भारत के नृत्य Archives - Inditales श्रेष्ठ यात्रा ब्लॉग Mon, 12 Jun 2023 04:56:57 +0000 en-US hourly 1 https://wordpress.org/?v=6.7.1 लद्दाख के स्पितुक बौद्ध मठ का रहस्यमयी चाम नृत्य https://inditales.com/hindi/cham-nritya-spituk-math-ladakh/ https://inditales.com/hindi/cham-nritya-spituk-math-ladakh/#comments Wed, 22 Jan 2020 02:30:17 +0000 https://inditales.com/hindi/?p=1673

बौद्ध चाम नृत्य एक आनुष्ठानिक नृत्य है। हिमालयीन क्षेत्रों, विशेषतः लद्दाख के विभिन्न बौद्ध मठों में इस उत्सव का आयोजन किया जाता है। प्रत्येक मठ अपने पञ्चांग के अनुसार भिन्न भिन्न दिवसों में इस उत्सव का आयोजन करता है तथा अपना स्वयं का गुस्तोर उत्सव मनाता है। यह लद्दाख का सर्वाधिक महत्वपूर्ण उत्सव है। मैंने […]

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बौद्ध चाम नृत्य एक आनुष्ठानिक नृत्य है। हिमालयीन क्षेत्रों, विशेषतः लद्दाख के विभिन्न बौद्ध मठों में इस उत्सव का आयोजन किया जाता है। प्रत्येक मठ अपने पञ्चांग के अनुसार भिन्न भिन्न दिवसों में इस उत्सव का आयोजन करता है तथा अपना स्वयं का गुस्तोर उत्सव मनाता है। यह लद्दाख का सर्वाधिक महत्वपूर्ण उत्सव है। मैंने जनवरी के मास में लद्दाख का भ्रमण किया था। तब लेह के समीप स्थित स्पितुक मठ में इस गुस्तोर उत्सव में भाग लेने का अवसर प्राप्त हुआ।

मुस्कुराती हुई लद्दाखी महिला
मुस्कुराती हुई लद्दाखी महिला

बुद्ध एवं बौध धर्म को मैं जितना समझती थी, चाम नृत्य उससे ठीक विपरीत प्रतीत हुआ। चाम नृत्य रंगों से परिपूर्ण अत्यंत मनभावन उत्सव है जिसे लामा कठोर अनुष्ठानों एवं नियमों के अंतर्गत प्रस्तुत करते हैं। एक ओर हम उन्हें पहाड़ों के ऊपर स्थित बौध मठों में रहते एवं प्रार्थना करते देखते हैं, वहीं दूसरी ओर उन्हें इस मनमोहक नृत्य में तल्लीन देखना अत्यंत विस्मयकारी है। हिमायालीन बौद्ध मठ, जो अन्यथा शांत क्षेत्र होते हैं, इस उत्सव के समय जीवंत हो उठते हैं। रंगबिरंगे चटक एवं भव्य परिधान धारण किये लामा संगीत के सुरों पर थिरकते एवं झूमते हुए नृत्य करते हैं।

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चाम नृत्य का इतिहास

नीला मुखौटा पहने चाम नृत्य करते एक बोद्ध भिक्षुक
नीला मुखौटा पहने चाम नृत्य करते एक बोद्ध भिक्षुक

यह एक प्राचीन नृत्य परंपरा है जिसकी उत्पत्ति संभवतः तिब्बत में हुई थी। किवदंतियों के अनुसार इस नृत्य परंपरा का सम्बन्ध ८ वीं. शताब्दी के गुरु पद्मसंभव से है। ऐसा माना जाता है कि तिब्बत के तत्कालीन सम्राट त्रिशोंग डेस्टन ने गुरु पद्मसंभव को आमंत्रित किया था। वे उनसे उन आत्माओं से मुक्ति प्राप्त करने में सहायता चाहते थे जो उन्हें साम्ये बौद्ध मठ निर्माण करने में अड़चन उत्पन्न कर रहे थे। दिन के समय जो भी निर्माण कार्य सम्पूर्ण किया जाता था, रात्रि में वे आत्माएं उसे समूल नष्ट कर देती थीं। गुरु पद्मसंभव ने उन आत्माओं को नष्ट करने के लिए अनुष्ठान किये थे। समय के साथ ये अनुष्ठान बढ़ते चले गए। आज ये अनुष्ठान चाम नृत्य के रूप में किया जाता है। यह अनुष्ठान विशेषतः महायान बौद्ध धर्म से सम्बंधित है।

