भक्ति संगीत Archives - Inditales श्रेष्ठ यात्रा ब्लॉग Wed, 20 Apr 2022 08:07:11 +0000 en-US hourly 1 https://wordpress.org/?v=6.7.2 २० उत्कृष्ट कृष्ण भजन – जन्माष्टमी के लिए बॉलीवुड की सदाबहार सौगात https://inditales.com/hindi/krishna-bhajan-hindi-films/ https://inditales.com/hindi/krishna-bhajan-hindi-films/#respond Wed, 10 Aug 2022 02:30:14 +0000 https://inditales.com/hindi/?p=2520

कृष्ण भजन अनेक रसों एवं भावनाओं से ओतप्रोत होते हैं। किसी में गोकुल में बाल गोपाल की चंचल क्रीड़ाओं का आनंद है तो किसी में उनकी युवावस्था में ब्रज भूमि की गोपियों संग की रासलीलाओं का बखान है। किसी में राधा का निश्छल प्रेम है तो किसी में मीरा की भक्ति है। कृष्ण के भजन […]

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कृष्ण भजन अनेक रसों एवं भावनाओं से ओतप्रोत होते हैं। किसी में गोकुल में बाल गोपाल की चंचल क्रीड़ाओं का आनंद है तो किसी में उनकी युवावस्था में ब्रज भूमि की गोपियों संग की रासलीलाओं का बखान है। किसी में राधा का निश्छल प्रेम है तो किसी में मीरा की भक्ति है। कृष्ण के भजन हर प्रकार के भक्तों की भक्ति से सराबोर होते हैं। कृष्ण के लिए लिखे गीतों में श्रृंगार रस एवं भक्ति रस की प्राधान्यता होती है। कृष्ण की भक्ति एवं प्रेम के अनेक रंगों को बॉलीवुड ने सुन्दरता से सजीव किया है। उनमें से कुछ भजन जो मुझे अत्यंत प्रिय है, मैं आपके लिए ले कर आयी हूँ।

बॉलीवुड के चित्रपटों से कृष्ण के कुछ भजन

कृष्ण भजन यह कालक्रम के अनुसार संग्रहीत सूची है।

मोहे पनघट पे – मुगल-ए-आजम (१९६०)

एक ख्यातिप्राप्त चित्रपट का एक सुमधुर गीत! इस गीत के आरम्भ में जन्माष्टमी उत्सव का दृश्य प्रदर्शित किया है। यह गीत स्वयं भी चंचल व मनोहर चेष्टाओं द्वारा कृष्ण एवं गोपियों के मध्य के प्रेम को उजागर करता है। सुन्दर परिधान एवं आभूषण धारण कर मधुबाला ने अपने सुकोमल हावभाव द्वारा उत्कृष्ट नृत्य प्रस्तुत किया है। यह गीत व नृत्य मंत्र मुग्ध कर देता है। यहाँ सुनिए.

मधुबन में राधिका नाचे रे – कोहिनूर (१९६०)

यह उन कुछ गीतों में से है जिसमें कृष्ण की अपेक्षा राधा के विषय में कहा गया है। ऐसा प्रतीत होता है मानो कृष्ण स्वयं अपनी सर्वप्रिय गोपिका, अपनी मनभावन सखी राधा का हमसे परिचय करा रहे हैं।

गोविंदा आला रे – ब्लफमास्टर (१९६३)

दही हाँडी उत्सव का किसी भी चित्रपट में कदाचित यह सर्वप्रथम प्रदर्शन था। कृष्ण अथवा गोविंदा के पात्र को अल्हड़ शम्मी कपूर एवं उनकी चंचलता के अतिरिक्त कौन पूर्ण न्याय दे सकता था? मोहम्मद रफी के मंत्रमुग्ध करते मधुर स्वर इस गीत का आनंद दुगुना कर देते हैं। इस गीत का श्वेत-श्याम चित्रीकरण हमें प्राचीन युग में ले जाता है तथा सोचने को बाध्य करता है कि उस समय सभी उत्सव शालीनता से मनाये जाते थे। इस गीत के अंत का चरमोत्कर्ष मुझे अत्यंत भाता है जिसमें अंततः दही की मटकी फोड़ी जाती है। इस चित्रीकरण में पुराने रुपयों पर अवश्य ध्यान दीजिये। निम्न विडियो में इसी गीत पर आज के महानगरों की दही हाँडी दिखाई गयी है। यदि ब्लफमास्टर चित्रपट में चित्रित गीत देखना चाहें तो यूट्यूब पर यहाँ देखें।

