उत्तराखण्ड यात्रा Archives - Inditales श्रेष्ठ यात्रा ब्लॉग Mon, 12 Jun 2023 05:24:03 +0000 en-US hourly 1 https://wordpress.org/?v=6.7.2 राजाजी राष्ट्रीय उद्यान – चीला आरक्षित वन के वन्यजीवन का आनंद उठायें https://inditales.com/hindi/rajaji-rashtriya-udyan-garhwal-uttarakhand/ https://inditales.com/hindi/rajaji-rashtriya-udyan-garhwal-uttarakhand/#respond Wed, 12 Dec 2018 02:30:13 +0000 https://inditales.com/hindi/?p=1090

मैंने अपने जीवन में अनेकों बार ऋषिकेश की यात्रा की है। हर बार राजाजी राष्ट्रीय उद्यान का दर्शन किसी ना किसी कारणवश छूट जाता था। इस बार जब में हरिद्वार गयी, मुझे गढ़वाल मंडल विकास निगम(GMVN) के चीला अतिथी गृह में ठहरने का निमंत्रण मिला। मैंने मन ही मन विचार किया कि एक बार जंगल […]

The post राजाजी राष्ट्रीय उद्यान – चीला आरक्षित वन के वन्यजीवन का आनंद उठायें appeared first on Inditales.

]]>

मैंने अपने जीवन में अनेकों बार ऋषिकेश की यात्रा की है। हर बार राजाजी राष्ट्रीय उद्यान का दर्शन किसी ना किसी कारणवश छूट जाता था। इस बार जब में हरिद्वार गयी, मुझे गढ़वाल मंडल विकास निगम(GMVN) के चीला अतिथी गृह में ठहरने का निमंत्रण मिला। मैंने मन ही मन विचार किया कि एक बार जंगल सफारी करूंगी, एक रात्री इस अतिथी गृह में बिताउंगी और शेष दिन हरिद्वार में ठहरूंगी। किन्तु मुझे चीला का वातावरण इतना भा गया कि अंततः मैं इस अतिथी गृह में चारों दिन ठहर गयी। केवल दिन के समय हरिद्वार नगरी के दर्शन के लिए चली जाती थी।

राजाजी राष्ट्रीय उद्यान के पास गंगा जी
राजाजी राष्ट्रीय उद्यान के पास गंगा जी

मैं दोपहर के भोजन के समय गढ़वाल मंडल विकास निगम के चीला अतिथी गृह में पहुँची। अधिक समय शेष नहीं था। जल्दी जल्दी थोड़ा कुछ खाया और सफारी के लिए निकल पड़ी। राजाजी राष्ट्रीय उद्यान का मुख्यद्वार हमारे अतिथी गृह से सटा हुआ ही था। आवश्यक औपचारिकता पूर्ण कर राजाजी राष्ट्रीय उद्यान का अनुभव लेने आगे बढ़ गयी। वाहन चालक एवं परिदर्शक दोनों की भूमिका निभाते, कुन्दन जी हमारे साथ थे।

राजाजी राष्ट्रीय उद्यान का इतिहास

८०० वर्ग की.मी. से भी अधिक क्षेत्रफल में फैला यह अपेक्षाकृत बड़ा उद्यान है। हरिद्वार एवं ऋषिकेश की पवित्र नगरियों को चारों ओर से घेरा यह उद्यान सहारनपुर, पौड़ी गढ़वाल एवं देहरादून जिलों तक फैला हुआ है। इससे आप अनुमान लगा सकते हैं कि इन नगरों के विस्तृत होने से पूर्व यहाँ के अधिकतर क्षेत्र वन ही रहे होंगे। उद्यान भीड़भाड़ भरे नगरों के इतने समीप है, फिर भी इसकी जैव-विविधता आज भी अछूती है। आप कई प्रकार के वन्य प्राणी एवं पक्षी यहाँ देख सकते हैं।

राजाजी राष्ट्रीय उद्यान - उत्तराखण्ड
राजाजी राष्ट्रीय उद्यान – उत्तराखण्ड

आरम्भ में यहाँ ३ वन्यजीव अभयारण्य थे। १९७७ में स्थापित चीला अभयारण्य, १९६४ में स्थापित मोतीचूर अभयारण्य एवं १९४८ में स्थापित राजाजी अभयारण्य। १९८३ में इन तीनों अभयारण्यों को मिलाकर राजाजी वन्यजीव अभयारण्य बना दिया गया। २०१५ में इसे टाइगर रिज़र्व का ओहदा प्रदान किया गया। वास्तव में इसका नामकरण स्वतन्त्र भारत के प्रथम गवर्नर जनरल श्री सी राजगोपालाचारी के नाम पर किया था।

राजाजी राष्ट्रीय उद्यान हाथियों के लिए अधिक जाना जाता है। मैंने कई बार सुना था कि इन वनों से जाते हुए आप हाथियों के झुण्ड देख सकते हैं। भारत में हाथियों की उपस्थिति का यह उत्तर-पश्चिमी छोर है। यहाँ से यदि आप कुछ और दूरी उत्तर अथवा पश्चिम की ओर चले जाएँ, आप वहां इन जंगली हाथियों को नहीं पायेंगे।

चीला आरक्षित वन – राजाजी राष्ट्रीय उद्यान

चीला आरक्षित वन जल-विद्युत् घर के समीप है। इस बिजली घर में जल आपूर्ति करती, गंगा की एक सहायक नदी यहाँ दिखाई देती है। इस सहायक नदी में कई मौसमी नदियों का भी समागम होता है। गढ़वाल मंडल विकास निगम का अतिथी गृह ऐसे ही एक संगम पर, धरती की एक संकरी पट्टी पर निर्मित है।

गंगा इस उद्यान में लगभग २४ की.मी. की दूरी तक बहती है। इस दौरान कई मौसमी नदियाँ इसमें आकर समाती हैं। यह नदियाँ अन्यथा सूखी एवं लुप्त रहती हैं।

मुंडल देव की कथा

राजाजी राष्ट्रीय उद्यान - मुंडल देव मंदिर
राजाजी राष्ट्रीय उद्यान – मुंडल देव मंदिर

हमने शनैः शनैः  राष्ट्रीय उद्यान के भीतर प्रवेश किया। कच्चा रास्ता था। केवल वनों के लिए उपयुक्त  शक्तिशाली गाड़ियां ही उस पर चल सकती थीं। हमारा पहला पड़ाव था एक छोटा सा मंदिर। जंगल के भीतर एक छोटा सा मंदिर हो एवं उसकी कोई कथा ना हो, यह कैसे हो सकता है। कुंदन जी ने मुझे बताया कि यह मंदिर मुंडल देव को समर्पित है। मुंडल देव एक स्थानीय संरक्षक माने जाते हैं जो शिकारियों से जंगल एवं जंगल के प्राणियों की रक्षा करते हैं। उनके सम्मान में आज भी सारे गांववासी फसल निजी उपयोग में लाने अथवा बेचने से पूर्व उन्हें अर्पित करते हैं।

संयोग से मुंडल एक मौसमी नदी का भी नाम है। कुंदनजी ने मुझे बताया कि स्थानीय लोग इसे मंगेतर भी कहते हैं। मुझे बड़ा आश्चर्य हुआ। यह नदी किसकी मंगेतर हो सकती है! यहाँ भी कुन्दनजी ने मेरी जिज्ञासा शांत की। उन्होंने यह कथा सुनायी:

राजाजी राष्ट्रीय उद्यान में सूर्यास्त का मनोरन दृश्य
राजाजी राष्ट्रीय उद्यान में सूर्यास्त का मनोरन दृश्य

एक बार मुंडल नदी, अपितु मैं नद कहूँगी , को गंगा नदी से प्रेम हो गया। वह उससे विवाह करना चाहता था। उसने भगवान् शिव एवं अन्य देवों से गंगा का हाथ माँगा। देवतागण असमंजस में पड़ गए। सामान्यतः सूखा रहता मुंडल, मौसम में अत्यंत आकर्षक दिखाई पड़ता था। अंततः देवताओं ने अपनी ओर से सम्मति देते हुए अंतिम निर्णय गंगा पर छोड़ दिया। गंगा मुंडल से विवाह हेतु इच्छुक नहीं थी। किन्तु वह जानती थी कि मुंडल आसानी से उनका निर्णय स्वीकार नहीं करेगा। इसलिए जब मुंडल ने गंगा के समक्ष विवाह की मांग रखी तब गंगा ने उसकी मांग सशर्त स्वीकार की। शर्त यह थी कि मुंडल ग्रीष्म ऋतु में बारात लेकर उनके पास आये। आप जानते ही हैं कि मुंडल ग्रीष्म ऋतू में अस्तित्वहीन हो जाता है जबकि गंगा शाश्वत है।

खोती उभरती मौसमी नदी एवं अविनाशी गंगा नदी के अस्तित्वों की गाथा कहती इस किवदंती ने मुझे रोमांचित कर दिया था।

राजाजी राष्ट्रीय उद्यान के चीला वन में जीप सफारी

राजाजी राष्ट्रीय उद्यान में भ्रमण करते मृग
राजाजी राष्ट्रीय उद्यान में भ्रमण करते मृग

मुंडल देव मंदिर से हमारी जीप आगे बढ़ी। राह में हमें हिरणों के कई झुण्ड दिखाई दिए। उछलते कूदते वे कभी जंगल में भटकते तो कभी नदी के पास पहुँच कर पानी पीते। कभी अचानक हमारी गाड़ी के सामने से दौड़कर सड़क पार करते तो कभी उन्हें देख हम स्वयं ही गाड़ी रोक देते ताकि वे उस पार जा सकें।

साम्बर अपने कान ऊंचे किये चौकन्ना खड़ा था। आशा जागी कि अब हमें बाघ या तेंदुआ दिखेगा। किन्तु हमारी इच्छाओं पर पानी फिर गया। हमें हंसी भी आयी। ऐसा साम्बर  हमें सड़क के हर मोड़ पर खड़ा दिखाई दिया।

लम्बी घास के बीच गजराज
लम्बी घास के बीच गजराज

हाथी छोटे छोटे झुण्ड में दिखाई पड़ रहे थे। कई बार हर हाथी के साथ एक बच्चा भी होता था । ये झुण्ड हाथियों का परिवार प्रतीत हो रहे थे। दूर पर एक हाथियों का जोड़ा अपने बछड़े के संग घास चर रहा था। घास की ऊंचाई मुझे तब समझ में आयी। अपनी ऊंची पतली डंठलों में वे इन हाथियों को लगभग पूर्णतया छुपा रहे थे।