पीला मुखौटा पहने चाम नर्तक
पीला मुखौटा पहने चाम नर्तक

‘कोर ऑफ़ कल्चर’ द्वारा चाम नृत्य पर किये विस्तृत अनुसंधान के अनुसार यह नृत्य संभवतः गुरु पद्मसंभव के इस घटना से भी पूर्व अस्तित्व में था। समय के साथ इसमें परिवर्तन आते चले गए। यह नृत्य एक तांत्रिक नृत्य से सार्वजनिक प्रदर्शन में परिवर्तित हो गया है।

चाम, यह शब्द इस नृत्य में प्रयुक्त एक मुद्रा से उत्पन्न है। इस नृत्य शैली में इस मुद्रा का प्रयोग व्यापक रूप से किया जाता है। इस नृत्य शैली में हस्त मुद्राओं, पहनावों तथा हाथों में धारण किये चिन्हों का अत्यंत महत्व है। जैसे, हाथों में तलवार धारण करने का अर्थ है अज्ञानता का नाश करना।

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कुछ इतिहासकारों का मानना है कि इस परम्परा का आरम्भ शाक्यमुनि अर्थात् ऐतिहासिक बुद्ध के जीवनकाल में हुआ था। यह सिद्धांत इस परंपरा का उद्भव छठीं ईसा पूर्व बताता है।

मुखौटा नृत्य अथवा चाम नृत्य की कथा

लद्दाख में चाम नृत्य प्रदर्शन का विडियो देखें।

इस नृत्य का पूर्ण उद्देश्य है, मानवता की भलाई के लिए दुष्ट आत्माओं का अंत। यह कैसे किया जाता है, यह अत्यंत रोचक है। उत्सव से पूर्व बौद्ध भिक्षुक लम्बे समय तक ध्यान एवं प्रार्थना करते हैं। गुस्तोर उत्सव के दिन, वे बेल बूटेदार जरी से निर्मित परिधान धारण करते हैं। सर पर भयंकर मुखौटे तथा हाथों में प्रतीकात्मक वस्तुएं धारण करते हैं। इस प्रकार भयावह रूप धरकर वे दुष्ट आत्माओं को डराते हैं तथा उन्हें वहां से भगा देते हैं।

चाम नृत्य की गोपनीयता

सीढ़ियों से नीचे आते मुखौटाधारी नर्तक
सीढ़ियों से नीचे आते मुखौटाधारी नर्तक

प्रारम्भ में यह नृत्य अत्यंत गोपनीय हुआ करता था। लामा एकांत में यह नृत्य प्रदर्शन करते थे। मेरे अनुमान से तांत्रिक तत्वों से जुड़े होने के कारण इस परंपरा को गुप्त रखा गया था।

वर्तमान में यह नृत्य पूर्णतः सार्वजनिक प्रदर्शन में परिवर्तित हो गया है। गाँव निवासी मठ के चप्पे चप्पे पर स्थान ग्रहण कर बैठ जाते हैं। मध्य में केवल नर्तकों द्वारा प्रदर्शन के लिए पर्याप्त स्थान छोड़ देते हैं। चारों ओर लगे कैमरे भविष्य के लिए इस नृत्य को कैद करते रहते हैं। तकनीकी की सहायता से आज इस नृत्य को हम कहीं भी बैठकर देख सकते हैं तथा इसका आनंद ले सकते हैं।

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यह नृत्य परम्परा लामाओं में पीढ़ी दर पीढ़ी आगे बढ़ रही है। इसके विषय में कहीं भी लिखित प्रमाण उपलब्ध नहीं है। हाँ, मेरे द्वारा प्रत्यक्ष लिया गया यह विडियो आने वाली पीढ़ियों के लिए अवश्य एक वैद्य प्रमाण है।

लाल मुखौटाधारी नर्तक
लाल मुखौटाधारी नर्तक

चाम एक तांत्रिक अनुष्ठान है। इसकी जड़ें हिन्दू तांत्रिक सम्प्रदाय की प्राचीन भारतीय तांत्रिक परम्पराओं में पाया गया है।

दुष्ट आत्माओं का अंत

ऐसा माना जाता है कि नृत्य करते लामा भिक्षुओं में रक्षात्मक देवी-देवता अवतरित हो जाते हैं। नृत्य करते समय वे इन देवी-देवताओं के प्रत्यक्ष स्वरूप बन जाते हैं। मेरा अनुभव जानना चाहें तो, स्पितुक मठ में मैंने जो चाम प्रदर्शन देखा, वहां मुझे ऐसा कुछ भी प्रतीत नहीं हुआ।

