जब मुझे भगोरिया उत्सव में भाग लेने के लिये झाबुआ जाने का निमंत्रण मिला, मुझे इस उत्सव के विषय में तनिक भी जानकारी नहीं थी। ना ही झाबुआ के अस्तित्व के विषय में कोई ज्ञान था। तत्काल गूगल की सहायता ली। भला हो इस गूगल का जिसने मुझे झाबुआ एवं भगोरिया उत्सव की जानकारी क्षण भर में ही उपलब्ध करा दी। भगोरिया उत्सव के विषय में जानते ही इसमें भाग लेने के इस स्वर्णिम अवसर को मैंने हाथों से जाने नहीं दिया।
भगोरिया उत्सव के विषय में उपलब्ध जानकारियों के अनुसार, इस उत्सव में आदिवासी भील युवक अपनी पसंद की भील युवती से अपना प्रेम व्यक्त करता है। यदि युवती उसका प्रेम स्वीकार करती है तो वे दोनों भाग कर छुप जाते हैं। वे तब तक वापस नहीं आते, जब तक उनके परिवार आपस में चर्चा कर उनके विवाह हेतु सहमत नहीं हो जाते। यह पढ़ने के पश्चात क्या आप भी यह देखने के लिए उत्सुक नहीं होंगे कि पश्चिमी मध्य प्रदेश के इस ग्रामीण क्षेत्र में, कैसे भील युवक सम्पूर्ण बिरादरी के समक्ष अपना प्रेम व्यक्त करते हैं? तथा युवतियों की क्या प्रतिक्रिया होती है? वे कैसे प्रेम स्वीकार करती हैं? है ना यह मनोरंजक उत्सव!
मेरे लिए यह एक स्वर्णिम अवसर था। होली के पर्व से ठीक पूर्व भील आदिवासियों का यह उत्सव एक बड़ा प्रलोभन था। निमंत्रण पत्र पर छपे भगोरिया उत्सव के छायाचित्र, निमंत्रण को और अधिक प्रलोभी बना रहे थे। मैं स्वयं को रोक नहीं पायी। शीघ्र ही मैं अपने सभी कार्यक्रमों का समायोजन कर रही थी, देर रात काम कर, सभी कार्य निर्धारित समयसीमा में पूर्ण करने की होड़ में लग गयी थी ताकि मध्य प्रदेश के इस झाबुआ जिले में मैं कम से कम ४ दिन व्यतीत कर सकूं।
अगले ही दिन हम इंदौर पहुंच गए। मार्ग में कुछ समय उज्जैन में रूककर, नगर के पीठासीन देव, महाकाल के दर्शन किये। धूल भरे मार्ग एवं सूखी बंजर पहाड़ियों से जाते हुए, दिन समाप्त होने से पूर्व हम झाबुआ पहुँच गए। मध्य प्रदेश पर्यटन ने हमें भगोरिया उत्सव के विषय में जानकारी देने के लिए एक छायाचलचित्र का प्रदर्शन किया। एक स्वतन्त्र छायाचित्रकार द्वारा निर्मित यह चलचित्र कई वर्षों के भगोरिया उत्सव का सुन्दर संकलन था। आप भी इस संस्करण को पढ़ने से पूर्ण इस उत्सव के विषय में जानना चाहते होंगे। तो आईये आपको बताती हूँ, मैंने इस चलचित्र एवं साहित्यों से क्या जानकारी प्राप्त की।
भगोरिया हाट अर्थात् भगोरिया उत्सव से जुडी किवदंतियां
बोलचाल की भाषा में भगोरिया शब्द का प्रयोग भागने के लिए किया गया है। इसका शब्दशः अर्थ है पलायन करना अथवा भागना। अर्थात् वह समय जब युवक अपनी इष्ट युवती के संग भाग जाता है।
एक किवदंती के अनुसार इस उत्सव के सर्वप्रथम नायक एवं नायिका भाव एवं गौरी थे। यह शिव एवं पार्वती के ही नाम हैं। इसी कारण इस उत्सव को भगोरिया कहा जाता है।
