पुणे यात्रा Archives - Inditales श्रेष्ठ यात्रा ब्लॉग Mon, 12 Jun 2023 05:02:25 +0000 en-US hourly 1 https://wordpress.org/?v=6.7.2 पुणे की पेशवाई धरोहर – शनिवार वाड़ा , मंदिर और बाज़ार https://inditales.com/hindi/pune-peshwa-heritage-shaniwar-wada/ https://inditales.com/hindi/pune-peshwa-heritage-shaniwar-wada/#comments Wed, 13 Sep 2017 02:30:48 +0000 https://inditales.com/hindi/?p=312

एक समय था जब मैं पुणे के नारायण पेठ में रहती थी। अपनी भूली बिसरी यादों को फिर से ताज़ा करने की इच्छा हुई, इसलिए पिछले साल मैंने एक बार फिर पुणे के हवा पानी का अनुभव लिया| पुणे विरासती पैदल भ्रमण के तहत मैंने पुणे के शनिवार पेठ की सडकों पर चलने का आनंद […]

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शनिवार वाड़ा पुणे
शनिवार वाड़ा

एक समय था जब मैं पुणे के नारायण पेठ में रहती थी। अपनी भूली बिसरी यादों को फिर से ताज़ा करने की इच्छा हुई, इसलिए पिछले साल मैंने एक बार फिर पुणे के हवा पानी का अनुभव लिया| पुणे विरासती पैदल भ्रमण के तहत मैंने पुणे के शनिवार पेठ की सडकों पर चलने का आनंद उठाया। या यूं कहिये पेशवाकाल के पुणे की फिर एक बार खोज की।जाहिर है इतने सालों में पुणे में बहुत कुछ बदल गया था परन्तु कुछ था जो अब भी वैसा ही था। शुक्र है इस स्थान का मराठी पहलू अब भी यथावत है। आईये मैं आपको उन सब विषयों व स्थानों के बारे में जानकारी दूं जिनका आप अपने पुणे यात्रा के दौरान अनिवार्य रूप से अनुभव ले सकें, मुख्यतः पुणे में हर तरफ फैलीं पेशवाई धरोहरें।

इस पैदल भ्रमण की शुरुआत होती है शनिवार वाड़ा से, पेशवाओं का मध्यकालीन निवास स्थान, जहां से उन्होंने साम्राज्य संभाला।

शनिवार वाड़ा – पेशवाओं का निवास स्थल

शनिवार वाड़ा - खंडहरों के बीच उद्यान
शनिवार वाड़ा – खंडहरों के बीच उद्यान

पुणे के सबसे प्राचीन भाग, कस्बा पेठ के निकट स्थित हैं शनिवार पेठ एवं शनिवार वाड़ा। यह एक महल है जो चारों तरफ शहर से घिरा एक किले का आभास देता है। इसे हाल ही में और प्रसिद्धी दिलाई फिल्म बाजीराव मस्तानी जिसकी कहानी शनिवार वाड़े की ही कहानी है। मैं आपको आगाह करा दूं कि यदि आपने यह फिल्म देखी है और उसमें चित्रित भव्यता के दर्शन हेतु आप शनिवार वाड़ा पधारें तो निश्चित ही आपका मोहभंग हो सकता है। शनिवार वाड़ा एक सादा सरल स्थान है।इसके अग्रभाग व दुर्जेय प्रतीत होतीं दीवारों के भीतर ज्यादा कुछ बचा नहीं है।

दोनों तरफ बुर्ज के बीच स्थित एक ऊंचे लकड़ी के प्रवेशद्वार से हम इस वाड़े के भीतर गए। द्वार के ऊपर लगे एक छोटे फलक पर शनिवार वाड़ा लिखा हुआ था। टिकट खरीदने के उपरांत, अपनी नजर ऊपर फेर कर देखें तब आपको अपने आसपास की सब दीवारों पर भगवान् गणेश के धुंधले पड़ते चित्र दिखाई पड़ेंगे। भगवान् गणेश पेशवा वंश के कुलदेवता थे।