कृष्णा ओ काले कृष्णा – मैं भी लड़की हूँ (१९६४)

जब मैं इस संस्करण के लिए शोध कार्य कर रही थी तब मुझे इस गीत के विषय में अनायास ही ज्ञात हुआ। इस चित्रपट में मीनाकुमारी एक सांवली कन्या का पात्र निभा रही है। इस गीत में वह कृष्ण को उलाहना दे रही है कि कैसे कृष्ण का श्याम रंग उसके लिए अभिशाप बन गया है। यह गीत हमारे समाज की संकुचित मानसिकता को दर्शाता है। हमारे देश में प्राचीन काल से ही गौर वर्ण की त्वचा को प्राधान्यता दी जाती है। हमारे सभी प्रमुख देव श्याम वर्ण होने के पश्चात भी हमारे देश में गौर त्वचा की कामना की जाती है तथा श्यामवर्ण के व्यक्तियों की अवहेलना की जाती है। भगवान कृष्ण की तो ना केवल त्वचा, अपितु उनका नाम भी श्याम है।

बड़ी देर भई नंदलाला – खानदान (१९६५)

इस कृष्ण भजन में ब्रज की गोपिकाओं का नंदलाला के प्रति ललक एवं उत्कंठा को दर्शाया गया है। इसमें वे कृष्ण को पुकार रही हैं कि वे पुनः आयें एवं इस जगत की रक्षा करें।

कान्हा आन पड़ी मैं तेरे द्वार – शागिर्द (१९६७)

श्री कृष्ण की भक्ति से ओतप्रोत यह कृष्ण भजन मुझे उस समय की कल्पना करने पर बाध्य कर देता है जब भारतीय घरों में प्रतिदिन प्रातः भजन गाना कदाचित उनकी दैनिक जीवन शैली का एक अभिन्न भाग होता था।

ओ कन्हैया – राजा और रंक (१९६८)

यह एक कम प्रचलित किन्तु लम्बा गीत है जिसमें श्री कृष्ण की दो पत्नियां, रुक्मिणी एवं सत्यभामा कृष्ण का साथ पाने के लिए आपस में स्पर्धा कर रही हैं। वे कृष्ण के प्रति अपना प्रेम व्यक्त कर रही हैं तथा उनसे आग्रह कर रही हैं कि वे उनके संग चलें। कृष्ण अपनी दोनों पत्नियों की भक्ति एवं समर्पण देख निश्चय नहीं कर पा रहे हैं कि वे किसके संग जाएँ। संयोग से, कृष्ण की पत्नियों का उल्लेख करते गीत एवं भजन अधिक नहीं हैं। यह गीत एक नृत्य नाटिका के रूप में प्रस्तुत किया गया है जिसमें कविता एवं गायन के कथावाचन रूप को भी सम्मिलित किया है।

शोर मच गया शोर – बदला (१९७४)

इस गीत में कृष्ण जन्माष्टमी के उपलक्ष्य में आयोजित दही हाँडी के उल्ल्हास को प्रदर्शित करने का सफलतापूर्ण प्रयास किया है। गोपियों द्वारा ऊँचाई पर लटकाई दही की हाँडी तक पहुँचने के लिए गोपाल रूपी नवयुवकों का उत्साह दर्शनीय होता है। इसका संगीत शम्मी कपूर के ‘गोविंदा आला रे’ का स्मरण करता है।

श्याम तेरी बंसी पुकारे – गीत गाता चल (१९७५)

इस कृष्ण भजन में प्रत्येक व्यक्ति का श्री कृष्ण से सम्बन्ध दर्शाया गया है। इसमें यह बताया गया है कि भगवान हम सभी से समान रूप से प्रेम करते हैं। वे हम सब के हैं।

यशोमती मैय्या से – सत्यम शिवम् सुन्दरम (१९७८)

