भारत के झरने Archives - Inditales श्रेष्ठ यात्रा ब्लॉग Mon, 12 Jun 2023 05:03:35 +0000 en-US hourly 1 https://wordpress.org/?v=6.7.2 विभूति झरना, याना शिलाएं, मिर्जन दुर्ग- उत्तर कन्नड़ में सड़क यात्रा https://inditales.com/hindi/uttar-kannada-darshaniya-sthal/ https://inditales.com/hindi/uttar-kannada-darshaniya-sthal/#respond Wed, 18 Mar 2020 02:30:00 +0000 https://inditales.com/hindi/?p=1740

उत्तर कन्नड़ भ्रमण के समय सिरसी से गोकर्ण की यात्रा करते हुए अधिकतर पर्यटक गोकर्ण के समुद्र तटों का आनंद उठाने हेतु इच्छुक रहते हैं। क्यों ना हों! गोकर्ण के समुद्र तट हैं ही इतने सुन्दर। परन्तु मैं आपको जानकारी देना चाहती हूँ कि सड़क मार्ग द्वारा सिरसी से गोकर्ण जाते समय, राह में भी […]

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उत्तर कन्नड़ भ्रमण के समय सिरसी से गोकर्ण की यात्रा करते हुए अधिकतर पर्यटक गोकर्ण के समुद्र तटों का आनंद उठाने हेतु इच्छुक रहते हैं। क्यों ना हों! गोकर्ण के समुद्र तट हैं ही इतने सुन्दर। परन्तु मैं आपको जानकारी देना चाहती हूँ कि सड़क मार्ग द्वारा सिरसी से गोकर्ण जाते समय, राह में भी कई आकर्षक पर्यटन स्थल हैं, जैसे विभूति झरना, याना की शिलाएं तथा मिर्जन दुर्ग। चाहे आप अन्वेक्षक हों या पर्यटक अथवा साहसी दुचाकी चालाक, आप सब के लिए ये मनोरंजक पर्यटन स्थल हैं।

उत्तर कन्नड़ के अद्भुत पर्यटन स्थल

विभूति झरना, याना गुफाएं तथा सहस्त्रलिंग, ये पर्यटन स्थल उत्तर कन्नड़ के एक नगर सिरसी के अत्यंत समीप हैं। सिरसी कर्नाटक के मलनाड क्षेत्र में स्थित है। इस क्षेत्र में वर्षा ऋतु की विशेष कृपा है। इसके फलस्वरूप यह क्षेत्र सघन जंगलों तथा हरियाली से परिपूर्ण है। जगह जगह पर सुन्दर झरने हैं। प्रकृति का आनंद उठाने हेतु यहाँ कई उत्तम पर्यटन स्थल हैं। भरपूर वर्षा के कारण खेती यहाँ की प्रमुख उपजीविका साधन है। चारों ओर नारियल तथा सुपारी के वृक्ष दृष्टिगोचर होते हैं। वर्षा के अतिरिक्त अघनाशिनी नदी भी सिरसी के जल स्त्रोतों में अपना महत्वपूर्ण योगदान देती है।

गोकर्ण के निकट विभूति झरना
गोकर्ण के निकट विभूति झरना

पश्चिमी घाटो के आँचल में छिपें सिरसी के किसी भी कोने से आप पहाड़ियों तथा जलप्रपातों के दृश्यों का आनंद उठा सकते हैं। तथापि कुछ महत्वपूर्ण पर्यटन स्थानों के विषय में मैं अपनी विशेष राय देना चाहती हूँ।

पश्चिमी घाटो में स्थित सिरसी से सड़कमार्ग द्वारा आतंरिक भागों को चीरते हुए समुद्रतटीय नगर गोकर्ण पहुँचने तक के मार्ग में कई अवाक करने वाले पर्यटन आकर्षणों से आपका आमना-सामना होगा। इनमें प्रमुख हैं, विभूति झरना व याना गुफाएं। सघन जंगलों तथा हरियाली के मध्य, शहरी भीड़-भाड़ से दूर, प्रकृति के सानिध्य में बिछी इन सडकों पर गाड़ी चलाने का आनंद अतुलनीय है। इस प्राकृतिक परिदृश्य का आनंद उठाने हेतु आप सिरसी अथवा गोकर्ण से एक-दिवसीय यात्रा के रूप में आ सकते हैं।

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जैसा की आप जानते ही होंगे गोकर्ण, मंदिर के साथ साथ अपने अप्रतिम समुद्रतटों हेतु प्रसिद्ध है।

यदि आपने शीत ऋतु के आरम्भ में गोकर्ण यात्रा की योजना बनायी है तो मार्ग में स्थित विभूति जलप्रपात, याना गुफाएं तथा जंगलों की हरियाली का आनंद अवश्य उठायें।

विभूति झरना

विभूति झरना पश्चिमी घाटी के जंगलों की गोद में छुपा एक सुन्दर जलप्रपात है। अन्य पर्यटन स्थलों के विपरीत यह प्रपात पर्यटकों की भीड़भाड़ से अछूता है।

परतों में गिरता विभूति झरना
परतों में गिरता विभूति झरना

विभूति झरने से सम्बंधित किवदंती इसे याना चट्टानों से जोड़ती है। ऐसा माना जाता है कि याना शिलाओं से बह कर आये जल से बने इस झरने के जल में पवित्र विभूति प्रवाहित होती है। इसी किवदंती के कारण इस झरने का नाम विभूति झरना पड़ गया।

विभूति झरने को जाता मार्ग
विभूति झरने को जाता मार्ग

झरने तक पहुँचने हेतु प्रवेशद्वार से लगभग १ से १.५ कि.मी की पदयात्रा करनी पड़ती है। अन्य कई जलप्रपातों की तरह यह जलप्रपात भी पदयात्रा के अंतिम चरण में ही दृष्टिगोचर होता है। पदयात्रा कष्टदायी नहीं है। जगह जगह पर बैठने की सुविधाएं हैं जहां किंचित सुस्ताते हुए आप चारों ओर के प्राकृतिक परिदृश्य का आनंद ले सकते हैं। मार्ग का प्रथम अर्धांश पक्का है किन्तु दूसरा अर्धांश कच्चा रास्ता है।

विभूति झरने को ले जाता कच्चा पथ
विभूति झरने को ले जाता कच्चा पथ

स्थानीय पंचायत नाममात्र का प्रवेश शुल्क वसूल करता है। रास्ते में स्थानीय निवासियों से मार्ग की पुष्टि करते चलें ताकि समय नष्ट ना हो।

विभूति जलप्रपात के दर्शन

विभूति झरना
विभूति झरना

विभूति जलप्रपात एक परतदार प्रपात है जिसकी ऊंचाई मेरे अनुमान से लगभग ६० से ७० फीट तक होगी। कच्चे रास्ते से जब आप यहाँ पहुंचते हैं, तो आप तलहटी अथवा चोटी पर नहीं होते। अपितु मध्य की एक परत पर पहुंचते हैं। चारों ओर घने जंगल एवं हरियाली से घिरे इस प्रपात के निकट केवल झरझर बहते झरने का कोलाहल सुनायी देता है। इस प्रपात पर प्रथम प्रहर अथवा दोपहर का कुछ समय व्यतीत करना अत्यंत आनंददायी होता है। जब मैं यहाँ पहुंची, कुछ युवक जल में अठखेलियाँ कर रहे थे एवं तैराकी में निपुण कुछ युवक तैरने की चेष्टा कर रहे थे। कुछ परिवार के सदस्य बगल में बैठकर धूप का आनंद ले रहे थे। कुल मिलाकर यह शहरी भीड़भाड़ से दूर एक अत्यंत रमणीय स्थल प्रतीत हो रहा था।

विभूति प्रपात के निकट एक जीवनरक्षक भी तैनात था जो तैराकों पर अपनी पैनी दृष्टी गड़ाए बैठा था।

