकानें ऐसी भी हैं, जो चाँदी के बर्तन और चाँदी की बनी देवी-देवताओं की मूर्तियाँ भी बेचते हैं। ये दुकानें छोटी जरूर लगती हैं पर अगर आप उन्हें कुछ भी दिखाने को कहे तो वह चीज उनके पास जरूर मिलती है। चाँदी के अलावा आपको यहां पर रत्न और जवाहर बेचती हुई दुकानें भी नज़र आएंगी। जिनमें इन कीमती पत्थरों से बनाई गयी मालाएँ बेची जाती हैं, जैसे लापिस लाजुली, कोरल्स, बाघ की आँख और रोज क्वोर्ट्ज। आप इनमें से छोटी बड़ी कोई भी माला ले सकते हैं। बड़े-बड़े चमकीले दुकानों की तुलना में यहां पर इन गहनों की कीमत बहुत कम होती है। यहां पर मोती भी बेचे जाते हैं, लेकिन मेरे खयाल से मोतियों की खरीदारी के लिए हैदराबाद सबसे अच्छी जगह है। इसलिए अगर आपको मोती पसंद है तो मैं आपको हैदराबाद से ही मोती खरीदने की सलाह दूँगी। लेकिन अगर आप चाहें तो यहां से भी अपने पसंदीदा मोतियों की खरीद कर सकते हैं।

दरीबा कलां में आपको हाथों से बनाए गए इत्तरों की दुकानें भी मिलेंगी, जैसे ‘गुलाब सिंह जोहरी माल दुकान’। दरीबा कलां की गली लाल किले से ज्यादा दूर नहीं है। यहां से आप गौरी शंकर मंदिर और सीसगंज गुरुद्वारे के बीच में स्थित एक छोटी सी गली से गुजरकर लाल किले तक पहुँच सकते हैं। अगर आप जामा मस्जिद की ओर से आ रहे हैं, तो यही वह रास्ता है जो जामा मस्जिद के पृष्ठ भाग को चाँदनी चौक से जोड़ता है।

मीना बाजार – जिसके बारे में आपने सुना तो होगा, पर कभी देखा नहीं होगा

पुरानी दिल्ली का मीना बाज़ार
पुरानी दिल्ली का मीना बाज़ार

मीना बाजार मुगल काल का सबसे प्रसिद्ध बाजार है। आज यह नाम कपड़ों के प्रसिद्ध ब्रांड द्वारा अपनाया गया है जो दिल्ली की बड़ी-बड़ी दुकानों में नज़र आता है। इसी नाम से प्रेरित होकर ‘दिल्ली शहर का सारा मीना बाजार लेकर…’ जैसे गाने भी बनवाए गए थे। मुझे लगता है कि शायद यह नाम मीनाकारी काम, जो लाख के कंगनों पर किया जाता था, से लिया गया होगा। इस प्रकार की कारीगरी आप आज भी हैदराबाद और राजस्थान के कुछ हिस्सों में देख सकते हैं। मुझे याद है कि जब हम लाल किले में प्रकाश और ध्वनि का कार्यक्रम देखने गए थे, तो वहां पर इस कार्यक्रम के द्वारा मीना बाजार की ध्वनियों को पुनः निर्मित करने का प्रयास किया गया था, जहां महिलाओं की हंसी के बीच झनझनाती घंटियों और खनकते हुए कंगनों की आवाजें गूँजती हुई सुनाई देती थी।

मीना बाजार के इस गौरवशाली अतीत का एक छोटा सा अंश आज जामा मस्जिद के पीछे देखा जा सकता है। आज भी आप यहां पर रंगीन साड़ियाँ और कपड़े खरीद सकते हैं। समाज का एक छोटा सा भाग आज भी यहां पर अपनी खरीदारी करने आता है। मेरे जैसे यात्रियों के लिए तो यह एक प्रसिद्ध बाजार है, जिसने कभी इससे भी अच्छे दिन जरूर देखे होंगे। मीना बाजार जामा मस्जिद और लाल किले के ठीक बीचो-बीच ही बसा हुआ है।

