केरल की सर्प नौका दौड़ अर्थात स्नैक बोट रेस के विषय में मेरी प्रथम स्मृति मेरी पाठ्यक्रम पुस्तक से जुड़ी हुई है। मुझे स्मरण है, मैंने अपनी पुस्तक में सर्प के समान एक लंबी नौका का श्वेत-श्याम चित्र देखा था जिसका एक छोर सर्प के फन के समान उठा हुआ था। वह चित्र मेरी आँखों में स्वप्न के रूप में अमिट छाप छोड़ गया था। किसी दिन मैं केरल के अप्रवाही जल पर आयोजित इस सर्प नौका दौड़ को स्वयं अपनी आँखों से देखूँ। भले ही मेरे इस स्वप्न को साकार होने में कई दशक लग गए किन्तु मेरा स्वप्न सत्य अवश्य हुआ।
कुछ दिनों पूर्व मैं अलपुझा अर्थात अल्लेप्पी गई थी। मेरी इस यात्रा का उद्देश्य था ६७वीं. नेहरू नौका दौड़ देखना। साथ ही मैं हाल ही में आरंभ की गई चॅम्पियन्स बोट लीग की सर्वप्रथम दौड़ भी देखना चाहती थी।
केरल की सर्प नौका दौड़ का इतिहास
अलपुझा केरल का जलप्रधान जिला है। इस क्षेत्र में कई आड़ी –तिरछी अप्रवाही जल-धाराएं हैं जो अरब सागर से जुड़ी हुई हैं। यहाँ आप कहीं भी चले जाएँ, आप जल के समीप ही रहते हैं। जल यहाँ के निवासियों के जीवन का एक अभिन्न अंग है। जैसे हम अनजाने ही चलना सीख जाते हैं, ठीक वैसे ही यहाँ के निवासी अनजाने ही समुद्र के जल में तैरना सीख जाते हैं। यहाँ के प्रत्येक घर में कम से कम एक नौका अवश्य रहती है तथा परिवार के प्रत्येक सदस्य नौका खेना जानता है।
केरल के मंदिरों का जलोत्सव
परंपरा के अनुसार नौका दौड़ मंदिर के उत्सव का ही एक भाग था। भगवान की उत्सव मूर्ति को नौका में बिठाकर समुद्र के अप्रवाही जल पर शोभायात्रा निकली जाती थी। यह उत्सव ३ दिवसों तक जारी रहता था। भगवान की उपस्थिति में लोग नौका दौड़ में भाग लेते थे। इस क्षेत्र में कई प्रकार के जलोत्सव आयोजित किए जाते थे। प्राचीन काल में नौका दौड़ का समय पंचांग देखकर तय किया जाता था।
केरल के सर्प नौका दौड़ को मलयालम भाषा में वल्लम काली कहा जाता है। पारंपरिक रूप से इस स्पर्धा का आयोजन ओणम पर्व के आसपास किया जाता है।
युद्ध नौकाएं
लगभग ५००-६०० वर्षों पूर्व, इस प्रकार की नौकाओं का प्रयोग पड़ोसी राज्य के राजा आपस में युद्ध करने के लिए युद्ध नौकाओं के समान करते थे।
२० वीं. सदी के अवतार स्वरूप, तात्कालीन प्रधान मंत्री नेहरू ने इस नौका दौड़ की एक रोलिंग ट्रॉफी घोषित कर दी। तब से केरल के नौका दौड़ प्रतियोगिता में भाग लेने वाले समुदायों में नेहरू नौका दौड़ ट्रॉफी एक अत्यन्त महत्वपूर्ण आयोजन बन गया है।
चॅम्पियन्स बोट लीग
केरल के सर्प नौका दौड़ का नवीनतम अवतार है, चॅम्पियन्स बोट लीग। इसका शुभारंभ इस वर्ष २०१९ में किया गया है। लीग के रूप में कुल ९ टोलियाँ अर्थात दलों की नीलामी होगी। इस लीग का कुल समयकाल ३ मास है जब केरल के सम्पूर्ण जलक्षेत्र में नौका दौड़ प्रतियोगिताएं आयोजित किए जाएंगे।
