भारत के संग्रहालय Archives - Inditales श्रेष्ठ यात्रा ब्लॉग Wed, 25 Oct 2023 05:02:05 +0000 en-US hourly 1 https://wordpress.org/?v=6.7.3 पटना का बिहार संग्रहालय – अप्रतिम कलाकृतियों का संग्रह देखें https://inditales.com/hindi/bihar-sangrahalay-patna/ https://inditales.com/hindi/bihar-sangrahalay-patna/#respond Wed, 21 Feb 2024 02:30:38 +0000 https://inditales.com/hindi/?p=3391

पटना नगर के मध्य में स्थित बिहार संग्रहालय अप्रतिम कलाकृतियों का अद्भुत संग्रह है। इस संग्रहालय का सर्वाधिक विशेष तत्व इसकी रूपरेखा है। इस संग्रहालय में बिहार के इतिहास एवं धरोहर को सुंदर रीति से प्रदर्शित किया गया है जो दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर देता है, विशेषतः युवा दर्शकों को। भारत के अधिकतर संग्रहालयों के […]

The post पटना का बिहार संग्रहालय – अप्रतिम कलाकृतियों का संग्रह देखें appeared first on Inditales.

]]>

पटना नगर के मध्य में स्थित बिहार संग्रहालय अप्रतिम कलाकृतियों का अद्भुत संग्रह है। इस संग्रहालय का सर्वाधिक विशेष तत्व इसकी रूपरेखा है। इस संग्रहालय में बिहार के इतिहास एवं धरोहर को सुंदर रीति से प्रदर्शित किया गया है जो दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर देता है, विशेषतः युवा दर्शकों को।

भारत के अधिकतर संग्रहालयों के अनुरूप यह संग्रहालय भी आपके सम्पूर्ण मनोयोग एवं समय की अपेक्षा रखता है। मुझे आपको यह जानकारी देते हुए अत्यंत हर्ष हो रहा है कि इस संग्रहालय में छायाचित्रीकरण निषिद्ध नहीं है। आप स्वेच्छा से इन अप्रतिम कलाकृतियों के छायाचित्र ले सकते हैं।

पटना के बिहार संग्रहालय में प्रदर्शित कुछ अद्भुत कलाकृतियों की यहाँ संक्षिप्त व्याख्या करना चाहती हूँ। मुझे विश्वास है, इसे पढ़कर आप शीघ्र ही पटना यात्रा का नियोजन अवश्य करेंगे।

दीदारगंज यक्षी – बिहार संग्रहालय का उत्कृष्ट मणि

यह एक यक्षी का अत्यंत ही शोभायमान विग्रह है जिसके एक हाथ में चँवर है। यह बिहार की सर्वाधिक लोकप्रिय शिल्पकला है। अनेक वर्षों पूर्व यह पटना संग्रहालय का मुख्य आकर्षण थी। अब इसने बिहार संग्रहालय में अपना वही स्थान अर्जित किया है।

दीदारगंज यक्षी - बिहार संग्रहालय की शान
दीदारगंज यक्षी – बिहार संग्रहालय की शान

यक्षी की यह सुंदर प्रतिमा संग्रहालय के प्रथम तल पर उसके निर्धारित कक्ष के भीतर कुछ इस प्रकार स्थित है कि आप उसे चारों ओर से निहार सकते हैं। इस प्रतिमा में एक ओर जहाँ यक्षी के विभिन्न अंगों की रचना एवं उनके शारीरिक अनुपात सम्मोहित करते हैं, वहीं दूसरी ओर शैल प्रतिमा की सतही चमक चकित कर देती है।

इतनी मनमोहक यक्षी जिस महानुभाव को यह सुंदर चँवर डुला रही है, वह स्वयं कितना मनमोहक होगा, इस प्रतिमा को देख ऐसे विचार अनायास ही मन में उभरने लगते हैं। हम केवल कल्पना ही कर सकते हैं। इस प्रतिमा को मुलायम चुनार बलुआ पत्थर पर जटिल व सूक्ष्म उत्कीर्णन कर रचित किया गया है। सूत्रों के अनुसार इसकी रचना मौर्य वंश के कालखंड में की गयी है।

बिहार संग्रहालय में बुद्ध प्रतिमाएं

बिहार बुद्ध की भूमि है। बुद्ध ने अपने जीवन का लगभग सम्पूर्ण काल इसी क्षेत्र में व्यतीत किया था। बोध गया में उन्हे परम ज्ञान की प्राप्ति हुई थी। यही कारण है कि यहाँ भिन्न भिन्न कालखंडों की अनेक बुद्ध प्रतिमाएं एवं छवियाँ दृष्टिगोचर होती हैं।

भूमि स्पर्श मुद्रा में भगवान् बुद्ध
भूमि स्पर्श मुद्रा में भगवान् बुद्ध

इस संग्रहालय में बुद्ध की अनेक धातु एवं शैल प्रतिमाएं हैं जिन्हे देख आप आश्चर्य चकित रह जाएंगे। उन सभी प्रतिमाओं में जो मुझे सर्वाधिक प्रिय है, वह है बुद्ध की भूमि स्पर्श मुद्रा में एक विशाल मूर्ति। बुद्ध की भूमि स्पर्श मुद्रा उनके द्वारा परम ज्ञान प्राप्ति के उस पावन क्षण का द्योतक है। इस प्रतिमा के पृष्ठभाग में जो चित्र है, उसके द्वारा उनके वन परिवेश को प्रदर्शित किया गया है। सम्पूर्ण दृश्य हमें सहजता से उस कालखंड में एवं उस स्थान पर स्थानांतरित कर देता है जहाँ भाग्यशाली जनमानस को बुद्ध के सत्संग का अवसर प्राप्त हुआ था।

धातु शिल्प में बुद्ध
धातु शिल्प में बुद्ध

बुद्ध की अन्य आकर्षक प्रतिमाओं में एक अन्य प्रतिमा जो ध्यानाकर्षित करती है, वह है धातु में निर्मित बुद्ध की खड़ी मुद्रा। उसे देखना ना भूलें!

और पढ़ें: बौद्ध कलाशैली में कथाकथन के रूप – शिलालेखों में बौद्ध कथाएं

कागज लुगदी की मातृका

बिहार की विविध कला शैलियों में माध्यम के रूप में कागज की लुगदी का एक विशेष स्थान है। यहाँ लोक -देवी मातृका की एक विशाल व अद्भुत प्रतिमा है जिसकी रचना में कागज की लुगदी का प्रयोग किया गया है। यह प्रतिमा आपको अवश्य अचंभित कर देगी।

इस प्रतिमा में एक दूसरे तो पीठ टिकाए दो स्त्रियाँ हैं जिन्होंने एक शिशु को अपने कटि क्षेत्र में पकड़ा हुआ है। मुझे यह जानकारी दी गयी कि ऐसी प्रतिमाएं बिहार के ग्रामीण क्षेत्रों में बहुधा दृष्टिगोचर होती हैं। किन्तु बिहार के जिन ग्रामीण क्षेत्रों में मैंने भ्रमण किया, वहाँ मुझे ऐसी कोई छवि दिखाई नहीं दी। आशा करती हूँ कि अन्य कई परंपराओं के अनुरूप यह परंपरा भी लुप्त ना हो जाए।

इनके अतिरिक्त संग्रहालय में अनेक ऐसे तीन-आयामी भित्तिचित्र हैं जिन्हे कागज की लुगदी द्वारा बनाया गया है।

मधुबनी की कोहबर चित्रकला शैली

मिथिला चित्रकारी शैली अथवा मधुबनी चित्रकारी शैली पर मैंने एक विस्तृत संस्करण पूर्व में प्रकाशित किया है। उस संस्करण में मैंने कोहबर चित्रकला शैली के विषय में भी वर्णन किया है। ये चित्र बहुधा विवाहोत्सव जैसे आयोजनों में चित्रित किये जाते हैं। इस शैली के विषय में अधिक जानकारी आप वहाँ से प्राप्त कर सकते हैं।

बिहार संग्रहालय में आप कोहबर शैली के कुछ भव्य चित्र देख सकते हैं जिनमें कुछ बहुरंगी हैं तथा कुछ केवल श्वेत-लाल रंग में चित्रित हैं। कोहबर चित्रों के विषय में प्रत्यक्ष रूप से जानने के लिए यह बिहार संग्रहालय सर्वोत्तम साधन है। आप देखेंगे कि कोहबर चित्रों में शुभ चिन्हों, समृद्धि चिन्हों एवं प्रजनन सूचक चिन्हों का विपुलता से प्रयोग किया जाता है।

मौर्यवंशी राजसी ठाठ का आनंद उठायें

हम जानते हैं कि पाटलीपुत्र, अर्थात पटना, विशाल मौर्य साम्राज्य की राजधानी थी। पटना के कुम्रहार में मौर्य साम्राज्य के राजमहल के प्रसिद्ध सभागृह के अवशेष प्राप्त हुए हैं। उसी सभागृह का एक सुंदर प्रतिरूप बिहार संग्रहालय में पुनः निर्मित किया है।

मौर्य सिंहासन
मौर्य सिंहासन

इस सभागृह में मौर्य वंश का सिंहासन है जिसके ऊपर बैठकर आप अपना छायाचित्र ले सकते हैं। यह इस संग्रहालय भ्रमण की अविस्मरणीय स्मृति होगी।

ब्राह्मी लिपि

ब्राह्मी एक प्राचीन लिपि है। हम में से अधिकांश ब्राह्मी लिपि समझने में असमर्थ हैं। जानकार सूत्रों के अनुसार ब्राह्मी लिपि में लिखित पांडुलिपियों में प्राचीन काल के अनंत तथ्य लुप्त हैं। उन्हे देखकर यह अनुमान लगता है कि हमारे पूर्वज इन अभिलेखों के माध्यम से हमारे लिए असंख्य संकेत एवं संदेश छोड़कर गए हैं।

ब्राह्मी लिपि - बिहार संग्रहालय
ब्राह्मी लिपि – बिहार संग्रहालय

एक प्रकार से ये हमारे समक्ष प्राचीन काल की अद्भुत संस्कृतियों को उजागर करते हैं। इनके द्वारा हम यह जान सकते हैं कि हमारे पूर्वजों ने हमारे लिए इतनी सम्पन्न संस्कृति की रचना की थी जो अब हमारी अनभिज्ञता के चलते लुप्त होती जा रही है।

एक विशाल भित्ति पर ब्राह्मी लिपि में उत्कीर्णित शिलालेख ने मुझे अत्यंत आकर्षित किया। इसके समक्ष खड़े होकर लिया गया मेरा चित्र मुझे अतिप्रिय है।

नालंदा की पुनर्रचना

प्राचीन नालंदा विश्वविद्यालय एवं आततायीयों द्वारा उस पर किये गये अत्याचारों के विषय से हम सब अभिज्ञ हैं। यह विश्वविद्यालय अब पूर्ण रूप से खंडित अवस्था में है। नालंदा विश्वविद्यालय के स्थल पर किये गए उत्खनन में इसके अवशेष पाये गए थे। लाल रंग की ईंटों द्वारा निर्मित भित्तियों के आलों में अनेक प्रतिमाएं प्राप्त हुई थीं। उनमें से अधिकांश प्रतिमाओं को उसी स्थान पर निर्मित भारतीय पुरातात्विक सर्वेक्षण विभाग के संग्रहालय में प्रदर्शित किया गया है।

नालंदा का अवलोकन
नालंदा का अवलोकन

पटना के बिहार संग्रहालय में उसी प्रकार की भित्ति पर वैसे ही आलों को पुनर्निर्मित किया गया है। उन  आलों के भीतर नालंदा उत्खनन में पायी गयीं कुछ मूल प्रतिमाएं एवं कुछ की प्रतिकृतियाँ प्रदर्शित की गयी हैं। यद्यपि यह पुनर्रचना मूल नालंदा विश्वविद्यालय का कण मात्र है, तथापि उन्हे देख आप प्राचीन नालंदा के भव्य रूप का अनुमान लगा सकते हैं। यहाँ प्रदर्शित भगवान विष्णु की चमक से परिपूर्ण शैल प्रतिमा ने मेरा मन मोह लिया था।

सूर्य प्रतिमाएं

बिहार सूर्य आराधकों का क्षेत्र है। वस्तुतः, बिहार भारत का एकमात्र क्षेत्र है जहाँ छठ पूजा के रूप में सूर्य भगवान की पूजा-अर्चना अब भी अनवरत की जा रही है। बिहार के लगभग सभी क्षेत्रों में अनेक सूर्य मंदिर हैं।

सूर्य प्रतिमा
सूर्य प्रतिमा

बिहार में अनेक ऐसे गाँव हैं जहाँ से सूर्य की अनेक प्रतिमाएं प्राप्त हुई हैं, कुछ जलाशयों से तो कुछ उत्खनन स्थलों से। पटना के बिहार संग्रहालय में आपको सूर्य भगवान के कुछ उत्कृष्ट विग्रहों के अवलोकन का अवसर प्राप्त होगा।

मुझे भगवान सूर्य को समर्पित एक विशाल शिल्प कृति का अब भी स्मरण है जिसमें अपने सात अश्वों से लैस रथ को हाँकते हुए उनका भव्य रूप दर्शाया गया है। सूर्य के विग्रह को पहचानने के लिए दो सर्वाधिक महत्वपूर्ण संकेत हैं। एक है, पुरुष की आकृति जिसके दोनों हाथों में खिले हुए कमल के पुष्प हैं। दूसरा संकेत है, बड़े जूते एवं सात अश्व।

शैल शिल्पों का अवलोकन करते हुए प्रथम तल पर स्थित मातृका की मानवाकृति शैल प्रतिमा के दर्शन अवश्य करें।

बिहार के पुरातात्विक मानचित्र को समझें

बिहार भारत के उन विरले क्षेत्रों में से एक है जहाँ प्राचीनतम संस्कृति अखंडित अनवरत वसाहत के रूप में अब भी जीवित है। यह महाभारत काल का मगध एवं अंग महाजनपद था, मौर्यवंश का पाटलीपुत्र था तथा नालंदा, उदंतपुरी तथा विक्रमशिला जैसे जगप्रसिद्ध विश्वविद्यालयों की पावन भूमि थी।

बिहार का पुरातत्त्व मानचित्र
बिहार का पुरातत्त्व मानचित्र

बिहार की भूमि अपने विभिन्न परतों में अपने गौरवशाली इतिहास को सँजोये हुए है। बिहार संग्रहालय में एक मानचित्र है जो बिहार के भिन्न भिन्न पुरातात्विक स्थलों को दर्शाता है। बिहार में किस रूपरेखा के अंतर्गत उत्तम पुरातात्विक उत्खनन किये गए, उसका अद्भुत वर्णन किया गया है। सिक्के, औजार, मिट्टी के पात्रों के अवशेष जैसी कौन कौन सी पुरातत्व वस्तुओं की किन किन स्थानों से प्राप्ति हुई, उसका सुंदर चित्रण यहाँ किया गया है।

मुझे संग्रहालय के इस विभाग ने विशेष रूप से आकर्षित किया। मुझे यह विभाग अत्यंत शिक्षाप्रद एवं दृश्य रूप से अत्यंत मनमोहक प्रतीत हुआ।

चलित मधुबनी चित्रकारी

बिहार का नाम लेते ही वहाँ की लोकप्रिय मधुबनी चित्रकला शैली का स्मरण हो आता है। वस्तुतः, विश्वभर में बिहार की पहचान इन मधुबनी चित्रों से होती है।

चलित मधुबनी चित्रकारी
चलित मधुबनी चित्रकारी

बिहार संग्रहालय में मधुबनी चित्रकला शैली का एक नवीन रूप मेरे समक्ष था जिसने मुझे पुलकित कर दिया था। बिहार संग्रहालय में मधुबनी चित्रों की एक चलित दीर्घा थी। संग्रहालय में संगणक द्वारा रचित डिजिटल चित्रों के पटल थे। आप जैसे ही इनके समक्ष खड़े हो जाएँ, ये पटल गति करने लगते हैं। चित्र से संबंधित संगीत बजने लगता है। इन प्रोद्योगिकी क्रियान्वयनों से चालित चित्रपटल का आभास होता है।

जब मैं बिहार संग्रहालय के इस दीर्घा में पहुँची, उसे देखने के लिए दर्शकों की भारी भीड़ एकत्र थी। मुझे संगीत सुनाई नहीं पड़ रहा था। उस आयाम को त्याग दिया जाए तब भी वह मेरे लिए एक अविस्मरणीय अनुभव था। बिहार की संस्कृति से अभिज्ञ होने का यह एक उत्तम मार्ग है।

बिहार संग्रहालय के अन्य आकर्षण

बिहार संग्रहालय में उपरोक्त  आकर्षणों के अतिरिक्त अनेक ऐसे प्रदर्शन हैं जो बिहार की संस्कृति को उत्कृष्टता प्रदान करते हैं। उनमें मंजूषा से लेकर टेरकोटा उत्कीर्णन की सिक्की कला तक अनेक कला शैलियाँ सम्मिलित हैं।

बिहार का सांस्कृतिक मानचित्र
बिहार का सांस्कृतिक मानचित्र

संग्रहालय का ‘बिहार के वन्यजीव’ प्रदर्शन विभाग बिहार के वन्यजीवों को समर्पित है। किन्तु बिहार के वन्यजीवों को संग्रहालय में देखने के स्थान पर उन्हे प्रत्यक्ष देखने में मुझे अधिक आनंद आता। यदि इन वन्यजीव अभयारण्यों में भ्रमण करने के लिए अधिक सुविधाएं प्रदान कराई जाएँ तथा सुगम्य आधारभूत संरचनाएं विकसित किये जाएँ तो मुझे अधिक प्रसन्नता होगी।

संग्रहालय का नौनिहाल विभाग नन्हे दर्शकों को क्रियात्मक रूप से व्यस्त रखने में पूर्ण रूप से सक्षम है।

व्यापार तंत्र – किसी भी महान सभ्यता का आधार उसका व्यापारिक तंत्र होता है। पुरातन काल से बिहार की सभ्यता का आधार उसका व्यापार रहा है। बिहार संग्रहालय में प्राचीन काल के सिक्कों, व्यापारिक वस्तुओं तथा व्यापारियों की जीवनशैली को अप्रतिम रूप से प्रदर्शित किया गया है। इन प्रदर्शित वस्तुओं में विचित्र रूपों के भारों एवं मापों ने मुझे अत्यंत आश्चर्यचकित किया था।

बिहार संग्रहालय के दर्शन के लिए कुछ यात्रा सुझाव

बिहार संग्रहालय पटना नगर के मध्य स्थित है।

बिहार संग्रहालय के दर्शन के लिए कम से कम दो घंटों का समय आवश्यक है। मुझसे पूछें तो मुझे ऐसे संग्रहालय के अवलोकन के लिए एक सम्पूर्ण दिवस आवश्यक है।

संग्रहालय में एक जलपानगृह है। यहाँ आप बिहार के विशेष व्यंजन, लिट्टी-चोखा का आनंद ले सकते हैं।

संग्रहालय के विषय में अधिक जानकारी के लिए इनके museum map इस वेबस्थल अप संपर्क करें।

अनुवाद: मधुमिता ताम्हणे

The post पटना का बिहार संग्रहालय – अप्रतिम कलाकृतियों का संग्रह देखें appeared first on Inditales.

]]>
https://inditales.com/hindi/bihar-sangrahalay-patna/feed/ 0 3391
शिल्प संग्रहालय – ट्रैड फैसिलिटेशन सेंटर (पंडित दीनदयाल हस्तकला संकुल) https://inditales.com/hindi/pandit-deendayal-hastkala-sankul-varanasi/ https://inditales.com/hindi/pandit-deendayal-hastkala-sankul-varanasi/#respond Wed, 15 Nov 2023 02:30:40 +0000 https://inditales.com/hindi/?p=3322

विश्व की प्राचीनतम जीवंत नगरी वाराणसी में जब से नवनिर्मित ट्रैड फैसिलिटेशन सेंटर का क्रियान्वय हुआ है, तब से वह प्रशंसा का विषय बना हुआ है। यहाँ तक कि हमने भी अपनी ‘यात्रा सम्मलेन’ के संभावित आयोजन स्थल के लिए इसी केंद्र का चुनाव किया था किन्तु कुछ कारणों से हमें उसे बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय […]

The post शिल्प संग्रहालय – ट्रैड फैसिलिटेशन सेंटर (पंडित दीनदयाल हस्तकला संकुल) appeared first on Inditales.

