लद्दाख यात्रा Archives - Inditales श्रेष्ठ यात्रा ब्लॉग Mon, 19 Jun 2023 17:16:27 +0000 en-US hourly 1 https://wordpress.org/?v=6.7.2 पांगोंग त्सो सरोवर – लद्दाख का प्रसिद्द पर्यटक स्थल https://inditales.com/hindi/pangong-tso-laddakh-paryatak-sthal/ https://inditales.com/hindi/pangong-tso-laddakh-paryatak-sthal/#respond Wed, 27 Sep 2023 02:30:00 +0000 https://inditales.com/hindi/?p=3179

पांगोंग सरोवर अथवा पांगोंग झील को स्थानीय भाषा में पांगोंग त्सो कहते हैं। भारत के नवनिर्मित केंद्र शासित प्रदेश लद्दाख की राजधानी लेह से लगभग १५० किलोमीटर दूर स्थित पांगोंग सरोवर एक मनोरम हिमालयी सरोवर है। समुद्र तल से इसकी ऊँचाई लगभग ४५०० मीटर है। यह एक अत्यंत सुन्दर सरोवर है। इस सरोवर के जल […]

The post पांगोंग त्सो सरोवर – लद्दाख का प्रसिद्द पर्यटक स्थल appeared first on Inditales.

]]>

पांगोंग सरोवर अथवा पांगोंग झील को स्थानीय भाषा में पांगोंग त्सो कहते हैं। भारत के नवनिर्मित केंद्र शासित प्रदेश लद्दाख की राजधानी लेह से लगभग १५० किलोमीटर दूर स्थित पांगोंग सरोवर एक मनोरम हिमालयी सरोवर है। समुद्र तल से इसकी ऊँचाई लगभग ४५०० मीटर है। यह एक अत्यंत सुन्दर सरोवर है। इस सरोवर के जल पर पड़ती सूर्य की किरणें जब दिन भर की यात्रा करती हैं, इसका आकाशी नीलवर्ण जल इन किरणों के साथ अठखेलियाँ करता विभिन्न आभा बिखेरता रहता है।

जमी हुई पांगोंग त्सो
जमी हुई पांगोंग त्सो

पांगोंग सरोवर बॉलीवुड चित्रपटों के छायाचित्रीकरण के लिए एक अतिविशेष स्वप्निल स्थल माना जाता है। लोग तो यहाँ तक कहते हैं कि सन् २०१८ में निर्मित हॉलीवुड चित्रपट गेम्स ऑफ थ्रोंस के कुछ भागों  का छायाचित्रीकरण भी यहीं हुआ था। पांगोंग सरोवर एक अछूते हिमालयीन परिदृश्य का सर्वोत्तम उदहारण है।

अपनी लद्दाख यात्रा में हम कुछ दिवस लेह में ठहरे थे। नारोपा उत्सव का अवलोकन करने व लद्दाख की संस्कृति को जानने व समझने के लेने वहीं से हमने हेमिस मठ तक की यात्रा की थी। यदि आपकी रूचि केवल पर्यटन भी हो तब भी लद्दाख की यात्रा तब तक पूर्ण नहीं होती जब तक आप पांगोंग सरोवर ना देख लें।

और पढ़ें: हेमिस मठ का नारोपा उत्सव

पांगोंग त्सो: लद्दाख का आकर्षक सरोवर

वर्ष के अधिकांश समय, लद्दाख के शीत ऋतु की कड़ाके की ठण्ड में खारे जल का यह विशाल सरोवर जमा हुआ ही रहता है। जब पांगोंग सरोवर जमा हुआ नहीं रहता है, आप उसमें नीले रंग की विभिन्न छटाएं देख सकते हैं। अप्रैल मास से सितम्बर के आरम्भ तक इस सरोवर की सुन्दरता अपनी चरम सीमा पर रहती है जब इस पर नीलवर्ण की विभिन्न छटाओं का मेला लगा रहता है।

पांगोंग सरोवर के रंग
पांगोंग सरोवर के रंग

इस सरोवर का दो-तिहाई भाग तिब्बत के पठार के अंतर्गत आता है जो अब चीनी अंतर्राष्ट्रीय सीमारेखा के भीतर स्थित है। शेष एक-तिहाई भाग भारतीय सीमा के अंतर्गत आता है। स्वाभाविक है कि अंतर्राष्ट्रीय विवादित सीमा रेखा के समीप होने के कारण आप सरोवर के आसपास कदाचित सेना के तम्बू एवं उनकी तोपें देखें। सन् १९६० में हुए भारत-चीन युद्ध के समय यह शांत एवं रम्य स्थान सेना की अनेक तोपों एवं उनके द्वारा हुए रक्तपात का साक्षी रहा है। वह सब क्यों हुआ? कौन जाने!!

और पढ़ें: हिमालय में छायाचित्रीकरण योग्य सर्वोत्तम स्थल

यदि आप हिमालय के इतिहास के पन्नों को पलटें तथा इस स्थान के भूगर्भ शास्त्र में डुबकी लगाएं तो आप हिन्द महासागर एवं इस सरोवर के मध्य सम्बन्ध अवश्य खोज निकालेंगे। तिब्बती शब्द पांगोंग त्सो का शाब्दिक अर्थ है, ऊँचे मैदानी क्षेत्र का सरोवर। ऐसी मान्यता है कि भूगर्भीय उथल-पुथल के पश्चात जब समुद्र की गहराई से हिमालय उभर कर आया तब आसपास का समुद्र सिमट कर केवल यह सरोवर ही शेष रहा। इसी कारण सरोवर का जल खारा है तथा इसमें मछलियाँ भी नहीं हैं।

समुद्र सतह से ४५०० मीटर की ऊँचाई पर स्थित होने के कारण पांगोंग त्सो मछलियों के प्रजनन एवं जीवन के अनुकूल जलवायु नहीं प्रदान कर पाता है। इसी कारण इसके जल में मछलियों का अभाव है। इसके पश्चात भी यह सरोवर प्रवासी पक्षियों का प्रिय स्थल है। प्रत्येक वर्ष यहाँ बड़ी संख्या में प्रवासी पक्षी आते हैं, काई अथवा मॉस खाते हैं तथा घोंसले बनाकर अंडे देते हैं।

सरोवर में रात्रि का पड़ाव डालें अथवा केवल दिवसीय यात्रा करें?

जब मानव प्रकृति से खिलवाड़ ना करे तब प्रकृति की सुन्दरता किस प्रकार आकाश को छू लेती है, यह सरोवर उसका जीवंत उदहारण है। स्वाभाविक ही है कि आप ऐसे सरोवर के तट पर कुछ रात्रि व्यतीत करते हुए माँ स्वरूप प्रकृति से अवश्य जुड़ना चाहेंगे।

पांगोंग त्सो का सूर्योदय
पांगोंग त्सो का सूर्योदय

किन्तु ध्यान रखें कि जिस अनछुई प्रकृति से आप जुड़ना चाहते हैं उसकी कान्ति को उतनी ही पवित्र बनाए रखना भी आपका ही उत्तरदायित्व है। साथ ही आपको अपने स्वास्थ्य एवं सुरक्षा का भी ध्यान रखना होगा। जैसे, रात्रि का तापमान अत्यंत शीतल हो जाता है। मौसम के अनुसार यह शुन्य तापमान से २०-३०अंश नीचे भी जा सकता है। साथ ही रहने की सुविधाएं भी मूलभूत हैं, जैसे तम्बू इत्यादि। अतः सम्पूर्ण वातावरण आपके स्वास्थ्य के लिए एक कठिन परीक्षा सिद्ध हो सकता है।

और पढ़ें: लद्दाख की राजधानी लेह से छोटी छोटी एक दिवसीय यात्राएं

सरोवर के तट पर रात्रि व्यतीत करने के आनंद का अर्थ है, तट पर बैठकर तारे देखते हुए गर्म गर्म मैगी खाना। यदि खगोलीय छायाचित्रीकरण में आपकी रूचि है तो इससे अधिक उपयुक्त स्थल सम्पूर्ण भारत में कहीं नहीं होगा!

अनेक पर्यटकों का मानना है कि पांगोंग त्सो में जो सूर्योदय उन्होंने देखा है, वह अविस्मरणीय एवं अतुलनीय है!

रात्रि के कड़ाके की ठण्ड एवं कठिन सड़क यात्रा से भयभीत होकर मैंने तो पांगोंग में रात्रि व्यतीत करना स्वयं के लिए उचित नहीं जाना तथा लेह से एक दिवसीय यात्रा करने का निश्चय किया।

प्रादेशिक संचार अनुज्ञा पत्र: इनर लाइन परमिट (आइ एल पी)

यह क्षेत्र संवेदनशील अंतर्राष्ट्रीय सीमारेखा जांच के अंतर्गत आता है जिसके कारण हमें पांगोंग सरोवर तक जाने के लिए अनुज्ञा पत्र प्राप्त करना पड़ा। इस अनुज्ञा पत्र को प्रादेशिक संचार अनुज्ञा पत्र अथवा इनर लाइन परमिट (आइ एल पी) कहते हैं। इनर लाइन परमिट एक आधिकारिक यात्रा दस्तावेज है जिसे संबंधित राज्य सरकार जारी करती है।

पांगोंग त्सो लद्दाख
पांगोंग त्सो लद्दाख

इस तरह का परमिट भारतीय नागरिकों को देश के अंदर के किसी संरक्षित क्षेत्र में एक तय समय के लिए यात्रा की अनुमति देता है। इस परमिट के एवज में कुछ शुल्क भी लिया जाता है। हमें इसके लिए ६०० रुपये प्रतिव्यक्ति शुल्क देना पड़ा। इसे प्राप्त करने में हमारे अतिथिगृह के अधिकारी ने हमारी सहायता की थी।

यदि आप लेह से पांगोंग सरोवर तक एक दिवसीय यात्रा करना चाहते हैं तो मेरा सुझाव है कि आप प्रातः शीघ्रातिशीघ्र यात्रा आरम्भ करें। यह पांच घंटे की एक कठिन सड़क यात्रा है जो अत्यंत जोखिम भरी है। यहाँ तक कि मौसम की स्थिति बिगड़ने पर सड़क मार्ग अवरुद्ध भी हो सकता है। अवरुद्ध सड़क मार्ग के कारण यदि आप कहीं फंस जाएँ तो भयभीत ना होयें। वहां से सुरक्षित निकलने में भारतीय सेना आपकी अवश्य सहायता करेगी। इसीलिए यदि आप प्रातः शीघ्र यात्रा आरम्भ करें तो इन प्राकृतिक आपदाओं से निपटने में आसानी होती है।

हमने प्रातः पांच बजे यात्रा आरम्भ की तथा अनवरत ४० किलोमीटर गाड़ी चलाते हुए हेमिस मठ पहुंचे। मठ के समक्ष सिन्धु नदी के तट पर बैठकर जलपान किया तथा आगे की यात्रा के लिए निकल पड़े।

यात्रा एवं पड़ाव

यदि आप लेह से आ रहे हैं तो पांगोंग त्सो तक की यात्रा में आपको कुछ आवश्यक पड़ाव लेने पड़ते हैं।

आप जैसे जैसे ऊपर चढ़ते जायेंगे, आपके समक्ष परिदृश्यों में तीव्र गति से परिवर्तन हो सकता है। कदाचित चारों ओर मानवीय उपस्थिति की किंचित मात्र भी झलक प्राप्त ना हो। चारों ओर केवल हिमाच्छादित बीहड़ पर्वत, अतिविरल हरियाली तथा स्वर्ग की ओर जाती प्रतीत होती सड़क।

आप समझ जाईये कि आप चांग ला दर्रे में प्रवेश कर रहे हैं!