नई सड़क – किताबों की दुनिया

नयी सड़क - किताबों की दुकानें
नयी सड़क – किताबों की दुकानें

नई सड़क का नयापन सिर्फ उसके नाम तक ही सीमित है। यहां पर आस-पास आपको कुछ भी नया नहीं दिखाई देता। एक जमाने में यह सड़क नर्तकियों के लिए मशहूर हुआ करती थी। अगर आप अपने आस-पास देखे तो, यहां के छज्जे आपको अपने अतीत की दास्तां बयां करते हुए नज़र आएंगे। लेकिन आज इस जगह पर थोक में किताबों की बिक्री होती है। यहां के दुकानदार फुटकर ग्राहकों में ज्यादा रुचि नहीं लेते क्योंकि वे थोक व्यापारियों की ताक में होते हैं। फुटकर ग्राहक उनके व्यस्त से जीवन में किसी बाधा के समान होते हैं। मुझे याद है, जब मैं वहां पहली बार गयी थी तो मुझे किस प्रकार से उनसे निपटना पड़ा था।

नई सड़क ऐसी जगह है, जहां पर विविध विषयों की किताबें उपलब्ध होती हैं। एक पुस्तक प्रेमी होने के नाते इतनी सारी किताबों के पास से गुजरते हुए जाना एक अलग ही अनुभव है। अगर आपको कुछ गिनी-चुनी किताबें, खासकर हिन्दी की किताबें चाहिए हो तो उसके लिए इससे अच्छी जगह आपको नहीं मिलेगी। यहां पर आप स्वयं ही अपनी मनपसंद किताब ढूंढ सकते हैं, जिसके लिए आपको पता होना जरूरी है कि आप क्या चाहते हैं। आज मेरा व्यक्तिगत पुस्तकालय नई सड़क की विलक्षण दुकानों से खरीदी गयी काफी सारी किताबों से सुसज्जित है।

मुझे याद है, एक बार मैं किताबों की किसी दुकान में गयी थी जहां पर आयुर्वेद तथा अन्य औषधि विज्ञानों से संबंधित किताबें बेची जाती थी। सिर्फ एक ही विषय पर इतना सारा साहित्य पाकर मैं हैरान रह गयी थी।

नई सड़क की गली चाँदनी चौक के नगर सभागृह के ठीक सामने ही है। या फिर आप चावडी बाजार तक दिल्ली की मेट्रो ले सकते हैं और वहां से नई सड़क तक पैदल ही जा सकते हैं।

भागीरथ महल – आपके घर का विभूषक

भागीरथ महल के झाड़ फानूस
भागीरथ महल के झाड़ फानूस

जो जगह कभी बेगम समरू का महल हुआ करती थी, आज उसे दो भागों में विभाजित कर, एक को बैंक और दूसरे भाग को दीयों के बाज़ार में तब्दील किया गया है। यह वही जगह है जहां बहादुर शाह जफर को 1857 की क्रांति के बाद बंदी बनाकर रखा गया था। लेकिन आज इस स्थान का बदला हुआ रूप देखकर इसके अतीत की कल्पना करना थोड़ा कठिन है। अब यह महल विरासत भवन बन गया है, जिसमें आपको अनेक प्रकार की दुकानें मिलेंगी और दिन भर ग्राहकों की चहल-पहल भी दिखेगी। इस जगह को अपना नाम सेठ भागीरथ माल से प्राप्त हुआ है, जो इस महल के खरीदार और मालिक थे।

अगर आप अपने घर के नवीकरण के बारे में सोच रहे हैं तो आपको यहां पर जरूर जाना चाहिए। मुझे वहां के लोगों द्वारा बताया गया कि दिवाली के समय यहां पर बहुत भीड़ रहती है। यह सुनकर मैं सोच में पड़ गयी कि इतनी भीड़ भरी जगह पर लोग कैसे खड़े रहते होंगे और अपनी खरीदारी कैसे करते होंगे।

