सिक्किम एवं बंगाल की हमारी तीन सप्ताह की यात्रा में पेलिङ्ग हमारा प्रथम गंतव्य था। पेलिङ्ग के दर्शनीय स्थलों के विषय में जो मैंने खोज की थी उसके निष्कर्ष स्वरूप मुझे कुछ बौद्ध मठ, कुछ जलप्रपात तथा प्रसिद्ध केचेओपेल्री झील के सुझाव प्राप्त हुए थे। वही सब दर्शनीय स्थल जो किसी भी हिमालयीन क्षेत्र की यात्रा के समय बहुधा देखे जाते हैं।
पश्चिमी सिक्किम में स्थित पेलिङ्ग के दर्शनीय स्थल
आप जानते ही हैं कि प्रत्येक हिमालयीन क्षेत्र को विशेष व अनोखा बनाने में वहाँ के पर्वतों, नदियों तथा वनों के पारस्परिक संबंधों का महत्वपूर्ण योगदान होता है। किन्तु यह भी उतना ही सत्य है कि ऐसी कोई भी यात्रा नहीं होती जिसमें कुछ भी अप्रत्याशित तथ्य अथवा आश्चर्यजनक घटना ना हो। इतना ही नहीं, सिक्किम में हमारी पेलिङ्ग यात्रा का आरंभ ही एक आश्चर्य से हुआ।
रबडेनत्से खंडहर – इस क्षेत्र के राज्य के प्रमुख धरोहर
हमारे यात्रा-परिदर्शक हेमंत ने हमारी गाड़ी एक रंग-बिरंगे प्रवेश द्वार के समक्ष रोक दी। ऐसे प्रवेश द्वार आप बहुधा किसी भी बौद्ध मठ के बाहर देख सकते हैं। मैंने कल्पना की कि हम खंडहरों तक जाएंगे, कुछ छायाचित्र लेंगे, तत्पश्चात लौट आएंगे। प्रवेश द्वार से प्रवेश करते ही सामने एक रंगबिरंगी इमारत थी किन्तु वह हमारा गंतव्य नहीं था। हम आगे बढ़े। मार्ग में एक तालाब था जिसका अवलोकन करते हमने कुछ क्षण व्यतीत किये। हम एक पक्की पगडंडी पर आगे बढ़ते गए जो हमें एक वन की ओर ले जाता प्रतीत हो रहा था।
महल के अवशेषों की ओर जाती पगडंडी
हम जिस संकरी पगडंडी पर चल रहे थे वह घने ऊंचे वृक्षों से घिरी हुई थी। उनके तनें हरी काई से इस प्रकार ढंके हुए थे कि सम्पूर्ण वृक्षों पर हरे रंग को छोड़ कोई अन्य रंग का प्रयोजन ही नहीं बचा था। जब हम चारों ओर घनी हरियाली से घिरे हुए थे तथा कानों में जंगल के विभिन्न स्वर गूंज रहे थे हमारा ध्यान पैरों तले चमकती शिलाओं ने खींचा। प्रथम दृष्टि मुझे ऐसा प्रतीत हुआ मानो इन शिलाओं पर किसी ने चमकीला रंग लगाया हो। किन्तु वहाँ तो प्रत्येक शिला चमक रही थी। उन सब शिलाओं को रंग लगाना संभव नहीं। मैंने उन्हे निकट से देखा। वे सोने एवं चांदी की ईंटों के समान लग रहे थे।
हम कुछ आगे बढ़े। हमने वहाँ शिलाओं के अनेक छोटे छोटे ढेर देखे जो संतुलन बनाए एक दूसरे के ऊपर रखे हुए थे। मेरे अनुमान से वे उन यात्रियों की ओर संकेत कर रहे थे जिन्होंने मुझसे पूर्व इस पगडंडी से यात्रा की थी। यह एक प्रकार की सामूहिक कलाकृति थी। अनेक यात्री, जिन्होंने कभी एक दूसरे से भेंट नहीं की, अनजाने में ही इन क्षणिक कलाकृतियों को रच गए। आगे आने वाले यात्रियों के योगदान के लिए भी भरपूर प्रयोजन प्रस्तुत कर गए।
