यात्रा साहित्य Archives - Inditales श्रेष्ठ यात्रा ब्लॉग Tue, 22 Aug 2023 06:02:57 +0000 en-US hourly 1 https://wordpress.org/?v=6.7.2 गोवा प्रदेश पर १४ सर्वोत्कृष्ट पुस्तकें https://inditales.com/hindi/goa-par-sarvashreshth-pustaken/ https://inditales.com/hindi/goa-par-sarvashreshth-pustaken/#respond Wed, 13 Dec 2023 02:30:45 +0000 https://inditales.com/hindi/?p=3343

गोवा देशी एवं विदेशी पर्यटकों का अत्यंत लोकप्रिय गंतव्य है। यह भारत के सर्वोत्तम पर्यटन स्थलों में से एक है। गोवा में पर्यटकों के लिए सर्वाधिक शांतिदायक क्रियाकलाप है, समुद्रतट पर बैठकर अपनी मनपसंद पुस्तक पढ़ना। यह किसी स्वप्न से कम नहीं होता। तत्पश्चात सूर्यास्त के समय उसी पुस्तक एवं समुद्र में डूबते सूर्य के […]

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गोवा देशी एवं विदेशी पर्यटकों का अत्यंत लोकप्रिय गंतव्य है। यह भारत के सर्वोत्तम पर्यटन स्थलों में से एक है। गोवा में पर्यटकों के लिए सर्वाधिक शांतिदायक क्रियाकलाप है, समुद्रतट पर बैठकर अपनी मनपसंद पुस्तक पढ़ना। यह किसी स्वप्न से कम नहीं होता। तत्पश्चात सूर्यास्त के समय उसी पुस्तक एवं समुद्र में डूबते सूर्य के साथ अपना छायाचित्र खिंचवाना भी एक अविस्मरणीय स्मृति होती है। गोवा का समुद्रतट हो, उस पर पुस्तक भी गोवा पर हो तो यह सोने पर सुहागा के समान होता है।

गोवा पर पुस्तकें मैं सन् २०१४ में गोवा स्थानांतरित हुई थी। मैं जब भी किसी नवीन स्थल में स्थानांतरित होती हूँ, तो जाने से पूर्व मैं उस स्थान के विषय में सम्पूर्ण जानकारी एकत्र करने का प्रयास करती हूँ। इसके लिए मैं उस स्थान से संबंधित अनेक पुस्तकें पढ़ती हूँ। गोवा स्थानांतरण से पूर्व मैंने इस लघु राज्य के विषय में कोई भी पुस्तक नहीं पढ़ी थी। एक छोटी यात्रा मार्गदर्शिका भी नहीं। इससे पूर्व मैं जब भी गोवा भ्रमण के लिए आई थी, केवल समुद्र तटों एवं उसके आसपास की दुकानों में ही अपना पूरा समय व्यतीत किया था।

गोवा आने के पश्चात मैंने इसकी सड़कों को छाना, दूर-सुदूर गांवों में घूमी, एक बड़े शहर से आकर एक छोटे नगर के जीवन में स्वयं को ढाला। मैंने गोवा के अनेक आयामों के विषय में जानकारी प्राप्त की। किन्तु गोवा के विषय में मेरी सर्वाधिक जानकारी मुझे उन पुस्तकों से प्राप्त हुई जो गोवा राज्य पर लिखी गई हैं। गोवा को सही मायने में जानने के लिए इन पुस्तकों को पढ़ना अत्यंत आवश्यक है। आईए मैं आपको गोवा पर आधारित कुछ उत्तम पुस्तकों के विषय में बताती हूँ-

गोवा पर कुछ अकाल्पनिक पुस्तकें

कैथरीना कक्कर द्वारा लिखित ‘मूविंग टू गोवा’

यह पुस्तक अमेजॉन भारत अथवा अमेजॉन अमेरिका से खरीद सकते हैं।

यूँ तो गोवा में आकर बसना अनेक लोगों के लिए किसी स्वप्न से कम नहीं है। सन् २०१४ में मुझे भी गोवा में आकर बसने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। मेरे गोवा में आकर बसने का समय एवं इस पुस्तक के प्रकाशन का समय लगभग एक ही था। इस पुस्तक में लिखे एक एक शब्द को मैंने भी अनुभव किया है।

यदि आप भी गोवा में रहना चाहते हैं तो गोवा के जीवन में अपने आप को ढालने के लिए जो मानसिक तैयारी की आवश्यकता है, उसे जानने के लिए यह पुस्तक अवश्य पढ़ें। गोवा के विषय में अनेक ऐसे तथ्य हैं जिन्हे केवल वही जानता है जो यहाँ आकर बसा है। जैसे, आप सदैव ही ‘बाहर वाले’ रहेंगे।

इस पुस्तक में लेखिका ने गोवा के अनेक आयामों का उल्लेख किया है जिन्हे आप एक पर्यटक के रूप में नहीं जान सकते। जैसे, गोवा के आंतरिक क्षेत्र, यहाँ के विभिन्न समुदाय, गोवा एवं इसकी भाषा के प्रति असीम प्रेम इत्यादि। इस पुस्तक के माध्यम से आप उन ‘बाहरी’ लोगों के जीवन में भी झाँक सकते हैं। यदि आप गोवा आकर बसना चाहते हैं तो वो आपका भावी जीवन भी हो सकता है ।

प्रजल साखरदांडे द्वारा लिखित ‘गोवा गोल्ड गोवा सिल्वर’

यह पुस्तक अमेजॉन भारत से खरीद सकते हैं।

डॉ. प्रजल साखरदांडे गोवा में इतिहास के सुप्रसिद्ध प्राध्यापक हैं। अपने २० वर्षों के शोध के उपरांत उन्होंने गोवा के इतिहास पर एक प्रामाणिक पुस्तक लिखी है। इस पुस्तक में उन्होंने गोवा के प्रागैतिहासिक काल से आधुनिक काल तक की यात्रा का वर्णन किया है। यह अत्यंत विस्तृत व व्यापक पुस्तक है जो ऐतिहासिक तथ्यों से परिपूर्ण है। उनमें अनेक ऐसे प्रामाणिक तथ्य हैं जिनके विषय में अधिक लोग नहीं जानते क्योंकि गोवा का लोकप्रिय इतिहास अधिकतर पुर्तगाली काल के चारों ओर ही सीमित है।

जिन्हे भी गोवा के प्राचीन, मध्यवर्गी एवं आधुनिक इतिहास को सूक्ष्मता से समझने में रुचि हो तो उनके लिए यह अति उत्तम पुस्तक है।

प्रा. डॉ. प्रजल साखरदांडे को अपनी पुस्तक के विषय में चर्चा करते सुनिए।

मारिया ऑरोरा कॉउटो की पुस्तक ‘गोवा – अ डॉटरस् स्टोरी’

