इंडोनेशिया Archives - Inditales https://inditales.com/hindi/category/विश्व-यात्रा/इंडोनेशिया/ श्रेष्ठ यात्रा ब्लॉग Sat, 08 Apr 2023 07:39:21 +0000 en-US hourly 1 https://wordpress.org/?v=6.7.2 इंडोनेशिया के जावा द्वीप पर पवित्र मेरापी पर्वत का भ्रमण https://inditales.com/hindi/merapi-parvat-jwalamukhi-java-indonesia/ https://inditales.com/hindi/merapi-parvat-jwalamukhi-java-indonesia/#respond Wed, 24 May 2023 02:30:03 +0000 https://inditales.com/hindi/?p=3076

मेरे इंडोनेशिया भ्रमण के प्रथम दिवस ही मैंने मेरापी पर्वत का दर्शन किया था। हम जावा द्वीप के योग्यकर्ता नगर में थे। सर्वप्रथम धान के खेतों में पदभ्रमण करते हमने आनंद से भरा दिन का समय व्यतीत किया था।  इसके पश्चात हम इस ज्वालामुखी पर्वत के दर्शन के लिए चल दिए। मेरापी पर्वत एवं उसके […]

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मेरे इंडोनेशिया भ्रमण के प्रथम दिवस ही मैंने मेरापी पर्वत का दर्शन किया था। हम जावा द्वीप के योग्यकर्ता नगर में थे। सर्वप्रथम धान के खेतों में पदभ्रमण करते हमने आनंद से भरा दिन का समय व्यतीत किया था।  इसके पश्चात हम इस ज्वालामुखी पर्वत के दर्शन के लिए चल दिए।

मेरापी पर्वत एवं उसके ज्वालामुखी विस्फोट

मेरापी का शाब्दिक अर्थ है, अग्नि पर्वत। वास्तव में एक यह ज्वालामुखी है जो समय समय पर अग्नि के साथ लावा उगलता है तथा चारों ओर ज्वालामुखी की राख बिखेरता रहता है। यह देखने में एक भयंकर आपदा प्रतीत होता है किन्तु यह जीवनदायी भी होता है। ज्वालामुखी द्वारा जो लावा एवं राख धरती के गर्भ से बाहर आते हैं, वे अपने साथ विविध खनिज पदार्थों का भण्डार भी लाते हैं तथा पर्वत के चारों ओर की भूमि को सर्वाधिक उर्वरित भूमि में परिवर्तित कर देते हैं। इसीलिए इसमें आश्चर्य नहीं है कि यह क्षेत्र जावा द्वीप का सर्वाधिक सघन जनसंख्या वाला क्षेत्र है।

मेरापी पर्वत ज्वालामुखी
मेरापी पर्वत ज्वालामुखी

समुद्र सतह से २९११ मीटर ऊँचा मेरापी पर्वत इंडोनेशिया के १२९ सक्रिय ज्वालामुखियों में से एक है। यह ज्वालामुखी नियमित रूप से फटता रहता है। इसके गत कुछ उत्सर्जनों की चर्चा की जाए तो यह ज्वालामुखी १९९४, २००६, २०१० तथा २०१३ में फटा था जिसमें २०१० में हुआ उत्सर्जन अति विकराल व भयावह था। इस विस्फोट में अनेकों निरीह जीवों ने अपने प्राण गँवा दिए थे जिनमें वे भी सम्मिलित थे जो इस ज्वालामुखी से बचने के लिए तलघरों में निवास कर रहे थे। इस भीषण तांडव के चलते लगभग दो मास तक इस क्षेत्र में गंभीर चेतावनी का पालन किया गया था।

मेरापी पर्वत में ११वीं सदी के आरंभ में हुए ज्वालामुखी विस्फोट को ही जावा के प्राचीन माताराम साम्राज्य के आकस्मिक लोप का कारण माना जाता है। यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल बोरोबुदूर मंदिर एवं प्रमबनन मंदिर भी भिन्न भिन्न काल में ज्वालामुखी की राख के नीचे दब गए थे।

और पढ़ें: बोरोबुदुर बौद्ध मंदिर – इंडोनेशिया के जावा द्वीप की ऐतिहासिक सम्पदा

ज्वालामुखी के विषय में लोगों की सामान्य धारणा के विरुद्ध, जावा के निवासियों का मानना है कि मेरापी पर्वत उनका संरक्षक व रक्षक देवता है। उनकी मान्यता है कि उसके आशीर्वाद से ही वे एक दूसरे के साथ सौहार्दपूर्वक जीवन व्यतीत करते हैं। वे यह भी मानते हैं कि ज्वालामुखी फटने से पूर्व मेरापी पर्वत उन्हें पूर्व सूचना प्रदान करेगा तथा उन्हें स्पष्ट संकेत देगा कि अब उन्हें वह स्थान छोड़कर अन्यत्र जाना होगा।

मेरापी पर्वत से संबंधित किवदंतियाँ

मेरापी शब्द की व्युत्पत्ति दो शब्दों के संयोग से हुई है, मेरु व अपि। ये दोनों संस्कृत भाषा के शब्द हैं। जैसा कि आप जानते हैं, मेरु शब्द का अर्थ है, पर्वत। वस्तुतः यह उस मेरु पर्वत की ओर संकेत करता है जिसका अनेक भारतीय ग्रंथों में उल्लेख किया गया है। अपि का अर्थ है, अग्नि। इस पर्वत का नाम अत्यंत योग्य प्रतीत होता है।

पावन मेरापी पर्वत - जावा द्वीप इंडोनेशिया
पावन मेरापी पर्वत – जावा द्वीप इंडोनेशिया

ऐसा कहा जाता है कि यह पर्वत उत्तर-दक्षिण अक्ष पर स्थित है जहाँ उत्तरी छोर पर मेरापी पर्वत है तथा दक्षिणी छोर पर हिन्द महासागर है। यह काल्पनिक रेखा मेरापी पर्वत से होते हुए जाती है जिसे देवताओं का निवासस्थान कहा जाता है। वहाँ से यह रेखा क्रोटोन जाती है जो राजा का महल है। तत्पश्चात वह टुगु योग्य(Jogja) से होकर जाती है जहाँ सामान्य जनता निवास करती है। अंततः वह समुद्र से जा मिलती है जो प्रकृति की ओर संकेत करती है। दार्शनिक रूप से विश्लेषण किया जाए तो यह देवताओं को राजा से जोड़ती है, राजा को प्रजा से तथा प्रजा को प्रकृति से जोड़ती है। यह एक पवित्र अनुगमन माना जाता है।

ऐसा कहा जाता है कि हॉलैंड वासियों(डच) ने इस पवित्र भौगोलिक मान्यता को खंडित करने के उद्देश्य से इस अनुगमन मार्ग को काटते हुए यहाँ एक रेल मार्ग का निर्माण किया था। किन्तु इन मान्यताओं की जड़ें अत्यंत गहन व सुदृढ़ हैं। इसीलिए ये अब भी बनी हुई हैं।

और पढ़ें: इंडोनेशिया का प्रमबनन मंदिर – कहानियां सुनाते खण्डहर

जावा निवासियों की मान्यता है कि जब देवताओं ने पृथ्वी की रचना की थी तब जमुर्दिपो पर्वत (जंबुद्वीप?) का जावा द्वीप के पश्चिमी छोर पर स्थित होने के कारण द्वीप संतुलित नहीं था। उसका संतुलन बनाए रखने के लिए उन्होंने जमुर्दिपो पर्वत को जावा द्वीप के मध्य में खिसकने का आदेश दिया जहाँ दो पौराणिक पात्र, अस्त्रकार एम्पू राम व एम्पू पेर्मादी अपने राज्य के साथ पहले से ही निवास कर रहे थे। देवताओं द्वारा चेतावनी पाने के पश्चात भी दोनों ने उस स्थान का समर्पण नहीं किया। क्रोध में देवताओं ने उन के ऊपर ही जमुर्दिपो पर्वत को स्थापित कर दिया।

अतः लोगों की मान्यता है कि एम्पू राम व एम्पू पेर्मादी अपने राज्य के साथ इस ज्वालामुखी पर्वत के नीचे निवास करते हैं तथा अग्नि उगलते रहते हैं। एक अन्य किवदंती के अनुसार एम्पू राम व एम्पू पेर्मादी की स्मृति में जमुर्दिपो पर्वत का ही नाम परिवर्तित कर मेरापी पर्वत रख दिया गया है जिसका अर्थ होता है, राम एवं पेर्मादी की अग्नि।

जैसा कि मैंने पूर्व में बताया था कि जावा निवासी मेरापी पर्वत को उनका संरक्षक मानते हैं तथा राम एवं पेर्मादी को अपना संरक्षक देवता। इसी मान्यता के अंतर्गत वे मेरापी पर्वत पर चढ़ावा चढ़ाते हैं। योग्यकर्ता के राजा के राज्याभिषेक दिवस की वर्षगाँठ दिवस पर विशेष चढ़ावे चढ़ाए जाते हैं। इन चढ़ावों को राजा के महल से मेरापी पर्वत तक ले जाया जाता है। साथ ही समुद्र को भी चढ़ावा चढ़ाया जाता है। इस प्रकार वे अग्नि तत्व एवं जल तत्व दोनों को प्रसन्न करने का प्रयास करते हैं।

सीसा हर्तकु – स्मृतियों का संग्रहालय

सीसा हर्तकु का शाब्दित अर्थ है, ‘मेरी शेष संपत्ति’ संग्रहालय। यह एक निवासगृह है जो अब स्मृतियों का एक संग्रहालय है। वाहन द्वारा इस संग्रहालय तक पहुँचने के लिए हमने अनेक गाँवों को पार किया जिनका संबंध मुख्य मार्ग से कटा हुआ था। वहाँ जाती सड़कों पर लावा निर्मित शिलाखंड बिखरे हुए थे।

सीसा हर्तकु – स्मृतियों का संग्रहालय
सीसा हर्तकु – स्मृतियों का संग्रहालय

हमने सीसा हर्तकु निवासगृह के भीतर प्रवेश किया जो परित्यक्त सा प्रतीत होता है। इसके भीतर हमने पशुओं के कुछ कंकाल एवं कुछ जीवाश्म देखे। हम जैसे जैसे गृह के भीतर विचरण करने लगे, मुझे ऐसा आभास हो रहा था मानो यह निवासगृह किसी समय अग्नि की चपेट में रहा हो। गृह में रखी दातौन, लौह संदूक, बच्चों की सायकलें जैसे दैनन्दिनी प्रयोग की प्रत्येक वस्तु उस आघात व कटु अनुभव की गाथा कह रही थी जब मेरापी पर्वत अग्नि उगलने लगा था। प्रत्येक वस्तु अपने स्थान पर स्थित थी किन्तु वो अपने पूर्ववत मूल स्थिति में नहीं थी। प्रत्येक वस्तु का वही भाग शेष था जो अग्नि परीक्षा में सफल हुआ था। वहाँ कुछ चित्र थे जिनमें पुरातन स्मृतिओं को पुनर्रचित कर दर्शाया गया था।

ज्वालामुखी से रुकी घडी
ज्वालामुखी से रुकी घडी

वहाँ का सम्पूर्ण दृश्य ऐसा प्रतीत हो रहा था मानो वह स्थान ५ नवम्बर २०१०, ५ बज कर १५ मिनट से अपनी अवस्थिति में ज्यों का त्यों जम गया है। आप सोच रहे होंगे कि मैंने यह समय किस आधार पर लिखा है! वहाँ की एक भित्ति पर एक घड़ी है जो ज्वालामुखी की तीव्र ऊष्मा में उसी समय पर स्थिर हो गयी है।

हम सब अत्यंत क्लांत मनःस्थिति में उस आवासगृह से बाहर आये। हम सब की मानसिक स्थिति दुखद थी। साथ ही हम सब को प्रकृति की शक्ति का भी आभास हो रहा था जो एक क्षण में हमारा अस्तित्व समाप्त कर सकती है।

