दीवार द्वीप – गोवा की मांडवी नदी में प्रकृति एवं धरोहर का आनंद

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गोवा में पक्षी दर्शन के लिए मेरे सर्वाधिक प्रिय स्थलों में से एक है यह दीवार द्वीप। यह गोवा के मांडवी नदी के मुहाने पर स्थित दो द्वीपों में से एक है। रिबंदर अथवा पुराना गोवा से द्वीप के इस छोर पर पहुँचने के लिए फेरी नौका ही एकमात्र साधन है। यूं तो यह एक साधारण फेरी नौका है जो लोगों एवं उनके वाहनों को मुख्य भूमि से द्वीप तक ले जाती है।

फेरी यात्रा के दोनों छोरों का जीवन अत्यंत भिन्न है। ऐसा प्रतीत होता है मानो हम एक भिन्न विश्व में प्रवेश कर रहे हों। नगरी परिवेश के प्रत्येक चिन्ह को पीछे छोड़ते हुए हम दीवार द्वीप के शांत एवं निर्मल ग्रामीण वातावरण में प्रवेश करते हैं। द्वीप पर उतरते ही गांवों की ओर एक संकरा मार्ग जाता है जिसके दोनों ओर धान के खेत एवं तालाब हैं। प्रातःकाल एवं संध्या के समय आप यहाँ लोगों को खेतों में कार्य करते तथा जल में मछली पकड़ते देख सकते हैं।

दीवार द्वीप को ले जाती फेरी नाव
दीवार द्वीप को ले जाती फेरी नाव

मैं दीवार द्वीप में कई बार भ्रमण कर चुकी हूँ। अधिकांशतः हम द्वीप को घेरे हुए मैंग्रोव (समुद्री/ खारे पानी के किनारे पनपनेवाली झाड़ियाँ) के चारों ओर पदभ्रमण करते तथा केकड़ों एवं अन्य जीवों को ढूंढते थे। कभी पक्षियों को ढूंढते एवं उनका पीछा करते थे। एक बार मुझे प्रसिद्ध वेलनेस रिज़ॉर्ट देवाया द्वारा भोजन हेतु आमंत्रित किया गया था। उस समय मैने द्वीप के दूसरे छोर में भी भ्रमण किया था। एक बार मैं गोवा के अप्रवाही जल पर सवारी के अभियान में भाग ले रही थी। उस समय मुझे बॉलीवूड के प्रसिद्ध अभिनेता एवं उनकी पत्नी द्वारा संचालित एक अप्रतिम रिज़ॉर्ट में कुछ समय व्यतीत करने का भी अवसर प्राप्त हुआ था।

एक समय हम केवल गाड़ी में बैठकर दीवार द्वीप की सड़कें नाप रहे थे। जब भी प्रकृति के किसी मनमोहक दृश्य पर हमारी दृष्टि पड़ती, हम वहीं रुक जाते। हमने रुक रुक कर द्वीप के सुंदर रंगीन घरों को भी देखा।

गोवा की मांडवी नदी
गोवा की मांडवी नदी

एक बार मैं द्वीप पर आयोजित प्रसिद्ध वार्षिक उत्सव, बोंडेरम उत्सव का आनंद उठाने यहाँ आई थी। यह वर्षा का उत्सव प्रत्येक वर्ष अगस्त मास में आयोजित किया जाता है।

इस बार मैंने दीवार द्वीप के कुछ प्राचीन धरोहरों के दर्शन करने का निश्चय किया। दीवार द्वीप में मैंने जिन स्थलों एवं धरोहरों के दर्शन किये, उन्हे आपसे बांटने के लिए यहाँ प्रस्तुत कर रही हूँ।

दीवार द्वीप का इतिहास

दीवार शब्द की व्युत्पत्ति देववाड़ी शब्द से हुई है जिसका अर्थ है देव की वाड़ी अथवा वह स्थान जहां देव निवास करते हैं। मौखिक इतिहासों के अनुसार दीवार द्वीप मंदिरों से भरा स्थल था तथा यहाँ लोग निवास नहीं करते थे। यह पूर्ण रूप से एक तीर्थ स्थल था। द्वीप के दूसरी ओर एक गाँव है जिसका नाम अब बिचोली है। इसका भूतपूर्ण नाम भटग्राम था। तो क्या मंदिरों के पुजारी इस द्वीप पर रहते थे। कदाचित!!

