भारत के उद्यान Archives - Inditales श्रेष्ठ यात्रा ब्लॉग Mon, 12 Jun 2023 05:28:57 +0000 en-US hourly 1 https://wordpress.org/?v=6.7.1 नंदनकानन प्राणी उद्यान -भुवनेश्वर एक प्राकृतिक चिड़ियाघर https://inditales.com/hindi/nandankanan-prani-udyan-bhubaneshwar/ https://inditales.com/hindi/nandankanan-prani-udyan-bhubaneshwar/#comments Wed, 29 Jun 2022 02:30:40 +0000 https://inditales.com/hindi/?p=2723

नंदनकानन जूलॉजिकल पार्क अथवा नंदनकानन प्राणी उद्यान, ओडिशा की राजधानी भुवनेश्वर में भ्रमण करने आए पर्यटकों का एक लोकप्रिय गंतव्य! यह उद्यान भुवनेश्वर के लोगों का भी अत्यंत प्रिय भ्रमण स्थल है। स्थानीय भाषा, ओडिया में नंदनकानन के शाब्दिक अर्थ कुछ इस प्रकार हैं, ‘स्वर्ग का बगीचा’ या ‘स्वर्गिक आनंद’ अथवा ‘सुख का बाग’ या […]

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नंदनकानन जूलॉजिकल पार्क अथवा नंदनकानन प्राणी उद्यान, ओडिशा की राजधानी भुवनेश्वर में भ्रमण करने आए पर्यटकों का एक लोकप्रिय गंतव्य! यह उद्यान भुवनेश्वर के लोगों का भी अत्यंत प्रिय भ्रमण स्थल है। स्थानीय भाषा, ओडिया में नंदनकानन के शाब्दिक अर्थ कुछ इस प्रकार हैं, ‘स्वर्ग का बगीचा’ या ‘स्वर्गिक आनंद’ अथवा ‘सुख का बाग’ या ‘देवों का दिव्य उद्यान’।

सुनहरी तीतर
सुनहरी तीतर

भुवनेश्वर से लगभग १५ किलोमीटर दूर स्थित यह उद्यान खोर्धा जिले के जुझगढ़ वनीय क्षेत्र में स्थित है। यह लगभग १००० एकड़ से कुछ अधिक क्षेत्रफल में फैला हुआ है। यह सम्पूर्ण हराभरा क्षेत्र इतना विशाल है कि १३० एकड़ में फैली कंजिया सरोवर की विशाल व महत्वपूर्ण आर्द्रभूमि को अपने भीतर समाया हुआ है। नंदनकानन प्राणी उद्यान की स्थापना सन् १९६० में हुई थी जिसके एक दशक पश्चात इसे जनसामान्य के लिए खोला गया था।

नंदनकानन में भालू
नंदनकानन में भालू

नंदनकानन प्राणी उद्यान, वनीय क्षेत्र के भीतर, प्राकृतिक परिवेश के मध्य में बनाया गया है। इस उद्यान में प्राणियों को विशाल बाड़ों में रखा गया है जिन्हे विशेष रूप से उनके मूल प्राकृतिक आवासों के रूप प्रदान किए गए हैं ताकि वे उनमें स्वाभाविक रूप से बस सकें तथा स्वस्थ जीवन जी सकें।

जंगल की रानी शेरनी
जंगल की रानी शेरनी

नंदनकानन प्राणी उद्यान भारत के विशालतम प्राणी उद्यानों  में से एक है। इस उद्यान ने, अनेक मापदण्डों में, वैश्विक स्तर पर प्रथम पद अर्जित किया है। इस प्राणी उद्यान  को अनेक विशिष्टताओं से विभूषित किया गया है। भारतीय रेल ने एक एक्सप्रेस रेल का नामकरण, इस प्राणी उद्यान  के नाम पर, नंदनकानन एक्सप्रेस किया है।

नंदनकानन जूलॉजिकल पार्क अथवा नंदनकानन प्राणी उद्यान

नंदनकानन प्राणी उद्यान को सुव्यवस्थित खाके के अंतर्गत उत्तम रीति से निर्मित किया गया है। इस उद्यान के मुख्य आकर्षण हैं-

  • प्राणियों की लगभग १५०० विभिन्न प्रजातियों से युक्त एक विशाल प्राणी उद्यान
  • वनस्पति उद्यान एवं तितली उद्यान
  • सिंहों, बाघों, हिरणों एवं भालुओं के बाड़ों मे भीतर सफारी भ्रमण
  • कंजिया सरोवर में नौका विहार – यंत्रचलित नौकाओं एवं पैडल स्वचालित नौकाओं में जलविहार
  • उभयचरों या जलथलचरों के घेरे
  • मछलीघर
  • बच्चों की छोटी रेलगाड़ी
  • पुस्तकालय
  • निशाचर प्राणियों एवं पक्षियों की बाड़
  • सरीसृप अथवा रेंगने वाले प्राणियों का केंद्र
  • संग्रहालय
  • चिड़ियाघर
  • लगभग ७०० प्रजातियों के विभिन्न स्थानिक वृक्षों से भरा वनीय क्षेत्र
  • इस उद्यान का प्राकृतिक वनीय क्षेत्र, स्तनपायियों की १३ विभिन्न प्रजातियों, सरीसृपों की १५ प्रजातियों, पक्षियों की लगभग १७९ प्रजातियों, उभयचरों या जलथलचरों की २० विभिन्न प्रजातियों, तितलियों की ९६ भिन्न भिन्न प्रजातियों तथा मकड़ियों की भी ५१ विभिन्न प्रजातियों का आवासक्षेत्र है।
कांकड़ या भौंकने वाला हिरण
कांकड़ या भौंकने वाला हिरण
  • नंदनकानन प्राणी उद्यान के आधिकारिक वेबस्थल पर नंदनकानन वन्यजीव अभयारण्य में उपस्थित पक्षियों की विस्तृत सूची है। उन्हे ‘Arial feeding bird’, ‘Arboreal bird’, ‘Birds of prey’, ‘Ground feeding bird’ तथा ‘Wetland birds’, इन उपनामों के अंतर्गत वर्गीकृत किया गया है। यदि आप पक्षी प्रेमी अथवा नभचर प्रेमी हैं तो यह जानकारी अवश्य देखें।