यह पुस्तक अमेजॉन भारत अथवा अमेजॉन अमेरिका से खरीद सकते हैं।

मारिया ऑरोरा कॉउटो गोवा के संभ्रांत वर्ग से संबंध रखती हैं। उन्हे गोवा में बहुधा राजसी सम्मान से संबोधित किया जाता है। यद्यपि उनके माता-पिता गोवा के स्थायी निवासी थे, तथापि उनका अध्ययन कर्नाटक में हुआ तथा कुछ समय वे बिहार में भी रहीं।

गोवा की स्वतंत्रता एवं भारत के साथ एकीकरण के पश्चात, भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी की पत्नी के रूप में वे पुनः गोवा आयीं जब उनके पति का गोवा स्थानांतरण हुआ। उन्होंने इस पुस्तक के माध्यम से गोवा की बेटी के रूप में अपने विचार व्यक्त किये हैं। इसमें गोवा एवं उसके इतिहास के विषय में एक संभ्रांत ईसाई के विचार प्रस्तुत हैं। पक्षपात का आभास हो सकता है। फिर भी यह पढ़ने लायक पुस्तक है।

वेंडल रॉड्रिक्स द्वारा लिखित ‘ग्रीन रूम’

यह पुस्तक अमेजॉन भारत अथवा अमेजॉन अमेरिका से खरीद सकते हैं।

गोवा पर लिखी ग्रीन रूम वह प्रथम पुस्तक है जो मैंने गोवा पहुंचते से ही पढ़ी थी। मैं वेंडल रॉड्रिक्स की सराहना करती हूँ कि गोवा में रहते हुए ही उन्होंने फैशन के क्षेत्र में अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रसिद्धि प्राप्त की तथा अपना सफल व्यवसाय स्थापित किया। उन्होंने देश-विदेश की अनेक यात्राएं की हैं। उन्होंने ‘गोवा के पुत्र’ के रूप में यह पुस्तक लिखी है। उन्होंने इस पुस्तक में एक हिन्दू क्षत्रिय समुदाय तक अपनी जड़ें ढूंढकर प्रस्तुत की हैं। फैशन के क्षेत्र में व्यवसाय स्थापित करते हुए उनकी जो व्यक्तिगत यात्रा रही, उसके माध्यम से उन्होंने गोवा के विषय में चर्चा की है। यह पुस्तक मोटी अवश्य है किन्तु इसकी परख अत्यंत गहरी है।

‘द हिप्पी ट्रैल – अ हिस्ट्री’ – शरीफ जेमी एवं ब्रायन आयरलैंड

यह पुस्तक अमेजॉन भारत अथवा अमेजॉन अमेरिका से खरीद सकते हैं।

गोवा वह स्थान है जहां १९६० तथा १९७० के दशकों में हिप्पियों की कुप्रसिद्ध यात्रा समाप्त होती थी। उस समय अनेक हिप्पियों ने गोवा को अपना घर बनाया था तथा वे गोवा छोड़कर जाना नहीं चाहते थे। इस पुस्तक में दोनों लेखकों ने अंजुना के विशालतम नग्न वसाहत में अपने जीवन का उल्लेख करते हुए गोवा, विशेषतः अंजुना के विषय में चर्चा की है।

गोवा के उन गांवों में हिप्पियों का एक छोटा समुदाय अब भी निवास करता है। गोवा पर्यटन की जड़ें भी इस हिप्पी संस्कृति तक जाती हैं। हिप्पी समुदाय ने गोवा की छवि पर इतना प्रभाव डाला है कि गोवा के विषय में अनेक लोगों की यह धारणा अब भी बनी हुई है। इस पुस्तक में गोवा के अतिरिक्त इस हिप्पी यात्रा के अन्य स्थानों के विषय में भी उल्लेख किया गया है।

अनंत प्रियोलकर द्वारा लिखित ‘द गोवा इन्क्विज़िशन’

यह पुस्तक अमेजॉन भारत अथवा अमेजॉन अमेरिका से खरीद सकते हैं।

यह पुस्तक उन लोगों के लिए अत्यंत उपयोगी है जो गोवा के इतिहास के विषय में गंभीरता से अध्ययन करना चाहते हैं। इस पुस्तक में गोवा के पुर्तगाली शासनकाल के सर्वाधिक काले इतिहास का उल्लेख किया गया है। पुस्तक की सामग्री समकालीन भुक्तभोगियों से प्रत्यक्ष प्राप्त हुई है। जैसे, अभिलेखीय सामग्री, यात्रियों के संस्मरण, कैदियों के संस्मरण इत्यादि। मैंने इसे टुकड़ों टुकड़ों में पढ़ा है। यह गोवा के इतिहास पर अत्यंत उपयोगी संदर्भ पुस्तक है।

मारिओ डे मिरांडा की पुस्तकें

यह पुस्तक अमेजॉन भारत अथवा अमेजॉन अमेरिका से खरीद सकते हैं।

मारिओ मिरांडा गोवा के चिन्हक कलाकार हैं। उनके हास्यचित्र एवं व्यंगचित्र सम्पूर्ण राज्य में अनेक स्थानों पर चित्रित हैं। गोवा के अनेक पुस्तकों में भी उनके चित्रों का प्रयोग किया गया है। गोवा के जनजीवन पर आधारित उनके व्यंगचित्र बारीकियों से परिपूर्ण होते हैं। अनेक पुस्तकें उनकी यात्राओं पर हैं तो असंख्य पुस्तकें उनके हास्यचित्रों व व्यंगचित्रों पर हैं। अनेक पुस्तकों पर उनके चित्रों का प्रयोग किया गया है तो कई पुस्तकें उन पर भी लिखी गई हैं। आपकी जिसमें रुची हो आप वह पुस्तक पढ़ें।

और पढ़ें: सम्पूर्ण गोवा में मारिओ मिरांडा

‘गोवा एण्ड द ब्लू माउंटेनस्’ – रिचर्ड बर्टन

यह पुस्तक अमेजॉन भारत अथवा अमेजॉन अमेरिका से खरीद सकते हैं।

सन् १८५१ में प्रकाशित यह पुस्तक मेरी घरेलू पुस्तकालय में गत २० वर्षों से सहेज कर रखी हुई है। कामसूत्र का अंग्रेजी में अनुवाद करने वाले इस प्रसिद्ध लेखक द्वारा लिखित उनकी इस प्रथम पुस्तक को पढ़ना मेरे लिए अब भी शेष है। इसमें १९वीं. सदी में उनके द्वारा की गई यात्राओं के संस्मरण हैं। ऐसे यात्रा संस्मरण एक प्रकार से समय की मोहर हैं जो किसी भी गंतव्य की उस समयावधि की स्मृतियों को सदा के लिए अमर कर देते हैं। आशा करती हूँ कि मैं यह पुस्तक शीघ्र पढ़ पाऊँ।

गोवा पर दो अन्य प्रसिद्ध अकाल्पनीय पुस्तकें हैं, मनोहर शेट्टी द्वारा लिखित ‘फेरी क्रॉसिंग’ तथा ‘गोवा ट्रैवलस्’।