गोह - राजाजी राष्ट्रीय उद्यान
गोह – राजाजी राष्ट्रीय उद्यान

गोह अर्थात् मॉनिटर लिज़र्ड यहाँ वहां दौड़ रहे थे। कभी सड़क की मिट्टी पर शांत लेटे रहते और अचानक ही घास में अदृश्य हो जाते। उनका छद्म आवरण उन्हें घास से एकाकार कर रहा था। ढूंढ पाना कठिन हो रहा था।

राजाजी राष्ट्रीय उद्यान के पक्षी

मई माह का अंत था। उस पर दोपहर की सफारी थी। इस गर्मी में किसी भी पक्षी दर्शन की उम्मीद नहीं थी। कहते हैं ना! जब उम्मीद ना हो तभी घटनाएँ आश्चर्यचकित कर देती हैं। इस गर्मी में भी हमने कई पक्षी ढूंढें। अब मैं शीत ऋतू में एक बार फिर यहाँ आना चाहती हूँ जब यह उद्यान पक्षियों से भरा रहेगा।

आँखें तो देखिये इस बाज़ की
आँखें तो देखिये इस बाज़ की

सबसे पहले मैंने बाज अर्थात हॉक ईगल देखा। उसकी गोल बड़ी बड़ी पीली आँखें थी। इसकी एक विशेषता है। पास जाने पर भी यह डर कर उड़ता नहीं। शांत बैठकर दर्शन करने देता है। आप जितनी चाहें इसके चित्र खींच सकते हैं। मुझे स्मरण है, बांधवगड राष्ट्रीय उद्यान में भी मैंने इसके अच्छे छायाचित्र खींचे थे।

जल स्त्रोतों के पास हमें नद कुरारी एवं टिटहरी यहाँ वहाँ चलते व पानी पीते दिखाई दिए। पानी की सतह पर पड़ते उनके प्रतिबिम्ब अत्यंत मनमोहक प्रतीत हो रहे थे। चाह हुई कि पास जाकर उनके चित्र खींचूँ। किन्तु इसके लिए मुझे जीप से उतरना पड़ता। राष्ट्रीय उद्यान के भीतर इसकी अनुमति नहीं होती है।

छुपता निकलता तोता
छुपता निकलता तोता

पतरिंगा, नीलकंठ, ढेलहरे तोते, रामचिरैया, हरियल जैसे कई रंगबिरंगे पक्षी चारों ओर फुदक रहे थे। अपने चटक रंगों के कारण वे सहसा उठकर दिख रहे थे। अकस्मात् मेरी दृष्टी पेड़ के तने पर स्थित एक छोटे छिद्र से झांकते एक तोते पर पड़ी। तने के अन्दर बाहर होता वह तोता मानो मुझसे आँख-मिचौली खेल रहा था। उसने मेरा मन प्रफुल्लित कर दिया था।

राष्ट्रीय पक्षी मोर - है कोई इस से रंग बिरंगा
राष्ट्रीय पक्षी मोर – है कोई इस से रंग बिरंगा

इन सबमें सर्वाधिक विशाल एवं रंगीन पक्षी थे मोर। अपने बहुमूल्य पंखों के साथ वे राजसी ठाठ से यहाँ वहां घूम रहे थे। इस उद्यान में वे आपको हर ओर दिखाई देंगे।

बन कुक्कुट अर्थसत जंगली मुर्गे  भी कीट भोजन चुगते इधर उधर दौड़ रहे थे। बन कुक्कुट के पंखों के भीतर इतने रंग होते हैं कि आप गिनते गिनते थक जायेंगे। इनके चित्र खींच पाना भी अपने आप में एक चुनौती है। इनको कैमरे में कैद करने के लिए इनके समक्ष झुकना ही पड़ता है।

पतेना पक्षी
पतेना पक्षी

श्वेत श्याम दैया अथवा रोबिन एवं जंगली मैना झाड़ों पर फुदक रहे थे।

फ़ाकता या चितकबरे कबूतर पेड़ों की शाखाओं पर बैठे आलस निकाल रहे थे।

भारतीय धनेश
भारतीय धनेश

कई धनेश भी उड़ते दिखाई दिए। समस्या यह थी कि वे सदैव सड़क से दूर स्थित पेड़ों की डंगाल पर ही जाकर छुप रहे थे। चित्र खींचना मुश्किल हो रहा था। अंततः घनेश के एक  बच्चे का चित्र खींचने में सफलता मिल ही गयी।

हमेशा की तरह सात भाई आपस में बड़बड़ा रहे थे। इनके सिवाय भी कई पक्षी थे जिन्हें मैं पहचान नहीं पायी। फिर भी उन्हें ताकते रहना अत्यंत आनंददायक था। काश इतनी स्वतंत्रता से जीना सबके बस में होता।

हम राजाजी राष्ट्रीय उद्यान में जीप सफारी के अंतिम चरण पर पहुँच रहे थे। सूर्यास्त हो रहा था। परिदृश्य अन्यंत ही मनोरम हो गया था। डूबते सूर्य की किरणें पेड़ों की शाखाओं से आँख मिचौली खेल रही थीं। सम्पूर्ण परिदृश्य सूर्य की सुनहरी आभा में मदमस्त था। बड़ी कठिनाई से मैंने अपने आप को समझाया कि यह सफारी के अंत होने का संकेत भी है।

और पढ़ें:- गोवा में पक्षी दर्शन के १५ सर्वोत्तम स्थान

राजाजी राष्ट्रीय उद्यान के होटल

गढ़वाल विकास मंडल निगम का विश्राम गृह
गढ़वाल विकास मंडल निगम का विश्राम गृह

राजाजी राष्ट्रीय उद्यान के किस भाग में आप रहना चाहते हैं, सर्वप्रथम आपको यह निश्चित करना होगा। तत्पश्चात होटल का चुनाव करें। यदि आप मेरी तरह चीला आरक्षित वन का अवलोकन करना चाहते हैं तो ठहरने के लिए सर्वोत्तन स्थान है – गढ़वाल मंडल विकास निगम(GMVN) का चीला अतिथी गृह। यहाँ लठ्ठों की कई सुन्दर कुटीयाँ हैं जहां से गंगा का अप्रतिम दृश्य दिखाई पड़ता है। यहाँ से आप आसानी से गंगा किनारे तक पहुँच सकते हैं। गंगा किनारे सैर कर सकते हैं अथवा शांत बैठ कर उसे घंटों निहार सकते हैं।

राजाजी राष्ट्रीय उद्यान दर्शन के लिए कुछ सुझाव

  • राजाजी राष्ट्रीय उद्यान का चीला आरक्षित वन ऋषिकेश एवं हरिद्वार के मध्य सुगम्य स्थान पर स्थित है। स्थानीय रहवासियों के लिए यह एक अत्यंत इष्ट सैर स्थल है।
  • यह उद्यान वर्षा ऋतू अर्थात् जून मध्य से नवम्बर मध्य तक बंद रहता है।
  • आप प्रातःकालीन सफारी सुबह ६ बजे से ९ बजे तक कर सकते हैं। दोपहर की सफारी ३ से ५ बजे तक की जाती है। यदि संभव हो तो आप एक प्रातःकालीन सफारी अवश्य कीजिये।
  • राजाजी राष्ट्रीय उद्यान दर्शन का सर्वोत्तम समय है अक्टूबर से मार्च महीने के बीच कभी भी।
  • चीला वन के मुख्य द्वार के ठीक बाहर एक स्मारिका दूकान है। वन्य प्राणियों से सम्बंधित कई यादगार स्मारिकाएं आपको यहाँ मिल जायेंगी।
  • वन्य प्राणी व्याकुल ना हों, इसलिए हमें चटक रंग के कपड़ों से बचाना चाहिए। जहां तक हो सके, स्वयं को ढँक कर रखें। धूल एवं धूप से बच सकते हैं।

अनुवाद: मधुमिता ताम्हणे

The post राजाजी राष्ट्रीय उद्यान – चीला आरक्षित वन के वन्यजीवन का आनंद उठायें appeared first on Inditales.

]]>
https://inditales.com/hindi/rajaji-rashtriya-udyan-garhwal-uttarakhand/feed/ 0 1090
बिनसर कुमाऊँ में वैभवशाली हिमालय के दर्शन https://inditales.com/hindi/binsar-kumaon-uttarakhand-himalayas/ https://inditales.com/hindi/binsar-kumaon-uttarakhand-himalayas/#comments Wed, 30 May 2018 02:30:24 +0000 https://inditales.com/hindi/?p=790

उत्तराखंड प्रदेश के कुमाऊँ क्षेत्र में स्थित झंडी धार पहाड़ियों के मध्य स्थित बिनसर, भव्य हिमालय पर्वत श्रंखला के अप्रतिम परिदृश्यों से परिपूर्ण है। बिनसर एक वन्य जीव अभ्यारण्य है। प्राचीनकाल में यह चन्द्र वंशीय राजाओं की ग्रीष्म राजधानी हुआ करती थी। ११वीं से १८वीं शताब्दी के बीच यहाँ चन्द्र वंशीय राजाओं का शासन था। […]

The post बिनसर कुमाऊँ में वैभवशाली हिमालय के दर्शन appeared first on Inditales.