शनिवार वाड़ा का इतिहास

शनिवार वाड़ा - मुख्या द्वार
शनिवार वाड़ा – मुख्या द्वार

शनिवार वाड़े का निर्माण सर्वप्रथम १७३० ई. में पेशवाओं के निवासस्थान के रूप में किया गया था| यह राज परिवार की भव्य हवेली हुआ करती थी। विशाल प्रवेशद्वार, बुर्ज और बगीचों का समय समय पर समावेश किया जाता रहा। इन महलों के निर्माण हेतु प्रचुर मात्र में लकड़ी का इस्तेमाल किया गया था। दुर्भाग्यवश यह महल १८२८ में आग में ख़ाक हो गया था। कुछ बचा तो वह था इमारत की केवल नींव व फव्वारों के ढाँचे।

यहाँ लगी भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग की सूचना पट्टी शनिवार वाड़ा के महलों, कक्षों व बगीचों की उस समय की व्याख्या करती है जब शनिवार वाड़ा अपनी समृद्धि की चरम सीमा पर था। फलक यह भी जिक्र करतें हैं कि शनिवार वाड़े के भित्तिचित्र रामायण व महाभारत की कहानियाँ कहतें हैं। और यह भी कि इनकी चित्रकारी हेतु कलाकार सम्पूर्ण विश्व से यहाँ बुलाये गए थे। शनिवार वाड़े का सर्वोत्तम भाग, सात मंजिला संरचना का भी जिक्र इस फलक में किया गया है।

बगीचे की सैर करते वक्त आपको कुछ पुराने वृक्ष, हजारी कारंजे नामक एक सुन्दर फव्वारा और कई अन्य फव्वारें भी दृष्टिगोचर होंगे। कहा जाता है कि हजारी कारंजे में, अपने नामानुसार एक हज़ार फुहारें थीं। दीवारों के आसपास, किनारों पर कुछ संरचनाएं नष्ट होने से बच गयीं थीं। यहाँ स्थित ५ विशाल प्रवेशद्वार बहुत हद तक सुरक्षित बचीं रहीं| इनमें २ पूर्व की ओर, २ उत्तर दिशा में और १ दक्षिण दिशा में हैं। मुख्य प्रवेश द्वार को दिल्ली दरवाजा कहा जाता है क्योंकि इसका मुख उत्तर दिशा में दिल्ली की तरफ खुलता है।

दूसरा एक फलक पेशवाओं के वंशवृक्ष की जानकारी देता है।

मस्तानी दरवाजा

पेशवा वंशावली - पुणे
पेशवा वंशावली – पुणे

यह दीवार के अंत में स्थित छोटा परन्तु अनोखा द्वार है। कहानियाँ कहतीं हैं कि पेशवा बाजीराव जब मस्तानी को शनिवार वाड़ा लाये थे तब रानी ने उन्हें मुख्य प्रवेशद्वार द्वारा प्रवेश की अनुमति नहीं दी थी। तब बाजीराव ने मस्तानी के लिए विशेष रूप से इस द्वार का निर्माण करवाया था। यह दरवाजा कभी कभी मस्तानी के पोते अली बहादुर के नाम से भी जाना जाता है। अभिलेखों के हिसाब से इस द्वार को नाटकशाला द्वार भी कहा जाता है।

यहाँ स्थित गणपति रंग महल, अपने चारदीवारों के बीच घटित कई राजनैतिक युद्ध का साक्षी है।

नगारखाना

शनिवार वाडा की दीवारों पे गणेश
शनिवार वाडा की दीवारों पे गणेश

शनिवार वाड़े का सर्वाधिक संरक्षित भाग है पहली मंजिल पर मुख्य द्वार के ऊपर स्थित है नगारखाना। यह एक सुन्दर स्तंभों युक्त कक्ष है जहां से एक तरफ शनिवार वाड़ा व दूसरी तरफ बाहर स्थित पुणे शहर दिखाई पड़ता है। यहीं पेशवाई वास्तुकला की झलक बखूबी दिखाई पड़ती है। वह है केले के पुष्पों की नक्काशी जो इन स्तंभों पर की गयी है। यहाँ के अलावा इस नक्काशी को मैंने पुणे के अन्य प्राचीन स्मारकों पर भी देखा।