इस गीत से मेरी अनेक स्मृतियाँ जुड़ी हुई हैं। मैंने अपने बालपन में अनेक समारोहों पर इस गीत की प्रस्तुति की थी। हमारे पास इसका एल पी रिकॉर्ड था जिसमें यह गीत दो बार बजता था, एक जो यहाँ प्रस्तुत किया गया है तथा दूसरा वयस्क स्वर में गाया गया है। यह मेरा सर्वप्रिय कृष्ण भजन है। मैं प्रत्येक जन्माष्टमी के अवसर पर इसे अवश्य सुनती तथा गुनगुनाती हूँ।

मेरे तो गिरिधर गोपाल – मीरा (१९७९)

वाणी जयराम के भक्ति से ओतप्रोत स्वर में मीरा का यह भजन, ‘मेरे तो गिरिधर गोपाल’, चित्रपटों में प्रदर्शित, मीरा द्वारा रचित भजनों पर आधारित एकमात्र भजन है। इसे संगीत बद्ध किया था, पंडित रवि शंकर ने।

और पढ़ें: चित्तौडगढ़ में मीरा का मंदिर

तू मन की अति भोरी – गोपाल कृष्ण (१९७९)

सूरदास द्वारा रचित कृष्ण भजनों में से ‘मैय्या मोरी मैं नहीं माखन खायो’ यह मेरा सर्वप्रिय भजन है। किसी भी चित्रपट निर्माता ने अब तक इस गीत का प्रयोग किसी भी चित्रपट में नहीं किया है। इस गीत में बाल कृष्ण माता यशोदा से गुहार कर रहे हैं कि उन्होंने माखन चोरी कर नहीं खाया है। उनके बाल मित्रों ने उनके मुख पर माखन यूँ ही लगा दिया है। गोपियाँ व्यर्थ ही उनकी शिकायत कर रही हैं। इन भावनाओं को यदि किसी गीत ने उतना ही न्याय प्रदान किया है तो वह है, ‘तू मन की अति भोरी’। जिस बाल कलाकार ने कृष्ण की भूमिका की है, वह बाल कृष्ण के समान मनमोहक एवं चंचल है।

मच गया शोर सारी नगरी में – खुद्दार (१९८२)

दही हाँडी के उल्लासपूर्ण उत्सव को अमिताभ बच्चन एवं परवीन बाबी पर चित्रित किया गया है। गीत व नृत्य के आवरण में कुछ अनकही को भी कहा गया है। रोशन के संगीत निर्देशन में किशोर कुमार एवं लता मंगेशकर ने इस गीत को स्वर प्रदान किये हैं।

करना फकीरी फिर क्या –  बड़े घर की बेटी (१९८९)

मीरा द्वारा रचित भजनों में यह मेरा सर्वाधिक प्रिय भजन है। मूल भजन की इस प्रस्तुति में कुछ फ़िल्मी परिवर्तन हैं किन्तु इसके पश्चात भी यह एक सुन्दर भजन प्रस्तुति है।

मीरा चित्रपट में भी इस भजन को प्रदर्शित किया है। यहाँ उसका आनंद लीजिये।

आला रे गोविंदा – काला बाजार (१९८९)

 ‘गोविंदा आला रे’ का ही एक अन्य रूप! कदाचित इस गीत के नवीनतम संस्करण आते ही रहेंगे।

मोहे छेड़ो ना नन्द के लाला – लम्हे (१९९१)

इस चित्रपट में कई मधुर व लोकप्रिय गीत हैं किन्तु मुझे उस सब में यह गीत सदा स्मरण रहता है। इस गीत का अविस्मरणीय तत्व है, भगवान एवं भक्त के मध्य मैत्री सम्बन्ध। इस गीत में नायिका स्वयं की कल्पना ब्रज की एक सर्वसामान्य ब्रजबाला के रूप में कर रही है, ऐसी ब्रजभूमि जहां सभी ब्रजवासी कृष्ण से असीम प्रेम करते हैं। इस चित्रपट में नायिका श्री देवी अत्यंत सुन्दर दिखाई दी है। उनके मुखड़े के भाव भी अनमोल प्रतीत हो रहे हैं।

मोरे कान्हा जो आये पलट के – सरदारी बेगम (१९९६)

यह ठुमरी ब्रज की होली का चित्रण करती है जहां राधा एवं गोपिकाएं कान्हा संग होली खेलने हेतु सज्ज हो रही हैं। कान्हा की प्रतीक्षा करते हुए वे अपने काल्पनिक विश्व में ही कान्हा के संग होली खेल रही हैं। एक ओर कान्हा उन्हें रंगों में सराबोर कर रहे हैं तो दूसरी ओर राधा एवं गोपिकाएं उन्हें गारी सुना रही हैं।