मैंने न केवल विभूति झरने का आनंद लिया, अपितु आते-जाते जंगल में पदयात्रा का भी भरपूर आनंद लिया।

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विभूति जलप्रपात का विडियो

हमारे द्वारा विभूति झरने का यह विडियो देखना ना भूलें। हाई डेफिनिशन चित्रीकरण में इस प्रपात का अत्यधिक आनंद उठा सकते हैं।

अन्य जलप्रपातों की तरह विभूति जलप्रपात भी वर्षा ऋतु में अपनी चरम सीमा पर रहता है। तथापि प्रपात का जलस्तर तथा बहाव को देखते हुए सुरक्षा की दृष्टी से उस समय यहाँ आना उचित नहीं होगा। कदाचित वर्षा ऋतु में प्रपात दर्शन निषेध भी हो। अतः इस जलप्रपात के दर्शन हेतु योग्य काल शीत ऋतु है। अर्थात् अक्टोबर मास से जनवरी मास तक। तत्पश्चात जलस्तर में कमी दृश्यमान होने लगती है। हमने इस जलप्रपात के दर्शन नवम्बर २०१७ में किये थे। प्रवेशद्वार पर एक आकर्षक स्वागत तोरण खड़ा किया जा रहा था। प्रपात से वापिस लौटकर हमने यहाँ एक दूकान से स्वादिष्ट भेलपूरी का भी आस्वाद लिया था।

वर्षा ऋतु के पश्चात जंगल की आर्द्रता के कारण यह सम्पूर्ण स्थल जोंक से भरा हुआ है। आप की जानकारी हेतु आपको बता दूं कि जोंक आरम्भ में इतने छोटे होते हैं कि साधारण कीड़ा मानकर आप उन पर ध्यान नहीं देते। उनका आकार १ मिलीमीटर चौड़ा तथा लम्बाई १ इंच से भी कम होती है। चुपके से वे आप के पैरों पर चिपककर, बिना त्रास दिए, रक्त चूसने लगते हैं। तत्पश्चात वे साधारणतः १.५ से ३ इंच तक लम्बे हो जाते हैं। यद्यपि जोंक हानिकारक नहीं होते, फिर भी यदि जोंक ने आपके रक्त का आस्वाद ले ही लिया हो तो किसी स्थानीय निवासी से उसे पृथक करने की पद्धति तथा उपचार की जानकारी ले लें।

विभूति जलप्रपात के दर्शन हेतु आप अपने रहने की व्यवस्था सिरसी, गोकर्ण अथवा देवनहल्ली ग्राम के ‘सात्विक होमस्टे’ में कर सकते हैं। वे आपको जंगल पदयात्रा, ग्रामदर्शन तथा पक्षी अवलोकन हेतु पदयात्रा इत्यादि की सुविधाएं भी मुहैय्या करा सकते हैं।

विभूति झरने के पास शौचालय
विभूति झरने के पास शौचालय

विभूति झरना सिरसी से लगभग ४४ कि.मी. तथा गोकर्ण से लगभग ४२ कि.मी. पर स्थित है। सिरसी से आप मट्टीघट्टा, देवनहल्ली तथा हेगडेकट्टा होते हुए प्रवेशद्वार तक पहुंचते हैं।

याना शिलाएं, गुफाएं तथा शैल समूह

याना की भैरावेश्वर शिला
याना की भैरावेश्वर शिला

पश्चिमी घाट के सह्याद्री पर्वत श्रंखला के घने वनों के भीतर दो विशाल शिलाएं हैं। यह शिलाएं दूर से दृश्यमान नहीं हैं। घने वन में स्थित एक छोटी पगडंडी के द्वारा आप जैसे ही वन में इन शिलाओं की दिशा में आगे बढ़ेंगे, गर्व से खड़ी यह विशाल शिलाएं दृष्टिगोचर होने लगेंगी। सह्याद्री के घने वनों के मध्य आश्चर्यजनक रूप से अकस्मात् दृष्टिगोचर होते इन शिलाओं के युगल जोड़े को देख आपका मुँह खुला का खुला रह जाएगा तथा आँखें चौड़ी हो जायेंगी। इन ठोस काले चूने पत्थर की शिलाओं के समीप पहुंचते ही आप एक श्याम वर्ण का वृत्त देखेंगे। राख सदृश पदार्थ से बना यह वृत्त अपने आसपास की भूरी मिटटी से पूर्णतया भिन्न है। सम्पूर्ण दृश्य देखकर हम सोच में पड़ जाते हैं कि घने वन में उपस्थित यह शिलायें आखिरकार क्या हैं तथा कहाँ से आयी हैं।

वैज्ञानिक कारणों की तो जानकारी मुझे नहीं है, यद्यपि कुछ किवदंतियां इनका वर्णन पौराणिक रूप में अवश्य करती हैं। इन दो शिलाओं को इन किवदंतियों में भैरवेश्वर तथा मोहिनी कहा गया है। भैरवेश्वर अर्थात् भगवान् शिव तथा मोहिनी जो भगवान् विष्णु का स्त्री रूप अवतार है। इन दो शिलाओं में जो अधिक विशाल तथा ऊंचा है उसे भैरवेश्वर माना जाता है। भैरवेश्वर शिला की ऊंचाई १२० मीटर है तथा मोहिनी शिला ९० मीटर ऊंची है। इन दो शिलाओं के आसपास कुछ अन्य अति लघु शिलाएं हैं किन्तु इनमें से किसी का भी उल्लेख हेतु महत्वपूर्ण प्रतीत नहीं हुई।

याना शिलाओं की पौराणिक कथाएं

कुछ किवदंतियों के अनुसार असुर भस्मासुर ने भगवान् शिव को प्रसन्न करने हेतु घोर तपस्या की थी। भोलेनाथ भगवान् शिव ने प्रसन्न होकर भस्मासुर की इच्छा पूर्ण करते हुए उसे वरदान दिया कि वह जिस किसी के शीर्ष पर हाथ रखेगा वह भस्म हो जाएगा।

याना की मोहिनी शिला
याना की मोहिनी शिला

अपनी नव प्राप्त शक्ति को परखने हेतु भस्मासुर भगवान् शिव के ही शीश पर साथ रखने उनकी ओर दौड़ पड़ा। स्वयं की रक्षा करने हेतु शिव वहां से भागने लगे तथा भस्मासुर उनका पीछा करने लगा। अंततः भगवान् विष्णु ने मध्यस्थ की भूमिका निभाते हुए मोहिनी अवतार ग्रहण किया। मोहिनी ने भस्मासुर को अपने मोहपाश में बांधते हुए उसे नृत्य हेतु आमंत्रित किया। भस्मासुर को अपनी नृत्य मुद्राओं का अनुसरण करने हेतु बाध्य किया। नृत्य करते मोहिनी ने अपने शीश पर हाथ धरने की मुद्रा धारण की। मोहिनी का अनुसरण करते भस्मासुर ने भी अपने शीश पर साथ रखा तथा अपने वरदान के फलस्वरूप स्वयं ही भस्म हो गया।

ऐसा माना जाता है कि मोहिनी रुपी विष्णु ने याना में ही यह नृत्य किया था तथा यह दो शिलाएं शिव व विष्णु का प्रतिरूप हैं। भैरवेश्वर अर्थात भस्मासुर का इश्वर। इस स्थान को भैरव क्षेत्र भी कहा जाता है। महाशिवरात्रि के पर्व पर यहाँ श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है।

याना गुफा मंदिर

याना स्थित भैरवेश्वर शिला का परिक्रमा पथ
याना स्थित भैरवेश्वर शिला का परिक्रमा पथ