क्या आप जानते हैं शनिवार वाड़े ने यह नाम कहाँ से अर्जित किया? कहा जाता है कि महल के विशाल प्रवेशद्वार के सम्मुख शनिवार को बाज़ार भरा करता था। इसलिए इस इलाके को शनिवार वाड़ा कहा जाने लगा।

पुणे का मानचित्र
पुणे का मानचित्र

वास्तव में सप्ताह के अन्य दिनों के नाम पर भी पुणे में वाड़े हैं, जैसे बुधवार पेठ, शुक्रवार पेठ।

यह ध्यान देने योग्य है कि पेशवाओं ने इसे कभी महल या किला नहीं माना। वे इसे वाड़ा कहते थे जिसका अर्थ है निवासस्थान। तथापि अपने समृद्ध दिनों में यहाँ करीब १००० रहवासी निवास करते थे।

क़स्बा गणपति

क़स्बा गणपति मंदिर - क़स्बा पेठ - पुणे
क़स्बा गणपति मंदिर – क़स्बा पेठ – पुणे

क़स्बा पेठ स्थित क़स्बा गणपति पुणे के ग्राम देवता हैं। यह स्थान अब गाँव तो नहीं रहा जिसे पहले पूनावाड़ी कहा जाता था परन्तु क़स्बा गणपति अभी भी पुणे के मध्य में स्थित है ।

लोगों का मानना है कि बहुत समय पूर्व १६३० ई. में महारानी जीजाबाई अपने नवजात पुत्र शिवाजी के साथ पुणे में निवास करती थीं। उनके हाथ गणपति की एक प्रतिमा लगी। इस घटना को इश्वर का संकेत मानकर उन्होंने एक मंदिर की स्थापना करवाई व उस मूर्ति की प्राणप्रतिष्ठा की। उस समय से कस्बा पेठ गणपति, पुणे के पीठासीन देव माने जाते हैं। कहा जाता है कि इस मंदिर के समीप स्थित शनिवार वाड़े में गणेश चतुर्थी पर बड़ा उत्सव मनाया जाता था।

यह मंदिर अत्यंत छोटा होने के बावजूद अपने संरक्षण में स्थित गाँव का प्रतिबिम्ब है। मंदिर के अन्दर चित्र खींचने की मनाही है। इसकी तस्वीरें आप मंदिर के वेबसाइट पर देख सकतें हैं।

कस्बा पेठ के मार्ग पर स्थित पुराने घरों के मुंडेरों पर विक्टोरिया कालीन अलंकरण देखना ना भूलें।

नाना वाड़ा

लकड़ी पे केले के फूल - पेशवा वास्तुकला की पहचान
लकड़ी पे केले के फूल – पेशवा वास्तुकला की पहचान

शनिवार पेठ के बेहद समीप स्थित नाना वाड़ा, नाना फड़नवीस का निवास स्थान था। नाना फड़नवीस पेशवाओं के प्रशासक थे। १७८० ई. में बनाया गया लकड़ी का यह वाड़ा भी पेशवाई वास्तुकला की मिसाल है। इसके लकड़ी के स्तम्भ सरो वृक्ष के आकार के हैं जिसे लकड़ी के बने केले के फूलों से सजाया गया है।

नाना वाड़ा के पहिले मंजिल पर दीवानखाना है। मैंने जब अगस्त २०१६ में नाना वाड़ा में भेंट दी थी तब यहाँ भारी जीर्णोद्धार का कार्य आरम्भ था। मुझे यहाँ उछल कूद करके थोड़ी बहुत तस्वीरें लेने को मिलीं।

ताम्बडी जोगेश्वरी मंदिर

ताम्बडी जोगेश्वरी मंदिर के बाहर की दुकानें
ताम्बडी जोगेश्वरी मंदिर के बाहर की दुकानें

ताम्बडी जोगेश्वरी मंदिर के प्रवेश द्वार की ओर एक संकरी गली जाती है। यहाँ श्री जोगेश्वरी को अर्पित किये जाने हेतु, दुकानों में रखे रंगबिरंगे चोलियों के कपडे आपका स्वागत करते प्रतीत होते हैं। यहाँ की मुख्य मूर्ति स्वयंभू मानी जाती है अर्थात् स्वयं प्रकट होने वाली। इस मूर्ति का रंग लाल है जिसका मराठी भाषा में अर्थ ताम्बडी है।

