राष्ट्रीय उद्यान Archives - Inditales श्रेष्ठ यात्रा ब्लॉग Mon, 26 Jun 2023 17:22:31 +0000 en-US hourly 1 https://wordpress.org/?v=6.7.2 जिम कॉर्बेट राष्ट्रीय उद्यान भारत का प्रथम राष्ट्रीय उद्यान https://inditales.com/hindi/jim-corbett-rashtriya-udyaan-uttarakhand/ https://inditales.com/hindi/jim-corbett-rashtriya-udyaan-uttarakhand/#respond Wed, 17 May 2023 02:30:20 +0000 https://inditales.com/hindi/?p=3060

जंगल का राजा रॉयल बंगाल टाइगर या बंगाल बाघों के लिए विश्व प्रसिद्ध, हिमालय की तलहटी पर स्थित जिम कॉर्बेट राष्ट्रीय उद्यान को भारत का प्रथम राष्ट्रीय उद्यान होने का गौरव प्राप्त है। सन् १९३६ में स्थापित यह उद्यान पूर्व में हेली नेशनल पार्क के नाम से जाना जाता था। जिम कॉर्बेट राष्ट्रीय उद्यान – […]

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जंगल का राजा रॉयल बंगाल टाइगर या बंगाल बाघों के लिए विश्व प्रसिद्ध, हिमालय की तलहटी पर स्थित जिम कॉर्बेट राष्ट्रीय उद्यान को भारत का प्रथम राष्ट्रीय उद्यान होने का गौरव प्राप्त है। सन् १९३६ में स्थापित यह उद्यान पूर्व में हेली नेशनल पार्क के नाम से जाना जाता था।

जिम कॉर्बेट राष्ट्रीय उद्यान – भारत का प्राचीनतम राष्ट्रीय उद्यान

५२० वर्ग किलोमीटर से भी अधिक क्षेत्रफल में फैले इस राष्ट्रीय उद्यान में विभिन्न प्रकार के भूभाग हैं, जैसे पहाड़ियाँ, दलदली भूमि, घास के मैदानी क्षेत्र, जल के विभिन्न स्त्रोत आदि। एक अत्यंत विस्तृत उद्यान होने के पश्चात भी इसका मुख्यालय रामनगर उत्तराखंड के नैनीताल जिले में स्थित है।

जिम कॉर्बेट राष्ट्रीय उद्यान का इतिहास

इस क्षेत्र को राष्ट्रीय उद्यान घोषित करने से पूर्व यह वन टेहरी गढ़वाल रियासत की एक निजी संपत्ति थी। टेहरी के राजा ने इस क्षेत्र के एक भाग को इस करार के अंतर्गत ईस्ट इंडिया कंपनी को सौंप दी थी कि गोरखाओं के विरुद्ध ईस्ट इंडिया कंपनी राजा की सहायता करेगी। इसके पश्चात अंग्रेजों ने सन् १८६० में इस क्षेत्र में बसे एवं खेती कर जीवन निर्वाह कर रहे तराई क्षेत्र के बुक्सा जनजाति के लोगों को यहाँ से खदेड़ दिया। वन संरक्षण का कार्य सन् १८६८ में आरम्भ हो गया।

जिम कॉर्बेट राष्ट्रीय उद्यान में हाथी
जिम कॉर्बेट राष्ट्रीय उद्यान में हाथी

इस भूभाग की संरचना एवं यहाँ के वन्य प्राणी इतने उत्कृष्ट थे कि सन् १९०७ में इस क्षेत्र को वन्यजीव संरक्षित क्षेत्र में परिवर्तित करने का प्रारूप बनाया गया। किन्तु वह प्रारूप सन् १९३० में ही सजीव रूप ले पाया जब जिम कॉर्बेट के मार्गदर्शन में इस उद्यान की सीमांकन प्रक्रिया पूर्ण की गयी। तब सन् १९३६ में हेली नेशनल पार्क के नाम से एक संरक्षित वनक्षेत्र की रचना हुई जिसका कुल क्षेत्रफल ३२३.७५ वर्ग किलोमीटर था। उस समय सर विलियम मैल्कम हेली संयुक्त प्रांत के गवर्नर थे।