प्राणी उद्यान  एवं वनस्पति उद्यान से संबंधित जानकारी

ढ़ोल या जंगली कुत्ता
ढ़ोल या जंगली कुत्ता
  • नंदनकानन प्राणी उद्यान में जनसाधारण के लिए भ्रमण समयावधि, अप्रैल से सितंबर मास तक प्रातः ७:३० बजे से सायं ५:३० बजे तक तथा अक्टूबर से मार्च मास तक प्रातः ८ बजे से सायं ५ बजे तक है।
  • नंदनकानन प्राणी उद्यान प्रत्येक सोमवार के दिन बंद रहता है।
  • नंदनकानन प्राणी उद्यान में प्रवेश के लिए ५० रुपये का नाममात्र प्रवेश शुल्क निर्धारित है।
  • पशु सफारी एवं नौका विहार हेतु अतिरिक्त शुल्क लिया जाता है।
  • केवल उच्च स्तर के चलचित्र कैमरे एवं चित्रपट छायाचित्रण हेतु अतिरिक्त शुल्क निर्धारित हैं।
  • नंदनकानन प्राणी उद्यान में पर्यटकों के लिए अनेक सुविधाएं हैं। इनमें प्रमुख हैं, पेयजल गुमटियाँ, शौचालय संकुल, वाहन प्रतीक्षा स्थल, पर्यटक विश्राम कक्ष, जलपानगृह, समान-कक्ष, विकलांगों हेतु पहियेदार कुर्सियाँ, प्रथम उपचार सुविधाएं, बैटरी चलित वाहन, मार्गदर्शक नक्शे, स्मारिका दुकानें, शिशु देखरेख सुविधाएं इत्यादि।

नंदनकानन प्राणी उद्यान  में भ्रमण का मेरा अनुभव

धूसर भेड़िया
धूसर भेड़िया

नंदनकानन प्राणी उद्यान एक अत्यंत लोकप्रिय एवं प्रसिद्ध गंतव्य है। अतः उसका प्रभाव भी अवश्य दृष्टिगोचर होगा। हम वर्ष २०२० के जनवरी मास में नंदनकानन प्राणी उद्यान में भ्रमण करने गए थे। प्राणी उद्यान के प्रवेशद्वार पर प्रवेशपत्र प्राप्त करने के लिए शालेय विद्यार्थियों की लंबी पंक्ति थी। सौभाग्य से शालेय विद्यार्थियों एवं अन्य पर्यटकों के लिए पृथक पंक्तियाँ थीं। प्राणी उद्यान के कर्मचारियों द्वारा पर्यटकों की भीड़ को सुचारु रूप संचालित किया जा रहा था। उद्यान में प्रवेश करने के लिए हमें १० मिनट से भी कम समय लगा। आपको यह जानकर अचरज होगा कि गत कुछ वर्षों से नंदनकानन प्राणी उद्यान में, प्रतिवर्ष ३० लाख से भी अधिक पर्यटक आते रहे हैं। इसका तात्पर्य है कि इस उद्यान में भ्रमण हेतु लगभग १०,००० पर्यटक प्रतिदिन आते हैं।

मेरा परामर्श है कि यदि आप इन प्राणियों के दर्शन करना चाहते हैं तो भ्रमण से पूर्व ही उनके विषय में आवश्यक विवरण प्राप्त करें। तत्पश्चात उनका अवलोकन करें। पर्यटन-परिदर्शक अथवा गाइड की सेवाएं ना लें। सामान्यतः ये परिदर्शक अत्यंत संक्षिप्त में आपको इन प्राणियों की जानकारी देकर शीघ्रता से आपका भ्रमण सम्पूर्ण कर देते हैं ताकि आपके पश्चात वे अन्य ग्राहक ले सकें। अतः परिदर्शक की सेवाएँ तभी लें जब आप भी शीघ्रता से उद्यान का भ्रमण पूर्ण करना चाहते हों। अन्यथा नहीं।

मांसभक्षी प्राणी

प्राणी उद्यान के भीतर भ्रमण करना हमारे अनुमान से अपेक्षाकृत कहीं अधिक आसान था। प्राणी उद्यान के भीतर पूर्वनिर्धारित पगडंडियाँ सुव्यवस्थित प्रकार से बनायी गई हैं जिन पर सभी संबंधित सूचनाएं एवं मार्गदर्शन अंकित हैं। प्राणी उद्यान के सभी बड़े प्राणियों के लिए पृथक विशाल बाड़ बनाए गए हैं। बाड़ों के भीतर पर्याप्त मात्रा में वृक्ष एवं झाड़ियाँ उगाए गए हैं जो उन्हे प्राकृतिक आवास प्रदान करते हैं। उनका परिवेश इतना प्राकृतिक वन सदृश बनाया गया है, कि आप जब भी सिंह, बाघ, तेंदुआ, सियार, जंगली कुत्ते इत्यादि के बाड़ों के समीप जाएं, तो आपको उनके दर्शन सहज ही प्राप्त नहीं होंगे। उनके दर्शन करने के लिए धीरज रखते हुए प्रतीक्षा करनी पड़ती है। वे जब भी विचरण करते हुए बाड़ की सीमा पर आते हैं तब ही आप उन्हे देख सकते हैं। अन्यथा झाड़ियों के मध्य उनकी एक झलक से ही आपको संतुष्ट होना पड़ेगा। अतः धीमी चाल तथा धीरज अत्यंत सहायक सिद्ध होगी।