ताम्बडी जोगेश्वरी मंदिर पुणे का सर्वाधिक प्राचीन मंदिर है। ताम्बडी जोगेश्वरी पुणे की पीठासीन ग्रामदेवी मानी जाती है। इस मंदिर में कई छोटे नक्काशीदार पत्थर लगे हुए हैं। मैंने यहाँ कई महिलाओं को देवी की पूजा आराधना करते देखा।

पेशवा शासकों के अभिलेख यह कहते हैं कि किसी भी सैनिक अभियान से पूर्व वे देवी का आशीर्वाद लेने यहाँ अवश्य आते थे।

दगडू शेट गणपति मंदिर

दगडू शेट गणपति मंदिर - पुणे
दगडू शेट गणपति मंदिर – पुणे

दगडू शेट गणपति मंदिर का निर्माण व स्थापना १८०० ई. में दगडू शेट नामक एक धनी व सत्यवादी हलवाई ने करवाया थी। १८९३ में पुणे में आये प्लेग में अपने पुत्र को खोने के पश्चात दगडू शेट व उनकी पत्नी अत्यंत दुखी थे। उनके गुरु श्री माधवनाथ महाराज ने उन्हें सांत्वना दी व उन्हें गणपति व दत्त की मूर्तियाँ तैयार कर, उनकी पूजा करते हुए, उन्हें पुत्रवत संभालने की सलाह दी। उन्होंने कहा कि यह दोनों देव, पुत्र के समान तुम्हारा नाम उज्जवल करेंगे। तब उन्होंने दत्त व गणेश की मूर्तियाँ तैयार करवाई जिनकी प्राणप्रतिष्ठा लोकमान्य तिलक के हाथों हुई। तत्पश्चात लोकमान्य तिलक के मन में इस मंदिर में सार्वजनिक गणेशोत्सव मनाने का विचार आया जो आगे आने वाले समय में भारत के स्वतंत्रता अभियान में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाला था।

आज यह मंदिर महाराष्ट्र का परम पूजनीय मंदिर है। गणेश चतुर्थी के उत्सव के दौरान पुणे शहर व महाराष्ट्र राज्य के जानेमाने व्यक्ति यहाँ दर्शनार्थ आते हैं। आम दिनों में आप इस मंदिर के समक्ष खड़े होकर भीतर की सारी पूजा विधियों को देख सकतें हैं। आपके और भगवान् की मूर्ति के बीच मात्र एक कांच की दीवार होती है| कई भक्तगण मूर्ति का चित्र लेते भी दिखाई पड़ते हैं।

इस मंदिर के शिखर को सराहने हेतु थोड़े अंतराल पर खड़े होना पड़ता है। तभी आप इसकी घंटी के आकार की, जालीदार काम से भरी अधिरचना का आनंद ले सकते हैं। रास्ते के उस पार से मंदिर की दीवार पर दो झरोखे दिखाई पड़ते हैं। निचली मंजिल की दीवारों पर संगमरमर का काम किया गया है। इस मंदिर की सर्वोत्तम विशेषता है गणेशजी की ऊंची व भव्य मूर्ति।

मंदिर के बाहर दुकानों में पुष्पहार, फल व अन्य पूजासामग्री थाल में सजा कर बेचीं जा रहीं थीं।

महात्मा फुले मंडई – पुणे

महात्मा फुले मंडई - पुणे
महात्मा फुले मंडई – पुणे

महात्मा फुले मंडई या मंडी केंद्रीय सब्जी बाज़ार है जिसकी स्थापना अंग्रेजों ने १८८५ में की थी। तत्पश्चात विभिन्न वाड़ों के बाहर स्थित भाजी बाज़ार भी यहाँ स्थानांतरित हो गए। यह एक अनोखा अष्टभुजाकार संरचना है जिसके मध्य एक मीनार है।

इस महात्मा फुले मंडी के आठों भुजाएं बाज़ार के ख़ास उपखंडों को समर्पित है। इसके नारियल बाज़ार में विचरण करते समय मैंने ध्यान दिया कि मेरे चारों केवल नारियल विक्रेता ही मौजूद थे।