]]>

विश्व की प्राचीनतम जीवंत नगरी वाराणसी में जब से नवनिर्मित ट्रैड फैसिलिटेशन सेंटर का क्रियान्वय हुआ है, तब से वह प्रशंसा का विषय बना हुआ है। यहाँ तक कि हमने भी अपनी ‘यात्रा सम्मलेन’ के संभावित आयोजन स्थल के लिए इसी केंद्र का चुनाव किया था किन्तु कुछ कारणों से हमें उसे बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय में आयोजित करना पड़ा था। अब इस केंद्र का नामकरण पंडित दीनदयाल हस्तकला संकुल किया गया है। अपनी इस यात्रा में मैं बनारसी रेशमी साड़ियों पर शोध कार्य कर रही थी। इसी विषय पर मेरा अन्वेषण मुझे वाराणसी नगरी के इस नवीन गंतव्य तक खींच लाया था।

हमारी गाड़ी मुंशी प्रेमचंद के पैतृक गाँव लमही में बने उनके स्मारक के सामने से आगे गयी। उनके निवास को अब संग्रहालय में परिवर्तित कर दिया गया है। आप यहाँ लोगों से वार्तालाप करें तो वे आपको मुंशी प्रेमचंद की कथाओं के पात्रों की गाथाएं अवश्य सुनायेंगे जिनका जीवन मुंशीजी ने इस निवास के चारों ओर ही बुना था। समय की कमी के कारण हम यहाँ अधिक समय व्यतीत नहीं कर पाए। किन्तु मेरा निश्चित सुझाव रहेगा कि आप मुंशी प्रेमचंद के निवास में, जो कि अब एक संग्रहालय है, कुछ समय अवश्य व्यतीत करें।

ट्रैड फैसिलिटेशन सेंटर (पंडित दीनदयाल हस्तकला संकुल)
ट्रैड फैसिलिटेशन सेंटर (पंडित दीनदयाल हस्तकला संकुल)

वाराणसी में नवनिर्मित ट्रैड फैसिलिटेशन सेंटर का उद्देश्य है, वाराणसी में व्यापार को बढ़ावा देना। हमने वाराणसी या काशी की सदा एक तीर्थस्थल के रूप में ही कल्पना की है तथा उसे एक धार्मिक स्थल ही माना है जहां मुख्यतः तीर्थयात्री ही आते हैं। किन्तु, इसके ठीक विपरीत वाराणसी सदा से एक व्यापारिक केंद्र रहा है। वास्तव में वाराणसी उस चौराहे पर स्थित है जहां दो प्रमुख व्यापार मार्ग एक दूसरे से मिलते थे। जी हाँ! मैं उत्तरपथ एवं दक्षिणपथ के विषय में कह कर रही हूँ। उत्तरपथ पूर्व दिशा से पश्चिम दिशा की ओर जाते हुए काबुल से ढाका जाता है। दक्षिणपथ उत्तर दिशा से दक्षिण दिशा की ओर आते हुए पटना से पैठन तक जाता है।

हमारे धर्म ग्रंथों में काशी के एक व्यापारिक केंद्र के रूप में अनेक उल्लेख दृष्टिगोचर होते हैं। आपको राजा हरीश्चंद्र की कथा का स्मरण तो अवश्य ही होगा। जब वे अयोध्या के सम्राट थे तब किसी विवशतावश उन्हें स्वयं की बोली लगानी पड़ी थे। यह बोली काशी के हाट में ही हुई थी। समय-चक्र में आगे चलें तो संत-कवि कबीर काशी में ही एक जुलाहे थे। वे अपनी कविताओं में काशी की मंडियों का उल्लेख यदा कदा करते थे।

काशी की गलियां
काशी की गलियां

बनारसी साड़ियों एवं बनारसी पान के विषय में तो हम सब जानते ही हैं। किन्तु इनके अतिरिक्त भी वाराणसी में अनेक ऐसी वस्तुएं हैं जिन्हें भौगोलिक संकेत या जी आइ टैग प्राप्त हैं। वाराणसी की इन्ही विशेषताओं का गुणगान करता है, ट्रैड फैसिलिटेशन सेंटर का यह संग्रहालय।

यह एक प्रकार से काशी नगरी या वाराणसी या बनारस का उत्सव मनाता है। इस प्रकार का संग्रहालय, जो किसी नगरी का उत्सव मानता हो, इससे पूर्व मैंने एक ही देखा था, मुंबई का भाऊ दाजी लाड संग्रहालय। किन्तु काशी का यह संग्रहालय असंख्य कलाशैलियों को पोषित करते हुए इतना अनुनादी है, इतना जीवंत है कि इसकी श्रेणी में इसका कोई सानी नहीं है।

वाराणसी का ट्रैड फैसिलिटेशन सेंटर

प्रथमदर्शनी लाल बलुआ पत्थर में निर्मित यह केंद्र दिल्ली के लुटियंस क्षेत्र में स्थित किसी भी अन्य संरचना जैसा प्रतीत होता है। समीप आते ही उसकी बाह्य भित्तियों पर सुनहरे रंग में मंदिर के शिखरों की उभरी आकृतियाँ दिखाई पड़ती हैं। यह आपको स्मरण करता है कि आप दिल्ली में नहीं अपितु वाराणसी में हैं। यह एक विशाल सार्वजनिक स्थल है जिसके भीतर एवं बाहर बड़ी संख्या में लोगों को समाने की क्षमता है।

काशी के पांच भारत रत्न
काशी के पांच भारत रत्न

बाह्यदर्शनी मुझे इस संरचना की सर्वाधिक प्रशंसनीय जो विशेषता लगी, वह है इसकी वास्तुकला। इसकी स्थापत्यशैली में वाराणसी के तत्व समाये हुए हैं। वह चाहे बुद्ध हो, या कबीर, भारत रत्न द्वारा सम्मानित वाराणसी नगरी के पाँच महानुभाव हों या वाराणसी की कलाशैली। वाराणसी के सुप्रसिद्ध गंगा घाट को कभी नेत्रों से ओझल ही नहीं होने दिया है। मैं सदा इस अंतरद्वन्द में रहती थी कि जीवंत परंपराओं एवं जीवंत संस्कृतियों के लिए संग्रहालयों की क्या आवश्यकता है? किन्तु इस संग्रहालय को देखते ही मेरा वह अंतरद्वन्द पूर्णतया लुप्त हो गया।

इस संग्रहालय में वाराणसी की सभी परम्पराओं, सभी संस्कृतियों को एक ही स्थान में इस प्रकार प्रदर्शित किया है कि सभी दर्शनार्थियों एवं हितधारकों को ये सरलता से उपलब्ध हो जाएँ। एक ही स्थान पर कलाकृतियों का भी प्रदर्शन है तथा कलाकारों को अपनी कलाकृतियाँ प्रदर्शित करने का मंच भी उपलब्ध है। ठप्पा निर्मातक, लकड़ी के खिलौने बनाने वाले कारीगर, चित्रकार, शिल्पकार जैसे अनेक दक्ष कारीगरों को यहाँ आमंत्रित किया जाता है ताकि वे अपनी कला का प्रदर्शन कर सकें, कलाकृतियाँ गढ़ सकें तथा दर्शनार्थियों एवं हितधारकों से कला संबंधी संवाद भी कर सकें। यह सब मुझे अत्यंत प्रशंसनीय प्रतीत हुआ।

काशी के कबीर
काशी के कबीर

क्रय-विक्रय क्षेत्र भी अत्यंत विलक्षण है। उनमें क्रय के लिए रखी वस्तुओं के विषय में तथा उनके मूल्य के विषय में मैं अधिक जानकारी नहीं दे सकती क्योंकि जब मैं वहां गयी थी, अधिकतर दुकानें बंद थीं। कदाचित महामारी का प्रभाव रहा होगा। आशा है कि अब महामारी के सभी दुष्प्रभावों को पीछे छोड़कर हम आगे बढ़ चुके हैं तथा अब वे दुकानें ग्राहकों से सुशोभित हो रही हों।

यहाँ अनेक भित्तिचित्र एवं प्रतिमाएं हैं जो वाराणसी नगरी के मूल तत्व को दर्शाते हैं। प्रवेश करते ही हमारी दृष्टि भगवान बुद्ध की एक विशाल प्रतिमा पर आकृष्ट हुई जो उनके तत्वज्ञान का स्मरण कराती है। मध्य में लोकप्रिय संत-कवि कबीर की प्रतिमा है जो काशी नगरी में एक जुलाहा भी थे। एक भित्तिचित्र में भारत रत्न से सम्मानित वाराणसी के पाँचों महानुभावों को दर्शाया है। वे हैं, पंडित मदन मोहन मालवीय, पंडित रवि शंकर, उस्ताद बिस्मिल्ला खान, लाल बहादुर शास्त्री एवं भगवान दास जी। आपने ऐसे कितने नगर देखे हैं जिन्होंने उनके क्षेत्र के राष्ट्र-विभूषित व्यक्तित्व को इस प्रमुखता से सम्मानित किया हो?

ट्रैड फैसिलिटेशन सेंटर का शिल्प संग्रहालय

शिल्प संग्रहालय के भवन के तीन तलों में वाराणसी की शिल्प शैलियों को प्रदर्शित किया है। संग्रहालय की प्रदर्शनी दीर्घा को अप्रतिम रूप से सुसज्जित किया है।

काशी की बुनाई
काशी की बुनाई

प्रवेश करने से पूर्व ही आप स्वयं को रंगबिरंगे एवं उजले सुन्दर पटलों से घिरा पायेंगे जो बनारसी रेशम की विविधता एवं सुन्दरता को प्रस्तुत करते हैं। एक प्रकार से आप स्वयं को उस उत्कृष्ट सम्पन्नता से घिरा पायेंगे जो इस नगरी की अतिविशिष्ट बुनाई तकनीक की परिभाषा है।

वाराणसी पर चलचित्र

वाराणसी के वैशिष्ट्य को प्रदर्शित करता एक लघु चित्रपट आप एक विशेष प्रेक्षागार में देखेंगे जो आपको वाराणसी नगरी के विभिन्न आयामों को ३६०अंश में प्रदर्शित करते हैं। एक प्रकार से ये सम्पूर्ण नगरी को आपके समक्ष प्रदर्शित कर देते हैं। आप अपनी इच्छा के अनुसार उसके विभिन्न तत्वों पर लक्ष्य केन्द्रित कर सकते हैं तथा काशी की गलियों में भ्रमण करते समय सीधे अपने गंतव्य की ओर जा सकते हैं।

आप मध्य में खड़े होकर अपने चारों ओर प्रदर्शित चलचित्र में काशी को परिभाषित करते उसके सर्वोत्कृष्ट तत्वों का आनंद ले सकते हैं जैसे उसका संगीत, वहाँ के संगीतज्ञ, उसके घाट एवं वहाँ का जीवन, उसके लोकप्रिय पानवाले, मिठाई की दुकानें, बुनकर, लकड़ी के खिलौने बनाने वाले, मीनाकारी के आभूषण बनाने वाले, शैल शिल्पकार आदि। इन सभी आयामों में सर्वप्रसिद्ध तत्व तो सदा काशी की लोकप्रिय गलियाँ ही होती हैं जो स्वयं में किसी संग्रहालय से कम नहीं हैं। काशी की गलियों में भ्रमण करना एक मुक्तांगन संग्रहालय में भ्रमण करने जैसा होता है।

मध्य में खड़े होकर ऐसा प्रतीत होता है मानो आप चारों ओर से काशी से घिरे हुए हैं।

वस्त्र दीर्घा

संग्रहालय का यह क्षेत्र आपको उत्कृष्ट रेशमी वस्त्रों के स्वप्निल विश्व में ले जाता है। इस क्षेत्र को सुरुचिपूर्ण रीति से सज्जित किया है। विभिन्न प्रकार के रेशम, विभिन्न प्रकार की रेशमी बुनाई तकनीक आदि की जानकारी हिन्दी एवं अंग्रेजी दोनों भाषाओं में दी गयी हैं। रेशमी वस्त्रों की सम्पूर्ण बुनाई तकनीक को दृश्यों एवं शब्दों द्वारा समझाया गया है।

आड़े जाल की बनारसी साड़ी
आड़े जाल की बनारसी साड़ी

यहाँ की एक अन्य विशेषता है, वाराणसी की उत्कृष्ट धरोहर, बनारसी साड़ियों के अद्भुत संग्रह का प्रदर्शन। आप उनमें जामुनी, रानी, लाल आदि चटक रंगों में काशी की पारंपरिक आकृतियाँ देख सकते हैं। आप उन्हें ध्यान से देखें तो आपको विभिन्न बुनाई तकनीक की सूक्ष्मताएँ एवं उनमें अंतर स्पष्ट दृष्टिगोचर होगा। विभिन्न प्रकार की बुनाई, आकृतियाँ एवं रूपरेखाओं में विविधताओं को पहचान सकते हैं।

गेयसर - बौद्ध अनुष्ठानों का वस्त्र
गेयसर – बौद्ध अनुष्ठानों का वस्त्र

एक प्रदर्शनी का उल्लेख करना चाहूंगी जिसमें मोर के पंखों को रेशम के साथ बुनकर आकृतियाँ बनाई गयी हैं। एक अन्य वस्त्र है गयसर, जिसे ब्रोकेड में बनाया जाता है। बौद्ध लामा प्रार्थना के लिए इसका प्रयोग करते हैं।

गालीचा दीर्घा

इस दीर्घा में गालीचों के कुछ उत्कृष्ट नमूने प्रदर्शित हैं।

गलीचे पे बुना चाँद और उसकी परछाई
गलीचे पे बुना चाँद और उसकी परछाई

एक गालीचे में चन्द्रमा एवं उसका प्रतिबिम्ब दर्शाया गया है जो अत्यंत सुन्दर है। कुछ गालीचों में राजाओं की कथाएं बुनी गयी हैं। गालीचा बुनाई में प्रयुक्त विभिन्न प्रकार के बुनाई तकनीक एवं आकृतियाँ प्रदर्शित की गयी हैं।

वाराणसी कला दीर्घा

इस दीर्घा में वाराणसी में उपलब्ध विभिन्न प्रकार की वस्तुओं की प्रदर्शनी है। मैं काशी के विभिन्न कला शैलियों पर जानकारी एकत्र कर उन पर एक संस्करण लिख चुकी थी। इसके पश्चात भी मुझे यहाँ नवीन जानकारियाँ प्राप्त हो रही थीं। वाराणसी की टेराकोटा कलाशैली मैंने सर्वप्रथम यहीं देखी। उनमें काली चिकनी मिट्टी (टेराकोटा) में बने पात्र भी सम्मिलित हैं। इससे पूर्व मेरा अनुमान था कि कुम्हारी के लिए काले टेराकोटा का प्रयोग केवल मणिपुर में किया जाता है। अब मैं जब भी वाराणसी के हाट में जाऊँगी तब इन काले टेराकोटा के पात्रों को अवश्य ढूंडूंगी।

काष्ठ में गढ़ी हनुमान मूर्ति
काष्ठ में गढ़ी हनुमान मूर्ति

यहाँ प्रसिद्ध रामनगर रामलीला में प्रयुक्त होने वाले मुखौटे हैं।

आपका ध्यानाकर्षित करने वाली गुलाबी मीनाकारी की गयी अनेक उत्कृष्ट वस्तुएं हैं।

वाराणसी के काली मिटटी के बर्तन
वाराणसी के काली मिटटी के बर्तन

पीतल एवं अन्य धातुशैलियों में निर्मित मूर्तियाँ है जिनमें पुरातन एवं आधुनिक, दोनों कलाशैलियों को देखा जा सकता है।

दीर्घा के अंतिम भाग में एक विस्तृत चित्ताकर्षक राम दरबार है।

पत्थर में गढ़े हाथी
पत्थर में गढ़े हाथी

वाराणसी की वे सभी वस्तुएं जिन्हें भौगोलिक संकेत प्राप्त है, यहाँ प्रदर्शित की गयी हैं। यह संग्रहालय एक प्रकार से उन उत्कृष्ट वस्तुओं का उत्सव मनाता है।

ट्रैड फैसिलिटेशन सेंटर के परिसर में आप कारीगरों से भेंट भी कर सकते हैं तथा उन्हें अपनी रचनाओं को गढ़ते प्रत्यक्ष देख सकते हैं। मैं ठप्पा छपाई के लिए ठप्पा बनाने वाले एक कारीगर से मिली। वह ठप्पा यंत्रों के लिए आवश्यकतानुसार ठप्पे बना रहा था। एक अन्य शिल्पकार छोटी छोटी काष्ट कलाकृतियाँ बना रहा था। कुछ आभूषण भी बना रहा था। उनसे चर्चा करना तथा उनकी कलाओं के विषय में जानना अत्यंत आनंददायी होता है। साथ ही सीखने को भी मिलता है।

यदि किसी का इन कलाओं की ओर झुकाव हो तो उस के लिए यह स्वर्ग प्राप्त करने के समान है। बच्चों के लिए यह उत्तम स्थान है। आशा है यह संग्रहालय बच्चों एवं बड़ों के लिए कार्यशालाएँ भी आयोजित करे ताकि अधिक से अधिक लोग इन कलाओं से जुड़ सकें, उन्हें सीख सकें।

वाराणसी के ट्रैड फैसिलिटेशन सेंटर से संबंधित कुछ सूचनाएं

यह संग्रहालय प्रातः ११:३० बजे खुलता है तथा संध्या ०७:३० बजे बंद होता है। सोमवार को संग्रहालय बंद रहता है।

प्रवेश शुल्क नाममात्र है।

संग्रहालय के भीतर कैमरे ले जाने की अनुमति नहीं है।

संग्रहालय में सभी प्रदर्शित कलाकृतियों की जानकारी के लिए आप गाइड की सहायता ले सकते हैं। अभी तक तो गाइड सेवा निशुल्क उपलब्ध है।

सम्पूर्ण संग्रहालय के अवलोकन के लिए तथा दुकानों में उपलब्ध वस्तुओं को देखने के लिए कुछ घंटों का समय आवश्यक है।

यदि कोई विशेष प्रदर्शनी लगी हुई हो तो उसके लिए कुछ समय अधिक लग सकता है।

अनुवाद: मधुमिता ताम्हणे

The post शिल्प संग्रहालय – ट्रैड फैसिलिटेशन सेंटर (पंडित दीनदयाल हस्तकला संकुल) appeared first on Inditales.

]]>
https://inditales.com/hindi/pandit-deendayal-hastkala-sankul-varanasi/feed/ 0 3322
अलीपुर संग्रहालय – कोलकाता का ऐतिहासिक कारागृह https://inditales.com/hindi/alipore-jail-sangrahalaya-kolkata/ https://inditales.com/hindi/alipore-jail-sangrahalaya-kolkata/#respond Wed, 30 Aug 2023 02:30:38 +0000 https://inditales.com/hindi/?p=3164

कोलकाता का अलीपुर संग्रहालय पूर्व में एक केंद्रीय कारागृह था। आरंभ में मैं इस संग्रहालय के भ्रमण के लिए आतुर नहीं थी क्योंकि कारागृहों के विषय में सदा यह अवधारण बनी रहती है कि वे भयावह संस्थान होते हैं। साथ ही ऐसा भी माना जाता है कि वे अत्यंत अस्वच्छ होते हैं। किन्तु इस संग्रहालय […]

The post अलीपुर संग्रहालय – कोलकाता का ऐतिहासिक कारागृह appeared first on Inditales.

]]>

कोलकाता का अलीपुर संग्रहालय पूर्व में एक केंद्रीय कारागृह था। आरंभ में मैं इस संग्रहालय के भ्रमण के लिए आतुर नहीं थी क्योंकि कारागृहों के विषय में सदा यह अवधारण बनी रहती है कि वे भयावह संस्थान होते हैं। साथ ही ऐसा भी माना जाता है कि वे अत्यंत अस्वच्छ होते हैं। किन्तु इस संग्रहालय के विषय में मेरी ये सभी अवधारणाएँ असत्य सिद्ध हुईं।

मेरा अलीपुर संग्रहालय भ्रमण एक अविस्मरणीय अनुभव था जिसे मैं पुनः दुहराना चाहूँगी। यह संग्रहालय हमारे भीतर एक गौरव की भावना उत्पन्न करता है। मैं यह कहूँगी कि यह वास्तव में एक उत्तम रूप से संरक्षित व प्रदर्शित संग्रहालय है। इसे स्वतंत्रता संग्रहालय तथा अलीपुर जेल संग्रहालय भी कहते हैं। किन्तु इस संग्रहालय के अधिकारिक वेबस्थल पर प्रदर्शित छायाचित्र प्राचीन हैं जो नकारात्मक परिप्रेक्ष्य प्रस्तुत करते हैं।

अलीपुर संग्रहालय
अलीपुर संग्रहालय

यह संग्रहालय कोलकाता के लोकप्रिय काली मंदिर के निकट स्थित है। यहाँ पहुँचना अत्यंत सुगम्य है।

अलीपुर संग्रहालय अपने समृद्ध इतिहास का प्रस्तुतिकरण करता है। यह जिस कारागृह में स्थित है, उस कारागृह से अंग्रेजों के विरुद्ध हमारे स्वतंत्रता संग्राम का प्रगाढ़ सम्बन्ध है। स्वतंत्रता संग्राम में भाग लेने वाले हमारे वीर स्वतंत्रता सेनानियों में से अनेक महारथियों को इस कारागृह में बंदी बनाकर रखा गया था। जैसे नेताजी सुभाष चन्द्र बोस, पंडित जवाहर लाल नेहरु आदि। उनके कालकोठरियों को उनके नाम दिए गए हैं। यद्यपि यह संग्रहालय स्वतंत्रता सेनानियों की गाथाएँ कहता है तथापि इस संग्रहालय में भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में बंगाल प्रेसीडेंसी की भूमिका पर अधिक प्रकाश डाला गया है।

इस संग्रहालय से मुझे एक महत्वपूर्ण जानकारी यह भी प्राप्त हुई कि स्वतन्त्र भारत के लिए किये गए संघर्ष में अनेक संन्यासियों एवं फकीरों ने भी भाग लिया था। इन सेनानियों की जीवनी वास्तव में आश्चर्यचकित कर देती है। इनमें से अधिकाँश ऐसे परिवारों से संबंध रखते थे जो आसानी से एक सुगम व सुखी जीवन व्यतीत कर सकते थे। लेकिन उन्होंने उन सब का त्याग कर यातनापूर्ण जीवन अपनाया तथा स्वयं को इस संग्राम में झोंक दिया। उन सबका स्वप्न था, औपनिवेशिक सत्तावाद से मुक्त मातृभूमि। इस स्वप्न के लिए अनेक स्वतंत्रता सेनानियों ने प्रसन्नता से अपने प्राण न्योछावर कर दिए थे।

अलीपुर संग्रहालय का इतिहास

इस भवन परिसर का निर्माण ब्रिटिश शासन द्वारा सन् १९०६ में एक केंद्रीय कारागृह के रूप में किया गया था। संग्रहालय के अधिकारिक वेबस्थल के अनुसार उस काल में इसे एक आधुनिक कारागृह माना जाता था। सन् २०१९ तक इस परिसर का एक कारागृह के रूप में उपयोग किया जा रहा था।

अलीपुर कारागृह संग्रहालय का भ्रमण पूर्ण करने के पश्चात मुझमें यह जानने की तीव्र  जिज्ञासा उत्पन्न हुई थी कि स्वतंत्रता के पश्चात तथा इस कारागृह को संग्रहालय में परिवर्तित किये जाने से पूर्व तक यहाँ बंदियों को किस प्रकार रखा जाता था। इस कारागृह का स्वतंत्रता-पश्चात् का इतिहास अधिक दीर्घ होने के पश्चात भी यहाँ एक भी दीर्घा इस कालखंड का चित्रण नहीं करती है। मुझे इसका अनुताप अवश्य हुआ।

अलीपुर कारागृह संग्रहालय में क्या देखें?

