महेश्वर – नर्मदा के चरणों में अहिल्या बाई होलकर की प्राचीन नगरी

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महेश्वर यानि रानी अहिल्या बाई होलकर की नगरी! रानी अहिल्या बाई ने होलकर की राजधानी को इंदौर से नर्मदा किनारे स्थित महेश्वर में स्थानांतरित किया तथा यहीं से उन्होंने शासन किया। भगवान् शिव एवं माँ नर्मदा पर उनकी असीम आस्था थी। ये उनके लिए शक्ति व प्रेरणा का स्त्रोत थे। महेश्वर एक ऐसी नगरी है जिसमें आप जहां भी जाएँ, आप नर्मदा से कभी दूर नहीं होते।

महेश्वर के पर्यटक स्थल
महेश्वर के पर्यटक स्थल

कुछ समय पूर्व मैंने अहिल्या बाई होलकर की जीवनी पढ़ी थी। मैं उनसे इतनी प्रभावित हुई कि मैं उनकी नगरी, महेश्वर के दर्शन करने का स्वप्न देखने लगी। मेरा स्वप्न जल्दी ही साकार हुआ जब महेश्वर में होलकर परिवार द्वारा संचालित एक विरासती होटल में रहने का मुझे अवसर मिला। यह वही रानी का महल है जहां रानी अहिल्या बाई होलकर निवास करती थी।

हम मांडू से महेश्वर सड़क मार्ग से गये। महेश्वर से मेरा प्रथम साक्षात्कार अत्यंत रंगीला था। चारों ओर रंग-बिरंगी साड़ियों की बहार छाई हुई थी। एक प्रवेशद्वार से हमने गढ़ के भीतर प्रवेश किया व अहिल्या द्वार पहुंचे। यह द्वार अन्य द्वारों की अपेक्षा किंचित साधारण था। बाहर आते ही समक्ष गुलाबी ओढ़नी धारण किये रानी की आदमकद प्रतिमा थी। महेश्वर गढ़ के दर्शन आरम्भ करना था किन्तु बहुत भूख भी लगी थी। जल्दी से थोडा नाश्ता किया और निकल पडे उस नगरी के दर्शन करने जहां अब भी माँ साहेब अहिल्या बाई का नाम गूंजता है।

महेश्वर का इतिहास

महेश्वर का अहिल्या घाट
महेश्वर का अहिल्या घाट

महेश्वर नर्मदा नदी के किनारे स्थित एक प्राचीन नगरी है। प्राचीन हिन्दू ग्रंथों में इसे माहिष्मती कहा गया है। जी हाँ! वही माहिष्मती जिसका नाम आपने जगप्रसिद्ध चलचित्र बाहुबली में सुना होगा। कहा जाता है कि एक समय यहीं राजा सहस्त्रार्जुन ने रावण को ६ मास के लिए बंदी बनाया था। राजराजेश्वर मंदिर परिसर में आप उनका मंदिर देख सकते हैं। रामायण एवं महाभारत, दोनों महाकाव्यों में महेश्वर का उल्लेख प्राप्त होता है। यह प्राचीन अवन्ती का एक भाग था जिसे आज हम उज्जैन के नाम से जानते हैं।

ऋषि जमदग्नी, ऋषिमाता रेणुका देवी, तथा परशुराम ने भी महेश्वर एवं उसके आसपास के क्षेत्रों में निवास किया था।

रानी अहिल्या बाई होलकर की प्रतिमा
रानी अहिल्या बाई होलकर की प्रतिमा

ऐतिहासिक अभिलेखों के अनुसार महेश्वर पर मौर्य एवं गुप्त शासकों तथा हर्षवर्धन ने भी अपने अपने समय पर शासन किया है। तत्पश्चात इस पर दिल्ली सल्तनत एवं अकबर ने अधिपत्य जमा लिया। मराठाओं ने १८वी. सदी में इसे पुनः प्राप्त किया। जब अहिल्या बाई होलकर ने मालवा की सुबेदारी संभाली तब उन्होंने अपनी राजधानी इंदौर से महेश्वर स्थानांतरित की थी। मेरे अनुमान से नर्मदा नदी के प्रति उनकी श्रद्धा व प्रेम ने उन्हें ऐसा करने पर बाध्य किया होगा।