महात्मा फुले मंडी दरअसल शुक्रवार पेठ में स्थित है।

विश्रामबाग वाड़ा

विश्रामबाग वाडा - पुणे
विश्रामबाग वाडा – पुणे

मेरे पैदल विरासती भ्रमण का आखरी पड़ाव था सुन्दर विश्राम बाग़ वाड़ा। लकड़ी की सुन्दर हवेली जिसके आँगन अब पुणे शहर की कहानियां कहते हैं। १९ वीं शताब्दी में बना विश्राम बाग़ वाड़ा पेशवा बाजीराव द्वितीय का निवासस्थान था। इस वाड़े का सबसे खूबसूरत हिस्सा है इसका लकड़ी का बना अग्रभाग, जिस पर बारीक नक्काशीयुक्त दीवारगीर अर्थात् ब्रैकेट है और व्यस्त रस्ते के ऊपर लटकती बालकनी उसकी खूबसूरती को चार चाँद लगातीं हैं।

पुणे के पेठ इलाके का मानचित्र
पुणे के पेठ इलाके का मानचित्र

पूनावाड़ी से पुण्यनगरी, पुणे शहर की इस यात्रा को दर्शाती एक प्रदर्शनी यहाँ लगी हुई थी। यह प्रदर्शनी पुणे शहर का इतिहास दोहराती है जो विभिन्न पेठों के विकास, जल प्रबंधन प्रणाली और यहाँ के रहवासियों के योगदान द्वारा पूनावाड़ी से पुण्यनगरी तक पहुंचा।

विश्रामबाग पुणे के काष्ठ स्तम्भ
विश्रामबाग पुणे के काष्ठ स्तम्भ

इस इमारत का पिछवाड़ा आम जनता हेतु खुला नहीं है। इसके कुछ भागों पर डाकघर व कुछ अन्य विभागों का कब्जा है। फिर भी मैं पिछवाड़े स्थित आँगन को देखने में सफल हुई। वह आँगन यकीनन आलिशान था| थोड़े जीर्णोद्धार के उपरांत यह वाड़ा पुणे शहर का विरासती गहना बनने में पूर्णतः सक्षम है।

तुलसीबाग राम मंदिर

पुणे के तुलसी बाग़ का राम मंदिर
पुणे के तुलसी बाग़ का राम मंदिर

व्यस्त बाज़ार को चीरकर आसमान में उठते तुलसीबाग़ राम मंदिर को आप नज़रंदाज़ नहीं कर सकते। औन्धे शंकु के आकार का शिखर, जिस पर भरपूर महीन चूना अथवा गचकारी का काम किया गया है, आपकी नज़रों से छुप नहीं सकता। मंदिर को घेरे तुलसीबाग़ का व्यस्त बाज़ार छोटी छोटी दुकानों से बना है जहां उपयोग की हर वस्तु उपलब्ध है।

इस मंदिर का आधार लकड़ी का था जिस पर ऊंचा शिखर कुछ समय पश्चात जोड़ा गया था| इन पर की गयी लकड़ी की नक्काशी देखने लायक है। उसी तरह रामायण के दृश्यों को दर्शाती चित्रकारी भी बेहद खूबसूरत है| परन्तु मंदिर के भीतर फोटो खींचने की मनाही है। राम मंदिर का शिखर हमें ओरछा और अयोध्या के राम मंदिरों की याद दिलाता है।

और पढ़ें – अयोध्या – राम और रामायण की नगरी

मेरा पैदल भ्रमण समाप्त हुआ एक बेनाम पवित्र स्थान पर जो मूला नदी के किनारे स्थित है। यहाँ एक शिवलिंग है जहां एक संगमरमर के पत्थर पर गीता के श्लोक लिखे हुए हैं।

मैंने यह यात्रा “दी वेस्टर्न रूट्स” के जयेश परांजपे के साथ, उनके दिशा निर्देशों पर पूर्ण की। “दी वेस्टर्न रूट्स” पुणे शहर में ऐसे कई पैदल भ्रमण आयोजित करतें हैं।

हिंदी अनुवाद : मधुमिता ताम्हणे

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आगा खान महल – पुणे में महात्मा गाँधी का कारावास https://inditales.com/hindi/aga-khan-palace-pune-hindi/ https://inditales.com/hindi/aga-khan-palace-pune-hindi/#comments Sun, 21 May 2017 02:30:41 +0000 https://inditales.com/hindi/?p=374