चांग ला दर्रा: ऊँचा हिमालयी दर्रा

इस सड़क को विश्व का दूसरा सर्वोच्च वाहन योग्य मार्ग माना जाता है। ५३६० मीटर की ऊँचाई पर स्थित चांग ला सामान्यतः सरोवर तक की यात्रा का प्रथम पड़ाव होता है। दर्रे के शीर्ष पर चांग ला बाबा का मंदिर है। मंदिर की भित्तियों पर रंगबिरंगे ध्वज फहराए हुए हैं।

चांग ला दर्रा
चांग ला दर्रा

अत्यंत ऊँचाई पर स्थित होने के कारण चांग ला दर्रा आपके स्वास्थ्य की दृष्टी से महत्वपूर्ण है। यदि आपको तीव्र पर्वतीय अस्वस्थता (Acute mountain sickness, AMS) की आशंका है तो उसके लक्षण आपको यहाँ से दिखने आरम्भ हो जायेंगे।

परिदृश्य

चांग ला से तीव्र उतार आरम्भ हो जाता है। चांग ला से हमें आगे तीन घंटे की यात्रा करनी पड़ती है। घुमावदार सर्पिल मार्ग आपके समक्ष कुछ अद्वितीय एवं विलक्षण परिदृश्य प्रस्तुत करेंगे। दूर स्थित पर्वत सतह पर स्थानीय घुमंतू बंजारे अपने पालतू पशुओं को चराते हुए दिखने आरम्भ हो जायेंगे।

प्रकृति का आनंद लेते पर्यटक
प्रकृति का आनंद लेते पर्यटक

हिमनद से पिघलकर आती जलधाराएं धरती पर विरली हरियाली उत्पन्न करती दृष्टिगोचर होंगी जिन्हें चरने में व्यस्त याक पशु भी दिखाई देंगे। यहाँ के श्वान या कुत्ते भी भिन्न प्रतीत होते हैं। यहाँ की जलवायु के अनुकूल उनका शरीर बालों की मोती परत से ढंका होता है। ये हिमालयी कुत्ते भी आपको बर्फ की महीन सतह पर इधर-उधर विचरण करते व जल खोजते दिखाई पड़ेंगे।

और पढ़ें: शाकाहारियों के लिए लद्दाख यात्रा

सेना के कुछ कैम्पों में २४ घंटों की चाय की दुकानें हैं। वहां प्रसाधन गृह अथवा शौचालय भी उपलब्ध होते हैं। इस क्षेत्र में जल की उपलब्धि अत्यंत विरली होती है। अतः शौचालय का प्रयोग करते समय इसका स्मरण अवश्य रखें।

यह यात्रा लम्बी अवश्य है किन्तु ये हमारे नयनों के लिए अमृततुल्य है। हमारी कार के साथ दौड़ते जंगली गधे, घाटियों के मध्य से बहती एवं हमारे संग आँख-मिचौली का खेल खेलती कई छोटी छोटी नदियाँ हमें मंत्रमुग्ध कर रहे थे। एक ओर ग्रीष्म ऋतु में ये नदियाँ सूख जाती है तो वहीं शीत ऋतु के ठंडे वातावरण में इनकी उपरी सतह जम जाती है।

हिमालय वासी मर्मोट
हिमालय वासी मर्मोट – एक बड़ी गिलहरी 

कुछ क्षणों पश्चात हिमालयी मर्मोट आपका स्वागत करने के लिए आ जायेंगी। बड़े चूहे अथवा गिलहरी के समान दिखाई देते ये जीव इस क्षेत्र के मूल जीव हैं। अपनी आँखों में जिज्ञासा एवं भोलापन लिए इन जीवों को देख आपको अंटार्टिका का प्रथम सुप्रसिद्ध मानव-पेंगुइन भिडंत का स्मरण हो आएगा। ये जीव भूमि के भीतर निवास करते हैं। सम्पूर्ण क्षेत्र की भूमि के भीतर इन जीवों ने अनेक बिलों का परस्पर जुड़ा हुआ एक जाल बनाया हुआ है। अतः यहाँ चलते हुए अत्यंत सावधानी बरतें।

पांगोंग त्सो के तीन संकेत

अत्यंत सुन्दर पांगोंग सरोवर का प्रथम विहंगम दृश्य हमारे अस्तित्व को इस प्रकार झकझोर देता है कि उसे शब्दों में ढालना संभव नहीं है। सरोवर की नीलवर्ण जल सतह पर नीले आकाश का प्रतिबिम्ब अत्यंत मनमोहक दृश्य प्रस्तुत करता है। सरोवर का नीला रंग इतना गहरा है कि वह आपके नयनों को सहज ही नहीं होने देता है!

किन्तु सरोवर क्षेत्र का प्रवेश स्थल आपको धरातल पर ले आता है। चित्रपट चित्रीकरण के लिए लोकप्रिय इस स्थान पर असंख्य पर्यटकों की उपस्थिति आँखों को खटकने लगती है। आपको ज्ञात ही होगा कि थ्री इडियट्स नामक लोकप्रिय चित्रपट के कुछ भागों का चित्रीकरण भी यहीं हुआ था। चित्रपट में दिखाए गए तीन रंगबिरंगे चौकियों की विशेष बैठक की स्मृति में यहाँ पर्यटकों के लिए उसका प्रतिरूप भी रखा हुआ है। इस अनछुए स्थल पर इतनी बड़ी संख्या में पर्यटकों के आने का कारण भी वही चित्रपट है। यदि आपको यह दृश्य विचलित नहीं करता है तो आप सहर्ष यहाँ कुछ समय व्यतीत कर सकते हैं।

किन्तु हमें यहाँ एक क्षण भी ठहरना स्वीकार्य नहीं था। हम यहाँ से कुछ किलोमीटर आगे जाकर रुके। वहां का दृश्य अत्यंत मनोरम था। शांत, मनमोहक एवं पर्यटकों के कोलाहल से अछूता!

एक समय यह सरोवर प्रदूषण रहित माना जाता था। यह अपने स्वच्छ निर्मल जल के लिए जाना जाता था। किन्तु बड़ी संख्या में आते संवेदनहीन व दायित्वहीन पर्यटकों के कारण अब आप यहाँ-वहां प्लास्टिक कचरा देख सकते हैं।

यदि आप पर्यावरण प्रेमी हैं तथा आपको अपनी धरती माता की चिंता है तो आप यहाँ प्लास्टिक जैसा किसी भी प्रकार का अजैवनिघ्नीकरणीय कचरा ना डालें। उन्हें अपनी गाड़ी में ही एकत्र करें तथा लेह जाकर उपयुक्त स्थान में ही डालें। आपकी श्रद्धा हो तो आप यहाँ के कुछ प्लास्टिक कचरे को कम करने में भी सहायता कर सकते हैं।

पांगोंग त्सो दर्शन के लिए कुछ महत्वपूर्ण सूचनाएं:

  • पांगोंग सरोवर सड़क मार्ग द्वारा चांग ला दर्रा होते हुए पहुंचा जा सकता है जिसकी ऊँचाई ५३६० मीटर है। पांगोंग सरोवर भ्रमण ले लिए यहाँ तक पहुँचने का सर्वोत्तम उपाय है कि आप साझा टैक्सी करें ताकि अन्य यात्रियों के साथ व्यय भी साझा हो जाए तथा पर्यावरण पर भी अधिक दबाव ना पड़े। अनेक लेह-लद्दाख भ्रमण सेवायें उपलब्ध हैं जिनके द्वारा आप ऐसी साझा टैक्सी सेवा पूर्वनियोजित कर सकते हैं।
  • अपने स्वास्थ्य का ध्यान रखें। यहाँ तीव्र पर्वतीय अस्वस्थता (Acute mountain sickness, AMS) होना सामान्य है। इससे आपके स्वास्थ्य पर हानिकारक प्रभाव पड़ सकता है जो तीव्र भी हो सकता है। हो सकता है दुर्गम मार्गों में आपको औषधिक सेवायें भी शीघ्र उपलब्ध ना हो पाए। यदि आपका स्वास्थ्य तीव्र गति से घटे तो मेरा सुझाव यही है कि आप वापिस लौट जाएँ। अपने साथ अपनी सभी औषधियां लेकर जाएँ।
  • आवश्यकनुसार ऊनी वस्त्र एवं परिधान ले जाएँ। जल एवं सूखे खाद्य पदार्थ साथ रखें। तीव्र पर्वतीय अस्वस्थता से बचाना है तो भ्रमण आरम्भ करने से पूर्व लेह में कम से कम दो दिवस केवल विश्राम करें तथा स्वयं को ऊँचाई की जलवायु से अभ्यस्त करें।
  • लद्दाख एक शीत मरुस्थल है। दिन के समय सूर्य की तीखी किरणें आपकी त्वचा को झुलसा सकती हैं। आप देखेंगे कि यहाँ की लद्दाखी स्त्रियों के मुखड़े लालवर्ण के हो जाते हैं। उसका कारण ये तीव्र सूर्य की किरणें ही हैं। निचले अथवा मैदानी क्षेत्रों में रहने के कारण हमारी त्वचा ऐसे तीखे वातावरण को सहन करने के लिए अभ्यस्त नहीं होती है तथा उस पर गंभीर दुष्परिणाम हो सकते हैं। अतः अपनी त्वचा की रक्षा करने के लिए आवश्यक सूर्य प्रतिरोधक प्रसाधनों का प्रयोग करें तथा स्वयं को ढँक कर रखें।
  • वापिस लौटते समय अपने भ्रमण के किसी भी प्रकार के चिन्ह वहाँ ना छोड़ें। अपना सभी प्रकार का प्लास्टिक का कचरा अपने साथ वापिस लायें। अन्यथा यहाँ की सुकोमल भौगोलिक अवस्थिति अतिसंवेदनशील होकर पारिस्थितिक असुंतलन की भेंट चढ़ जायेगी।
  • सरोवर के जल में जाने अथवा तैरने की अनुमति नहीं है।

यह संस्करण मधुरिमा चक्रवर्ती ने लिखा है जिन्होंने लद्दाख के नरोपा उत्सव में इंडीटेल्स का प्रतिनिधित्व किया था।

अनुवाद: मधुमिता ताम्हणे

The post पांगोंग त्सो सरोवर – लद्दाख का प्रसिद्द पर्यटक स्थल appeared first on Inditales.

]]>
https://inditales.com/hindi/pangong-tso-laddakh-paryatak-sthal/feed/ 0 3179
लद्दाख की महिला बौद्ध दैवज्ञ से एक अविस्मरणीय भेंट https://inditales.com/hindi/mahila-bouddh-devagya-ladakh/ https://inditales.com/hindi/mahila-bouddh-devagya-ladakh/#respond Wed, 26 Oct 2022 02:30:26 +0000 https://inditales.com/hindi/?p=2841

लद्दाख ही नहीं, समूचा हिमालयीन क्षेत्र रहस्यों से परिपूर्ण प्रतीत होता है। पग पग पर हमारा सामना मायावी कथाओं एवं लोगों की विभिन्न आस्थाओं से होता है जिन्होंने इस रहस्यपूर्ण इंद्रजाल को जीवंत रखा है। चंद्रताल में मैंने एक गड़ेरिये की कथा सुनी थी जो सरोवर में स्थित एक जलपरी के प्रेम में बावला हो […]

The post लद्दाख की महिला बौद्ध दैवज्ञ से एक अविस्मरणीय भेंट appeared first on Inditales.

]]>

लद्दाख ही नहीं, समूचा हिमालयीन क्षेत्र रहस्यों से परिपूर्ण प्रतीत होता है। पग पग पर हमारा सामना मायावी कथाओं एवं लोगों की विभिन्न आस्थाओं से होता है जिन्होंने इस रहस्यपूर्ण इंद्रजाल को जीवंत रखा है। चंद्रताल में मैंने एक गड़ेरिये की कथा सुनी थी जो सरोवर में स्थित एक जलपरी के प्रेम में बावला हो गया था। वहीं गुलमर्ग में मैंने बाबा रेशी की कथा सुनी थी। उन्ही रहस्यमयी अनुभवों को जीवंत रखते हुए लद्दाख में मेरी भेंट एक बौद्ध दैवज्ञ अस्तित्व से हुई।

महिला बौद्ध दैवज्ञ से एक साक्षात्कार
महिला बौद्ध दैवज्ञ से एक साक्षात्कार

लद्दाख के थिकसे एवं चेमरे मठों तक सड़क यात्रा करने के पश्चात हम लेह से पूर्व, चोग्लाम्सर गाँव में रुके। हमारे परिदर्शक हमें वहां एक साधारण से लद्धाखी घर में ले गये। शीत ऋतु का प्रातःकाल था। घर के सभी सदस्य घर के बाहर बैठकर धूप सेक रहे थे। वे हमें घर के एक कक्ष के भीतर ले गए तथा वहां बैठने के लिए आसन दिया। हमने चारों ओर दृष्टि दौड़ाई। कक्ष के भीतर सम्पूर्ण स्त्री वर्ग सामने की ओर बैठा था तथा पुरुष वर्ग कक्ष के पृष्ठभाग में विराजमान था।