चोर्टेन
१५-२० मिनटों तक चलने के पश्चात हमने एक सूचना पटल देखा जो हमसे कह रहा था कि हमें अब भी आधा किलोमीटर और चलना है। मैं इस पदयात्रा के लिए मानसिक रूप से तैयार नहीं थी। किन्तु आसपास का वातावरण अत्यंत प्रेरक था। हम आगे बढ़ते गए। यह अच्छा था कि मार्ग समतल, सपाट व पक्का था। जैसे ही हमारी दृष्टि शिलाओं द्वारा निर्मित एक प्राचीन चोर्टेन पर पड़ी, हमारी साँस में साँस आई।
यहाँ भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग का एक सूचना पटल हमें सिक्किम की प्राचीन राजधानी रबडेनत्से के इतिहास की जानकारी दे रहा था। वस्तुतः रबडेनत्से सिक्किम की दूसरी राजधानी थी। सिक्किम की प्रथम राजधानी युक्सोम थी। १७ वीं. सदी में सिक्किम के चोग्याल वंश ने अपनी राजधानी युक्सोम से रबडेनत्से में स्थानांतरित कर दी थी। मैं इस विचार से रोमांचित होने लगी कि कदाचित वे भी इसी मार्ग द्वारा इस महल तक पहुंचे होंगे। रबडेनत्से कंचनजंगा पर्वत माला से घिरे एक पर्वत पर स्थित है।
रबडेनत्से महल के अवशेष
सिक्किम के इतिहास की कुछ जानकारी से अवगत होकर हम चोर्टेन से मुख्य अवशेषों की ओर बढ़े। शिलाओं द्वरा निर्मित एक भित्ति के साथ साथ हम ऊपर चढ़ने लगे। वहाँ हमने दो छोटी किन्तु सुंदर संरचनाएँ देखीं। इनके चारों ओर सुंदर बाग थे। बैठने के लिए पटिये थे जिन पर बैठकर आप हरियाली से घिरे इन अवशेषों के अवलोकन का आनंद उठा सकते हैं। दाहिनी ओर की संरचना एक सार्वजनिक इमारत थी जहां से कदाचित राजा प्रजा को संबोधित करते थे।
इमारत के समक्ष लटकीं प्रार्थना पताकाएँ इस संरचना को भक्ति तथा प्रभुता की आभा प्रदान कर रहे थे। यहाँ से आसपास का अद्भुत दृश्य प्राप्त हो रहा था। मेरे समक्ष हरे रंग की अनगिनत आभाएं पसरी हुई थीं जिन्हे गिनने के मेरे सर्व प्रयत्न व्यर्थ हो रहे थे। समीप एक अन्य पहाड़ी पर हमें श्वेत पताकाओं से घिरा प्रसिद्ध पेमायाँग्त्से बौद्ध मठ दृष्टिगोचर हो रहा था।
रबडेनत्से अवशेषों के तीन चोर्टेन
दूसरी संरचना वास्तव में महल था जिसमें दो तलों का निवास क्षेत्र था। अनुमानतः यहीं राजसी परिवार निवास करता था। इस संरचना के एक कोने में एक पीठिका पर तीन चोर्टेन हैं जो पर्वतों की पृष्ठभूमि में अत्यंत मनोरम प्रतीत होते हैं। ये ऐसी संरचनाएं हैं जिन पर समय के साथ सजीली आभा की परतें चढ़ती जाती हैं। यहाँ मैंने अनेक नवयुवक एवं नवयुवतियों को देखा जो अपने व्यावसायिक उद्देश्य के लिए इस मनोरम पृष्ठभूमि में अपने छायाचित्रिकरण करवा रहे थे। वे भिन्न भिन्न मुद्राओं में अपनी प्रस्तुतीकरण कर रहे थे तथा छायाचित्रकार यहाँ-वहाँ कूदते-फाँदते उनके छायाचित्र ले रहे थे। वह सब अत्यंत मनोरंजक था। अंततः हमने संरचना की सूक्ष्मताओं पर लक्ष्य केंद्रित किया। वहाँ स्थित एक पाषाणी पट्टिका ने हमारा ध्यान आकर्षित किया जिस पर बुद्ध के अनेक चित्र हल्के से उत्कीर्णित थे। यह यहाँ की स्थानीय शैली थी अथवा कार्य अधूरा था इसका अनुमान हम नहीं लगा सके।
