प्रयागराज के प्राचीन मंदिरों के विषय में प्रयागराज नगरी से बाहर कदाचित ही कोई जानता हो। हम प्रयागराज को त्रिवेणी संगम से ही अधिक जानते हैं। त्रिवेणी संगम अर्थात् गंगा, यमुना एवं सरस्वती का पवित्र संगम! जब मैंने कुंभ मेले में भाग लेने के लिए प्रयागराज की यात्रा की थी, मैं इन प्राचीन मंदिरों के भी दर्शन करना चाहती थी। गूगल महाराज ने मुझे कुछ प्राचीन मंदिरों के नाम बताये, किन्तु मुझे आभास था कि उससे कहीं अधिक प्राचीन मंदिर यहाँ होंगे।
जब मैं प्रयागराज में थी, मैंने द्वादश माधव के विषय में जानकारी ढूंढ निकाली थी। द्वादश माधव, प्रयाग के चारों ओर स्थित १२ माधव मंदिरों की ओर इंगित करता है। मैं इनमें से केवल कुछ ही मंदिरों के दर्शन कर पायी थी क्योंकि मुझे अन्य मंदिरों के विषय में पहले से जानकारी नहीं थी। प्रयागराज में देवी के प्राचीन मंदिर हैं, यह मैं जानती थी। जब मैं प्रथम मंदिर के दर्शन करने वहां पहुँची, मुझे और दो मंदिरों के विषय में जानकारी प्राप्त हुई। मुझे आपको यह बताते हुए अत्यंत प्रसन्नता हो रही है कि पुराणों में उल्लेखित कुछ पुरातन मंदिरों को भी ढूँढकर मैं वहां पहुँच सकी।
प्रयागराज के प्राचीन मंदिर
यहाँ प्रस्तुत है मंदिरों की सूची जिन्हें मैंने मेरे आकलन से वर्गीकृत किया है। आप इन्हें अपने क्रम से देख सकते हैं।
प्रयागराज के देवी मंदिर
प्रयाग को सदा से तीर्थराज प्रयाग कहा जाता रहा है। इसीलिए अब इसे प्रयागराज कहा जाता है। प्रयाग में गंगा, यमुना एवं सरस्वती का पवित्र संगम है। ये तीनों नदियाँ सम्पूर्ण भारत में देवी के समान पूजी जाती हैं। किसी भी शुभ कार्य से पूर्व इन तीनों का आह्वान किया जाता है।
इसलिए मैंने आशा की थी कि यहाँ इन तीन नदी रुपी देवियों के मंदिर अवश्य होंगे। राम घाट पर त्रिवेणी संगम के समीप मुझे गंगा का एक छोटा मंदिर मिला भी। ऐसा प्रतीत हो रहा था कि हाल ही में उस पर रंग-रोगन भी किया गया है, कदाचित कुंभ मेले के उपलक्ष्य में।
अलोपी देवी मंदिर
प्रयागराज में सर्वप्रथम मैंने अलोपी देवी अथवा अलोप शंकरी के मंदिर का दर्शन किया। यह मेरे सूची में तो था किन्तु मेरा यहाँ आना एक संयोग ही था। मेरे ऑटो वाले ने मुझे इस मंदिर के समीप उतार दिया तथा आगे जाने के लिए कोई दूसरा ऑटो लेने के लिए कहा। ज्यों ही मेरी दृष्टी मंदिर के फलक पर पड़ी, दूसरा ऑटो लेकर आगे जाने से पूर्व मैंने इसके दर्शन करने का निश्चय किया।
मैं हाल ही में चौड़े किये गये मार्ग पर चलने लगी। मेरी बाईं ओर कुछ घर थे जो चौड़ीकरण के चलते धरती से जा मिले थे। मेरी दायीं ओर काले पत्थर में बनी कुछ प्रतिमाओं की पंक्ति थी। मैंने रूककर उन्हें प्रणाम किया। उन प्रतिमाओं की देखरेख कर रहे पुजारीजी से बातचीत भी की। उन्होंने मुझे बताया कि एक काली मंदिर को भी हाल ही में गिराया गया है जिससे ये प्रतिमाएं अब सड़क पर आ गयी हैं। समीप ही कुछ कुम्हार अपना माल बेच रहे थे।