बंकर कालियाडेम

यह एक तलघर है जिसका प्रयोग ज्वालामुखी के प्रकोप से बचने के लिए किया जाता है। किन्तु यह भी सत्य है कि सन् २०१० में फूटे ज्वालामुखी में इस तलघर में छुपे दो नागरिकों की भी मृत्यु हो गयी थी।

बंकर कालियाडेम  
बंकर कालियाडेम  

यदि आकाश निर्मल हो तो शुण्डाकार मेरापी पर्वत को यहाँ से देखा जा सकता है। अन्यथा अधिकांशतः आप पर्वत से निकलते धुंए को अवश्य सकते हैं। पर्यटन परिदर्शक आपको सूर्योदय दिखाने के आमिष पर यहाँ आने के लिए कह सकता है। किन्तु सूर्य इस पर्वत के ऊपर से नहीं उगता है।

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मैं जिस दिन वहाँ पहुँची थी, वर्षा हो रही थी। मुझे वहाँ केवल धूसर रंग की भिन्न भिन्न गहनता भिन्न भिन्न हरे रंगों के साथ खेलती हुई दिखाई दीं। वहाँ सड़क के एक ओर स्थित चाय की दुकान पर हमने चाय पी थी जिसके लिए हमने ५,००० इंडोनेशिया रुपिया भुगतान किया था। आश्चर्य चकित हो गए? भारतीय मुद्रा में यह केवल २५ रुपये होते हैं।

मार्ग में आप एक विशाल चट्टान देखेंगे जिसे बाटू एलियन कहते हैं। इसका अर्थ है, परग्रह मानव चट्टान। चट्टान का यह टुकड़ा सन् २०१० में पर्वत से टूट कर यहाँ गिर गया था। यह विशाल मानव का मुख सा प्रतीत होता है।

काली कुनिंग नदी में रोमांचक जीप सवारी

काली कुनिंग नदी में जीप सवारी
काली कुनिंग नदी में जीप सवारी

जीप भ्रमण करते हुए हम इसके एक रोमांचक पड़ाव पर पहुँचे जहाँ जीप को काली कुनिंग नदी के बहते हुए जल में चलाया जाता है। यह पर्यटकों को रोमांच प्रदान करने के उद्देश्य से किया जाता है। चूँकि हमारा विशाल समूह था तथा हमारे पास अनेक जीपें थीं, हमें इस रोमांच में अत्यधिक आनंद आया। सभी नदी के उबड़-खाबड़ तल पर जल को काटते हुए हिचकोले खाते हुए जा रहे थे। हम व हमारी मित्र मंडली रोमांचित हो आनंद से कोलाहल करने लगे थे।

पर्वतारोहण

समय समय पर फूटता तथा धुंआ, लावा व राख उगलता मेरापी पर्वत सदा रोमांच प्रेमियों को अपनी ओर आकर्षित करता रहा है। यहाँ अनेक पर्यटन आयोजक हैं जो पर्वत शिखर तक पर्वतारोहण का आयोजन करते हैं। यह पर्वतारोहण दिवस तथा रात्रि दोनों समय आयोजित किया जाता है। रात्रि पर्वतारोहण सूर्योदय पर समाप्त होता है। मेरा अनुमान है कि उस समय परिदृश्य अत्यंत मनोरम होता होगा। आप आधार शिविर तक भी पदभ्रमण के लिए जा सकते हैं।

हमने एक लावा भ्रमण किया था जिसके अंतर्गत हमने संग्रहालय दर्शन, बंकर दर्शन तथा नदी में रोमांचक जीप सवारी की थी। इन सब के लिए आधा दिवस पर्याप्त है। दोपहर के भोजन के उपरांत हम वहाँ से योग्यकर्ता के लिए निकले तथा रात्रि भोजन से पूर्व वहाँ पहुँच गए।

अनुवाद: मधुमिता ताम्हणे

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बाली इंडोनेशिया के जल मंदिर – तमन अयुन, तीर्थ एम्पुल https://inditales.com/hindi/water-temples-bali-taman-ayun-tirtha-empul/ https://inditales.com/hindi/water-temples-bali-taman-ayun-tirtha-empul/#comments Wed, 04 Apr 2018 02:30:12 +0000 https://inditales.com/hindi/?p=714

इंडोनेशिया का बाली द्वीप उसकी सुन्दरता, शांत वातावरण एवं सुरम्य समुद्रतटों से जाना जाता है। आप में से जिसने भी बाली भ्रमण किया है, उन्होंने इसका अनुभव अवश्य लिया होगा। वो सुखद स्मृतियों अब भी आपके मन को में विचरण कराती होंगी। किन्तु आपका ध्यान धान के सीढ़ीदार खेतों की ओर कदाचित नहीं गया होगा। […]

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इंडोनेशिया के जल मंदिर - प्रवेश द्वार
इंडोनेशिया के जल मंदिर – प्रवेश द्वार

इंडोनेशिया का बाली द्वीप उसकी सुन्दरता, शांत वातावरण एवं सुरम्य समुद्रतटों से जाना जाता है। आप में से जिसने भी बाली भ्रमण किया है, उन्होंने इसका अनुभव अवश्य लिया होगा। वो सुखद स्मृतियों अब भी आपके मन को में विचरण कराती होंगी। किन्तु आपका ध्यान धान के सीढ़ीदार खेतों की ओर कदाचित नहीं गया होगा। मैं आपको बताना चाहूंगी कि ये धान के खेत एवं इंडोनेशिया के जल मंदिर बाली के सांस्कृतिक परिदृश्य का अहम् भाग हैं। इन्ही परिदृश्यों को यूनेस्को ने विश्व विरासत स्थल की मान्यता प्रदान की है।

यूँ तो बाली दर्शन के पीछे मेरे कई हेतु थे। उनमें सर्वाधिक महत्वपूर्ण आशय था यूनेस्को विश्व विरासती स्थलों के दर्शन करना। बाली को अब तक आपने प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर पर्यटन स्थल के रूप में ही जाना होगा। तथापि बाली का सांस्कृतिक धरोहर रूप आप को अचंभित कर देगा। यूनेस्को का वेबस्थल इसे सांस्कृतिक परिदृश्य मानते हुए, यहाँ के धान की खेती हेतु सुबक सिंचाई व्यवस्था को विरासती स्थल घोषित करता है। इस वेबस्थल पर बाली का केवल एक ही मंदिर दर्शाया गया है। तमन अयून नामक इस राजमंदिर के सिवाय कोई ओर मंदिर का उल्लेख यहाँ नहीं किया गया है। तथापि बाली के तीर्थ एम्पुल नामक जलमंदिर के दर्शन के समय, इसके भी यूनेस्को द्वारा घोषित विरासती स्थल होने के विषय में जानकारी प्राप्त हुई थी। बाली के इन विरासती स्थलों का मूल तत्व यहाँ की जल प्रबंधन प्रणाली है। अतः मैं बाली इंडोनेशिया के उन सब जलमंदिरों का यहाँ उल्लेख करना चाहूंगी जो मेरे अनुमान से बाली के सांस्कृतिक परिदृश्य का भाग होते हुए, विश्व विरासती स्थल के अंतर्गत आते हैं।

बाली के हिन्दू मंदिर

तीर्थ एम्पुल जल मंदिर में भव्य पेड़ के नीचे मंदिर
तीर्थ एम्पुल जल मंदिर में भव्य पेड़ के नीचे मंदिर

बाली हजारों हिन्दू मंदिरों का एक हिन्दू द्वीप है। अतः भारतीय हिन्दुओं का बाली से एक विशेष भावनात्मक रिश्ता है। आपको भारत से अपेक्षाकृत कहीं अधिक हिन्दू देवी-देवताओं की मूर्तियाँ बाली के सार्वजनिक स्थलों में देखने को मिलेंगी। बाली के सडकों के नाम भी भारतीय मूल के हैं। इनमें कई नाम पौराणिक कथाओं के प्रसिद्ध पात्रों के नामों से व्युत्पन्न हैं, जैसे भीम, हनुमान इत्यादि। यहाँ प्रदर्शित रामायण देख आप अचंभित रह जायेंगे। मुझे आज भी आश्चर्य होता है कि कैसे वे कलाकार बिना वाद्यों के भी संगीत उत्पन्न कर रहे थे।

किन्तु इन सब का एक दूसरा पहलू भी है। बाली के मंदिर भारत के अधिकाँश मंदिरों से भिन्न हैं। बाली के मंदिरों में देवी-देवताओं की प्रतिमाएं नहीं होती। अपितु वहां स्थित मंच पर ही चढ़ावा अर्पित किया जाता है। अधिकतर मंदिरों में केवल बाली के हिन्दुओं को ही प्रवेश की अनुमति है। अन्य हिन्दुओं को गर्भगृहो में प्रवेश की अनुमति नहीं है। गैर-हिन्दुओं का प्रवेश पूर्णतः निषिद्ध है। हालांकि मैंने उन्हें अपने हिन्दू होने का विश्वास दिलाया, तब भी मुझे कुछ मंदिरों में प्रवेश नहीं दिया गया। प्रवेश की इच्छा में मैंने उनके पारंपरिक वस्त्र अर्थात् सेरोंग एवं कमरपट्टा भी धारण किया। किन्तु ज्यादातर मंदिरों के भीतर मुझे प्रवेश नहीं मिला। कहीं प्रवेश मिला भी तो मुझे संदेह से देखा गया। इन सब के बावजूद, बाली में मैंने जितना कुछ भी इन मंदिरों के विषय में देखा एवं जाना, वह इतना समृद्ध था कि प्रवेश निषेध का मुझे विशेष खेद नहीं है।

सुबक सिंचाई व्यवस्था- बाली की पारंपरिक जल प्रबंधन प्रणाली

बाली - इंडोनेशिया के जल मंदिर
बाली – इंडोनेशिया के जल मंदिर

बाली की पारंपरिक जल प्रबंधन प्रणाली त्रि-हित-करण है। यह शब्द जो संस्कृत के तीन शब्दों से बना है, बाली की सुबक सिंचाई व्यवस्था का आधार है। त्रि अर्थात् तीन, हित अर्थात कल्याण एवं करण अर्थात करना। यह वह सिद्धांत है जो तीनों का कल्याण करता है, आप, आपका पासपड़ोस एवं पर्यावरण। इसका मूल सिद्धांत है जल पर सबका सामान अधिकार। अर्थात् आप व आपके खेतों को, बिना पर्यावरण को क्षति पहुंचाए, जल की आपूर्ति करना। यह व्यवस्था प्राकृतिक संसाधनों का न्यायसंगत वितरण सुनिश्चित करती है। जल एक महत्वपूर्ण प्राकृतिक संसाधन होने के कारण, सम्पूर्ण सम्प्रदाय इस व्यवस्था से लाभान्वित होता है।

बाली की सुबक सिंचाई प्रणाली में धान के खेतों की विशेष व्यवस्था है, क्योंकि धान के खेतों को भरपूर जल की आवश्यकता होती है।

सुबक व्यवस्था का उल्लंघन करने वाले नागरिकों की मंदिर में सुनवाई होती है। जनकल्याण एवं पर्यावरण संरक्षण के बड़े उद्देश्य की प्राप्ति हेतु यह एक सटीक सामाजिक नियंत्रण व्यवस्था है। सुबक जल सिंचाई प्रणाली के विषय में आप बाली के इस वेबस्थल से जानकारी प्राप्त कर सकते हैं। आप इस अत्यंत सु-रचित प्रणाली की प्रशंसा किये बिना नहीं रहेंगे। मैंने जाना कि सुबक केवल एक सम्प्रदाय की व्यवस्था नहीं है। अपितु इसके कई सामाजिक एवं सांस्कृतिक आयाम हैं। सारे किसान उर्वरता एवं प्रचुरता हेतु मिलजुलकर देवी से प्रार्थना करते हैं