]]>
हिमालय की चोटियाँ - बिनसर से
हिमालय की चोटियाँ – बिनसर से

उत्तराखंड प्रदेश के कुमाऊँ क्षेत्र में स्थित झंडी धार पहाड़ियों के मध्य स्थित बिनसर, भव्य हिमालय पर्वत श्रंखला के अप्रतिम परिदृश्यों से परिपूर्ण है। बिनसर एक वन्य जीव अभ्यारण्य है। प्राचीनकाल में यह चन्द्र वंशीय राजाओं की ग्रीष्म राजधानी हुआ करती थी। ११वीं से १८वीं शताब्दी के बीच यहाँ चन्द्र वंशीय राजाओं का शासन था। ये वही चन्द्र वंशीय राजा हैं जिनके विषय में मैंने जागेश्वर के अपने संस्मरण में उल्लेख किया था तथा उस काल में यहाँ प्रचलित कलाकृतियों से भी आपका परिचय कराया था।

यद्यपि बिनसर अल्मोड़ा से अधिक दूर नहीं है, परन्तु उनकी ऊंचाईयों में अंतर है। अतः अल्मोड़ा से बिनसर पहुँचने के लिए धीमी गति से प्रवास करने की आवश्यकता है। अल्मोड़ा से बाहर निकलते ही पहाड़ियों के परिदृश्य आपको मंत्रमुग्ध कर देते हैं। उन परिदृश्यों को आत्मसात करना तथा कैमरे द्वारा उन्हें स्थायी स्मृतियों में परिवर्तित करना हो तो  आप मार्ग में रुकते रुकते ही चल पाएंगे। ऊंचे ऊंचे देवदार के वृक्षों से छन छन कर आती धूप का आनंद लेने आप कई बार अपनी गाड़ी से नीचे उतरेंगे। संक्षेप में यह कहना चाहती हूँ कि अधिक दूरी पर स्थित ना होते हुए भी बिनसर पहुँचने में समय लग ही जाता है। और सच कहिये तो पहाड़ों में घूमने का यही तो आनंद है।

अब हमारा ही उदहारण ले लीजिये – सुनिए एक मनोरंजक घटना जो हमारे साथ घटी। मार्ग के मनोरम परिदृश्यों में हम इतना तल्लीन हो गए कि हम कब बिनसर को पार कर अगले गाँव तक पहुँच गए पता ही नहीं चला। हालांकि मार्ग के प्राकृतिक दृश्य इतने रमणीय हैं कि मार्ग भटकने में भी आनंद ही प्राप्त होता है। लगभग एक घंटे के पश्चात हम बिनसर के प्रवेश द्वार पहुंचे जहां से हमने बिनसर वन्यप्राणी अभ्यारण्य के भीतर प्रवेश करने का अनुज्ञा पत्र प्राप्त किया। अनुज्ञा पत्र के साथ साथ उन्होंने हमें इस क्षेत्र को स्वच्छ रखने के निर्देश भी दिए।

बिनसर में हमने ठहरने के लिए कुमाऊँ मंडल विकास निगम के अथिति गृह में प्रबंध किया था जो बिनसर पहाड़ी के लगभग शिखर पर स्थित है। बिनसर वन्य जीव अभ्यारण्य के प्रवेशद्वार से इस अतिथि गृह तक पहुँचने में गाड़ी से हमें लगभग ४५ मिनट लगे।

बिनसर जंगले के भीतर जाते ही हमें ऊंचे वृक्षों की छाँव में धरती पर नाचते काले तीतर दिखाई पड़े। उसे उछल उछल कर नाचते देख हम सब की आँखें बस उसी पर टिक गयी। तीव्र ढलान वाले मार्ग से होते हुए अंततः हम अतिथि गृह पहुंचे। अंत के कुछ भाग को छोड़ मार्ग बाधारहित व सपाट था।

बिनसर “जीरो पॉइंट” पदयात्रा

बिनसर जीरो पॉइंट के जाता रास्ता
बिनसर जीरो पॉइंट के जाता रास्ता

कुमाऊँ मंडल विकास निगम के अथिति गृह में सामान रख, अधिक समय ना गंवाते हुए हम “जीरो पॉइंट” की ओर पैदल चल पड़े। बिनसर यात्रा से पूर्व मैंने यहाँ के विषय में अध्ययन किया था। उससे प्राप्त जानकारी के अनुसार यह एक मनोरम पदयात्रा होने वाली थी। इस पदयात्रा के अंत में हम ऐसे स्थान पर पहुँचने वाले थे जहां से हिमालय की नंदादेवी पर्वत श्रंखला का बेजोड़ दृश्य दिखाई पड़ता है। सही अर्थों में यह अत्यंत सुहावनी पदयात्रा थी। हम एक चौड़ी पगडंडी पर चल रहे थे जिसके एक ओर गहरी खाई थी तथा दूसरी ओर घने जंगली वृक्ष थे। हमारी बिनसर यात्रा के समय यहाँ बुरुंश के पुष्पों की छटा अपनी चरम सीमा पर थी। सम्पूर्ण पगडंडी पर लाल पुष्पों की चादर बिछी हुई थी। हमें यहाँ कई श्वेत पुष्प भी दिखाई दिए।

बिनसर घटी में बुरुंश के फूल
बिनसर घटी में बुरुंश के फूल

पदयात्रा पर निकलने से पहले, अथिति गृह के बाहर स्थित चाय की दूकान पर हमें कुछ परिदर्शक दिखाई दिए थे। यद्यपि उनकी सेवा गृहण करने की बाध्यता नहीं थी, फिर भी हमने एक परिदर्शक की सेवा लेने का निश्चय किया। हम इस वन एवं यहाँ के पक्षियों के विषय में और अधिक जानकारी के इच्छुक थे। लेकिन हमारा यह निर्णय हमारी बड़ी भूल सिद्ध हुआ क्योंकि हमारे परिदर्शक के पास ना तो वन संबंधी जानकारी थी ना ही बताने की इच्छा या भावना। वह हमें तुरंत ही जीरो पॉइंट तक ले जाकर तुरंत वापिस लाने की शीघ्रता व्यक्त करने लगा था। अतः हम अधिक पक्षियों को नहीं ढूँढ पाए। जिन्हें देखा उनके नाम भी परिदर्शक को ज्ञात नहीं थे। अधिक झेल न पाने के कारण हमने उसे अकेले ही वापिस भेज दिया एवं अपनी वापिसी यात्रा आनंद लेते हुए स्वयं ही धीरे धीर की।

बिनसर एक घना वन्य जीव अभ्यारण्य है जहां राह भटकना अत्यंत आसान है। यहाँ हमें कई वानर भी स्वच्छंद विचरते एवं कूद-फांद करते दिखाई पड़े। अतः इस अभ्यारण्य में अकेले विचरण करना उचित नहीं होगा। आप टोली में ही इस वन में पदयात्रा करें।

“जीरो पॉइंट” से बिनसर घाटी का परिदृश्य

जीरो पॉइंट बिनसर से देखने की मछान
जीरो पॉइंट बिनसर से देखने की मचान

“जीरो पॉइंट” शिखर पर एक अवलोकन दुर्ग यानि एक मचान का निर्माण किया गया है जो आसपास के वृक्षों से ऊंचा है। इसके ऊपर चढ़ कर हिमालय श्रंखला के दर्शन होते हैं बिना किसी अवरोध के। आवश्यकता है तो सौभाग्य की। पर्वत श्रंखलाओं को साफ़ देखने के लिए आवश्यक है सही मौसम। अत्यंत पारदर्शी तथा निर्मल वातावरण की आवश्यकता है। सांझ बेला में हमें इन पर्वत श्रंखलाओं के दर्शन तो हुए किन्तु धुंध के कारण दर्शन स्पष्ट नहीं थे।

बिनसर घटी के घने जंगल
बिनसर घटी के घने जंगल

पर्वत श्रंखलाओं के दर्शन तो वातावरण पर निर्भर है, पर घाटी की सुन्दरता के दर्शन आप निर्विरोध कर सकते हैं। ऊंचे ऊंचे पहाड़ों पर घने जंगल, घाटियों में हरे भरे खेत, रमणीय प्राकृतिक दृश्य इत्यादि के दर्शन बिनसर यात्रा को सफल कर देते हैं।

बिनसर घटी में इक्का दुक्का घर
बिनसर घटी में इक्का दुक्का घर

अवलोकन दुर्ग से नीचे उतरते ही मेरी दृष्टी एक बावड़ी सदृश संरचना पर अटक गयी। इसके भीतर मिट्टी भरी हुई थी। अतः यह स्पष्ट नहीं था कि यह एक बावड़ी थी अथवा किसी का घर। घने जंगल के मध्य इस प्रकार की संरचना अचंभित कर देती है।

बिनसर जंगलों के पक्षी

“जीरो पॉइंट” पर आते जाते हमें चारों ओर से पक्षियों की चहचहाहट सुनायी पड़ रही थी। कुछ पक्षियों को ढूंढ निकालने में हमें सफलता मिली किन्तु घने जंगलों एवं कम रोशनी के कारण हम उनके चित्र नहीं ले सके।

कुमाऊँ के जंगलों से अपेक्षाकृत अधिक पक्षियों को हमने कुमाऊँ की झीलों, जैसे भीमताल, के आसपास देखा था।

और पढ़ें:- कुमाऊँ के पक्षी

बुरुंश पुष्पों की छटा

सुर्ख लाल रंग के बुरुंश पुष्प
सुर्ख लाल रंग के बुरुंश पुष्प

बिनसर की यह यात्रा हमने मार्च माह के अंतिम दिनों में की थी। यही समय है जब बुरुंश के वृक्षों की टहनियां लाल लाल पुष्पों से लदी रहती हैं। मार्ग के किनारे खड़े बुरुंश के वृक्षों के कारण मार्ग के कई भागों पर लाल पुष्पों की चादर सी बिछी प्रतीत होती है। उन मार्गों पर चलाना तथा उन पुष्पों पर से गाड़ी हांकना हमें असमंजस में डाल देता है। वृक्षों पर पत्तियाँ अधिक थीं या पुष्प, यह कहना कठिन था। लाल बुरुंश के पुष्पों से भरे जंगलों के मध्य से जाना एक अत्यंत रोमांचक अनुभूति थी।

लाल बुरुंश फूलों से लादे पेड़
लाल बुरुंश फूलों से लादे पेड़

यह सम्पूर्ण पदयात्रा हमारे हेतु किसी स्वप्न से कम नहीं था। चारों ओर लाल पुष्पों की छटाओं के मध्य से धीरे धीरे पदयात्रा करना, घने जंगलों के सन्नाटों को चीरती पक्षियों की चहचहाहट सुनना, घने वृक्षों से भरी घाटियों के दर्शन करना और इन सब को चार चाँद लगाती हिमालय पर्वत श्रखलाओं के परिदृश्यों को निहारना! यह एक सुखद स्वप्न सदृश ही था।

बिनसर घाटी की प्रातःकालीन आभा

सूर्योदय से पहले की लालिमा - बिनसर
सूर्योदय से पहले की लालिमा – बिनसर

बिनसर यात्रा का सर्वोत्तम आकर्षण अर्थात् मणियों में मणी है इसकी पर्वत श्रंखलाओं का प्रातःकालीन दृश्य। इसका आनंद उठाने के लिए दूसरे दिन हम पौ फटने से पूर्व ही जाग गए तथा अतिथिगृह की छत पर डेरा जमा कर बैठ गए। इस अतिथिगृह की सबसे बढ़िया बात है कि यहाँ से हिमालय पर्वत श्रंखला का दृश्य निकटतम तथा निर्विरोध प्राप्त होता है। अतिथिगृह के अन्य यात्री भी  धीरे धीरे छत पर इकट्ठे होने लगे। कुछ ही समय में सारी छत पर्यटकों के भर गयी।