नृत्य प्रदर्शन के समय लामा जो विस्तृत मुखौटे धारण करते हैं, उन्हें मिट्टी एवं सूत के मिश्रण द्वारा निर्मित किया जाता है। प्राकृतिक रंगों द्वारा उन्हें रंग कर उन पर बहुमूल्य घातुओं द्वारा चमक दी जाती है। प्रत्येक मुखौटा किसी वेशेष देवता को दर्शाता है। जैसे, काला मुखौटा धारण किया हुआ लामा महाकाल का स्वरूप धरता है, वहीं पीला मुखौटा धन के देव वैश्रमण को दर्शाता है। कुछ मुखौटों पर हिरण तथा भैंस जैसे पशुओं के शीश की आकृति होती है। मध्य में विदूषक जैसे परिधान धारण कर भी कई लामा नृत्य करते हैं। मेरे गाइड के अनुसार ये लामा अनुयायियों को दर्शाते हैं।

मैंने केवल पुरुष लामाओं को ही यह नृत्य प्रदर्शित करते देखा है। मैंने इसके विषय में जितना भी साहित्य पढ़ा था, वहां भी केवल पुरुष बौद्ध भिक्षुओं द्वारा यह नृत्य किये जाने का उल्लेख था। नृत्य के कुछ भागों में नर्तक देवी-देवताओं के जोड़े को दर्शाते हुए नृत्य करते हैं मानो भगवान् अपनी पत्नी सहित पधार रहे हैं। यहाँ भी दोनों पात्र पुरुष ही निभाते हैं।

स्पितुक मठ के गुस्तोर उत्सव का चाम नृत्य

यह मेरा सौभाग्य था कि मुझे लेह के बाहर एक छोटी पहाड़ी के ऊपर स्थित स्पितुक मठ के गुस्तोर उत्सव में भाग लेने का स्वर्णिम अवसर प्राप्त हुआ। हमने दिन का आरम्भ इस बौद्ध मठ के दर्शन से किया जहां तक पहुँचने के लिए ऊंची चढ़ाई करनी पड़ती है। यह चढ़ाई अत्यंत आनंददायी थी। चारों ओर लेह नगरी एवं लेह विमानतल का मनमोहक दृश्य था। मार्ग में हम कई लद्धाखियों से मिले। हमने जब उनके छायाचित्र लेने की इच्छा व्यक्त की, उन्होंने सहर्ष हमारे आग्रह को मान कर हमें कई चित्र लेने दिए।

लेह का स्पितुक बौद्ध मठ

स्पितुक मठ में, मुख्य सभागृह के पृष्ठभाग में स्थित एक कक्ष में हमने प्रवेश किया। वहां सम्पूर्ण भित्तियाँ बौद्ध कथाओं, चिन्हों तथा प्रतिमाओं से भरी हुई थीं। स्पितुक मठ का निर्माण ११वी. सदी में किया गया था, वहीं भित्तिचित्र १४वी. शताब्दी में बनाए गए हैं। महीन चूने द्वारा श्वेत चिंतामणी, षट-भुजाधारी महाकाल, वैश्रवण, वज्र भैरव, श्री देवी तथा चामुंडी सहित अनेक उपासिकाओं की प्रतिमाएं भी बनायी गयी थीं। आपको अचरज हो रहा होगा कि बौद्ध मठ के भीतर बौद्ध धर्म के चिन्हों के साथ हिन्दू देवी-देवताओं के भी चित्र हैं। इन्हें देख आप सोच में पड़ जाते हैं कि क्या इनमें कोई भेद है?

मठ के भीतर विभिन्न मंदिरों के दर्शन के उपरांत हम एक प्रांगण में पहुंचे जहां नृत्य प्रदर्शन के प्रबंध किये जा रहे थे। सम्पूर्ण प्रांगण दर्शकों से भरने लगा था। सौभाग्य से हमें एक मुंडेर के पीछे, एक ऊंचे स्थान पर बैठने के लिए कहा गया जहां से हमें प्रांगण का दृश्य भलीभांति दिखाई पड़ रहा था। कई लोग छत पर, खिड़कियों पर तथा प्रांगण के दूसरी ओर भी बैठे थे।

स्पितुक मठ का गुस्तोर उत्सव

लद्धाख का स्पितुक मठ
लद्धाख का स्पितुक मठ

उत्सव का आरम्भ भित्ति पर टंगे एक विशाल थान्ग्का के अनावरण से हुआ। शनैः शनैः जब इसका अनावरण हो रहा था, तब ऐसा प्रतीत हो रहा था मानो देवी देवताओं को अनुष्ठान में भाग लेने के लिए आमंत्रित कर रहा हो। कुछ भिक्षुक संगीत वाद्य बजा रहे थे। अचानक एक ओर स्थित ऊंची सीढियाँ आकर्षण का केंद्र बिंदु बन गयी। कई भिक्षुक रंगबिरंगे परिधान तथा मुखौटे धारण कर सीढियाँ उतर रहे थे। वे जोड़ों में अथवा छोटे छोटे समूहों में आते, अपना निर्धारित नृत्य प्रदर्शन करते तथा वहां से चले जाते थे। मध्य में कुछ भिक्षुक दर्शकों से हंसी-मजाक करते, उन्हें छेड़ते तथा चले जाते थे। दोपहर के भोजन का समय होते ही सब दर्शकों ने भोजन के डब्बे खोले तथा खाने लगे। भोजन ग्रहण करने के लिए अनुष्ठान में अल्प विराम दिया गया था। इतना समय उपलब्ध था कि हमने अपने अतिथिगृह ‘होटल दी ग्रैंड ड्रैगन’ जाकर भोजन किया।

