कन्याकुमारी का भ्रमण मेरा बहुत पुराना स्वप्न था। कदाचित उस समय से जब मैंने भारत के संदर्भ में ‘कश्मीर से कन्याकुमारी तक’ यह उक्ति सुनी थी। जहाँ तक कश्मीर का प्रश्न है, तो मैं भाग्यशाली हूँ कि अपने बालपन का कुछ भाग मुझे कश्मीर में व्यतीत करने मिला था। किन्तु कन्याकुमारी मेरे लिए सदैव एक दूर-सुदूर स्थल ही रहा था। मेरी सदैव यह चाह थी कि मैं भारत के दक्षिणी छोर तक जाऊँ जहाँ से मैं एक ही स्थान से सूर्योदय एवं सूर्यास्त दोनों के दर्शन कर पाऊँ। साथ ही किसी पूर्णिमा के दिन डूबते सूर्य के साथ उगते चंद्रमा को भी देखूँ। और हाँ, विवेकानंद स्मारक शिला अर्थात विवेकानंद रॉक मेमोरियल तथा कन्याकुमारी के अन्य प्रसिद्ध पर्यटक स्थलों के दर्शन की भी तीव्र इच्छा थी।
कन्याकुमारी भ्रमण के अनेक असफल नियोजनों के पश्चात अंततः मैं जब गोवा से केरल भ्रमण के लिए निकली थी तब मैंने कन्याकुमारी भ्रमण करने की भी ठान ली थी। उस समय भी कन्याकुमारी भ्रमण लगभग असंभव प्रतीत हो रहा था। जब हम त्रिवेंद्रम पहुंचे, हिन्द महासागर में आए तूफान के कारण वहाँ अनवरत भारी वर्षा हो रही थी। इस वर्षा के कारण त्रिवेंद्रम से बाहर निकलना कठिन हो रहा था। सभी मुझे सलाह दे रहे थे कि मैं विवेकानंद रॉक मेमोरियल के दर्शन करने ना जाऊँ। किन्तु हमने अपने नियोजित कार्यक्रम के अनुसार ही आगे बढ़ने का निश्चय किया।
कन्याकुमारी नगरी में प्रवेश करते ही हम तुरंत नौका घाट पर पहुंचे किन्तु वहाँ हमारे उत्साह पर पानी फिर गया। खराब मौसम के कारण नौका सेवाएँ अनिश्चित समय के लिए रद्द की गई थीं। मैं किनारे पर खड़ी होकर बड़ी आस से उन दो विशाल शिलाओं तो ताक रही थी जिनमें एक शिला पर दो मंदिर हैं तथा दूसरी शिला पर थिरुवलुवर की विशाल प्रतिमा है। वे दोनों द्वीप रूपी शिलाएं अत्यंत समीप प्रतीत हो रही थीं। उनके एवं मेरे मध्य किसी अनहोनी की आशंका का आभास भी नहीं हो रहा था। वह इसलिए क्योंकि मेरे भीतर का यात्री मुझसे वार्तालाप कर रहा था, ना कि कोई तर्कवादी। एक विशेषज्ञ तो कदापि नहीं। एक हाथ में छतरी उठाए तथा दूसरे हाथ में केमेरा से जूझते हुए मैं जितने चित्र ले सकती थी, मैंने लिए।
उसी समय हमारे गाइड के रूप में मानो एक देवदूत हमारी ओर दौड़ता हुआ आया तथा हमें आनंददायी समाचार देने लगा। अपने मुख से दिव्य वाणी निकालते हुए उसने हमें सूचना दी कि नौका सेवाएँ आरंभ हो गई हैं तथा हम शीघ्र वहाँ जाएँ। हम नौकाओं की ओर दौड़ पड़े।
कन्याकुमारी के दर्शनीय स्थल
भारत के दक्षिणी छोर पर स्थित कन्याकुमारी सदैव से एक महत्वपूर्ण तीर्थस्थल होने के साथ साथ एक लोकप्रिय पर्यटन स्थल भी रहा है। यहाँ का नमी युक्त ऊष्ण वातावरण तथा असमय वर्षा भी तीर्थयात्रियों एवं पर्यटकों के उत्साह को नम नहीं कर पाता।
विवेकानंद स्मारक शिला अर्थात विवेकानंद रॉक मेमोरियल