भागीरथ महल चाँदनी चौक के मेट्रो स्टेशन से ज्यादा दूर नहीं है।

सीताराम बाजार – सजीले गहने

हड्डियों से बने गहने - सीताराम बाज़ार
हड्डियों से बने गहने – सीताराम बाज़ार

यह बाजार तुर्कमान दरवाज़े, जो शाहजहांबाद में सुरक्षित बचे कुछ ही प्रवेश द्वारों में से एक है, के पास ही स्थित है। अगर आपको कृत्रिम और सजीले गहने पसंद हो तो यह स्थान आपके लिए एकदम सही है। ये गहने विविध रंगों और आकारों के तराशे हुए मनकों से बनवाए गए हैं। इनमें से कुछ गहने जानवरों की हड्डियों से भी बनवाए गए हैं।

यहां पर मिलनेवाले गहने आप दिल्ली के हाट बाजारों तथा देश में फैले गहनों के अनेक दुकानों में भी देख सकते हैं। फर्क सिर्फ इतना है कि यहां पर आपको इन गहनों के ढेर दिखाई देते हैं जो अस्थ-व्यस्त से जमीन पर पड़े होते हैं या फिर उनका समूह बनाकर उन्हें किसी रस्सी या लटकन से लटकाया जाता है। जबकि बड़ी-बड़ी दुकानों में इन्हें व्यवस्थित रूप से प्रदर्शित किया जाता है। यहां की अव्यवस्था में आपको अपने पसंदीदा गहने ढूंढने के लिए इन सारी वस्तुओं को ध्यान से देखना पड़ता। इनका मूल्य ज़्यादातर निर्धारित ही होती है। लेकिन देखा जाए तो शहर के अन्य दुकानों की तुलना में यहां के दुकानों में ये गहने इतने सस्ते में मिलते हैं कि, आपको मोल-भाव करने की जरूरत ही महसूस नहीं होती।

किनारी बाजार – पुरानी दिल्ली का सबसे रंगीन बाजार

किनारी बाज़ार - पुरानी दिल्ली
किनारी बाज़ार – पुरानी दिल्ली

यह दिल्ली की सबसे रंगीन, चमकीली और जगमगाने वाली गली है। मेरे हिसाब से यह दिल्ली की सबसे प्रज्वलित गली है। यह गली चाँदनी चौक के समानांतर ही है, जिसके एक छोर पर आपको परांठेवाली गली मिलती है। किनारी बाजार वह जगह है जहां पर आपको अपने कपड़ों और घर को सजाने की सारी आवश्यक वस्तुएं उपलब्ध होती हैं। दर्जी, पोशाक डिज़ाइनर, फ़ैशन डिज़ाइनर, जैसे लोगों के लिए यह जगह किसी स्वर्ग से कम नहीं है। आते-जाते हुए यात्रियों के लिए तो यह सिर्फ विविध प्रकार के रंगीन फीतों का ढेर है, जो वे अपनी साड़ियों और दुपट्टे को और भी आकर्षक बनाने हेतु उपयोग कर सकते हैं। अगर महिलाओं को यहां पर अकेले ही छोड़ दिया जाए तो वे यहां के माहौल में इतनी लीन हो जाएंगी कि शायद यहां से बाहर निकलना ही भूल जाएं।

मैं किनारी बाजार में वहां की रंगीनता का आनंद लेने और वहां पर मिलने वाली खुरचन मिठाई खाने जाती हूँ।