सूर्य के प्रथम दर्शन - बिनसर
सूर्य के प्रथम दर्शन – बिनसर

अचानक सूर्य की पहली किरण पर्वत श्रंखला की एक चोटी पर पड़ी। श्वेत बर्फ की चोटी अचानक सुनहरे रंग में परिवर्तित हो गयी। जैसे जैसे सूर्य उगने लगा, पर्वत श्रंखला की भिन्न भिन्न चोटियाँ अपना रूप प्रकट करने लगीं। यह एक बेजोड़ दृश्य था। छत पर उपस्थित एक एक पर्यटक मन्त्रमुग्ध सा इस दृश्य को निहार रहा था। ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे अम्बर ने सब पर जादू सा कर दिया हो। अचानक मुझे आभास हुआ कि इस प्रातःकालीन समय को छायाचित्रीकरण में स्वर्णिम काल क्यों कहा जाता है।

बिनसर सूर्योदय
बिनसर सूर्योदय

यह अप्रतिम दृश्य लगभग ४० मिनट तक क्षितिज पर उपस्थित था। फिर हाथों में चाय की प्यालियां लिए हम प्रातःकाल का आनंद उठाने बैठ गए। जो अप्रतिम दृश्य कुछ क्षण पूर्व देखा, उसके विषय में चर्चा करने लगे। पर्वत श्रंखलाओं की चोटियों द्वारा सूर्य की किरणों का ऐसा स्वागत देख पाना जीवन की एक अद्वितीय उपलब्धि ही है।

बिनसर के पर्वत शिखर

हिमालय की नंदा देवी श्रंखला
हिमालय की नंदा देवी श्रंखला

बिनसर के हिमालय पर्वत श्रंखला की विलक्षण चोटियों को देखना हो तो सर्वोत्तम प्रातःकाल है। २०० से ३००कि.मी. की दूरी तक फैले हिमालय पर्वत शिखर के अवलोकन हेतु दूरबीन तथा स्वच्छ धुंधरहित वातावरण की आवश्यकता है। इन पर्वत श्रंखला की चोटियों को पहचानने के लिए कुमाऊँ मंडल विकास निगम के अथिति गृह की स्मारिका दुकान में उपलब्ध कासद का भी उपयोग किया जा सकता है। इसमें सभी पर्वत शिखरों के नाम, स्थिति व उनके विषय में संक्षेप में जानकारी दर्शाई गयी है। बिनसर से दृष्टिगोचर कुछ पर्वत शिखर इस प्रकार हैं-

नंदा देवी पर्वत शिखर

हिमालय पर्वत की नन्दा देवी श्रंखला
हिमालय पर्वत की नन्दा देवी श्रंखला

आप सब जानते हैं कि भारतीय स्थित हिमालय पर्वत श्रंखला के भाग का सर्वोच्च शिखर कंचनजंगा है जो सिक्किम नेपाल सीमा पर पड़ता है। इसका सर्वोत्तम दर्शन सिक्किम के रिन्चेंपोंग से प्राप्त होता है। इसी तरह भारतीय धरती पर दूसरी सर्वोच्च पर्वत चोटी है यह नंदा देवी पर्वत शिखर जिसका सर्वोत्तम दर्शन यहाँ बिनसर से प्राप्त होता है। नंदा देवी को इस क्षेत्र की संरक्षक तथा अधिशासी देवी माना जाता है। नंदा देवी पर्वत पूर्व-पश्चिम दिशा में स्थित है तथा इसकी ऊंचाई लगभग २०००० फीट है। इतनी ऊंचाई के अन्य पर्वतों से इसकी तुलना की जाय तो यह सर्वाधिक ढालुआँ पर्वतों में से एक है। नंदा देवी पर्वत के विषय में आपको विकिपीडिया से और अधिक जानकारी प्राप्त हो सकती है।

बिनसर से दिखने वाले अन्य हिमालय पर्वत शिखर
1. कामेट
2. नंदा गुंटी
3. त्रिशूल १, २, ३
4. मृगतुनी
5. मैक्तोली
6. नंदा देवी
7. पन्वाली द्वार
8. नंदा देवी पूर्व अथवा सुनंदा देवी
9. नंदा खाट
10. छंगुच
11. लप्सा धुर
12. दांगथल
13. रालाम दर्रा
14. राजरम्भा
15. नाग लाफु
16. पन्छुली समूह
17. नाम्पा
18. पोरबंदी
19. केदारनाथ
20. कर्चा कुंड
21. चौखंबा (बद्रीनाथ) – ४ शिखर
22. नीलकंठ
23. पिंडारी हिमनद

बिनसर में ‘होटल्स’ एवं ‘रिसॉर्ट्स’- कुमाऊँ मंडल विकास निगम का अथिति गृह

कुमाऊँ मंडल विकास निगम विश्राम गृह - बिनसर
कुमाऊँ मंडल विकास निगम विश्राम गृह – बिनसर

यूँ तो बिनसर पहाड़ी के तल पर कई उच्च तथा माध्यम श्रेणी के अतिथिगृह एवं ‘रिसॉर्ट्स’ उपलब्ध हैं। तथापि हिमालय पर्वत श्रंखला का सर्वोत्तन दृश्य कुमाऊँ मंडल विकास निगम के अथिति गृह से ही प्राप्त होता है। यह अतिथिगृह बर्फीली चोटी युक्त नंदादेवी पर्वत के समक्ष स्थित पहाडी की चोटी पर निर्मित है।

अत्यंत मूलभूत सुविधाओं युक्त यह अथितिगृह थोडा जीर्ण अवस्था में है जिसे रखरखाव की आवश्यकता है। प्रकृति से जोड़ने के प्रयत्न में पहले यहाँ बिजली की सुविधा भी उपलब्ध नहीं थी। रोशनी के लिए प्रत्येक कक्ष में मोम अथवा तेल के दीपक दिए जाते थे। वर्ष भर ठण्ड रहने के कारण पंखों की आवश्यकता नहीं पड़ती। अब शाम के समय कुछ घंटों के लिए बिजली दी जाती है। स्नान के लिए गर्म जल केवल प्रातः बाल्टियों में मिलता है। भोजन कक्ष नया बना विशाल कक्ष है जिसके ऊंचे झरोखों से प्रकृति का मनोरम दृश्य दिखाई पड़ता है। अधिकतर कमरों से भी हिमालय तथा घाटियों के मनोरम दृश्यों का आनंद उठाया जा सकता है।

यहाँ उपलब्ध भोजन सादा तथा स्वादिष्ट था। इस अतिथिगृह के आस पास अन्य कोई भोजन की सुविधाएं उपलब्ध नहीं हैं।

प्रातःकाल छत पर बैठकर प्रकृति का आनंद चौगुना हो जाता है जब कडकडाती ठण्ड में बैरा आपके हाथ में गर्म गर्म चाय की प्याली थमा जाता है। अथितिगृह से कोई शिकायत रही भी तो वह उस समय छू मंतर हो जाती है। गर्म चाय की चुस्की लेते हिमालय की बर्फीली चोटियों को निहारने का आनंद केवल यहीं प्राप्त होता है।

बिनसर में हिमालय पर्वत श्रंखला को निहारने तथा जंगल में पदयात्रा करने के अतिरिक्त अन्य कोई मनोरंजन उपलब्ध नहीं है। अतः यहाँ समूह में यात्रा करना अधिक मनोरंजक होता है। यहाँ ठहरने के लिए १-२ दिन पर्याप्त हैं। यद्यपि वनस्पति शास्त्र, पशु-पक्षियों तथा प्रकृति में विशेष रूचि रखने वाले पर्यटक अधिक दिनों तक यहाँ रहकर अपनी ज्ञान पिपासा को पोषित कर सकते हैं।

बिनसर के लिए यात्रा सुझाव

हिमालय की चोटियाँ
हिमालय की चोटियाँ

• बिनसर पहाडी अधिक ढालुआँ होने के कारण चढ़ने हेतु “ ४ व्हील ड्राइव” युक्त मोटर का ही इन्तेमाल करें।
• “ जीरो पॉइंट” तक की पदयात्रा हेतु परिदर्शक की आवश्यकता नहीं है। हमारे परिदर्शक ने ३०० रुपये भी लिए और कुछ जानकारी भी नहीं दी। इसके विपरीत वह यह पदयात्रा जल्द से जल्द पूर्ण करने हेतु हमारे ऊपर जोर डाल रहा था।
• यदि आप कुमाऊँ मंडल विकास निगम के अथिति गृह में ठहरना चाहते हैं तो आप कई दिवस पूर्व ही कक्षों का आरक्षण करावा लें।
• यदि आपको पैदल चलने में असुविधा है तो आप“ जीरो पॉइंट” तक की पदयात्रा की योजना त्याग सकते हैं। अथितिगृह की छत से हिमालय का सर्वोत्कृष्ट दृश्य का आनंद अवश्य उठा सकते हैं।
• यदि आप अन्य किसी अथितिगृह में ठहरना चाहते हैं तो आपके अथितिगृह के समीप हिमालय अवलोकन हेतु सर्वोत्तम स्थल की जानकारी उनसे प्राप्त कर लें।
• बिनसर में शीत ऋतू में कडाके ठण्ड तो होती ही है, ग्रीष्म ऋतू में भी वातावरण ठंडा प्रतीत होता है, विशेषतः प्रातःकाल की बेला में। अतः ऋतु के अनुसार पर्याप्त ऊनी कपडे साथ लेकर जाएँ।
• हिमालय की बर्फीली चोटियों के अवलोकन हेतु दूरबीन साथ रखना अत्यंत सहायक होगा।
• हिमालय की बर्फीली चोटियों के अवलोकन हेतु सूर्योदय पूर्व, प्रातःकाल का समय सर्वोत्तम है। तत्पश्चात धुंद तथा आर्द्रता के कारण चोटियाँ स्पष्ट नहीं दिखाई पड़ती।
• बिनसर में तन्तुरहित प्रक्षेपण कमजोर होने के कारण मोबाइल कार्य नहीं करते। अतः अल्मोड़ा से आगे जाने से पूर्व ही अपने बंधू-बांधवों को अपने सम्बन्ध में आवश्यक जानकारी प्रदान करें।

उत्तराखंड के कुमाऊँ क्षेत्र में पर्यटन हेतु अन्य स्थलों के विषय में अधिक जानकारी प्रदान करते मेरे अन्य संस्मरण-
1. कुमाऊँ घाटी की रहस्यमयी झीलें-भीमताल, सातताल, नौकुचिया ताल
2. मुक्तेश्वर धाम – कुमाऊँ पहाड़ों के न भूलने वाले दृश्य

अनुवाद: मधुमिता ताम्हणे

The post बिनसर कुमाऊँ में वैभवशाली हिमालय के दर्शन appeared first on Inditales.