आईये आज मैं पुणे में यरवडा के समीप आगा खान के एक सुंदर महल से आपको अवगत कराती हूँ जहाँ महत्मा गाँधी ने अपने दो साल के कारावास का समय बिताया था। जब आप इस महल के बारे में जानेगें तो आप भी मेरी तरह सोचने पर मजबूर हो जायेगें कि क्या कारावास की जगह […]

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आगा खान महल - पुणे
आगा खान महल – पुणे

आईये आज मैं पुणे में यरवडा के समीप आगा खान के एक सुंदर महल से आपको अवगत कराती हूँ जहाँ महत्मा गाँधी ने अपने दो साल के कारावास का समय बिताया था। जब आप इस महल के बारे में जानेगें तो आप भी मेरी तरह सोचने पर मजबूर हो जायेगें कि क्या कारावास की जगह इतनी सुंदर हो सकती है।

आगा खान महल का इतिहास

सन् १८९२ में पुणे के लोगों को रोज़गार देने के लिये आगा खान महल का निर्माण किया गया था, इसलिए इस महल की जड़ें दया भाव एवं नेक विचारों में डूबी हैं। यह भवन १९ एकड़ में फेला हुआ है जिसमें ७ एकड़ में भवन का निर्माण किया गया है। इसको बनाने में १००० मजदूरों को पांच वर्ष का समय लगा और लागत आयी थी करीब बारह लाख रुपए।

आगा खान महल और महात्मा गाँधी

महात्मा गाँधी और कस्तूरबा गाँधी - आगा खान महल - पुणे
महात्मा गाँधी और कस्तूरबा गाँधी – आगा खान महल – पुणे

अगस्त १९४२ से मई १९४४ तक अपने कारावास के समय महात्मा गाँधी आगा खान महल में ही रहे थे। यहाँ पर वो अपनी पत्नी कस्तूरबा गाँधी, अपने सहायक महादेव देसाई और स्वतंत्रता सेनानी नायडू के साथ रहे। सच तो यह है कि कस्तूरबा गाँधी और महादेव देसाई का स्वर्गवास इसी कारावास के दौरान इसी महल में हुआ था। इस महल का एक कोना इन्हीं दोनों की समाधि को समर्पित है। इन दोनों समाधियों के पास महात्मा गांधीजी के अवशेष का कुछ हिस्सा रखा हुआ है। असल में यह समाधि नही है बस यहाँ पर इन दोनों का दाहसंस्कर किया गया था। इस जगह पर तुलसी के पौधों को लगाया गया है।

कस्तूरबा गाँधी को समर्पित एक मराठी कविता - आगा खान महल - पुणे
कस्तूरबा गाँधी को समर्पित एक मराठी कविता – आगा खान महल – पुणे

कस्तूरबा गाँधी की समाधि के पास उनको समर्पित मराठी में एक कविता लाल दीवार पर लिखी गयी है।

कस्तूरबा एवं महादेव देसाई की समाधी - आगा खान महल - पुणे
कस्तूरबा एवं महादेव देसाई की समाधी – आगा खान महल – पुणे

सच कहूँ तो, जब आप इस महल का भ्रमण करते हुए वहाँ के बागीचों, लम्बें गलियारों और बड़े बड़े कमरों को देखते हैं तो यह विचार आपके मन में अवश्य आता है कि क्या इस जगह को कारावास का नाम दिया जा सकता है। मैंने पाया कि इतने बड़े प्रांगण में घूमने फिरने पर किसी भी प्रकार की कोई पाबंदी नहीं थी। हो सकता है यहाँ रहनें वाले अपने कारावास के दौरान बाहर भी आते जाते हों। याद रहे यह वोह समय था जब मीडिया का बोल बाला नहीं था अन्यथा उस समय का विवरण हमें उस दौरान ही ज्ञात हो जाता।