राधा कैसे ना जले – लगान (२००१)

‘राधा कैसे ना जले’ यह गीत ब्रज में श्री कृष्ण की राधा एवं गोपिकाओं संग रासलीला के क्षणों को सजीव करता है। राधा की जो मनःस्थिति है, वही मनःस्थिति ब्रज की सभी गोपिकाओं की है। आशा भोंसले के स्वरों ने राधा की ईर्ष्या को पूर्ण सत्यता से उजागर किया है। वहीं उदित नारायण ने श्री कृष्ण के चंचल शांत स्वभाव का सुन्दर चित्रण किया है। यद्यपि यह कृष्ण भजन नहीं है, तथापि यह उन क्वचित गीतों में से है जिनमें कृष्ण की रासलीला के क्षणों को प्रदर्शित किया गया है।

वो किस्ना है –  किस्ना द वारियर पोएट (२००४)

यह कृष्ण की स्तुति का एक आधुनिक रूप है। मूल संगीत वाद्य के रूप में बांसुरी की तान का प्रयोग कर इस गीत को नयी उंचाईयों तक पहुँचाया है। सुखविंदर सिंग का प्रबल स्वर सोने पर सुहागा के समान है। मुझे सुखविंदर सिंग का स्वर अत्यंत भाता है।

मोहे रंग दो लाल – बाजीराव मस्तानी (२०१५)

यह हमारे चित्रपटों में प्रदर्शित उन क्वचित भजनों में से एक भजन है जिसमें शास्त्रीय संगीत एवं नृत्य दोनों का प्रयोग किया है। इसी कारण मैंने इस गीत को इस सूची में सम्मिलित किया है।

मैंने यह कृष्ण भजन सूची कैसे चुनी?

इस सूची के लिए भजनों एवं गीतों का चयन करते समय मैंने सर्वप्रथम उन भजनों तथा गीतों को चुना जो मुझे ज्ञात थे। जैसे ‘यशोमती मैय्या से’, ‘मच गया शोर’ इत्यादि। यूट्यूब ने मुझे इस कार्य में सहायता की जब उसने मुझे कुछ दुर्लभ भजनों का सुझाव दिया, जैसे ‘ओ काले कृष्णा’। ऐसे अनेक गीत प्रचलित हैं जिनमें कृष्ण, गोविंद अथवा राधा शब्दों का प्रयोग किया गया है किन्तु उनका श्री कृष्ण से कोई सम्बन्ध नहीं है । अतः मैंने उन्हें अपनी सूची में सम्मिलित नहीं किया है। कुछ गीत चित्रपट के कारण लोकप्रिय हैं, ना कि एक भजन के रूप में। मैंने उनका चयन भी नहीं किया। मैंने उन भजनों/गीतों को अधिक प्राधान्यता दी है जो श्री कृष्ण एवं उनके जीवन का गुणगान करते हैं तथा उनका उत्सव मनाते हैं।

यदि आप अन्य भजनों /गीतों के विषय में जानते हैं जो इस मापदंड के अनुरूप है, तो उनके विषय में टिपण्णी खंड में अवश्य लिखें। जय श्री कृष्ण!

अनुवाद: मधुमिता ताम्हणे

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गणपति भजन – शास्त्रीय और लोक स्तुतियाँ अनेक भाषाओँ में https://inditales.com/hindi/ganapati-bhajan-ganesh-chaturthi/ https://inditales.com/hindi/ganapati-bhajan-ganesh-chaturthi/#respond Wed, 27 Jul 2022 02:30:22 +0000 https://inditales.com/hindi/?p=2746

यह वर्ष का वह समय है जब चारों ओर का वातावरण गणेश चतुर्थी त्यौहार के उल्हास से ओतप्रोत होता है और गणपति भजन गुंजायमान होते हैं। यद्यपि गणेश चतुर्थी का पर्व विश्व के उन सभी क्षेत्रों में मनाया जाता है जहां भारतीय मूल के हिन्दू नागरिक निवास करते हैं, तथापि भारत में प्रमुखतः महाराष्ट्र, कर्णाटक, […]