गोवा का दीवार द्वीप
गोवा का दीवार द्वीप

दीपवाड़ी नाम कालांतर में दिवाड़ी बन गया। यहाँ के स्थानीय निवासी इसे अब भी दिवाड़ी कहते हैं। 16 वीं. शताब्दी के मध्य में जब पुर्तगाली यहाँ आए तथा इस द्वीप पर आधिपत्य स्थापित किया तभी से इस सुन्दर द्वीप का नाम अपभ्रंशित हो कर दीवार द्वीप हो गया। वास्तव में जब पुर्तगालियों ने गोवा में पदार्पण किया था तब सर्वप्रथम दीवार द्वीप पर ही आधिपत्य स्थापित किया था। इसके लिए उन्होंने यहाँ के कई प्राचीन मंदिरों को नष्ट किया था। सप्तकोटेश्वर मंदिर उनमें प्रमुख है। पूर्तगलियों से रक्षण करने के लिए स्थानीय निवासी इस मंदिर की प्रतिमा को जल के दूसरी ओर स्थित हिंडले (नारवे) गाँव में ले गए जहां 17 वीं. शताब्दी में शिवाजी महाराज ने उनके लिए मंदिर बनाया था। कई मायनों में यह गोवा के पीठासीन देव हैं।

सप्तकोटेश्वर, यह शब्द 7 कोटी अर्थात 7 करोड़ से उत्पन्न है। सांकेतिक रूप से इसका अर्थ है कि इस मंदिर में अनेक तपस्वियों ने आराधना की थी। यहाँ के अन्य मंदिर है, गणेश मंदिर, महामाया मंदिर तथा द्वारकेश्वर मंदिर।
वर्तमान में दीवार में तीन प्रमुख गाँव हैं। पियादेद, मलार तथा नारोआ।

दीवार नद-द्वीप के मंदिर

हम जब दीवार द्वीप में भ्रमण कर रहे थे, मेरी दृष्टि सतत इस मनोरम द्वीप में चारों ओर मंदिरों के चिन्हों को खोज रही थी। मुझे मेरे प्रयास में कुछ सफलता भी प्राप्त हुई।

शक्ति गणेश मंदिर

चर्च ऑफ़ पुर लास्य ऑफ़ पायटी
चर्च ऑफ़ पुर लास्य ऑफ़ पायटी

पियादेद में, एक पहाड़ी के शीर्ष पर एक गिरिजाघर है जिसका नाम है, ‘आवर लेडी ऑफ पाइटी’। इसके अग्र भाग की भित्तियों पर गोवा के उन निवासियों के चित्र हैं जो ईसाई धर्म प्रचार के लिए गोवा से श्रीलंका में स्थित जाफना गए थे। गिरिजाघर के एक ओर कब्रस्तान है। यह वही कब्रस्तान है जहां किसी समय गणेश मंदिर था। आप इस कब्रस्तान के भीतर प्राचीन गणेश मंदिर का तोरण अब भी देख सकते हैं। यह तोरण इस मंदिर के गर्भगृह का भाग था।

पहाड़ी के शीर्ष से घुमावदार मांडवी नदी का दृश्य अत्यंत लुभावना है। मार्ग से नदी के इस घुमाव को कदाचित आप ढूंढ ना पाएं। इस दृश्य का आनंद लेने के लिए आपको मार्ग से किंचित दूर जाकर ऊपर उठकर देखना पड़ेगा। मंदिर परिवर्तित गिरिजाघर की भित्तियों के ऊपर खड़ी होकर मैंने यह दृश्य देखा था।

शक्ति गणेश मंदिर - दीवार
शक्ति गणेश मंदिर – दीवार

मेरे दाहिनी ओर चटक पीले एवं गुलाबी रंग में रंगा एक उजला मंदिर झांक रहा था। अतः हम पहाड़ी से नीचे उतरते हुए उसकी ओर बढ़े। कुछ दूरी पर हमें एक सुंदर जलद्वार दिख रहा था। एक कच्चा मार्ग हमें एक छोटे से मंदिर की ओर ले आया जो मूल पुरुष अर्थात राखणदार को समर्पित है। राखणदार वह देवात्मा है जो हमारा रक्षण करते हैं। वे बहुधा गाँव के पूर्वज होते हैं। मंदिर से एक तल नीचे, मार्ग के उस पार, एक बड़ा मंदिर था जो अपेक्षाकृत नवीन प्रतीत हो रहा था। वहाँ लगे एक सूचना पटल के अनुसार वह शक्ति गणेश मंदिर था।