लद्दाख की बौद्ध दैवज्ञ पद्मा लामो

कुछ क्षण पश्चात बौद्ध दैवज्ञ पद्मा लामो ने अपने नन्हे पोते के साथ कक्ष में प्रवेश किया तथा स्मित हास्य द्वारा हमारा अभिवादन स्वीकार किया। उन्होंने एक सामान्य सा सलवार व कुर्ता धारण किया हुआ था। किसी भी अन्य दादी की भाँति वे अपने पोते का हाथ पकड़कर कक्ष में आयी थी। हमारा अभिवादन स्वीकार करने के पश्चात वे कक्ष से चली गयीं। कुछ क्षणों पश्चात वे पारंपरिक बौद्ध परिधान धारण कर आध्यात्मिक बैठक हेतु पुनः उपस्थित हो गयीं। उन्होंने पूर्व के परिधान के ऊपर एक लम्बा पारंपरिक बौद्ध चोगा धारण कर लिया था। वैसे भी जनवरी मास में लद्दाख जैसे स्थान पर वस्त्रों की कितनी भी परतें हों, आवश्यक ही प्रतीत होती हैं।

बौद्ध दैवज्ञ पद्मा लामो जी
बौद्ध दैवज्ञ पद्मा लामो जी

आज मेरी प्रसन्नता चरम सीमा पर थी क्योंकि मैं अपने समक्ष एक स्त्री दैवज्ञ के दर्शन कर रही थी। हम में से अधिकांश आगंतुकों ने अपने मानसपटल पर मानव स्वभाववश एक पुरुष बौद्ध दैवी अस्तित्व की छवि उभार ली थी। हमें पूर्व सूचना प्रदान की गयी थी कि हमें उनके व सम्पूर्ण आध्यात्मिक बैठक के छायाचित्र अथवा चलचित्र नहीं लेने हैं। उन्हें विचारने योग्य प्रश्नों की पूर्व सूची भी तैयार रखने के लिए कहा गया था। हमारे जीवन से सम्बंधित किसी भी विषय पर प्रश्न पूछने की हमें अनुमति थी।

बौद्ध अनुष्ठान

अनुष्ठान के लिए धान्य एवं दीप
अनुष्ठान के लिए धान्य एवं दीप

पद्मा लामो जी ने बौद्ध अनुष्ठानों का आरम्भ करते हुए समक्ष एक पंक्ति में रखे पीतल के अनेक पात्रों में जल भरना आरम्भ किया। कुछ पत्रों में सत्तू तथा गेहूं जैसे धान्य भी भरे। तत्पश्चात उन्होंने एक दीप प्रज्ज्वलित किया। हमें यह जानने की उत्सुकता थी कि दीपक में तेल भरा है अथवा याक का मक्खन। उन्होंने हास्य करते हुए कहा कि ‘यह अमूल मक्खन है’। मुझे अमूल कंपनी की पहुँच पर अचम्भा हुआ। पद्मा लामो जी के सधे हुए हाथों में अनेक वर्षों का अभ्यास स्पष्ट झलक रहा था।

चीख

अनुष्ठान की सभी आवश्यकताएँ पूर्ण करने के पश्चात पद्मा लामो जी ने एक बंधी हुई पोटली अपने समीप अपने आसन पर रख दी तथा वेदी पर विराजमान देवों के समक्ष नतमस्तक हो गयीं। अचानक हमारे आसपास स्थित मौन भरे वातावरण में कर्णभेदी स्वर गूँज उठा। नतमस्तक हुई पद्मा जी अचानक एक तीव्र चीख के साथ उठकर बैठ गयीं। उनकी चीख इस तथ्य का द्योतक थी कि वे एक दैवी अवस्थिति में प्रवेश कर चुकी हैं। वे प्रबलता से अपना शीष हिला रही थीं। उनके केशों से छिटकता जल कक्ष में चारों ओर पसर गया था। उनके मुंह से ऊँचे स्वर में निकलते अस्पष्ट शब्द मुझे व्याकुल व भयभीत कर रहे थे। मुंह से तीव्र अस्पष्ट स्वर निकालते हुए ही उन्होंने अपनी पोटली खोली तथा उसमें से एक मुकुट निकाल कर अपने शीष पर धारण कर लिया। उस मुकुट पर विभिन्न बोधिसत्वों के चित्र चित्रित थे। बैठक के पश्चात मुझे बताया गया था कि इस मुकुट को अपने शीष पर वही धारण कर सकता है जो दैवी स्थिति में प्रवेश कर चुका है।

पद्मा लामो जी अपना अनुष्ठान का सामान समेटते हुए
पद्मा लामो जी अपना अनुष्ठान का सामान समेटते हुए

तत्पश्चात पद्मा जी ने एक ब्रोकेड का वस्त्र ओढ़ लिया, जो वैसा ही था जैसा हमने इससे पूर्व स्पितुक मठ के गस्टर उत्सव में चाम नर्तकों को धारण करते देखा था। दीर्घ काल तक झूमने, हिलने एवं चीखने के पश्चात वे हमारे प्रश्नों के उत्तर प्रदान करने के लिए तत्पर हुईं। ऐसा माना जाता है कि उनकी इस स्थिति में कुछ दिव्य आत्माएँ उनके शरीर पर आधिपत्य जमा लेती हैं। वे उन आत्माओं एवं हमारे मध्य एक माध्यम की भूमिका निभाती हैं जिनके द्वारा हम उन आत्माओं से चर्चा कर सकते हैं। प्रश्न पूछने से पूर्व हमने उन्हें एक श्वेत दुपट्टा अर्पित किया जिसे उन्होंने उत्तर देने से पूर्व हमें वापिस दे दिया। हमारे परिदर्शक अर्थात् गाइड ताशी ने एक दुभाषिये की भूमिका निभाते हुए हमारे प्रश्नों को एक भिन्न भाषा में अनुवादित कर उन्हें सुनाया। हमने अनुमान लगाया कि वह लद्दाखी भाषा होगी। उनका उत्तर सुनने के पश्चात ताशी ने उन्हें पुनः हिन्दी/अंग्रेजी में अनुवाद कर हमें बताया।

बौद्ध दैवज्ञ के साथ प्रश्नोत्तरी

प्रत्येक प्रश्न सुनने के पश्चात पद्मा जी गेहूं के कुछ दानों को डमरू पर छिड़कती थीं। दाने कहाँ गिर रहे हैं, उसके आधार पर वे हमें उत्तर प्रदान कर रही थीं। हममें से कुछ के कोई प्रश्न नहीं थे। हमने केवल उनसे आशीष माँगा। हो सकता है कि हमारे इस व्यवहार को उन्होंने अपनी दैवी शक्ति व क्षमता पर हमारे विश्वास की कमतरता माना हो। किन्तु हम असमंजस में थे। इस प्रकार के व्यक्तिगत व अन्तरंग प्रश्नोत्तरी के लिए एकांत एवं घनिष्ठता की आवश्यकता होती है जो लोगों से भरे उस कक्ष में उपलब्ध नहीं था। हममें से कुछ लोगों ने सामान्य प्रश्न अवश्य पूछे थे, जैसे क्या भविष्य में उनके स्वास्थ्य में सुधार होगा? इन प्रश्नों के वे सामान्य व व्यापक उत्तर दे रही थीं, जैसे आपके शरीर का भार आवश्यकता से अधिक है, अतः आपको भविष्य में कष्ट हो सकता है अथवा आप वैद्य से आवश्यक सलाह लें, आदि।

हमारे वाहन चालक ने अपने स्वर व भावभंगिमाओं द्वारा पूर्ण विश्वास प्रदर्शित करते हुए उनसे लद्दाखी भाषा में प्रश्न किया। तब उन्होंने उसके कष्ट का पूर्ण रूप से संज्ञान लेते हुए अत्यंत आत्मीयता से उसे लद्दाखी भाषा में उत्तर दिया। हमारा वाहन चालक उनके उत्तर से अत्यंत संतुष्ट था। हमारे सन्दर्भ में कदाचित हमारी भाषा से लद्दाखी भाषा तथा विपरीत अनुवाद करने में हमारे प्रश्नों एवं उनके उत्तरों के सटीक भाव कहीं लुप्त हो रहे थे। इसीलिए हम उनकी इस शक्ति का अनुभव नहीं ले सके।

सभी के प्रश्न समाप्त होते ही पद्मा जी अपनी तन्मयावस्था से बाहर आयीं तथा पूर्व रूप से आचरण करने लगीं। किन्तु उनके मुख पर थकान स्पष्ट दिखाई पड़ रही थी। कुछ क्षण पूर्व वे जिस उग्र रूप में स्थित थीं, उससे बड़ी मात्रा में उनकी उर्जा व्यय होती होगी। सम्पूर्ण कालावधि में यदि कुछ उन्हें विचलित कर रहा था, तो वह था उनका नन्हा पोता।

पुनः सामान्य स्थिति में प्रवेश

सामान्य स्थिति में पुनः प्रवेश करते ही पद्मा जी हमसे हिन्दी भाषा में वार्तालाप करने लगीं। हम यह विचार करने के लिए विवश हो गए कि उनकी तन्मयावस्था में हमें एक अनुवादक की आवश्यकता क्यों पड़ी? हिन्दी भाषा में वार्तालाप करते हुए हम उनसे अधिक आत्मीयता से जुड़ सकते थे। किन्तु हमें बताया गया कि अपनी तन्मयावस्था में वे केवल तिब्बती भाषा में ही संवाद कर सकती हैं। उस क्षण मुझे यह आभास हुआ कि वे तिब्बती भाषा में संवाद कर रही थीं, ना कि लद्दाखी भाषा में।

पद्मा जी से वार्तालाप करते हुए हमें ज्ञात हुआ कि वे अपनी वंशावली एवं अपने पारिवारिक परम्पराओं के आधार पर बौद्ध दैवज्ञ बनी हैं। पद्मा जी से पूर्व उनके दादाजी भी बौद्ध दैवज्ञ थे तथा उन्होंने अपनी धरोहर पद्मा जी को विरासत के रूप में प्रदान की थी। दैवज्ञ पदवी प्राप्त करने के लिए पद्मा जी ने अनेक बौद्ध लामाओं से प्रशिक्षण प्राप्त किया था। वे अपने दैवज्ञ प्राप्ति की प्रक्रिया के विषय में अधिक चर्चा करने में उत्सुक नहीं थीं। ना ही वे इस प्रक्रिया के विषय में सामान्य ज्ञान प्रदान करने के लिए तत्पर थीं। अतः तिब्बती बौद्ध धर्म के अंतर्गत एक दैवज्ञ आत्मा की पहचान कैसे की जाती है, इस विषय पर मैंने एक विडियो एवं संस्करण ढूंढा है। आप इसे देखकर आवश्यक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।

श्रद्धा व सम्मान

हम इस तथ्य से अत्यंत ही आनंदित थे कि हमें एक स्त्री बौद्ध दैवज्ञ से भेंट करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। हमने प्रत्यक्ष अनुभव किया कि उनके गाँव के स्थानिक अपने बौद्ध दैवज्ञ पद्मा जी से अत्यंत श्रद्धा व सम्मान से व्यवहार करते हैं। पद्मा जी इसे अपना सौभाग्य मानती हैं कि भगवान ने उन्हें लोगों के कष्टों एवं समस्याओं के निवारण के लिए एक माध्यम  के रूप में चयनित किया है। अनेक दुखियारे उनके पास विविध समस्याएं लेकर आते हैं। वहां से वापिस जाते समय वे अपने साथ समस्याओं का निवारण ले जाते हैं। यदि संतोषजनक निवारण प्राप्त ना भी हो तो अपने साथ कम से कम एक आशा तथा आनंद अवश्य लेकर जाते हैं।

और पढ़ें – दिल्ली श्रीनगर लेह सड़क यात्रा – जहां मार्ग ही लक्ष्य बन जाता है!

