झुंझुनू इतना संगीतमय शब्द है जो कानों में पड़ते ही संगीत घोलने लगता है। आँखें बंद कर झुंझुनू शब्द सुनें तो मानसपटल पर किसी शिशु का मन बहलाने वाला खनकता खिलौना, झुनझुना आ जाता है। यह शब्द आपने कुछ लोगों के उपनाम में भी देखा होगा। जी हाँ, झुंझुनवाला, जो गर्व से यह दर्शाते हैं कि उनका संबंध राजस्थान के इस छोटे से नगर झुंझुनू से है। मैंने इस नगर का नाम अपनी यात्रा इच्छा-सूची में तभी से सम्मिलित कर लिया था जब मैं उत्तर राजस्थान के शेखावाटी क्षेत्र के विषय में पढ़ रही थी।
झुंझुनू एक नगर के साथ एक जिला भी है। प्राचीन भारतीय साहित्यों में यह स्थान महाभारत के मत्स्य राज्य के एक भाग के रूप में दर्शाया गया है। ऐसा माना जाता है कि यह वही स्थान है जहां पांडवों ने, अपने अज्ञातवास के समय राजा विराट की राजसभा में विभिन्न पात्र निभाने से पूर्व, अपने अस्त्र-शस्त्र छुपाये थे।
इस स्थान का पिछला इतिहास देखा जाए तो इस स्थान पर चौहान वंश, इस्लामिक शासकों तथा अंततः शार्दूल सिंह ने राज किया था। शार्दूल सिंह उन राव शेख के वंशज हैं जिसने नाम पर इस स्थान का नाम शेखावाटी पड़ा।
झुंझुनू की रंगबिरंगी हवेलियाँ
शेखावाटी के अन्य नगरों के समान झुंझुनू भी अपनी रंगबिरंगी हवेलियों पर गर्व करता है। मैंने झुंझुनू की चित्ताकर्षक हवेलियों में से कुछ चुनी हुई हवेलियों के दर्शन किये थे। आपके लिए उनके नाम एवं उनकी कुछ जानकारी यहाँ दे रही हूँ:
मोदी हवेली
मोदी हवेली झुंझुनू नगर के मुख्य बाजार में स्थित है। देखा जाए तो बाजार हवेली से सटा हुआ है। बाजार में झुंझुनू पुस्तकालय तथा पुस्तकों की कुछ दुकानों को देख मुझे एक सुखद आश्चर्य हुआ। हवेली के एक ओर स्थित सीढ़ियों पर चढ़कर मैं हवेली के भीतर पहुंची।
लकड़ी के भव्य प्रवेश द्वार के ऊपर केसरिया रंग में गणेशजी की प्रतिमा थी। इस द्वार से प्रवेश करते ही मेरे समक्ष एक ठेठ शेखावाटी हवेली थी। इस समय तक मैंने इस प्रकार की अनेक हवेलियों के दर्शन किये थे। उन हवेलियों की संरचना तथा प्रारूप से मैं इतनी सहज थी कि इस हवेली में भी मैं बिना किसी सहायता के घूम सकती थी। इस हवेली की बैठक का प्रयोग अब भी जारी है। इसकी चित्रकारियों का रखरखाव उत्तम है।
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टिबड़ेवाल हवेली
प्रथम दृष्टि में श्री झबरमल टिबड़ेवाल हवेली अपेक्षाकृत नवीन हवेली प्रतीत हुई। मुझे शेखावाटी में देखी अधिकतर हवेलियों से यह हवेली किंचित भिन्न प्रतीत हुई। इसके भित्तिचित्र अत्यंत भिन्न हैं। मुझे ये किंचित आधुनिक प्रतीत हुए क्योंकि इनमें प्रयोग किये गए रंग ठेठ भारतीय ना होकर वैश्विक हैं। अन्य हवेलियों के भित्तिचित्रों से विपरीत ये भित्तिचित्र जटिल एवं विषयगत भी नहीं हैं। फिर भी चौक के भीतर इन्हे एक ठेठ शेखावाटी हवेली कहा जा सकता है।
