कोलकाता यात्रा Archives - Inditales श्रेष्ठ यात्रा ब्लॉग Mon, 12 Jun 2023 05:15:55 +0000 en-US hourly 1 https://wordpress.org/?v=6.7.3 कोलकाता के उपहार – बंगाल के १० सर्वोत्तम स्मृतिचिन्ह https://inditales.com/hindi/best-kolkata-souvenirs-shopping-list/ https://inditales.com/hindi/best-kolkata-souvenirs-shopping-list/#comments Wed, 25 Oct 2017 02:30:37 +0000 https://inditales.com/hindi/?p=483

कोलकाता के स्मृतिचिन्ह से मुझे पुराने चलचित्रों का स्मरण हो आया जहां नायक अथवा नायक के पिता को कई बार कोलकाता जाते दिखाया जाता था और आशा की जाती थी कि वह वहां से परिवार के हर सदस्य हेतु उपहार खरीद कर लाये। बंगाल सम्पूर्ण विश्व में कई आकर्षक भेंट वस्तुएं व स्वादिष्ट मिष्ठान हेतु […]

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कोलकाता के उपहार
कोलकाता के उपहार

कोलकाता के स्मृतिचिन्ह से मुझे पुराने चलचित्रों का स्मरण हो आया जहां नायक अथवा नायक के पिता को कई बार कोलकाता जाते दिखाया जाता था और आशा की जाती थी कि वह वहां से परिवार के हर सदस्य हेतु उपहार खरीद कर लाये। बंगाल सम्पूर्ण विश्व में कई आकर्षक भेंट वस्तुएं व स्वादिष्ट मिष्ठान हेतु प्रसिद्ध है। मैंने कई बार बंगाल की यात्रा की। जहां एक ओर मुझे बिश्नुपुर स्थित टेराकोटा मंदिर बहुत पसंद आये, वहीं दोआर अथवा डुआर के जंगल बहुत लुभावने प्रतीत हुए। वहां खाए भिन्न भिन्न मिष्टान्नों का स्मरण होते ही अभी भी मुंह में पानी आ जाता है। बंगाल की हर यात्रा में कोलकाता के विषय में नवीन जानकारी प्राप्त होती है। मेरे पास कोलकाता के कई स्मृतिचिन्ह हैं जिनमें कुछ मैंने अपनी बंगाल यात्रा के समय खरीदा था व कुछ मित्रजनों और परिवारजनों ने उपहार स्वरुप मुझे दिए हैं। मुझे कोलकाता की विशेषताओं व यहाँ उपलब्ध विशेष वस्तुओं को बारीकी से जानने का अवसर प्राप्त हुआ है। इसलिए अपने अनुभव को इस संस्मरण में संकलित कर, १० सर्वोत्तम भेंट वस्तुएं अंकित कर रही हूँ।

कोलकाता के १० सर्वोत्तम भेंट वस्तुओं की खरीददारी

शंख से बनी चूड़ियाँ

शंख से बनी चूड़ियाँ - कोलकाता का शुभ उपहार
शंख से बनी चूड़ियाँ – कोलकाता का शुभ उपहार

इस सूची का आरम्भ शुभ वस्तु से करते हुए, कौंच अथवा शंख पर की गयी कारीगरी व उससे बनी वस्तुओं का उल्लेख करना चाहती हूँ। बिश्नुपुर की गलियों में शंख पर की गयी नक्काशी को बारीकी से देखने का अवसर हमें प्राप्त हुआ। कलाकार शंख को कोमलता से हाथ में पकड़ कर उस पर आकृतियाँ गढ़ते हैं। देवों के चित्रों की नक्काशी युक्त श्वेत शंख बहुत सुन्दर व शोभायमान प्रतीत होते हैं। घर के मंदिर की शोभा बढ़ाने हेतु यह एक सुन्दर व शुभ वस्तु सिद्ध होगी। इसी तरह शंख से बनी चूड़ियों पर भी उत्कृष्ट नक्काशी की जाती है। पारंपरिक रूप से इन चूड़ियों द्वारा बंगाल की सौभाग्यवती स्त्रियाँ अपना श्रृंगार पूर्ण करती हैं। आधुनिक समाज में हर स्त्री इन चूड़ियों को अपने साजश्रृंगार का हिस्सा बनाने की इच्छा रखती है। इसलिए आप ये चूड़ियाँ स्वयं अथवा आपके परिवार की महिलाओं हेतु खरीदकर उन्हें भेंट कर सकते हैं।

शंख से बनी चूड़ियों की कुछ और विशेषताओं का उल्लेख करना चाहती हूँ। कुछ चूड़ियों पर घोड़ों की छोटी छोटी नक्काशी की जाती है। यह बांकुरा जिले के पंचमुढ़ा ग्राम में बनाए जाने वाले टेराकोटा अर्थात् लाल पकी मिट्टी के घोड़ों को समर्पित है। यह चूड़ियाँ पूर्णतः गोलाकार नहीं होती क्योंकि इन्हें प्राकृतिक शंखों को काटकर बनाया जाता है। अनियमित आकार की चूड़ियों पर की गयी उत्तम कारीगरी का उत्कृष्ट नमूना है यह चूड़ियाँ।

टेराकोटा कलाकृतियाँ

बंगाल की मिट्टी से बने गणपति
बंगाल की मिट्टी से बने गणपति

टेराकोटा अर्थात् लाल पकी मिट्टी बंगाल का मूलभूत अंग है। बंगाल की धरती पर पत्थरों का अभाव है। इसलिए यहाँ के प्राचीन मंदिर भी टेराकोटा की पट्टियों से सुसज्जित हैं। परन्तु इन मंदिरों के दर्शन हेतु बंगाल के भीतरी भागों की यात्रा आवश्यक है। कोलकाता में ही उपलब्ध, टेराकोटा से बने कुछ रोचक व चित्तरंजक वस्तुएं जो आप खरीद सकते हैं वह हैं-

बांकुरा घोड़े

बांकुरा जिले में सर्वत्र उपलब्ध यह टेराकोटा से बने बांकुरा घोड़ों की विशेषता है उनके नोकदार लंबे कान। यह हर आकार में उपलब्ध हैं। अपने घर के प्रवेशद्वार के दोनों ओर रखे यह रक्षक भांति प्रतीत होते हैं। उसी तरह बैठक कक्ष में रखे गए यह घोड़े आपको बंगाल का स्मरण कराते रहेंगे। यह बंगाल की एक उत्कृष्ट स्मृतिचिन्ह है।