गणपति मूर्ति - शक्ति गणेश मंदिर
गणपति मूर्ति – शक्ति गणेश मंदिर

ठेठ समकालीन गोवा पद्धति में निर्मित इस मंदिर के भीतर काली शिला में बनी गणेशजी की अप्रतिम मूर्ति है। मंदिर के पुजारी ने मुझे बताया कि यह नवनिर्मित मंदिर है तथा प्रतिमा भी नवीन है। गणेशजी की मूल प्रतिमा पुर्तगाली आततायियों की यातनाओं के रहते अब फोंडा तालुका के खंडोला में विस्थापित है।

हनुमान मंदिर

हनुमान मंदिर - दीवार द्वीप, गोवा
हनुमान मंदिर – दीवार द्वीप, गोवा

एक तल और नीचे आने पर आपको एक छोटा मंदिर दृष्टिगोचर होगा जो हनुमानजी को समर्पित है। उत्कीर्णित स्तंभों व उत्कीर्णित मंच युक्त श्वेत रंग का यह सुंदर मंदिर पारंपरिक वास्तुशैली में निर्मित है। मंदिर के गर्भगृह के भीतर स्थित हनुमानजी की प्रतिमा श्वेत संगमरमर में निर्मित है, वहीं मंदिर के बाहर काले रंग के एक मंच पर स्थित उनकी प्रतिमा काली शिला द्वारा निर्मित है। इसी काले रंग की प्रतिमा पर भक्तगण तेल चढ़ाते हैं।

प्राचीन बनयान पेड़ - दीवार द्वीप
प्राचीन बनयान पेड़ – दीवार द्वीप

मंदिर के बाहर एक विशाल बड़ का वृक्ष है। इसके तने पर लिपटे पवित्र धागों को देख इस तथ्य का आभास होता है कि इस वृक्ष की पूजा की जाती है।

नारोआ के १०८ मंदिर एवं पोरणे तीर्थ तली या कुंड

दीवार द्वीप का प्राचीन कुंड
दीवार द्वीप का प्राचीन कुंड

पोरणे तीर्थ का अर्थ है प्राचीन तीर्थस्थल। यह सप्तकोटेश्वर मंदिर का मूल स्थान है जो कदंब राजाओं के कुलदेवता थे। कदंब साम्राज्य के सिक्कों एवं ताम्रपत्र आलेखों में इस मंदिर का उल्लेख प्राप्त होता है। इस मंदिर को सर्वप्रथम उन्ही बहमानी राजाओं ने नष्ट किया था जिन्होंने १४ वीं. शताब्दी में इस्लाम धर्म को अपनाया था। तत्पश्चात १४ वीं. शताब्दी के अंत में विजयनगर के सम्राटों ने इस मंदिर का पुनर्निर्माण करवाया था। सन् १५४० में पुर्तगालियों ने इस मंदिर को पूर्णतः ध्वस्त कर दिया था।

यह संरचना गोवा के कदंब वंश के काल की है जो आपको १०-१२वीं. सदी में ले जाएगी। यह अब एक पुरातात्विक स्थल है।

१०८ पोरणे तीर्थ - दीवार द्वीप
१०८ पोरणे तीर्थ – दीवार द्वीप

अब जो संरचना यहाँ दिखाई देती है, वह एक अनियमित आकार के जलकुंड की है जिसके चारों ओर मंदिर के समान आले हैं। ये कुल १०८ आलें अथवा सूक्ष्म मंदिर हैं। जलकुंड के चारों और में जल तक पहुँचने के लिए असमतल सीढ़ियाँ हैं। लैटेराइट शिला में निर्मित यह जलकुंड अपने खंडहर रूप में भी अत्यंत सुंदर प्रतीत होता है। मूलतः इसे कोटी तीर्थ कहा जाता था, परंतु इसे अब पोरणे तीर्थ कहा जाता है।