अवश्य पढ़ें:- कर्मयोगिनी – अहिल्या बाई होलकर की जीवनी

महेश्वर के दर्शनीय स्थल

महेश्वर एक छोटी सी नगरी है। इसके दर्शन आप एक दिन, अधिक से अधिक दो दिन में पूर्ण कर सकते हैं। सम्पूर्ण नगरी महेश्वर गढ़ के चारों ओर केन्द्रित है। इसके एक ओर नर्मदा नदी कोमलता से बहती है। दूसरी ओर इसके द्वार के बाहर से नगर का आरम्भ होता है। अर्थात् अहिल्या बाई का गढ़ महेश्वर का ह्रदय है| इसलिए आईये यहीं से हम हमारे महेश्वर दर्शन का शुभारंभ करते हैं।

अहिल्या बाई का रजवाड़ा

रानी अहिल्या बाई होलकर का रजवाडा - महेश्वर
रानी अहिल्या बाई होलकर का रजवाडा – महेश्वर

अहिल्या गढ़ अथवा महल १६वी. शताब्दी के प्राचीरों पर बना है जिन्हें संभवतः मुगलों ने बनाया था। यह महल अब एक विरासती होटल है। इसका अर्थ है कि महल के मुख्य भागों के दर्शन तो सब पर्यटक कर सकते हैं किन्तु महल के आवासीय क्षेत्र के दर्शन केवल इस होटल के अतिथी ही कर सकते हैं। यहाँ मैंने अनेक स्थानीय नागरिक देखे जो इस महल में आकर इसे ऐसा सम्मान दे रहे थे मानो यह एक तीर्थ स्थल हो। यह मेरे लिए अत्यंत सुखद आश्चर्य था।

महल का रजवाड़ा क्षेत्र एक विशाल निवास स्थान का गलियारा प्रतीत हो रहा था। जैसे ही मैं इसके भीतर गयी, मेरी दृष्टी श्री कृष्ण की प्रतिमा पर पड़ी जिसके दोनों ओर गउओं की मूर्तियाँ थीं। मध्यवर्ती खुला प्रांगण हरे भरे पौधों से भरा हुआ था। ये पौधे महल को जीवंत करते प्रतीत हो रहे थे। कई लाल एवं श्वेत सूचना पट्टिकायें  होलकर, अहिल्या बाई एवं सम्पूर्ण भारत में महलों के पुनरुद्धार हेतु उनके द्वारा किये गये श्रमों का उल्लेख कर रहे थे।

रानी अहिल्या बाई की गद्दी अथवा न्यायसभा

होलकर राज परिवार के छाया चित्र - महेश्वर रजवाड़े की दीवारों पर
होलकर राज परिवार के छाया चित्र – महेश्वर रजवाड़े की दीवारों पर

इन खुले आंगनों में से एक के भीतर रानी अहिल्या बाई की न्यायसभा भरती थी। एक शिवलिंग को हाथ में लिए वे यहीं बैठकर आम जनता की समस्याओं को सुनती एवं उनका निवारण करती थीं। उस काल का वैभव अब भी यहाँ सहेज कर रखा गया है। यहाँ काष्ठ स्तंभों एवं सूती गद्दों से घिरी अहिल्या बाई की एक आदमकद मूर्ति भी देखी। ऊपर अन्य कई होलकर राजाओं के चित्र लटकाए हुए थे। जिस भित्तिचित्र ने मुझे विशेष रूप से मोहित किया वह था नर्मदा से महेश्वर गढ़ के दृश्य का लंबा चित्र। ओर जो तथ्य मेरे मानसपटल में सदा के लिए अंकित हो गया वह था महेश्वर राजवाड़े की सादगी। निःसंदेह यहाँ शासन करने वाली रानी की सादगी का ही यह प्रतिबिंब है।