घोड़ों के अलावा टेराकोटा द्वारा गणेश की विभिन्न संगीत वाद्य बजाते हुए मूर्तियाँ भी बहुत मनभावनी हैं। मैंने इन मूर्तियों का एक सम्पूर्ण संग्रह खरीदा था। वह अब मेरे पुस्तकालय में सुसज्जित है और संभवतः हर आपदाओं से हमारी रक्षा कर रही है।

टेराकोटा के आभूषण

बंगाल के कलाकारों ने टेराकोटा से छोटे छोटे आभूषण भी बनाने आरम्भ किये हैं। विभिन्न चटक रंगों में रंगे इन आभूषणों को देख सहसा विशवास नहीं होता कि यह टेराकोटा से बनी हैं। मैंने अपने लिए टेराकोटा से बने झुमके खरीदे। यथोचित मूल्य में उपलब्ध यह छोटे छोटे आभूषण ले जाने में आसान व हलके वजन के हैं। यह आपके परिवार की बेटियों हेतु सर्वोत्तम भेंट होंगी।

स्त्रियों की सर्वप्रिय साड़ियाँ

बंगाल के साडी बुनकर
बंगाल के साडी बुनकर

यूँ तो बंगाल में साड़ियों के इतने प्रकार विक्री हेतु उपलब्ध है कि किसी का भी मन डोल सकता है। परन्तु यह साड़ियाँ आपको कही भी मिल जायेंगीं। बंगाल आ कर केवल बंगाली साड़ियों पर ही ध्यान केन्द्रित करना उपयुक्त होगा। यहाँ की कुछ प्रसिद्ध बंगाली साड़ियाँ हैं-

तांत की साड़ियाँ

बंगाल में स्त्रियाँ ज्यादातर जो साड़ियाँ पहनती हैं वह बहुत महीन कपड़े पर चौड़ी किनार की तांत साड़ियाँ हैं। सूती, महीन किन्तु कड़क साड़ियाँ बंगाल के बुनकरों की कला का सजीव नमूना है। पारंपरिक तौर पर यह साड़ियाँ हलके रंग में बनाई जाती हैं जिन पर गहरे चटक रंग केवल बूटी व किनार पर उपयोग किये जाते हैं। परंपरा व आधुनिकता के मिश्रण से अब रंगों व नमूनों की कोई सीमा नहीं रही। ढाका, तांगेल और मुर्शिदाबाद तांत साड़ियों के लिए प्रसिद्ध है। बंगाल में सर्वत्र उपलब्ध इन साड़ियों को अच्छे दाम व गुणवत्ता के लिए स्थानीय बाजार से खरीदें।

बालुचरी अथवा स्वर्णचरी साड़ियाँ

कहा जाता है कि हर बालुचरी साडी एक कहानी कहती है। बांकुरा के बुनकर मंदिरों की दीवारों पर बनी नक्काशियों को इन कच्ची रेशम से बनी साड़ियों के पल्लू व किनारों पर हुबहू उतारते हैं। राधा कृष्ण की सुन्दर मुद्राएँ, महाभारत युद्ध के समय अर्जुन को ज्ञान देते कृष्ण, सखियों संग झूला झूलती राधा इत्यादि कई पौराणिक कथाओं पर आधारित आकृतियाँ आप इन साड़ियों पर देख सकते हैं। कच्चे रेशम के रंग में बनी बालुचरी साड़ियों में बुनाई का धागा रेशमी व स्वर्णचरी साड़ियों में बुनाई धागा सोने की जरी का होता है। आप अपने पसंद की कहानी कहती यह साड़ियाँ, अपने पसंदीदा रंगों व नमूनों में खरीद सकतें हैं।

कांथा साड़ियाँ

कांथा, गाँव की स्त्रियों द्वारा किया जाने वाला कढ़ाई का एक प्रकार है। पारंपरिक रूप से कोमल धोती व साड़ियों पर की जाने वाली इस कढ़ाई में सम्पूर्ण कपड़े पर सादे टाँके की कढ़ाई की जाती है। सादे टसर रेशम पर रंगीन धागों से बनाए गए पारंपरिक नमूने इन साड़ियों को अनमोल रूप प्रदान करते हैं।

सोलापीठ (भारतीय काग) के हस्तशिल्प

सोलापीठ में गढ़ा हाथी
सोलापीठ में गढ़ा हाथी – लगता है न हाथीदांत से बना

शोला अथवा सोला एक पौधा है जो बंगाल के आर्द्र भूमि के दलदल में उगता है। इसके तने के भीतरी भाग को सुखाया जाय तब यह दुधिया सफ़ेद रंग का मुलायम व अत्यंत हल्का पदार्थ बनता है। इसे सोलापीठ अथवा भारतीय काग कहते है। यह देवी देवताओं की प्रतिमाओं को सजाने हेतु व वर-वधु के मुकुट इत्यादि बनाने हेतु उपयोग में लाया जाता है। आजकल कारीगर इससे कई सजावटी वस्तुएं भी बनाने लगे हैं। यह थर्मोकोल की तरह दिखने वाला, परन्तु प्राकृतिक पदार्थ है जो लचीलापन, संरचना, चमक व झिर्झिरापन में उससे कई गुना उत्तम है।

आपने दुर्गापूजा के समय कालीबाड़ी की दुर्गा प्रतिमा का चेहरा, मुकुट व अन्य सजावट एक श्वेत पदार्थ द्वारा बने देखे होंगे। यही सोलापीठ है। माला गूंथने वाले मालाकारी ही सोलापीठ पर नक्काशी करते हैं। सोलापीठ पर नक्काशी कर अन्य सजावटी वस्तुएं भी बनायी जाती हैं।

मैंने यहाँ से एक नक्काशीदार, सोला से बना हाथी खरीदा था। दूर से देखने पर यह हाथी दांत से बना प्रतीत होता है।

मेरी आशा है आप सोलाशिल्प की खरीददारी अवश्य करेंगे। यह इस कला को जीवित रखने की ओर एक महत्वपूर्ण कदम होगा।

बंगाली मिठाइयाँ

संदेष - बंगाल का मीठा उपहार
संदेष – बंगाल का मीठा उपहार

कुछ बंगाली मिठाइयां यूँ तो देश के लगभग हर मिठाई की दुकानों में उपलब्ध हैं। रसगुल्ला, या रोशोगुल्ला जैसे की मेरे बंगाली मित्र कहते हैं, चमचम, सन्देश इत्यादि इनमें मुख्य हैं। पर इन मिठाइयों जो स्वाद बंगाल में होता है वह अद्भुत है। केवल सन्देश के ही इतने प्रकार देख आप दंग रह जायेंगे। ज्यादातर बंगाली मिठाइयां तली हुई नहीं होती, इसलिए इन्हें बिना शंका खाया जा सकता है। पाती शाप्ता भी एक मिष्टान्न है जिसे बनाना मैंने एक बंगाली परिजन से सीखा। ताड़ शर्करा से बना नोलेन गुड़ इन मिठाइयों की मूल सामग्री है।