स्वतंत्रता के पश्चात, सन् १९५४-५५ में इस संरक्षित क्षेत्र का नाम रामनगर राष्ट्रीय उद्यान रखा गया। जिम कॉर्बेट की मृत्यु के पश्चात, उनकी स्मृतियों को व उनके अथक संवर्धन कार्य को जीवित रखने के उद्देश्य से सन् १९५५-५६ में इस उद्यान का  नाम पुनः परिवर्तित कर जिम कॉर्बेट राष्ट्रीय उद्यान रखा गया।

जिम कॉर्बेट राष्ट्रीय उद्यान में बाघ
Bengal Tiger Crossing a river in Corbett National Park

समय के साथ इस उद्यान के क्षेत्रफल में वृद्धि होती गयी। सन् १९९१ तक इसका क्षेत्रफल बफर झोन अथवा मध्यवर्ती क्षेत्र के साथ ७९७.७२ वर्ग किलोमीटर हो गया। इसके साथ ही भारत के विशालतम वन्यजीव अभ्यारण्यों में इसकी गिनती होनी लगी। सन् १९७४ में वन्यजीव संरक्षण प्रकल्प के अंतर्गत स्व. प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी द्वारा प्रोजेक्ट टाइगर का शुभारम्भ किया गया।

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जिम कॉर्बेट

एडवर्ड जेम्स कॉर्बेट या जिम कॉर्बेट का जन्म सन् १८५७ में उत्तराखंड के नैनीताल में हुआ था। वे ब्रिटिश मूल के निवासी थे तथा सोलह सदस्यों के विशाल परिवार में आठवें क्रमांक के सदस्य थे। यद्यपि वे उच्च शिक्षा प्राप्त करना चाहते थे किन्तु अपने परिवार के भरण-पोषण में सहायता करने के लिए उन्होंने रेलवे सेवा में इंधन निरीक्षक का पदभार ग्रहण कर लिया।

जिम कॉर्बेट का पुतला
जिम कॉर्बेट का पुतला

जिम कॉर्बेट ने अपने जीवन काल में अनेक नरभक्षी तेंदुओं एवं बाघों को खोज निकाला एवं उन्हें समाप्त किया। सर्वप्रथम नरभक्षी एक बंगाल बाघिन थी जो ‘द चंपावत टाईग्रेस’ के नाम से कुख्यात हो गयी थी। उसने लगभग ४३६ मनुष्यों के प्राण लिए हैं जिसके कारण उसका नाम गिनीस बुक ऑफ वर्ल्ड रिकार्ड्स में अंकित है। जिम कॉर्बेट एक निष्णात आखेटक के अलावा वन्य जीव प्रेमी व अत्यंत प्रभावी कथाकार व लेखक भी थे। जिम कॉर्बेट ने अपने जीवन काल में जितने भी बाघों एवं तेंदुओं को समाप्त किया था, उनके विषय में उन्होंने अनेक पुस्तकें लिखी हैं, जैसे Man-Eaters of Kumaon, The Man-Eating Leopard of Rudraprayag तथा The Temple Tiger, जो अब तक भी लोकप्रिय हैं.

उद्यान की भौगोलिक अवस्थिति

उत्तर में हिमाचल पर्वतमाला जिसे लघु हिमालय अथवा मध्य हिमालय भी कहा जाता है, एवं दक्षिण में शिवालिक पर्वतमाला के मध्य स्थित जिम कॉर्बेट राष्ट्रीय उद्यान में अनेक दर्रे, पहाड़ी टीले, जलधाराएं एवं छोटे पठार हैं। उद्यान से होते हुए रामगंगा नदी बहती है।

जिम कॉर्बेट का गाँव
जिम कॉर्बेट का गाँव

इस सम्पूर्ण उद्यान का केवल २० प्रतिशत भाग ही पर्यटकों के लिए खुला रहता है। शेष भाग केवल वन्यप्राणियों के संवर्धन के लिए संरक्षित रखा गया है। इस उद्यान में वृक्षों की लगभग ११० प्रजातियाँ, स्तनपायी जीवों की लगभग ५० प्रजातियाँ, पक्षियों की लगभग ५८० प्रजातियाँ तथा सरीसृपों की लगभग २५ प्रजातियाँ हैं।

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जंगल सफारी एवं अन्य गतिविधियाँ