सुबक व्यवस्था लिए इंडोनेशिया के जल मंदिर

इंडोनेशिया के जल मंदिर गुआ गजः की पुष्कर्णी
इंडोनेशिया के जल मंदिर गुआ गजः की पुष्कर्णी

प्रत्येक सुबक प्रणाली व्यवस्था के साथ एक जल मंदिर जुड़ा हुआ है। यदि आप चाहें तो बाली संग्रहालय में आपको सुबक व्यवस्था के कार्यप्रणाली की आवश्यक जानकारी प्राप्त हो सकती है।

सुबक व्यवस्था के अंतर्गत जंगल, धान के वेदिका खेत, नहरें एवं अन्य जलपरिवहन साधन, मंदिर इत्यादि आते हैं। बाली में इस तरह के हजार से अधिक सुबक व्यवस्थाएं हैं। प्रत्येक सुबक के अंतर्गत ५० से ४०० किसानों का समावेश हो सकता है।
यह सुबक व्यवस्था यूनेस्को द्वारा घोषित विश्व विरासती धरोहर है। इसके अंतर्गत आते हैं-
• बतूर झील के किनारे स्थित पूरा उलुन दानु बतूर – इसे सम्पूर्ण बाली के जल का मूल स्त्रोत माना जाता है।
• पाकेरीसन जलोत्सारण क्षेत्र का सुबक परिदृश्य – यह बाली की सर्वाधिक प्राचीन सिंचाई प्रणाली है।
• चतुर अँग बातुरकारु का सुबक परिदृश्य- १० वीं शताब्दी के अभिलेखों में इस सुबक प्रणाली का उल्लेख पाया गया है।
• पुरा तमन अयुन – राज परिवार का मंदिर जहां विशालतम सुबक प्रणाली स्थापित है।

तथापि मेरे तीर्थ एम्पुल के दर्शन के समय मैंने वहां भी यूनेस्को के अभिलेख प्रदर्शित देखे जो इंडोनेशिया के जल मंदिर हैं ।
इस संक्षिप्त प्रस्तावना के उपरांत आईये हम बाली के उन जल मंदिरों की चर्चा करें जो बाली के संस्कृति समृद्ध परिदृश्य का महत्वपूर्ण अंग है।

पुरा तमन अयुन – बाली इंडोनेशिया का विशालतम जल मंदिर

तमन अयुन - बाली इंडोनेशिया के जल मंदिर
तमन अयुन – बाली इंडोनेशिया के जल मंदिर

पुरा तमन अयून बाली का राजवंशी मंदिर है। एक बड़े क्षेत्र में स्थापित इस मंदिर के सुन्दर व्यापक बगीचे एवं कमल ताल इसका द्योतक है।

हरे भरे उपवन - पुरा तमन अयुन - बलि इंडोनेशिया
हरे भरे उपवन – पुरा तमन अयुन – बलि इंडोनेशिया

एक सुरम्य ताल को मध्य से द्विभाजित करती पगडंडी पर मैं पहुंची। यहाँ मेरी भेंट हुई दो संत्रियों से जिन्होंने अपने कानों में ताजे पुष्प धारण किये हुए थे। मंदिर का प्रवेशद्वार ठेठ बाली पद्धति से निर्मित था। इस प्रवेशद्वार से होते हुए मैं एक विस्तृत बगीचे तक पहुंची जिसके बीचोंबीच एक छोटा चौकोर कुंड बना था। इसके बीचोंबीच अप्रतिम कलाकृति से सज्ज एक फव्वारा बनाया गया था। बगीचे के एक कोने में प्यारा सा छत्र बना हुआ था। बगीचे का रखरखाव इस मंदिर की सुन्दरता को चार चाँद लगा रहा था। तत्पश्चात पगडंडी मुझे कुछ सीड़ियों तक ले गयी जो मुझे मंदिर तक पहुंचा रही थीं। मंदिर चारदीवारी के भीतर स्थापित था। मंदिर परिसर के एक कोने में मुझे एक दोहरी छत का शिखर दृष्टिगोचर हुआ।

पत्थर में उत्कीर्ण कहानियां - इंडोनेशिया के जल मंदिर
पत्थर में उत्कीर्ण कहानियां – इंडोनेशिया के जल मंदिर

सीढ़ियाँ चढ़ते ही हमारे सम्मुख एक ऊंचा मंदिर प्रस्तुत हो गया। यहाँ के मंदिरों की एक विशेषता जो मेरे ध्यान में आई, चाहे सीड़ियाँ हों या प्रवेशद्वार, दोनों ओर द्वारपाल प्रतिमाएं अवश्य स्थापित होती हैं। मंदिर के भीतर प्रवेश की अनुमति नहीं है। तथापि आप मंदिर की परिक्रमा कर इसकी उत्कृष्ट कलाकृति को अवश्य निहार सकते हैं।

मुख्य प्रवेशद्वार के पृष्ठ भाग पर स्थित पगडंडी के दोनों ओर अलंकृत कटघरा बनाया गया था जिसका ऊपरी भाग सर्प के आकार का बनाया गया था। कटघरे की भित्त के ऊपर एक साधू की उभरी हुई नक्काशी की गयी थी। इसके एक ओर वाद्य बजाता एक पुरुष एवं दूसरी ओर पर्णसमूह के मध्य बैठी एक स्त्री की नक्काशी की गयी थी।

मेरु – इंडोनेशिया के जल मंदिर

मेरु - इंडोनेशिया के जल मंदिर
मेरु – इंडोनेशिया के जल मंदिर

तमन अयुन मंदिर परिसर में चौकोर मंचों पर कई ऊंची संरचनाएं निर्मित थीं। शिखर सदृश प्रत्येक संरचना में घटते आकार की कई छत्रियों की परतें थीं। मुख्य मंदिर के चारों ओर जल से भरी खंदकें थीं। कदाचित इसीलिए इसे जल मंदिर कहा जाता है।

मंदिर में चढ़ावा अर्पित करने हेतु मंच बने हुए थे। कुछ छोटे मंचों पर दिव्य मूर्तियाँ भी रखी हुई थीं। सुरेख ढंग से बनी फूस की तिरछी छतें इन मंचों को ढांके हुवें थीं। प्रत्येक छत पर वज्र का प्रतिरूप स्थापित था। मंच के चारों ओर स्तंभों पर भी दिव्य प्रतिमाएं स्थापित थीं।

मंदिर में मैंने कई अन्य अलौकिक प्रतिमाएं देखीं भाषा के बंधनों के रहते जिनके ना तो मुझे नाम ज्ञात हुए ना ही इनकी दंतकथाओं की पृष्ठभूमि। कई प्रतिमाएं पंख धारण किये हुए थीं एवं उन पर प्रचुर मात्र में आभूषण भी उत्कीर्णित थे। यदि आप के पास इनके विषय में कोई जानकारी हो तो मैं अवश्य जानना चाहूंगी।

मंडप – इंडोनेशिया के जल मंदिर

जल से घिरा पुरा तमन अयुन मंदिर - बलि - इंडोनेशिया
जल से घिरा पुरा तमन अयुन मंदिर – बलि – इंडोनेशिया

मुख्य मंदिर के बाहर एक मंडप था जिसके चारों ओर स्तंभ स्थापित थे। इन स्तंभों पर भी कई दिव्य प्रतिमाएं उत्कीर्णित थीं। इनमें मैं केवल एक प्रतिमा पहचान पाई जो मेरे अनुमान से वीणा धारी सरस्वती माँ की थी। अन्य प्रतिमाओं के विषय में मुझे जानकारी प्राप्त नहीं हो पाई। वे अब भी मेरे लिए रहस्य है।

एक अन्य मंडप में मुर्गों की लड़ाई का दृश्य नक्काशा हुआ था जिसके दोनों ओर घोड़े उत्कीर्णित थे।

एक कोने में स्थित मंच पर मुझे उत्तेजित उग्र दिव्यात्माओं के चित्र दृष्टिगोचर हुए। समीप उपस्थित बाली वासियों से भाषा बंधनों के कारण इन प्रतिमाओं के विषय में आधिक जानकारी प्राप्त नहीं हो पाई।

पुरा तमन अयुन में देवी देवताओं की प्रतिमाएं
पुरा तमन अयुन में देवी देवताओं की प्रतिमाएं

पुरा तमन अयुन मंदिर के इतिहास की जो जानकारी मैंने दी उसमें बढ़ोतरी करते हुए आपको बताना चाहती हूँ कि यह मंदिर उस मेंग्वाई राजघराने का मंदिर है जिसने १९ वीं सदी के अंत तक शासन किया था। इसका अर्थ है कि बाली में सुबक जलप्रणाली १९ वीं सदी तक उपयोग में लाया जाता रहा था। यूँ तो इस मंदिर की स्थापना १७ वीं शताब्दी में की गयी थी, तथापि २० वीं शताब्दी में इसका पुनरुद्धार किया गया है।

पुरा तमन अयुन मंदिर पर्याप्त रूप से विशाल था। यद्यपि मैंने मंदिर के आतंरिक भागों का अवलोकन नहीं किया था, तथापि पूरा एक घंटा मंदिर के बाह्य भागों के अवलोकन में ही व्यतीत हो गया। मेरी यह अभिलाषा है कि यहाँ परिदर्शक सहित दर्शन की व्यवस्था का आरम्भ हो। कम से कम एक फलक ही स्थापित किया जाय जो इस मंदिर के विषय में, विशेषतः यहाँ के जल प्रबंधन व्यवस्था के विषय में विस्तारपूर्वक जानकारी प्रदान करे।

तीर्थ एम्पुल – बाली का सर्वाधिक सक्रिय जल मंदिर

पुरा तीर्थ एम्पुल में पवोत्र स्नान करते हुए श्रद्धालु - बाली इंडोनेशिया
पुरा तीर्थ एम्पुल में पवोत्र स्नान करते हुए श्रद्धालु – बाली इंडोनेशिया

तीर्थ एम्पुल बाली का व्यस्ततम एवं सर्वाधिक सक्रिय मंदिर है। इसके विशाल परिसर के भीतर देखने एव् समझने हेतु बहुत कुछ है।

इसके प्रवेशद्वार पर ही एक विशाल वृक्ष था। इसके चारों ओर बने मंच पर चढ़ावा अर्पित कर आराधना की जाती है। आप को पुनः स्मरण करा दूँ, यदि आप बाली के हिन्दू नहीं हैं तो आप इस मंच पर नहीं चढ़ सकते। आप केवल मंच के चारों ओर परिक्रमा कर सकते हैं। केवल बाली के हिन्दुओं को ही इसकी आराधना करने की अनुमति है।

तीर्थ एम्पुल का बाली भाषा में शाब्दिक अर्थ है पवित्र स्त्रोत। १० वीं शताब्दी में निर्मित यह मंदिर एक जल स्त्रोत के चारों ओर स्थापित है। यह जल स्त्रोत पाकेरिसन नदी का उद्गम स्त्रोत है। इसी स्त्रोत के नाम पर ही इस मंदिर का नाम तीर्थ एम्पुल रखा गया है।

पुरा तीर्थ एम्पुल के बाहर परिवार प्रतिमाएं - इंडोनेशिया के जल मंदिर
पुरा तीर्थ एम्पुल के बाहर परिवार प्रतिमाएं – इंडोनेशिया के जल मंदिर

जल स्त्रोत का जल कई जल-मुखों से बाहर निकलकर एक विशाल कुंड में इकठ्ठा हो रहा था। ऐसा प्रतीत हो रहा था कि यह जल कुंड तीर्थ एम्पुल के दर्शनार्थियों हेतु सर्वाधिक आकर्षण का केंद्र था क्योंकि प्रत्येक जल-मुख के सम्मुख एक लंबी पंक्ति थी। वे उस पवित्र जल में शुद्धिकरण स्नान हेतु अपनी बारी की प्रतीक्षा कर रहे थे। कई दर्शनार्थी कुंड के समीप स्थित मंच पर भी प्रतीक्षारत बैठे हुए थे।