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यह वर्ष का वह समय है जब चारों ओर का वातावरण गणेश चतुर्थी त्यौहार के उल्हास से ओतप्रोत होता है और गणपति भजन गुंजायमान होते हैं। यद्यपि गणेश चतुर्थी का पर्व विश्व के उन सभी क्षेत्रों में मनाया जाता है जहां भारतीय मूल के हिन्दू नागरिक निवास करते हैं, तथापि भारत में प्रमुखतः महाराष्ट्र, कर्णाटक, गोवा तथा तेलंगाना में गणेश चतुर्थी पर्व की भव्यता व गरिमा अद्वितीय है। किसी भी पावन अथवा महत्वपूर्ण आयोजन का आरम्भ गणेश भगवान् की आराधना से ही किया जाता है। गणेश भगवान् को प्रथम वंदनीय, सुखकर्ता एवं विघ्नहर्ता माना जाता है। वे भारत भर में सभी हिन्दुओं के सर्वप्रिय देवता माने जाते हैं।

गणपति भजन
गणपति भजन

यद्यपि गणेश भगवान् की स्तुति में अनेक भजन एवं गीत हैं, तथापि उनमें से कुछ भजन एवं गीत विशेषतः गणेश चतुर्थी के उत्सव में सर्वाधिक गाये एवं बजाये जाते हैं। आपके इस गणेश चतुर्थी पर्व के उल्हास को द्विगुणित करने के लिए यहाँ मैं उन्ही में से कुछ चुने भजन एवं गीत आपके लिए पुनः लेकर आयी हूँ।

भारत के अतिरिक्त, गणेश भगवान का प्रभाव पूर्वी एशिया के भी अनेक देशों में देखा जाता है। जैसे जापान(जापान में हिन्दू देवी देवता और भारतीय संस्कृति), थाईलैंड(राचाप्रसॉन्ग भ्रमण – बैंकॉक में हिन्दू देवी देवताओं के दर्शन), इंडोनेशिया इत्यादि।

श्लोकों में निहित सार्थक अर्थ, संतों व कवियों द्वारा रचित अप्रतिम काव्य, सभी भारतीय भाषाओं के सुप्रसिद्ध गायकों द्वारा गाई गयीं भक्तिपूर्ण रचनाएँ, पारंपरिक सुमधुर संगीत तथा भक्ति भाव से सराबोर गणेश के चिरकालीन भजन एवं गीत आपके समक्ष प्रस्तुत हैं।

पंचमुखी गणेश
पंचमुखी गणेश

बंगाल के बिश्नुपुर में भ्रमण करते समय मुझे पंचमुखी गणेश की यह अद्वितीय शैल प्रतिमा दृष्टिगोचर हुई थी जो कई सौ वर्ष पुरातन है ।

और पढ़ें: बिश्नुपुर का टेराकोटा मंदिर – बंगाल का दर्शनीय स्थल

मेरे इस संस्मरण में प्रस्तुत सभी भजनों एवं गीतों को पूर्ण भक्तिभाव से सुनने के लिए पर्याप्त समय की आवश्यकता होगी। आप इन्हें पुनः पुनः सुनना चाहेंगे। अतः मेरे इस संस्मरण को चिन्हित करना न भूलें।

संस्कृत भाषा में गणपति भजन

मैंने यहाँ कुछ भारतीय भाषाओं में गणेश भजनों का संकलन किया है। आपने अब तक राष्ट्रीय भाषा के अतिरिक्त अपनी मातृभाषा में इन भजनों को सुना होगा। कदाचित संस्कृत भजन भी सुने होंगे। अब कुछ अन्य भाषाओं में भी इन भजनों को अवश्य सुनिए। मेरा विश्वास है कि आपको उतने ही आनंद का अनुभव होगा। मैंने यहाँ गणपति के मुख्यतः संस्कृत, हिन्दी, मराठी, कन्नड़ इत्यादि भाषाओं के भजनों का संग्रह प्रकाशित किया है। इस संग्रह में कुछ भजन केवल संगीत वाद्यों द्वारा भी प्रस्तुत किये गए हैं। मैंने इस संग्रह में चित्रपटों में गाये गए भजनों को सम्मिलित नहीं किया है। उसी प्रकार आधुनिक प्रस्तुतियों को भी वर्ज्य किया है। अन्यथा सूची अत्यधिक लम्बी हो जाती जिसे एक संस्करण में समाहित करना असंभव होता।