अन्य वन्यप्राणी उद्यानों के समान जिम कॉर्बेट राष्ट्रीय उद्यान में भी प्रमुख गतिविधि जंगल सफारी ही है। इस उद्यान में अनेक प्रकार के सफारी आयोजित किये जाते हैं। जिम कॉर्बेट राष्ट्रीय उद्यान का भ्रमण नियोजित करते समय अपने नियत दिनांक से एक मास पूर्व Uttarakhand Government website, इस वेबस्थल से अपने टिकट सुनिश्चित कर लें। अधिकारिक वन्य क्षेत्रों में जंगल सफारी के लिए तात्कालिक टिकट बुकिंग संभव नहीं है। यदि आप इस टिकट को सुनिश्चित करने में चूक जाएँ तो आप सीताबनी सफारी की टिकट ले सकते हैं जो बफर झोन अथवा मध्यवर्ती क्षेत्र में की जाती है।

प्रातः सफारी का परिदृश्य
प्रातः सफारी का परिदृश्य

प्रत्येक सफारी २ से ३ घंटों की होती है। ग्रीष्मकालीन समयावधि एवं शीतकालीन समयावधि में अंतर होता है। उद्यान आने से पूर्व सफारी के टिकट एवं सरकार द्वारा जारी अधिकारिक परिचय पत्र अवश्य साथ रखें।

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जिम कॉर्बेट राष्ट्रीय उद्यान के ५ विभिन्न क्षेत्र

जिम कॉर्बेट राष्ट्रीय उद्यान को पाँच भागों में बाँटा गया है जिन्हें झोन कहा जाता है। प्रत्येक क्षेत्र अथवा झोन की भूभागीय संरचना भिन्न है। ये पाँच भागों का नाम इस प्रकार हैं-

ढिकाला

जिम कॉर्बेट राष्ट्रीय उद्यान का ढिकाला भाग पर्यटकों में सर्वाधिक लोकप्रिय है। पर्यटकों में इसका एक विशेष स्थान है। यह जिम कॉर्बेट राष्ट्रीय उद्यान के पाँचों क्षेत्रों में सर्वाधिक विशाल है। इसमें प्राणियों एवं वनस्पतियों की अनेक प्रजातियाँ हैं। यह क्षेत्र एक-दिवसीय यात्रियों के लिए उपलब्ध नहीं है। इस सफारी का आनंद उठाने के लिए आपको वन विभाग के रेस्ट हाउस में अपने ठहरने की सुविधा पूर्व-नियोजित करनी होगी। इस क्षेत्र में बाघों के दर्शन की संभावना सर्वाधिक रहती है।

जिम कॉर्बेट उद्यान के विभिन्न द्वार
जिम कॉर्बेट उद्यान के विभिन्न द्वार

सन् २०१९ में प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी एवं Bear Grylls पर दूरदर्शन मालिका Man vs Wild का एक विशेष संस्करण इसी राष्ट्रीय उद्यान के इसी भाग में चित्रित किया गया था। यह उद्यान १५ नवम्बर से १५ जून तक पर्यटकों के लिए खुला रहता है।

बिजरानी

बाघों के दर्शन के लिए ढिकाला के पश्चात बिजरानी भाग पर्यटकों में लोकप्रिय है। इस सफारी के लिए रात्रि में वहाँ ठहरने की अनिवार्यता नहीं है। इस कारण इसके टिकटों की विक्री शीघ्र समाप्त हो जाती है। इस क्षेत्र की भूभागीय संरचना में घास के विस्तृत मैदान, साल वृक्ष के घने वन एवं नदियाँ सम्मिलित हैं। पर्यटकों के लिए यह भाग १५ अक्टूबर से ३० जून तक खुला रहता है।

झिरना

हाथी, हिरण और आरण्य पथ
हाथी, हिरण और आरण्य पथ

झिरना भाग कॉर्बेट राष्ट्रीय उद्यान की दक्षिणी सीमा पर स्थित है। यह झोन पर्यटकों के लिए वर्षभर खुला रहता है। इसी कारण इस क्षेत्र में पर्यटकों की संख्या सर्वाधिक रहती है। इन भाग के मुख्य आकर्षण हैं, रूपवान बाघों के दर्शन के साथ साथ काले रीछ के दर्शन।

ढेला

दिसंबर २०१४ में घोषित ढेला भाग इस राष्ट्रीय उद्यान के विभिन्न पर्यटन क्षेत्रों में नवीनतम झोन है। उद्यान का यह क्षेत्र भी पर्यटकों के लिए वर्ष भर उपलब्ध रहता है। किन्तु सफारी का आयोजन वातावरण की स्थिति पर निर्भर करता है। वन्यजीवों के दर्शन के साथ साथ यह क्षेत्र पक्षी दर्शन के लिए भी अत्यंत लोकप्रिय है।

