Inditales https://inditales.com/hindi/ श्रेष्ठ यात्रा ब्लॉग Wed, 25 Dec 2024 05:57:28 +0000 en-US hourly 1 https://wordpress.org/?v=6.7.2 भारत – एक शाश्वत कविता https://inditales.com/hindi/bharat-ek-shashwat-kavita/ https://inditales.com/hindi/bharat-ek-shashwat-kavita/#respond Wed, 19 Feb 2025 02:30:13 +0000 https://inditales.com/hindi/?p=3769

भारत एक शाश्वत कविता है। एक जीवंत कविता, जो अपनी उच्छ्रंखल विविधता में श्वास लेती है, विभिन्न संस्कृतियों की ओढ़नियों में खिलती है, सदियों पूर्व सुनिश्चित भौगोलिक सीमाओं में स्फुरित होती है। इसकी राजनैतिक सीमाओं में अनेकों परिवर्तन आयें एवं भविष्य में आते रहेंगे। किन्तु इस देश की सीमाएं एवं इसकी चेतना को अनेकों शास्त्रों […]

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भारत एक शाश्वत कविता है। एक जीवंत कविता, जो अपनी उच्छ्रंखल विविधता में श्वास लेती है, विभिन्न संस्कृतियों की ओढ़नियों में खिलती है, सदियों पूर्व सुनिश्चित भौगोलिक सीमाओं में स्फुरित होती है। इसकी राजनैतिक सीमाओं में अनेकों परिवर्तन आयें एवं भविष्य में आते रहेंगे। किन्तु इस देश की सीमाएं एवं इसकी चेतना को अनेकों शास्त्रों में इस प्रकार परिभाषित किया है, उत्तर में हिमालय से लेकर दक्षिण में हिन्द महासागर तक। वह ना इन सीमाओं को लांघती है, ना ही इनसे सिकुड़ती हैं।

महेश्वर में नर्मदा घाट
महेश्वर में नर्मदा घाट

यह अपनी सीमाओं के भीतर सहस्त्रों ऋषि-मुनियों के अनंत वर्षों की साधना तथा ध्यान की ऊर्जा को समेटे हुए है जिन्होंने इसके पर्वतों, वनों एवं नदियों के तटों पर तपस्या की है।

भारत का नभस्थ दृष्टिकोण

एक पंछी बनकर भारत को निहारें। कवि कालिदास की उत्कृष्ट पद्मकविता मेघदूत के मेघ के दृष्टिकोण से भारत को सराहें। महाकाव्य मेघदूत में, मध्य भारत के रामटेक पर्वतों से एक प्रेमी यक्ष, वर्षा के आरम्भ में उमड़ते-घुमड़ते मेघों के द्वारा, दूर-सुदूर हिमालय की गोद में स्थित अलकापुरी में अपनी प्रियतमा पत्नी को सन्देश दे रहा है। प्रेम में विह्वल, वह मेघों से कह रहा है कि वे अपने प्रवास में प्रेम से ओतप्रोत प्रकृति के विभिन्न आयामों को निहारें। वह उन परिदृश्यों की कल्पना कर रहा है जिन्हें मेघ देखेंगे, पर्वत, नदियाँ, पुष्प, वनस्पति, जीव-जंतु इत्यादि। वह मेघों से उज्जैन जैसे नगरों की सुन्दरता का उल्लेख कर रहा है जिसकी परिभाषा ही समृद्धि है। वह उनसे उज्जैन के मार्ग में, वनों में निवास करते लोगों का उल्लेख कर रहा है। ऐसा प्रतीत होता है मानो यक्ष स्वयं ही अप्रतिम प्रकृति का दर्शन करते प्रवास कर रहा हो, अपनी कल्पना में ही सही।

प्रथम दर्शन

नभ से प्रथम दर्शन में भारत का स्वर्ग सदृश भूखंड बालू, हिम तथा हरियाली से आच्छादित दृष्टिगोचर होता है जहां पर्वतों के मध्य स्थित वनों में सिंह, बाघ, गज, गेंडे इत्यादि जैसे वनीय प्राणियों से आंखमिचौली खेलते व उछलते हिरणों के झुण्ड स्वच्छंद विचरण करते हैं। तीन ओर समुद्र से सीमित भारत प्रायद्वीप को बालू की संकरी किनारी घेरती है जिसका कुल समुद्र तट किसी भी अन्य देश के समुद्र तट से सर्वाधिक लंबा है। उत्तर-पश्चिम भाग में स्थित थार मरुस्थल एवं उसके बालू के टीलों का रहस्यमयी परिदृश्य अत्यंत लुभावना प्रतीत होता  है। मध्य भाग में स्थित जीवाश्म उद्यान में उस काल की स्मृतियाँ संजोई हुई हैं जब यह स्थान गोंडवाना का भाग था तथा यहाँ के वनों की हरियाली अपने नीचे बालू को संजोये हुए है।

हिमालय

बर्फ से आच्छादित हिमालय भारत के शीश पर विराजमान एक मुकुट के समान है। यहाँ से निकलती हिमनदियाँ मैदानी भागों से होकर बहती हुई, गंगा, यमुना व सिन्धु जैसी अनेक पवित्र व प्रसिद्ध नदियों में परिवर्तित हो जाती हैं। यही अवस्था भारत की अन्य पर्वत श्रंखलाओं की है, जैसे मध्य भाग में विन्ध्य, दक्षिण में कोडगु अथवा पश्चिम में सह्याद्री इत्यादि।

लद्दाख की हिमालय श्रंखला
लद्दाख की हिमालय श्रंखला

जिस स्थान से नदियों का उद्गम होता है उस स्थान को तीर्थ का मान दिया जाता है। वहीं जिस स्थान पर दो अथवा अधिक नदियों का मिलन होता है वह संगम भी परम पावन तीर्थ स्थान माना जाता है। उसी प्रकार जिस स्थान पर एक नदी समुद्र में जाकर उससे एकाकार हो जाती है वह स्थान भी एक तीर्थ बन जाता है।

नदियाँ

भारत की नदियाँ उसकी शिराओं एवं धमनियों के समान हैं। हमारी देह की शिराओं से बहते जीवन द्रव्य के समान इन नदियों में बहते जल ने सदियों से अपने तट पर बसी सभ्यता का पोषण किया है। भारत की भूमि पर बिछी इन शिराओं से केवल एक ही वस्तु प्रतिस्पर्धा कर सकती हैं, वह है भारत की भूमी पर किसी जाल के समान बिछी रेल की पटरियाँ जो नदियों को लांघती, पर्वतों को चीरती, सुरंगों के भीतर लुप्त सी हो जाती तथा लम्बे लम्बे मैदानी क्षेत्रों को पार करती भारत के एक छोर से दूसरी छोर तक जाती हैं।

भारत-नेपाल सीमा पर स्थित गण्डकी नदी के तीर एकल सींग के गेंडे स्वच्छंद विचरण करते हैं जिनका नाम भी नदी की ही देन है। आसाम के काजीरंगा राष्ट्रीय उद्यान के ऊंचे ऊंचे घास के मैदानों में स्वतन्त्र विचरण करते ये गेंडे किसी पालतू पशु के समान प्रतीत होते हैं। वहीं यह उद्यान चाय के विस्तृत बागानों से घिरा हुआ है जहां की चाय की सुगंध हमें प्रत्येक प्रातः नींद से जगाती है।

गंगा एवं चम्बल नदियों में गोते लगाते सूंस अथवा डॉलफिन, घड़ियाल इत्यादि भारत के राष्ट्रीय जलचर हैं। नर्मदा के तीर अनेक तीर्थयात्री नर्मदा परिक्रमा करते दृष्टिगोचर होते हैं जो नर्मदा नदी को अपने दाहिनी ओर रखते हुए नदी की २८०० किलोमीटर लम्बे पथ पर पदयात्रा करते हुए परिक्रमा करते हैं।

देश के मध्य भाग में स्थित वनों से बहती देनवा तथा पेण नदी के तट बाघों के दर्शन के सर्वोत्तम स्थान हैं जहां वे अपनी तृष्णा संतुष्ट करने आते हैं। पेंच के वनों में मोगली एवं शेरा की रोचक कथाएँ जीवंत होने लग जाती हैं। ऋषिकेश के समीप गंगा का तट हाथियों के समूहों का प्रिय स्थान है, उसी प्रकार पूर्वी हिमालय पर्वत श्रंखलाओं की तलहटी पर बहती तीस्ता नदी भी उनका पोषण करती है।

कुम्भ मेला

सौरमंडल में नक्षत्रों की एक विशेष अवस्थिति के अनुसार प्रत्येक १२ वर्षों में कुम्भ मेला भरता है। प्रयागराज में गंगा एवं यमुना के संगम स्थल पर आयोजित यह कुम्भ मेला वास्तव में किसी एक स्थान पर मानव जाति का वैश्विक रूप से एक विशालतम संगम है। यह हरिद्वार में भी उस स्थान पर आयोजित किया जाता है जहां गंगा मैदानी क्षेत्रों में प्रवेश करती है। उज्जैन की क्षिप्रा नदी के तट पर भी इस मेले का आयोजन किया जाता है, जहाँ से कर्क रेखा जाती  है। अन्य स्थल है, नासिक के गोदावरी नदी का तट। यूँ तो भारत के पवित्र स्थलों से बहती नदियों के तटों पर वर्ष भर ही भक्तों का तांता लगा रहता है जो यहाँ आकर विभिन्न पूजा-अर्चना तथा अनुष्ठान करते हैं। उनमें मुख्य हैं, हरिद्वार व वाराणसी में गंगा नदी के तट, मथुरा में यमुना नदी का तट, ओम्कारेश्वर एवं महेश्वर में नर्मदा नदी के तट, नासिक में गोदावरी नदी का तट इत्यादि।

दीपावली से १५ दिवसों के पश्चात आने वाली कार्तिक पूर्णिमा की तिथि पर देश भर के आस्थावान पावन नदियों में पवित्र स्नान करते हैं। विश्व का सर्वाधिक विशाल ऊँट मेला ब्रह्मा की नगरी पुष्कर में पुष्कर झील के समीप आयोजित किया जाता है।

नभ से भूमि के किंचित समीप आकर देखें तो उत्तराखंड एवं हिमाचल प्रदेश में हिमालय व शिवालिक पर्वत श्रंखलाओं की तलहटी पर छोटे छोटे अनेक काठकुणी मंदिर दृष्टिगोचर होंगे जो लकड़ी व शिलाओं के वैकल्पित फलकों एवं स्लेट प्रस्तर की छत द्वारा निर्मित होते हैं। उन मंदिरों में विराजमान देव पर्वतों के ऊपर से अपने क्षेत्रों की निगरानी करते हैं। लाखों छोटी छोटी जलधाराएं मिलकर सतलज एवं व्यास जैसी नदियों को जन्म देती हैं। ऊंचाई पर स्थित लाहौल का चंद्रताल तथा स्पिति का नाको ताल ऐसे प्रतीत होते हैं मानो साक्षात् स्वर्ग से धरती पर उतरे हों। इनमें, इन तालों के किनारे तपस्या में लीन, इश्वर के साक्षात् दर्शन के अभिलाषी संतों की असंख्य कथाएं सन्निहित हैं। ये ताल उन सभी चरवाहों की गाथाएँ कहते हैं जो प्रत्येक ग्रीष्म ऋतु में अपने पशुओं को लेकर यहाँ आते हैं।

भारत का थार मरुस्थल

राजस्थान के थार मरुस्थल का सुनहरा रंग, उसमें विचरण करते सुनहरे ऊँट एक अद्भुत सुनहरी आभा बिखेरते हैं। यहाँ प्राकृतिक रूप से प्राप्त श्वेत संगमरमर तथा पीला जैसलमेर आधुनिक वास्तुकारों एवं स्थापत्य विदों की अत्यधिक प्रिय शिलाएं हैं जो वर्त्तमान के गृहनिर्माण उद्योग में लोकप्रिय तत्व हैं। राजस्थान के मरुभूमि के मध्य से उभरते अनेक अप्रतिम व मनमोहक दुर्ग इस राज्य की शान हैं।

जैसलमेर का गद्सिसार सरोवर
जैसलमेर का गद्सिसार सरोवर

चीन की दीर्घतम भित्ति के पश्चात, विश्व की दूसरी एवं तीसरी सर्वाधिक विस्तीर्ण भित्तियाँ राजस्थान के कुम्भलगढ़ एवं आमेर दुर्ग के प्राचीर हैं। दुर्ग के भीतर रंगबिरंगे भित्तिचित्र रंगों की होली खेलते प्रतीत होते हैं। दुर्ग के भीतर प्रवेश करते ही एक राजसी भावना मन में हिलोरे मारने लगती है। राजस्थान के ऐसे ही अनेक दुर्गों को अब पंच तारांकित विरासती अतिथि संस्थानों में परिवर्तित कर दिया गया है जहां कुछ दिवस ठहर कर इस राजस्थानी राजपरिवारों के जीवन का प्रत्यक्ष अनुभव लिया जा सकता है।

बावड़ियां

ये बावड़ियां राजस्थान एवं गुजरात की सतह पर, जल से भरे अलंकृत पात्र के सामान हैं। सममित एवं ज्यामितीय सीढ़ियों से निर्मित बावडियों पर किये गए भव्य उत्कीर्णन इन्हें अत्यंत देदीप्यमान रूप प्रदान करते हैं। इनकी भित्तियों पर पुराणों एवं महाकाव्यों की लोकप्रिय कथाएं उत्कीर्णित हैं। ये बावड़ियां अधिकांशतः उन स्थानों पर निर्मित की गयी हैं जो प्राकृतिक जल स्त्रोतों से दूर हैं तथा जहां वर्षा भी अत्यंत सीमित होती हैं। एक समय ये बावड़ियां वहां के नागरिकों की जीवनरेखा होती थीं। इन बावडियों में पाटन में रानी की वाव अत्यंत उल्लेखनीय बावडी है जो भूमि से नीचे जाते हुए कुल सात तलों में निर्मित है। इन सीढ़ियों को ऊपर से देखने पर ऐसा प्रतीत होता है मानो ये हमें भूमि के नीचे के विश्व अथवा भूमि के गर्भ में ले जा रही हैं। किसी काल में यहाँ यात्रीगण बैठकर कुछ क्षण विश्राम करते रहे होंगे। रंगबिरंगी ओढ़नियाँ ओढ़ी स्त्रियाँ दिवस भर के कार्य पूर्ण कर जल लेने यहाँ आती रही होंगी एवं आपस में बतियाने कुछ क्षण यहाँ बैठती रही होंगी।

चाँद बावड़ी - आभानेरी - राजस्थान
चाँद बावड़ी – आभानेरी – राजस्थान

यहाँ से कुछ दक्षिण की ओर आकर हम अजंता की अद्भुत गुफाओं में पहुंचते हैं जहां २००० वर्षों पूर्व चित्रित भित्तिचित्र बुद्ध एवं बोधिसत्त्व की कथाएं कहती हैं। एलोरा की गुफाओं ने अपने भीतर भारत का सर्वाधिक अभूतपूर्व एवं विस्मयकारी अभियांत्रिक अचम्भा संजोया हुआ है। यहाँ एक अखंड चट्टान को ऊपर से नीचे की ओर काटकर एक सम्पूर्ण मंदिर उत्कीर्णित किया गया है, अर्थात चट्टान के सर्व अवांछित भागों को कुशलता से खुरचकर निकला गया है। इन्हें देख कर आश्चर्य होता है कि हमने कब, कहाँ एवं कैसे अपने पूर्वजों के उत्कृष्ट बुद्धिमत्ता एवं कौशल्या को यूँ ही खो दिया है।

खजुराहो

उत्तरी भारत के अधिकाँश मंदिर आक्रमणकारियों के हाथों उध्वस्त हो चुके हैं। किन्तु खजुराहो के मंदिर अब भी यथावत १००० वर्षों पूर्व के अपने गौरवपूर्ण इतिहास की गाथा सुना रहे हैं। उत्तर भारतीय नागर शैली में निर्मित मंदिरों में सोपानी अवसर्पण का प्रयोग कर कैलाश पर्वत का आभास देने का प्रयास किया गया है। यद्यपि मंदिरों में नागर शैली का प्रयोग सम्पूर्ण उत्तर भारत में दृष्टिगोचर होता है तथापि इस शैली की पराकाष्ठा ओडिशा के मंदिरों में दिखाई देती है। अनेक हिन्दू व जैन मंदिरों से भरा हुआ, शिलाओं का यह नगर खजुराहो, अनेक गाथाएँ सुनाता है। मंदिरों की बाह्य भित्तियों पर की गयी अप्रतिम शिल्पकारी ऐसी प्रतीत होती है मानो शिलाओं को उत्कीर्णित कर कवितायें रची गयी हों जिनकी परतों में उनका संगीत छुपा हो। यह विडम्बना है कि यह मंदिर अपनी कुछ कामुक शिल्पकारी के लिए अधिक जाना जाता है या यूँ कहें कुख्यात है।

किंचित पूर्व दिशा की ओर जाएँ तो दंडकारण्य के सघन वनों में पहुँच जाते हैं जिनका उल्लेख रामायण में भी किया गया मिलता है। आज भी आदिवासी जनजाति के लोग यहाँ के वनों के भीतर वृक्षों की आराधना करते दृष्टिगोचर होते हैं।

सीता एवं बुद्ध

बोध गया में बोधी वृक्ष के नीचे बुद्ध को प्राप्त परम ज्ञान की अनेक लोकप्रिय कथाएं जुडी हैं बिहार राज्य से जो देवी सीता एवं भगवान बुद्ध की जन्म भूमी है। बिहार के समीप, अपने सुनहरे काल की कथा कहते विश्व प्रसिद्ध नालंदा विश्वविद्यालय के चटक लाल रंग के अवशेष हैं। इस विश्वविद्यालय में विश्व भर से विद्यार्थी विद्या अर्जन करने आते थे। उन विद्यार्थियों में एक प्रसिद्ध विद्यार्थी ह्वेन त्सांग भी था जिसकी स्मृति में समीप ही एक स्मारिका भी स्थापित है। मधुबनी के निराले एवं अनूठे गाँव, घरों की भित्तियों पर किये गए अप्रतिम चित्रीकरण के कारण दूर से ही पहचाने जा सकते हैं। मधुबनी की विलक्षण चित्रकला ने निर्मल व शांत गाँवों की गलियों से विश्व भर के संग्रहालयों तक की यात्रा सफलता पूर्वक पूर्ण की है।

भारत का मानसून

भारत में मानसून इसके दक्षिणी छोर पर स्थित केरल से आरम्भ होता है। जून मास में, जब भारत के अधिकाँश प्रदेशों में ग्रीष्म ऋतु अपनी चरम सीमा पर रहती है, तब मानसून केरल की ओर से देश में प्रवेश करता है तथा शनैः शनैः उत्तर की ओर बढ़ते हुए वर्षा की बाट जोहती तपती धरती पर शीतलता का मलहम लगाता है। अपने मार्ग में सभी को शीतलता में सराबोर करता हुआ तृष्णा भरी धरती को पोषित करता जाता है। मानसून कृषि प्रधान भारत की आन, मान एवं शान है।

भारत का समुद्र तट
भारत का समुद्र तट

केरल में हरियाली के विभिन्न रंग हमारे नैनों को चुनौती देते प्रतीत होते हैं। केले के ताजे वृक्ष के हलके हरे रंग से नारियल के वृक्ष के तने पर लिपटी काली मिर्च की लताओं के सघन हरे रंग तक, रंगों के इतने प्रकार विस्मृत कर देते हैं। केरल मसालों की भूमि है। यहाँ की काली मिर्च एवं अन्य मसालों के लिए प्राचीन काल से अनेक देशों के व्यापारी जहाज यहाँ लंगर डालते आये हैं। मसालों में इलायची, दालचीनी, जायफल, लौंग इत्यादि प्रमुख हैं। केरल के हरियाली से ओतप्रोत वन हाथियों से भरे हुए हैं। केरल के मंदिरों के उत्सवों में भी हाथियों की महत्वपूर्ण भागीदारी होती है। अरब महासागर से आती अप्रवाही जल की अनेक नदियाँ केरल की धरती पर सघन जाल बुनती हैं।

सर्प नौकाएं

मानसून के मध्य में केरल में एक अद्भुत उत्सव का समय आता है जब केरल के स्त्री पुरुष अपनी लम्बी लम्बी सर्प नौकाओं को जल में उतारते हैं। यहाँ के अनेक मंदिरों में जलोत्सव मनाया जाता है जब इन नौकाओं की दौड़ प्रतियोगिताएं आयोजित की जाती हैं। यह मानसून का उत्सव मनाने की एक अप्रतिम रीत है। केरल में लकड़ी के मंदिरों की नारियल तेल में भीगी भित्तियाँ भी अनेक कथाएं कहती हैं।