स्वामी विवेकानंद रॉक मेमोरियल समुद्र के मध्य खड़ी एक विशाल शिला है। यह शिला उस स्थान पर है जहाँ भारतीय प्रायद्वीप का अंत होता है। यह भारत के सर्वाधिक आकर्षक पर्यटक क्षेत्रों में से एक है। समुद्र में नौका सवारी करते हुए १० मिनट ही व्यतीत हुए थे कि हमने अपने पाँव उस शिला पर रखे। तीन समुद्रों के संगम पर खड़ी यह स्थिर शिला एक अत्यंत पवित्र शिला मानी जाती है। यहाँ स्थित एक मंदिर में देवी कन्याकुमारी के पदचिन्हों की पूजा की जाती है, वहीं दूसरे मंदिर में स्वामी विनेकानंद के आगमन का उत्सव मनाया जाता है। दोनों मंदिर छोटे होते हुए भी अत्यंत भव्य एवं आकर्षक हैं।
सूर्योदय एवं सूर्यास्त
कन्याकुमारी से संबंधित अनेक मिथ्याएं, किवदंतियाँ एवं रोचक ऐतिहासिक तथ्य हैं। किन्तु कन्याकुमारी से संबंधित जो तथ्य सर्वाधिक लोकप्रिय है, वह है यहाँ की अभूतपूर्व प्रकृति। यह विश्व के उन दो स्थलों में से एक है जहाँ आप एक ही स्थान से सूर्योदय एवं सूर्यास्त दोनों का अवलोकन कर सकते हैं। जब समुद्र की शक्तिशाली लहरें इस शिला से टकराती हैं तो ऐसा प्रतीत होता है मानो विरह से तड़पती प्रेमिका अपने प्रेमी से भेंट कर रही हो। तीन समुद्रों का संगम आपके लगभग चारों ओर अथाह अनंत की खरी अनुभूति प्रस्तुत करता है। धरती के अंत पर खड़े होने की सही परिभाषा का अनुभव केवल यहीं प्राप्त हो सकता है।
विवेकानंद शिला पर जाने के लिए उठाए गए सम्पूर्ण कष्ट का फल है वहाँ से दृष्टिगोचर विहंगम परिदृश्य। वहाँ से जब आप भारत की धरती की ओर देखेंगे तो आपके समक्ष पहाड़ियों एवं समुद्र से उठते मेघों के पृष्ठभूमि में कन्याकुमारी नगरी का क्षितिज आपको मंत्रमुग्ध कर देगा। वहीं जब आप समुद्र की ओर निहारेंगे तो आप सहसा दो सागरों एवं एक महासागर को ढूंढने लगेंगे जिनका यहाँ मिलन एवं संगम होता है।
धरती के अंत पर खड़े होकर अपने पीछे धरती माता, समक्ष अथाह जल तथा चारों ओर आकाश को अनुभव करना एक विलक्षण अनुभूति है।
धूपघड़ी एवं उत्तरायण के गणना यंत्र
शिला की सतह पर एक दिशा सूचक यंत्र है। इसकी सहायता से आप त्रिवेणी की दिशा देख सकते हैं।
शिला सतह के एक अन्य भाग पर धूपघड़ी उत्कीर्णित है। विवेकानंद मंदिर के सर्वोच्च तल से यह स्पष्ट दिखायी देती है। वर्षा के कारण हम यहाँ अधिक समय व्यतीत नहीं कर सके। किन्तु हमें बताया गया कि इस धूपघड़ी के द्वारा उत्तरायण के समय की गणना की जा सकती है।
विवेकानंद मंडपम् तथा केंद्र
धूसर एवं लाल रंग में सज्ज, स्वामी विवेकानंद को समर्पित यह मंदिर विवेकानंद मंडपम् कहलाता है। स्वामी विनेकानंद को इसी स्थान में परम ज्ञान की प्राप्ति हुई थी। उसी घटना की स्मृति में सन् १९७० में इस मंदिर का निर्माण किया गया था। विवेकानंद ने १८९२ में कन्याकुमारी का भ्रमण किया था, अर्थात उनके प्रसिद्ध शिकागों यात्रा से पूर्व।
विवेकानंद मंडपम् की वास्तुकला में बेलूर के रामकृष्ण मठ के कुछ तत्वों का समावेश है। इसके प्रवेश द्वार पर चोल शैली की झलक दिखायी देती है। झरोखों पर आप चैत्य के बौद्ध चिन्ह देख सकते हैं। इसके शीर्ष पर केसरिया रंग का ध्वज है जिस पर ॐ अंकित है। मंडपम् के भीतर स्वामी विवेकानंद की कांस्य में गढ़ी एक आदमकद मूर्ति है। उसमें वे अपनी सुप्रसिद्ध मुद्रा में खड़े हैं। मंदिर तक पहुँचने के लिए कुछ सीढ़ियाँ चढ़नी पड़ती है।
क्या आप जानते हैं कि स्वामी विवेकानंद रॉक मेमोरियल की निर्माण निधि भारत की जनता ने स्वयं एकत्र की थी?