जब हम रीछ के बाड़ के समीप पहुंचे, वह अपने समान दर्शकों को देख कर चंचल हो उठा था। बाड़ के उस पार एक सिंहनी दहाड़ मार रही थी। उपस्थित दर्शक रीछ को अधिक करतब दिखने के लिए प्रोत्साहित कर रहे थे। साथ ही वे शांत भी थे ताकि दहाड़ मारती सिंहनी अधिक उत्तेजित ना हो जाए।

बाघ एवं तेंदुए अपनी प्रकृति के अनुसार एकांतप्रिय प्राणी प्रतीत हो रहे थे। वे दर्शकों से कुछ दूर बैठकर विश्राम कर रहे थे। बाघ वृक्षों की छाँव में, तो तेंदुए वृक्षों की शाखाओं पर चढ़कर बैठे थे। वृक्षों एवं पर्णसमूहों के मध्य उन्हे खोजने में कुछ समय लगा। जो भी पर्यटक उन्हे पहले खोज लेते थे वे दूसरों की सहायता के लिए उस ओर संकेत कर रहे थे।

हिरण

नीलगाय
नीलगाय

हिरणों के लिए भी एक विशाल बाड़ बनायी गई है ताकि वे उसके भीतर स्वच्छंद विचरण कर सकें। इस प्राणी उद्यान में बड़ी संख्या में हिरण विद्यमान हैं। ना तो दर्शकों को उन्हे देखने के लिए प्रतीक्षा करनी पड़ती है, ना ही उन हिरणों को दर्शकों की उपस्थिति व्याकुल करती है।

बौने से चूहा हिरण
बौने से चूहा हिरण

माउस डीयर अथवा छोटा हिरण हमारे लिए एक आश्चर्य से कम नहीं था। हमने इससे पूर्व ना तो उन्हे देखा था, ना ही उनके विषय में कभी पढ़ा था। इस दुर्लभ तथा संकोची प्राणी की लंबाई लगभग १५ इंच होती हैं। इसे इंडियन चेर्वोटैन के नाम से भी जाना जाता हैं। इस उद्यान में इनकी पर्याप्त संख्या है।

साम्भर
साम्भर

नंदनकानन प्राणी उद्यान में हिरणों की अनेक प्रजातियाँ बड़ी संख्या में विद्यमान हैं। सभी प्रकार के हिरण यहाँ दर्शकों की उपस्थिति में भी स्वच्छंद व सुरक्षित अनुभव करते प्रतीत हो रहे थे।

निशाचर प्राणी

निशाचर श्वेत उल्लू
निशाचर श्वेत उल्लू

निशाचर पशु-पक्षियों का भाग अत्यंत अंधकार भरा है। प्रकाश अत्यंत मंद होता है। इसके भीतर से जाते समय कुछ दर्शकों को किंचित असुविधा हो सकती है। किन्तु इस प्रकार के प्राणियों की सुविधा के लिए मंद प्रकाश अथवा अंधकार आवश्यक है। संकरी पगडंडी तथा पर्यटकों की अधिक संख्या के कारण हमें मंद प्रकाश छायाचित्र लेने में असुविधा हो रही थी। वहाँ एक बार्न उल्लू या श्वेत उल्लू को देखना मेरा प्रथम अनुभव था।

सरीसृप

नंदनकानन में नाग देवता
नंदनकानन में नाग देवता

इस उद्यान में सर्पों की अनेक प्रजातियाँ हैं। नाग से लेकर अजगर तक, रैट-स्नेक अर्थात् धामिन तथा अनेक अन्य प्रजातियाँ यहाँ देखी जा सकती हैं। गोह, गिरगिट तथा अनेक अन्य सरीसृप इस भाग में देखे जा सकते हैं।

गोह
गोह
भारतीय गिरगिट
भारतीय गिरगिट

मगरमच्छ

भारत में उपस्थित तीनों प्रकार के मगरमच्छ आप यहाँ देख सकते हैं। खारे जल के मगरमच्छ, मीठे जल के मगर तथा घड़ियाल, तीनों प्रजातियों का इस उद्यान में प्रजनन किया जाता है। उनकी प्रजनन प्रक्रिया के प्रत्येक चरण में आप इन दीर्घजीवी प्रजातियों को देख सकते हैं। आप देख सकते हैं कि किस प्रकार ये शक्तिशाली व खूंखार प्राणी छोटे छोटे शिशुओं से विशालकाय प्राणियों में परिवर्तित होते हैं।

खारे पानी के मगर नंदनकानन में
खारे पानी के मगर नंदनकानन में

खारे जल के मगर मूलतः नदी के मुहाने तथा समुद्री जल के समीप पनपते हैं। मगर की ये प्रजाति सर्वाधिक विशालकाय तथा सर्वाधिक दीर्घजीवी होती है। ऐसा कहा जाता है कि वे सम्पूर्ण समुद्र को तैर कर पार कर लेते हैं। ओडिशा का भितर्कनिका वन उनके सर्वोत्तम प्राकृतिक आवास तथा प्रजनन स्थलों में से एक है।

मेरी भितर्कनिका यात्रा के अविस्मरणीय अनुभव यहाँ पढ़ें।

घड़ियाल
घड़ियाल

घड़ियाल अर्थात् नदी के जलचर, मीठे जल के प्राणी हैं। भारत में सामान्यतः ये गंगा नदी में पाए जाते हैं। इन्हे इनके मुख से पहचाना जा सकता है। इनका मुख, अन्य प्रजातियों में सर्वाधिक लंबा, संकरा तथा सुडौल होता है जो तेज दांतों से भरा होता है। मगर भी मीठे जल के प्राणी हैं जो साधारणतः नदियों, उथली आर्द्र-भूमि तथा अप्रवाही जल में पाए जाते हैं। मुझे स्मरण है, मैंने उन्हे चम्बल नदी में भी देखा था।

कछुए

नंदनकानन प्राणी उद्यान में जलीय एवं थलीय कछुओं की अनेक प्रजातियाँ हैं। उन्हे उनके वयानुसार वर्गीकृत कर रखा हुआ है।

