बुरहानपुर – इस नगर को मैं केवल इसलिए जानती थी कि यहाँ शाहजहाँ की पत्नी मुमताज महल की मृत्यु हुई थी। वही मुमताज महल जिनकी स्मृति में ताज महल बनवाया गया था। अपनी १४वी.संतान को जन्म देते समय उनकी मौत हुई थी। इसके सिवाय इस नगर के विषय में मुझे कुछ अधिक जानकारी नहीं थी। अतः जब मैं मध्य प्रदेश की रानियों के विषय में जानकारी एकत्र करने के उद्देश्य से मध्यप्रदेश की यात्रा पर थी, मैंने बुरहानपुर भी भ्रमण किया।
बुरहानपुर मेरे लिए एक अनोखी खोज से कम नहीं था। खोज तो मेरे लिए सदेव रोमांचक व आनंददायी होता है। नगर में प्रवेश करने के उपरांत जैसे जैसे हम प्राचीन दुर्ग की भित्ति की ओर गाड़ी हांक रहे थे, मैं समझ गयी थी कि मेरे आगामी दो दिनों में यह नगर मुझ पर अचरजों की बौछार करने वाला है!
कैसे? आईये आपको अपने साथ मध्यप्रदेश के इस नगर, बुरहानपुर का भ्रमण कराती हूँ। आपको स्वयं ही इस प्रश्न का उत्तर प्राप्त हो जाएगा।
असीरगढ़ दुर्ग
हम इंदौर की ओर से बुरहानपुर जा रहे थे। बुरहानपुर से कुछ २५ की.मी. पहले हम असीरगड़ दुर्ग पहुंचे। एक पहाड़ी के ऊपर बना यह दुर्जेय दुर्ग बहुत दूर से ही अपनी उपस्थिति दर्शा रहा था। यूँ तो आप पैदल भी इस पहाड़ी पर चढ़कर इस दुर्ग तक पहुँच सकते हैं, किन्तु मैं इसके लिए उद्धत नहीं थी। जानकर आनंदित हुई कि हम गाड़ी द्वारा भी यह ऊंची पहाड़ी चढ़कर गढ़ के प्रवेशद्वार तक पहुँच सकते हैं।
अश्वत्थामा
हिन्दू महाकाव्यों के अनुसार असीरगड़ दुर्ग एक प्राचीन दुर्ग है। इसके भीतर एक शिव मंदिर भी है। कहा जाता है कि अनंत पथिक अश्वत्थामा अभी भी प्रत्येक दिन इस मंदिर के दर्शनार्थ यहाँ आते है तथा शिवलिंग को पुष्पांजलि अर्पित करते है। यह मंदिर अत्यंत छोटा है। इसके समीप अश्वत्थामा नामक एक जलकुंड भी है। मुझे बताया गया कि कभी यहाँ मंदिर में खुलती एक गुप्त सुरंग भी थी।
ज्ञात इतिहास के अनुसार यादवों के स्थानीय मुखिया, आसा अहीर ने १४वी. सदी में इस दुर्ग का निर्माण करवाया था। असीरगढ़ का नामकरण भी इन्ही के नाम पर किया गया था। कालान्तर में फारुकी नासिर खान ने सन १४०० में आसा अहीर एवं उनके परिवार की धोखे से हत्या करवा दी थी। असीरगड़ को दक्खन का द्वार भी कहते हैं।
असीरगड़ चारों ओर से हरी-भरी सतपुड़ा पर्वतमाला से घिरा हुआ है। कहीं भी दृष्टी घुमाइये, घाटियों से उभरती पठारी पहाड़ियां अप्रतिम दृश्य प्रस्तुत करती हैं। मांडू के सामान असीरगड़ की भी विशेषता है यहाँ के कई जल स्त्रोत जो पहाड़ का जीवन सरल एवं सुखमय बनाते हैं। मुझे यहाँ के जलकुण्डों के नाम अत्यंत भाये। बादाम कुण्ड जिसके जल में, लोगों के कहने के अनुसार, बादाम की सुगंध आती थी। रानी की तालाब, जिसके विषय में ऐसी मान्यता है कि इसमें पौराणिक पारसमणी समाई हुई है। मामा-भांजा तालाब, जो मेरे अनुमान से किसी मामा एवं भांजे द्वारा निर्मित हो। अंत में गंगा-जमुना तालाब!