मिष्टी दोई के बारे में आप सब जानते होंगे। भारत के कोने कोने में इसे स्वाद लेकर खाया जाता है। दही का इतना स्वादिष्ट व मीठा रूप किसी बंगाली के ही मष्तिष्क की उपज हो सकती है।

इन मिठाइयों का भरपूर स्वाद आप अपनी बंगाल यात्रा में ले सकते हैं। परन्तु केवल सन्देश ही अपने साथ वापिस ले आने की सलाह देना चाहूंगी क्योंकि यह अपेक्षाकृत सूखा व ले जाने में आसान है। यह जल्दी बासी भी नहीं होगा।

डोकरा शिल्प

डोकरा शिल्प - कोलकाता के उपहार
डोकरा शिल्प में मेरे गणपति

डोकरा शिल्प एक ऐसी कला है जिसे बंगाल, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना और छत्तीसगढ़ में सामान तरीके से बनाया जाता है। इन प्रदेशों के नाम पढ़ कर आप को ज्ञात हो चुका होगा कि यह उन्ही स्थानों पर प्रचलित है जहां आदिवासी जनसँख्या का प्रमाण ज्यादा है। मूल शिल्प सामान होते हुए भी इनमें प्रदेश के अनुसार बदलाव देखा जाता है। हर प्रदेश अपनी विशेषता इस शिल्प कला को प्रदान करता है। प्रचलित वस्तुएं जिन पर यह शिल्पकारी की जाती है वह है सुन्दर गुडियां, रोजमर्रा की वस्तुएं जैसे कलम रखने हेतु पात्र, आदिवासी जनजीवन का उल्लेख करतीं पट्टिका इत्यादि।

बंगाल यात्रा में मैंने आपने लिए डोकरा पद्धति से बने छोटे आभूषण इत्यादि खरीदे। उनमें मेरी पसंदीदा वस्तुएं हैं गणेश झुमके व गले के हार का लटकन। झुमके का नमूना पारंपरिक होते हुए भी, लटकन का नमूना आधुनिक है।

इन छोटी छोटी कांसे की वस्तुओं से आप अपने घर की सम्पूर्ण सजावट कर सकते हैं। यह आपको विश्व की सबसे प्राचीन धातु शिल्पकारी पद्धति का स्मरण कराते रहेंगे।

दार्जिलिंग चाय

दार्जीलिंग के चाय बागान
दार्जीलिंग के चाय बागान

जब आप दार्जिलिंग के पहाड़ों से गुजरें, आपको अपने चारों ओर अद्भुत दृश्य दिखाई देगा। चाय के बागानों से भरी पहाड़ियों की ढलानें मन मोह लेती हैं। कहते हैं कि जैसे जैसे ऊंचाई बढ़ती है, चाय की पत्तियों के स्वाद में वृधि होती है। शायद ये पत्तियाँ इन पहाड़ों की हवा से ताजगी सोख कर हमारे चाय की प्याली तक लाती हैं।

दार्जिलिंग चाय विश्व भर में प्रसिद्ध है। आप यहाँ से मनपसंद चाय खरीद सकते हैं, जैसे पहली खेप, दूसरी खेप, काली, हरी, अथवा विशेष स्वाद में घुली हुई चाय इत्यादि।

दार्जिलिंग की यात्रा के समय मैंने यहाँ से पुदीने के स्वाद सहित चाय खरीदी थी। ऐसे संस्मरण लिखते समय मेरी नींद भगाने हेतु अतिउपयुक्त साबित होती है यह चाय।

कोलकाता व दर्जिलिंग में कई उच्चस्तरीय दुकानें हैं जो आकर्षक डिब्बों में चाय उपलब्ध कराते हैं। यह डिब्बे भेंट स्वरुप ले जाने व देने में सुविधाजनक व अनोखे सिद्ध होते हैं।

कालीघाट की चित्रकारी

कालीघाट की चित्रकारी - कोलकाता के उपहार
कालीघाट की चित्रकारी

कोलकाता के काली मंदिर के आसपास के इलाके में कालीघाट चित्रकारी ने जन्म लिया। इसलिए इसका नाम भी कालीघाट चित्रकारी पड़ गया। इस कला का मुख्य उद्देश्य था कालीघाट मन्दिर के दर्शनार्थियों को यहाँ की स्मृतिचिन्ह उपलब्ध कराना। इसलिए कालीघाट चित्रकारी मुख्यतः देवी काली और अन्य हिन्दू देवी देवता व रामायण और महाभारत महाकाव्य के दृश्यों पर आधारित होती है। कालान्तर में इन कलाकारों ने आधुनिक विषयों पर भी चित्रकारी करना आरम्भ कर दिया।
राष्ट्रीय आधुनिक कला संग्रहालय” के परोक्ष गलियारे से आप कुछ उत्कृष्ट कालीघाट चित्रकारियों की जानकारी प्राप्त कर सकते है।

कालीघाट चित्रकारी पद्धति की और जानकारी आप “उत्सवपीडिया” से प्राप्त कर सकते हैं।

इन्टरनेट पर भी इन चित्रकारियों के क्रय हेतु कई सुविधायें उपलब्ध हैं। वे ज्यादातर मूल प्रतियों के पुनर्मुद्रण होते हैं। इसलिए मेरी सलाह होगी कि आप चित्रों की मूल प्रति कोलकाता से ही खरीदें। मौलिक स्थल से इस स्मृतिचिन्ह को पाने की संतुष्टि और आनंद अद्वितीय है।

जूट से बनी वस्तुएं

जूट से बने कोलकाता के उपहार
जूट से बने कोलकाता के उपहार

बंगाल जूट की उद्योगनगरी है। जूट से बनी कई वस्तुएं, जैसे रस्सी और जूट के बोरे इत्यादि, यहीं बनाए जाते हैं। दिल छोटा ना कीजिये, यह वस्तुएं किसी भी दृष्टिकोण से स्मृतिचिन्ह नहीं हो सकते। कुछ कलाकार जूट का इस्तेमाल कर खूबसूरत और रोजमर्रा हेतु उपयोगी वस्तुएं भी बनाने लगे हैं। सामान लाने योग्य जूट की सुन्दर थैलियाँ, बटुए, पानी की बोतल व खाने के डिब्बे हेतु जूट की थैलियाँ, मेजपोश इत्यादि कई वस्तुएं कोलकाता व बंगाल के अन्य स्थानों से खरीद सकते हैं।