शिलाओं की कथाएं

केरल से पूर्व दिशा में तमिल देशम है जहां की शिलाएं विशालतम एवं प्राचीनतम कथाएं कहती हैं। उन्हें शिलाओं द्वारा प्रस्तुत कविता कहा जाए तो अतिशयोक्ति नहीं होगी। आप उहापोह के भंवर में फंस जायेंगे कि कहाँ-कहाँ जाएँ, कहाँ-कहाँ देखें अथवा महाबलीपुरम, कांचीपुरम, श्रीरंगम, चिदंबरम जैसे सुन्दर स्थलों में किस का चुनाव करें। तमिलनाडु के महाबलीपुरम का शोर मंदिर भारत के लगभग पूर्वोत्तर भाग में स्थित है। कोरोमंडल तट पर स्थित यह मंदिर बंगाल की खाड़ी का अवलोकन करता प्रतीत होता है। यह अखंड मंदिर है जिसकी रूपरेखा पांच रथों की भाँति है। मंदिर का कुछ भाग समुद्र में जलमग्न हो गया है। पाँच होने के कारण इन मंदिरों को पांच पांडवों के नाम से जाना जाता है, जैसा कि सम्पूर्ण भारत में प्रथा सी बन चुकी है।

प्राचीनतम हिन्दू मंदिर

महाबलीपुरम में अर्जुन तपस्या तथा कृष्ण का माखन गोला जैसी अद्भुत शिल्पकारी पर से दृष्टी हटाये नहीं हटती। किन्तु इनके अतिरिक्त श्रीरंगम के शिव एवं शक्ति मंदिरों के गगनभेदी गोपुरमों पर की गयी शिल्पकारी का भी अवलोकन अवश्य किया जाना चाहिए। यह विश्व का विशालतम जीवंत मंदिर परिसर है। किसी जीवंत नगरी के समान इस मंदिर परिसर में सात भित्तियों को घेरते २१ गोपुरम हैं। प्रत्येक मंदिर की भित्तियों पर विस्तृत व उत्कृष्ट उत्कीर्णन हैं जिनमें पुराणों एवं महाकाव्यों की कथाएं प्रदर्शित की गयी हैं। जो इन कथाओं को जानते हैं तथा शिल्पों को समझते हैं उनके लिए इन शिल्पों की सूक्ष्मताओं अध्ययन करना अत्यंत आनंददायी होता है। इन दृश्यों में दैवी एवं मानवी आकृतियों को अत्यंत उत्कृष्टता से उकेरा गया है। ऐसा प्रतीत होता है मानो इनके बोलते नैन अभी झपकने लगेंगे तथा उनके कंपकंपाते होंठ अभी बोलने लगेंगे। इन सब पर विश्वास करने के लिए यहाँ आकर प्रत्यक्ष इनके दर्शन करना आवश्यक है। यहाँ आकर ही आप इन मूर्तियों को बोलते एवं पुराणों की कथाएं कहते देख सकते हैं।

रामेश्वरम का पम्बन सेतु
रामेश्वरम का पम्बन सेतु

इन मूर्तियों पर उत्कीर्णित आकर्षक आभूषण, उत्तम वस्त्र, विभिन्न अद्भुत केश-सज्जा, पाँव में आधुनिक प्रतीत होते चप्पल इत्यादि देख आप दांतों तले उंगली दबा लेंगे। देवों को उनके वाहनों पर बैठे तथा अपने अस्त्र-शस्त्र व अन्य चिन्ह लिए दर्शाया गया है। ये प्रतिमाएं ऐसी प्रतीत होती हैं मानो उनके उठे हस्त तथा खुले अधरों से वरदान के शब्द निकलने लगेंगे। रामायण एवं महाभारत जैसे महाकाव्यों के दृश्य भित्तियों पर उकेरे गए हैं, चाहे मंदिर उत्तर भारत के हों अथवा दक्षिण भारत के। दक्षिण भारतीय छोर पर रामसेतु है जो गर्भनाल के रूप में श्रीलंका द्वीप को भारत से जोड़ती है।

कॉफी के प्रदेश

कॉफी के प्रदेश कुर्ग में कावेरी नदी का उद्गम है। बंगाल की खाड़ी तक जाते जाते कावेरी नदी मार्ग में भारत के दक्षिणी भागों का पोषण करती जाती है। एक समय इस नदी के तट पर फलते-फूलते मैसूर राज्य की सम्पन्नता अपनी चरम सीमा पर थी।  यह राज्य अब भी अपने विशेष दशहरा उत्सव के लिए जगप्रसिद्ध है। उत्तर कर्णाटक के चालुक्य भूमि पर ऐहोल में ऐसी कार्यशालाएं हैं जहां मंदिर के उत्कीर्णन का प्रशिक्षण दिया जाता था। समीप ही बादामी के बदामी रंग की गुफाएं एवं पट्टडकल के विशेष वास्तुशिल्प युक्त मंदिर हैं। निकट ही विजयनगर साम्राज्य के भव्य एवं राजसी नगरी हम्पी के अवशेष भी हैं। विश्व के सर्वाधिक संपन्न राज्यों में से एक राज्य, हम्पी के अवशेष विश्व का सर्वाधिक सुन्दर अवशेष हैं।

गोदावरी

किंचित उत्तर दिशा में जाएँ तो गोदावरी नदी घुमते इठलाते आँध्रप्रदेश के खेतों में पहुँचती है। कृष्णा नदी गुंटूर की तीखी लाल मिर्चों को अपना स्वाद प्रदान करती है। गुंटूर वह नवीनतम नगरी है जो प्राचीन अमरावती नगरी के नवीन स्वरूप में प्रकट हुई है। किंचित उत्तर में, ओडिशा में भगवान विष्णु एक उत्कृष्ट रूप से उत्कीर्णित मंदिर के भीतर जगन्नाथ के रूप में निवास करते हैं। इसके चारों ओर उत्कृष्टता से परिपूर्ण अनेक मंदिर एवं गुफाएं हैं जिनके मध्य अनेक ऐसे कलाकार रहते हैं जो अप्रतिम चित्रकारी द्वारा पौराणिक कथाओं को जीवंत करते हैं। कोणार्क का सूर्य मंदिर अपने खंडित रूप में भी अपनी उत्कृष्टता बनाए हुए है। रथ के आकार की उसकी भव्य संरचना तथा चारों ओर खड़े सुडौल चक्के आज भी कारीगरों की उत्कृष्टता का प्रमाण देते हैं।

टेराकोटा के मंदिर

बंगाल की ओर जाएँ तो शिलाओं की अनुपस्थिति में, कारीगरों ने टेराकोटा अथवा लाल-भूरी पकी मिट्टी की पट्टिकाओं पर पौराणिक कथाओं को गढ़ कर मंदिरों की भित्तियों पर लगाया है ताकि भविष्य में आने वाली पीढ़ियों के लिए ये कथाएं सुरक्षित हो जायें। इन्ही कथाओं को बुनकरों ने प्रसिद्ध बालुचेरी साड़ियों पर अप्रतिम रूप से जीवंत किया है। बंगाल का कभी ना भुला पाने वाला ठेठ देहाती एवं कर्णप्रिय बाउल संगीत बंगाल के छोटे छोटे नगरों एवं गाँवों की गलियों में गुंजायमान होता है। इसके अतिरिक्त विश्वप्रसिद्ध विश्वविद्यालय शान्ति निकेतन है जिसकी स्थापना रविन्द्र नाथ ठाकुर ने की थी।

ब्रह्मपुत्र

भारत का उत्तर-पूर्वी छोर अर्थात पवित्र ईशान कोण अनेकों जनजातियों का निवास स्थान है जो ब्रह्मपुत्र नदी के दोनों ओर रहते हैं। उन स्थानों में ब्रह्मपुत्र नदी पर स्थित मजूली द्वीप भी सम्मिलित है जो विश्व का विशालतम नदद्वीप  है। इस स्थान पर वैष्णव सत्र भी है जिन्होंने शंकर देव की विरासत को जीवंत रखा हुआ है। इस स्थान पर प्रकृति की दया अपनी चरम सीमा पर रहती है। पर्वतों पर सघन हरियाली, उपजाऊ भूमि, पर्वतों के मध्य बिखरे सरोवर एवं वनीय प्रदेश, ऊंचे व गहरे जलप्रपात इत्यादि इस स्थान को स्वर्ग सदृश बनाते हैं। इनके मध्य अनेक गुप्त गुफाएं, वनीय पुष्प, फल, जीव-जंतु इत्यादि प्रकृति को सम्पूर्ण बनाते प्रतीत होते हैं।

पश्चिम का मोढेरा सूर्य मंदिर, पूर्व का कोणार्क सूर्य मंदिर तथा उत्तरी पर्वतों के कुछ अन्य सूर्य मंदिर आपके कानों में सूर्य आराधना के गौरवपूर्ण इतिहास की कथा सुनाते हैं। उसी सूर्य की आराधना जो हमारे जीवन में दिवस- रात्र के चक्र का संगीत भरते हैं। भारत देश के हृदयस्थली नैमीषारन्य है, जो ऐसा वन है जिसके विषय में प्रत्येक ग्रंथ व पुराण में साधुओं के निवास के रूप में उल्लेख किया गया है। इसी स्थान पर अनेक ग्रंथों की रचना हुई, उनका आदान-प्रदान हुआ तथा उन पर अनवरत चर्चाएँ हुई हैं। उस काल की कथा सुनाते वृक्ष यहाँ गर्व से खड़े हैं जिन्होंने कदाचित उन चर्चाओं का श्रवण किया होगा। धर्म के मार्ग पर चलने वाले भक्तों का यह तीर्थस्थल है।

अंत में मैं यही कहना चाहूंगी कि भारत की चेतना अब भी उसके ग्रामीण क्षेत्रों में स्फुरित होती है जो सम्पूर्ण भारत में बिखरे हुए हैं। कमलों से भरे तालाब, गाय के गोठे, विशाल वृक्षों की छाँव में बने चबूतरे, यही भारत के गाँवों की शान है तथा भारत का मान है, जहाँ प्रकृति के सानिध्य में जीवन अत्यंत सादा, सरल एवं पावन होता है।

मार्टिन लूथर किंग ने कहा था – मैं दूसरे देशों में भले ही एक पर्यटक की भाँती जाऊं, किन्तु भारत में मैं एक तीर्थयात्री बनकर गया था। भारत एक ऐसा देश है जहां प्रत्येक पर्वत, चट्टान, नदी तथा सरोवर दैवी हैं तथा प्रत्येक यात्री एक तीर्थयात्री है।

सर्वप्रथम Hinduism Today Magazine में प्रकाशित किया था।

अनुवाद: मधुमिता ताम्हणे

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कुमाऊँ के मनमोहक पक्षी – उत्तराखंड में प्रकृति का आनंद https://inditales.com/hindi/kumaon-ke-manmohak-pakshi/ https://inditales.com/hindi/kumaon-ke-manmohak-pakshi/#respond Wed, 12 Feb 2025 02:30:09 +0000 https://inditales.com/hindi/?p=3766

भारत के पर्वतीय राज्य उत्तराखंड को प्रकृति ने अनेक अद्भुत उपहारों से अलंकृत किया है। उनमें से एक है, इस प्रदेश के मनमोहक पक्षी। भारतीय उपमहाद्वीप में पाए जाने वाले पक्षियों की विविध प्रजातियों में से लगभग ७०० प्रजातियाँ उत्तराखंड में भी देखी गयी हैं। अब तक मैंने देवभूमि उत्तराखंड में जितने भी भ्रमण किये […]

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भारत के पर्वतीय राज्य उत्तराखंड को प्रकृति ने अनेक अद्भुत उपहारों से अलंकृत किया है। उनमें से एक है, इस प्रदेश के मनमोहक पक्षी। भारतीय उपमहाद्वीप में पाए जाने वाले पक्षियों की विविध प्रजातियों में से लगभग ७०० प्रजातियाँ उत्तराखंड में भी देखी गयी हैं।

चील
चील

अब तक मैंने देवभूमि उत्तराखंड में जितने भी भ्रमण किये हैं, मेरी भ्रमण सूची हिमालय, सूर्योदय के दृश्यों, वहाँ के परिदृश्यों आदि के चारों ओर ही केन्द्रित रही है। यद्यपि उत्तराखंड में पाए जाने वाले भिन्न भिन्न मनभावन पक्षियों के दर्शन करने की मेरी अभिलाषा सदा से थी, तथापि मैं वहाँ के पक्षियों के दर्शन के उद्देश्य से एक विशेष यात्रा का नियोजन अब तक नहीं कर पायी हूँ।

पूर्णरूपेण ना सही, कुमाऊँ के पक्षियों पर सरसरी दृष्टि डालने का अवसर मुझे अवश्य प्राप्त हुआ। कुमाऊँ के इन मनमोहक पक्षियों ने मुझे इस प्रकार मंत्रमुग्ध किया कि मैंने पक्षी दर्शन के उद्देश्य से भविष्य में एक पूर्वनियोजित भ्रमण करने का निश्चय अवश्य कर लिया है।

कुमाऊँ में विविध पक्षियों के दर्शन

जब तक कुमाऊँ में पक्षी दर्शन हेतु विशेष भ्रमण की मेरी योजना यथार्थ में परिवर्तित नहीं हो जाती, आईये मैं कुमाऊँ क्षेत्र के कुछ ऐसे पक्षियों से आपका परिचय कराती हूँ जिन्होंने मेरे पूर्व भ्रमण में मुझे अपने दर्शन देकर अनुग्रहीत किया था।

काठगोदाम

कुमाऊँ में हमारे सड़क भ्रमण का प्रथम पड़ाव था, काठगोदाम। हल्दवानी पार कर हम काठगोदाम पहुँचे। यहीं से उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्र आरम्भ होते हैं। दिल्ली से लम्बी यात्रा कर जब हम यहाँ पहुँचे, हमारी क्षुधा अपनी चरम सीमा पर पहुँच चुकी थी। दोपहर के भोजन के लिए हम नदी के तट पर स्थित एक जलपानगृह पर रुके। अकस्मात् ही सुग्गों की किलबिलाट ने हमारा ध्यान आकर्षित किया। नदी के दूसरे तट पर दर्रे के भीतर बैठे दर्जन भर लाल सर वाले टुइयाँ सुग्गे अथवा टुइयाँ तोते (Plum-Headed Parakeet) चहचहा रहे थे। कुछ क्षणों पश्चात हमने एक ओकाब (Steppe Eagle) को नदी के ऊपर उड़ते हुए देखा। वह हमारे जलपानगृह के छज्जे के अत्यंत निकट उड़ रहा था। इस प्रकार अनायास ही हमारा पक्षी दर्शन आरम्भ हो गया था।

भीमताल

काठगोदाम से कुछ दूरी पार कर हम भीमताल पहुँचे। कुमाऊँ मंडल विकास निगम के विश्राम गृह में ठहरने की सर्व औपचारिकताएं पूर्ण करने के पश्चात हम नौकुचिया सरोवर पहुँचे। वहाँ रामचिरैया (Kingfisher) से लेकर काले बगुलों (Heron) की विविध प्रजातियों तक अनेक पक्षी थे। जल क्रीड़ाओं एवं हंसों के एक विशाल समूह ने हमें मंत्रमुग्ध कर रखा था। कुछ नन्हे बालक-बालिकाएं सरोवर के जल में बिस्कुट के टुकड़े डाल रहे थे जिनसे आकर्षित होकर अनेक हंस वहाँ एकत्रित हो गए थे। टुकड़े समाप्त होने पर वे कलरव करते हुए उनसे अधिक भोजन की मांग कर रहे थे। उनका पीछा करते हुए वे सरोवर के सोपानों तक पहुँच गए थे।

अगले दिवस प्रातः काल हम अपने विश्राम गृह के उद्यान में बैठकर अपनी प्रातःकालीन चाय की प्रतीक्षा कर रहे थे कि अकस्मात् ही हमें पक्षियों की किलबिलाट सुनाई पड़ी। वहाँ हमने अनेक पक्षियों को देखा। उनमें से कुछ ऐसे पक्षी थे जिन्हें हम सर्वप्रथम प्रत्यक्ष देख रहे थे। इससे पूर्व हमें उन पक्षियों को देखने एवं उनके चित्र लेने का अवसर प्राप्त नहीं हुआ था। वहाँ लाल चोंचधारी नीली मैगपाई (Red- Billed Blue Magpie), हिमालयी बुलबुल, पहाड़ी बुललचष्म (Scarlet Minivet) तथा जंगली मैना जैसे अनेक पक्षी दृष्टिगोचर हुए।

भीमताल के निकट पदभ्रमण करने के पश्चात हम सातताल पहुँचे। यहाँ हमने कुछ जलक्रीड़ाओं का आनंद उठाया। सरोवर के सानिध्य में पदभ्रमण किया। वहाँ हमें कौए के समान श्याम वर्ण पक्षी अनवरत दिखाई पड़ रहे थे। किन्तु उनका आचरण कौओं के समान प्रतीत नहीं हो रहा था। साधारणतः कौए भोजन की अपेक्षा में मानवों के समीप मंडराते रहते हैं। किन्तु ये पक्षी हमसे लुका-छिपी खेल रहे थे। उनके चित्र लेने के हमारे सर्व प्रयास निष्फल हो रहे थे। अंततः उनके कुछ चित्र लेने में हम सफल हुए। उन चित्रों को देख विशषज्ञों ने हमें जानकारी दी कि वह पक्षी सीटी बजाने वाला नीलवर्ण कस्तुरा (blue-Whistling Thrush) था। मुक्तेश्वर

हमारा अगला पड़ाव था, मुक्तेश्वर। प्रातः सूर्योदय से पूर्व ही हम विश्राम गृह से चल पड़े थे। हिमालय के पर्वत शिखरों के मध्य से उगते सूर्य को देखने की अभिलाषा थी। अप्रतिम सूर्योदय के दर्शन तो हुए ही, साथ ही भिन्न भिन्न पक्षियों को देख रोम रोम आनंदित हो गया। हमें वहाँ अनेक श्याम शीर्षा वनकाग (Black-Headed Jay), धूसर पिद्दा (Grey Bush Chat), बबूना (Oriental White-Eye), हिमालयी बुलबुल, मस्जिद अबाबील (Striated Swallow), गौरैया (Russet-Sparrow) आदि के दर्शन हुए। अप्रतिम सूर्योदय के दर्शन के पश्चात पदभ्रमण करते हुए हमें कठफोड़वा (Rufous-Bellied Woodpecker) के दर्शन का आनंद प्राप्त हुआ।

बिनसर

हिमालय पर्वत श्रंखलाओं का निकट से दर्शन करने के लिए हमने बिनसर में पड़ाव डाला। वहाँ अनेक अचम्भे हमारी प्रतीक्षा कर रहे थे। हमने वहाँ काला तीतर (Black Francolin) देखा जो हमें देखते ही तुरंत कहीं जाकर छुप गया। वहाँ अनेक कछुआ कबूतर (Oriental Turtle Dove) थे जो बिनसर में आये पर्यटकों का आनंदपूर्वक अभिनन्दन कर रहे थे।

कुमाऊँ में पक्षी दर्शन के लिए कुछ आवश्यक सूचनाएं

इस संस्करण में अब तक जो मैंने प्रस्तुत किया है, वह हिमशैल का केवल शीर्ष है। देवालय शिखर का कलश मात्र है। उत्तराखंड में अनेक असाधारण हिमालयी पक्षियों का वास है जो केवल इसी क्षेत्र में पाए जाते हैं।

  • उत्तराखंड एक पर्वतीय क्षेत्र है जहाँ मार्ग अत्यंत जोखिम भरे तथा संकरे होते हैं। पक्षियों के अवलोकन तथा चित्रांकन हेतु अपने वाहनों को इन संकरे मार्गों पर जहाँ चाहें वहाँ खड़ा ना करें।
  • पक्षी दर्शन का सर्वोत्तम साधन है, पदभ्रमण। प्रातः, अरुणोदय काल में, अर्थात सूर्योदय से कुछ पूर्व ही नगरी वातावरण से दूर जाकर प्राकृतिक परिवेश में पदभ्रमण प्रारंभ करें। आप विविध पक्षियों के दर्शन उनके प्राकृतिक परिवेश में कर सकते हैं।
  • पक्षी दर्शन एक गहन उपक्रम है जिसके लिए धैर्य, सूक्ष्म दृष्टि एवं विविध पक्षियों के कलरव को ध्यान पूर्वक सुनने की आवश्यकता होती है।

हमने अपने उत्तराखंड भ्रमण में अनेक पक्षियों के दर्शन किये। किन्तु हमारी यह यात्रा पक्षी दर्शन विशेष नहीं थी। इन पक्षियों के अवलोकन के पश्चात हमारे भीतर यह तीव्र अभिलाषा उत्पन्न हो गयी है कि भारत के इस पर्वतीय राज्य में हम पुनः शीघ्र आयें तथा उत्तराखंड के वैशिष्ट्य पूर्ण पक्षियों के अवलोकन का आनंद उठायें। मेरे पंख-युक्त प्रिय सखाओं, मैं आपसे भेंट करने पुनः शीघ्र आऊंगी! इस संस्करण में पक्षियों के चित्रों की संख्या को सीमित करने के लिए मैंने उनके समुच्चित चित्र प्रकाशित किये हैं।

अनुवाद: मधुमिता ताम्हणे

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मुद्रा की यात्रा – मुंबई का आर बी आई मुद्रा संग्रहालय https://inditales.com/hindi/mudra-sangrahalay-mumbai/ https://inditales.com/hindi/mudra-sangrahalay-mumbai/#respond Wed, 05 Feb 2025 02:30:30 +0000 https://inditales.com/hindi/?p=3762

