सिक्किम यात्रा Archives - Inditales श्रेष्ठ यात्रा ब्लॉग Wed, 31 Jan 2024 04:46:51 +0000 en-US hourly 1 https://wordpress.org/?v=6.7.4 सिक्किम के १२ सर्वोत्तम स्मृति चिन्ह https://inditales.com/hindi/sikkim-ke-uphaar/ https://inditales.com/hindi/sikkim-ke-uphaar/#respond Wed, 31 Jan 2024 02:30:07 +0000 https://inditales.com/hindi/?p=3375

क्या आप सिक्किम भ्रमण के लिए जा रहे हैं? क्या आप यह विचार कर रहे हैं कि सिक्किम से कौन कौन सी विशेष वस्तुएँ स्मृति चिन्हों के रूप में ला सकते हैं? यह संस्करण पढ़कर आपकी जिज्ञासा अवश्य तृप्त हो जायेगी। जी हाँ, सिक्किम एक छोटा सा राज्य है लेकिन उसके आकार पर ना जाएँ। […]

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क्या आप सिक्किम भ्रमण के लिए जा रहे हैं? क्या आप यह विचार कर रहे हैं कि सिक्किम से कौन कौन सी विशेष वस्तुएँ स्मृति चिन्हों के रूप में ला सकते हैं? यह संस्करण पढ़कर आपकी जिज्ञासा अवश्य तृप्त हो जायेगी। जी हाँ, सिक्किम एक छोटा सा राज्य है लेकिन उसके आकार पर ना जाएँ।

सिक्किम के स्मृति चिन्ह
सिक्किम के स्मृति चिन्ह

सिक्किम भले ही एक विशाल राज्य ना हो लेकिन यह एक संस्कृति संपन्न राज्य है। यहाँ की संस्कृति एवं परम्पराएं यहाँ के विशेष वस्त्रों, आभूषणों तथा अनुष्ठानिक वस्तुओं में स्पष्ट परिलक्षित होते हैं। मेरे गत सिक्किम भ्रमण के समय अल्प समयावधि के चलते मैं वहाँ से कुछ ही स्मृति चिन्ह ला पायी थी किन्तु इस समय मेरे पास भरपूर समय था। मैंने निश्चिन्तता से गंगटोक के सभी पर्यटन बिन्दुओं के समक्ष स्थित बाजारों एवं दुकानों का अवलोकन किया। उसी के आधार पर सिक्किम से साथ लाने योग्य कुछ आकर्षक व रोचक स्मृति चिन्हों की एक सूची बनाई है। केवल आपके लिए!

सिक्किम के सर्वोत्तम स्मृति चिन्ह – गंगटोक में खरीददारी

सिक्किम भ्रमण की मधुर स्मृतियों को संजोकर रखने के लिए वहाँ से इन विशेष वस्तुओं का क्रय करें।

प्रार्थना ध्वज

सिक्किम में आप जहाँ भी जाएँ, वायु में लहराते रंगबिरंगे प्रार्थना ध्वज आपका स्वागत करते प्रतीत होते हैं। आप उन्हें पहाड़ियों के ऊपर, झरनों के समीप, मार्गों के ऊपर, सरोवरों की ओर जाती पगडंडियों के ऊपर,  अर्थात् अक्षरशः सभी स्थानों पर देखेंगे।

बौद्ध प्रार्थना ध्वज
बौद्ध प्रार्थना ध्वज

इन प्रार्थना ध्वजों का उद्देश्य है, सब के कल्याण के लिए की गयी प्रार्थना को वायु में आत्मसात कराना। मेरे विचार से ये प्रार्थना ध्वज सिक्किम की सर्वोत्तम स्मारिका है। आप इन ध्वजों को अपने आवास के बाहर फहरा सकते हैं। ये भिन्न भिन्न आकारों में उपलब्ध हैं। आप अपनी इच्छा के अनुसार आकार का चयन कर सकते हैं।

आप इन ध्वजों का लघु रूप भी ले सकते हैं। उन पर ‘ॐ मणि पद्मे हूँ’ लिखा होता है। यह बौद्ध धर्म का एक मंत्र है। ये ध्वज तोरण के रूप में उपलब्ध होते हैं जिन्हें आप आवास द्वार के ऊपर अथवा वाहन के पृष्ठ कांच पर लटका सकते हैं।

थान्ग्का चित्र – कला प्रेमियों के लिए सिक्किम की स्मारिका

थान्ग्का चित्र आप सम्पूर्ण हिमालयी क्षेत्रों में देख सकते हैं, जैसे भूटान, नेपाल, लद्दाख, सिक्किम आदि। थान्ग्का चित्र सूती वस्त्रों, रेशमी वस्त्रों तथा कागज जैसे भिन्न भिन्न माध्यमों पर चित्रित किये जाते हैं। ये एक प्रकार की सूक्ष्म चित्रकला शैली होती है जो बुद्ध के जीवन से सम्बंधित दृश्यों, बौद्ध देवी-देवताओं, विभिन्न बोधिसत्वों तथा रहस्यमयी मंडलों पर आधारित होती है। यदि आप एक बौद्ध हैं तथा इन दैव-चित्रण से सम्बद्ध हैं तो आप अपनी मान्यता अनुसार इनका चुनाव करें। अन्यथा आपको जो चित्र भाये, आप वो क्रय कर सकते हैं।

थान्ग्खा मण्डल चित्र
थान्ग्खा मण्डल चित्र

थान्ग्का चित्र मूल्यवान अवश्य होते हैं किन्तु वे सिक्किम के सर्वोत्तम स्मृतियों में से एक हैं। थान्ग्का चित्र सिक्किम के सांस्कृतिक ताने-बाने का एक महत्वपूर्ण भाग है।

थान्ग्का चित्र अत्यंत कोमल होते हैं। उनकी उत्तम देखभाल आवश्यक है। बौद्ध मठों में विशाल थान्ग्का चित्र होते हैं जिन्हें वे रेशम की अनेक परतों के मध्य सुरक्षित रखते हैं। वे उन्हें विशेष अवसरों पर ही प्रदर्शित करते हैं।

सुरीले पात्र

सिक्किम के स्मृति चिन्हों में यह मेरी सर्वाधिक प्रिय वस्तु है। आपने अनेक बौद्ध मठों में सुरीले स्वर उत्पन्न करते पात्र देखे होंगे। ये सुरीले पात्र अनेक आकारों के होते हैं जो मिश्रित धातु से बने होते हैं। इन आकर्षक पात्रों पर मनमोहक उत्कीर्णन होते हैं। कुछ पात्रों पर बौद्ध मंत्र भी उत्कीर्णित होते हैं। इन पात्रों के साथ लकड़ी का टुकड़ा दिया जाता है। जब हम इस लकड़ी को पात्र के किनारों पर घुमाते हैं तो पात्र से अत्यंत सुरीला स्वर उत्पन्न होता है। इसी प्रकार लकड़ी को अनवरत घुमाते रहे तो वह सुरीला स्वर अपने चरम उत्कर्ष तक पहुँच जाता है जो मंत्रमुग्ध कर देता है।

संगीतमय सुरीले पात्र
संगीतमय सुरीले पात्र

विक्रेता जब इस सुरीले पात्र की कार्यप्रणाली अपने हाथों द्वारा दिखाते हैं तो ऐसा प्रतीत होता है कि यह अत्यंत सुगम है। किन्तु आप स्वयं जब इसे अपने हाथों में लेकर छड़ी घुमायेंगे तब हो सकता है कि सुरीले स्वर प्रस्फुटित ना हों। इसके लिए आपको इस विशेष तकनीक का प्रयोग करना होगा।

पात्र को हथेली पर इस प्रकार रखें कि दोनों के मध्य रिक्त स्थान बने। अब लकड़ी की छड़ी को इसकी किनार पर घुमाएं। मधुर स्वर अवश्य प्रस्फुटित होंगे।

सुरीले पात्र अनेक आकारों में उपलब्ध हैं। मैंने माध्यम आकार का एक पात्र अपनी भूटान-सिक्किम यात्रा से क्रय किया था।

प्रार्थना चक्र

प्रार्थना चक्र एक लघु बेलनाकार डिबिया होती है जो एक लकड़ी की मूठ से जुड़ी होती है। इस डिबिया से डोरी का एक टुकड़ा बंधा होता है जिसके दूसरे छोर पर एक बड़ा मोती होता है। यह बेलनाकार डिबिया धातु की होती है जिस पर आकर्षक उत्कीर्णन होते हैं। अधिक मूल्य के प्रार्थना चक्रों की डिबिया मणि जड़ित होती हैं। इस चक्र का सर्वाधिक महत्वपूर्ण भाग होता है, इस डिबिया के भीतर रखी एक पत्रावली जिस पर प्रार्थना लिखी होती है। ऐसा माना जाता है कि जब इस चक्र को मूठ से पकड़ कर गोल घुमाया जाता है तब यह चक्र भीतर रखी प्रार्थना को वायु में सन्निहित करता है। वायु में सकारात्मक उर्जा का विसरण करता है।

प्रार्थना चक्र के साथ बुद्ध की प्रतिमा
प्रार्थना चक्र के साथ बुद्ध की प्रतिमा

जिस प्रकार साधु, संन्यासी अथवा साधक के हाथ में जपमाला होती है, उसी प्रकार बौद्ध लामा के हाथ में यह प्रार्थना चक्र होता है। जब आप इस प्रार्थना चक्र को घुमायेंगे, आप सम्मोहित से हो जायेंगे। यह चक्र आपको ध्यान अवस्था में ले जायेगी। यह भी सिक्किम की एक अविस्मरणीय स्मारिका होगी जिसे आप क्रय कर अपने साथ ला सकते हैं।

इसी प्रकार के अनेक विशाल प्रार्थना चक्र बौद्ध मठों में भी होते हैं। बौद्ध भिक्षुक परिक्रमा करते हुए इन चक्रों को घुमाते हैं तथा प्रार्थना करते हैं। ऐसे खड़े प्रार्थना चक्र छोटे आकर में भी उपलब्ध होते हैं जिन्हें आप क्रय कर सकते हैं। इन खड़े चक्रों को आप अपने आवास की भित्तियों पर लगा सकते हैं अथवा मेज पर रख सकते हैं।

दोरजी घंटी तथा वज्र

दोरजी घंटी एवं वज्र ऐसी दो वस्तुएं हैं जिन्हें आप केवल सिक्किम ही नहीं, अपितु सम्पूर्ण भारत के सभी ऐसी दुकानों में देखेंगे जो धातु निर्मित कलाकृतियाँ विक्रय करते हैं। ये बहुधा पीतल अथवा कांसे धातु के बने होते हैं। ये पुरुषप्रधान एवं स्त्रीप्रधान ऊर्जा के द्योतक होते हैं तथा इन्हें बहुधा एक साथ ही रखा जाता है। दोरजी घंटी स्त्रीप्रधान उर्जा का प्रतिनिधित्व करती है तथा वज्र पुरुषप्रधान उर्जा का प्रतिनिधित्व करता है।

दोरजी घंटी और वज्र
दोरजी घंटी और वज्र

इन दुकानों में आप बुद्ध की भिन्न भिन्न मुद्राओं में तथा विभिन्न आसनों पर आरूढ़ अनेक प्रतिमाएं देखेंगे। आपको उनका जैसा रूप भाये, आप वैसी प्रतिमा क्रय कर सकते हैं। ये तीनों ऐसे स्मृति चिन्ह हैं जो देखने में अत्यंत मनमोहक होते हैं तथा जिन्हें अधिक रखरखाव की आवश्यकता नहीं होती है।

पारंपरिक परिधान

यदि आप उन पर्यटकों में से हैं जिन्हें पर्यटन गंतव्य के परिधान विशेष में रूचि होती है तथा सभी गंतव्यों से उनके विशेष परिधानों को क्रय करना तथा धारण करना भाता है तो आप सही गंतव्य की ओर जा रहे हैं।

सिक्किम का पारंपरिक परिधान
सिक्किम का पारंपरिक परिधान

सिक्किम के पारंपरिक रंगबिरंगे रेशमी परिधान अत्यंत सुन्दर होते हैं। वे नेपाली परिधानों से मेल खाते हैं। क्यों ना हों? पड़ोसी जो हैं। सिक्किम के औपचारिक परिधान बहुधा रेशमी एवं बेल-बूटे युक्त जरी वस्त्रों द्वारा बने होते हैं। किन्तु ये ऊन मिश्रित मोटे उष्म वस्त्रों में भी उपलब्ध होते हैं जो वहाँ के शीत वातावरण के लिए आवश्यक हैं।

सिक्किम में लेप्चा पुरुषों की वेशभूषा थोकोरो-दम होता है जिसमें पायजामा, लेप्चा कुरता, शंबो तथा टोपी सम्मिलित हैं। लेप्चा स्त्रियों की वेशभूषा को डमवम अथवा डुमिडम कहते हैं। वहीं, भूटिया स्त्रियों की पोशाख को बखू कहते हैं।

सिक्किम की पारंपरिक टोपी
सिक्किम की पारंपरिक टोपी

यदि आपको भिन्न भिन्न शैली के परिधानों को धारण करने में रूचि नहीं है तो सिक्किम से अन्य पारंपरिक वस्तुएं ले सकते हैं। पुरुष सिक्किमी टोपी ले सकते हैं जिसे आप अपने परिधानों के साथ विशेष अवसरों में धारण कर सकते हैं। ये टोपियाँ शीत वातावरण के लिए भी उत्तम सह-परिधान होती हैं। स्त्रियाँ सिक्किम के विशेष आभूषण ले सकती हैं।