श्रद्धा एवं विश्वास

श्रद्धा उसे ही होती है जिसके भीतर विश्वास होता है। मैंने उस कक्ष में बैठे सभी लद्दाखियों में पद्मा लोमा जी के प्रति असीम श्रद्धा एवं विश्वास देखा। उन्हें पूर्ण विश्वास था कि उनके बौद्ध दैवज्ञ के पास उन की सभी समस्याओं एवं कष्टों का निवारण है। मुझे आभास हुआ कि इस प्रकार की श्रद्धा एवं विश्वास कुछ क्षणों में निर्मित नहीं होती हैं। ऐसी श्रद्धा व विश्वास का निर्माण होने में एक कालावधि व्यतीत हो जाती है। अपने अनेक अनुभवों द्वारा पुष्टिकरण के पश्चात् ही हम किसी नवीन संकल्पना पर विश्वास करने के लिए तत्पर होते हैं।

मेरे लिए दैवी आत्मा पद्मा लामोजी से प्रत्यक्ष भेंट करना स्वयं में एक अनोखा अनुभव था। साथ ही उनकी पूर्ण तन्मयावस्था में लिप्त होने की प्रक्रिया को भी प्रत्यक्ष देखने का अवसर प्राप्त हुआ। वे जिस प्रकार से लोगों के प्रश्नों एवं समस्याओं को सुनकर उन्हें उत्तर दे रही थीं, वह भी अत्यंत दर्शनीय था। अंत में वे जिस प्रकार एक सामान्य स्थिति में पुनः आयीं तथा जिस सहजता से एक अनुरक्त दादी की भूमिका में समाहित हो गयीं, यह सब अनुभव करना हमारे लिए अद्वितीय था। स्वयं को एक भूमिका से दूसरी भूमिका में अत्यंत सहजता एवं सत्यता से आत्मसात करना, अनेक वर्षों के अनुभव से ही संभव हो सकता है।

वे हमें एक असाधारण एवं दिव्य सिद्धि से परिपूर्ण स्त्री प्रतीत हुईं।

अनुवाद: मधुमिता ताम्हणे

The post लद्दाख की महिला बौद्ध दैवज्ञ से एक अविस्मरणीय भेंट appeared first on Inditales.

]]>
https://inditales.com/hindi/mahila-bouddh-devagya-ladakh/feed/ 0 2841
लद्दाख के स्पितुक बौद्ध मठ का रहस्यमयी चाम नृत्य https://inditales.com/hindi/cham-nritya-spituk-math-ladakh/ https://inditales.com/hindi/cham-nritya-spituk-math-ladakh/#comments Wed, 22 Jan 2020 02:30:17 +0000 https://inditales.com/hindi/?p=1673

बौद्ध चाम नृत्य एक आनुष्ठानिक नृत्य है। हिमालयीन क्षेत्रों, विशेषतः लद्दाख के विभिन्न बौद्ध मठों में इस उत्सव का आयोजन किया जाता है। प्रत्येक मठ अपने पञ्चांग के अनुसार भिन्न भिन्न दिवसों में इस उत्सव का आयोजन करता है तथा अपना स्वयं का गुस्तोर उत्सव मनाता है। यह लद्दाख का सर्वाधिक महत्वपूर्ण उत्सव है। मैंने […]

The post लद्दाख के स्पितुक बौद्ध मठ का रहस्यमयी चाम नृत्य appeared first on Inditales.

]]>

बौद्ध चाम नृत्य एक आनुष्ठानिक नृत्य है। हिमालयीन क्षेत्रों, विशेषतः लद्दाख के विभिन्न बौद्ध मठों में इस उत्सव का आयोजन किया जाता है। प्रत्येक मठ अपने पञ्चांग के अनुसार भिन्न भिन्न दिवसों में इस उत्सव का आयोजन करता है तथा अपना स्वयं का गुस्तोर उत्सव मनाता है। यह लद्दाख का सर्वाधिक महत्वपूर्ण उत्सव है। मैंने जनवरी के मास में लद्दाख का भ्रमण किया था। तब लेह के समीप स्थित स्पितुक मठ में इस गुस्तोर उत्सव में भाग लेने का अवसर प्राप्त हुआ।

मुस्कुराती हुई लद्दाखी महिला
मुस्कुराती हुई लद्दाखी महिला

बुद्ध एवं बौध धर्म को मैं जितना समझती थी, चाम नृत्य उससे ठीक विपरीत प्रतीत हुआ। चाम नृत्य रंगों से परिपूर्ण अत्यंत मनभावन उत्सव है जिसे लामा कठोर अनुष्ठानों एवं नियमों के अंतर्गत प्रस्तुत करते हैं। एक ओर हम उन्हें पहाड़ों के ऊपर स्थित बौध मठों में रहते एवं प्रार्थना करते देखते हैं, वहीं दूसरी ओर उन्हें इस मनमोहक नृत्य में तल्लीन देखना अत्यंत विस्मयकारी है। हिमायालीन बौद्ध मठ, जो अन्यथा शांत क्षेत्र होते हैं, इस उत्सव के समय जीवंत हो उठते हैं। रंगबिरंगे चटक एवं भव्य परिधान धारण किये लामा संगीत के सुरों पर थिरकते एवं झूमते हुए नृत्य करते हैं।

और पढ़ें – कड़कती सर्दियों में लद्दाख की सड़कें

चाम नृत्य का इतिहास

नीला मुखौटा पहने चाम नृत्य करते एक बोद्ध भिक्षुक
नीला मुखौटा पहने चाम नृत्य करते एक बोद्ध भिक्षुक

यह एक प्राचीन नृत्य परंपरा है जिसकी उत्पत्ति संभवतः तिब्बत में हुई थी। किवदंतियों के अनुसार इस नृत्य परंपरा का सम्बन्ध ८ वीं. शताब्दी के गुरु पद्मसंभव से है। ऐसा माना जाता है कि तिब्बत के तत्कालीन सम्राट त्रिशोंग डेस्टन ने गुरु पद्मसंभव को आमंत्रित किया था। वे उनसे उन आत्माओं से मुक्ति प्राप्त करने में सहायता चाहते थे जो उन्हें साम्ये बौद्ध मठ निर्माण करने में अड़चन उत्पन्न कर रहे थे। दिन के समय जो भी निर्माण कार्य सम्पूर्ण किया जाता था, रात्रि में वे आत्माएं उसे समूल नष्ट कर देती थीं। गुरु पद्मसंभव ने उन आत्माओं को नष्ट करने के लिए अनुष्ठान किये थे। समय के साथ ये अनुष्ठान बढ़ते चले गए। आज ये अनुष्ठान चाम नृत्य के रूप में किया जाता है। यह अनुष्ठान विशेषतः महायान बौद्ध धर्म से सम्बंधित है।

पीला मुखौटा पहने चाम नर्तक
पीला मुखौटा पहने चाम नर्तक

‘कोर ऑफ़ कल्चर’ द्वारा चाम नृत्य पर किये विस्तृत अनुसंधान के अनुसार यह नृत्य संभवतः गुरु पद्मसंभव के इस घटना से भी पूर्व अस्तित्व में था। समय के साथ इसमें परिवर्तन आते चले गए। यह नृत्य एक तांत्रिक नृत्य से सार्वजनिक प्रदर्शन में परिवर्तित हो गया है।

चाम, यह शब्द इस नृत्य में प्रयुक्त एक मुद्रा से उत्पन्न है। इस नृत्य शैली में इस मुद्रा का प्रयोग व्यापक रूप से किया जाता है। इस नृत्य शैली में हस्त मुद्राओं, पहनावों तथा हाथों में धारण किये चिन्हों का अत्यंत महत्व है। जैसे, हाथों में तलवार धारण करने का अर्थ है अज्ञानता का नाश करना।

और पढ़ें – दिल्ली श्रीनगर लेह सड़क यात्रा – जहां मार्ग ही लक्ष्य बन जाता है!

कुछ इतिहासकारों का मानना है कि इस परम्परा का आरम्भ शाक्यमुनि अर्थात् ऐतिहासिक बुद्ध के जीवनकाल में हुआ था। यह सिद्धांत इस परंपरा का उद्भव छठीं ईसा पूर्व बताता है।

मुखौटा नृत्य अथवा चाम नृत्य की कथा

लद्दाख में चाम नृत्य प्रदर्शन का विडियो देखें।

इस नृत्य का पूर्ण उद्देश्य है, मानवता की भलाई के लिए दुष्ट आत्माओं का अंत। यह कैसे किया जाता है, यह अत्यंत रोचक है। उत्सव से पूर्व बौद्ध भिक्षुक लम्बे समय तक ध्यान एवं प्रार्थना करते हैं। गुस्तोर उत्सव के दिन, वे बेल बूटेदार जरी से निर्मित परिधान धारण करते हैं। सर पर भयंकर मुखौटे तथा हाथों में प्रतीकात्मक वस्तुएं धारण करते हैं। इस प्रकार भयावह रूप धरकर वे दुष्ट आत्माओं को डराते हैं तथा उन्हें वहां से भगा देते हैं।

चाम नृत्य की गोपनीयता

सीढ़ियों से नीचे आते मुखौटाधारी नर्तक
सीढ़ियों से नीचे आते मुखौटाधारी नर्तक

प्रारम्भ में यह नृत्य अत्यंत गोपनीय हुआ करता था। लामा एकांत में यह नृत्य प्रदर्शन करते थे। मेरे अनुमान से तांत्रिक तत्वों से जुड़े होने के कारण इस परंपरा को गुप्त रखा गया था।

वर्तमान में यह नृत्य पूर्णतः सार्वजनिक प्रदर्शन में परिवर्तित हो गया है। गाँव निवासी मठ के चप्पे चप्पे पर स्थान ग्रहण कर बैठ जाते हैं। मध्य में केवल नर्तकों द्वारा प्रदर्शन के लिए पर्याप्त स्थान छोड़ देते हैं। चारों ओर लगे कैमरे भविष्य के लिए इस नृत्य को कैद करते रहते हैं। तकनीकी की सहायता से आज इस नृत्य को हम कहीं भी बैठकर देख सकते हैं तथा इसका आनंद ले सकते हैं।

और पढ़ें – कुचिपुड़ी गाँव – आंध्र प्रदेश का प्राचीन नृत्य ग्राम

यह नृत्य परम्परा लामाओं में पीढ़ी दर पीढ़ी आगे बढ़ रही है। इसके विषय में कहीं भी लिखित प्रमाण उपलब्ध नहीं है। हाँ, मेरे द्वारा प्रत्यक्ष लिया गया यह विडियो आने वाली पीढ़ियों के लिए अवश्य एक वैद्य प्रमाण है।

लाल मुखौटाधारी नर्तक
लाल मुखौटाधारी नर्तक

चाम एक तांत्रिक अनुष्ठान है। इसकी जड़ें हिन्दू तांत्रिक सम्प्रदाय की प्राचीन भारतीय तांत्रिक परम्पराओं में पाया गया है।

दुष्ट आत्माओं का अंत

ऐसा माना जाता है कि नृत्य करते लामा भिक्षुओं में रक्षात्मक देवी-देवता अवतरित हो जाते हैं। नृत्य करते समय वे इन देवी-देवताओं के प्रत्यक्ष स्वरूप बन जाते हैं। मेरा अनुभव जानना चाहें तो, स्पितुक मठ में मैंने जो चाम प्रदर्शन देखा, वहां मुझे ऐसा कुछ भी प्रतीत नहीं हुआ।

नृत्य प्रदर्शन के समय लामा जो विस्तृत मुखौटे धारण करते हैं, उन्हें मिट्टी एवं सूत के मिश्रण द्वारा निर्मित किया जाता है। प्राकृतिक रंगों द्वारा उन्हें रंग कर उन पर बहुमूल्य घातुओं द्वारा चमक दी जाती है। प्रत्येक मुखौटा किसी वेशेष देवता को दर्शाता है। जैसे, काला मुखौटा धारण किया हुआ लामा महाकाल का स्वरूप धरता है, वहीं पीला मुखौटा धन के देव वैश्रमण को दर्शाता है। कुछ मुखौटों पर हिरण तथा भैंस जैसे पशुओं के शीश की आकृति होती है। मध्य में विदूषक जैसे परिधान धारण कर भी कई लामा नृत्य करते हैं। मेरे गाइड के अनुसार ये लामा अनुयायियों को दर्शाते हैं।

मैंने केवल पुरुष लामाओं को ही यह नृत्य प्रदर्शित करते देखा है। मैंने इसके विषय में जितना भी साहित्य पढ़ा था, वहां भी केवल पुरुष बौद्ध भिक्षुओं द्वारा यह नृत्य किये जाने का उल्लेख था। नृत्य के कुछ भागों में नर्तक देवी-देवताओं के जोड़े को दर्शाते हुए नृत्य करते हैं मानो भगवान् अपनी पत्नी सहित पधार रहे हैं। यहाँ भी दोनों पात्र पुरुष ही निभाते हैं।

स्पितुक मठ के गुस्तोर उत्सव का चाम नृत्य

यह मेरा सौभाग्य था कि मुझे लेह के बाहर एक छोटी पहाड़ी के ऊपर स्थित स्पितुक मठ के गुस्तोर उत्सव में भाग लेने का स्वर्णिम अवसर प्राप्त हुआ। हमने दिन का आरम्भ इस बौद्ध मठ के दर्शन से किया जहां तक पहुँचने के लिए ऊंची चढ़ाई करनी पड़ती है। यह चढ़ाई अत्यंत आनंददायी थी। चारों ओर लेह नगरी एवं लेह विमानतल का मनमोहक दृश्य था। मार्ग में हम कई लद्धाखियों से मिले। हमने जब उनके छायाचित्र लेने की इच्छा व्यक्त की, उन्होंने सहर्ष हमारे आग्रह को मान कर हमें कई चित्र लेने दिए।

लेह का स्पितुक बौद्ध मठ

स्पितुक मठ में, मुख्य सभागृह के पृष्ठभाग में स्थित एक कक्ष में हमने प्रवेश किया। वहां सम्पूर्ण भित्तियाँ बौद्ध कथाओं, चिन्हों तथा प्रतिमाओं से भरी हुई थीं। स्पितुक मठ का निर्माण ११वी. सदी में किया गया था, वहीं भित्तिचित्र १४वी. शताब्दी में बनाए गए हैं। महीन चूने द्वारा श्वेत चिंतामणी, षट-भुजाधारी महाकाल, वैश्रवण, वज्र भैरव, श्री देवी तथा चामुंडी सहित अनेक उपासिकाओं की प्रतिमाएं भी बनायी गयी थीं। आपको अचरज हो रहा होगा कि बौद्ध मठ के भीतर बौद्ध धर्म के चिन्हों के साथ हिन्दू देवी-देवताओं के भी चित्र हैं। इन्हें देख आप सोच में पड़ जाते हैं कि क्या इनमें कोई भेद है?