मथुरा संग्रहालय में दशभुजा गणेश
मथुरा संग्रहालय में दशभुजा गणेश

और पढ़ें: मथुरा संग्रहालय के अद्भुत मणि – मथुरा स्कूल ऑफ आर्ट

वातापि गणपतिं भजे – येसुदास

‘वातापि गणपतिं भजे’ एक संस्कृत कीर्ति गीत है जिसके रचनाकार दक्षिण भारत के कवि मुथुस्वामी दिक्षितर हैं। यह मुथुस्वामी दिक्षितर की रचनाओं में से सर्वश्रेष्ठ ज्ञात काव्य है तथा कर्नाटक संगीत में सर्वाधिक लोकप्रिय रचना है। पारंपरिक रूप से इस स्तोत्र का स्तवन किसी भी कर्नाटक संगीत कार्यक्रम के आरम्भ में किया जाता है। इस काव्य की रचना तमिल नाडू में २-३ शताब्दी से भी पूर्व की गयी थी जिसे यहाँ येसुदास जी ने अपनी प्रभावशाली स्वर में प्रस्तुत किया है। यह कदाचित संगीत के विश्व को अब तक का सर्वोत्तम योगदान है।

यहाँ सुनिए

के. जे. येसुदास जी भारतीय शास्त्रीय संगीत, भक्ति संगीत एवं चित्रपट गीतों के सुप्रसिद्ध गायक हैं। उन्हें भारत सरकार ने पद्मश्री, पद्म भूषण व पद्म विभूषण की उपाधियों से विभूषित किया है।

येसुदास जी द्वारा प्रस्तुत ‘वातापि गणपतिं भजे’ की एक घंटे लम्बी प्रस्तुति यहाँ सुनिए

भारतीय शास्त्रीय संगीत के विभिन्न गणमान्य संगीतज्ञों द्वारा प्रस्तुत ‘वातापि गणपतिं भजे’ के अन्य संस्करण

  • एम. एस. सुब्बलक्ष्मी – कर्नाटक संगीत की महान शास्त्रीय गायिका एम. एस. सुब्बलक्ष्मी जी द्वारा प्रस्तुत ‘वातापि गणपतिं भजे’ यहाँ सुनिए। एम. एस. सुब्बलक्ष्मी जी प्रथम संगीतज्ञ हैं जिन्हें भारत का सर्वोच्च सम्मान, भारत रत्न से विभूषित किया गया है। कर्नाटक संगीत में उनका योगदान अविस्मरणीय है।
  • डॉ. एम्. बालमुरलीकृष्ण – इनके द्वारा प्रस्तुत ‘वातापि गणपतिं भजे’ यहाँ सुनें। पद्म विभूषण से विभूषित डॉ. बालमुरलीकृष्ण कर्नाटक संगीक के महान गायक हैं।
  • घंटसाला वेंकटेश्वर राव – इनके द्वारा प्रस्तुत ‘वातापि गणपतिं भजे’ यहाँ सुनें। पद्म श्री से विभूषित घंटसाला वेंकटेश्वर राव जी महान संगीतज्ञ एवं पार्श्वगायक हैं। इन्हें गान गन्धर्व भी कहा जाता है।
  • एस. जानकी – इनके द्वारा प्रस्तुत ‘वातापि गणपतिं भजे’ यहाँ सुनें। डॉ. जानकी दक्षिण भारत की सर्वाधिक लोकप्रिय बहुमुखी पार्श्वगायिका हैं। उन्होंने अनेक भाषाओं में कई लोकप्रिय गीत गाये हैं। २०१३ में उन्हें पद्म विभूषण की उपाधि प्रदान की गयी थी किन्तु कुछ कारणों से उन्होंने उसे नकार दिया था।
  • पंडित अजोय चक्रबोर्ती – राग हंसध्वनी में पंडित अजोय चक्रबोर्ती द्वारा गाया ‘वातापि गणपतिं भजेहं’ यहाँ सुनें। पंडित अजोय चक्रबोर्ती हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत के सुप्रसिद्ध गायक हैं।

संगीत वाद्य पर बजाया गया ‘वतपि गणपतिं भजे’