मंदिर के भीतर एवं पार्श्व भित्तियों पर स्थित आलों के भीतर कोई भी मूर्ति नहीं है। तथापि, यदि आप इन्हे समीप से देखेंगे तो आपको इन आलों के भीतर छिद्र दृष्टिगोचर होंगे जो यह दर्शाते हैं कि किसी समय इन आलों के भीतर मूर्तियाँ स्थापित रही होंगी। कुंड के चारों ओर भ्रमण करते समय मैं बीच बीच में इन आलों के भीतर हाथ फिरा रही थी। अपने मानस पटल में उन मूर्तियों की काल्पनिक चित्र प्रस्तुत करने का प्रयास कर रही थी जो कभी इन १०८ सूक्ष्म मंदिरों में स्थापित रहे होंगे। क्या वे शिवलिंग थे? हो सकते हैं क्योंकि भगवान शिव यहाँ के प्रमुख देव हैं। अथवा क्या यहाँ भगवान शिव के गणों की प्रतिमाएं थीं या हिंदू देव-देवताओं का सम्मिश्रण था?

१०८ मंदिर - दीवार द्वीप
१०८ मंदिर – दीवार द्वीप

यहाँ भारतीय पुरातात्विक सर्वेक्षण विभाग का एक सूचना पटल लगाया हुआ है जिस पर इस स्थान के विषय में किंचित जानकारी दी गई है। इसके पार आपको स्वयं ही अनुमान लगाना होगा अथवा जानकारी एकत्र करनी होगी।

हटकेश्वर महादेव देवस्थान

पोरणे तीर्थ से आगे बढ़ने पर आप अप्रवाही जल के एक और प्रसार तक पहुंचेंगे। यहाँ से आपको इस छोटे मंदिर के सिवाय दूर दूर तक कोई संरचना दृष्टिगोचर नहीं होगी। इसके एक किनारे पर केवल यह हटकेश्वर मंदिर स्थित है। सम्पूर्ण दृश्य अत्यंत मनोहारी प्रतीत होता है।

हटकेश्वर महादेव मंदिर - दीवार द्वीप
हटकेश्वर महादेव मंदिर – दीवार द्वीप

इस दुमंजिली इमारत के दूसरे तल पर मंदिर स्थित है। इसका उद्देश्य कदाचित मंदिर को सम्पूर्ण वर्ष जल स्तर से ऊपर रखने की मंशा रही होगी। मंदिर के भीतर एक छोटे से मंच पर एक छोटा सा शिवलिंग स्थापित है। साथ ही नंदी की प्रतिमा बाहर स्थापित है। प्रथम तल से सम्पूर्ण दृश्य अत्यंत चित्ताकर्षक है। सघन हरियाली से घिरी अप्रवाही जल की शांत नदी के ऊपर अनेक पक्षी उड़ रहे थे। दूर दूर तक कोई व्यक्ति दिखाई नहीं दे रहा था।

मंदिर के ठीक सामने शमशान घाट का मैदान है। प्रत्येक वर्ष इस मैदान में जात्रा का आयोजन किया जाता है। मुझे बताया गया कि इसी स्थान पर मुंडन जैसे संस्कारों का भी आयोजन किया जाता है।

मैं यहाँ दीपावली के पर्व से कुछ दिनों पश्चात ही आई थी। चारों ओर दीपावली उत्सव मनाने के चिन्ह स्पष्ट दृष्टिगोचर हो रहे थे।

हमने श्वेत एवं नीले रंग में रंगी एक सुंदर बेलनाकार संरचना देखी। मेरा प्रथम अनुमान था कि कदाचित यह संरचना एक पुराना कुआं है। किन्तु तालाबंद होने के कारण हम यह पता नहीं कर पाए कि यह संरचना क्या है। इसके एक भाग पर ईसाई चैपल अवश्य बनाया गया है।

नवीन सप्तकोटेश्वर मंदिर

हम एक फेरी नौका द्वारा द्वीप के उस पार नारवे गाँव पहुंचे। यह सप्तकोटेश्वर मंदिर की नवीन भूमि है।

हम जैसे ही द्वीप के उस पार पहुंचे, मैंने चटक चमकीले रंगों में रंगे कई मंदिर देखे। उनमें से एक था महामाया मशान देवी मंदिर। मेरे अनुमान से यह उस शवदाह गृह के प्रांगण में है जिसे हमने उस पार से देखा था। शांतादुर्गा पिलेर्णकरीण मंदिर एवं रवलनाथ मंदिर भी थे। इसके पश्चात हम जहां पहुंचे वहाँ से हमें सप्तकोटेश्वर मंदिर का शीर्ष दृष्टिगोचर हो रहा था।