ध्यान कक्ष
विवेकानंद मंदिर के निचले तल में ध्यान कक्ष है। इस अंधेरे कक्ष में केवल एक ॐ का चिन्ह जगमगाता रहता है तथा ॐ की ध्वनि गूँजती रहती है। आप यहाँ बैठकर ध्यान कर सकते हैं। मैं यहाँ बैठकर ध्यानमग्न होने का प्रयत्न करने लगी। ३ दिन यहीं बैठकर अनवरत ध्यान करते समय स्वामी विवेकानंद को कैसा अनुभव प्राप्त हुआ होगा, इस कल्पना ने मुझे घेर लिया। किन्तु उनके ३ दिनों की तुलना में मुझे ३ मिनट भी प्राप्त नहीं हुए।
बाहर एक पुस्तक की दुकान में विवेकानंद केंद्र द्वारा प्रकाशित पुस्तकों की विक्री की जाती है। किन्तु अनवरत वर्षा के कारण मैं कोई भी पुस्तक नहीं ले पायी। अंततः घर वापिस आकार मैंने उनकी एक पुस्तक इंटरनेट से डाउनलोड की, ‘Complete Works of Vivekananda’।
ऐसा कहा जाता है कि स्वामी विवेकानंद समुद्र में तैर कर यहाँ पहुंचे थे। उन्हे देवी ने दर्शन दिए थे। जब वे यहाँ ध्यानमग्न थे, उस समय वे इस शिला पर कदाचित अकेले रहे होंगे। आज यह शिला हर प्रकार के लोगों से भरी हुई है, जैसे पर्यटक, यात्री, भक्त तथा यहाँ के कर्मचारी।
श्रीपाद मंडप
विवेकानंद मंडप के समक्ष श्रीपाद मंडप है जिसके भीतर एक शिला पर देवी के पदचिन्ह हैं। इसे देवी का आशीर्वाद माना जाता है। इस शिला को एक मंदिर सदृश संरचना के भीतर एक पीठिका के ऊपर स्थापित किया गया है। गर्भगृह के ऊपर चौकोर शिखर है। इसके चारों ओर एक गलियारा है जो स्तंभों पर खड़ा है। यह एक छोटा किन्तु अत्यंत शांतिपूर्ण मंदिर है।
कन्याकुमारी नगरी का परिदृश्य
विवेकानंद रॉक मेमोरियल से मेघ से भरे आकाश की पृष्ठभूमि में कन्याकुमारी नगरी का अद्भुत विहंगम दृश्य दिखाई देता है।
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थिरुवलुवर की विशाल मूर्ति
थिरुवलुवर की प्रतिमा इतनी विशाल है कि वो आपकी दृष्टि से चूक ही नहीं सकती। ऐसा माना जाता है कि थिरुवलुवर तमिल नाडु के प्राचीन कवि एवं दार्शनिक थे जो इस स्थान में निवास करते थे। इस प्रतिमा की स्थापना २१ वीं. सदी के उदय के समय, १ जनवरी २००० में की गई थी। अतः इसे एक आधुनिक भारतीय अचंभा माना जा सकता है।
इस प्रतिमा से संबंधित साहित्यों के अनुसार यह प्रतिमा ३८ फीट के मंच पर खड़ी है जो उनके साहित्य थिरुकुर्रल में संकलित सदाचार के ३८ अध्यायों का द्योतक है। यह शैल प्रतिमा १३३ फीट ऊंची है जिसका केवल मुख ही २० फीट ऊंचा है। ऐसा प्रतीत होता है कि यह प्रतिमा एक कुशल स्थापति की निगरानी में हाथों से गढ़ी गई है तथा वास्तु शास्त्र के सिद्धांतों पर आधारित है।
यह एक विडंबना है कि इस प्रतिमा के विषय में यहाँ कोई भी आलेख उपलब्ध नहीं है। इसके विषय में जानकारी प्रदान करने के लिए यहाँ कोई गाइड भी नहीं है। आशा है प्रशासन ऐसा प्रयत्न करे कि भविष्य में थिरुवलुवर की रचनाएं एवं उनसे संबंधित साहित्य एवं आलेख उनकी प्रतिमा के समीप ही हमें उपलब्ध हो जाएँ।
कलात्मकता