गोवा पर काल्पनिक पुस्तकें

‘टेरेसा’स् मैन एण्ड अदर स्टोरीस फ्रॉम  गोवा’ – दामोदर मौजो

यह पुस्तक अमेजॉन भारत अथवा अमेजॉन अमेरिका से खरीद सकते हैं।

दामोदर मौजो गोवा के सर्वाधिक प्रसिद्ध लेखकों में से एक हैं। वे साहित्य अकादमी पुरस्कार विजेता भी हैं। वे कोंकणी भाषा में लघु कथाएं एवं उपन्यास लिखते हैं। उनकी अधिकतर रचनाओं का अंग्रेजी में अनुवाद हो चुका है। उनकी कथाओं में गोवा की सुगंध होती है। गोवा के ग्रामीण भागों की जीवनी उनकी रचनाओं का विशेष तत्व है। लघु कथाओं का यह संग्रह आपको अनेक मानवी भावनाओं एवं दुविधाओं के उतार-चढ़ाव से लेकर जाएगा जो आप अपने दैनिक जीवन में जीते हैं। मानवी मुखौटों के पीछे के उनके असली चेहरे से आपको अवगत कराएगा। ये सभी भावुक कथाएं गोवा पर आधारित हैं।

किश्वर देसाई द्वारा रचित ‘द सी ऑफ इनोसेन्स’

यह पुस्तक अमेजॉन भारत  से खरीद सकते हैं।

नशा, जुआ तथा वेश्यावृत्ति गोवा पर्यटन पर आधारित अर्थव्यवस्था का काला सत्य है। स्थानीय नागरिक जितना चाहें अस्वीकार करें अथवा भर्त्सना करें, ये अस्तित्व में हैं। अपनी इस अप्रतिम रचना के द्वारा किश्वर देसाई आपको वित्तीय निवेशकों, स्थानीय अपराधी संगठनों तथा नेताओं द्वारा बुने जाल से परिचित कराते हैं जो गोवा के समुद्रतटों के भाग भी हैं। यह कहानी मन में गोवा के प्रति कुछ कड़वाहट ला सकती है किन्तु यह अत्यंत रोमांचक एवं सनसनीखेज कहानी है।

वेंडल रॉड्रिक्स द्वारा लिखित पोसकें

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आपने पोसकें यह शब्द कदाचित कभी नहीं सुना होगा। मुझे भी इसका अर्थ तब तक ज्ञात नहीं था जब तक मैंने यह पुस्तक पढ़ने के लिए नहीं ली थी। ये वे परित्यक्त बच्चे हैं जो गोवा के उच्चवर्गीय आलीशान भवनों में बड़े होते हैं तथा उनमें रहने वाले सम्पन्न परिवारों से विचित्र संबंध जोड़ते हैं। सत्य कथाओं पर आधारित यह पुस्तक गोवा के उस रूप को चित्रित करती है जिसके विषय में अधिकांश लोग नहीं जानते। यह एक छोटी सी पुस्तक है जिसके साथ गोवा के अनेक व्यंजनों की पाकविधि भी आती है। पाककला में रुचि रखने वालों को भी इस पुस्तक को पढ़ने का कारण मिल जाता है।

‘लेट मी टेल यू अबाउट क्विंटा’ – साविया वेगस

यह पुस्तक अमेजॉन भारत से खरीद सकते हैं।

यह गोवा के समाज की एक भयावह कथा है। गोवा के लोग किसी बाहरी व्यक्ति को कैसे आँकते हैं तथा कैसे उन्हे कठोरता से बाहरी ही आभास कराते रहते हैं, इसके विषय में यह एक अंदरूनी दृष्टिकोण है। इसमें रहस्यमय एवं असाधारण दृष्टिकोण भी हैं जो प्राचीन दक्षिण गोवा के ग्रामीण परिवेश में रची इस कहानी को पहेली की एक परत से ढँक देते हैं। यह कथा परिवर्तन के विषय में चर्चा करती है। गोवा वासियों के जीवन में व्यवस्था परिवर्तन का प्रभाव दर्शाती है। गोवा के गांवों में रहने की देशी एवं विदेशी चाह का उन पर जो प्रभाव पड़ रहा है, उस विषय को भी यह कथा छूती है। यह किसी भीतरी व्यक्ति की विचारधारा पर आधारित कथा है।

‘इन्साइड/आउट: न्यू राइटिंग फ्रॉम गोवा – ऐन एंथोलॉजी’

यह पुस्तक अमेजॉन भारत अथवा अमेजॉन अमेरिका से खरीद सकते हैं।

गोवा के प्रकाशकों द्वारा प्रकाशित यह काल्पनिक एवं अकाल्पनिक लेखनों का संग्रह है जो गोवा पर आधारित हैं। इसमें गोवावासियों, अल्प-कालीन गोवावासियों, गोवा में नवीन रहवासियों तथा उन लोगों पर आधारित कथाएं हैं जो गोवा छोड़कर जा चुके हैं। यह एक खिचड़ी के समान है जिसमें अगली कथा के विषय में तनिक भर भी अनुमान नहीं रहता है। कुछ कथाएं गोवा की संस्कृति में गहरी गड़ी हुई हैं तो कुछ आपको भूतकाल में ले जाती हैं। कुछ कहानियाँ भीतरी दृष्टिकोण प्रस्तुत करती हैं। यह खिचड़ी अत्यंत रोचक है।

जेस्सिका फालेरो द्वारा लिखित ‘आफ्टरलाइफ – घोस्ट स्टोरीस फ्रॉम गोवा’

यह पुस्तक अमेजॉन से खरीद सकते हैं।

यह पुस्तक इससे उत्तम लिखी जा सकती थी। फिर भी यह आपके समक्ष गोवा की भुतहा कथाएं लेकर आती है। विश्वास कीजिए, कहानियाँ अनेक हैं।

क्या आप गोवा पर आधारित अन्य किसी अप्रतिम पुस्तक के विषय में जानते हैं जो मैं पढ़ सकती हूँ? निम्न टिप्पणी खंड में उसका उल्लेख अवश्य कीजिए।

अमेजॉन के सहयोगी के रूप में इंडिटेलस् आपकी खरीदी से कमाता है। किन्तु इससे आपके खर्चे पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा।

अनुवाद: मधुमिता ताम्हणे

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गोस्वामी तुलसीदास कृत रामचरितमानस पठन के ५ मुख्य उद्देश्य https://inditales.com/hindi/tulsidas-ramcharitmanas-kyun-padhen/ https://inditales.com/hindi/tulsidas-ramcharitmanas-kyun-padhen/#comments Wed, 02 Nov 2022 02:30:08 +0000 https://inditales.com/hindi/?p=2850

मेरा ध्येय है कि मैं सदा मूल भारतीय ग्रंथों का ही पठन करूँ। इसी कड़ी में मैंने गोस्वामी तुलसीदास द्वारा रचित रामचरितमानस के पठन का निश्चय किया। हम सब जानते हैं कि भारत के दो प्रमुख महाकाव्य, रामायण एवं महाभारत पर असंख्य व्याख्याएं, टिप्पणियाँ तथा व्युत्पन्न रचनाएँ प्रकाशित की गयी हैं। इसी कारण मैंने सर्वप्रथम […]