आज आप यहाँ की अधिकतर संरचना खँडहर में परिवर्तित हुई पायेंगे जिनमें मुख्य हैं, एक कोने में एक मस्जिद, दूसरे में गिरिजाघर, फांसी खाना जहां कैदियों को फांसी की सजा दी जाती थी, इधर उधर बिखरे महल के अवशेष तथा कुछ परित्यक्त जल स्त्रोत।
बुरहानपुर का संक्षिप्त इतिहास
हिन्दू धर्मं-ग्रंथों में बुरहानपुर को भृग्नपुर कहा गया है। यह नाम भृगु ऋषि पर रखा गया है जिन्होंने ना केवल यहाँ कठोर तप किया, बल्कि ताप्ती नदी के तीर बैठकर भृगु संहिता की भी रचना की थी। मुझे ब्रम्हपुरी यह नाम कई स्थानों पर लिखा दिखायी दिया किन्तु ब्रम्हा का कोई भी मंदिर मुझे यहाँ नहीं मिला, ना ही उनके विषय में कुछ लिखित उल्लेख ही मिले।
मुझे बुरहानपुर में एवं उसके आसपास कई प्राचीन देवी मंदिर भी दिखाई दिए।
बुरहानपुर का नवीन इतिहास फारुकियों एवं मुगलों से सम्बंधित है। शाहजहाँ एवं औरन्गजेब ने यहाँ कुछ समय बिताया था।
बुरहानपुर के दर्शनीय स्थल
कुण्डी भंडारा
यदि आप यह कहें कि बुरहानपुर में आपके पास केवल एक ही स्थल देखने का समय है तो मैं आपको कुण्डी भंडारा देखने की सलाह दूंगी। यह एक अनोखा जल प्रबंधन है जिसमें प्राकृतिक जल गंतव्य स्थान तक भूमिगत प्रणाली द्वारा ले जाया जाता है। सतपुड़ा पर्वतों से ताप्ती नदी की ओर जाते ताजे झरने के जल को नगर तक लाया जाता है। इस के लिए नियमित अंतराल पर १०० से भी अधिक कुएँ खोदे गए हैं जो इस जल को एकत्र करते हैं तथा नगर तक पहुँचाते हैं। चटकदार रंगों में रंगे इन कुओं के पास से जाते जाते आप इन्हें निहार सकते हैं। जल का दुरुपयोग रोकने हेतु कुछ कुओं के चारों ओर बाड़ बना दी गयी है।
कुण्डी भंडार में एक बिजली-चालित लिफ्ट है जो आपको २५ मीटर नीचे एक पगडंडी तक ले जाती है। यहाँ आप प्रत्यक्ष जल संचयन प्रणाली देख सकते हैं। जिस दिन मैं यहाँ पहुंची थी, दुर्भाग्य से उस दिन यह लिफ्ट बंद थी। स्पष्ट प्रतीत हो रहा था कि इसमें कोई बड़ी समस्या है एवं यह शीघ्र ही दुरुस्त होने वाली नहीं है। यह मध्यप्रदेश पर्यटन एवं पर्यटकों, दोनों के लिए एक लाभदायक अवसर गँवाने के सामान था। इन कुओं के जो चित्र मैंने देखे उनसे ज्ञात हुआ कि यहाँ शिलाओं में कटी हुई सुरंगें हैं जिनसे जल बहता है। पर्यटक के रूप में आप इन सुरंगों के भीतर से जा सकते हैं।
आपको जानकर अत्यंत आश्चर्य होगा कि अंततः बुरहानपुर की इस अनोखी जल प्रणाली के पीछे जिसकी बुद्धी है, वह कोई और नहीं बल्कि अब्दुल रहीम खानेखाना हैं। जी हाँ, वही कवी रहीम जिन्हें आप उनके द्वारा रचित दोहों से जानते हैं।
शाही किला
बुरहानपुर का शाही किला एक जीवंत किला है जहां पुराने बुरहानपुर का एक भाग अब भी निवास करता है। जिस प्रवेशद्वार द्वारा हम परिसर के भीतर गए उसे शनिवारा कहा जाता है। यह लाल रंग में रंगा एक बहुमंजिला द्वार है। इस द्वार के भीतर प्रवेश कर हमने संकरी गलियों में प्रवेश किया जिसके चारों ओर पुराने घर एवं दुकानें थीं। इन गलियों को पार कर हम शाही किले के मुख्य प्रवेश द्वार तक पहुँचे।