चढ़ावा – इंडोनेशिया के जल मंदिर

चढ़ावा ले जाते हुए श्रद्धालु - पुरा तीर्थ एम्पुल - बाली इंडोनेशिया
चढ़ावा ले जाते हुए श्रद्धालु – पुरा तीर्थ एम्पुल – बाली इंडोनेशिया

मंदिर में मुझे कई दर्शनार्थी अपने हाथों में अत्यंत सुरुचिपूर्ण एवं सुन्दर टोकरियाँ लिए मंदिर की ओर जाते दिखे। माथे पर श्वेत तिलक लगाए एवं पारंपरिक वस्त्र धारण किये हुए दर्शनार्थी अत्यंत मनभावन प्रतीत हो रहे थे। उनकी टोकरियों में कुछ पोटलियाँ रखी हुई थीं। ध्यान से देखने पर ज्ञात हुआ कि यह टोकरियाँ दर्शनार्थी मंदिर में चढ़ावे के रूप में अर्पित करने हेतु ले जा रहे थे। बाली की हिन्दू संस्कृति का सम्पूर्ण सारांश मुझे इस मंदिर में देखने का सौभाग्य प्राप्त हुआ।

मत्स्य कुंड - पुरा तीर्थ एम्पुल - इंडोनेशिया के जल मंदिर
मत्स्य कुंड – पुरा तीर्थ एम्पुल – इंडोनेशिया के जल मंदिर

तीर्थ एम्पुल मंदिर के एक ओर मछलियों से भरा चौकोर कुंड था। इसके चारों ओर देवालय पद्धति में भित्त निर्मित थी। मैं वहां बैठ कुछ क्षण उन मछलियों को निहारने लगी। दर्शनार्थियों द्वारा दिए खाने की उन्हें लत लग गयी थी। वे जिस ओर लोगों को देखते, उसी ओर तैर कर इकठ्ठा हो जाते थे।

मुख्य मंदिर कई मंचों से अटा पड़ा था। कुछ मंच अत्यंत सुरुचिपूर्ण ढंग से उत्कीर्णित थे जिन पर दिव्य प्रतिमाएं स्थापित थीं। अन्य मंच सादे पद्धति से बने थे जिन पर भक्त चढ़ावे चढ़ाते थे। तीर्थ एम्पुल में मुझे एक अनोखा दृश्य देखने मिला। दर्शनार्थी अपने चढ़ावे इन मंचों पर रखते एवं उसके चारों ओर बैठ जाते थे। तत्पश्चात पुजारीजी वहां जाकर इच्छानुसार अनुष्ठान करते थे।

श्वेत पीट वस्त्र से सुस्सजित शिवलिंग - पुरा तीर्थ एम्पुल - बाली इंडोनेशिया
श्वेत पीट वस्त्र से सुस्सजित शिवलिंग – पुरा तीर्थ एम्पुल – बाली इंडोनेशिया

सम्पूर्ण बाली में तीर्थ एम्पुल ही ऐसा मंदिर दिखा जहां यथोचित शिवलिंग स्थापित था। श्वेत एवं पीत वस्त्रों में लिपटे इस शिवलिंग का भक्तिपूर्वक श्रृंगार किया गया था। ऐसा प्रतीत हो रहा था कि बाली के भक्तगणों ने पूर्ण मान-सम्मान से इसकी अर्चना की है।

मंदिर के पृष्ठ भाग में भी एक कुंड था जिसके मध्य कई छोटे छोटे मंदिर बने हुए थे। यह मंदिर का अपेक्षाकृत शांत भाग प्रतीत हुआ।

पुरा तीर्थ एम्पुल में श्रद्धालु - इंडोनेशिया के जल मंदिर
पुरा तीर्थ एम्पुल में श्रद्धालु – इंडोनेशिया के जल मंदिर

मंदिर के बाहर विक्रेता चढ़ावे हेतु पुष्प, केले इत्यादि बिक्री कर रहे थे। वे सर्वप्रथम लोगों को एक केला निःशुल्क चखने हेतु देते थे। तत्पश्चात उनसे खरीदने का आग्रह करते थे। मुझे ये अत्यंत अनोखी प्रथा प्रतीत हुई।

मंदिर परिसर के बाहर एक विशाल बाजार भी था जहां से आप बाली की विशेष वस्तुएं स्मरणिका स्वरुप खरीद सकते हैं।

गुआ गजः मंदिर – इंडोनेशिया के जल मंदिर

गुआ गजः मंदिर - बाली इंडोनेशिया
गुआ गजः मंदिर – बाली इंडोनेशिया

गुआ गजः मंदिर अर्थात् हाथी के रूप का गुफा मंदिर जिसका अग्रभाग व्यापक रूप से उत्कीर्णित था। इस पर कई भयावह प्राणियों एवं राक्षसों की उभरी हुई नक्काशियां थीं। गुफा के अग्रभाग को गजमुख सदृश माना जाता है। हालांकि गुफा का मुख मुझे किसी भी दृष्टी से गजमुख प्रतीत नहीं हुआ था। बाली भाषा में गुआ का अर्थ गुफा एवं गजः का अर्थ हाथी होता है। इसी कारण इस गुफा का नाम गुआ गजः पड़ा।

मंदिर के प्रवेशद्वार पर जलकुंड था जिसे एक पगडण्डी दो भागों में विभाजित कर रही थी। कुंड का प्रत्येक भाग मुख्य भित्त पर स्थित तीन जलमुखों से आते जल से भर रहा था। मेरे अनुमान से जलस्तर स्थिर बनाए रखने हेतु कुंड में जल निकासी का साधन भी अवश्य होगा।

गुआ गजः मंदिर में तीन शिवलिंग - बाली इंडोनेशिया
गुआ गजः मंदिर में तीन शिवलिंग – बाली इंडोनेशिया

जलकुंड के चारों ओर कई मंच बने हुए थे जिसका उपयोग बाली के हिन्दू दर्शनार्थी पूजा अर्चना हेतु कर रहे थे।

गुफा के अग्रभाग को कुछ क्षण मैं विस्मयकारी भय से निहारती रही। तत्पश्चात मैंने गुफा में प्रवेश किया। मुझे ऐसा प्रतीत हुआ जैसे मैं किसी दैत्य के मुख के भीतर प्रवेश कर रही थी।

गुफा के भीतर प्रवेश करते ही मुझे दोनों ओर एक एक ड्योढ़ी दिखाई पड़ी। बांयी ड्योढ़ी हमें गणेश भगवान् की प्रतिमा तक ले गयी तथा दांयी ड्योढ़ी द्वारा हमें तीन शिवलिंगों के दर्शन प्राप्त हुए। वहां कुछ अतिरिक्त आले भी थे जिन पर कुछ नहीं रखा गया था। कदाचित किसी काल में इन पर भी प्रतिमाएं स्थापित रही होंगी।

गुफा के बाहर मुझे कुछ घड़ों के भंगित अवशेष दिखे। किन्तु इनके विषय में कुछ जानकारी वहां उपलब्ध नहीं थी।

गुआ मंदिर एक लघु गुफा है जिसके दर्शन हेतु विशेष समय नहीं लगता। गुआ मंदिर के, बाली के जलमंदिरों की सूची में समावेश होने के तथ्य उपलब्ध नहीं हो पाए। तथापि मंदिर के बाहर उपस्थित जलकुंड मुझे इसे जलमंदिर मानने हेतु बाध्य कर रहा था।

सुबक जल सिंचाई प्रणाली के विषय में जानने की कुतूहलता के रहते मैंने बाली के कुछ जलमंदिरों के दर्शन किये। उन्होंने मुझे इतना आकृष्ट किया कि पुनः बाली के दर्शन कर शेष इंडोनेशिया के जल मंदिर के दर्शन की अभिलाषा अब तक तीव्र है।

 इंडोनेशिया के अन्य दर्शनीय स्थलों पर मेरे संस्मरण-

बोरोबुदुर बौध मन्दिर – इंडोनेशिया के जावा द्वीप की ऐतिहासिक सम्पदा
इंडोनेशिया का प्रमबनन मंदिर – कहानियां सुनाते खँडहर
कोटा गेडे – आकर्षक प्राचीन नगर योग्यकर्ता का पदभ्रमण
बाली में खरीददारी – १० उपयुक्त बाली की स्मरणिकाएं

अनुवाद: मधुमिता ताम्हणे

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इंडोनेशिया का प्रमबनन मंदिर – कहानियां सुनाते खण्डहर https://inditales.com/hindi/prambanan-temple-complex-java-indonesia/ https://inditales.com/hindi/prambanan-temple-complex-java-indonesia/#comments Wed, 05 Apr 2017 02:30:31 +0000 https://inditales.com/hindi/?p=199

कहते हैं यदि नियति में कुछ घटना लिखित है तो उसके घटित होने हेतु सारी कायनात एक हो जाती है। विश्वास ना हो तो मेरे साथ हुए इस वाकये पर गौर कीजिये। मैं इंडोनेशिया में योग्यकर्ता की यात्रा पर थी और अगले दिन भोर बोरोबुदुर मंदिर के सूर्योदय भ्रमण की योजना बना रही थी। मैंने […]

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प्रमबनन मंदिर परिसर - जावा, इंडोनेशिया
प्रमबनन मंदिर परिसर – जावा, इंडोनेशिया

कहते हैं यदि नियति में कुछ घटना लिखित है तो उसके घटित होने हेतु सारी कायनात एक हो जाती है। विश्वास ना हो तो मेरे साथ हुए इस वाकये पर गौर कीजिये। मैं इंडोनेशिया में योग्यकर्ता की यात्रा पर थी और अगले दिन भोर बोरोबुदुर मंदिर के सूर्योदय भ्रमण की योजना बना रही थी। मैंने इसकी जानकारी ट्विटर पर दी। तत्काल मुझे नरेन्द्र रामकृष्णजी से जवाब मिला जिसमें उन्होंने मुझे प्रमबनन मंदिर परिसर के भी भ्रमण की सलाह दी। उन्होंने सलाह दी कि बोरोबुदुर से मात्र २० मिनट की दूरी पर स्थित प्रमबनन मंदिर परिसर भ्रमण के लिए २ घंटे से भी कम समय लगता है और इसे बिना देखे वापस जाना स्वयं के साथ अन्याय होगा। मैंने कुछ खोजबीन की और अपने इण्डोनेशियाई मेजबान से भी चर्चा की। एक के पीछे एक मसले सुलझते गए और अंततः अपने जन्मदिन पर मुझे दोनों मंदिरों के दर्शन उपहार स्वरुप मिल गए। सुबह के समय मैंने बोरोबुदुर के दर्शन किये और दोपहर तक मैं प्रमबनन मंदिर परिसर के समक्ष खड़ी थी। मेरे साथ ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड  व इंडोनेशिया के साथी ब्लॉगर भी उपस्थित थे।

प्रमबनन मंदिर परिसर के बारे में मेरे पास सीमित जानकारी थी। इसलिए सारे रास्ते मैंने किताबों से उसके बारे में और जानकारी हासिल की। वहां पहुँच कर गलती से मैंने अंतर्राष्ट्रीय यात्री के स्थान पर घरेलु यात्री का टिकट खरीद लिया था इसलिए आशंका से थोड़ी घबरायी हुई थी। बाद में मुझे पता चला कि विदेशी यात्री टिकट करीब १० गुना ज्यादा महंगा है पर उसके साथ एक कॉफ़ी भी मुफ्त मिलती है। किस्मत से मैंने एक स्वादिष्ट कॉफ़ी पहले ही पी ली थी।