जूट की छोटी छोटी थैलियाँ भेंट वस्तु रखने योग्य उपयुक्त होती हैं। इन्हें पुनः पुनः उपयोग में लाया जा सकता है।

पुतुल गुड़िया

पुतुल - माटी की गुडिया - कोलकाता के उपहार
पुतुल – माटी की गुडिया

संस्कृत शब्द पुत्तालिका अर्थात् पुतली का अपभ्रंश शब्द है पुतुल। बंगाल के कलाकार मिट्टी की छोटी छोटी गुड़िया बना कर उसे चटक रंगों से रंगते हैं। सर्वप्रथम मैंने इन्हें बिशनुपुर के एक कलाकार के निवासस्थान में देखा था। यह गुड़ियाएं दबाकर ढलाने की पद्धति से बनाए जाते हैं। कई बार गुडिया के विभिन्न भागों को अलग अलग ढाल कर, तत्पश्चात उन्हें जोड़ा जाता है।

मेरा अनुमान है कि यह गुड़ियाएं, पुतली प्रदर्शन के मनोरंजन हेतु उपयोग में लाये जाते थे। यह छोटे व ले जाने में सुविधाजनक होने के कारण बंगाल की मिट्टी से बनी उत्तम स्मृतिचिन्ह होगी।

भारत को अनेकता में एकता का देश कहा जाता है। क्या किसी और देश में आपको इतनी विभिन्नता, रंग व कला का ऐसा अद्भुत संगम दिखाई देगा?

तो आपकी मनपसंद स्मृतिचिन्ह कौन कौन से हैं।

हिंदी अनुवाद: मधुमिता ताम्हणे

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कोलकाता मे बसा अंग्रेजों के ज़माने का कलकत्ता https://inditales.com/hindi/calcutta-kolkata-heritage-walk/ https://inditales.com/hindi/calcutta-kolkata-heritage-walk/#comments Wed, 16 Aug 2017 02:30:35 +0000 https://inditales.com/hindi/?p=339

कलकत्ता के पुराने इलाकों की सैर करते हुए आप समय के उस दौर में पहुँच जाते हैं, जब कलकत्ता अंग्रेजों का शासनकेंद्र हुआ करता था। तब सभी बड़ी-बड़ी कंपनियों के कार्यालय कलकत्ता में अपने पैर जमा रहे थे और यहां की वास्तुकला भी उपनिवेशियों की शैली में ढलती जा रही थी। इस औपनिवेशिक काल ने […]

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कलकत्ता की पद यात्रा कलकत्ता के पुराने इलाकों की सैर करते हुए आप समय के उस दौर में पहुँच जाते हैं, जब कलकत्ता अंग्रेजों का शासनकेंद्र हुआ करता था। तब सभी बड़ी-बड़ी कंपनियों के कार्यालय कलकत्ता में अपने पैर जमा रहे थे और यहां की वास्तुकला भी उपनिवेशियों की शैली में ढलती जा रही थी। इस औपनिवेशिक काल ने कोलकाता में बहुत ही मौलिक विरासत पीछे छोड़ी है।

तो आइए आपको औपनिवेशिक दृष्टि से कोलकाता के कुछ महत्वपूर्ण और देखने लायक स्थलों की सैर कराते हैं।

कलकत्ता की विरासत यात्रा करना यानी कलकत्ता के इतिहास के गलियों की सैर करने जैसा है, जिसकी जड़ें भारत में अंग्रेजों के शासन काल से जुडी हैं। वे अंग्रेज़ ही थे जिन्होंने अपनी सुविधा के लिए कलकत्ता शहर का निर्माण किया था और इसके साथ ही उन्होंने पश्चिमी तटीय क्षेत्र पर मुंबई और पूर्वी तटीय क्षेत्र पर मद्रास जैसे शहरों का भी निर्माण किया था।

इस बार जब मैं कोलकाता गयी थी तब मैंने वहां के इतिहास को जानने और समझने का निश्चय किया। मैं कोलकाता के इतिहास के उन पन्नों को समझना चाहती थी जब वह कलकत्ता में परिवर्तित हो रहा था। इस यात्रा पर मेरे गाइड थे श्री रंगन दत्त, जो कोलकाता से भली-भांति परिचित है, जो एक ब्लॉगर भी है और मेरे अच्छे दोस्त भी। उन्होंने बड़ी विनम्रता से मुझे औपनिवेशिक कलकत्ता की पूरी सैर कराई। गर्मियों की कड़कती धूप से बचने के लिए हम सुबह के 6:30 बजे ही अपनी यात्रा पर निकाल चुके थे। और मैं आपको भी यही सलाह दूँगी कि आप भी सूर्य की नर्मी पिघलने से पहले ही अपनी यात्रा शुरू करें, ताकि आपको सूर्य की कड़कती धूप का सामना न करना पड़े। ऐसे में आप कोलकाता की सड़कों पर बढ़ते ट्रेफिक से भी बच सकते हैं।

कोलकाता में स्थित विरासत की इन महत्वपूर्ण जगहों पर जरूर जाना चाहिए।

कलकत्ता की विरासत यात्रा – कोलकाता में घूमने की जगहें 

कलकत्ता की लाल इमारतें
कलकत्ता की लाल इमारतें

कलकत्ता की विरासत यात्रा आप किसी गाइड के बिना स्वयं भी कर सकते हैं। पश्चिम बंगाल के पर्यटन विभाग द्वारा कोलकाता के धरोहर स्थलों पर स्थित प्रमुख संरचनाओं के आस-पास सूचना पट्ट लगाए गए हैं, ताकि यात्रियों को घूमते समय कोई मुश्किल न हो। ये सूचना पट्ट इन संरचनाओं का संक्षिप्त लेकिन महत्वपूर्ण इतिहास प्रदान करते हैं और कुछ विशेष स्थलों का उल्लेख भी करते हैं जिन्हें देखे बिना आपकी यात्रा पूरी नहीं होती। ऐसे में अगर आपके साथ कोई ऐसा व्यक्ति हो, जो 20 सालों से भी अधिक समय के लिए कोलकाता में रहा हो और जिसे यहां का चप्पा-चप्पा मालूम हो, जो यहां की हर बात की जानकारी रखता हो, तब तो आपकी यात्रा और भी मजेदार और उत्सुकतापूर्ण हो जाती है।