भारत का स्टार या तारा कछुए
भारत का स्टार या तारा कछुए

इन कछुओं में लुप्तप्राय भारतीय स्टार कछुए भी सम्मिलित हैं। आप यहाँ स्थित कछुओं की विविधता देख अचरज में पड़ जाएंगे।

नभचर

मंदारिन बत्तख
मंदारिन बत्तख

इस प्राणी उद्यान  में दुर्लभ पक्षियों की अनेक प्रजातियाँ हैं जिन्हे उनकी प्रजाति के अनुसार भिन्न भिन्न बाड़ों में रखा गया है। इनमें सारस, सुनहरा तीतर, श्वेत मोर, रजत तीतर इत्यादि सम्मिलित हैं।

जंगली मुर्गा
जंगली मुर्गा

उद्यान में विशाल जलक्षेत्र हैं जहां अनेक जलपक्षियों ने बसेरा किया हुआ है।

श्वेत मोर
श्वेत मोर

इन जलपक्षियों में बगुले, सुरखिया, पेलिकन अथवा हवासील, सारस इत्यादि सम्मिलित हैं।

सारस पक्षी नंदनकानन में
सारस पक्षी नंदनकानन में

यहाँ आप इन पक्षियों को देख सकते हैं:

  • कबूद/अंजन अथवा धूसर बगुला (grey heron)
  • जामुनी बगुला (purple heron)
  • कोकराइ (night heron)
  • अंधा बगुला (pond heron)
  • काली चोंच वाले किलचिया बगुले (little egret)
  • पीली चोंच वाले लघु श्वेत बगुले (intermediate egret)
  • पीली चोंच व काली टांगों वाले श्वेत (सुर्खिया) बगुले (great egret)
  • चमकीला बुज्जा (glossy ibis)
  • काला बुज्जा (black-headed ibis)
  • चकवा/सुर्खाब (ruddy shelducks)
  • नारंगी बतख (mandarin duck)
  • एशियाई घुँगिल (Asian open bill stork)
  • जाँघिल (painted stork)
  • हवासील (pelicans)
  • बाज (eagles)
  • चील (kites)
  • चहचहाते रंगबिरंगे छोटे तोते (Love Birds)

और पढ़ें: ओडिशा की मंगलाजोड़ी आद्रभूमि-जलपक्षियों के स्वर्ग में नौकाविहार

नंदनकानन का  कंजिया सरोवर

मुझे यह देख अत्यंत प्रसन्नता हुई कि कंजिया सरोवर इस प्राणी उद्यान का ही एक भाग है तथा इस सरोवर में पर्यटकों के लिए मनोरंजक नौका सवारी भी आयोजित की जाती है।

नंदनकानन के कंजिया सरोवर में नौका विहार
नंदनकानन के कंजिया सरोवर में नौका विहार

कई पर्यटक सरोवर के जल में नौका सवारी का आनंद उठा रहे थे तथा अनेक पर्यटक नौका सवारी का अनुभव लेने के लिए पंक्ति में खड़े प्रतीक्षा कर रहे थे।

सरोवर के शांत जल में पैडल स्वचालित नौकाएँ तथा यंत्रचलित नौकाएँ लोगों को अत्यंत सुखकर एवं अद्वितीय अनुभव प्रदान कर रहे थे। देश-विदेश के अन्य आधुनिक स्थानों पर नौकाविहार कर आए लोगों को यहाँ की सेवाएं कुछ कमतर प्रतीत हो सकती हैं किन्तु सामान्य पर्यटकों के लिए यह एक रोमांचक अनुभव है।

जलहस्ती अथवा दरियाई घोडा

जलक्रीडा करता जलहस्ती
जलक्रीडा करता जलहस्ती

जलहस्ती अथवा दरियाई घोड़ा इतना विशालकाय प्राणी होता है कि आप इसे अनदेखा कर ही नहीं सकते। नंदनकानन प्राणी उद्यान में इन विशालकाय प्राणियों के लिए कंजिया सरोवर का विशेष भाग निहित किया गया है। जब तक हम प्राणी उद्यान के इस भाग तक पहुंचे, वातावरण अत्यंत उष्ण हो चुका था तथा सूर्यदेव पूर्ण ऊर्जा से दमक रहे थे। दर्जन भर जलहस्ती अपनी देह को शीतलता प्रदान करने के लिए सरोवर के जल में शांतता से तैर रहे थे। जलहस्तियों को शीतल जल में विचरण करना अत्यंत भाता है।

हमने नंदनकानन प्राणी उद्यान में भ्रमण के लिए केवल २-३ घंटों का समय निश्चित किया था। अतः हमें उद्यान के अनेक रोचक क्रियाकलापों से अछूते ही रहना पड़ा था, जैसे सफारी, वनस्पति उद्यान, कंजिया सरोवर में नौकायन तथा कुछ अन्य वन्यप्राणियों के बाड़े।