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मेरा ध्येय है कि मैं सदा मूल भारतीय ग्रंथों का ही पठन करूँ। इसी कड़ी में मैंने गोस्वामी तुलसीदास द्वारा रचित रामचरितमानस के पठन का निश्चय किया। हम सब जानते हैं कि भारत के दो प्रमुख महाकाव्य, रामायण एवं महाभारत पर असंख्य व्याख्याएं, टिप्पणियाँ तथा व्युत्पन्न रचनाएँ प्रकाशित की गयी हैं। इसी कारण मैंने सर्वप्रथम कालिदास की रघुवंशम् से मेरा पठन आरम्भ किया। इसके पश्चात मैंने गोस्वामी तुलसीदास द्वारा रचित रामचरितमानस के पठन का निश्चय किया। इसका मुख्य कारण था कि भले ही यह अत्यंत विस्तृत ग्रन्थ है, मैंने अनुमान लगाया कि इसका पठन अपेक्षाकृत सरल होगा।

गोस्वामी तुलसीदास रामचरितमानस पठन के ५ मुख्य उद्देश्य
गोस्वामी तुलसीदास रामचरितमानस पठन के ५ मुख्य उद्देश्य

रामचरितमानस में गोस्वामी तुलसीदास जी ने अवधी भाषा का प्रयोग किया है। अवधी भाषा से स्वयं को अभ्यस्त करने में मुझे कुछ समय लगा। ११०० पृष्ठों के रामचरितमानस के पठन के आरंभिक चरण में मेरी पठन की गति अत्यंत धीमी थी। जैसे आरम्भ में मैं एक दिवस में केवल एक अथवा दो पृष्ठ ही पठन कर पाती थी। किन्तु मैंने रामचरितमानस पठन में विराम लगने नहीं दिया। शनैः शनैः मैं अवधी भाषा से अभ्यस्त होने लगी तथा मेरी पठन गति में भी वृद्धि होने लगी। कुछ दिवसों पश्चात् मैं औसतन १० पृष्ठ प्रतिदिन पठन करने लगी थी। एक यात्रा संस्करण लेखिका होने के कारण यात्राओं एवं संस्करण लेखन के लिए भी मुझे समय निर्दिष्ट करना पड़ता है। अन्य सामाजिक गतिविधियों में भी योगदान देने का मेरा सतत प्रयास रहता है। अतः, प्रायः अपनी सभी गतिविधियों को यथावत रखते हुए मुझे ११०० पृष्ठों के रामचरितमानस के पठन में लगभग ६ मास का समय लगा।

मूल रामचरितमानस ग्रन्थ के पठन के पश्चात मैंने जो अनुभव प्राप्त किया, वह आपसे साझा कर रही हूँ।

गोस्वामी तुलसीदास द्वारा रचित मूल रामचरितमानस पठन

यदि मेरे लिए संभव है तो आपके लिए भी संभव है।

मेरे पास गीता प्रेस द्वारा प्रकाशित रामचरितमानस ग्रन्थ है जिसमें ११०० पृष्ठ हैं। इसमें अवधी भाषा का प्रयोग किया गया है। साथ ही कुछ स्थानों पर संस्कृत भाषा में श्लोक इत्यादि हैं। उन सभी का क्रमशः हिन्दी में अनुवाद किया गया है। आरम्भ में मुझे यह एक कठिन कार्य प्रतीत हुआ।

ग्रन्थ आरम्भ करने से पूर्व मैंने इसे पूर्ण करने के लिए ३ वर्षों से अधिक समय का अनुमान लगाया था। किन्तु जैसे ही अवधी भाषा में मेरी प्रवीणता में वृद्धि होने लगी, उसका पठन शनैः शनैः सरल प्रतीत होने लगा। पठन गति में वृद्धि होने लगी। मैं प्रतिदिन प्रातः शीघ्र उठती, स्नानादि के पश्चात पृष्ठों की नियत संख्या का पठन करती, उसके पश्चात ही अपने दैनिक व्यवसायिक कार्यों का आरम्भ करती थी।

जो पाठक हिन्दी भाषा में धाराप्रवाह पठन करते हैं, उन्हें अवधी कदापि कठिन प्रतीत नहीं होगी। अवधी भाषा में कुछ शब्दों के अर्थ समझ में आ जाएँ तथा उनके समान्तर शब्दों का प्रयोग भी जान जाएँ तो आपको पुनः पुनः शब्दकोष के पृष्ठ पलटने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी।

अपने अनेक व्यवसायिक क्रियाकलापों के साथ यदि मैं इसका पठन कर सकती हूँ तो आप भी कर सकते हैं। यदि आपकी इच्छाशक्ति दृढ़ है तो आप इसके लिए समय अवश्य निकाल सकते हैं।

और पढ़ें: मीनाक्षी जैन द्वारा लिखित राम एवं अयोध्या

यह केवल श्रीराम की एक कथा नहीं है

यद्यपि रामचरितमानस में श्री राम की कथा का प्रमुखता से उल्लेख किया गया है, तथापि यह ग्रन्थ कथा के विभिन्न आयामों को विस्तार से दर्शाता है। भगवान राम के जन्म से पूर्व भगवान शिव एवं माता पार्वती के विवाह का विस्तृत वर्णन किया गया है। ऐसी अनेक घटनाओं  का उल्लेख है जिनका श्रीराम की कथा से सीधा सम्बन्ध नहीं है। जैसे भगवान विष्णु द्वारा अयोध्या में भगवान राम के रूप में जन्म लेने की पृष्ठभूमि में स्थित विभिन्न कारण।

राम-जानकी विवाह की कथा में राम एवं लक्ष्मण के संबंधों पर प्रमुखता से ध्यान केन्द्रित किया गया है। राम-भरत मिलाप की कथा भरत के चरित्र को उजागर करती है तथा उसी पर ध्यान केन्द्रित करती है। सुन्दर काण्ड में गोस्वामीजी ने हनुमान जी एवं भगवान राम के प्रति उनके प्रेम से हमें अवगत कराया है। लंका नरेश रावण की स्वर्ण नगरी की भव्यता का विस्तृत रूप से उल्लेख किया है।

गोस्वामी तुलसीदास जी ने रामचरितमानस के विभिन्न पात्रों के चरित्र को इतनी विलक्षणता से चित्रित किया है कि हम सहज रूप से उनके संबंध हमारे आसपास के व्यक्तिमत्वों से जोड़ने लगते हैं।

