पंजाब यात्रा Archives - Inditales श्रेष्ठ यात्रा ब्लॉग Thu, 17 Oct 2024 03:20:06 +0000 en-US hourly 1 https://wordpress.org/?v=6.7.2 पंजाब की १५ सर्वोत्तम उपहार- अमृतसर, पटियाला से क्या लायें? https://inditales.com/hindi/panjab-ke-prasiddh-uphaar/ https://inditales.com/hindi/panjab-ke-prasiddh-uphaar/#respond Wed, 16 Oct 2024 02:30:34 +0000 https://inditales.com/hindi/?p=3701

अपनी यात्राओं एवं भ्रमण अनुभवों को दीर्घकालीन बनाने के लिए हम सदा वहाँ से कुछ ना कुछ स्मारिकायें अपने घर लाते हैं। अपनी पंजाब यात्रा से भी मैं अनेक वस्तुएं लेकर घर ले आयी थी। पंजाब से स्मारिकायें लेकर आना मेरे लिये अति विशेष है क्योंकि वे स्मारिकायें अपने साथ मेरी स्मृतियों का पिटारा लेकर […]

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अपनी यात्राओं एवं भ्रमण अनुभवों को दीर्घकालीन बनाने के लिए हम सदा वहाँ से कुछ ना कुछ स्मारिकायें अपने घर लाते हैं। अपनी पंजाब यात्रा से भी मैं अनेक वस्तुएं लेकर घर ले आयी थी। पंजाब से स्मारिकायें लेकर आना मेरे लिये अति विशेष है क्योंकि वे स्मारिकायें अपने साथ मेरी स्मृतियों का पिटारा लेकर आती हैं। उनमें से प्रत्येक वस्तु मेरे बाल्यकाल की किसी न किसी स्मृति से जुड़ी है, कुछ लोककथाएं, कुछ लोकगीत, ढेर सारे बालसुलभ आल्हाददायक क्षण!

पंजाब के उपहार
पंजाब के उपहार – फुलकारी दुपट्टे 

इन्ही दिनों की गयी मेरी पटियाला यात्रा के समय, विशेषतः पटियाला की एतिहासिक धरोहर के शोध में पदभ्रमण करते हुए, नगर की प्राचीन गलियों में विचरण करते हुए, मार्ग की छोटी छोटी दुकानों में पंजाब के स्वादिष्ट व्यंजनों का आस्वाद लेते हुए मैं उन स्मृतियों से सराबोर हो गयी थी।

अब पंजाब से अपने साथ लाये उन विशेष उपहारों पर यह संस्करण लिखते समय, वे सभी स्मृतियाँ पुनः मेरे नेत्रों के समक्ष नृत्य करने लगी हैं। पुनः अपना बालपन जीते हुए ऐसा प्रतीत हो रहा है मानो वह एक भिन्न जीवनकाल था। पंजाब की संस्कृति का सटीक प्रतिनिधित्व करते हैं, वहाँ का उत्कृष्ट भोजन एवं वहाँ के उत्कृष्ट परिधान। वहाँ से लायी स्मारिकाओं में पंजाब की ये संस्कृति स्पष्ट दृष्टिगोचर होती है।

आप भी जब पंजाब जाएँ, तब इन उपहारों को अपने साथ अवश्य लायें । मुझे विश्वास है, पंजाब की इन आकर्षक वस्तुओं को लाकर अपने प्रियजनों को उपहार स्वरूप देने में आपको प्रसन्नता होगी व आनंद आयेगा।

पंजाब के उपहार

फुलकारी ओढ़नी

फुलकारी पंजाब की एक पारंपरिक कढ़ाई की शैली है जो चुनरी, ओढ़नी, साड़ियों आदि पर की जाती हैं। इसका शब्दशः अर्थ है, फूलों की कलाकारी। यह कढ़ाई सामान्यतः खद्दर जैसे मोटे सूती वस्त्र पर की जाती है जो सामान्यतः हलके भूरे रंग का होता है। कढ़ाई में प्रयुक्त रेशमी धागे उजले चटक रंगों के होते हैं, जैसे रानी, नारंगी, हरा, पीला, लाल आदि। मुझे स्मरण नहीं कि फुलकारी में काले अथवा गहरे नीले रंग का भी प्रयोग होता है।

फुलकारी दुपट्टे
फुलकारी दुपट्टे

फुलकारी में भी अनेक प्रकार होते हैं, जिनमें एक शैली है, बाग। कढ़ाई की इस शैली में सम्पूर्ण वस्त्र को रेशमी धागों द्वारा इस प्रकार आच्छादित कर दिया जाता है कि मूल वस्त्र दृश्यमान नहीं रहता। मैंने फुलकारी में अधिकांशतः ज्यामितीय आकृतियाँ ही देखी हैं।

अनेक पंजाबी गीतों में भी फुलकारी का उल्लेख होता है। कुछ लोगों का कहना है कि अविभाजित पंजाब के साहित्यिक लेखनों में भी फुलकारी का उल्लेख मिलता है किन्तु इसके सत्यापन का मेरे पास कोई प्रमाण नहीं है।

पंजाब में विवाह एवं अन्य मंगल कार्यों में स्त्रियाँ अत्यंत प्रेम से फुलकारी कढ़ाई किये गए परिधान धारण करती थीं। जब भी किसी परिवार में बालिका का जन्म होता था तो घर की महिलाएं फुलकारी कढ़ाई का कार्य आरम्भ कर देती थीं ताकि उसके विवाह के समय उपहार स्वरूप उसे दे सकें। ये ऐसी कलाकारी है जो मूलतः स्त्रियों के लिए स्त्रियों द्वारा की जाती है।

पारंपरिक रूप से फुलकारी कढ़ाई में केवल दुपट्टे बनाए जाते थे। अब फुलकारी कढ़ाई के दुपट्टे, साड़ियाँ, सलवार-कमीज आदि भी प्रचलन में हैं। यहाँ तक कि फुलकारी कढ़ाई की चादरें भी बनाई जाती हैं। मैंने अपने लिए फुलकारी की चादर का चुनाव किया था।

यदि आपसे कहा जाए कि पंजाब से एक स्मारिका लेकर आयें तो मेरा विश्वास है कि प्रथम चयन फुलकारी ही होगी!

पंजाबी जुत्ती

चमड़े के आकर्षक जूते जिन पर उजले चटक धागों से कढ़ाई की जाती है, उन्हें हम पंजाबी जुत्ती के नाम से जानते हैं। पंजाब में इन्हें पटियाला जुत्ती या कसूरी जुत्ती कहा जाता है। कसूर पंजाब के पश्चिमी क्षेत्र में स्थित एक गाँव है। हाथों से बने ये जूते कड़क चमड़े के होते हैं। मैंने अपने महाविद्यालयीन काल में इन जुत्तियों का भरपूर उपयोग किया है। प्रारंभ में कड़क चमड़े के कारण ये जुत्तियाँ किंचित कष्ट पहुँचा सकती हैं। इसलिए सूती वस्त्र से पाँव को ढँक कर इन्हें पहनना पड़ सकता है।

पंजाबी जुत्ती
पंजाबी जुत्ती

पंजाबी जुत्तियाँ मूल चमड़े के रंग के भी होते हैं। इनमें गहरे एवं हलके दोनों रंग उपलब्ध होते हैं। ये जुत्तियाँ सामान्यतः पुरुध धारण करते हैं। स्त्रियों की जुत्तियाँ चटक रंगों में बनाई जाती हैं। कई महिलायें भिन्न भिन्न रंगों के वस्त्रों के साथ उन रंगों की जुत्तियाँ धारण करती हैं। आप कल्पना कर सकते हैं कि महिलाओं में ये जुत्तियाँ कितनी लोकप्रिय हैं।

पंजाबी सलवार कमीज

मेरे अनुमान से हमारे देश की लगभग सभी स्त्रियों ने सलवार कमीज धारण की होगी। वर्तमान काल में भारत के सभी सामाजिक स्तर पर कार्यरत स्त्रियों में सलवार कमीज एक मूलभूत परिधान बन चुका है। सलवार कमीज धारण करने वाली स्त्रियों से पंजाबी सलवार कमीज का वैशिष्ट्य छुपा नहीं है। पंजाबी सलवार कमीज क्रय करने के लिए अमृतसर अथवा पटियाला के बाजारों से उत्तम कौन सा स्थान होगा!

आप जब भी पंजाब भ्रमण के लिए जाएँ तो अमृतसर अथवा पटियाला के बाजारों में अवश्य भ्रमण करें। वहाँ सलवार कमीजों के भिन्न भिन्न प्रकार देख विस्मय से आपकी आँखें चौड़ी हो जायेंगी।

पटियाला में पंजाबी सूट क्रय करने के लिए अदालत बाजार या AC मार्केट अवश्य जाएँ। अमृतसर में आप कपड़ा बाजार जा सकते हैं। आपको यहाँ खरीददारी का आनंद अवश्य आएगा। विशेषतः दुकानदारों की कला-कौशल देख आप दंग रह जायेंगे। वे बड़े प्रेम से आप जो चाहें, वो परिधान दिखाने के लिए तत्पर रहते हैं। आपके परिधान देखकर एवं आपके चुनाव देखकर आपकी पसंद का अनुमान लगाते हैं तथा उसी प्रकार के वस्त्र दिखाते हैं।

पंजाबी परांदे

महिलायें जब चोटियाँ बनाती हैं तो विशेष अवसरों पर उन चोटियों के अंत में रंग-बिरंगे लटकन लटकाती हैं। उन्हें परांदा कहते हैं। ये एक ऐसी वस्तु है जो पूर्व काल में अत्यंत लोकप्रिय हुआ करती थी किन्तु आधुनिकता के चलते अब यह प्रासंगिकता खोती जा रही है। अपनी परम्पराओं को जीवंत रखते हुए विशेष अवसरों पर इनका प्रयोग किया जा सकता है। पटियाला एवं अमृतसर के बाजारों में विविध प्रकार के आकर्षक परांदे उपलब्ध हैं।

पंजाबी परांदे
पंजाबी परांदे

मुझे इन परान्दों को एक स्मारिका के रूप में लाना अवश्य भायेगा। ये बाजारों से पूर्णतः लुप्त हो जाएँ, इससे पूर्व आप कम से कम एक परांदा अवश्य लाना चाहेंगे।

पंजाबी पगड़ी

पंजाबी पगड़ी सिक्खों की शान होती है। यह एक लम्बा सूती वस्त्र होता है जो विविध रंगों में उपलब्ध होता है। श्वेत अथवा हलके रंग की पगड़ियां बहुधा वृद्ध पंजाबी पुरुष धारण करते हैं, वहीं युवा पुरुष चटक रंग की पगड़ियां धारण करते हैं।