टिबड़ेवाल झुंझुनू का प्रमुख व्यापारी परिवार है। हवेली के रखवाले ने मुझे बताया कि वे अब भी वर्ष में कम से कम एक बार झुंझुनू आते हैं। नवरात्रि में वे बहुधा यहाँ आते हैं।
झुंझुनू के अन्य दर्शनीय स्थल
सेठ मन्ना लाल खेतान मार्ग में तथा इसके आसपास भ्रमण करते समय मैंने नगर के कुछ ऐसे स्थल खोज निकाले जिनके विषय में अधिक लोग नहीं जानते। उनमें से कुछ इस प्रकार हैं:
सत्यनारायण मंदिर – प्रथम तल पर स्थित यह मंदिर एक हवेली का आभास देती है।
रंग-बिरंगी हवेलियाँ – मुझे यहाँ अनेक रंग-बिरंगी हवेलियाँ दृष्टिगोचर हुईं किन्तु मैं सबके नाम नहीं जान पायी।
मीरा अंबिका भवन अथवा खेतान भवन – यह १८८७ ई. में निर्मित यह हवेली ‘श्री अरविन्द डिवाइन लाइफ ट्रस्ट’ को १९८७ ई. में दान में दी गई थी। इस हवेली में सुंदर बाग हैं तथा भीतर वसतिगृह जैसी रूपरेखा है। एक ओर गणेश की प्रतिमा है जिसकी नियमित पूजा अर्चना की जाती है। जब हम यहाँ पहुंचे, दोपहर के भोजन का समय हो गया था। अतः इस हवेली की जानकारी देने के लिए यहाँ कोई भी उपस्थित नहीं था।
मनसा देवी मंदिर – एक पथरीली पहाड़ी के ऊपर स्थित श्वेत रंग का यह एक छोटा सा मंदिर है जो मनसा देवी को समर्पित है।
बंधे के बालाजी मंदिर – यह मंदिर हनुमानजी को समर्पित है।
मेड़तनी की बावड़ी – यह एक विशाल तथा प्रभावशाली बावड़ी है जिसका नाम शार्दूल सिंह की पत्नी मेड़तनी पर रखा गया है। रखरखाव के अभाव में इसे समीप से देख पाना कठिन है। इस लंबी बावड़ी में अनेक तल हैं जो अंततः एक कुएं तक पहुँचते हैं, ठीक वैसे ही जैसी रानी की वाव में देखा जा सकता है। आशा है कि स्थानीय प्रशासन इसे एक पर्यावरण धरोहर मानते हुए इसके रखरखाव की ओर ध्यान दें।
चिड़ावा पेढ़े – झुंझुनू नगर में ठेठ उत्तर भारतीय अथवा राजस्थानी भोजन मिलता है। एक शाकाहारी होने के कारण मुझे राजस्थान के सभी स्थानों में विस्तृत शाकाहारी थाली चखने का आनंद प्राप्त हुआ। नगर के समीप स्थित चिड़ावा अपने पेढ़ों के लिए प्रसिद्ध है। इसका आकार अत्यंत विचित्र है, बीच से बाहर की ओर उभरा हुआ तथा दोनों ओर अंगूठे से दबाया हुआ। झुंझुनू अथवा चिड़ावा से लाने के लिए यह एक उत्तम मिष्टान्न है।
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झुंझुनू का सती मंदिर