मुंबई में भारतीय रिज़र्व बैंक का मौद्रिक संग्रहालय अपने  देश में एक  अलग प्रकार का संग्रहालय है| भारत के इतिहास के माध्यम से यह संग्रहालय आपको सिक्कों, रुपयों  और दूसरी मुद्राओं के इतिहास से अवगत कराता है| इस संग्रहालय के माध्यम से हम स्वतंत्र भारत तक विभिन्न ऐतिहासिक वंशजों, रियासतों और विदेशी साम्राज्यों के प्रारंभ […]

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मुंबई में भारतीय रिज़र्व बैंक का मौद्रिक संग्रहालय अपने  देश में एक  अलग प्रकार का संग्रहालय है| भारत के इतिहास के माध्यम से यह संग्रहालय आपको सिक्कों, रुपयों  और दूसरी मुद्राओं के इतिहास से अवगत कराता है| इस संग्रहालय के माध्यम से हम स्वतंत्र भारत तक विभिन्न ऐतिहासिक वंशजों, रियासतों और विदेशी साम्राज्यों के प्रारंभ काल तक की मुद्राओं से भी अवगत  होते हैं| यह आपको भारतीय रिज़र्व बैंक, उसके उद्देश्यों, इतिहास और उसके कार्यों का परिचय भी देता है|

आर बी आई मौद्रिक संग्रहालय, मुंबई

यहाँ आने वालों को यह संग्रहालय मुद्रा की अवधारणा से परिचित कराता है| इसके शरुआती अवतार जैसे वस्तु विनिमय प्रणाली और गाय प्रणाली  से  भी अवगत कराता है| वहाँ पर आप एक स्वर्ण बार भी देख सकते हैं जिसका उपयोग वित्तीय साधन के रूप में किया जाता है|

सिक्के

यह संग्रहालय आपको समय के माध्यम से सिक्कों के बारे में  अवगत कराता है| कौन सी प्रौधोगिकी सिक्कें बनाने में इस्तेमाल की जाती थी, किस धातु का प्रयोग होता था, उनकी मोहर व टकसाल आदि ये बातें भी वहाँ दर्शाई गयी हैं| मूलरूप से जो भी जानकारी आप सिक्कों के बारें में जानना चाहते हैं उन सभी का उत्तर आपको यहाँ मिल जायेगा| आप वहाँ रखे सिक्कों को देखकर उस अवधी की समृधि का भलीभांति अंदाजा लगा सकतें हैं| अच्छे आर्थिक समय के दौरान सिक्के अधिक कीमती धातु से निर्मित थे और उनकी कारीगरी भी उत्तम थी|

कागज़ी मुद्रा

संग्रहालय का कागज़ी मुद्रा का भाग भी बहुत रोचक है| सिक्कों की तुलना में कागज़ी मुद्रा का चलन अट्ठारवीं शताब्दी में हुआ था लेकिन उन्नीसवीं शताब्दी में ही उसको प्रमुखता मिली| आप वहाँ पर उन प्रारंभिक बैंकों के बारे में भी जानकारी प्राप्त कर सकते हैं जिन्होंने कागज़ी मुद्रा की पेशकश की थी| शुरुवाती समय में कागजी नोट एकतरफा थे| ऐसा लगता है कि बैंकरों ने प्रत्येक नोट व्यक्तिगत रूप से हस्ताक्षर करने के लिये इस्तमाल किया और यह हस्ताक्षर करने की प्रथा आज भी विभिन्न रूपों में जारी है| जब आप सरल पुरानी शैली के विशाल नोट को देखेंगे तो आपके चेहरे पर अपने आप ही एक मुस्कान आ जायेगी|

मुद्रा की बारीकियां

आर बी आई मौद्रिक संग्रहालय का एक अन्य खंड आपको मुद्रा की बारीकियों को बताता है| जैसे कि कौन सा सिक्का किस टकसाल में बना, कैसे पता लगा सकते हैं कि नोट असली है या नकली| वहाँ छोटे

क्विज़ेज हैं जिनके माध्यम से आप मुद्रा के बारे में आपने ज्ञान को जाँच सकते हैं| कुछ ऐसी आंख खोलने वाली जानकारियां हमें वहां प्राप्त होती हैं जिनसे हम पहले अवगत नहीं होते| उन सभी आर बी आई गवर्नरके चित्र वहाँ लगे हैं जिनके हस्ताक्षर कागज़ी मुद्रा के पीछे अंकित हैं|

संग्रहालय विवरण

मुंबई में जैसे सब कुछ है उसी तरह संग्रहालय को भी एक संगठित स्थान पर बनाया गया है लेकिन वहाँ जो भी रक्खा गया है वह बड़े व्यवस्थित ढंग से दर्शया गया है| सही चन्हों के माध्यम से आप पूरे संग्रहालय को ठीक प्रकार से  बिना कुछ छोड़े देख सकते हैं| रोशनी की वहाँ उचित व्यवस्था है| कुछ स्थान पर सेंसर प्रकाश  है जैसे जब आप दर्शाई हुई चीज़ के निकट जायेंगे तो प्रकाश स्वतः हो जायेगा और दूर जाने पर पुनः बंद हो जायेगा| आपको संग्रहालय के अंदर कुछ भी ले जाने की अनुमति नही है| इसलिए आप वहाँ की फोटो भी नही ले सकते हैं| वहाँ से आप ५००० और १०००० के नोटों का प्रतिरूप ले सकते हैं एक विवरण पुस्तिका के साथ जिसके माध्यम से आपको उन जानकारियों का पता चलेगा जो असली और नकली मुद्रा को पहचानने में आपकी मदद करेगी| वहाँ बनी एक डेस्क से हम एक छोटी पुस्तिका खरीद सकते हैं जिसके द्वारा संग्रहालय के विभिन्न भागों की जानकारियां हम प्राप्त कर सकते हैं|

मैं चाहती हूँ कि आर बी आई उन लोगों को जो मुद्राशास्त्र में रूचि रखते हैं प्रचलन के सिक्के और स्मारक सिक्के जरूर उपलब्ध करवाये| मैं यह भी चाहती हूँ कि संग्रहालय को देखने वालों की संख्या में वृद्धि हो, और बहुत से लोगों को इस महत्वपूर्ण जगह के बारे में पता चले|

जब तक आप आर बी आई मुद्रिक संग्रहालय की यात्रा नहीं कर पाते तब तक आप उनकी वेबसाइट के माध्यम से मुद्राओं के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी हाँसिल कर सकते हैं|

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एक सुविधा संपन्न व्यवसायिक (Luxury Business) होटल से १० महत्वपूर्ण अपेक्षाएँ https://inditales.com/hindi/5-sitara-hotel-se-apekshayen/ https://inditales.com/hindi/5-sitara-hotel-se-apekshayen/#respond Wed, 29 Jan 2025 02:30:11 +0000 https://inditales.com/hindi/?p=3758

विश्वभर में अनेक कारणों से यात्राएँ की जाती हैं। इन यात्राओं का प्राचीनतम स्वरूप है, व्यवसाय के लिए यात्राएँ करना। जब आप प्राचीन विश्व के व्यापार के विषय में अध्ययन करेंगे तो पायेंगे कि अधिकतर व्यापार मार्गों की सेवाएँ उन व्यापारियों ने लीं थी जो विश्वभर में अपने उत्पाद का विनिमय(trade) करते थे। पुरातन काल […]

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विश्वभर में अनेक कारणों से यात्राएँ की जाती हैं। इन यात्राओं का प्राचीनतम स्वरूप है, व्यवसाय के लिए यात्राएँ करना। जब आप प्राचीन विश्व के व्यापार के विषय में अध्ययन करेंगे तो पायेंगे कि अधिकतर व्यापार मार्गों की सेवाएँ उन व्यापारियों ने लीं थी जो विश्वभर में अपने उत्पाद का विनिमय(trade) करते थे। पुरातन काल से लेकर २१वीं सदी तक के यात्रा उद्योग आंकड़ों में एक बड़ा भाग व्यापार संबंधी यात्राओं का रहा है। यद्यपि वर्तमान परिप्रेक्ष्य में आनंद के लिए यात्राएं करना अधिक प्रचलित प्रतीत होता है जिसका कारण है, संचार माध्यमों(Social Media) में उपलब्ध भरपूर स्थान जहाँ वे अपने अनुभव सबसे बांटते हैं, तथापि व्यवसायिक यात्राएं (business travels) ही हैं जो व्यवसायिक परिप्रेक्ष्य एवं पर्यटन उद्योग(Travel Industry) का महत्वपूर्ण केंद्र बिंदु है।

अपने Corporate व्यवसाय काल में मेरी अधिकतर यात्राएँ व्यवसाय संबंधी ही होती थीं। इन यात्राओं में मुझे कभी कभी सप्ताहांत अवकाश के अवसर भी मिल जाते थे जिसमें मैं उस स्थान की विशेषताओं की खोज करने निकल पड़ती थी। मुझे जब भी कुछ समय मिलता, मैं वहाँ के इतिहास एवं संस्कृति के विषय में जानने का प्रयास अवश्य करती थी जिससे उस स्थान के विषय में विस्तृत जानकारी एकत्र करने के लिए पुनः वहाँ जाने की आकांक्षा भी उत्पन्न हो जाया करती थी। कालांतर में यात्रा संस्मरण लेखिका(Travel Blogger) बनने के पश्चात मेरी सभी मीडिया यात्राएँ व्यवसायिक यात्राएँ होती हैं जो पर्यटन उद्योग के संयोजन से आयोजित की जाती हैं।

व्यवसायिक यात्राओं एवं आनंद यात्राओं में बहुत भिन्नता होती हैं क्योंकि उनके ध्येय में भिन्नता होती है, उनकी आवश्यकताओं में भिन्नता होती है, इसलिए उनसे अपेक्षाओं में भी भिन्नता होती है। व्यवसायिक यात्राएँ अधिकतर अकेले अथवा सहकर्मियों के साथ की जाती हैं। उस यात्रा से किसी ध्येय की पूर्ती की अपेक्षा होती है। हमें व्यवसाय संबंधी बैठकें(business meetings) आयोजित करनी पड़ती हैं अथवा ऐसी बैठकों में भाग लेना पड़ता है। इसके पश्चात उन पर कार्य करना पड़ता है। अतः हमारी हमारे होटलों से विशेष सेवाओं की अपेक्षा होती है जो हमारे व्यवसायिक यात्रा आवश्यकताओं को पूरा कर सकें। कई ऐसे होटल हैं जो स्वयं को व्यवसायिक होटल(business hotel) के रूप में प्रस्तुत करते हैं। किन्तु उनमें अधिकतर होटल व्यवसायिक तथा अवकाश दोनों यात्रियों को सेवायें देते हैं।

व्यवसायिक यात्रियों के लिए सुविधा संपन्न व्यवसायिक होटल

किसी भी सुसंपन्न व्यवसायिक होटल से मेरी क्या अपेक्षाएं हैं?

त्वरित आगमन/प्रस्थान प्रक्रिया ( Quick Check-In / Check-Outs)

अधिकतर सुसंपन्न होटलों में मैंने देखा है कि उनकी आगमन औपचारिकता बड़ी ही धीमी गति से पूर्ण की जाती है। अनेक अवसरों पर आगमन स्थल(Check In Desk) पर सभी प्रक्रियाएं पूर्ण करने करते मेरे ४५-६० मिनट तक व्यतीत हो गए। हमें वहाँ पहुँच कर अपनी बैठकों अथवा सम्मेलनों में तुरंत पहुँचना होता है, जिसके लिए हमें अपने कक्ष में जाकर, बैठक के लिए सज्ज होकर तुरंत निकलने की आतुरता रहती है। उस समय जब होटल के कर्मचारी आगमन प्रक्रिया में विलम्ब करें अथवा हमारा सामान कक्ष में पहुंचाने में देरी करें तो चिढ़चिढ़ाहट हो जाती है।

होटल छोड़ते समय भी यही होता है। यदि सभी प्रक्रियाएं त्वरित गति से पूर्ण ना की जाएँ तो बहुत विलम्ब हो जाता है। व्यवसायिक यात्राओं में बहुधा हमारे पास समय की कमी रहती है। ऐसे में हम अपना एवं अपने नियुक्ता का मूल्यवान समय गँवा देते हैं।

यदि अवकाश में आनंद के लिए यात्रा की जा रही हो तो हमारी एक भिन्न मनःस्थिति होती है। तब कदाचित मैं यह विलम्ब सहन भी कर लूं। किन्तु व्यवसायिक यात्रा में यह समय का दुरुपयोग ही कहलायेगा।

विस्तृत स्वच्छ प्रकाशित मेज(Large Clean & Well-Lit Desk)

जब कोई होटल स्वयं को व्यवसायिक होटल के रूप में प्रस्तुत करता है तो उन्हें यह ध्यान रखना चाहिए कि उनके कक्ष में एक बड़ा, स्वच्छ और पर्याप्त रूप से प्रकाशित मेज होना आवश्यक है। स्वच्छ से मेरा अभिप्राय धूल आदि नहीं है, वह तो वैसे भी नहीं होनी चाहिए। स्वच्छ से मेरा अभिप्राय है कि मेज पर अनावश्यक वस्तुएं नहीं होनी चाहिए, जैसे टोकरी, पुष्पगुच्छ आदि। मुझे मेज पर अपने लैपटॉप के साथ साथ अपने सभी इलेक्ट्रोनिक यंत्र रखने के लिए स्थान चाहिए होता है ताकि मैं उन्हें सुविधाजनक रूप से चार्ज कर सकूं तथा उन पर कार्य भी कर सकूं।

अपने व्यवसायिक यात्रा में सभी अनेक इलेक्ट्रोनिक उपकरण लेकर जाते हैं। इसलिए उन्हें चार्ज करने के लिए मेज के निकट बिजली के पर्याप्त खटके(charging points) भी होने आवश्यक हैं।

कई अवसरों पर हमें अपने कक्ष में बैठकर ही ऑनलाइन रूप से बैठक अथवा सम्मलेन में भी भाग लेना पड़ता है। इसके लिए हमारी मेज विडियो काल के लिए भी सज्ज होनी चाहिए। इसके लिए पर्याप्त प्रकाश आवश्यक है। अच्छी ध्वनिकी(acoustics) अपेक्षित है, अर्थात् कक्ष में हमारा स्वर गूंजना नहीं चाहिए। यदि मेज से ही कक्ष के बाहर Do Not Disturb का खटका दबा सकें तो उत्तम।

उच्च गति इन्टरनेट सेवा(Wi-Fi)

यदि होटल अत्यंत विस्तृत स्वरूप का है तो बहुधा दूर स्थित कक्षों में इन्टरनेट सुविधाओं के लिए कष्ट उठाना पड़ता है। कभी-कभार मोबाइल फोन का सिग्नल भी नहीं पहुँचता है। व्यवसायिक होटल में यह अत्यंत आवश्यक है कि प्रत्येक कक्ष में इन्टरनेट एवं मोबाइल फोन सेवायें उत्तम स्तर की हों। एक व्यवसायिक होटल में कक्ष स्तर पर Internet Router होना आवश्यक है। यह किसी भी व्यवसायिक यात्री की महत्वपूर्ण आवश्यकता है।

कभी कभी कुछ सामान्य होटलों में निम्न गति की इन्टरनेट सेवायें निःशुल्क उपलब्ध होती हैं तथा उच्च गति की सेवाओं के लिए अतिरिक्त शुल्क देना पड़ता है। किन्तु व्यवसायिक होटलों में उच्च गति की विश्वसनीय इन्टरनेट सेवायें स्वाभाविक रूप से सबके लिए उपलब्ध होनी चाहिए।

व्यक्तिगत बैठक क्षेत्र(Private Meeting Spaces

व्यवसायिक होटल में अनेक व्यक्तिगत सुविधासंपन्न बैठक कक्ष होने चाहिए जिनकी क्षमता २-३ लोगों से लेकर एक छोटे सम्मलेन कक्ष(conference rooms) तक होनी चाहिए। व्यवसायिक कारणों से यात्रा करने वाले यात्री सीमित समय का सदुपयोग करते हुए अधिक से अधिक लोगों से बैठकें करना चाहते हैं। इसीलिए भिन्न भिन्न समूहों के साथ एक ही स्थान पर क्रमवार बैठकों के आयोजन से समय का सदुपयोग हो सकता है। इसमें इन सुविधासंपन्न बैठक कक्षों की महत्वपूर्ण भूमिका होती है।

यदि ऐसे बैठक कक्ष होटल के भीतर ही आसानी से उपलब्ध हो जाएँ तो इससे होटलों को भी लाभ होता है। वे अतिरिक्त शुल्क ले सकते हैं। साथ ही बैठक में सम्मिलित लोग जलपान आदि की भी सेवायें वहीं से लेना अधिक सुविधाजनक मानते हैं।

एकल व्यक्ति भोजन(Single Person Meals

मेरे जैसे अनेक व्यवसायिक यात्री हैं जो व्यवसाय के लिए अकेले यात्राएँ करते हैं। इसलिए बहुधा होटल कक्ष में ही भोजन करना चाहते हैं। किन्तु दिया गया भोजन बहुधा एक व्यक्ति की आवश्यकताओं से कहीं अधिक होता है। हम सदा इस दुविधा में होते हैं कि भोजन का अपव्यय ना हो, इसके लिए क्या किया जाए। इसलिए कई बार हम आवश्यकता से कम भोजन मंगाते हैं। व्यवसायिक बैठकों में एकाध बार हम होटल के स्वादिष्ट व्यंजनों के विस्तृत भोज का आनंद अवश्य ले सकते हैं किन्तु अधिकाँश दिनों में हम सादा पौष्टिक भोजन खाना चाहते हैं जैसा हम घरों में खाते हैं। अपनी यात्रा में अधिकतर समय मैं ऐसा सुपाच्य आहार चाहती हूँ जिसकी मात्रा भी एकल व्यक्ति के अनुरूप हो।

मैं समझती हूँ कि प्रत्येक व्यक्ति के लिए भोजन की आवश्यक मात्रा भिन्न हो सकती है। पुरुषों की आवश्यक भोजन मात्रा बहुधा स्त्रियों की अपेक्षा अधिक होती है। मेरी अभिलाषा है कि ऐसे व्यवसायिक होटलों के भोजन कक्ष के संचालक अपनी रचनात्मकता एवं अभिनवता का सदुपयोग करते हुए ऐसी व्यंजन सूची तैयार करें जो सुपाच्य एवं पौष्टिक हों, साथ ही भोजन का अपव्यय ना हो। मैंने कई बार उनसे अनुरोध किया है कि वे भोजन की कम मात्रा भेजें, किन्तु वे सदा उनकी निर्धारित मात्रा ही भेजते हैं। उनका सदा एक ही उत्तर होता है, आपको जितना खाना हो आप खाईये, शेष छोड़ दीजिये। किन्तु मेरा कहना है कि हम सब को मिलकर भोजन का अपव्यय रोकना होगा।

इसके लिए होटल संगठनों को सकारात्मक भूमिका निभाते हुए यात्रियों की आवश्यकताओं को समझना चाहिए ताकि भोजन का सदुपयोग हो। वैसे भी भारतीय संस्कृति में अन्न को देवता माना जाता है जिसका अनादर हम नहीं कर सकते।

और पढ़ें: एक सुसंपन्न(Luxury) होटल से मेरी १३ अपेक्षाएं

परिधान पर इस्त्री करने की सुविधा(Ironing Services

यदि हमें होटल में अधिक समय रुकना है तभी हमें धोबी की सेवाओं की आवश्यकता पड़ती है। अन्यथा व्यापारिक यात्राओं में बहुधा हमारा पड़ाव २-३ दिवसों का होता है। किन्तु हमें अपने परिधानों पर इस्त्री करने की आवश्यकता पड़ती ही है क्योंकि पेटी अथवा बैग में रखने के कारण हमारे वस्त्रों की इस्त्री नष्ट हो जाती है।

अधिकतर व्यवसायिक होटलों के कक्ष में एक इस्त्री एवं इस्त्री करने की मेज दी जाती है। किन्तु मुझ जैसी महिला यात्रियों के लिए उस मेज को ऊँचे खूंटे से निकालकर खटके तक लाना तथा इस्त्री से अपने औपचारिक पहनावे पर इस्त्री करना किंचित कष्टकर हो जाता है। मैं तो यही चाहूंगी कि कोई अतिरिक्त शुल्क पर मेरे परिधान पर इस्त्री कर मुझे समय पर लाकर दे दे। यह मेरे समय एवं परिश्रम का सदुपयोग होगा।

पुनरावृत्त ग्राहकों का सम्मान(Value your Repeat Customers)

यदि कोई व्यवसायिक यात्री पुनः पुनः एक ही नगर की यात्रा करता है तो वह बहुधा एक ही क्षेत्र के एक चयनित होटल में रहना चाहता है। ऐसा करने से उसे अपने निवास से दूर एक दूसरे निवास का आभास होता है। किन्तु अधिकतर होटल की बुकिंग प्रक्रिया में ऐसे ग्राहकों की पुनरावृत्त तथा विश्वसनीय ग्राहक के रूप में कोई विशेष पहचान नहीं रखी जाती। होटल प्रबंधन ऐसे ग्राहकों की व्यक्तिगत आवश्यकताओं की सूची रखकर उन्हें व्यक्तिगत सेवायें उपलब्ध करा सकते हैं। उनके द्वारा ऐसा करना ग्राहकों को भावविभोर कर देता है कि एक अपरिचित नगर में भी उनकी देखभाल करने वाला कोई है।