नर्मदा से महेश्वर का दुर्ग
नर्मदा से महेश्वर का दुर्ग

राजवाड़े के परिसर में अहिल्या बाई की एक पालखी है। मुझे ज्ञात हुआ कि इसकी अब भी प्रत्येक सोमवार को बड़े धूमधाम से शोभायात्रा निकाली जाती है। मैंने संगमरमर की भी कई प्रतिमाएं देखीं। लकड़ी के नक्काशीदार कोष्ठकों ने मुझे सर्वाधिक आकर्षित किया। इनमें कई हाथी के सूंड के आकार के थे।

बाहर हाथी, घोडा एवं बैल के एक एक चित्र थे। वे क्रमशः भगवान् शिव का वाहन, होलकरों के कुलदेवता एवं राजसी ठाट के प्रतीक थे। चारों ओर सादगी यहाँ की विशषता प्रतीत हो रही थी।

अहिल्या गढ़ में शिवलिंग पूजन अथवा लिंगार्चन

अहिल्या गढ़ में मेरी सबसे बड़ी खोज थी यहाँ की एक अनोखी प्रथा जिसका आरंभ स्वयं अहिल्या बाई ने ही किया था। इस प्रथा का आज भी अखंड पालन किया जा रहा है।

लिंगार्चन - महेश्वर की अखंड परंपरा
लिंगार्चन – महेश्वर की अखंड परंपरा

अहिल्या बाई के समय १०८ ब्राम्हण प्रतिदिन, यहाँ की काली मिट्टी से कुल १२५००० यानि सवा लाख छोटे शिवलिंग का निर्माण करते थे। उन शिवलिंगों की आराधना कर उन्हें नर्मदा में अर्पित करते थे। वर्तमान में ११ ब्राम्हण प्रत्येक दिवस कुल १५००० शिवलिंग बनाते हैं, उनकी पूजा करते हैं एवं नर्मदा के जल में उन्हें अर्पित करते हैं। हर दिन आप यह पूजा प्रातः ८ से १० बजे तक देख सकते हैं।

मुझे यह प्रथा अत्यंत लुभावनी प्रतीत हुई। इस विधि में भाग लेने की मेरी प्रबल इच्छा थी किन्तु यह केवल निर्दिष्ट ब्राम्हणों द्वारा ही की जाती है। हाँ, आप इसे पूर्ण श्रद्धा से देख सकते हैं। यहाँ तक कि मंत्रोच्चारण में भाग भी ले सकते हैं, जो मैंने भी किया। आप जब भी महेश्वर जाएँ, यह पूजा अवश्य देखें। तब तक के लिए महेश्वर पर बनायी इस विडियो में इस पूजा की एक झलक देखिये।

रानी अहिल्या बाई होलकर की महेश्वर नगरी पर एक विडियो

मंदिर के एक ओर, एक छोटे कक्ष में बहुमूल्य शिवलिंगों का संग्रह है। वहीं सोने का एक हिंडोला भी है। यह एक अप्रतिम संग्रह है किन्तु आप केवल इन्हें देख ही सकते हैं, इनके चित्र नहीं ले सकते।

महेश्वर के मंदिर

महेश्वर को निःसंकोच एक मंदिर नगरी कहा जा सकता है क्योंकि महेश्वर का जीवन मंदिरों एवं नर्मदा के चहुँ ओर केन्द्रित है। महेश्वर एक ऐसी नगरी है जहां लोगों का विश्वास है कि नर्मदा के किनारे स्थित प्रत्येक शिला शिव का प्रतिरूप है। ऐसे स्थलों में इतने मंदिर होते हैं कि सबके दर्शन संभव नहीं है। आपकी सुविधा के लिए मैं उन मंदिरों का उल्लेख कर रही हूँ जिनके दर्शन मैंने महेश्वर के अपनी लघु यात्रा के समय किये थे।