नगर का सर्वाधिक लोकप्रिय मंदिर है रानी सती मंदिर। मुझे यह ज्ञात था कि राजस्थान में अनेक सती मंदिर हैं किन्तु मैंने तब तक एक भी सती मंदिर के दर्शन नहीं किये थे। अतः जब मैं झुंझनु में उपस्थित थी, इस लोकप्रिय मंदिर के दर्शन करने की मेरी तीव्र इच्छा थी। बोलचाल की भाषा में सती का प्रचलित अर्थ है वह स्त्री जिसने अपने पति की मृत्यु के पश्चात उसकी चिता की अग्नि में स्वेच्छा से स्वयं को भी झोंक देने का निश्चय किया हो। यह सुनने अथवा बोलने में जितना आसान प्रतीत होता है, वास्तव में यह अत्यंत कठिन था। जो इस प्रथा का मर्म समझता है वही बता सकता है कि यह हर स्त्री के लिए संभव नहीं था। जिस स्त्री में इसे करने का सामर्थ्य था तथा इच्छाशक्ति थी वही सती हो पाती थी। इतिहास को खंगालें तो हमें ज्ञात होता है कि प्राचीनकाल में आक्रमणकारी सेना से बचने के लिए राज्य की स्त्रियाँ सती होती थीं। इसका उदाहरण है चित्तोरगढ़।
झुंझुनू के कुछ सती मंदिर देखने के पश्चात मैंने उनकी कथाएं पढ़ीं। ये सभी मंदिर उन ऐतिहासिक स्त्रियों को समर्पित हैं जिन्होंने कुछ सदियों पूर्व साहसपूर्ण काम किये थे। अधिकतर स्त्रियों ने अपने परिवार की रक्षा के लिए स्वयं युद्ध किया था तथा अपेक्षा से परे साहस का परिचय दिया था। मैं यह मानती हूँ कि अपने साहस के कारण वे अपने वंशजों के लिए अत्यंत पूजनीय हैं। सबसे सराहनीय तथ्य यह है कि उन सभी स्त्रियों को उनके स्वयं के नाम से जाना जाता है, ना कि उनके पति अथवा उनके परिवार के नाम से। उनके नाम के साथ ‘दादी’ शब्द लगाकर उन्हे आदर एवं स्नेह दोनों प्रदान किया गया है।
दोपहर के समय मैं बागड़ पहुंची जो शेखावाटी में मेरा विश्रामस्थल था। अतः संध्या के समय मैंने रानी सती मंदिर के दर्शन करने का निश्चय किया।
झुंझुनू का रानी सती मंदिर
मैंने झुंझुनू के रानी सती मंदिर के अनेक चित्र देखे थे। लगभग सभी चित्रों में मंदिर का अग्र भाग पिस्ता हरे रंग का था। मोबाईल के छोटे से परदे पर देखे इस मंदिर के चित्र से मंदिर के सही आकार का अनुमान लगाना किसी के लिए भी आसान नहीं है। जब मैं मदिर के इस अग्र भाग के समक्ष वास्तव में खड़ी हुई, इसके आकार ने मुझे भौंचक्का दिया। यह एक बहुत बड़े मंदिर का अत्यंत विशाल अग्र भाग था।
बाहर से मंदिर का केवल अग्र भाग ही दृष्टिगोचर है। भीतर छायाचित्रिकरण की अनुमति भी नहीं है। एक सुंदर ब्रज द्वार को पार कर मैंने मंदिर परिसर में प्रवेश किया। सामने के दृश्य को देख मैं चकाचौंध हो गई। मैं उत्तर भारत के सर्वाधिक स्वच्छ, सर्वोत्तम रखरखाव युक्त तथा सर्वाधिक भव्य मंदिरों में से एक के समक्ष खड़ी थी।