गुफा मंदिर को भैरवेश्वर मंदिर भी कहा जाता है। यह भैरवेश्वर शिला के भीतर, आधार पर स्थित है। इस गुफा में एक स्वयंभू शिवलिंग प्राप्त हुआ था जो अब भी यहां स्थित है। इस मंदिर में भगवान् शिव के अवतार भैरवेश्वर की मूर्ति स्थापित है। साथ ही चंडिका देवी की कांस्य प्रतिमा भी स्थापित है। अर्थात् भगवान् शिव अपनी शक्ति समेत यहाँ स्थापित हैं। इस प्राकृतिक गुफा के भीतर निरंतर जल रिसता रहता है जो शिवलिंग के ऊपर गिरता रहता है। अतः इस लिंग को गंगोद्भव भी कहते हैं। यही जल है जो आगे जाकर विभूति प्रपात के जल में परिवर्तित हो जाता है और अंततः नीचे बहती अघनाशिनी नदी में विलीन हो जाता है।

याना शिला के आस पास पैदल पथ
याना शिला के आस पास पैदल पथ

हम जब यहाँ पहुंचे, संध्या होने को थी। एकाध पर्यटक ही शेष था। वापिस लौटते समय अन्धकार में जंगल की पदयात्रा करना कुछ भयावह तथा कुछ रोमांचक था। याना की यह शिलाएं अत्यंत अद्भुत हैं। बड़ी शिला के भीतर से जाती पगडंडी वास्तव में मंदिर का परिक्रमा पथ है। अतः इस पथ पर बिना जूतों व चप्पलों के परिक्रमा की जाती है। इस कारण कभी कभी यह परिक्रमा कष्टकारी भी प्रतीत होती है क्योंकि मार्ग में पड़े छोटे छोटे पत्थर के टुकड़े पाँव के तलुओं में चुभते हैं। इस परिक्रमा में कुछ सीड़ियाँ चढ़नी पड़ती हैं तथा कुछ कदम उतरना पड़ता है। दोनों शिलाओं के मध्य गणेशजी का एक छोटा मंदिर है। यद्यपि मेरी यात्रा के समय इस मंदिर के पट बंद थे।

याना शिला के अन्दर से आकाश के दर्शन
याना शिला के अन्दर से आकाश के दर्शन

याना की शिलाएं सिरसी से लगभग ५० कि.मी. की दूरी पर स्थित हैं। इसके दर्शन दिन के समय ही किया जाना उत्तम है। प्रवेशद्वार के निकट स्थित इकलौती छोटी सी गुमटी के अतिरिक्त यहाँ कुछ उपलब्ध नहीं है।

कुछ स्थानीय निवासियों ने मुझे बताया कि इन शिलाओं के शिखर पर मधुमक्खी के कई छत्ते थे। हालांकि कालान्तर में मधुमक्खियों तथा इन छत्तों की संख्या में बहुत कमी आयी है। आज भी यहाँ कुछ छत्ते देखे जा सकते हैं।

गोकर्ण अथवा सिरसी से विभूति प्रपात व याना की गुफाओं तक कैसे पहुंचे?

उत्तर कन्नड़ की वनों से घिरी संकरी सड़कें
उत्तर कन्नड़ की वनों से घिरी संकरी सड़कें

यूँ तो हमें एक स्थानीय रिश्तेदार याना की गुफाओं तक गाड़ी द्वारा ले आये थे। गाड़ी के अतिरिक्त बस से भी यहाँ पहुंचा जा सकता है। पर्यटक सिरसी तथा गोकर्ण के मध्य दौड़ती अंतर्राज्यीय बस द्वारा दिन के समय यहाँ पहुँच सकते हैं। मार्ग संकरा है तथा कुछ ही बसें इस मार्ग पर दौड़ती हैं। सिरसी अथवा गोकर्ण बस स्थानकों से आवश्यक जानकारी प्राप्त कर यात्रा नियोजित की जा सकती है। पर्यटकों हेतु भोजन इत्यादि तथा शौचालय की केवल मूलभूत सुविधाएं ही उपलब्ध हैं। मार्ग का अधिकतम भाग वनों से होकर जाता है। अतः दुपहिया वाहन चालाक सावधानी से गाड़ी हांके। जहां तक हो सके वर्षा ऋतु में यहाँ की यात्रा न करें।

मिर्जन दुर्ग

मिर्जन दुर्ग का प्रवेश द्वार
मिर्जन दुर्ग का प्रवेश द्वार

विजयनगर साम्राज्य का एक ग्राम था गेरासोप्पा। यहीं की महारानी चेन्नाभैरा ने १६वीं. सदी में मिर्जन दुर्ग का निर्माण करवाया था। इस दुर्ग के दर्शन से पूर्व मुझे यह जानकारी नहीं थी कि यह दुर्ग उन भारतीय स्मारकों में से एक है जिसका सम्पूर्ण निर्माण स्त्रियों द्वारा किया था। पश्चिमी तट के समीप स्थित यह एक विशाल दुर्ग था। आपकी जानकारी हेतु, मिर्जन बंदरगाह का उपयोग गुजरात बंदरगाह के सहयोग द्वारा व्यापार हेतु किया जाता था। आपको यह जानकार अत्यंत आश्चर्य होगा कि उन दिनों यहाँ मुख्य रूप से कागज का व्यापार किया जाता था। इसी कारण महारानी को कागज महारानी के नाम से भी जाना जाता है।

मिर्जन दुर्ग कर्नाटक
मिर्जन दुर्ग कर्नाटक

पर्याप्त रखरखाव के अभाव में मिर्जन दुर्ग का अधिकतम भाग खँडहर में परिवर्तित हो चुका है। फिर भी इसके सम्पूर्ण दर्शनोपरांत इसकी मूल भव्यता का अनुमान लगाया जा सकता है। दृड़ भित्तियाँ तथा कई विशाल कुँए दुर्ग के अवशेषों के मध्य आज भी इसका प्रत्यक्ष उदाहरण हैं। एक वृक्ष के नीचे महिषासुरमर्दिनी का एक छोटा मंदिर अब भी सजीव है।

जिस दिन मैंने मिर्जन दुर्ग के दर्शन किये थे, यहाँ अनेक शालेय विद्यार्थी भ्रमण हेतु उपस्थित थे। उनका कोलाहल एवं लीलाएं इस वीरान उजड़े दुर्ग को सजीव कर रहे थे।

मिर्जन दुर्ग का विहंगम दृश्य
मिर्जन दुर्ग का विहंगम दृश्य

मिर्जन दुर्ग एक तटीय क्षेत्र में स्थित होने के कारण यहाँ का वातावरण अधिकतर ऊष्ण रहता है। ग्रीष्म ऋतु तथा वर्षा ऋतु में यहाँ की बढ़ती आर्द्रता असुविधाजनक हो सकती है। अतः मेरा सुझाव है कि इस दुर्ग के दर्शन के समय सूर्य की कठोर किरणों से रक्षा करने हेतु पर्याप्त मात्र में पीने का जल रखें तथा अपना सर ढकने हेतु टोपी रखें।

मिर्जन दुर्ग सिरसी से लगभग ६० कि.मी. तथा गोकर्ण से २२ कि.मी.की दूरी पर स्थित है।

मेरा सुझाव है कि गोकर्ण तथा सिरसी की यात्रा करते समय विभूति प्रपात तथा याना गुफाओं के साथ साथ समीप के अन्य रमणीय पर्यटन स्थलों के भी दर्शन करें। इनमें कुछ हैं, जोग जलप्रपात, इक्केरी, केलदी इत्यादि।

अनुवाद: मधुमिता ताम्हणे

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अम्बोली घाट – पश्चिमी घाट में बसी झरनों की नगरी, महाराष्ट्र https://inditales.com/hindi/amboli-ghat-waterfalls-maharashtra/ https://inditales.com/hindi/amboli-ghat-waterfalls-maharashtra/#respond Wed, 12 Sep 2018 02:30:38 +0000 https://inditales.com/hindi/?p=728