तो चलिये मैं आपको अपनी इस इतिहासपूर्ण यात्रा की कुछ झलकियाँ देती हूँ।

एस्प्लेनेड मैनशन 

एस्पलेनैड मेन्शन - कलकत्ता
एस्पलेनैड मेन्शन – कलकत्ता

वैसे तो हम अपनी यात्रा का आरंभ राज भवन से करनेवाले थे, लेकिन इस सुंदर सी सफ़ेद इमारत ने हमे अपनी मंजिल तक पहुँचने से पहली ही बीच में ही रुकने पर मजबूर किया। हम उसकी सुंदरता की प्रशंसा में पूरी तरह डूब चुके थे। इस इमारत के प्रवेश द्वार पर ही एक छोटा सा तख़्ता लगा हुआ था, जिस पर लिखा था – ‘एस्ल्पेनेड मैनशन’। मूलतः एक आवासीय भवन के रूप में निर्मित इस इमारत पर, दूसरे विश्व युद्ध के दौरान अमरीकियों ने कब्जा कर लिया था। यह वही इमारत है जहां पर कभी अमरीकी पुस्तकालय हुआ करता था।

एस्प्लेनेड मैनशन यहूदी (जुविष) व्यापारी, एलियास डेविड जोसफ एजरा द्वारा 1910 में बनवाया गया था।

राज भवन  

कोल्कता राज भवन के मुख्या द्वार पर सिंह
कोल्कता राज भवन के मुख्या द्वार पर सिंह

लॉर्ड वेलेसले, 1799 में भारत के गवर्नर जनरल बने थे। उस समय वे चितपुर के नवाब की जमीन पर बने एक बहुत बड़े बंगले में रहते थे। न जाने उन्हें कौनसी बात खटकी और उन्हें अचानक से एहसास हुआ कि भारत महलों और प्रासादों का देश होने के कारण, इस भूमि पर शासन करनेवाले शासक को भी इसी प्रकार के महल से अपना राज्य चलाना चाहिए। इसी बात पर उन्होंने अपने लिए एक खास सरकारी आवास बनवाने का निश्चय किया और यहीं से राज भवन की धारणा जन्म हुआ। हाँ, जिसे हम आज राज भवन कहते हैं उसे पहले सरकारी आवास के रूप में जाना जाता था।

यह भवन वास्तुकार चार्ल्स वायट द्वारा नियोक्लासिकल शैली में बनवाया गया था, जो डर्बिशायर के कर्ज़न परिवार की हवेली से प्रेरित है। और इत्तेफाक तो देखिये कि, 100 साल बाद जब लॉर्ड कर्ज़न भारत के वाइसरॉय के रूप कलकत्ता में पधारे तो वे इसी राज भवन के निवासी थे।

कोल्कता राज भवन
कोल्कता राज भवन

इस राज भवन में कुल 6 प्रवेश द्वार हैं, उत्तर और दक्षिण दिशा में एक एक प्रवेशद्वार और पश्चिम और पूर्वी दिशा में दो दो प्रवेशद्वार हैं। इस आलीशान से भवन की झलक पाने का एकमात्र जरिया यही प्रवेश द्वार हैं। क्योंकि, इन प्रवेश द्वारों के पार जाने की अनुमति किसी को नहीं दी जाती। इस भवन के पूर्वी और पश्चिमी प्रवेश द्वारों पर सिंहचतुर्मुखी संरचना है, जो शायद अशोक स्तंभों पर स्थित सिंहचतुर्मुख से प्रेरित हो सकता है। यह पूरा राज भवन 27 एकड़ की जमीन पर फैला हुआ है, जो लगभग 84,000 स्क्वेर फूट की है। इसके विविध निवासियों ने इसमें अपने अनुसार बहुत से सुधारणिकरण किए हैं, तथा इसमें कुछ नवीन विशेषताएँ भी जोड़ी हैं, जैसे कि, गुबन्द, लिफ्ट इत्यादि।

कोल्कता राज भवन के अस्तबल की साज सज्जा
कोल्कता राज भवन के अस्तबल की साज सज्जा

वैसे तो इस राज भवन के आंतरिक भागों को देखने की अनुमति किसी को नहीं दी जाती। लेकिन मेरे हिसाब से तो इस राज भवन कि सबसे रोचक बात उसके बाहर ही स्थित है, जिसे कोई भी आसानी से देख सकता है। इस भवन के बाहर ही दो पुरानी घुडशालाएँ हैं जो एक-दूसरे के ठीक आमने-सामने हैं। मुझे बताया गया कि अब उन्हें वरिष्ठ आइ.ए.एस. अधिकारियों के आवासों में परिवर्तित किया गया है, जो राज भवन का ही विस्तारित भाग है। इनके अगवाड़े की सीढ़ियाँ जो इमारत के बाहरी तरफ हैं और जो पहले मजले की ओर जाती हैं, सच में तस्वीरें खिचने योग्य थी, जैसे कि उन्हें इसी उद्देश्य से बनाया गया हो। वे अन्य इमारतों की सीढ़ियों से कुछ अलग ही थी।

कोल्कता राज भवन के अस्तबल
कोल्कता राज भवन के अस्तबल

इस घुडशाला के प्रवेश द्वार के ऊपरी भाग पर एक उभड़ा हुआ नक्काशी का काम है, जिसमें एक आदमी दो घोड़ों की लगाम को संभाले हुए है।

स्टैण्डर्ड लाइफ अस्युरंश कंपनी की इमारत 

स्टैण्डर्ड लाइफ अस्सुरंस कम्पनी की लाल ईमारत - कोल्कता
स्टैण्डर्ड लाइफ अस्सुरंस कम्पनी की लाल ईमारत – कोल्कता

कलकत्ता की विरासत यात्रा के दौरान मिली अनेक लाल इमारतों में से यह लाल इमारत हमने सबसे पहले देखी थी। ऐसा लगता है औपनिवेशिक कलकत्ता में बीमा कंपनियाँ बहुत अच्छा व्यवसाय कर रही थी। इन उपनिवेशियों द्वारा निर्मित इन विराट इमारतों को देखकर कोई भी बिना किसी हिचकिचाहट के यह अंदाज़ा लगा सकता है कि, उनके पास अपार निधि भी थी और कर्मचारी वर्ग भी जो इन इमारतों को खड़ा कर सके और जो इन इमारतों में निवास कर सके। वास्तव में, लाल दीघी के चारों ओर फैली इमारतों में से यह इमारत सबसे बेहतरीन है। इसके उत्तर पूर्वीय कोने के ऊपर पंच रत्न शैली में बने समूहिक गुबन्द की संरचना है जो इस इमारत की शोभा को बढ़ाते हुए शान से खड़ी है। थोड़ा नजदीक से देखने पर आपको वहां के मेहराबों के ऊपरी भाग पर प्लास्टर की सुंदर और महीन कारीगरी नज़र आती है। यद्यपि इस चित्रकारी को समझने के लिए आपको ईसाई कथाओं और मूर्तिविज्ञान की जानकारी होना आवश्यक है।