जैसे मैं कॉफी नहीं पीती तथा चाय में भी मुझे मसाला चाय ही भाती है। व्यवस्था कर्मचारियों को मुझे पुनः पुनः यह समझाना पड़ता है कि वे मेरे कक्ष में कॉफी के पूड़े ना रखे। उनके स्थान पर मुझे मसाला चाय के ही पूड़े दें। किन्तु वे कभी भी अपनी नियमित नियमावली से टस से मस नहीं होते। यदि ध्यान रखकर वे मेरे आने से पूर्व ही यह छोटा सा परिवर्तन मेरे कक्ष में करें तो मुझे अभिनंदित प्रतीत होगा तथा मेरे समय एवं उर्जा की बचत होगी।

अपने ग्राहक से प्रगाढ़ व्यवसायिक संबंध बनाने के लिए वे उनकी छोटी छोटी आवश्यकताओं को पूर्ण करते हुए, उन्हें अभिनंदित, मूल्यवान एवं घर जैसा अनुभव प्रदान कर सकते हैं। इसे कहेंगे सुअवसर का सोना करना। वर्तमान काल के तकनीकी युग की पारदर्शी परत को अपने एवं अपने विश्वसनीय ग्राहकों के मध्य स्थित भावनाओं को नष्ट ना करने दें।

व्यवसायिक यात्रियों के लिए पृथक तल(Separate Floor for Business Travelers)

यदि कोई होटल व्यवसायिक एवं अवकाश, दोनों  यात्रियों को सेवायें प्रदान करता है तो उन्हें पृथक पृथक तलों में कक्ष प्रदान किये जाने चाहिए। अवकाशीय यात्री आनंद के लिए यात्रा करते हैं। बहुधा उनके साथ उनके बच्चे भी होते हैं। वहीं व्यवसायिक यात्री अपने कक्ष में कार्यरत होते हैं जिसके लिए उन्हें शांतता की आवश्यकता होती है। अतः दोनों प्रकार के यात्री एक दूसरे की आवश्यकताओं व आनंद में बाधा ना डालें, इसके लिए उन्हें भिन्न भिन्न तलों में कक्ष उपलब्ध किये जाने चाहिए।

बाहर से आने वाले यात्रियों के लिए देशीय दूरभाष सुविधा(Phone for Inbound Travelers)

विदेश से आये यात्रियों को भारत आकर यहाँ का SIM Card लेना पड़ता है ताकि वे देशीय शुल्क पर लोगों को फोन कर सकें। किन्तु उन्हें भारत आकर नया SIM Card लेने के लिए बहुत समय एवं कई दस्तावेज लगते हैं। मुझे स्मरण है, सिंगापूर के एक होटल ने मुझे वहाँ पहुंचते ही सिंगापूर का एक सज्ज मोबाइल फोन दिया था जिसे मैं अपने सम्पूर्ण आतिथ्य काल में उपयोग कर सकती थी। वह मेरे लिए अत्यंत उपयोगी सिद्ध हुआ था। उसके द्वारा मैं स्थानीय शुल्क पर सिंगापूर में कहीं भी फोन कर सकती थी। साथ ही मेरा मोबाइल डाटा भी सक्रिय रहा। इसका शुल्क मेरे होटल शुल्क में ही सम्मिलित था।

मेरा विश्वास कीजिये, यह किसी भी होटल द्वारा अंतर्राष्ट्रीय यात्रियों को प्रदत्त सर्वोत्तम सुविधाओं में से एक होता है। विदेश जाने पर यह सुविधा अत्यंत महत्वपूर्ण सिद्ध होती है।

और पढ़ें: भारत में सर्वोत्तम सुविधा-संपन्न अनुभव

व्यवसायिक अवसरों का निर्माण(Create Business opportunities)

यदि आप केवल व्यवसायिक यात्रियों को सेवायें प्रदान करते हैं तो आप अपने होटल में ऐसे स्थलों की संरचना करें जहाँ आपके होटल के अतिथि एक दूसरे से भेंट कर सकें, अपने व्यवसायों के विषय में चर्चा कर सकें। जैसे एक छोटा सा पुस्तकालय, विश्राम कक्ष(lounge), छत पर भोजन व्यवस्था इत्यादि। कौन जाने, इससे कदाचित उनके लिए अनेक नवीन व्यवसायिक अवसर उत्पन्न हो जाएँ, जैसे Medici Effect

सर्वोत्तम व्यावसायिक होटल(How to Choose the Right Business Hotel?)

अवस्थिति( Location)

किसी भी व्यवसायिक होटल के चुनाव में उसकी अवस्थिति अत्यंत महत्वपूर्ण होती है। अधिकाँश महानगरों में यातायात संकुलन(traffic congestion) की बड़ी समस्या है, विशेषतः कार्यालयीन समय में(peak office hours)। अतः आपका होटल अपने कार्यालय अथवा अपने ग्राहक के कार्यालय के समीप होना चाहिए। इससे आपके बहुमूल्य समय का अपव्यय नहीं होगा।

यदि आपका कार्यक्षेत्र नगर से बहुत दूर स्थित है, जैसे बड़े कारखाने, तो उन कारखानों के समीप ही किसी होटल का चुनाव करें। वहीं, यदि आपको प्रातः शीघ्र अथवा रात्रि में विमान द्वारा यात्रा करनी हो तो विमानतल के समीप के किसी होटल का चयन उत्तम होगा।

वर्तमान तकनीकी युग में आप अपने होटल एवं अन्य सुविधाओं का चुनाव ऑनलाइन ही कर सकते हैं। यदि आपको स्थानीय परिवहन की आवश्यकता हो तो उसकी भी पूर्व जानकारी आप ऑनलाइन लेकर रख सकते हैं। यहाँ तक कि आप अपने वाहन अथवा टैक्सी की पूर्व बुकिंग भी कर सकते हैं। मुझे स्मरण है, एक अवसर पर मैं द्वारका के एक होटल में ठहरी थी जो नगर से केवल ४-५ किलोमीटर बाहर स्थित था। किन्तु मुझे स्थानीय परिवहन के लिए बहुत कष्ट उठाने पड़े थे, विशेषतः प्रातःकाल तथा संध्या के समय।

सेवायें एवं सुविधाएं(Services & Facilities)

एक व्यवसायिक यात्री होने के नाते होटल में उपलब्ध सभी सेवाओं एवं सुविधाओं की पूर्व जानकारी प्राप्त कर लें।

  • मेरे लिए विमानतल से होटल तक लाने-छोड़ने की सुविधा महत्वपूर्ण है। इसका शुल्क होटल के शुल्क में सम्मिलित होना चाहिए।
  • मुझे यात्रायें करना, उस स्थान के विषय में जानना, देखना अत्यंत भाता है। इसलिए मेरा यह प्रयास होता है कि कार्य के साथ साथ मैं उस नगर की कुछ विशेषताओं के भी दर्शन कर सकूँ। यदि आपका होटल स्थानीय भ्रमण की सुविधा प्रदान करता है अथवा उसके आयोजन में आपकी सहायता करता है तो यह मेरे अनुसार एक उत्तम सुविधा होती है।
  • कुछ स्वास्थ्यवर्धक सुविधाएं भी उपलब्ध होनी चाहिए। इसके लिए कुछ लोगों की Gym तथा तरणताल(swimming pool) की माँग होती है तो मेरे जैसे कुछ लोगों को योग कक्ष तथा पदयात्रा पथ चाहिए।
  • विश्वसनीय इन्टरनेट सुविधाएं
  • मित्रवत कर्मचारी जो आपकी आवश्यकताओं को सुनें व समझें।

आप अपने व्यवसायिक होटल से क्या अपेक्षा रखते हैं?

अनुवाद: मधुमिता ताम्हणे

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बीड़ बिलिंग में पैराग्लाइडिंग- हिमाचल की अद्भुत बरोट घाटी https://inditales.com/hindi/beed-billng-himachal-ke-romanchak-anubhav/ https://inditales.com/hindi/beed-billng-himachal-ke-romanchak-anubhav/#respond Wed, 22 Jan 2025 02:30:06 +0000 https://inditales.com/hindi/?p=3753

हिमाचल प्रदेश पर्यटकों का स्वर्ग है। हिमाचल की झोली में पर्यटकों के लिए अनेक उपहार हैं। यह भारत के सर्वाधिक पर्यटन-अनुकूल राज्यों में से एक है। देवभूमि के नाम से प्रसिद्ध इस राज्य में अनेक मंदिर एवं तीर्थस्थल हैं। इस राज्य को प्रकृति ने हिमालय की धौलाधार, हिमाचल व शिवालिक पर्वत मालाओं  से अलंकृत किया […]

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हिमाचल प्रदेश पर्यटकों का स्वर्ग है। हिमाचल की झोली में पर्यटकों के लिए अनेक उपहार हैं। यह भारत के सर्वाधिक पर्यटन-अनुकूल राज्यों में से एक है। देवभूमि के नाम से प्रसिद्ध इस राज्य में अनेक मंदिर एवं तीर्थस्थल हैं। इस राज्य को प्रकृति ने हिमालय की धौलाधार, हिमाचल व शिवालिक पर्वत मालाओं  से अलंकृत किया है जिनके दर्शन करने तथा जिन पर अनेक रोमांचकारी खेल करने विश्व भर से अनेक पर्यटक आते हैं।

एक ओर हिमाचल प्रदेश पर्यटकों में अपने पर्वतीय मार्गों पर रोमांचकारी पदयात्राओं तथा मोटरसाइकिल की सवारी के लिए लोकप्रिय है तो दूसरी ओर पर्यटक यहाँ पैराग्लाइडिंग का अनुभव प्राप्त करने के लिए भी आते हैं। हिमाचल प्रदेश में स्थित बीर बिलिंग अथवा बीड बिलिंग या बीड़ बिलिंग विश्व के लोकप्रिय पैराग्लाइडिंग स्थलों में से एक है। यह विश्व का दूसरा सर्वोच्च पैराग्लाइडिंग स्थल है।

मैं एक लम्बे समय से पैराग्लाइडिंग का अनुभव प्राप्त करने के लिए बीड़ बिलिंग की यात्रा का नियोजन कर रहा था। किसी ना किसी कारणवश मेरी योजना साकार नहीं हो पा रही थी। अंततः, इस वर्ष २६ जनवरी के लम्बे सप्ताहांत में मैं एवं मेरे मित्र चार दिवसों की हिमाचल यात्रा पर निकल पड़े।

अपनी इस यात्रा संस्मरण द्वारा मैं अपनी उसी रोमांचक यात्रा के अनुभव आपसे साझा कर रहा हूँ। इस संस्मरण में वहाँ के दर्शनीय स्थलों, लोकप्रिय क्रियाकलापों एवं कुछ महत्वपूर्ण सूचनाओं का भी उल्लेख कर रहा हूँ जो आपको एक सफल यात्रा का नियोजन करने में सहायक होगी।

बीड़ बिलिंग लोकप्रिय क्यों है?

रोमांचक खेलों में पैराग्लाइडिंग सर्वाधिक लोकप्रिय क्रीड़ाओं में से एक है। सम्पूर्ण विश्व में तथा भारत में ऐसे अनेक स्थल हैं जो रोमांचक क्रियाकलापों के लिए अत्यंत लोकप्रिय हैं। अपनी ऊंचाई एवं उड़ान कालावधि के कारण उन सब में बीड़ बिलिंग का एक विशेष स्थान है। बीड़ बिलिंग में पैराग्लाइडिंग के लिए उड़ान बिंदु की ऊँचाई समुद्रतल से लगभग ३२०० मीटर है जो अन्य स्थलों के उड़ान बिंदु की ऊँचाई से कहीं अधिक है।

यहाँ का दूसरा आकर्षण यह है कि उड़ान की औसत कालावधि लगभग २०-२५ मिनट हैं, जो अन्य स्थलों के औसत उड़ान कालावधियों से कहीं अधिक है। मैंने उत्तराखंड के भीमताल में भी पैराग्लाइडिंग की थी। किन्तु वह अनुभव बीड़ बिलिंग की पैराग्लाइडिंग में प्राप्त अनुभव के समक्ष न्यून है। अपने अनुभव से मैं यह कह सकता हूँ कि बीड़ बिलिंग की पैराग्लाइडिंग के समक्ष भारत के अन्य सभी स्थलों के पैराग्लाइडिंग अनुभव गौण हैं।

बीड़ बिलिंग कहाँ है?

बीड बिलिंग का बौद्ध मठ
बीड बिलिंग का बौद्ध मठ

बीड़ हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिले के अंतर्गत, भारत के सर्वाधिक लोकप्रिय पर्वतीय स्थलों में से एक, बैजनाथ नगर में स्थित एक सुन्दर गाँव है। यह भारत की राजधानी दिल्ली से लगभग ५३० किलोमीटर दूर है। यहाँ का पैराग्लाइडिंग स्थल दो भागों में बंटा है, बिलिंग का उड़ान स्थल तथा बीड़ का अवतरण स्थल।

बीड़ बिलिंग में मेरा अनुभव

मेरी बीड़-बिलिंग यात्रा में मेरे प्रथम दिवस का पड़ाव बरोट घाटी तथा दूसरे दिवस का पड़ाव बीड़ में नियोजित था।

इस यात्रा का आरम्भ हमने दिल्ली से सड़क मार्ग द्वारा किया था। दिल्ली की सड़कों पर उपस्थित गाड़ियों की प्रातःकालीन भीड़ से बचने के लिए हम प्रातः शीघ्र ही निकल पड़े। मुझे अपनी मोटरसाइकिल द्वारा साच दर्रे की यात्रा (bike trip to Sach Pass) का स्मरण हो आया जब हम भारत के सर्वाधिक जोखिम भरे मार्ग (toughest roads in India) पर जाने के लिए इसी प्रकार प्रातः शीघ्र ही निकल पड़े थे। दिल्ली से बरोट पहुँचने में हमें लगभग १४ घंटों का समय लगा। मार्ग में हम अम्बाला में जलपान करने के लिए कुछ समय रुके थे। तत्पश्चात पंजाब-हिमाचल प्रदेश की सीमा पर उना नगर में हमने दोपहर का भोजन किया।

हमारी सम्पूर्ण सड़क यात्रा, विशेषतः काँगड़ा से बीड़ तक की यात्रा मंत्र मुग्ध कर देने वाली थी। अप्रतिम सौंदर्य से युक्त बरोट घाटी को चारों ओर से अलंकृत करते धौलाधार पर्वत माला के शुभ्र श्वेत हिमाच्छादित शिखर मन मोह लेते हैं। बौद्ध नगरी धर्मशाला के समीप स्थित बीड़ के मार्ग में हमने अनेक बौद्ध भिक्षुकों को देखा। चित्रपट राजा हिन्दुस्तानी द्वारा अधिक लोकप्रिय हुआ पालमपुर नगर एवं तीर्थ नगरी बैजनाथ को पार कर हम अंततः बरोट घाटी पहुंचे। दिवस भर पर्वतीय मार्गों पर कार चलाते हुए हम थक गए थे। इसलिए वहाँ पहुंचकर हमने विश्राम करने का निश्चय किया तथा घाटी अवलोकन का कार्यक्रम अगले दिवस के लिए नियोजित किया।

हिमाचल एवं स्पीति घाटी – १५ दिवसीय रोमांचक सड़क यात्रा

बरोट घाटी

बरोट घाटी में मेरे प्रथम दिवस का आरंभ मेरे सामान्य दिवस की तुलना में पूर्णतः भिन्न था। प्रातः आँख खुलते ही कड़कड़ाती ठण्ड ने हमारा स्वागत किया। ऊबदार रजाइयों से बाहर निकलना किसी साहसपूर्ण कार्य से कम नहीं था। आपको स्मरण होगा, हम यहाँ २६ जनवरी के लम्बे सप्ताहांत में पहुंचे थे जो उत्तर भारत में शीत ऋतु के चरमकाल में पड़ता है।

बरोट घाटी
बरोट घाटी

पिछले दिवस हमने यात्रा के अंतिम घंटे लगभग अन्धकार में पूर्ण किये थे। इसलिए हम घाटी के परिदृश्य देख नहीं पाए थे। आज प्रातः हमने घाटी का जो दृश्य देखा, उसने मानो पिछले दिवस की क्षतिपूर्ति कर दी हो। या कहूँ, उससे भी कहीं अधिक! हमारे समक्ष सम्पूर्ण घाटी का दृश्य हमारे मन को मोह लेने के लिए तत्पर खड़ा था।

सम्पूर्ण दृश्य ने मुझे मंत्रमुग्ध कर दिया था। सम्पूर्ण घाटी ने बर्फ की श्वेत चादर ओढ़ रखी थी। कड़ाके की ठण्ड हमें स्नान ना करने पर बाध्य कर रही थी।

ऊहल नदी

दूसरे दिवस प्रातः हलके जलपान के पश्चात हमें पर्वतीय गाँव की पैदल यात्रा एवं एक लघु पर्वतारोहण के लिए पोल्लिंग गाँव जाना था। पोल्लिंग गाँव बरोट से ९ किलोमीटर तथा हमारे विश्रामगृह से ५ किलोमीटर दूर है। कुछ समय पूर्व हुए हिमपात ने पोल्लिंग से बरोट के मध्य मुख्य मार्ग अवरुद्ध कर दिया था। हमने हमारी कार वहीं छोडी तथा स्थानीय जिप्सी गाड़ी की सेवायें लीं। लगभग ११ बजे हम निकले तथा ३० मिनट के पश्चात लोहार्डी गाँव पहुंचे।

उहल नदी बरोट घाटी
उहल नदी बरोट घाटी

लोहार्डी से आगे की यात्रा हमने पैदल पूर्ण की। यद्यपि हमारे साथ एक स्थानिक परिदर्शक था, तथापि बरोट घाट से बहती ऊहल नदी हमारी सर्वोत्तम परिदर्शक थी। वह हमें निरंतर मार्ग दिखा रही थी। ऊहल नदी इस क्षेत्र के निवासियों की जीवन रेखा है।

जैसे जैसे हम पोल्लिंग गाँव की ओर आगे बढ़ रहे थे, बर्फ की चादर की मोटाई भी बढ़ रही थी। जब हम लम्बदुग जलविद्युत उत्पादन प्रकल्प पहुंचे, मुख्य सड़क पर बर्फ की मोटाई अब एक फुट से अधिक हो गयी थी तथा सड़क के दोनों ओर उससे भी अधिक मोती परत थी। एक लटकते सेतु से हम ऊहल नदी के उस पार पहुंचे तथा गाँव की ओर आगे बढ़ने लगे।

सेतु पार करते ही हमारी पैदल यात्रा पर्वतारोहण में परिवर्तित हो गयी थी जिससे हमारी गति कम हो रही थी। गाँव तक पहुँचने के लिए एक वैकल्पिक मार्ग भी था किन्तु उसे बर्फ ने अवरुद्ध कर रखा था। हमने गांववासियों द्वारा प्रयुक्त एक अन्य वैकल्पिक पथ का प्रयोग कर गाँव पहुँचने का निश्चय किया। पोल्लिंग पहुँच कर निकटतम पर्वत शिखर पर चढ़ने से पूर्व हमने दोपहर का भोजन किया। शीत ऋतु के चरम स्तर में ऊँचाई पर स्थित गाँवों में सीमित संसाधन ही उपलब्ध होते हैं। जलपानगृहों में भी भोजन के सीमित व्यंजन ही उपलब्ध होते हैं। यहाँ केवल राजमा व चावल ही उपलब्ध था। किन्तु हम उसमें ही आनंदित थे। भोजन के पश्चात हम रोहण के लिए आगे बढे। ४५ मिनट तक चढ़ने के पश्चात हम शिखर पर पहुंचे।

हिमपात

शिखर पर पहुंचे ही थे कि हिमपात आरम्भ हो गया। मेरे अधिकतर मित्रों के लिए हिमपात का यह प्रथम अनुभव था। शिखर से ३६० अंश का विहंगम दृश्य अत्यंत रोमांचकारी था। शिखर से नीचे देखने पर पोल्लिंग गाँव के घर अत्यंत गौण प्रतीत हो रहे थे। हमें विश्वास ही नहीं हो रहा था कि इतने कम समय में हम इस ऊँचाई तक चढ़ गए थे। लगभग एक घंटे तक हम एवं हमारे कैमरे इन अप्रतिम दृश्यों का आनंद लेते रहे तथा उन स्मृतियों को अमर बनाते रहे। शनैः शनैः सूर्य का उजाला कम होने लगा था। हिमपात तापमान को नीचे नीचे ले जा रहा था। अब हमारे विश्रामगृह लौटने का समय हो गया था।

पोल्लिंग गाँव पहुंचते पहुँचते हमारा चलना दूभर होने लगा था। वातावरण अत्यंत शीतल हो गया था। इसके अतिरिक्त हमारे जूते भी भीतर से गीले हो गए थे। हमने जिप्सी गाड़ी को यहीं बुलवा लिया तथा लटकते सेतु से विश्रामगृह तक गाड़ी से ही पहुंचे। विश्रामगृह हम अकेले नहीं पहुंचे थे, अपितु हमारे साथ पर्वतारोहण एवं शिखर से दिखते विहंगम दृश्यों की स्मृतियाँ भी साथ लौटी थीं। वापिसी यात्रा के समय होते दर्दभरे अनुभव भी साथ लौटे थे।