जब भगवान राम लंका पर विजय प्राप्त कर सीता माता के साथ अयोध्या वापिस आते हैं तथा राम राज्य की स्थापना करते हैं, वहीं रामचरितमानस की कथा समाप्त होती है। मेरे लिए सम्पूर्ण रामचरितमानस का सर्वाधिक मनमोहक भाग है, राम राज्य का उल्लेख। यह उस आदर्श राज्य की कल्पना है जब सृष्टि के प्रत्येक तत्व का अन्य तत्वों से पूर्ण सामंजस्य होता है। अपने सुन्दर दोहों व छंदों द्वारा उन्होंने राम राज्य की अप्रतिम संकल्पना दी जिसके अनुसार – यदि प्रत्येक मनुष्य अपने धर्म एवं वर्ण के अनुसार कृति करे तब यह सम्पूर्ण विश्व भय, रोगों एवं दुखों से मुक्त हो जाएगा। मेरे अनुमान से राम राज्य की संकल्पना पर एक स्वतन्त्र एवं विस्तृत संस्करण लिखा जाना चाहिए।

और पढ़ें: अयोध्या की तस्वीरें – शारदा दुबे

रामचरितमानस में मिथकों का खंडन

हमने अनेक सूत्रों द्वारा रामायण की कथाओं को सुना तथा देखा है। जिसे रामायण के पात्रों का जैसा चरित्र उचित जान पडा, उसने उसका वैसा वर्णन किया है। इसके कारण पाठकों एवं दर्शकों के मन-मस्तिष्क में अनेक मिथकों ने जन्म लिया है। मैं भी उनसे अछूती नहीं थी। किन्तु जब मैंने रामचरितमानस का मूल ग्रन्थ पढ़ा, मेरे मस्तिष्क में घर कर बैठे अनेक मिथकों का खंडन हो गया। जैसे रामचरितमानस के अरण्य काण्ड में, जहां से सीता माता का अपहरण किया गया था, वहाँ लक्ष्मण रेखा का कोई उल्लेख नहीं किया गया है। लक्ष्मण केवल आसपास के वृक्षों से निवेदन करते हैं कि वे उनकी अनुपस्थिति में सीता माता का ध्यान रखें।

लक्षमण रेखा के विषय में लंका काण्ड में मंदोदरी ने केवल सरसरी रूप से उल्लेख किया है जब वे रावण को उलाहना देते हुए कहती हैं कि आपने लक्षमण द्वारा खींची गयी रेखा का उल्लंघन किया है तो अब राम का सामना कैसे करोगे? लक्ष्मण रेखा शत्रुओं अथवा अवांछित तत्वों द्वारा ना लांघने के लिए खींची गयी थी, ना कि सीता के लिए।

रामचरित मानस के इस संस्करण में सीता माता के अयोध्या से निष्कासन की कोई कथा नहीं है। यहाँ तक कि लव व कुश के जन्म का उल्लेख भी एक-चौथाई दोहे में कर दिया गया है। राम द्वारा सरयू नदी में समाधि लेने का भी कहीं उल्लेख नहीं है।

जब राजा दशरथ की तीनों रानियाँ राम से भेंट करने वन में जाती हैं तब उन्हें देखकर राम को यह कदापि ज्ञात नहीं होता है कि पिता राजा दशरथ का निधन हो गया है। विधवा, इस शब्द का कहीं उल्लेख नहीं है। उन्हें सदा रानी अथवा माता से संबोधित किया गया है।

और पढ़ें: बिठूर – गंगा किनारे ब्रह्मा एवं वाल्मीकि की भूमि

संवादों द्वारा कथाकथन

भारतीय ग्रंथों को संवादों तथा वार्तालाप के रूप में लिखा गया है। रामचरितमानस में भी श्री राम की कथा शिव एवं पार्वती के मध्य तथा काक भुशुण्डी एवं गरुड़ के मध्य संवादों के रूप में रचित है। गोस्वामी तुलसीदास स्वयं भी यदा-कदा अपनी उपस्थिति दर्शा देते हैं। इनके अतिरिक्त विभिन्न आश्रमों में ऋषियों एवं उनके शिष्यों के मध्य हुए संवाद भी हैं।

राम, लक्ष्मण एवं सीता के पंचवटी आश्रय काल में राम एवं लक्षमण के मध्य दार्शनिक विषयों पर भी संवाद होते थे। जैसे, माया क्या है? जब राम एवं लक्षमण किष्किन्धा में वर्षाऋतू के समाप्त होने की प्रतीक्षा कर रहे थे तब राम को स्वयं से संवाद साधते हुए, ऋतुओं की तुलना शासनकला से करते दर्शाया गया है।

रामचरितमानस के अंतिम चरण में काक भुशुण्डी का एक दीर्घ प्रवचन है जिसमें वे कथा को समाप्त करते हुए पाठकों को शिक्षाप्रद सन्देश देते हैं।

और पढ़ें: Actors, Pilgrims, Kings and Gods – The Ramlila of Ramnagar by Anuradha Kapur

भारतीय संस्कृति की सूक्ष्मताएँ

रामचरितमानस की भाषा में भारतीय संस्कृति का सत्व समाया हुआ है। उसमें भारतीय संस्कृति की सूक्ष्मताएँ सन्निहित हैं। जैसे, जब नाविक केवट भगवान राम, सीता माता एवं लक्षमण को अपनी नौका में बिठाकर गंगा पार कराते हैं, तब सीता माता केवट को अपनी अंगूठी देकर उसके श्रम का भुगतान करने का प्रयास करती हैं। केवट यह कहकर अंगूठी लेने से मना कर देते हैं, “मैं भी केवट, तुम भी केवट, कैसे लूं तेरी उतराई”।

केवट कहते हैं कि हे राम जिस प्रकार मैं गंगा पार कराता हूँ, आप भवसागर पार कराते हैं। एक केवट दूसरे केवट से भुगतान कैसे ले सकता है? वैसे भी शुल्क गंतव्य पर पहुंचाने का होता है। हमसे सामान्यतः नौका पर चढ़ने से पूर्व ही शुल्क लिया जाया है, भले ही हम वहाँ पहुंचे अथवा नहीं।

और पढ़ें: In search of Sita by Malashri Lal & Namita Gokhale

सदैव मूल रामचरितमानस का ही पठन क्यों करें?

विश्व में रामायण के अनेक संस्करण हैं तथा असंख्य पुनःकथन किये गए हैं। वस्तुतः, गोस्वामी तुलसीदास का रामचरितमानस भी प्राचीन वाल्मीकि रामायण का १७वी शताब्दी का पुनःकथन है। आशा है कि प्राचीन वाल्मीकि रामायण के पठन का मुहूर्त भी मुझे शीघ्र प्राप्त होगा।

रामायण की कथा की अनेक परतें हैं। राम अवतार की कथा एक मुखावरण है जिसके द्वारा मानव चरित्र के गहन समझ को पाठक तक पहुँचाया गया है। प्रत्येक पाठक इसे अपने दृष्टिकोण से पठन करता है। यही भारतीय ग्रंथों का वैशिष्ठ्य है। आप उन्हें अनेक दृष्टिकोणों से पठन कर सकते हैं तथा समझ सकते हैं। एक दृष्टिकोण ऐसा है जो उस पर कदापि लागू नहीं होता है, वह है ओछापन।

रामायण को जिस प्रकार लिखा गया है अथवा कहा गया है, उसे वैसे ही पठन करना तथा अपने स्वयं के निष्कर्ष निकालना महत्वपूर्ण है। इसीलिए मूल ग्रन्थ का पठन अत्यावश्यक होता है जो बिना किसी पक्षपात एवं निर्णय के घटनाओं को अपने मूल रूप में आपके समक्ष प्रस्तुत करता है.