पारंपरिक आभूषण

हिमालयीन स्त्रियों के आभूषणों का उल्लेख होते ही नेत्रों के समक्ष नीलवर्ण मणिजड़ित आभूषण उभर कर आ जाते हैं। मेरी इस सिक्किम यात्रा में मैंने यह निश्चय किया कि इन मनमोहक नीलवर्ण मणिजड़ित आभूषणों के पार भी जाकर अन्य आभूषणों की खोज करूँ। मैं वहाँ के एक स्थानीय जौहरी के पास गयी तथा उनसे सिक्किम के पारंपरिक आभूषणों के विषय में जानकारी एकत्र की। उनसे आभूषणों के पारंपरिक नमूनों एवं शैलियों के विषय में जाना। उसी के आधार पर मैं आपको दो विशेष आभूषणों के विषय में जानकारी देना चाहती हूँ।

गले के हार के लिए घौ लटकन: गले के हार के लिए ये लटकन भिन्न भिन्न आकारों की सुन्दर अलंकृत डिबिया होती हैं जिनके भीतर प्रार्थना पत्रावली रखी जाती है। कुछ लोग इसके भीतर दिवंगत गुरु के अवशेष तथा पवित्र जड़ी-बूटियाँ भी रखते हैं। चाँदी धातु में बने इस लटकन पर उपचारात्मक प्रस्तर मणि जड़ा होता है। नीलम उनमें से एक है जो हिमालयीन क्षेत्रों में पाया जाता है। अन्य लोकप्रिय मणियाँ हैं, लाजवर्द तथा मूंगा। बौद्ध धर्म के धर्मनिष्ठ अनुयायियों के लिए घौ लटकन एक प्रकार से निजी चल मंदिर सदृश होते हैं। कदाचित इस लटकन का मूल सम्बन्ध घुमक्कड़ी बौद्ध समुदायों से रहा होगा।

घौ लटकन
घौ लटकन

कुछ लटकन डिबियों में प्रार्थना पत्रावली होती हैं जिन पर ‘ॐ मणि पद्मे हूँ’ लिखा होता है। ये आभूषण आकृति एवं शैली में समकालीन प्रतीत होते हैं।

अकोर झुमके: ये अत्यंत आकर्षक झुमके होते हैं जिन्हें ल्हासा स्त्रियाँ धारण करती हैं। इन झुमकों की एक विशेषता होती है कि इनके अंतिम छोर पर कमल की कली की आकृतियाँ होती हैं। अकोर झुमकों पर नीलम मणि जड़ा होता है। कभी कभी एक छोटा मूंगा भी होता है जो इसकी एकरसता को तोड़ता है।

अकोर झुमके
अकोर झुमके

आरंभ में ये झुमके अत्यंत वजनी होते थे जिन्हें कर्णपाली पर धारण नहीं किया जाता था। इन्हें कानों के पार्श्व भागों पर धारण किया जाता था तथा भार अधिक होने के कारण उन्हें डोरी द्वारा सर के आभूषणों से बंधा जाता था। अब ये अत्यंत हलके वजन में भी उपलब्ध हैं। भार कम करने के पश्चात भी उनकी मूल शैली में परिवर्तन नहीं किया गया है। आप इन्हें उत्तम दुकानों से लें। वहाँ पारंपरिक शैली के हलके व मनमोहक अकोर झुमके उपलब्ध होते हैं।

मुखौटे

यदि आपने किसी भी बौद्ध मठ में उनके पारंपरिक उत्सव देखे होंगे तो आपने रंगबिरंगे विशाल मुखौटे भी देखे होंगे जिनका प्रयोग विभिन्न बौद्ध अनुष्ठानों में किया जाता है। बौद्ध लामा इन्हें धारण कर पारंपरिक नृत्य करते हैं। रंगबिरंगे विशाल मुखौटे धारी बौद्ध लामाओं द्वारा किये गए पारंपरिक चाम नृत्य का यह विडियो देखिये। इसमें आप मुखौटों की विभिन्नता को देख पायेंगे।

काष्ठ के मुखौटे
काष्ठ के मुखौटे

कुदृष्टि एवं दुष्ट आत्माओं से बचने के लिए सामान्य जन-मानस भी इन मुखौटों का प्रयोग करता है। सिक्किम में आप कई घरों व दुकानों के समक्ष ये मुखौटे लटकते देखेंगे। मुझे बताया गया कि प्रत्येक मुखौटा एक विशेष उद्देश्य का प्रतीक होता है। इसलिए आपको जो भाये वो आप लें। सभी मुखौटे लकड़ी के होते हैं जिन पर उत्कीर्णन व चित्रकारी की जाती है। बहुधा यह मुखौटा लकड़ी के एकल टुकड़े द्वारा निर्मित होता है।

मैंने यहाँ से गणेश का मुखौटा लिया था। जी हाँ गणेश! आपको आश्चर्य होगा कि सिक्किम की स्मारिका के रूप में गणेश एवं पंख फैलाए गरुड़ के मुखौटे अत्यंत लोकप्रिय हैं।

चाय – सुगम व कम लागत

आप दार्जिलिंग चाय व आसाम चाय के विषय में अवश्य जानते होंगे। कदाचित सिक्किम चाय के विषय में नहीं जानते होंगे। सिक्किम दार्जिलिंग से अधिक दूर नहीं है। सिक्किम में भी चाय का मनमोहक उद्यान है। सड़क मार्ग द्वारा गंगटोक से दार्जिलिंग जाते हुए हम टेमी चाय के उद्यान से होकर गए थे। वह दृश्य इस क्षेत्र का हमारा सर्वोत्तम दृश्य था।

सिक्किम की चाय
सिक्किम की चाय

टेमी चाय उद्यान सिक्किम का इकलौता चाय उद्यान है जिसकी गिनती देश-विदेश के सर्वोत्तम चाय उद्यानों में की जाती है। इस चाय उद्यान की स्थापना एवं कार्यान्वयन का श्रेय सिक्किम सरकार को जाता है। इस उद्यान के उत्पाद का कुछ भाग टेमी चाय के ब्रांड नाम पर विक्रय किया जाता है। शेष भाग अन्य ब्रांड नामों पर उपलब्ध हैं, जैसे खो-चा तथा गोल्डन टिप्स।

यदि आप एवं आपके परिजनों को चाय प्रिय है तो यह एक उत्तम स्मारिका सिद्ध हो सकती है। वह भी सीधे चाय के उद्यान से ली गयी चाय!

डमरू

हिमालय को भगवान शिव का आवास माना जाता है। यदि आप शिव भक्त हैं तो आप सिक्किम की स्मृति के रूप में यहाँ से डमरू ले जा सकते हैं। हिन्दू एवं बौद्ध, दोनों अनुयायियों के लिए डमरू का विशेष महत्त्व है। ऐसा माना जाता है कि संस्कृत व्याकरण की रचना ऋषि पाणिनि ने डमरू द्वारा उत्पन्न स्वरों के आधार पर की थी।

सिक्किम के डमरू
सिक्किम के डमरू

मैंने यहाँ डमरू क्रय तो नहीं किया किन्तु उसे बजाना अवश्य सीख लिया। देखने में यह आसान प्रतीत होता है किन्तु जब तक आप उसे सही रीति से ना पकड़ें, उसे बजाना असंभव होता है। डमरू को हाथ में लेकर घुमाने से उस पर बंधा मोती डमरू की सतह पर चोट करता है जिससे स्वर उत्पन्न होते हैं। आप जैसे हाथ घुमायेंगे, वैसे ही सुर में डमरू बजेगा।

मोमो बनाने का उपकरण

मोमो बनाने के उपकरण
मोमो बनाने के उपकरण

यदि आपको मोमो खाना भाता है तो यह भी सिक्किम की एक उत्तम स्मारिका है। सिक्किम की दुकानों में भिन्न भिन्न प्रकार के मोमो यंत्र उपलब्ध हैं। आपको जो आसान प्रतीत हो, आप ले सकते हैं।

अपनी सिक्किम यात्रा से आप इनमें से कौन कौन से स्मृति चिन्ह लाना चाहेंगे?

अनुवाद: मधुमिता ताम्हणे

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सिक्किम का रिंचेनपाँग – विषैला सरोवर, ऑर्किड एवं कंचनजंगा https://inditales.com/hindi/rinchenpong-sikkim-paryatak-sthal/ https://inditales.com/hindi/rinchenpong-sikkim-paryatak-sthal/#respond Wed, 13 Sep 2023 01:00:54 +0000 https://inditales.com/hindi/?p=3170

सिक्किम भ्रमण के अंतर्गत इस भाग में हम गंगटोक से रिंचेनपाँग की ओर निकल पड़े। इस गंतव्य के विषय में हमारे मस्तिष्क में कोई नूतन कल्पना जन्म नहीं ले रही थी। यही अपेक्षित था कि किसी भी पर्वतीय क्षेत्र के नगरों के अनुरूप रिंचेनपाँग भी एक ठेठ पर्वतीय नगर होगा जहाँ दो अवयव अवश्य होंगे। […]

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सिक्किम भ्रमण के अंतर्गत इस भाग में हम गंगटोक से रिंचेनपाँग की ओर निकल पड़े। इस गंतव्य के विषय में हमारे मस्तिष्क में कोई नूतन कल्पना जन्म नहीं ले रही थी। यही अपेक्षित था कि किसी भी पर्वतीय क्षेत्र के नगरों के अनुरूप रिंचेनपाँग भी एक ठेठ पर्वतीय नगर होगा जहाँ दो अवयव अवश्य होंगे।

सर्वप्रथम, कंचनजंगा पर्वतमालाओं की तलहटी में भ्रमण करते हुए हमें रिंचेनपाँग में भी कंचनजंगा पर्वत शिखरों के सुन्दर दृश्य अवश्य दृष्टिगोचर होंगे। किन्तु क्या ऐसा दृश्य सिक्किम के लगभग सभी नगरों से दृश्यमान नहीं है? सिक्किम में मुझे ऐसा प्रतीत हुआ कि यहाँ के लगभग सभी नगरों को युक्तिपूर्ण रूप से बसाया गया हैं ताकि सभी स्थानों से कंचनजंगा का अप्रतिम दृश्य प्राप्त हो सके। दूसरा अवयव है, बौद्ध मठ। हम अपेक्षा कर रहे थे कि रिंचेनपाँग में भी कुछ बौद्ध मठ होंगे जिनकी कुछ कथाएं होंगी, कुछ इतिहास होगा, जैसे इन मठों में किन किन पुण्यात्माओं ने भ्रमण किया है व कब भ्रमण किया है।

रिंचेनपाँग से कंचनजंगा का दृश्य
रिंचेनपाँग से कंचनजंगा का दृश्य

मैं आप को बता दूं कि मेरी कल्पना सत्य एवं असत्य दोनों थी। जी हाँ, रिंचेनपाँग से हिमालय के कंचनजंगा पर्वत शिखरों का अप्रतिम दृश्य प्राप्त होता है। कुछ सुन्दर मठ भी हैं जिनकी ओर जाते मार्गों के दोनों ओर फड़फड़ाती पताकाएँ हमारा स्वागत करती प्रतीत होती हैं। किन्तु रिंचेनपाँग में केवल इतना ही नहीं है।

इनके परे भी रिंचेनपाँग में अप्रतिम दर्शनीय दृश्य हैं जिनके विषय में मुझे किसी भी परिदर्शक अथवा परिदर्शन पुस्तिका ने नहीं बताया। आईये रिंचेनपाँग के उन्ही कुछ अनूठे आयामों का आनंद लेते हैं।

रिंचेनपाँग के अनुपम दर्शनीय स्थल

आप सोच रहे होंगे कि रिंचेनपाँग के अनूठे आयामों के विषय में मुझे किसी परिदर्शक अथवा परिदर्शन पुस्तिका से जानकारी प्राप्त नहीं हुई है तो मेरी सहायता किसने की? मैं आपको बताना चाहूंगी कि नगर के मुख्य हाट की भित्ति पर मुझे यह मानचित्र दिखा जिसने रिंचेनपाँग को जानने में मेरी सहायता की थी।

रिंचेनपाँग का मान चित्र
रिंचेनपाँग का मान चित्र

मेरी अभिलाषा है कि भारत के सभी नगरों में पर्यटकों को जानकारी उपलब्ध कराने के लिए एवं उनका मार्गदर्शन करने के लिए ऐसे मानचित्र सार्वजनिक स्थानों पर प्रदर्शित किये जाने चाहिए।

आर्किड पुष्प पगडण्डी

मानचित्र के निर्देशों के अनुसार हमने अपने परिदर्शक (गाइड) के साथ आर्किड पगडण्डी तक जाने का निश्चय किया। नगर के पर्यटन मानचित्र पर इसे आर्किड बेल्ट कहा गया है किन्तु मैं इसे आर्किड ट्रेल अथवा आर्किड पगडण्डी कहना चाहूंगी। मानचित्र में दर्शाए मार्ग के अनुसार हम गोम्पा तक पहुँचे तथा वहाँ वाहन खड़ी की। वहाँ से आगे जाने का प्रश्न ही नहीं था क्योंकि वहीं पर मार्ग समाप्त हो गया था।