बीड़ बिलिंग में पैराग्लाइडिंग

अगला दिवस विशेष था क्योंकि हम रोमांचकारी क्रीड़ाओं के लिए जाने वाले थे। बरोट से जोगिंदरनगर होते हुए हम बीड़ गाँव पहुंचे। बरोट से बीड़ तक की ५० किलोमीटर की सड़क यात्रा अत्यंत लुभावनी थी जिसमें हमने अनेक छोटे छोटे सुन्दर हिमालयी गाँवों को पार किया। बीड़ गाँव पहुँचते ही हम आश्चर्यचकित रह गए। बीड़ किसी भी मापदंड से गाँव प्रतीत नहीं होता है। गाँव की पूर्ण जनसँख्या पर्यटन सम्बन्धी क्रियाकलापों के चारों ओर ही केन्द्रित है, विशेषतः पैराग्लाइडिंग। सम्पूर्ण गाँव मुख्यतः होमस्टे, होटलों, जलपानगृहों इत्यादि से भरा हुआ है तथा पर्यटकों की यात्रा संबंधी आवश्यकताओं की पूर्ती करता है। यहाँ के अनेक निवासी वाहनचालक, परिदर्शक, प्रशिक्षक आदि के रूप में कार्यरत हैं।

हमने हमारे मेनेजर से पैराग्लाइडिंग के लिए हमारे पूर्वनियोजित समयावधि की जानकारी ली। हमें दो घंटे वहीं प्रतीक्षा करनी थी। अतः हमने दोपहर का भोजन करने का निश्चय किया। भोजन के पश्चात परिदृश्यों के कुछ रचनात्मक चित्र भी लिए। हमारे पैराग्लाइडिंग का समय समीप आ रहा था। हम साझा सूमो गाड़ी से निकटतम पर्वत शिखर पहुंचे जो हमारा नियोजित पैराग्लाइडिंग उड़ान स्थल था।

हमारा नियोजित पैराग्लाइडर उड़ान स्थल बिलिंग हमारे पैराग्लाइडर अवतरण स्थल बीड़ से लगभग २० किलोमीटर दूर था। बीड़ से बिलिंग तक पहुँचने में हमें दो घंटे लगे। उस समय शीत ऋतु की चरम सीमा थी जो पर्यटकों की दृष्टी से मंदी का समय होता है, फिर भी वहां पर्यटकों की बड़ी भीड़ थी। हमने घोषणा पत्र पर हस्ताक्षर किये तथा सुरक्षात्मक साधनों को धारण किया।

पैराग्लाइडिंग अनुभव

यह एक आसान कार्य है। आपको केवल बड़ी तेजी से दौड़ लगानी है तथा पहाड़ से कूद जाना है। जब आप दौड़ लगाते हो तब पैराग्लाइडर के पंखों में आवश्यक वायु एकत्रित हो जाती है तथा वह उड़ने के योग्य हो जाती है। एक ग्लाइडर में दो व्यक्ति सवार हो सकते हैं। पर्यटक सामने की कुर्सी पर बैठता है तथा उसके पीछे पैराग्लाइडिंग का प्रशिक्षक अथवा गाइड बैठता है जो पंखों से बंधी रस्सियों द्वारा पैराग्लाइडर को सही दिशा में उड़ाता है।

हम भी उसी प्रकार पहाड़ से कूद गए। सहज होने में तथा वायु की दिशा को जानने में हमें कुछ क्षण लगे। उड़ने के लिए सहज एवं अभ्यस्त होने के पश्चात मुझे आनंद आने लगा। मैं अपने गाइड से वार्तालाप करने लगा तथा मैंने उसे पैराग्लाइडिंग के अपने पिछले अनुभव के विषय में बताया। उसने मुझे आश्वासन दिया कि उड़ान के अंत में वह पैराग्लाइडर का घुमावदार अवतरण करवाएगा। मेरा गोप्रो कैमरा घाटी एवं धौलाधार पर्वतमाला के विहंगम दृश्यों को आत्मसात करने लगा। अत्यंत शीतल वायु मेरी उड़ान को असह्य बनाने में लगभग सफल हो रही थी क्योंकि मैंने दस्ताने नहीं पहने थे। ठण्ड इतनी थी कि खुले हाथों से कैमरा पकड़ना भी दूभर हो रहा था। दस्ताने ना लाना मेरी भारी भूल थी। किन्तु इतना अवश्य कहूंगा कि इतना कष्ट सहने के पश्चात भी मैंने उड़ान के प्रत्येक क्षण का आनंद उठाया। ऊँचाई से पहाड़ एवं गाँव अत्यंत सूक्ष्म प्रतीत हो रहे थे। मेरे साथ उड़ते अन्य पैराग्लाइडरों को देख उड़ने का अपरोक्ष आनंद भी आया। उन्हें देख यह आभास हुआ कि पंछी कितने भाग्यशाली होते हैं जो खुले आकाश में उड़ सकते हैं। मेरी उड़ान अगले १८ मिनटों तक जारी रही।

अवतरण

जब हम अवतरण स्थल के समीप पहुंचे, मेरे गाइड ने मुझे सिखाया कि घुमावदार अवतरण किस प्रकार की जानी चाहिए। घुमावदार अवतरण में ग्लाइडर एक छोटे गोलाकार में तेज गति से घूमता है। यह सामान्य अथवा सीघे अवतरण तकनीक से भिन्न तकनीक है। उस अवतरण अनुभव ने मुझे रोमांचित कर दिया था। मैंने सम्पूर्ण पैराग्लाइडिंग के उत्तम अनुभव के लिए अपने गाइड का धन्यवाद किया। हम सब की उड़ान समाप्त होते ही हमने निर्धारित शुल्क जमा किया, जो २००० रुपये प्रति व्यक्ति था। इसके अतिरिक्त, किराये का कैमरा ५०० रुपये में उपलब्ध था। चूँकि मैंने स्वयं का गोप्रो रखा था, मुझे केवल २००० रुपये देने पड़े।

इससे पूर्व मैंने भीमताल में पैराग्लाइडिंग की थी किन्तु यह अनुभव अद्वितीय था।

हम जैसे ही बीड़ में उतरे, मौसम अधिक बिगड़ने लगा था जिसके चलते आयोजकों को अंतिम २० उड़ानें रद्द करनी पड़ी। मैंने भगवान को धन्यवाद दिया कि उन्होंने मेरी उड़ान बिना किसी व्यवधान के पूर्ण करने में सहायता की। यदि हमारा क्रमांक आते आते २० मिनटों का विलम्ब हो जाता तो कदाचित हमारी उड़ान भी रद्द हो जाती। इसके अतिरिक्त, दोपहर के ४ बजे तक हमारा पैराग्लाइडिंग उड़ान समाप्त हो जाने के कारण हमारे पास वापिसी की यात्रा आरम्भ करने के लिए पर्याप्त समय था। हमने तुरंत ही दिल्ली के लिए रवाना होने का निश्चय किया ताकि पर्वतों के दुर्गम मार्ग हम उजाले में पार  कर सकें। मैदानी क्षेत्रों में गाड़ी चलाना अपेक्षाकृत आसान होता है।

बीड़ बिलिंग में पैराग्लाइडिंग करने के लिए कुछ सुझाव  

  • बीड़ बिलिंग एवं बरोट तक सड़क मार्ग द्वारा आसानी से पहुंचा जा सकता है। आप यहाँ तक पहुँचने के लिए दिल्ली-मनाली मार्ग अथवा दिल्ली-कांगड़ा मार्ग का प्रयोग कर सकते हैं।
  • दोनों स्थानों पर उपयुक्त विश्रामगृह की सुविधाएं उपलब्ध हैं। यद्यपि बीड़ एक लोकप्रिय पर्यटन स्थल बन चुका है, तथापि बरोट भी उससे अधिक पीछे नहीं है। यहाँ अनेक स्तर के होमस्टे, होटल एवं तम्बू सुविधाएं उपलब्ध हैं।
  • यदि पैराग्लाइडिंग में आपकी रूचि हो तो मेरा सुझाव है कि आप पैराग्लाइडिंग सुविधाओं का पूर्व में ही आरक्षण कर लें। अन्यथा संभव है कि पर्यटन कालावधि के चरम समय में आपके लिए उड़ान समयावधि शेष ना रहे।
  • यहाँ पर्यटन का चरम काल ग्रीष्म ऋतु में रहता है। यद्यपि शीत ऋतु में पर्यटकों की भीड़ कम रहती है तथा पैराग्लाइडिंग भी उपलब्ध रहती है, तथापि धुंध एवं विकट तापमान आपकी यात्रा योजना ध्वस्त कर दें, इसकी संभावना भी अत्यधिक रहती है।
  • पर्यटन के चरम काल में पैराग्लाइडिंग शुल्क २५०० से ३५०० रुपये प्रति व्यक्ति प्रति उड़ान के मध्य घटते-बढ़ते हैं। शीत ऋतु में इसका शुल्क इससे कम रहता है।
  • यदि आप पर्वतारोहण की योजना बना रहे हैं तो आप अपने साथ एक जानकार परिदर्शक अवश्य रखें क्योंकि पर्वतारोहण पगडंडियाँ सुपरिभाषित नहीं हैं। स्थानिक व जानकार परिदर्शक आवश्यक है।
  • बीड़ एवं बरोट दोनों स्थानों में मोबाइल फ़ोन के नेटवर्क सुचारू रूप से कार्य करते हैं। डाटा नेटवर्क में कुछ व्यवधान आ सकता है किन्तु किसी को फ़ोन करने में सामान्यतः बाधा नहीं होती है।

यह सुशांत पाण्डेय द्वारा लिखित तथा inditales द्वारा प्रकाशित अतिथि यात्रा संस्करण है।

सुशांत पाण्डेय व्यवसाय से दूरसंचार अभियंता हैं। साथ ही वे इतिहास एवं भूगोल प्रेमी भी हैं। रिक्त समय में यात्राएं करना उन्हें अत्यंत भाता है। विशेषतः दुपहिये पर सवार होकर भारत के विभिन्न क्षेत्रों की खोज करने में उनकी उत्कट इच्छा रहती है। उन्हें भारत के इतिहास एवं भूगोल संबंधी वृत्तचित्र देखना भी भाता है। अपने अतिरिक्त समय का सदुपयोग वे अपने ब्लॉग Knowledge of India को संभालने में करते हैं।

अनुवाद: मधुमिता ताम्हणे

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कुर्ग – तलकावेरी, भागमण्डल एवं त्रिवेणी संगम https://inditales.com/hindi/talakaveri-kaveri-udgam-coorg-karnataka/ https://inditales.com/hindi/talakaveri-kaveri-udgam-coorg-karnataka/#respond Wed, 15 Jan 2025 02:30:37 +0000 https://inditales.com/hindi/?p=3749

कावेरी दक्षिण भारत के दो प्रमुख राज्यों को पोषित करती एक जीवनदायिनी नदी है। ये दो राज्य हैं, कर्नाटक एवं तमिलनाडु। इन दोनों राज्यों का जीवन कावेरी नदी पर निर्भर है। कदाचित यही कारण है कि उसके जल की वितरण व्यवस्था के संबंध में इन दोनों राज्यों ने एक दूसरे के मध्य विवाद उत्पन्न कर […]

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कावेरी दक्षिण भारत के दो प्रमुख राज्यों को पोषित करती एक जीवनदायिनी नदी है। ये दो राज्य हैं, कर्नाटक एवं तमिलनाडु। इन दोनों राज्यों का जीवन कावेरी नदी पर निर्भर है। कदाचित यही कारण है कि उसके जल की वितरण व्यवस्था के संबंध में इन दोनों राज्यों ने एक दूसरे के मध्य विवाद उत्पन्न कर लिया है। यह वर्तमान काल की विडंबना है कि अब कावेरी नदी का उल्लेख इस विवाद के संबंध में अधिक किया जाता है। इसके चलते हम कावेरी नदी एवं उसके उद्गम की महत्ता, उसके पावित्र्य को विस्मृत करते जा रहे हैं।

कावेरी अम्मा प्रतिमा
कावेरी अम्मा प्रतिमा

कावेरी नदी का उद्गम स्थल पश्चिमी घाट के ब्रह्मगिरी पर्वत की गोद में स्थित तलकावेरी है। इसके पश्चिमी दिशा में १०० किलोमीटर से भी निकट अरब महासागर है।

भूल-भुलैया मार्गों से बलखाती हुई कावेरी पूर्व दिशा की ओर बढ़ती है तथा बंगाल की खाड़ी में सागर से जा मिलती है। अपने मार्ग में आगे बढ़ते हुए कावेरी नदी अनेक प्राकृतिक सौन्दर्यों को जन्म देती जाती है, जैसे शिवना समुद्र जलप्रपात, होगेनक्कल जलप्रपात आदि। नदी पर अनेक बांधों का निर्माण किया गया है। उसमें मैसूर स्थित श्री कृष्णा राजा सागर बांध भी सम्मिलित है।

तलकावेरी के गिर्द पहाड़ियां
तलकावेरी के गिर्द पहाड़ियां

मन में प्रश्न यह उठता है कि कावेरी ने अंततः इतना घुमावयुक्त मार्ग क्यों चुना? उसके मन में कैसा मंथन चल रहा था? समुद्र से मिलने के लिए पश्चिम दिशा की ओर सीधे भी जा सकती थी। इस प्रकार उसे केवल १०० किलोमीटर की ही दूरी तय करनी पड़ती। किन्तु उसने भूल-भुलैया मार्ग पर इठलाते-बलखाते हुए पूर्व दिशा में ७६० किलोमीटर की दूरी तय की। कदाचित कावेरी को दक्षिण भारत के निवासियों की भविष्य में उद्भव होने वाली जल समस्या का आभास हो गया था। इसी कारण उनकी जल समस्या का निराकरण करने के उद्देश्य से अधिक से अधिक लोगों तक पहुँचते हुए उन्होंने स्वयं के लिए ऐसे मार्ग की रचना की।

कावेरी के विषय में एक अद्भुत तथ्य यह भी है कि उसका उद्गम तलकावेरी से हुआ है, जो ब्रह्मगिरी पर्वत के शिखर पर स्थित है। धरती माँ के गर्भ से निकलने से पूर्व वो भीतर ही भीतर पर्वत के शिखर तक जाती है, तत्पश्चात उसका जन्म अथवा उगम होता है।

तुला संक्रमण

तलकावेरी में कावेरी नदी के उद्गम का उत्सव आयोजित किया जाता है। यह उत्सव अक्टूबर मास के मध्य में, लगभग १७/१८ अक्टूबर को मनाया जाता है। इस दिवस सूर्य का तुला राशि में प्रवेश होता है। इसीलिए इस तिथि को तुला संक्रांति अथवा तुला संक्रमण कहते हैं। इस काल में कावेरी कुंड से जल अपनी पूर्ण भव्यता एवं शक्ति के साथ बाहर आता है। वह दृश्य कितना दर्शनीय होता होगा! बड़ी संख्या में तीर्थयात्री इस दृश्य का आनंद उठाने दूर दूर से आते हैं। पवित्र जलकुंड में स्नान करते हैं। इसका जल अपने साथ भी ले जाते हैं जिससे वे अपने घरों की शुद्धि करते हैं।

इस दिवस कावेरी के तट पर मेलों का आयोजन किया जाता है। तुला संक्राति के दिवस कावेरी नदी के जल में स्नान एवं दान-पुण्य की मान्यता है।

तलकावेरी उद्गम – कावेरी नदी की दंतकथा

तलकावेरी की लोककथा

ऐसी कथा है कि जब भगवान शिव एवं पार्वती का कैलाश पर्वत पर विवाह हो रहा था, तब उनके विवाह उत्सव का दर्शन करने सभी वहाँ चले गए जिसके कारण असंतुलित होकर पृथ्वी एक ओर को झुक गई थी। तब अगस्त्य ऋषि को दक्षिण दिशा की ओर जाने का आदेश दिया गया ताकि पृथ्वी का संतुलन पुनः सामान्य हो सके। अगस्त्य ऋषि जाने के लिए अनिच्छुक थे। उन्होंने असंतोष प्रकट किया कि उन्हे नित्य कर्मों के लिए पवित्र जल कहाँ से प्राप्त होगा! तब भगवान शिव ने उनके कमंडल में पवित्र जल भर दिया तथा उन्हे जाने की आज्ञा दी। तब अगस्त्य मुनि दक्षिण भारत आए। वे अपना कमंडल लेकर ब्रह्मगिरी पर्वत पर गए तथा तपस्या करने लगे।

तलकावेरी का प्रवेश द्वार
तलकावेरी का प्रवेश द्वार

समानांतर ब्रह्मांड में एक अपराध बोध के चलते इन्द्र कमल की डंठल में छुपा हुआ था। उसे अपना राज्य एवं अपना स्वरूप पुनः प्राप्त करने के लिए पवित्र जल की आवश्यकता थी। वह जहाँ था, वहाँ से पवित्र जल का निकटतम स्रोत था, अगस्त्य मुनि का कमंडल। इन्द्र ने सहायता के लिए गणेश की आराधना की। गणेश एक गौ का रूप धर कर अगस्त्य मुनि के कमंडल पर बैठ गए। जब अगस्त्य मुनि ने कमंडल पर से गाय को परे करने का प्रयास किया तब कमंडल लुड़क गया तथा उसमें से जल बाहर आ गया। अगस्त्य मुनि ने गाय को तब तक दौड़ाया जब तक उसने एक बालक गणेश का रूप ना ले लिया।

स्कन्द पुराण की एक कथा के अनुसार, कावेरी वास्तव में ऋषि कावेर की दत्तक पुत्री लोपमुद्रा का नदी अवतार है। अगस्त्य ऋषि से उनका विवाह हुआ था।

मडिकेरी से तलकावेरी का अर्ध दिवसीय भ्रमण

तलकावेरी मडिकेरी से पूर्वी दिशा में लगभग ४५ किलोमीटर दूर स्थित है। कुर्ग से अर्ध दिवसीय भ्रमण के रूप में आप तलकावेरी का दर्शन कर सकते हैं। कुर्ग में हम कॉफी उद्यान के भीतर ठहरे थे। वहाँ से प्रातः काल सड़कमार्ग द्वारा हम तलकावेरी की ओर निकल पड़े। कुर्ग के पर्वतीय क्षेत्रों में स्थित अनूठे आकर्षक गाँवों से जाते हुए हम प्रकृति का भरपूर आनंद उठा रहे थे।

मार्ग में हमने भागमण्डल जैसे अनेक सुंदर मंदिर देखे।

तलकावेरी के प्रवेश स्थल पर एक विशाल तोरण है जिसके आगे सोपान हैं जो आपको तलकावेरी जलकुंड तक ले जाएंगे। यदि आप इस तोरण के नीचे, घाटी की दिशा में खड़े होते हैं तो आप अपने समक्ष हरियाली से ओतप्रोत विस्तृत घाटी देखेंगे। घाटी की परतों में हरियाली के विविध रंग देख आप मंत्रमुग्ध हो जाएंगे। जब हम वहाँ पहुँचे, सूर्य हमारे ऊपर दमकने लग गया था। हमारे लिए वहाँ खड़े होकर परिदृश्यों का अवलोकन करना किंचित दूभर हो रहा था। समक्ष स्थित हरियाली हमारे नयनों को सुख अवश्य पहुँचा रही थी किन्तु सूर्य की तपती किरणें असह्य हो रहीं थी। हमें खेद हो रहा था कि हम प्रातः शीघ्र क्यों नहीं निकले। यहाँ का सुखद आनंद प्राप्त करने के लिए आप यहाँ सूर्योदय अथवा सूर्यास्त के समय पहुँचें।

हम सबने तोरण के नीचे, बहते जल में अपने चरण धोए तथा सोपान चढ़ना आरंभ किया। सोपान नवीन प्रतीत हो रहे थे। किन्तु शैल निर्मित होने के कारण धूप में सोपान तप रहे थे। चरणों को जलन से सुरक्षित रखने के लिए हम सोपानों पर लगभग दौड़ रहे थे। जी हाँ, पैरों में जूते-चप्पल नहीं थे। उन्हे तोरण से पूर्व ही उतारने पड़ते हैं। मोजे धारण करने की भी अनुमति नहीं होती है।

जलकुंड

मंदिर के जलकुंड पर पहुँचते ही हमारे समक्ष मंत्रमुग्ध कर देने वाला दृश्य था। जलकुंड चौकोर था जिसका आकार एक लघु तरण-ताल के अनुरूप था। हमें जो बताया गया था, उसके विपरीत मार्च मास में भी जलकुंड में जल था। जलकुंड के एक किनारे पर कावेरीअम्मा का एक लघु मंदिर स्थित है। कावेरीअम्मा मंदिर के भीतर देवी कावेरी की खड़ी मुद्रा में प्रतिमा है जहाँ वे अपने मटके से जल उड़ेल रही हैं। एक पुजारी मंदिर में उनकी पूजा-अर्चना कर रहे थे। कुछ भक्तगण जलकुंड के भीतर खड़े थे जिससे मुझे जलकुंड की गहराई का अनुमान प्राप्त हुआ।

कावेरी उद्गम का कुंड
कावेरी उद्गम का कुंड

पुजारी जी ने हमसे अपने चरणों को जलकुंड में ना डालने के लिए कहा क्योंकि जलकुंड के जल को पवित्र माना जाता है। आप जल के भीतर जाकर पवित्र स्नान कर सकते हैं, डुबकी लगा सकते हैं लेकिन उसके जल को अकारण पाँव से छू नहीं सकते। इसे कुर्ग क्षेत्र का पावनतम स्थान माना जाता है। अतः इसका आदर होना चाहिए। हमने वहाँ खड़े होकर प्रार्थना की। इसके पश्चात जलकुंड के पृष्ठभाग में पहाड़ी के ऊपरी भागों पर स्थित मंदिरों के दर्शन करने चल दिए।