]]>
https://inditales.com/hindi/binsar-kumaon-uttarakhand-himalayas/feed/ 4 790
कुमाऊँ घाटी की रहस्यमयी झीलें- भीमताल, सातताल, नौकुचिया ताल https://inditales.com/hindi/kumaon-lakes-bhimtal-sattal-naukuchiatal/ https://inditales.com/hindi/kumaon-lakes-bhimtal-sattal-naukuchiatal/#comments Wed, 29 Nov 2017 02:30:39 +0000 https://inditales.com/hindi/?p=553

उत्तराखंड के कुमाऊँ क्षेत्र में बसा नैनीताल, यात्रियों का एक प्रसिद्ध पर्यटन स्थल है। हिमालय पर चमचमाते माणिक की तरह चमकता यह शहर देशी व विदेशी पर्यटकों को बहुत आकर्षित करता है। हरे भरे पहाड़ों एवं झीलों से आच्छादित नैनीताल, प्राकृतिक सुन्दरता का उत्कृष्ट नमूना है। पर क्या आप जानते हैं, नैनीताल स्थित नैनी झील […]

The post कुमाऊँ घाटी की रहस्यमयी झीलें- भीमताल, सातताल, नौकुचिया ताल appeared first on Inditales.

]]>
भीमताल झील - कुमाऊँ उत्तराखण्ड
भीमताल झील – कुमाऊँ उत्तराखण्ड

उत्तराखंड के कुमाऊँ क्षेत्र में बसा नैनीताल, यात्रियों का एक प्रसिद्ध पर्यटन स्थल है। हिमालय पर चमचमाते माणिक की तरह चमकता यह शहर देशी व विदेशी पर्यटकों को बहुत आकर्षित करता है। हरे भरे पहाड़ों एवं झीलों से आच्छादित नैनीताल, प्राकृतिक सुन्दरता का उत्कृष्ट नमूना है। पर क्या आप जानते हैं, नैनीताल स्थित नैनी झील कुमाऊँ घाटी की केवल एक ताल या झील है। हल्द्वानी अथवा काठगोदाम के मैदानी क्षेत्रों से कुमाऊँ की ओर जाते मार्ग पर जब पहाड़ियों की शुरुआत होती है, एक के बाद एक दिखाई देती छोटी बड़ी झीलें मन्त्रमुग्ध कर देती हैं। भीमताल, सातताल, नौकुचिया ताल जैसे झीलों के पास बिताया समय हमें प्रकृति से एकाकार कर देता है।

इन झीलों के सानिध्य में बिताये कुछ दिनों में हमने हर सुबह झीलों के किनारे रमणीय वातावरण में भरपूर भ्रमण किया। सांझ होते ही हम अन्य पर्यटकों को झीलों में नौका सवारी का आनंद उठाते, बतखों से खेलते व अन्य पानी के खेल खेलते देख, घंटों बिता देते। हमने एक एक झील का भरपूर आनंद उठाया और प्रत्येक झील ने हमें एक नया अनुभव दिया। हर झील ने एक नयी कहानी सुनाई।

यही अनुभव व कहानियां मैं आपके साथ बांटना चाहती हूँ। आईये मेरे अनुभव एवं दृष्टि से होते हुवे इन झीलों से आपका परिचय कराती हूँ।

भीमताल

भीमताल - अपनी जल छवि के साथ
भीमताल – अपनी जल छवि के साथ

इस ताल का नाम ही एक कथा कहता है। महाभारत के पांडव पुत्रों में दूसरे पुत्र भीम के नाम पर इस झील का नामकरण किया गया है। ऐसी मान्यता है की पांडव अपने वनवास काल में यहाँ आये थे।

भीमेश्वर महादेव मंदिर

भीमताल पर स्थित भीमेश्वर महादेव मंदिर अर्थात् भीम के इष्ट देव को समर्पित मंदिर, एक छोटा और प्राचीन मंदिर है। मंदिर के उज्जवल रंगों को देख इसके प्राचीन होने पर सहसा विश्वास नहीं होता। परन्तु मंदिर परिसर में स्थित बरगद के वृक्ष पर एक दृष्टी आपकी सारी शंकाएं दूर कर देंगी।

भीमेश्वर महादेव मंदिर - भीमताल
भीमेश्वर महादेव मंदिर – भीमताल

भीमेश्वर महादेव मंदिर के भीतर व आसपास मैंने पत्थर में बनी अनोखी शिल्पकलाएं देखीं। प्राचीन मंदिर के चित्र को देख अनुमान लगाया जा सकता है कि मूलतः इस मंदिर की संरचना जागेश्वर के मंदिरों की तरह पाषाणी थी। भीमताल पर लगे सूचना पट्टिका के अनुसार वर्तमान मंदिर १७ वीं. शताब्दी में चाँद वंशी राजा बाज बहादुर ने बनवाया था।

इस मंदिर के समीप स्थित पहाड़ी को हिडिम्बा पहाड़ी कहा जाता है। भीम ने अपने वनवास के समय राक्षस कन्या हिडिम्बा से विवाह किया था। उससे उन्हें घटोत्कच नामक पुत्र की भी प्राप्ति हुई थी।

भीमताल झील के आसपास भ्रमण

मछलियाँ पकड़ने के नए प्रयोग - भीमताल
मछलियाँ पकड़ने के नए प्रयोग – भीमताल

भीमताल से सम्बंधित मेरे सबसे अविस्मरणीय क्षण थे सूर्योदय के समय भीमताल की परिक्रमा! हालांकि कुमाऊँ विकास मंडल निगम के आवास गृह में हमारे कक्ष से भीमताल का सुन्दर दृश्य दिखाई दे रहा था। तथापि सूर्योदय के समय भीमताल का पग भ्रमण एक अलौकिक अनुभव था। उस समय वहां होते थे, केवल हम, कुछ पक्षी और आलौकिक प्राकृतिक सौंदर्य। यहाँ तक कि मंदिर में भी अभी जागरण व पूजा अर्चना आरम्भ नहीं हुई होती थी।

भीमताल, कुमाऊँ की सर्वाधिक प्रसिद्ध, नैनीताल अथवा नैनी झील से भी अधिक प्राचीन है।

भीमताल भ्रमण के आरम्भ में हमें पीपों से बनी पुल सदृश संरचना पानी में तैरती दिखाई दी। उस पर तार की जालियां लटकी हुई थीं। मैं अनुमान लगा ही रही थी कि मेरे अनुमान की पुष्टि हुई एक सूचना फलक द्वारा, जिस पर लिखा था- मीठा-जल मछली अनुसन्धान विभाग द्वारा प्रायोगिक पिंजरा मछली पालन उद्योग। उस दिन मुझे पिंजरा मछली पालन उद्योग की तकनीक की जानकारी मिली।

भीमताल कुमाऊँ की सर्वाधिक बड़ी झील है।

भीमताल का एक मनोरम दृश्य
भीमताल का एक मनोरम दृश्य

झील के चारों ओर भ्रमण हेतु पक्की पगडण्डी बनायी गयी थी जिस पर हम चलने लगे। यह मार्ग झील से अपेक्षाकृत बहुत ऊंचा था। चलते समय ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे हम किसी ऊंचे टीले पर चल रहे हों। थोड़े थोड़े अंतराल पर झील के ऊपर छोटे छोटे मंच बने हुए थे जिन पर चढ़ कर हम झील का विहंगम दृश्य देख सकते थे। हमारी बायीं ओर ऊंची सपाट चट्टान थी जिसकी परछाई झील के जल के साथ आखेट कर रही थी। झील का जल आईने की तरह स्वच्छ था। उस पर पड़ती परछाई हमें असली और परछाई में भेद करने की चुनौती दे रही थी।

पक्षी

भीमताल के पगभ्रमण के समय नीले, पीले व लाल रंगों के अनेक पक्षी हमारे चारों तरफ फुदक रहे थे। इन चंचल पक्षियों की स्वच्छंदता देख हम अपने आप को रोक ना सके व रूक कर इनके चित्र खींचने में व्यस्त हो गए।

भीमताल के बीचोंबीच एक उपद्वीप है जिस पर पहले एक जलपान गृह हुआ करता था। कुछ असुविधाओं के कारण इस जलपानगृह को बंद कर दिया गया है। अब उस पर नैनीताल झील विकास प्राधिकरण ने एक मछलीघर की स्थापना की है। आप उस उपद्वीप तक नौकासवारी का आनंद उठाते पहुँच सकते हैं व मछलीघर में मक्सिको, दक्षिण आफ्रिका, चीन इत्यादि देशों से लायी गयी रंगबिरंगी मछलियों को आकर्षक पृष्ठभूमि में देख सकते हैं।

भीमताल से निकलता एक जल प्रवाह
भीमताल से निकलता एक जल प्रवाह

भीमेश्वर महादेव मंदिर के एक तरफ हमने एक नहर देखी जो भीमताल के जल को गोला नदी से जोड़ती है। इसका जल सिंचाई व शहरी जल आपूर्ति हेतु उपयोग में लाया जाता है।

झील के दूसरी ओर एक नौका केंद्र है। सूर्योदय के समय वहां अनेक रंगबिरंगी नौकाएं एवं डोंगियाँ कतार में खड़ी रहती हैं। संध्या आते ही पर्यटक झील में नौकाविहार का आनंद उठाते हैं। साथ ही झील किनारे चाट, पकौड़ी, भुट्टे, चाय, इत्यादि का आस्वाद लेकर चटकारे लेते नहीं थकते।

कैंचुलीदेवी मंदिर

रंगारंग नौकाएं - भीमताल झील
रंगारंग नौकाएं – भीमताल झील

भीमताल पदभ्रमण के अंतिम चरण में हमें कैंचुलीदेवी को समर्पित मंदिर के दर्शन हुए। स्कन्द पुराण के मानसखंड के अनुसार इस मंदिर के समीप भीमताल का जल अत्यंत पवित्र है। ऐसा माना जाता है की इस पवित्र जल में स्नान करने से शरीर के सर्व रोगों का अंत होता है। झील के इस भाग में फलतः मछली पकड़ने की मनाही है। कैंचुली देवी का मूल मंदिर जल में समाधिस्त है। उसका केवल शीष ध्वज ही जलस्तर के ऊपर दृष्ट है। सड़क के समीप स्थित कैंचुली देवी मंदिर अपेक्षाकृत नवीन संरचना है।