अम्बोली घाट, हरे-भरे पश्चिमी घाट जो भारत और विश्व में जैव विविधता का प्रसिद्ध स्थल है, का एक छोटा सा हिस्सा है। वर्षा ऋतु के दौरान यह पूरी पर्वत-श्रेणी जैसे जीवंत सी हो उठती है और हरियाली की चादर ओढ़े अपने दर्शकों और इस मार्ग से गुजरनेवाले प्रत्येक व्यक्ति को अपनी सुंदरता से मंत्रमुग्ध कर […]

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अम्बोली घाट - झरनों का साम्राज्य
अम्बोली घाट – झरनों का साम्राज्य

अम्बोली घाट, हरे-भरे पश्चिमी घाट जो भारत और विश्व में जैव विविधता का प्रसिद्ध स्थल है, का एक छोटा सा हिस्सा है। वर्षा ऋतु के दौरान यह पूरी पर्वत-श्रेणी जैसे जीवंत सी हो उठती है और हरियाली की चादर ओढ़े अपने दर्शकों और इस मार्ग से गुजरनेवाले प्रत्येक व्यक्ति को अपनी सुंदरता से मंत्रमुग्ध कर देती है। जब हम कास पठार और सातारा की यात्रा पर जा रहे थे उस वक्त रास्ते में अंबोली घाट से हमारा बहुत ही संक्षिप्त परिचय हुआ। उसी पल हमने फिर से वहाँ पर जाने का निश्चय कर लिया था और अगले साल हमने झरनों की नगरी अंबोली घाट के दर्शन करने हेतु एक खास यात्रा का आयोजन किया। मुंबई की भगदड़ से दूर बसी यह जगह महाराष्ट्र एक प्रसिद्ध पहाड़ी इलाका है।

महाराष्ट्र के पर्यटक स्थल  

अम्बोली घाट के झरने   
झर झर बहते झरने - अम्बोली घाट
झर झर बहते झरने – अम्बोली घाट

अंबोली घाट गोवा के पणजी शहर, जहाँ पर हम रहते हैं, से लगभग 90 कि.मी. की दूरी पर बसा हुआ है, जहाँ तक बड़ी आसानी से पहुंचा जा सकता है। रास्ते में हम नाश्ता करने के लिए सावंतवाड़ी में रुके और फिर बीच-बीच में कुछ मौसमी नदियां देखते हुए गरमा-गरम चाय की चुसकियाँ लेते हुए यहाँ-वहाँ थोड़ी देर के लिए रुके। रास्ते के उतार-चढ़ाव पार करते हुए आखिर हम पश्चिमी घाट की थोड़ी सहल सी ढलान में पहुंचे जहाँ से आगे हमे हरी-भरी वादियाँ और घाटियां हमारा स्वागत करती हुई दिखाई देने लगी। साथ में बंदरों के बड़े-बड़े समूह भी नज़र आने लगे।

छोटे बड़े झरने - अम्बोली घाट
छोटे बड़े झरने – अम्बोली घाट

जैसे ही हमे पहला झरना नज़र आया हम वहीँ रुक गए। झरनों को पास से देखने के लिए तथा वहाँ की ताज़ा हवा और हरे-भरे परिसर का आनंद उठाने के लिए उस झरने के थोड़ा और पास चले गए। यहाँ पर हमने आस-पास की कुछ तस्वीरें भी ली। शुक्र है कि हम यहाँ पर पहले भी आए थे, जिसके चलते हमे पता था कि यहाँ से लेकर ‘बड़ा धबधबा’ अर्थात बड़े झरने तक हमे अनेक छोटे-बड़े झरने मिलने वाले थे और इसीलिए हमने आगे की यात्रा पैदल ही करने का निश्चय किया।

दूर से अम्बोली घाट के झरनों का दृश्य
दूर से अम्बोली घाट के झरनों का दृश्य

रास्ते में हमे बहुत सी जल-धाराएँ दिखी, जो नीचे जाकर नदी से मिलने के लिए आतुर थीं और ये नदियां आगे जाकर समुद्र में विलीन होने के लिए अधीर थीं। तथा यह समुद्र बादलों में व्याप्त होने के लिए उत्सुक था और बादल हमारे खेतों और खलिहानों में खुशियाँ बरसाने के लिए और फिर से इन झरनों का रूप लेकर हमारे चेहरे पर हँसी खिलाने के लिए उतावले थे।

अंबोली घाट के परिसर का भ्रमण
अम्बोली घाट के झरनों का विडियो 

यह अंबोली घाट की यात्रा और वहाँ के झरनों का एक छोटा सा विडियो है, इसे जरूर देखिये।

ये झरने सड़कों से गुजरते हुए आगे जाकर किसी गहरे दून में गिरते हैं। यहाँ पर कुछ विशेष सुविधाजनक स्थल हैं जहाँ से आप अनेक झरनों को ऊंची और ढलाऊ चट्टानों से नीचे गिरते हुए देख सकते हैं। तो कुछ जगहों पर ये झरने पेड़ों के पीछे छिपे हुए होते हैं और सिर्फ अपनी गरजती हुई आवाज़ से अपने होने का एहसास दिलाते हैं। तो एक जगह पर ये झरने किसी कृत्रिम दीवार की तरह लग रहे थे, जिसमें से बाहर निकले हुए छोटे-छोटे गुलाबी रंग के फूल जैसे प्रकृति के इस निरालेपन से बिलकुल अचंभित थे। ऐसा लग रहा था जैसे इस सीधे खड़े बगीचे के लिए कोई खास प्रकृतिक जलदान की तकनीक बनाई गयी हो।

छिपते निकलते झरने - अम्बोली घाट
छिपते निकलते झरने – अम्बोली घाट

यहाँ ऊंचे-ऊंचे पर्वत हैं जिनके एक तरफ अनेक जलधाराएँ बहती हैं तो दूसरी तरफ गहरी घाटियां हैं जिनमें इन जल-धाराओं का पानी इकट्ठा होता है। ऐसा लगता है जैसे आप इन झरनों के बीच में से गुजर रहे हों, लेकिन शुक्र है उन अभियंतों का जिन्होंने यहाँ पर इन सड़कों का निर्माण किया। इनके होते आप बिना भीगे इन झरनों का आनंद उठा सकते हैं और सिर्फ तब तक जब तक कि बारिश ना होने लगे।

बादलों से खेलते झरने - अम्बोली घाट
बादलों से खेलते झरने – अम्बोली घाट

इस पदयात्रा के दौरान कुछ जगहों पर हम वास्तव में बादलों के बीच से चलते हुए आगे बढ़े, तो कुछ जगहों पर हमे इन बादलों के हटने का इंतजार करना पड़ता था ताकि सामने साफ दिखाई दे सके। कभी-कभी तो ये बादल हट जाते थे लेकिन कई बार वे वहीं पर डटे रहते थे।

झरनों के पास मिलनेवाले स्वादिष्ट खाद्य पदार्थ    
बरसात में भुना भुट्टा
बरसात में भुना भुट्टा

बड़े झरने के पास पहुँचते-पहुँचते हम सभी भूख से व्याकुल हो गए थे। वहाँ पर पहुँचते ही हमने बड़ी चाव से वहीं पर मिलनेवाले गरमा-गरम और स्वादिष्ट साबूदाने के वड़े खाए। यहाँ के साधारण से दुकानों में आपको चाय, प्याज के पकोड़े, साबूदाने के वड़े और भुना हुआ भुट्टा जैसे व्यंजन मिलते हैं। यहाँ पर सबकुछ आपके सामने ही ताज़ा-ताज़ा बनाया जाता है और परोसा जाता है। पिछली बार जब हम यहाँ आए थे, तो यहाँ की हर दुकान पर मैगी नूडल्स ही बिक रही थी, लेकिन इस बार यहाँ पर मैगी का नामोनिशान नहीं था। चारों ओर बहते पानी और साथ में हो रही वर्षा के उस वातावरण में चाय और पकड़ों से अच्छा और स्वादिष्ट और कुछ हो भी नहीं सकता था। जब हम बड़े झरने के पास पहुंचे तो वहाँ पर बहुत वर्षा हो रही थी, जिसके कारण हमने आगे जाकर बाकी के झरने देखने का निश्चय किया जो लगभग 10 कि.मी. की दूरी पर बसे थे।