प्रमबनन मंदिर परिसर

प्रमबनन के मंदिर
प्रमबनन के मंदिर

प्रमबनन मंदिर परिसर की तरफ जाते वक्त जो पहला विचार आपको झकझोर देता है वह है इसकी विशालता। तीन ऊँचे मंदिरों के शिखर बाकी मंदिर परिसर से ऊपर उठ कर दिखाई पड़ते हैं। बाकी के मंदिर इनकी तुलना में बौने नजर आते हैं। जैसे आप इनके पास पहुंचते हैं, वहां कई जगह गहरे धूसर रंग के पथरी के मलबे दिखाई पड़ते हैं। यह मलबे किसी काल में खड़े मंदिरों का वर्त्तमान रूप हैं।

किवदंतियों के अनुसार प्रमबनन मंदिर परिसर में कुल ९९९ मंदिर थे। हालाँकि वास्तुविदों के अनुसार केवल २४० मंदिरों के अस्तित्व के ही प्रमाण प्राप्त हैं।

इस मंदिर का गठन श्रीयंत्र की रूपरेखा से समानता रखती है। इसके मध्य में शिव मंदिर व दोनों तरफ ब्रम्हा और विष्णु मंदिर हैं। हर मंदिर से सम्बंधित भगवान् के वाहनों के भी मंदिर हैं, अर्थात् नंदी बैल, हंस व गरुड़। ब्रम्हा और हंस के मंदिरों के मध्य व इसी तरह विष्णु और गरुड़ के मंदिरों के मध्य दो मंदिर और हैं। इन्हें अपित मंदिर कहा जाता है। मेरे इण्डोनेशियाई मित्र के अनुसार अपित का अर्थ मध्य है। यह मंदिर किसे अर्पित है इसकी जानकारी मुझे प्राप्त नहीं हुई।

इस परिसर के तीन मुख्य व विशालतम मंदिर हिन्दू धर्म के त्रिमूर्ति अर्थात् ब्रम्हा, विष्णु और शिव भगवान् को समर्पित है। मध्य में स्थित शिवमंदिर को शिवगृह या शिवालय अर्थात् भगवान् शिव का निवासस्थान कहा जाता है।

प्रमबनन त्रिमूर्ति मंदिर

मैं यहाँ आपको तीन मुख्य मंदिरों के बारे में थोड़ा विस्तार से जानकारी देना चाहूंगी।

शिव मंदिर

प्रमबनन का शिव मंदिर
प्रमबनन का शिव मंदिर

शिव मंदिर, प्रमबनन का विशालतम मंदिर है। यह इस तथ्य का द्योतक है कि प्रबनन मंदिर के निर्माता शिव भक्त थे। हालांकि ब्रम्हा व विष्णु मंदिरों की उपस्थिति संकेत करती है कि ९वीं सदी के जावा में, जब इस मंदिर का निर्माण हुआ था, तीनों देवताओं की आराधना की जाती थी।

शिव मंदिर के गर्भगृह तक पहुँचने के लिए खड़ी ऊंची सीड़ियाँ चढ़नी पड़ती हैं। मंदिर की बाहरी भित्ति पर शिल्पकारी की गयी है परन्तु भीतरी दीवारें सादी हैं। निश्चित रूप से यह नहीं कह सकती कि यह पहले से ही साधी थीं या मरम्मत के उपरांत यह ऐसी हो गयी है। मंदिर का गर्भगृह छोटा है और मंडप व अग्रशाला की कोई पद्धति दिखाई नहीं दी।

प्रमबनन के शिव मंदिर में शिव मूर्ति
प्रमबनन के शिव मंदिर में शिव मूर्ति

चौकोर योनि पर रखे कमल के पुष्प के ऊपर शिव की ऊंची मूर्ति है। अर्थात् यहाँ मानवरूपी शिवलिंग स्थापित है। वस्त्र धारण किये शिव की प्रतिमा को देख मुझे भारत में गांधार रीति के बुद्ध के चित्रों की याद ताज़ा हो गयी।

शिव प्रतिमा पर अलंकृत अधोवस्त्र उनके टखने तक लम्बा है व उन्होंने पैरों में मोटी पायजेब पहनी हुई है। चार भुजाधारी शिव प्रतिमा की भुजाएं भंगित हैं, इसलिए उन्होंने हाथों में क्या पकड़ा था इसका अनुमान लगाना असंभव है। इनकी जटाएं शीष के ऊपर बंधी है और गर्दन पर एक सर्प लिपटा हुआ है।

प्रदक्षिणा पथ

स्वर्ण हिरण वध - रामायण का दृश्य
स्वर्ण हिरण वध – रामायण का दृश्य

गर्भगृह की परिक्रमा हेतु एक परिक्रमा पथ है। इस पथ के दोनों ओर की दीवारों पर, अर्थात् गर्भगृह की बाहरी दीवार व कटघरे की भीतरी दीवार पर शिल्पखंड लगे हैं जिन पर रामायण की कथाएँ कहतीं शिल्पकारी की गयी है।

जटायु वध - रामायण का दृश्य
जटायु वध – रामायण का दृश्य

यहाँ शिव व ब्रम्हा मंदिर की दीवारों पर लगे शिल्पखण्ड रामायण पर आधारित हैं व विष्णु मंदिर के शिल्पखंड भगवत पुराण पर आधारित हैं। यह देख थोड़ा अचरज हुआ कि उस काल में क्या शिव की कथाओं से अनभिज्ञ थे। उन्होंने शिव मंदिर के खण्डों पर शिव की कहानियां कहती शिल्पकारी क्यों नहीं की? क्या वे भगवान के मानवतार की ही कहानियां कहना चाहते थे? क्योंकि ऐसा मानना है कि राम और कृष्ण मानवतार हो कर, हमारे इतिहास का हिस्सा हैं।

बाली वध - रामायण दृश्य - प्रमबनन
बाली वध – रामायण दृश्य – प्रमबनन

अतः इस परिसर के मुख्य और पीठासीन देव शिव हैं, फिर भी विष्णु की गाथायें ही हर तरफ दिखाई पड़तीं हैं।

वानर सेना - रामायण दृश्य - प्रमबनन
वानर सेना – रामायण दृश्य – प्रमबनन

मंदिर की दीवारों पर घंटे के आकार की मूर्तियाँ है। पहली झलक में यह व्रतानुष्ठित स्तूप या मन्नत का स्तूप प्रतीत होता है।संभवतः यह पूर्ण घटक भी हो सकते हैं। इस घंटाकृत शीर्ष का कोई वैकल्पित अर्थ किसी को ज्ञात हो तो मैं जानने के लिए इच्छुक हूँ।

सीता हरण - रामायण दृश्य - प्रमबनन
सीता हरण – रामायण दृश्य – प्रमबनन

मंदिर के प्रवेश पर एक बड़े कीर्तिमुख की शिल्पकारी की गयी है, ठीक बोरोबुदुर मंदिर की तरह।

राम सेतु निर्माण - रामायण दृश्य
राम सेतु निर्माण – रामायण दृश्य
प्रमबनन मंदिर - परिक्रमा पथ
प्रमबनन मंदिर – परिक्रमा पथ
कीर्ति मुख द्वार - प्रमबनन मंदिर
कीर्ति मुख द्वार – प्रमबनन मंदिर

नंदी मंदिर

नंदी बैल - प्रमबनन मंदिर
नंदी बैल – प्रमबनन मंदिर

नंदी मंदिर शिव मंदिर के ठीक सामने स्थित है। इसकी संरचना शिव मंदिर की तरह है पर उससे काफी छोटा है। मंदिर के भीतर एक विशाल पत्थर का बैल बना हुआ है। इन पत्थरों को कुछ इस तरह चमकाया हुआ है कि वह वास्तविक बैल प्रतीत होता है।

सूर्य एवं चन्द्र प्रतिमाएं - प्रमबनन
सूर्य एवं चन्द्र प्रतिमाएं – प्रमबनन

इसके दोनों बाजू चन्द्र और सूर्य की प्रतिमाएं है। निश्चित तौर पर यह नहीं कह सकती कि यह दोनों प्रतिमाएं इसी मंदिर से सम्बंधित हैं या इन्हें बाद में रखा गया है।

विष्णु मंदिर

विष्णु मंदिर - प्रमबनन
विष्णु मंदिर – प्रमबनन

विष्णु मंदिर शिव मंदिर के बनिस्पत थोड़ा छोटा है, परन्तु उनकी संरचना में समानता है। गहरे धूसर पत्थरों से बना, नुकीला शिखर युक्त संकरा ऊंचा मंदिर!

विष्णु प्रतिमा - प्रमबनन
विष्णु प्रतिमा – प्रमबनन

विष्णु की प्रतिमा के ऊपर विष्णु के सारे चिन्ह उपस्थित है। उन्होंने अपनी चारों भुजाओं में शंख, चक्र, गदा व कमल धारण किया है। वे कमल के ऊपर खड़े है जो एक योनि के ऊपर रखा गया है। यह मुझे बेहद अनोखा प्रतीत हुआ। एक बार फिर मैं निश्चित रूप से नहीं कह सकती कि यह यहाँ की पद्धति थी या मरम्मत के दौरान हुई कोई चूक। शिव और विष्णु की प्रतिमाओं में समानता यह है कि दोनों प्रतिमाएं योनि पर रखे कमल के पुष्प पर खड़ी हैं।

विष्णु मंदिर की कथाएं - प्रमबनन
विष्णु मंदिर की कथाएं – प्रमबनन

इस मंदिर के परिक्रमा पथ पर लगे शिल्पखण्ड भगवत पुराण की कथाएं दर्शातीं हैं।

गरुड़ मंदिर

विष्णु मंदिर के समक्ष विष्णु के वाहन गरुड़ का मंदिर है। दुर्भाग्य से इसके अन्दर गरुड़ की प्रतिमा उपस्थित नहीं है और मंदिर रिक्त है। इसके बावजूद भी इस परिसर के दर्शन करने पर एक विचित्र बात महसूस होती है, वह है कि भगवान अपने निवासस्थान पर विराजित हैं और बाहर वाहन कक्ष में अपने वाहनों को रखा है।

ब्रम्हा मंदिर

वाहन मंदिर - प्रमबनन
वाहन मंदिर – प्रमबनन

जिस समय मैं प्रमबनन मंदिर का भ्रमण कर रही थी उस समय ब्रम्हा मंदिर की दुरुस्ती का कार्य चालू था। इसलिए मैं मंदिर के अन्दर प्रवेश नहीं कर सकी। बाद में मैंने ब्रम्हा की मूर्ति से सम्बंधित जानकारी बाहरी स्त्रोतों जैसे गूगल इत्यादि से एकत्र की। ब्रम्हा की त्रिमुखी मूर्ति यहाँ भी योनि पर रखे कमल पुष्प पर स्थित है।

हंस मंदिर

ब्रम्हा के वाहन हंस का मंदिर ब्रम्हा मंदिर के ठीक सामने स्थित है।

इनके अतिरिक्त बाकी मंदिर खंडहर में तब्दील हो गए हैं। परन्तु खंडहरों को मंदिरों के मूल स्थान पर सुनियोजित ढंग से एकत्रित कर रखा है।

प्रमबनन मंदिर का इतिहास

प्रमबनन मंदिर में कुबेर की प्रतिमा
प्रमबनन मंदिर में कुबेर की प्रतिमा

प्रमबनन इंडोनेशिया के जावा द्वीप का विशालतम मंदिर परिसर है। इसका निर्माण अनुमानतः ९वीं ई में संजय वंश ने किया। इसके उपरांत बोरोबुदुर मंदिर के निर्माता शैलेन्द्र वंश के कारण बौद्ध धर्म का पालन किया गया। मातरम राजाओं ने इनकी सुन्दरता में और बढ़ोतरी की।

इस मंदिर के पीछे ओपक नदी बहती है। कहा जाता है कि इस मंदिर के निर्माण हेतु ओपक नदी की दिशा में बदलाव किया गया था।