  • मैन्डोलिन पर यू. श्रीनिवास – इनके द्वारा बजाया गया ‘वातापि गणपतिं भजे’ यहाँ सुनें। पद्म श्री से विभूषित श्रीनिवास जी एक खाति-प्राप्त मैन्डोलिन वादक थे तथा कर्नाटक शास्त्रीय संगीत के प्रख्यात संगीतकार थे।
  • डॉ. कादरी गोपालनाथ – डॉ. कादरी गोपालनाथ द्वारा सैक्सोफोन पर बजाया गया ‘वातापि गणपतिं भजे’ यहाँ सुनें। पद्म श्री से विभूषित डॉ. कादरी गोपालनाथ सैक्सोफोन पर कर्नाटक संगीत बजाने वाले अग्रदूतों में से एक हैं।

श्री विघ्नेश्वर सुप्रभातं

यहाँ सुनें।

गणेश मंत्र – ॐ गण गणपतये नमो नमः – १०८ आवर्तन

जय गणेश जय गणेश – सूर्य गायत्री एवं कुलदीप एम. पै. द्वारा गाया गणेश पंचरत्नं

गणेश पंचरत्नं सदियों पूर्व आदि शंकराचार्य द्वारा रचित श्लोक है।

सुश्री सूर्य गायत्री एक विलक्षण बाल प्रतिभा है जिसने अपने कर्नाटक शास्त्रीय संगीत गायन के द्वारा यू-ट्यूब पर धूम मचाई हुई है। कुलदीप जी कर्नाटक शास्त्रीय संगीत के प्रसिद्ध गायक, संगीतज्ञ, संगीतकार एवं निर्माता हैं।

गणेश श्लोक – गजाननं भूतगणादि सेवितं

महा गणपतिं मनसा स्मरामि – येसुदास

येसुदास जी के स्वरों से अलंकृत कवि मुथुस्वामी दिक्षितर द्वारा रचित एक अन्य प्रसिद्ध रचना

मराठी भाषा में गणपति की आरतियाँ

भारत में गणेश पूजन का सार्वजनिक समारोह मूलतः भारत स्वतंत्रता आन्दोलन से आरम्भ हुआ था। बाल गंगाधर तिलक जैसे राष्ट्रवादी नेताओं ने गणपति पूजन के सार्वजनिक आयोजनों का आरम्भ किया था जिसके द्वारा उन्होंने जनमानस में राष्ट्रवाद जगाने का प्रयास किया था। लोकमान्य तिलक एक भारतीय राष्ट्रवादी नेता, अध्यापक, समाज सुधारक एवं वकील थे जिन्होंने भारत स्वतंत्रता आन्दोलन के प्रारंभिक काल में सक्रिय भाग लिया था। ‘स्वराज्य मेरा जन्म सिद्ध अधिकार है। मैं इसे लेकर ही रहूँगा’ यह उनके द्वारा दिया नारा था जो भारतीय इतिहास में अमर हो गया है। कुछ वर्षों पूर्व मैं उनके गृहनगर रत्नागिरी गयी थी जो कोंकण समुद्रतट का एक दमकता मणि है। रत्नागिरी के साथ मैंने निकटवर्ती गणपतिफुले नामक स्थान का भी भ्रमण किया था। गणपतिफुले में लम्बोदर गणपति मंदिर अत्यंत लोकप्रिय है जो समुद्र तट पर स्थित है।

महाराष्ट्र में गणपति उत्सव एक प्रमुख उत्सव है जिसे सार्वजनिक एवं घरेलु, दोनों स्तर पर धूमधाम से मनाया जाता है। महाराष्ट्र में मुख्यतः मुंबई एवं पुणे के गणेश उत्सव एवं उनकी धूम जगप्रसिद्ध है। अनेक कलाकार अपनी कला का प्रदर्शन कर भव्य एवं आकर्षक पंडाल निर्मित करते हैं। गणेश उत्सव के समय महाराष्ट्र के इन प्रमुख नगरों का भ्रमण करें तथा उसके उल्हास में सम्मिलित होइए।