हमने आसपास के वृक्षों की शाखाओं पर सिक्किम के कुछ अत्यंत रंगीन पक्षी देखे।
यह स्थान अत्यंत शांतिपूर्ण व निर्मल है।
पेमायांग्त्से बौद्ध मठ
पेलिङ्ग का यह मुख्य बौद्ध मठ है जो रबडेनत्से से कुछ ही दूरी पर है। पेमायांग्त्से बौद्ध मठ की ओर जाते सम्पूर्ण मार्ग के दोनों ओर सुंदर श्वेत पताकाएं लटकी हुई हैं। उन्हे देख ऐसा आभास होता है जैसे वे आपका स्वागत कर रहे हैं। हमने बौद्ध मठ के भीतर प्रवेश किया। मठ के भीतर चित्रों की अनेक पंक्तियाँ थीं।
मठ का भीतरी भाग बहुधा लाल रंग की प्राधान्यता लिए रंगबिरंगा होता है। मक्खन के दीपों को देख हमें इन मठों के विषय में ज्ञात होता है कि यहाँ की अधिकांशतः वस्तुएं यहीं भिक्षुओं द्वारा निर्मित होती हैं।
पेमायांग्त्से बौद्ध मठ के दूसरे तल पर एक संग्रहालय है जो मठ के अनुष्ठानिक वस्तुओं का प्रदर्शन करता है। इनमें भिक्षुओं द्वारा पहने जाने वाले जरी के भव्य वस्त्र, प्रयोग में आने वाले पात्र, लकड़ी के रंगबिरंगे मुखौटे, बजाए जाने वाले संगीत वाद्य इत्यादि प्रमुख हैं। इन्हे देख मुझे चाम नृत्य का स्मरण हो आया जिसे मैंने इस वर्ष के आरंभ में लद्दाख में देखा था। लकड़ी पर कुछ पांडुलिपियाँ हैं जो उत्कीर्णित हैं अथवा किसी रंग का प्रयोग कर लिखी गई हैं यह मुझे ज्ञात नहीं हो पाया। लकड़ी पर नक्काशी कर निर्मित किए कुछ बक्से हैं तथा साथ ही प्राचीन थाँग्का चित्रकारियाँ भी हैं।
पेमायांग्त्से बौद्ध मठ के चारों ओर पत्थरों के ढेर हैं। मैंने यहाँ कुछ अत्यंत अप्रतिम घर देखे। कुछ अत्यंत आकर्षक लकड़ी के निवासस्थान भी देखे जिन पर कुछ सूक्ष्म चित्रकारियाँ की गई हैं।
पेमायांग्त्से बौद्ध मठ का लकड़ी का झरोखा मुझे अत्यंत भाया।
पेलिङ्ग के प्रमुख स्वादिष्ट जलपान केंद्र
हम एक सुंदर से जलपानगृह में रुके जहां घाटियों के परिदृश्यों का अवलोकन करने के लिए छत पर बैठने की भी सुविधा थी। भीतर की भित्तियों पर सिक्किम के विषय में सामान्य ज्ञान के वाक्य चित्रित थे। किन्तु यहाँ अत्यधिक भीड़ थी जिसके कारण हमें पड़ोस में स्थित बिल के समान अत्यधिक छोटे से जलपान गृह का सहारा लेना पड़ा। हमारा यह निर्णय उत्तम सिद्ध हुआ। हमें सर्वोत्तम, ताजा पका हुआ तथा स्वादिष्ट भोजन प्राप्त हुआ। भाजी, भात, गरम मोमो के साथ गरम चाय। हमने दो नवीन चटनियाँ भी चखीं, एक छेना अर्थात पनीर से बनी तथा दूसरी मिर्च व लहसुन की चटनी। दोनों चटनियाँ तीखी थीं किन्तु मोमो तथा भात के साथ उनका मेल अत्यंत स्वादिष्ट था।