चोर बाजार – जहां विक्रेता चोर होते हैं और आप ग्राहक

चोर बाज़ार - पुरानी दिल्ली
चोर बाज़ार – पुरानी दिल्ली

हर बड़े शहर में चोर बाजार या फिर उनका कोई और दूसरा रूप जरूर होता है, जहां पर चोर अपनी लूट का सामान बेचते हैं। पुरानी दिल्ली का यह चोर बाजार जामा मस्जिद के पीछे ही स्थित है। अगर आप इस बाजार में जाए तो आपको अपने आस-पास सिर्फ ऑटो पार्ट्स ही नज़र आएंगे। पुरानी दिल्ली के लोगों का कहना है कि अगर आपकी गाड़ी का कोई भी पार्ट चोरी हो जाए तो आप अगले ही दिन चोर बाजार जाकर उसे खरीदकर वापस ला सकते हैं। बेशक, अगर आपकी किस्मत इसमें आपका थोड़ा सा भी साथ दे तो आपको अपनी वस्तु जरूर मिलेगी।

इन्हीं सारी बातों को ध्यान में रखकर जब आप पुरानी दिल्ली के चोर बाजार में जाते हैं, तो आप अनायास ही वहां की सारी वस्तुओं का निरीक्षण करने लगते हैं, जैसे कि यहां पर पड़ा कोई पार्ट आपकी गाड़ी का भी हो।

यह एक अजीब सा बाजार है, जहां पर गाड़ी प्रेमी मुश्किल से मिलने वाले स्पैर पार्ट्स ढूंढने आते हैं। कभी-कभी जब मैं इस बाजार से गुजरती हूँ तो मैं ऐसे ही वहां के एकाध लड़के से बातचीत करने के लिए ठहरती हूँ ताकि उनके व्यापार की कुछ जानकारी प्राप्त कर सकू। और हर बार उनके पास बताने के लिए कोई न कोई कहानी जरूर होती है। ये कहानियाँ सच्ची हैं या काल्पनिक यह तो वे ही जानते हैं।

चावडी बाजार – निमंत्रण पत्रों की कलाकारी

चावडी बाज़ार - पुरानी दिल्ली
चावडी बाज़ार – पुरानी दिल्ली

यह बाजार शादियों के निमंत्रण पत्र बनावने के लिए बहुत प्रसिद्ध है। यह पूरी गली ही शादी के कार्ड बेचनेवालों की दुकानों से भरी है। यहां पर भी थोक में खरीदारी करनेवाले ग्राहक ही आते हैं। शादियों के समय के ठीक पहले यहां की दुकानों में बैठकर अनेकों परिवार निमंत्रण पत्रों के रंग और प्रकार पर बहस करते हुए नज़र आते हैं। जब भी मैं चावडी बाजार से गुजरती हूँ, एक ही खयाल हमेशा मेरे दिमाग में आता है, कि ऐसे में ये लोग न जाने शादी के कितने सारे निमंत्रण पत्र बेचते होंगे, कि उन्हें अपने लिए पूरे बाजार की ही जरूरत हो।

इससे पहले कि आप सोचे कि मैं शादियों के निमंत्रण पत्रों के बाजार में क्या कर रही हूँ, तो मैं आपको बता दूँ कि यहां पर शादियों के पत्रकों के अतिरिक्त और भी कुछ है जो शायद आपकी जरूरत का हो सकता है। यहां स्टेशनरी की सबसे अच्छी वस्तुएं किफायती मूल्य में उपलब्ध होती हैं। मैं 2011 में दिल्ली से स्थानांतरित हुई थी, लेकिन आज भी मेरे कार्य तालिका पर चावडी बाजार की बहुत सी वस्तुएं हैं।

आप चावडी बाजार की प्राचीन वस्तुओं की दुकानों में भी जा सकते हैं, जहां पर पीतल की बनी पुरानी वस्तुएं बेची जाती हैं।