अहिल्येश्वर शिवालय

पत्थर से बना यह एक अत्यंत आकर्षक मंदिर है जिसके पाषाणी भित्तियों पर आप कई स्थापत्य शैलियों की झलक देख सकते हैं। अहिल्या बाई की सुपुत्री, कृष्णा बाई द्वारा निर्मित इस मंदिर को अहिल्या बाई की छत्री कहा जाता है। ऊंची शिखर से युक्त इस मंदिर को नागर शैली में निर्मित किया गया है। इसके गर्भगृह में एक शिवलिंग है। साथ ही अहिल्या बाई होलकर की प्रतिमा भी है।

अहिल्येश्वर शिवालय - महेश्वर
अहिल्येश्वर शिवालय – महेश्वर

मंदिर के दोनों ओर मराठी शैली में निर्मित दो दीपस्तंभ हैं। इसी परिसर में भगवान् राम एवं उनके परम भक्त भगवान् हनुमान को समर्पित एक छोटा मंदिर है। मेरे मत से अहिल्येश्वर शिवालय को छत्री की अपेक्षा मंदिर कहा जाना चाहिए क्योंकि नर्मदा नदी के किनारे अहिल्या बाई को समर्पित एक पृथक छत्री निर्मित है।

अहिल्येश्वर मंदिर में प्रत्येक पूर्णिमा को भजन गाये जाते हैं।

श्री राज राजेश्वर मंदिर

प्राचीन राज राजेश्वर मंदिर - महेश्वर
प्राचीन राज राजेश्वर मंदिर – महेश्वर

यह एक प्राचीन शिव मंदिर है जो अहिल्येश्वर मंदिर से अधिक दूर नहीं है। इस मंदिर की एक विशेषता है। कहा जाता है कि अग्नि के सम्मान में यहाँ ११ विशाल दीप आदिकाल से प्रज्वलित हैं। जी नहीं! यहाँ जादू कदापि नहीं हैं। इन दीपों को भक्तों ने अब तक जलाए रखा है। प्रत्येक दीप को २४ घंटे प्रज्वलित रखने के लिए लगभग सवा किलो घी की आवश्यकता होती है। भक्तगण इन दीपों को अखंड प्रज्वलित रखने हेतु घी दान करते आये हैं। आप इन बड़े बड़े दीपों को अपनी आगामी महेश्वर यात्रा के समय अवश्य देखिये।

इस परिसर में एक छोटा सा मंदिर सहस्त्रार्जुन को भी समर्पित है। सहस्त्रार्जुन वही सम्राट है जिन्होंने यहीं रावण को कई महीनों के लिए बन्दी बना कर रखा था। राज राजेश्वर मंदिर में बैठकर एक क्षण कल्पना कीजिये। जब यहाँ गढ़ नहीं था तथा केवल यह मंदिर नर्मदा के समीप था, तब नर्मदा के समीप आश्रमों में बैठकर कई ऋषियों ने यहाँ तपस्या की होगी।

काशी विश्वनाथ मंदिर

काशी स्थित मूल काशी विश्वनाथ मंदिर की प्रतिकृति है यह मंदिर।

नर्मदा मंदिर

नर्मदा तट पर स्थित नर्मदा मंदिर - महेश्वर
नर्मदा तट पर स्थित नर्मदा मंदिर – महेश्वर

नर्मदा मंदिर एक मध्यम आकार का मंदिर है जो नर्मदा के महिला घाट पर निर्मित है। इस शिवमंदिर के भीतर एक शिवलिंग तो है ही, साथ ही नर्मदा की एक मानवीरूप छवि भी है। यह मंदिर सुन्दर स्तंभों एवं वृत्ताकार तोरणों के वास्तुकला से अलंकृत है। इन तोरणों के मध्य से नर्मदा का दृश्य मंत्रमुग्ध कर देता है।

बाणेश्वर मंदिर

नर्मदा नदी के मध्य स्थित प्राचीन बाणेश्वर मंदिर
नर्मदा नदी के मध्य स्थित प्राचीन बाणेश्वर मंदिर