आर्किड पुष्प - रिंचेनपाँग
आर्किड पुष्प

वहाँ से हमने सघन वन के भीतर प्रवेश किया। वन में अस्पष्ट सी पगडण्डी थी जो सूखे पत्तों से भरी हुई थी। २० मिनटों तक हमें ना तो आर्किड दिखे, ना ही जीवन के कोई चिन्ह। हम आशंकित हो रहे थे कि हम सही मार्ग पर नहीं जा रहे हैं। किन्तु हमारा परिदर्शक संदेह रहित था। उसने हमसे किंचित आगे चलने का आग्रह किया। आगे जाते ही हमें प्रार्थना ध्वज दृष्टिगोचर होने आरम्भ हो गए थे। कुछ क्षणों पश्चात सघन वन के मध्य हमारे समक्ष एक इकलौती संरचना प्रकट हो गयी। वह कोई कुटिया अथवा छोटा सा घर नहीं था अपितु एक आकर्षक भवन था।

वन के मध्य निवास

आगे जाकर हमारी पगडण्डी एक गृह के भीतर प्रवेश कर गयी। हम उस घर के आँगन में पहुँच गए थे। हमारे चारों ओर मनमोहक आर्किड से भरे गमले लटके हुए थे। हमने यहाँ जल ग्रहण कर किंचित विश्राम किया। तत्पश्चात आगे बढ़ गए। पगडण्डी पर चलते हुए अब नियमित अंतराल पर हमें भवन अथवा निवास दिखाई दे रहे थे। सभी घरों के समक्ष तथा पृष्ठ भाग में स्थित आँगन भिन्न भिन्न रंगों के आर्किड पुष्पों से भरे हुए थे।

कैक्टस पर उगे फूल
कैक्टस पर उगे फूल

एक स्थान पर हमें कैक्टस का एक पौधा दिखा जिस पर सुन्दर पुष्प पल्लवित थे। एक घर पर रूककर मैंने गृहस्वामिनी से कुछ वार्तालाप भी किया। मुझे उसके आभूषण अत्यंत आकर्षक प्रतीत हो रहे थे। मैंने उनसे उनके जीवन के विषय में भी चर्चा की। वन के भीतर बिना मूलभूत सुविधाओं के वे वहाँ कैसे निवास कर रहे हैं? वे अत्यंत प्रसन्न थे। उन्हें अपने निवास तक किसी पक्के मार्ग की भी आवश्यकता नहीं थी।

आर्किड पट्टी के घर
आर्किड पट्टी के घर

लगभग एक घंटे तक चलते हुए अंततः हम घूमकर अपने वाहन तक पहुँचे। मैं पर्वतों एवं पर्वतीय जीवन शैली से सम्बंधित ज्ञान से अधिक समृद्ध होकर वापिस आयी थी। मुझे यह अनुभव हुआ कि जिन सड़कों एवं अन्य मूलभूत सुविधाओं के अभाव में हम जीवन की कल्पना भी नहीं कर सकते हैं, वे उसके अभाव में अधिक प्रसन्नता से जीवन यापन कर रहे थे। इस धरती पर अनेक ऐसे लोग हैं जिन्हें अपने घरों के आसपास आधुनिक सुख सुविधाएं नहीं अपितु वृक्ष, वन, पौधे, पुष्प जैसी प्राकृतिक संपदा अधिक प्रिय है।

हमारी भेंट वहाँ एक बालक से हुई जो अनेक पक्षियों के चहचहाहट के स्वरों को अपने मुंह से निकाल सकता था। उन बालक की आयु मात्र ३-४ वर्ष की थी। हम उनकी प्रतिभा को देख कर अचंभित थे। जैसे जैसे पक्षी चहचहा रहे थे, बालक वैसे ही स्वर अपने मुंह से निकाल रहा था।

रिंचेनपाँग के विषैले सरोवर की कथा

निएंग डाह अथवा विषैला सरोवर अब लगभग एक शुष्क सरोवर बन चुका है। हमने वहाँ कुछ बालकों को क्रिकेट भी खेलते देखा। विषैला सरोवर, यह नाम हमारे भीतर कौतूहल उत्पन्न कर रहा था। हमने कुछ लोगों से इस विषय में जानने का प्रयास किया। जो हमें ज्ञात हुआ, वह यह है।

विषैले सरोवर की और जाता पथ
विषैले सरोवर की और जाता पथ

प्रथम अंग्रेज अधिकारी जब रिंचेनपाँग पहुँचा था, उसने यहाँ एक भवन का निर्माण किया था। उस समय यह सरोवर उस भवन से सीधे जुड़ा हुआ था। एक दिवस कुछ स्थानीय लेप्चाओं ने उसके वध का नियोजन किया। इसके लिए उन्होंने उस सरोवर में विष मिला दिया। अंग्रेज अधिकारी का सौभाग्य था कि उसके एक कर्मचारी ने, जो स्थानीय लेप्चा ही था, उसे इस विषय में जानकारी दी तथा उसके प्राणों की रक्षा की।

जब मैं सिक्किम से वापिस अपने घर आयी, मैंने इस विषैले सरोवर के विषय में इन्टरनेट में खोज की। वहाँ मुझे ज्ञात हुआ कि सन् १८६० में इस विषैले सरोवर के जल ने अंग्रेज सेना के अनेक जवानों के प्राण ले लिए थे। इस घटना ने अंग्रेज सेना को पीछे हटने के लिए विवश कर दिया था। आज यह सरोवर लगभग अस्तित्वहीन है किन्तु ऐसी मान्यता है कि अब भी इसका जल विषैला है।

आप को जो कथा भाये आप उसे चुनें। जहाँ तक मेरा प्रश्न है, मैंने यह तथ्य चुना कि जैव रासायनिक युद्ध नीति नवीन अवधारणा नहीं है। यह प्राचीनकाल से प्रचलित है।

अंग्रेज का बंगला

विषैले सरोवर से एक मार्ग उस अंग्रेज अधिकारी के भवन की ओर जाता है जिसका संबंध इस विषैले सरोवर से है। अब यह लोक निर्माण विभाग का एक विश्राम गृह है। यह इसे सामान्य जनमानस की पहुँच से दूर कर देता है। यह किसी भी दिशा से प्राचीन प्रतीत नहीं होता है। मेरे अनुमान से भिन्न भिन्न कालखण्डों में इस पर अनवरत नवीनीकरण का कार्य किया जाता रहा है।

रिंचेनपाँग में एक पारंपरिक सिक्किमी निवासस्थान

यह एक ऐसा घर है जिसने हमें रिंचेनपाँग नगर का पूर्ण चक्र लगाने के लिए विवश कर दिया था। मानचित्र के अनुसार यह विषैले सरोवर से किंचित आगे स्थित है। हम आगे बढ़ते रहे किन्तु हमें सघन वन के अतिरिक्त कुछ भी दृष्टिगोचर नहीं हुआ।

सिक्किम के पारंपरिक पाषाण घर
सिक्किम के पारंपरिक पाषाण घर

अंततः, हमें शिलाखंडों द्वारा निर्मित एक संरचना दिखाई दी जिसमें रंगबिरंगे झरोखे थे। आश्चर्यजनक रूप से यह विस्तृत परिसर में खड़ा एक इकलौता भवन था। इसके निचले भाग में शिलाओं द्वारा अनोखी शैली में निर्मित केवल भित्तियाँ थीं। इसके ऊपरी भाग में लकड़ी के झरोखे थे जिन पर जालियां लगीं थीं। जालियों पर भिन्न भिन्न आकारों के खांचे थे। इसकी पार्श्व भित्तियों पर रंगबिरंगे फलक थे। यह भवन अत्यंत रोचक व आकर्षक प्रतीत हो रहा था।

इस भवन के आसपास अनेक कुत्ते विचरण कर रहे थे। इसलिए मैंने वाहन की शरण में रहना ही उत्तम जाना। हमारे परिदर्शक ने भवन के भीतर जाकर उसके अवलोकन की अनुमति ग्रहण करने का प्रयास किया किन्तु उनकी प्रार्थना को कठोरता से नकार दिया गया।

रिंचेनपाँग के मठ

रिंचेनपाँग में हमने दो बौद्ध मठ देखे। ये दोनों हाट मार्ग के दोनों छोरों पर स्थित हैं।

रिनचेंपांग के बौद्ध मठ
रिनचेंपांग के बौद्ध मठ

अन्य मठों के अनुरूप ये भी विविध रंगों में रंगे मठ हैं जिनके चारों ओर हरियाली होती है। चारों ओर फड़फड़ाते ध्वज भक्तों की श्रद्धा की ओर संकेत करते हैं।

रिंचेनपाँग हाट में पदभ्रमण

रिंचेनपाँग नगर का मुख्य हाट मुख्य मार्ग के एक छोर पर स्थित है। यहाँ आप हिमाच्छादित हिमालय शिखरों का अवलोकन करते हुए भाप निकलती चाय एवं मोमो का आनंद उठा सकते हैं। आवश्यकता है तो केवल निर्मल स्वच्छ आकाश की।

सिक्किम के पारंपरिक आभूषण
सिक्किम के पारंपरिक आभूषण

समीप स्थित बुरुंश पुष्प अभयारण्य भी एक आकर्षक पर्यटन बिंदु है। पुष्पों के लदे उद्यान का आनंद उठाना हो तो आपको मार्च-अप्रैल में सिक्किम यात्रा नियोजित करनी पड़ेगी। जब हम यहाँ आये थे तब इन पुष्पों का ऋतुकाल समाप्त होने लगा था।

क्या आपने रिंचेनपाँग को अपनी सिक्किम यात्रा के भ्रमण बिन्दुओं की सूची में सम्मिलित कर लिया है?

अनुवाद: मधुमिता ताम्हणे

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सिक्किम का गंगटोक नगर – सामान्य पर्यटन बिन्दुओं से परे https://inditales.com/hindi/gangtok-sikkim-nagar-bhraman/ https://inditales.com/hindi/gangtok-sikkim-nagar-bhraman/#comments Wed, 05 Jul 2023 02:30:27 +0000 https://inditales.com/hindi/?p=3100

भारत के उत्तर-पूर्वी क्षेत्र में स्थित एक छोटे से राज्य सिक्किम की राजधानी है, गंगटोक। हिमालय पर्वत माला के अंतर्गत कंचनजंगा पर्वत श्रंखला की तलहटी पर बसा गंगटोक नगर एक सुन्दर पर्वतीय पर्यटन स्थल है जो पर्यटकों में अत्यंत लोकप्रिय है। सिक्किम के पूर्व में स्थित नाथुला दर्रा एवं उत्तर में स्थित युमथांग दर्रा, दोनों […]

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भारत के उत्तर-पूर्वी क्षेत्र में स्थित एक छोटे से राज्य सिक्किम की राजधानी है, गंगटोक। हिमालय पर्वत माला के अंतर्गत कंचनजंगा पर्वत श्रंखला की तलहटी पर बसा गंगटोक नगर एक सुन्दर पर्वतीय पर्यटन स्थल है जो पर्यटकों में अत्यंत लोकप्रिय है। सिक्किम के पूर्व में स्थित नाथुला दर्रा एवं उत्तर में स्थित युमथांग दर्रा, दोनों के लिए गंगटोक एक प्रवेशद्वार है।

गंगटोक में गौतम बुद्ध
गंगटोक में गौतम बुद्ध

सन् १८९० में सिक्किम के चोग्याल राजाओं ने सर्वप्रथम गंगटोक को अपनी राजधानी नियुक्त की थी। तब से यह सिक्किम की राजधानी रही है। सिक्किम कोलकाता जैसे भारतीय नगरों एवं नेपाल व भूटान जैसे अन्य देशों के मध्य व्यापार मार्ग रहा है। जब आप पर्वत शिखर पर स्थित रूमटेक मठ जायेंगे तब आप वहाँ से पर्वत की ढलान पर बसे सम्पूर्ण नगर को देख सकते हैं। रात्रि के समय यहाँ से सम्पूर्ण नगर के टिमटिमाते प्रकाश के अप्रतिम दृश्य तो देखते ही बनते हैं।

गंगटोक को आरम्भ में गंग-टो कहा जाता था।

गंगटोक एक छोटा सा नगर है जो पहाड़ी भूभाग पर स्थित है। यहाँ भ्रमण करने के लिए पहाड़ी मार्गों पर चढ़ना-उतरना पड़ता है। किन्तु छोटा नगर होने के कारण शीघ्र ही आप इसके भूगोल से अवगत हो जाते हैं। गंगटोक भ्रमण करने के लिए हम जब भी टैक्सी की सेवायें लेते थे, वे हमें गंगटोक के १० प्रचलित पर्यटन बिन्दुओं पर ले जाने का आग्रह करते थे। हमने उनमें से कई पर्यटक बिन्दुओं का अवलोकन भी किया। किन्तु हमें इस पर्वतीय नगर में पदभ्रमण करने में सर्वाधिक आनंद आया।

गंगटोक नगर का पदभ्रमण

गंगटोक में अनेक ऐसे आयाम हैं जो इसे एक उत्तम निवसन नगर बनाते हैं। जो यहाँ निवास नहीं करते, उन्हें भी भ्रमण हेतु यहाँ आते रहने के लिए बाध्य कर देते हैं। गंगटोक के ऐसे ही विशिष्ट आयामों को आपके साथ साझा कर रही हूँ जिन्हें मैंने अनुभव किया है।