आगा खान का परिचय

आगा खान महल का आगे का चित्र - पुणे
आगा खान महल का आगे का चित्र – पुणे

आगा खान तृतीय या सर सुल्तान मुहम्मद शाह आगा खान तृतीय इस्लामी मुस्लिम खोजा के ४८वें इमाम थे। वह आल इंडिया मुस्लिम लीग के संस्थापक थे। भारतवर्ष में मुसलमानों के अधिकारों के लिये उन्हीनें बहुत काम किया। आगा खान उनमें से एक थे जिहोनें भारत में मुसलमानों के लिये अलग राज्य बनानें पर जोर दिया था। आगा खान का जन्म कराची के एक उच्च परिवार में हुआ था। उन्होंने ईटन और कैंब्रिज से शिक्षा ग्रहण की। अपने जीवनकाल में उन्होनें ब्रिटिश सरकार से कुछ उपाधियाँ भी हासिल की। अपने नाम के आगे सर की उपाधि भी हासिल की। उनके पास दौड़ के कई घोड़े भी थे। अपने जीवन काल में उन्हीनें कई शादियाँ की। इजिप्ट के असवान में दफ़न होनें से पहले उन्होनें कई पुस्तकें भी लिखीं। उन पुस्तकों में उनकी यादें भी शमिल हैं।

आगा खान महल पुणे
आगा खान महल का पृष्ठ भाग –
पुणे

आगा खान चतुर्थ जो आगा खान तृतीय के पोते थे उन्होनें यह महल १९६९ में भारत को दान में दे दिया।सही मायने में यह महल गाँधी स्मारक निधि भारत सरकार की संपति है। यह हमारे राष्ट्रपिता को सम्मान देने का उनका एक तरीका था। अगर आप आगा खान तृतीय के बारे में और अधिक जानकारी पाने की इच्छा रखते हैं तो उनके विकिपीडिया पेज से प्राप्त कर सकते हैं।

आगा खान महल का भ्रमण

महात्मा गाँधी और कस्तूरबा की प्रतिमा - आगा खान भवन - पुणे
महात्मा गाँधी और कस्तूरबा की प्रतिमा – आगा खान भवन – पुणे

अगर आप शांति से टहलने की इच्छा रखते हैं तो इस महल से अच्छी कोई जगह नही हो सकती। इस पूरी इमारत के चारों ओर ऊँचे ऊँचे वृक्ष हैं। इतनें अधिक वृक्ष होने के कारण मैं इस महल की एक भी फोटो ठीक से लेनें में कामयाब नहीं हो पा रही थी। तब मैनें महसूस किया कि वृक्ष ही तो हैं जो इस महल की शोभा को बढ़ा रहें हैं।

यह महल हल्के पीले रंग और अपनी ढलावदार लाल छत के कारण बहुत सुंदर प्रतीत होता है। मुझे नहीं मालूम कि यह महल हमेशा से ही इतना सुंदर लगता था या गांधीजी की समृति स्वरुप इसको और अधिक महत्व देने के लिये सुंदर बनाया गया है।

गाँधी संग्रहालय

गाँधी जी के चित्र और पत्र - आहा खान महल - पुणे
गाँधी जी के चित्र और पत्र – आहा खान महल – पुणे

जो कमरे गांधीजी ने इस्तमाल किये थे अब उन्हें संग्रहालय में परिवर्तित कर दिया गया है। देखनें में वे कमरें बहुत ही स्वच्छ और साधरण से हैं। उन कमरों में गांधीजी द्वारा इस्तमाल की गयी वतुएँ जैसे बर्तन, चप्पल, कपड़े और पत्र आदि रखे हुए हैं।

महल में प्रवेश करते ही बड़े से कमरे में गांधीजी की मूर्ति रखी हुई है। गांधीजी की बड़ी-बड़ी तस्वीरें इतनी अच्छी तरह बनाई गयी हैं मानों उनमें जान हो। महात्मा गाँधी के आज़ादी के आन्दोलन के समय की भी कुछ तस्वीरें वहाँ पर हैं खास तौर पर वो तस्वीर जिसमें बहुत से लोगों के समक्ष महत्मा गाँधी के हाथ में भिक्षापात्र है। ऐसे चित्र अपने आप में कई चिन्ह समेटे हुए हैं।

गाँधी जी का चित्रांकन - आगा खान महल - पुणे
गाँधी जी का चित्रांकन – आगा खान महल – पुणे