नौकुचिया ताल

नौ कोनों वाली नौकुचिया झील
नौ कोनों वाली नौकुचिया झील

जैसा की इसका नाम है, नौकुचिया ताल नौ कोनों का एक छोटा ताल है। भीमताल से ४ की.मी. दूर इस ताल के पगभ्रमण हेतु हम एक संध्या यहाँ पहुंचे। सूर्यास्त के पहले के सांध्य प्रकाश में हमने इस ताल का एक चक्कर लगाया।

इस झील का पर्यटन वातावरण किंचित शांत होते हुए केवल दोनों तरफ कुछ साधारण व्यापारिक गतिविधियाँ दृष्टिगोचर हुईं। मेरी अभिलाषा थी इस ताल का सम्पूर्ण चक्कर लगाकर इसके नौ कोनों की गणना करना। परन्तु एक स्थान पर मार्ग बंद होने के कारण यह संभव नहीं हो सका। तथापि हमारे आनंद में कोई कटौती नहीं आई। हमारे भ्रमण के समय हमने इस ताल की सुन्दरता के कई आयाम देखे। अनियमित आकार होने के कारण थोड़ी थोड़ी दूरी पर इसका रूप परिवर्तित हो रहा था। कहीं पहाड़ी, कहीं पहाड़ी के पीछे से झांकता झील का जल, कभी पहाड़ी के पीछे से निकलती सूर्य की किरणें तो कभी रंगबिरंगी नौकाओं से सज्ज झील की अग्रभूमी। कहीं कहीं तिकोनी पहाड़ियां झील के शांत जल में ज्यामितीय आकार में प्रतिबिंबित होकर आकर्षक चित्र बना रही थीं।

नौकुचिया ताल का कमल तालाब

नौकुचिया ताल के समीप एक छोटा तालाब था को कमल के पौधों से भरा पड़ा था। जैसा कि हम जानते है, कमल के पुष्प दिन के समय खिलते हैं एवं संध्या समय तक इसकी सारी पंखुड़ियां झड़ जाती हैं। चूंकि हम यहाँ संध्या भ्रमण पर थे, हम इन पुष्पों की सुन्दरता का आनंद नहीं ले सके। श्वेत एवं गुलाबी कमल पुष्पों से भरे इस तालाब का काल्पनिक दृश्य अपने मानसपटल पर अंकित किया और आनंदित हो उठी। मेरे काल्पनिक चित्र में रंगबिरंगे वास्तविक रामचिरैया अर्थात् किंगफिशर पक्षी चार चाँद लगा रहे थे। तालाब की सुन्दरता एवं रखरखाव हेतु प्रशासन की चेतावनी “फूल तोड़ना मना है” के फलक से स्पष्ट व्यक्त हो रही थी।

चूंकि हम सांझ बेला में नौकुचिया ताल पर उपस्थित थे, हमें कई पर्यटक नौकाविहार करते दिखाई दिए। कुछ पर्यटक अश्वारोहण तो कुछ गरमागरम नुडल्स का आनंद उठाते दिखाई दिए। कुछ पर्यटक ज़ोर्बिंग नामक अनोखे खेल में व्यस्त थे जिसमें एक विशाल पारदर्शक गोले के भीतर एक सहभागी को बिठाकर गोले को ढलान पर लुड़काया जाता है। तथापि, अँधेरा होते ही परिचालकों को गोले से वायु निकालकर सावधानी से उसकी घड़ी करते देखने में मुझे अधिक आनंद आ रहा था।

किवदंतियों के अनुसार नौकुचिया ताल को भगवान् ब्रम्हा से जोड़ा जाता है। यहाँ तक की नौकुचिया ताल पर ब्रम्हा का एक मंदिर भी स्थित है।

नौकुचिया ताल को घेरते मार्ग अधिकांशतः मोटरगाड़ियों के यातायात से मुक्त हैं। अतः आप यहाँ बिना किसी चिंता या डर के घने वृक्षों की छाँव में ताल के चारों ओर भ्रमण कर सकते हैं।

नौकुचिया ताल के भक्तिधाम की हनुमान प्रतिमा

नौकुचिया ताल के पास विशाल हनुमान प्रतिमा
नौकुचिया ताल के पास विशाल हनुमान प्रतिमा

नौकुचिया ताल के समीप स्थापित हनुमान की विशाल प्रतिमा दूर से ही दृष्टिगोचर हो जाती है। समीप पहुँच कर हमने देखा कि यह प्रतिमा वास्तविकता में भक्तिधाम मंदिर परिसर का एक हिस्सा था। इस परिसर में दुर्गा, नीम करोली बाबा व अन्य कई देवी देवताओं को समर्पित कई छोटे छोटे मंदिर थे।

सातताल

सात ताल के पास नौका विहार का सामान - उत्तराखण्ड
सात ताल के पास नौका विहार का सामान

सातताल ७ तालों का एक समूह है। ये हैं-
1. नल दमयंती ताल
2. गरुड़ ताल
3. राम ताल
4. लक्ष्मण ताल
5. सीता ताल
6. भरत ताल
7. हनुमान ताल

जैसा की उपरोक्त कुछ नामों से विदित है, लोगों की मान्यता है कि राम, लक्ष्मण एवं सीता ने अपने वनवास के समय इन तालों के समीप कुछ काल बिताया था।

सातताल की विशेषता है कि आपस में जुड़ी ये सर्व तालें मीठे जल की हैं। इन तालों के नाम एक साथ लिए जाते हैं मानो इन का एक ही स्त्रोत हो। बलूत एवं देवदार जैसे ऊंचे वृक्षों से घिरे इन तालों को देख अछूते व निर्मल प्रकृति का आभास होता है। इस ताल के आसपास नानाप्रकार के पुष्प व लताएँ लगाई हैं। बैठने हेतु सुन्दर व्यवस्था एवं सुन्दर पुलों के निर्माण द्वारा सातताल, स्वर्ग सुदृश, सौंदर्य की दृष्टी से सर्वोपरि है।

नल दमयंती ताल

अति पावन नल दमयंती ताल
अति पावन नल दमयंती ताल

भीमताल से करीब २ की.मी. दूर स्थित नल दमयंती ताल एक पवित्र ताल है। पंचकोणी आकार के इस ताल से सम्बंधित पौराणिक कथा कहती है कि राजा नल व उनकी पत्नी ने अपने वनवास का समय इस ताल के समीप बिताया था। यहीं राजा नल अपनी पत्नी को छोड़ कर चले गए थे। कालान्तर में इस ताल में ही उनकी समाधि बनायी गयी। इसी प्राचीन मान्यता के तहत अभी भी इस ताल में मछली पकड़ने की मनाही है। इसीलिए इस ताल में हमें तरह तरह की बड़ी बड़ी मछलियाँ दिखाई पड़ीं।

इस झील तक पहुँचने हेतु पहाड़ी से नीचे उतरने की आवश्यकता होती है, जिसके लिए पक्की ढलान बनायी गयी है। इस छोटे ताल के चारों तरफ सीड़ियाँ बनायी हुई हैं। यहाँ मछली पकड़ने के अलावा स्नान, धुलाई इत्यादि व कचरा डालना भी मना है।

इस ताल के चारों ओर पैदल भ्रमण करते हुए मैं नल दमयंती की कल्पना में खो गयी। चिरकाल से ताल में तैरती बड़ी बड़ी मछलियों को देख लगा कि उन्होंने अपने पूर्वजों से उनकी कथा अवश्य सुनी होगी। काश, ये मछलियाँ बोल पाती!

सातताल के अन्य ताल

सात ताल के पास पैदल पथ - कुमाऊँ उत्तराखण्ड
सात ताल के पास पैदल पथ – कुमाऊँ उत्तराखण्ड

हम राम ताल और हनुमान ताल के पास पहुंचे – जो की सबसे आसानी से पहुँचने वाले ताल हैं। इन दोनों तालों के गिर्द एक पैदल पथ है जिस पर चलना एक आनंददायी अनुभव है।

भ्रमण के समय ताल के किनारे पर्यटकों व दुकानदारों की अच्छी चहल पहल थी। नींबू पानी से लेकर भोजन तक की व्यवस्था थी। यहाँ आपको उत्तर भारतीय भोजन का आस्वाद लेने का अवसर मिलेगा। यहाँ उपलब्ध ठंडी खीर आप अवश्य चखिए। यह एक अतिस्वादिष्ट व पहाड़ों की छुट्टियों का आनंद लेने हेतु सर्वोत्तम मिष्टान्न है।

कुमाऊँ की प्रसिद्द ठंडी खीर
कुमाऊँ की प्रसिद्द ठंडी खीर

भ्रमण के समय हमने देखा, कुछ परिचालक पर्यटकों को एक और अनोखे खेल का आनंद दे रहे थे, जहां वे पर्यटकों को रस्सी से लटका कर तेज गति से ताल की ओर नीचे धकेलते थे। पर्यटकों को उल्ल्हास से चीखते चिल्लाते, ताल के जल में डुबकी लगते हुए, ताल के पार पहुंचते देख मुझे बेहद आनंद आ रहा था।

गरुड़ ताल

गरुड़ ताल - कुमाऊँ, उत्तराखण्ड
गरुड़ ताल – कुमाऊँ, उत्तराखण्ड

नल दमयंती ताल के पश्चात छोटा गरुड़ ताल पड़ता है। गरुड़ ताल हमें सड़क से ही दिखाई पड़ रहा था। कुमाऊँ की घाटियों के बीच, ऊंचे ऊंचे वृक्षों से घिरा, यह नीले हरे रंग का ताल बहुत सुन्दर दिखाई पड़ रहा था। लोगों का मानना है कि वनवास के समय, भोजन बनाने हेतु द्रौपदी द्वारा इस्तेमाल किया गया सिलबट्टा अभी भी यही पत्थरों में कहीं उपस्थित है। गरुड़ ताल के पश्चात, आपस में जुड़ीं राम, सीता एवं लक्ष्मण ताल पड़ते हैं। इन तालों तक सड़क मार्ग उपलब्ध ना होने के कारण, इन तक नौकाओं द्वारा ही पहुंचा जा सकता है|

इन सारे तालों के चारों ओर भ्रमण का मेरा अनुभव मेरे लिए उपचारात्मक एवं बहुत शान्तिदायक था। हमारे पूर्वजों ने जिस तरह प्रकृति के सानिध्य में जीवन बिताया, मैंने भी उस जीवन का प्रत्यक्ष अनुभव इन झीलों के भ्रमण द्वारा प्राप्त किया। मुझे आभास हुआ कि क्यों ऋषि मुनि इन पहाड़ों व झीलों के सानिध्य में ध्यान करते थे। एक ओर हरियाली भरे मैदान तो दूसरी ओर शांत हिमालय! यह स्वर्ग नहीं तो और क्या है!