गंगटोक – एक पुष्प नगर

गंगटोक में आप जहाँ भी जायेंगे, स्वयं को रंगबिरंगे पुष्पों से घिरा हुआ पायेंगे। मैं उन वनीय पुष्पों के विषय में नहीं कह रही हूँ जो पहाड़ों की ढलान पर प्रस्फुटित हैं। ये ऐसे पुष्प हैं जिनके पौधों की यहाँ के निवासियों ने बड़े जतन से बागवानी की है। प्रत्येक निवास परिसर के भीतर रंगबिरंगे पुष्पों के पौधे हैं। कुछ भूमि पर तो कुछ गमलों में। कहीं लटकते हुए गमलों में पुष्पों से भरे पौधे घरों की सुन्दरता बढ़ा रहे हैं तो कहीं परिसर की भित्तियों पर चढ़ाई गयी बेलों पर खिले पुष्प पथिकों को आनंदित करते हैं। मार्गों पर पदभ्रमण करते हुए आप जहाँ भी देखें, रंगबिरंगे पुष्प आपका मन मोह लेंगे। यहाँ का वातावरण भी उनके लिए सुयोग्य है।

गुलाबी आर्किड
गुलाबी आर्किड

नगर के मध्य में एक पुष्प प्रदर्शनी है जिसमें इस क्षेत्र के भिन्न भिन्न पुष्पों एवं पौधों की प्रदर्शनी वर्ष भर लगी रहती है।

हरा आर्किड
हरा आर्किड

हमने भी इस पुष्प प्रदर्शनी का आनंद लिया। विशेष रूप से भिन्न भिन्न प्रकार के ऑर्किड पुष्पों ने हमारा मन मोह लिया था। विशेषतः हरे रंग के ऑर्किड ने हमें आश्चर्यचकित कर दिया था।

हर तरफ फूल - गंगटोक
हर तरफ फूल – गंगटोक

गंगटोक के पुष्पीय आयाम का चरम बिंदु है, नगर की भित्तियों की सतह पर लटकती थैलियाँ जिनमें मिट्टी भर कर पौधे उगाये गए हैं। इन पौधे से प्रस्फुटित पुष्प सम्पूर्ण भित्तियों को रंगबिरंगा बना देते हैं। एक नगर को सुन्दर बनाने का यह कितना साधारण, कम लागत का, आसान तथा प्राकृतिक साधन है। देश के अन्य नगरों में भी ऐसे उपक्रम होने चाहिए।

जहाँ जहाँ किंचित मात्रा में भी मिट्टी हो, उनमें से छोटे छोटे रंगबिरंगे पुष्प झांकने लगते हैं। यह उनकी उत्तरजीविता कौशल नहीं है तो क्या है!

और पढ़ें – नामची सिक्किम में सोलोफोक पहाड़ी पर चारधाम

गंगटोक नगर के पदभ्रमण मार्ग

गंगटोक के प्रत्येक वाहन मार्ग के साथ एक पदभ्रमण मार्ग संलग्न है जहाँ पादचारी सड़कों पर दौड़ते वाहनों से निर्लिप्त मुक्तता से चल सकते हैं। सर्वप्रथम घाटी की ओर स्थित पदभ्रमण मार्गों ने मेरा लक्ष भेदा। वे कभी मार्ग के ही स्तर पर होते हैं तो कभी घाटी की ओर लटकते चबूतरे सी संरचना पर होते हैं। किन्तु कुछ क्षणों पश्चात मैंने सड़कों के इस ओर भी पदभ्रमण मार्गों को देखा। पादचारियों के ये मार्ग कभी ऊपर कभी नीचे जाते हैं लेकिन उनके लिए अखंड मार्ग उपलब्ध कराते हैं।

गंगटोक के पद्भ्रमण पथ
गंगटोक के पद्भ्रमण पथ

नामग्याल तिब्बत अध्ययन संस्थान के दर्शन के पश्चात हम इन पदभ्रमण मार्गों द्वारा गंगटोक नगर में भ्रमण करने लगे। हमने एक सुन्दर हवाई मार्ग भी देखा जो व्यस्त वाहन मार्गों के ऊपर से जाता है।

सड़क किनारे पैदल पथ
सड़क किनारे पैदल पथ

मुझे पैदल चलना अत्यंत प्रिय है। मेरा मानना है कि हमारे सभी नगरों में पैदल चलने वालों के लिए समर्पित पदभ्रमण मार्ग उपलब्ध होने ही चाहिए। मुझे सिक्किम में यह देख अत्यंत प्रसन्नता हुई कि एक पहाड़ी नगर के सीमित भूभाग में कुशल आधारभूत संरचना का विकास कार्य इस प्रकार किया गया है कि पादचारी चाहें तो सम्पूर्ण नगर को पैदल चलते हुए पार कर सकते हैं।

इन पदभ्रमण मार्गों की एक अद्वितीय विशेषता यह है कि उन पर चलते हुए हिमालय पर्वत श्रृंखलाओं का अप्रतिम परिदृश्य दृष्टिगोचर होता रहता है। यहाँ-वहाँ स्थित कुछ रंगबिरंगे भवन उन परिदृश्यों की सुन्दरता को दुगुना कर देते हैं।

और पढ़ें – गंगटोक सिक्किम की राजधानी के सर्वोत्तम दर्शनीय स्थल

वाहन मुक्त एम जी मार्ग

भारत के लगभग सभी नगरों में एक मार्ग अवश्य होता है जिसका नाम महात्मा गाँधी मार्ग रखा जाता है। गंगटोक में भी एक मार्ग का नाम महात्मा गाँधी मार्ग है। इस मार्ग पर महात्मा गाँधी की एक प्रतिमा स्थापित है जो गंगटोक में आपका स्वागत करती प्रतीत होती है। इस मार्ग की एक विशेषता है कि यह एक वाहन मुक्त मार्ग है।

एम् गी मार्ग गंगटोक
एम् गी मार्ग गंगटोक

इस मार्ग पर भिन्न भिन्न प्रकार की दुकानें, जलपान गृह, कैफे तथा विश्राम गृह हैं। पर्यटकों के साथ साथ स्थानीय लोग भी इस वाहन मुक्त मार्ग पर उन्मुक्त होकर पैदल चलने का आनंद उठाते हैं। बच्चे बिना किसी भय के यहाँ-वहाँ दौड़ते व क्रीड़ा करते हुए अपने बालपन का आनंद उठाते दिख जाते हैं। मार्ग के मध्य में बैठने की पर्याप्त सुविधाएं प्रदान की गयी हैं जहाँ बैठकर आप तनिक विश्राम कर सकते हैं, आसपास के प्रफुल्लित वातावरण का आनंद उठा सकते हैं अथवा आपस में बतिया सकते हैं।

उफात क्रय करने की दुकानें
उफात क्रय करने की दुकानें

गंगटोक नगर का मुख्य मार्ग हो तथा पुष्पों का उल्लेख ना हो, ऐसा कैसे हो सकता है? मार्ग के बीचों-बीच एक पंक्ति में बिजली के खम्बे हैं जिन पर सुन्दर आवरणों के भीतर बिजली के लट्टू लटके हुए हैं। इस पंक्ति के दोनों ओर बैठने की सुविधाएं दी गयी हैं। इन्ही खम्बों से पौधों के गमले भी लटके हुए हैं जिनमें सुन्दर पुष्प खिले रहते हैं।

इस मार्ग में उत्तम कैफे हैं, नारायण दास मिष्टान्न भण्डार जैसे स्वादिष्ट चाट की दुकानें हैं तथा रंगबिरंगे स्मृति चिन्हों की दुकानें हैं। इस मार्ग पर स्थित विविधताओं ने ही मुझे सिक्किम के स्मृति चिन्हों पर आधारित संस्मरण लिखने की प्रेरणा दी थी।

भित्ति-चित्रण कला अथवा ग्राफिती

गंगटोक नगर में अनेक भित्तियों पर ग्राफिटी अथवा आधुनिक भित्ति चित्र हैं। मुझे ऐसा प्रतीत होता है कि ऐसी आधुनिक भित्ति चित्रण कला सम्पूर्ण भारत में प्रचलित होती जा रही है। मेरा मानना है कि प्रत्येक नगर का स्वयं का एक वैशिष्ट्य होता है, एक इतिहास होता है, स्वयं का एक ताना-बाना होता है जो उसे एक पृथक परिचय देता है। इसलिए प्रत्येक नगर में भित्ति चित्रण कला का प्रदर्शन करते हुए उसके इसी ताने-बाने को प्रदर्शित करना चाहिए, ना कि एक दूसरे का अँधा अनुसरण करना चाहिए। इसके अतिरिक्त अखिल भारत का वैशिष्ट्य भी प्रदर्शित किया जा सकता है।

गंगटोक की सड़कों पे चित्रकारी
गंगटोक की सड़कों पे चित्रकारी

मुझे प्रसन्नता है कि गंगटोक में भित्तिचित्रों पर यहाँ की संस्कृति व परंपरा दृष्टिगोचर होती है। मैंने इन भित्तियों पर अधिकांशतः बुद्ध तथा कमल पुष्प जैसे बौद्ध चिन्हों का चित्रण देखा।

महात्मा गाँधी मार्ग के अंत में बुद्ध का एक विशाल भित्तिचित्र है।

और पढ़ें – पश्चिमी सिक्किम में पेलिङ्ग के पर्यटक स्थल – मठ, झरने, झील

यहाँ आकर मुझे यह ज्ञात हुआ है कि गंगटोक में दिसंबर मास में एक वार्षिक शीत उत्सव आयोजित किया जाता है जिसे विंटर कार्निवल कहते हैं। इस उत्सव के लिए भिन्न भिन्न कलाकार यहाँ आते हैं तथा भित्तियों पर रंगबिरंगे भित्ति चित्र रंगते हैं।

रचना पुस्तक कैफे

इसके विषय में मुझे पूर्व जानकारी नहीं थी। यह मेरे लिए एक रोचक खोज थी। मेरी इस खोज ने मुझे अत्यंत आनंदित भी किया। यद्यपि मेरी एक सखी ने मुझसे गंगटोक के किसी पुस्तक कैफे अथवा बुक कैफे के विषय में उल्लेख अवश्य किया था तथापि उसे उसका नाम व स्थान स्मरण नहीं था। मेरा भाग्य देखिये, गंगटोक में अचानक ही मेरी भेंट एक अन्य मित्र से हुई जिसे इस कैफे के विषय में जानकारी थी। उसने हमें इस रचना पुस्तक कैफे तक पहुँचाया।

रचना बुक कैफ़े - गंगटोक
रचना बुक कैफ़े – गंगटोक

यह एक छोटा सा कैफे है जिसके प्रथम तल पर पुस्तकों की एक सुन्दर दुकान है। इस दुकान में अनुपम भीतरी साज-सज्जा थी। एक हाथ में कॉफी तथा एक हाथ में पुस्तक लिए आप जीवन का आनंद उठा सकते हैं।

हमने इस दुकान में स्वामी श्री रमन से लम्बी चर्चा भी की। उन्होंने हमें बताया कि यह दुकान उनकी पैतृक संपत्ति है। वे इसे समय व काल के अनुसार ढालने का प्रयास कर रहे हैं। गंगटोक की सांस्कृतिक धरोहर एवं आधुनिक शैलियों के मध्य सामंजस्य स्थापित करने का प्रयास कर रहे हैं। इसके लिए वे भिन्न भिन्न शैलियों के रचनात्मक महानुभावों को रचना कैफे में आमंत्रित करते रहते हैं। वे एक ऐसा माध्यम बनाने का प्रयास कर रहे हैं जहाँ सिक्किम मूल के लेखकों एवं कलाकारों को विश्व के अन्य भागों के रचनात्मक मान्यवरों से कला विनिमय का अवसर प्राप्त हो सके। यहाँ प्रदर्शन कला शैलियों को भी एक मंच प्रदान किया जाता है।

रचना पुस्तक कैफे से लगा हुआ एक होमस्टे है जहाँ आप ठहर सकते हैं। यह पुस्तक प्रेमियों के लिए एक वरदान है। इसका अर्थ है कि वे इस पर्वतीय नगर में पुस्तक एवं कैफे का आनंद लेते हुए सम्पूर्ण अवकाश आनंद से व्यतीत कर सकते हैं। यदि आप मेरे जैसे पुस्तक प्रेमी हैं तो अपने आगामी गंगटोक यात्रा में रचना पुस्तक कैफे अवश्य जाएँ।

कंचनजंगा का विहंगम दृश्य

यदि आप कंचनजंगा का विहंगम दृश्य देखना चाहते हैं तो किसी निर्मल स्वच्छ वातावरण के दिन आप सिक्किम जाएँ। अन्यथा कंचनजंगा के दृश्यों से वंचित रहने के लिए तत्पर रहें।

कंचनजंगा का दृश्य
कंचनजंगा का दृश्य

यदि किसी कारणवश आपको कंचनजंगा पर्वत श्रंखला के दृश्य ना दिखें तो निराश ना होयें। आप अन्य शिखरों एवं घाटियों का अवलोकन कर सकते हैं। आप कुछ ऐसे अद्भुत दृश्य देखेंगे जो कंचनजंगा की विहंगम उपस्थिति में देखना असंभव हो जाता है। कंचनजंगा आपको ऐसे अभिभूत कर देती है कि आप आसपास के अन्य अद्भुत दृश्यों को देखना भूल जाते हैं।

किसी भी नगर को देखने एवं जानने का सर्वोत्तम साधन है, पदभ्रमण। शान्ति से पैदल चलते हुए आप नगर के सभी आयामों का आनंद ले सकते हैं।

क्या आप चाहते हैं कि मैं गंगटोक के १० लोकप्रिय पर्यटन बिन्दुओं के विषय में भी लिखूं?