इस प्रकार दौड़ का आयोजन करने पर अधिकतम लोगों को इस दौड़ में भाग लेने तथा देखने का आनंद प्राप्त हो सकेगा। दौड़ प्रतियोगिता उस समय आयोजित की जाती है जब केरल में अधिक पर्यटक नहीं होते। केरल राज्य के बाहर के लोगों को भी इस प्रतियोगिता में भाग लेने का अवसर प्राप्त हो, इसलिए २५ प्रतिशत टोलियाँ राज्य के बाहर से आमंत्रित करने की अनुमति होती है। मैंने उत्तर पूर्वी भारत के सदस्यों की ए टोली यहाँ देखी थी।
नौका दौड़ आयोजन को बढ़ावा देने के लिए, केरल पर्यटन विभाग शीघ्र ही एक नौका संग्रहालय का आरंभ करने की योजना बना रहा है।
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केरल सर्प नौका दौड़ की समयसारणी
नेहरू ट्रॉफी नौका दौड़ – इसका आयोजन अलपुझा के पुन्नमदा झील में अगस्त के दूसरे रविवार के दिन किया जाता है। इस वर्ष बाढ़ के कारण इस आयोजन को विलंबित किया गया है।
चंपाकुलम मूलम नौका दौड़ – इसका आयोजन भी अलपुझा जिले में किया जाता है। यह आयोजन अंबलपुजा में स्थित श्री कृष्ण मंदिर के उत्सव का एक भाग है। ऐसा माना जाता है कि जब मंदिर की मूर्ति को मंदिर तक लाया जा रहा था, वह कुछ क्षण के लिए यहाँ रुक गई थी। इसके दर्शन के लिए इसके चारों ओर नौकाएं एकत्र हो गई थीं। वही दृश्य अब तक दुहराया जाता है। यह कदाचित प्राचीनतम पारंपरिक दौड़ है। प्रत्येक वर्ष आयोजित किए जाने वाली प्रतियोगिताओं में यह वर्ष की प्रथम दौड़ भी है। यह वर्षा ऋतु के आरंभ में, जून/जुलाई में आयोजित की जाती है।
अरणमुला नौका दौड़ – पंपा नदी पर आयोजत की जाने वाली यह दौड़ अरणमुला पार्थसारथी मंदिर के वार्षिक उत्सव का भाग है जो प्राचीनतम जलोत्सवों में से एक है। इसका आयोजन श्री कृष्ण द्वारा पंपा नदी को पार करने की घटना की स्मृति में किया जाता है।
पईपड़ जलोत्सव – यह हरिपड़ के स्वामी सुब्रमन्य मंदिर में आयोजित ३ दिवसीय जलोत्सव है। ऐसा माना जाता है कि एयप्पा स्वामी की मूर्ति कायमकुलम झील से प्राप्त हुई थी। यह उत्सव उस मूर्ति के इस मंदिर के भीतर स्थापना किए जाने की स्मृति में आयोजित किया जाता है।
अन्य उत्सव
इंदिरा गांधी स्मारक नौका दौड़, एर्णाकुलम के मरीन ड्राइव में ओणम के समय आयोजित किया जाता है।
राष्ट्रपति ट्रॉफी नौका दौड़, कोलम के अष्टमुंडी झील में आयोजित की जाती है।
कलड़ा नौका दौड़ कोलम के कलड़ा नदी में आयोजित की जाती है।
कुमारकोम नौका दौड़
कानेट्टी श्री नारायण नौका दौड़ कोलम के करूनागपल्ली में आयोजित की जाती है।
थजथंगड़ी नौका दौड़, कोट्टायम
गोथुरुथ नौका दौड़ एर्णाकुलम के पेरियार नदी में आयोजित की जाती है।
पिरवोम नौका दौड़, पिरवोम