कुमाऊँ के तालों के भ्रमण हेतु सुझाव

• भीमताल, नौकुचिया ताल एवं सातताल के समीप ठहरने हेतु अनेक आवासगृह उपलब्ध है। अवस्थिति की दृष्टी से कुमाऊँ विकास मंडल निगम के आवासगृह सर्वोत्तम हैं। परन्तु उनके रखरखाव एवं सुविघाओं के सम्बन्ध में मैं कोई टिपण्णी नहीं करना चाहती। आशा करती हूँ कि भविष्य में कुमाऊँ पर्यटन इसके रखरखाव एवं सुविधाओं की बढ़ोतरी हेतु आवश्यक कदम उठाएगा।
• इसके अलावा यहाँ हर क्षेणी के अशासकीय आवासगृह भी उपलब्ध हैं।
• भोजनालय की सीमित व्यवस्था होते हुए भी, ताजा स्वादिष्ट भोजन उपलब्ध है।
• प्रसिद्ध पर्यटन स्थल होने के कारण, यहाँ अनेक प्रकार की पर्यटन गतिविधियाँ एवं सुविधाएं उपलब्ध हैं।
• निकटतम रेल स्थानक ३५ की.मी. की दूरी पर स्थित, काठगोदाम है जहां दिल्ली से आसानी से पहुंचा जा सकता है।
• दिल्ली से कुमाऊँ तक के सड़क मार्ग की स्थिति भी बहुत अच्छी है।

और पढ़ें- भारत की १२ सर्वोत्तम झीलें

उत्तराखंड के विभिन्न स्थलों के भ्रमण हेतु निम्नलिखित संस्मरण पढ़ें-

  1. मुक्तेश्वर- अवाक् दृश्यों से परिपूर्ण एक कुमाऊँ घाटी
  2. उत्तराखंड के लान्डोर एवं मसूरी के आसपास का पगभ्रमण
  3. जागेश्वर धाम – कुमाऊँ में शिव का धाम

अनुवाद: मधुमिता ताम्हणे

The post कुमाऊँ घाटी की रहस्यमयी झीलें- भीमताल, सातताल, नौकुचिया ताल appeared first on Inditales.

]]>
https://inditales.com/hindi/kumaon-lakes-bhimtal-sattal-naukuchiatal/feed/ 4 553
मुक्तेश्वर धाम – कुमाऊँ पहाड़ों के न भूलने वाले दृश्य https://inditales.com/hindi/mukteshwar-kumaon-hills-uttarakhand/ https://inditales.com/hindi/mukteshwar-kumaon-hills-uttarakhand/#comments Wed, 11 Oct 2017 02:30:04 +0000 https://inditales.com/hindi/?p=475

उत्तरांचल को देवभूमि कहा जाता है। सच मानिये इसमें किंचित भी आतिशयोक्ति नहीं। कुमाऊं व गढ़वाल मंडलों में बंटी, हिमालय पर्वत श्रन्खलाओं से घिरी, ये अप्रतिम घाटियों केवल देवों की भूमि, स्वर्ग ही हो सकती है| संभवतः इसीलिए सर्वत्र देवस्थानों से, मुख्यतः भगवान शिव के मंदिरों से सुशोभित है ये भूमि| प्रातः जब सूर्य की […]

The post मुक्तेश्वर धाम – कुमाऊँ पहाड़ों के न भूलने वाले दृश्य appeared first on Inditales.

]]>
मुक्तेश्वर से हिमालय श्रंखला
मुक्तेश्वर से हिमालय श्रंखला

उत्तरांचल को देवभूमि कहा जाता है। सच मानिये इसमें किंचित भी आतिशयोक्ति नहीं। कुमाऊं व गढ़वाल मंडलों में बंटी, हिमालय पर्वत श्रन्खलाओं से घिरी, ये अप्रतिम घाटियों केवल देवों की भूमि, स्वर्ग ही हो सकती है| संभवतः इसीलिए सर्वत्र देवस्थानों से, मुख्यतः भगवान शिव के मंदिरों से सुशोभित है ये भूमि| प्रातः जब सूर्य की पहली किरण इन पर्वतों को सहला कर धीरे से अँधेरे की परत को सरकाती है, हिमालय का मनोहर मुख प्रकट होकर हमें मंत्रमुग्ध कर देता है। ऐसा प्रतीत होता है मानो साक्षात स्वर्ग के दर्शन प्राप्त हो गए। इन्ही मनोरम दृश्यों को निहारते हमने उत्तराखंड के कुमाऊं क्षेत्र में स्थित प्रसिद्ध झीलों के सानिध्य में कुछ दिन बिताये। तत्पश्चात हम मुक्तेश्वर के लिए रवाना हो गए।

मुक्तेश्वर में जंगल की सैर

मुक्तेश्वर से हिमालय की चोटियाँ
मुक्तेश्वर से हिमालय की चोटियाँ

अल्मोड़ा से मुक्तेश्वर जानेवाले मार्ग पर स्थित जंगल के दूसरी ओर, सुखताल गाँव में हमारे रहने की व्यवस्था की गयी थी। इस गाँव तक पहुँचने हेतु हमारे पास दो विकल्प थे। मुक्तेश्वर शहर के भीतर से अथवा जंगल होते हुवें । बिना सोच विचार किये हमने, रोमांच से भरपूर जंगल की सैर करते सुखताल पहुँचने का निश्चय किया। जंगल के सुरक्षा जांच चौकी के बही पर हमने अपना पंजीकरण करवाया। यहाँ हमें सुरक्षा संबंधी निर्देश दिए गए जिनके अनुसार १० की.मी. दूर स्थित इस वन के बहिर्गमन द्वार पर पहुँचने तक हमें वाहन से उतरने अथवा मार्ग पर टहलने की सख्त मनाही थी।

इस जंगल के अन्दर गाड़ी से सैर करना किसी स्वप्न से कम नहीं था। मार्च का महीना होने के कारण बुरुंश वृक्ष पुष्पों से आच्छादित थे व अपनी सुन्दरता की चरमसीमा पर थे। घने हरे देवदार वृक्षों के बीच से झांकते गहरे लाल रंग के बुरुंश के पुष्प एक अद्भुत छटा बिखेर रहे थे। जंगल के संकरे मार्ग पर वृक्षों की शाखाएं आच्छादित होकर हमें अपनी छाँव में समेट रही थीं। हर दिशा में जंगल रहस्यमयी प्रतीत हो रहा था, मानो हर झुण्ड एक नयी कहानी छुपाये हुए था।

मुक्तेश्वर के जंगलों से सूर्यास्त
मुक्तेश्वर के जंगलों से सूर्यास्त

घने जंगल से बाहर निकलने तक सूर्यास्त का समय हो चुका था। डूबते सूरज के धुंधले प्रकाश में जब जंगल की ओर मुड़ कर देखा तब वह और भी मायावी प्रतीत होने लगा। डूबते सूर्य के सांध्यप्रकाश में पहाड़ों की केवल छाया दिखाई पड़ रही थी जिन पर ऊंचे देवदार के वृक्षों के केवल रेखा कृति दिखाई पड़ रही थी।

जंगल से कुछ नियत स्थानों पर, झाड़ियों को साफ़ कर जंगल विभाग के कर्मचारियों व उनके परिवार जनों हेतु निवास का प्रबंध किया गया है। यहाँ लोग बिना किसी भय के बाहर घूम सकते है। बहिर्गमन द्वार के समीप पर्यटकों की सुविधा हेतु सराय व विश्राम गृह बनाए गए हैं।

जंगल से बाहर आते ही हम अल्मोड़ा मार्ग पर थे जहां “फ्रोजन वुड्स “ नामक हमारी सुन्दर कुटिया स्थित थी।

मुक्तेश्वर में प्रातःकालीन हिमालयी परिदृश्य का अवलोकन

नंदा देवी चोटी - मुक्तेश्वर
नंदा देवी चोटी – मुक्तेश्वर

भोर होते ही, गले में कैमरे लटकाए, हम हिमालय के दर्शन हेतु निकल पड़े। सड़क पर पैदल चलते चारों ओर के परिदृश्य में खो गए। उस क्षण में अपने आप को खो कर भी बहुत कुछ पा लिया था। सड़क के एक ओर ऊंचे पहाड़ियों पर घने देवदार वृक्ष आसमान छूने का प्रयत्न कर रहे थे। उन पर उछलते तरह तरह के पक्षियों मन मोह रहे थे अपने कलरव के साथ। कठफोड़वा पक्षी देवदार के एक शाखा से दूसरे शाखा पर छलांग लगा रहे थे। घने हरे देवदार वृक्षों पर बैठे नीले चटक रंग के कई नीलकंठ पक्षी सहसा ध्यान आकर्षित कर रहे थे। मार्ग के दूसरी ओर, घाटी में सीड़ीदार खेती देख पाठशाला का स्मरण हो आया। शाला में हम सब ने पढ़ा है कि पहाड़ों में खेती सीड़ीदार पद्धति द्वारा की जाती है। घाटी के उस पार के दृश्य से हमारी आँखे खुली की खुली रह गयीं। बर्फ से ढंकी नंदादेवी व हिमालय पर्वतमाला की अन्य चोटियाँ सूर्योदय के प्रकाश में चमचमा रही थीं।

देवदार के घने हरे जंगल व उसके पीछे श्वेत बर्फीली चोटियाँ अद्भुत दृश्य प्रस्तुत कर रहे थे। हम इनमें इतने खो गए कि हमारा स्वयं का अस्तित्व पिघलने लगा था। उस क्षण ऐसा प्रतीत हो रहा था मानो हमारे हृदय का हिमालय से जुड़ा सम्बन्ध सर्वोपरि है। शेष सब महत्वहीन है।

उस क्षण तीव्र इच्छा हो रही थी कि इन चोटियों को घंटों निहारते रहें। परन्तु सूर्योदय के पश्चात कोहरे ने इन्हें अपने आँचल में समेट लिया और हमें स्वप्नों की दुनिया से यथार्थ में लौट आना पड़ा।

मुक्तेश्वर धाम

मुक्तेश्वर धाम मंदिर
मुक्तेश्वर धाम मंदिर

मुक्तेश्वर धाम एक प्राचीन शिवमंदिर है, जिसके नाम पर ही इस शहर व आसपास के इलाके को मुक्तेश्वर कहा जाता है। अन्य कई प्राचीन मंदिरों की तरह यह मंदिर भी एक पहाड़ी के शिखर पर बनाया गया है। यहाँ से हिमालय और हरियाली भरी घाटियों का दृश्य बहुत खूबसूरत दिखाई पड़ता है। यह मंदिर अपने आप में एक छोटा सा मंदिर है। इसके चारों ओर कई और छोटे मंदिर स्थित हैं।