अनुवाद: मधुमिता ताम्हणे

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पश्चिमी सिक्किम में पेलिङ्ग के पर्यटक स्थल – मठ, झरने, झील https://inditales.com/hindi/pelling-rabdentse-kanchenjunga-khecheopalri-lake-sikkim/ https://inditales.com/hindi/pelling-rabdentse-kanchenjunga-khecheopalri-lake-sikkim/#comments Wed, 27 Jan 2021 02:30:01 +0000 https://inditales.com/hindi/?p=2130

सिक्किम एवं बंगाल की हमारी तीन सप्ताह की यात्रा में पेलिङ्ग हमारा प्रथम गंतव्य था। पेलिङ्ग के दर्शनीय स्थलों के विषय में जो मैंने खोज की थी उसके निष्कर्ष स्वरूप मुझे कुछ बौद्ध मठ, कुछ जलप्रपात तथा प्रसिद्ध केचेओपेल्री झील के सुझाव प्राप्त हुए थे। वही सब दर्शनीय स्थल जो किसी भी हिमालयीन क्षेत्र की […]

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रबडेनत्से खंडहर
रबडेनत्से खंडहर

सिक्किम एवं बंगाल की हमारी तीन सप्ताह की यात्रा में पेलिङ्ग हमारा प्रथम गंतव्य था। पेलिङ्ग के दर्शनीय स्थलों के विषय में जो मैंने खोज की थी उसके निष्कर्ष स्वरूप मुझे कुछ बौद्ध मठ, कुछ जलप्रपात तथा प्रसिद्ध केचेओपेल्री झील के सुझाव प्राप्त हुए थे। वही सब दर्शनीय स्थल जो किसी भी हिमालयीन क्षेत्र की यात्रा के समय बहुधा देखे जाते हैं।

पश्चिमी सिक्किम में स्थित पेलिङ्ग के दर्शनीय स्थल

रंगीत नदी पर पुल
रंगीत नदी पर पुल

आप जानते ही हैं कि प्रत्येक हिमालयीन क्षेत्र को विशेष व अनोखा बनाने में वहाँ के पर्वतों, नदियों तथा वनों के पारस्परिक संबंधों का महत्वपूर्ण योगदान होता है। किन्तु यह भी उतना ही सत्य है कि ऐसी कोई भी यात्रा नहीं होती जिसमें कुछ भी अप्रत्याशित तथ्य अथवा आश्चर्यजनक घटना ना हो। इतना ही नहीं, सिक्किम में हमारी पेलिङ्ग यात्रा का आरंभ ही एक आश्चर्य से हुआ।

रबडेनत्से खंडहर – इस क्षेत्र के राज्य के प्रमुख धरोहर

रबडेनत्से का प्रवेश द्वार
रबडेनत्से का प्रवेश द्वार

हमारे यात्रा-परिदर्शक हेमंत ने हमारी गाड़ी एक रंग-बिरंगे प्रवेश द्वार के समक्ष रोक दी। ऐसे प्रवेश द्वार आप बहुधा किसी भी बौद्ध मठ के बाहर देख सकते हैं। मैंने कल्पना की कि हम खंडहरों तक जाएंगे, कुछ छायाचित्र लेंगे, तत्पश्चात लौट आएंगे। प्रवेश द्वार से प्रवेश करते ही सामने एक रंगबिरंगी इमारत थी किन्तु वह हमारा गंतव्य नहीं था। हम आगे बढ़े। मार्ग में एक तालाब था जिसका अवलोकन करते हमने कुछ क्षण व्यतीत किये। हम एक पक्की पगडंडी पर आगे बढ़ते गए जो हमें एक वन की ओर ले जाता प्रतीत हो रहा था।

महल के अवशेषों की ओर जाती पगडंडी

हरियाली से घिरी संकरी पगडण्डी
हरियाली से घिरी संकरी पगडण्डी

हम जिस संकरी पगडंडी पर चल रहे थे वह घने ऊंचे वृक्षों से घिरी हुई थी। उनके तनें हरी काई से इस प्रकार ढंके हुए थे कि सम्पूर्ण वृक्षों पर हरे रंग को छोड़ कोई अन्य रंग का प्रयोजन ही नहीं बचा था। जब हम चारों ओर घनी हरियाली से घिरे हुए थे तथा कानों में जंगल के विभिन्न स्वर गूंज रहे थे हमारा ध्यान पैरों तले चमकती शिलाओं ने खींचा। प्रथम दृष्टि मुझे ऐसा प्रतीत हुआ मानो इन शिलाओं पर किसी ने चमकीला रंग लगाया हो। किन्तु वहाँ तो प्रत्येक शिला चमक रही थी। उन सब शिलाओं को रंग लगाना संभव नहीं। मैंने उन्हे निकट से देखा। वे सोने एवं चांदी की ईंटों के समान लग रहे थे।

शिलाओं के ढेर - अपने आप में एक कलाकृति
शिलाओं के ढेर – अपने आप में एक कलाकृति

हम कुछ आगे बढ़े। हमने वहाँ शिलाओं के अनेक छोटे छोटे ढेर देखे जो संतुलन बनाए एक दूसरे के ऊपर रखे हुए थे। मेरे अनुमान से वे उन यात्रियों की ओर संकेत कर रहे थे जिन्होंने मुझसे पूर्व इस पगडंडी से यात्रा की थी। यह एक प्रकार की सामूहिक कलाकृति थी। अनेक यात्री, जिन्होंने कभी एक दूसरे से भेंट नहीं की, अनजाने में ही इन क्षणिक कलाकृतियों को रच गए। आगे आने वाले यात्रियों के योगदान के लिए भी भरपूर प्रयोजन प्रस्तुत कर गए।

चोर्टेन

चोर्तेन अथवा स्तूप
चोर्तेन अथवा स्तूप

१५-२० मिनटों तक चलने के पश्चात हमने एक सूचना पटल देखा जो हमसे कह रहा था कि हमें अब भी आधा किलोमीटर और चलना है। मैं इस पदयात्रा के लिए मानसिक रूप से तैयार नहीं थी। किन्तु आसपास का वातावरण अत्यंत प्रेरक था। हम आगे बढ़ते गए। यह अच्छा था कि मार्ग समतल, सपाट व पक्का था। जैसे ही हमारी दृष्टि शिलाओं द्वारा निर्मित एक प्राचीन चोर्टेन पर पड़ी, हमारी साँस में साँस आई।

पुरातत्त्व सर्वेक्षण विभाग का सूचना पटल
पुरातत्त्व सर्वेक्षण विभाग का सूचना पटल

यहाँ भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग का एक सूचना पटल हमें सिक्किम की प्राचीन राजधानी रबडेनत्से के इतिहास की जानकारी दे रहा था। वस्तुतः रबडेनत्से सिक्किम की दूसरी राजधानी थी। सिक्किम की प्रथम राजधानी युक्सोम थी। १७ वीं. सदी में सिक्किम के चोग्याल वंश ने अपनी राजधानी युक्सोम से रबडेनत्से में स्थानांतरित कर दी थी। मैं इस विचार से रोमांचित होने लगी कि कदाचित वे भी इसी मार्ग द्वारा इस महल तक पहुंचे होंगे। रबडेनत्से कंचनजंगा पर्वत माला से घिरे एक पर्वत पर स्थित है।

रबडेनत्से महल के अवशेष

श्वेत प्रार्थना ध्वज चहुँ और
श्वेत प्रार्थना ध्वज चहुँ और

सिक्किम के इतिहास की कुछ जानकारी से अवगत होकर हम चोर्टेन से मुख्य अवशेषों की ओर बढ़े। शिलाओं द्वरा निर्मित एक भित्ति के साथ साथ हम ऊपर चढ़ने लगे। वहाँ हमने दो छोटी किन्तु सुंदर संरचनाएँ देखीं। इनके चारों ओर सुंदर बाग थे। बैठने के लिए पटिये थे जिन पर बैठकर आप हरियाली से घिरे इन अवशेषों के अवलोकन का आनंद उठा सकते हैं। दाहिनी ओर की संरचना एक सार्वजनिक इमारत थी जहां से कदाचित राजा प्रजा को संबोधित करते थे।

रबडेनत्से महल के अवशेष
रबडेनत्से महल के अवशेष

इमारत के समक्ष लटकीं प्रार्थना पताकाएँ इस संरचना को भक्ति तथा प्रभुता की आभा प्रदान कर रहे थे। यहाँ से आसपास का अद्भुत दृश्य प्राप्त हो रहा था। मेरे समक्ष हरे रंग की अनगिनत आभाएं पसरी हुई थीं जिन्हे गिनने के मेरे सर्व प्रयत्न व्यर्थ हो रहे थे। समीप एक अन्य पहाड़ी पर हमें श्वेत पताकाओं से घिरा प्रसिद्ध पेमायाँग्त्से बौद्ध मठ दृष्टिगोचर हो रहा था।

रबडेनत्से अवशेषों के तीन चोर्टेन

रबडेनत्से महल के तीन चोर्तेन

दूसरी संरचना वास्तव में महल था जिसमें दो तलों का निवास क्षेत्र था। अनुमानतः यहीं राजसी परिवार निवास करता था। इस संरचना के एक कोने में एक पीठिका पर तीन चोर्टेन हैं जो पर्वतों की पृष्ठभूमि में अत्यंत मनोरम प्रतीत होते हैं। ये ऐसी संरचनाएं हैं जिन पर समय के साथ सजीली आभा की परतें चढ़ती जाती हैं। यहाँ मैंने अनेक नवयुवक एवं नवयुवतियों को देखा जो अपने व्यावसायिक उद्देश्य के लिए इस मनोरम पृष्ठभूमि में अपने छायाचित्रिकरण करवा रहे थे। वे भिन्न भिन्न मुद्राओं में अपनी प्रस्तुतीकरण कर रहे थे तथा छायाचित्रकार यहाँ-वहाँ कूदते-फाँदते उनके छायाचित्र ले रहे थे। वह सब अत्यंत मनोरंजक था। अंततः हमने संरचना की सूक्ष्मताओं पर लक्ष्य केंद्रित किया। वहाँ स्थित एक पाषाणी पट्टिका ने हमारा ध्यान आकर्षित किया जिस पर बुद्ध के अनेक चित्र हल्के से उत्कीर्णित थे। यह यहाँ की स्थानीय शैली थी अथवा कार्य अधूरा था इसका अनुमान हम नहीं लगा सके।

वृक्षों पे मंडराते रंग बिरंगे पक्षी
वृक्षों पे मंडराते रंग बिरंगे पक्षी

हमने आसपास के वृक्षों की शाखाओं पर सिक्किम के कुछ अत्यंत रंगीन पक्षी देखे।

यह स्थान अत्यंत शांतिपूर्ण व निर्मल है।

पेमायांग्त्से बौद्ध मठ

पेलिङ्ग का पेमायांग्त्से बौद्ध मठ
पेलिङ्ग का पेमायांग्त्से बौद्ध मठ

पेलिङ्ग का यह मुख्य बौद्ध मठ है जो रबडेनत्से से कुछ ही दूरी पर है। पेमायांग्त्से बौद्ध मठ की ओर जाते सम्पूर्ण मार्ग के दोनों ओर सुंदर श्वेत पताकाएं लटकी हुई हैं। उन्हे देख ऐसा आभास होता है जैसे वे आपका स्वागत कर रहे हैं। हमने बौद्ध मठ के भीतर प्रवेश किया। मठ के भीतर चित्रों की अनेक पंक्तियाँ थीं।

पेलिङ्ग का पेमायांग्त्से बौद्ध मठ के भीतर
पेलिङ्ग का पेमायांग्त्से बौद्ध मठ के भीतर

मठ का भीतरी भाग बहुधा लाल रंग की प्राधान्यता लिए रंगबिरंगा होता है। मक्खन के दीपों को देख हमें इन मठों के विषय में ज्ञात होता है कि यहाँ की अधिकांशतः वस्तुएं यहीं भिक्षुओं द्वारा निर्मित होती हैं।

अनुष्ठान परिधान
अनुष्ठान परिधान

पेमायांग्त्से बौद्ध मठ के दूसरे तल पर एक संग्रहालय है जो मठ के अनुष्ठानिक वस्तुओं का प्रदर्शन करता है। इनमें भिक्षुओं द्वारा पहने जाने वाले जरी के भव्य वस्त्र, प्रयोग में आने वाले पात्र, लकड़ी के रंगबिरंगे मुखौटे, बजाए जाने वाले संगीत वाद्य इत्यादि प्रमुख हैं। इन्हे देख मुझे चाम नृत्य का स्मरण हो आया जिसे मैंने इस वर्ष के आरंभ में लद्दाख में देखा था। लकड़ी पर कुछ पांडुलिपियाँ हैं जो उत्कीर्णित हैं अथवा किसी रंग का प्रयोग कर लिखी गई हैं यह मुझे ज्ञात नहीं हो पाया। लकड़ी पर नक्काशी कर निर्मित किए कुछ बक्से हैं तथा साथ ही प्राचीन थाँग्का चित्रकारियाँ भी हैं।

पेलिङ्ग का पेमायांग्त्से बौद्ध मठ की काष्ठकला
पेलिङ्ग का पेमायांग्त्से बौद्ध मठ की काष्ठकला

पेमायांग्त्से बौद्ध मठ के चारों ओर पत्थरों के ढेर हैं। मैंने यहाँ कुछ अत्यंत अप्रतिम घर देखे। कुछ अत्यंत आकर्षक लकड़ी के निवासस्थान भी देखे जिन पर कुछ सूक्ष्म चित्रकारियाँ की गई हैं।