जो सिख धर्म से सम्बन्ध नहीं रखते, वे इन पगड़ियों को दैनिक जीवन में भले ही ना पहने, किन्तु विशेष आयोजनों में इन्हें धारण कर सकते है।

पंजाबी पंखी

पंखी, जिसे पंजाब में पखी भी कहा जाता है, यह एक छोटा पंखा होता है जिसे हाथ से झुलाया जाता है। पूर्वकाल में महिलायें अपने पंखी स्वयं बनाकर उन पर कसीदाकारी करती थीं। अपने कला-कौशल एवं रूचि के अनुसार महिलायें ये पंखी बनाकर उनका प्रयोग करती थीं।

पंजाबी पक्खी
पंजाबी पक्खी

पुराना बाजार में आप अब भी ये पंखी देख सकते हैं। मैंने पटियाला में भी ऐसे पंखी देखे थे। मुझे विश्वास है कि अमृतसर, जालंधर तथा लुधियाना में भी ये पंखी अवश्य मिलते होंगे।

ऊनी वस्त्र

लुधियाना हाथ से बुने हुए तथा कालांतर में यंत्रों पर बुने हुए ऊनी वस्त्रों के लिए प्रसिद्ध है। शीत ऋतु के लिए यंत्रों पर बुने परिधान आपको फिर भी अन्यत्र मिल जायेंगे किन्तु हाथों से बुने हुए ऊनी परिधानों के लिए लुधियाना से उत्तम कोई अन्य स्थान नहीं है। आप यहाँ से ऊनी स्वेटर, दस्ताने, शाल, गुलबंद, कम्बल, कालीन आदि क्रय कर सकते हैं।

अमृतसर में आप हॉल बाजार से ऊनी परिधान ले सकते हैं।

उपहार स्वरूप पंजाब के व्यंजन

पापड़ वड़ियाँ

अमृतसर के पापड़ एवं दाल की वड़ियाँ अत्यंत लोकप्रिय हैं। पंजाबी भाषा में अनेक लोकगीतों में भी इनका उल्लेख किया गया है। जिन्हें पंजाबी भोजन प्रिय है, उनके लिए ये प्रिय उपहार सर्वोपरि हैं। पंजाबी व्यंजन किसी को ना भायें, ऐसा क्वचित ही होता है।

पंजाब में पापड़ बहुधा उड़द दाल के बने हुए होते हैं। वे भिन्न भिन्न स्वादों में उपलब्ध है। उनमें काली मिर्च का स्वाद सर्वाधिक लोकप्रिय है। वड़ियाँ भी विविध आकारों एवं स्वादों में उपलब्ध होती हैं। आप उनसे अनेक प्रकार के व्यंजन बना सकते हैं।

अमृतसर में आप पापड़ एवं वड़ियाँ क्रय करना चाहें तो आप पापड़ वड़ियाँ बाजार जा सकते हैं या मंजीत मंडी से भी ले सकते हैं।

सूखे मेवे वाला गुड़ तथा सादा स्थानीय गुड़

पंजाब में गन्नों के खेतों के आसपास अनेक लघु उद्योग हैं जहाँ गुड़ बनाया जाता है। गुड़ पंजाबी भोजन का एक अभिन्न अंग है। एक सर्व सामान्य पंजाबी प्रत्येक भोजन के उपरान्त गुड़ का एक टुकड़ा मुंह में अवश्य डालता है। इससे कंठ स्वच्छ एवं अनवरुद्ध हो जाता है।

पटियाला में मुझे सूखे मेवे युक्त गुड़ मिला। इस प्रकार के गुड़ में अनेक प्रकार के सूखे मेवे मिलाये जाते हैं। मुझे यह अत्यंत भा गया। आप सूखे मेवे वाला गुड़ अवश्य ले जाएँ। यह अत्यंत स्वादिष्ट एवं पौष्टिक होता है। यह पंजाब का एक पूर्णतः स्थानीय उपहार है।

पंजाबी अचार

मेरा जन्म पंजाब में हुआ किन्तु अब व्यावसायिक कारणों से पंजाब से दूर घर बसाया हुआ है। यहाँ मुझे पंजाब के गुठली वाले आम के अचार की कमी खलती हैं। मैं जब भी पंजाब जाकर आती हूँ, पंजाबी अचार मेरे साथ अवश्य आता है। पंजाब की सौगात के रूप में सदाबहार अचार हैं, आम का अचार, भरी हुई लाल मिर्चों का अचार तथा नींबू का अचार।

शीत ऋतु में आप फूलगोभी का अचार तथा गाजर का अचार भी ले सकते हैं जो इसी ऋतु में उपलब्ध होते हैं।

अचार एक ऐसी खाद्य वस्तु है जो अत्यंत स्थानिक है। भारतीय अचार जैसी कोई संकल्पना सही नहीं है। प्रत्येक क्षेत्र में अचार बनाने की अत्यंत स्थानीय विधि होती होती है। उन सब में पंजाबी अचार का अपना एक विशेष स्थान है। यह आपके स्वयं के लिए तथा आपके अपनों के लिए एक अनुपम सौगात सिद्ध होगी।

अमृतसरी कुलचा

यदि आप अमृतसर से अधिक दूर नहीं रहते तो आप अपने साथ अपने परिवार के अन्य सदस्यों के लिए कुछ कुलचे ले जा सकते हैं। वे अवश्य आनंदित होंगे।

सूत के लड्डू

ये पटियाला की विशेष सौगात हैं। ये मेरा भी प्रिय व्यंजन भी है। किन्तु पंजाब के बाहर इसे लोग क्वचित ही जानते हैं। आप इनका आस्वाद लें तथा अपने प्रियजनों के लिए भी अवश्य ले जाएँ।

आध्यात्मिक उपहार

पंजाब पंजाबियों का प्रदेश है, विशेषतः सिख धर्म का पालन करने वालों का। इसलिए आपको यहाँ चारों ओर अनेक गुरूद्वारे दृष्टिगोचर होंगे। आपकी पंजाब यात्रा कैसे पूर्ण होगी यदि आप गुरूद्वारा ना जाएँ! इन गुरुद्वारों के बाहर आपको अनेक दुकानें दृष्टिगोचर होंगी जहाँ वे सभी वस्तुएँ रखी रहती हैं जिन्हें धारण करना एक सिख के लिए अनिवार्य होता है। उनमें से आप कुछ वस्तुएं आप पंजाब की स्मारिकाओं के रूप में अवश्य ला सकते हैं।

कड़ा

यह लोहे अथवा स्टील का एक ठोस कड़ा होता है जिसे एक सिख अपनी कलाई में अवश्य धारण करता है। जो भी गुरूद्वारे की पावन उर्जा से स्वयं को प्रभावित जानते हैं अथवा उससे सम्बंधित मानते हैं, उनके लिए यह एक उत्तम आध्यात्मिक उपहार है। इन्हें अपने साथ ले जाना भी आसान है। जो सिख नहीं हैं, वे भी इसे धारण कर सकते हैं। यह कलाइयों पर आकर्षक प्रतीत होता है। साथ ही ऐसी मान्यता है कि यह सभी विपदाओं से रक्षण करता है।

खंडा अथवा कंडा

कंडा सिख धर्म के अनुयायियों का एक पावन चिन्ह है। इसे आप लॉकेट के रूप में गले में धारण कर सकते हैं। अन्यथा इसे अपने घर में शुभ चिन्ह के रूप में रख सकते हैं। पाँच नदियों की भूमि पंजाब की यह विशेष स्मारिका है तथा यह आपको सदा आपके पंजाब भ्रमण का स्मरण कराती रहेगी।

धार्मिक पुस्तकें

यदि मेरे समान आपको भी पुस्तकों में रूचि है, तो आप छोटे आकार की धार्मिक पुस्तकें ले सकते हैं। इन्हें गुटका पुस्तक कहते हैं। इनमें दनंदिनी प्रार्थनाएं तथा स्तुतियाँ होती हैं। इनमें कुछ पुस्तकें हैं, नितनेम गुरबाणी, सुखमनी साहिब तथा जपुजी साहिब। आप यहाँ से गुरु ग्रन्थ साहिब की प्रति भी ले सकते हैं जो इन सभी स्मारिकाओं में सर्वाधिक पावन सौगात है। किन्तु गुरु ग्रन्थ साहिब सामान्यतः गुरुमुखी लिपि में ही उपलब्ध होती है जो पंजाबी भाषा की लिखित लिपि है।

लघु तलवारें एवं कटारें

आपको यहाँ उत्कृष्ट रूप से उत्कीर्णित छोटी छोटी तलवारें एवं कटारें भी मिल जायेंगी। तलवारें एवं कटारें पंजाबियों की पावन वस्तुओं में से एक हैं। किन्तु ये छोटी छोटी तलवारें एवं कटारें केवल दिखावे की होती हैं।

आधुनिक उपहार

1469(१४६९) के आधुनिक एवं आकर्षक उत्पाद

१४६९ एक आधुनिक समकालीन कंपनी है जो पंजाब से सम्बंधित विशेष वस्तुओं की विक्री करती है। १४६९ वास्तव में गुरु नानक देवजी के जन्म का वर्ष है। उन्हें सिख धर्म का संस्थापक माना जाता है।

मुझे उनकी कार्यशाला में भ्रमण करने में अत्यंत आनंद आया। वहाँ अनेक प्रकार की आकर्षक व आधुनिक वस्तुएं प्रदर्शित की हुई हैं। उनमें आधुनिकता एवं परंपरा का अद्भुत सम्मिश्रण देखा जा सकता है। उनका स्टोर पंजाब में नहीं अपितु दिल्ली के जनपथ पर स्थित है। इसके अतिरिक्त भी यदि उनकी कार्यशाला अथवा स्टोर कहीं हो तो मुझे उसकी जानकारी नहीं है।

यहाँ से आप ऐसे टीशर्ट ले सकते हैं जिन पर गुरुमुखी भाषा में सद्वचन लिखे होते हैं।

तो आप अपने आगामी पंजाब भ्रमण से इनमें से कौन सी स्मारिका अपने साथ लायेंगे?