बाणेश्वर मंदिर नर्मदा नदी के मध्य स्थापित है। दूर से यह मंदिर छोटा सा प्रतीत हो रहा था। ऐसा माना जाता है कि यह मंदिर उस अक्षांश पर स्थित है जो धरती के केंद्र बिंदु को ध्रुव तारे से जोड़ता है।

विन्ध्य वासिनी मंदिर

विन्ध्य वासिनी मंदिर - महेश्वर
विन्ध्य वासिनी मंदिर – महेश्वर

महेश्वर बस स्थानक के समीप स्थित यह मंदिर उस समय बंद था जब मैं इसके दर्शनार्थ यहाँ पहुँची थी। स्लेटी रंग का इसका ऊंचा शिखर दूर से दिखाई पड़ रहा था जिसके चारों ओर महेश्वर की दैनिक दिनचर्या अबाधित रूप से चल रही थी।

महेश्वर की छत्रियां

विठ्ठोजी की छतरी - महेश्वर
विठ्ठोजी की छतरी – महेश्वर

जिन छत्रियों की मैं चर्चा कर रही हूँ, वे वास्तव में स्मारक अथवा समाधियाँ हैं जो आम तौर पर राजसी परिवारों के स्वर्गवासी सदस्यों की स्मृति में, परिवारजनों द्वारा बनवाये जाते हैं। उपरोक्त जिस अहिल्या शिवालय के विषय में मैंने लिखा है, उसके ठीक सामने एक सुन्दर छत्री है। विठोजी को समर्पित इस छत्री के आधार पर चारों ओर एक विस्तृत गज पट्टिका है। इस षटकोणी संरचना के भीतर नक्काशीदार पत्थर की भित्तियाँ हैं। इसके परिसर में उत्कीर्णित स्तंभों एवं वृत्ताकार तोरणों युक्त झरोखों से अलंकृत गलियारे हैं। यहाँ से नर्मदा का दृश्य अत्यंत आकर्षक प्रतीत होता है।

विठोजी, अहिल्या बाई होलकर के पौत्र तथा उनके पश्चात उनके उत्तराधिकारी यशवंत राव होलकर के पुत्र थे।

महेश्वर का सर्वाधिक प्रतिष्ठित चिन्ह है, उसके हस्त-पंखे के आकार की सीड़ियाँ जो अहिल्या घाट ले जाती हैं। घाट पर उतरकर, वहां से इन सीड़ियों के साथ महल का अग्रभाग महेश्वर गढ़ की सर्वोत्तम छवि है।

महेश्वर गढ़ के प्रवेश-द्वार

हाथियों के लिए बना महेश्वर का कमानी द्वार
हाथियों के लिए बना महेश्वर का कमानी द्वार

महेश्वर गढ़ भारत के उन कुछ गढ़ों में से है जहां राजसी परिवार अब भी निवास करता है। उनके प्रवेश-द्वारों का हर दिन प्रयोग होता है। इस गढ़ का सर्वाधिक महत्वपूर्ण द्वार है, अहिल्या द्वार जो अहिल्या गढ़ तक ले जाता है। यह अपेक्षाकृत सादा द्वार इकलौता ऐसा द्वार है जिसके मध्य से वाहनों की आवा-जावी हो सकती है।

एक अन्य अनोखा द्वार है, कमानी द्वार जो संभवतः हाथियों के आने-जाने के लिए बनाया गया था। इसका चौड़ा ढलुआँ पथ अब गढ़ के भीतर प्रवेश करते पदयात्रियों द्वारा प्रयोग किया जाता है।

पानी दरवाजा काशी विश्वनाथ मंदिर के समीप स्थित है। कदाचित यह उन यात्रियों द्वारा प्रयोग किया जाता था जो जल-मार्ग से नगरी में प्रवेश करते थे। इसके समीप ही मंडल खो दरवाजा है जिसके भीतर भी जल-मार्ग से ही प्रवेश किया जा सकता है।

नर्मदा के घाट

अहिल्या दुर्ग से नर्मदा के घाट - महेश्वर
अहिल्या दुर्ग से नर्मदा के घाट – महेश्वर