प्रमबनन मंदिर के अवशेष
प्रमबनन मंदिर के अवशेष

ऐसा अनुमान है कि १०वीं ई में इस मंदिर का परित्याग कर दिया था जब मेरापी पर्वत का ज्वालामुखी फटने लगा और राज्य को यहाँ से विस्थापित किया गया। इसके बाद हुए अनेक ज्वालामुखी व भूकम्पों के कारण इस मंदिर का और ह्रास हुआ। हालांकि २०१० नवम्बर में फटे ज्वालामुखी से यह अप्रभावित रहा क्योंकि लावा दूसरी दिशा में बहा था।

बोरोबुदुर मंदिर की तरह, प्रमबनन मंदिर की खोज भी थॉमस स्टेमफोर्ड रैफल्स ने की थी। योग्यकर्ता अपनी विरासती धरोहारों की खोज हेतु सदा उनका आभारी रहेगा। अधिकतर मंदिरों पर खोज के उपरांत मरम्मत का कार्य किया गया जो अब भी जारी है।

इस मंदिर को चंडी प्रमबनन भी कहते हैं। जावा भाषा में चंडी का अर्थ है मंदिर।

प्रमबनन मंदिर की प्रसिद्ध रोरो जोंग्रेंग किवदंतियां

प्रदक्षिणा पथ - प्रमबनन मंदिर - जावा , इंडोनेशिया
प्रदक्षिणा पथ – प्रमबनन मंदिर – जावा , इंडोनेशिया

जावा भाषा में अविवाहित कुलीन स्त्रियों को रारा या रोरो कहा जाता है। पड़ोस में स्थित पेंगिंग राज्य व बोको राज्य के बीच हुए युद्ध से सम्बंधित अनेक कथाएं व किवदंतियां प्रसिद्ध हैं। कहा जाता है कि पेंगिंग राजकुमार ने बोको राजा का वध किया था। इसके पश्चात् वहां शोकाकुल राजकुमारी को देख राजकुमार उसकी सुन्दरता पर मोहित हो गया व उसे विवाह का प्रस्ताव दिया। बहुत मनुहार करने के पश्चात् राजकुमारी ने दो शर्तों पर विवाह की मंजूरी दी। पहली शर्त एक दीवार के निर्माण की व दूसरी शर्त १००० मंदिरों के निर्माण की थी, वह भी सिर्फ एक रात में! प्रेम में डूबे राजकुमार ने दोनों शर्तें मंजूर कर लीं।

अपनी अलौकिक शक्तियों का इस्तेमाल कर राजकुमार ने एक रात में १००० मंदिरों का निर्माण किया। राजकुमारी ने, जो इस विवाह के लिए अंतर्मन से राजी नहीं थी, एक चाल चली। उसने अपनी दासियों से आग जलाकर बहुत शोर व कोलाहल करने के लिए कहा ताकि निर्माणरत आत्माओं को भोर फटने का आभास हो और वे कार्य स्थगित कर दें। इस धोखे की जानकारी मिलते ही राजकुमार ने क्रोधित हो राजकुमारी को श्राप देकर शिला में परिवर्तित कर दिया।

ऐसी मान्यता है कि राजकुमारी अब भी कुमारी देवी के रूप में शिला में बसती है और अंतिम मंदिर के निर्माण में रत है।

क्या यह कहानी आपको कन्याकुमारी की याद दिलाती है?

प्रमबनन में रामायण प्रदर्शन

प्रमबनन के अनेक मंदिर
प्रमबनन के अनेक मंदिर

ओपक नदी के तीर, त्रिमूर्ति बहिरंगमंच पर जावा के नृत्यनाटिका के रूप में रामायण का प्रदर्शन किया जाता है। हर पूर्णिमा को किये जाने वाले रामायण मंचन को देखने, फिर प्रमबनन जाने की मेरी प्रबल इच्छा है। इन मंदिरों व खंडहरों के बीच, पूर्ण चन्द्रमा तले इस रामायण को देखने का रोमांच अतुलनीय होगा। संभवतः यह विश्व की प्राचीनतम कहानी है जो रामायण द्वारा दिखाई जाती है।

प्रमबनन मंदिर परिसर भ्रमण के कुछ सुझाव

प्रमबनन मंदिर के भीतरी द्वार'
प्रमबनन मंदिर के भीतरी द्वार’

प्रमबनन मंदिर परिसर - जावा - इंडोनेशिया

  • प्रमबनन मंदिर के लिए योग्यकर्ता अथवा जोग्गा विमानतल इत्यादि से गाड़ियों की सुविधाएँ उपलब्ध हैं।
  • हालाँकि यहाँ वस्त्रों पर कोई खास अंकुश नहीं है, फिर भी शालीन वस्त्रों के तहत अपने घुटने व कंधे ढंके हुए रखें।
  • घरेलु व अंतरराष्ट्रीय यात्रियों के टिकट के अलग अलग मूल्य हैं। अंतरराष्ट्रीय यात्रियों का शुल्क करीब २५०००० इंडो. रु अर्थात १२५०रु हैं जिसमें एक स्वादिष्ट कॉफ़ी मुफ्त दी जाती है।
  • यहाँ परिदर्शक की सुविधा उपलब्ध नहीं है। इसलिए यहाँ के बारे में पूर्व जानकारी आवश्यक है।
  • पूर्व दिशा में स्थित सभी मंदिरों को देखने का सर्वोत्तम समय सुबह का है। जबकि वाहनों के मंदिर संध्या समय सूर्य की रौशनी से रोशन होते हैं। चित्रकरण की दृष्टी से यह महत्वपूर्ण है।
  • परिसर के बाहर निकालने पर वहां एक छोटा बाज़ार है। वहां मिलने वाली जावा की प्रसिद्ध कॉफ़ी अत्यंत स्वादिष्ट है।इसे पीना ना भूलें!

हिंदी अनुवाद : मधुमिता ताम्हणे

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बोरोबुदुर बौद्ध मंदिर – श्री चक्र मंदिर जावा द्वीप इंडोनेशिया https://inditales.com/hindi/borodudur-baudh-mandir-java-indonesia/ https://inditales.com/hindi/borodudur-baudh-mandir-java-indonesia/#respond Wed, 22 Mar 2017 02:30:09 +0000 https://inditales.com/hindi/?p=184

बोरोबुदुर के दर्शन करने की इच्छा मुझे बहुत समय से थी। जब मैं डॉ. विद्या देहेजिया द्वारा ‘बुद्ध के आख्यान’ पर लिए अधिवेशन में भाग ले रही थी, तब हमें इस बौद्ध मंदिर की भी कई तस्वीरें दिखाई गईं थीं। उसके सुंदर उभारदार फलक और ज्यामितीय अभिकल्प देख मन ही मन इस मंदिर के दर्शन […]

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बोरोबुदुर मंदिर - जावा - इंडोनेशिया
बोरोबुदुर मंदिर – जावा – इंडोनेशिया

बोरोबुदुर के दर्शन करने की इच्छा मुझे बहुत समय से थी। जब मैं डॉ. विद्या देहेजिया द्वारा ‘बुद्ध के आख्यान’ पर लिए अधिवेशन में भाग ले रही थी, तब हमें इस बौद्ध मंदिर की भी कई तस्वीरें दिखाई गईं थीं। उसके सुंदर उभारदार फलक और ज्यामितीय अभिकल्प देख मन ही मन इस मंदिर के दर्शन का निश्चय कर लिया था। इसके दर्शन करने की इच्छा के पीछे एक और कारण यह भी था कि यह यूनेस्को द्वारा घोषित वैश्विक विरासत भी है। और तब मेरी ख़ुशी का ठिकाना नहीं रहा जब मैंने अपनी इंडोनेशिया यात्रा की कार्यक्रम सूची में पहला नाम बोरोबुदुर मंदिर देखा। सोने पर सुहागा तब हुआ जब मुझे यह अवसर अपने जन्मदिन पर प्राप्त हुआ। इस दिन मुझे यूनेस्को द्वारा घोषित दो वैश्विक विरासत स्थल देखने का स्वर्णिम अवसर प्राप्त हुआ – बोरोबुदुर मंदिर और प्रमबनन मंदिर।

बोरोबुदुर मंदिर की पहली झलक

बुद्ध की छवि - सूर्योदय से पहले
बुद्ध की छवि – सूर्योदय से पहले

बोरोबुदुर के सूर्योदय दर्शन की योजना निश्चित की गयी थी। इस स्थल के दर्शन का यह समय सर्वाधिक लोकप्रिय है।छायाचित्रण की दृष्टी से भी और इसलिए भी कि सूर्योदय से पहले का ठंडा मौसम इस स्मारक की चढ़ाई को थोड़ा आसान बना देता है। हमारी बस इस स्मारक के खूबसूरत बगीचे में सूर्योदय से पहले ही पहुँच गयी। वहां का दृश्य मुझे रोमांचित कर रहा था। जिस स्थल के दर्शन करने का स्वप्न अब तक देखा, वह आज सच होने जा रहा था। मैं उस समय जो महसूस कर रही थी उसे शब्दों में बयान करना आसन नहीं!

स्वागत कक्ष में प्रवेश कर हमने दर्शनार्थ टिकट खरीदे। अँधेरा अभी छंटा नहीं था। मार्ग दर्शन हेतु हम सब के हाथ एक एक टार्च थमा दी गयी थी। इस मंदिर की पहली झलक मुझे हलकी पृष्टभूमि लिए धूमिल रूपरेखा के रूप में मिली। जैसे जैसे मैं ऊंची ऊंची सीड़ियाँ चड़ने लगी बुद्ध की प्रतिमाएं धीरे धीरे स्पष्ट दिखाई देने लगी। बुद्ध की मूर्तियों को अपने अन्दर समेटे कई स्तूप दिखे। अंततः केंद्रीय विशाल स्तूप मेरी आँखों के सामने आया।

वह बादलों से ढका व कोहरे से धुंधला हुआ दिन था। मेरे आसपास की सारी संरचनाएं व मूर्तियाँ अत्यंत रहस्यमयी प्रतीत हो रहीं थीं। ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे सूर्य की किरणे धीरे धीरे इस रहस्य पर से पर्दा उठायेंगीं, वास्तविकता हमारे समक्ष उभर कर आएगी और एक एक पत्थर अपने द्वारा गुजारे १२०० वर्षों के अतीत की कहानियां धीरे धीरे हमें सुनायेंगे।

बोरोबुदुर का भ्रमण

सूर्योदय के राह तकते - बोरोबुदुर मंदिर पर
सूर्योदय के राह तकते – बोरोबुदुर मंदिर पर

चूंकि अभी सूर्योदय में किंचित समय शेष था, मैंने मुख्य केंद्रीय स्तूप के चारों ओर थोड़ा भ्रमण किया। सूर्योदय से पूर्व यह स्थल अति अवास्तविक व स्वप्निल सा प्रतीत हो रहा था जहाँ धुंध व अँधेरे में स्वयं को छुपाईं सारी प्रतिमाएं विचित्र आकृतियों सी प्रतीत हो रहीं थीं। जैसे जैसे सूर्य की किरणे मंदिर पर गिरने लगीं, धुंध व अँधकार छंटने लगा। मैंने मंदिर का अन्वेषण आरम्भ किया। दक्षिणावर्त भ्रमण करते हुए मैंने हर स्तूप व मंदिर के कोने कोने व परत दर परत का बारीकी से अध्ययन किया। मैं कुछ इस तरह मंदिर की परिक्रमा कर रही थी जैसे एक साधु प्रार्थना के उपरांत मंदिर की परिक्रमा करते समय एक एक प्रतिमा के दर्शन करता है।

“बोरोबुदुर इंडोनेशियाई पर्यटकों का मुख्य आकर्षण है”