नागरतास झरना, अंबोली घाट 
नागरतास झरने का विडियो

यात्रा के दौरान लिया गया नागरतास झरने का यह सुंदर सा विडियो जरूर देखिये।

नागरतास एक विशाल मौसमी झरना है। इस झरने की सबसे खास बात है उसका तलभाग यानी खंदक जहाँ पर झरने का पानी गिरता है। यह खंदक गिरते हुए पानी के प्रभाव के कारण बहुत ही प्रखर और संकीर्ण बन गया है। आप देख सकते हैं कि किस प्रकार से झरने का पानी इस विशाल मखराली चट्टान में से अपना रास्ता बनाते हुए आगे बढ़ता है। यह सबकुछ सच में बहुत ही अप्रतिम है।

नागरतास मूर्ति
नागरतास मूर्ति

यहाँ पर इस झरने को देखने के लिए एक खास मंच बनवाया गया है, जिसके प्रवेश द्वार के पास ही एक छोटा सा मंदिर है। इस मंदिर में स्थापित मूर्ति के सामने घंटियों का एक बड़ा सा गुच्छा लटकाया गया है। शायद इसके पीछे भी कोई ना कोई कहानी जरूर होगी लेकिन उस समय मैं पूरी तरह से उस झरने की खूबसूरती में डूब गयी थी, जिसके चलते मैं अन्य किसी भी बात पर ध्यान देने की स्थिति में नहीं थी।

उस मंच पर खड़े होकर हम झरने में रूपांतरित होती उस नदी को देख रहे थे। बाद में हम एक और पुल जैसी बनी किसी संरचना के पास गए जो पानी के संघात से निर्मित सँकरी सी घाटी पर खड़ी थी। मैंने इस प्रकार की कोई चीज़ इससे पहले कहीं पर नहीं देखी थी।

हिरण्यकेशी गुफा मंदिर 
हिरण्यकेशी गुफा एवं शिव मंदिर
हिरण्यकेशी गुफा एवं शिव मंदिर

यहाँ-वहाँ घूमते-घूमते हम हिरण्यकेशी गुफा के पास पहुंचे, जो व्यावहारिक रूप से एक शिव मंदिर है। इस गुफा तक जाने वाले उतार-चढ़ाव वाले मार्ग के दोनों तरफ आपको मंत्रमुग्ध कर देनेवाले परिदृश्य मिलते हैं। यहीं पर हमने पहली बार गेंद जैसे गोलाकार पौधे देखे, जो यहाँ की झड़ियों में इधर-उधर छितरे हुए थे। मैं आज भी इन पौधों का नाम जानने की कोशिश में हूँ, अगर आप में से किसी को भी इन पौधों के बारे में कोई भी जानकारी हो तो कृपया हमे जरूर बताइए। यहाँ पर एक छोटी सी नदी के ऊपर एक रोड़े का पुल बना हुआ है, जिसे पार करके आप उस तरफ जा सकते हैं। हम घाटी जैसे प्रतीत होने वाले घास के मैदानों से चलते हुए इस प्राचीन मंदिर के पास पहुंचे थे जो एक समय पर बस एक गुफा हुआ करता था।

इस मंदिर के सामने ही एक सरोवर है जो पास में बहनेवाली जल-धारा से जुड़ा हुआ है। इस सरोवर का आकार कुछ रोचक सा था। यहाँ पर एक हवन कुंड भी था, जो इस मंदिर की सादगी को और भी खूबसूरत बना रहा था। इस मंदिर तक जानेवाली पगडंडी सुव्यवस्थित रूप से बनाई गयी थी जिससे कि लोग आराम से उसपर चल सके। यहाँ पर भी आपको एक तरफ से दूसरी तरफ बहती अनेक जल-धाराएँ मिलती हैं।

कवळेशेट या कवळेसाद व्यूव पॉइंट    
अम्बोली घाट के रास्ते
अम्बोली घाट के रास्ते

हमने फिर से मुख्य सड़क पर आकर कवळेशेट या कवळेसाद तक जानेवाला रास्ता लिया। कवळेसाद तक हमारी यात्रा बहुत ही खूबसूरत रही। रास्ते में हमे गन्नों के खेतों से होकर जाना पड़ा जो पूर्ण रूप से कोहरे से आवृत्त थे। तथा पूरे रास्ते में मिलने वाली घाटी के सुंदर परिदृश्य भी जैसे अपनी सुंदरता को व्यक्त करने से शर्मा रहे थे और पूरे समय बादलों की उस घनी चादर के पीछे ही छिपकर बैठे हुए थे। और जैसे ही हम घाटी को पार करके आगे बढ़ने ही वाले थे कि बादलों ने हमे उनकी एक छोटी सी झलक प्रदान की जैसे कि हमे चिढ़ा रहे हो।

अगर हम चाहते तो वहीं पर पर्यटकों के लिए बने दर्शनगाह में थोड़ी देर के लिए रुक सकते थे, लेकिन उस गंदे और विद्रुप से अपूर्ण सीमेंट के ढांचे में रुकने से अच्छा था कि हम वहाँ से चले जाए। आगे जाकर हम एक अच्छे से भोजनालय में गए जहाँ पर हमने बहुत ही स्वादिष्ट मालवणी खाना खाया।

बादलों के बीच प्रकृति की सुंदरता का आनंद लेना
अम्बोली घाट के कुछ पल
अम्बोली घाट के कुछ पल

अब फिर से बड़े झरने के पास जाने का समय आ गया था। वहाँ पर हमने झरने के ऊपर तक जानेवाली सीढ़ियों पर कुछ समय बिताया और आस-पास के वातावरण का अवलोकन भी किया। हमे वहाँ पर कुछ परिवार दिखे जो पूर्ण रूप से झरने का आस्वाद ले रहे थे। तो कुछ अन्य लोग पानी में न गिरने का ध्यान रखते हुए और अपनी मुस्कुराहट ओढ़े एक-दूसरे की तस्वीरें खींच रहे थे। यह अंबोली घाट का सबसे अधिक भीड़ वाला भाग है।

ऐसे में अगर आपको प्रकृति के साथ अपना एकांत अधिक प्रिय है, तो आप बस दूर से ही झरने के दर्शन करके वहाँ से गुजर सकते हैं। लेकिन अगर आपको लोगों के बीच रहना पसंद है तो आप वहाँ पर कुछ समय बिता सकते हैं। जैसे कि हमने भी गरमा-गरम चाय और पकौड़ों के साथ इस माहौल का पूरा लुत्फ उठाया। यहाँ पर बहुत भीड़ होने के कारण यह जगह उतनी साफ नहीं है, जितनी कि यह बाकी की सड़क है। इसके अलावा कभी-कभी आपको वहाँ पर कुछ उद्धत पुरुषों की टोली भी मिलती है जो शराब के नशे में पूर्ण रूप से डूबे हुए होते हैं।

अब वापस घर जाने का समय आ गया था, यद्यपि रास्ते में हमे सावंतवाड़ी में रुकना था।

अंबोली घाट के इन अनेक झरनों के दर्शन करने के लिए, तथा महाराष्ट्र का सबसे उत्तम पहाड़ी इलाका यानी अंबोली हिल स्टेशन घूमने के लिए आपको लगभग आधा दिन या फिर एक पूरा जरूर चाहिए।

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दूधसागर जलप्रपात – गोवा का प्रसिद्द एवं भारत का सर्वोत्कृष्ट झरना https://inditales.com/hindi/dudhsagar-waterfalls-goa/ https://inditales.com/hindi/dudhsagar-waterfalls-goa/#comments Wed, 22 Aug 2018 02:30:28 +0000 https://inditales.com/hindi/?p=923