नंदनकानन प्राणी उद्यान संबंधित यात्रा सुझाव

जंगली बिल्ली
जंगली बिल्ली
  • इस क्षेत्र की ग्रीष्म ऋतु अत्यंत ऊष्णता भरी होती है। अतः यदि आपने ग्रीष्म ऋतु में नंदनकानन प्राणी उद्यान का भ्रमण नियोजित किया है तो प्रातःकाल का समय निश्चित करें।
  • यदि आप मर्यादित समय सीमा में सम्पूर्ण उद्यान की झलक पाना चाहते हों तो पर्यटन परिदर्शक अथवा गाइड की सेवाएं ले सकते हैं।
  • यदि आपके पास भुवनेश्वर में आधा दिन या उससे अधिक का समय है तथा आप प्रकृति व वन्यजीवन में रुचि रखते हैं तो वह समय नंदनकानन प्राणी उद्यान में व्यतीत करें। पर्याप्त समय का पूर्ण आनंद उठाने के लिए, पर्यटन परिदर्शक अथवा गाइड की सेवाएं ना लेते हुए, स्वयं ही अपनी गति से सभी प्राणियों को निहारें तथा उनके विषय में जानें।
  • उद्यान में सभी पगडंडियाँ पक्की व सुव्यवस्थित हैं जिन पर सभी आवश्यक संकेत एवं सूचनाएं इंगित हैं। सम्पूर्ण मार्ग में, नियमित अंतराल पर, पेयजल, छाँव तथा विश्राम/बैठने की व्यवस्था की गई है। सम्पूर्ण उद्यान में, विभिन्न स्थानों पर, “उद्यान मानचित्र पर आप यहाँ हैं” सूचना पट्टिका लगायी गई है। अतः निश्चिंत रहिए, इस विस्तृत उद्यान में आप मार्ग से नहीं भटकेंगे।
  • उद्यान के प्रवेशद्वार पर अनेक जलपानगृह हैं जहां आपको कई स्थानीय व्यंजन प्राप्त हो जाएंगे। यदि आप इस विशाल एवं विस्तृत उद्यान में पर्याप्त समय व्यतीत करना चाहते हैं तो उद्यान में प्रवेश से पूर्व ही पर्याप्त जलपान कर लें। अन्यथा पेट की क्षुधा उद्यान के भ्रमण को असुविधाजनक बना सकती है।
  • उद्यान में सैकड़ों पर्यटक भ्रमण करने के लिए आते हैं। सम्पूर्ण उद्यान में उद्यान के कर्मचारी एवं गाइड उपस्थित रहते हैं। अतः किसी भी स्थान पर स्वयं को एकाकी समझ कर व्यथित ना हो। निश्चिंत होकर उद्यान एवं वन्यजीवों का अवलोकन करिए।
  • प्राणी उद्यान एवं उसकी समयसारिणी/विशेष आयोजनों से संबंधित, समय समय पर उभरते किसी भी प्रश्न/स्पष्टता/अद्यतनीकरण में प्राणी उद्यान का वेबस्थल अवश्य सहायक होगा।

अनुवाद: मधुमिता ताम्हणे

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सिलवासा – उपवनों का शहर, दादरा और नगर हवेली की राजधानी https://inditales.com/hindi/silvassa-gardens-dadra-nagar-haveli/ https://inditales.com/hindi/silvassa-gardens-dadra-nagar-haveli/#comments Wed, 28 Feb 2018 02:30:12 +0000 https://inditales.com/hindi/?p=588

आज भी मैं सिलवासा को दादरा और नगर हवेली की राजधानी के रूप में याद करती हूँ, जो कि मैंने अपने प्राथमिक विद्यालय की भूगोलशास्त्र की पुस्तक में पढ़ा था। मैं बस अनुमान से बता सकती हूँ कि भारत के नक्शे पर सिलवासा लगभग कहां पर बसा हुआ है, लेकिन इसके अलावा मैं सिलवासा के […]

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वर्ली भित्ति चित्र कला - सिलवासा
वर्ली भित्ति चित्र कला – सिलवासा

आज भी मैं सिलवासा को दादरा और नगर हवेली की राजधानी के रूप में याद करती हूँ, जो कि मैंने अपने प्राथमिक विद्यालय की भूगोलशास्त्र की पुस्तक में पढ़ा था। मैं बस अनुमान से बता सकती हूँ कि भारत के नक्शे पर सिलवासा लगभग कहां पर बसा हुआ है, लेकिन इसके अलावा मैं सिलवासा के बारे में और कुछ नहीं जानती। सिलवासा काफी समय से मेरी यात्रा सूची में था और उसके बारे में और जानने की उत्सुकता के कारण मैंने आखिरकार सिलवासा की यात्रा करने का निश्चय कर ही लिया।

सिलवासा की मेरी यह यात्रा सच में बहुत आनंदमय थी। सिलवासा में बिताए हुए पूरे एक दिन में मैंने इसे एक उपवनों का नगर पाया, जहां पर सुव्यवस्थित रूप से पोषित एक से बढ़कर एक मनोरम उपवन थे। यहां पर आने के बाद मुझे पता चला कि दादरा और नगर हवेली वर्ली आदिवासी जाति, जिनके ज्यामितीय भित्ति चित्र आज इतने लोकप्रिय हैं, का मूल निवास स्थान है। व्यापार समुदायों के बीच तो दादरा और नगर हवेली का यह केंद्र शासित प्रदेश वहां के कम कर दरों के लिए काफी प्रसिद्ध है।

सिलवासा का इतिहास 

सिलवासा, नगर हवेली का एक छोटा गाँव था। 1779 में मराठा के पेशवाओं ने मित्रता संधि के रूप में दादरा और नगर हवेली को पुर्तुगाल को सौंप दिया था। यह कुल 79 गाँवों का समूह था जो पुर्तुगाल की सरकार को कर अदा कर रहे थे। 1885 में जब उस समय के पुर्तुगाली सरकार ने सिलवासा को नगर हवेली की राजधानी बनाने का निश्चय किया, तब इस गाँव को एक शहर के रूप में प्रतिष्ठित किया गया। बाद में  पुर्तुगाल में स्थित लिस्बोन शहर के पास स्थित एक शहर विला दे पाको द’आरकोस के नाम से उसका पुनः नामकरण किया गया। तथापि किसी का नाम ऐसे ही बदलना आसान नहीं होता और इस प्रकार सिलवासा भी अपने पुराने नाम से ही जाना जाने लगा। आज भी सिलवासा एक छोटा सा शहर है, जिसकी जनसंख्या लगभग 100,000 होगी।