एक अन्य किवदंती के अनुसार भागोर के राजा ने इस क्षेत्र पर विजय प्राप्त की थी। राजा ने अपने सैनिकों को यह अनुमति दी थी कि होली से कुछ दिन पूर्व लगते इस हाट में वे अपनी पसंद की युवती को प्रेम प्रस्ताव दे सकते हैं। यदि युवती की स्वीकृति हो तो दोनों पलायन कर सकते हैं। उस समय से अब तक यह एक प्रथा बन चुकी है जिसका अब भी किसी ना किसी रूप में पालन किया जाता है।
भगोरिया उत्सव का समय
भगोरिया हाट होली पर्व से कुछ दिनों पूर्व लगता है। होली इस क्षेत्र का बड़ा उत्सव है। इस समय अधिकतर लोगों को काम का मेहनताना मिलता है तथा खर्च करने के लिए उनके पास पर्याप्त धन होता है। इस समय विश्व के कोने कोने से इस जनजाती के लोग यहाँ वापस आते हैं। अतः यह विवाह करने के लिए अथवा अपने संतानों का विवाह करवाने के लिए सर्वोत्तम समय होता है। वर्तमान में यह प्रथा किस सीमा तक पाली जाती है इसका अनुमान लगाना कठिन है।
हमने कई युवक युवतियों को सजधज कर मेले में घूमते देखा। प्रेम प्रस्ताव के रूप में युवकों को युवतियों को रंग लगाते भी देखा। साथ ही प्रेम प्रस्ताव पर अपनी मोहर लगाते हुए कई युवतियों को पान स्वीकार करते भी देखा। इस सब को हमारा समाज कितनी स्वीकृति देता है, यह चर्चा का विषय है। हमने कई लोगों से इस विषय में चर्चा की। भगोरिया उत्सव में विवाह करने की इस तथाकथित प्रथा के विषय में हमें भिन्न भिन्न प्रतिक्रियाएं प्राप्त हुईं।
भगोरिया उत्सव के विषय में मैंने जितना कुछ पढ़ा, सुना तथा देखा, उसके आधार पर मेरा विश्लेषण यह कहता है कि किसी समय यह युवक-युवतियों के लिए एक दूसरे से मिलने एवं अपनी भावनाएं प्रकट करने का अवसर रहा होगा। कदाचित उन में से कुछ ने इसका लाभ उठाते हुए अपने साथी के संग पलायन भी किया होगा। समय के साथ इसे मान्यता प्राप्त होने लगी तथा यह एक परंपरा बन गयी।
झाबुआ के भील जनजाती का भगोरिया उत्सव
भगोरिया हाट अथवा बाजार का कोई निश्चित स्थान नहीं है। प्रत्येक वर्ष, होली से पूर्व के सात दिनों तक, प्रत्येक दिवस एक भिन्न गाँव इस बाजार का आयोजन करता है। निर्धारित स्थल के विषय में जानकारी प्राप्त करने के लिए कोई भी स्थानीय समाचार पत्र देख सकते हैं।
सर्वप्रथम हमने वालापुर गाँव का भ्रमण किया जो लगभग गुजरात सीमा पर स्थित है। वहां पहुंचते पहुंचते दोपहर हो गयी थी। बाजार पहले से ही रंगों में सराबोर युवक-युवतियों से भरा हुआ था। अनायास जिसने हमारा ध्यान आकर्षित किया, वह था, युवतियों के कई समूह जिन्होंने एक ही प्रकार का श्रृंगार किया था। एक समूह के भीतर सभी युवतियों ने एक ही रंग एवं एक ही प्रकार के वस्त्र एवं आभूषण धारण किये हुए थे। तथापि प्रत्येक समूह का रंग भिन्न था। काला, नीला, लाल, हरा, जामुनी, नारंगी तथा कहीं कहीं दो रंगों का मिश्रण। इन युवतियों के मोहक आभूषण ठोस चांदी के थे । उन्होंने अपनी ओढ़नियाँ भी एक ही प्रकार से ओढ़ी हुई थीं। यह सब देख मुझे आभास हुआ कि उनके मुख पर हर्शोल्ल्हास के भाव भी सामान थे।