मठ के भीतर विभिन्न मंदिरों के दर्शन के उपरांत हम एक प्रांगण में पहुंचे जहां नृत्य प्रदर्शन के प्रबंध किये जा रहे थे। सम्पूर्ण प्रांगण दर्शकों से भरने लगा था। सौभाग्य से हमें एक मुंडेर के पीछे, एक ऊंचे स्थान पर बैठने के लिए कहा गया जहां से हमें प्रांगण का दृश्य भलीभांति दिखाई पड़ रहा था। कई लोग छत पर, खिड़कियों पर तथा प्रांगण के दूसरी ओर भी बैठे थे।

स्पितुक मठ का गुस्तोर उत्सव

लद्धाख का स्पितुक मठ
लद्धाख का स्पितुक मठ

उत्सव का आरम्भ भित्ति पर टंगे एक विशाल थान्ग्का के अनावरण से हुआ। शनैः शनैः जब इसका अनावरण हो रहा था, तब ऐसा प्रतीत हो रहा था मानो देवी देवताओं को अनुष्ठान में भाग लेने के लिए आमंत्रित कर रहा हो। कुछ भिक्षुक संगीत वाद्य बजा रहे थे। अचानक एक ओर स्थित ऊंची सीढियाँ आकर्षण का केंद्र बिंदु बन गयी। कई भिक्षुक रंगबिरंगे परिधान तथा मुखौटे धारण कर सीढियाँ उतर रहे थे। वे जोड़ों में अथवा छोटे छोटे समूहों में आते, अपना निर्धारित नृत्य प्रदर्शन करते तथा वहां से चले जाते थे। मध्य में कुछ भिक्षुक दर्शकों से हंसी-मजाक करते, उन्हें छेड़ते तथा चले जाते थे। दोपहर के भोजन का समय होते ही सब दर्शकों ने भोजन के डब्बे खोले तथा खाने लगे। भोजन ग्रहण करने के लिए अनुष्ठान में अल्प विराम दिया गया था। इतना समय उपलब्ध था कि हमने अपने अतिथिगृह ‘होटल दी ग्रैंड ड्रैगन’ जाकर भोजन किया।

गुस्तोर उत्सव का मेला – लद्दाख
गुस्तोर उत्सव का मेला – लद्दाख

भोजन के समय तक मठ के बाहर मेला लग गया था। मठ के पृष्ठभाग से हमें तम्बोला की बोलियों के स्वर सुनायी दे रहे थे। मठ के सामने कई छोटी छोटी दुकानें लग गयी थीं जहां खाद्य पदार्थों सहित कई प्रकार की वस्तुएं बिक्री की जा रही थीं। हम भीड़ में लगभग फंस गए थे। न जाने कहाँ से अचानक इतने लोग एकत्र हो गए थे। दोपहर के भोजन के उपरांत भी हमें उत्सव के प्रदर्शनों को देखने की इच्छा थी। किन्तु खचाखच भरी भीड़ को देख हमें आभास हो गया कि मठ के भीतर जाना लगभग असंभव है। अतः हमने भीतर ना जाकर लेह में कुछ और करने का निश्चय किया।

इतना अवश्य कहना चाहूंगी कि जितना आनंद मुझे नृत्य देखने में आ रहा था, उतना ही आनंद मुझे नृत्य देखते लद्दाख के लोगों को देखने में भी आ रहा था। वृद्ध लोगों ने हाथों में प्रार्थना चक्र लिया हुआ था तथा वे उसे ऐसे घुमा रहे थे मानो यह उनका स्वभाव बन गया हो। कई स्त्रियों ने फिरोजा मणी के सुन्दर हार गले में पहने हुए थे। सभी बालक बालिकाएं सुन्दर एवं गोल-मटोल थे।

समापन

लद्दाख के गुस्तोर उत्सव के बाज़ार
लद्दाख के गुस्तोर उत्सव के बाज़ार

बौद्ध मठ के इस उत्सव को देखना तथा इसमें भाग लेना, यह मेरे लिए अतुलनीय अनुभव था। मार्ग में लगे बैनरों में इस उत्सव को ‘हिमालय का कुंभ मेला’ कहा गया था। मठ से वापिस आते समय लोगों की जो भीड़ हमने देखी, उससे तो हमें भी यह कुंभ मेला ही प्रतीत हुआ। ऐसी भीड़ जिसमें परिवार एवं मित्रों से बिछड़ सकते हैं, ऐसा कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी।

लद्दाख के विभिन्न मठों में गुस्तोर उत्सव भिन्न भिन्न दिवसों में वर्ष भर मनाया जाता है। अतः अपनी यात्रा का नियोजन करते समय इन उत्सवों के दिन, स्थान एवं समय ज्ञात कर लें। अपनी यात्रा का नियोजन ऐसे करें कि कम से कम एक मठ में आपको इस उत्सव में भाग लेने का अवसर प्राप्त हो सके। 

अनुवाद: मधुमिता ताम्हणे

The post लद्दाख के स्पितुक बौद्ध मठ का रहस्यमयी चाम नृत्य appeared first on Inditales.

]]>
https://inditales.com/hindi/cham-nritya-spituk-math-ladakh/feed/ 2 1673
द्रास युद्ध स्मारक – कारगिल – जहां भावनाएं हिलोरें मारती हैं https://inditales.com/hindi/kargil-drass-war-memorial-ladakh/ https://inditales.com/hindi/kargil-drass-war-memorial-ladakh/#comments Wed, 24 Jan 2018 02:30:40 +0000 https://inditales.com/hindi/?p=615

कारगिल के समीप स्थित द्रास युद्ध स्मारक से हम सब अवगत हैं। हम उस युग से सम्बन्ध रखते हैं जो १९९९ में हुए कारगिल युद्ध का साक्षी है। इस युद्ध के हुतात्मा सैनिक हमारे आसपास ही उपस्थित वीर योद्धा थे। उस समय दूरदर्शन पर दिखाए जाने वाले कारगिल युद्ध के छायाचित्रों के हम सब ने […]

The post द्रास युद्ध स्मारक – कारगिल – जहां भावनाएं हिलोरें मारती हैं appeared first on Inditales.

]]>
द्रास युद्ध स्मारक - कारगिल
द्रास युद्ध स्मारक – कारगिल

कारगिल के समीप स्थित द्रास युद्ध स्मारक से हम सब अवगत हैं। हम उस युग से सम्बन्ध रखते हैं जो १९९९ में हुए कारगिल युद्ध का साक्षी है। इस युद्ध के हुतात्मा सैनिक हमारे आसपास ही उपस्थित वीर योद्धा थे। उस समय दूरदर्शन पर दिखाए जाने वाले कारगिल युद्ध के छायाचित्रों के हम सब ने दर्शन किये थे। उन्ही वीर सैनिकों की स्मृति में निर्मित इस युद्ध स्मारक के भी हमने दूरदर्शन पर अनेक बार दर्शन किये हैं। तथापि वहां प्रत्यक्ष उपस्थित होने पर जो भावनाएं मन में हिलोरें मारती हैं, वह कल्पना से परे है। उसका अनुभव कारगिल पहुँच कर ही प्राप्त होता है।

राष्ट्रीय राजमार्ग १ द्वारा जम्मू से लेह की यात्रा के समय जैसे ही हमने जोजिला दर्रा पार किया, हमने इस युद्ध स्मारक के दर्शन का निश्चय किया। सैनिक परिवार से सम्बंधित होने के कारण मेरा बाल्यकाल सैनिक छावनियों में बीता है। अतः कोई भी युद्ध स्मारक एवं सम्बंधित संग्रहालय मेरे हेतु नवीन आकर्षण नहीं थे। तथापि उस सांझबेला में द्रास हुतात्मा स्मारक पर बिताए कुछ क्षणों में जो भावुकता की चरम अनुभूति मुझे हुई, मैं उस अनुभूति के लिए तैयार नहीं थी।

गुलाबी दीवारों से घिरे इस स्मारक के प्रवेशद्वार से हम स्मारक के भीतर पहुंचे। इस स्मारक की एक भित्त पर बड़े बड़े अक्षरों में लिखा था-
“Forever in operation.
All save some, some save all, gone but never forgotten.”
अर्थात्,
“सदैव कार्यरत।
सब कुछ को बचाते हैं, कुछ सभी को बचाते हैं। विलीन पर अमर हो जाते हैं।”

द्रास युद्ध स्मारक

द्रास युद्ध स्मारक - विजयपथ
द्रास युद्ध स्मारक – विजयपथ

प्रवेश द्वार पर अपना नाम पंजीकृत करवाकर हम स्मारक प्रांगण के भीतर पहुंचे। पथ के दोनों ओर भारत के तिरंगे झंडों की पंक्ति लगी हुई थी। इस पगडंडी के अंत में एक ऊंचे स्तम्भ पर विशाल तिरंगा फहरा रहा था। इसे देख हमारी जात-पात, लिंग, समृधि, सफलता इत्यादि मानो कहीं लुप्त हो गए थे। शेष थी तो केवल हमारी भारतीयता। तिरंगे को इस भान्ति पवन में फड़फड़ाते देख अपनी भारतीयता का उत्सव मनाने की इच्छा उत्पन्न हुई। हुतात्माओं की अमर जीवनी को दर्शाते इस स्मारक का स्पर्श होते ही गर्व का अनुभव होने लगा। हमने उस भव्य तिरंगे के सानिध्य में कई छायाचित्र खींचे।

इस द्रास युद्ध स्मारक को घेरे वे सर्व पर्वत शिखर उपस्थित हैं जिन्हें युद्ध पूर्व, शत्रुओं ने हथियाने का असफल प्रयास किया था। स्मारक की ओर जाते इस पथ को विजयपथ भी कहा जाता है। विजयपथ के मध्य एक विश्राम लेकर मैंने अपनी दृष्टी चारों ओर दौड़ाई। अपने चारों ओर गोलियां दागते बंदूकों के दृश्य को आँखों के समक्ष सजीव करने का प्रयास करने लगी। उस दृश्य को आँखों के समक्ष सजीव करने में सफल हो भी जाऊं, परन्तु शत्रुओं पर गोलियां बरसाते, स्वयं पर गोलियां झेलते वीर सैनिकों की मनःस्थिति मैं चाह कर भी अनुभव नहीं कर सकती थी। कल्पना एवं यथार्थ के बीच का यही अंतर मुझे सदा स्मरण कराता रहेगा कि हम अपने घरों में सुरक्षित जीवन व्यतीत करते हैं जबकि हमारी सुरक्षा में वीर सैनिक यहाँ निरंतर शत्रुओं का सामना करते रहते हैं। उन शहीद वीर सैनिकों को शत् शत् नमन करने की एवं उनके अंतिम क्षणों को इसी स्थल पर सजीव कल्पना करने की इच्छा मुझे इस स्मारक तक खींच लायी थी।

“कारगिल विजय दिवस हर वर्ष २६ जुलाई को मनाया जाता है।”