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मेरा सुझाव यही है कि आप छोटे जलपानगृह में भोजल करें, विशेषतः जिसे वहाँ की स्त्रियाँ चलाती हैं। वे आपकी इच्छा के अनुसार आपके समक्ष ताजा भोजन पका कर देती हैं।
कंचनजंगा जलप्रपात – अप्रतिम प्राकृतिक सौन्दर्य
पेलिङ्ग से कुछ दूरी पर यह मनमोहक कंचनजंगा जलप्रपात है। जिस दिन हम वहाँ गए थे उस दिन वर्षा हो रही थी। गाड़ी में बैठे हुए ही हमारी दृष्टि जलप्रपात पर पड़ी। प्रथम दृष्टि में हमारी प्रतिक्रिया कुछ विशेष नहीं है। हमारे गाइड ने हमारे लिए छतरियाँ खोल दी थीं तथा हमसे बाहर आकर सीढ़ियाँ चढ़ने का आग्रह करने लगा। मैंने सशंकित होकर उन सीढ़ियों की ओर देखा। पेलिङ्ग के धरोहरों के अवलोकन करते हम पहले ही बहुत चल लिए थे। किन्तु वह अड़ा रहा। अंततः हम उसके पीछे हो लिए।
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एक बड़े आश्चर्य से हमारा सामना होने जा रहा था। इतने विशाल जलप्रपात के पूर्ण स्वरूप का आभास तब तक नहीं होता जब तक आप लगभग इसके नीचे खड़े नहीं हो जाते। कदाचित कलकल बहते जल का स्वर दूर से ही सुनाई दे सकता था किन्तु उस दिन वर्षा अपना खेल दिखा रही थी। इसलिए हमें जलप्रपात का स्वर सुनाई नहीं दे रहा था। एक विशाल चट्टान के पीछे जाते ही एक विहंगम जलप्रपात हमारे समक्ष प्रकट हो गया। हम उसके समक्ष बैठ गए। चाय की चुसकियाँ लेते हुए हमने इस जलप्रपात को मन भर के देखा व सुना। यह एक अप्रतिम दृश्य था।
शब्दों में उल्लेख कर के मैं इस जलप्रपात की सुंदरता को सिद्ध नहीं कर पाऊँगी। अतः यह कार्य मैं इस विडिओ पर छोड़ती हूँ।
केचेओपेल्री झील – पेलिङ्ग की लोकप्रिय पावन झील
पेलिङ्ग से ३० किलोमीटर दूर स्थित यह एक पवित्र झील है। मैंने जिन से भी पेलिङ्ग के विषय में चर्चा की थी, सभी ने मुझसे केचेओपेल्री झील के अवलोकन का सुझाव दिया था। जब हम केचेओपेल्री झील पहुंचे थे, सूर्य अस्त होने कगार में था। झील की ओर जाते, पताकाओं से घिरे एक पथ पर हम झटपट चलने लगे। इतनी सारी रंगीन पताकाएं एक स्थान पर मैंने अपने जीवन में इससे पूर्व कहीं नहीं देखी थीं। मार्ग के दोनों ओर छोटे-बड़े अनेक चोर्टेन थे। हमें पताकाओं के झुरमुट से झील का प्रथम दर्शन प्राप्त हुआ। जब हम झील के समीप पहुंचे, हम पूर्णतः पताकाओं से घिरे हुए थे।
केचेओपेल्री का अर्थ है उड़ती योगिनियों अथवा ताराओं का महल।
हमने अपने जूते उतारे तथा झील की ओर जाते, लकड़ी के एक लंबे पुलिये पर चलने लगे। यहाँ भी चारों ओर पताकाएं फड़फड़ा रही थीं। झील के जितने समीप हम जा सकते थे, यह पुलिया हमें उतने समीप ले गया। एक ओर पीतल की कुछ घंटियाँ लटकी हुई थीं। यहाँ अधिकतर पताकाएं श्वेत रंग की थीं।