कलकत्ता की स्टैण्डर्ड लाइफ अस्युरंश कंपनी की इमारत के वास्तुकार फ्रेडेरिक डब्ल्यू स्टीवन्स ने बंबई के विक्टोरिया टर्मिनस का खाका भी तैयार किया था।

स्टैण्डर्ड लाइफ अस्युरंश कंपनी के मूल एडीनबर्ग में पाये जाते हैं। अंग्रेजों के उपनिवेशों में लोगों को बीमा प्रदान करनेवाले अग्रदूत वे ही थे। कलकत्ता में स्थित यह कार्यालय उनका मुख्यालय है, तथा बंबई में भी उनका एक कार्यालय है।

डैड लेटर ऑफिस

डेड लैटर ऑफिस - कोल्कता
डेड लैटर ऑफिस – कोल्कता

लाल और सफ़ेद रंगों में सजी यह खूबसूरत सी इमारत अपने उत्तर पूर्वीय कोने के उपर स्थित लंबे से मीनार के साथ बहुत ही आकर्षक लगती है। यह पुराने जमाने का टेलीग्राफ कार्यालय हुआ करता था। बंगाल के सभी आवक पत्र यहीं पर छाँटे जाते थे। इसका यही अर्थ हुआ कि जो पत्र अपनी मंजिल तक नहीं पहुँच पाते थे, वे यहीं पर रह जाते थे, जिसके चलते इस भवन का नाम डैड लेटर ऑफिस पड़ गया। यह इमारत आज भी भारतीय डाक विभाग द्वारा इस्तेमाल होती है, यद्यपि कलकत्ता का मुख्य डाकघर इस कार्यालय से कुछ ही समय की दूरी पर स्थित है।

यहां पर पड़े इन अप्राप्य पत्रों के बारे में सोचकर मुझे आश्चर्य हुआ कि न जाने वे उन सारे पुराने पत्रों का क्या करते होंगे। मुझे तो लगता है कि शायद उन सारे पत्रों में बहुत सारा इतिहास वैसा ही कैद पड़ा होगा।

डल्हौज़ी चौक के दक्षिण पूर्वीय कोने में स्थित यह इमारत 1873 – 76 के बीच में बनवाई गयी थी।

लाल दीघी – कलकत्ता की विरासत यात्रा का केंद्र   

लाल दीघी - डलहौज़ी स्क्वायर - बी बी दी बाग़ - कोल्कता
लाल दीघी – डलहौज़ी स्क्वायर – बी बी दी बाग़ – कोल्कता

यह छोटा सा आयताकार जलाशय औपनिवेशिक कोलकाता के केंद्र में बसा हुआ है और इसलिए हमारी कलकत्ता की विरासत यात्रा का भी केंद्रीय स्थल है। इस स्थान को मूलतः लाल दीघी ही कहा जाता था। कहते हैं कि, दोल उत्सव के समय इस जलाशय का पानी लाल रंग में बादल जाता था जिसके कारण उसे यह नाम दिया गया था। और इत्तेफाक की बात तो यह है, कि आज इस जलाशय के चारों ओर जितनी भी इमारतें खड़ी हैं, सभी लाल रंग की ही हैं। बाद में 1848-56 तक जब लॉर्ड डल्हौज़ी भारत पर शासन कर रहे थे, तब इसे डल्हौज़ी चौक के नाम से जाना जाता था। और स्वतंत्रता के पश्चात यह बी.बी.डी. बाग के नाम से जाना जाने लगा, जब तीन भारतीय राष्ट्रवादियों ने देश के लिए इसी स्थान के आस-पास अपन जीवन समर्पित किया था।

अगर आपके पास ज्यादा समय नहीं है तो आप लाल दीघी का बस एक चक्कर लेते हुए कलकत्ता की सबसे अच्छी औपनिवेशिक इमारतें देख सकते हैं।

सेंट एंड्रूस चर्च 

सेंट एंड्रूस चर्च - कलकत्ता की सबसे पुरानी चर्च
सेंट एंड्रूस चर्च – कलकत्ता की सबसे पुरानी चर्च

यह साधारण सी दिखनेवाली सफ़ेद चर्च जिसके उपर एक लंबी सी शिखर है कोलकाता की सबसे पहली और एकमात्र स्कॉटिश चर्च है। 1818 में इसका निर्माण हुआ था। मैंने कहीं पर पढ़ा था कि, यद्यपि अग्रेज़ों ने कलकत्ता में अपना शासन कायम किया हो, लेकिन वे स्कॉटिश ही थे जिन्होंने कलकत्ता में काफी व्यापार घरों का निर्माण किया था।

राइटर्स बिल्डिंग   

राइटर्स बिल्डिंग - कोल्कता
राइटर्स बिल्डिंग – कोल्कता

राइटर्स बिल्डिंग कोलकाता के बी.बी.डी. बाग के क्षेत्र में सबसे मशहूर भवन है। गहरे लाल रंग की ये इमारत लाल दीघी के पूरे उत्तरी छोर को व्याप्त किए हुए है। इस इमारत के पास ही एक खूबसूरत सा बगीचा है जो कलकत्ता की विरासत यात्रा का सबसे सुखमय हिस्सा है।

राइटर्स बिल्डिंग एक समय पर ईस्ट इंडिया कंपनी के लिपिक और प्रशासकीय कर्मचारियों का कार्यालय हुआ करती थी। लेकिन अब वह पश्चिम बंगाल के राज्य सचिवालय में परिवर्तित हो गयी है। इन भवन का निर्माण 1777 में हुआ था। और तब से लेकर आज तक यहां के निवासियों द्वारा इस इमारत में बहुत कुछ नया जोड़ा गया है।

इस भवन की मुख्य इमारत पर भारत का सिंहचतुर्मुख वाला राज्य प्रतीक देखा जा सकता है, जो स्वर्णिम रंग का है। इसी के ऊपर ग्रीक देवी मिनेर्वा की मूर्ति स्थित है। इसके अलावा यहां पर और भी मूर्तियाँ हैं लेकिन जब तक कोई आपको उनके बारे में न बताए उन्हें ढूंढ पाना थोड़ा कठिन है।