नर्मदा नदी अपने उत्तरी तट पर बसे महेश्वर की जीवन एवं प्राण शक्ति है। नर्मदा को शंकरी नाम से भी जाना जाता है क्योंकि इनकी उत्पत्ति शंकर भगवान् के अश्रुओं से हुई है, ऐसा माना जाता है। यह उत्तर भारत एवं दक्षिण भारत को बांटने वाली प्राकृतिक रेखा के सामान है। इसके तल पर पाए जाने वाले प्राकृतिक गोलाकार शिलाओं को बाणलिंग कहा जाता है। वर्तमान में ये आसानी से नहीं मिलते। दुकानों में बिकते बाणलिंग प्राकृतिक पत्थर ना होकर बहुधा समीप के एक गाँव में बनाए गए हैं।

नर्मदा के मनोरम घाट - महेश्वर
नर्मदा के मनोरम घाट

महेश्वर में नर्मदा के सम्पूर्ण घाटों पर छोटे मंदिर एवं छत्रियां है जिन्हें आप दूर से अथवा अहिल्या गढ़ के ऊपर से देख सकते हैं। किन्तु जब आप इन घाटों पर पैदल चलेंगे तब आपको सम्पूर्ण घाट के किनारे बड़े व छोटे शिवलिंग दिखेंगे। यद्यपि महेश्वर में नर्मदा के कुल २८ घाट है, तथापि मुख्य घाटों में अहिल्या घाट, पेशवा घाट, फांसे घाट, महिला घाट इत्यादि का नाम लिया जाता है।

नर्मदा के तीर्थयात्री

प्रातःकाल एवं सांझ के समय आप कई श्रद्धालुओं को नर्मदा में डुबकी लगाते व शिवलिंगों को पूजते देख सकते हैं। नर्मदा परिक्रमा करते तीर्थयात्रियों के लिए भी महेश्वर एक महत्वपूर्ण पड़ाव है। प्रातः सैर करते समय मैं ऐसी ही कई स्त्रियों से मिली जो परिक्रमा के मध्य यहाँ रुकी हुई थीं। कुछ यह परिक्रमा पैदल कर रही थीं, वहीं कुछ गाड़ियों के सहारे अपनी तीर्थयात्रा पूर्ण कर रही थीं। नर्मदा परिक्रमा करती इन स्त्रियों की इतनी बड़ी संख्या ने मुझे अचंभित कर दिया था। मुझे ऐसा प्रतीत हुआ जैसे स्त्रियाँ सदा से तीर्थ करती रही हैं, केवल किसी ने ध्यान नहीं दिया था।

संध्या की नर्मदा आरती एक छोटा व अन्तरंग प्रसंग होता है। काशी की गंगा आरती के सामान बड़ा प्रदर्शन नहीं होता। कुछ लोग ही एकत्र होकर आरती करते हैं। तथापि जब आप नर्मदा के घाट पर पैदल चलेंगे, आपको पावन मन्त्रों का उच्चारण सम्पूर्ण दिवस एक मधुर संगीत के सामान सुनायी देता रहेगा।

नर्मदा में नौका की सवारी

नर्मदा में नौकायन
नर्मदा में नौकायन

नर्मदा में नौका की सवारी करते हुए मुझे सम्पूर्ण भारत का तथा कदाचित सम्पूर्ण विश्व के सर्वाधिक विलक्षण दृश्य का दर्शन हुआ। नौका से नर्मदा के बीच पहुंचकर महेश्वर की ओर देखने पर नगर के तटीय भाग का जो विहंगम दृश्य प्राप्त हुआ वह मेरे अनुमान से महेश्वर का सर्वाधिक अप्रतिम दृश्य था। इस दृश्य ने मेरे मानसपटल पर अमिट छाप छोड़ दी।

नर्मदा के बीच पहुंचकर आप नदी के बीच निर्मित बाणेश्वर मंदिर के भी दर्शन कर सकते हैं। आप जैसे जैसे बाणेश्वर मंदिर के निकट पहुंचेंगे, आपको नदी में कई छोटे छोटे मंदिर दृष्टिगोचर होंगे जो अपने ऊपर फहराते ध्वजों द्वारा अपना अस्तित्व दिखाते प्रतीत होते हैं।