भारत के अन्य जीवंत किले अथवा गढ़ इस प्रकार हैं:-
मुमताज महल का हमाम
शाही किले का सर्वाधिक अनोखा भाग था हमाम अर्थात् शाही स्नानगृह। इसका उपयोग स्वयं मुमताज महल करती थी। इस हमाम की विशेषताएं थीं नीले-हरे रंग में रंगी छत तथा इसकी प्रणाली जो इसे एक उत्तम जल स्त्रोत बनाती है। हमारे परिदर्शक ने हमारा ध्यान हमाम पर बने भित्तिचित्रों की ओर खींचा। वहां ताजमहल का चित्र था जिसे आगरा में निर्मित जगप्रसिद्ध संगमरमर के मकबरे का प्रेरणा स्त्रोत माना जाता है। अन्य फलकों पर मुमताज एवं शाहजहाँ के ताजों के चित्र थे। इन चित्रों के देख ऐसा प्रतीत हो रहा था कि इन्हें तत्काल संरक्षण की सख्त आवश्यकता है। अन्यथा कुछ ही समय में ये नष्ट हो जायेंगे।
इस दुर्ग का एक अन्य आकर्षण है इसकी प्राचीर जहां से आप ताप्ती नदी का घाट तथा नदी के उस पार स्थित जैनाबाद देख सकते हैं। यहाँ से नीचे देखते ही आपको ज्ञात होगा कि आप भू-तल पर नहीं, बल्कि चौथी मंजिल पर खड़े हैं। निचली मंजिलों पर जाने की अनुमति नहीं है। किन्तु नदी के तीर खड़े होकर आप इन्हें स्पष्ट देख सकते हैं।
ताप्ती घाट
गंगा से भी प्राचीन ताप्ती नदी संभवतः भारत की प्राचीनतम नदी है। इसे सूर्यपुत्री भी कहा जाता है। किवदंतियों के अनुसार जब गंगा को धरती पर आने का आग्रह किया गया था, तब उसे ताप्ती को प्राप्त असीम आदर से भय हुआ। अतः गंगा से शर्त रखी कि उसके धरती पर अवतरण से पूर्व ताप्ती नदी को संकुचित किया जाए। गंगा की मांग को सहमति मिली। अतः इसमें कोई अचरज नहीं कि गंगा के वैभव के समक्ष अब हम ताप्ती अथवा तापी नदी का गुणगान नहीं करते।
बुरहानपुर के पास से बहती ताप्ती नदी के घाट पर कई छोटे व रंगबिरंगे शिव मंदिर हैं। यह मंदिर भिन्न भिन्न तलों पर बने हैं। अतः इनके द्वारा ताप्ती के जल स्तर का प्राकृतिक अनुमान आसानी से लगाया जा सकता है। उदाहरणतः यदि जल स्तर चटक लाल रंग के मंदिर तक पहुंचा है तो अगले दिन ३०० की.मी. दूर स्थित सूरत में बाढ़ की संभावना होगी। गर्व होता है कि हमारी प्राचीन प्रणालियां कितनी अप्रतिम एवं व्यवहारिक बुद्धिमत्ता से परिपूर्ण होती थीं। तंत्रों एवं यंत्रों की दौड़ में हमने कब इन्हें खो दिया हमें इसकी कल्पना भी नहीं!
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ताप्ती नदी में गज संरचना
बुरहानपुर की ताप्ती नदी में एक और अत्यंत अनोखी वस्तु है। वह है नदी के बीचोंबीच खड़ी एक हाथी की विशाल पाषाणी मूर्ति। मुझे बताया गया कि इस हाथी के साथ एक शिशु हाथी की मूर्ति भी है किन्तु यह तभी दृष्टिगोचर होती है जब नदी का जलस्तर नीचे हो। जिन दिनों मैंने यहाँ की यात्रा की थी, गजमाता की केवल पीठ ही जल सतह से ऊपर दृष्टिगोचर थी। तथापि मुझे यह ज्ञात नहीं हो पाया कि इस गजों का निर्माण किसने और कब करवाया। मष्तिष्क को खंगालने पर भी मैं निश्चित नहीं कर पायी कि नदी के बहते जल के बीचोंबीच गज के सिवाय किसी और मूर्ति की कल्पना भी की जा सकती है!