कुछ दूर आगे जाकर, एक संकरी गली गुलाबी रंग के एक सादे से मंदिर की ओर जा रही थी। यह अलोपी देवी का मंदिर था। गली के दोनों ओर छोटी छोटी दुकानों में देवी के चढ़ावे के लिए बिंदी, चूड़ियाँ इत्यादि बिक रही थीं। गली से आगे जाकर मैं मंदिर के प्रवेश द्वार पर पहुँची। चप्पल उतार कर मंदिर में प्रवेश किया। वहां देवी के कई रूपों के दर्शन किये। उनके छायाचित्र आपको नहीं दिखा सकती क्योंकि छायाचित्रीकरण की अनुमति नहीं थी।
अनोखा गर्भगृह
इस मंदिर गर्भगृह के बीच में एक कुआँ है। एक छोटा किन्तु सुन्दर सजाया हुआ झूला इसके ऊपर लटकाया हुआ है। मेरा देखा हुआ यह अब तक का सर्वाधिक विचित्र गर्भगृह था। यहाँ कोई प्रतिमा नहीं है। ऐसा माना जाता है कि इस झूले से देवी अंतर्धान हो गयी थीं। इसलिए अब झूले की ही आराधना की जाती है। पुजारीजी ने बताया कि यह मंदिर देवी के शक्तिपीठों में से एक है। यहाँ देवी की उंगलियाँ गिरी थीं।
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मैंने कई भक्तों को इस परिसर में बैठकर दुर्गा सप्तशती या देवी भागवत का पारायण करते देखा। मंदिर छोटा होते हुए भी दैवी शक्ति से परिपूर्ण प्रतीत होता है। यदि आप संवेदनशील हैं तो आपको देवी की शक्ति की ऊर्जा का आभास अवश्य होगा।
श्री ललिता देवी मंदिर
अपने कुंभ दर्शन के अंतिम दिवस मैंने इस मंदिर के दर्शन किये थे। मैंने गूगल मैप में पता किया था कि संगम कुछ ही किलोमीटर की दूरी पर है किन्तु कोई भी ऑटोवाला मुझे वहां ले जाने के किये तैयार नहीं था। सभी ऑटोवाले मुझे थोड़ी दूर तक ही ले जाने के लिए तैयार थे जहां से मुझे एक और ऑटो ले कर आगे जाना पड़ता। अंततः ललिता देवी मंदिर तक जाने के लिए मुझे ५ ऑटो की सेवायें लेनी पड़ी।
यद्यपि ललिता देवी का मंदिर अपेक्षाकृत नवीन है, इसमें प्राचीनता के कुछ अंश अब भी शेष हैं। श्री ललिता देवी की प्रतिमा के साथ दो और प्रतिमाएं हैं। ये मूर्तियाँ चांदी के आवरण से इस प्रकार ढँकी हुई हैं कि ये अयोध्या की देव काली की प्रतिमा के सामान प्रतीत होती हैं। कदाचित यह इस क्षेत्र की शिल्पकला की विशेषता हो। दोनों ओर के आलों पर कई श्रीयंत्र रखे हुए थे।
मंदिर में बैठकर मैंने ललिता सहस्त्रनाम का पारायण किया। वहां के पुजारीजी एवं अन्य भक्तों से बातचीत की। देवी से हमारे, हमारे परिवार एवं हमारे समाज के लिए आशीष भी माँगा।
कल्याणी देवी मंदिर
ललिता देवी मंदिर से एक किलोमीटर दूर श्री कल्याणी देवी का प्राचीन मंदिर स्थित है। बाहर लगे सूचना पट्टिका के अनुसार पद्म पुराण जैसे पुराणों में इसे ललिता कल्याणी नामक प्राचीन शक्तिपीठ कहा गया है। उपरोक्त उल्लेखित देवी के तीनों मंदिर को मूल शक्तिपीठ कहा गया है। यह जानना कठिन है कि इनमें असली शक्तिपीठ कोई एक है, या कदाचित तीनों ही शक्तिपीठ हैं।
मंदिरों में विद्यमान दैवी उर्जा की चर्चा करूं तो मुझे अलोपी देवी मंदिर में इसकी तीव्र अनुभूति हुई थी। वहीं कल्याणी देवी मंदिर भी पुरानी उर्जा से ओतप्रोत था। यहाँ भी गर्भगृह में तीन प्रतिमाएं हैं। चेहरे एवं चमकती आँखों को छोड़ सम्पूर्ण प्रतिमाएं वस्त्रों एवं आभूषणों से ढँकी हुई हैं।
पुरातात्विक साक्ष्यों के अनुसार, इन प्रतिमाओं को लगभग १५०० वर्ष प्राचीन माना जाता है। पुराणों के अनुसार, ३२ उंगल ऊंची देवी की प्रतिमा की स्थापना त्रेता युग में ऋषि याज्ञवल्क्य ने की थी। देवी को ऋषि भारद्वाज एवं उनके वंशजों की अधिष्ठात्री देवी कहा जाता है। हम सब जानते हैं कि ऋषि भारद्वाज प्रयाग में ही निवास करते थे।