आईये मैं आपको इस संग्रहालय का कल्पित भ्रमण कराती हूँ।

आजाद हिन्द फौज पर आधारित कॉफी हाउस (INA Themed Coffee House)

यहाँ एक जलपान गृह अथवा कॉफी हाउस है जो आजाद हिन्द फौज के विषयवस्तु पर आधारित है। यह आधुनिक जलपानगृह संग्रहालय के प्रवेश स्थल पर स्थित भवन के प्रथम तल पर कार्यरत है। इसकी एक भित्ति इस कारागृह के पुरातन काल के चित्रों से अलंकृत है। दूसरी भित्ति पर आजाद हिन्द फौज का इतिहास प्रलेखित है।

आजाद हिन्द फौज पर आधारित कॉफी हाउस
आजाद हिन्द फौज पर आधारित कॉफी हाउस

हरे रंग के काष्ठ निर्मित झरोखों से सज्ज लाल रंग के अनेक कारागृह भवन इस कैफे से दिखाई देते हैं। कैफे की भीतरी सज्जा इतनी अनुपम है कि मुझे इसके भीतर बैठकर अपना कार्य करने की प्रेरणा प्राप्त हो रही थी। मैंने अनेक कथाओं में पढ़ा था कि कारागृह में बंदियों को निःस्वाद भोजन दिया जाता है इसलिए मैं इस कैफे से भी ऐसे ही भोजन की आशंका कर रही थी। किन्तु यहाँ के व्यंजनों ने मेरी इस धारणा का पूर्णतः खंडन कर दिया था। मुझे यहाँ अत्यंत स्वादिष्ट व्यंजनों का आस्वाद लेने का अवसर प्राप्त हुआ।

पुनरावलोकन करूँ तो मुझे आश्चर्य होता है कि मेरे संग्रहालय भ्रमण काल में मैंने अपने मस्तिष्क में मथते विचारों के विषयों को नाटकीय रूप से कितनी ही बार परिवर्तित कर दिए थे, उसकी गणना नहीं है। यह एक कारागृह था जहाँ बंदियों को रखा जाता था तथा जो मानवता के सर्वाधिक विकृत रूप का साखी था, यह विषय सर्वोपरि है। मेरी मान्यता है कि ऐसी ही परिस्थिति विश्व के अनेक स्थानों के लिए सत्य है। जीवन में अनेक परिस्थितियाँ आती हैं जहाँ हमारा साक्षात्कार मानवता के विकृत रूप से होता है। यहाँ मुझे इस सत्य ने झकझोर दिया था।

और पढ़ें: तिहाड़ कारागृह में कैदियों द्वारा निर्मित TJ छाप की वस्तुएं

शहीद स्मारक

संग्रहालय के भीतर प्रवेश करते ही दाहिनी ओर एक शहीद स्मारक है। यह उन वीर स्वतंत्रता सेनानियों के बलिदानों की स्मृति में बनाया गया है जिन्हें यहाँ मृत्युदंड दिया गया था अथवा जिन्होंने यहाँ कारावास में हुए अत्याचार में प्राण गँवा दिए या अत्याचारों के चलते आत्महत्या कर ली अथवा अस्वच्छ कोठरियों में रोगग्रस्त होकर मृत्यु को प्राप्त हो गए थे।

शहीद स्मारक
शहीद स्मारक

एक पटल पर उन सभी सेनानियों के नाम अंकित हैं।

स्वतंत्रता सेनानियों की कालकोठरियाँ

किंचित आगे जाकर, बाईं ओर हम एक एकांत क्षेत्र में पहुंचे जहाँ एक गलियारे में कुछ कालकोठरियाँ थीं। यहीं एक कोठरी में नेहरु को सन् १९३० में कुछ मास के लिए रखा था। उनकी पुत्री इंदिरा हर पखवाड़े उनसे इसी गलियारे में भेंट करती थी। इस कोठरी का नामकरण अब नेहरु के नाम पर किया गया है।

नेहरु ने अपनी पुस्तक, ‘The Discovery of India’ में लिखा था, “निवास करने के लिए कारागृह कोई सुखद स्थान नहीं है, भले ही निवासकाल कुछ ही दिवसों का भी क्यों ना हो”। मैं उस काल की परिस्थिति का वर्तमान की परिस्थिति से तुलना करने से स्वयं को रोक नहीं पायी। आज यह स्थान स्वच्छ, हराभरा एवं अत्यंत सुखदाई प्रतीत होता है।

नेहरु की कोठरी के पश्चात नेताजी सुभाष चन्द्र बोस, बी सी रॉय, सी आर दास एवं जे एम गुप्ता जैसे स्वतंत्रता सेनानियों की कोठरियाँ हैं।

और पढ़ें: आगा खान पैलेस – पुणे में गांधीजी का कारागृह 

तांतकल अथवा बुनकर कक्ष

हमने संगोष्ठी कक्ष में प्रवेश किया तथा वहाँ से उस पार निकलकर एक विशाल प्रांगण में पहुंचे। उस प्रांगण को पार कर हम बंदियों के बुनाई कक्ष में पहुँचते हैं। ऐसा कहा जाता है कि अन्य काराग्रहों के विपरीत, इस काराग्रह में कैदियों से सभ्य रूप से परिश्रम कराया जाता था।

वर्तमान में इस बुनकर कक्ष में हथकरघे रखे हुए हैं। मिट्टी द्वारा निर्मित कैदियों के प्रतिरूप चरखे चलाते हुए प्रदर्शित किये गए हैं।

लोकप्रिय पारंपरिक बंगाली साड़ियों को तांत कहते हैं।

और पढ़ें: भारतीय साड़ियों का इतिहास, धरोहर एवं कला

कालकोठरियाँ

हम वहाँ से वापिस आते हुए अवलोकन दुर्ग की ओर गए। अवलोकन दुर्ग पर ऊपर चढ़ने के लिए पर्यटकों की लम्बी पंक्ति पहले से ही प्रतीक्षा कर रही थी। अतः हमने अवलोकन दुर्ग पर चढ़ने की योजना को टाल देने में भलाई जानी। परिसर में आगे बढ़ते हुए हमने सामूहिक कालकोठरियों की पंक्तियाँ देखीं। साथ ही यूरोपीय बंदियों के लिए पृथक कालकोठरियाँ देखीं। बंदियों के सामाजिक एवं आर्थिक स्तर के अनुसार उनको प्राप्त हुई सुविधाओं में भिन्नता स्पष्ट देखी जा सकती है।

सिक्कों की दीर्घा

आगे बढ़ते हुए हम एक ऐसी दीर्घा में पहुँचे जहाँ सिक्कों को प्रदर्शित किया गया था। उनमें स्वतंत्रता के पश्चात जारी किये गए सिक्कों की एक बड़ी मात्रा है।

सिक्कों की दीर्घा
सिक्कों की दीर्घा

वहाँ कुछ अतिविशाल अनोखे सिक्के भी थे। मानव आकार के सिक्कों पर स्वतंत्रता सेनानियों की छवियों को उत्कीर्णित कर प्रदर्शित किया है। दुर्गा माँ की भी छवि एक सिक्के पर उत्कीर्णित है।

कालांतर में मुझे ज्ञात हुआ कि इन सिक्कों को सन् २०२२ में कोलकाता के एक दुर्गा पूजा पंडाल से लाया गया है। दुर्गा पूजा बंगाल का सर्वाधिक लोकप्रिय वार्षिक उत्सव है।

दुर्गा प्रतिमा सिक्के की आकृति में
दुर्गा प्रतिमा सिक्के की आकृति में

कोलकाता में दुर्गा पूजा अत्यंत भव्य रीति से आयोजित किया जाता है। प्रत्येक जाते वर्ष के साथ इसकी भव्यता में अधिकाधिक वृद्धि होती जा रही है। दुर्गा पूजा पंडाल में प्रदर्शित अतिविशाल झांकियों एवं देवी-देवताओं की विशाल प्रतिमाओं को अत्यंत धैर्य के साथ बनाया जाता है। यद्यपि ये पंडाल एवं सभी संरचनाएं अल्पकालिक होते हैं, तथापि उनके निर्माण में प्रयुक्त संसाधनों एवं रचनात्मक प्रयासों में किसी भी प्रकार की कोताही नहीं की जाती है। यदि आपने दुर्गा पूजा काल में कोलकाता का भ्रमण नहीं किया है तो आप उसकी एक छोटी सी झलक इस संग्रहालय में देख सकते हैं।

यूनेस्को ने कोलकाता के दुर्गा पूजा को अपने अमूर्त सांस्कृतिक धरोहरों की सूची में सम्मिलित किया है। यूँ तो दुर्गा पूजा के पंडाल में देवताओं के विग्रह एवं झाँकियाँ सभी अल्पकालिक अवधि के लिए प्रदर्शित होते हैं, फिर भी उन पर बड़ा परिश्रम किया जाता है। ये अनेक व्यक्तियों के क्रियात्मक विचार, उनके अथक परिश्रम का फल होते हैं। पूजा के पश्चात यहाँ प्रयुक्त सभी वस्तों को ऐसे ही समाप्त करने के स्थान पर उन वस्तुओं को इस संग्रहालय में प्रदर्शित किया गया है।

और पढ़ें: कोलकाता के काली मंदिर

अलीपुर केंद्रीय कारागृह चिकित्सालय

सिक्कों की दीर्घा को पार कर हम परिसर के ऐसे भाग में पहुँचे जहाँ पूर्व में अलीपुर कारागृह चिकित्सालय था। उस चिकित्सालय के कक्षों को परिवर्तित कर अनेक प्रदर्शन दीर्घाएं बनाई गयी हैं। ये दीर्घाएं बंगाल प्रेसीडेंसी के क्रांतिकारियों की गाथाएँ कहती हैं। इन दीर्घाओं में बड़ी संख्या में पठन सामग्री उपलब्ध है। आप यहाँ पर्याप्त समय व्यतीत कर सकते हैं।

चिकित्सालय
चिकित्सालय

इस इमारत में भी एक कैफे है जिसका नाम एकांत है। यह जलपानगृह पूर्व में कारागृह के रसोइगृह में था। इसका वातावरण आजाद हिन्द फौज कैफे से भिन्न है। हम यहाँ रविवार के दिन आये थे। यह जलपानगृह ग्राहकों से खचाखच भरा हुआ था।

चिकित्सालय से लगा हुआ एक विस्तृत उद्यान है जो कारागृह की ऊंची भित्तियों से सीमांकित है। यह उद्यान पारिवारिक उद्यानभोज के लिए एक लोकप्रिय स्थल बन गया है। विडम्बना यह है कि ये भित्तियाँ जो अब परिवारों की प्रसन्नता एवं उल्हास की साक्षी हैं, एक समय यही भित्तियाँ बंदीगृह के बंधकों को इसके उस पार स्थित अपने परिवारजनों का स्मरण करती होंगी जिनसे भेंट की प्रतीक्षा में इन्होंने यहाँ वर्षों व्यतीत किये होंगे।

और पढ़ें: गोवा का रीस मागोस कारागृह

मृत्यु दंड स्थल

चिकित्सालय एवं उद्यान अवलोकन के पश्चात् हम प्रवेश द्वार की ओर वापिस मुड़े। वापसी मार्ग पर हम ऐसे भाग में पहुँचे जहाँ दोषियों को दिया गया मृत्यु दंड कार्यान्वित किया जाता था। यहाँ तीन कक्ष हैं जहाँ मृत्यु दंड प्राप्त बंदी अपने अंतिम कुछ क्षण व्यतीत करते थे। यहाँ यदि किसी बंदी की मांग हो तो उन्हें पढ़ने के लिए गीता दी जाती थी। उन्हें अंतिम भोजन के रूप में उनका प्रिय भोजन भी दिया जाता था।

मृत्यु दंड स्थल
मृत्यु दंड स्थल

ये तीनों दोषी कक्ष एक प्रांगण में खुलते हैं जहाँ दोषियों के दंड को क्रियान्वित करने के लिए फाँसी का चबूतरा है। वस्तुतः, इस चबूतरे के समक्ष कारागृह की एक इमारत है जिसकी कोठरियों में अनेक बंदियों को इसलिए रखा जाता था ताकि वे अपने साथी बंदियों को दी जा रही फाँसी को प्रत्यक्ष देखें तथा भयभीत होकर ब्रिटिश साम्राज्य को क्रान्ति व क्रांतिकारियों के विषय में सभी गुप्त जानकारियाँ दे दें।

अलीपुर संग्रहालय का मानचित्र
अलीपुर संग्रहालय का मानचित्र

फाँसी के चबूतरे के निकट एक कक्ष है जहाँ शव परीक्षा की जाती थी।

अलीपुर संग्रहालय के अन्य आकर्षण

प्रत्येक सांध्य के समय यहाँ श्रव्य एवं दृश्य प्रदर्शन किया जाता है। यह प्रदर्शन चिकित्सालय के निकट स्थित एक मुक्तांगन में किया जाता है। यहाँ बैठने के लिए विस्तृत व्यवस्था है।

इनके अतिरिक्त इस परिसर में एक स्मारिका दुकान एवं एक कारागृह मुद्रणालय है।

यात्रा सुझाव

  • इस संग्रहालय में आप २ से ४ घंटों का समय आसानी से व्यतीत कर सकते हैं।
  • संग्रहालय के समीप निजी वाहन रखने के लिए पर्याप्त स्थान है। आप यहाँ सार्वजनिक परिवहन साधनों द्वारा भी पहुँच सकते हैं।
  • मैं यहाँ रविवार के दिन आयी थी, वह भी संध्या लगभग ४ बजे। उस समय यहाँ पर्यटकों की बड़ी भीड़ थी। अतः आप अपना कार्यक्रम अपनी सुविधाओं को ध्यान में रखकर सुनियोजित करें।
  • यहाँ नाममात्र का प्रवेश शुल्क लिया जाता है। वर्तमान टिकट मूल्य एवं समयावधि के लिए संग्रहालय के अधिकारिक वेब स्थल पर जाएँ।

यह खुशबू ललानी द्वारा प्रदत्त एक अतिथि संस्करण है। खुशबू ललानी ने सॉफ्टवेर उद्योग में १३ वषों तक कार्य किया है। अब वे मानवी अनुगमन के दीर्घकालीन परिणामों पर शोध कर रही हैं तथा उनसे सीख प्राप्त करने की प्रणाली पर लक्ष्य केन्द्रित कर रही हैं।

अनुवाद: मधुमिता ताम्हणे

The post अलीपुर संग्रहालय – कोलकाता का ऐतिहासिक कारागृह appeared first on Inditales.

]]>
https://inditales.com/hindi/alipore-jail-sangrahalaya-kolkata/feed/ 0 3164
कला भूमि – भुवनेश्वर ओडिशा का शिल्प संग्रहालय https://inditales.com/hindi/kala-bhumi-sangrahalay-bhubaneshwar-odisha/ https://inditales.com/hindi/kala-bhumi-sangrahalay-bhubaneshwar-odisha/#respond Wed, 12 Apr 2023 02:30:25 +0000 https://inditales.com/hindi/?p=3008

कला भूमि – ओडिशा शिल्प संग्रहालय आधुनिक काल के सर्वोत्कृष्ट संग्रहालयों में से एक है जहां ओडिशा की उत्कृष्ट विरासत को कला एवं शिल्प के रूप में सर्वोत्तम रूप से प्रदर्शित किया गया है। भुवनेश्वर नगर में स्थित यह संग्रहालय अत्यंत महत्वपूर्ण संग्रहालय है जिसका अपने ओडिशा यात्रा के समय आप अवश्य अवलोकन करें। ओडिशा […]

The post कला भूमि – भुवनेश्वर ओडिशा का शिल्प संग्रहालय appeared first on Inditales.

]]>

कला भूमि – ओडिशा शिल्प संग्रहालय आधुनिक काल के सर्वोत्कृष्ट संग्रहालयों में से एक है जहां ओडिशा की उत्कृष्ट विरासत को कला एवं शिल्प के रूप में सर्वोत्तम रूप से प्रदर्शित किया गया है। भुवनेश्वर नगर में स्थित यह संग्रहालय अत्यंत महत्वपूर्ण संग्रहालय है जिसका अपने ओडिशा यात्रा के समय आप अवश्य अवलोकन करें।

ओडिशा के पारंपरिक शिल्प एवं कला के विषय में आवश्यक जानकारी प्राप्त करने एवं इस अद्भुत कला संग्रह को सराहने में आप कुछ घंटे आसानी से व्यतीत कर सकते हैं।

कला भूमि – ओडिशा शिल्प संग्रहालय

भुवनेश्वर नगर की सीमा पर स्थित इस निजी संग्रहालय में भूतपूर्व कलिंग राज्य की विरासत दर्शाती कला एवं शिल्प की सर्वोत्कृष्ट कलाकृतियों का अद्भुत संग्रह है।

कला भूमि भुवनेश्वर में लघु आकृति
राधा कृष्ण हाथी की सवारी करते हुए

सप्ताह के सातों दिवस खुले इस संग्रहालय में प्रतिदिन दर्शन समयावधि प्रातः १० बजे से सायं ५.३० बजे तक है। संध्या के समय टिकट खिड़की १५ मिनट पूर्व, अर्थात् ५.१५ बजे बंद हो जाती है। यह ध्यान रखें कि जिस दिन आप यहाँ आयें, वह भारत का कोई प्रमुख राष्ट्रीय अवकाश दिवस ना हो क्योंकि उन दिवसों में यह संग्रहालय अतिथियों के लिए बंद रहता है।

भुवनेश्वर के केंद्र से लगभग ८ किलोमीटर दक्षिण-पश्चिम दिशा में स्थित इस संग्रहालय के अवलोकन के साथ आप उदयगिरी एवं खंडगिरी की गुफाओं के भी दर्शन कर सकते हैं। ये गुफाएं संग्रहालय से केवल ३ किलोमीटर दूर स्थित हैं। १२ एकड़ से अधिक क्षेत्रफल में फैले इस संग्रहालय का उद्घाटन सन् २०१८ में ही हुआ है। इस परिक्षेत्र को पोखरिपुट कहते हैं।

कैमरा

संग्रहालय में पहुंचते ही इसका सुन्दर परिसर आपका मन मोह लेगा। हरा-भरा एवं सुव्यवस्थित परिसर, वाहनों  के लिए भरपूर व सुनियोजित व्यवस्था, अतिथियों की मनःपूर्वक सहायता करते कर्मचारी, ये सभी आपको संग्रहालय में प्रवेश से पूर्व ही प्रसन्न कर देंगे । किन्तु अन्य संग्रहालयों के समान इनके भी कुछ विचित्र नियम/प्रणालियाँ/दिशानिर्देश/नियंत्रण हैं जो आश्चर्यजनक हैं।

जैसे, संग्रहालय में पधारे अवलोकनकर्ताओं को कैमरे भीतर ले जाने की अनुमति नहीं दी जाती, ना ही किसी प्रकार से उनके द्वारा चित्र अथवा चलचित्र लेने की अनुमति होती है। उससे अधिक आश्चर्यजनक यह है कि “कैमरे” ले जाने की अनुमति नहीं है, किन्तु मोबाइल फ़ोन ले जाने, उसके कैमरे से चित्र अथवा विडियो लेने पर वे कोई आपत्ति नहीं करते।

संग्रहालय के विभाग

संग्रहालय में पर्यटकों के लिए एक श्रव्य/दृश्य विभाग है जहां अवलोकनकर्ता ओडिशा की कला एवं शिल्प से सम्बंधित अनेक छोटे छोटे चलचित्र देख सकते हैं तथा उन्हें समझ सकते हैं। यदि शिल्प एवं कला की सूक्ष्मताओं को जानने एवं समझने में आपकी रूचि हो तथा आपके पास पर्याप्त समय भी हो तो यह विभाग आपके लिए अत्यंत महत्वपूर्ण एवं उपयोगी सिद्ध होगा।

संग्रहालय के प्रमुख विभाग वे हैं जहां ओडिशा राज्य के सर्वोत्कृष्ट शिल्प कौशल को प्रदर्शित करती कलाकृतियों के उत्कृष्ट नमूने रखे हुए हैं। ये दीर्घाएं सुव्यवस्थित, सुदीप्तमान, उत्तम रूप से प्रस्तुत, संगृहीत एवं प्रदर्शित हैं। यदि आपके मस्तिष्क में कोई प्रश्न अथवा जिज्ञासा हो तो यहाँ के कर्मचारी उसके विषय में जानकारी देने तथा आपकी जिज्ञासा शांत करने में तत्पर रहते हैं।

निकास के निकट स्मारिकाओं की एक उत्तम दुकान है जहाँ से आप सीधे स्थानिक कलाकारों द्वारा प्रमाणित कलाकृतियाँ, हथकरघे द्वारा निर्मित वस्तुएं, हस्तशिल्प इत्यादि ले सकते हैं।

हस्तशिल्प एवं हथकरघा दीर्घाएँ

ओडिशा कला संग्रहालय की कला भूमि में दीर्घाओं को राज्य के विभिन्न विरासती कलाशैलियों के अनुसार अनेक विभागों में विभाजित किया है। इस संग्रहालय में प्रमुखता से स्थानीय परम्पराओं, इतिहास, विरासत, पुरी के जगन्नाथ त्रिदेव एवं भगवान कृष्ण से सम्बंधित अनेक कलाकृतियों एवं कलाशैलियों की प्राधान्यता है।