अनुवाद: मधुमिता ताम्हणे

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पटियाला पंजाब के दर्शनीय पर्यटक स्थल https://inditales.com/hindi/patiala-punjab-paryatak-sthal/ https://inditales.com/hindi/patiala-punjab-paryatak-sthal/#respond Wed, 05 Apr 2023 02:30:34 +0000 https://inditales.com/hindi/?p=3022

पंजाब का एक राजशाही नगर है, पटियाला। यहाँ की महिलायें अत्यंत संभ्रांत मानी जाती हैं। पटियाला का बाजार भी महिलाओं में अत्यंत लोकप्रिय है जो इन संभ्रांत महिलाओं की साज-सज्जा की वस्तुओं के लिए प्रसिद्ध है। पटियाला अपनी राजसी धरोहरों के लिए भी प्रसिद्ध है। पटियाला जैसे एक छोटे नगर में भी अनेक दुर्ग, गढ़, […]

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पंजाब का एक राजशाही नगर है, पटियाला। यहाँ की महिलायें अत्यंत संभ्रांत मानी जाती हैं। पटियाला का बाजार भी महिलाओं में अत्यंत लोकप्रिय है जो इन संभ्रांत महिलाओं की साज-सज्जा की वस्तुओं के लिए प्रसिद्ध है। पटियाला अपनी राजसी धरोहरों के लिए भी प्रसिद्ध है। पटियाला जैसे एक छोटे नगर में भी अनेक दुर्ग, गढ़, महल जैसे कई ऐतिहासिक पर्यटन स्थल हैं। अनेक सुन्दर हवेलियाँ हैं, भिन्न भिन्न प्रकार के बाजार हैं तथा अनेक प्रकार की मिठाइयों की दुकानें हैं।

आईये, पंजाब के ऐतिहासिक धरोहरों से परिपूर्ण इस पटियाला नगर का भ्रमण करने मेरे साथ चलिए।

पटियाला के दर्शनीय स्थल

गुरुद्वारा दुख निवारण साहिब

यद्यपि मैंने अपना पटियाला भ्रमण इस प्रकार नियोजित तो नहीं किया था, तथापि मेरा पटियाला का अविस्मरणीय भ्रमण दुख निवारण साहिब नामक इस गुरुद्वारे से ही हुआ था।

निवारण साहिब

गुरुद्वारा दुःख निवारण साहिब
गुरुद्वारा दुःख निवारण साहिब

यह एक विशाल गुरुद्वारा है। उससे भी विशाल इसका जलकुंड है। दूर-सुदूर से भक्तगण अपने दुखों का निवारण करने एवं कष्टों से मुक्ति का मार्ग पाने यहाँ आते हैं। अपने कष्टों एवं दुखों से मुक्ति पाते ही वे ईश्वर के प्रति अपनी कृतज्ञता व्यक्त करने पुनः यहाँ आते हैं तथा इस पवित्र कुण्ड में डुबकी लगाते हैं।

ऐसी मान्यता है कि यदि निःसंतान दंपत्ति लगातार पाँच मास तक हिन्दू पंचांग के अनुसार पंचमी तिथि को यहाँ आये तथा प्रभु से संतान की मांग करे तो उनकी अभिलाषा अवश्य पूर्ण होती है।

गुरुद्वारा दुख निवारण साहिब का इतिहास

गुरुद्वारा दुःख निवारण साहिब का सरोवर - पटियाला
गुरुद्वारा दुःख निवारण साहिब का सरोवर

गुरुद्वारा दुख निवारण साहिब पटियाला का वह प्राचीनतम भाग है जो अपनी स्थापना से अब तक अखंड रूप से जीवंत है। ऐसा माना जाता है कि पुरातन काल में इस गुरूद्वारे के निकट स्थित गाँव के सभी गाँववासी सदा व्याधियों एवं निर्धनता से त्रस्त रहते थे। ऐसा कहा जाता है कि गुरु तेग बहादुर बहादुरगढ़ नामक एक स्थान पर पधारे थे जो यहाँ से अधिक दूर नहीं है।

तब एक गाँववासी भाग राम ने गुरु तेग बहादुर से भेंट की तथा उनसे गाँव आकर गाँव को आशीष देने की विनती की। सभी गाँववासियों के कष्टों का निवारण करने का अनुरोध किया। उसकी विनती स्वीकार करते हुए गुरु तेग बहादुर उस गाँव में पहुँचे तथा एक जलकुंड के समीप एक वट वृक्ष के नीचे बैठ गए। उस दिन से गाँव को सभी कष्टों व दुखों से मुक्ति प्राप्त हो गयी।

ऐसा माना जाता है कि उस समय से जलकुंड के जल में सभी कष्टों का निवारण करने की क्षमता समाहित हो गयी। आज भी भक्तगण जलकुंड एवं उसके जल को अत्यंत पावन मानते हैं। कुण्ड के जल में कुछ भी डालना निषिद्ध है। जल में पैर डालकर बैठने की भी अनुमति नहीं है।

गुरु ग्रन्थ साहिब का पाठ
गुरु ग्रन्थ साहिब का पाठ

गुरुद्वारा परिसर में एक छोटा संग्रहालय है। यह संग्रहालय सिख धर्म के इतिहास को प्रदर्शित करता है।

गुरुद्वारे में हमने चारों ओर भ्रमण किया। सम्पूर्ण परिसर की भूमि पर संगमरमर लगा हुआ है। शीतकालीन जनवरी मास के कड़ाके की ठण्ड में भी चारों ओर सन्निहित भक्ति की उर्जा के कारण हमें भूमि की शीतलता का आभास ही नहीं हो रहा था। भक्तगण गुरुद्वारे के भीतर एवं बाहर आनंद से बैठे हुए थे तथा गुरबाणी सुन रहे थे। मैं भी कुछ क्षण के लिए वहाँ बैठ गयी तथा वातावरण में समायी शान्ति का अनुभव लिया। किन्तु मुझे परम शांति का अनुभव कड़ा प्रसाद का भक्षण करने के पश्चात ही हुआ जो केवल गुरुद्वारों में ही मिलता है।

जिस स्थान पर गुरु तेग बहादुर साहिब बैठे थे, उस स्थान पर अखंड ज्योत प्रज्ज्वलित रहती है। हम में से कोई भी उस ज्योत में घी का दान कर सकता है।

इक ओमकार सतनाम वाहेगुरु
इक ओमकार सतनाम वाहेगुरु

सम्पूर्ण परिसर की भूमि पर जो संगमरमर लगा हुआ है, उसके कुछ भागों पर संगमरमर पर रंगीन मीनाकारी की हुई है। कुछ छतों पर भी कांच के आकर्षक अलंकरण हैं। गुरु ग्रन्थ साहिब के ऊपर स्थित मुख्य गुंबज सोने का है। इनके अतिरिक्त गुरुद्वारे के अधिकतम भाग शुभ्र श्वेत रंग में हैं।

गुरुद्वारा दुख निवारण साहिब के विषय में अधिक जानकारी प्राप्त करने के लिए गुरूद्वारे के वेबस्थल पर संपर्क करें।

मोहिंदरा कॉलेज

यदि पुरातन वास्तुकला शैलियों में आपकी रूचि है तो आप यहाँ रूककर, इसको निहारे बिना, इस आकर्षक संरचना के सामने से आगे नहीं जा सकते। सन् १८७५ में स्थापित यह विश्वविद्यालय देश के प्राचीनतम शिक्षण संस्थाओं में से एक है।

पटियाला का महिंद्रा महाविद्यालय
पटियाला का महिंद्रा महाविद्यालय

इस कॉलेज का नाम पटियाला के तात्कालिक महाराजा मोहिन्दर सिंह के सम्मान में रखा गया है। इस इमारत की सम्पूर्ण संरचना उस औपनिवेशिक काल की छवि प्रस्तुत करती है जिस काल में इसकी स्थापना हुई थी। क्या आप विश्वास करेंगे कि यह महाविद्यालय सम्पूर्ण उत्तर भारत में इस प्रकार का इकलौता महाविद्यालय था। यह महाविद्यालय कलकत्ता विश्वविद्यालय से संबद्ध था। सन् १९३७ तक यहाँ निशुल्क शिक्षा प्रदान की जाती थी। मुझे बताया गया कि इस महाविद्यालय में कन्याओं की शिक्षा आज भी निशुल्क है।

यूँ तो मोहिंदरा कॉलेज अथवा मोहिंदरा महाविद्यालय का नाम मेरी भ्रमण सूची में नहीं था, फिर भी मुझे महाविद्यालय की इस आकर्षक संरचना में भ्रमण करने, शीत ऋतु में सूर्य की सुखद किरणों के नीचे इसके उद्यान में बैठकर विद्यार्थियों को कक्षाओं में आते-जाते हुए देखने में आनंद आ गया था।

पटियाला के धरोहरों का पदभ्रमण

हमने अपने दिन का आरम्भ पटियाला के धरोहरों के पदभ्रमण से किया जो शाही समाधान के शाही स्मारकों, पुरातन हवेलियों, पटियाला के विशेष व्यंजनों की दुकानों आदि से होते हुए पटियाला नगर के हृदयस्थली स्थित किला मुबारक में समाप्त होती है।

अवश्य पढ़ें: पटियाला के धरोहरों का पदभ्रमण

शीश महल

पटियाला की मेरी बालपन की स्मृतियों में सर्वाधिक उज्जवल स्मृति शीश महल की ही है। किन्तु अपने इस भ्रमण में मैं इसका दर्शन बाहर से ही कर पायी थी क्योंकि नवीनीकरण कार्य के चलते यह स्मारक दर्शकों के लिए बंद था। गुलाबी रंग की इस संरचना में दो ऊँचे बुर्ज हैं जो इस महल के संरक्षक दुर्ग प्रतीत होते हैं। इसके छज्जे पर की गयी गचकारी एवं जालीदार कारीगरी बाहर से भी देखी जा सकती है।

पटियाला का प्रसिद्द शीश महल
पटियाला का प्रसिद्द शीश महल

बाहर से यह एक छोटा व सामान्य महल प्रतीत होता है किन्तु मैं विश्वास के साथ यह कहती हूँ कि इसके नवीनीकरण के पश्चात आप जब भी पटियाला आयें, इस प्रसिद्ध शीश महल का दर्शन अवश्य करें, यह आपको प्रसन्न कर देगा।

महल के समीप एक झील है जो अब सूख रही है। इस झील के ऊपर एक संकरा झूलता सेतु है जो महल को झील के उस तट से जोड़ता है। मेरी यात्रा के समय इस सेतु पर भी रखरखाव कार्य किया जा रहा था। मैं कल्पना करने लगी कि जल से लबालब झील के ऊपर बने झूलते सेतु पर से जाते हुए कितना आनंद आता होगा! विशेषतः संध्याकाल में सूर्योदय का आनंद उठाते हुए सेतु पार करना भावविभोर कर देता होगा!