राष्ट्रवादी बिनोय बासू, बादल गुप्ता और दिनेश गुप्ता की तिगड़ी
राष्ट्रवादी बिनोय बासू, बादल गुप्ता और दिनेश गुप्ता की तिगड़ी

दिसम्बर 1930 में राष्ट्रवादी बिनोय बासू, बादल गुप्ता और दिनेश गुप्ता की इस तिगड़ी ने राइटर्स बिल्डिंग पर हमला किया था। इस कांड में उन्होंने भले ही पुलिस इंस्पेक्टर जनरल कॉल सिम्पसन को मार दिया था, लेकिन इसके दौरान उन तीनों की भी मौत हो गयी थी। उन तीनों राष्ट्रवादियों की स्मृति में राइटर्स बिल्डिंग के ठीक सामने वाले बगीचे उनकी मूर्तियाँ बनवाई गयी हैं।

राइटर्स बिल्डिंग के चारों ओर फैले सुरक्षा कर्मी आपको इस भवन की तस्वीरें खीचने की अनुमति नहीं देते। इसलिए इन सुरक्षा कर्मियों से हमारा सामना होने से पहले ही मैं दूर से ही इस भवन की कुछ तस्वीरें खीच ली थी। लेकिन हैरानी की बात तो यह है कि उन्होंने मुझे पश्चिम बंगाल के पर्यटन संबंधी सूचनाफलक की तस्वीर लेने से भी मना कर दिया।

राइटर्स बिल्डिंग के विस्तृत इतिहास की जानकारी के लिए टेलीग्राफ में लिखे गए पोस्ट को जरूर पढ़िये।

कलेक्ट्रेट भवन कलकत्ता 

कलेक्ट्रेट भवन कलकत्ता
कलेक्ट्रेट भवन कलकत्ता

कलेक्ट्रेट भवन यहां की और एक सुंदर ईमारत है जो लाल रंग में सजी है। इस भवन की बहुत अच्छे से देखरेख की गयी है। 1890 में निर्मित यह इमारत इस क्षेत्र की अन्य इमातों की तुलना में काफी बाद में बनवाई गयी थी। इस कलेक्ट्रेट भवन को बनवाने के लिए यहां पर स्थित प्राचीन कस्टम भवन की इमारत को तोडा गया था। यह कलेक्ट्रेट भवन अब कोलकाता के अधिकारी विभाग के कमिशनर के कार्यालय में परिवर्तित किया गया है। इस भवन का अधिकतम भाग एक विशाल से पेड़ के पीछे छुपा होने के कारण आप इसके मशहूर अलंकरण को ठीक से नहीं देख पाते।

मैंने कलकत्ता की बहुत सी इमारतों के बारे में सुना था लेकिन कलकत्ता की विरासत से जुड़ा यह भवन मेरे लिए किसी अजूबे से कम नहीं था।

जनरल पोस्ट ऑफिस, कोलकाता 

ऐसा था कलकत्ता का डाक घर
ऐसा था कलकत्ता का डाक घर

कोलकाता का जनरल पोस्ट ऑफिस लाल दीघी का एकमात्र ऐसा भवन है, जो अपने प्रज्वलित शुभ्र रंग से देखनेवालों को अपनी ओर आकर्षित करता है। तथा इसके ऊपर स्थित विशाल गुबन्द आपकी नज़र को अपनी ओर खीचे बिना नहीं रह सकता।

कलकत्ता जी पी ओ पे लगा एक सूचना पट
कलकत्ता जी पी ओ पे लगा एक सूचना पट

आज यह पोस्ट ऑफिस जिस स्थान पर खड़ा है, वहां पर 18वी शताब्दी के प्रारंभिक काल के दौरान फोर्ट विलियम बसा हुआ था। लेकिन 1756 में सिराज-उद-दौला ने उस पर कब्जा कर लिया और 1868 के आस-पास यहां पर जनरल पोस्ट ऑफिस का निर्माण हुआ। इस भवन की सीढ़ियों पर लगी पीतल की पट्टी आज भी उस प्राचीन किले के अस्तित्व की निशानियों को बयां करती है।

काल कोठरी या ब्लैक होल, कलकत्ता  

कलकत्ता ब्लैक होल की संभावित जगह
कलकत्ता ब्लैक होल की संभावित जगह

कलकत्ता की काल कोठरी एक जगह भी है और एक ऐतिहासिक घटना भी। यह काल कोठरी एक छोटा सा कमरा है जो कभी सैन्य जेल हुआ करती थी। इस जगह पर 20 जून 1756 को सिराज-उद-दौला के आक्रमण के दौरान 146 लोगों को बंदी बनाकर रखा गया था। इन में से 123 लोग अगली सुबह तक घुटन के मारे मर चुके थे। इन्हीं मृत लोगों की स्मृति में इस जेल के ठीक बाहर ही एक स्मारक बनवाया गया था। कुछ इतिहासकारों के अनुसार यह स्मारक यानी जनरल पोस्ट ऑफिस और कलकत्ता कलेक्ट्रेट भवन के बीच का छोटा सा अंतर है। यह जगह 146 लोगों के हिसाब से बहुत ही छोटी है, लेकिन इसके साथ ही वहां पर बंद लोगों की संख्या पर भी थोड़ी आशंका जतायी जाती है। 1901 में लॉर्ड कर्ज़न ने इसी स्थान पर एक और स्मारक बनवाया था जिसे बाद में सेंट जॉन्स चर्च के परिसर में स्थानांतरित किया गया था, जो यहां से ज्यादा दूर नहीं है। यहां के आधे लोगों का मानना है कि यह घटना कभी घटित ही नहीं हुई थी, तो आधे लोग मानते हैं कि यह सब कुछ सच में घटित हुआ था।

इसी घटना के कारण ‘कोलकाता की काल कोठरी’ मुहावरे का निर्माण हुआ होगा। जिसका अर्थ है वह भीड़ भरी जगह जहां पर सांस लेना बहुत मुश्किल हो।

कलकत्ता की विरासत यात्रा के दौरान सीखा गया यह नया यात्रा वाक्यांश था।

कलकत्ता की काली कोठरी के बारे में विस्तृत जानकारी पाने के लिए दीपंजन के बोल्ग पोस्ट को जरूर पढ़िये।

रॉयल इंश्योरेंस बिल्डिंग  

रॉयल इन्शुरन्स बिल्डिंग - कोल्कता
रॉयल इन्शुरन्स बिल्डिंग – कोल्कता

जनरल पोस्ट ऑफिस के पास ही रॉयल इंश्योरेंस की खूबसूरत सी इमारत खड़ी है जो 1905 में बनवायी गयी थी। इस भवन का रूप-आकार आपको स्वतंत्रता के पूर्व की बीमा कंपनियों के वैभव के बारे में बताते हैं। यह उस समय की बात है जब भारतवासियों को बीमा करने की अनुमति भी नहीं दी जाती थी।