सूक्ष्म चित्रकारी – कला भूमि

इस दीर्घा में प्राकृतिक रंगों का प्रयोग कर चित्रित की गयी सूक्ष्म चित्रकारियों की प्रदर्शनी है। इन चित्रों में प्राचीनकाल की अनेक कथाएं सन्निहित हैं। यदि प्राकृतिक रंगों, सूक्ष्म चित्रकारियों एवं महान पौराणिक कथाओं की विरासत में आपकी रूचि हो तो आपका अधिकाँश समय इस दीर्घा में व्यतीत होगा। यहाँ ऐसे अनेक चित्र प्रदर्शित हैं। प्रत्येक चित्र का सूक्ष्मता से अवलोकन आवश्यक है। अतः अपने अपने चश्मे धारण कर सज्ज हो जाईये। तभी आप चित्रकार के कलाकौशल की सराहना कर सकेंगे।

सूक्ष्म चित्रकारी से बने राधा कृष्ण
सूक्ष्म चित्रकारी से बने राधा कृष्ण

मेरा विश्वास है, आप उनके गुणों के कायल हो जायेंगे। आप सोच में पड़ जायेंगे कि बिना किसी आवर्धक लेन्स अथवा चश्मे के इन कारीगरों ने ऐसी कलाकृतियाँ कैसे रची हैं! बिना किसी अतिरिक्त सुविधाओं के, चित्रों में इतनी सूक्ष्मता पाना किसी दैवी उपलब्धि से कम नहीं है। इन चित्रों के विषयवस्तु प्रमुखता से भगवान कृष्ण, महाभारत के दृश्य, सामाजिक जीवन तथा प्राचीन काल के सम्राटों के जीवन पर आधारित हैं।

योद्धा रानी घुड़सवारी करते हुए - लघु चित्रकारी
योद्धा रानी घुड़सवारी करते हुए – लघु चित्रकारी

यहाँ चित्रों की कुछ ऐसी श्रंखलायें हैं जिनके द्वारा सूक्ष्म चित्रकारी प्रणाली में प्रयुक्त प्रत्येक चरण को समझा जा सकता है। चित्रों में प्रयुक्त प्राकृतिक रंग सदियों पश्चात भी अखंडित हैं, यह अत्यंत आश्चर्यजनक है। सम्पूर्ण भारत के अनेक संग्रहालयों में संगृहीत ऐसे अप्रतिम सूक्ष्म चित्रों की संख्या एक लाख से अधिक में होगी। अनेकों ऐसे चित्र अब नष्ट भी हो गए हैं।

कृष्ण की कथा कहता एक पट्टचित्र
कृष्ण की कथा कहता एक पट्टचित्र

काठ के उत्कीर्णित चौखट एवं पट्टिकाएं

कला भूमि ने ओडिशा के कुछ विरासती भवनों तथा इमारतों के काठ के मुख्य द्वारों, उनके चौखटों तथा पट्टियों को उत्तम रूप से संरक्षित किया है तथा उन्हें इस संग्रहालय में प्रदर्शित किया है। वे सभी उत्कृष्ट रूप से उत्कीर्णित हैं। उन्हें देख अचरज होता है कि कैसे समय, वातावरण, मौसम एवं कदाचित उपेक्षा की मार सहने के पश्चात भी वे उत्तम स्थिति में हैं।

काष्ठ के द्वारों के उत्कीर्णित भाग
काष्ठ के द्वारों के उत्कीर्णित भाग

उन्हें देख आप हमारे पूर्वजों के काष्ठ उत्कीर्णन कौशल के कायल हो जायेंगे। इन वस्तुओं को गढने के लिए टीक जैसे उत्तम लकड़ी का प्रयोग किया गया होगा। उन्हें बनाने से पूर्व कारीगरों की मंशा भी यही रही होगी कि वे वर्षानुवर्ष उत्तम स्थिति में रहें। हमारे पूर्वजों की यही मनःस्थिति एवं जीवनमूल्य अब इक्कीसवीं सदी में दृष्टिगोचर नहीं होते।

आप स्मरण कीजिये कि आपने ऐसे ही उत्कीर्णित द्वार, चौखट अथवा पट्टिकाएं आपके नगर/गाँव के किसी जीर्ण भवन अथवा इमारत में देखी होंगी। ऐसी विरासतों का संरक्षण करना आवश्यक है। उन्हें किसी स्थानिक संग्रहालय में संरक्षित करने का महान कार्य अवश्य करें।

लाख की कलाकृतियाँ

लाख एक प्राकृतिक राल है जो सूक्ष्म कीटों द्वारा बनाया जाता है। यह प्रणाली प्राकृतिक रूप से जंगली है किन्तु अब इनकी खेती भी की जाती है। संभवतः लाखों कीटों द्वारा उत्पन्न होने के कारण इसे लाख कहा जाता है। यह एक अति उपयोगी राल है जिसका प्रयोग अनेक वस्तुओं को बनाने में प्राकृतिक सामग्री के रूप में किया जाता है।

लाख से बने गुड्डे गुडिया - कला भूमि भुवनेश्वर
लाख से बने गुड्डे गुडिया – कला भूमि भुवनेश्वर

जनसामान्य के लिए चूड़ियों में लाख का प्रयोग सर्वविदित है। भारत में हैदराबाद का लाड बाजार लाख की चूड़ियों एवं अन्य वस्तुओं के लिये अत्यंत लोकप्रिय है। कच्चे माल के रूप में लाख का उत्पादन करने में भारत का स्थान विश्व भर में प्रथम है। कला भूमि में आप लाख से निर्मित अनेक सजावटी कलाकृतियाँ देखेंगे।

यहाँ आप एक ओर लाख से बनी गुड़ियां तथा अन्य खिलौने देखेंगे तो दूसरी ओर अनेक ऐसी सजावटी कलाकृतियाँ हैं जिनका प्रयोग भवनों की साज-सज्जा में किया जाता है।

चाँदी में फिलिग्री प्रणाली ने बनी कलाकृतियाँ

चाँदी के आभूषणों का श्रृंगार में अपना विशेष स्थान है। सूक्ष्म कारीगरी एवं उत्कीर्णन में चाँदी अत्यंत लोकप्रिय है क्योंकि चाँदी एक लचीला धातु है। भुवनेश्वर की जुड़वा नगरी कटक, चाँदी पर सूक्ष्म फिल्ग्री नक्काशी करने वाले उत्कृष्ट कारीगरों का गढ़ है। निस्संदेह ओडिशा के इस संग्रहालय में भी फिल्ग्री प्रणाली से उत्कीर्णित कुछ सर्वोत्कृष्ट कलाकृतियों का संग्रह होगा।

चंडी में फिल्ग्री से बनी मोरनी के आकार में नाव
चंडी में फिल्ग्री से बनी मोरनी के आकार में नाव

यहाँ फिल्ग्री प्रणाली से उत्कीर्णित पाल-नौका एक अप्रतिम कलाकृति है जिसमें वायु की शक्ति का प्रयोग कर नौका को चलाने एवं निर्देशित करने के लिए दंड पर पाल बने हुए हैं। दोनों छोरों पर मोर की आकर्षक छवियाँ हैं। यह नौका हमें इस क्षेत्र के प्राचीनकालीन समुद्रीय इतिहास का स्मरण कराती है।

फिल्ग्री चांदी से बना रथ - कला भूमि भुवनेश्वर
फिल्ग्री चांदी से बना रथ

फिल्ग्री प्रणाली में उत्कीर्णित एक आकर्षक घोड़ा-रथ है जो हमें महाभारत युद्ध एवं भागवत गीता का स्मरण करती है।

फिल्ग्री में बर्तन और साज सज्जा का सामान
फिल्ग्री में बर्तन और साज सज्जा का सामान

फिल्ग्री उत्कीर्णन पद्धति से ही बनी अनेक अन्य सुन्दर वस्तुएं भी है जो आपका मन मोह लेंगी, जैसे आभूषण, रसोईघर के पात्र, दोने इत्यादि तथा अन्य घरेलू सामान।

चित्रित नारियल एवं पात्र

सुन्दर चित्रकारी लिए मिटटी का घड़ा
सुन्दर चित्रकारी लिए मिटटी का घड़ा

प्राचीन काल में चित्रकला के कौशल से युक्त कलाकार, माध्यम के रूप में जो वस्तु आसानी से उपलब्ध हो जाती थी उन्ही के द्वारा अपने कला कौशल का प्रदर्शन कर लेते थे। उदहारण के लिए जो प्राकृतिक रंग उपलब्ध होते थे उनसे चित्रकारी करते थे। मिट्टी के पात्र, घड़े इत्यादि तथा सूखे नारियल का चित्रफलक के रूप में प्रयोग कर उन पर अप्रतिम चित्रकारी कर लेते थे।

नारियल के खोल पर चित्रकारी
नारियल के खोल पर चित्रकारी

शिल्पकला, चित्रकला अथवा किसी भी अन्य कला को सीखने एवं उनका प्रदर्शन करने के लिए एक सच्चे कलाकार को किसी विशेष वस्तु की कदापि आवश्यकता नहीं होती, इस तथ्य का सटीक उदहारण है यह संग्रहालय, जहां विभिन्न वस्तुओं पर अप्रतिम चित्रकारी कर उन कलाकृतियों को प्रदर्शित किया है।

पारंपरिक हथकरघा

पारंपरिक हथकरघे की बुनाई के कुछ सर्वोत्कृष्ट उदहारण आप ओडिशा में देख सकते हैं। उनको समर्पित प्रदर्शनी दीर्घा इस संग्रहालय की विशालतम दीर्घा है। ओडिशा के रेशमी एवं सूती, दोनों प्रकार के हस्त निर्मित साड़ियों के कुछ विशेष प्रकार विश्वभर में प्रसिद्ध हैं। उनमें इकत, बांधा, पसपल्ली इत्यादि साड़ियों के प्रशंसक विश्व भर में हैं।

ओडिशा की पारंपरिक हथकरघे की बुनाई
ओडिशा की पारंपरिक हथकरघे की बुनाई

प्राचीन काल में साहसी ओडिया सधबा पुआ अर्थात् व्यापारी गण दक्षिण-पूर्वी एशिया, श्री लंका एवं अन्य देशों की समुद्र मार्ग से यात्रा करते थे तथा सर्वोत्कृष्ट हस्त करघे में बुने वस्त्रों का व्यापार करते थे।

चिरस्थायी, दीर्घकालीन, आधुनिक, हस्तनिर्मित, कालनिरपेक्ष, पर्यावरण अनुकूल तथा अनेक ऐसे विरासती बुनाई तकनीक से बुने वस्त्रों को यहाँ प्रदर्शित किया गया है।

कला भूमि में उत्कीर्णित व चित्रित काठ मुखौटे

काठ के पारंपरिक मुखौटे
काठ के पारंपरिक मुखौटे

गत शताब्दी एवं उससे पूर्व काल में ऐतिहासिक पात्रों एवं घटनाओं को नाट्य प्रदर्शन में दर्शाने के लिए काठ के मुखौटों का एक महत्वपूर्ण भाग होता था। कला भूमि में उत्कृष्ट रूप से उत्कीर्णित व विभिन्न रंगों में चित्रित ऐसे अनेक प्रकार के आकर्षक मुखौटे प्रदर्शित किया गए हैं।

आदिवासी आभूषण

आदिवासी आभूषण - कला भूमि भुवनेश्वर
आदिवासी आभूषण – कला भूमि भुवनेश्वर

ओडिशा अनेक आदिवासी जनजातियों का निवास स्थान है। वे अनेक प्रकार के पारंपरिक चाँदी एवं धातुई आभूषण बनाते व धारण करते हैं। संग्रहालय में प्रदर्शित ऐसे आभूषणों के संग्रह से आप उनके उत्तम कला कौशल का अनुमान सहज ही लगा सकते हैं। यहाँ मैं यह अवश्य उल्लेख करना चाहूंगी कि अदिवासी पारंपरिक कलाकृतियों का इससे कहीं अधिक विशाल एवं विस्तृत संग्रह भुवनेश्वर के आदिवासी संग्रहालय में है।

आदिवासिओं के धातु के बर्तन
आदिवासिओं के धातु के बर्तन

दैनन्दिनी उपयोग के बर्तन एवं पात्रों की प्रदर्शनी अत्यंत रोचक व अनूठी है। यहाँ रखे कुछ अति विशाल पात्र उत्सवों एवं विशेष अवसरों में सामूहिक रसोई की ओर संकेत करते हैं।

संग्रहालय में प्रदर्शित सभी वस्तुएं अत्यंत रोचक हैं। इन्हें सूक्ष्मता से, भरपूर समय देते हुए, ध्यान पूर्वक निहारे। आपको अनेक ऐसी वस्तुएं दृष्टिगोचर होंगी जो आपको अचरज में डाल देंगी।

लाल पकी मिट्टी टेराकोटा की कलाकृतियाँ

मृणमूर्तियाँ
मृणमूर्तियाँ

आप सोच रहे होंगे कि संग्रहालय की अनेक उत्कृष्ट वस्तुओं का मैंने उल्लेख कर दिया है किन्तु अब तक मैंने टेराकोटा का उल्लेख कैसे नहीं किया, जबकि टेराकोटा एक अत्यंत सस्ता, प्रचलित तथा सरलता से ढलने वाला पदार्थ है। तो इस संग्रहालय में भी पदार्थ के रूप में टेराकोटा कैसे पीछे रह सकता है?

जी हाँ, इस संग्रहालय में भी टेराकोटा में निर्मित कुछ अत्यंत आकर्षक कलाकृतियाँ प्रदर्शित हैं।

ताड़ के पत्ते पर चित्रकारी – पट्टचित्र

ताड़ के पत्ते पर चित्रकारी
ताड़ के पत्ते पर चित्रकारी

मैंने पुरी के रघुराजपुर में रहनेवाले पट्टचित्र कलाकारों पर एक संस्करण पूर्व में प्रकाशित किया है। पट्टचित्र कला को समझने के लिए आप वह संस्करण “रघुराजपुर का पट्टचित्र, शिल्पग्राम  पुरी- ओडिशा” अवश्य पढ़ें। इस संग्रहालय में ताड़ के पत्तों पर किये गए कुछ अति उत्कृष्ट चित्र प्रदर्शित हैं।

शैल उत्कीर्णन

प्रस्थर में गढ़े जगन्नाथ
प्रस्थर में गढ़े जगन्नाथ

शिलाओं को सर्वोत्कृष्ट रूप से उत्कीर्णित करने का सर्वोत्तम उदहारण कोणार्क के सूर्य मंदिर के अतिरिक्त अन्य कुछ नहीं हो सकता। इसमें शंका नहीं कि शिलाओं को उत्कीर्णित करने के शिल्प कौशल के लिए ओडिशा राज्य अत्यंत लोकप्रिय रहा है। भगवान जगन्नाथ का प्रिय स्थान होने के कारण यहाँ उनकी अनेक मूर्तियाँ हैं। कोणार्क के सुप्रसिद्ध चक्र के साथ अनेक अन्य उत्कृष्ट शिल्प भी यहाँ प्रदर्शित हैं।

राष्ट्रीय मार्ग पर कोणार्क के उत्कीर्णित शैल चक्र के अनेक सुन्दर प्रतिरूपों ने भी हमारा मन मोह लिया था।

घंटा धातु – ढोकरा धातुई कला

घंटा धातु पर ढोकरा धातुई कला में शिल्प किया हुआ एक विशाल सांड है जिस पर अति सूक्ष्म नक्काशी है। साथ ही जटिल आकृतियों से उत्कीर्णित अनेक गज मुख भी इस संग्रहालय में प्रदर्शित किये हैं। ये ढोकरा धातुई कला के कुछ उत्कृष्ट विरासत हैं।

ढोकरा शिल्प में नंदी बैल
ढोकरा शिल्प में नंदी बैल

घंटा धातु एक कठोर मिश्र धातु है जिसमें ताम्बा, जस्ता एवं रांगा(टिन) धातु का सम्मिश्रण होता है। इसका अधिकतर प्रयोग मंदिर की घंटियाँ बनाने में किया जाता है। स्थानीय भाषा में इसे कान्ह कहा जाता है। भुवनेश्वर के आसपास के जिले इस धातु पर किये शिल्प कौशल के लिए प्रचलित हैं। इस कला को भारत में ढोकरा धातुई कला कहा जाता है। मोहनजोदड़ो के उत्खनन में प्राप्त नृत्य करती कन्या की मूर्ति इस धातुई कला का अनोखा नमूना है।

ढोकरा शिल्प में गजमुख
ढोकरा शिल्प में गजमुख

इस कला का नाम बंजारा जनजाति ढोकरा दामर पर पड़ा है जो ओडिशा एवं अन्य सटे राज्यों के अनेक क्षेत्रों के निवासी थे। ५००० वर्षों से भी अधिक प्राचीन, ढोकरा अलोह अयस्क कला में मोम-ढलाई तकनीक का प्रयोग कर मूर्तियाँ बनाई जाती हैं।  ढोकरा कलाकृतियाँ एवं मूर्तियाँ देश-विदेश में अत्यंत लोकप्रिय हैं।

एकताल शिल्प और कला का गाँव- छत्तीसगढ़” के विषय में पढ़ें। राष्ट्रीय पुरस्कार से अलंकृत ढोकरा कलाकार श्रीमती बुधियारिन देवी के विषय में जानें।

सोलापीठ के हस्तशिल्प (भारतीय काग)

शोला अथवा सोला एक पौधा है जो ओडिशा एवं बंगाल के आर्द्र भूमि के दलदल में उगता है। इसके तने के भीतरी भाग को सुखाया जाय तब यह दुधिया सफ़ेद रंग का मुलायम व अत्यंत हल्का पदार्थ बनता है। इसे सोलापीठ अथवा भारतीय काग कहते है। इस पदार्थ को अत्यंत पवित्र माना जाता है। यह देवी देवताओं की प्रतिमाओं को सजाने व वर-वधु के मुकुट इत्यादि बनाने में  उपयोग में लाया जाताहै। वर्तमान  में कारीगर इससे कई सजावटी वस्तुएं  भी बनाने लगे हैं।

सोलापीठ में माँ दुर्गा
सोलापीठ में माँ दुर्गा

यह थर्मोकोल की तरह दिखने वाला, परन्तु प्राकृतिक पदार्थ है जो लचीलापन, संरचना, चमक व झिर्झिरापन में उससे कई गुना उत्तम है। यह थर्मोकोल से विपरीत, प्राकृतिक रूप से नश्वर पदार्थ है। अतः यह कलाकारों का प्रिय व हस्तकला योग्य पदार्थ है। सोलापीठ में निर्मित भगवान जगन्नाथ एवं देवी दुर्गा की प्रतिमाएं सर्वाधिक लोकप्रिय एवं सुगठित कलाकृतियाँ हैं। यह ओडिशा एवं बंगाल की कला की उत्कृष्ट स्मारिकाएं हैं।

सोलापीठ में भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा - कला भूमि भुवनेश्वर
सोलापीठ में भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा

पुरी के जगप्रसिद्ध रथ यात्रा में भगवान जगन्नाथ त्रिदेव के भव्य मुकुट से लेकर कार्तिक पूर्णिमा के दिन मनाये जाने वाले बोइता बन्दना(बाली यात्रा उत्सव) में प्रयुक्त नौकाओं की निर्मिती में शोलापीठ एवं उससे बनी सजावटी वस्तुओं का विस्तृत रूप से प्रयोग किया जाता है। भुवनेश्वर के ओडिशा कला संग्रहालय-कला भूमि में भी सोलापीठ से बनी अनेक अति उत्कृष्ट कलाकृतियों का संग्रह है।

चैती घोड़ा लोकनृत्य के परिधान

संग्रहालय की प्रदर्शनी दीर्घा में बांस के कुछ कृत्रिम घोड़े हैं जिनकी सम्पूर्ण देह पर रंगबिरंगे चमकीले वस्त्रों की अनेक परतें हैं। इन घोड़ों के गले के ऊपर का भाग काठ का बना होता है तथा पीठ पर छिद्र होता है। घोड़ी नृत्य करते समय नर्तक इस ढाँचे के भीतर जाकर, छिद्र से अपना धड़ बाहर निकालता है तथा ढांचे को उठाकर नृत्य करता है। उसे देख ऐसा प्रतीत होता है जैसे घोड़े पर सवार होकर नर्तक नृत्य कर रहा है।

घोड़ों के साथ लोकनृत्य
घोड़ों के साथ लोकनृत्य

घोड़ी नृत्य भारत भर में साधारणतः धार्मिक उत्सवों तथा शोभायात्राओं के समय किया जाता है। कुछ लोगों का मानना है कि इस नृत्य का आरम्भ गुजरात के कच्छ भाग से हुआ था तथा शनैः शनैः सम्पूर्ण भारत ने इसे अपना लिया। गोवा में भी यह उत्सव होली के समय, वार्षिक शिगमोत्सव की शोभायात्रा में उत्साह से किया जाता है। गोवा के घोड़ी नृत्य अथवा घोड़े मोड़नी का यूट्यूब विडियो मेरे चैनल में यहाँ एवं यहाँ देखें।

यात्रा सुझाव

  • कला भूमि की यात्रा से पूर्व इनके वेबस्थल से सम्पूर्ण जानकारी प्राप्त कर लें।
  • केवल वयस्कों के लिए प्रवेश शुल्क है, वह भी मात्र ५० रुपये है।
  • संग्रहालय में प्रत्येक दिवस एक घंटे की निःशुल्क निर्देशित यात्रा आयोजित की जाती है। संग्रहालय का निर्देशित भ्रमण अनेक भाषाओं में आयोजित किया जा सकता है, जैसे इंग्लिश, हिंदी, ओडिया इत्यादि। किन्तु उनकी समयसारिणी में आपकी प्रिय भाषा के समय की पूर्वसूचना अवश्य प्राप्त कर लें।
  • संग्रहालय में धान शिल्प एवं कुम्हारी का प्रशिक्षण भी आयोजित किया जाता है।
  • यूँ तो आप इस संग्रहालय के अप्रतिम संग्रह के अवलोकन में एक घंटा आसानी से व्यतीत कर सकते हैं। यदि आपकी कला एवं शिल्प में विशेष रूचि है तो स्थानीय कलाकौशल से अवगत होने के लिए कम से कम आधे दिवस का समय अवश्य लगेगा। यदि किसी प्रशिक्षण शिविर में भाग लेना हो अथवा संग्रहालय से सम्बंधित विडियो इत्यादि देखना हो तो कुछ अधिक समय लगेगा।
  • कला भूमि संग्रहालय में अवलोकनकर्ताओं के लिए पेयजल एवं शौचालय की पर्याप्त व्यवस्था है।

अनुवाद: मधुमिता ताम्हणे

The post कला भूमि – भुवनेश्वर ओडिशा का शिल्प संग्रहालय appeared first on Inditales.