आप चावडी बाजार के मेट्रो स्टेशन से आसानी से यहां पहुँच सकते हैं।

बल्लीमारान – चमड़े के सामान के लिए मशहूर

चमड़े की दुकानें
चमड़े की दुकानें

बल्लीमारान, कासिम जान की गली में स्थित वह जगह है जहां मिर्ज़ा ग़ालिब रहा करते थे। यहीं पर उन्होंने अपने लिए किराए पे एक हवेली ली थी, जहां पर उन्होंने अपने जीवन के अंतिम दिन गुजारे थे। यह हवेली अब एक संग्रहालय बन गयी है। यह विडंबना की ही बात है, कि जिस हवेली में वे रहा करते थे, उस के बाहर आज जूतों का या चमड़े का बाजार लगता है। यहां पर सड़क के दोनों तरफ जूते बेचनेवाले नज़र आते हैं। इसके अलावा यहां पर ऐनक भी बेचे जाते हैं।

बल्लीमारान फतेहपुरी मस्जिद के पास ही स्थित है।

चाँदनी चौक में इनके अलावा और भी छोटे-बड़े बाजार हैं। मैं कपड़ों के बाजार में नहीं गयी हूँ क्योंकि, वहां पर फुटकर ग्राहकों को ज्यादा भाव नहीं दिया जाता है।

तो अब आप पुरानी दिल्ली के किस बाजार में जाने की सोच रहें हैं?

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आजकल – दिल्ली पे लिखी एक कविता https://inditales.com/hindi/dilli-aajkal-hindi-poem-anuradha-goyal/ https://inditales.com/hindi/dilli-aajkal-hindi-poem-anuradha-goyal/#respond Wed, 04 Jan 2017 08:29:58 +0000 https://inditales.com/hindi/?p=63

आजकल तुम पाओगे मुझे दिल्ली की गलिओं में खाक छानते हुए इधर उधर कूचों में झाँकते हुए सदियों पुराने चबूतरों पे बैठे हुए इस दरगाह से उस मज़ार जाते हुए यहाँ वहाँ बिखरे मक़बरों को ताकते हुए देखते, कल और कल को एक साथ गुज़रते हुए और कुछ नये इतिहासों को बनते हुए कभी किसी […]

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स्वामी श्रध्हानंद मूर्ति - पुरानी दिल्ली

आजकल तुम पाओगे मुझे

दिल्ली की गलिओं में खाक छानते हुए
इधर उधर कूचों में झाँकते हुए
सदियों पुराने चबूतरों पे बैठे हुए

इस दरगाह से उस मज़ार जाते हुए
यहाँ वहाँ बिखरे मक़बरों को ताकते हुए
देखते, कल और कल को एक साथ गुज़रते हुए
और कुछ नये इतिहासों को बनते हुए

कभी किसी कोने में बैठे देखा
बच्चों को बेफ़िक्र खेलते हुए
सुबह सवेरे बाज़ारों को जागते हुए
क़िलो पे सूरज को चढ़ते और ढलते हुए

फूलवलों को खुश्बू हार में पिरोते हुए
हलवाई को केसरी जलेबी तल्ते हुए
और फिर फिरनी से मक्खी उड़ाते हुए
फ़ुर्सत में चाय की चुस्कियाँ लेते हुए

देखा पुजारी को कैमरे की तरफ मुस्काते हुए
एक डॉक्टर को अनगिनत पक्षियों को पालते हुए
क़व्वाल की नज़र को अगली ज़ेब तलाशते हुए
आम आदमी को जीवन से मृत्यु की और जाते हुए

देखा कुछ लोगों को रुक रुक कर भागते हुए
तो कुछ को भागते भागते थककर रुकते हुए
कभी एक दूसरे से टकराते हुए
कभी एक दूरसे को संभालते हुए

गिरते लुढ़कते दुनिया को चलते हुए
बोझ ढोते फिर भी हंसते हुए
थॅंक कर बैठते और फिर उठते हुए
शोर गुल के बीच खुद से बतियाते हुए

मैने खुद को देखा इतिहास पढ़ते हुए
खंडरों में धरोहर ढूँढते हुए
कल की कड़ी से आज का छोर जोड़ते हुए
इस शहर को समझने की कोशिश करते हुए

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