वॉलेस हाउस  

वॉलेस हाउस - कोल्कता
वॉलेस हाउस – कोल्कता

यह भवन पहले स्कॉटिश कंपनी शॉ वॉलेस का कार्यालय हुआ करता था, जो हाल ही में यूनाइटेड ब्रुवरीज (यू.बी. ग्रुप) द्वारा अधिग्रहित किया गया है।

मेटकैफ हॉल 

मेटकैफ हॉल - कोल्कता
मेटकैफ हॉल – कोल्कता

इस भवन को बनाने की प्रेरणा एथेंस के ‘टावर ऑफ द विंड्स’ से प्राप्त की गयी थी। इस इमारत के लंबे-लंबे खंबे बहुत ही आकर्षक लगते हैं। 1840-42 के बीच में  निर्मित इस भवन में कलकत्ता की इंपीरियल लाइब्ररी हुआ करती थी, जो बाद में भारत की नेशनल लाइब्ररी बन गयी। आज यहां पर ‘एशिएटिक सोसाइटी’ की लाइब्ररी भी अपना स्थान ग्रहण कर चुकी है।

लाल दीघी की अन्य इमारतों की तुलना में यह ऊंचा सफ़ेद भवन अपनी हरी खिड़कियों के साथ अपना एक अलग ही रूप प्रदर्शित करती है जो अत्यंत सुंदर है।

हावड़ा ब्रिज - कोल्कता
हावड़ा ब्रिज – कोल्कता

यहां से निकलकर हम कुछ समय के लिए विश्राम करने हेतु हूगली नदी पर बसे फ्लोटेल होटल गए जो वास्तव में पानी पर तैरता हुआ सा नज़र आता है। इसका डेक जो परिदृश्य दर्शन के लिए बनवाया गया है, कोलकाता के दो मशहूर पुल – दाईं ओर हावड़ा ब्रिज और बाईं ओर विद्यासागर सेतु, के ठीक बीच में बसा हुआ है। इस डेक पर खड़े होकर हम इन दोनों पूलों और हमारे सामने से गुजरती हुई नावों की प्रशंसा कर रहे थे। हमारे ठीक पीछे स्टेट बैंक की इमारत थी जो कलकत्ता की विरासत का ही भाग है।

कलकत्ता हाइ कोर्ट 

कोल्कता उच्च न्यायालय
कोल्कता उच्च न्यायालय

कलकत्ता का हाइ कोर्ट 1862 से चलता आ रहा है, जो देश का सबसे पुराना कोर्ट है। 1911 में भारत की राजधानी दिल्ली में स्थानांतरित होने से पहले यह भारत का सूप्रीम कोर्ट हुआ करता था। पश्चिम बंगाल के पर्यटन बोर्ड के अनुसार निओ-गोथिक शैली में बनवायी गयी इस इमारत पर ऑक्सफोर्ड महाविद्यालयों का प्रभाव स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है। यह इमारत 1872 में बनवायी गयी थी।

कोल्कता उच्च न्यायलय के सामने का फव्वारा
कोल्कता उच्च न्यायलय के सामने का फव्वारा

हाइ कोर्ट की इमारत के ठीक सामने ही एक बहुत ही आकर्षक सिंह मुखी फव्वारा है जिस पर दो तारीखें लिखी हुई हैं, 1850 और 1886। यह फव्वारा विलियम फ्रेजर मैकडोनेल की स्मृति में बनवाया गया था। कलकत्ता की विरासत यात्रा का यह अदृश्य मणि था जो एक अनूठी खीज थी।

इसके बारे में अगर आपको और जानकारी पानी हो, तो आपको रंगन दत्त का ब्लॉग पढ़ सकते हैं।

टाउन हॉल

कोल्कता टाउन हॉल
कोल्कता टाउन हॉल

टाउन हॉल एक सार्वजनिक भवन है जो 1814 में बनवाया गाया था। यह सभागृह सार्वजनिक समारोह आयोजित करने हेतु बनवाया गया था। लेकिन अब कोलकाता व्यापारसंघ द्वारा इसकी देखरेख होती है, और अब यहां पर चित्रकला के प्रदर्शन आयोजित किए जाते हैं।

शायद अंग्रेजों ने हर जगह पर टाउन हॉल की इमारतों के लिए एक ही प्रकार की शैली अपनायी थी। क्योंकि, उनके द्वारा निर्मित सभी टाउन हॉल एक समान लगते है। और अगर इस ब्लॉग में उल्लेखित सारी इमारतों में से हमे टाउन हॉल पहचानने के लिए कहा गया होता तो हम आसानी से बता देते कि अमुक इमारत टाउन हॉल है।

सेंट जॉन्स चर्च 

सेंट जॉन्स चर्च - कोल्कता में लास्ट सप्पर
सेंट जॉन्स चर्च – कोल्कता में लास्ट सप्पर

1787 में निर्मित सेंट जॉन्स चर्च कलकत्ता या कोलकाता की तीसरी पुरानी चर्च है। स्थानीय लोग इसे ‘पत्थर गिरजा’ बुलाते हैं क्योंकि, उस काल के दौरान पत्थर से बनवायी गयी इमारतों में से यह एक है। सेंट जॉन्स चर्च में ‘लास्ट सप्पर’ का एक चित्र है जो लियोनार्ड के चित्र से थोड़ा मिलता-झूलता है, लेकिन इसमें आप भारतीयता को महसूस कर सकते हैं। यह चित्र इस चर्च की अनेक विशेषताओं में से एक है।

इसके अलावा आपको यहां पर काली कोठरी के बनाए गए स्मारक को जरूर देखना चाहिए जिसका उल्लेख मैं पहले भी कर चुकी हूँ।

एक दिन के लिए इतना सारा इतिहास बहुत था। हमारी यात्रा वास्तव में 2 घंटों में पूरी होनी चाहिए थी, लेकिन हमने उसे 4-5 घंटों के लिए खीच दिया।

कलकत्ता की विरासत यात्रा को सफल बनाने में मेरी सहायता आय.टी.सी. सोनार के कंसीयज ने की थी, जो कोलकाता में मेरे मेजबान थे। उनके पास कोलकाता से जुड़े ऐसे बहुत से अनुभव हैं, और वे अपने अतिथियों के लिए भी ऐसी यात्राओं का आयोजन जरूर करते हैं।

अनुवादक – रूनिता नायक

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