]]>
https://inditales.com/hindi/kala-bhumi-sangrahalay-bhubaneshwar-odisha/feed/ 0 3008
भुवनेश्वर का आदिवासी संग्रहालय – एक परिचय https://inditales.com/hindi/bhubaneshwar-odisha-adivasi-sangrahalya/ https://inditales.com/hindi/bhubaneshwar-odisha-adivasi-sangrahalya/#respond Wed, 18 Jan 2023 02:30:26 +0000 https://inditales.com/hindi/?p=2916

हम जब भी पर्यटन के लिए किसी गंतव्य में जाते हैं, हमारी पर्यटन क्रियाकलापों की सूची में स्थानीय विशेषताओं एवं आकर्षणों के अंतर्गत वहां स्थित संग्रहालयों का समावेश अवश्य होता है। हमारी भुवनेश्वर यात्रा में भी यही स्थिति थी। हमने भुवनेश्वर के संग्रहालयों एवं कलाक्षेत्रों के दर्शन किये थे। मैंने भुवनेश्वर की कला भूमि के […]

The post भुवनेश्वर का आदिवासी संग्रहालय – एक परिचय appeared first on Inditales.

]]>

हम जब भी पर्यटन के लिए किसी गंतव्य में जाते हैं, हमारी पर्यटन क्रियाकलापों की सूची में स्थानीय विशेषताओं एवं आकर्षणों के अंतर्गत वहां स्थित संग्रहालयों का समावेश अवश्य होता है। हमारी भुवनेश्वर यात्रा में भी यही स्थिति थी। हमने भुवनेश्वर के संग्रहालयों एवं कलाक्षेत्रों के दर्शन किये थे। मैंने भुवनेश्वर की कला भूमि के विषय में एक पृथक संस्करण पूर्व में ही लिख कर प्रकाशित कर दिया है। वास्तव में भुवनेश्वर में सर्वप्रथम हमने ओडिशा राज्य आदिवासी संग्रहालय का अवलोकन किया था।

पूर्व में आदिवासी कला एवं कलाकृति संग्रहालय (Museum of Tribal Arts and Artifacts) के नाम से लोकप्रिय इस संग्रहालय के प्रवेशद्वार पर ही यह आभास हो जाता है कि हम आदिवासियों के विश्व में प्रवेश कर रहे हैं। वारली चित्रकारी जैसी आकृतियों से चित्रित परिसर की भित्तियाँ, ऊंचे वृक्षों से घिरी संग्रहालय की संरचना, हरे-भरे घास के मैदान तथा रंग-बिरंगे मौसमी पुष्पों से लदे अनेक पौधे जनवरी मास में हमारा स्वागत कर रहे थे। संग्रहालय में प्रवेश शुल्क नाममात्र है। यहाँ के कर्मचारी अत्यंत आत्मीयता से सब की सहायता कर रहे थे। यह संग्रहालय भुवनेश्वर नगर के भीतर, नगर केंद्र से लगभग ४ किलोमीटर दूर स्थित है।

सन् १९५३ में स्थापित इस आदिवासी संग्रहालय में अनेक कलाकृतियाँ प्रदर्शित हैं जो इस क्षेत्र के आदिवासी जनजातियों के जीवन को दर्शाती हैं, जैसे उनकी वेशभूषा, उनके आभूषण, उनकी परम्पराएं, खान-पान, उनके निवास स्थानों की प्रतिकृतियाँ, कलाकृतियाँ तथा आदिवासी  संस्कृति के उद्भव एवं क्रमिक विकास के विभिन्न चरण आदि। वास्तव में ओडिशा राज्य में ६० से भी अधिक आदिवासी जनजातियाँ हैं। इस अप्रतिम परिसर में एक पुस्तकालय भी है जहां आप राज्य के आदिवासी जीवन के विषय में आवश्यक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं। साथ ही एक स्मारिका दुकान एवं जलपान के लिए अनेक विकल्प उपलब्ध हैं।

भुवनेश्वर का आदिवासी संग्रहालय

संग्रहालय में अनेक दीर्घाएं हैं जहां स्थानीय व क्षेत्रीय आदिवासी जीवनशैली, संस्कृति, साज सज्जा, औजार, निवास शैलियाँ, कृषि पद्धतियाँ, परिधान, आभूषण, मछली पकड़ने व शिकार करने के यंत्र/औजार तथा अनेक अन्य वस्तुएं प्रदर्शित की गयी हैं।

आदिवासी जनजीवन का चित्रण करते कला एवं कलाकृतियों की दीर्घाएं/कक्ष-

  • संग्रहालय परिसर में संथाल, जुआंग, गदबा, सौरा, कौंध तथा चुक्तिया भुंजिया जनजातियों के विशेष निवास-योग्य आदिवासी झोपड़ियां/आवास को शिल्पकलाकृति के रूप में पुनर्रचित किया गया है।
  • आदिवासियों के वैयक्तिक अलंकरण: आदिवासी जनजातियों की पारंपरिक वेशभूषा, सूक्ष्मता से उत्कीर्णित वैयक्तिक आभूषण जैसे कंगन, केशकाँटा, गले का हार, कमरबंद, कर्णफूल आदि।
ढोकरा शैली में धातु शिल्प
ढोकरा शैली में धातु शिल्प
  • वस्त्र, वैयक्तिक वस्तुएं, चित्र, कला एवं शिल्प।
  • आक्रमण एवं रक्षण अस्त्र-शस्त्र, मछली पकड़ने एवं शिकार करने के औजार/यन्त्र: जैसे शिला प्रक्षेपक, पिजरे, फंदे, जाल, तीर, भाले, कुल्हाड़ी, तलवार, पारंपरिक छुरियाँ आदि। मछलियाँ रखने की टोकरियाँ, एवं जाले भी हैं। जंगल स्वच्छ करने के औजार, बलि के औजार आदि भी प्रदर्शित हैं।
  • घरेलु वस्तुएं एवं कृषि उपकरण: जैसे बर्तन, चाकू, पात्र, वर्षा से रक्षण करने के साधन, बुनी हुई रस्सियाँ, तेल निकालने के कोल्हू आदि। माप पात्र, सूखी लौकी से निर्मित पात्र, खुदाई के औजार, पराली एकत्र करने के औजार, हल, भूमि समतल करने के यन्त्र, धान पछारने के साधन, मूसल आदि भी रखे हुए हैं। गाय के गले की घंटियाँ, डोरी, गुलेल अथवा गोफन, कांवड़ आदि जो विभिन्न आदिवासी जनजातियों की विशेषता दर्शाते हैं।
  • नृत्य मुद्राएँ, ढोकरा कलाकृतियाँ, संगीत वाद्य: पीतल एवं सींगों द्वारा निर्मित तुरही, ढोलक, तबला, झांझ, मंजीरा, तम्बूरा एवं अन्य तार युक्त संगीत वाद्य, नृत्य की वेशभूषाएं आदि। ढोकरा धातु शिल्प-कला में विभिन्न धातुओं द्वारा निर्मित अनेक आकृतियाँ प्रदर्शित की गयी हैं। इनमें मूल रूप से हाथी, ऊँट, घोड़े, भैंस तथा अन्य पशु-पक्षी, बक्से, दीपक तथा देवी-देवताओं की आकृतियाँ होती हैं।

अवश्य पढ़ें: दिल्ली का आदिवासी संग्रहालय – एक छत के नीचे सभी आदिवासी कलाओं का संग्रह

भुवनेश्वर आदिवासी संग्रहालय की धातु शिल्प कलाकृतियाँ

संग्रहालय में धातु का प्रयोग कर ढोकरा शिल्पकला द्वारा रचित कलाकृतियों को देख आप आश्चर्य में पड़ जायेंगे कि प्राचीन काल से धातुओं का प्रयोग जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में किया जाता रहा है। ओडिशा की यह शिल्पकला भी अप्रतिम है, विशेषतः ढोकरा शिल्पकला जिसमें प्राचीन मोम ढलाई तकनीक द्वारा मूर्तियाँ एवं अन्य वस्तुएं बनाई जाती हैं। जैसे

धातु शिल्प में सरस्वती एवं नंदी मुख
धातु शिल्प में सरस्वती एवं नंदी मुख
  • सभी प्रकार के आयुध, क्योंकि बचाव एवं सुरक्षा मानव की एक महत्वपूर्ण आवश्यकता है।
  • भोजन उपलब्ध करने के लिए कृषि के उपकरण
  • विभिन्न धातुओं में निर्मित भोजन पकाने एवं परोसने के पात्र
  • मछली पकड़ने के उपकरण। मछली उनके भोजन का एक अभिन्न अंग है।
  • विभिन्न देवी-देवताओं एवं उनके वाहनों की प्रतिमाएं।

आभूषण

चांदी के बने उत्कृष्ट गहने - भुवनेश्वर का आदिवासी संग्रहालय
चांदी के बने उत्कृष्ट गहने

भुवनेश्वर आदिवासियों की चित्रकला शैली

इडीताल लांजिया सौरा चित्र

हमने जैसे ही संग्रहालय परिसर में प्रवेश किया, हमारी दृष्टि हमारे चारों ओर स्थित परिसर भित्तियों एवं मुख्य संरचना की भित्तियों पर चित्रित अप्रतिम आदिवासी चित्रों पर पड़ी। पुष्पों से आच्छादित पौधे एवं हरी-भरी दूब से भरे उद्यान इसका सौंदर्य द्विगुणीत कर रहे थे। उन चित्रों को देख खुशी से उदगार फूट पड़े, ‘इतने सारे वारली चित्र!’। संग्रहालय दीर्घा में विचरण करते हुए उन्ही के समान अनेक अन्य आदिवासी चित्रों को देख यह जाना कि ये वारली चित्र नहीं हैं। अपितु ये चित्र दक्षिण ओडिशा में पुट्टासिंग व रायपाड़ा के लांजिया सौरा आदिवासियों द्वारा निर्मित हैं।

लांजिया सौरा चित्रकला
लांजिया सौरा चित्रकला

ऐसा कहा जाता है कि इस प्रकार की चित्रकारी सौर जनजाती के प्रमुख भगवान इडीताल के प्रति श्रद्धा प्रदर्शित करने के लिए, किसी आध्यात्मिक अनुष्ठान के लिए, अपने पूर्वजों की स्मृति में अथवा जन्म, विवाह, खेतों की कटाई जैसे विशेष अवसरों पर आदिवासियों द्वारा की जाती है। पारंपरिक रूप से उनके पुरोहित कुदंग इन चित्रों का चित्रण करते हैं, उनका सार व दर्शन समझते हैं तथा समझाते हैं। लिखित अभिलेखों की अनुपस्थिति में मान्यताओं को प्रदर्शित करने की यह एक मौखिक परम्परा है।

मानवों, पशुओं एवं वृक्षों को दर्शाते ये ज्यामितीय चित्र सामाजिक समारोहों में जीवन चक्र को प्रदर्शित करते प्रतीत होते हैं। किन्तु वास्तव में चित्र अति विशिष्ट दायित्व निभा रहे हैं, आगामी पीढ़ी तक अपनी संस्कृति को पहुँचाना।

लांजिया सौरा चित्रकला
लांजिया सौरा चित्रकला

चिकनी मिट्टी द्वारा बनाई गयी लाल अथवा गहरे पीले रंग की पृष्ठभूमि में प्राकृतिक रंगों का प्रयोग कर ये चित्र बनाए गए हैं। उनमें श्वेत व नीले रंग प्रमुख हैं। पुरातन काल में पारंपरिक रूप से वे इन चित्रों को अपनी कुटिया के भीतर रंगते थे। चिकनी मिट्टी से भित्तियों को सम रंग देकर उन पर पिसा चावल, श्वेत शिला का चूरा, पुष्पों एवं पत्तियों के प्राकृतिक रंगों आदि से बांस द्वारा निर्मित कूची द्वारा चित्र रंगते थे।

ऐसा माना जाता है कि ये आदिवासी जनजाति भारत की प्राचीनतम जनजाति है। रामायण तथा महाभारत जैसे महाकाव्यों में भी इनका उल्लेख किया गया है।

लांजिया सौरा एवं वारली चित्रों में अंतर

लांजिया सौरा गाँव के आदिवासी चित्रों की वारली चित्रों से समानता अत्यंत आश्चर्यजनक है। कुछ शोधकर्ताओं द्वारा प्रदर्शित शोधकार्यों के अनुसार उनमें कुछ अंतर अवश्य है। लांजिया सौरा चित्रों में चित्रित मानव आकृतियाँ अपेक्षाकृत अधिक लम्बी हैं। मानव आकृतियाँ स्त्री की हैं अथवा पुरुष की, यह स्पष्ट नहीं होता है। त्रिकोण नुकीले ना होकर किंचित गोलाकार होते हैं। इनमें रंगों का प्रयोग अधिक है। जीवन वृक्ष का चित्र अनेक स्थानों पर किया जाता है। चित्रकारी सीमारेखा से भीतर की दिशा में किया जाता है। इन चित्रों में उनके अनुष्ठान/परम्पराएं/श्रद्धा/ विश्वास तथा उनके आसपास के प्राकृतिक/ दैनन्दिनी जीवन के दृश्यों का चित्रण अधिक परिलक्षित होता है।

आदिवासी चित्रकारी से अनभिज्ञ हम जैसे दर्शकों के लिए इन सूक्ष्म अंतरों को पूर्णतः जानना एवं समझना आसान नहीं है। मुझे ऐसा प्रतीत हुआ मानो ये दोनों चित्रकला शैली एक दूसरे से गर्भनाल द्वारा जुड़े हुए हैं। अथवा कदाचित वारली चित्रकला सौरा आदिवासी चित्रकला से ही प्रेरित हो। मुझे इस विषय में स्पष्ट ज्ञात नहीं है। किन्तु मेरी तीव्र अभिलाषा है कि इन दोनों अप्रतिम पारंपरिक चित्रकला शैलियों को विश्व भर के कला प्रेमियों द्वारा भरपूर प्रोत्साहन मिले तथा उन कारीगरों को भरपूर सम्मान एवं पारिश्रमिक भी प्राप्त हो। अन्यथा सम्पूर्ण विश्व बाजार कृत्रिम कलाकृतियों से भरा हुआ है।

गोंड चित्रकला शैली

गोंद चित्रकला
गोंद चित्रकला

इस प्रकार की चित्रकारी मूलतः भारत के विशालतम आदिवासी समुदाय, गोंड जनजाति द्वारा अपनी झोपडी/कुटिया की भित्तियों पर की जाती थी। ओडिशा के साथ इससे लगे कुछ अन्य राज्यों में भी पाई जाने वाली यह जनजाति अपने प्रकृति प्रेम के लिए लोकप्रिय है, वह चाहे वन्य प्राणियों के प्रति हो अथवा मानसून, पर्वत तथा अन्य प्राकृतिक तत्वों के प्रति हो। उनके द्वारा की गयी पारंपरिक चित्रकारी शैली को गोंड चित्रकला शैली कहा जाता है। उनकी विषयवस्तु सामान्यतः प्रकृति के वे तत्व होते हैं जिनसे उनका दैनिक साक्षात्कार होता है, जैसे वन्य प्राणी, पक्षी, वृक्ष आदि। इन चित्रों का आरम्भ सामान्य रेखाओं से होता है। तदनंतर चल तत्वों को दर्शाने के लिए बिन्दुओं एवं टूटी रेखाओं का समावेश किया जाता है। अनेक प्राकृतिक रंगों का प्रयोग कर प्रकृति के जीवंत दृश्यों को प्रदर्शित किया जाता है।

सभी चित्र ध्यानाकर्षित करते हैं। ये मुझे किंचित आसान भी प्रतीत हुए। मेरे अनुमान से आज के बालक-बालिकाओं को इन्हें चित्रित करने में कठिनाई नहीं आयेगी। वे इस कला को प्रोत्साहित कर सकते हैं। इस संग्रहालय में अनेक गोंड चित्र प्रदर्शित हैं। इन आदिवासियों ने इस प्रकार अपने सहस्त्र वर्षों का इतिहास अभिलेखित किया है।

बांस की वस्तुएं

धान द्वारा निर्मित कलाकृतियाँ

धान कृतियाँ लक्ष्मी गणपति
धान कृतियाँ लक्ष्मी गणपति

धान कला शैली ओडिशा के आदिवासियों की विशेष कला शैलियों में से एक है। वे उनसे साखली, देवी-देवताओं के विग्रह, पशु आकृतियाँ, पुष्प, हार तथा अनेक अन्य वस्तुएं बनाते हैं। इन कलाकृतियों को बनाने में सूक्ष्म कारीगरी एवं एकाग्रता की आवश्यकता होती है। देवी लक्ष्मी, सरस्वती, सुभद्रा, भगवान जगन्नाथ, बालभद्र, गणेश के विग्रहों के अतिरिक्त मोर इत्यादि की कलाकृतियाँ मूलतः यहाँ के कारीगर निर्मित करते हैं। साथ ही दैनिक प्रयोग की वस्तुएं एवं दृश्यों को भी अपनी कलाकृतियों में सजीव करते हैं। यह इस पर निर्भर करता है कि किस वस्तु की कितनी मांग है। इनमें से प्रत्येक कलाकृति को पूर्ण करने में कारीगरों को लगभग ३-४ दिवसों का परिश्रम करना पड़ता है।

धान से बने सरस्वती एवं जगन्नाथ
धान से बने सरस्वती एवं जगन्नाथ

धान, उसकी बालियाँ, सूत एवं बांस की खपच्चियों को प्राकृतिक रगों से रंग कर इस शिल्प में प्रयोग करते हैं। धान की बालियों को सूत से बाँध कर तथा बांस की खपच्चियों के साथ गूंथ कर हार बनाया जाता है। तदनंतर उन्हें मोड़कर तथा कुंडली बनाकर उन्हें अंतिम रूप प्रदान किया जाता है। उन्हें स्थानिक धान मूर्ति अथवा धन मूर्ति कहते हैं क्योंकि एक प्रकार से वे अच्छी फसल, समृद्धि एवं संपत्ति का ही प्रतीक हैं।

धान से बने आभूषण
धान से बने आभूषण

एक काल में यह क्षेत्र कृषि संपन्न होने के कारण तथा इन कलाकृतियों के आध्यात्मिक महत्ता होने के कारण यह एक समृद्ध कला शैली थी। किन्तु वर्त्तमान में यह कला शैली अवनति की ओर अग्रसर हो रही है। अब केवल नाममात्र के शिल्पकार ही इस कला में लिप्त हैं। वे अपनी कलाकृतियों को स्थानीय हाटों एवं बाजारों में विक्री करते हैं। उनमें से कुछ गिनी-चुनी कलाकृतियाँ नगरी शिल्प बाजारों तक भी पहुँच जाती हैं।

अवश्य पढ़ें: हैदराबाद आदिवासी संग्रहालय

भुवनेश्वर का ओडिशा राज्य आदिवासी संग्रहालय सदा प्रयत्नशील रहता है कि वह ऐसे कार्यशालाओं का आयोजन करे जहां धान शिल्पकार आकर अपनी कला को प्रदर्शित कर सकें तथा अपनी कलाकृतियों की विक्री भी कर सकें।

अवश्य पढ़ें: शिलांग, मेघालय का डॉन बोस्को संग्रहालय

यात्रा सुझाव – भुवनेश्वर का आदिवासी संग्रहालय :

भुवनेश्वर का आदिवासी संग्रहालय
भुवनेश्वर का आदिवासी संग्रहालय
  • दर्शन समयावधि: प्रातः १० बजे से संध्या ५ बजे तक
  • राज्य सरकार द्वारा घोषित छुट्टियों के दिन यह संग्रहालय बंद रहता है।
  • यह संग्रहालय बस स्थानक, रेल स्थानक एवं विमानतल, तीनों के समीप स्थित है। आप ऑटोरिक्शा, टैक्सी अथवा सार्वजनिक परिवहन के साधनों द्वारा यहाँ आसानी से पहुँच सकते हैं।
  • दर्शनार्थियों के लिए प्रवेश एवं वाहन खड़ा करना निशुल्क है।
  • व्यवस्थित रूप से अभिलेखित सैकड़ों आदिवासी कलाकृतियाँ यहाँ प्रदर्शित हैं।
  • संग्रहालय में पर्यटकों की संख्या में दिन-प्रतिदिन वृद्धि हो रही है। सन् २०१९ में लगभग एक लाख पर्यटक इस संग्रहालय के अवलोकन के लिए आये थे।
  • कलाकृतियों की दीर्घाओं में प्रदर्शित कलाकृतियों के विषय में जानकारी प्रदान करने के लिए डिजिटल तथा टच स्क्रीन इंटरएक्टिव कियोस्क स्थापित किये गए हैं।
  • संग्रहालय एवं कलाकृतियों के विषय में जानकारी बहुमाध्यम से परिसर के भीतर ही अंग्रेजी, हिन्दी एवं ओडिया भाषा में दिया जाता है।
  • कुछ विशेष अवसरों पर कलाकृतियों को बनाने का जीवंत प्रशिक्षण भी पर्यटकों को दिया जाता है।
  • इन दिनों इसका वर्चुअल अवलोकन उपलब्ध है।
  • ओडिशा राज्य के आदिवासी संग्रहालय के विषय में अधिक जानकारी के लिए उनके इस संकेतस्थल पर जाएँ।

अनुवाद: मधुमिता ताम्हणे

The post भुवनेश्वर का आदिवासी संग्रहालय – एक परिचय appeared first on Inditales.