पेमायांग्त्से बौद्ध मठ का लकड़ी का झरोखा मुझे अत्यंत भाया।

पेलिङ्ग के प्रमुख स्वादिष्ट जलपान केंद्र

हम एक सुंदर से जलपानगृह में रुके जहां घाटियों के परिदृश्यों का अवलोकन करने के लिए छत पर बैठने की भी सुविधा थी। भीतर की भित्तियों पर सिक्किम के विषय में सामान्य ज्ञान के वाक्य चित्रित थे। किन्तु यहाँ अत्यधिक भीड़ थी जिसके कारण हमें पड़ोस में स्थित बिल के समान अत्यधिक छोटे से जलपान गृह का सहारा लेना पड़ा। हमारा यह निर्णय उत्तम सिद्ध हुआ। हमें सर्वोत्तम, ताजा पका हुआ तथा स्वादिष्ट भोजन प्राप्त हुआ। भाजी, भात, गरम मोमो के साथ गरम चाय। हमने दो नवीन चटनियाँ भी चखीं, एक छेना अर्थात पनीर से बनी तथा दूसरी मिर्च व लहसुन की चटनी। दोनों चटनियाँ तीखी थीं किन्तु मोमो तथा भात के साथ उनका मेल अत्यंत स्वादिष्ट था।

और पढ़ें – राजगीर – बौद्ध परिषदों का मेजबान 

मेरा सुझाव यही है कि आप छोटे जलपानगृह में भोजल करें, विशेषतः जिसे वहाँ की स्त्रियाँ चलाती हैं। वे आपकी इच्छा के अनुसार आपके समक्ष ताजा भोजन पका कर देती हैं।

कंचनजंगा जलप्रपात – अप्रतिम प्राकृतिक सौन्दर्य

कंचनजंगा जलप्रपात
कंचनजंगा जलप्रपात

पेलिङ्ग से कुछ दूरी पर यह मनमोहक कंचनजंगा जलप्रपात है। जिस दिन हम वहाँ गए थे उस दिन वर्षा हो रही थी। गाड़ी में बैठे हुए ही हमारी दृष्टि जलप्रपात पर पड़ी। प्रथम दृष्टि में हमारी प्रतिक्रिया कुछ विशेष नहीं है। हमारे गाइड ने हमारे लिए छतरियाँ खोल दी थीं तथा हमसे बाहर आकर सीढ़ियाँ चढ़ने का आग्रह करने लगा। मैंने सशंकित होकर उन सीढ़ियों की ओर देखा। पेलिङ्ग के धरोहरों के अवलोकन करते हम पहले ही बहुत चल लिए थे। किन्तु वह अड़ा रहा। अंततः हम उसके पीछे हो लिए।

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एक बड़े आश्चर्य से हमारा सामना होने जा रहा था। इतने विशाल जलप्रपात के पूर्ण स्वरूप का आभास तब तक नहीं होता जब तक आप लगभग इसके नीचे खड़े नहीं हो जाते। कदाचित कलकल बहते जल का स्वर दूर से ही सुनाई दे सकता था किन्तु उस दिन वर्षा अपना खेल दिखा रही थी। इसलिए हमें जलप्रपात का स्वर सुनाई नहीं दे रहा था। एक विशाल चट्टान के पीछे जाते ही एक विहंगम जलप्रपात हमारे समक्ष प्रकट हो गया। हम उसके समक्ष बैठ गए। चाय की चुसकियाँ लेते हुए हमने इस जलप्रपात को मन भर के देखा व सुना। यह एक अप्रतिम दृश्य था।

शब्दों में उल्लेख कर के मैं इस जलप्रपात की सुंदरता को सिद्ध नहीं कर पाऊँगी। अतः यह कार्य मैं इस विडिओ पर छोड़ती हूँ।

केचेओपेल्री झील – पेलिङ्ग की लोकप्रिय पावन झील

रंग बिरंगी प्रार्थना पताकाएं
रंग बिरंगी प्रार्थना पताकाएं

पेलिङ्ग से ३० किलोमीटर दूर स्थित यह एक पवित्र झील है। मैंने जिन से भी पेलिङ्ग के विषय में चर्चा की थी, सभी ने मुझसे केचेओपेल्री झील के अवलोकन का सुझाव दिया था। जब हम केचेओपेल्री झील पहुंचे थे, सूर्य अस्त होने कगार में था। झील की ओर जाते, पताकाओं से घिरे एक पथ पर हम झटपट चलने लगे। इतनी सारी रंगीन पताकाएं एक स्थान पर मैंने अपने जीवन में इससे पूर्व कहीं नहीं देखी थीं। मार्ग के दोनों ओर छोटे-बड़े अनेक चोर्टेन थे। हमें पताकाओं के झुरमुट से झील का प्रथम दर्शन प्राप्त हुआ। जब हम झील के समीप पहुंचे, हम पूर्णतः पताकाओं से घिरे हुए थे।

केचेओपेल्री का अर्थ है उड़ती योगिनियों अथवा ताराओं का महल।

झील के पास ले जाता पैदल पथ
झील के पास ले जाता पैदल पथ

हमने अपने जूते उतारे तथा झील की ओर जाते, लकड़ी के एक लंबे पुलिये पर चलने लगे। यहाँ भी चारों ओर पताकाएं फड़फड़ा रही थीं। झील के जितने समीप हम जा सकते थे, यह पुलिया हमें उतने समीप ले गया। एक ओर पीतल की कुछ घंटियाँ लटकी हुई थीं। यहाँ अधिकतर पताकाएं श्वेत रंग की थीं।

केचेओपेल्री झील – एक तीर्थ स्थल

केचेओपेल्री झील सिक्किम के एक प्रसिद्ध तीर्थ मार्ग का एक भाग है। इस तीर्थ मार्ग के अन्य तीर्थ स्थल हैं, सिक्किम की प्रथम राजधानी युक्सोम में स्थित दुबड़ी बौद्ध मठ, पेमायांग्त्से बौद्ध मठ, रबडेनत्से के अवशेष, सांगा चोएलिङ्ग मठ तथा ताशीदिंग बौद्ध मठ। ऐसा कहा जाता है कि केचेओपेल्री झील को गुरु पद्मसम्भव का भी आशीष प्राप्त है। केचेओपेल्री झील एक पवित्र झील होने के कारण आप ऐसा कुछ भी नहीं कर सकते जो इस झील को अपवित्र करे अथवा जिससे इस झील का किसी भी प्रकार से अपमान हो। झील अत्यंत ही स्वच्छ थी। उसके जल में एक पत्ता भी नहीं तैर रहा था।

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हमने यहाँ कुछ क्षण शांति से व्यतीत किए, प्रार्थना की तथा एक सुरक्षित व शांतिपूर्ण यात्रा की कामना की। हमारी कामना पूर्ण भी हुई। सिक्किम तथा बंगाल में हमने अविस्मरणीय तीन सप्ताह व्यतीत किए।

सिक्किम यात्रा से पूर्व

मैंने कल्पना भी नहीं की थी कि पेलिङ्ग मुझे यहाँ की संस्कृति एवं प्राकृतिक सौन्दर्य के इतने सारे आयामों से परिचय कराएगा। आप भी वहाँ अवश्य जाएँ।

अनुवाद: मधुमिता ताम्हणे

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गंगटोक सिक्किम की राजधानी के सर्वोत्तम दर्शनीय स्थल https://inditales.com/hindi/gangtok-sikkim-darshaniya-sthal/ https://inditales.com/hindi/gangtok-sikkim-darshaniya-sthal/#comments Wed, 22 Jul 2020 02:30:14 +0000 https://inditales.com/hindi/?p=1826

गंगटोक भारत के उत्तर-पूर्वी हिमालायी राज्य सिक्किम की राजधानी है। सिक्किम एक छोटा किन्तु अत्यंत मनोरम राज्य है। इस सुंदर राज्य में अनेक नयनाभिराम दर्शनीय स्थल हैं। गंगटोक एक शहरी क्षेत्र है। यह सड़क मार्ग द्वारा बागडोगरा विमानतल से जुड़े होने के कारण पर्यटकों का मनपसंद पर्यटन स्थल है। यहाँ के दर्शनीय स्थल मनोरम तो […]

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गंगटोक भारत के उत्तर-पूर्वी हिमालायी राज्य सिक्किम की राजधानी है। सिक्किम एक छोटा किन्तु अत्यंत मनोरम राज्य है। इस सुंदर राज्य में अनेक नयनाभिराम दर्शनीय स्थल हैं। गंगटोक एक शहरी क्षेत्र है। यह सड़क मार्ग द्वारा बागडोगरा विमानतल से जुड़े होने के कारण पर्यटकों का मनपसंद पर्यटन स्थल है। यहाँ के दर्शनीय स्थल मनोरम तो हैं ही, साथ ही विविध प्रकार के हैं। पुष्प-प्रदर्शन, बौद्ध मठ, हिमालय प्राणी उद्यान, तिब्बत अध्ययन संस्था, जलप्रपात, चहल-पहल से भरा महात्मा गांधी मार्ग जैसे विभिन्न प्रकार के आकर्षण यहाँ आपको तृप्त कर देंगें।

गंगटोक नगर के दर्शनीय स्थल

हिमालय की कंचनजंगा चोटी
हिमालय की कंचनजंगा चोटी

मेरे इस संस्करण का उद्देश्य है सिक्किम की राजधानी गंगटोक की यात्रा में सम्मिलित किये जा सकते कुछ लोकप्रिय दर्शनीय स्थलों के विषय में आप सब को अवगत कराना। इनमें कुछ स्थल गंगटोक नगरी के भीतर हैं तथा कुछ नगर के आसपास हैं जहां आप एक दिवसीय यात्रा के रूप में गाड़ी से जा सकते हैं। वहीं दूर दूर के स्थल आप नगर के आयोजित पर्यटन के द्वारा कर सकते हैं।

गंगटोक नगरी की पुष्प प्रदर्शनी

आर्किड - गंगटोक की पुष्प पर्दर्शनी
आर्किड – गंगटोक की पुष्प पर्दर्शनी

गंगटोक की सम्पूर्ण नगरी, वहाँ के निवासस्थान तथा सड़कें सभी सुंदर पुष्पों के पौधों से भरे हुए हैं। कुछ को धरती पर उगाया हुआ था वहीं कुछ गमले में आश्रय लिए हुए थे। यहाँ का वातावरण बागवानी के लिए अति उत्तम प्रतीत होता है। गंगटोक नगरी के मध्य में ही पुष्प प्रदर्शनी का आयोजन किया जाता है। रंगबिरंगे एवं भिन्न भिन्न प्रकार के पुष्पों को देखने के अवसर का लाभ आप अवश्य उठायें। यहाँ आप पुष्पों के ऐसे ऐसे प्रकार देखेंगे जो आपने जीवन में कभी नहीं देखे होंगे। ओर्किड के ही प्रकार देखकर आप दंग रह जाएंगे। सबसे अच्छी बात यह है कि यहाँ चित्रिकरण एवं छायाचित्रिकरण पर कोई पाबंदी नहीं है। प्रवेश शुल्क भी केवल नाममात्र है।

महात्मा गांधी मार्ग

गंगटोक का महात्मा गाँधी मार्ग
गंगटोक का महात्मा गाँधी मार्ग

नगर के केंद्र में महात्मा गांधी मार्ग अथवा एम जी मार्ग है जहां चहल कदमी करते हुए आप नगर की चहल पहल का आनंद उठा सकते हैं। यदि आकाश स्वच्छ हो तो आप हिमालय की कंचनजंगा चोटी भी देख सकते हैं।

इस मार्ग पर गाड़ियां चलाना प्रतिबंधित है। आप बिना किसी परेशानी के यहाँ पैदल चल सकते हैं। मार्ग के दोनों ओर खाने-पीने की कई दुकानें, स्मारिकाओं की दुकानें तथा कई अन्य दुकानें हैं। साथ चलते लोग इस सैर को और भी उल्हासित बना देते हैं।

नामग्याल तिब्‍बतशास्‍त्र संस्‍थान

नामग्याल तिब्‍बत शास्‍त्र संस्‍थान
नामग्याल तिब्‍बत शास्‍त्र संस्‍थान

नामग्याल तिब्‍बतशास्‍त्र संस्‍थान तिब्बती संग्रहालय है जो तिब्‍बती सभ्‍यता,  धर्म, भाषा, कला व संस्कृति तथा इतिहास से संबंधित शोध कार्यों को बढ़ावा देता है एवं प्रायोजन करता है। संस्‍थान में थांग्का चित्रकारी, बौद्ध प्रार्थना की वस्तुएँ, बौद्ध धर्म से संबंधित वस्तुएँ, तिब्बती और संस्कृत में पांडुलिपियां इत्यादि के कई मौलिक व दुर्लभ संग्रह हैं।

दो द्रुल चोर्टेन स्तूप

गंगटोक के बौद्ध मठ के प्रार्थना चक्र
गंगटोक के बौद्ध मठ के प्रार्थना चक्र

दो द्रुल चोर्टेन स्तूप नामग्याल तिब्‍बतशास्‍त्र संस्‍थान के समीप स्थित है। मेरे अनुमान से यह स्तूप सिक्किम का विशालतम स्तूप है। इसके शिखर पर स्वर्ण पत्रों का आवरण है। चोर्टेन ल्हाखाँग एवं गुरु ल्हाखाँग दो द्रुल चोर्टेन को घेरे हुए हैं। दो द्रुल चोर्टेन के दर्शन कीजिए एवं प्रार्थना चक्रों को घूमाते हुए अपनी इष्ट इच्छा प्रकट कीजिए।