सिलवासा चर्च 
सिलवासा की रोमन कैथोलिक चर्च
सिलवासा की रोमन कैथोलिक चर्च

सिलवासा के मध्यभाग में बसा हुआ यह छोटा सा गिरजाघर 1897 में बनवाया गया था। यह गिरजाघर शायद पुर्तुगालियों के साथ आए हुए केथलिक समुदायों के लिए निर्मित किया गया था। सिलवासा में स्थित यह एकमात्र गिरजाघर, पुर्तुगाली शासन काल के दौरान इस छोटे से शहर पर हुए अत्याचारों का जीता-जागता गवाह है। इस गिरजाघर के भीतर लकड़ी के तख्तों पर द लास्ट सप्पर यानी आखरी भोज की सुंदर सी चित्रकारी की गयी है जिसे अवश्य देखना चाहिए।

काष्ठ चित्र -सिलवासा
काष्ठ चित्र – सिलवासा

दादरा और नगर हवेली में पुर्तुगाली शासन काल का अंत 1954 में हुआ और 1961 में वह भारत के गणराज्य में विलीन हुआ।

1954-61 के बीच दादरा और नगर हवेली पर वरिष्ठ पंचायत द्वारा एक स्वतंत्र राज्य के रूप में शासन किया जा रहा था। 

दादरा और नगर हवेली महाराष्ट्र और गुजरात के राज्यों की सीमाओं से सटकर बसा हुआ एक आदिवासी क्षेत्र है। वर्ली जनजाति के लोग इस क्षेत्र के मूल निवासी हुआ करते थे और आज भी यह भूमि उन्हीं के अधीन है। यहां पर आपको हर जगह वर्ली चित्रकारी के बेहतरीन नमूने देखने को मिलते हैं, चाहे वह शहर की दीवारें हों, उपवन हों, या फिर कोई भी कार्यालय, जहां देखो वहां आपको इसी प्रकार की चित्रकारी नज़र आती है। यहां तक कि इस क्षेत्र में बोली जाने वाली भाषा को भी वर्ली भाषा के नाम से जाना जाता है – जो कि गुजराती, मराठी और कोंकणी का अजीब सा मिश्रण है।

मैं अपने लिए सिलवासा से एक वर्ली स्मारिका तो ले आयी हूँ, लेकिन इस आदिवासी जाति के लोगों से मिलने हेतु मुझे एक बार फिर सिलवासा जरूर जाना है और इस बार मैं उनके घरों में जाकर उनसे भेट करना चाहती हूँ जो कि यहां के जंगलों में बसे हुए हैं।

सिलवासा के उपवन – घूमने की जगहें  

सिलवसा का मनोरम उपवनों का शहर घूमकर मैं बहुत प्रफुल्लित हुई। इस यात्रा के बाद मुझे लगा कि मैं सभी से जाकर कह दूँ कि, बैंग्लोर के बदले अब सिलवासा भारत का नया बगीचों का शहर है। यहां पर एक से बढ़कर एक ऐसे कई उपवन हैं और प्रत्येक उपवन की अपनी अलग खासियत है। इन सभी उपवनों की बहुत अच्छे से देखरेख की जाती है। इन उपवनों की सैर करना मेरे लिए बहुत ही प्रसन्नता की बात थी, बावजूद इसके कि हमे दिन भर सूर्य की तपती किरणों को सहन करना पड़ा।

तो चलिये सिलवासा के इन उपवनों के बारे में थोड़ा और जान लेते हैं।

नक्षत्र वाटिका
नक्षत्र वाटिका - सिलवासा
नक्षत्र वाटिका – सिलवासा

दमन गंगा नदी के किनारे पर बसी हुई यह नक्षत्र वाटिका हाल ही में बनाई गयी है। लगभग 10-15 मिनटों में इस वाटिका की सैर करने के विचार से मैंने वहां पर टहलना शुरू किया और घूमते-घूमते मुझे पता ही नहीं चला कि समय कैसे बीत गया। मुझे यहां पर आए हुए घंटा भर से भी अधिक समय हो गया था। इस पूरी वाटिका की बनावट योजना अतुल्य है जिसमें वनस्पतियों का रोपण नक्षत्रों या ग्रहों की स्थिति के अनुसार किया गया है। यहां पर कुछ वनस्पतियाँ ऐसी हैं जो हिंदुओं द्वारा पूजे जानेवाले नौ ग्रहों से संबंधित हैं। इसके अलावा यहां पर राशि-चक्र के 12 चिह्नों से संबंधित भी वनस्पतियाँ हैं जिनका रोपण ज्योतिषीय रेखा-चित्र के आकार में किया गया है। यहां पर वनस्पतियों से बनी एक वृत्ताकार संरचना है जिसमें डंडे के रूप में 27 वनस्पतियाँ लगाई गयी हैं जो प्रत्येक नक्षत्र से संबंधित हैं।

नक्षत्र वाटिका में कमल कुंड - सिलवासा
नक्षत्र वाटिका में कमल कुंड – सिलवासा

नक्षत्र वाटिका में कमल पुष्पों के अनेक तालाब हैं जिन में रंगबिरंगी कमल और कुमुद के पुष्प खिले हुए नज़र आते हैं। आस-पास के हरे-भरे परिसर में अपने रंगों को बिखेरते हुए ये पुष्प अतिसुंदर लगते हैं। इन में से एक तालाब पर एक छोटा सा पुल बना हुआ है जहां से आप नीचे स्थित तालाब का सुंदर दृश्य देख सकते हैं। नक्षत्र वाटिका में कुछ छोटे-छोटे दर्शनगाह भी हैं जो अपने आगंतुकों को इस तपती हुई धूप से थोड़ी राहत प्रदान करते हैं। इसके एक कोने में पहरे की मीनार खड़ी है जहां से आप नीचे स्थित उपवन का सुंदर नज़ारा देख सकते हैं। यहीं से मैंने वनस्पतियों से बनी हुई वह स्वस्तिक की संरचना देखी थी।

चक्रव्यूह के रूप में जड़ी बूटी वाटिका - सिलवासा
चक्रव्यूह के रूप में जड़ी बूटी वाटिका – सिलवासा