नवीन सप्तकोटेश्वर मंदिर - नदी के उस पार
नवीन सप्तकोटेश्वर मंदिर – नदी के उस पार

यह मंदिर पूर्णतः नवीनीकरण प्रक्रिया के अधीन है। यहाँ के देव की पूजा अर्चना अभी सप्तकोटेश्वर मंदिर परिसर में स्थित भैरव मंदिर के भीतर की जाती है। मैंने भगवान के समक्ष प्रार्थना की, तत्पश्चात मंदिर को सूक्ष्मता से निहारना आरंभ किया। १६६८ ईस्वी में शिवाजी महाराज द्वारा निर्मित इस मंदिर की वास्तुकला ठेठ गोवा शैली में है। मंडप के भीतर मोटे स्तम्भ तथा गर्भगृह की ओर खुलते कई द्वार इस शैली की विशेषताएँ हैं।

सप्तकोटेश्वर मंदिर कुंड
सप्तकोटेश्वर मंदिर कुंड

यद्यपि भगवान की प्रतिमा भैरव मंदिर के भीतर स्थानांतरित की गई है, तथापि मुख्य शिवलिंग अब भी मंदिर के भीतर ही स्थित है। शिवलिंग के समक्ष एक दीप प्रज्ज्वलित किया हुआ था। मंदिर के बाहर स्थित नंदी की प्रतिमा को एक वस्त्र द्वारा ढाँका हुआ था ताकि उसे निर्माण गतिविधी जनित क्षतियों से बचाया जा सके। मंदिर की बाहरी भित्तियों पर कावी कला के विभिन्न आकृतियों को परखा जा रहा था। मैंने अनुमान लगाया कि मंदिर की बाहरी भित्तियों को कावी कलाकृतियों से सजाये जाने की योजना है। कल्पना मात्र से मन प्रफुल्लित हो उठा। गोवा के प्राचीनतम मंदिर को गोवा की मूल कला द्वारा सज्जित करना, इससे उत्तम क्या हो सकता है।

आर्या दुर्गा मंदिर - गोवा
आर्या दुर्गा मंदिर – गोवा

इस मंदिर का जलकुंड अत्यंत मनमोहक है। पूर्णतः चौकोर आकार का यह जलकुंड शांत वातावरण में मंत्रमुग्ध कर देता है। चारों ओर फूलदार वृक्ष तथा मसालों के बाग हैं। मध्य में पत्थर का एक छोटा गोलाकार मंच है। मुझे बताया गया कि उत्सवों के दिनों में इस मंच पर भगवान को बिठाया जाता है।

जैन गुफ़ाएं

भारतीय पुरातात्विक सर्वेक्षण विभाग की सूचना पट्टिका के अनुसार मंदिर के समीप ही जैन गुफाएँ है। हमने इनके विषय में आसपास के लोगों से जानकारी एकत्र की तथा गुफा की ओर चलना आरंभ किया। मार्ग जलकुंडों के समीप से होकर जा रहा था। कुछ जलकुंडों में सुंदर कमल भी खिले हुए थे। हमने कई मसाले के बागों को भी पार किया। इनमें मुख्यतः सुपारी के वृक्ष थे जिनके तनों से लिपटी काली मिर्च की लताएं उसे चार चाँद लगा रही थीं। हमने कई घर देखे जो इन बागों के अंदर थे। वहाँ तक पहुँचने के लिए पक्के रास्ते भी नहीं थे।

जैन गुफ़ा में बाघ की मूर्ति
जैन गुफ़ा में बाघ की मूर्ति

हमने एक घर के समक्ष रुककर गुफा के मार्ग के विषय में अधिक जानकारी प्राप्त करने का प्रयत्न किया। वे लोग इतने निर्मल तथा उत्साही थे कि उनमें से एक सज्जन गुफा का मार्ग दिखाने के लिए हमारे साथ आ गये। एक सँकरे मार्ग से होते हुए हम एक छोटे झरने के समीप पहुंचे जिसके दोनों ओर दो प्राचीन गुफ़ाएं थीं। एक गुफा के ऊपर एक चौकी पर बाघ की आकृति उत्कीर्णित थी। हमें बताया गया कि रात्रिकाल में बाघ अब भी इस क्षेत्र में भ्रमण करते हैं। कभी कभी वे इस झरने का जल पीने भी आते हैं।