सम्पूर्ण भारत में महाराष्ट्र राज्य का गणेश उत्सव सर्वाधिक भव्य एवं उल्हासपूर्ण होता है। इसीलिए गणेश भगवान का स्मरण होते ही मराठी भाषा के भजन एवं आरतियाँ मस्तिष्क में उभरकर आती हैं। उन्ही में से कुछ लोकप्रिय भजन एवं आरतियाँ यहाँ प्रस्तुत हैं।

और पढ़ें: पुणे का शनिवार वाड़ा एवं पेठ

प्रथम तुला वंदितो – वसंतराव देशपांडे एवं अनुराधा पोडवाल

वसंतराव देशपांडे जी एक सुप्रसिद्ध हिन्दुस्तानी शास्त्रीय गायक थे। वे नाट्य संगीत के एक महान कलाकार थे। पद्मश्री से अलंकृत सुश्री अनुराधा पोडवाल एक लोकप्रिय पार्श्वगायिका हैं। उन्होंने अनेक लोकप्रिय भजन भी गाये हैं।

सुखकर्ता दुःखहर्ता – गणपति की आरती

इस आरती की रचना समर्थ रामदास स्वामी ने की थी। गणेश भगवान के मयूरेश्वर रूप से प्रभावित होकर रामदास स्वामी ने इस आरती की रचना की थी।

भारत रत्न विभूषित सुश्री लता मंगेशकर एवं अनेक अन्य प्रसिद्ध गायकों ने इन मराठी भजनों एवं आरतियों को अपने सुमधुर स्वर में गया है।

तुज मागतो मी आता

गजानना श्री गणराया

उठा उठा हो सकळीक

गणराज रंगी नाचतो

जयदेव जयदेव जय मंगल मूर्ती – आरती

सुश्री साधना सरगम द्वारा गाया जयदेव जयदेव का एक अन्य संस्करण यहाँ सुनें। साधना सरगम एक लोकप्रिय भारतीय पार्श्वगायिका हैं। वे भक्ति गीत, शास्त्रीय गायन, गजल एवं लोकप्रिय आधुनिक गीतों की सुप्रसिद्ध गायिका हैं।

हिन्दी भाषा में गणपति भजन एवं गीत

गणपति बाप्पा मोरया

वक्रतुंड महाकाय श्लोक – पंडित जसराज

पद्म भूषण एवं पद्म विभूषण की उपाधि से सम्मानित पंडित जसराज एक लोकप्रिय भारतीय शास्त्रीय गायक हैं।

कन्नड़ भाषा में गणपति भजन

कन्नड़ भाषा में गाये गणपति के कुछ लोकप्रिय भजन यहाँ प्रस्तुत हैं। वे अत्यंत मधुर हैं। महाराष्ट्र के पश्चात कदाचित कर्णाटक वह राज्य है जहां गणेश उत्सव की भव्यता एवं उल्हास उल्लेखनीय है।

गजमुखने गणपथिये निनगे वन्दने

भजन के इस संस्करण को सारदा भगवतुला ने स्वर प्रदान किया है। इस भजन के बोल श्री विजयनरसिम्हा ने लिखे हैं। इस भजन की मूल गायिका सुश्री एस. जानकी हैं।

शरणु शरणय्या बेनका – पी. बी. श्रीनिवास

डॉ. पी. बी. श्रीनिवास दक्षिण भारतीय भाषा के एक अनुभवी पार्श्वगायक हैं।

भाद्रपद शुक्लदा चवथिअन्दु – पी. बी. श्रीनिवास एवं एस. जानकी

तेलंगाना का हैदराबाद भी अब गणेश चतुर्थी आयोजन की होड़ में सम्मिलित होने लगा है। मुझे भी हैदराबाद में गणेश उत्सव मनाने का एक अवसर प्राप्त हुआ था। मेरे उस अनुभव पर मेरा संस्मरण, ‘गणेश एवं उसके लड्डू – हैदराबाद में गणेश उत्सव’ पढ़ना ना भूलें।

गणपति उपहार
गणपति उपहार

इन भाषाओं के अतिरिक्त अन्य भारतीय भाषाओं के लोकप्रिय गणेश भजनों के विषय में निम्न दर्शित टिप्पणी खंड के द्वारा मुझे अवश्य अवगत कराएं। मैं इस संकलन में उन्हें सम्मिलित करने का प्रयास करूंगी।

गणेश चतुर्थी की अनेक शुभकामनाएं

अनुवाद: मधुमिता ताम्हणे

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