नक्षत्र वाटिका का सबसे अद्भुत भाग तो जड़ी-बूटियों की बाड़ी थी जो थोड़ी सी ढलान वाली जमीन पर, एक विशाल भूलभुलैया के रूप में बनाई गयी थी। इस भूलभुलैया के भीतर यहां-वहां खड़े अनेक लोग सेल्फी लेते हुए नज़र आ रहे थे। इससे एक बात तो कहनी पड़ेगी कि सेल्फी लेने के लिए यह जगह बहुत ही अच्छी है। जड़ी-बूटियों की बाड़ी को इस प्रकार का रूप देना जहां पर लोग घूमते-घूमते वहां की प्रत्येक वनस्पति की प्रशंसा कर सके, वाकई में रचनात्मकता का कार्य है।

नक्षत्र वाटिका आज भी अपनी विकास प्रक्रिया में है। बहुत समय बाद मुझे एक ऐसा उपवन देखने को मिला जो भारतीय संस्कृत में पूर्ण रूप से डूबा हुआ है, फिर चाहे वह यहां की वनस्पतियाँ हो या फिर उनकी विन्यास पद्धति या फिर वहां के सूचना केंद्र हो जिनकी दीवारों पर सांस्कृतिक चित्रकारी सजी है।

यहां पर जाने के लिए कोई प्रवेश शुल्क नहीं लगता।

हिरवा वन 
हिरवा वन - सिलवासा
हिरवा वन – सिलवासा

शहर के केंद्र में बसा हुआ यह उपवन पहले पिपरिया बगीचे के नाम से जाना जाता था। पिपरिया वही इलाका है जहां पर यह उपवन बसा हुआ है। हिरवा वन नक्षत्र वाटिका और वनगंगा उपवन की तुलना में थोड़ा छोटा है।

हिरवा वन यहां की पत्थरों की दीवार के लिए बहुत प्रसिद्ध है। देखने में यह दीवार थोड़ी देहाती सी नज़र आती है। कभी-कभी दिन के समय इस दीवार पर से पानी गिरता है, जिससे कि देखने वालों को वह एक प्रकृतिक झरने जैसा लगता है। इस उपवन में प्रवेश करते ही चंचलतापूर्वक यहां से वहां उड़ते हुए श्वेत पक्षियों के समूह ने मेरा स्वागत किया।

इस हरे-भरे वन में यहां से वहां भागती पगडंडियों से गुजरते हुए इस पूरे परिसर की सैर करते-करते मैंने वहां के पत्थरों से बने मेहराब, धातु का बना पुल और ऐसी सी कई आकर्षक बातें देखी। मैंने वहां का कृत्रिम झरना भी देखा जो उस दिन बंद था। यहां पर बच्चों को खेलने के लिए भी खास जगह बनवाई गयी है जहां पर झूला आदि जैसी बहुत सारी क्रीडात्मक वस्तुएं हैं।

हिरवा वन में व्यायाम उपकरण - सिलवासा
हिरवा वन में व्यायाम उपकरण – सिलवासा

सबसे बड़े अचरज की बात तो यहां पर उपस्थित व्यायामशाला के उपकरण थे जो हाल ही में स्थापित किए गए थे। सफ़ेद और हरे रंग के व्यायाम उपकरणों की यह लंबी पंक्ति बहुत ही आकर्षक लग रही थी। मनोरंजन और स्वास्थ्य के मिलन का ऐसा नज़ारा मैंने पूरे भारत में अन्यत्र कहीं नहीं देखा था। इन सभी उपकरणों से लिपटे प्लास्टिक के कारण मैं ठीक से नहीं बता सकती कि अब तक उनका इस्तेमाल हुआ भी है या नहीं। कितने आनंद की बात है कि आप इस बगीचे में खुले आसमान के नीचे अपने दोस्तों के साथ व्यायाम कर रहें हैं।

जब हम वहां गए थे उस समय वहां के प्रवेश दर 20 रु. प्रति व्यक्ति थे।

वनगंगा सरोवर और उपवन
वन्गंगा सरोवर एवं उद्यान - सिलवासा
वन्गंगा सरोवर एवं उद्यान – सिलवासा

वनगंगा सरोवर को चारों ओर से घेरता हुआ यह उपवन अत्यंत मनोहारी है। शायद इसी सरोवर के कारण इस उपवन को वनगंगा के नाम से जाना जाता होगा। इस सरोवर के बीचोबीच एक छोटा सा द्वीप बसा हुआ है। कहा जाता है कि अगर आप वनगंगा सरोवर का एक पूरा चक्कर काट ले तो आपको रोज-रोज व्यायाम करने की कोई जरूरत नहीं होगी। यह उपवन दादरा शहर में होने के कारण पहले दादरा पार्क के नाम से भी जाना जाता था।

वनगंगा उपवन के प्रवेशद्वार पर बनी वर्ली चित्रकारी प्रसन्नता से आपका स्वागत करती हुई नज़र आती है। जैसे ही आप बगीचे में प्रवेश करते हैं वनगंगा सरोवर अपने निस्तब्ध रूप में आपके सामने प्रकट होता है। मैंने बड़े उत्साह के साथ इस पूरे सरोवर का एक चक्कर ले लिया। शुक्र है बीच-बीच में उपस्थित उन लकड़ी की बैठकों का, जहां पर थोड़ी देर के लिए आराम से बैठकर आप आस-पास के सुंदर नज़ारों का आनंद ले सकते हैं, या फिर सरोवर में नौकाविहार का आनंद लेते हुए आगंतुकों को देख सकते हैं। इस सरोवर के मध्य में स्थित द्वीप पर कई परिवार पिकनिक मनाते हुए देखे जा सकते हैं।