नर्मदा के दूसरे तट पर, जो प्रतीकात्मक रूप से दक्षिण भारत का भाग है, नावड़ाटोड़ी नामक गाँव है। यह मध्य भारत का एक ठेठ गाँव है जहां एक विशाल आश्रम भी है। गाँव में आप शालिवान नाम का एक प्राचीन शिव मंदिर भी देख सकते हैं। नदी के इस तट पर शान्ति से बैठकर, यहाँ से महेश्वर के तटीय भाग का विहंगम दृश्य देख सकते हैं। यह भारत का सर्वाधिक सुन्दर दृश्य है। वापिस आने से पूर्व गाँव में इत्मीनान से टहलने का आनंद लेना ना भूलें।

महेश्वरी बुनकर एवं उनके द्वारा बुनी गयीं रंगबिरंगी साड़ियाँ

रहवा सोसाइटी के बुनकर - महेश्वर
रहवा सोसाइटी के बुनकर – महेश्वर

रानी अहिल्या बाई की सर्वोत्तम जीवंत विरासत है महेश्वरी साड़ियाँ। महेश्वर नगर एवं महेश्वरी साड़ियाँ एक दूसरे के पूरक बन गये हैं। महेश्वर नगरी के अधिकांशतः जनसँख्या की आजीविका इन साड़ियों की बुनाई पर ही निर्भर है। महेश्वर में आप कहीं भी जायें, चारों ओर इन रंगबिरंगी साड़ियों द्वारा बिखरी छटा आँखों से ओझल नहीं होती। बुनकरों के क्षेत्र में आते ही हथकरघे से आती ध्वनी कानों में गूंजने लगती है जब बुनकर धागा धागा जोड़कर ये उत्कृष्ट साड़ियाँ बुनते हैं।

महेश्वर में महेश्वरी साड़ियाँ कहाँ से खरीदें?

यदि आप हथकरघे देखना चाहते हैं तो रेहवा सोसाइटी करघा उत्तम स्थान है। रेहवा एक गैर सरकारी संगठन है जिसका प्रबंधन रिचर्ड होलकर एवं उनकी पत्नी करते हैं। जैसा कि विदित है, उनका मुख्य लक्षित ग्राहक हैं विदेशी नागरिक। इसीलिए इन साड़ियों के डिजाईन एवं मूल्य उन्हें ध्यान में रखकर ही निश्चित किये गए प्रतीत होते हैं। फिर भी आप उन से साड़ियाँ, दुपट्टे, शाल तथा कपड़े अवश्य खरीद सकते हैं।

हाथ की बुनी महेश्वरी साड़ियाँ
हाथ की बुनी महेश्वरी साड़ियाँ

यदि आप महेश्वरी बुनाई पर किये प्रायोगिक कार्य देखना चाहते हैं तो आप शहर में स्थित गुड़ी मुड़ी कार्यशाला अवश्य देखिये। इन्हें खरीदना अत्यधिक महँगा सौदा है, फिर भी मुझे उनके प्रयोग एवं स्वाभाविक बुनाई बहुत भायी।

रोजमर्रा की महेश्वरी साड़ियाँ खरीदने के लिए आप शहर में स्थित ताना-बाना अथवा पवार शॉप जाएँ। इनके पास हर प्रकार के उपभोक्ताओं के ध्यान में रखते हुए हर प्रकार के डिजाईन तथा मूल्य की साड़ियाँ मिल जायेंगीं।

यदि आप अहिल्या बाई होलकर द्वारा पहनी गयी पारंपरिक साड़ियों के सामान साड़ियाँ खरीदना चाहें तो सुनहरे किनार की मोतिया रंग की साड़ी खरीदें।