दूधसागर जलप्रपात, इस नाम का स्मरण होते ही विशाल दूधिया जलप्रपात से होकर जाती रेलगाड़ी का दृश्य मानसपटल पर उभरने लगता है। ऊंचा, परतदार तथा चिरस्थायी यह रमणीय झरना गोवा का प्रमुख दर्शनीय स्थल बन चुका है। इसका श्रेय कई मायनों में भारत के चलचित्रों को जाता है जिन्होंने इसकी सुन्दरता को परदे पर उतार […]

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दूधसागर जलप्रपात, इस नाम का स्मरण होते ही विशाल दूधिया जलप्रपात से होकर जाती रेलगाड़ी का दृश्य मानसपटल पर उभरने लगता है। ऊंचा, परतदार तथा चिरस्थायी यह रमणीय झरना गोवा का प्रमुख दर्शनीय स्थल बन चुका है। इसका श्रेय कई मायनों में भारत के चलचित्रों को जाता है जिन्होंने इसकी सुन्दरता को परदे पर उतार का इसे जन मानस तक पहुँचाया है। चेन्नई एक्सप्रेस जैसे कई चलचित्रों में इस जलप्रपात के अप्रतिम दृश्यों को उत्कृष्टता से प्रस्तुत किया गया है। यह और बात है कि दूधसागर झरने को गोवा के अपेक्षा अन्य स्थलों में दर्शाया गया है।

गोवा का दूधसागर झरना
गोवा का दूधसागर झरना

इस मनोरम दूधसागर जलप्रपात को मैंने पहली बार तब देखा जब मैं महाराष्ट्र पर्यटन द्वारा योजित सात दिनों की भव्य रेल यात्रा ‘डेक्कन ओडिसी’ द्वारा महाराष्ट्र एवं गोवा के पर्यटन स्थलों का आनंद उठा रही थी। अपने आरामदायक कक्ष से इस अतिसुन्दर झरने के दर्शन प्राप्त कर मैं आत्मविभोर हो गयी थी। दर्शनोपरांत हम सब यात्री इसी जलप्रपात की सुन्दरता के गुणगान में डूब से गए थे। मेरे गोवा स्थानान्तरण के पश्चात मैंने इस जलप्रपात की सुन्दरता के दर्शन कई बार तथा कई रेल गाड़ियों द्वारा गोवा आते जाते प्राप्त किये थे। अतः मैंने निश्चय किया कि इस समय रेलगाड़ी द्वारा दर्शन ना करते हुए, वहां प्रत्यक्ष उपस्थित होकर इसकी सम्पूर्ण सुन्दरता को आत्मसात करूं।

दूधसागर जलप्रपात की कथा

दूधसागर जलप्रताप के प्रथम दर्शन
दूधसागर जलप्रताप के प्रथम दर्शन

दूधसागर अर्थात् दूध का सागर। इस नाम के पीछे भी एक रोचक कथा है।

इस कथा के अनुसार पश्चिमी घाटों के मध्य एक झील हुआ करती थी जहां एक राजकुमारी अपनी सखियों सहित स्नान करने प्रतिदिन आती थी। स्नानोपरांत वे घड़े भर दूध का सेवन करती थीं। एक दिवस वे झील के जल में अठखेलियाँ कर रही थीं। तब वहां से जाते एक नवयुवक की दृष्टी उन पर पड़ी और वह वहीं ठहर कर उन्हें निहारने लगा। अपनी लाज रखने हेतु राजकुमारी की सखियों ने दूध का घडा झील में उड़ेल दिया ताकि दूध की परत के पीछे वे स्वयं को छुपा सकें।
कहा जाता है कि तभी से इस प्रपात का दूधिया जल अनवरत बह रहा है।

इस रोचक कथा को सुनने के पश्चात जब आप इस प्रपात के जल को देखेंगे तो वह अवश्य दूधिया प्रतीत होगी।

दूधसागर जलप्रपात के तथ्य

दूधसागर – झरने के नदी तक
दूधसागर – झरने के नदी तक

मांडवी नदी पश्चिमी घाट से पणजी की ओर बहती है और अरब सागर में जा मिलती है। दूध सागर जलप्रपात मांडवी नदी की इसी यात्रा का एक संक्षिप्त विराम है। यह भारत का पांचवा सर्वोच्च जलप्रपात है।

दूध सागर जलप्रपात की सम्पूर्ण ऊंचाई ३०० मीटर अथवा १००० फीट से किंचित अधिक है।

दूधसागर जलप्रपात ऊंचाई से नीचे एक गहरे हरे झील में गिरता है। तत्पश्चात इसका जल पश्चिमी दिशा में गमन करते हुए अरब महासागर में जा मिलता है।

गोवा के दूधसागर जलप्रपात यात्रा का विडियो

भारतीय रेल की पटरियां यहाँ कुछ इस प्रकार बिछी हुई हैं कि रेल इस प्रपात के मध्य से होकर जाती है। इसी दृश्य का एक विडियो यहाँ प्रस्तुत है जिसे देख आप प्रत्यक्ष इस अद्भुत दृश्य का आनंद उठा सकते हैं।

दूधसागर जलप्रपात के आसपास के मंदिर

जीप द्वारा घने वन के प्रवेश द्वार से दूधसागर जलप्रपात की ओर जाते हमें कुछ छोटे घर दृष्टिगोचर हुए। इसका अर्थ है कि कुछ लोग यहाँ निवास भी करते हैं। हमने यहाँ कुछ गन्ने के खेत भी देखे। हमें बताया गया कि किसान इन खेतों में कार्य करने प्रातःकाल आते हैं तथा कार्य समाप्त कर सान्झबेला में यहाँ से वापिस चले जाते हैं। अतः यहाँ मंदिरों की उपस्थिति आश्चर्यजनक घटना नहीं है।

दूधसागर बाबा मंदिर
दूधसागर बाबा मंदिर

हमें राह में दो मंदिरों के दर्शन हुए। हालांकि जीप से नीचे उतरने की अनुमति ना होने के कारण हम इनके भीतर नहीं जा सके। हमें बताया गया कि पहला मंदिर दूधसागर बाबा का है। यह दूधसागर बाबा कौन हैं मुझे इसकी जानकारी नहीं है। यद्यपि मंदिर अपेक्षाकृत नवीन प्रतीत हो रहा था।

दूसरा मंदिर सत्तरी देवी का था। यह वही सत्तरी देवी हैं जिनके सम्पूर्ण गोवा में अनेक देवस्थान हैं। हालांकि गोवा में शान्तादुर्गा देवी के भी कई मंदिर हैं।अतः यह प्रामाणिकता से नहीं कहा जा सकता कि गोवा की पीठासीन देवी सत्तरी देवी हैं अथवा शांतादुर्गा देवी। लोगों की मान्यता है कि शांतादुर्गा देवी तथा सत्तरी देवी एक ही देवी के दो स्वरुप हैं।

दूधसागर जलप्रपात के दर्शन

दूधसागर झरने की और जाता कच्छा रास्ता
दूधसागर झरने की और जाता कच्छा रास्ता

दूधसागर जलप्रपात के दर्शन हेतु हम प्रातःकाल ९ बजे मोलें गाँव पहुंचे। पर्यटन का मौसम होने के कारण जलप्रपात दर्शन हेतु भारी मात्रा में पर्यटक यहाँ उपस्थित थे। जीप की टिकट के लिए तो एक लम्बी सी कतार थी। हम भी कतार में खड़े हो गए। दो घंटों की प्रतीक्षा के उपरांत हमें जीप की टिकट प्राप्त हुई। जीप द्वारा वन के प्रवेशद्वार पर पहुँचने के उपरांत भी वन में प्रवेश से पहले हमें लगभग एक घंटा प्रतीक्षा करनी पड़ी। हमें बताया गया कि वन की मूल प्रकृति को नष्ट होने से बचाने के लिए जीपों की सीमित संख्या ही भीतर भेजी जाती है। अपने वनों के संरक्षण के लिए हम इतना तो कर ही सकते हैं।