गंगटोक के आसपास दर्शनीय स्थल

गंगटोक नगर एक पर्वत की ढलान पर बसा हुआ है। इसके आसपास का क्षेत्र तथा पहाड़ियाँ अनेक आकर्षक दर्शनीय स्थलों से भरा हुआ है। इन पर्यटन स्थलों के अवलोकन के लिए आपको गाड़ी की आवश्यकता पड़ेगी। सार्वजनिक परिवहन सुविधाजनक नहीं है। गंगटोक नगर के आसपास के कुछ मनमोहक दर्शनीय स्थल आपको बताना चाहती हूँ।

बकथंग झरना

बकथंग झरना
बकथंग झरना

बनझाखरी  झरने की ओर जाते मार्ग में स्थित यह एक छोटा झरना है। गंगटोक से लगभग ३ से ४ किलोमीटर दूर स्थित यह झरना मुख्य मार्ग पर ही है। यहाँ पर कुछ रोमांचक क्रीड़ाओं का भी आयोजन किया जाता है, जैसे रस्सी पर चढ़ना, रैपलिंग इत्यादि। पर्यटक सिक्किम की पारंपरिक वेशभूषा में सज्ज होकर अपने छायाचित्र भी ले सकते हैं।

पहाड़ी क्षेत्र होने के कारण यहाँ से चारों ओर का परिदृश्य अत्यंत मनोहारी होता है। आवश्यक है कि आकाश स्वच्छ हो। स्थानीय भाषा में ‘बक’ का अर्थ है वन अथवा जंगल तथा ‘थंग’ का अर्थ है मैदान। इस झरने के प्राकृतिक जल स्त्रोत का उद्गम इस स्थान के ऊपर स्थित घने जंगल में स्थित है। वन विभाग इस वनीय क्षेत्र को स्मृति बन के नाम से संरक्षित करता है। भंजकरी झरने की ओर जाते समय आप १५-२० मिनट यहाँ ठहर कर प्रकृति का आनंद ले सकते हैं।

बकथंग झरने का विडिओ  

बकथंग झरने पर बना यह विडिओ अवश्य देखिए। सर्वोत्तम दर्शन के लिए एच डी मोड का प्रयोग करें।

बनझाकड़ी झरना

इस झरने को बनझाकड़ी अथवा बन झकरी झरना भी कहते हैं। बनझाकड़ी झरना चिरस्थायी अर्थात बारहमासी झरना है। ऊंचाई पर स्थित जल स्त्रोत से निकली जलधारा विभिन्न चरणों में शिलाओं पर गिरती, उछलती तथा अठखेलियाँ करती हुई नीचे आती है। इस झरने की ऊंचाई लगभग १०० फीट है। झरने की प्रथम सीधी झड़न लगभग ४० से ५० फीट ऊंची है। यह झरना नगर से लगभग ७ किलोमीटर की दूरी पर स्थित लॅंडस्केप उद्यान में है।

बनझाकड़ी झरना
बनझाकड़ी झरना

झरने के आसपास उद्यान है जो अत्यंत सुंदरता एवं कलात्मकता से बनाया गया है। अनेक प्रकार की प्रतिमाएं एवं कलाकृतियाँ इस उद्यान की शोभा तो बढ़ा ही रहे हैं, साथ ही झाकरी संस्कृति की सुंदर परिकल्पना भी प्रस्तुत करते हैं। ये प्रतिमाएं सिक्किम के पारंपरिक अनुष्ठान, उपचारात्मक संस्कार तथा शमन अर्थात जीववादी धर्म में प्रवेश पद्धति की जानकारी भी प्रदान करते हैं।

बन का अर्थ है वन तथा झाकडी का शाब्दिक अर्थ है पारंपरिक चिकित्सक। बन झाकडी एक पौराणिक पात्र है जिसका अस्तित्व सिक्किम के नेपाली समुदाय की दंतकथाओं में ही देखा गया है।

बनझाकड़ी झरने का विडिओ

बनझाकड़ी झरने का यह विडिओ हमने हमारी यहाँ की यात्रा के समय बनाया था। झरने का प्रत्यक्ष आनंद लेने के लिए इसे अवश्य देखिए। सर्वोत्तम दर्शन के लिए एच डी मोड का प्रयोग कर यूट्यूब चैनल पर देखें।

हिमालयी वन्यजीव उद्यान

हिमालयी प्राणी उद्यान, गंगटोक नगर के समीप स्थित, हिमालयी पशु-पक्षियों से परिचित होने का उत्तम स्थान है। यहाँ आप हिमालयी क्षेत्रों में पाए जाने वाले वनस्पति, जीव तथा स्थानीय वनीय वृक्षों के विषय में जान सकते हैं।

लाल पांडा - गंगटोक
लाल पांडा – गंगटोक

इस प्राणी उद्यान में हिमालयी वन्यजीवों को बड़े बड़े बाड़ों में रखा गया है। इन बाड़ों को इस प्रकार निर्मित किया गया है कि वे इन प्राणियों को लगभग स्वाभाविक परिवेश उपलब्ध कराते हैं। अन्य दुर्लभ जीवों के साथ साथ हिम तेंदुआ तथा लाल पांडा यहाँ के प्रमुख आकर्षण हैं।

हिमालयी बिल्ली
हिमालयी बिल्ली

इस विशाल, हरियाली से परिपूर्ण तथा दुर्लभ हिमालयी प्रजातियों के संरक्षण केंद्र के दर्शन, वह भी शीतल स्फूर्तिदायक वातावरण में, आपको प्रफुल्लित कर देगी। इसके दर्शन करते आप अपनी इच्छानुसार १ से २ घंटे आसानी से बता सकते हैं। उद्यान में प्रवेश शुल्क भी नाममात्र है।

हमने इस हिमालयी प्राणी उद्यान के पहाड़ी क्षेत्र में सैर करने का भरपूर आनंद उठाया। किसी भी दिन जब आकाश स्वच्छ हो तो आप अनेक प्रकार के पक्षी भी देख सकते हैं। जिस दिन हम यहाँ आए थे उस दिन वर्षा  हो रही थी। अतः हम पक्षी नहीं देख पाए।

रुमटेक बौद्ध मठ

रूमटेक बौद्ध मठ
रूमटेक बौद्ध मठ

विशालतम एवं प्राचीनतम बौद्ध मठों में से एक, रुमटेक बौद्ध मठ गंगटोक से लगभग २० किलोमीटर की दूरी पर है। रुकटेक धर्म चक्र केंद्र के परिसर में अनेक पवित्र वस्तुएं रखी हुई हैं। इनमें सर्वाधिक विशेष एवं भव्य है १३ फीट ऊंचा स्वर्ण स्तूप। इस मठ के परिसर में विकसित बगीचा भी अत्यंत दर्शनीय है।

गंगटोक से एक दिवसीय यात्राएं

चारधाम, नामची

नामची का चार धाम
नामची का चार धाम

पहाड़ी के ऊपर स्थित नामची का चारधाम भारत के पूजनीय चार धामों का प्रतिरूप है। यहाँ के अप्रतिम मंदिरों एवं भगवान शिव की विशाल मूर्ति को निहारते आप २ से ३ घंटे आसानी से व्यतीत कर सकते हैं। यहाँ का वातावरण अत्यंत सुहाना होता है। मेघ एवं सूर्य की किरणें आपस में लुक-छुपी का खेल खेलते हमें मंत्रमुग्ध कर देते हैं।

चारधाम नामची पर हमारा विस्तृत यात्रा संस्मरण पढ़ें।

टेमी चाय के बागान

टेमी चाय के बागान
टेमी चाय के बागान

टेमी चाय के बागान सिक्किम का विशालतम चाय बागान है। यह बागान गंगटोक से नामची की ओर जाते मार्ग पर है। मेघों के मध्य से झाँकते चाय के हरे भरे विस्तृत बागानों का परिदृश्य आपको मंत्रमुग्ध कर देगी। इनके बीच से जाते घुमावदार रास्तों पर गाड़ी से जाना एक पृथक ही अनुभव है। यह आपकी स्मृति एवं आँखों को अपनी सुंदरता से सराबोर कर देगी।

संदरूपत्से पहाड़ी पर रवंगला बौद्ध उद्यान

संदरूपत्से पहाड़ी
संदरूपत्से पहाड़ी

संदरूपत्से पहाड़ी पर १२० फीट ऊंची बौद्ध पद्मसम्भव की प्रतिमा विश्व में उनकी विशालतम प्रतिमा है। बौद्ध तीर्थयात्रियों के लिए यह बौद्ध तीर्थयात्रा केंद्रों में से एक है। गुरु रिनपोचे के नाम से प्रसिद्ध पद्मसम्भव सिक्किम के संरक्षक गुरु हैं। समीप ही एक रॉक गार्डन अर्थात शैलोद्यान भी है।

गंगटोक के समीप दर्शनीय स्थल – रोमांचक यात्राएं

सिक्किम हिमालय की चोटियों से घिरा क्षेत्र है, तो यात्रा में रोमांच भी सम्मिलित होगा ही। वह भी गंगटोक नगरी से अधिक दूर नहीं! ये देखिए कुछ लोकप्रिय विकल्प:

नाथुला दर्रा तथा सोंगमो या चांगू झील

हिमाच्छादित पर्वत और याक
हिमाच्छादित पर्वत और याक

नाथुला दर्रा गंगटोक से लगभग ६० किलोमीटर पूर्व दिशा में है। यहाँ पहुँचने का मार्ग उच्चतम मोटर योग्य मार्गों में से एक है। नाथुला दर्रे के दर्शन के लिए अनुमति पत्र आवश्यक है। साथ ही गंगटोक से नियोजित यात्रा की सुविधा चुनना भी आवश्यक है। यह नियोजित यात्राएं मौसम की स्थिति पर ही निर्धारित होते हैं। यहाँ तक पहुँचने के मार्ग पर सोंगमो या चांगू झील है जो शीत ऋतु में जम जाती है। ठंड से जमी हुई झील, हिमपात तथा यहाँ का परिदृश्य पर्यटकों के लिए विशेष आकर्षण हैं।

सिक्किम के कुछ अन्य आकर्षक दर्शनीय स्थल हैं पूर्वी सिक्किम में गुरुडोंगमार झील, कंचनजंगा जलप्रपात तथा पश्चिमी सिक्किम के पेलिङ्ग में रबडेनत्से अवशेष।

आप जब भी सिक्किम की यात्रा पर आयें तो इनमें से अपनी रुचि के अनुसार दर्शनीय स्थल चुन सकते हैं।

सिक्किम एवं गंगटोक पर मेरे द्वारा प्रकाशित ये यात्रा संस्मरण भी अवश्य पढ़ें।

सिक्किम के १२ सर्वोत्तम स्मारिकाएं खरीदें

गंगटोक नगरी – इसके १० लोकप्रिय दर्शनीय स्थलों के पार

अनुवाद: मधुमिता ताम्हणे

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नामची सिक्किम में सोलोफोक पहाड़ी पर चारधाम https://inditales.com/hindi/sikkim-namchi-chardham-solophok-hill/ https://inditales.com/hindi/sikkim-namchi-chardham-solophok-hill/#comments Sun, 25 Dec 2016 05:45:59 +0000 https://inditales.com/hindi/?p=14

नामची सिक्किम प्रदेश में सोलोफोक पहाड़ी पर स्थित चारधाम भारत के प्रमुख तीर्थ स्थलों की एक ही जगह समेट कर पर बनायी गयी प्रतिकृति है। यहां पर भारत के चारों कोनों में स्थित चार धाम, जैसे रामेश्वरम, सोमनाथ, पुरी और बद्रीनाथ और पूरे भारतखंड में स्थित 12 ज्योतिर्लिंग शामिल हैं। सिद्धेश्वर धाम के नाम से जाने इस स्थल के आकर्षण का शिखर […]

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नामची सिक्किम प्रदेश में सोलोफोक पहाड़ी पर स्थित चारधाम भारत के प्रमुख तीर्थ स्थलों की एक ही जगह समेट कर पर बनायी गयी प्रतिकृति है। यहां पर भारत के चारों कोनों में स्थित चार धाम, जैसे रामेश्वरम, सोमनाथ, पुरी और बद्रीनाथ और पूरे भारतखंड में स्थित 12 ज्योतिर्लिंग शामिल हैं। सिद्धेश्वर धाम के नाम से जाने इस स्थल के आकर्षण का शिखर बिन्दु भगवान शिव की ऊँची-लंबी प्रतिमा है।

भगवान् शिव प्रतिमा चारधाम नामची सिक्किम

दक्षिण सिक्किम में बसा हुआ, सिक्किम के दक्षिण जिले का जिला मुख्यालय होने के बावजूद नामची एक छोटा सा शहर है। रंगीत नदी के किनारे बसे बाईगुने में कुछ सुंदर दिन बिताने के बाद हम नामची की ओर बढ़े। हमारे लिए नामची के दौरे का सबसे बड़ा आकर्षण यहां की सोलोफोक पहाड़ी पर स्थित चारधाम या सिद्धेश्वर धाम था। हमसे एक दिन पहले जो लोग पहाड़ी का दौरा कर आए थे उनसे हमने इस तीर्थ स्थल के बारे में बहुत सुना था। हम वहाँ के नवनिर्मित परिसर, जो सिक्किम पर्यटन का पसंदीदा गंतव्य बन चुका था, को देखने के लिए सबसे ज्यादा उत्साहित थे।