प्राचीन मोती बाग या नेताजी सुभाष राष्ट्रीय क्रीड़ा संस्थान (NSNIS)

आपने पटियाला स्थित नेताजी सुभाष राष्ट्रीय क्रीड़ा संस्थान के विषय में अवश्य सुना होगा। यदि क्रिकेट पर आधारित चित्रपटों को छोड़ दें तो खेलों पर आधारित भारत के लगभग सभी चित्रपटों में इसी क्रीड़ा संस्थान को दिखाया जाता है। मेरा यह मानना है कि यह भारत के खिलाड़ियों का काशी है।

प्राचीन मोती बाग या नेताजी सुभाष राष्ट्रीय क्रीड़ा संस्थान
प्राचीन मोती बाग या नेताजी सुभाष राष्ट्रीय क्रीड़ा संस्थान

मूलतः यह पटियाला के महाराजा का विशाल महल था जिसे मोती महल कहा जाता था। इस संस्थान में खेल अकादमी के अतिरिक्त एक खेल संग्रहालय भी है। भारत में इसके अतिरिक्त भी कहीं इस प्रकार का खेल संग्रहालय है, ऐसा मेरी जानकारी में नहीं है।

खेल के क्षेत्र में भारत की उपलब्धियों को इस संग्रहालय में प्रदर्शित किया गया है। मुझे अप्पू को देख कर बड़ा आनंद आया। आपको स्मरण होगा, सन् १९८२ के एशियाई खेलों का शुभंकर अथवा mascot अप्पू नाम का हाथी था। पी टी उषा एवं मिल्खा सिंग जैसे महान खिलाड़ियों के चित्र देख गर्व का अनुभव हुआ।

महाराजा भूपिंदर सिंह द्वारा जीता रेल का डिब्बा
महाराजा भूपिंदर सिंह द्वारा जीता रेल का डिब्बा

प्राचीन मोती बाग के उद्यान में रेलगाड़ी का पुरातन डिब्बा है जो हरे रंग का है। यह रेल का डिब्बा एक रोचक कथा कहता है। कहा जाता है कि इस क्षेत्र में जब सर्वप्रथम रेलगाड़ी का आगमन हुआ था तब पटियाला के महाराजा भूपिंदर सिंह ने एक अंग्रेज को दौड़ की चुनौती दी थी। ऐसा तय किया गया था कि महाराजा घोड़े पर तथा वह अंग्रेज अपने नवीन रेल के डिब्बे में सवार होकर दौड़ में भाग लेंगे। महाराजा भूपिंदर सिंह इस दौड़ में विजयी हुए थे तथा उन्हें पारितोषिक स्वरूप यह रेल का डिब्बा प्रदान किया गया था। उनका यह पारितोषिक इस उद्यान में उस काल से खड़ा है।

पटियाला के द्वार

पटियाला के नगर द्वार
पटियाला के नगर द्वार

पटियाला नगर में अपने वाहन से भ्रमण करते हुए हम पटियाला के अनेक द्वारों पर रुके। इन द्वारों से संलग्न भित्तियों के कोई अवशेष अब नहीं हैं लेकिन ये द्वार अब भी अपना अस्तित्व संजोये हुए हैं जिनके मध्य से गाड़ियाँ ऐसे आती-जाती हैं मानो वे नगर में प्रवेश अथवा नगर से बहिर्गमन कर रहें हों।

बहादुरगढ़ दुर्ग

बहादुरगढ़ दुर्ग
बहादुरगढ़ दुर्ग

यह दुर्ग मुख्य नगर से किंचित दूरी पर स्थित है। अब इस दुर्ग को पुलिस प्रशिक्षण संस्थान में परिवर्तित कर दिया गया है जिसके कारण सामान्य नागरिकों के लिए इसके भीतर प्रवेश सीमित स्तर पर ही उपलब्ध है। हम इस दुर्ग के भीतर जाकर वहाँ स्थित गुरुद्वारा के दर्शन अवश्य कर सके। छोटी छोटी ईंटों द्वारा निर्मित इस दुर्ग की भित्तियाँ अब भी दृढ़ प्रतीत होती हैं।

काली देवी का मंदिर

पटियाला का काली देवी मंदिर एक प्राचीन मंदिर है। ऐसा कहा जाता है कि इस मंदिर में स्थापित काली देवी की मूर्ति को कोलकाता से लाया गया था। जिव्हा बाहर निकाली हुई काली देवी की ऐसी ही एक प्रतिमा कलकत्ता काली घाट पर भी है।

श्री काली माता मंदिर पटियाला
श्री काली माता मंदिर पटियाला

यह एक विशाल मंदिर है। इस मंदिर में देवी को चढ़ावे के रूप में मदिरा अर्पण की जाती है। मैंने सम्पूर्ण भारत में इससे स्वच्छ मंदिर नहीं देखा। यहाँ जिन छोटे छोटे पूड़ों में प्रसाद दिया जाता है, उन पर भी स्वच्छता बनाए रखने हेतु सन्देश लिखे हुए हैं। मंदिर की भूमि पर नंगे पैर चलते हुए मुझे बड़ा आनंद आ रहा था क्योंकि मुझे निश्चिंतता थी कि भूमि पर कहीं भी किसी भी प्रकार का खाद्य अथवा प्रसाद बिखरा हुआ नहीं है। मुख्य मंदिर के पृष्ठभाग में कुछ छोटे मंदिर हैं जिनमें भगवान शिव एवं उनके परिवार के अन्य सदस्यों की प्रतिमाएं हैं।

पटियाला के विशेष व्यंजन

पटियाला का एक अत्यंत ही विशेष व्यंजन है, सूत के लड्डू, जो संभवतः केवल पटियाला में ही मिलते हैं। इसके लिए लोग आपको गोपाल स्वीट्स में जाने के लिए कहेंगे। किन्तु मैं आपसे कहूंगी कि आप पम्मी पूरियां वाला जाएँ तथा ये लड्डू वहाँ से लें। ये पटियाला की सर्वोत्तम सौगात हैं।

सतरंगी गोलगप्पे
सतरंगी गोलगप्पे

पटियाला में एक दुकान है, सतरंगी गोलगप्पे वाला। इसकी लोकप्रियता का श्रेय जाता है, सात भिन्न भिन्न प्रकार के पानी वाले गोलगप्पों को। ये हैं:

  • जीरा
  • पुदीना
  • हिंग
  • काली मिर्च
  • मीठा
  • चटनी
  • दही वाला

आप जब भी पटियाला जाएँ तो सतरंगी गोलगप्पे वाले के पास इन सभी सात प्रकार के गोलगप्पों का आस्वाद अवश्य लें।

पटियाला के आसपास अन्य दर्शनीय स्थल

पटियाला के आसपास के खेत

आप पंजाब जाएँ तथा वहाँ के खेतों के दर्शन ना करें, यह कैसे हो सकता है ! इसलिए हमने एक फार्महाउस में जाने का निश्चय किया। किन्तु हमारा सही आनंद तो मार्ग में हमसे भेंट करने की प्रतीक्षा कर रहा था!

सड़क के एक ओर गुड़ बनाने की एक इकाई थी। मेरे जीवन का यह प्रथम अवसर था जब मैं गुड़ बनाने की प्रक्रिया को प्रत्यक्ष देख रही थी। आधे घंटे के भीतर गन्ने का ताजा रस गुड़ में परिवर्तित हो जाता है। इसके लिए गन्ने के रस को पकाकर गाढ़ा किया जाता है तथा उसे सांचों में डालकर ठंडा लिया जाता है।

हमें पात्र में से ताजे गुड़ को खाने में भी अत्यंत आनंद आया। पंजाबी आतिथ्य का क्या कहना! सर्वप्रथम उन्होंने हमें गन्ने का ताजा रस पिलाया। तत्पश्चात गुड़ खिलाया। उसके पश्चात चाय भी पिलाई।

गुड़ बनाने की प्रक्रिया का विडियो

इसके पश्चात हमने एक दुकान से सूखे मेवे मिश्रित गुड़ क्रय किया जिसका आस्वाद मैं घर आकर अब भी ले रही हूँ।

हमने देसी शैली में भी अपने दांतों से काटकर गन्ना खाया। पंजाब के विषय में कहा जाता है कि आप किसी के खेत से एक गन्ना उठायें तो वे आपको अपनी ओर से एक गन्ना और दे देते हैं।

हम कुछ खेतों में भ्रमण करने लगे जहाँ बिहार से आये कुछ कामगार आलू की फसल काट रहे थे। यद्यपि प्रमुख कटाई यंत्रों द्वारा की जा रही थी, तथापि चुनने एवं छाँटने का कार्य हाथों द्वारा किया जा रहा था। भारत के भोजन भण्डार माने जाने वाले पंजाब के खेतों में खड़े हो कर हमें अत्यंत गर्व का अनुभव हो रहा था।

विवाह पूर्व चलचित्रकारी
विवाह पूर्व चलचित्रकारी

पटियाला के आसपास के खेतों में विचरण करते हुए हम अंततः फार्महाउस पहुँचे। वहाँ पहुँच कर ज्ञात हुआ कि वह विवाह-पूर्व छायाचित्रीकरण के लिए एक लोकप्रिय स्थल है। अनेक स्थानों पर विशेष साज-सज्जा की गयी थी। अनेक स्थानों पर कैमरे लगे हुए थे। आकाश में ड्रोन द्वारा भी चित्रीकरण किया जा रहा था। अनेक कृत्रिम साधनों का प्रयोग किया जा रहा था जैसे सजीले जीप, मोटरसायकल, बग्घी आदि। ये दृश्य देख मुझे फार्महाउस का रत्ती भर भी आभास नहीं हुआ। पंजाब का यह नवीन उभरता आयाम देखना रोचक अवश्य लगा।

केवल पंजाब में ही प्राप्त होने वाले वे क्षण!