अगस्तीश्वर मंदिर एवं गणेश मंदिर

पहाड़ी के ऊपरी भाग पर लघु किन्तु आकर्षण मंदिर स्थित हैं। उनमें से एक मंदिर को अगस्तीश्वर मंदिर कहा जाता है। ऐसा माना जाता है कि अगस्त्य मुनि ने इसका निर्माण किया था। दूसरा मंदिर गणेश जी का है। गणेश भगवान का इस स्थान से गहन संबंध है। मैंने पूर्व में ही लिखा है कि गणेश ने कावेरी नदी को यहाँ लाने के लिए महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। हमने कुछ क्षण वहाँ शांति के साथ व्यतीत किये। मन में एक सुखद शांति की अनुभूति थी जो साधारणतः उन स्थानों से प्राप्त होती है जहाँ दीर्घ काल से अनवरत पूजा-अर्चना की जा रही हो।

ब्रह्मगिरी पर्वत

तलकावेरी के निकट ही ब्रह्मगिरी पर्वत का शिखर है। शिखर तक पहुँचने के लिए लगभग ३५० सोपान चढ़ने पड़ते हैं। मुझे विश्वास है, शिखर से चारों ओर स्थित घाटियों का अप्रतिम दृश्य प्राप्त होता होगा। हम जब तक तलकावेरी पहुँचे तथा वहाँ के मनोरम दृश्यों का आनंद उठाकर दर्शन एवं पूजा-अर्चना आदि से निवृत्त हुए, सूर्य अपनी चरम ऊष्मा पर पहुँच चुका था। उस वातावरण में तपते सोपानों पर चरण रखकर पर्वत शिखर तक जाने के विषय में विचार करना भी हमारे लिए असह्य था।

कावेरी अम्मा

कुर्ग में कुछ दिवस व्यतीत करने के पश्चात मुझे यह आभास हुआ कि कुर्ग में आपकी दृष्टि जहाँ भी जाएगी, आपको कावेरी अम्मा की प्रतिमा अवश्य दृष्टिगोचर होगी। वे इस क्षेत्र की अधिष्ठात्री देवी हैं। साधारणतः खड़ी मुद्रा में उनकी प्रतिमा होती है। उनके हाथों में जल का एक कलश होता है मानो वे लोगों को जल का वरदान दे रही हों। हमने तलकावेरी में उनकी ऐसी प्रतिमा देखी थी। तलकावेरी उनका निवासस्थान है। इसके अतिरिक्त सभी परिदृश्य अवलोकन केंद्रों पर, निसर्गधाम के बांस वन में, सभी संग्रहालयों में, कुल मिलाकर देखें तो सभी स्थलों पर उनकी प्रतिमाएँ स्थापित हैं।

भागमण्डल  मंदिर

तलकावेरी से विश्रामगृह की ओर आते हुए हम भागमण्डल नगर में स्थित एक आकर्षक मंदिर में रुके। यह नगर भगंदेश्वर अथवा भागंदेश्वर मंदिर के लिए लोकप्रिय है। दुहरी तिरछी छतों से युक्त यह मंदिर ठेठ केरल शैली में निर्मित है।

मंदिर के बाह्य क्षेत्र में लगे सूचना पटल के अनुसार इस मंदिर का नामकरण भगन्द ऋषि के नाम पर किया गया है जिन्होंने यहाँ शिवलिंग की स्थापना कर तपस्या की थी। वे स्कन्द के आराधक थे। उन्होंने इस क्षेत्र का नाम स्कन्द क्षेत्र रखा था। लोग इस क्षेत्र को भगन्द क्षेत्र भी कहते हैं।

भागमंडल मंदिर - तलकावेरी
भागमंडल मंदिर – तलकावेरी

इस मंदिर को इस क्षेत्र के सभी शासकों का संरक्षण प्राप्त हुआ था। वर्तमान में मंदिर की जो संरचना है, उसका निर्माण १८ वीं शताब्दी के अंतिम काल में राजा डोड्डा वीरा राजेन्द्र ने करवाया था। मंदिर में सूक्ष्म व जटिल उत्कीर्णन किये गए हैं। शैल स्तंभों पर पौराणिक कथाएँ प्रदर्शित की गयी हैं।

मंदिर परिसर के चारों ओर परिधीय भित्तियाँ हैं जिनके साथ साथ स्तंभ युक्त गलियारे हैं। इनके मध्य चार छोटे मंदिर हैं जो शिव, शक्ति, स्कन्द एवं विष्णु को समर्पित हैं। कुछ भित्तियों पर प्राचीन भित्तिचित्र भी हैं।

इनके अतिरिक्त मंदिर की छत को देखना ना भूलें। मंदिर की छत पर पौराणिक कथाओं के दृश्य उत्कीर्णित हैं।

भागमण्डल त्रिवेणी संगम

भागमण्डल त्रिवेणी संगम कावेरी, कन्निके एवं सुज्योति, इन तीन नदियों का त्रिवेणी संगम है। यह संगम भागमण्डल मंदिर के ठीक सामने है। इनमें से सुज्योति नदी को पौराणिक नदी माना जाता है, जैसे प्रयाग संगम में सरस्वती नदी को एक पौराणिक नदी माना जाता है।

कावेरी संगम
कावेरी संगम

यह एक महत्वपूर्ण धार्मिक स्थल एवं आकर्षक पर्यटन स्थल है। शांतिपूर्ण रीति से बहती दो नदियाँ मिलकर एकरूप हो जाती हैं, इसे देखने का आनंद अवर्णनीय है। इन दोनों नदियों के ऊपर छोटे छोटे सेतु बांधे गए हैं जिन के ऊपर जाकर आप भिन्न भिन्न कोणों से त्रिवेणी संगम का अवलोकन कर सकते हैं। ये नदियां कछुओं एवं मछलियों से भरी हुई हैं।

संगम के आसपास कई लघु मंदिर हैं। नदी के तट पर हमने शिवलिंग एवं नंदी के विग्रह को देखा था। लगभग सभी वृक्षों के नीचे नाग प्रतिमाएं थीं।

यात्रा सुझाव

  • तलकावेरी, भागमण्डल एवं ब्रह्मगिरी पर्वत के दर्शन-अवलोकन के लिए आप अपने विश्रामगृह से ऐसे समय निकलें कि आप तलकावेरी में प्रातः शीघ्र पहुँचें जब वातावरण शीतल रहता है। आपको मंदिर के सोपान चढ़ने, वहाँ विचरण करने तथा ब्रह्मगिरी पर्वत शिखर तक चढ़ने में आसानी होगी।
  • मडिकेरी से तलकावेरी तक नियमित बस सेवाएं उपलब्ध हैं। हमने टैक्सी किराये पर ली थी क्योंकि हम तलकावेरी के साथ साथ कुछ अन्य पर्यटन स्थलों के भी दर्शन करना चाहते थे।
  • तलकावेरी, भागमण्डल मंदिर, ब्रह्मगिरी पर्वत शिखर तथा त्रिवेणी संगम, इन सब के दर्शन करने के लिए आपको एक सम्पूर्ण दिवस की आवश्यकता होगी।

अनुवाद: मधुमिता ताम्हणे

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नेपाल के चितवन राष्ट्रीय उद्यान में पदभ्रमण https://inditales.com/hindi/chitwan-rashtriya-udyan-nepal-pad-bhraman/ https://inditales.com/hindi/chitwan-rashtriya-udyan-nepal-pad-bhraman/#respond Wed, 08 Jan 2025 02:30:21 +0000 https://inditales.com/hindi/?p=3745

हम प्रातः मुँहअँधेरे ही उठ गए थे। अथवा यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी कि चितवन राष्ट्रीय उद्यान में गूँजते कोलाहल ने हमें प्रातः शीघ्र जागने के लिए बाध्य कर दिया था। हमें चितवन राष्ट्रीय उद्यान में पदभ्रमण या पैदल सफारी करने के लिए जाना था। हम जिस ‘बरही वन अतिथिगृह’ (जंगल लॉज) में ठहरे थे, […]

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हम प्रातः मुँहअँधेरे ही उठ गए थे। अथवा यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी कि चितवन राष्ट्रीय उद्यान में गूँजते कोलाहल ने हमें प्रातः शीघ्र जागने के लिए बाध्य कर दिया था। हमें चितवन राष्ट्रीय उद्यान में पदभ्रमण या पैदल सफारी करने के लिए जाना था। हम जिस ‘बरही वन अतिथिगृह’ (जंगल लॉज) में ठहरे थे, उसके एक ओर से राप्ती नदी बहती है। उस राप्ती नदी के दूसरी ओर चितवन राष्ट्रीय उद्यान स्थित है। राप्ती नदी पार करने के लिए हम एक नौका में बैठ गए। नदी पर कोहरे की एक मोटी चादर बिछी थी जो शनैः शनैः ऊपर उठ रही थी। इस कोहरे से भरे वातावरण में चारों ओर का परिदृश्य ऐसा प्रतीत हो रहा था मानो अपनी परतों में अनेक रहस्य छुपाये हुए है। हमारी नौका धीरे धीरे दूसरे तट की ओर बढ़ रही थी। कुछ अन्य पर्यटक नौकाएं भी हमारे साथ हो लिये। अकस्मात सभी नौकाओं के नाविकों ने सावधान होकर नौकाओं की गति धीमी कर दी। हमने देखा कि वे एक गेंडे को नदी पार करने में प्राथमिकता दे रहे थे। नदी पार कर वह गेंडा वन में प्रवेश कर गया।

चितवन राष्ट्रीय उद्यान नेपाल
चितवन राष्ट्रीय उद्यान नेपाल

जिस स्थान से गेंडे ने वन में प्रवेश किया था, हमारे नाविक ने नौका को उस बिन्दु के समीप ही अँकोड़े से बांध दी। गेंडे का स्मरण कर हम नौका से उतरने के लिए भय से हिचकिचाने लगे। किन्तु हमारे सफारी परिदर्शक ने हमें धीर बंधाया, तब जाकर हमने नौका से उतरकर वन में प्रवेश किया।

चितवन राष्ट्रीय उद्यान में पदभ्रमण

हम जंगल सफारी कर रहे थे किन्तु पदभ्रमण करते हुए। इससे पूर्व हमने जीप तथा नौका में बैठकर वन का सुरक्षित अवलोकन किया था। अब हम वन के भीतर पैदल भ्रमण करने जा रहे थे।

चितवन राष्ट्रीय उद्यान की भोर
चितवन राष्ट्रीय उद्यान की भोर

हमें अब भी स्मरण था कि वह गेंडा यहीं से वन के भीतर गया था। यह तथ्य हमें उत्सुकता के साथ भयभीत भी कर रहा था। हमारा परिदर्शक हमें अनवरत स्मरण कर रहा था कि चितवन राष्ट्रीय उद्यान में एक नहीं, अपितु ६०० से अधिक गेंडे हैं। वे हमारे चारों ओर उपस्थित हैं, चाहे हम उन्हे देख पायें अथवा नहीं। उन्होंने हमें आश्वस्त कराया कि गेंडों को मानवों में रुचि नहीं होती। वे तब तक आक्रमण नहीं करते जब तक कि उन्हे हमारी ओर से संकट का आभास ना हो। मैं विचार करने लगी कि गेंडों को यह कैसे ज्ञात होगा कि यहाँ हमें उनसे भय प्रतीत हो रहा है तथा उन्हे हमसे भयभीत होने की कोई आवश्यकता नहीं है, जबकि उन्हे यह स्पष्ट दृष्टिगोचर हो रहा है कि मैं उसी प्रजाति का भाग हूँ जो उनका अप्राकृतिक व उनकी प्रजाति के उन्मूलन की सीमा तक वध करने के लिए जाना जाता है।

चितवन का प्राकृतिक सौन्दर्य

जैसे ही हमने पदभ्रमण आरंभ किया। हमारा भय शनैः शनैः लुप्त होने लगा। प्रकृति की सुंदरता नयनों में बसने लगी थी। प्राकृतिक सौन्दर्य का आनंद हृदय में भय का स्थान ग्रहण करने लगा था। वन में छाया कोहरा अब विरल होने लगा था। वन में अनेक छोटे-बड़े सरोवर दृष्टिगोचर होने लगे थे जिनके जल पर ऊँचे ऊँचे वृक्षों का प्रतिबिंब पड़ रहा था। ऐसा प्रतीत हो रहा था मानो कोहरे की परत हटाकर सरोवर शनैः शनैः स्वयं को प्रकट करने का प्रयास कर रहा है।

भूमि पर बिखरे सूखे पत्तों पर चलने के कारण सरसराहट हो रही थी। हमारे मस्तिष्क में शंका उठ रही थी, यदि आसपास स्थित गेंडों अथवा उनके अन्य वन्य प्राणी मित्रों ने यह ध्वनि सुनकर कोई अवांछित प्रतिक्रिया व्यक्त कर दी तो क्या होगा!

चारों ओर अनुपम परिदृश्य था। ऊँचे ऊँचे वृक्ष थे जिनके नीचे सूखी पत्तियों की भूरी चादर बिछी हुई थी। अनेक स्थानों पर ऊँचे वृक्षों की शाखाएं आपस में मिलकर मंडप बना रही थीं, मानो हमारा स्वागत कर रही हों।

वन भ्रमण में हमारा नेतृत्व करने वाला साथी, साकेत लघु वन प्राणियों की ओर हमारा लक्ष्य केंद्रित कर रहा था। मुझे किंचित क्षोभ हुआ कि ये लघु प्राणी बिना किसी संकेत के उसे इतनी सुगमता से कैसे दृष्टिगोचर हो रहे थे! मुझे तो उसके द्वारा संकेतिक दिशा में गहनता से देखने के पश्चात भी प्राणियों को ढूँढने में समय लग रहा था। किन्तु जब हमने वृक्षों की शाखाओं पर बैठे हमारे पंख वाले मित्रों को देखना आरंभ किया तब मैं भी साकेत को चुनौती देने में सक्षम हो गयी थी। हमने अनेक प्रकार के रंगबिरंगे वन्य पक्षियों को देखा।

चितवन राष्ट्रीय उद्यान में हमारे द्वारा देखे वन्य पक्षियों पर मैंने एक विस्तृत संस्करण प्रकाशित किया है। आप इसे अवश्य पढ़ें: चितवन राष्ट्रीय उद्यान के वन्य पक्षी

वृक्षों की शाखाओं पर विराजमान पक्षी पत्तियों के पीछे छुप कर बैठे थे। हम उन्हे ढूंढ तो पा रहे थे किन्तु उनका स्पष्ट छायाचित्र ले पाना असंभव हो रहा था। मैंने छायाचित्र लेने का प्रयत्न करना ही छोड़ दिया। उसके स्थान पर मैंने पक्षियों के विविध रंगों एवं उनके हाव-भाव का आनंद उठाना आरंभ किया। पक्षियों को चहचहाते तथा एक शाखा से दूसरी शाखा पर उड़ते देखने में मैं रम गयी थी। एक क्षण ऐसा आया जब मुझे चटक लाल रंग का एक पक्षी दृष्टिगोचर हुआ। उसे देख मेरे हाथों ने सहज ही कैमरा उठा लिया। हमने कुछ क्षण लुका-छिपी का खेल खेला। अंततः मैं उसका चित्र लेने में सफल हो पायी तथा अपने दल में पुनः सम्मिलित हो गयी।

चितवन राष्ट्रीय उद्यान में वन्यजीवन के विविध चिन्ह

साकेत ने हमें भूमि पर चींटियों के घर, सांप की बाँबी आदि दिखाई। उन्होंने हमें अनेक वन्य प्राणियों के पदचिन्ह दिखाए। वे ना केवल यह जानते थे कि वो किस प्राणी के पदचिन्ह हैं, अपितु वे यह भी जानते थे कि वो प्राणी किस आयुवर्ग का हो सकता है। अद्भुत!

हमने अनेक प्रकार व आकार की मकड़ियाँ अपने जालों में लटकती देखीं। उनके जाले ऐसे प्रतीत हो रहे थे मानो वे शाखाओं को जोड़ने की चेष्टा कर रही हों। कई कई स्थानों पर वे वृक्षों को जोड़ने का प्रयास करती प्रतीत हुईं।

प्रातः लगभग ८ बजे हम जलपान के लिए रुके। हमारा वन मार्गदर्शक हमें एक खुले स्थान पर ले गया जहाँ एक वृक्ष आड़ा पड़ा हुआ था। उस पर बैठकर हमने साथ लिया हुआ जलपान किया। सम्पूर्ण परिस्थिति हमें गदगद कर रही थी। ऊँचे ऊँचे वृक्षों से परिपूर्ण सघन वन के मध्य एक मुक्ताकाश स्थल, बैठक के रूप में गिरा हुआ विशाल वृक्ष, वन का प्राकृतिक वातावरण तथा प्रातःकालीन शीतल वातावरण में बैठकर जलपान करना, सब कुछ अत्यंत अद्भुत था।

जलपान कर हम जैसे ही उठे, एक मादा गेंडा अपने शावक के साथ हमारे समक्ष उपस्थित हो गयी, केवल  लगभग १०० मीटर दूर!

हम सब एक वृक्ष के पीछे छुप गए तथा मन ही मन प्रार्थना करने लगे कि हम उसकी दृष्टि में ना आयें, ना ही उसके मार्ग में। एक ही धरातल पर, इतने समीप से इस विशाल प्राणी को देखना अत्यंत रोमांचकारी था, भले ही हम छुपकर देख रहे थे। इससे पूर्व मैंने जीप अथवा हाथी की पीठ पर बैठ कर ही गेंडों के दर्शन किये थे।

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कांचीरूवा के दर्शन

चितवन के वन में पदभ्रमण का सर्वाधिक रोमांचकारी वह क्षण था जब हमने अकस्मात ही कांचीरूवा नामक एक गेंडे का कंकाल देखा। एक कान कटा होने के कारण उसे इस नाम से बुलाया जाता था।

कंकाल के विभिन्न भाग यहाँ-वहाँ बिखरे हुए थे। जब हम उसके शीष के निकट गए तब हमें आभास हुआ कि गेंडा वास्तव में कितना विशालकाय प्राणी है। उसकी लंबी लंबी पसलियाँ शाखाओं सी प्रतीत हो रही थीं। उसके दाँत का आकार मानवी चरण का लगभग चौथाई भाग जितना था।

यदि यहाँ जन्तु विज्ञान का कोई विद्यार्थी आ जाता तो इस कंकाल का अध्ययन करते घंटों व्यतीत कर सकता था। चमड़ी व माँसपेशियाँ विहीन होने के पश्चात भी उस कंकाल का विशालकाय आकार मुझे स्तंभित कर रहा था।

वापिस आकार जब मैं उस कंकाल के छायाचित्र देख रही थी तब मुझे वन के अनकहित नियम का साक्षात्कार हुआ। जब तक वह गेंडा जीवित था, उसने कदाचित इस वन में राज किया होगा। मृत्यु के पश्चात वही गेंडा अपने साथी पशुओं का भोजन बना होगा तथा हम जैसे पर्यटकों के लिए प्रदर्शनीय वस्तु। हमें बताया गया कि वन में प्राणियों की मृत्यु होती रहती है किन्तु हमें अन्य कोई कंकाल नहीं दिखा।

ध्यान से देखें

पदभ्रमण करते हुए हम आगे बढ़े। हमने अनेक बहुरंगी तितलियाँ एवं कीट देखे। किन्तु उन्हे देखने के लिए सम्पूर्ण ध्यान की आवश्यकता होती है। गहरे हरे रंग के पत्ते पर बैठे हरे रंग के टिड्डे को देखना, सूखी पत्तियों के बीच छोटे छोटे सुंदर कीटों को देखना, पत्तों के झुरमुट में बैठी तितली को ढूँढना, सब अत्यंत मनोरंजक था। मार्ग में एक सरोवर के पास भ्रमण करते हुए हमने जल के ऊपर लटकती शाखा पर बैठे एक नीलकंठ को देखा।

हमने मोटी बेलें देखी जिन पर बड़े बड़े त्रिकोणाकार कांटे थे। उनका आकार लगभग हमारे हाथों जितना था। कदाचित प्रकृति ने ही उन्हे इन काँटों के द्वारा सक्षम बनाया है कि वे स्वयं का संरक्षण कर सकें।

और पढ़ें – लुम्बिनी का माता मायादेवी मंदिर – नेपाल में बुद्ध की जन्मस्थली

यहाँ-वहाँ पड़े मृत वृक्ष के तनों पर भिन्न भिन्न प्रकार के कुकुरमुत्ते उगे हुए थे। क्या वे सभी प्रजातियाँ मानवी उपभोग के लिए सुरक्षित हैं? क्या गेंडे जैसे वन के शाकाहारी प्राणी भी उन्हे खाते होंगे? ऐसे अनेक विचार मस्तिष्क में उभरने लगे। अपने चारों ओर के वनीय प्रदेश के जटिल पारिस्थितिकी तंत्र को जानने व समझने के प्रयास में मस्तिष्क में उभरते प्रश्न श्रंखला में से ये भी कुछ प्रश्न थे।

सेमल के लाल पुष्प

भूमि पर गिरे सेमल के लाल पुष्प बेरंग बालुई भूमि पर रंग भर रहे थे। किन्तु आज का सर्वोत्तम शोध था, छोटे छोटे नारंगी रंग के गोले। उन्हे स्पर्श करते ही हमारे हाथ नारंगी हो रहे थे। गोले हाथों में नारंगी रंग का चूर्ण छोड़ रहे थे। हमें यह स्पष्ट आभास हो रहा था कि ये साधारण गोले नहीं हैं। इसका कुछ ना कुछ महत्वपूर्ण उपयोग अवश्य ही होगा। किन्तु क्या? तभी हमारे वन परिदर्शक ने हमें जानकारी दी कि स्थानीय भाषा में इसे सिंधुरे कहा जाता है। हमारे मस्तिष्क में बिजली कौंधी। इसे नेपाली, हिन्दी एवं संस्कृत भाषा में भी तो यही कहा जाता है!