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ताप्ती नदी के राज घाट पर प्रत्येक संध्या ताप्ती देवी की आरती की जाती है। मैंने अपने जीवन में कई नदियों की आरतियां देखी हैं। मुझे ताप्ती नदी की आरती उन सब में सर्वाधिक साधारण प्रतीत हुई।
गुरुद्वारा बड़ी-संगत
सिक्ख धर्म के इतिहास में बुरहानपुर का अत्यंत महत्त्व है। बुरहानपुर के गुरुद्वारा बड़ी-संगत में गुरु ग्रन्थ साहिब की वह प्रतिलिपि है जिस पर गुरु गोबिंद सिंग ने स्वयं सुनहरी हस्ताक्षर किये हैं। वह अतुल्य ग्रन्थ साहिब आप उस विडियो में देख सकते हैं जो यहाँ एक पटल पर सतत दिखाई जाती है। इस ग्रन्थ साहिब की मूल प्रति वर्ष में केवल एक बार ही भक्तों के समक्ष प्रदर्शित की जाती है।
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शुभ्र स्वच्छ श्वेत रंग में रंगा यह एक विशाल गुरुद्वारा है। यहाँ का लंगर भी अत्यंत विशाल है। आप अनुमान नहीं लगा सकते हैं कि कितने भक्तों को यहाँ प्रसाद रूपी भोजन कराया जाता है।
दरगाह-ए-हकीमी
दरगाह-ए-हकीमी मुझे बुरहानपुर का सर्वाधिक संरक्षित स्थल प्रतीत हुआ। श्वेत रंग के मकबरों पर चांदी के नक्काशे हुए द्वार हैं। इन मकबरों के चारों ओर के बगीचे अत्यंत मनमोहक तो हैं ही, साथ ही इनका रखरखाव भी अत्यंत सजगता से किया हुआ प्रतीत हुआ। मुझे लगा कि इस स्थान को स्वच्छता पुरस्कार हेतु अनुमोदित किया जा सकता है।
रस्म के अंतर्गत दर्शनार्थी इस दरगाह में घोड़ागाड़ी अथवा तांगे पर बैठकर आते हैं। अतः आप को दरगाह के बाहर बाजार में कई रंगबिरंगे तांगे दिखाई देंगे।
जामा मस्जिद
जामा मस्जिद, व्यस्त बाजार के मध्य स्थित एक बड़ी मस्जिद है जिसमें काले पत्थर में बनी दो ऊंची मीनारें हैं। इसका एक अनोखापन जो मुझे दिखाया गया, वह था उत्कीर्णित आलों के एक ओर संस्कृत में लिखे शिलालेख। १००० बड़े बड़े मनकों की एक लम्बी जपमाला भी वहाँ रखी हुई थी। आप जब भी इस मस्जिद को देखने यहाँ आयें, मौलवी से इन्हें देखने का आग्रह अवश्य करें।
जैनाबाद में अहुखाना
ताप्ती नदी के दूसरे तट पर स्थित जैनाबाद बुरहानपुर की जुड़वा नगरी है। एक पुल द्वारा आप यहाँ पहुँच सकते हैं। फेरी नौका द्वारा भी आप बुरहानपुर से यहाँ पहुँच सकते हैं जो नियमित रूप से चालू रहती है।
बुरहानपुर के शाही दुर्ग से जब आप ताप्ती नदी के उस पार जैनाबाद की ओर देखें तो आपको एक शिकार-खाना दिखाई देगा। यह है अहुखाना। इसका प्रयोग मूलतः मुग़ल स्त्रियों द्वारा शिकार हेतु किया जाता था। हिरण को पारसी में अहू कहा जाता है। अतीत में इस शिकार-खाने के विशाल परिसर में कई हिरणों को खुला छोड़ दिया जाता था ताकि उन्हें मार कर मुग़ल स्त्रियों को भी शिकार का आनंद प्राप्त हो सके। वर्तमान में शिकार-खाने के परिसर के चारों ओर चार-बाग़ पद्धति से बगीचा बनाया गया है।
अहुखाना की प्रसिद्धि का एक कारण यह भी है कि मुमताज महल की मृत्यु के पश्चात उनके पार्थिव देह को आगरा ले जाने से पूर्व ६ मास की अवधि के लिए यहाँ दफनाया गया था।
यहाँ पहुँचने के लिए एक कच्चे रास्ते से गाड़ी चलानी पड़ती है। अतः वर्षा की स्थिति में यहाँ आना टालें।
काला ताज महल
मेरी स्मृति में मैंने देखे अब तक के सर्वाधिक गन्दगी भरे रास्तों से होते हुए हमारी गाड़ी नवाब खान के मकबरे तक पहुँची। यह मकबरा काले ताज महल के नाम से अधिक प्रसिद्ध है। इसकी संरचना आगरे के ताज महल से मिलते हुए भी यह भिन्न है। यह अपेक्षाकृत छोटा स्मारक स्थानीय काली शिलाओं से निर्मित है। मकबरे के भीतर भित्तिचित्र भी काले रंग में किये गए हैं। ऐसा विचित्र दृश्य मैंने इससे पूर्व कहीं नहीं देखा था।