हम वहीं कतार में खड़े होकर अपने आसपास के दृश्य का आनंद उठाने लगे। हमारे निकट से ही शांत एवं निर्मल मांडवी नदी बह रही थी। वन में जंगली पशु एवं पक्षियों के दर्शन की भी अभिलाषा थी, यद्यपि इतनी गाड़ियों एवं पर्यटकों की उपस्थिति में इसकी संभवता पर शंका थी।

कुछ क्षणों उपरांत वन के प्रवेशद्वार को पार कर हमारी गाड़ी घने जंगल में बनी पगडण्डी से आगे बढ़ने लगी। राह में हमने कई जलधाराओं को अपने इधर उधर से जाते देखा, तो दो जलधाराओं को गाडी से पार भी किया। यह एक रोमांचक अनुभव था। वर्षा ऋतू के पूर्णतया समाप्त ना होने के कारण रास्ता किंचित नम एवं कही कहीं कीचड भरा भी था।

जहां हमारी गाड़ी से हमें उतारा गया वहां एक पर्यवेक्षण बुर्ज था जिस पर चढ़ कर दूधसागर जलप्रपात दृष्टिगोचर होता है। यदि आप जलप्रपात तक की १ की.मी. की पदयात्रा नहीं करना चाहते तो आप यहीं से जलप्रपात के दर्शन कर सकते हैं। यहाँ से भी जलप्रपात का विहंगम दृश्य प्राप्त होता है। यह और बात है कि इस बुर्ज को वहां उपस्थित बन्दर अपनी संपत्ति मानते हैं। अतः आपको उनसे कुछ समझौता करना पड़ सकता है।

दूध सागर जलप्रपात तक की पदयात्रा

पत्थर अवं नदियाँ – दूधसागर के रास्ते पर
पत्थर अवं नदियाँ – दूधसागर के रास्ते पर

अड्डे पर जीप खड़ी कर हमने झरने की ओर चलना आरम्भ किया। हम सब के मनमस्तिष्क में इस विहंगम जलप्रपात को समीप से देखने की उत्तेजना हिलोरें मार रही थीं। रास्ते पर कई उतार चड़ाव पार करते हम एक जलधारा के ऊपर बने पुलिया पर पहुंचे। दायीं ओर से पत्थरों के बीच से खलखल करती आ रही जलधाराएं हमारे बाईं ओर शक्तिशाली नदिया में परिवर्तित हो रही थीं। समीप स्थित एक वृक्ष की शाखा उस नदिया पर पूर्णतः झुकी हुई थी, मानो उसके निर्मल स्पर्श का आनंद उठाना चाहती हो।

यह एक अद्भुत दृश्य था। एक ओर पत्थरों से कलकल बहती जलधारा के मधुर स्वर कानों में गूँज रहे थे तो दूसरी ओर कई जलधाराओं का इस प्रकार शक्तिशाली नदिया में परिवर्तित होते देखना अत्यंत रोमांचक था। कुछ क्षण इस मनमोहक दृश्य का आनंद प्राप्त करने के पश्चात हम आगे बढ़े। कुछ दूरी पर हमारा आनंद दुगुना हो गया जब ऐसी ही एक और जलधारा ने हमारा अविस्मरणीय स्वागत किया।

दोनों जलधाराओं को पार करने के उपरांत मार्ग किंचित चट्टानी एवं फिसलन भरा होने लगा था। मैंने अपने समक्ष कई पर्यटकों को इनसे जूझते देखा। मैं भी सावधानी से आगे बढ़ने लगी। और अचानक एक विहंगम जलप्रपात हमारे समक्ष झरझर करता बह रहा था। यहाँ से सम्पूर्ण जलप्रपात दृष्टिगोचर हो रहा था। जैसा चित्रों में देखा, उससे कहीं अधिक विशाल एवं असाधारण यह दूधसागर जलप्रपात देख हम कुछ क्षणों को जड़ हो गए थे। एक रेलगाड़ी का पुल इसे बीचोंबीच से दो भागों में विभाजित रहा था।

यह एक अत्यंत मनमोहक दृश्य था। उस पर से हमारी दृष्टी हटने को इच्छुक ही नहीं थी।

कुछ क्षणों उपरांत हम जलप्रपात के समीप पहुँचने को और आगे बढ़े। मार्ग अत्यंत जोखिम भरा था। चारों ओर फिसलन भरी चट्टाने थीं। बन्दर हमारे आसपास छलांग लगा कर अपनी उपस्थिति दर्शा रहे थे। गिरते पड़ते अंततः हम जलप्रपात के चरणों तक पहुँच ही गए। कदाचित ग्रीष्म ऋतु में मार्ग सूखा एवं अपेक्षाकृत कम जोखिम भरा हो, किन्तु ग्रीष्म ऋतु में जल की मात्रा भी कम हो जाती है।

गोवा का दूधसागर जलप्रपात

दूधसागर झरने के तल पर आनंदित पर्यटक
दूधसागर झरने के तल पर आनंदित पर्यटक

दूधसागर जलप्रपात के चरणों में समुद्री नीले रंग के जल से भरी झील है। इस झील में कई पर्यटक तैर रहे थे। सबने लाल रंग का सुरक्षा कवच पहना हुआ था तथा कई जीवनरक्षक चट्टानों पर बैठ उन पर दृष्टी रखे हुए थे। मेरी तीव्र इच्छा थी कि जलप्रपात के समीप पहुंचकर नीचे गिरते जल का कोलाहल अनुभव कर सकूं, किन्तु इतने पर्यटकों की उपस्थिति में यह संभव नहीं था। पर्यटकों के आनंदमय शोरगुल में जलप्रपात का मधुर कोलाहल लुप्त सा हो रहा था। अतः श्रवणेद्रियों पर अधिक दबाव ना डालते हुए अपने चक्षुओं द्वारा प्राप्त आनंद में सराबोर होने लगी। चंचल जल की अविचलित अनवरत धारा को देखना मनमस्तिष्क को अत्यंत शीतलता प्रदान कर रहा था।

चट्टानों पर कुछ चटक पीले रंग के आसन थे जिन पर बैठ कुछ वयस्क पर्यटक जलप्रपात का आनंद ले रहे थे। मैं भी कुछ क्षण एक आसन पर बैठ गयी। किन्तु चट्टानें मुझे अपनी ओर आकर्षित करने लगी तथा जलप्रपात के और समीप जाने को बाध्य करने लगी। पर्याप्त समय झील के किनारे बैठ जलप्रपात को निहारने के पश्चात तृप्त मन से लौटने की तय्यारी की। मन संतुष्ट था इस विचार से कि चार वर्ष गोवा में निवास के उपरांत अंततः मुझे इस विहंगम दूधसागर जलप्रपात के दर्शन प्राप्त हो ही गए।

दूधसागर जलप्रपात तक कैसे पहुंचे?