वन में पर्याप्त पदभ्रमण करने के पश्चात हम अपने बरही जंगल लॉज में पहुँचे। हमने उनके पुस्तकालय में इस नारंगी रंग के फल के विषय में जानकारी ढूँढी। हमें एक रोचक जानकारी प्राप्त हुई कि प्राचीन काल में इस फल से प्राप्त प्राकृतिक रंग से रेशम को रंगा जाता था।

चितवन वन में लगभग ४-५ घंटे पदभ्रमण कर तथा वन के विविध रंगों व गंधों में सराबोर होने के पश्चात हम वापिस राप्ती नदी के तट पर पहुँचे। वहाँ वृक्ष के एकल तने से निर्मित एक संकरी नौका हमारी प्रतीक्षा कर रही थी। नौका पर चढ़ने से पूर्व मैंने पीछे मुड़कर इस वन को पुनः निहारा। तत्पश्चात नदी के तट को देखा। मैंने देखा कि नदी के भीतर भी उसका एक स्वयं का वन है। इसके जल के ऊपर तथा भीतर अनेक प्रकार के जलीय पौधे तैर रहे थे मानो एक भिन्न वन बना रहे हों।

मुझे चितवन वन के भीतर किया इस पदभ्रमण का दीर्घ काल तक स्मरण रहेगा। एक ओर शांत व शीतल प्राकृतिक वातावरण था, तो दूसरी ओर अधीरता थी। मन में अनेक प्रकार के भाव उठ रहे थे। कभी विस्मय तो कभी शांति, कभी आनंद तो कभी भय। साथ ही भरपूर्ण शारीरिक व्यायाम।

नेपाल की यात्रा नियोजित करने से पूर्ण मेरे इन यात्रा संस्करणों को अवश्य पढ़ें जो आपको नेपाल, विशेषतः काठमांडू के आसपास के रोचक व अछूते दर्शनीय स्थलों के विषय में विस्तृत जानकारी प्रदान करेगा।

अनुवाद: मधुमिता ताम्हणे

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लद्दाख में शाकाहारी भोजन के विकल्प https://inditales.com/hindi/ladhak-ka-shakahari-bhojan/ https://inditales.com/hindi/ladhak-ka-shakahari-bhojan/#respond Wed, 01 Jan 2025 02:30:17 +0000 https://inditales.com/hindi/?p=3741

यात्राएं एवं भ्रमण करने वालों के लिए आहार एक महत्वपूर्ण आयाम होता है। हमारे स्वास्थ्य के लिए स्वच्छ व सुरक्षित आहार तो आवश्यक है ही, अनेक यात्रियों एवं पर्यटकों को भिन्न भिन्न पर्यटन स्थलों के विशेष व्यंजनों का आनंद लेना भी अत्यंत भाता है। सामान्यतः शाकाहारी भोजन सभी करते हैं। कुछ को सामिष भोजन भी […]

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यात्राएं एवं भ्रमण करने वालों के लिए आहार एक महत्वपूर्ण आयाम होता है। हमारे स्वास्थ्य के लिए स्वच्छ व सुरक्षित आहार तो आवश्यक है ही, अनेक यात्रियों एवं पर्यटकों को भिन्न भिन्न पर्यटन स्थलों के विशेष व्यंजनों का आनंद लेना भी अत्यंत भाता है। सामान्यतः शाकाहारी भोजन सभी करते हैं। कुछ को सामिष भोजन भी प्रिय होता है। किन्तु मेरे जैसे अनेक ऐसे यात्री हैं जो केवल शाकाहारी भोजन ही खाते हैं।

लद्दाख में शाकाहारी भोजन
लद्दाख में शाकाहारी भोजन

कुछ पर्यटन गंतव्यों में हमारे जैसों के समक्ष एक प्रश्न सदैव खड़ा रहता है कि क्या खाएं। ऐसे कुछ पर्यटन गंतव्य हैं, थाईलैण्ड, मलेशिया तथा हमारा अपना लद्दाख।

क्या लद्दाख में मेरे जैसे शाकाहरियों के लिए पर्याप्त भोजन विकल्प उपलब्ध हैं? आईए देखते हैं-

शाकाहारियों के लिए लद्दाख –  यात्रा का एक मुख्य आयाम

मनभावन छायाचित्रों से अलंकृत यह संस्करण आपको भोजन की उस श्रंखला से परिचित कराएगा जिसे थामकर मैंने अपनी लद्दाख यात्रा पूर्ण की थी। यहाँ मैं केवल लद्दाख के विशेष व्यंजनों का ही उल्लेख कर रही हूँ। यह संस्करण उन शाकाहारियों के लिए है जो लद्दाख भ्रमण पर वहाँ के विशेष व्यंजनों का आस्वाद लेना चाहते हैं। अन्यथा उच्च-स्तरीय भोजनालयों में अन्य राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय भोजन विकल्प उपलब्ध हैं जिनका उल्लेख यहाँ मैं नहीं कर रही हूँ।

गुड़ गुड़ चाय

यदि आपके दिवस का आरंभ किसी मठ में हो रहा है, जैसा कि एक दिवस मेरे साथ हुआ, आप वहाँ के बौद्ध भिक्षुओं को गुड़ गुड़ चाय पीते देखेंगे। वे प्रातःकाल की सम्पूर्ण अवधि में यह चाय पीते रहते हैं। यदि वे इससे अवकाश लेते हैं तो केवल दलिया का नाश्ता खाने के लिए।

ठिकसे मठ में गुड गुड चाय
ठिकसे मठ में गुड गुड चाय

बाल भिक्षुक कुछ कुछ मिनटों में उठते रहते हैं तथा अन्य भिक्षुओं के पात्र चाय एवं कुछ खाद्य से भरते रहते हैं। वे अपना यह कार्य इतनी तल्लीनता से करते रहते हैं कि यह उनकी ध्यान-साधना का ही एक अभिन्न अंग बन जाता है।

गुड गुड चाय
गुड गुड चाय

आप इस चित्र में गुड़ गुड़ चाय देख सकते हैं। इसे पोचा तथा बटर टी भी कहते हैं। इसमें चाय की पत्ती, गुड़ तथा दूध के साथ साथ नमक एवं मक्खन भी डाल जाता है। इसे नून चाय भी कहते हैं। पंजाबी में नमक को नून कहते हैं। किन्तु यह बटर टी के नाम से अधिक लोकप्रिय है। लद्दाख की शीतल जलवायु में यह शरीर को आंतरिक ऊष्मा पहुँचाती है।

और पढ़ें: भारत में चाय के भिन्न भिन्न प्रकार

सिकी रोटी

प्रातः अल्पाहार के लिए गुड़ गुड़ चाय के साथ सिकी हुई मोटी रोटी का आनंद लीजिए। यह रोटी जैसे ही भट्टी से बाहर आती है, लद्दाख के शीत वातावरण में त्वरित ठंडी हो जाती है। इसलिए इसका आनंद भाप निकलती गुड़ गुड़ चाय के साथ उठायिए।

लद्दाखी सिकी रोटी
लद्दाखी सिकी रोटी

हमें वहाँ इन रोटियों के साथ अंडे का ऑमलेट भी दिया गया था किन्तु चूंकि मैं अंडे भी नहीं खाती, मैंने इन्हे मक्खन के साथ खाया। लद्दाख की जलवायु में मक्खन भी जमा हुआ था। किन्तु लद्दाख में शीत ऋतु में जब बाहर -२३ अंश का तापमान हो तो गर्म गर्म बटर टी के साथ यही मक्खन-रोटी भी स्वर्ग का आनंद देती है।

पर्वतों के साथ भोजन
पर्वतों के साथ भोजन

हमने लद्दाख के एक सामान्य निवासस्थान में बैठकर, पर्वतों का मनमोहक दृश्य निहारते हुए रोटी एवं भाप निकलते गुड़ गुड़ चाय का अल्पाहार किया।

और पढ़ें: भारत के विभिन्न क्षेत्रों की भोजन थालियाँ

छांग एवं अन्य स्थानीय पेय 

छांग – भारत के प्रत्येक क्षेत्र के अपने स्वयं के स्थानीय पेय होते हैं। इसमें लद्दाख पीछे कैसे रह सकता है? छांग एक स्थानीय पेय है जिसे बाहरी वातावरण के अनुसार शीतल अथवा गर्म परोसा जाता है।

छांग
छांग

इसे पीतल के कटोरे में अथवा लकड़ी के पात्र में परोसा जाता है जिसे कोरे भी कहते हैं। मठों में यही लकड़ी के पात्र चाय तथा दलिये  के लिए भी प्रयुक्त होते हैं। यह एक खमीरी अथवा किण्वित पेय है जिसे जौ, बाजरा अथवा चावल से बनाया जाता है।

छोटे चने डले हुए घर में बना नूडल सूप – इस सूप में मुख्यतः नूडल, काले चने तथा नमक व कुछ मसाले डले होते हैं।

सूप
सूप

थुपका या नूडल सूप – यह लद्दाख का सर्वाधिक लोकप्रिय मूल भोजन है। इस सूप में विभिन्न शाक भाजियों का सम्मिश्रण होता है। इसके सामिष रूप में भिन्न भिन्न प्रकार के माँस का भी प्रयोग किया जाता है। किन्तु मैंने इसके शाकाहारी रूप का अत्यधिक आनंद उठाया। लद्दाख में यह एक सम्पूर्ण भोजन माना जाता है। भाप निकलता गरमागरम थुपका सूप का एक बड़ा पात्र! उदर को शांति तो प्राप्त होती ही है, साथ ही देह को प्राप्त ऊष्मा भी सुख प्रदान करती है।

लहसुन का सूप – यह भी लद्दाख का एक लोकप्रिय मूल आहार है। जब भी लोग कम ऊंचाई से पहाड़ों के ऊपरी भागों में पहुँचते हैं तब उन्हे यह सूप दिया जाता है। ऐसी मान्यता है कि यह लहसुन का सूप उन्हे Acute Mountain Sickness अर्थात स्वास्थ्य संबंधी तीव्र पर्वतीय जटिलताओं से जूझने में सहायता करता है।

अखरोट चटनी के साथ मोमो

मेरे लद्दाख यात्रा का नायक यही मोमो था जिसे अखरोट की चटनी के साथ परोसा गया था। मोमो सम्पूर्ण विश्व में हिमालयीन व्यंजन के रूप में लोकप्रिय है।

अखरोट की चटनी के साथ मोमो
अखरोट की चटनी के साथ मोमो

हिमालयी क्षेत्रों के निवासी उन क्षेत्रों में उगते सभी उत्पादनों से चटनी, जैम आदि बना लेते हैं। जैसे आड़ू, आड़ू के बीज, सेब, अखरोट आदि। इनकी एक विशेषता है कि इनमें शक्कर का न्यूनतम प्रयोग किया जाता है। इसीलिए जब मैंने इन्हे चखा तब ये मुझे मीठे कम, खट्टे अधिक प्रतीत हुए। इससे मुझे यह आभास हुआ कि जब तक संसाधित खाद्य पदार्थ हमारे जीवन का अभिन्न अंग नहीं बने थे, हम स्वास्थ्य वर्धक खाद्य पदार्थों के अभ्यस्त थे।

आड़ू का मिष्ठान्न

आड़ू से चटनी एवं जैम के अतिरिक्त मीठा भी बनाया जाता है। यह मिष्ठान्न अत्यधिक स्वादिष्ट एवं स्वास्थ्य वर्धक होता है।

आडू का मीठा
आडू का मीठा

लद्दाख का वातावरण अत्यधिक शीतल होता है। इसीलिए यहाँ पनीर एवं चीज़ का चलन है। यहाँ सामान्य गाय-भैंस के दूध से निर्मित चीज़ के अतिरिक्त याक के दूध से निर्मित चीज़ भी उपलब्ध होते हैं। यहाँ के याक चीज़ का एक अन्य रूप भी बहुत लोकप्रिय है, सुखाये हुए चीज़ के टुकड़े।

यद्यपि लद्दाख में शाकाहारी व्यंजनों के पर्याप्त विकल्प उपलब्ध है, तथापि किसी विपरीत परिस्थिति में आप फलों का सेवन कर सकते हैं। यहाँ बड़ी मात्रा में विविध फल उपलब्ध होते हैं। हिमालयीन क्षेत्रों में उत्पादित फलों का सेवन अवश्य करें। ये आपको अन्यत्र उपलब्ध नहीं होंगे।

सूखे मेवे

यदि आप फल खाने में कम रुचि रखते हैं अथवा शीतल वातावरण में फल की ओर कम रुझान हो तो आप लेह के हाट से प्रसिद्ध सूखे मेवे अवश्य खाएं। सूखे मेवे हमारे शरीर को भीतर से ऊष्मा प्रदान करते हैं।

लद्दाख के सूखे मेवे
लद्दाख के सूखे मेवे

शरीर को भीतर से ऊष्मा प्रदान करने के लिए तथा शीत मरुभूमि में स्वयं को आर्द्र रखने के लिए काहवा तो है ही। काहवा एक लदाखी चाय है।

लद्दाखी चाय का पात्र
लद्दाखी चाय का पात्र

अंत में, उन पात्रों को भी ध्यान से देखें जिनमें चाय, काहवा, छांग आदि परोसा जाता है। ये सुंदर अलंकृत धातुई पात्र होते हैं। उन पात्रों पर मोहित हो जाएँ तो स्थानीय हाट से उन्हे क्रय कर सकते हैं।

अब किसकी प्रतीक्षा कर रहे हैं! त्वरित लद्दाख यात्रा का नियोजन कर लें। आप शाकाहारी हैं? चिंता करने की कोई आवश्यकता नहीं है। इस संस्करण से आपको अवश्य यह आभास हो गया होगा कि लद्दाख में शाकाहारियों के लिए भी भोजन विकल्पों की कोई कमी नहीं है।

अनुवाद: मधुमिता ताम्हणे

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नामेरी राष्ट्रीय उद्यान और बाघ अभयारण्य, असम – भारत के राष्ट्रीय उद्यान https://inditales.com/hindi/nameri-rashtriya-udyan-assam/ https://inditales.com/hindi/nameri-rashtriya-udyan-assam/#respond Wed, 25 Dec 2024 02:30:58 +0000 https://inditales.com/hindi/?p=650

अरुणाचल प्रदेश जाते समय हमने नामेरी राष्ट्रीय उद्यान की पहली झलक देखी थी, लेकिन उस समय हम उसके दर्शन नहीं कर पाए थे। बाद में अरुणाचल से वापस आते समय जब हम रास्ते में स्थित पर्यावरण शिविर में रुके थे, तब कई बार हमे इस उद्यान की अनेक झलकियाँ देखने को मिली। नामेरी राष्ट्रीय उद्यान   […]

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अरुणाचल प्रदेश जाते समय हमने नामेरी राष्ट्रीय उद्यान की पहली झलक देखी थी, लेकिन उस समय हम उसके दर्शन नहीं कर पाए थे। बाद में अरुणाचल से वापस आते समय जब हम रास्ते में स्थित पर्यावरण शिविर में रुके थे, तब कई बार हमे इस उद्यान की अनेक झलकियाँ देखने को मिली।

नामेरी राष्ट्रीय उद्यान  

अरुणाचल जाते वक्त हमे रास्ते में एक खोदे हुए मार्ग से गुजरना पड़ा था, जिस पर से जाते समय मुझे ऐसा महसूस हुआ जैसे हम किसी रोलर कोस्टर की सवारी पर बैठे हो। अरुणाचल से जुड़ा यह मेरा पहला यादगार पल था। इसी बीच अचानक से एक हाथी ने आकर हमारा रास्ता रोक दिया और अपनी सूंढ से गाड़ी-चालक की खिड़की खटखटाने लगा। मैं उत्सुकतापूर्वक यह सब देखती रही।

नामेरी राष्ट्रीय उद्यान में जिया भोरोली नदी
नामेरी राष्ट्रीय उद्यान में जिया भोरोली नदी

हमारे चालक ने अपनी खिड़की का काँच नीचे किया और उस हाथी को 10 रूपय का नोट दे दिया और पैसे लेकर वह हाथी दूसरी गाड़ी की ओर बढ़ गया। उसके जाने के बाद हमारे चालक ने हमे बताया कि जब तक आप इन हाथियों को पैसे नहीं देते तब तक वे आपको आगे बढ़ने नहीं देते। वैसे कहा जाए तो यह एक प्रकार का हाथी कर ही है। जाहीर है कि उनके मालिकों ने उन्हें इस कार्य के लिए प्रशिक्षित किया होगा।

जो भी यहाँ पर पहली बार आता है, उसके लिए यह सबकुछ बहुत ही मनोरंजक होता है। क्योंकि अचानक से किसी हाथी का इस प्रकार से गाड़ी के पास आकर शहरों की सड़कों पर मिलनेवाले भिखारियों की तरह या फिर शायद पुलिस वालों की तरह व्यवहार करना कुछ अजीब सा है।

नामेरी पर्यावरण शिविर   

वापस आते समय जब तक हम भालुकपोंग पार कर चुके थे हम सब एक लंबी यात्रा के कारण काफी थक चुके थे और रात भी अपनी काली चादर ओढ़ते हुए दस्तक देने लगी थी। ऐसे में यहाँ की सुनसान सड़कों पर सफर करना थोड़ा खतरनाक हो सकता था। थोड़ा आगे जाने के बाद हमे रास्ते में नामेरी पर्यावरण शिविर का एक तख़्ता दिखा और हमने वहाँ पर जाने का निश्चय कर लिया। शुक्र है कि यह पर्यटन का मौसम नहीं था, जिसकी वजह से हमे यहाँ पर रहने की जगह मिल गयी और हम सब रात को यहीं पर रुक गए।

पर्यावरण शिविर एक ऐसी जगह है जहां पर कोई भी निसर्ग प्रेमी जरूर रहना पसंद करेगा। लेकिन एक बात है कि यहाँ पर भिनभिनानेवाले मच्छरों से आपको अपनी रक्षा स्वयं ही करनी पड़ती है। यहाँ पर बहुत ही सुंदर झोपड़ियाँ और तम्बू हैं और उन्हीं से जुड़कर उनके स्नानकक्ष बनवाए गए हैं। इनके पास ही एक खुला मैदान है जहाँ पर लकड़ी के लट्ठों से बनी बैठकें और रंगबिरंगी झूले हैं। यहाँ पर एक भोजनालय भी है जहाँ पर साधारण लेकिन पौष्टिक भोजन परोसा जाता है। इस भोजनालय में यहाँ-वहाँ उद्यान से जुड़ी जानकारी प्रदर्शित की गयी है। यह संपत्ति किसी पुरानी मछली पकड़ने वाली समिति की है जो आज भी यहाँ से संचालित होती है।

जंगलों की सैर

दूसरे दिन सुबह-सुबह हम सब चलते हुए जिया–भोरोली नदी (और उसकी उप-नदियां यानी डीजी, दिनाई, डोईगुरुंग, नामेरी, डिकोराइ, खारी आदि) के किनारे चले गए जो नामेरी राष्ट्रीय उद्यान से आड़े-तिरछे तरीके से होते हुए गुजरती है। यहाँ पर एक कीचड़वाला मार्ग है, जिसमें बने हुए पैरों के निशान ये साफ बता रहे थे कि अभी कुछ घंटों पहले ही यहाँ से एक हाथी गुजरा था।

हमे इसी मार्ग के आधार पर आगे बढ़ने के लिए कहा गया था और जंगल में जाने से मना किया गया था। हमने हमारे गाइड की इस सलाह का पूरी तरह से पालन किया। इतनी सुबह-सुबह नदी का यह पूरा नज़ारा सचमुच बहुत ही सुखदायक था। कलकल बहता हुआ नदी का साफ नीला पानी, किनारे पर पड़े हुए पत्थर, नदी पार करती हुई एक नाव और वहाँ पर मौजूद कुछ लोग। यह सबकुछ जैसे किसी खूबसूरत सपने की भांति लग रहा था।

ऐसे वातावरण में नदी के किनारे किसी बड़े से पत्थर पर बैठकर पानी में पाँव डुबोना और बालों के साथ खेलती ठंडी हवा का आनंद लेना, ये सारे पल जैसे इस पूरी यात्रा को और भी खूबसूरत बना रहे थे। यहाँ पर आकर आप जैसे अपनी सारी मुश्किलें भूल जाते हैं और सिर्फ इस मंत्रमुग्ध कर देनेवाले वातावरण में खो जाना चाहते हैं और इस पल को पूरी तरह से जीना चाहते हैं। अगर आपकी किस्मत अच्छी हुई तो आपको नदी के उस पार कुछ जंगली जानवर भी दिखाई दे सकते हैं। इस वक्त मुझे अपनी दूरबीन की बहुत ज्यादा याद आ रही थी। ये पल मेरी पूरी उत्तर पूर्वीय भारत की यात्रा के सबसे शांतिपूर्ण और यादगार पल थे।