मैं प्रयास कर रही हूँ कि आपको इन आयोजनों की पंचांग तिथियाँ ढूंढकर दूँ जिससे आप स्वयं ही प्रत्येक वर्ष इनके समय की गणना कर सकें। तब तक के लिए आप केरल पर्यटन द्वारा अपने वेबस्थल ‘उत्सव समयसारिणी’ में प्रत्येक वर्ष प्रकाशित तिथियाँ देख सकते हैं।
कुछ छोटी नौका दौड़ आयोजनों की सूची आप यहाँ देख सकते हैं।
चॅम्पियन बोट लीग केरल का सर्वाधिक नवीन आयोजन है जिसमें विभिन्न दलों को राज्य स्तर पर भाग लेने की अनुमति प्रदान की जाती है।
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चूडन वल्लम अर्थात सर्प नौका
केरल की प्रसिद्ध नौकाएं, जिन्हें मैं यहाँ सर्प नौका कह रही हूँ, उन्हें मलयालम भाषा में चूडन वल्लम कहा जाता है। यह लकड़ी की बनी एक संकरी लंबी नौका है जिसकी लंबाई लगभग १००-१५० फीट तक होती है। इसके पृष्ठभागीय छोर की ऊंचाई २० फीट तक होती है जिससे यह नौका सर्प के समान दिखायी पड़ती है। इस प्रकार की नौकाओं के निर्माण की कला का उद्भव प्राचीन हिन्दू शास्त्र, स्थापत्य शास्त्र, से हुआ है। उदाहरण के लिए इसका पेंदा एक विशेष आकार की लकड़ी से ही निर्मित किया जाता है।
एक चूडन वल्लम एक समुदाय अथवा एक गाँव की अधिकारिक संपत्ति होती है। इन नौकाओं का अत्यन्त सम्मान से प्रयोग किया जाता है। इन पर चढ़ने से पूर्व लोग अपने जूते-चप्पल उतार देते हैं। उत्तम रखरखाव की सहायता से ये नौकाएं एक समुदाय में कई पीढ़ियों तक चलती रहती हैं।
इस नौका के निर्माण में अंजली लकड़ी का प्रयोग किया जाता है जो स्थानीय स्तर पर उपलब्ध है। नारियल के वृक्ष के प्राप्त लकड़ी से इसकी पतवारें निर्मित की जाती हैं। गाँव में आप ऐसी नौकाओं को देख सकते हैं। दौड़ से एक दिवस पूर्व इन नौकाओं को स्वच्छ किया जाता है। उस पर रंगरोगन कर उसे चमकाया जाता है। यह गाँव के सम्मान का प्रश्न जो है।
इनके अलावा अन्य भी कई नौकाएं हैं जो आकार में किंचित छोटी हैं। हमने स्त्रियों को इन छोटी नौकाओं पर सवार होकर प्रतियोगिता में भाग लेते देखा। पल्लीयोडम इन सर्प नौकाओं का एक अन्य नाम है।
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सर्प नौका दौड़ की टोलियाँ
१९५५ में अस्तित्व में आया यूनाइटेड बोट क्लब केरल का सर्वाधिक प्राचीन बोट क्लब है। हमने इस क्लब के दो सदस्यों, श्री सुनील एवं श्री प्रमोद से चर्चा की। उन्होंने हमें बताया कि यूनाइटेड बोट क्लब ने १४ बार नेहरू बोट ट्रॉफी जीती है, जिसमें ३ बार लगातार अनवरत ३ वर्षों तक जीती है। २०१३ उनके लिए विशेष है क्योंकि उस वर्ष उनका नेतृत्व एक स्त्री, हरिता अनिल ने किया था। उन्होंने हमें नौका दौड़ के लिए एक टोली की संरचना कैसी होनी चाहिए, यह समझाया।