पंजाब की सडकों पर हमें कुछ ऐसे दृश्य दिखे जो कदाचित केवल पंजाब में ही दिखाई देंगे।

  • दुपहिया वाहन पर एक सम्पूर्ण दुकान!
दुपहिये पर पूरी दुकान
दुपहिये पर पूरी दुकान

सड़कों पर चाहे जितनी भीड़ हो, वे अपनी दुकान को आसानी से यहाँ से वहाँ ले जा सकते हैं।

  • मोटरसायकल पर खड़े होकर चलाने वाला पंजाबी नवयुवक

पटियाला के इन दर्शनीय स्थलों एवं आकर्षणों के दर्शनों के पश्चात हम खरीददारी करने के लिए अदालत बाजार भी गये। वहाँ का अनुभव साझा करने के लिए एक सम्पूर्ण संस्करण की आवश्यकता होगी।

अनुवाद: मधुमिता ताम्हणे

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जींद रियासत की भूतपूर्व राजधानी- संगरूर के पर्यटक स्थल https://inditales.com/hindi/sangrur-punjab-paryatak-sthal/ https://inditales.com/hindi/sangrur-punjab-paryatak-sthal/#comments Wed, 17 Feb 2021 02:30:14 +0000 https://inditales.com/hindi/?p=2201

कल के बिना आज संभव नहीं। किन्तु आज केवल उनकी स्मृतियाँ ही शेष रह गई हैं। बीते हुए कल की स्मृतियाँ मन-मस्तिष्क में सदा के लिए घर कर जाती हैं। छोटे-बड़े नगरों की अनेक स्मृतियाँ मेरे मस्तिष्क में भी हैं किन्तु पंजाब के संगरूर जैसे ऐतिहासिक स्थल की कोई बराबरी नहीं। संगरूर का संक्षिप्त इतिहास […]

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कल के बिना आज संभव नहीं। किन्तु आज केवल उनकी स्मृतियाँ ही शेष रह गई हैं। बीते हुए कल की स्मृतियाँ मन-मस्तिष्क में सदा के लिए घर कर जाती हैं। छोटे-बड़े नगरों की अनेक स्मृतियाँ मेरे मस्तिष्क में भी हैं किन्तु पंजाब के संगरूर जैसे ऐतिहासिक स्थल की कोई बराबरी नहीं।

संगरूर का संक्षिप्त इतिहास

भूतपूर्व जींद रियासत अब हरियाणा राज्य में एक जनपद है। किसी काल में संगरूर नगरी इसकी राजधानी थी। अब संगरूर पंजाब राज्य में एक जनपद है।

शाही समाधान संकुल - संगरूर
शाही समाधान संकुल – संगरूर

जींद का इतिहास हमें प्राचीन काल में ले जाता है। इसका नामकरण देवी जयंती अथवा जैन्ती देवी पर किया गया है जो विजय की देवी हैं। इसे पूर्व में जैन्तापुरी कहा जाता था। महाभारत काल में पांडवों ने जैन्ती देवी के सम्मान में यहाँ एक मंदिर का निर्माण कराया था। कौरवों के विरुद्ध अपने युद्ध में विजय प्राप्त करने की प्रार्थना लिए वे इस मंदिर में आते थे। पूर्व-महाभारत काल से १९ वी. सदी तक जींद का भूगोल अनेक परिवर्तनों का साक्षी रहा है। अंततः जींद नामक राज्य की रचना की गई जो अपभ्रंशित हो कर जिंद हो गई। उसकी राजधानी संगरूर को बनाई गई थी।

फुलकिया राज्य

जींद उन तीन फुलकिया राज्यों में दूसरा विशालतम राज्य था जिसका नाम उनके एक ही पूर्वज रहे फुल के नाम पर रखा गया था। तीन फुलकिया राज्यों में अन्य दो राज्य पटियाला एवं नाभा हैं। फुलकिया शासक भट्टी राजपूतों के वंशज है जो घोर अकाल के समय जैसलमेर राजस्थान से स्थलांतरित होकर यहाँ आए थे।

संगरूर की बारादरी की जाली
संगरूर की बारादरी की जाली

फुलकिया सिख समूह के महाराजा गजपत सिंह ने, जो सिख संधिकर्ताओं में से एक थे, सन् १७६३ में जींद राज्य की रचना की थे। सरहिन्द के अफगानी गवर्नर जैन खान को पराजित करने के पश्चात महाराजा गजपत सिंह को उनके अंश की यह भूमि प्राप्त हुई थी। भूमि के इस अंश में जींद, सफीदों, कुरुक्षेत्र के कुछ भाग, पानीपत तथा करनाल सम्मिलित हैं। सन् १७७२ में महाराज शाह आलम के नेतृत्व में दिल्ली सल्तनत के मालगुजारों ने गजपत सिंह को राजा की उपाधि प्रदान की थी।

कालांतर में जींद राज्य के क्षेत्र का उत्तर में सतलज नदी से और दक्षिण में रोहतक के गोहाना तक विस्तार किया गया। राजा गजपत सिंह ने सन् १७७२ से सन् १७८६ तक यहाँ राज किया। तत्पश्चात राजा भाग सिंह ने सन् १७८६ से सन् १८१९ तक तथा राजा फतेह सिंह ने सन् १८१९ से सन् १८२२ तक शासन किया। राजा फतेह सिंह के पुत्र राजा संगत सिंह ने सन् १८२२ से सन् १८३४ तक शासन किया। उन्होंने सन् १८३० में अपनी राजधानी जींद से नव-स्थापित संगरूर में स्थानांतरित की थी।

संगरूर शब्द की व्युत्पत्ति

स्थानीय अभिलेखों के अनुसार, संगरूर गाँव की स्थापना लगभग ४०० वर्षों पूर्व संगु नामक एक जाट ने की थी। सन् १७७४ तक यह नाभा रियासत का एक भाग था। जींद रियासत के महाराजा गजपत सिंह एवं नाभा रियासत के महाराजा हमीर सिंह के मध्य हुए अनबन के कारण जींद रियासत की सेना ने अमलोह, भादसों एवं संगरूर पर अपना नियंत्रण स्थापित किया। महाराजा हमीर सिंह को बंदी बना लिया गया। कालांतर में पटियाला के महाराजा के हस्तक्षेप के पश्चात जींद रियासत ने उन्हे मुक्त कर दिया। भादसों एवं अमलोह गाँव वापिस किए गए। किन्तु उन्होंने संगरूर अपने पास ही रखा।

जींद रियासत की राजधानी

सन् १८३० से संगरूर ही जींद रियासत की राजधानी रही है। किन्तु राज्याभिषेक का आयोजन अब भी जींद में ही किया जाता है जो उनका पैतृक पावन स्थल है।

जींद राज्य का चिन्ह
जींद राज्य का चिन्ह

राजा स्वरूप सिंह के पश्चात उनका पुत्र राजा रघुबीर सिंह उनका उत्तराधिकारी हुआ जिसने सन् १८६४ से सन् १८८७ तक गद्दी संभाली। उनके जीवनकाल में ही उनके पुत्र बलबीर सिंह का देहांत हो गया था। इस कारण उनके पोते महाराजा रणबीर सिंह ने सन् १८८७ से सन् १९४८ तक राजगद्दी का कार्यभार संभाला। उनके पश्चात महाराजा राजबीर सिंह राजा बने। उनके शासनकाल के पश्चात जींद रियासत का पेप्सु (पटियाला एवं पूर्वी पंजाब राज्य संघ) में विलय हो गया। आगे जाकर पेप्सु का एक बार फिर भारतीय संघ के संयुक्त पंजाब में विलय हुआ। कालांतर में इनका जींद एवं संगरूर में विभाजन हो गया। जींद हरियाणा का भाग बना तथा संगरूर पंजाब का एक भाग बन गया।

महाराजा रघुबीर सिंह ने संगरूर को एक प्रगतिशील एवं विशिष्ट राज्य की राजधानी के रूप में विकसित किया। वे इतने कर्मठ एवं उत्साही थे कि एक आदर्श राजधानी का निर्माण करने के लिए सुझावों एवं विचारों को एकत्रित करने हेतु उन्होंने दूर दूर तक व्यापक भ्रमण किया। सन् १८७० में मनमोहक नगरी जयपुर की रूपरेखा का अध्ययन करने के लिए उन्होंने भेस बदल कर जयपुर का भ्रमण किया। अंततः सन् १८७५ में उन्होंने अपनी राजधानी की रूपरेखा नियोजित की तथा उसका कार्य आरंभ किया। सरदार राम सिंह जैसे उस काल के सर्वोत्तम वास्तुविदों को इस कार्य के लिए नियुक्त किया। सरदार राम सिंह ने अमृतसर के अमृतसर खालसा महाविद्यालय की भी रूपरेखा बनाई थी। इसके अतिरिक्त उन्होंने लंदन के बकिंघम पैलिस के एक खंड एवं अनेक ऐसी संरचनाओं की भी योजना तैयार की थी।

ख्यातिप्राप्त महापुरुष 

संगरूर के अनेक निवासियों ने भारतीय फौज की १३ वी. पंजाब बटालियन में सेवाएं दी हैं। यह बटालियन पूर्व में प्रथम जींद इन्फन्ट्री अथवा पैदल सेना थी। संगरूर नगरी अनेक महान बहादुर सेनानियों एवं कमांडरों की नगरी रही है। काहन सिंह, रतन सिंह, गुरनाम सिंह, नाथा सिंह तथा जनरल गुलाम बेग खान उनमें से कुछ वीरों के नाम हैं।

यहाँ के लोगों को लाभप्रद रोजगार में संलग्न होने के लिए प्रशिक्षण दिया जाता था। यहाँ के लोग तलवार, बंदूक तथा कलम एक साथ रखते थे।

संगरूर के दर्शनीय धरोहर

यह नगरी एक ऐसा ऐतिहासिक केंद्र है जो ऐतिहासिक धरोहरों में रुचि रखने वाले पर्यटकों, शोधकर्ताओं, इतिहासकारों, छायाचित्रकारों एवं ब्लॉगर्स के लिए स्वर्ग है।

संगरूर नगरी के चारों ओर चार प्रवेश द्वार थे। उनके नाम थे, पटियाला द्वार, नाभा द्वार, सुनामी द्वार तथा धुरी द्वार। ये नाम उन समीप की नगरियों के ऊपर रखे गए थे जहां इन द्वारों से जाते मार्ग द्वारा पहुंचा जा सकता था। दुर्भाग्य से इन चारों द्वारों में से एक भी अब अस्तित्व में नहीं है।

शाही समाधान संकुल

शाही समाधान के मंदिर से शिखर
शाही समाधान के मंदिर से शिखर

नाभा द्वार के बाहर निर्मित इस संकुल के भीतर जींद रियासत के सभी शासकों की समाधियाँ हैं। महाराजा गजपत सिंह से महाराजा रणबीर सिंह तक तथा रियासत की सभी महारानियों की यहाँ समाधियाँ हैं। इन समाधियों की विशेषता यह है कि इनके शीर्ष किसी मंदिर के शिखर के समान प्रतीत होते हैं। इन संरचनाओं की ढलुआं छत किसी तटीय प्रदेश की संरचनाओं के समान भी प्रतीत होती हैं।