]]>
https://inditales.com/hindi/bhubaneshwar-odisha-adivasi-sangrahalya/feed/ 0 2916
अद्भुत हैदराबाद संग्रहालय जो आपको अपनी ही दुनिया में ले जाएँ https://inditales.com/hindi/must-see-hyderabad-sangrahalaya/ https://inditales.com/hindi/must-see-hyderabad-sangrahalaya/#comments Wed, 13 Mar 2019 02:30:07 +0000 https://inditales.com/hindi/?p=1182

हैदराबाद का विविधताओं से भरा एक लंबा इतिहास है। दक्खन के पठारों में प्राकृतिक रूप से संतुलन बिठाये अनोखी प्राचीन चट्टानें हैं जो इसकी प्राचीनतम रचना हैं। एक ओर इसके आदिवासी रहवासी हैं जिनके इलाकों को आप नामों से पहचान सकते हैं। दूसरी ओर यह विश्व के कुछ सर्वाधिक धनाड्यों की नगरी है। जहां हैदराबाद […]

The post अद्भुत हैदराबाद संग्रहालय जो आपको अपनी ही दुनिया में ले जाएँ appeared first on Inditales.

]]>

हैदराबाद का विविधताओं से भरा एक लंबा इतिहास है। दक्खन के पठारों में प्राकृतिक रूप से संतुलन बिठाये अनोखी प्राचीन चट्टानें हैं जो इसकी प्राचीनतम रचना हैं। एक ओर इसके आदिवासी रहवासी हैं जिनके इलाकों को आप नामों से पहचान सकते हैं। दूसरी ओर यह विश्व के कुछ सर्वाधिक धनाड्यों की नगरी है।

हैदराबाद के संग्रहालयजहां हैदराबाद सूचना प्रोद्योगिकी उद्योग क्षेत्र में भारत के सर्वाधिक सफल नगरों में से एक है वहीं दूसरी ओर भारत के कई सर्वाधिक महत्वपूर्ण खिलाड़ी यहाँ निवास करते हैं। हैदराबाद की आकर्षक ऐतिहासिक इमारतों की एक लम्बी सूची है वहीं हैदराबाद अद्भुत एवं विविध संग्रहालयों की भी नगरी है। इस सब को एक संस्मरण में समेटना असंभव है। यह संस्मरण मैं समर्पित करती हूँ हैदराबाद के उन संग्रहालयों को जहां आप अपने अगले हैदराबाद यात्रा के समय कुछ ज्ञानवर्धक व मनोरंजक क्षण बिता सकते हैं।

हैदराबाद में देखने योग्य कुछ विलक्षण संग्रहालय

हैदराबाद के संग्रहालयों का अवलोकन का अर्थ है हैदराबाद की, एक प्राचीन नगरी से, अत्यंत आधुनिकता से भरपूर नगरी तक की यात्रा को समझना। इससे आप हैदराबाद को अच्छी तरह से जान सकते हैं।

सालारजंग संग्रहालय

सालारजंग संग्रहालय - हैदराबाद
सालारजंग संग्रहालय – हैदराबाद

सालारजंग संग्रहालय हैदराबाद का सर्वाधिक प्रसिद्ध संग्रहालय है। मूसी नदी के तीर पर मौलिक श्वेत रंग की यह रम्य इमारत किसी श्वेत पक्षी के खुले पंखों सी प्रतीत होती है। इसके संग्रह को देख विश्वास ही नहीं होता कि यह एक इकलौते व्यक्ति द्वारा संग्रहित वस्तुओं का भण्डार है। वह व्यक्ति थे सालारजंग। संग्रहालय की यह इमारत भारत के उन कुछ इमारतों में से है जिनका निर्माण विशेषतः संग्रहालय के रूप में ही किया गया था। इसी प्रकार से विशेष रूप से निर्मित एक अन्य इमारत है, दिल्ली का राष्ट्रीय संग्रहालय

पत्थर में बनी, घूंघट ओढ़े रिबेक्का की मूर्ति हो या बोलती घड़ी जिसमें से गुड़ियायें बाहर निकलकर घंटी बजाते हैं, अथवा उच्च कोटि की चित्रकलाएं हों, या हाथीदांत एवं चीनी मिट्टी से बनी सुन्दर कलाकृतियाँ हों, सब आपको सम्मोहित कर देंगी। हैदराबाद में देखने योग्य उत्कृष्ट स्थलों में इसका स्थान सर्वप्रथम है।

सुधा कार संग्रहालय – हैदराबाद का सर्वाधिक सनकी संग्रहालय

हैदराबाद के संग्रहालयों में मेरा सबसे पसंदीदा संग्रहालय है, सुधा कार संग्रहालय। यह रचनात्मकता एवं नवीनता की पराकाष्ठा है। यदि उत्साह भरपूर हो तथा निश्चय दृड़ हो तो एक अकेले मानव की उपलब्धियां भी आकाश चूमने लगती हैं। इसका प्रत्यक्ष उदाहरण है यह संग्रहालय। सुधाकरजी ने कई आकारों एवं आकृतियों में कार को परिवर्तित किया है।

सुधा कार म्यूजियम हैदराबाद
यह क्रिकेट का बल्ला नहीं एक चलती फिरती कार है – सुधा कार म्यूजियम हैदराबाद

उपयोग में आने वाली प्रत्येक वस्तु के आकार में आपको यहाँ कार दिख जायेगी। उदाहरणतः क्रिकेट बैट, बॉल, पिंजरा, पश्चिमी संडास कमोड, प्याला, पर्स, जूता, ऊंची एड़ी के सैंडल, हेलमेट, कैमरा, बर्गर, सोफा व अन्य कई। शिवलिंग के आकार की भी एक कार यहाँ है।

और पढ़ें:- हैदराबाद का सुधा कार संग्रहालय

मेरे अनुमान से यह भारत का सर्वाधिक सनकी व अभिनव संग्रहालय है।

पुरानी हवेली संग्रहालय

पुरानी हवेली, हैदराबाद के निज़ाम का आवासीय महल था। वर्तमान में यहाँ अन्य वस्तुओं के साथ साथ निजाम का संग्रहालय भी है।

यह एक अत्यंत अनूठा संग्रहालय है। यहाँ निजाम की एक दुमंजिली अलमारी है जिसमें १२४ द्वार हैं। यह १२० फीट लम्बे एक कक्ष के दोनों ओर फैली हुई है। निजाम को अलमारी की दोनों मंजिलों तक पहुंचाने के लिए प्रयोग की गयी हस्तचालित लिफ्ट अब भी यहाँ है। जी हाँ, आपका अनुमान सही है। यह विश्व की सर्वाधिक विशाल अलमारी है।

और पढ़ें:- पुराने हैदराबाद की पुरानी हवेली का पदभ्रमण

यह भी हैदराबाद का एक और विचित्र संग्रहालय है जो इस धरती के सर्वाधिक धनाड्य किन्तु सबसे कंजूस व्यक्ति से आपका परिचय कराता है, हैदराबाद के निज़ाम। उनके वस्त्र जो यहाँ प्रदर्शित हैं, वे अन्य स्थलों में प्रदर्शित राजसी वस्त्रों से अपेक्षाकृत सादे प्रतीत हुए। अधिकतर वे श्वेत लखनवी कुर्ते थे।

और पढ़ें – लखनऊ जाएँ तो क्या लायें

आप यहाँ कुछ सूक्ष्म चित्रकारी देख सकते हैं जिनमें निजाम परिवार की वंशावली अत्यंत रचनात्मक प्रकार से की गयी है।

तेलंगाना राज्य संग्रहालय

तेलंगाना राज्य संग्रहालय
तेलंगाना राज्य संग्रहालय

पब्लिक गार्डन्स अर्थात् बाग़-ए-आम, निजाम द्वारा बनवाया गया हैदराबाद का प्राचीनतम ऐतिहासिक बाग़ है जहां हैदराबाद के कई प्रतिष्ठित इमारतों के साथ साथ कई संग्रहालय भी हैं। इनमें विशालतम एवं सर्वाधिक महत्वपूर्ण संग्रहालय है तेलंगाना राज्य पुरातात्विक संग्रहालय। जब मैंने इसके दर्शन किये थे, तब आंध्र प्रदेश विभाजित नहीं हुआ था तथा इसे आन्ध्र प्रदेश राज्य संग्रहालय कहा जाता था।

और पढ़ें:- हैदराबाद के बाग़-ए-आम के संग्रहालय

यहाँ अमरावती से लाई गयी मनोहारी बौध प्रतिमाएं हैं। एक ताबूत में रखे बुद्ध के अवशेष भी आप यहाँ देख सकते हैं। जैन दीर्घा में कई आकर्षक जैन प्रतिमाएं हैं। काकातिया वास्तुकला में बने द्वार-स्तंभ निहारने योग्य हैं।

स्वास्थ्य संग्रहालय

स्वास्थ्य संग्रहालय भी हैदराबाद के बाग़-ए-आम में स्थित है। यह छोटा होते हुए भी एक अनोखा संग्रहालय है जो स्वास्थ्य एवं स्वच्छता के महत्त्व को बल देता है। पोषण व स्वास्थ्य तथा मातृत्व व प्रसव पर केन्द्रित यह पुराना संग्रहालय एक छोटे कक्ष में संग्रहित है। स्वतंत्रता के पश्चात निर्मित इस संग्रहालय में उस काल की स्वास्थ्य दशा एवं व्याधियां दर्शाई गयी हैं।

पुरातत्व संग्रहालय – गनफाउंड्री

वारंगल शैली का द्वार - हैदराबाद संग्रहालय
वारंगल शैली का द्वार – हैदराबाद संग्रहालय

आदर्श रूप से यह एक ठेठ पुरातत्व संग्रहालय है जिसकी वृत्ताकार संरचना अनूठी है। इसे देख मुझे चंडीगढ़ के पंजाब विश्वविद्यालय का छात्र केंद्र स्मरण हो आया। यहाँ आप काकातिया के उत्कृष्ट द्वार स्तंभ देखना ना भूलें। साथ ही हैदराबाद क्षेत्र के पूर्व ऐतिहासिक अवशेषों को भी अवश्य देखें। विशेषतः वे अवशेष जो सदियों पुरानी दफ़न प्रथाओं से सम्बंधित हैं।

बिड़ला विज्ञान संग्रहालय एवं तारामंडल

डायनासोर के अवशेष - बिड़ला विज्ञान संग्रहालय एवं तारामंडल
डायनासोर के अवशेष – बिड़ला विज्ञान संग्रहालय एवं तारामंडल

नौबत पहाड़ पर स्थित शुद्ध श्वेत रंग के बिड़ला मंदिर के एक ओर, स्तंभों से घिरा पदमार्ग आपको कांच व इस्पात से निर्मित एक विशाल इमारत तक ले जाएगा। यह हैदराबाद का बिड़ला विज्ञान संग्रहालय एवं तारामंडल है। यह एक अद्भुत संग्रहालय है जो विज्ञान के मूलभूत सिद्धांतों को नमूनों एवं प्रयोगों द्वारा सरलता से समझाता है। यह आपको आपके विद्यार्थी जीवन एवं विज्ञान पुस्तकों के विश्व में ले जाएगा। यहाँ आकर आप भी बच्चे बन जायेंगे।

और पढ़ें:- हैदराबाद का बिड़ला विज्ञान संग्रहालय एवं तारामंडल

एक ओर डायनासोरस के अवशेष रखे हैं। द्वारका के समुद्र के भीतर की गयी खुदाई का भी नमूना रखा हुआ है।

सांस्कृतिक कला दीर्घा संस्थान

यह कला दीर्घा नौबत पहाड़ पर स्थित बिड़ला विज्ञान संग्रहालय के परिसर के भीतर ही स्थित है। जिस समय मैंने इस कला दीर्घा का भ्रमण किया था तब यहाँ कृष्ण के अप्रतिम विश्वरूप का सुन्दर प्रदर्शन किया गया था। निचली मंजिल पर गुरचरण दास जैसे चित्रकारों की समकालीन चित्रकारियाँ हैं जिनमें वर्तमान से लेकर महाकाव्यों की कथाओं तक के विषय चित्रित हैं।

निर्मला बिड़ला संग्रहालय

यह संग्रहालय भी बिड़ला विज्ञान संग्रहालय के परिसर के भीतर ही स्थित है। इस संग्रहालय में चीनी मिट्टी की वस्तुओं, गुड़ियों, हाथी दन्त में उत्कीर्णित वस्तुओं, बिदरी कलाकारी एवं तंजावुर की चित्रकारियों का सर्वोत्तम संग्रह है। यह हैदराबाद के गुप्त रहस्यों में से एक है। यदि आपको संग्रहालय प्रिय हैं तो इस संग्रहालय में आपको अधिक समय व्यतीत करना चाहिए। कई वर्षों पूर्व देखी उल्टे नटराज की प्रतिमा मुझे अब भी स्मरण है।

चौमहल्ला महल अथवा चौमहल्ला पैलेस

चौमहल्ला महल का संग्रहालय - हैदराबाद
चौमहल्ला महल का संग्रहालय – हैदराबाद

हैदराबाद के निज़ाम का यह प्यारा सा महल पुराने हैदराबाद के लाड बाजार अथवा चूड़ी बाजार के दूसरे छोर पर स्थित है। औपनिवेशिक युग का यह महल अपने आप में एक आकर्षक संग्रहालय है। इसके दरबार में आप विशाल झूमर देखेंगे जो बेल्जियम से लाया गया है। अन्य स्थानों पर आप पुराने रेडियो तथा अनोखी प्राचीन घड़ियाँ देख सकते हैं। यहाँ निजाम का पुरानी विंटेज कारों का भी संग्रह है जिनमें अधिकतर अब भी चालू स्थिति में हैं। आप में से जिन्हें भी इन पुरानी विंटेज कारों में रूचि है, उनके लिए यह अद्भुत संग्रह है।

ओर पढ़ें:- चारमीनार से चौमहल्ला तक पदयात्रा

नेहरु शताब्दी आदिवासी संग्रहालय, बंजारा हिल्स

आदिवासी संग्रहालय - बंजारा हिल्स हैदराबाद
आदिवासी संग्रहालय – बंजारा हिल्स हैदराबाद

आँध्रप्रदेश एवं तेलंगाना में कई आदिवासी समुदाय हैं। इनमें चेंचू, लम्बाड़ा, पुर्जा, येरुकला इत्यादि मुख्य हैं। इनमें से कुछ जातियां एक पहाड़ी पर निवास करती थीं जो अब हैदराबाद का एक आधुनिक रहवासी क्षेत्र है। इस क्षेत्र को बंजारा हिल्स कहा जाता है। स्पष्टतः हैदराबाद के आदिवासी संग्रहालय के लिए बंजारा हिल्स का चुनाव सबसे उपयुक्त है। इस संग्रहालय में कई चित्रावालियाँ हैं जो विभिन्न आदिवासी समुदायों की जीवनशैली प्रदर्शित करती हैं। आप वहीं खड़े होकर विभिन्न समुदायों के बीच तुलनात्मक अध्ययन कर सकते हैं।

मुझे जो चित्रावली अत्यन्य भायी वह है आदमकद आकार में नृत्य दृश्य।

और पढ़ें:- बंजारा हिल्स में हैदराबाद का आदिवासी विरासत

जगदीश एवं कमला मित्तल भारतीय कला संग्रहालय

यह एक व्यक्तिगत संग्रहालय है। अतः इसके अवलोकन के लिए पूर्व अनुमति आवश्यक है। यह मेरा सौभाग्य था कि मैं यहाँ श्री जगदीश मित्तल जी से मेरी भेंट हो गयी। उनका घर भारतीय कला पर आधारित पुस्तकों से भरा हुआ है। उन्होंने स्वयं भी भारतीय कला पर कई पुस्तकें लिखी हैं। उन्होंने जिस प्रकार राजस्थानी सूक्ष्म चित्रावलियों को सहेज कर रखा था, वह मुझे अब भी स्मरण है। अधिक जानकारी के लिए उनके इस संकेत स्थल पर संपर्क करें।

शिल्परमम का ग्रामीण संग्रहालय

शिल्परामम हैदराबाद
शिल्परामम हैदराबाद

शिल्परमम दिल्ली हाट के सामान है। कारीगर यहाँ हस्तनिर्मित वस्तुएं एवं कलाकृतियाँ स्वयं बनाकर बेचते हैं। कुछ स्थान नाट्य-संगीत प्रदर्शनों के लिए निश्चित किये गए हैं। यहाँ सदैव उत्सव का वातावरण बना रहता है। यहाँ एक छोटा ग्रामीण संग्रहालय है। देखा जाय तो यह अन्य संग्रहालय के सामान नहीं है, बल्कि वास्तव में यह इस क्षेत्र के ग्रामीण परिवेश की प्रतिकृति है। जो भी हो, यह स्थान आपको अवश्य आनंदित कर देगा। क्यों न हो? शहरी परिवेश से त्रस्त लोगों को ऐसा ग्रामीण वातावरण शान्ति प्रदान करता है।

यहाँ आप आँध्रप्रदेश एवं तेलंगाना क्षेत्र के आदिवासियों के प्रसिद्ध सिक्कों के गहने अवश्य ढूंढें।

सुरेंद्रपुरी का पौराणिक संग्रहालय

सुरेंद्रपुरी पौराणिक संग्रहालय में दुर्गा की प्रतिमा
सुरेंद्रपुरी पौराणिक संग्रहालय में दुर्गा की प्रतिमा

सुरेंद्रपुरी का यह पौराणिक संग्रहालय हैदराबाद के सीमावर्ती क्षेत्र में स्थित है। यह भी एक अनूठा संग्रहालय है। यहाँ पर हिंदू महाकाव्यों पर आधारित दृश्यों एवं उनमें स्थित देवी देवताओं को पुनः सजीव किया है।

और पढ़ें:- सुरेंद्रपुरी का पौराणिक संग्रहालय

प्राकृतिक इतिहास संग्रहालय – नेहरु चिड़ियाघर

नेहरु चिड़ियाघर हैदराबाद में एक बूढा कछुआ
नेहरु चिड़ियाघर हैदराबाद में एक बूढा कछुआ

नेहरु प्राणी उद्यान का प्राकृतिक इतिहास संग्रहालय आपको इस धरती के प्राकृतिक इतिहास का भ्रमण कराएगा। साथ ही नेहरु प्राणी उद्यान में आप कई अनूठे पशु-पक्षी देख सकते हैं। इनमें श्वेत मोर एवं श्वेत शेर अत्यंत आकर्षक एवं अनोखे हैं।

और पढ़ें:- हैदराबाद का नेहरु प्राणी उद्यान

अनुवाद: मधुमिता ताम्हणे

The post अद्भुत हैदराबाद संग्रहालय जो आपको अपनी ही दुनिया में ले जाएँ appeared first on Inditales.

]]>
https://inditales.com/hindi/must-see-hyderabad-sangrahalaya/feed/ 2 1182
पुरखौती मुक्तांगन – पूर्वजों को समर्पित भावपूर्ण श्रद्धांजलि, नया रायपुर  https://inditales.com/hindi/purkauti-muktangan-tribal-museum-raipur/ https://inditales.com/hindi/purkauti-muktangan-tribal-museum-raipur/#respond Wed, 19 Dec 2018 02:30:25 +0000 https://inditales.com/hindi/?p=875

नए रायपुर की चौड़ी, व्यापक और बिजली के खंबों से पंक्तिबद्ध सड़कें आपको इस 200 एकड़ के संस्कृति और विरासत से जुड़े संग्रहालय तक ले जाती हैं, जिसे पुरखौती मुक्तांगन कहा जाता है। जब पहली बार मैंने इस जगह का नाम सुना था उसी पल से मुझे उसके नाम से एक प्यारा सा लगाव हो […]

The post पुरखौती मुक्तांगन – पूर्वजों को समर्पित भावपूर्ण श्रद्धांजलि, नया रायपुर  appeared first on Inditales.