आईये गोस्वामी तुलसीदास के रामचरितमानस का पठन करें।

गोस्वामी तुलसीदास का रामचरितमानस आप Amazon.In से ले सकते हैं अथवा Kindle Book में पढ़ सकते हैं।

यह स्थल Amazon का सहायक है। उपरोक्त संकेत द्वारा आप जो भी पुस्तकें क्रय करेंगे, उसका कुछ प्रतिशत धनार्जन इस स्थल को प्राप्त होने की संभावना है। किन्तु इससे आपके क्रय मूल्य में कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा।

अनुवाद: मधुमिता ताम्हणे

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राहुल सांकृत्यायन रचित घुमक्कड़ स्वामी – यात्रा साहित्य https://inditales.com/hindi/ghumakkad-swami-rahul-sankrityayan-samiksha/ https://inditales.com/hindi/ghumakkad-swami-rahul-sankrityayan-samiksha/#comments Wed, 23 Dec 2020 02:30:41 +0000 https://inditales.com/hindi/?p=2099

श्री राहुल सांकृत्यायन द्वारा लिखित पुस्तक “घुमक्कड़ स्वामी” एक भ्रमणप्रिय साधू की कथा है जिसने उत्तरी भारत की लम्बाई तथा चौड़ाई नापी है। यह उस घुमक्कड़ी साधक की आत्मकथा है जिसने भारत के धार्मिक भूगोल को खंगाला है। जहां एक ओर कैलाश मानसरोवर की यात्रा की, वहीं कई पंथों को जानने हेतु समय समय पर […]

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श्री राहुल सांकृत्यायन द्वारा लिखित पुस्तक “घुमक्कड़ स्वामी” एक भ्रमणप्रिय साधू की कथा है जिसने उत्तरी भारत की लम्बाई तथा चौड़ाई नापी है। यह उस घुमक्कड़ी साधक की आत्मकथा है जिसने भारत के धार्मिक भूगोल को खंगाला है। जहां एक ओर कैलाश मानसरोवर की यात्रा की, वहीं कई पंथों को जानने हेतु समय समय पर उन धर्मों का पालन भी किया। वास्तव में वह भारत के अध्यात्मिक नक़्शे में स्वयं हेतु उपयुक्त स्थान की खोज कर रहा है। घुमक्कड़ योगीयों के समुदायों में स्वयं को सम्मिलित करते हुए उसने योग का मार्ग अपनाया है। उसे आयुर्वेद में भी महारथ प्राप्त है तथा वह प्रायः औषधिक वनस्पतियों की खोज में भ्रमण करता रहता है। वनस्पतियों पर शोध करने के लिए कई प्रयोगशालाएं भी स्थापित की हैं। अंततः उसने आयुर्वेद औषधियां बनाने हेतु एक निजी उद्योगिक इकाई भी स्थापित की है। निजी जीवन में सांसारिक दायित्वों का पालन करते हुए उसने विवाह भी किया तथा पत्नी संग सुखी जीवन व्यतीत किया।

राहुल सांकृत्यायन रचित घुमक्कड़ स्वामी
राहुल सांकृत्यायन रचित घुमक्कड़ स्वामी

उपरोक्त तथ्य जो मैंने आपके समक्ष प्रस्तुत किया वह इस पुस्तक में घुमक्कड़ स्वामी द्वारा कही गयी कहानी की रूपरेखा है। घुमक्कड़ स्वामी एक महाकथा है जो स्वामी द्वारा दर्शन किये गए स्थलों पर आधारित कथाओं से निर्मित है। इस पुस्तक का कथानक १९वी. से २०वी. शताब्दी के मध्य काल से सम्बन्ध रखता है। चूंकि कथाएं लगभग १०० वर्ष पूर्व के सामाजिक परिवेश से सम्बन्ध रखती हैं, यह हमारे लिए समकालीन समाज का सुन्दर चित्रण है। हमारे भारतवर्ष ने पिछले १०० वर्षों में बहुत कुछ देखा व भोगा है। वह चाहे स्वतंत्रता प्राप्ति हो अथवा देश का बंटवारा। यह घटनाएँ आज भी हमारे देश तथा देशवासियों हेतु अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। कदाचित इसीलिये यह पुस्तक जनमानस को भावनात्मक स्तर पर झकझोरती है। राहुल सांकृत्यायन एक अनुभवी यात्रा संस्मरण लेखक हैं। अतः कथा के नायक स्वामी को वे जहां जहां भी भ्रमण हेतु ले जाते हैं, वहां के इतिहास को पूर्णतया जानने का प्रयत्न करते हैं। उनके संस्मरणों द्वारा हमें भी उन स्थलों के नामों की व्युत्पत्ति, नगर से सम्बंधित रोचक पहलुओं, वहां के परिदृश्य तथा विभिन्न आयामों को सूक्ष्मता से जानने का अवसर मिलता है।

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राहुल सांकृत्यायन की इस पुस्तक की एक उपलब्धि यह भी है कि यह साधु-सन्यासियों के जनजीवन से हमारा परिचय कराती है। ये साधु-सन्यासी मोह-माया तथा समाज का त्याग करने के पश्चात भी मौलिक आवश्यकताओं के लिए इस समाज पर ही निर्भर रहते हैं। भले ही उनकी इच्छा वनों में जाकर ध्यान लगाने की हो, किन्तु उदर-भरण हेतु भिक्षा माँगने उन्हें किसी के घर जाना ही पड़ता है। अतः बस्ती से विरक्त रहकर भी उन्हें बस्ती के समीप ही बसेरा करना पड़ता है ताकि आसानी से भोजन प्राप्त कर सकें। मिथ्याएं किस प्रकार से उत्पन्न होती हैं, इस पुस्तक से हमें यह भी जानकारी प्राप्त होती है। कुछ साधु-सन्यासी समूहों में एकत्र होकर किस प्रकार सांकेतिक भाषाओं का उपयोग करते हुए अपना गुट बनाते हैं, लेखक ने इसकी भलीभांति व्याख्या की है। हरिदास स्वामी की जीवनी द्वारा लेखक हमें भिन्न भिन्न प्रकार के साधु तथा उनके कार्यप्रणालियों के विषय में बताते हैं। पर्याप्त समय कई साधुओं के सानिध्य में व्यतीत करते हुए स्वामी इन साधू-सन्यासियों के विषय में अतरंग जानकारी प्राप्त करता है।

इस पुस्तक को पढ़ते समय मुझे २१वी. सदी के उन भव्य आश्रमों का भी स्मरण हो आया जो कुछ समय पूर्व सर्वत्र चर्चा का विषय थे। प्राप्त जानकारी के अनुसार इन आश्रमों की विलासिता तुलना से परे है।