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दुर्गा देवी

यह भाग कॉर्बेट वन-उद्यान के उत्तर-पूर्वी सीमा पर स्थित है। यह क्षेत्र वनस्पतियों एवं वन्य प्राणियों के अनेक प्रजातियों से संपन्न है। रामगंगा नदी एवं मंडल नदी इस क्षेत्र के सभी जल स्त्रोतों को पोषित करती हैं तथा इस वन की सुन्दरता को चार गुना करती हैं। यह भाग पर्यटकों के लिए १५ नवम्बर से १५ जून तक खुला रहता है।

सीताबनी

घने जंगले
घने जंगले

जिम कॉर्बेट वन उद्यान का सीताबनी भाग एक संरक्षित वन क्षेत्र है जो कॉर्बेट बाघ संरक्षित क्षेत्र के बाहर स्थित है। इस भाग को बाघ अभयारण्य का बफर भाग अथवा मध्यवर्ती क्षेत्र माना जाता है। यह क्षेत्र सभी पर्यटकों के लिए खुला रहता है। यहाँ पक्षियों की लगभग ६०० प्रजातियाँ देखी जा सकती हैं जिनमें अधिकाँश प्रजातियाँ प्रवासी पक्षियों की हैं। इनके अतिरिक्त यहाँ अनेक शाकाहारी प्राणी भी दिखाई देते हैं जैसे, हाथी, हिरण, सांभर, नीलगाय आदि।

सफारी के अतिरिक्त इस राष्ट्रीय उद्यान के अन्य आकर्षण हैं, ढिकाला का संग्रहालय एवं कालाढूंगी में स्थित जिम कॉर्बेट का पैतृक निवास।

ढिकाला का संग्रहालय अत्यंत विशाल है जहाँ वन्यप्राणियों के विषय में विस्तृत जानकारी उपलब्ध है। वन उद्यान में विचरण करते स्तनपायी जीवों के विभिन्न प्रकार से लेकर भिन्न भिन्न पक्षियों के विविध कलरव के स्वरों तक सभी जानकारी यहाँ प्रदान की गयी है। ३डी एवं प्रकाश प्रदर्शन द्वारा इस वन के रात्रि काल के परिदृश्यों को भी परदे पर सजीव किया जाता है।

गिरिजा देवी मंदिर
गिरिजा देवी मंदिर

कोसी नदी के तट पर, एक पहाड़ी के टीले पर गर्जिया माता मंदिर है जिसे गिरिजा देवी मंदिर भी कहा जाता है। पार्वती माता के स्वरूप गर्जिया देवी को समर्पित यह मंदिर लगभग १५० वर्ष प्राचीन है। प्रतिदिन सहस्त्रों की संख्या में भक्तगण माता के दर्शन के लिए यहाँ आते हैं। इस स्थान पर पक्षियों की कुछ दुर्लभ प्रजातियाँ भी दिख जाती हैं, विशेषतः हिमालय नीलकंठ(Himalayan Kingfisher)।

यदि रोमांचक क्रीड़ाओं में आपकी रूचि हो तो यहाँ कुछ टूर ऑपरेटर हैं जो वन में पदभ्रमण, उफनती नदी पर नौका चलाना(river rafting), पर्वतों पर सायकल चलाना(mountain biking) जैसी अनेक गतिविधियाँ आयोजित करते हैं।

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जिम कॉर्बेट प्राणी उद्यान कैसे पहुंचें?

यहाँ पहुँचने के लिए निकटतम विमानतल पंतनगर में है जो यहाँ से ८३ किलोमीटर दूर है। रेलगाड़ी द्वारा आना चाहें तो निकटतम रेल स्थानक रामनगर में है जो दिल्ली से रेल मार्ग द्वारा जुड़ा हुआ है। दिल्ली से सड़क मार्ग द्वारा ५ घंटे की यात्रा कर पहुंचा जा सकता है।