गुस्तोर उत्सव का मेला – लद्दाख
गुस्तोर उत्सव का मेला – लद्दाख

भोजन के समय तक मठ के बाहर मेला लग गया था। मठ के पृष्ठभाग से हमें तम्बोला की बोलियों के स्वर सुनायी दे रहे थे। मठ के सामने कई छोटी छोटी दुकानें लग गयी थीं जहां खाद्य पदार्थों सहित कई प्रकार की वस्तुएं बिक्री की जा रही थीं। हम भीड़ में लगभग फंस गए थे। न जाने कहाँ से अचानक इतने लोग एकत्र हो गए थे। दोपहर के भोजन के उपरांत भी हमें उत्सव के प्रदर्शनों को देखने की इच्छा थी। किन्तु खचाखच भरी भीड़ को देख हमें आभास हो गया कि मठ के भीतर जाना लगभग असंभव है। अतः हमने भीतर ना जाकर लेह में कुछ और करने का निश्चय किया।

इतना अवश्य कहना चाहूंगी कि जितना आनंद मुझे नृत्य देखने में आ रहा था, उतना ही आनंद मुझे नृत्य देखते लद्दाख के लोगों को देखने में भी आ रहा था। वृद्ध लोगों ने हाथों में प्रार्थना चक्र लिया हुआ था तथा वे उसे ऐसे घुमा रहे थे मानो यह उनका स्वभाव बन गया हो। कई स्त्रियों ने फिरोजा मणी के सुन्दर हार गले में पहने हुए थे। सभी बालक बालिकाएं सुन्दर एवं गोल-मटोल थे।

समापन

लद्दाख के गुस्तोर उत्सव के बाज़ार
लद्दाख के गुस्तोर उत्सव के बाज़ार

बौद्ध मठ के इस उत्सव को देखना तथा इसमें भाग लेना, यह मेरे लिए अतुलनीय अनुभव था। मार्ग में लगे बैनरों में इस उत्सव को ‘हिमालय का कुंभ मेला’ कहा गया था। मठ से वापिस आते समय लोगों की जो भीड़ हमने देखी, उससे तो हमें भी यह कुंभ मेला ही प्रतीत हुआ। ऐसी भीड़ जिसमें परिवार एवं मित्रों से बिछड़ सकते हैं, ऐसा कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी।

लद्दाख के विभिन्न मठों में गुस्तोर उत्सव भिन्न भिन्न दिवसों में वर्ष भर मनाया जाता है। अतः अपनी यात्रा का नियोजन करते समय इन उत्सवों के दिन, स्थान एवं समय ज्ञात कर लें। अपनी यात्रा का नियोजन ऐसे करें कि कम से कम एक मठ में आपको इस उत्सव में भाग लेने का अवसर प्राप्त हो सके। 

अनुवाद: मधुमिता ताम्हणे

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कुचिपुड़ी गाँव – आंध्र प्रदेश का प्राचीन नृत्य ग्राम https://inditales.com/hindi/kuchipudi-nritya-gram-andhra-pradesh/ https://inditales.com/hindi/kuchipudi-nritya-gram-andhra-pradesh/#comments Wed, 19 Apr 2017 02:30:37 +0000 https://inditales.com/hindi/?p=214

कुचिपुड़ी गाँव – आँध्रप्रदेश का एक ऐसा गाँव जिसने भारत के ७ प्रसिद्ध शास्त्रीय नृत्य शैलियों में से एक प्रसिद्ध नृत्य शैली को अपना नाम प्रदान किया। कुछ वर्ष पूर्व एक पत्रिका पढ़ने के दौरान मुझे यह ज्ञात हुआ कि यह आँध्रप्रदेश के कृष्णा जिले में स्थित एक गाँव का नाम है। हालांकि, मेरी हैदराबाद […]