मैंने अब स्तूपों की अगली पंक्ति का अध्ययन प्रारंभ किया। जालीदार छिद्रों वाले इन प्रत्येक स्तूप में भगवान बुद्ध की धर्म चक्र परिवर्तन मुद्रा में मूर्ति स्थापित की गयी है। यह मुद्रा गतिशील धर्म चक्र को दर्शाता है। यह, वाराणसी के निकट स्थित सारनाथ में, भगवान् बुद्ध द्वारा दिए गए सर्वप्रथम प्रवचन का प्रतीक है। दुर्भाग्यवश बुद्ध की ज्यादातर प्रतिमाएं शीष रहित हैं, केवल धड़ ही शेष हैं। बुद्ध की प्रतिमाओं के शीष अमूल्य धरोहर स्वरुप सम्पूर्ण विश्व में कई संग्रहालयों व व्यक्तिगत संग्रह का हिस्सा बन चुके हैं।

“हर स्तूप का आधार कमल पुष्प के आकार में है”

जालीदार घंटानुमा स्तूप - बोरोबुदुर
जालीदार घंटानुमा स्तूप – बोरोबुदुर

यहाँ इन स्तूपों की रचना, ज्यामिति व समरूपता विस्मयकारी है। आश्चर्य होता है कि इनके वास्तुविद व रचनाकारों ने इनकी कल्पना भी कैसे की होगी! इसकी संपूर्ण संरचना पत्थरों को आपस में फंसा कर की गयी है। किसी गारे, चूने व कीलों का उपयोग इनके निर्माण में नहीं किया गया है। इन स्तूपों पर उपस्थित छिद्रों द्वारा इनके अन्दर झाँका जा सकता है। शिथिलता से फंसाए इन पत्थरों के पास आकर, किसी अकल्पनीय आशंका से मन दहल जाता है।

बोरोबुदुर की परिक्रमा

कीर्तिमुख प्रवेश द्वार - बोरोबुदुर
कीर्तिमुख प्रवेश द्वार – बोरोबुदुर

स्तूपों की ऊपरी तीन परतों के पश्चात् मंदिर की निचली छह परतों में परिक्रमा पथ उपलब्ध है। मैंने हर परिक्रमा पूर्ण की। परिक्रमा पथ के दोनों ओर की तक्षित दीवारें बुद्ध व बोधिसत्व की जीवनी बखान करतीं हैं। बुद्ध की जीवनी के कुछ अंशों की पहचान करने में मुझे भी सफलता मिली। कुछ शिल्पकारी व उच्चावचों का रखरखाव संतोषप्रद नहीं है। दीवारों के कुछ बेमेल खण्ड मरम्मत के दौरान की गयी दुर्लाक्षता का नतीजा हो सकतें हैं। आखिरकार बोरोबुदुर कई सदियों तक ज्वालामुखीय राख से ढंका विस्मृत सा स्मारक था।

सरदल व शहतीर युक्त, सोहावटी अंदाज में बनाए गए मेहराबदार द्वारों पर कीर्तिमुख की शिल्पकारी की हुई है। हर मंजिल के प्रवेशद्वारों के दोनों तरफ द्वारपाल स्वरुप शेर की मूर्ति बिठाई है।

सुसज्जित जल प्रवाह मार्ग - बोरोबुदुर
सुसज्जित जल प्रवाह मार्ग – बोरोबुदुर

जब मैं इस मंदिर के निम्नतम तल तक पहुंची, सूर्य पूर्ण तीव्रता से अपनी किरणे बिखेर रहा था। इसकी आभा में सम्पूर्ण मंदिर का चित्रण करने हेतु मुझे बहुत दूर जाना पड़ा। तब मुझे इस मंदिर की विशालता का अहसास हुआ। मंदिर की संरचना की परतें कमल के पुष्प का आभास करतीं हैं, निचली परतों को आधी ढंकी आधी खोलती हुई! स्तूपों का ऊँचा गुंबद ऐसा प्रतीत होता है मानो एक बड़े घंटे को उस पर रख दिया हो।

इस मंदिर के निर्माण में बड़ी तादाद में पत्थरों का इस्तेमाल हुआ है। उस काल में इतने पत्थरों को एक स्थान पर किस तरह एकत्रित किया गया था, यह मेरी समझ के परे है। मैं बस वास्तुशिल्प व वास्तुनिर्माण के इस सुन्दर नमूने की मन ही मन प्रशंसा करने से खुद को रोक नहीं पाई। इसके वास्तुविद व निर्माता की प्रतिभा अप्रतिम है। सम्पूर्ण विश्व के लिए यह मंदिर महायान बौद्ध धर्म का केंद्र है। मेरे लिए यह एक अत्यधिक विकसित सौंदर्य-वाद का जीवित उदहारण है, विज्ञान और कला का ऐसा अभूतपूर्व संगम है जो आपकी हर समझ को प्रभावित करता है। इसके एक एक पत्थर आपसे संवाद साधने की शक्ति रखते प्रतीत होते हैं।

बोरोबुदुर मंदिर का इतिहास व वास्तुशिल्प

बोरोबुदुर विश्व का विशालतम बोद्ध मंदिर है।

बोरोबुदुर की शब्द व्युत्पत्ती

धर्म चक्र परिवर्तन मुद्रा में बुद्ध की प्रतिमा - बोरोबुदुर - जावा - इंडोनेशिया
धर्म चक्र परिवर्तन मुद्रा में बुद्ध की प्रतिमा – बोरोबुदुर – जावा – इंडोनेशिया

बोरोबुदुर यह शब्द दो शब्दों के जोड़ से उत्पन्न हुआ है। बोरो अर्थात् बड़ा और बुदुर अर्थात् बुद्ध, यानि बड़ा बुद्ध। जावा प्रदेश की भाषा में बुदुर का एक अर्थ पर्वत भी है। बड़े पर्वत का आभास कराता बोरोबुदुर मंदिर इस नामकरण पर खरा उतरता है। कुछ विद्वानों का मानना है कि बोरो शब्द बौद्ध मठ अथवा बौद्ध विहार का अपभ्रंश है। मेरे ध्यानानुसार बोरोबुदुर के आसपास कोई बौद्ध मठ नहीं है और ना किसी साहित्य में इसका जिक्र!

बोरोबुदुर दो ज्वालामुखियों व दो नदियों के बीच स्थित है, इस कारण इसकी जमीन अत्यधिक उपजाऊ है।

बोरोबुदुर की वास्तुकला

भगवान् बुद्ध - शांत मुद्रा में - बोरोबुदुर मंदिर - जावा - इंडोनेशिया
भगवान् बुद्ध – शांत मुद्रा में

ऐसा कहा जाता है कि गुणधर्म इस शिल्प के वास्तुविद हैं, परन्तु इसके अलावा उनके बारे में जानकारी उपलब्ध नहीं है। मूल वर्गाकार आधार युक्त यह मंदिर ९ मंजिलों में बना हुआ है। निचले ६ मंजिल वर्गाकार व ऊपरी ३ मंजिल वृत्ताकार हैं।ऊपरी मंजिल पर मध्य में एक बड़े स्तूप के चारों ओर ७२ छोटे स्तूप हैं। प्रत्येक स्तूप घंटाकर होकर कई सजावटी छिद्रों से सहित है। बुद्ध की प्रतिमाएं इस छिद्र युक्त स्तूपों के अन्दर स्थापित हैं।

बोरोबुदुर की बौद्ध प्रतिमाएं

भगवान् बुद्ध की प्रतिमाएं बोरोबुदुर की दीवारों पर
भगवान् बुद्ध की प्रतिमाएं बोरोबुदुर की दीवारों पर

बोरोबुदुर में ५०० से अधिक बौद्ध प्रतिमाएं हैं जिनमें अधिकांश में बुद्ध पद्मासनरत हैं। अधिकांश प्रतिमाएं निचले मंजिलों की परिधि पर स्थित हैं व कुछ दीवारों के आलों पर बिठाये गए हैं। दुर्भाग्यवश वर्त्तमान में अधिकांश प्रतिमाएं शीषरहित हैं। बुद्ध से सम्बंधित मुद्राएँ जो यहाँ देखी जा सकतीं हैं वे कुछ इस प्रकार हैं-

  • भूमिस्पर्श मुद्रा – अर्थात् “पृथ्वी साक्षी है”, यह उनके महाज्ञान प्राप्ति का प्रतीक है।
  • वरद मुद्रा – अर्थात् “ दान व परोपकार”, दानवीर बुद्ध का प्रतीक है।
  • अभय मुद्रा – अर्थात् “साहस व निर्भयता”, दर्शाता है कि बुद्ध हमारी रक्षा कर रहे हैं।
  • ध्यान मुद्रा – अर्थात् “एकाग्रता व ध्यान”, ध्यानमग्न बुद्ध।
  • धर्म चक्र परिवर्तन मुद्रा – अर्थात् “ गतिमान धर्म चक्र”, प्रतीक है भगवन बुद्ध के सारनाथ में दिए पहले प्रवचन का।
  • वितर्क मुद्रा –  अर्थात् “तर्क और पुण्य”, तर्क का दूसरा पहलू जो बुद्ध आपके समक्ष प्रस्तुत करते हैं।

मंदिर की संरचना का ब्रम्हांडीय परिपेक्ष्य

प्रवेश द्वार के संरक्षक - सिंह - बोरोबुदुर - जावा - इंडोनेशिया
प्रवेश द्वार के संरक्षक – सिंह

स्मारक के तीन भाग प्रतीकात्मक रूप से तीन लोकों को निरुपित करते हैं। यह साधक के तीन चरणों का प्रतिनिधित्व करते हैं।

  • कामधातु – (इच्छाओं की दुनिया), यह निम्नतर जीवनस्तर है जिसमें भिक्षु इच्छाओं की दुनिया में रहता है। बोरोबुदुर की इस स्तर की दीवारों पर लगे खण्ड बोधिसत्व की जातक कथाएं कहतीं हैं। यह बुद्ध के पूर्व जन्मों की कथाएं दर्शाती हैं।
  • रूपधातु – (रूपों की दुनिया), अपनी इच्छाओं पर काबू पाने की क्षमता अर्जित करने के उपरांत भिक्षु इस स्तर पर पहुंचते हैं जहाँ रूपों के द्वारा इच्छारहित अंतर्मन में देख सकते हैं। यह हिंदुत्व का सगुन स्तर है। इस स्तर की दीवारों के खण्डों पर अंकित कथाएं बुद्ध की इस इच्छा से अनिच्छा तक पहुँचने की यात्रा को दर्शाते हैं।
  • अरूप धातु – (रूपरहित दुनिया), इस सबसे मूलभूत व विशुद्ध स्तर पर भिक्षु पूर्ण बुद्ध व्यवहारिक वास्तविकता से ऊपर उठ कर रूपरहित निर्वाण को प्राप्त होते हैं। यह संत कबीर की तरह निर्गुण दार्शनिकता का प्रतीक है। और इसलिए ही इस स्तर के खण्डों पर ना किसी रूप की आवश्यकता है, ना ही किसी शिल्प की।

बोरोबुदुर के राहत उच्चावच

बोरोबुदुर की दीवारों पे बौद्ध कथाएं
बोरोबुदुर की दीवारों पे बौद्ध कथाएं

स्मारक की दीवारों व कटघरे के अंदरूनी भागों पर कथाशिल्प खंड लगे हुए हैं। यह शिल्प उस काल की झलक दिखाते हैं जब इस मंदिर का निर्माण किया गया था। इस पर सभी मानव आकृति त्रिभंग रूप में दर्शित है अर्थात् अंग तीन भागों में मुड़ा हुआ है। इन पर उनके वस्त्र, केशशैली, आभूषण, साथ ही साथ पशुओं का भी अध्ययन किया जा सकता है। आम आदमी की रोजमर्रा की जिंदगी का भी चित्रण इस शिल्पकारी में नजर आता है। बुद्ध की जीवनी के कई महत्वपूर्ण पलों को इन शिल्पों द्वारा पुनर्जीवित किया गया है जैसे उनका जन्म स्थल, उनका घोडा, बोधिवृक्ष जिस के छाँव तले उन्होंने ध्यान किया, तुषित स्वर्ग से उनका अवतरण इत्यादि। इन शिल्पों के ऊपर हम समृद्धि की भी झलक देख सकतें हैं जैसे पूर्ण घटक, छलकती गगरी इत्यादि। २६०० से अधिक उच्चावच प्रतिमाएं हैं इस सम्पूर्ण मंदिर के अन्दर। संभवतः इन शिल्पों पर भी भारत के एलोरा की तरह चटक रंगों से रंगाई की गयी हो!