हमने दोनों गुफ़ाएं देखीं। भारतीय पुरातात्विक सर्वेक्षण विभाग की सूचना पट्टिका के अनुसार यहाँ कहीं ब्राह्मी अभिलेख भी हैं। किन्तु मैं इन्हे ढूंढ नहीं पायी। दक्षिण गोवा की रिवण गुफाओं अथवा समीप ही स्थित अर्वले गुफाओं से ये अपेक्षाकृत छोटे हैं।

कुछ ही दूरी पर एक और गुफा है। किन्तु वहाँ जाने के लिए कुछ दूर पदयात्रा करनी पड़ती। मैंने इसे किसी और दिन के लिए छोड़ दिया।

बिचोली के अन्य मंदिर

वापिस आते समय हम बिचोली के कुछ अन्य मंदिरों पर भी रुके। वे हैं –

वैताल मंदिर - बिचोलि गोवा
वैताल मंदिर – बिचोलि गोवा

वेताल मंदिर – यह एक सुंदर मंदिर है। इसके भीतर उससे भी सुंदर पंचधातु में निर्मित वेताल की विशाल प्रतिमा है।
वन देवी मंदिर – वेताल मंदिर के एक ओर वन देवी के दो मंदिर हैं। एक को छोटा एवं दूसरे को बड़ा मंदिर कहा जाता है। छोटे मंदिर के भीतर चांदी की एक अत्यंत छोटी व सुंदर प्रतिमा है।

वन देवी मंदिर - गोवा
वन देवी मंदिर – गोवा

यह वास्तव में मंदिर संकुल है जिसके भीतर अनेक मंदिर हैं। एक मंदिर के भीतर मुझे भगवान शिव का निराकार रूप दिखा जो ठीक वैसा ही था जैसा मैंने काणकोण के मलिकार्जुन मंदिर में देखा था।

मैंने सपने में भी कल्पना नहीं की थी कि मनोहारी दीवार द्वीप के सुंदर मंदिरों के दर्शन करते मैं अपना एक सम्पूर्ण दिवस बिता सकती हूँ।

आप भी अपने आगामी गोवा भ्रमण के समय दीवार द्वीप के नयनरम्य वातावरण में विचरण करने पर अवश्य विचार करें।

गोवा के नद-द्वीप दीवार के दर्शन के लिए यात्रा सुझाव

दीवार द्वीप का नैसर्गिक सौंदर्य
दीवार द्वीप का नैसर्गिक सौंदर्य

दीवार द्वीप पर आप फेरी नौका द्वारा ही जा सकते हैं। वहाँ जाने के लिए रिबंदर, पुराना गोवा तथा नेरवा इस तीन स्थानों से फेरी सुविधाएँ उपलब्ध हैं। ये सुविधाएं प्रातः ६ बजे से संध्या ८ बजे तक जारी रहती हैं।

घबराईए नहीं। आप इन फेरी नौकाओं पर अपनी गाड़ियों समेत जा सकते हैं। अतः आपको गाड़ियों की अतिरिक्त सुविधाओं की आवश्यकता नहीं होती।

यदि आप इस द्वीप के उत्तम दर्शन पाना चाहते हैं तथा इसकी सुंदरता का सच्चा अनुभव पाना चाहते हैं तो साइकल चलाते हुए यहाँ के मनोरम वातावरण को निहारने पर विचार करें। इसके संबंध में अधिक जानकारी आप गोवा पर्यटन के वेबस्थल से पा सकते हैं।

अनुवाद: मधुमिता ताम्हणे

2 COMMENTS

  1. दीवार द्वीप – गोवा की मांडवी नदी में प्रकृति एवं धरोहर का आनंद: आपका यह यात्रा का वृतांत पढ़कर गोवा का मन मे यह चित्रण था कि शायद वहां पर अधिकतर चर्च और बार ही होंगे, लेकिन आपके द्वारा इस सुंदर वृतांत को पढ़कर लगा कि वहां पर मंदिर भी काफी है, पहले के जमाने में शायद हमारे मंदिर बहुत भव्य रहते होंगे जो कि अधिकतर बाहर से आए हुए आक्रांताओ द्वारा खंडित कर दिए गए या पूर्णतः तोड़ दिए गए जो कि काफी दुखद है। आपके द्वारा पर्यटन का इतना सुंदर चित्रण करती है कि सब आंखों के सामने चलचित्र की भांति चल रहा हो। वैसे भी गोआ नैसर्गिक सुंदरता के लिए जाना जाता है इसी कारण पर्यटक वह खिंचा चला जाता है। ????????

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