हवेली के सामान दिखने वाले मंदिर परिसर में भगवान् शिव को समर्पित एक कल्याणेश्वर महादेव मंदिर है तथा दूसरा मंदिर भैरव का है। शिव का एक और मंदिर, शूल टंकेश्वर महादेव मंदिर भी समीप ही है किन्तु गूगल मुझे उस तक पहुँचने का मार्ग बताने में असमर्थ था। अतः उसके दर्शन अपनी अगली यात्रा तक के लिए टालना पड़ेगा।
प्रयागराज का हनुमान मंदिर
हनुमानजी प्रयागराज के एक महत्वपूर्ण देव हैं। मैंने यहाँ उनके तीन मंदिर देखे जो प्राचीन एवं अत्यंत प्रसिद्ध हैं।
बड़े हनुमानजी अथवा लेटे हनुमानजी का मंदिर
यह प्राचीन मंदिर त्रिवेणी संगम के समीप स्थित है। यह अकबर द्वारा निर्मित इलाहबाद दुर्ग का एक भाग होते हुए भी आम जनता हेतु खुला है। यद्यपि प्रत्येक मंगलवार के दिन यहाँ बड़ी संख्या में भक्तगण दर्शनों के लिए आते हैं। तथापि कुंभ मेले के समय प्रत्येक दिवस मंगलवार के सामान होता है। चूंकि मैं यहाँ कुंभ मेले के समय आयी थी, यहाँ भक्तों का तांता लगा हुआ था।
एक दिन मैं भी मंदिर में प्रवेश करने के लिए खड़ी पंक्ति में सम्मिलित हो गयी। भीड़ धीमी गति से आगे बढ़ रही थी। इसका लाभ उठाते हुए मैंने मंदिर को विस्तारपूर्वक निहारना आरम्भ किया। सम्पूर्ण मंदिर परिसर केसरी रंग में ओतप्रोत था। हनुमान का रंग भी केसरी ही है। रुद्राक्ष बिक्री करती एक दुकान में दर्शनार्थियों की भीड़ लगी थी। भित्तिचित्र एवं बरगद के वृक्ष के चारों ओर भी भक्तगणों का जमावड़ा था।
सीड़ियों द्वारा हम कुछ नीचे उतरे। वहां हनुमानजी की लेटी हुई विशाल प्रतिमा थी। इसीलिए इसे लेटे हनुमानजी कहा जाता है। इसके विशाल आकार के कारण इसे बड़े हनुमानजी भी कहा जाता है। चूंकि यह दुर्ग अथवा किले का एक भाग है, इसे किला हनुमानजी भी कहते हैं। हनुमानजी की मूल प्रतिमा काले रंग की है। इस पर अर्पित सिन्दूर के कारण यह पूर्णतः सिंदूरी हो गयी है।
किवदंतियों के अनुसार, कन्नौज के एक धनी व्यापारी की कोई संतान नहीं थी। अतः उन्होंने हनुमानजी की एक विशाल प्रतिमा की स्थापना का निश्चय किया। मूर्ति को पवित्र स्नान कराने के लिए वे उसे त्रिवेणी लेकर आये। किन्तु मूर्ति यहीं जड़ हो गयी। इसके पश्चात व्यापारी को भी संतान सुख प्राप्त हुआ। तब से लोगों की आस्था है कि लेटे हनुमानजी सबकी इच्छा पूर्ण करते हैं। एक अन्य कथा के अनुसार, मूर्ति दीर्घ काल तक जलमग्न थी। अनेक प्रयत्नों के बाद भी इस प्रतिमा को खड़ा नहीं किया जा सका।
खड़े हनुमानजी अथवा हनुमान गुफा
संगम के उस पार, झूसी नामक एक गाँव में, उल्टा किला नाम का दुर्ग है। पहाड़ी के ऊपर, जहां इस किले के अवशेष हैं, एक गुफा के भीतर प्राचीन हनुमाजी का मंदिर है। पहाडी पर चढ़ने के पश्चात आपको गुफा में उतरना पड़ेगा। वहां हनुमानजी की प्राचीन एवं सादी मूर्ति है।
इसके समीप गुप्त काल का एक प्राचीन कुआं है जिसे समुद्र कूप कहते हैं। पौराणिक सूत्रों के अनुसार सम्राट सभी सागरों के जल को अनुष्ठानों के लिए इस कुँए में आमंत्रित करते थे। इसके समीप एक छोटा मंडप है। इस कुँए को देखने कई पर्यटक आये हुए थे। उन्हें देख मैं किंचित आश्चर्य चकित अवश्य थी। कदाचित वे पड़ोस के आश्रम के दर्शन हेतु यहाँ आये हों।