दो तलवारें लिए माँ काली
दो तलवारें लिए माँ काली

बनसार बाग बारादरी तथा दरबार

महाराजाओं के समय से बनसार बाग सज्जित पुष्पों से अलंकृत एक सुंदर विश्राम बाग था। इसमें एक बारादरी अर्थात् बैठक है जो चारों ओर एक जलधारा से घिरी हुई है।

बनसार बारादरी - संगरूर
बनसार बारादरी – संगरूर

इस बाग को राजपरिवार के मनोरंजन क्रीड़ाओं के लिए बनाया गया था। इस परिसर के बागों के मध्य एक राजसी बारादरी है। यह बारदारी महाराजा रंजीत सिंह द्वारा दीनानगर में बनाए गए इसी प्रकार के एक बारादरी से प्रेरित है। महाराजा रंजीत सिंह ने दीनानगर की बारादरी जींद रियासत को भेंट स्वरूप दी थी। आपको स्मरण करा दूँ कि महाराजा रंजीत सिंह की माँ महाराजा जींद की पुत्री थी जिनका विवाह शुकरचरिया मिसल में हुआ था।

घंटाघर

संगरूर का घंटाघर
संगरूर का घंटाघर

यह विरसती घंटाघर सन् १८७० में निर्मित है।

आयुधागार इमारत

इस आयुधागार का प्रयोग जींद रियासत के गोलाबारूद एवं युद्ध के अन्य उपकरणों के भंडार के रूप में किया जाता था।

निहंग सिंह वाला गुरुद्वारा

प्रथम विश्व युद्ध के समय प्रार्थना करने के लिए एक पुराने मस्जिद का प्रयोग किया गया था। सन् १९४७ के पश्चात इसे निहंग सिंह वाला गुरुद्वारा में परिवर्तित कर दिया गया।

सन् १९०५ में एक रेल स्थानक का भी निर्माण किया गया।

जींद सहकारी बैंक

जींद सहकारी बैंक
जींद सहकारी बैंक

जींद सहकारी बैंक की स्थापना सन् १९२२ में की गयी थी। सन् १९२२ में हुए इसके उद्घाटन के समय की एक प्राचीन शिलाखंड अब भी यहाँ उपस्थित है। सन् १९४७ में भारत में पंजीकृत होते समय जब जींद रियासत का पेप्सु (पटियाला एवं पूर्वी पंजाब राज्य संघ) में विलय हुआ था तब यह इमारत स्टेट बैंक ऑफ पटियाला को भेंट स्वरूप दी गई थी। सहयोगी स्टेट बैंकों के विलय के पश्चात अब इस इमारत में स्टेट बैंक ऑफ इंडिया की एक शाखा कार्यरत है। नगर के बीचों बीच बारा चौक में स्थित यह शाखा अपनी स्थापना शताब्दी सन् २०२२ में मनाने वाली है।

पशु चिकित्सालय

पशु चिकित्सालय - संगरूर
पशु चिकित्सालय – संगरूर

पशु चिकित्सालय का निर्माण सन् १९१० में शाही परिवार के घोड़ों एवं हाथियों की चिकित्सा-सुश्रूषा के लिए किया गया था। इस संकुल का प्रयोग उन परिवारों के लिए शरणार्थी शिविर के रूप में भी किया गया था जो सन् १९४७ में पाकिस्तान से स्थानांतरित होकर यहाँ आए थे। नगर के सार्वजनिक सिवल अस्पताल में महाराजा जॉर्ज पंचम के राज्याभिषेक का भी एक भाग है।

गवर्नर राज उच्च विद्यालय इमारत की संरचना भी एक धरोहर है। एक काल में यह जींद रियासत का अनाथ आश्रम था।

संगरूर दुर्ग

संगरूर दुर्ग
संगरूर दुर्ग

बनसार बाग संकुल के निकट इस दुर्ग के अवशेष देखे जा सकते हैं। यहाँ के निवासियों के अनुसार इस दुर्ग का निर्माण महाराजा गजपत सिंह के शासनकाल में सन् १७७५ से सन् १७८६ के आसपास हुआ था।

बदरूखान दुर्ग तथा बगरियाँ हवेली   

महाराजा रंजीत सिंह के शासनकाल में जींद रियासत की बढ़ती शक्तियों का मुख्य कारण महाराजा रंजीत सिंह की माँ बीबी कौर हैं जो जींद रियासत के महाराजा गजपत सिंह की पुत्री भी हैं। प्रचलित कथाओं के अनुसार महाराजा रंजीत सिंह का जन्मस्थल समीप स्थित एक गाँव, बदरूखान माना जाता है। वहाँ जींद रियासत के राजपरिवार का दुर्ग है।

बागरियां हवेली
बागरियां हवेली

कथाओं के अनुसार जब बीबी कौर का जन्म हुआ था, तब बगरियाँ हवेली के भाई गुद्दार सिंह को उन्हे आशीष देने के लिए आमंत्रित किया था। किन्तु योजना उस नवजात शिशु को दफनाने की थी। तब भाई गुद्दार सिंह ने राजा से ऐसा ना करने का आग्रह किया। कालांतर में वही कन्या पंजाब के सर्वोत्तम योद्धा को जन्म जो देने वाली थी। वस्तुतः, कालांतर में बीबी कौर महाराजा रंजीत सिंह की माँ बनी।

बगरियाँ हवेली एक प्राचीन गुरुद्वारा है। किसी समय यहाँ गुरु हरगोबिन्द जी ने लंगर सेवा को आशीष दिया था। आज भी इस लंगर में गीली हरी लकड़ी पर खाना पकाया जाता है।

राज राजेश्वरी मंदिर

राज राजेश्वरी मंदिर
राज राजेश्वरी मंदिर

दुर्ग के समक्ष माता काली देवी का मंदिर है। मंदिर के भीतर माता काली देवी की प्रतिमा उसी काली शिला में बनी है जैसी कोलकाता के काली बाड़ी में है।

गुरुद्वारा ननकियाना साहिब

गुरद्वारा ननकियाना साहिब
गुरद्वारा ननकियाना साहिब

गुरुद्वारा ननकियाना साहिब में सिखों के छठवें गुरु, गुरु हरगोबिंद जी ठहरे थे। यहाँ एक प्राचीन करेर का वृक्ष अब भी है जिस के तने से गुरु जी ने अपना अश्व बांधा था तथा उसकी छाँव में विश्राम किया था। यहाँ इस वृक्ष की पूजा अर्चना की जाती है।

वड्डा घल्लुघारा

वड्डा घल्लुघारा
वड्डा घल्लुघारा

वड्डा घल्लुघारा हमें कूप रोहिरा गाँव में हुए निहत्थे सिखों के वीभत्स नरसंहार का स्मरण कराता है। यह स्मारिका संगरूर के माले कोटला तहसील के समीप स्थित है।

संगरूर धरोहर संरक्षण संस्था

इस संस्था की स्थापना २८ जनवरी २०१४ में हुई थी। इसका ध्येय था, संगरूर का संरक्षण एवं पुनर्स्थापना ताकि इस नगरी को उसकी प्राचीन महिमा एवं सुंदरता पुनः प्राप्त हो सके। यह एक गैर लाभ संस्था है। इसके कार्यक्षेत्र हैं, धरोहरों के संरक्षण, जागरूकता अभियान, कला, संगीत व काव्यशास्त्र को बढ़ावा, संगीत वाद्यों की धरोहर, युवा लेखक, हस्तकला तथा अब पर्यटक विकास एवं बढ़ावा।

इस हरित प्रदेश में शब्दों, सुरों एवं कला के विश्व को नवीन ऊँचाइयाँ प्रदान करने हेतु यह संस्था विरासत एवं साहित्य उत्सव का आयोजन करता है।

कैसे पहुंचे?

काली माता मंदिर की चित्रकारी
काली माता मंदिर की चित्रकारी

संगरूर चंडीगढ़, दिल्ली, भटिंडा तथा लुधियाना से सड़क मार्ग द्वारा भलीभाँति जुड़ा हुआ है। यह नगर चंडीगढ़-भटिंडा राष्ट्रीय राजमार्ग तथा दिल्ली-जालंदर राजमार्ग पर स्थित है।

रेल मार्ग द्वारा संगरूर दिल्ली एवं लुधियाना से जुड़ा हुआ है।

यह एक अतिथि यात्रा संस्मरण है। इसे नवलदीप थरेजा ने लिखा है।


नवलदीप थरेजा संगरूर में ही शिक्षित एक वस्त्र अभियंता हैं। अपने व्यवसाय के अंतर्गत उन्हे भारत के अनेक ऐसे स्थानों की यात्रा करनी पड़ती है जिनके विषय में लोग अधिक नहीं जानते। उन्हे भारत देश के विभिन्न शिल्पकलाओं एवं वास्तु रत्नों के छायाचित्र लेने में विशेष रुचि है। उनमें पूर्ववर्ती रियासतें उन्हे अत्यंत प्रिय हैं। दिसंबर २०१९ में संगरूर नगर के विरासत उत्सव में उन्होंने अपनी छायाचित्रों की प्रदर्शनी लगायी थी। इंस्टाग्राम में उनके हैन्डल ‘बहरूपिया’ को अवश्य देखें।

यह संस्करण की रचना श्री करणवीर सिंह सिबिया के मार्गदर्शन में किया गया है। श्री करणवीर सिंह सिबिया संगरूर विरासत संरक्षण संस्था (Sangrur Heritage Preservation Society) के प्रमुख संस्थापक हैं। संगरूर को भारत के धरोहरों के नक्शे पर लाना उनका प्रमुख ध्येय है। उनसे आप ksibia54@gmail.com पर संपर्क कर सकते हैं।


अनुवाद: मधुमिता ताम्हणे

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पटियाला धरोहर यात्रा- पंजाब की राजसी नगरी की सैर https://inditales.com/hindi/patiala-heritage-yatra-punjab/ https://inditales.com/hindi/patiala-heritage-yatra-punjab/#respond Wed, 11 Jul 2018 02:30:26 +0000 https://inditales.com/hindi/?p=873

पटियाला से मेरी बाल्यकाल की स्मृतियाँ जुडी हुई हैं। बचपन में वहां आना जाना लगा रहता था। यहाँ के स्वादिष्ट सूत के लड्डू अब भी मेरे मुँह में पानी ले आते हैं। पटियाला अपने रंगीन बाज़ारों के लिए तो जाना ही जाता है, यहाँ से आप खरीददारी किये बिना नहीं लौट सकते। जब मैंने पंजाब […]