एक टोली में ११० तक सदस्य हो सकते हैं। उनमें से ८५ सदस्य चप्पू चालक होते हैं जिन्हे तुजकर कहा जाता है। २ से ३ किलो भार के छोटे छोटे चप्पुओं द्वारा वे नौका खेते हैं।
५ सदस्य नौका के दोनों छोर से नौका की दिशा तय करते हैं। इन्हें वलियवीडु कहा जाता है। उनके चप्पू लंबे तथा १५ किलो तक भारी हो सकते हैं।
नौका में ११ संगीतज्ञ होते हैं जिन्हे तजकर कहा जाता है। उनमें २ सदस्य ढोल बजाते हैं तथा ९ सदस्य नौका गीत गाकर अन्य सदस्यों की हिम्मत बढ़ाते हैं। अपने सदस्यों को प्रोत्साहित करने के लिए जो नौका गीत वे गाते हैं, उसे वंचिपट्टु कहा जाता है। नौका पर सवार सदस्य विभिन्न क्षेत्रों से आते हैं। कुछ किसान तो कुछ मछुआरे तथा कुछ विद्यार्थी तो कुछ नौकरी-धंधे में संलग्न हो सकते हैं। सर्व सदस्य १८ से ३० वर्ष की आयु सीमा के मध्य होते हैं। कुछ अतिरिक्त सदस्य भी होते हैं जो किसी विपरीत परिस्थिति में किसी सदस्य के विकल्प के रूप में उपस्थित होते हैं।
ताल
इन नौकाओं की ताल देखते ही बनती है। इनका खरा अनुभव प्राप्त करने के लिए इन्हे प्रत्यक्ष देखना आवश्यक है। आप सोच में पड़ जाएंगे कि वे वास्तव में नृत्य कर रहे हैं या युद्धाभ्यास का खेल खेल रहे हैं।
प्रतियोगिता से लगभग एक मास पूर्व से विभिन्न दलों का पूर्वाभ्यास आरंभ हो जाता है। वे प्रातः ३ घंटे तथा दोपहर के समय ३ घंटों तक अभ्यास करते हैं। इस के अंतर्गत वे केवल उत्तम तादाम्य के साथ नौका खेने का ही अभ्यास नहीं करते, बल्कि कसरत द्वारा शक्ति एवं आंतरिक बल में वृद्धि भी करते हैं। कसरत करने के लिए वे दौड़ते हैं, भारोत्तोलन करते हैं तथा योग भी करते हैं।
प्रतियोगिता से पूर्व वे अपनी नौका को सज्ज करते हैं। प्रतियोगिता से पूर्व जब हमने चारों ओर दृष्टि दौड़ाई तो हमने देखा कि एक टोली अपने पतवारों को चमका रही थी तो दूसरी टोली अपनी नौका को रंग-रोगन देने का कार्य पूर्ण कर रही थी। एक टोली अपने प्रशिक्षक, एक सेवा निवृत्त सेना कप्तान, से प्रतियोगिता के विषय में कुछ बारीकियाँ समझ रही थी। अपने गाँव के चारों ओर स्थित अप्रवाही जल पर इन टोलियों को नौका दौड़ में भाग लेते देखना अत्यन्त आनंद की अनुभूति है।
दौड़ प्रतियोगिता सम्पन्न होने के पश्चात सारे प्रतियोगी जल में छलांग लगाते हुए ऊंचे स्वरों में अपने ईश का नामोच्चारण करते हैं, जैसे आरपो-रोरो, स्वामी आयप्पा अथवा जय श्री राम इत्यादि।
वल्लम काली अनुष्ठान अर्थात सर्प नौका दौड़ प्रतियोगिता
यद्यपि सर्प नौका दौड़ अब व्यावसायिक खेल का रूप लेने लगी है तथापि एक पारंपरिक खेल होने के कारण यह इस धरती के संस्कारों से अधिक दूर नहीं जा सकती। या कहूँ, यहाँ के जल के संस्कारों से भिन्न नहीं हो सकती है।