इनमें से एक मंदिर भगवान् शिव की अर्धांगिनी, देवी पार्वती को समर्पित है। एक मंदिर को राम दरबार की उपमा दी गयी है। यहाँ भगवान् राम, देवी सीता, भ्राता लक्ष्मण और सेवक हनुमान की प्रतिमाएं साथ साथ रखी हुई हैं। भगवान् विष्णु के भावी, १० वें अवतार कलकी की भी प्रतिमा स्थापित है। सारे मंदिर बहुत छोटे छोटे है व इनकी संरचना अपेक्षाकृत प्राचीन भी नहीं है। इन मंदिरों के चारों ओर भिन्न भिन्न आकारों की घंटियाँ बंधी हुई हैं। यह एक स्थानीय प्रथा है जिसमें भक्तगण अपनी इच्छा की पूर्ति हेतु यहाँ घंटियाँ बांधते हैं। यही प्रथा हमने जागेश्वर धाम के मार्ग पर स्थित गोलू देवता मंदिर में भी देखी।

मुक्तेश्वर धाम में एक साधु की सहायता से हमने मंदिर को बारीकी से जाना। वे हमसे इतनी धीमी आवाज में चर्चा कर रहे थे मानो बड़ी तपस्या से अर्जित शक्ति का ह्रास नहीं करना चाहते थे। उन्होंने हमारे हर प्रश्न व जिज्ञासा का मुस्कुराकर उत्तर दिया। परन्तु आवाज धीमी होने के कारण मुझे समझने में थोड़ी कठिनाई हो रही थी।

मुक्तेश्वर अर्थात् मुक्ति के देवता! ये हमें जन्म व मृत्यु के चक्र से मुक्ति दिला कर मोक्ष प्रदान करते हैं।

मुक्तेश्वर मंदिर परिसर में लगे फलक द्वारा यह जानकारी प्राप्त हुई कि सिख गुरु नानक देव जी ने इस स्थल की यात्रा की थी। तत्पश्चात यह स्थल सिख समुदाय के लोगों के लिए भी अतिमहत्वपूर्ण धार्मिक स्थल है। जिम कॉर्बेट ने भी अपने संस्मरणों में अपनी मुक्तेश्वर यात्रा का उल्लेख किया है। वे इसे मुक्तेसर कहते थे।

मुक्तेश्वर धाम पहाड़ी की सैर

मुक्तेश्वर धाम पैदल परिक्रमा पथ
मुक्तेश्वर धाम पैदल परिक्रमा पथ

मुक्तेश्वर धाम जिस पहाड़ी पर स्थित है, उसके चारों ओर एक संकरी पगडंडी बनायी हुई है। ऊंचे देवदार वृक्षों की छाँव से ढंकी इस पगडंडी पर हम भी पैदल चल पड़े। इस पहाड़ी के चारों ओर चलते हमें ऐसा प्रतीत हो रहा था मानो हम मंदिर की परिक्रमा कर रहे हों। सही अर्थ में मंदिर केवल संकेत मात्र था। जिस भगवान् को हम पूजते हैं वे इस सम्पूर्ण पहाड़ी में समायें हुए हैं। इस पहाड़ी पर चलते, भगवान् की अनुभूति के साथ साथ उनके चमत्कारों के भी दर्शन हुए।

करीब १०० मीटर चलने के पश्चात हमें एक विशाल शिलाखण्ड हमारे ऊपर झुकती हुई दिखाई पड़ी। नाग के फन की तरह दिखती इस शिला को नागशिला कहते हैं। कुछ दूरी पर दो विशाल शिलाएं खायी की ओर बाहर झुकी हुई थीं। इनके मध्य धातु का तार बाँध कर जोखिम भरे खेल का आयोजन किया जा रहा था। भिन्न ऊंचाईयों पर स्थित इन दोनों शिलाओं के मध्य इस तार पर चरखियों द्वारा सहभागियों को लटकाया जाता है। गुरुत्वाकर्षण द्वारा ये खिलाड़ी वेगवान गति से निचली शिला तक पहुंचते हैं। दोनों शिलाओं के मध्य ये लोग खायी में लटकते रहते हैं। इस खायी में मेरी झांकने तक की हिम्मत नहीं थी। पतले तार पर लटकते इन लोगों के साहस अथवा दुस्साहस को देख मुझे बहुत अचरज हो रहा था।

चौली की जाली

चौली की जाली मुक्तेश्वर कुमाऊँ
चौली की जाली मुक्तेश्वर कुमाऊँ

कुछ दूर और चलने पर हमने कुछ ऊबड़ खाबड़ चट्टानें देखीं जो खायी की ओर लटकी हुई थीं। हमारा परिदर्शक हमें उन सारी देशी व विदेशी चलचित्रों के बारे में रस ले कर बताने में व्यस्त हो गया जिन्हें इस स्थान पर फिल्माया गया था।

शिलाओं का यह एक अद्भुत गठन था। खाई में लटकी इन शिलाओं पर खड़े होकर नीचे झांकना किसी दृढ़ ह्रदय धारक के ही बस की बात है। यहाँ से नीचे खाई में भिन्न भिन्न हरे रंगों की छटाएं बिखरी बहुत मनोहारी प्रतीत हो रही थीं। यहाँ से तीन भिन्न प्राकृतिक संरचनाएं स्पष्ट दिखाई पड़ रही थीं। ऊपर नीला आकाश, नीचे घने देवदार वृक्षों की बिछी हरियाली व मध्य में स्वच्छ श्वेत बर्फ से ढंकी हिमालय की चोटियाँ। यह वही हिमालय की चोटियाँ हैं जिन्हें हमने ‘फ्रोजन वुड्स’ से भी देखा था।

चौली की जाली से मुख्तेश्वर का विहंगम दृश्य
चौली की जाली से मुख्तेश्वर का विहंगम दृश्य

इन शिलाखंडों पर लिखे नामों को देख ज्ञात होता है कि यह स्थल पर्यटकों में बहुत प्रसिद्ध है। परन्तु इस तरह खूबसूरत स्थलों की स्वच्छता नष्ट करना अपराध भी है। हमने यहाँ एक छेद युक्त शिलाखंड भी देखा। हमारे परिदर्शक के अनुसार इसी छेद के कारण इसका नाम चौली की जाली पड़ गया। संतान की इच्छा रखती सौभाग्यवती स्त्रियाँ शिवरात्री के दिन इस छेद के पार जाती हैं। खाई में लटकते इस चिकने शिलाखंड के छेद से गुजरने की कल्पना मात्र से मैं सिहर उठी। किवदंतियों के अनुसार यहीं देवी ने दानव का वध किया था। शिला पर उपस्थित चिन्ह इसी युद्ध के प्रतीक हैं।

पहाड़ से लटकी हुई चट्टानें
पहाड़ से लटकी हुई चट्टानें

खाई से नीचे देखने पर सीड़ीदार खेत ऊपर से बहुत सुन्दर प्रतीत होते हैं। यहाँ की सुन्दरता को एक और आयाम प्रदान करते हैं। पत्थरों की चढ़ाई, लटकती रस्सी पर चढ़ना व उतरना इत्यादि रोमांचक खेलों हेतु यह अति उपयुक्त स्थान है।

पहाड़ों की सैर

देवदार के घने जंगल - मुक्तेश्वर
देवदार के घने जंगल – मुक्तेश्वर

चौली की जाली व यहाँ के विहंगम दृश्यों के अवलोकन के पश्चात हम पहाड़ी के दूसरी ओर चल पड़े। संकरी पगडंडियों से होते, वृक्षों का आलिंगन करते, हम इस जंगल में समाने लगे थे। धीरे धीरे ऊपर चढ़ते अंततः हम पहाड़ी के ऊपर स्थित मंदिर तक पहुँच गए।

सीढ़ीदार पहाड़ी खेत - मुक्तेश्वर
सीढ़ीदार पहाड़ी खेत – मुक्तेश्वर

हमने यहाँ गोली मारने के आखेट का भी अभ्यास किया। कुल मिलाकर यह भ्रमण प्रकृति, अचंभा, जोखिम, आखेट, मनोरंजन, भोजन और आध्यात्मिकता का अनोखा मिश्रण था।

मुक्तेश्वर १९ वीं. ई. में बनाई गयी भारतीय पशुचिकित्सा अनुसंधान केंद्र के लिए भी प्रसिद्ध है।

मुक्तेश्वर की यात्रा मनोरंजक बनाने हेतु सुझाव

नीला आकाश, हरी भरी घाटियाँ और श्वेत हिमालय पर्वतमाला - मुक्तेश्वर
नीला आकाश, हरी भरी घाटियाँ और श्वेत हिमालय पर्वतमाला – मुक्तेश्वर

• मुक्तेश्वर पहुँचने हेतु निकटतम रेल स्थानक, ६५ की.मी. दूर स्थित काठगोदाम में है। यहाँ से सड़क मार्ग द्वारा ही मुक्तेश्वर पहुंचा जा सकता है।
• मुक्तेश्वर, अल्मोड़ा से ३५ की.मी. दूर स्थित है। हमारे यात्रा के समय मार्गों की अवस्था भी उत्तम थी।
• हिमालय की सुन्दरता का अनुभव प्राप्त करने का सर्वोत्तम समय प्रातःकाल है। इस हेतु सूर्योदय पूर्व जागने की तैयारी आवश्यक है। आप रहने हेतु ऐसे स्थान का चयन कर सकते हैं जहां से परिदृश्य स्पष्ट दिखाई दे।
• परिदृश्य अवलोकन हेतु सर्वोत्तम स्थान पहाड़ी के ऊपर स्थित मुक्तेश्वर मंदिर है।
• मुक्तेश्वर भ्रमण के समय बाहर भोजन हेतु केवल नूडल्स के ठेले उपलब्ध हैं।
• पीने का पानी सदैव साथ रखें।
• वर्षा ऋतु को छोड़कर हर ऋतू मुक्तेश्वर व कुमाऊं भ्रमण हेतु उपयुक्त है।

हिंदी अनुवाद : मधुमिता ताम्हणे

अन्य यात्रा संस्मरण

हिमाचल के लाल सेबों की कहानी 

चित्कुल – भारत – तिब्बत सीमे पे बसा एक गाँव

The post मुक्तेश्वर धाम – कुमाऊँ पहाड़ों के न भूलने वाले दृश्य appeared first on Inditales.

]]>
https://inditales.com/hindi/mukteshwar-kumaon-hills-uttarakhand/feed/ 3 475