दुसरे कमरें में चित्रावली के माध्यम से गांधीजी द्वारा एक छोटे बच्चे को गोद में उठाया दर्शया गया है। इस भवन में गांधीजी के जीवन की घटनाओं को रंगीन चित्रों के माध्यम से अंकित किया गया है। तस्वीरें उस कमरें में भी थीं जहाँ पर कमरे के बीचोबीच एक गोल मेज़ सात सात कुर्सियों के साथ रखी हुई थी। इनको एक बाड़े के अंदर सुरक्षित रखा गया था ताकि उन्हें कोई छू न सके।

गांधीजी द्वारा लिखा गया पत्र

एक बहुत ही रोचक चीज वहाँ रखी हुई थी और वो थी गांधीजी द्वारा उनके सहायक महादेव देसाई के देह्न्त पर लिखा गया पत्र। मुझे पूरा विश्वास है कि यह पत्र उस पत्र की नक़ल थी क्यूंकि गांधीजी की लिखाई अच्छी नहीं थी।

महल की उपरी मंजिल पर पीछे की तरफ कुछ कमरे थे परन्तु वो दर्शकों के लिये नहीं खुले थे मैंने अंदाज़ा लगाया कि उनका इस्तमाल कार्यालय स्वरुप किया जाता होगा।

मैनें बहुत से विद्यार्थियों को वहाँ पर फोटो खीचते हुए देखा खासकर फैशन फोटोग्राफी करते हुए जिसका मुख्य कारण यह सुंदर महल और उसका बगीचा था।

अब मैं भ्रमण करते हुए महल के पीछे पहुंच चुकी थी वहाँ से मुझे छत पर कांच का अहाता दिखा। उसने मुझे हैदराबाद के फलकनुमा महल की याद दिला दी। कुछ सोचनें के बाद मैनें महसूस किया कि ये दोनों महल समकालीन हैं और हो सकता है ये एक दुसरे की प्रेरणा हों। लेकिन एक सदी बीत जानें के बाद उनकी किस्मत उनका जीवन जितना अलग हो सकता था, है।

आगा खान महल की कुछ और रोचक चीजें

आगा खान महल का प्रवेश द्वार - पुणे
आगा खान महल का प्रवेश द्वार – पुणे

इनके अलावा भी आगा खान महल में और बहुत कुछ था जैसे –

  • एक पुस्तकालय
  • गाँधी साहित्य को बेचने वाली एक दुकान
  • खादी ग्रामोधोग की दुकान
  • औरतों का प्रशिक्षण केंद्र
  • यू एन एच आर सी दफ्तर
  • बच्चों का फ़िल्मी क्लब आदि

आगा खान महल में मनाये जाने वाले उत्सव

यहाँ जानें से पहले इन्टरनेट के माध्यम से मुझे पता चला था कि इस महल में हर समय भजन या गानें बजते रहते हैं। परन्तु यहाँ के कर्मचारी ने इस बात को मानने से इनकार कर दिया। खैर, जो दिन साल में यहाँ मनाये जाते हैं, वो हैं :

  • २४ जनवरी- राष्ट्रिय बालिका दिवस
  • २६ जनवरी- गणतन्त्र दिवस
  • ३० जनवरी- गांधीजी की पुण्यतिथि
  • २२ फरवरी- या महाशिवरात्रि
  • ८ मार्च- महिला दिवस
  • १५ अगस्त- स्वतंत्रता दिवस
  • २ अक्टूबर- गाँधी जयंती
  • १४ नवम्बर- बाल दिवस

पुणे के तड़क भड़क वाले कल्याणी नगर से मैं एक दिन शाम को इस एतिहासिक इमारत को देखने गयी। मैंने टिकिट खरीदा और बड़े ही आनंदपूर्वक मुझे इस बात से अवगत कराया गया कि मैं वहाँ के चित्र ले सकती हूँ। क्यूंकि ज्यादातर जगहों पर फोटोग्राफी निषेध होती है, मैंने ऊपर की ओर देखा और ईश्वर को धन्यवाद दिया कि मुझे यहाँ फोटो खीचनें की अनुमति है।

गाँधी जी के अन्य निवास :

मुंबई में मणि भवन

अम्हदाबाद में कोचरब आश्रम 

हिंदी अनुवाद – शालिनी गुप्ता

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