झूसी मूलतः प्रतिष्ठानपुर नाम से जाना जाता था। यहाँ चंद्रवंशी सम्राटों का राज था। गुरु गोरखनाथ एवं मत्स्येन्द्रनाथ के श्राप के कारण यह नगरी अग्नि में ध्वस्त हो गयी थी तथा किला उल्टा हो गया था। इसलिए इसे उल्टा किला कहते हैं।
सिविल लाइन्स का हनुमान मंदिर
कम्पनी बाग़ के समीप एक बड़ा हनुमान मंदिर है। मैं यहाँ दोपहर के भोजन के समय पहुँची थी। दुर्भाग्यवश उस समय यह मंदिर बंद था। मुझे बताया गया कि अन्य हनुमान मंदिरों के सामान यहाँ भी मंगलवार एवं शनिवार के दिनों में भक्तों की बड़ी भीड़ रहती है। इसके प्रवेश द्वार पर गीता का एक दृश्य उत्कीर्णित है। इस दृश्य में कृष्ण भगवान् अर्जुन को गीता का ज्ञान देते दर्शाए गए हैं।
प्रयागराज के अन्य मंदिर
इलाहाबाद दुर्ग के भीतर के मंदिर
अक्षय वट एक प्राचीन वट वृक्ष है जो अब इलाहबाद किले के भीतर है। इस वृक्ष का उल्लेख रामायण जैसे कई भारतीय ग्रंथों में प्राप्त होता है।
पातालपुरी मंदिर भी इलाहबाद किले के भीतर स्थित एक प्राचीन मंदिर है। पत्थर के स्तंभों से युक्त यह एक विशाल मंदिर है। कुंभ मेले के समय यहाँ भक्तों का अत्यधिक जमावड़ा होने के कारण मैं मंदिर की अधिक विशेषताएं देख नहीं पायी। तथापि इसका विशाल आकार आप अनदेखा नहीं कर पायेंगे। यहाँ कई छोटे मंदिर भी हैं जिनके पुजारीगण सबको उनकी गाथाएँ संक्षेप में सुना रहे थे। हर प्राचीन मंदिर की भान्ति यहाँ भी दान-पुण्य का कार्य शुभ माना जाता है।
इस मंदिर का निर्माण किसने कराया इसका उल्लेख मुझे कहीं नहीं मिला। तथापि यह कहा जाता है कि ह्वेन त्सांग ने पातालपुरी मंदिर एवं अक्षय वट का उल्लेख अवश्य किया है। पातालपुरी नाम पर विचार करें तो क्या यह पाताल लोक का प्रतिनिधित्व करती है? मेरे मष्तिष्क में यह विचार इसलिए कौंधा क्योंकि यह मंदिर धरती की सतह से नीचे स्थित है।
सरस्वती कूप इलाहबाद दुर्ग के भीतर ही किन्तु यहाँ से कुछ दूरी पर है। यह एक बड़ा कुआं है जिसे अब कांच की भित्तियों के बीच सुरक्षित किया गया है। आप कांच के पीछे इसे देख सकते हैं। आपको स्मरण होगा सरस्वती नदी त्रिवेणी संगम में आकर अन्य दो नदियों से मिलने वाली तीसरी नदी है। ऐसा माना जाता है कि इस कुँए में सरस्वती नदी का अस्तित्व अब भी है।
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आप उपरोक्त उल्लेखित स्थलों के दर्शन कर सकते हैं किन्तु आपको अपने कैमरे, पर्स तथा अन्य हाथ की वस्तुएं बाहर ही जमा करानी पड़ेंगी। आप अपना मोबाइल ले जा सकते हैं किन्तु छायाचित्रिकरण की अनुमति नहीं है।
नाग वासुकी मंदिर
आपने अपने जीवन में कभी ना कभी सागर मंथन के विषय में अवश्य पढ़ा अथवा सुना होगा। सागर मथने के लिए रस्सी के स्थान पर सर्प का प्रयोग किया गया था। इस सर्प का नाम था वासुकी। इसी वासुकी का यहाँ एक मंदिर है जो गंगा के समीप स्थित है। मंदिर की भित्तियों एवं सीड़ियों पर बने मनमोहन भित्तिचित्र अत्यंत आकर्षित करते हैं।