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कुचिपुड़ी नृत्य ग्राम - आन्ध्र प्रदेशकुचिपुड़ी गाँव – आँध्रप्रदेश का एक ऐसा गाँव जिसने भारत के ७ प्रसिद्ध शास्त्रीय नृत्य शैलियों में से एक प्रसिद्ध नृत्य शैली को अपना नाम प्रदान किया। कुछ वर्ष पूर्व एक पत्रिका पढ़ने के दौरान मुझे यह ज्ञात हुआ कि यह आँध्रप्रदेश के कृष्णा जिले में स्थित एक गाँव का नाम है। हालांकि, मेरी हैदराबाद यात्रा के दौरान मुझे कई कुचिपुड़ी नृत्य प्रदर्शन देखने का अवसर मिला था। खासकर हलीम खान द्वारा प्रदर्शित नृत्य प्रदर्शन ने मेरा मन मोह लिया था। कुचिपुड़ी गाँव के बारे में पढ़ते समय मुझे इन यादगार प्रदर्शनों का ध्यान हो आया और तभी से मुझे कुचिपुड़ी गाँव की यात्रा करने की तीव्र इच्छा जागृत हुई।

मुझे इस गाँव के दर्शन करने का अवसर जल्द ही प्राप्त हुआ। हुआ ऐसा कि मुझे आँध्रप्रदेश पर्यटन द्वारा अमरावती विश्व संगीत व नृत्य महोत्सव में भाग लेने का आमंत्रण प्राप्त हुआ। ज्ञात हुआ कि कुचिपुड़ी गाँव विजयवाडा से मात्र ६० की.मी. पर है। समारोह के उपरांत ही हम अपनी अनोखी नृत्य ग्राम यात्रा के लिए निकल पड़े।

श्री सिद्धेन्द्र योगी कुचिपुड़ी कला पीठम, कुचिपुड़ी

कुचिपुड़ी नृत्य के दिग्गज
कुचिपुड़ी नृत्य के दिग्गज

कुचिपुड़ी गाँव में हम श्री सिद्धेन्द्र योगी कुचिपुड़ी कला पीठम के द्वार पर उतरे। यह नृत्य संस्थान हैदराबाद के तेलुगु विश्वविद्यालय के अंतर्गत है। जैसे ही हम गाडी से उतरे, हमारे समक्ष, बगीचे के बीचोंबीच, काले पत्थर से बनी एक सुरुचिपूर्ण महिला की सुन्दर प्रतिमा पर हमारी दृष्टि पड़ी। इस प्रतिमा ने एक हाथ में कमल व दूसरे हाथ में चावडी, अर्थात् चामर धारण किया हुआ है। मुझे इस प्रतिमा व इन चिन्हों के पीछे के शास्त्र का ज्ञान नहीं था और उस पर मैंने यह निष्कर्ष निकालने की चेष्टा की, कि यह प्रतिमा भारत माता का स्वरुप है। तुरंत मेरे निष्कर्ष को सुधार कर मुझे यह बताया गया कि यह तेलुगु तल्ली अर्थात् तेलुगु माता की मूर्ति है। मैंने मन ही मन सोचा, कि भारत विस्मयकारी तथ्यों का खजाना है।

तेलुगु तेल्ली प्रतिमा
तेलुगु तेल्ली प्रतिमा

कला पीठम संसथान में प्रवेश करते ही हमारी दृष्टि, इस स्थल के लिए सर्वोपयुक्त, चोल पीतल में बनी नटराज की विशाल प्रतिमा पर पड़ी। साथ ही वर्तमान कुचिपुड़ी के जनक श्री सिद्धेन्द्र योगीजी की भी प्रतिमा थी। इस कला पीठम की स्थापना हेतु भूमि, कुली क़ुतुब शाह ने इस संस्थान को दान स्वरुप प्रदान की थी। कहा जाता है कि वह इस कुचिपुड़ी नृत्य शैली पर मोहित थे। इस संस्थान की वर्तमान इमारत अपेक्षाकृत नवीन है जिसमें विद्धार्थियों के लिए छात्रावास की भी सुविधा उपलब्ध है। १०० से भी ज्यादा वर्ष प्राचीन इमारत के स्थान पर इस नवीन इमारत की संरचना की है।

श्री सिद्धेन्द्र योगीजी व उनकी कुचिपुड़ी शैली

इस संस्थान के कार्यकर्ता व विद्यार्थियों से भेंट के पश्चात्, प्रदर्शन कला में स्नातकोत्तर छात्रा सुश्री अनुपमा ने हमें कुचिपुड़ी गाँव व इस नृत्यशैली के इतिहास की जानकारी दी।

भामा कलापम

कुचिपुड़ी नृत्य - श्री सिद्देन्द्र योगी कला पीठम के छात्रों द्वारा
कुचिपुड़ी नृत्य – श्री सिद्देन्द्र योगी कला पीठम के छात्रों द्वारा