]]>
पुरखौती मुक्तांगन की दीवारों पे चित्रकारी
पुरखौती मुक्तांगन की दीवारों पे चित्रकारी

नए रायपुर की चौड़ी, व्यापक और बिजली के खंबों से पंक्तिबद्ध सड़कें आपको इस 200 एकड़ के संस्कृति और विरासत से जुड़े संग्रहालय तक ले जाती हैं, जिसे पुरखौती मुक्तांगन कहा जाता है। जब पहली बार मैंने इस जगह का नाम सुना था उसी पल से मुझे उसके नाम से एक प्यारा सा लगाव हो गया था। पुरखौती मुक्तांगन का अर्थ है एक खुला उन्मुक्त आंगन जहाँ पुरखों को श्रद्धांजलि दी जाती है और उनकी दी गयी धरोहर से हमारा परिचय कराया जाता है। इसे खुला संग्रहालय भी कहा जाता है।

सुनसान सी सड़कों और गलियों को पार करके जब आप इस संग्रहालय के पास पहुँचते हैं, तो सबसे पहले आपको इस छोटे से सांस्कृतिक ग्राम के बड़े-बड़े काले लोहे में गढ़े प्रवेश द्वार नज़र आते हैं, जिस पर आदिवासी कलाकृतियाँ बनी हुई हैं। इसकी चारदीवारी पर चित्रित लोक-कथाएँ चित्तरंजक हैं। यह कहना गलत नहीं होगा कि इस संग्रहालय का खुलापन और उसकी मुक्तता कई हद तक इसे और भी आकर्षक बनाती है।

पुरखौती मुक्तांगन – रायपुर में घूमने की जगहें   
कहानियां सुनते प्रवेश द्वार - पुरखौती मुक्तांगन - रायपुर छत्तीसगढ़
कहानियां सुनते प्रवेश द्वार

इस उन्मुक्त संग्रहालय के धातु के बने प्रवेश द्वार पर चित्रों के रूप में अनेक कहानियाँ कहते हैं – आदिवासियों की, आदवासी जनजातियों की और उनकी संस्कृति की। इस मुक्तांगन में प्रवेश करते ही वहाँ पर खड़ी सुंदर सी आदमक़द मूर्तियाँ आपका स्वागत करती करती हैं। इन मूर्तियों द्वारा छत्तीसगढ़ी लोगों के जीवन को बहुत अच्छी तरह से दर्शाया गया है।

व्यापक रूप से फैले इस आँगन के चारों ओर खड़ी दीवारें उज्ज्वल रंगों में की गयी आदिवासी चित्रकारी से सजी हुई हैं। यहाँ की सभी आदिवासी जातियों को उनकी पारंपरिक वेश-भूषा में लोक-नृत्य करते हुए चित्रावली के रूप में प्रदर्शित किया गया है। इसके अलावा यहाँ पर अनेक मौखिक भाव दर्शाते हुए मुखौटे भी दिखाई देते हैं। यहाँ लकड़ी पर उत्कीर्णित कला  दिखाने वाली एक खास दीर्घा भी है, जहाँ पर पेड़ों के बड़े-बड़े तने रखे हुए हैं, जिन्हें आप अपनी आँखों के सामने तराशते हुए देख सकते हैं।

पुरखौती मुक्तांगन के जलाशय को भी आस-पास के परिवेश में ढालने के लिए भित्ति चित्रों से सजाया गया है, जिससे की वह इस प्रांगन के वातावरण में घुल मिल जाता है और इसका एक अंग प्रतीत होता है। इस संग्रहालय के एक भाग में आदिवासी आभूषणों को प्रदर्शित किया गया है, जैसे कि दीवारों पर लटकती हुई बड़ी-बड़ी कान की बालियाँ या झुमके, या हरी घास के बीचों बीच चांदी की मोटी मोटी चूड़ियाँ आदि। संग्रहालय का यह भाग मुझे सबसे ज्यादा अभिनव लगा – जैसे कि आदिवासी आभूषण ही इस संग्रहालय की विषय वस्तु हो।

भित्तिचित्र और ठेठ छत्तीसगढ़ी ग्राम
श्रीमती सोनाबाई रजवार द्वारा बनाये गए भित्तिचित्र - पुरखौती मुक्तांगन
श्रीमती सोनाबाई रजवार द्वारा बनाये गए भित्तिचित्र – पुरखौती मुक्तांगन

राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित कलाकार श्रीमति सोना बाई रजवार को इस पैतृक संग्रहालय के लिए छत्तीसगढ़ के ग्रामीण जीवन पर आधारित भित्ति चित्र बनाने हेतु खास तौर से आमंत्रित किया गया था। इन भित्ति चित्रों के द्वारा उन्होंने छत्तीसगढ़ के ठेठ ग्रामीण घरों को बड़ी बारीकी से दर्शाया है। प्रत्येक घर के मुख्य द्वार की चौखट चमकदार रंगों और चित्रों से सजायी गयी है। प्रत्येक खिड़की पर रखी गयी स्थानीय पशु-पक्षी या फिर लोक-कथा के किसी पात्र की मिट्टी की बनी मूर्ति भी दिखाई गयी है।

वहाँ पर गांववालों की आदमक़द प्रतिमाएँ भी हैं जिन्हें अपने दैनिक काम-काज करते हुए दिखाया गया है। हमारी इस यात्रा के दौरान पुरखौती मुक्तांगन में यहाँ वहां निर्माण कार्य चल रहा था। इसके बावजूद भी उस माहौल में घूमना हमारे लिए बहुत ही आनंददायी था। इस जगह के द्वारा हम भारत के ग्राम्य जीवन को देख और समझ पा रहे थे। पुरखौती मुक्तांगन का भ्रमण कर पता चलता है की कला जीवन के एक अटूट भाग हुआ करता था ना कि बस एक दिखावे की वास्तु मात्र जिसका प्रयोजन केवल हमारी दीवारों का सुसज्जित करना है।

पुरातात्विक स्थलों की प्रतिकृति और सर्वोत्कृष्ट संरचनाएं   
प्रसिद्द भोरेम देव मंदिर - छत्तीसगढ़
प्रसिद्द भोरेम देव मंदिर – छत्तीसगढ़

यहाँ पर प्रमुख छत्तीसगढ़ के पुरातात्विक स्थलों और सर्वोत्कृष्ट संरचनाओं का आदमक़द रचनाओं के रूप में पुनःनिर्माण किया गया है, जैसे कि भोरम देव का मंदिर और ताला की रुद्रशिव की मूर्ति। मुझे बताया गया कि इस संग्रहालय का मुख्य उद्देश्य यहाँ पर आनेवाले आगंतुकों को छत्तीसगढ़ की लोक-संस्कृति की एक छोटी सी झलक प्रदान करना है, जो अन्यथा शायद इन दूरवर्ती जगहों पर ना जाए। यहाँ पर छत्तीसगढ़ के स्वतंत्र सेनानियों की भी प्रतिमाएँ हैं।

मुझे यह जानकर बहुत खुशी हुई कि इस संग्रहालय को खड़ा करने में, खास कर यहाँ पर स्थापित मूर्तियों तथा अन्य कलाकृतियों का निर्माण करने में स्थानीय कलाकारों का बहुत बड़ा योगदान रहा है। सच में यह बहुत ही प्रशंसनीय बात है, कि यह जगह स्थानीय कलाकारों के लिए अपनी कला को प्रदर्शित करने का एक सुयोग्य मंच बन पाया। यह इन कलाकारों को नयी पहचान देने तथा स्थानीय कला के विविध रूपों को संरक्षित करने का बहुत ही अच्छा प्रयास है। इस संग्रहालय में स्थापित बड़ी-बड़ी प्रतिमाओं और मूर्तियों को बनानेवाले सबसे मत्वपूर्ण व्यक्तियों में से एक हैं कलाकार पीलू राम साहू।

चित्रकार 

इस खुले संग्रहालय के विस्तारित मैदान में यहाँ-वहाँ कुछ पेड़ लगाने की बहुत ज्यादा आवश्यकता है, जिससे कि यहाँ के वातावरण में बढ़ती उष्णता थोड़ी कम हो सके और इस जगह को भी थोड़ा प्रकृतिक स्पर्श मिले। अभी के लिए तो यह जगह कार्य प्रगति की स्थिति में है और शायद थोड़े और समय तक इसी परिस्थिति में हो सकती है। लेकिन ऐसी स्थिति में भी इस संग्रहालय के दर्शन करना हमारे लिए बहुत ही लाभदायक रहा। हम स्वयं अपनी आँखों से इन कारीगरों को बड़ी लीनता से अपना काम करते हुए देख सके। यहाँ पर अतिथि चित्रकारों के लिए एक खास जगह बनवाई गयी है, जहाँ पर रहकर वे अपना काम कर सकते हैं। पुरखौती मुक्तांगन में एक विक्रय केंद्र और एक पर्यटक सूचना केंद्र भी है, यद्यपि यहाँ पर आनेवाले पर्यटको और आगंतुकों की संख्या अभी उतनी ज्यादा नहीं है।

यहाँ पर प्रदर्शित कलाकृतियों का पर्यवेक्षण करने और उन्हें समझने के लिए आपको लगभग एक पूरे दिन की आवश्यकता है। यदि आप जल्दी में हो तो, २-३ घंटों में भी पुरखौती मुक्तांगन को देख सकते हैं। मेरा सुझाव तो यही होगा की शांति से बैठ कर यहाँ की कलाकृतियों को निहारिये

The post पुरखौती मुक्तांगन – पूर्वजों को समर्पित भावपूर्ण श्रद्धांजलि, नया रायपुर  appeared first on Inditales.

]]>
https://inditales.com/hindi/purkauti-muktangan-tribal-museum-raipur/feed/ 0 875
वाराणसी के रामनगर में लाल बहादुर शास्त्री स्मृति https://inditales.com/hindi/lal-bahadur-shastri-samarak-ramnagar/ https://inditales.com/hindi/lal-bahadur-shastri-samarak-ramnagar/#respond Wed, 26 Sep 2018 02:30:52 +0000 https://inditales.com/hindi/?p=1102

भारत के दूसरे प्रधानमंत्री हमारे प्रिय नेता जिनका स्मरण हम अक्सर भूल जाते हैं, श्री लाल बहादुर शास्त्री उत्तर प्रदेश से हैं। देश उन्हें सादा जीवन एवं उच्च विचारों के लिए जानता है। उनका गाँव रामनगर गंगा के तट पर स्थित है, काशी के प्रसिद्द घाटों के ठीक सामने| यहाँ पर उनकी याद में समर्पित […]

The post वाराणसी के रामनगर में लाल बहादुर शास्त्री स्मृति appeared first on Inditales.

]]>
लाल बहादुर शास्त्री - भारत के प्रिय नेता
लाल बहादुर शास्त्री – भारत के प्रिय नेता

भारत के दूसरे प्रधानमंत्री हमारे प्रिय नेता जिनका स्मरण हम अक्सर भूल जाते हैं, श्री लाल बहादुर शास्त्री उत्तर प्रदेश से हैं। देश उन्हें सादा जीवन एवं उच्च विचारों के लिए जानता है। उनका गाँव रामनगर गंगा के तट पर स्थित है, काशी के प्रसिद्द घाटों के ठीक सामने| यहाँ पर उनकी याद में समर्पित एक स्मारक है – वो घर या झोपड़ी जहाँ उन्होंने जन्म लिया और अपने बचपन के दिन व्यतीत किये।

शास्त्री जी एवं ललिता जी का हवाई यात्रा में काम करते हुए चित्र
शास्त्री जी एवं ललिता जी का हवाई यात्रा में काम करते हुए चित्र

मुझे याद है जब हम अपने विद्यालय में लाल बहादुर शास्त्री जी पर निबंध लिखते थे तो हमने पढ़ा था कि वो अपने विद्यालय जाने के लिये तीन किलोमीटर की दूरी गंगा को तैर कर पार करते थे। जब मैं रामनगर के महल की छत पर खड़ी थी तो मुझे लग रहा था कि अब भी वो नन्हा बालक विद्यालय जाने के लिये गंगा की लहरों पर तैरता हुआ बनारस के चंद्रनुमा घाटों को पार कर रहा है।यह मुझे उस बच्चे के चरित्र से अवगत करा रहा था जो अपने आप को शिक्षित करने के लिये कड़ा परिश्रम करता था।

लाल बहादुर शास्त्री जी का पैतृक घर

शास्त्री जी का पैतृक घर - रामनगर उत्तर प्रदेश
शास्त्री जी का पैतृक घर – रामनगर उत्तर प्रदेश

आज शास्त्रीजी का पैतृक घर उनके चित्रों से भरा पड़ा है जिसकी देखभाल एक बैंक करता है। देखने मैं ये घर आपको बहुत छोटा लगेगा, लेकिन आपको यह जान कर आश्चर्य होगा की यह घर शास्त्रीजी के मौलिक घर से बहुत बड़ा है। उनका मूल घर केवल एक कमरे का है और वो भी उनके समय में मिटटी से बना हुआ था। देखा जाये तो यह एक कच्चा घर था, शेष कमरों का निर्माण बाद में किया गया है।

शास्त्री जी का सपरिवार चित्र
शास्त्री जी का सपरिवार चित्र

क्या यह विडम्बना नहीं है की एक स्मारक उस व्यक्ति की तुलना मैं एक बड़ा स्थान प्राप्त करता है जिसका स्मारक यह है?

राष्ट्रीय नेताओं की याद में जितने भी भवन आप देखेंगे उनमें से यह भवन सबसे साधारण है। यहाँ पर लाल बहादुर शास्त्री की एक तस्वीर उनके परिवार के साथ है और दूसरी जिसमें वो आपनी पत्नी के साथ हवाई जहाज मैं काम करते हुए दिखाई देते हैं, जब वह प्रधानमंत्री पद पर थे।

लाल बहादुर शास्त्री का जन्मस्थान
लाल बहादुर शास्त्री का जन्मस्थान

लाल बहादुर शास्त्री की एक मूर्ति रामनगर के प्रसिद्द महल के पास एक चौराहे पर है। यही एक चिन्ह है जो यहाँ आने वाले पर्यटकों को रामनगर और शास्त्री जी के सम्बन्ध से अवगत करता है और कहता है क्या आप  इस मिटटी का लाल के उसके घर को देखना चाहेंगे।

रामनगर के चौराहे पर शास्त्री जी की मूर्ति
रामनगर के चौराहे पर शास्त्री जी की मूर्ति

इश्वर से प्रार्थना है की शास्त्रीजी को इस देश के स्मृति पटल पर उनकी कर्मठता के लिए उचित स्थान प्राप्त हो। उनका जीवन आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा का स्तोत्र है।

लाल बहादुर शास्त्री जी का एक समरक दिल्ली में भी है, उस घर में जो उनका प्रधान मंत्री के रूप में अधिकारिक निवास था – मोती लाल नेहरु मार्ग पर। यहाँ भी मुझे बचपन में एक बार जाने का अवसर मिला था, और शास्त्री जी की पत्नी ललिता जी से भी मिलने का अवसर मिला था। परन्तु तब में इतनी छोटी थी की इस भेंट का महत्व नहीं जानती थी।

शास्त्री जी के जीवन के बारे में आप इस वेबसाइट पर विस्तार से पढ़ सकते हैं।

भारत के अन्य अन्य रोचक समारक 

द्रास युद्ध स्मारक – कारगिल – जहां भावनाएं हिलोरें मारती हैं

ले कोर्बुसिएर केंद्र – चंडीगढ़ के सृजक को श्रद्धांजलि

नयी दिल्ली का राष्ट्रीय संग्रहालय- १० मुख्य आकर्षण

पटना – ऐतिहासिक पाटलीपुत्र का वर्तमान स्वरूप

आगा खान महल – पुणे में महात्मा गाँधी का कारावास

अनुवाद – श्रीमती शालिनी गुप्ता

The post वाराणसी के रामनगर में लाल बहादुर शास्त्री स्मृति appeared first on Inditales.

]]>
https://inditales.com/hindi/lal-bahadur-shastri-samarak-ramnagar/feed/ 0 1102
ले कोर्बुसिएर केंद्र – चंडीगढ़ के सृजक को श्रद्धांजलि https://inditales.com/hindi/le-corbusier-center-chandigarh-heritage/ https://inditales.com/hindi/le-corbusier-center-chandigarh-heritage/#respond Wed, 28 Mar 2018 02:30:34 +0000 https://inditales.com/hindi/?p=594

ले कोर्बुसिएर केंद्र कहता है चंडीगढ़ नगर का आधुनिक इतिहास। चंडीगढ़ भारत का एकमात्र ऐसा शहर है जो पहले से ही एक आधुनिक राजधानी के रूप में योजनाबद्ध किया गया था। यह शहर भारत के प्रथम प्रधान मंत्री और फ्रेंच वास्तुकला के विद्वान ले कोर्बुसिएर के दृष्टिकोणों के आधार पर निर्मित किया गया था। यह […]

The post ले कोर्बुसिएर केंद्र – चंडीगढ़ के सृजक को श्रद्धांजलि appeared first on Inditales.

]]>
ले कोर्बुसिएर केंद्र - चंडीगढ़
ले कोर्बुसिएर केंद्र – चंडीगढ़

ले कोर्बुसिएर केंद्र कहता है चंडीगढ़ नगर का आधुनिक इतिहास। चंडीगढ़ भारत का एकमात्र ऐसा शहर है जो पहले से ही एक आधुनिक राजधानी के रूप में योजनाबद्ध किया गया था। यह शहर भारत के प्रथम प्रधान मंत्री और फ्रेंच वास्तुकला के विद्वान ले कोर्बुसिएर के दृष्टिकोणों के आधार पर निर्मित किया गया था। यह मनुष्य के शरीर के अनुसार में बनाया गया है, जहां सिर के स्थान पर सरकारी कार्यालय, दिल की जगह पर बाज़ार, फेफड़ों की जगह पर हरे-भरे बगीचे और हाथ-पाँव के स्थान पर उद्योगिक क्षेत्र बसे हुए हैं और इनके बीच में से धमनियों और नसों के रूप में दौड़ती आड़ी-तिरछी सड़कें हैं।

इस शहर की हर सड़क सिर्फ सीधी ही जाती है, ना कोई मोड ना कोई घुमावदार रास्ता और यदि कोई मोड मिल भी जाए तो, या तो वह समकोण के आकार का होता है या फिर न्यूनकोण के आकार का। यह शहर आयताकार खंडों में विभाजित किया गया है जिन्हें फिर 4 समान भागों में विभाजित किया गया है। यह प्रत्येक भाग अपने आप में पर्याप्त है, जहां उनके खुद के बाज़ार और पाठशालाएं हैं। ध्यान से देखे तो, यह शहर सामंजस्यता के भाव से एक साथ वास करती विविध स्वतंत्र इकाइयों के समूह को दर्शाता है।

ले कोर्बुसिएर केंद्र – चंडीगढ़ शहर 

चंडीगढ़ नगर के नीचे कभी बसे सिन्धु घाटी सभ्यता का सुव्यवस्थित नगर
चंडीगढ़ नगर के नीचे कभी बसे सिन्धु घाटी सभ्यता का सुव्यवस्थित नगर

जिस इमारत में कभी ले कोर्बुसिएर का कार्यालय हुआ करता था आज वह विरासत केंद्र में परिवर्तित किया गया है, जो उन्हें और उनकी निर्मिति – चंडीगढ़ को समर्पित किया गया है। वहां पर मुझे बताया गया कि कुछ सालों पहले चंडीगढ़ के प्रशासन ने एक खास खोज जारी की थी जिसके द्वारा इस केंद्र के लिए धरोहर से जुड़े सभी उपलब्ध दस्तावेज़ और असबाब की वस्तुओं को संगठित किया जा रहा था।

ले कोर्बुसिएर केंद्र अब इस शहर और उसके निर्माता से जुड़ी विरासत का प्रमुख केंद्र बन गया है। यहां पर ले कोर्बुसिएर के जीवन तथा उस समय के दौर का दस्तावेजीकरण किया गया है। इसी प्रक्रिया के अंतर्गत इस शहर की निर्माण प्रक्रिया का भी दस्तावेजीकरण हुआ है। संयोगवश यहां पर एक सुंदर सा चित्र है जो दर्शाता है, कि किस प्रकार से यह शहर वास्तव में प्राचीन सिंधु घाटी सभ्यता के शहरों का प्रतिरूप है, जहां की निर्माण योजना भी इसी प्रकार आयताकार खंडों जैसी थी। इस शहर के निर्माणकाल के दौरान यहां पर हुए उत्खनन से प्राप्त वस्तुओं से यह साफ पता चलता है कि यह क्षेत्र प्राचीन काल में सिंधु घाटी सभ्यता का भाग हुआ करता था।

ले कोर्बुसिएर एवं पंडित नेहरु
ले कोर्बुसिएर एवं पंडित नेहरु

देखा जाए तो, ले कोर्बुसिएर एक आधुनिक शहर का निर्माण करने के साथ-साथ, कभी इस भूमि पर बसे किसी प्राचीन शहर का भी अनुसरण रहे थे। यहां से उत्खनन द्वारा प्राप्त कुछ कलाकृतियाँ आप शहर के संग्रहालय में देख सकते हैं।

ले कोर्बुसिएर केंद्र का सभा कक्ष 

यह सभा कक्ष ठेठ चंडीगढ़ की शैली में बनी हुई इमारत है जो भूरे रंग की है। यहां के गलियारों की दीवारें अब ले कोर्बुसिएर के चित्रों से सजी हुई हैं, जिसके साथ वास्तुकला पर उनके प्रसिद्ध उद्धरण भी हैं। ये सभी बातें कहीं ना कहीं आपको, शहर की रूपरेखा बनाते वक्त उनके मन में चल रहे विचारों की ओर ले जाती हैं। उनका सभा कक्ष जहां पर नेहरू से उनकी मुलाकात हुई थी, भी वैसे का वैसा संरक्षित किया गया है।

ले कोर्बुसिएर केंद्र – जहाँ चंडीगढ़ की परियोजना बनी थी
ले कोर्बुसिएर केंद्र – जहाँ चंडीगढ़ की परियोजना बनी थी

यहां पर आज भी लकड़ी और चमड़े की बनी वही कुर्सियां मौजूद हैं, जो ले कोर्बुसिएर द्वारा इस्तेमाल की जाती थीं, जिनके बीच लकड़ी का एक बड़ा सा मेज खड़ा है। इस शहर के नए-पुराने चित्र तथा उसके स्थूल वर्णन अब यहां की दीवारों की शोभा बढ़ाते हुए नज़र आते हैं। यहां पर इस वास्तुकलाकर द्वारा प्रयुक्त नवार की खाट और लकड़ी के मेज भी हैं और साथ में इस शहर के संपन्न नक्शे का एक विशाल नमूना भी है।

विरासत के असबाब   

ले कोर्बुसिएर का जीवन और दर्शन
ले कोर्बुसिएर का जीवन और दर्शन

ले कोर्बुसिएर केंद्र पर रखी हुई लकड़ी की कुर्सियाँ देखते ही मुझे पंजाब विश्वविद्यालय के हॉस्टल की अपनी कुर्सी की याद आयी जो एकदम ऐसी ही दिखती थी। बाद में मेरे साथ आए हुए पर्यटन अधिकारी ने मुझे बताया कि असबाब की ये वस्तुएं वहीं से उपार्जित की गयी हैं। आगे जाते ही मुझे हमारे भौतिक विज्ञान के विभाग से प्राप्त की गयी एक खुर्सी दिखी, जिस पर शायद कभी मैं भी बैठी थी, लेकिन तब मुझे इस बात का अंदाज़ा भी नहीं था कि वह कुर्सी एक दिन शहर की विरासत का हिस्सा बन जाएगी।