वालापुर का भगोरिया हाट उत्सव
हमें कुछ समय लगा तथा थोड़ी मेहनत लगी उन नवयुवकों के समूहों को ढूँढने में जो भावी दुल्हे हैं तथा वधू ढूंढ रहे हैं। ऐसे समूह कम थे किन्तु उन्हें पहचानना आसान था। वे सब सुन्दर धोती पहने हुए थे तथा रंगबिरंगी बांसुरियां पकडे हुए थे। बांसुरियों पर सुन्दर आकृतियाँ चित्रित थीं। कदाचित यह उन नवयुवकों का अनोखा ढंग था यह बताने का कि वे कुंवारे हैं तथा वधू की तलाश में हैं। उनसे चर्चा करने में मुझे अत्यंत आनंद आया। वे बात तो करना चाह रहे थे किन्तु किंचित सकुचा भी रहे थे। बहुत समय तक तो ये समूह इधर उधर डोलते रहे, एक दूसरे को निहारते रहे। हम भी थक कर बैठ गये। कुछ समय पश्चात हमने उन्हें एक दूसरे पर रंग लगाते देखा। लडके लड़कियों पर रंग लगाने का प्रयत्न कर रहे थे, वहीं लड़कियां रंगों से बचने के लिए इधर उधर भाग रहीं थीं।
हम में से एक ने देखा कि एक युवती ने एक युवक से पान स्वीकार किया। अर्थात् उसने युवक के प्रेम प्रस्ताव को स्वीकार किया। उसके पश्चात क्या हुआ यह जानना हमारे लिये असंभव है। इसके लिए हमें कुछ दिन गाँव में ही पड़ाव डालना पड़ता।
वालपुर के उत्सव
यहाँ का वातावरण एक ठेठ ग्रामीण मेले का सा था। चारों ओर कई दुकाने थीं। इनमें हलवाइयों की दुकानें तो प्रमुखता से थीं ही, साथ ही मिट्टी के बर्तन से लेकर चांदी के बर्तन तक, गोदना गोदने से लेकर खिलौनों की दुकान तक, फलों से लेकर भाजी तक, अनेक रंगबिरंगी दुकानें थीं। इनमें सबसे अधिक व्यस्त दुकानें मिठाईयों एवं नमकीन की थीं।
एक ओर खेल व मनोरंजन के साधन थे। पुराने ढंग के लकड़ी के ऊंचे गोल झूले थे जिन्हें हाथ से घुमाया जा रहा था। कई अन्य झूले एवं खेल भी थे। कुल्फी, बर्फ के गोले एवं रंग बिरंगे शीत पेय भी बिक रहे थे। लोग नित्योपयोगी वस्तुओं की खरीदी कर रहे थे। कहीं झूला झूल रहे थे तथा खाद्य पदार्थों का आस्वाद भी ले रहे थे। लोगों के उपयोग एवं पसंद की प्रत्येक वस्तु यहाँ उपलब्ध थी। स्त्रियों को देख ऐसा प्रतीत हो रहा था मानो यह उन कुछ अवसरों में से है जब वे मन भर के सज सकती हैं, श्रृंगार कर सकती हैं एवं घर से बाहर निकल कर मौज मस्ती कर सकती हैं क्योंकि हमने इन स्त्रियों को समूहों में हँसते-खिलखिलाते हुए घूमते देखा।
हेलिकॉप्टर का आकर्षण
जिस दिन हम वालपुर आये थे, उस दिन उस क्षेत्र के सांसद अपनी पत्नी के साथ हेलिकॉप्टर में वहां आये। हेलिकॉप्टर को नीचे आते एवं वापस उड़ते देखने के लिए लोगों की कतार लग गयी थी। जब तक हेलिकॉप्टर वहां उपस्थित था, वही यहाँ का प्रमुख आकर्षण बना हुआ था। हेलिकॉप्टर के चारों ओर लोगों की भीड़ जमा हो गयी थी। सांसद हेलिकॉप्टर से आये, कुछ क्षण ढोल बजाया, स्थानीय लोगों के साथ नृत्य किया तथा हमारे साथ नाश्ता भी किया। तत्पश्चात उन्होंने हमें आदिवासी क्षेत्र में हुए विकास, विशेषतः कन्याओं के शिक्षण के विषय में अवगत कराया। उन्होंने हमें निकट भविष्य में एक बड़े आवासीय विद्यालय के निर्माण के विषय में भी बताया।