जिम कॉर्बेट प्राणी उद्यान में ठहरने की व्यवस्था

संग्रहालय एवं उद्यान का मानचित्र
संग्रहालय एवं उद्यान का मानचित्र

जिम कॉर्बेट प्राणी उद्यान देश-विदेश में प्रसिद्ध होने के कारण एक अंतर्राष्ट्रीय पर्यटन गंतव्य है। यहाँ अनेक प्रकार के रिसॉर्ट्स, होटल व होमस्टे हैं तथा नदीतट पर तम्बुओं की भी व्यवस्था है। किन्तु सरकारी विश्रामगृहों के अतिरिक्त इनमें से कोई भी व्यावसायिक संस्थान वनीय प्रदेश के भीतर नहीं हैं। ये सभी या तो महामार्ग के किनारे स्थित हैं अथवा बफर भाग  के भीतर स्थित हैं।

यहाँ इस वनीय प्रदेश के अनछुए प्राकृतिक सौंदर्य का दर्शन अद्भुत प्रतीत होता है। एक ओर जहाँ यह वन तथा इसका पारिस्थितिक तंत्र है तो दूसरी ओर, अर्थात् रिसोर्ट एवं होटलों की ओर त्वरित गति से बहती कोसी नदी की सौम्यता यहाँ की सुन्दरता को एक पृथक आयाम प्रदान करती है।

यदि आपको रोमांच भाता है तथा आप अभयारण्य के भीतर ठहरना चाहते हैं तो उत्तराखंड के अधिकृत वेबस्थल पर जाकर अपने ठहरने की व्यवस्था यहाँ आने से पूर्व ही सुनिश्चित कर लें। जिम कॉर्बेट प्राणी उद्यान के प्रत्येक झोन में विश्राम गृह हैं जिन्हें फारेस्ट लॉज कहा जाता है। केवल ढिकाला झोन में ही अभयारण्य के भीतर ठहरने की अनिवार्यता है। अन्य सभी क्षेत्रों में उद्यान के भीतर ठहरने की अनिवार्यता नहीं है। फारेस्ट लॉज के भीतर वहाँ के परिचारक आपके भोजन एवं अन्य आवश्यक सामग्रियों की व्यवस्था करते हैं। अभयारण्य के भीतर मदिरापान एवं सामिष भोजन पर कड़ा प्रतिबन्ध है।

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जिम कॉर्बेट प्राणी उद्यान के दर्शन का सर्वोत्तम समय

दिसंबर से मार्च मास की समयावधि कॉर्बेट प्राणी उद्यान के दर्शन के लिए सर्वोत्तम समय है। १२००० फीट की ऊँचाई पर स्थित इस उद्यान एवं इसके आसपास के क्षेत्र का तापमान शीत ऋतु में लगभग ५ डिग्री सेल्सियस तक रहता है। शीत ऋतु में यहाँ का वातावरण शीतल रहता है तथा अभयारण्य में विचरण करना भी सुखमय होता है। प्रातःकाल सूर्योदय से पूर्व बाघों को देख पाने की संभावना अधिक रहती है।

कॉर्बेट में ग्रीष्मकालीन वातावरण किंचित कष्टकारक होता है। मई एवं जून मास में तापमान ४० डिग्री सेल्सियस तक हो जाता है। मैं जून मास में कॉर्बेट उद्यान के दर्शन के लिए आयी थी। उस समय यहाँ के तापमान एवं आर्द्रता के कारण वातावरण अत्यंत असहनीय था।

जून से अक्टूबर मास के मध्य मानसून अवधि में अधिकांश प्राणी उद्यान पर्यटकों के लिए बंद हो जाते हैं। सभी जल स्त्रोत एवं नदियाँ जल से भर जाती हैं तथा सफारी गाड़ियों का चलाना दूभर हो जाता है। मानसून में आये पौधे पदमार्गों को अवरुद्ध कर देते हैं तथा वन के भीतर पैदल चलना भी लगभग असंभव हो जाता है।

यह संस्करण Inditales Internship Program के अंतर्गत अक्षया विजय द्वारा लिखा गया है।

अनुवाद: मधुमिता ताम्हणे

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मुन्ना बाघ – मध्यप्रदेश के कान्हा राष्ट्रीय उद्यान का प्रसिद्ध सितारा https://inditales.com/hindi/kanha-national-park-munna-tiger/ https://inditales.com/hindi/kanha-national-park-munna-tiger/#respond Wed, 01 Feb 2017 02:30:38 +0000 https://inditales.com/hindi/?p=129