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आगरे के ताज महल की कुछ कुछ छटा आपको बुरहानपुर में कई स्थानों पर दिखाई देंगी।
राजा जयसिंह छत्री
बुरहानपुर नगर से थोड़ी दूरी पर तापी नदी एवं मोहना नदी का संगम है। यहाँ पर मैंने एक अकेली संरचना देखी। यह राजा जयसिंह की छत्री अथवा स्मारक है। इस इकलौते मंडप में ३२ स्तंभ एवं ५ गुम्बद हैं।
रेणुका देवी मंदिर
बुरहानपुर को घेरते तीन देवी-मंदिर हैं जो आपस में त्रिकोण बनाते हैं। आशादेवी मंदिर जो असीरगढ़ के पास है, इच्छापुरी देवी मंदिर तथा रेणुका देवी मंदिर।
इनमें रेणुका देवी मंदिर बुरहानपुर से सर्वाधिक समीप है तथा मैं केवल इसके ही दर्शन कर पायी। इस केसरिया रंग के छोटे से मंदिर का दीपस्तंभ अपेक्षाकृत विशाल था।
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कपड़ा बाजार
पिछले कुछ समय से बुरहानपुर सूती उत्पादित कपड़ों का बड़ा बाजार है। यहाँ की सूती कपड़ों के मिल अब भी चालू हैं। ये मिलें ही बुरहानपुर की अर्थव्यवस्था का प्रमुख स्त्रोत हैं। आप चारों ओर जहां भी दृष्टी दौड़ाएं, साइकिल, रिक्शा, ऑटो एवं छोटे ट्रकों पर सूती कपड़ों की गठरियाँ लिए लोग यहाँ-वहां जाते दिखायी पड़ेंगे।
सूती कपड़ों की मीलों से निकले अवशेषों से रस्सियाँ बनायी जाती हैं। रस्सा उद्योग बुरहानपुर के कपड़ा उद्योग पर फलता एक बड़ा सहायक उद्योग है। ऐसी कई रस्सा औद्योगिक इकाईयां आपको रास्तों के किनारे दिखेंगी। सूती धागों को गोल घुमाकर व मोड़कर ये रस्सियाँ बनायी जाती हैं जिसके लिए यांत्रिक मशीनों का इस्तेमाल किया जाता है।
बुरहानपुर का एक अन्य सफल उद्योग है कागज़ उद्योग।
मावा जलेबी – बुरहानपुर की प्रसिद्ध मिठाई जिसे खाना ना भूलें!
किसी भी प्राचीन नगरी का दर्शन तब तक सम्पूर्ण नहीं होता जब तक आपने वहाँ के प्राचीन व्यंजन चखे ना हों! बुरहानपुर का ऐतिहासिक प्राचीन व्यंजन है मावा जलेबियाँ । बुरहानपुर की प्राचीन नगरी में आप इसे हर ओर देख सकते हैं। मावे की मोटी बड़ी जलेबियाँ यहाँ के निवासियों का प्रमुख प्रातःकालीन नाश्ता होता है। मावे से भरा एवं शक्कर की चाशनी में भीगा हुआ यह व्यंजन भले ही गरिष्ठ हो किन्तु होता यह अवश्य ही स्वादिष्ट है। इसे चखना ना भूलें।
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मुगलिया प्रभावों के कारण बुरहानपुर रुमाली रोटियों के लिए भी अत्यंत प्रसिद्ध है। इन रोटियों को उल्टे तवे पर बनाया जाता है जिसे तंदूर पर रख कर गर्म करते हैं।
जब मैं बुरहानपुर आयी थी तब मैंने नहीं सोचा था कि यह शहर मुझे दो दिनों तक व्यस्त रख सकेगा। कैसे मेरे दो दिन बीत गए पता ही नहीं चला। जिस स्थानों के विषय में अधिक लिखा नहीं गया हो वैसे स्थलों में एक विशेष अछूतापन होता है। ऐसे शहरों का भोलापन एवं सादगी बड़े शहरों व पर्यटन स्थलों में ढूंढें नहीं मिलता। ऐसे शहरों की कई कहानियाँ होती हैं जिनके विषय में अधिक लोग नहीं जानते। ऐसे अछूते स्थल मुझे सदैव नवीन ऊर्जा से भर देते हैं।
इंदौर शहर के बाहर बुरहानपुर एक सादा किन्तु प्रभावशाली स्फूर्तिदायक पर्यटन स्थल है।
bahut hi achhi jankari aisa lagraha tha jaise burhanpur ghoom rahe hai
धन्यवाद।