कुल मिलाकर सम्पूर्ण दिवस हमने भरपूर हर्षोल्ल्हास एवं खूब सारी धूल में बिताया। उस दिन कितने जोड़े प्रेम-बंधन में बंधे, यह ज्ञात नहीं हो सकता क्योंकि अब अधिकतर लोग इस परम्परा से इनकार करते हैं।
राणापुर का भगोरिया उत्सव
भगोरिया हाट या उत्सव का दूसरा दिन हमने राणापुर गाँव में बिताया। यह झाबुआ के अधिक समीप था, जहां हम रह रहे थे। राणापुर के भगोरिया हाट में अपेक्षाकृत अधिक भीड़ थी। हाट एवं उत्सव उसी प्रकार का था, जैसा हमने वालापुर में देखा था किन्तु वस्त्रों एवं आभूषणों की शैली अत्यंत भिन्न थी।
यहाँ कन्याओं ने छाप के, विशेषतः बांधनी छाप के वस्त्र धारण किये थे। वालापुर में बिना छाप के, सादे रंगों के वस्त्रों का चलन था। चांदी के आभूषण उसी प्रकार भारी थे किन्तु उनकी बनावट बिलकुल भिन्न थी। यहाँ वालापुर के सामान कुछ भी नहीं था, ना वैसे लोग, ना ही वैसी दुकानें! कन्याओं ने बालों में चटक चमकीले चिमटे लगाकर, चिमटे बालों को खुला छोड़ा हुआ था। बाकी के बाल एवं सर को उन्होंने ढँक कर रखा था। उन्हें देख मुझे एक पुरानी पंजाबी बोली का स्मरण हुआ ‘खुल्ला रखदी क्लिप वाला पासा’।
विशाल चक्र झूले अब और विशाल एवं मोटरयुक्त हो गए थे। पान की दुकानें भी कहीं अधिक थीं। कुल मिलाकर सम्पूर्ण बाजार एवं व्यापार अधिक चुस्त एवं फुर्तीला था। ऊपर तक लोगों से भरी गाड़ियां, ट्रक एवं बैलगाड़ियां देखने योग्य थीं। कुछ कोनों में नृत्य के कार्यक्रम हो रहे थे। नाचते गाते लोगों की शोभायात्रायें निकल रही थीं। वालापुर में आये सांसद ने यहाँ भी भेंट दी किन्तु इस समय हेलिकॉप्टर दिखाई नहीं दिया। एक स्थान पर एक नर्तक हल्दी में सना हुआ नृत्य कर रहा था। उसने ऊपरी देह को एक लाल कपडे से ढँक रखा था एवं हाथ में एक सजा हुआ नारियल पकड़ा हुआ था। उसके चारों ओर कुछ वादक ढोल बजा रहे थे।
भगोरिया हाट की दुकानें
भगोरिया हाट की छोटी छोटी दुकानें अत्यंत अनोखी थीं। मैं चांदी के कुछ आभूषण खरीदना चाहती थी। किन्तु वहां आभूषण अत्यंत भारी थे। वे मेरे शहरी परिवेश के लिए उपयुक्त नहीं थे। मैंने मिट्टी के कुछ अनोखे तवे देखे जिन्हें इस प्रकार पकाया गया था कि उपयोग से पूर्व इन्हें तोड़ना पड़ता है। यहाँ मुझे कुछ अनोखी ग्रामीण खोजें दिखाई दिए। जैसे, पुराने रबर के टायरों से चप्पल एवं बाल्टियां बनाकर उनका पुनर्नवीनीकरण किया गया था। कुछ बुद्धिमान दर्जी विदेशी पर्यटकों के लिए तत्काल वेशभूषा सिलकर तैयार कर रहे थे। इसके लिए वे अपने घर के हथकरघे में बुने हुए वस्त्रों का प्रयोग कर रहे थे।