मैंने भारत भर के राष्ट्रीय उद्यानों में अनेक सवारियां की हैं। इस सब वन्य जीवन की सफारियों के दौरान किसी बाघ को उसके प्राकृतिक परिवेश में देखने का भाग्य अब तक नहीं मिला था। और सच कहूँ , मुझे उनके सामने जाने में काफी डर लगता था। एक तरफ दिल नहीं चाहता की वह मेरे […]

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मैंने भारत भर के राष्ट्रीय उद्यानों में अनेक सवारियां की हैं। इस सब वन्य जीवन की सफारियों के दौरान किसी बाघ को उसके प्राकृतिक परिवेश में देखने का भाग्य अब तक नहीं मिला था। और सच कहूँ , मुझे उनके सामने जाने में काफी डर लगता था। एक तरफ दिल नहीं चाहता की वह मेरे सामने आए, और दूसरी तरफ, जिज्ञासावश आँखें उन्हें ढूँदती भी रहती हैं। कान्हा राष्ट्रीय उद्यान के कारण मेरा यह भय भी दूर हो गया। यहां पर मेरी मुलाक़ात इस जंगल के मशहूर बाघ से हुई जिसे प्यार से सब मुन्ना बुलाते हैं।

Munna Tiger - Kanha National Park

कान्हा राष्ट्रीय उद्यान का चमकता हुआ सितारा – मुन्ना बाघ

मुन्ना बाघ - कान्हा राष्ट्रीय उद्यान
मुन्ना बाघ – इतनी पास की दिल दहल जाये

हमारी मुलाकात जून की तपती हुई दोपहर में इस उद्यान की दूसरी जंगल सफारी के दौरान हुई। जब मैं इस वन्य सफारी पर जाने के लिए गाड़ी में बैठी, तब तक मैंने बाघ दिखने की सारी आशाएँ छोड़ दी थी। आखिरकार, बांधवगढ़ में 3 सफारियों के बाद और कान्हा राष्ट्रीय उद्यान की सुबह की सफारी के बाद भी मैंने उन्हें नहीं देखा। यहां पर एक बात का उल्लेख मैं जरूर करना चाहूंगी कि मैंने इस जंगल और उसकी विभिन्नता का भरपूर आनंद उठाया। बाघों से मुलाक़ात न होने पर भी मुझे कोई शिकायत नहीं थी। हाँ,  मन में यह कौतुहल अवश्य था कि इस बार भी हमें बाघ के दर्शन होंगे या नहीं।

मुन्ना बाघ - कान्हा राष्ट्रीय उद्यान
पास से

हमारी जीप

जब हमारी जीप कान्हा राष्ट्रीय उद्यान के निर्धारित मार्ग से जा रही थी, हमारे वन गाइड मित्र ने बड़े अधिकार से कहा की आज आपको बाघ जरूर दिखेगा। हम सब ने उसकी बात हंसी में टाल दी। हमें यह शब्द सुनने की आदत जो हो चुकी थी। हर गाइड हमें बाघ दिखाई देने की कहानियाँ सुनाकर हमारी आशाओं को बढ़ा देते थे। यह कहने पर भी कि हम बाघों को देखने के लिए उतावले नहीं हैं, फिर भी वे हठ करते हैं कि अगर आप इस वन में आए हैं तो आपको बाघ जरूर देखने चाहिए। हमारे गाइड ने ड्राईवर से वह रास्ता लेने को कहा जहां पर उन्हें सुबह के समय मुन्ना बाघ के दिखाई देने की सूचना मिली थी।

मैंने मन में सोचा कि आप कैसे कह सकते हैं कि कोई जानवर 4-5 घंटों बाद भी उसी जगह पर मिलेगा, जबकि वह जंगल में कभी भी कहीं भी घूम सकता है। उसी समय मुझे अपना मंत्र याद आया कि हमे स्थानीय ज्ञान को हमेशा सम्मान देना चाहिए।

मुन्ना बाघ को इसी उद्यान के एक वन गाइड का नाम दिया गया है। यहां के लगभग सभी बाघों के नाम रखे गए हैं और आम तौर पर उनके नामकरण के पीछे कोई दिलचस्प सी कहानी होती है।