दूधसागर झरने का आनंद लेते हुए
दूधसागर झरने का आनंद लेते हुए

दूधसागर जलप्रपात, गोवा-कर्नाटक राज्यों की सीमा पर स्थित भगवान् महावीर वन्य अभ्यारण्य के भीतर स्थित है। अभ्यारण्य के किनारे स्थित मोलें गाँव से सड़क मार्ग द्वारा यहाँ पहुंचा जा सकता है। यदि आप रेलगाड़ी द्वारा यहाँ पहुँचना चाहते हैं तो कुलें स्टेशन पर उतर कर गाड़ी द्वारा भी यहाँ आसानी से पहुँच सकते हैं।

दूधसागर जलप्रपात गोवा के पणजी शहर से ७० कि.मी. व मडगाव शहर से ४६कि.मी. तथा कर्नाटक के बेलगाव शहर से लगभग ८० कि.मी. की दूरी पर स्थित है।

पणजी शहर से टैक्सी का भाडा लगभग ३००० से ४००० रुपये है। अन्य भाड़े इसी अनुपात में निर्धारित हैं।

वर्षा ऋतु के अतिरिक्त अन्य ऋतुओं में गोवा पर्यटन विभाग निर्धारित स्थलों की आयोजित यात्रा की व्यवस्था करता है। इसके अंतर्गत दूधसागर जलप्रपात के साथ साथ, मसालों के बगीचे तथा प्राचीन गोवा जैसे पर्यटन स्थलों के भी दर्शन प्राप्त हो सकते हैं। अधिक जानकारी हेतु गोवा पर्यटक विभाग के अधिकारिक वेबस्थल पर संपर्क करें।

यदि आप रोमांचक पदयात्रा में रूचि रखते हैं तो आप कुवेशी गाँव (६कि.मी), या कुलें स्टेशन (११कि.मी) अथवा कैसल रॉक (१४कि.मी) से पदयात्रा करके भी यहाँ पहुँच सकते हैं।

दूधसागर जलप्रपात के निकट उपलब्ध होटल तथा जलपानगृह

दूधसागर स्पा रेसॉर्ट – मोलें गाँव में गोवा पर्यटन विभाग का दूधसागर रेसॉर्ट उपलब्ध है। यह उस स्थल से अत्यंत निकट है जहां से जीप गाड़ी की सुविधाएं उपलब्ध होती हैं। यहाँ अत्यंत आकर्षक एवं सुख-सुविधाओं से लैस तम्बू रुपी आवास उपलब्ध हैं। यहाँ ठहर कर आप जंगल में ठहरने का आनंद प्राप्त कर सकते हैं। पिछली वर्षा ऋतु में मैंने भी यहाँ कुछ दिन अपना डेरा जमाया था तथा चारों ओर स्थित जंगल का भरपूर आनंद उठाया था। इस रेसॉर्ट के विषय में और अधिक जानकारी हेतु उनके वेबस्थल से संपर्क साधें।

जंगल कैफ़े – यह एक प्यारा सा बगीचानुमा जलपानगृह है। इसकी छत अनेक लटकते गमलों द्वारा बनायी गयी हैं जिनमें तरह तरह के पौधे उगाये हुए हैं। यह एक पर्यावरण अनुकूल स्थल है जहां हम चारों ओर से पौधों से घिरे रहते हैं। साथ ही यहाँ कचरा प्रबंधन भी दक्षता से किया जाता है। खाना सादा होते हुए भी स्वादिष्ट तथा पर्याप्त है।

जीप टिकट खिड़की के आसपास भी कुछ छोटे भोजनालय हैं जहां कई प्रकार के खाद्य प्रदार्थ उपलब्ध हैं। मछली करी यहाँ का प्रसिद्ध पक्वान्न है।

दूधसागर जलप्रपात दर्शन हेतु प्रवेश शुल्क

• जीप शुल्क – २८०० रु. प्रति जीप अथवा ४०० रु. प्रति व्यक्ति
• सुरक्षा जैकेट – ३० रु. प्रति व्यक्ति
• जंगल प्रवेश शुल्क – ५० रु. प्रति व्यक्ति
• सादा कैमरा – ३० रु. प्रति कैमरा
• विडियो कैमरा – अनुमति प्राप्ति आवश्यक है। ( कोई उन्हें बताये कि सर्व वर्तमान कैमरे विडियो भी तैयार करते हैं)
• मोबाइल कैमरा – निःशुल्क

यह सर्व शुल्क अक्टोबर २०१७ में घोषित थे। वर्तमान शुल्क में परिवर्तन शक्य है।

दूधसागर जलप्रपात तक यात्रा एवं दर्शन हेतु कुछ सुझाव

दूधसागर जलप्रताप – गोवा
दूधसागर जलप्रताप – गोवा

1. दूधसागर जलप्रपात पर्यटकों हेतु अक्टूबर मध्य से मई के अंत तक खुला रहता है। तिथि संबंधी सटीक जानकारी हेतु गोवा पर्यटन विभाग से संपर्क करें।
2. दूधसागर जलप्रपात का दर्शन वर्षा ऋतु में प्रतिबंधित है। वर्षा ऋतु में नदी तथा जलप्रपात का जल अत्यधिक उफान पर रहता है। जीप नदियों को पार कर जलप्रपात तक नहीं पहुँच सकतीं। धरती अत्यधिक फिसलन भरी होने के कारण जलप्रपात तक पैदल यात्रा भी अत्यंत खतरनाक सिद्ध हो सकता है। कुछ दलाल आपके समक्ष रेल द्वारा जलप्रपात तक पहुंचाने का प्रस्ताव रख सकते हैं। उनके प्रस्ताव को स्वीकारना मूर्खता सिद्ध हो सकती है क्योंकि कदाचित आपको वापिसी हेतु कोई रेल सुविधा प्राप्त न हो।
3. भगवान् महावीर वन्य अभ्यारण्य के भीतर प्रवेश हेतु जीप में स्थान क्रय करना आवश्यक है। मेरी यात्रा के समय यहाँ प्रतिदिन लगभग २२५ जीपों की सुविधाएं उपलब्ध थीं तथा प्रत्येक जीप में ७ व्यक्ति बैठ सकते हैं।
4. जीप द्वारा निर्धारित स्थल तक पहुँचने के उपरांत आप जलप्रपात के निकट ६० से ९० मिनट तक का समय बिता सकते हैं। इसके उपरांत जीप तक वापिस पहुंचना आवश्यक है ताकि जीप आपको वापिस पहुंचा कर अन्य यात्रियों को जलप्रपात के दर्शन हेतु ले जा सके।
5. जीप की टिकट क्रय करने हेतु लंबी कतार रहती है। जीप में बैठने के उपरांत, जंगल के प्रवेशद्वार पर भी कतार में अपनी पारी की प्रतीक्षा करनी पड़ती है। जंगल में प्रवेश से पूर्व प्लास्टिक की सर्व वस्तुओं को बाहर ही छोड़ना पड़ता है।
6. जंगल के भीतर तथा जलप्रपात के निकट अपने समीप किसी भी प्रकार का खाद्य पदार्थ न रखें। वहां उपस्थित बन्दर इनकी सुगंध आने पर आप पर हमला कर सकते हैं।
7. जीप अड्डे से जलप्रपात तक की दूरी लगभग १ की.मी. है। राह में दो नदियों के ऊपर बने नाजुक पुलों को पार करना पड़ता हैं। राह का अंतिम चरण पथरीला तथा खतरनाक है। बच्चों तथा वयस्कों के संग सावधानी पालने की अत्यंत आवश्यकता है। गोवा पर्यटक विभाग से मेरी प्रार्थना है कि वे उपयुक्त मंचों का निर्माण करा कर राह को अधिक सरल बनाए।
8. यदि आप मोलें गाँव के समीप निवास कर रहे हैं तो जलप्रपात दर्शन हेतु आधा दिवस पर्याप्त है, अन्यथा एक पूर्ण दिवस आप दूधसागर दर्शन हेतु निर्धारित करें।

चिकित्सीय सुविधाएं

1. जंगल के भीतर प्रवेश के उपरांत किसी भी प्रकार की चिकित्सीय सुविधाएं तथा खाद्य पदार्थ उपलब्ध नहीं हैं। अतः अपनी आवश्यकता की वस्तुएं साथ रखें।
2. जलप्रपात के निकट जीवन रक्षक आप पर निरंतर दृष्टी रखे रहते हैं ताकि झील में आप के साथ किसी भी प्रकार की दुर्घटना ना हो। किन्तु उनके पास औषधियाँ उपलब्ध नहीं होती हैं।
3. यदि आप झील में उतरना चाहें तो रक्षा जैकेट अवश्य पहने। यह आप की सुरक्षा हेतु अत्यंत आवश्यक है।

अनुवाद: मधुमिता ताम्हणे

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