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साधू-सन्यासियों का विषय पुस्तक के पूर्वार्ध तक ही सीमित है। कथा के उत्तरार्ध में लेखक ने अधिकांशतः आयुर्वेद तथा औषधियों के विषय में चर्चा की है क्योंकि कथानक का नायक, स्वामी आयुर्वेद का एक व्यवसाय स्थापित कर रहा है। इस उपक्रम हेतु उसे निवेशकों को खोजने में अधिक असुविधा नहीं होती। इससे मुझे आयुर्वेद के क्षेत्र में आये कई आधुनिक उपक्रमों का स्मरण हो आया।

उपरोक्त सर्व आध्यात्मिक अनुभवों का आनंद उठाने के पश्चात स्वामी को एक साथी की चाह उत्पन्न होती है जो प्रत्येक सुख-दुःख में उनका साथ दे तथा जिसके संग वे अपना अनुभव साझा कर सकें। यह मुझे अत्यंत रोचक प्रतीत हुआ। आयु के उत्तरार्ध में स्वामी ने विवाह करने का निश्चय किया। राहुल सांकृत्यायन ने यह पुस्तक उस समय लिखी थी जब देश में राष्ट्रवादी आन्दोलन चल रहा था। अतः उन्होंने कथा में स्वामी का विवाह एक युवा विधवा से कराया जो स्वामी की आदर्श पत्नी बनकर उनका साथ देती है। अब इसे उल्टा जीवन जीना कहा जाय अथवा आध्यात्मिक खोज की निरर्थकता। इसका उत्तर खोजने का उत्तरदायित्व मैं आप पर ही छोड़ती हूँ।

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राहुल सांकृत्यायन ने जिस प्रकार प्रत्येक क्षेत्र की स्थानीय जानकारी को अपनी कथा में बुना है, यह मुझे अचंभित कर देता है। फिर वह प्रत्येक क्षेत्र के पेड़-पौधे तथा जीव-जंतु हों अथवा उस क्षेत्र में उगने वाली वनस्पतियाँ व वनौषधियाँ। प्रत्येक क्षेत्र का जनजीवन हो अथवा उनका व्यवसाय। यही अनेक तथ्य एकत्र होकर किसी भी स्थान को परिभाषित करते हैं। इस पुस्तक ने ना केवल प्रत्येक स्थान का भौगोलिक चित्रण किया है, अपितु वहां के जीवन को सूक्षमता से जिया है।

लेखक का मानना है कि प्रत्येक मनुष्य के भीतर एक पर्यटक होता है। उनकी यह पुस्तक हमारी इसी घुमक्कड़ी को बाहर लाती है। उन्होंने एक घुमक्कड़ के जीवन को सफलतापूर्वक सजीव किया है। ठीक मीराबाई के इस भजन की तरह, ‘करना फकीरी फिर क्या दिलगीरी’। किसी दिन आवश्यकता से अधिक भोजन प्राप्त हो जाता है, वहीं किसी दिन अल्पाहार पर ही संतोष करना पड़ता है। चूंकि मैं भी यात्रा संस्मरण लिखती हूँ, इस संस्मरण में वर्णित कई घटनाओं को मैंने स्वयं जिया है।

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‘घुमक्कड़ स्वामी’, हिंदी में लिखित,१०० पन्नों की यह एक छोटी सी पुस्तक है। लिखावट अपेक्षाकृत अत्यंत सूक्ष्म है तथा भाषा क्लिष्ट। वैसे भी राहुल सांकृत्यायन की भाषा सदैव उच्च स्तर की होती है। अतः इस पुस्तक को पढ़ना बाएं हाथ का खेल कदापि नहीं है। मैंने इस पुस्तक के अंग्रेजी संस्करण को खोजने का अनेक प्रयत्न किया किन्तु सफलता हाथ नहीं लगी। यदि आप इस पुस्तक के अंग्रेजी संस्करण के विषय में कोई भी जानकारी रखते हैं तो कृपया मुझे अवश्य बताएं।

शुद्ध हिंदी वाचन में रूचि रखने वाले पाठक यह पुस्तक अवश्य पढ़ें।

अनुवाद: मधुमिता ताम्हणे

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प्राचीन संस्कृत साहित्य में यात्रा से जुड़ी कहावतें अर्थ सहित https://inditales.com/hindi/sanskrit-sahitya-yatra/ https://inditales.com/hindi/sanskrit-sahitya-yatra/#respond Wed, 01 Jan 2020 02:30:05 +0000 https://inditales.com/hindi/?p=1727

भारत में प्रायः यात्राओं एवं यात्रा अनुभवों का अत्यंत महत्व रहा है। संस्कृत साहित्य में यात्रा का उल्लेख मिलता है और कई यात्रा संबंधी कहावतें इसका जीवंत उदाहरण हैं। इनमें हमारे उन ऋषि-मुनियों की चिरयुगीन बुद्धिमत्ता का समावेश है जो अब तक के सर्वश्रेष्ठ यात्री हैं। जब हमारे मस्तिष्क का भिन्न भिन्न अनुभवों से सामना […]

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भारत में प्रायः यात्राओं एवं यात्रा अनुभवों का अत्यंत महत्व रहा है। संस्कृत साहित्य में यात्रा का उल्लेख मिलता है और कई यात्रा संबंधी कहावतें इसका जीवंत उदाहरण हैं। इनमें हमारे उन ऋषि-मुनियों की चिरयुगीन बुद्धिमत्ता का समावेश है जो अब तक के सर्वश्रेष्ठ यात्री हैं।

संस्कृत साहित्य में यात्रा विवरण
संस्कृत साहित्य में यात्रा

जब हमारे मस्तिष्क का भिन्न भिन्न अनुभवों से सामना होता है तभी हमारी बुद्धि का विकास होता है। ऐसे ही अनेक अनुभवों को प्राप्त करने का सर्वोत्तम साधन है यात्रा। हमारे पूर्वजों को यात्रा के महत्व का पूर्ण आभास था। उन्होंने कई शास्त्रों एवं पुस्तकों में यात्रा की आवश्यकता की भरपूर अनुशंसा की है।

ऋषि-मुनियों ने मानव के सर्वांगीण विकास हेतु यात्रा की आवश्यकता का उल्लेख इन शास्त्रों एवं पुस्तकों में कहावतों के रूप में की है। ये यात्रा संबंधी कहावतें संस्कृत भाषा में की गई हैं। आईए प्राचीन युग के इन यात्रा संबंधी संस्कृत कथनों को जानने एवं समझने का प्रयत्न करते हैं। सर्वप्रथम देखते हैं संस्कृत भाषा में यात्रा से संबंधित कितने शब्द हैं।