केचेओपेल्री झील – एक तीर्थ स्थल
केचेओपेल्री झील सिक्किम के एक प्रसिद्ध तीर्थ मार्ग का एक भाग है। इस तीर्थ मार्ग के अन्य तीर्थ स्थल हैं, सिक्किम की प्रथम राजधानी युक्सोम में स्थित दुबड़ी बौद्ध मठ, पेमायांग्त्से बौद्ध मठ, रबडेनत्से के अवशेष, सांगा चोएलिङ्ग मठ तथा ताशीदिंग बौद्ध मठ। ऐसा कहा जाता है कि केचेओपेल्री झील को गुरु पद्मसम्भव का भी आशीष प्राप्त है। केचेओपेल्री झील एक पवित्र झील होने के कारण आप ऐसा कुछ भी नहीं कर सकते जो इस झील को अपवित्र करे अथवा जिससे इस झील का किसी भी प्रकार से अपमान हो। झील अत्यंत ही स्वच्छ थी। उसके जल में एक पत्ता भी नहीं तैर रहा था।
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हमने यहाँ कुछ क्षण शांति से व्यतीत किए, प्रार्थना की तथा एक सुरक्षित व शांतिपूर्ण यात्रा की कामना की। हमारी कामना पूर्ण भी हुई। सिक्किम तथा बंगाल में हमने अविस्मरणीय तीन सप्ताह व्यतीत किए।
सिक्किम यात्रा से पूर्व
मैंने कल्पना भी नहीं की थी कि पेलिङ्ग मुझे यहाँ की संस्कृति एवं प्राकृतिक सौन्दर्य के इतने सारे आयामों से परिचय कराएगा। आप भी वहाँ अवश्य जाएँ।
अनुराधा जी,पश्चिमी सिक्किम स्थित पेल्लिंग के पर्यटक स्थलों की सचित्र जानकारी देता सुंदर आलेख ।
वैसे तो भारत का संपूर्ण उत्तर-पूर्वी क्षेत्र प्राकृतिक सुंदरता से परिपूर्ण है । पेल्लिंग के आसपास बिखरे पड़े झरने,झीलें,पहाड़ी नदीयाँ,पर्वत श्रृंखलाएँ संपूर्ण क्षेत्र की प्राकृतिक सुंदरता को चार चाँद लगाते हैं । यहाँ स्थित विभिन्न बौद्ध मठ,सदियों से यहाँ बौद्ध धर्म के प्रचार प्रसार को इंगित करते हैं ।यह आश्चर्यजनक हैं कि
सत्रहवीं सदी में निर्मित रबडेनत्से महल के अवशेष आज भी अच्छी स्थिति में प्रतीत होते है ।कंचनजंगा जलप्रपात का विडिओ प्रकृति की अद्भुत सुंदरता से हमारा परिचय कराता हैं ।
ज्ञानवर्धक सुंदर आलेख,साधुवाद !
धन्यवाद प्रदीप जी, आपके प्रोत्साहन के लिए
मीताजी और अनुराधाजी
पेलिंग के दर्शनीय स्थलों के विषय मे लिखीत लेख इतने अच्छे शब्दों मे वर्णीत है कि लगता है हम वहां ही घुम रहे हो.
नदीपर के सुंदर पुल,घने वृक्षों के जंगल ,चमकिले पत्थरोकी पगन्डडी निला शांत आकाश बहुतही आकर्षक लगा.
रबडेंनत्से महलके अवशेष,चार्टेन,पेमायांग्त्से बौध मठ का बाहरी और भितरी भाग अत्यंत सुहावना लग रहा था.
कंचनजंगा जल प्रपात और रंग बिरंगी पताकाओं के साथ पवित्र पावन झिल का वर्णन मन को मोहित करने वाला है.
सुंदर आलेख हेतु बहुत बहुत धन्यवाद.
धन्यवाद चंद्रहास जी