अनुपमा ने हमें श्री सिद्धेन्द्र योगी द्वारा रचित नृत्य नाटिका भामा कलापम के बारे में बताया। भामा अर्थात् सत्यभामा, जो भगवान् कृष्ण की ८ पत्नियों में से एक है। यह नृत्य नाटिका सत्यभामा के कृष्ण में विलीन होने की कामना पर आधारित है। सत्यभामा के हृदय में आसक्ति, मोह, इच्छाओं आदि वासनाओं का वास था। इस कारण भगवान् कृष्ण में विलीन होना उनके लिए असंभव था। इन अवगुणों का परित्याग करने के पश्चात् ही वह कृष्ण में समाहित हो सकती थी। यह कथा लाक्षणिक रूप से आत्मा व परमात्मा पर आधारित है। यह, मानव की भगवान् में विलीन होने की अभिलाषा व इसके लिए आनेवाली बाधाओं पर विजय प्राप्त करने की कथा है।

भामा कलापम, कुचिपुड़ी नृत्य नाटिका की सबसे ज्यादा प्रदर्शित नृत्य नाटिका है। हमें बताया गया कि भामा कलापम कथा अत्यंत विस्तार से रची गयी है। इसका अंदाजा इस उदाहरण से लगाया जा सकता है कि एक पूर्ण रात्रि मात्र सत्यभामा की केशसज्जा बखान करती है। दरअसल पूर्ण कुचिपुड़ी नृत्य शैली, वैष्णव संस्कृति से सराबोर है। विष्णु के अवतारों में से कृष्ण भगवान्, भक्ति मार्ग के अनुगामियों में सर्वाधिक प्रसिद्ध हैं। यहाँ तक की इस जिले को ‘कृष्णा’ नाम दिया है। कृष्णा नदी भी यहीं से बहती हुई समुद्र में विलीन होती है।

श्री योगीजी का यहाँ १७ वीं शताब्दी में वास था जब भक्ति आन्दोलन व कृष्ण भक्ति भाव अपनी चरम सीमा पर था।

कुचिपुड़ी गाँव का इतिहास

श्री सिद्धेन्द्र योगी कुचिपुड़ी कला पीठम के अध्यापकगण
श्री सिद्धेन्द्र योगी कुचिपुड़ी कला पीठम के अध्यापकगण

कुचिपुड़ी गाँव, कुचेलापुरम या कुचिलापुरी के नाम से भी जाना जाता है। इसका प्राचीन संस्कृत नाम कुशिलावापुरम अर्थात् बंजारे संगीतज्ञ व नर्तकों का गाँव है। कुचिपुड़ी की शब्द व्युत्पत्ती भी इस प्राचीन नृत्य शैली की कथा कहती है।

कुचिपुड़ी के वर्तमान इतिहास के सर्व साहित्य मध्य कालीन युग से उपलब्ध हैं। परन्तु हमें बताया गया कि पुरातत्ववेत्ताओं ने कई प्राचीन बुद्ध प्रतिमाएं खोज निकालीं जिन पर नृत्य मुद्राएं प्रत्यक्ष दिखाई देतीं हैं। हालांकि, नृत्य मुद्राएं दर्शाती बुद्ध की प्रतिमाएं सामान्यतः दिखती नहीं है, पर शायद इस भूमि की महिमा इतनी अपरंपार है कि बौद्ध भिक्षु भी यहां नृत्य करने में सक्षम थे।

कुचिपुड़ी के भावी नर्तक - श्री सिद्धेन्द्र योगी कुचिपुड़ी कला पीठम में अध्ययनरत
कुचिपुड़ी के भावी नर्तक – श्री सिद्धेन्द्र योगी कुचिपुड़ी कला पीठम में अध्ययनरत

ऐसा कहा जाता है कि इस गाँव के हर एक परिवार में कुचिपुड़ी नृत्य कलाकार हैं। हर एक गांववासी इस नृत्य शैली में निपुण है। ज्यादातर नर्तकों ने अपने पिता से इस नृत्य की शिक्षा हासिल की। जी हाँ! कुचिपुड़ी नृत्य का प्रसार पितृप्रधान वंशानुगत रीति द्वारा हुआ था। परन्तु वर्तमान काल में इस रीत में बदलाव देखा गया है। अनुपमा ने हमें बताया कि कुचिपुड़ी गाँव कुल १३ ब्राम्हण परिवारों से बना है जिसका प्रत्येक सदस्य इस नृत्य शैली की दीक्षा हासिल करता है।

पारंपरिक रीति अनुसार केवल पुरुष नर्तक ही इस नृत्य शैली का अभ्यास करते थे। वे अकसर स्त्री वेष धर कर स्फूर्ति और उत्साह से नृत्य करते थे। ऐसे ही अनेक वरिष्ठ कुचिपुड़ी पुरुष नर्तकों के चित्र यहाँ श्री सिद्धेन्द्र योगी कुचिपुड़ी कला पीठम में देखे जा सकते हैं, जिन्होंने स्त्री वेष धर कर नृत्य का प्रदर्शन किया था।