हमने कुछ गांव वासियों से भगोरिया उत्सव के विषय में चर्चा की। हमने पाया कि उत्सव के विषय में हर एक का अपना संस्करण एवं अपनी व्याख्या है। मैंने एक युवा दम्पति से चर्चा की एवं उत्सव के विषय में उनके विचार जानने का प्रयत्न किया। उन्हें चर्चा करने तथा कैमरे के समक्ष आने में संकोच हो रहा था। उन्होंने बताया कि उनका विबाह उनके माता-पिता तथा परिवारजनों ने तय किया था। परिस्थिति चाहे जो हो, यहाँ प्रत्येक व्यक्ति इस उत्सव की प्रतीक्षा करता है। यह उत्सव उन्हें मनोरंजन के साथ साथ खरीददारी एवं व्यापार के भरपूर अवसर प्रदान करता है।
उत्सव एक, रंग-रूप अनेक! यह हमारे लिए एक रहस्योद्घाटन था। कुछ किलोमीटर दूर स्थित गाँवों में एक ही उत्सव मोटे तौर पर एक सामान मनाया जाता है किन्तु प्रत्येक गाँव की अपनी संस्कृति एवं विशेषता इसे नए आयाम प्रदान करती है तथा इसे नए रंग में रंग देती है।
भगोरिया हाट में भील जनजातियों का आदिवासी नृत्य – एक विडियो
इस नृत्य को लहरी कहा जाता है क्योंकि इस नृत्य का प्रदर्शन करते भील युवक एवं युवतियां सागर की लहरों के समान लहराते हुए नृत्य करते हैं। युवक हाथों में धनुष बाण तथा युवतियाँ हाथों में एक संगीत वाद्य लेकर भगोरिया उत्सव का यह नृत्य करते हैं।
झाबुआ की हस्तनिर्मित गुड़ियाँ
आईये आपको एक और विडियो दिखाते हैं जो आपको मध्य प्रदेश के झाबुआ जिले में हस्त निर्मित गुड़ियों के विषय में जानकारी देती है। कपास एवं कपड़े से निर्मित ये गुड़ियाँ झाबुआ के आदिवासी जनजाति जा प्रतिनिधित्व करती हैं। भगोरिया उत्सव के दौरान, मेरे झाबुआ यात्रा के समय यह पुरस्कार विजेता कलाकार अपनी कला के विषय में जानकारी दे रहा है।
गुड़ियाँ बनाने की इस कला के विषय में और अधिक जानने के लिए यह पढ़ें – झाबुआ के सूक्ष्म मणकों के आभूषण।
भारत चित्ताकर्षक उत्सवों की धरती है। भारत में आप जहां भी जाएँ, आप को कई मनमोहक, अनोखे एवं मनोरंजक उत्सव दिखाई देंगे।
अनुराधाजी,
वाह…क्या बात हैं…आपने तो मुझे पंद्रह साल पीछे पहुॅंचा दिया, जब मेरी पदस्थापना झाबुआ जिले के थांदला में थी और लगातार तीन वर्षों तक मुझे भगोरिया पर्व नज़दीक से देखने का सुअवसर प्राप्त हुआ ।भगोरिया का इतनी बखुबीं से किया गया बेहद सुंदर वर्णन किसी को भी भील-आदिवासीयों के बीच ले जाने के लिये पर्याप्त हैं ।वास्तव में भगोरिया हाट यहां के आदिवासीयों का सार्वाधिक महत्वपूर्ण आनंदोस्तव होता हैं…..धुप के चष्मे लगाये युवक-युवतीयों के सामुहीक नृत्य देखते ही बनते हैं । सबसे अधिक मस्ती बिखरते है इनके वाद्ययंत्र ….
ढोल,मांदल,मंजीरे,बांस से इन्हीं के द्वारा बनाई गईं लंबी बांसुरी से जो मनमोहक मधुर संगीत निकलता है तो हर कोई थिरकने के लिये मज़बूर हो जाता हैं !
आगामी होली पर्व के अवसर पर “भगोरिया” पर बेहद सुंदर आलेख हेतू साधुवाद !
इच्छा तो मेरी भी है एक बार और आने की – देखिये कब अवसर मिलता है।