यात्रा से संबंधित प्रसिद्ध संस्कृत शब्द

यात्रा (YATRA) – TO TRAVEL – यात्रा करना
यात्री (YATRI) – TRAVELER – यात्रा करने वाला अथवा वाली
पर्यटक (PARYATAKA) – TOURIST – यात्रा करने वाला अथवा वाली
पर्यटन ( PARYATAN) – TOURISM – यात्रा करना
पथिक (PATHIKA) – THAT ON THE ROAD – सड़क मार्ग पर चलाने वाला अथवा वाली
प्रवासिन् (PRAVASIN) – LIVING IN ANOTHER COUNTRY – परदेश में रहने वाला अथवा वाली

इनके अतिरिक्त भी यात्रा से संबंधित अनेक शब्द हैं।

और पढ़ें – यात्रा संबंधी कहावतें जो मैंने अपनी यात्राओं से सीखी

संस्कृत साहित्य में यात्रा संबंधी सद्-वचन

विभिन्न संस्कृत शास्त्रों में उल्लेख किए गए कुछ सद्-वचन तथा एक यात्री के लिए उनके क्या संदर्भ हैं, आईए जानते हैं:

१. पर्यटन् पृथिवीं सर्वां, गुणान्वेषणतत्परः।
(पंचतंत्र)
जो गुणों की खोज में अग्रसर हैं, वे सम्पूर्ण पृथ्वी का भ्रमण करते हैं।
Those who wish to seek virtues travel the entire world.

२. हदये सुखसम्पत्तिः पदे पर्यटनं फलम्।
(सर्व सिद्धांत संग्रह)
उनके हृदय में सुख व संपत्ती तथा पैरों में पर्यटन होता है।
They have happiness and wealth in their hearts and traveling in their feet.

३. चरैवेति चरैवेति॥
(ऐतरेय ब्राम्हण ७.१५)
चलते रहो, चलते रहो…
Keep moving, keep moving…

४. यस्मिन्प्रचीर्णे च पुनश्चरन्ति; स वै श्रेष्ठो गच्छत यत्र कामः।
(महाभारत, अश्वमेध पर्व ७-२३)
जो व्यक्ति उनके समक्ष आने वाले हर प्रकार के मार्ग पर चलने के लिए तत्पर हैं, वे श्रेष्ठ होते हैं तथा उनको अभीष्ट प्राप्त होता है।
Those who walk on what has come forth are indeed great and get what they desire.

५. चरन्ति वसुधां कृत्स्नां वावदूका बहुश्रुताः।
(महाभारत, शांति पर्व १९-२४)
बुद्धिमान और वाक्-कुशल व्यक्ति, सारी पृथ्वी का भ्रमण करते हैं।
Intelligent and eloquent people roam around the whole world.

६. चरन्मार्गान्विजानाति ।
(महाभारत, आदि पर्व १३३-२३)
पथिक व्यक्ति को मार्ग का ज्ञान स्वयं ही हो जाता है।
A wanderer (eventually) knows the path.

७. आस्ते भग आसीनस्य, ऊध्वर्स्तिष्ठति तिष्ठतः।
शेते निपद्यमानस्य, चराति चरतो भगः।
(ऐतरेय ब्राम्हण ७.१५)
ठहरे हुए व्यक्ति का सौभाग्य भी ठहर जाता है। उठ खड़े होने वाले व्यक्ति का सौभाग्य उठ खड़ा हो जाता है तथा सुप्त व्यक्ति का सौभाग्य भी सुप्त हो जाता है। उसी प्रकार गतिमान व्यक्ति का सौभाग्य उसके साथ- साथ चल पड़ता है अर्थात उसके सौभाग्य में भी वृद्धि होने लगती है।
The fate of a person who sits, also seats. The fate of a standing person also stands and the fate of a sleeping person also sleeps. But the fate of a person who walks (travels) also walks (grows) along.

८. चरन् वै मधु विन्दति, चरन् स्वादुमुदुम्बरम्।
सूयर्स्य पश्य श्रेमाणं, यो न तन्द्रयते चरन्।
(ऐतरेय ब्राम्हण ७.१५)
जो व्यक्ति सदा श्रमशील एवं गतिशील हैं, वही सदा मधुपान (शहद/ अमृत / परिश्रम का सुफल) करते हैं। कर्मयोगी को सदा श्रेष्ठ कर्म का श्रेष्ठ परिणाम मिलता है। सूर्य की कर्मठता तथा सृजन शीलता देखिए, क्षण भर भी जो दूसरों के कल्याण के लिये अपने श्रम से विमुख नहीं है।
The one who travels enjoys the nectar. The same enjoys sweet fruits. Look at the efforts of lord Surya; he is never tired of walking.

९. अन्योन्यवीर्यनिकषाः पुरुषा भ्रमन्ति।
(उरुभंग 2)
एक दूसरे की पहचान जो वीरता के मापदंड से करते है, वे भ्रमण करते हैं।
Those who test each-other based on their valor, travel.

१०. दुःखं हन्तुं सुखं प्राप्तुं ते भ्रमन्ति मुधाम्बरे।
(बोधिचर्यवतार)
वे आकाश में सम्मोहित से, दुःख भुलाने के लिये तथा सुख की प्राप्ति के लिये घूमते (उड़ते) है (हमारे समान)।
They roam madly in space, to forget the grief, and to attain happiness (just like us).

११. हृदि श्रीर्मस्तके राज्य पादे पर्यटनं फलम्।
(सर्व-सिद्धांत-संग्रह)
उनके मन में संपत्ति, सिर पर राज्य का दायित्व तथा पैरों में पर्यटन होता है।
They have wealth in heart, kingship on their heads (responsibilities) and traveling in their feet.

१२. योजनानां सहस्त्रं तु शनैर्गच्छेत् पिपीलिका।
(सुभाषितमाला)
शनैः शनैः ही सही, सतत चलते रहने पर, चींटी जैसी छोटी सी जीव भी सहस्रों योजन की यात्रा पूर्ण कर लेती है।
Even a tiny creature such as ant can move ahead miles together if it keeps on walking consistently.

१३. यस्तु संचरते देशान् यस्तु सेवेत पण्डितान् ।
तस्य विस्तारिता बुद्धिस्तैलबिन्दुरिवाम्भसि ॥
(सुभाषित मंजरी)
भिन्न भिन्न देशों में भ्रमण करने वाले तथा विद्वानों के साथ संबंध रखने वाले
व्यक्ति की बुद्धि उसी तरह बढ़ती है, जैसे तेल की एक बूंद पानी में फैलती है।
The intelligence of a person who travels in different countries and associates
with scholars expands, just as a drop of oil expands in water.

संस्कृत साहित्य में यात्रा यदि आप संस्कृत भाषा में यात्रा संबंधी कुछ और मुहावरों, कहावतों अथवा सद्-वचनों के विषय में जानते हैं तो निम्न टिप्पणी खंड में हमसे अवश्य साझा करें।

और पढ़ें: मत्तूर – कर्नाटक का संस्कृत भाषी गाँव

यह एक अतिथि संस्करण है जिसे Reसंस्कृत के सुशांत रत्नपारखी ने हमसे साझा किया है।


संस्कृत साहित्य में यात्रा

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अनुवाद: मधुमिता ताम्हणे

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