मुख्य मंदिर श्वेत संगमरमर में निर्मित है। जिन मंदिरों का नियमित रूप से रखरखाव किया जाता है उनकी प्राचीनता का सटीक अनुमान लगाना कठिन होता है। जहां तक भक्तों का प्रश्न है, मंदिर की प्राचीनता से अधिक मंदिर का रखरखाव उनके लिए अधिक प्रासंगिक है। अनेक छोटे मंदिरों के सामने से होते हुए हम मुख्य मंदिर की ओर जाते हैं। एक ही वंश की १३ सतियों को समर्पित १३ छोटे मंदिर हैं। एक सूचना पट्टिका पर स्पष्ट लिखा था कि मंदिर किसी भी प्रकार से सती प्रथा का समर्थन नहीं करता।
सामाजिक सती मंदिर
पुजारीजी से वार्तालाप करते समय मुझे पहली बार यह ज्ञात हुआ कि सती मंदिर किसी विशेष गोत्र अथवा समुदाय या समाज से संबंधित होते हैं। यह मंदिर अग्रवाल समाज के बंसल गोत्र से संबंधित है। वे इस समाज की दादी सती हैं। मूलतः गोयल परिवार की दादी सती का विवाह बंसल परिवार में हुआ था। मुझे ऐसा लगा कि स्वयं गोयल अग्रवाल परिवार की सदस्य होने के नाते मुझे इसकी जानकारी होनी चाहिए थी। किन्तु मैं इन तथ्यों से अनभिज्ञ थी।
त्रिशूल को आधार मान कर उसके चारों ओर एक मुखाकृति निर्मित की गई है। मैं सम्मोहित सी होकर सती के इस मुखड़े को मैं निहारने लगी। सामान्यतः सती मंदिरों में सती को मूर्ति रूप में नहीं दर्शाया जाता है। उन्हे एक त्रिशूल के रूप में प्रदर्शित कर शक्ति के रूप में पूजा जाता है। भक्तगण देवी के समक्ष बैठकर मेहंदी, हल्दी अथवा कुमकुम से स्वस्तिक का चिन्ह बनाते हैं तथा अपनी इच्छा व्यक्त करते हैं। मैंने भी देवी के समक्ष बैठकर स्वस्तिक बनाया तथा उन से उनकी दैवी ऊर्जा का किंचित अंश मात्र प्राप्त करने की इच्छा व्यक्त की।
दादी सती
इस मंदिर की दादी सती को द्वापर युग के अभिमन्यु की पत्नी नारायणी या उत्तरा का अवतार माना जाता है। इस युग में उनका विवाह तनधन से हुआ था जिसके पास एक ईर्ष्या योग्य अश्व था। हिसार के राजा की दृष्टि उस अश्व पर थी। इस अश्व को पाने की इच्छा से उसने तनधन के साथ युद्ध किया तथा उनका वध कर दिया। तत्पश्चात नारायणी ने राजा के साथ युद्ध किया, उसका एवं उसके पुत्र का वध किया तथा सती जाने का निश्चय किया जैसा कि उन्होंने अपने पिछले जन्म में कामना की थी।
सूर्यास्त होने को था। मैंने मंदिर के चारों ओर भ्रमण किया। मंदिर परिसर में कुछ छोटे मंदिर थे। एक मंच था जिस पर मात्रिकाओं के विभिन्न रूपों को दर्शाया हुआ था। यहाँ शक्ति मंत्रों द्वारा संध्या आरती की जाती है।
भादों मास की अमावस के दिन यहाँ वार्षिक मेला लगता है। मुझे बताया गया कि इस उपलक्ष्य में यहाँ इस क्षेत्र से लाखों भक्त आते हैं। विश्व में फैले झुंझुनू के मूल निवासी भी इस मेले में भाग लेने यहाँ वापिस आते हैं। मंदिर के विषय में अधिक जानकारी के लिए मंदिर का वेबस्थल देखें।
खेमी सती मंदिर