श्री वेदांत लक्ष्मी नारायण शास्त्रीजी २० वीं सदी में पारंपरिक कुचिपुड़ी नृत्य शैली में हुए कई बदलाव के उत्तरदायी हैं।उन्होंने ही स्त्रियों में इस नृत्य शैली को प्रवर्तित किया। साथ ही उन्होंने इस नृत्य शैली को ब्राम्हणों के दायरे से बाहर निकला और इसे हर उस व्यक्ति को उपलब्ध कराया जो इसमें प्रशिक्षित होना चाहता था।

कुचिपुड़ी नृत्य

कुचिपुड़ी नृत्य के ४ प्रमुख अंग इस प्रकार हैं –
• वाचिका अर्थात् मौखिक
• आहार्या अर्थात् वेशभूषा
• अंगिका अर्थात् मुद्राएँ व भंगिमाएं
• सात्विका अर्थात् अभिनय व अभिव्यक्ति

कुचिपुड़ी नृत्य शैली के अंतर्गत, नर्तक गाते हैं व दर्शकों से संवाद करते हैं। यह पूर्ण नृत्य शैली कथाकथन पर आधारित है जिसमें कुछ भाग संवाद रूप में, कुछ भाग नाटक रूप में व कुछ मुख मुद्राओं से अभिव्यक्त किया जाता है। इसमें सूत्रधार का भी समावेश रहता है जो नृत्य नाटिका के दौरान समय समय पर कथाकथन प्रस्तुत करता है। अन्य नृत्य शैलियों की तुलना में, इस कुचिपुड़ी नृत्य में अभिनय व मुख मुद्राओं को अधिक महत्त्व दिया जाता है।

नर्तकों का साथ देते संगीतवादक मृदंग, वायोलिन, हारमोनियम इत्यादि बजाते हैं व एक गायक और एक गायिका उनके लिए गायन प्रस्तुत करते हैं। मौलिक रूप से कुचिपुड़ी एक सामूहिक नृत्य प्रदर्शन है जिसमें भिन्न भिन्न कलाकार विभिन्न भाग प्रस्तुत करते हैं।

वेशभूषा इस नृत्य का एक अहम् अंग है। कुचिपुड़ी कलाकार लकड़ी से बने हल्के वजन के आभूषण धारण करते हैं। ज्यादातर कलाकार व उनका परिवार अपने गहने स्वयं गढ़तें हैं। इसी से अंदाजा लगाया जा सकता है कि कुचिपुड़ी का उनकी जीवन में कितना महत्वपूर्ण स्थान है। वर्तमान में कई कुचिपुड़ी नर्तक, पारंपरिक जौहरियों द्वारा निर्मित धातु के आभूषण धारण करने लगे हैं।

विद्यार्थियों द्वारा प्रदर्शित कुचिपुड़ी नृत्य दर्शन

श्री सिद्धेन्द्र योगी को समर्पित मंदिर - कुचिपुड़ी गाँव
श्री सिद्धेन्द्र योगी को समर्पित मंदिर – कुचिपुड़ी गाँव

श्री सिद्धेन्द्र योगी कुचिपुड़ी कला पीठम के प्रधानाचार्य श्री वेदांतम रामलिंग शास्त्रीजी ने हमारे लिए विद्यार्थियों द्वारा २ नृत्य प्रदर्शनों का आयोजन कराया। पहले प्रदर्शन में २ छात्रों ने प्रधानाचार्य व उनकी धर्मपत्नी द्वारा गाये गए गीत पर नृत्य किया।दूसरे प्रदर्शन में नर्तक ने शिव अष्टकम पर नृत्य प्रस्तुत किया। हम नर्तकों के स्फूर्तिपूर्ण व फुर्तीले नृत्य में खो से गए। चूंकि यह विद्यार्थी अल्प अवधि सूचना के तहत नृत्य प्रदर्शन कर रहे थे, वे दैनंदिक वस्त्रों में थे। इसलिए इनकी भव्य वेशभूषा के दर्शन का अवसर हमें नहीं मिला। मैं सिर्फ इन नर्तकों को, उनकी वेशभूषा धारण किये, उचित प्रकाश में नृत्य करते, अपनी कल्पना में ही देख सकती थी।