बोरोबुदुर का शीर्ष दृश्य

ऊंचाई से देखने पर सम्पूर्ण बोरोबुदुर सिर्फ एक स्तूप की तरह प्रतीत होता है। इसकी ज्यामितीय आकृतियाँ बुद्ध मंडल या हिन्दू श्री यन्त्र की तरह दिखाई पड़ती हैं। कुछ लोगों को इसमें जीनायुक्त पिरामिड का आभास होता है। संयोग से इस सम्पूर्ण पिरामिड की संरचना व उसका उभार ४:६:९ के सामान अनुपात में रचित है। माप की बुनियादी इकाई थी ताला जो लगभग मानवीय चेहरे की लम्बाई या फैले हुए हाथ की लम्बाई के बराबर होता है। हिंदी व पंजाबी में इस इकाई को गिठ कहा जाता है। हालांकि इकाई की परिभाषा व्यक्तिगत रूप से किंचित भिन्न हो सकते हैं परन्तु व्यापक परिपेक्ष में यह बहुत हद तक सामान है।

बोरोबुदुर झील का अस्तित्व

ऐसा अनुमान है कि किसी काल में बोरोबुदुर मंदिर एक झील के मध्य पानी पर स्थित था और उस पर तैरता प्रतीत होता था। परन्तु वर्तमान खोज के अनुसार संभवतः मंदिर के समीप प्रारंभिक दौर में कभी झील का अस्तित्व रहा होगा परन्तु मंदिर कभी भी पानी में तैरता नहीं था।

बोरोबुदुर के कथा चित्र
बोरोबुदुर के कथा चित्र

ऐसा भी अनुमान है कि मंदिर का वास्तविक आधार शिलाओं की एक तख्तबन्दी के नीचे स्थित है। इसके कई कारण बताये जाते हैं जैसे वास्तुदोष, संरचना को दिया गया अतिरिक्त आधार इत्यादि।

इस निर्माण के दौरान शिलाओं का आयात पास की पत्थर की खदानों से किया गया था। उच्चावचों का निर्माण भी यहीं निर्माणस्थल पर किया गया था। पानी के निकास के लिए मगरमच्छ के अकार का उत्कृष्ट निकासद्वार भी बनाया गया है।

माना जाता है कि बोरोबुदुर तीन मंदिरों की कतारबद्ध शृंखला में से एक मंदिर है। दूसरे मंदिरों के नाम हैं- पवन और मेंदुत।

बोरोबुदुर का इतिहास

ध्यान मगन बुद्ध
ध्यान मगन बुद्ध

बोरोबुदुर मंदिर संभवतः ८०० ई के लगभग स्थापित हुआ था। अर्थात् यह मंदिर करीब १२०० वर्षों से भी अधिक प्राचीन है।इस समय मध्य जावा में शैलेन्द्र राजवंश के तहत श्रीविजय का साम्राज्य था। इसके निर्माण का अनुमानित समय ७५ वर्ष है।हालांकि इसके निर्माण व इसके पीछे उद्देश्य की ठोस जानकारी उपलब्ध नहीं है।

कहा जाता है कि लगभग १५वीं ई में इस स्मारक का परित्याग कर दिया गया था जब इस्लाम ने हिन्दूराज्य पर अधिपत्य स्थापित किया और मंदिरों को उजाड़ना आरंभ किया।

ज्ञात नहीं है कि स्मारक का उपयोग तीर्थ यात्रियों के लिए वास्तव में क्यों और कब बंद किया गया। इसके परित्याग के पीछे भिन्न भिन्न मत हैं। परित्याग उपरांत बोरोबुदुर को कई सदियों तक ज्वालामुखी राख और जंगल विकास ने छुपाये रखा।इसका प्रभाव स्मारक के अवशेषों पर सर्वविदित है।

बोरोबुदुर का पुनराविष्कार

कल्पना कीजिये एक चित्र कभी रंगों से भरे थे - बोरोबुदुर - जावा - इंडोनेशिया
कल्पना कीजिये एक चित्र कभी रंगों से भरे थे

भारत की अजंता की गुफाओं की तरह, बोरोबुदुर का पुनराविष्कार सन १८१४ ई में लेफ्टिनेंट गवर्नर जनरल थॉमस स्टैमफोर्ड रैफल्स ने किया जो यहाँ अंग्रेज शासन के दौरान जावा का कार्यभार संभाल रहे थे। उन्होंने डच अभियंता एच. सी. कोर्नेलिअस की मदद से करीब २० वर्षों में जमीन खोदकर स्मारक को पूर्णतः बाहर निकाला। इन खंडहरों की खोज के उपरांत इसके पुनरुद्धार पर लगातार प्रयास होता रहा। रैफल्स को इसके पुनरुद्धार का श्रेय जाता है।

सन १९७३ में बोरोबुदुर के जीर्णोद्धार का महाभियान चालु किया गया। इंडोनेशिया सरकार व यूनेस्को ने मिलकर बड़ी नवीनीकरण परियोजना के तहत स्मारक का जीर्णोद्धार का कार्य पूर्ण किया। नवीनीकरण की समाप्ति पर यूनेस्को ने १९९१ में बोरोबुदुर को विश्व धरोहर स्थलों की सूची में शामिल किया। जीर्णोद्धार के पश्चात् यह महायान बौद्ध धर्मं के अनुयायियों के लिए प्रमुख तीर्थ स्थान व पर्यटकों के लिये मुख्य आकर्षण का केंद्र बना।

संयोग से बोरोबुदुर नाम भी रैफल्स से जुड़ा है क्योंकि उन्होंने अंग्रेजी में लिखा था – “ बोर गाँव के निकटवर्ती बुदुर का मंदिर”। हालांकि प्राचीन जावा तालपत्र इस ओर संकेत करते हैं कि स्मारक का नाम, बुदुर, पवित्र बौद्ध पूजा स्थल नगरकरेतागमा को कहा जाता है। यह तालपत्र मजापहित राजदरबारी व बौद्ध भिक्षुकों द्वारा १४ई में लिखा गया था।

इस स्मारक के जीर्णोद्धार ने विश्व को एक अमूल्य धरोहर प्रदान की। साथ ही साथ बढ़ती लोकप्रियता ने अधिक यात्रियों को आकर्षित किया। आगंतुकों की बर्बरता, मिट्टी का कटाव, अनेक भूकम्पों व बारिश झेलती यह स्मारक पहले ही कमजोर हो चुकी थी। यात्रियों व पर्यटकों द्वारा उच्चावाचों व मूर्तियों पर की गयी छेड़खानी ने इसका और ह्रास किया। अधिकांश मूर्तियों के सर निकाल कर बेच दिए गए। आश्चर्य होता है कि बुद्ध का शीष आध्यात्मिक दृष्टी से अधिक कीमती है या आर्थिक दृष्टी से! या सिर्फ शीष की तस्करी आसान है बनिस्पत पूर्ण मूर्ति के!

केंद्रीय मुख्य स्तूप के भीतर बुद्ध की प्रतिमा या चित्र था या नहीं, किसी को ज्ञात नहीं। मंदिर का छत्र निकाल कर एक संग्रहालय में सुरक्षित रखा गया है। बोरोबुदुर के बारे में और जानकारी इस विकिपीडिया पृष्ठ से प्राप्त की जा सकती है।

बोरोबुदुर – मंदिर या स्तूप?

बोरोबुदुर मंदिर - जावा - इंडोनेशिया
बोरोबुदुर मंदिर – जावा – इंडोनेशिया

हमेशा से यह तर्क का विषय रहा है कि बोरोबुदुर स्तूप है या एक मंदिर। निष्कर्ष यही निकला कि यह एक मंदिर है, आराधना स्थल या तीर्थ स्थल है।

परित्याग व इतिहास में लुप्त होने के बावजूद भी इस स्मारक की गाथाएं व किवदंतियां जीवित रहीं व इस स्मारक को पूर्णतया भुलाया नहीं जा सका। परन्तु धीरे धीरे इसका महिमापूर्ण इतिहास असफलता व दुर्गति के साथ साथ अंधविश्वास से जुड़ गया। लोगों ने इस स्मारक को दुर्भाग्य का अग्रदूत कहा। इतिहास में हुए कुछ दुर्भाग्यपूर्ण घटनाओं के लिए इस स्मारक को कारण ठहराया। अन्यथा इस अभूतपूर्व स्मारक का परित्याग ऐसे ही नहीं किया जाता।

एशिया में कई स्मारक इन्ही कारणों से खँडहर में तब्दील हुए है। संयोग से तीव्र भूकंप के कारण निकट के क्षेत्रों में गंभीर क्षति के बावजूद बोरोबुदुर इससे अप्रभावित रहा।

यूनेस्को द्वारा नवीनीकरण के पश्चात् बोरोबुदुर को पुनः तीर्थयात्रा और पूजा स्थल के रूप में मान्यता प्राप्त हुई। वर्ष में एक बार मई अथवा जून मास में पूर्णिमा के दिन इंडोनेशिया में बौद्ध धर्म के लोग सिद्धार्थ गौतम के जन्म, निधन व बुद्ध शाक्यमुनि के रूप में ज्ञान प्राप्ति के उपलक्ष्य में उत्सव “वैशाख” मनाते हैं।

बोरोबुदुर यात्रा के लिए कुछ सुझाव

सर कटी बुद्ध प्रतिमाएं
सर कटी बुद्ध प्रतिमाएं
  • यह संस्मरण लिखते समय तक, बोरोबुदुर भ्रमण शुल्क इंडोनेशिया मुद्रा के तहत ४००००० इंडो. रु. था, जो तकरीबन २०००/- रु. के बराबर है। इसमें कॉफ़ी व एक छोटी स्मारिका भी शामिल है।
  • इसके दर्शन का सर्वोत्तम समय सूर्योदय का है। परन्तु इसके लिए पिछली रात्रि की निद्रा का परित्याग करना पड़ता है।बोरोबुदुर योग्यकर्ता शहर से लगभग ४०कि.मी. व सुरकर्ता से ८६कि.मी.दूर स्थित है।
  • पानी की बोतल ले जाना अति आवश्यक है। यहाँ का वातावरण गर्म व आर्द्र होने के कारण स्मारक भ्रमण के दौरान पानी की आवश्यकता रहती है और पानी सिर्फ स्वागत कक्ष में ही उपलब्ध है।
  • स्मारक के शीर्ष पर परिदर्शक उपलब्ध हैं। हालांकि मैंने इनकी सुविधा नहीं ली थी।
  • स्मारक पर मनोहर नामक उपहार गृह है जहाँ जलपान की सुविधा उपलब्ध है।
  • एक छोटी स्मारिका की दुकान है जहाँ तरह तरह की स्मारिकाएं विक्रय हेतु रखीं गईं हैं। दुकानदार इन स्मारिकाओं को खरीदने के लिए जोर डालते है, पर मुस्कुराकर नकारात्मक शब्दों में इनसे पीछा छुड़ाना बेहतर विकल्प है।

बोरोबुदुर विरासत पर्यटन हेतु व इंडोनेशिया के प्रथम दर्शन हेतु पधारे पर्यटकों के लिए सर्वाधिक लोकप्रिय स्थल है।

हिंदी अनुवाद : मधुमिता ताम्हणे

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