चारधाम या सिद्धेश्वर धाम

सिद्धेश्वर धाम
सिद्धेश्वर धाम

नामची सिक्किम के सोलोफोक पहाड़ी का इतिहास

महाकाव्य महाभारत में एक ऐसा अध्याय है जहां पर अर्जुन शिव भगवान से पशुपतिअस्त्र प्राप्त करने के लिए कड़ी तपस्या करते हैं। जब शिवजी उनके समर्पित धीरज से प्रसन्न हुए, तो उन्होंने अर्जुन के समुख प्रकट होकर उन्हें पशुपतिअस्त्र का वरदान दे दिया। कहा जाता है कि यह प्रकरण नामची की सोलोफोक पहाड़ी पर घटित हुआ था। मैंने धार्मिक सिक्किम पर एक किताब पढ़ी थी जिसके अनुसार, अर्जुन को पशुपतिअस्त्र का आशीर्वाद देने के लिए इस पहाड़ी पर शिव भगवान के अवतरण की खुशी मनाने के प्रतीक स्वरूप चारधाम का परिसर बनवाया गया था। इस परिसर का उद्घाटन नवंबर 2011 में श्री जगतगुरु शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानन्द सरस्वती महाराज और अनेकों धार्मिक गणमान्य व्यक्तियों की उपस्थिति में प्राण प्रतिष्ठान के साथ हुआ।

मनमोहक सिद्धेश्वर धाम, नामची सिक्किम
मनमोहक सिद्धेश्वर धाम

ऊंची पहाड़ी पर स्थित होने के कारण मेघ हमेशा इस अद्वितीय तीर्थ यात्रा का हिस्सा बनते हैं। इन बादलों के बीच से गुजरते हुए आप मंदिरों और भगवान शिव की मूर्ति को बादलों के बीच से उभरते हुए देख सकते हैं, जो आपको एक झलक देकर वापस बादलों के बीच खो जाते हैं। ऐसा प्रतीत होता है, मानो भगवान आपको दूसरे कामों के लिए आगे बढ़ने से पहले दर्शन दे रहे हैं। अगर बादल इस जगह को थोडा फीका बनाते हैं, तो यहाँ के फूल अपने रंगों की जीवंतता से पूरे वातावरण में खुशी भर देते हैं। चारों ओर इतने सुंदर पहाड़ी फूल हैं कि हम रास्ते में रुक-रुक कर उनकी तस्वीरें खिचते रहे।

नामची सिक्किम में चारधाम का परिसर

नामची के चारधाम परिसर का केंद्रीय आकर्षण 87 फीट ऊँची शिव मूर्ति है जो पहाड़ी के शिखर पर स्थित है। यहां से शिव भगवान पूरे चारधाम परिसर और उसके चारों ओर की घाटियों की निगरानी करते हैं। यह मूर्ति पहाड़ी के पश्चिमी छोर पर पूर्वी दिशा की ओर मुख किए स्थित है। यह मूर्ति 12 ज्योतिर्लिंगों से घिरी है।यह 12 प्रसिद्ध शिव मंदिर पूरे भारत के धार्मिक भूगोल पर फैले हैं। यहां का हर एक शिवलिंग अपने मूल जगह पर स्थापित शिवलिंग की सटीक प्रतिकृति है।

किरतेश्वर

किर्तेश्वर प्रतिमा - नामची सिक्किम
किर्तेश्वर प्रतिमा

आप जैसे ही चारधाम के परिसर में प्रवेश करते हैं, हात में धनुष्य पकड़े किरतेश्वर की मूर्ति को सामने खड़ा पाते हैं। सिक्किम में यह शिव भगवान का स्थानीय अवतार माना जाता है। पूरे सिक्किम में हमे किरतेश्वर को समर्पित बहुत से पुराने मंदिर देखने को मिले। किरतेश्वर का अर्थ है पशुओं का रक्षक।

गंगा यमुना अपने अपने वाहन पर - नामची सिक्किम
गंगा यमुना अपने अपने वाहन पर

चारधाम परिसर के बीचोबीच एक फव्वारा बहता है, जहां अपने-अपने वाहन पर खड़ी गंगा और यमुना की मूर्तियां स्थित हैं। गंगा का वाहन मगरमच्छ है और यमुना का वाहन कछुआ। यह प्रयाग में, गंगा और यमुना नदी के संगम की अभिव्यक्ति है।

नामची सिक्किम में चारधाम के मंदिर

भारत के तीर्थस्थलों में से ये चार प्रमुख मंदिर, समूहिक रूप से चारधाम के नाम से प्रसिद्ध है, जो भारत के चारों कोनों में स्थित है। उत्तराखंड में बद्रीनाथ, गुजरात में द्वारका में सोमनाथ, ओड़ीसा में पूरी में जगन्नाथ और तमिलनाडु में रामेश्वरम। इन प्रत्येक धामों की प्रतिकृति यहां, सिक्किम के नामची शहर में है। हिंदु मान्यताओं के अनुसार, हर व्यक्ति को अपने जीवनकाल में एक बार तो इन चारों मंदिरों के दर्शन करने ही चाहिए। जब मैं भौगोलिक दृष्टि से संवितरित इन मंदिरों को देखती हूँ, तो ये मंदिर अपने आप में हमारी संस्कृति और परंपराओं की प्रचुरता की बहुत सारी बातें बयां करते हैं। ये बताते हैं कि यात्रा करना हमारे जीवन का अंतःनिर्मित भाग है।

अर्थात हमे अपने जीवनकाल में भारत के चारों कोनों की यात्रा करनी है। तथ्य बताते हैं कि तीर्थयात्रा पर जानेवाले ज़्यादातर लोग पदयात्रा ही करते हैं, और अंततः चलते-चलते, राह में मिलने वाले अनेक समुदायों के साथ तथा वहां की प्रकृति के साथ घुलते-मिलते हुए पूरे देश की यात्रा कर लेते हैं। इससे यह पता चलता है कि हमारे देश का धार्मिक भूगौल हमे धार्मिकता के पक्के धागों से एक अद्वितीय बंधन में बांधता है।

हमने एक सुंदर प्रवेश द्वार से चारधाम के परिसर में प्रवेश किया और रंगबिरंगी फूलों से घिरे मंदिरों ने हमारा स्वागत किया। हमने सफर की शुरुआत बाईं तरफ से की, ताकि हम पूरे परिसर में परंपरागत दक्षिणावर्त तरीके से घूम सके। ऐसा करने से पूरे परिसर की परिक्रमा भी हो जाएगी।

रामेश्वरम मंदिर

रामेश्वरम मंदिर - नामची सिक्किम
रामेश्वरम मंदिर

हमारा पहला पड़ाव रामेश्वरम मंदिर था, जो द्रविडी मंदिरों की शैली में निर्मित है। वह अन्य मंदिरों से थोड़ा अलग भी था। हमने रंगबिरंगी ऊंचे गोपुरम के द्वारा मंदिर में प्रवेश किया। वहां जाकर हमने शिवलिंग की पुजा-प्रार्थना की। ऐसा माना जाता है की यह शिवलिंग भगवान राम ने श्रीलंका से वापसी के दौरान रामेश्वरम में स्थापित किया था, ब्राह्मण हत्या के दोष से मुक्ति पाने के लिए।

सोमनाथ मंदिर

सोमनाथ मंदिर - नामची, सिक्किम
सोमनाथ मंदिर

हमारा अगला पड़ाव सोमनाथ मंदिर था जो भारत के पश्चिमी तट पर द्वारका में स्थित है। यह मंदिर ठेठ गुजराती शैली में बनवाया गया है, जिसकी छत पिरामिड जैसी है।

साईं मंदिर पे मन्नत के धागे
साईं मंदिर पे मन्नत के धागे

ये मंदिर भीतर से अपेक्षाकृत साधारण हैं और मूल मंदिरों की तुलना में आकार में भी बहुत छोटे हैं। इसके बावजूद भी ये प्रतिकृतित मंदिर आपको मूल मंदिर के दर्शन लेने का एहसास जरूर दिलाते हैं। आगे जाकर यह रास्ता साई मंदिर से होकर गुजरते हुए आपको शिव जी की मूर्ति तक ले जाता है। साई मंदिर के बाहरी भाग में जाली काम की दिलचस्प संरचना है, जिसके चारों ओर मन्नतों के लाल धागे बंधे हैं, जो आपको अजमेर शरीफ या चिश्ती दरगाह की याद दिलाते हैं जो फ़तेहपुर सीकरी में है।

शिव मूर्ति और 12 ज्योतिर्लिंग

१२ ज्तोतिर्लिंगों में से एक - नामची, सिक्किम
१२ ज्तोतिर्लिंगों में से एक

शिवजी की मूर्ति के पास ही हमने सारे 12 ज्योतिर्लिंग देखे। क्यूंकि हमने ये सारे ज्योतिर्लिंग एक के बाद एक देखे, हम उनके बीच के सूक्ष्म अंतर को जान और समझ पाए। उदाहरण के लिए, जो शिवलिंग केदारनाथ में है वह सिर्फ पत्थर का कूबड़ है, लेकिन जो शिवलिंग रामेश्वरम में है वह दक्षिण भारत की शैली में वर्ग योनि में बनवाया गया है। वहां पर लगा हुआ एक छोटा सा सूचना पट्ट प्रत्येक शिवलिंग की कथा को दर्शाता है। एक संस्कृत श्लोक इन 12 ज्योतिर्लिंगों के भूगोल को एक छोटी सी कविता के जरिये संक्षेप में बताता है।

द्वादश ज्योतिर्लिंगों का एक श्लोक में समागम
द्वादश ज्योतिर्लिंगों का एक श्लोक में समागम

शिवजी की मूर्ति के नजदीक से दर्शन लेने का समय आ गया था। जिस बड़े से मंच पर शिवजी विराजमान थे उसके चारों ओर देवियों के अवतारों की खुदाई की गयी थी। शिवजी के समुख खड़े होकर आप अचानक से स्वयं को छोटा महसूस करने लगते हैं और आप सहज रूप से उनकी शक्ति के आगे झुक जाते हैं। इस मूर्ति के नीचे शिवमंदिर है, जहां पर शिव पुराण के अध्यायों को दर्शाया गया है। इसमें शिव भगवान के विवाह से लेकर, प्रजापति दक्ष के यज्ञ के बाद शिवजी द्वारा माता सती के मृत शरीर को लेकर घूमने से, शिवजी को पाने के लिए माता पार्वती द्वारा की गयी तपस्या तक सब कुछ समाहित है। यहां पर पुजारियों की एक टोली है जो अपने वाद्य-यंत्रों के साथ रोज मंदिर में सत्संग और कीर्तन करते हैं।

जगन्नाथ पूरी मंदिर

जगन्नाथ मंदिर - नामची, सिक्किम
जगन्नाथ मंदिर

अगला मंदिर जगन्नाथ पूरी का मंदिर था, जहां पर कृष्ण बलराम और सुभद्रा के साथ रहते थे। यहां की मूर्तियाँ भी अपने मूल स्थान के मूर्तियों की प्रभावशाली प्रतिकृति है।

बद्रीनाथ मंदिर

श्री बद्रीनाथ धाम
श्री बद्रीनाथ धाम

जो सबसे अच्छा है उसे अंतिम दर्शन के लिए संरक्षित रखा गया था, अर्थात रंगबिरंगा बद्रीनाथ मंदिर। मैं अभी तक बद्रीनाथ नहीं गयी हूँ पर इस मंदिर की वास्तुकला और उसके रंगबिरंगी असबाब ने मुझे बद्रीनाथ जाने का एक और कारण दे दिया । मैं और मेरा कैमरा हम दोनों पूर्ण रूप से चारधाम के बद्रीनाथ मंदिर के उज्जवलित रंगों में पूरे के पूरे डूब चुके थे।

बद्रीनाथ धाम का प्रवेश द्वार
बद्रीनाथ धाम का प्रवेश द्वार

चारधाम में बिताया गया हर एक पल सबसे सुंदर पल था। चारधाम की यह यात्रा हमारी अपेक्षाओं से कई ज्यादा सुंदर और परे थी। चारधाम गुणवत्ता, आकार और रखरखाव की दृष्टि से बहुत सराहनीय है।

चारधाम या सिद्धेश्वर धाम, जैसा कि उसे आधिकारिक तौर पर कहा जाता है, की यात्रा करना सम्पूर्ण भारत की यात्रा करने जैसा है। ये तीर्थस्थल पूरे भारत को एक ऐसे बंधन में बांधते हैं कि, जहाँ राजनीतिक सीमाओं का उनके लिए कोई मतलब नहीं रहता। श्रद्धा और विश्वास का यह गंतव्य भारत की सीमाओं को परिभाषित करता है।

नामची सिक्किम के चारधाम की यात्रा के लिए कुछ सुझाव

भगवान् शिव की ८७ फीट ऊँची प्रतिमा - सिद्धेश्वर धाम
भगवान् शिव की ८७ फीट ऊँची प्रतिमा – सिद्धेश्वर धाम
  • चारधाम के अच्छी तरह से दर्शन लेने के लिए आपको कम से कम 2 घंटे चाहिए।परिसर में प्रवेश करने के लिए प्रत्येक व्यक्ति पर 50/- रु. का प्रवेश शुल्क है।चारधाम के परिसर में यात्री निवास है, जहां पर यात्री रह भी सकते हैं।आप गेंगटोक से भी चारधाम जा सकते हैं, जो वहां से 2 घंटे की ड्राइविंग दूरी पर है। या फिर आप दक्षिण सिक्किम के पेल्लिंग या जोरेथंग जैसे शहरों से भी जा सकते हैं।वहां ठंड बहुत ज्यादा होती है, इसलिए अपने साथ गरम कपड़े लेना मत भूलिए।

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