बाद में जब मैंने विश्वविद्यालय के पुस्तकालय का छोटा सा दौरा किया तब मुझे पता चला कि वहां की सभी लकड़ी की कुर्सियों को वीभत्स सी दिखनेवाली प्लास्टिक की कुर्सियों से बदल दिया गया है। यह सब देखकर मेरे मन में अजीब से भाव उत्पन्न होने लगे, एक तरफ मुझे खुशी हो रही थी कि मैंने कभी विरासत से जुड़ी इन वस्तुओं का इस्तेमाल किया था, तो दूसरी ओर मुझे पुस्तकालय के असबाब की वर्तमान स्थिति पर जैसे दया आ रही थी।

केंद्र में प्रदर्शित चित्र और नक्शे  

खुला हाथ – चंडीगढ़ नगर का प्रतीक
खुला हाथ – चंडीगढ़ नगर का प्रतीक

ले कोर्बुसिएर केंद्र में प्रदर्शित चित्रों में आप कोर्बुसिएर को विविध मनःस्थितियों में देख सकते हैं, जैसे काम में लीन होते समय की तस्वीर, अपने आदर्श के साथ खींची गयी उनकी तस्वीर, सरोवर में नौकाविहार का आनंद लेते हुए ली गयी तस्वीर तथा माननीय अतिथियों से मुलाकात के समय खींची गयी तस्वीर।

मैं इस बात से बिलकुल अज्ञात थी कि इस शहर के नालों के मुखावरणों पर उसका नक्शा बना हुआ है। मेरे लिए यह एकदम नवीन और आश्चर्य की बात थी। यह नक्शा आप केंद्र में स्थित कई जगहों पर देख सकते हैं, जिसमें यहां की स्मारिका दुकान भी शामिल है। यहां पर विभिन्न पत्र प्रदर्शन के लिए रखे गए थे, जिन्हें पढ़ने के लिए आपको खूब सारे समय की जरूरत होती है। मुझे तो इन पत्रों की विषय वस्तु से अधिक, उनमें अपने दौर का वर्णन करते उन व्यक्तियों की लिखावट ज्यादा आकर्षक लगी। यहां पर चंडीगढ़ और उसकी वास्तुकला से संबंधित व्यंगचित्रों के संग्रह का भी प्रदर्शन किया गया है जो बहुत ही दिलचस्प है।

ले कोर्बुसिएर केंद्र पर प्रदर्शित वास्तुकलात्मक चित्र और हाथ के चित्र द्वारा दर्शाये गए विविध आकार, इस शहर के प्रति इन लोगों के अनुराग और उनके अभिमान को दर्शाते हैं। चंडीगढ़ में पले-बड़े होने के नाते में, मैं यह जरूर कहना चाहूंगी कि यहां का प्रत्येक व्यक्ति, अद्वितीय विशेषताओं से परिपूर्ण इस शहर प्रति बहुत गर्व महसूस करता है। लेकिन इस सब से अधिक उन्हें इस बात पर गर्व है कि उनका शहर भारत का सबसे साफ-सुथरा और हारा-भरा शहर है।

ले कोर्बुसिएर केंद्र के पर्यटक

ले कोर्बुसिएर केंद्र में स्थानीय लोगों या भारतीय पर्यटकों से ज्यादा फ्रेंच पर्यटक ही अधिक संख्या में आते हैं। मुझे लगता है कि यहां पर एक ऐसे गाइड की आवश्यकता है जो इस शहर के इतिहास, उसकी विरासत और वास्तुकला तथा उसके वास्तुकलाकर के बारे में गहराई से जानता हो और जो अपने ज्ञान को ध्यानपूर्वक यहां पर आनेवाले लोगों से बांटने के योग्य हो, जिससे कि आगंतुकों के अनुभव अविस्मरणीय हो जाए।

मैंने भारत के अन्य किसी भी शहर में ऐसी जगह नहीं देखी है, जहां पर उसके इतिहास का इतनी अच्छी तरह से दस्तावेजीकरण किया है।

The post ले कोर्बुसिएर केंद्र – चंडीगढ़ के सृजक को श्रद्धांजलि appeared first on Inditales.

]]>
https://inditales.com/hindi/le-corbusier-center-chandigarh-heritage/feed/ 0 594
द्रास युद्ध स्मारक – कारगिल – जहां भावनाएं हिलोरें मारती हैं https://inditales.com/hindi/kargil-drass-war-memorial-ladakh/ https://inditales.com/hindi/kargil-drass-war-memorial-ladakh/#comments Wed, 24 Jan 2018 02:30:40 +0000 https://inditales.com/hindi/?p=615

कारगिल के समीप स्थित द्रास युद्ध स्मारक से हम सब अवगत हैं। हम उस युग से सम्बन्ध रखते हैं जो १९९९ में हुए कारगिल युद्ध का साक्षी है। इस युद्ध के हुतात्मा सैनिक हमारे आसपास ही उपस्थित वीर योद्धा थे। उस समय दूरदर्शन पर दिखाए जाने वाले कारगिल युद्ध के छायाचित्रों के हम सब ने […]

The post द्रास युद्ध स्मारक – कारगिल – जहां भावनाएं हिलोरें मारती हैं appeared first on Inditales.

]]>
द्रास युद्ध स्मारक - कारगिल
द्रास युद्ध स्मारक – कारगिल

कारगिल के समीप स्थित द्रास युद्ध स्मारक से हम सब अवगत हैं। हम उस युग से सम्बन्ध रखते हैं जो १९९९ में हुए कारगिल युद्ध का साक्षी है। इस युद्ध के हुतात्मा सैनिक हमारे आसपास ही उपस्थित वीर योद्धा थे। उस समय दूरदर्शन पर दिखाए जाने वाले कारगिल युद्ध के छायाचित्रों के हम सब ने दर्शन किये थे। उन्ही वीर सैनिकों की स्मृति में निर्मित इस युद्ध स्मारक के भी हमने दूरदर्शन पर अनेक बार दर्शन किये हैं। तथापि वहां प्रत्यक्ष उपस्थित होने पर जो भावनाएं मन में हिलोरें मारती हैं, वह कल्पना से परे है। उसका अनुभव कारगिल पहुँच कर ही प्राप्त होता है।

राष्ट्रीय राजमार्ग १ द्वारा जम्मू से लेह की यात्रा के समय जैसे ही हमने जोजिला दर्रा पार किया, हमने इस युद्ध स्मारक के दर्शन का निश्चय किया। सैनिक परिवार से सम्बंधित होने के कारण मेरा बाल्यकाल सैनिक छावनियों में बीता है। अतः कोई भी युद्ध स्मारक एवं सम्बंधित संग्रहालय मेरे हेतु नवीन आकर्षण नहीं थे। तथापि उस सांझबेला में द्रास हुतात्मा स्मारक पर बिताए कुछ क्षणों में जो भावुकता की चरम अनुभूति मुझे हुई, मैं उस अनुभूति के लिए तैयार नहीं थी।

गुलाबी दीवारों से घिरे इस स्मारक के प्रवेशद्वार से हम स्मारक के भीतर पहुंचे। इस स्मारक की एक भित्त पर बड़े बड़े अक्षरों में लिखा था-
“Forever in operation.
All save some, some save all, gone but never forgotten.”
अर्थात्,
“सदैव कार्यरत।
सब कुछ को बचाते हैं, कुछ सभी को बचाते हैं। विलीन पर अमर हो जाते हैं।”

द्रास युद्ध स्मारक

द्रास युद्ध स्मारक - विजयपथ
द्रास युद्ध स्मारक – विजयपथ

प्रवेश द्वार पर अपना नाम पंजीकृत करवाकर हम स्मारक प्रांगण के भीतर पहुंचे। पथ के दोनों ओर भारत के तिरंगे झंडों की पंक्ति लगी हुई थी। इस पगडंडी के अंत में एक ऊंचे स्तम्भ पर विशाल तिरंगा फहरा रहा था। इसे देख हमारी जात-पात, लिंग, समृधि, सफलता इत्यादि मानो कहीं लुप्त हो गए थे। शेष थी तो केवल हमारी भारतीयता। तिरंगे को इस भान्ति पवन में फड़फड़ाते देख अपनी भारतीयता का उत्सव मनाने की इच्छा उत्पन्न हुई। हुतात्माओं की अमर जीवनी को दर्शाते इस स्मारक का स्पर्श होते ही गर्व का अनुभव होने लगा। हमने उस भव्य तिरंगे के सानिध्य में कई छायाचित्र खींचे।

इस द्रास युद्ध स्मारक को घेरे वे सर्व पर्वत शिखर उपस्थित हैं जिन्हें युद्ध पूर्व, शत्रुओं ने हथियाने का असफल प्रयास किया था। स्मारक की ओर जाते इस पथ को विजयपथ भी कहा जाता है। विजयपथ के मध्य एक विश्राम लेकर मैंने अपनी दृष्टी चारों ओर दौड़ाई। अपने चारों ओर गोलियां दागते बंदूकों के दृश्य को आँखों के समक्ष सजीव करने का प्रयास करने लगी। उस दृश्य को आँखों के समक्ष सजीव करने में सफल हो भी जाऊं, परन्तु शत्रुओं पर गोलियां बरसाते, स्वयं पर गोलियां झेलते वीर सैनिकों की मनःस्थिति मैं चाह कर भी अनुभव नहीं कर सकती थी। कल्पना एवं यथार्थ के बीच का यही अंतर मुझे सदा स्मरण कराता रहेगा कि हम अपने घरों में सुरक्षित जीवन व्यतीत करते हैं जबकि हमारी सुरक्षा में वीर सैनिक यहाँ निरंतर शत्रुओं का सामना करते रहते हैं। उन शहीद वीर सैनिकों को शत् शत् नमन करने की एवं उनके अंतिम क्षणों को इसी स्थल पर सजीव कल्पना करने की इच्छा मुझे इस स्मारक तक खींच लायी थी।

“कारगिल विजय दिवस हर वर्ष २६ जुलाई को मनाया जाता है।”

द्रास युद्ध स्मारक - प्रवेश द्वार
द्रास युद्ध स्मारक – प्रवेश द्वार

विजय पथ पर चलते हुए हम अमर ज्योति की ओर आगे बढ़े। यह अमर ज्योति उन वीर सैनिकों को समर्पित है जिन्होंने कारगिल युद्ध में देश की रक्षा करते अपने प्राणों की आहूति दे दी। समीप ही एक सैनिक कारगिल युद्ध के परिप्रेक्ष्य की जानकारी प्रदान कर रहा था। अमर वीर सैनिकों की गाथा सुनाते उसके स्वरों से उमड़ता गर्व छुपाये नहीं छुप रहा था। वह यह भलीभांति जानता था कि अगला शहीद वह स्वयं भी हो सकता है। उसने हमारा ध्यान बाएं स्थित वीरभूमि में रखे स्मृति शिलाओं की ओर खींचा, जो अमर वीर सैनिकों को श्रद्धांजलि स्वरुप स्थापित किये गए थे। उसने हमें दायें स्थित मनोज पांडे संग्रहालय भी देखने को कहा जहां युद्ध के अवशेष संग्रह कर रखे गए हैं।

वीरभूमि स्थित स्मृति शिलाएं

द्रास युद्ध स्मारक - वीर भूमि
द्रास युद्ध स्मारक – वीर भूमि

शौर्यसंगीत की ध्वनी के मध्य हम वीर भूमि को ओर बढ़े। वहां प्रत्येक शहीद सैनिक को समर्पित एक शिलाखंड स्थापित किया गया था। प्रत्येक शिलाखंड पर शहीद का नाम एवं सेना में उसके पद के साथ साथ, संक्षिप्त में उसकी शौर्य गाथा अंकित थी। उन्होंने किस तरह देश की रक्षा में अपने प्राण न्योछावर किये यह पढ़ते ही गला भर आया। मैंने पूरी श्रद्धा से सर्व शिलाखंडों पर अंकित नाम पढ़ते हुए, उन्हें नमन कर, मन ही मन श्रद्धांजलि अर्पित करना आरम्भ किया। परन्तु कुछ क्षण उपरांत, अश्रुपूरित चक्षुओं के कारण नामों को पढ़ने में असमर्थ हो गयी और वहां से आगे बढ़ गयी।

द्रास युद्ध स्मारक - कारगिल समारक
द्रास युद्ध स्मारक – कारगिल समारक

वहां मेरी दृष्टी सुन्दर प्रतिमा पर पड़ी जहां हाथ में तिरंगा लिए, जीत का उत्सव मनाते वीर सैनिकों को प्रदर्शित किया गया था।

अमर वीर सैनिक ज्योति

द्रास युद्ध स्मारक - अमर ज्योति
द्रास युद्ध स्मारक – अमर ज्योति

भारी हृदय से मैं अमर ज्योति पर वापिस आ गयी। इसके आधार पर पं. माखनलाल चतुर्वेदी द्वारा वीर रस में रचित कविता “पुष्प की अभिलाषा” अंकित थी। प्राथमिक शाला में पढ़ी इस कविता का गूढ़ अर्थ मैं आज समझ पायी हूँ जब एक पुष्प अपनी अभिलाषा व्यक्त करता है कि वह ना तो किसी देवी देवता को अर्पण होना चाहता है, ना ही किसी कन्या अथवा प्रेमिका को रिझाना चाहता है। वह केवल देश की रक्षा में प्राणों की आहूति देने को तत्पर वीर सैनिकों के चरणों को स्पर्श करना चाहता है। अतः वह प्रार्थना करता है कि उसे देशभक्त वीर सैनिकों के पथ पर बिखेर दिया जाय।

अमर ज्योति के पृष्ठभूमि पर एक सुनहरी भित्त है जिस पर शहीद वीर सैनिकों के नाम अंकित हैं। आत्मविभोर हो हम सब वहां चुप्पी साधे खड़े थे। ये वे वीर सैनिक थे जिन्होंने हमारी रक्षा करते अपने प्राण गवाँए थे जबकि हम उस समय शान्तिपूर्वक निद्रा में लीन थे अथवा क्षुद्र समस्याओं में उलझे हुए थे।

मनोज पांडे दीर्घा

स्मृति कुटिया - मनोज पण्डे दीर्घा - द्रास युद्ध स्मारक
स्मृति कुटिया – मनोज पण्डे दीर्घा – द्रास युद्ध स्मारक

अमर वीर सैनिक ज्योति पर कुछ और समय बिताकर हम मनोज पाण्डे दीर्घा की ओर बढ़े। इसे ‘हट ऑफ़ रेमेंबरेंस’ अर्थात स्मृतियों की कुटिया भी कहा जाता है।

अस्थि कलश - मनोज पण्डे दीर्घा
अस्थि कलश – मनोज पण्डे दीर्घा

प्रवेश द्वार पर ही एक वीर सैनिक की आवक्ष मूर्ति थी जिसके चारों ओर अस्थिकलश रखे हुए थे। इसे देखते ही मेरे आत्मसंयम का बाँध टूट गया और मैं फूट फूट कर रो पड़ी। कुछ क्षण पश्चात अपने आप को संभालकर जब चारों ओर देखा तो पाया कि वहां उपस्थित हर व्यक्ति की आँखें नम थीं। यहाँ आकर आत्मविभोर ना होना असंभव है।

अग्निपथ - हरिवंश राय बच्चन
अग्निपथ – हरिवंश राय बच्चन

एक फलक पर हरिवंशराय बच्चन द्वारा रचित कविता ‘अग्निपथ’ अंकित थी। कविता के साथ साथ कवी बच्चन के सुपुत्र अमिताभ बच्चन का प्रेरणादायक सन्देश लिखा था। एक वीर सैनिक द्वारा अपने पुत्र को लिखा एक पत्र भी वहां प्रदर्शित था। इसे पढ़कर हृदय में उठती हूक एवं भावनाएं शब्दों द्वारा व्यक्त करना मेरे लिए संभव नहीं है।

महावीर योद्धा

वीर विजयी सैनिक - द्रास युद्ध स्मारक
वीर विजयी सैनिक – द्रास युद्ध स्मारक

दीर्घा के भीतर युद्ध एवं युद्ध में शहीद सैनिकों के छायाचित्र प्रदर्शित किये गए थे। उनके दर्शन एक भावनात्मक यात्रा के समान था। दीर्घा के अंत में अधिग्रहण किया गया पाकिस्तानी ध्वज का भी छायाचित्र था। उसे देख हृदय में विजयी भावनाएं उभरीं। प्रतीकात्मक चिन्हों में भी इतनी शक्ति होती है जिसके लिए हम जी या मर सकते हैं।

वीर सैनिक - मनोज पण्डे दीर्घा
वीर सैनिक – मनोज पण्डे दीर्घा

परिसर के अन्य भागों में युवा सैनिक अपने अपने कार्यों में व्यस्त थे। कुछ बागवानी कर रहे थे, कुछ घास की सफाई कर रहे थे एवं कुछ पौधों को पानी दे रहे थे। उन युवक सैनिकों को गले लगाकर उन्हें आशीर्वाद देने की इच्छा उत्पन्न हुई। अतः उनके समीप जाकर मैंने कुछ सैनिकों से चर्चा की व उन्हें धन्यवाद दिया। उन्होंने भी सदा की तरह विनम्रता से मेरे धन्यवाद का उत्तर धन्यवाद से ही दिया। आयु में इतने छोटे होने के बाद भी उनमें परिपक्वता कूट कूट कर भरी हुई थी। उनमें से एक ने मुझे कहा कि जिस तरह हम अपना उत्तरदायित्व निभाते हैं, उसी तरह वे भी उनका उत्तरदायित्व ही पूर्ण करते हैं। काश उनकी इस परिपक्वता का एक अंश भी शहरी युवाओं में होता, जिन्हें केवल अपना अधिकार मांगना आता है। उत्तरदायित्व कई शहरी युवाओं के लिए एक अर्थहीन शब्द है।

स्मारक परिसर में जलपान गृह एवं स्मारिका विक्रय केंद्र भी है। सैनिक संस्कृति एवं अनुशासन से परिपूर्ण ये केंद्र पर्यटकों की आवश्यकता पूर्ण करने में सक्षम हैं।

इस परिसर में प्रसिद्ध बोफोर्स तोपों सहित कई तोपें, बंदूकें एवं हेलीकाप्टर इत्यादि का भी प्रदर्शन किया गया था। परन्तु मैंने उन्हें देखने में समय नहीं गंवाया। इन वस्तुओं के बिना मानवता अधिक प्रगति कर सकती है।

देशवासियों हेतु वीर सैनिकों का संदेश

सैनिकों का देश को सन्देश - द्रास युद्ध स्मारक
सैनिकों का देश को सन्देश – द्रास युद्ध स्मारक

द्रास युद्ध स्मारक परिसर से बाहर निकलते समय आपकी दृष्टी इन शब्दों पर पड़ती है जो वीर सैनिकों की ओर से देशवासियों के लिए सन्देश है। यह सन्देश हमसे कहता है कि जब हम वापिस घर लौटें तब अपने परिजनों एवं मित्रों से कहें कि हमारे कल को सुरक्षित बनाने हेतु उन्होंने अपना आज न्योछावर कर दिया है।

मैंने शिंडलर संग्रहालय समेत इस तरह के कई स्मारकों के दर्शन किये हैं। परन्तु ऐसी यात्रा मैंने इससे पहले कभी नहीं की। गर्व, विनम्रता, कृतज्ञता, भावुकता इन सभी भावनाओं का मिश्रित सा अनुभव हो रहा था। कारगिल नगर की ओर जाते मन में बार बार एक ही विचार उमड़ रहा था। सैन्य सेवा देश के प्रत्येक नागरिक हेतु आवश्यक होना चाहिए। कदाचित यही हमें सही मायनों में भारतीयता का बोध करा सकती है। तुच्छ अहंकारों से ऊपर उठ कर कदाचित यही सही अर्थ में देशप्रेम जगा सकती है। मेरे पास इन प्रश्नों के उत्तर नहीं है। परन्तु द्रास शहीद स्मारक के दर्शनोपरांत ऐसे विचार आपके मानसपटल पर अवश्य उभर कर आयेंगे।

कारगिल के द्रास युद्ध स्मारक के दर्शन हेतु सुझाव

स्मृति चिन्ह - द्रास युद्ध स्मारक - लद्दाख
स्मृति चिन्ह – द्रास युद्ध स्मारक – लद्दाख

• श्रीनगर से लेह जाते राष्ट्रीय राजमार्ग १द पर जोजिला दर्रा एवं कारगिल नगर के मध्य द्रास युद्ध स्मारक स्थित है।
• मुख्य मार्ग पर स्थित स्मारक की गुलाबी दीवारें आपको दूर से ही देख जायेंगी।
• स्मारक के दर्शन हेतु प्रवेशशुल्क नहीं है। तथापि अपना पहचान पत्र दिखा कर रजिस्टर में नाम का पंजीकरण आवश्यक है।
• स्मारिका केंद्र से आप कपडे, चीनी मिटटी के प्याले एवं अन्य कई वस्तुएं ले सकते हैं।
• परिसर में जलपान गृह सुविधा उपलब्ध है। तथापि कदाचित शहीद स्मारक के दर्शनोपरांत उसमें जलपान करने की आपकी मनःस्थिति न रहे।
• सामान्य जन हेतु इस स्मारक के दर्शन जून से अक्टूबर मास तक उपलब्ध होते हैं जब राजमार्ग यातायात हेतु खुला रहता है।
• आप से आशा रहेगी कि इस स्मारक के भीतर आपका आचरण परिपक्वता एवं सम्मान से परिपूर्ण हो।

अनुवाद: मधुमिता ताम्हणे

The post द्रास युद्ध स्मारक – कारगिल – जहां भावनाएं हिलोरें मारती हैं appeared first on Inditales.

]]>
https://inditales.com/hindi/kargil-drass-war-memorial-ladakh/feed/ 8 615