प्रतियोगिता के दिन, सर्व टोलियाँ प्रातः ६:३० बजे मंदिर में दर्शन के लिए जाते हैं। सभी दल अपने अपने मंदिर में जाते हैं। जैसे यूनाइटेड बोट क्लब के सदस्य पनेक्कल शिव मंदिर जाते हैं। तत्पश्चात वे गिरिजाघर जाते हैं। इसके पश्चात ११ बजे तक वे स्वास्थ्य से परिपूर्ण स्वल्पाहार ग्रहण करते हैं। दोपहर का भोजन करने के पश्चात वे दोपहर २ बजे तक वल्लम काली अर्थात नौका दौड़ प्रतियोगिता के लिए सज्ज हो जाते हैं।
उद्घाटन समारोह के समय पारंपरिक ढोल बजाए जाते हैं। कथकली एवं बाघ नर्तक नौकाओं पर नृत्य करते हैं। दर्शकों के समक्ष ट्रॉफी का अनावरण किया जाता है। एक नौका पर रखे मंदिर में पूजा अर्चना की जाती है। चारों ओर उत्साह एवं उत्सव का वातावरण आकाश के रंगों को आत्मसात करते हुए हमें आत्मविभोर करने लगता है।
अलपुझा के पुन्नमदा झील के दोनों ओर दर्शकों की कतार लग जाती है। १.२५ किलोमीटर लंबे जलमार्ग को पार कर नौकाएं झील में स्थित नेहरू टापू तक पहुंचते हैं।
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केरल की नौका दौड़ प्रतियोगिता के जादू का दर्शन
सर्प नौकाओं को सर्प के समान चपलता व गति से आगे बढ़ते देखना किसी जादू से कम नहीं है। तजकरों के गीत एवं संगीत अन्य ध्वनियों को मंद कर देते हैं। लयबद्ध चलते चप्पू एक साथ जब जल को काटते हुए उसे उछालते हैं वह दृश्य किसी गतिमान गद्य के समान प्रतीत होता है।
नौका के सभी सदस्यों के परिधानों के रंग कुछ इस प्रकार होते हैं मानो उनके रंग आपस में ही प्रतियोगिता कर रहे हों। यह नौका दौड़ प्रतियोगिता कौन जीतेगा अथवा कौन हारेगा, एक दर्शक के रूप में मुझ पर इसका कोई प्रभाव नहीं पड़ने वाला था। मेरी तो केवल इतनी ही अभिलाषा थी कि जल पर बजते किसी संगीत के समान इन नौकाओं को ऊपर-नीचे अठखेलियाँ करते देख सकूँ। चारों ओर स्थित नारियल के वृक्षों के संग मैं भी उनकी लंबी लंबी उछालों को देखने का आनंद उठा सकूँ।
अलपुझा में चॅम्पियन बोट लीग तथा नेहरू नौका दौड़
पोंनुमदा झील में नेहरू नौका दौड़ प्रतियोगिता के दिन वह स्थान लोगों एवं रेड़ी वालों से भरा हुआ था। रेड़ी वाले भिन्न भिन्न प्रकार की सीटियाँ एवं भोंपू बिक्री कर रहे थे। उस दिन यह प्रतियोगिता विशेष थी क्योंकि नेहरू नौका दौड़ एवं चॅम्पियन बोट लीग दोनों का आयोजन एक ही स्थान पर होने जा रहा था। प्रसिद्ध क्रिकेट खिलाड़ी सचिन तेंडुलकर इस आयोजन के मुख्य अतिथि थे। सचिन को एक नौका में सवार होकर उपस्थित प्रशंसकों का अभिवादन स्वीकार करते देख वही दर्शक बावले हुए जा रहे थे।