उद्यान और आस-पास के जगहों की सैर   

आपको इस उद्यान के आस-पास की जगहें जरूर देखनी चाहिए। वहाँ पर एक छोटा सा मंदिर है जो एक सुंदर से पेड़ की छाया में खड़ा है। उज्वलित लाल रंग का यह पेड़ यहाँ के पूरे हरे-भरे परिदृश्य को और भी आकर्षक बनाता है। यहाँ पर एक मत्स्य पालन केंद्र भी है जहाँ पर मछलियों की नयी-नयी जातियों को लाकर उनका पोषण किया जाता है। इसी के साथ उन मछलियों पर संशोधन भी किया जाता है और फिर उसका दस्तावेजीकरण किया जाता है। बाद में संशोधन पूर्ण होने के पश्चात इन मछलियों को नदी में छोड़ दिया जाता है।

यहाँ पर रंगबिरंगी तितलियाँ और पक्षी भी हैं जो आपको उन्हें अपने कैमरे में कैद करने के लिए लुभाते हैं, लेकिन वे इतनी आसानी से आपकी पकड़ में नहीं आते। इसके अतिरिक्त यहाँ पर एक आवासशाला भी है जो 12-15 लोगों एक साथ अपनी छत्रछाया में ले सकता है, ताकि लोगों को कोई असुविधा ना हो। पर्यटन के मौसम में आप चाहे तो यहाँ पर रिवर राफ्टिंग के लिए जा सकते हैं, मछली भी पकड़ सकते हैं और वहाँ के जंगली प्राणियों को देखने के लिए आरक्षित क्षेत्रों में भी जा सकते हैं।

मुझे तो लगता है कि वन्यजीवन के सरगर्मों को एक बार तो नामेरी राष्ट्रीय उद्यान जरूर जाना चाहिए।

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रेलगाड़ी पर फिल्माए लोकप्रिय बॉलीवुड गीतों की यात्रा – एक झलक https://inditales.com/hindi/rail-gadi-par-filmaaye-geet/ https://inditales.com/hindi/rail-gadi-par-filmaaye-geet/#respond Wed, 18 Dec 2024 02:30:10 +0000 https://inditales.com/hindi/?p=3735

बॉलीवुड के चित्रपट सामान्यतः अपने निर्मिती कालखंड व उस समय की परिस्थिति के प्रतिबिम्ब होते हैं। उनमें कुछ काल्पनिक तथा कुछ वास्तविक कथानकों द्वारा समय के साथ परिवर्तित होते समाज एवं व्यवस्थाओं का सुन्दर चित्रण किया जाता रहा है। यात्रायें समाज का अभिन्न अंग हैं। तो स्वाभाविक ही है कि हमारे बॉलीवुड चित्रपटों के पटकथाओं […]

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बॉलीवुड के चित्रपट सामान्यतः अपने निर्मिती कालखंड व उस समय की परिस्थिति के प्रतिबिम्ब होते हैं। उनमें कुछ काल्पनिक तथा कुछ वास्तविक कथानकों द्वारा समय के साथ परिवर्तित होते समाज एवं व्यवस्थाओं का सुन्दर चित्रण किया जाता रहा है। यात्रायें समाज का अभिन्न अंग हैं। तो स्वाभाविक ही है कि हमारे बॉलीवुड चित्रपटों के पटकथाओं में भी यात्राओं एवं उससे जुडी यंत्रणाओं का कभी उद्देश्यपूर्ण रीति से तो कभी सौन्दर्यवृद्धि की दृष्टी से उल्लेख किया जाता रहा है।

इसी कारण आप बॉलीवुड चित्रपटों में अनेक गीत देखेंगे जिनका परोक्ष या अपरोक्ष रूप से यात्राओं से सम्बन्ध रहा है। यात्रा चाहे तांगे से हो या, रिक्शा से, साइकिल से हो या बस से, विमान से हो या रेलगाड़ी से। समय से साथ टाँगे, रिक्शा आदि का स्थान दुपहिये वाहनों ने ले लिया है। बस स्थानकों के दृश्यों के स्थान पर अब विमानतल के दृश्य अधिक दिखाई देते हैं। किन्तु एक दृश्य ऐसा है जो अब तक वैसा कि वैसा ही है, तटस्थ। वह है रेलगाड़ी या ट्रेन का दृश्य।

रेलयात्रा में जो लुभावनापन है, आकर्षण है, प्रेमी-प्रेमिकाओं का प्रेम व्यक्त करना है, यहाँ तक कि अपरोक्ष रूप से कोई सन्देश देना है, उसे यात्रा का अन्य कोई भी माध्यम मात नहीं दे सकता। स्वाभाविक है कि अनेक दशकों से बॉलीवुड के कुछ अत्यंत लोकप्रिय, भावुक तथा कल्पनाशील गीत ट्रेन पर ही चित्रित हैं। भारतीय रेल पर। आप यदि ध्यान से सोचें तो बॉलीवुड के अनेक भावनाशील तथा दार्शनिक गीतों की पार्श्वभूमी में भी आप ट्रेन का सम्बन्ध अवश्य देखेंगे, विशेषतः आरंभिक दशकों के गीतों में।

रेल पर चित्रित बॉलीवुड के २० सर्वोत्तम गीत

दशकों से बॉलीवुड के चित्रपटों में जो गीत रेलगाड़ी पर फिल्माए जा रहे हैं, उनसे हमें भारतीय रेल की अब तक की यात्रा के विषय में भी जानकारी मिलती है। अंग्रेजों के लिए बने अतिविलासी डब्बों से दूसरे दर्जे के आम डब्बों तक, धरोहर रेलों से स्थानिक रेलों तक, यहाँ तक कि मालवाहक रेलों की भी यात्रा समझ में आती है। तो आईये मेरे साथ भारतीय रेलों पर फिल्माए बॉलीवुड संगीत की संगीतमय यात्रा पर जो आपको कल्पना के जग में ले जायेगी।

तूफान मेल – जवाब (१९४२)

१९४२, वह वर्ष जब भारत में “भारत छोडो” आन्दोलन चल रहा था। यह वही वर्ष था जब कमल दासगुप्ता के संगीत पर पंडित मधुर द्वारा लिखे इस अमर गीत को कानन देवी सिंह ने गया था।

तूफान मेल – उस काल में रेलों के नाम भी अनोखे होते थे। आजकल रेलों के कितने नीरस नाम होते हैं। कल्पना कीजिये कि आप तूफान मेल नाम के ट्रेन में यात्रा करने वाले हैं।

आओ बच्चों तुम्हे दिखाएँ – जागृति (१९५४)

इस अमर गीत में ट्रेन की यात्रा दिखाई गयी है जो वास्तव में आपको भारत के विभिन्न क्षेत्रों एवं विविधताओं की सैर कराती है। भारत में हम गर्व से कहते हैं कि भारतीय रेल भारत के कोने कोने में जाती है। देश के एक छोर को दूसरे छोर से जोड़ती है। यह गीत ठीक उसी भावना का प्रदर्शन करता है। इस गीत से मुझे अपने शालेय दिवसों का स्मरण हो आता है। किसी ना किसी रूप में इस गीत ने मुझे यात्राएं करने के लिए प्रेरित किया है। आज मैं जितनी यात्राएं करती हूँ, यहाँ तक कि उसे मैंने अपना व्यवसाय ही बना लिया है, मेरे अनुमान से उसमें इस गीत की बड़ी भूमिका है। कवि प्रदीप द्वारा गाये गए इस गीत को हेमंत कुमार ने संगीतबद्ध किया है।

देख तेरे संसार की हालत – नास्तिक (१९५४)

भारत विभाजन के समय भी रेलों ने बड़ी भूमिका निभाई थी। एक ओर से दूसरी ओर लोगों को ले जाना। रेलें लोगों से खचाखच भरी होती थीं। खिडकियों, दरवाजों से लटकते लोग। छत पर बैठे लोगों की भीड़। ऐसा प्रतीत होता है कि इस गीत ने इस दृश्य व भावना को आत्मसात करने का प्रयास किया है। प्रदीप द्वारा गाया गया यह गीत आपको आपके आज की सुख-सुविधाओं भरे जीवन के विषय में अवश्य कृतज्ञ कर देगा।

बस्ती बस्ती पर्बत पर्बत – रेलवे प्लेटफोर्म (१९५५)

इस दृश्य में पटरी को पीछे छोड़कर रेलगाड़ी आगे बढ़ रही है, सा

थ ही चित्रपट के कलाकारों एवं सहायकों के नाम पटल पर आते जा रहे हैं। यह एक यात्री की गाथा प्रतीत होती है।

इस गीत को साहिर लुधियानवी ने लिखा, मदन मोहन ने संगीतबद्ध किया तथा मोहम्मद रफ़ी ने अपने मधुर आवाज में गाया है।

है अपना दिल तो आवारा – सोलवां सावन (१९५८)

यह मेरा सदा-प्रिय, एक अल्हड़ गीत है जिसे देव आनंद एवं वहीदा रहमान की सुन्दर जोड़ी पर फिल्माया गया है। यह गीत रेलगाड़ी के भीतर फिल्माया गया है, इसे समझने में मुझे कुछ समय लगा था। क्योंकि मैंने तब तक ऐसी रेलगाड़ी नहीं देखी थी। मजरूह सुल्तानपुरी के शब्दों को एस. डी. बर्मन ने संगीतबद्ध किया है। इस मस्ती भरे गीत को हेमंत कुमार ने अपनी गायकी से अमर कर दिया है।

 मेरे अनुमान से यह गीत कोलकाता के स्थानीय इलेक्ट्रिकल मल्टीपल यूनिट (EMU) में फिल्माया गया है।

औरतों के डब्बे में – मुड़ मुड़ के ना देख (१९६०)

यह एक मस्ती भरा गीत है जिसमें स्त्री-पुरुष के मध्य सदाबहार नोकझोंक को प्रदर्शित किया है। इस दृश्य में एक पुरुष महिलाओं के डिब्बे में प्रवेश कर जाता है।

इस दृश्य में भारत भूषण, जो बहुधा गंभीर भूमिका निभाते थे, चंचलता भरी भूमिका कर रहे हैं। इस गीत को मोहम्मद रफ़ी एवं सुमन कल्याणपुर ने गाया है, हंसराज बहल ने संगीतबद्ध किया है तथा इसके बोल प्रेम धवन ने लिखे हैं।

मैं हूँ झुम झुम झुमरू – झुमरू (१९६१)

दार्जिलिंग हिमालयन रेलवे पर फिल्माया यह अमर गीत झुमरू चित्रपट का शीर्षक गीत भी है। इस गीत को गायक व नायक किशोर कुमार ने अत्यंत अल्हड़ शैली में गाया है। इस चित्रपट में मुख्य भूमिका में स्वयं किशोर कुमार तथा मधुबाला हैं। रेलगाड़ी से सम्बंधित मस्तीभरे गीत चुने जाएँ तो सूची में ये गीत सर्वोच्च स्थान पर हो सकता है। इस गीत को संगीतबद्ध भी किशोर कुमार ने ही किया है। इसके शब्द मजरूह सुल्तानपुरी ने लिखे हैं।

मुझे अपना यार बना लो – बॉय फ्रेंड (१९६१)

इस गीत में नायक शम्मी कपूर हिमालय की शिवालिक पर्वत श्रंखला से जाती हुई शिमला-कालका रेलगाड़ी की छत पर कूदते-फांदते दिख रहे हैं। यह उनकी सर्वधिक लोकप्रिय शैली है। श्वेत-श्याम चित्रपट होते हुए भी हिमाच्छादित पर्वत शिखर अत्यंत सुन्दर दिख रहे हैं।

गायक – मोहम्मद रफ़ी, संगीत – शंकर जयकिशन, गीत – हसरत जयपुरी

मैं चली मैं चली – प्रोफेसर (१९६२)

यह गीत भी दार्जीलिंग हिमालयन रेल पर फिल्माया गया है जिसमें शम्मी कपूर व कल्पना आपस में प्रेम व्यक्त कर रहे हैं।

गायक – मोहम्मद रफ़ी व लता मंगेशकर, संगीत – शंकर जयकिशन, गीत – हसरत जयपुरी

रुख से जरा नकाब हटा दो – मेरे हजूर (१९६८)

रेलगाड़ी में बैठी नायिका पर फिल्माया गया एक सुन्दर गीत जिसे मोहम्मद रफ़ी ने अपना मधुर स्वर प्रदान किया है। इस मधुर गीत को संगीतबद्ध किया शंकर जयकिशन ने।

मेरे सपनों की रानी – आराधना (१९६९)

इस गीत में दार्जीलिंग हिमालयन रेल का सुन्दर दृश्य दिखाया गया है। यह ऐसा गीत है जिसे छोटे बड़े सभी ने मस्ती में गया होगा।

इस गीत के इतने लोकप्रिय होने के पीछे किशोर कुमार की मदमस्त आवाज, आनंद बक्शी के बोल, सुप्रसिद्ध संगीतकार आर. डी. बर्मन का मस्ती भरा संगीत व लोकप्रिय नायक राजेश खन्ना, इस सब का मधुर संगम है।

हम दोनों दो प्रेमी – अजनबी (१९७४)

चित्रपट के नायक व नायिका, राजेश खन्ना व जीनत अमान एक मालगाड़ी के डिब्बे पर सवार दिखाए गए हैं। पहले दृश्य में ही रेल क्रमांक १९२२८ भी दिखाई देता है। उस काल में रेलगाड़ी में भाप का इंजिन लगता था। एक मालगाड़ी का इतना सुन्दर रूप किसी ने कभी नहीं देखा होगा। किशोर कुमार व लता मंगेशकर ने आर. डी. बर्मन के संगीत पर आनंद बक्शी के इस गीत को पूर्ण न्याय किया है।

गाड़ी बुला रही है – दोस्त (१९७४)

इस गीत में ट्रेन या रेलगाड़ी को एक रूपक के रूप में प्रयोग किया गया है। इस गीत में केवल दो ही तत्व दर्शाए गए हैं, नायक धर्मेन्द्र एवं रेलगाड़ी। गाड़ी के माध्यम से जीवन में आगे बढ़ने की प्रेरणा दी गयी है। इस गीत में कालका-शिमला पर्वतीय रेल दिखाया गया है। इस स्फूर्तिदायक गीत को किशोर कुमार ने गया है, लक्ष्मीकांत प्यारेलाल ने संगीत दिया है तथा गीतकार हैं आनंद बक्शी।

होगा तुमसे प्यारा कौन – जमाने को दिखाना है (१९७७)

एक बार फिर दार्जीलिंग हिमालयन रेल। केवल नायक व नायिका भिन्न हैं। यहाँ ऋषि कपूर पद्मिनी कोल्हापुरे के समक्ष अपना प्रेम व्यक्त कर रहे हैं। रेलगाड़ी का ऊपर से अप्रतिम दृश्य लिया गया है। संगीत की तान से मेल खाती रेलगाड़ी की आवाज एवं भाप इंजिन से निकलते धुंए का सुन्दर ढंग से प्रयोग किया गया है। आर. डी. बर्मन द्वारा संगीतबद्ध इस गीत को शैलेन्द्र सिंग ने अपने स्वर प्रदान किये हैं जो ऋषि कपूर पर अच्छे लगते हैं।

पर दो पल का साथ हमारा – द बर्निंग ट्रेन (१९८०)

पल दो पल का साथ हमारा, पल दो पल का याराना है। ये शब्द रेल यात्रा को सुन्दर शैली में व्यक्त करते हैं। रेलयात्रा का यही सत्य है। रेलगाड़ी के भीतर फिल्माए गए इस गीत को मोहम्मद रफी एवं आशा भोंसले ने गाया है। आर.डी. बर्मन द्वारा संगीतबद्ध इस गीत के बोल साहिर लुधियानवी ने लिखे हैं।

हाथों की चंद लकीरों का – विधाता (१९८२)

यह एक दार्शनिक गीत है जिसमें दो वयस्क नायकों, दिलीप कुमार व शम्मी कपूर को दिखाया गया है। इस गीत के माध्यम से वे नियति एवं कर्म पर आपस में तर्क कर रहे हैं। इस गीत में दोनों रेल के डब्बे के भीतर नहीं, इंजिन के भीतर हैं तथा रेलगाड़ी चला रहे हैं। सुरेश वाडकर एवं अनवर हुसैन द्वारा गाये गए इस गीत को कल्याणजी आनंदजी ने संगीतबद्ध किया तथा इसके बोल लिखे हैं, आनंद बक्शी ने।

सारी दुनिया का बोझ हम उठाते हैं – कुली (१९८३)

इस चित्रपट के नाम से ही यह समझ में आ जाता है कि यह एक कुली की कथा है। यह गीत बंगलुरु सिटी स्टेशन पर फिल्माया गया है जो इस गीत का वास्तविक नायक है।

गायक – शब्बीर कुमार, संगीतकार – लक्ष्मीकांत प्यारेलाल, गीतकार – आनंद बक्शी

साजन मेरे उस पार – गंगा जमुना सरस्वती  (१९८८)

इस गीत में भारतीय रेल की विभिन्न श्रेणियां दिखाई गयी हैं जिनके माध्यम से उनके मध्य सामाजिक व आर्थिक विभाजन दर्शाया गया है।

गायिका – लता मंगेशकर, संगीतकार – अनु मालिक, गीतकार – इन्दीवर

कब से करे है तेरा इंतजार – कभी हाँ कभी ना (१९९४)

यह मधुर गीत कोंकण रेलवे का उत्सव मनाता है। भारत के सर्वाधिक हरियाली भरे क्षेत्रों से जाते हुए कोंकण क्षेत्र का अप्रतिम परिदृश्य दिखाया गया है। इसमें वास्को द गामा रेल स्टेशन भी दिखाया गया है।

अमित कुमार की मस्ती भरी गायकी को शाहरुख खान ने उतनी ही रोमांचक प्रस्तुति से अलंकृत किया है। जतिन-ललित के उत्कृष्ट संगीत व मजरूह सुल्तानपुरी के बोल, दोनों ने इस गीत को अत्यधिक लोकप्रिय बना दिया है।

और पढ़ें: मानसून में कोंकण रेलवे की यात्रा

छैंया छैंया – दिल से ( १९९८)

शाहरुख खान एवं मलाइका अरोरा ने नीलगिरी धरोहर रेलगाड़ी की छत पर फिल्माए इस रोमांचक गीत से चित्रपट प्रेमियों में धूम मचा दी थी। मेरे लिए इस गीत की विशेषता है, सुखविंदर सिंग एवं सपना अवस्थी के सशक्त स्वर जिसे लोक शैली में संगीतबद्ध किया ए. आर. रहमान ने। गीत लिखा गुलजार ने। ट्रेन पर फिल्माये बॉलीवुड गीतों में सर्वाधिक लोकप्रिय गीत।

कस्तो मज्जा है रेलैमा – परिणीता (२००५)

नायिका विद्या बालन का स्मरण करते नायक सैफ अली खान एक बार फिर दार्जीलिंग हिमालयन रेल में सवार हो गए हैं। यह गीत आपको अतीत काल में ले जाता है तथा रेलों का स्वर्णिम युग आपके समक्ष प्रस्तुत करता है। यह एक सुन्दर गीत है जिसे उतनी ही सुन्दर शैली में चित्रित किया है। इस मधुर गीत को मधुर स्वर प्रदान किये हैं गायक सोनू निगम ने। शांतनु मोइत्रा ने स्वानंद किरकिरे द्वारा लिखित इस गीत को सुन्दर संगीत प्रदान किया है।

मनु भैय्या क्या करेंगे – तनु वेड्स मनु (२०११)

दूसरे दर्जे के रेल डिब्बे में यात्रा कर रहा एक भरा पूरा परिवार इस लोकगीत के द्वारा अचानक उर्जा से भर जाता है तथा आनंद मनाने लगता है। रेलगाड़ी जैसे जैसे आगे बढ़ रही है, परिवार के सदस्य नाचते गाते हैं तथा डिब्बे में ही विवाह उत्सव की विभिन्न विधियां एवं संस्कार करते हैं। मोहित चौहान के संगीत पर सुनिधी चौहान, उज्जैनी मुखर्जी एवं निलाद्री देबनाथ ने इस लोकगीत की सुन्दर प्रस्तुति की है।

फूलिश्क – की एंड का (२०१६)

यह गीत रेवाड़ी धरोहर रेल पर फिल्माया गया है। यह धरोहर रेलगाड़ी दिल्ली व रेवाड़ी के मध्य चलती है। इन दिनों यह चित्रपटों में अधिक दिखाई देती है। इस गीत का कोई औचित्य नहीं है। मेरे लिए यह गीत रेल संग्रहालय का भ्रमण है।

इनमें से आपके प्रिय गीत कौन से हैं? यदि मुझसे रेल पर फिल्माया कोई बॉलीवुड गीत छूट गया हो, जो आपको प्रिय हो, टिप्पणी खंड द्वारा मुझे अवश्य सूचित करें।

अनुवाद: मधुमिता ताम्हणे

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