द्रास युद्ध स्मारक - प्रवेश द्वार
द्रास युद्ध स्मारक – प्रवेश द्वार

विजय पथ पर चलते हुए हम अमर ज्योति की ओर आगे बढ़े। यह अमर ज्योति उन वीर सैनिकों को समर्पित है जिन्होंने कारगिल युद्ध में देश की रक्षा करते अपने प्राणों की आहूति दे दी। समीप ही एक सैनिक कारगिल युद्ध के परिप्रेक्ष्य की जानकारी प्रदान कर रहा था। अमर वीर सैनिकों की गाथा सुनाते उसके स्वरों से उमड़ता गर्व छुपाये नहीं छुप रहा था। वह यह भलीभांति जानता था कि अगला शहीद वह स्वयं भी हो सकता है। उसने हमारा ध्यान बाएं स्थित वीरभूमि में रखे स्मृति शिलाओं की ओर खींचा, जो अमर वीर सैनिकों को श्रद्धांजलि स्वरुप स्थापित किये गए थे। उसने हमें दायें स्थित मनोज पांडे संग्रहालय भी देखने को कहा जहां युद्ध के अवशेष संग्रह कर रखे गए हैं।

वीरभूमि स्थित स्मृति शिलाएं

द्रास युद्ध स्मारक - वीर भूमि
द्रास युद्ध स्मारक – वीर भूमि

शौर्यसंगीत की ध्वनी के मध्य हम वीर भूमि को ओर बढ़े। वहां प्रत्येक शहीद सैनिक को समर्पित एक शिलाखंड स्थापित किया गया था। प्रत्येक शिलाखंड पर शहीद का नाम एवं सेना में उसके पद के साथ साथ, संक्षिप्त में उसकी शौर्य गाथा अंकित थी। उन्होंने किस तरह देश की रक्षा में अपने प्राण न्योछावर किये यह पढ़ते ही गला भर आया। मैंने पूरी श्रद्धा से सर्व शिलाखंडों पर अंकित नाम पढ़ते हुए, उन्हें नमन कर, मन ही मन श्रद्धांजलि अर्पित करना आरम्भ किया। परन्तु कुछ क्षण उपरांत, अश्रुपूरित चक्षुओं के कारण नामों को पढ़ने में असमर्थ हो गयी और वहां से आगे बढ़ गयी।

द्रास युद्ध स्मारक - कारगिल समारक
द्रास युद्ध स्मारक – कारगिल समारक

वहां मेरी दृष्टी सुन्दर प्रतिमा पर पड़ी जहां हाथ में तिरंगा लिए, जीत का उत्सव मनाते वीर सैनिकों को प्रदर्शित किया गया था।

अमर वीर सैनिक ज्योति

द्रास युद्ध स्मारक - अमर ज्योति
द्रास युद्ध स्मारक – अमर ज्योति

भारी हृदय से मैं अमर ज्योति पर वापिस आ गयी। इसके आधार पर पं. माखनलाल चतुर्वेदी द्वारा वीर रस में रचित कविता “पुष्प की अभिलाषा” अंकित थी। प्राथमिक शाला में पढ़ी इस कविता का गूढ़ अर्थ मैं आज समझ पायी हूँ जब एक पुष्प अपनी अभिलाषा व्यक्त करता है कि वह ना तो किसी देवी देवता को अर्पण होना चाहता है, ना ही किसी कन्या अथवा प्रेमिका को रिझाना चाहता है। वह केवल देश की रक्षा में प्राणों की आहूति देने को तत्पर वीर सैनिकों के चरणों को स्पर्श करना चाहता है। अतः वह प्रार्थना करता है कि उसे देशभक्त वीर सैनिकों के पथ पर बिखेर दिया जाय।

अमर ज्योति के पृष्ठभूमि पर एक सुनहरी भित्त है जिस पर शहीद वीर सैनिकों के नाम अंकित हैं। आत्मविभोर हो हम सब वहां चुप्पी साधे खड़े थे। ये वे वीर सैनिक थे जिन्होंने हमारी रक्षा करते अपने प्राण गवाँए थे जबकि हम उस समय शान्तिपूर्वक निद्रा में लीन थे अथवा क्षुद्र समस्याओं में उलझे हुए थे।

मनोज पांडे दीर्घा

स्मृति कुटिया - मनोज पण्डे दीर्घा - द्रास युद्ध स्मारक
स्मृति कुटिया – मनोज पण्डे दीर्घा – द्रास युद्ध स्मारक

अमर वीर सैनिक ज्योति पर कुछ और समय बिताकर हम मनोज पाण्डे दीर्घा की ओर बढ़े। इसे ‘हट ऑफ़ रेमेंबरेंस’ अर्थात स्मृतियों की कुटिया भी कहा जाता है।

अस्थि कलश - मनोज पण्डे दीर्घा
अस्थि कलश – मनोज पण्डे दीर्घा

प्रवेश द्वार पर ही एक वीर सैनिक की आवक्ष मूर्ति थी जिसके चारों ओर अस्थिकलश रखे हुए थे। इसे देखते ही मेरे आत्मसंयम का बाँध टूट गया और मैं फूट फूट कर रो पड़ी। कुछ क्षण पश्चात अपने आप को संभालकर जब चारों ओर देखा तो पाया कि वहां उपस्थित हर व्यक्ति की आँखें नम थीं। यहाँ आकर आत्मविभोर ना होना असंभव है।

अग्निपथ - हरिवंश राय बच्चन
अग्निपथ – हरिवंश राय बच्चन

एक फलक पर हरिवंशराय बच्चन द्वारा रचित कविता ‘अग्निपथ’ अंकित थी। कविता के साथ साथ कवी बच्चन के सुपुत्र अमिताभ बच्चन का प्रेरणादायक सन्देश लिखा था। एक वीर सैनिक द्वारा अपने पुत्र को लिखा एक पत्र भी वहां प्रदर्शित था। इसे पढ़कर हृदय में उठती हूक एवं भावनाएं शब्दों द्वारा व्यक्त करना मेरे लिए संभव नहीं है।

महावीर योद्धा

वीर विजयी सैनिक - द्रास युद्ध स्मारक
वीर विजयी सैनिक – द्रास युद्ध स्मारक

दीर्घा के भीतर युद्ध एवं युद्ध में शहीद सैनिकों के छायाचित्र प्रदर्शित किये गए थे। उनके दर्शन एक भावनात्मक यात्रा के समान था। दीर्घा के अंत में अधिग्रहण किया गया पाकिस्तानी ध्वज का भी छायाचित्र था। उसे देख हृदय में विजयी भावनाएं उभरीं। प्रतीकात्मक चिन्हों में भी इतनी शक्ति होती है जिसके लिए हम जी या मर सकते हैं।

वीर सैनिक - मनोज पण्डे दीर्घा
वीर सैनिक – मनोज पण्डे दीर्घा

परिसर के अन्य भागों में युवा सैनिक अपने अपने कार्यों में व्यस्त थे। कुछ बागवानी कर रहे थे, कुछ घास की सफाई कर रहे थे एवं कुछ पौधों को पानी दे रहे थे। उन युवक सैनिकों को गले लगाकर उन्हें आशीर्वाद देने की इच्छा उत्पन्न हुई। अतः उनके समीप जाकर मैंने कुछ सैनिकों से चर्चा की व उन्हें धन्यवाद दिया। उन्होंने भी सदा की तरह विनम्रता से मेरे धन्यवाद का उत्तर धन्यवाद से ही दिया। आयु में इतने छोटे होने के बाद भी उनमें परिपक्वता कूट कूट कर भरी हुई थी। उनमें से एक ने मुझे कहा कि जिस तरह हम अपना उत्तरदायित्व निभाते हैं, उसी तरह वे भी उनका उत्तरदायित्व ही पूर्ण करते हैं। काश उनकी इस परिपक्वता का एक अंश भी शहरी युवाओं में होता, जिन्हें केवल अपना अधिकार मांगना आता है। उत्तरदायित्व कई शहरी युवाओं के लिए एक अर्थहीन शब्द है।

स्मारक परिसर में जलपान गृह एवं स्मारिका विक्रय केंद्र भी है। सैनिक संस्कृति एवं अनुशासन से परिपूर्ण ये केंद्र पर्यटकों की आवश्यकता पूर्ण करने में सक्षम हैं।

इस परिसर में प्रसिद्ध बोफोर्स तोपों सहित कई तोपें, बंदूकें एवं हेलीकाप्टर इत्यादि का भी प्रदर्शन किया गया था। परन्तु मैंने उन्हें देखने में समय नहीं गंवाया। इन वस्तुओं के बिना मानवता अधिक प्रगति कर सकती है।

देशवासियों हेतु वीर सैनिकों का संदेश

सैनिकों का देश को सन्देश - द्रास युद्ध स्मारक
सैनिकों का देश को सन्देश – द्रास युद्ध स्मारक

द्रास युद्ध स्मारक परिसर से बाहर निकलते समय आपकी दृष्टी इन शब्दों पर पड़ती है जो वीर सैनिकों की ओर से देशवासियों के लिए सन्देश है। यह सन्देश हमसे कहता है कि जब हम वापिस घर लौटें तब अपने परिजनों एवं मित्रों से कहें कि हमारे कल को सुरक्षित बनाने हेतु उन्होंने अपना आज न्योछावर कर दिया है।

मैंने शिंडलर संग्रहालय समेत इस तरह के कई स्मारकों के दर्शन किये हैं। परन्तु ऐसी यात्रा मैंने इससे पहले कभी नहीं की। गर्व, विनम्रता, कृतज्ञता, भावुकता इन सभी भावनाओं का मिश्रित सा अनुभव हो रहा था। कारगिल नगर की ओर जाते मन में बार बार एक ही विचार उमड़ रहा था। सैन्य सेवा देश के प्रत्येक नागरिक हेतु आवश्यक होना चाहिए। कदाचित यही हमें सही मायनों में भारतीयता का बोध करा सकती है। तुच्छ अहंकारों से ऊपर उठ कर कदाचित यही सही अर्थ में देशप्रेम जगा सकती है। मेरे पास इन प्रश्नों के उत्तर नहीं है। परन्तु द्रास शहीद स्मारक के दर्शनोपरांत ऐसे विचार आपके मानसपटल पर अवश्य उभर कर आयेंगे।

कारगिल के द्रास युद्ध स्मारक के दर्शन हेतु सुझाव

स्मृति चिन्ह - द्रास युद्ध स्मारक - लद्दाख
स्मृति चिन्ह – द्रास युद्ध स्मारक – लद्दाख

• श्रीनगर से लेह जाते राष्ट्रीय राजमार्ग १द पर जोजिला दर्रा एवं कारगिल नगर के मध्य द्रास युद्ध स्मारक स्थित है।
• मुख्य मार्ग पर स्थित स्मारक की गुलाबी दीवारें आपको दूर से ही देख जायेंगी।
• स्मारक के दर्शन हेतु प्रवेशशुल्क नहीं है। तथापि अपना पहचान पत्र दिखा कर रजिस्टर में नाम का पंजीकरण आवश्यक है।
• स्मारिका केंद्र से आप कपडे, चीनी मिटटी के प्याले एवं अन्य कई वस्तुएं ले सकते हैं।
• परिसर में जलपान गृह सुविधा उपलब्ध है। तथापि कदाचित शहीद स्मारक के दर्शनोपरांत उसमें जलपान करने की आपकी मनःस्थिति न रहे।
• सामान्य जन हेतु इस स्मारक के दर्शन जून से अक्टूबर मास तक उपलब्ध होते हैं जब राजमार्ग यातायात हेतु खुला रहता है।
• आप से आशा रहेगी कि इस स्मारक के भीतर आपका आचरण परिपक्वता एवं सम्मान से परिपूर्ण हो।

अनुवाद: मधुमिता ताम्हणे

The post द्रास युद्ध स्मारक – कारगिल – जहां भावनाएं हिलोरें मारती हैं appeared first on Inditales.

]]>
https://inditales.com/hindi/kargil-drass-war-memorial-ladakh/feed/ 8 615
कड़कती सर्दियों में लद्दाख की यात्रा https://inditales.com/hindi/ladakh-peak-winters-experience/ https://inditales.com/hindi/ladakh-peak-winters-experience/#respond Thu, 05 Jan 2017 06:52:19 +0000 https://inditales.com/hindi/?p=67

सर्दियों में लद्दाख की यात्रा के नाम पर अधिकतर चादर ट्रैक ही प्रसिद्द है जो की बर्फ जमी ज़न्स्कर नदी पर किया जाता है और ट्रैकिंग की दुनिया में सबसे मुश्किल ट्रैक माना जाता है । लेकिन हम साधारण जन तो लद्दाख की इस जानलेवा सर्दी में चादर ट्रेक जैसे जोखिम भरी यात्रा नहीं कर […]

The post कड़कती सर्दियों में लद्दाख की यात्रा appeared first on Inditales.