अहिल्या संग्रहालय

महेश्वर के दर्शनीय स्थल यह संग्रहालय महेश्वर गढ़ से किंचित दूर स्थित एक छोटा व खराब रखरखाव का संग्रहालय है। यहाँ तक पहुँचने के लिए हमें कई लोगों से पता पूछना पड़ा। यहाँ खरगौन जिले के प्राचीन वस्तुओं का अच्छा संग्रह है। आपको बताना चाहूंगी कि महेश्वर खरगौन जिले के अंतर्गत आता है।

महेश्वर के आसपास के दर्शनीय स्थलों में सहस्त्रधारा का नाम लेना चाहूंगी। आप यहाँ तक नौका द्वारा पहुँच सकते हैं। आप देखेंगे कि कैसे छोटे बड़े चट्टानों के बीच से नर्मदा नदी गोते लगाती हुई बहती रहती है। वर्षा के कारण मैं इसके दर्शन नहीं कर सकी। सबने मुझे वहाँ ना जाने की सलाह दी।

महेश्वर एक छोटी, फिर भी सर्वोत्कृष्ट भारतीय नगरी है जो भारत के ह्रदयस्थली एवं प्राचीनतम ज्ञात नर्मदा  नदी के तट पर बसी हुई है।

अनुवाद: मधुमिता ताम्हणे

12 COMMENTS

  1. Very informative, nicely covered all aspects of all art & culture of MP.. As well as history and spiritual importance of the place. Which is very rearly seen. Most wonderful video.

  2. वाकई आपके द्वारा महेश्वर के बारे मे जो जानकारियां दी गई हैं उनसे एक बार फिर महेश्वर जाने की इच्छा प्रबल हूई है तथा अहिल्या बाई होल्कर की राजधानी होने के कारण वह एक अतुलनीय एतिहासिक विरासत अपने मे समाए है महारानी अहिल्याबाई बचपन से ही हम इन्दौर वासियो की पसंदीदा नेत्री रही है बहुत अच्छी शासक भी रही है एक बार फिर इस यात्रा के लिये ????????

    • संजय जी, महेश्वर एक अनमोल धरोहर है भारतवर्ष की, मेरी आशा है अधिक लोग यहाँ जाएँ और जाने के भारत के प्राचीन नगर कितने सुन्दर हैं.

  3. Thank you Madhumita and Anuradha for taking me on this beautiful journey of Maheshwar through your very informative blog. It was great to read about Rani Ahilyabai Holkar, Narmada and all the facets of Maheshwar.

  4. नमस्कार, हम सहपरिवार कुलदेवी माॅ कालिका दर्शन के लिये ‘धार’ गये थे, वापर लौटते वक्त ‘महेश्वर’ हो आये…अचानक, पहले प्लॅनिंग मे भी नहीं था,
    जब वहा पहुंचा और तट, घाट, मंदिर देखे तब ऐसा लगा कि यहाँ आने के लिये ही तो घरसे निकला हुं, मैंने महेश्वर पुरा नहीं देखा, बाकी रहने दिया,इस बार वक्त कम था, फिर ज्यादा वक्त रूकने के लिये… मेरे चिंतन, स्मृतीपटल से निकल नहीं रहा है, महेश्वर… जब सर्च किया आपका आर्टिकल पढा… सौम्य भाषा,आस्था, विस्तृत विवरण, पढकर जैसे मन एक बार फिर से महेश्वर हो आया… धन्यवाद आपका,????

    • जी, महेश्वर ऐसा प्राचीन स्थल है जो स्पर्श मात्र से आपके ह्रदय में स्थान बना लेता है, मुझे भी फिर जाने की बहुत इच्छा है, देखिये कब बुलाती है यह नगरी

  5. बहुत ही रोचक जानकारी अहिल्या बाई होलकर की राजधानी महेश्वर के बारे में ,। पूरी जानकारी । धन्यवाद।

  6. Thankyou Aapko Gadariya Samaj ka itihas Btane Ke Liye Jai Malahar Jai Ma Ahilya Holkar Jai Gadariya , Jai Dhangar , Pal , Baghel , Holkar , Kuruba , Gayri , Bharbad ,

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