रानी सती मंदिर के दर्शन ने मुझे आत्मविभोर कर दिया था। दर्शन के पश्चात गाड़ी में बैठकर मैं अपने विश्रामगृह वापिस आने के लिए निकली। मार्ग में अचानक मेरी दृष्टि एक अन्य विशाल मंदिर पर पड़ी। मेरे गाड़ी चालक ने बताया कि यह खेमी सती मंदिर है। अंधकार छा चुका था, फिर भी मैंने मंदिर के दर्शन करने का निश्चय किया। आप कह सकते हैं कि मंदिर मुझे बुलावा भेज रहा था।
यह भी एक विशाल मंदिर है जिसे मंदिर वास्तुकला की ठेठ उत्तर भारतीय शैली में निर्मित किया गया है। भीतर जाकर मैं गर्भगृह की ओर बढ़ी। मैंने स्वयं को देवी के विभिन्न स्वरूपों से घिरा पाया जो गर्भगृह की ओर जाती भित्तियों पर बने आलों के भीतर स्थापित थे। मुख्य मंदिर के समक्ष दो पुजारी आरती कर रहे थे। मैं वहाँ बैठकर उस त्रिशूल को निहारने लगी जिसे अलंकृत कर मुखड़े का स्वरूप दिया गया था।
आरती के पश्चात पुजारीजी ने मुझे जानकारी दी कि यह दादी सती मंदिर गोयल गोत्र के व्यक्तियों से संबंधित है। तब मुझे समझ आया कि क्यों मैं इस मंदिर के प्रति आकर्षित होकर खिंची चली जा रही थी। कुछ क्षण मैंने पुजारियों से वार्तालाप किया। उन्होंने बताया कि वे इस मंदिर में वेद पाठशाला भी चलाते हैं। वे मुझे पाठशाला ले गए जहां नन्हे-मुन्ने विद्यार्थी ऋग वेद के पुरुष सूक्त का उच्चारण कर रहे थे। मैंने मंदिर द्वारा संचालित कुछ सामाजिक परियोजनाओं के विषय में भी जाना। साथ ही मुझे मंदिर के विस्तार योजनाओं के विषय में भी जानकारी प्राप्त हुई।
मंदिर के दर्शन करके मुझे ऐसा आभास हुआ जैसे मैं अपने पैतृक आवास के दर्शन कर रही हूँ। दर्शन के पश्चात मैं वहाँ से बाहर आ गई।
बागड़ का चावो वीरो दादी मंदिर
पिरामल हवेली, जो मेरा विश्राम गृह था, इस के अंत्यन्त समीप चावो वीरो सती मंदिर था। यहाँ चावो दादी की आराधना की जाती है। वीरो उनके भ्राता थे जिन्होंने एक युद्ध में उनके साथ ही वीरगति पाई थी। जब मैं यहाँ आई थी तब यहाँ बड़े पैमाने पर मंदिर के नवीनीकरण का कार्य जारी था। मंदिर के विषय में और जानने के लिए यह वेबस्थल देखें।
यात्रा सुझाव
- झुंझुनू नगर में जयपुर तथा दिल्ली दोनों शहरों से आसानी से पहुंचा जा सकता है।
- मेरे द्वारा उपरोक्त उल्लेखित स्थलों के अवलोकन हेतु एक सम्पूर्ण दिवस आवश्यक है।
- इन स्थलों के साथ आप शेष शेखावाटी क्षेत्रों का भी भ्रमण कर सकते हैं।
- ठहरने के लिए मंडावा तथा नवलगढ़ अधिक सुविधाजनक तथा लोकप्रिय हैं।
अनुराधा जी,
राजस्थान के झुंझुनू शहर का अभी तक सिर्फ नाम सुना था परन्तु यह ऐतिहासिक शहर अपने में इतने दर्शनीय स्थल समेटे हुए है,यह जानकारी आलेख पढ़कर ही मिली । रानी सती मंदीर का भव्य अग्रभाग सही में आश्चर्यजनक हैं । यहां की विशाल हवेलियां भी कम आश्चर्यजनक नहीं !
पठनीय आलेख हेतू धन्यवाद ।
झुंझुनू मेरे लिए भी एक अचम्भा था।