दादरा उद्यान - सिलवासा
दादरा उद्यान – सिलवासा

इस उपवन में एक पेड़ के नीचे स्थित लकड़ी के रंगीन सोफ़े पर बैठकर मैं अपने आस-पास के नज़ारों को अपने आप में समाने की कोशिश कर रही थी। यहां पर किसी भी प्रकार का कोई शोर नहीं था, सबकुछ बिलकुल शांत था। आस-पास के लोग भी जैसे मौन रूप से इस परिसर का आनंद ले रहे थे। समूह में उपस्थित लोग भी इस शांतता को भंग न करते हुए मूक बातचीत कर रहे थे या फिर यूं कहें कि उनके संवाद काफी विनम्र थे।

जब हम वहां गए थे उस समय वहां के प्रवेश दर 20 रु. प्रति व्यक्ति थे।

इन सभी उपवनों की सैर करके मुझे लगा कि सिलवासा एक बहुत ही प्रफुल्लित जगह है जहां पर कई लोग अपने परिवार के साथ कुछ अनमोल समय बिताने आते हैं, जहां पर युवक युवतियाँ या नवविवाहित जोड़े अपने लिए शांति के कुछ पल चुरा सकते हैं और जहां पर मेरे जैसे अनेक पर्यटक बिना किसी चिंता के आराम से इन उपवनों की सैर कर सकते हैं।

इन उपवनों के अतिरिक्त मैंने यहां का इंदिरा प्रियदर्शिनी उपवन, नक्षत्र वाटिका के पास यानी दमन गंगा नदी के किनारे पर बसा हुआ वनधारा उपवन भी देखा, लेकिन मैं वहां का दूधनी सरोवर उपवन नहीं देख पायी जो कि प्राप्त जानकारी के अनुसार वनगंगा सरोवर और बगीचे के जैसा ही है।

मुझे यह जानकर आश्चर्य हुआ कि सिलवासा बॉलीवुड फिल्मों की शूटिंग के लिए काफी प्रसिद्ध स्थान है और देखा जाए तो यह जगह मुंबई से ज्यादा दूर भी नहीं है।

स्वामीनारायण मंदिर –  सिलवासा में घूमने की जगहें 

स्वामीनारायण मंदिर - सिलवासा
स्वामीनारायण मंदिर – सिलवासा

नारोली गेट से सिलवासा में प्रवेश करते ही मुझे सबसे पहले स्वामीनारायण मंदिर के दर्शन हुए। मंदिर की शिलाओं का रंग, उसकी वास्तुकला और चारों तरफ फैले उपवन यह घोषित कर रहे थे कि यह स्वामीनारायण का मंदिर है। सामान्य तौर पर उनके सभी मंदिर लगभग एक जैसे ही होते हैं। ये मंदिर प्रचुर रूप से उत्कीर्णित होते हैं और उनकी छत को ज्यामितीय आकारों से उत्कीर्णित किया जाता है।

स्वामीनारायण मंदिर -सिलवासा
स्वामीनारायण मंदिर – सिलवासा

इन मंदिरों के स्तंभ तोरण रूपी जटिल नक्काशी काम से एक दूसरे से जुड़े होते हैं। इनमें स्थापित मूर्तियाँ भी बहुत ही मनमोहक होती हैं। ये मंदिर हमेशा साफ-सुथरे होते हैं। इन मंदिरों का दर्शन करना बड़े सौभाग्य की बात है।

स्वामीनारायण मंदिर में भगवान् राम, लक्ष्मण एवं देवी सीता की प्रतिमाएं
स्वामीनारायण मंदिर में भगवान् राम, लक्ष्मण एवं देवी सीता की प्रतिमाएं

संयोग से मैं सुबह की आरती के समय ही स्वामीनारायण के मंदिर में पहुंची और मैंने अपनी इस उपस्थिती का पूरा आनंद लिया। भक्ति में लीन इन श्रद्धालुओं के भजनगीत सुनते हुए मैं पूर्ण रूप से इस मंदिर की प्रशंसा में डूब गयी थी।

सिलवासा संग्रहालय 

सिलवासा संग्रहालय
सिलवासा संग्रहालय

सिलवासा संग्रहालय एक छोटा सा संग्रहालय है जो सिलवासा में स्थित पुर्तुगाली गिरजाघर के ठीक सामने खड़ा था। यहां पर कुछ चित्रावलियों और दैनिक जीवन में इस्तेमाल होनेवाली वस्तुओं के द्वारा वर्ली आदिवासी जाति के जीवन को दर्शाया गया है। वहां पर मौजूद एक बड़ा सा मुखौटा, जो शायद धार्मिक क्रियाओं के दौरान या फिर उत्सवों के लिए इस्तेमाल किया जाता होगा, मुझे सबसे अधिक दिलचस्प लगा। इसके अलावा वहां पर और एक चीज थी जो बहुत रोचक थी और वह थी मदिरा तयार करने के स्थानीय उपकरण, जो गोवा में फेणी का उत्पादन करने के लिए इस्तेमाल होने वाले उपकरणों से काफी मिलते-झूलते थे।

इस संग्रहालय के बाहर ही स्मारक वस्तुओं की एक छोटी सी दुकान थी जहां पर वर्ली चित्र और मिट्टी की छोटी-छोटी संरचनाएं जिन पर वर्ली चित्र बने हुए थे, बेची जा रही थीं।

संग्रहालय के पास में ही सिलवासा आर्ट गॅलेरी है जहां पर अनेक बड़े-बड़े वर्ली चित्रों का प्रदर्शन किया गया था। इन में से कुछ चित्र समकालीनता के रंगों में घुलते हुए दिखाई दे रहे थे।

सिलवासा संग्रहालय में प्रवेश निशुल्क है।

कुल-मिलाकर कहा जाए तो मैं केंद्र शासित प्रदेश दादरा और नगर हवेली और सिलवासा, जिसका आधा भाग घूमना अभी बाकी है, का भ्रमण करके बहुत प्रसन्न थी। सिलवासा के उपवन तो जैसे मेरी इस यात्रा के के केंद्रबिंदु थे।

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