मुन्ना की पहली झलक

मुन्ना बाघ

एक जगह पर अचानक से हमने बहुत सारी जीपों को खड़े देखा। अब हमें एहसास हुआ की मुन्ना बाघ की सूचना विश्वस्त है। इन लोगों को जरूर पता होगा कि बाघ यहीं-कहीं आस-पास ही है। प्रत्येक जीप बारी-बारी से एक विशेष स्थान पर जाकर आगे बढ़ती थी। इन जीपों पर लगे कैमरे उस स्थान पर बन्दूक की गोलियों की तरह तस्वीरें खींच रहे थे। यानि बाघ जंगल में कहीं आस-पास ही है और किसी विशेष स्थान से ही दिखाई दे रहा है। समय रहते हमारी बारी आयी और मुन्ना से हमारी मुलाक़ात हुई। मुन्ना बाघ अपनी जगह पर बैठे-बैठे जम्हाई ले रहा था। वह उदास सा दिखाई दे रहा था, या शायद वह अभी-अभी नींद से जागा था।

मुन्ना सड़क से लगभग 10-15 मीटर की दूरी पर बैठा था, जहां से वह ठीक से नज़र भी नहीं आ रहा था। सभी लोगों द्वारा मुन्ना के दर्शन होने के बाद भी जीपें अभी भी वहीं खड़ी थी, जैसे किसी का इंतज़ार कर रही हो।

हमारे गाइड और ड्राईवर ने हमें बताया कि यह मशहूर बाग मुन्ना अभी-अभी नींद से जागा है और अब वह पूरे जंगल की लंबी सैर पर जाएगा। मेरा तर्कसंगत मन सोचने लगा कि कैसे ये लोग इतने निश्चित रूप से इतना सब जान सकते हैं, लेकिन बाद में मुझे लगा कि ये लोग उसे रोज़ देखते हैं और इसी कारण उसकी आदतों से भी जरूर परिचित होंगे। शायद यह मुन्ना की रोज़ की दिनचर्या होगी।

मुन्ना की चहलकदमी

मुन्ना बाघ - अपना अधिकार क्षेत्र अंकित करता हुआ
अपना अधिकार क्षेत्र अंकित करता हुआ

कुछ ही मिनटों में यह सारी जगह उन्माद से भर गयी। मुन्ना कुछ देर सुस्ता कर उठ गया था। उसने पास के कुछ पेड़ों को नोचा और सुस्त आलसी गति से चलने लगा। जीपों ने आगे पीछे हो उसके लिए रास्ता बनाया। वह झाड़ियों से बाहर निकलकर वहां पर खड़ी जैतुनी रंग की जीपों को ताड़ने लगा। वहां पर मौजूद सभी लोग उसकी झलक पाने के लिए इकठ्ठा होने लगे। मुन्ना चलते-चलते पेड़ों के पास से गुजरते हुए, सड़क पर घूमते हुए अपने क्षेत्र का अंकन करने लगा। वह बीच-बीच में रुककर उत्सुकता से उसकी तस्वीरें खीच रहे लोगों को देख रहा था।

मुझे लगा जैसे उसने रोज़ पर्यटकों का सामना करते हुए तस्वीरों के लिए अच्छे से पोज करना भी सीख लिया है। या फिर वह हमारे साथ ऐसा व्यवहार कर रहा है जैसा हम अपने बालकनी में बैठे पक्षियों के साथ करते हैं, जो कुछ समय के लिए आकर बैठते हैं और फिर चले जाते हैं। और हम उन्हें तब तक वहां पर बैठने देते हैं जब तक वे कोई बाधा न उत्पन्न करे।

शोर के कारण चिड़चिड़ाहट

मुन्ना बाघ की राजसी चाल
राजसी चाल

मुन्ना बाघ को देखने के लिए लोग बहुत शोर कर रहे थे। जीपें उसके बहुत नजदीक जाती थीं तो उस समय उसके चेहरे पर चिड़चिड़ाहट साफ दिखाई देती थी। जैसे किसी वयस्क व्यक्ति के आस-पास बहुत सारे बच्चे शोर मचा रहे हो, जिसके कारण वह व्यक्ति चिड़चिड़ा सा हो जाता है। आप चाहते तो हैं कि वे चुप हो जाए, लेकिन आप उन्हें चुप कराने के लिए कुछ नहीं करते। एक पल ऐसा आया जब मुन्ना हमारी जीप से कुछ ही मीटर की दूरी पर था। उसने मेरी आँखों में आँखें डालकर मुझे देखा। मैं अपने साथ वाले यात्री को लगभग जीप से बाहर धकेलते हुए पीछे सरक गयी।