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पटियाला से मेरी बाल्यकाल की स्मृतियाँ जुडी हुई हैं। बचपन में वहां आना जाना लगा रहता था। यहाँ के स्वादिष्ट सूत के लड्डू अब भी मेरे मुँह में पानी ले आते हैं। पटियाला अपने रंगीन बाज़ारों के लिए तो जाना ही जाता है, यहाँ से आप खरीददारी किये बिना नहीं लौट सकते। जब मैंने पंजाब पर्यटन विभाग की विवरणिका में पटियाला के विरासती स्थलों की पदयात्रा के विषय में पढ़ा, मैंने इसे अपनी इच्छा सूची में तुरंत सम्मिलित कर लिया था। इस बार जब दिल्ली जाने का अवसर आया तो मैंने पटियाला एक बार फिर देखने का मन बना लिया।

तो आइये मेरे साथ, पटियाला के इस विरासती पदयात्रा का आनंद उठाने के लिए:

शाही समाधान – पटियाला

शाही समाधान - पटियाला
शाही समाधान – पटियाला

इसे आप एक विडम्बना ही कहिये कि पटियाला के विरासती स्थलों की पदयात्रा का आरम्भ होता है एक समाधि स्थल से। पटियाला के राजपरिवार का समाधि स्थल है यह शाही समाधान। पटियाला के निर्माता बाबा आला सिंह की समाधि, शाही समाधान की मुख्य इमारत के भीतर स्थित है। इसके पृष्ठ भाग में राजपरिवार के अन्य सदस्यों की छत्रियाँ अर्थात् समाधियाँ हैं।

संगमरमर पर तराशे सूचना पटल पर इस स्मारक के विषय में कुछ यह लिखा था – स्वर्गीय महाराज आला सिंह साहिब बहादुर की समाधि। इनका स्वर्गवास संवत १८२२ में हुआ था।

शाही समाधान की मुख्य इमारत मध्यकालीन भारतीय वास्तुकला का जीवंत उदाहरण है। इसके भीतर एक मुख्य कक्ष है जिसके बीचों बीच बाबा आला सिंह की समाधि है। इस समाधि के ऊपर उनकी स्मृति में चढ़ाए गए वस्त्रों का अम्बार लगा हुआ था। इस अम्बार के ऊपर बाबा आला सिंह का एक छोटा चित्र रखा हुआ था। उनका एक विशाल चित्र एक भित्त पर भी लटकाया हुआ था।

मुख्य कक्ष के चारों ओर एक गलियारा है। यह सम्पूर्ण संरचना एक मंच के ऊपर निर्मित है जिसके कोनों पर छोटी छोटी छत्रियाँ निर्मित हैं।

शाही समाधान - पटियाला की छत पर संगमरमर का चबूतरा
शाही समाधान – पटियाला की छत पर संगमरमर का चबूतरा

बाबा आला सिंह के राजपरिवार की अगली पीढी के अन्य सदस्यों की छत्रियाँ मुख्य इमारत के पृष्ठ भाग पर निर्मित हैं। इनमें करण सिंह तथा नरिंदर सिंह के अलावा अन्य किसी भी छतरी पर नाम पट्टिका उपस्थित नहीं थी। हाल ही में स्वर्गवासी राजमाता का अंतिम संस्कार भी यहीं किया गया था।

शाही समाधान का सर्वाधिक आकर्षक भाग है इसके ऊपर श्वेत संगमरमर में निर्मित एक खुला प्रांगण। इसके उद्देश्य की जानकारी मुझे नहीं मिल पायी। समाधि स्थल के ठीक ऊपर निर्मित होने के कारण कोई यहाँ पाँव नहीं रखता। अतः मैं सोच में पड़ गयी कि यह केवल सुन्दरता में वृद्धि करने का एक साधन है अथवा यह उस काल के युद्ध ग्रस्त पंजाब की किसी गाथा का बखान करता एक स्मारक है।

बाबा आला सिंह कौन हैं?

बाबा आला सिंघ की समाधी - शाही समाधान
बाबा आला सिंघ की समाधी – शाही समाधान

बाबा आला सिंह पटियाला के प्रथम सत्तारूढ़ प्रमुख थे जिनका जन्म भाई राम सिंह के तृतीय पुत्र के रूप में सन १६९१ में हुआ था। उनके कार्यक्षेत्र फुलकियां के अंतर्गत आज के पटियाला, नाभा तथा जींद क्षेत्र सम्मिलित थे। राज्य की प्रजा के संरक्षण के लिए उन्होंने कई छोटे युद्ध भी लढ़े थे। उन्होंने सन १७४५ में कच्चा पटियाला की स्थापना की थी। कालान्तर में उनके महल के चारों ओर एक गढ़ का निर्माण किया गया। किला मुबारक नामक यह गढ़ पटियाला नगर के ह्रुदय में स्थित एक विशाल दुर्ग है। शनैः शनैः आला सिंह की गद्दी प्रसिद्ध होती गयी और इस प्रकार एक वंश का उद्भव हुआ।

क्या आप जानते हैं पटियाला शब्द की व्युत्पत्ति कहाँ से हुई? पटियाला का अर्थ है आला की पट्टी अर्थात आला सिंह की भूमि।

बाबा आला सिंह का एक प्रसिद्ध व्याख्यान है जिसमें उन्होंने बताया कि एक समय अहमद शाह ने उन्हें अपने केश काट देने का आदेश दिया था। परन्तु आला सिंह ने उत्तर दिया था कि वे एक सच्चे सिख हैं। सिर कटा सकते हैं किन्तु अंत तक केश की रक्षा करेंगे। अंततः अहमद शाह ने आला सिंह द्वारा १,२५,००० रु. के भुगतान के पश्चात अपना आदेश वापिस ले लिया था। कदाचित धन ऐंठने की यह एक चाल थी।

कुछ क्षण शाही समाधान में व्यतीत करने के पश्चात हम वहां से जब बाहर निकले, पटियाला के इतिहास सम्बंधित जानकारी से हमारा ज्ञानभण्डार कुछ और संपन्न हो चुका था।

पटियाला की प्राचीन कोठियां

पटियाला के पुराने घर
पटियाला के पुराने घर

यहाँ से आगे बढ़ते हुए हमने कई प्राचीन कोठियों के दर्शन किये। इनमें कई कोठियां विस्तृत जालीदार मुंडेर से सज्ज थे।

पम्मी पूरियाँ वाला

पम्मी पूरियां वाला - पटियाला
पम्मी पूरियां वाला – पटियाला

पम्मी पूरियाँवाला हमारे विरासती पदयात्रा का दूसरा पड़ाव था। आप इसे विनोद समझकर हंस रहे होंगे। जी हाँ! पम्मी पूरियाँ वाला एक ३० से ४० वर्ष पुरानी दूकान है जो गर्मागर्म स्वादिष्ट पूरियाँ, छोले भठूरे तथा कद्दू की सब्जी के लिए मशहूर है। यूँ तो हमने इस पदयात्रा के पूर्व जलपान ग्रहण किया था। किन्तु यहाँ आयें तथा पूरियों का स्वाद ना चखें, यह कैसे हो सकता है। यद्यपि इन पूरियों को चखने के पश्चात भी मेरी सूत के लड्डू चखने की अभिलाषा ज्यों की त्यों थी।

आप सब मेरी बात से सहमत होंगे कि अपने समक्ष भोजन बनते देखना तथा गर्मागर्म पूरियों का सीधे आपकी थाली में परोसा जाना, इसका आनंद अतुलनीय होता है।

सुझाव: पटियाला विरासती पदयात्रा के पूर्व जलपान ग्रहण ना करें। यहाँ आकर पटियाला प्रकार से व्यंजनों का आनंद लेते यह पदयात्रा पूर्ण करें।

हवेली वाला मुहल्ला

हवेली वाला मुहल्ल्ले के द्वार
हवेली वाला मुहल्ल्ले के द्वार

ऊंची हवेलियों के मध्य स्थित संकरी गली पर जैसे ही हमने प्रवेश किया, मेरी स्मृति में बीकानेरी हवेलियों की छवि ताजा हो गयी। यूँ तो यह हवेलियाँ बीकानेरी हवेलियों की तरह भव्य नहीं हैं, तथापि इनके प्रवेशद्वार अत्यंत भव्य हैं। अधिकतर हवेलियों के द्वार लकड़ी पर नक्काशी कर बनाए गए हैं। यहाँ तक कि द्वार के चौखट भी अत्यंत चौड़े तथा आकर्षक हैं। निरपवाद रूप से द्वार के ऊपर गणेश की प्रतिमा उत्कीर्णित है।

कुछ झरोखे तथा उनके चौखट भी अत्यंत आकर्षक हैं, यद्यपि इन्हें देखने हेतु गर्दन ऊंची करनी पड़ती है। द्वारों पर पुता नीला धूसर रंग पटियाला का पसंसीदा रंग प्रतीत होता है।

इतनी आकर्षण हवेलियों को निहारना आसान नहीं था। संकरी गलियों में बिजली की तारें लटकी हुई थीं। दुपहिया वाहन तथा पैदल चलने वाले धक्का-मुक्की करते गली पार कर रहे थे।

मोहल्ले में कई छोटे-बड़े मंदिर भी थे। मैंने भी एक शिव मंदिर के दर्शन किये। यह एक छोटा सा मंदिर था। इसमें स्थापित शिवलिंग मार्ग से भी दिखाई देता है। मंदिर के चारों ओर एक संकरा परिक्रमा पथ है। मैं अन्य मंदिरों के दर्शन नहीं कर पायी क्योंकि उनके पाट उस समय बंद थे।

हवेली वाला मुहल्ला पटियाला के जानी-मानी हस्तियों का निवास स्थान है। कई परिवारों के पुरखे महाराजा के दरबार में सेवारत थे। पटियाला से आने वाले कई मंत्रियों के पुश्तैनी निवास भी हवेली वाला मुहल्ले में स्थित है। मुझे यहाँ कई जैन परिवार भी निवास करते दिखाई दिए।

छत्ता नानुमल

छत्ता नानुमल एक मुक्त चापाकार संरचना है जहां पटियाला के तत्कालीन दीवान आम जनता की शिकायतों को सुना करते थे। उन्ही के नाम पर इसका नामकरण भी किया गया है।

वर्तमान में यह एक गलियारा सदृश संरचना प्रतीत हो रही थी जो कई अनोखे किस्से कहानियां अपनी भित्तियों में संजोये हुए थी।