]]>

सर्दियों में लद्दाख की यात्रा के नाम पर अधिकतर चादर ट्रैक ही प्रसिद्द है जो की बर्फ जमी ज़न्स्कर नदी पर किया जाता है और ट्रैकिंग की दुनिया में सबसे मुश्किल ट्रैक माना जाता है । लेकिन हम साधारण जन तो लद्दाख की इस जानलेवा सर्दी में चादर ट्रेक जैसे जोखिम भरी यात्रा नहीं कर सकते। इसका अर्थ यह कदापि नहीं है कि हम सर्दियों में लद्दाख नहीं जा सकते। यहां पर छोटी-छोटी सड़क यात्राएं होती है, जो आप लेह नगर में रह कर, कर सकते है। लेह में ऐसे होटल उपलब्ध है जहाँ आप आराम से रह सकते हैं, जो बाहर की कड़कती ठड़ में भी भीतर से गरम रहते  हैं, जैसा कि हमारा होटल ‘द ग्रैंड ड्रैगन लद्दाख’।

इन होटलों में केंद्रीय उष्णिकरण की व्यवस्था होती है जो ठण्ड में एक वरदान स्वरुप लगता है। लेह की इन अतिशय सुंदर और मनमोहक सड़क यात्राओं का पूर्ण लुत्फ उठाने के लिए मैंने लद्दाख में चार दिन बिताए।

राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या १ के सूचना पट
राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या १ के सूचना पट

सर्दियों में लद्दाख की लघु सड़क यात्राएं

चुंबकीय पहाड़ी से गुजरते हुए चिल्लिंग गांव की सैर – सर्दियों में लद्दाख

आधी जमी जान्स्कर नदी
आधी जमी जान्स्कर नदी

चिल्लिंग, प्रसिद्ध चादर यात्रा का प्रारंभ बिंदु है। यह यात्रा सर्दियों के दिनों में जांस्कर नदी पर की जाती है, जब इस नदी का पानी पूरी तरह से जम जाता है। यात्री इस जमी हुई नदी पर चलकर यह यात्रा करते हैं। लेकिन, अगर आप मेरी तरह है, जो यात्रा से अधिक सर्दियों में लद्दाख की नदियों और पर्वतों के नज़ारे देखने में रुचि रखते हैं, तो आपको चिल्लिंग की यात्रा जरूर करनी चाहिए। इस यात्रा के दौरान आपको जांस्कर नदी देखने का मौका भी मिलता है।

जांस्कर नदी और सिंधु नदी का संगम स्थल – सर्दियों में लद्दाख

जान्स्कर एवं सिन्धु नदी का संगम - सर्दियों में लद्दाख
जान्स्कर एवं सिन्धु नदी का संगम

इस यात्रा के दौरान जांस्कर नदी और सिंधु नदी के संगम बिंदु सबसे विहंगम दृश्य है। यह सबसे सुंदर और विनयशील संगम है जो मैंने आजतक देखा है। मैले से हरे रंग की सिंधु नदी लेह से बहती हुई प्राचीन नील जांस्कर से जाकर मिलती है। संगम बिन्दु के इस भाग से थोड़ी दूरी तक इन दोनों नदियों का पानी समानांतर बहता है, जो जमे हुए पानी की पतली सी परत के सीमांकन अलग होता है। ऐसा लगता है जैसे ये दोनों नदियां एक दूसरे से बंधी साथ तो चलती हैं, पर अपने आप में दोनों स्वतंत्र हैं। इन दोनों नदियों के हरे नीले पानी के स्वतंत्र संगम का यह नज़ारा देखने लायक है।

अगर आप कभी लेह लद्दाख गए तो लद्दाख की सर्दियों के ये खास दृश्य जरूर देखिये। मेरा दावा है इसे आप जीवनभर अपनी यादों में संजो कर रखेंगे।

जमती हुई नदियां – सर्दियों में लद्दाख

बर्फीली जान्स्कर नदी पर प्रतिकृतियाँ - सर्दियों में लद्दाख
बर्फीली जान्स्कर नदी पर प्रतिकृतियाँ

जनवरी के महीने में यहां की नदियों के किनारे जमने लगते हैं और इस जमे हुए बर्फ के टुकड़े नदी में तैरते हुए दिखाई देते हैं। जैसे-जैसे आप जांस्कर नदी से गुजरते हुए चिल्लिंग की ओर बढ़ते हैं, बर्फीले किनारों से घिरा हुआ नदी का नीला पानी आपको मंत्रमुग्ध कर देता है। यह नज़ारा बहुत ही मनमोहक है। कुछ जगहों पर नदी का पानी थोड़ा-बहुत जम जाता है और नदी पर बर्फ की पतली सी परत चढ़ने लगती है, जिसके नीचे से बहते हुए पानी की सिर्फ आवाज़ सुने देती है। तो कुछ जगहों पर यह जमी हुई बर्फ ओले के समान प्रतीत होती है जिसके विभिन्न आकार प्रकार आपको अचंभित कर देते हैं।

मैंने किसी भी नदी के किनारे की इतनी अच्छी यात्रा नहीं की जितनी कि लद्दाख के चिल्लिंग यात्रा के समय जांस्कर नदी की यात्रा की है।

चुंबकीय पहाड़ी

चिल्लिंग जाते समय आपको चुंबकीय पहाड़ी से गुजरते हुए जाना पड़ता है। ऐसा कहा जाता है की लद्दाख की कई पहाड़ियों में से एक की चुम्बकीय शक्ति अति प्रबल है. कई बार गाड़ियाँ इसकी और स्वतः ही खिंची चली जातो हैं। हालाँकि मैंने व्यक्तिगत रूप से इस चुंबकीय क्षेत्र को महसूस नहीं किया और ना ही मुझे ऐसा कोई अनुभव हुआ, लेकिन हमारे साथ जो यात्री थे उनके पास बताने के लिए बहुत सारी रोचक कथाएं थी। सच तो यह है कि ये पहाड़ लौह के अयस्कों से भरे हैं। इसलिए यह हो सकता है कि बाकी की पहाड़ियों से अधिक चुंबकीय आकर्षण इस पहाड़ी पर महसूस होता है और लोहे के बने विशाल वाहनों पर इसका असर ज्यादा होता हो।

आप लेह से यह यात्रा आधे दिन में कर सकते हैं। सर्दियों के दिनों में अपने होटलों से बाहर रहने का यह अच्छा समय है।

मूनस्केप से गुजरते हुए लामायुरु की सैर – सर्दियों में लद्दाख

लामायुरु या लमवु जैसा कि उसे कहा जाता है, लद्दाख का सबसे प्राचीन मठ एवं मठों का शहर है। इस यात्रा की विशेष बात थी यहां के जमे हुए झरने। इन जमे हुए झरनों को देखकर मुझे जो भी महसूस हुआ वह मेरी अभिव्यक्ति की सीमाओं से बहुत परे है। मुझे ऐसा लगा जैसे समय का कोई पल थम सा गया है। जब तक मैंने इन जमे हुए झरनों को नहीं देखा था, मैं कभी सोच भी नहीं सकती थी कि बहता हुआ पानी भी कभी किसी वक्त इस प्रकार जम सकता है। ऐसे प्रतीत होता है जैसे समय ही थम गया हो इन ठहरे हुए झरनों के साथ।

शिथिल झरने - सर्दियों में लद्दाख
शिथिल झरने – सर्दियों में लद्दाख

आपको रास्ते में इस प्रकार के बहुत से छोटे-बड़े जमे हुए झरने देखने को मिलेंगे। जी हाँ, आप इन्हें चादर यात्रा किए बिना भी देख सकते हैं। ये जमे हुए झरने लद्दाख के दृश्यों को अत्यधिक प्रसिद्ध बनाते हैं।

लामायुरु मठ का प्रवेश द्वार
लामायुरु मठ का प्रवेश द्वार

समय के अनुसार दिन की रोशनी आपके आगे के परिदृश्यों में बदलाव लाती रहती है। रोशनी और नजारों का यह अद्भुत खेल देखने लायक होता है। रोशनी की किरणे जब यहां के बंजर पर्वतों पर पड़ती है, तो ये पर्वत जीवंत हो उठते हैं। कभी-कभी सूर्य की रोशनी पर्वत के कुछ हिस्से को प्रकाशित करते हुए एक अद्वितीय दृश्य आपके सामने खड़ा कर देती है, जिसे देखकर आपको अजीब सा सुकून महसूस होता है। फोटोग्राफरों को लद्दाख के इन अनुपम दृश्यों को अपने कैमरा में कैद करने के अनेकों अवसर मिलते रहते हैं।

लामायुरु मठ

लामायुरु मठ - सर्दियों में लद्दाख
लामायुरु मठ – लद्दाख

स्पीति घाटी में स्थित धनकर मठ की भाँति, पहाड़ी के शिखर पर बसा हुआ लमयुरु मठ यहां के पूरे परिदृश्य को और भी सुरम्य बनाता है। दीमक पहाड़ी जैसे दिखनेवाली इन हलकी फूली सी चट्टानों पर स्थित यह पूरा मठ, या दरअसल यह गाँव ही किसी सुकुमार दृश्य की तरह दिखाई देता है, जो आपकी आँखों के सामने से गुजरता हुआ जाता है। हमारे  गाइड ने हमें बताया कि कुछ सदियों पहले नौ लामाओं ने आकर इस मठ की स्थापना की थी। और तब से यह मठ इसी ढलान पर स्थित है। सैकड़ों लामाओं को अपनी छत्र-छाया प्रदान करनेवाला यह विशाल मठ बहुत ही साधारण है, जिसकी बाहरी दीवारें रंगी हुई हैं और आंतरिक सजावट भी साधारण सी है।

पहाड़ी की चोटी पर स्थित बाकी मठों की तरह यह मठ भी अपने आस-पास के परिदृश्यों को देखने के लिए आगंतुकों को सुविधाजनक स्थान प्रदान करता है।

मूनस्केप

चाँद की सतह से मिलता जुलता परिदृश्य - सर्दियों में लद्दाख
चाँद की सतह से मिलता जुलता परिदृश्य – लद्दाख

लेह से लमयुरु पहुँचने से ठीक पहले आपको बेतरतीब सा भूदृश्य दिखाई देगा, जिसे अक्सर मूनस्केप या ऐसी जमीन जो चंद्रमा की सतह के जैसी दिखाई देती है। यानि एक प्रकार से यह चंद्रमा की सैर करने जैसा ही है। मुझे यह जगह बहुत ही अनुपम और थोड़ी सी काल्पनिक भी लगी। रास्ते के एक तरफ चट्टानों के बड़े-बड़े टीले थे तो दूसरी तरफ बर्फ की छितरन से भरे पहाड़, जो यहां के परिदृश्य को हल्के से सफ़ेद और काले रंग की आभा प्रदान कर रहे थे।

आल्ची मठ की सैर

अल्ची मठ - लद्दाख
अल्ची मठ – लद्दाख

लद्दाख में प्रत्येक गाँव का अपना मठ है जिसे आमतौर पर उसी गाँव के नाम से जाना जाता है। आल्ची मठ इन्हीं में से एक है जहां तक पहुँचने के लिए आपको लमयुरु की यात्रा को कुछ समय के लिए स्थगित कर थोड़ा सा विमार्ग होना पड़ता है। अगर आप मेरी तरह भित्ति-चित्रों के प्रशंसक हैं, तो मैं यही सलाह दूँगी कि आपको इस सुंदर से मठ की विशेष यात्रा जरूर करनी चाहिए। ध्यान रहे कि मठ की चित्रित दीवारों और उनपर की गयी विशाल अस्तरकारी का अवलोकन करते समय कोई लामा ही आपका मार्गदर्शन कर रहा हो।

मैंने तबो मठ की भी सैर की जिसे आमतौर पर हिमालय का अजंता भी कहा जाता है। मुझे यह स्वीकार करना ही होगा कि यहां के भित्ति-चित्र बहुत ही सुंदर हैं, लेकिन जो चीज आल्ची मठ को और ज्यादा खास बनाती है, वह है इस मठ के पाँच-छः कमरों में खड़ी बोधिसत्त्व की विशाल मूर्तियां। ये मूर्तियां 2-3 मंजिल की ऊंचाई की है, जो उज्वलित रंगो से रंगे इन मंजिलों और छतों से उपर उठते हुए स्थिर खड़ी हैं।