झील में रंग बिरंगे पताकाओं को लगाकर नौका दौड़ का जलपथ अंकित किया गया था। दर्शकों एवं झील के मध्य नारियल के वृक्षों की पंक्ति मानो आपस में ही प्रतियोगिता कर रहे हों, कौन इस दौड़ का अधिक आनंद उठाएगा। झील का जल एवं उसके चारों ओर स्थित हरे-भरे नारियल के वृक्ष हमें यथार्थ जीवन के कठोर सत्य से दूर लिए जा रहे थे। इन पर चार चाँद लगा रहे थे पंक्ति में खड़ी नौकाएं।
श्रेष्ठता का अभ्यास
प्रातःकाल ही सभी छोटी-बड़ी नौकाएं झील में उतर गई थीं। झील में एक स्थान से दूसरे स्थान तक जाते हुए अधिकतर प्रतियोगी दोपहर में आयोजित होने वाली प्रतियोगिता का अभ्यास कर रहे थे। उनके साथ ही झील में जेट स्की तथा मोटरबोट थीं। साथ ही कई बड़ी नौकाएं थीं जो अतिमहत्वपूर्ण एवं गणमान्य व्यक्तियों सहित टिकटधारी दर्शकों को तट से टापू पर ले जा रही थीं। उनमें से कुछ के साथ अपने सुरक्षा कर्मी भी थे जो सम्पूर्ण आयोजन का जायजा ले रहे थे।
लगभग २ बजे रोमांच आरंभ होने लगा। सभी नौकाओं को १.२५ किलोमीटर तक जाने में ४ से ५ मिनटों का समय लगता है। आप कहाँ खड़े हैं यह निर्धारित करता है कि आप दौड़ का कौन सा भाग देखने वाले हैं। सौभाग्य से मैं अंत रेखा के समक्ष ही बैठी थी। अतः मुझे कई दौड़ों के रोमांचक अंत का आनंद उठाने का अवसर प्राप्त हुआ।
लयबद्ध रीति से चप्पू चलाकर जलसतह को काटते हुए जैसे ही नौकाएं अंत रेखा की ओर बढ़ने लगीं, चारों ओर उत्तेजना का वातावरण हो गया। दर्शक अपने इच्छित दल का उत्साह वर्धन कर रहे थे। सम्पूर्ण प्रक्रिया कुछ क्षणों में ही समाप्त हो जाती है। पलक झपकायी तो आप कुछ देख नहीं पाएंगे। किन्तु उत्साह एवं उत्तेजना इतनी शीघ्र समाप्त नहीं होती। विजयी होने का उत्सव दौड़ समाप्त होने के पश्चात भी बहुत देर तक जारी रहता है।
प्रमुख दौड़ों के मध्य अन्य प्रतियोगिताओं का आयोजन किया जाता है। जैसे स्त्रियों की नौका दौड़ जिसमें स्त्रियाँ रंगबिरंगी साड़ियाँ धारण कर नौकाएं खेती हैं।
इस प्रतियोगिता के विजयी थे ट्रापिकल टाइटन। इनके विजय के समान उनका विजयोत्सव भी उतना ही मनोरंजक था।
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केरल नौका दौड़ प्रतियोगिता देखने के लिए कुछ यात्रा सुझाव
नेहरू नौका दौड़ अगस्त के दूसरे रविवार को आयोजित की जाती है। अन्य प्रतियोगिताओं के लिए केरल पर्यटन का वेबस्थल देखें
प्रतियोगिता के टिकट ऑनलाइन उपलब्ध हैं। अन्यथा प्रतियोगिता स्थल से भी आप टिकट क्रय कर सकते हैं। प्रतियोगिता के टिकट १०० रूपये से लेकर ३००० रुपयों तक हैं। ३००० रुपयों का टिकट लेकर आप अतिविशिष्ट व्यक्तियों के साथ टापू पर बैठकर दौड़ देख सकते हैं।
यह स्थान अत्यन्त भीड़-भाड़ भरा होता है। अतः भीड़ का सामना करने के लिए सज्ज हो जाईए।
प्रतियोगिता स्थल पर मूलभूत खाद्य पदार्थ उपलब्ध हैं। केरल का सर्वप्रसिद्ध खाद्य पदार्थ, ‘केले के चिप्स’ केरल में हर ओर उपलब्ध हैं।