बर्तन बाजार

पटियाला धरोहर यात्रा - मानचित्र
पटियाला धरोहर यात्रा – मानचित्र

जैसे ही आप दालान जैसे छत्ता नानुमल से बाहर निकलें, आप अपने चारों ओर चमचमाते पीतल तथा स्टील के बर्तनों का भण्डार पायेंगे। जी हाँ! यह पटियाला का प्राचीन बर्तन बाजार है। सुदूर एक कोने में रंगकार परंपरागत पद्धति से पगड़ियां रंग रहे थे। दूसरे कोने में कलईवाले पीतल के बर्तनों को कलई कर चमका रहे थे। दुकानों के समक्ष लटकाए गए रंग-बिरंगे दुपट्टे इस परिदृश्य को चार चाँद लगा रहे थे। बड़े शहरों में तो यह आजकल मुश्किल से ही देखने को मिलता है।

हम प्रातःकाल ही पटियाला विरासत पदयात्रा करते यहाँ पहुंचे थे। अतः बर्तन बाजार में भी अब तक खरीददारों की भीड़-भाड़ आरम्भ नहीं हुई थी। दुकानों में विक्रेता अभी दुकान ज़माने में ही लगे हुए थे। उन्होंने हमें भरपूर छायाचित्रकारी करने का सुअवसर दिया तथा हमारे प्रत्येक शंका एवं प्रश्नों का ख़ुशी ख़ुशी उत्तर दिया।

मेरे अनुमान से यह कदाचित पटियाला निवासियों का पुश्तैनी जगप्रसिद्ध आथित्य-सत्कार ही है जो वे मुक्त ह्रदय से सबका स्वागत करते हैं। यहाँ तक कि मेरे उन्हें खरीददारी की अरुचि दर्शाने के उपरांत भी उनके सत्कार में मैंने कोई अंतर अनुभव नहीं किया। इसके विपरीत वे मेरी आवभगत में कोई कसर नहीं छोड़ रहे थे। चाय नाश्ते का आग्रह कर रहे थे। कहाँ प्राप्त होगी ऐसे भलमनसाहत तथा आवभगत!

दीवान देओड़ी

यह एक आकर्षक प्रवेशद्वार सदृश संरचना है जो वास्तव में द्वार ना होकर एक ऐसा स्थान था जहां से आम प्रजा शाही सवारी का अवलोकन करती थी। यह स्थान किला मुबारक के अत्यंत समीप निर्मित है।

किला मुबारक

किला मुबारक - पटियाला का ह्रदय स्थल
किला मुबारक – पटियाला का ह्रदय स्थल

पटियाला नगर का हृदयस्थल अर्थात् किला मुबारक हमारे इस पटियाला विरासती पदयात्रा का अंतिम पड़ाव था। इस किला मुबारक में विशाल प्रवेश द्वार था जिस पर कई नुकीली संरचनाएं थीं। इनका उद्देश्य शत्रु सेना द्वारा उपयोग में लाये जाने वाले हाथियों इत्यादि से दुर्ग का रक्षण करना था। इस विशाल प्रवेश-द्वार द्वारा किला मुबारक के भीतर प्रवेश करते ही आप स्वयं को चारों ओर से विशालकाय इमारतों से घिरा पायेंगे। इन्हें देखने के पश्चात ही इस दुर्ग की विशालता का सही अनुमान लगाया जा सकता है। द्वार से भीतर प्रवेश करने के पश्चात दृश्यमान विशालता ने जो मुझे झकझोरा, उसे समझने में मुझे कुछ क्षण लगे।

पटियाला किला मुबारक का इतिहास

पटियाले के किला मुबारक का निर्माण सन १७६४ में किया गया था। अर्थात् यह पटियाले का प्राचीनतम जाग्रत संरचना है। १०० एकड़ क्षेत्र में फैला यह किला मुबारक राजस्थानी तथा मुग़ल वास्तुकला का आकर्षक सम्मिश्रण है। हलके रंग में रंगे उत्कृष्ट फूलदार चित्रकारी देख जयपुर के आमेर दुर्ग की स्मृति मानसपटल पर उभर आती है। कई स्थानों पर कांगड़ा कलाकारों द्वारा की गयी सूक्ष्म चित्रकारी अत्यंत मनोहारी प्रतीत होती है।

बाबा आला सिंह की गद्दी - किला मुबारक - पटियाला
बाबा आला सिंह की गद्दी – किला मुबारक – पटियाला

वास्तव में किला मुबारक दो मुख्य भागों में बंटा हुआ है। किला अंदरुन, अर्थात् किले के भीतरी भाग में शाही निवास स्थल है। वहीं बाहरी भाग में सभा कक्ष, रसोईघर, अतिथीगृह तथा शीत कक्ष निर्मित है।

बाबा आला सिंह की गद्दी के दर्शनार्थ हमने एक और तोरणयुक्त द्वार के भीतर प्रवेश किया। हमारे बांयी ओर वह पवित्र स्थल था जहां बाबा आला सिंह पीठासीन होते थे। यह स्थल अत्यंत पूजनीय है। इसकी ऐसी आराधना की जाती है मानो गद्दी पर रखे बाबा आला सिंह के चित्र में बाबा स्वयं अब भी निवास कर रहे हों।

किला मुबारक की चित्रकारी

किला मुबारक का एक नक्काशी युक्त दरवाज़ा
किला मुबारक का एक नक्काशी युक्त दरवाज़ा

किला मुबारक के भीतर जाते हुए हमारी दृष्टी दोनों ओर की भित्तियों पर पड़ी। किसी काल में की गयी चित्रकारी के नाममात्र अवशेष ही भित्तियों पर शेष थे। इन्हें देख ह्रदय भारी सा हो गया। भित्तियों की आकर्षक चित्रकारी पर निष्ठुरता से चूना पोता गया है। संकरीले गलियारों तथा सीड़ियों के जाल को पार कर हम एक लघु कक्ष में पहुंचे। भीतर तेल की एक अखंड ज्योत जल रही थी। मुझे बताया गया कि यह ज्योत इस किले की स्थापना से अखंड जल रही है। इस ज्योत के एक ओर लकड़ियों के ढेर की जलती धूनी थी। यह सब सच्चे पाशा के सम्मान में अखंडित रखी हुई है।

ऊपरी माले पर रानियों का अन्तःपुर है। मुझे बताया गया कि एक राजा की एक रानी फ्रांसीसी थी। उनका महल विशेष यूरोपीय पद्धति के तोरणों से सज्ज था। यहाँ से आपको नीचे चौकोर बागों में निर्मित कई महल दिखाई देते हैं।

किला मुबारक का चित्रित कक्ष

किला मुबारक का चित्रित कक्ष - पटियाला
किला मुबारक का चित्रित कक्ष – पटियाला

किला मुबारक का सर्वोत्कृष्ट आकर्षण था उसका चित्रित कक्ष। यह मुख्यतः लाल तथा सुनहरे रंग में रंगा हुआ था। इसे देख मुझे बीकानेर के जूनागड़ दुर्ग के अमर महल का स्मरण हो आया। इन चित्रों में मुख्यतः भगवान् कृष्ण की लीलाओं सहित कुछ शाही किवदंतियों को चित्रित किया गया है। यह सब मेरी अपेक्षाओं से परे था। मैंने यह उम्मीद नहीं की थी कि पटियाला भी समृद्ध सूक्ष्म चित्रकारी में पटु कलाकारों का नगर था। इन रंगीन चित्रों द्वारा दर्शाई कथाओं को निहारते मैं मानो खो सी गयी। मैं यह ह्रदय से अपेक्षा करती हूँ कि पंजाब पर्यटन विभाग इनकी उत्तम रीत से रखरखाव करे तथा इन पर अभिलेख तैयार करे।

किला मुबारक के द्वारों में से एक द्वार हाथी दन्त का उपयोग कर बारीकी से उत्कीर्णित था।

किला मुबारक के दरबार का एक दरवाज़ा
किला मुबारक के दरबार का एक दरवाज़ा

मुख्य दरबार इस दुर्ग के बाहरी ओर निर्मित किला मुबारक का एक और मनमोहक आकर्षण है। यह एक विशाल कक्ष है जिसकी छत लगभग ७० फीट ऊंची है। श्याम वर्ण का इसका द्वार उत्कृष्ट ढंग से उत्कीर्णित है। छत से लटकाये गए अतिविशाल झूमर को देख आप दांतों तले उंगली दबा लेंगे। इस माप के झूमर को अब तक लटकाए रखने हेतु छत कितनी मजबूत होगी! एक प्राचीन विक्टोरिया बग्घी भी यहाँ पारदर्शी चद्दर से ढँकी रखी थी। संभवतः रखरखाव के कार्य के चलते इसे ढंका गया था।

सूचना – वर्तमान में किला मुबारक के रखरखाव का कार्य जारी है। अतः यहाँ के कुछ भागों के दर्शन की ही अनुमति है।

पटियाला विरासती पदयात्रा हेतु कुछ सुझाव

शाही समाधान की एक छतरी
शाही समाधान की एक छतरी

• पटियाला विरासती पदयात्रा हेतु लगभग १.५ की.मी. तक की पदयात्रा करनी पड़ती है।
• इस पदयात्रा का अधिकतर भाग संकरी गलियों से होकर गुजरता है जिसे पैदल ही किया जा सकता है।
• पटियाला विरासती पदयात्रा प्रत्येक शुक्रवार, शानिवार तथा रविवार को आयोजित किया जाता है। शीत ऋतु तथा ग्रीष्म ऋतु में समय अलग होता है। तथापि यह दिवस के पूर्वार्ध में ही आयोजित की जाती है।
• इस पदयात्रा का शुल्क नाममात्र है।
• यह पदयात्रा आप बिना किसी परिदर्शक के भी आसानी से पूर्ण कर सकते हैं। अपनी सुविधा के लिए आप यहाँ का नक्शा टिकट खिड़की से प्राप्त कर सकते हैं। आपकी सुविधा हेतु सम्पूर्ण मार्ग पर पटियाला विरासती पदयात्रा के सन्दर्भ में सूचना पट्टिकाएं स्थापित हैं जो समय समय पर आपकी जिज्ञासाओं को शांत करती रहती हैं।
• उपरोक्त सूचना के पश्चात भी मेरा सुझाव रहेगा कि आप इस पदयात्रा हेतु पंजाब पर्यटन द्वारा मान्यता प्राप्त परिदर्शक की सहायता अवश्य लें। यह परिदर्शक आपको प्रत्येक स्मारक के प्रष्ठभागीय कहानियों के साथ साथ आपके अन्य प्रश्नों के भी उत्तर संतोषजनक रूप से प्रदान कर सकते हैं।

अनुवाद: मधुमिता ताम्हणे

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