यह अत्यंत दुःख की बात है कि हमारे देश में बहुत कम लोग इस कला समृद्ध, कुचिपुड़ी गाँव के बारे में जानते हैं। जबकि हमें गर्व के साथ हमारी इस धरोहर को विश्व सम्मुख प्रस्तुत करना चाहिए। ऐसी कितनी जगहें होंगी जिन्हें इतने लम्बे अरसे से पूर्ण नृत्य ग्राम होने का गर्व होगा? आशा करती हूँ कि इस नृत्य ग्राम से पूर्ण प्रशिक्षित छात्र अपने इस गाँव की जानकारी अपनी कला द्वारा सम्पूर्ण विश्व को प्रदान करेंगे।

श्री सिद्धेन्द्र योगी कुचिपुड़ी कला पीठम के सभी शिक्षकगण व विद्यार्थी अत्यंत विनम्र और सरल स्वभाव के थे। उन्होंने हमें केले के पत्तों पर सादा दक्षिण भारतीय भोजन कराया। आप विश्वास नहीं करेंगे पर कई दिनों बाद मैंने इतना स्वादिष्ट भोजन का आस्वाद लिया था।

कुचिपुड़ी गाँव

कुचिपुड़ी की ग्राम देवी - बाल त्रिपुर सुंदरी
कुचिपुड़ी की ग्राम देवी – बाल त्रिपुर सुंदरी

श्री सिद्धेन्द्र योगी कला पीठम के दर्शन उपरांत हम कुचिपुड़ी की ग्राम देवी, बाला त्रिपुरा सुंदरी मंदिर के दर्शन हेतु निकल पड़े। रास्ते में श्री सिद्धेन्द्र योगीजी को समर्पित एक छोटे से मंदिर के भी दर्शन किये। इस मंदिर के मुख्य द्वार के ऊपर एक वीणा की प्रतिकृति रखी हुई है।

बाल त्रिपुरा सुंदरी मंदिर भी एक छोटा पीले रंग का मंदिर है जिसमें गोपुरम व शिखर का आकार समान है। यह शिव व पार्वती के बाल सुंदरी रूप को अर्पित है। शिखर के एक तरफ नटराज की सुन्दर प्रतिमा विभूषित है। मंदिर के पिस्ता हरे रंग के स्तंभों पर विभिन्न नृत्य मुद्राएँ धारण की हुईं छोटी छोटी प्रतिमाएं गड़ी हुई हैं। कुचिपुड़ी गाँव के सभी कलाकार नृत्य से पूर्व यहाँ आकर भगवान् के चरणों में प्रार्थना अर्पित करते हैं।

बाल त्रिपुर सुंदरी मंदिर के शिखर पर नटराज का वास
बाल त्रिपुर सुंदरी मंदिर के शिखर पर नटराज का वास

मंदिर के एक ओर नाट्य पुष्करणी नामक नवीन चेरुवु अर्थात् झील निर्माणाधीन है। इस झील के मध्य श्री सिद्धेन्द्र योगीजी की प्रतिमा स्थापित करने की भी योजना है।

नाटय पुष्करणी - कुचिपुड़ी ग्राम
नाटय पुष्करणी – कुचिपुड़ी ग्राम

मुझे ज्ञात हुआ कि कुचिपुड़ी गाँव के आसपास कई दूसरे मंदिर भी हैं। आशा है इनके दर्शन हेतु पुनः आने का अवसर मुझे जल्द ही मिलेगा।

कुचिपुड़ी दर्शन हेतु कुछ सुझाव

• कुचिपुड़ी गाँव में रहने के लिए धर्मशाला इत्यादि की कोई व्यवस्था नहीं है। निकटतम स्थान विजयवाड़ा है जहाँ यात्रियों के लिए हर स्तर की आवास सुविधाएँ उपलब्ध हैं।
• निकटतम विमानतल व रेल सुविधाएँ भी विजयवाड़ा में उपलब्ध हैं।
• हमने संस्थान में सादा शाकाहारी भोजन ग्रहण किया था। पूर्व सूचना देने पर वे आपके भोजन की भी व्यवस्था कर सकते हैं।
• इस गाँव व इसकी संस्कृति का अहसास करने हेतु, इस गाँव का दर्शन पैदल चल कर ही किया जा सकता है।

आँध्रप्रदेश के अन्य पर्यटन स्थलों के दर्शन पूर्व आपके लिए मेरी कुछ यात्रा संस्मरण प्रस्तुत है-
1. विशाखा पट्टनम का प्रसिद्ध रामकृष्ण समुद्रतट
2. अरकू आदिवासी संग्रहालय
3. अरकू घाटी की छिद्रयुक्त अरकू गुफाएं
4. रामकृष्ण समुद्रतट पर स्थित आईएनएस कुर्सुरा पनडुब्बी संग्रहालय
5. अरकू घाटी तक रेल यात्रा

हिंदी अनुवाद : मधुमिता ताम्हणे

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