मैं भयभीत हुई कि शायद उसे मुझमें अपना अगला शिकार दिखाई दे रहा है और वह मुझे मारने की योजना बना रहा हैं। शुक्र है कि हमारी जीप वहां से आगे बढ़ी और मैं उसकी नज़रों से दूर हो गयी। तब जाकर मैंने राम नाम लिया और उसके बाद शांत बैठ कर  उसे दूर से निहारा।

पर्यटकों से बेपरवाह मुन्ना बाघ
पर्यटकों से बेपरवाह

लंबी सैर के बाद मुन्ना बाघ थोड़ी देर के लिए बैठ गया और वापस उठकर सड़क के उस पार जहां पर जीप ले जाने की अनुमति नहीं है, उस ओर सैर के लिए निकल पड़ा। उसकी चाल एकदम जंगल के राजा की चाल थी। इससे यह स्पष्ट था कि यह उसका क्षेत्र है और यहां पर उसी का राज्य चलता है। बाकी सब को उसके लिए रास्ता बनाना पड़ता है। लगभग एक घंटे के लिए उसने बाघ सफारी पर आए हर व्यक्ति का ध्यान अपनी ओर केंद्रित रखा। लोगों की आँखें सिर्फ और सिर्फ मुन्ना को ही देखना चाहती थीं।

मशहूर बाघ मुन्ना का विडियो

यह विडियो जरूर देखिये जो मैंने बाघ सफारी के दौरान लिया था।

बाघ की खास पहचान है उसके माथे पर साफ-साफ लिखा हुआ सी ए टी (कैट) और उसके ठीक नीचे पी एम लिखा हुआ है।

मुन्ना – कान्हा राष्ट्रीय उद्यान में पर्यटकों का प्रमुख आकर्षण

कान्हा राष्ट्रीय उद्यान में जीप सफारी
कान्हा राष्ट्रीय उद्यान में जीप सफारी

हमें बताया गया कि यहां के वन गाइड पर्यटकों को सिर्फ मशहूर मुन्ना के ही इतने नजदीक जाने की इजाजत देते हैं क्योंकि, वे उसके व्यवहार से भलीभाँति परिचित हैं। वह बहुत बूढ़ा हो गया है और बेपरवाह है। उसे अपने आस-पास के लोगों से कोई फर्क नहीं पड़ता। यहां के वन गाइड उसके साथ मित्र के जैसा व्यवहार करते हैं। उन्हें मुन्ना की आदतें, उसकी पसंद, नापसंद अच्छे से मालूम है। और क्यों न हो, आखिरकार मुन्ना की एक झलक पाने के लिए ही तो पर्यटक यहां पर आते हैं। जो लोग यहां की पर्यटन अर्थव्यवस्था के सहारे अपनी जीविका चलाते हैं, उनकी उपजीविका का यह प्रमुख स्त्रोत है।

मुन्ना जैसे बाघ ही हैं जो अपनी उपस्थिती से वन्य जीवन की सफारी पर आए लोगों के चेहरे पर मुस्कुराहट लाते हैं। चाहे कुछ लोग उसे देखकर थोड़े से डर भी जाएँ। कान्हा राष्ट्रीय उद्यान की इस बाघ सफारी के दौरान मुन्ना बाघ की एक झलक से जुड़ी न जाने कितनी स्मृतियाँ होगी जिनकी कल्पना भी नहीं की जा सकती।

कान्हा राष्ट्रीय उद्यान के कच्चे रास्स्ते
कान्हा राष्ट्रीय उद्यान के कच्चे रास्स्ते

बाघ के इतने नजदीक जाकर तथा अपने आस-पास के मनुष्यों के साथ उसका व्यवहार देखकर जो सबसे बड़ी सीख जो मैंने सीखी वह यह है, कि आप मनुष्यों की तरह बाघों के हाव-भाव भी पढ़ सकते हैं। बाघ को देखने का सारा कौतुहल समाप्त होने के बाद यही बातें हैं जो हमेशा मेरे साथ रहेंगी। अगर आपको कभी भी बाघों को करीब से देखने का मौका मिले तो इस बात पर जरूर ध्यान दीजिये।

मुन्ना, तुम सच में एक चमकता हुआ सितारा हो।

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