लोटसा मंदिर

अल्ची मठ के भित्तिचित्र
अल्ची मठ के भित्तिचित्र

इस क्षेत्र का सबसे पहला मंदिर जिसे लोटसा मंदिर कहा जाता है, की दीवारें बुद्ध के छोटे-छोटे हजारों चित्रों से भरी हुई दिखाई देती हैं। लेकिन इस मंदिर में बुद्ध के हज़ार से भी अधिक चित्र चित्रित किए गए हैं। इसी के पास स्थित वैरोकना मंदिर के मंडल रंगे हुए हैं, जो बौद्ध मठों में अक्सर पाया जाता है। लेकिन आल्ची मठ के मंडल की खासियत है, उसपर की गयी उभरी हुई सी कारीगरी जो उसे चौखट का रूप देता है। कुछ जगहों पर मुझे लगा जैसे यह कीमती रत्न और पत्थरों को रखने के लिए कोई खास जगह है पर मैं इसके बारे में ज्यादा जानकारी प्राप्त नहीं कर सकी।

मिट्टी से बने होने के कारण और अच्छी मरम्मत न हो पाने की वजह से कई जगहों पर चित्र धुंदले से पड़ते जा रहे हैं, तो कहीं पर टुकड़ों-टुकड़ों में मरम्मत का काम नज़र आता है।

मंजुश्री मंदिर

मंजुश्री मंदिर में आपको मंजुश्री देवी की चार अलग-अलग मूर्तियां दिखेंगी जो चार तरह के रंग – स्वर्ण, केसरी, नीला और हरे रंग से सुशोभित एक दूसरे की ओर पीठ किए हैं। इस मंदिर की छत पर विभिन्न प्रकार के नमूने बने हैं, जो कपड़ों पर बने चित्र की तरह लगते है, जिनमें शिकार के दृश्य बिखरे पड़े हैं, जो विभिन्न प्राणी जैसे बाघ, घोडा तथा विभिन्न अस्त्र जैसे धनुष्य-बाण आदि को रेखांकित करते हैं। आल्ची मठ में मैंने पहली बार चित्रकारी के लिए काले और सफ़ेद रंग का प्रयोग होते देखा है, वरना अक्सर ये रंग पट्टिका से गायब होते हैं, या फिर इनका प्रयोग जरूरत पड़ने पर ही किया जाता है।

कश्मीरी चित्रकला की शैली

लद्दाख के परिदृश्य - सर्दियों में लद्दाख
लद्दाख के परिदृश्य

आल्ची की चित्रकला शैली स्पष्ट रूप से कश्मीरी है। जैसा की लामा जी ने हमे बताया, सिर्फ कश्मीरी चित्रकार ही लद्दाख के इस सख्त वातावरण में काम कर सकते थे। इन चित्रों में बहुत सी पारसी विशेषताएं नज़र आती हैं, जो आपको याद दिलाता है कि लद्दाख रेशम मार्ग का भाग रहा है जिसने पूर्व और पश्चिम की अनेकों संततियों को यहां से गुजरते हुए देखा है।

मठ के आंगन में अद्वितीय स्तूप है जिसके भीतर आप जा भी सकते हैं। इसे भी भीतर से प्रचुरता में रंगा गया है। सर्दियों में लद्दाख की ठंड से बचते हुए आप खुशी-खुशी अंदर खड़े होकर इन चित्रों की प्रशंसा कर सकते हैं।

आल्ची मठ 10वी सदी की समाप्ती और 11 वी सदी की शुरुवात के दौरान बनवाया गया था। यह उन 108 मठों में से एक माना जाता है जो महान अनुवादक रींचेन जंगपो द्वारा बनवाए गए थे। उनके द्वारा बनवाए गए कुछ मठ लमयुरु, तबो और नाको में भी देखे जा सकते हैं।

थिकसे और चेमरे मठों की सैर

सर्दियों में लद्दाख के वृक्ष एवं सड़कें
सर्दियों में लद्दाख के वृक्ष एवं सड़कें

ये दोनों मठ लद्दाख की प्रसिद्ध झील पंगोंग, तक जानेवाले मार्ग पर ही स्थित हैं। अगर आप इसी क्षेत्र में हैं, और पंगोंग जाना चाहते हैं तो पहले आपको इस बात की जानकारी प्राप्त करनी होगी कि, क्या पंगोंग तक जाने का रास्ता साफ है और क्या आप वहां जा सकते हैं या नहीं। अगर आप पंगोंग तक नहीं पहुँच पाये तो आप इस मार्ग की आधी सैर भी कर सकते हैं, जहां पर देखने लायक बहुत सी सुंदर चीजें हैं।

थिकसे मठ दूर से - सर्दियों में लद्दाख
थिकसे मठ दूर से – लद्दाख

थिकसे तक जानेवाली राह पर मुड़ने से पहले आपको लंबे समय तक राष्ट्रीय महामार्ग की सवारी करनी पड़ती है, जिसके समानांतर सिंधु नदी बहती है। थिकसे मठ पास से देखने में जितना सुंदर है, दूर से देखने में उतना ही आकर्षक लगता है। मठ तक ले जाने वाले इन घुमावदार रस्तों ने मुझे अपनी स्पीति यात्रा की याद दिला दी।

<yoastmark class=

जाते समय हमने रास्ते में छोटी सी नदी देखि जो आधी जम जाने के बाद भी सिंधु नदी से मिलने के लिए उतावली, उग्रता से बह रही थी। चिनार के पेड़ जैसी दिखने वाली बंजर झड़ियों से घिरी हुई यह जगह, एकांत में कुछ समय बिताने लायक थी। मैंने इस छोटी सी नदी को थिकसे मठ के ऊपर से देखा। नदी पर से एक छोटा सा पुल पार करने के बाद हम कुछ दूर तक नदी के किनारे से ही सवारी करते रहे।

आधी जमी नदी, सिन्धु मादी में मिलने को तत्पर
आधी जमी नदी, सिन्धु मादी में मिलने को तत्पर

चेमरे मठ तक जाने के लिए हमे छोटे-छोटे रस्तों से गुजरते हुए जाना पड़ा जो ऊंचे-ऊंचे बंजर झाड़ियों से घिरे हुए थे। यह हमरी यात्रा का और एक काल्पनिक सा दिखने वाला भाग था।

सुबह की प्रार्थना

ठिकसे मठ में प्रातः वंदना
ठिकसे मठ में प्रातः वंदना

हमने थिकसे मठ की सुबह की प्रथना में भाग लिया, जहां पर हमने छोटे-बड़े लामाओं को सुबह का नाश्ता करते हुए मंत्रों का उच्चारण करते देखा। लामाओं के नाश्ते में चाय की कई बारियाँ होती हैं। हमे भी वही चाय दी गयी थी। थिकसे मठ के आंगन में कई दिलचस्प चित्र थे। आल्ची मठ की तरह यहां भी अस्तरकारी काम का ऊंचा चित्र बना हुआ है, जो भविष्य के बुद्ध यानि मैत्रेय बुद्ध का चित्र है।

अगर आपको मठों में जाना पसंद है तो आप हेमीस मठ में भी जा सकते हैं। हम वहां नहीं गए क्योंकि, इस मठ का प्रमुख आकर्षण यानि यहां का संग्रहालय सर्दियों में बंद रहता है।

खरडूंगला दर्रे के रास्ते में शांति स्तूप की सैर

लेह स्थित शांति स्तूप
लेह स्थित शांति स्तूप

खरडूंगला दर्रा लद्दाख क्षेत्र का एक और प्रसिद्ध दर्रा है। मुझे बताया गया है कि, गर्मियों के मौसम में वहां तक जाने वाले मार्ग पर बहुत सारा ट्रेफिक जाम होता है क्योंकि, यह जगह पर्यटकों से भरी हुई होती है। और सर्दियों के मौसम में जब आप लद्दाख दौरे पर आते हैं तो यह दर्रा बन्द रहता। लेकिन इसका अर्थ यह नहीं है कि आप इसे  देख नहीं सकते। शांति स्तूप, जो खरडूंगला दर्रे के रास्ते में, लेह की सरहद पर बसा हुआ है और अधिकतर लद्दाख यात्राओं का भाग भी है, की सैर कीजिए।

परिदृश्य

शांति स्तूप से सूर्यास्त का दृश्य
शांति स्तूप से सूर्यास्त का दृश्य

किसी पहाड़ी के ऊपर खड़े रहिए या शांति स्तूप की चढ़ाई कर आस-पास के परिदृश्य की प्रशंसा कीजिए। एक तरफ आप लेह महल और यहां का अद्वितीय सूखा गोल्फ कोर्स देख सकते हैं। इसके पीछे आपको स्टॉक कंगरी की पूरी पर्वत माला नज़र आती है जो सूर्यास्त के समय बेहद सुंदर दिखाई देती है। पीछे घूमिए और आपको विशाल पहाड़ियों को काटती हुई एक सीधी रेखा दिखेगी, और यही खरडूंगला दर्रा है। शुक्र है यहां के सूचना पट्ट आपको स्तूप के आस-पास की सारी जानकारी देते हैं।

लेह का गोल्फ कोर्स
लेह का गोल्फ कोर्स

शांति स्तूप, बौद्ध स्थानों में उभर रहे स्तूपों की नयी शृंखला है। मैंने ऐसा ही एक स्तूप बिहार के राजगीरी में भी देखा। वह बहुत ही साफ-सुथरा सफ़ेद स्तूप है, जिसमें बौद्ध धर्म के सारे चिह्न हैं। इस स्तूप में ऊपर चढ़ने और नीचे उतरने के लिए एक जैसी दिखने वाली सीढ़ियाँ भी है।

सर्दियों में लद्दाख की यात्रा करते हुए लेह की सैर

स्पितुक मठ - लेह
स्पितुक मठ – लेह

जैसे-जैसे आपका शरीर पर्वतों की ऊंचाइयों से समायोजित होता है, आप लेह शहर की सैर कर सकते हैं। आप वहां के स्पीतुक मठ के भी दर्शन कर सकते हैं, जो शहर के ठीक बाहर स्थित है। हमने यहां के वार्षिक गुस्तोर उत्सव में भी भाग लिया। इसकी कथा मैं आपको अपने अगले पोस्ट बताऊँगी । आपको यहां से लेह शहर और लेह के हवाई अड्डे का, जो लगभग खुली हवा में स्थित है, का खूबसूरत नज़ारा देखने को मिलता है।

लेह के बाज़ारों में घूमिए, जिसमें से ज़्यादातर दुकाने सर्दियों के मौसम में बंद रहती हैं। लेकिन यहां के अतिथि गृहों और लॉज के बारे में जानकारी देने वाले सूचना पट्टों से आप अंदाज़ा लगा सकते हैं कि गर्मियों के मौसम या पर्यटकों के मौसम में इस जगह पर कितनी भीड़ होती होगी।

सर्दियों के मौसम में लद्दाख में बहुत कम ट्रेफिक और भीड़  रहते है। ऐसा लगता है जैसे सारे परिदृश्य – नदियां, पर्वत, ख़ाका सब आप ही की राह देख रहे हो। यहां वहां के कुछ भिक्षुओं को नज़रअंदाज़ कर, कल्पना कीजिए कि आस-पास के सारे नज़ारे सिर्फ आपके लिए ही हैं। वास्तव में लड़ख कितना धनी है। सर्दियों में लद्दाख आपको यहां के अनुपम दृश्य संजोने के अनेकों अवसर प्रदान करता है।

भारत के अन्य पर्वतीय क्षेत्र

चितकुल – हिमाचल प्रदेश की सांगला घाटी में सड़क यात्रा

हिमाचली सेब एवं सत्यानन्द स्टोक्स की समृद्धि दायक कथा

मुक्तेश्वर धाम – कुमाऊँ पहाड़ों के न भूलने वाले दृश्य

मेघालय के शिलांग शहर में क्या क्या पर्यटक स्थल देखें

हिमालय की ऊंचाइयों की उत्साहपूर्ण सवारी की साहस भरी कहानी

The post कड़कती सर्दियों में लद्दाख की यात्रा appeared first on Inditales.

]]>
https://inditales.com/hindi/ladakh-peak-winters-experience/feed/ 0 67