मंदिर परिसर के भीतर मध्यकालीन शैली में निर्मित एक छोटा सा मंदिर है जिसका शिखर सुन्दर है। इस मंदिर के उत्तर-पूर्वी कोने में असि- माधव का मंदिर है। असि-माधव प्रयागराज के १२ माधवों में से एक हैं। मंदिर के भीतर, जाली के पीछे, मैं उनकी प्रतिमा नहीं देख पायी क्योंकि यहाँ कई कुत्तों का जमावड़ा था।
ऊंचाई पर स्थित होने के कारण यहाँ से गंगा एवं उसके घाटों का विहंगम दृश्य दिखाई देता है। कुंभ मेले के समय घाट पर चारों ओर तम्बू लगे दिखाई पड़ते हैं। यहाँ कुछ समय बिताकर मैं अपने अगले गंतव्य की ओर चल पड़ी।
गंगोली शिवाला मंदिर
गंगोली शिवाला मंदिर एक प्राचीन शिव मंदिर है जो प्रयागराज के झूसी क्षेत्र में स्थित है। शिला से निर्मित इस मंदिर का संकरा शिखर भी शिला का है। कुंभ मेले के अवसर पर इसके अग्रभाग को नवीन रंगरोगन से सज्जित किया गया है। ऐसा बताया जाता है कि कई वर्षों पूर्व इस मंदिर का निर्माण, आगरा के एक व्यापारी, गंगा प्रसाद तिवारी द्वारा किया गया था। इसलिए ही इस मंदिर का नाम गंगोली पड़ा।
भारद्वाज मुनि आश्रम के मंदिर
भारद्वाज मुनि आश्रम एक छोटा सा संकुल है जिसके भीतर कई प्राचीन मंदिर एवं मूर्तियाँ हैं। भारद्वाज मुनि की प्राचीन प्रतिमा के साथ संकुल के भीतर ऋषि अत्री, उनकी पत्नी अनुसूया, संकट माता, दुर्गा, कल्याणी, पाप मोचन, ऋण मोचन, याज्ञवल्क्य, व्यास मुनि, सत्यनारायण एवं अन्नपूर्णा के मंदिर हैं। यहाँ भगवान् राम की चरणपादुका भी है जो यह दर्शाती है कि वन प्रस्थान के समय उन्होंने प्रयागराज में भी भेंट दी थी। इनके अलावा यहाँ सती कुण्ड एवं कोटेश्वर महादेव मंदिर हैं।
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प्रयागराज के १२ अर्थात् द्वादश माधव मंदिर
प्रयागराज के ये १२ माधव मंदिर आपको प्रयाग क्षेत्र का सम्पूर्ण भ्रमण कराते हैं।
१. श्री आदि वट माधव – त्रिवेणी संगम
२. श्री असि माधव – नाग वासुकी मंदिर
३. श्री संकष्ट हर माधव – झूसी
४. श्री शंख माधव – छटनाग मुंशी बगीचा
५. श्री आदि वेणी माधव – अरैल घाट
६. श्री चक्र माधव – अरैल घाट
७. श्री गदा माधव – छिवंकी गाँव
८. श्री पद्म माधव – बिकर देवरिया
९. श्री मनोहर माधव – जोंसनगंज
१०. श्री बिंदु माधव – द्रौपदी घाट
११. श्री वेणी माधव – दारागंज
१२. अनंत माधव – आर्डिनेंस डिपो फैक्ट्री
मैं प्रयागराज के उपरोक्त १२ माधव मंदिरों में से केवल २ मंदिरों के ही दर्शन कर पाई, असि माधव तथा आदि वेणी माधव। शेष मंदिरों के दर्शन कदाचित अपने आगामी प्रयागराज यात्राओं के समय कर पाऊँ।
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इनके अलावा भी यदि आप प्रयागराज के किसी प्राचीन मंदिर की जानकारी रखते हैं तो कृपया टिप्पणी खंड में उनका उल्लेख करें। मैं उन्हें देखने एवं उन्हें अपने संस्मरण में सम्मिलित करने का प्रयत्न अवश्य करूंगी।
अनुराधा जी, आपका यात्रा लेख सुन्दर है परन्तु १२ माधव मंदिर विवरण में त्रुटियां हैं कृपया सुधार कर लें। प्रथम माधव त्रिवेणी माधव हैं न कि आदि वट माधव, जो अदृश्य हैं संगम जल में रहते हैं। भगवान श्री गदा माधव ददरी गांव मे हैं। भगवान श्री अन्नत माधव चौफटका कानपुर रोड पर स्थित । ऊँ जय श्री माधव देवा
शुल्टनकेश्वर मंदिर का बतावे,,जो त्रिवेणी संगम के पास है