सौंदर्यशास्त्र की दृष्टि से थिरुवलुवर की प्रतिमा में मुझे सर्वाधिक विशेष तत्व उसकी ऊंचाई प्रतीत हुई। समुद्र के मध्य यह अतिविशाल प्रतिमा अत्यंत भव्य है। दो मंदिरों वाली शिला के ऊपर से ये नगरी की निगरानी रखते प्रतीत होते हैं। इस प्रतिमा को ध्यान से देखेंगे तो आप जान पाएंगे कि किस प्रकार शिलाखंडों को आपस में गूँथकर यह प्रतिमा गढ़ी गई है। मेरे मस्तिष्क में एक विचार अवश्य कौंधा कि हमारे प्राचीन मंदिरों के विपरीत, क्या आज हम जोड़ों को छुपाने की हमारी प्राचीन कला को भुला चुके हैं? क्या हम अखंड मूर्तिकला की शैली को खो चुके हैं? और तो और, एलोरा में तो सम्पूर्ण विशाल मंदिर एक अखंड शिला को उत्कीर्णित कर बनाया गया था।
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फेरी नौका इस द्वीप पर ठहरती नहीं है। अपितु इसके पास से आगे निकल जाती है। किन्तु विवेकानंद रॉक मेमोरियल से आप थिरुवलुवर की प्रतिमा स्पष्ट देख सकते हैं।
विवेकानंद रॉक मेमोरियल व थिरुवलुवर की प्रतिमा के सौन्दर्य तथा वास्तविक वर्षा की फुहारों, दोनों से पूर्णतः भीग कर हम वापिस मुख्य भूभाग पर पहुंचे। भोजन किया तथा अन्य दर्शनीय स्थल देखने निकल पड़े, जैसे पत्थरों वाले समुद्र तट पर स्थित अन्य शिला संरचनाएं जहाँ ऊंची ऊंची तरंगें उठकर धरती पर प्रहार करती प्रतीत होती हैं।
कन्याकुमारी देवी का मंदिर
मुख्य भूभाग के तट पर पहुंचते ही हम कन्याकुमारी देवी के मंदिर की ओर बढ़े। वहाँ लंबी पंक्ति में अनेक दर्शनार्थी प्रतीक्षारत खड़े थे। मैं भी अधीरता से पंक्ति में खड़ी हो गई। लगभग २० मिनट प्रतीक्षा करने के पश्चात मुझे मंदिर के भीतर जाने का अवसर प्राप्त हुआ। मंदिर के भीतर के अंधकार में जगमगाते तेल के दिये एक स्वप्निल व रहस्यमयी वातावरण प्रस्तुत कर रहे थे। द्वार की चौखट पर प्रज्ज्वलित दिये के प्रकाश में प्रकाशमान देवी की सुंदर प्रतिमा मंत्रमुग्ध कर रही थी।
मुझे देवी का स्वरूप ठीक वैसा प्रतीत हुआ जैसा साधारणतः उत्तर भारत में दृष्टिगोचर होता है। यूँ तो कन्याकुमारी देवी का दिव्य चरित्र सम्पूर्ण भारत में श्रद्धास्पद है, किन्तु मैंने दक्षिण भारत की देवियों के अलंकरण एवं सज्जा कभी भी उत्तर भारतीय शैली में नहीं देखा था। मेरे भीतर देवी के इस रूप के विषय में और जानने की तीव्र इच्छा उठने लगी।
कांची कामकोटी पीठ
भूभाग के तट पर आदि शंकराचार्य को समर्पित एक छोटा सा मंदिर है। आदि शंकराचार्य के कन्याकुमारी आगमन की पुण्य स्मृति में अद्वैत दर्शन की शिक्षा प्रदान करने के लिए इस मंदिर का निर्माण किया गया था। भारत के कोने कोने में जहाँ भी आदि शंकराचार्य ने भ्रमण किया था वहाँ वहाँ उनके ऐसे मंदिर देखे जा सकते हैं।
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गांधी स्मारक अथवा गांधी मंडपम
गांधी मंडप एक आधुनिक इमारत है जहाँ गांधीजी की अस्थि अवशेषों का एक भाग रखा हुआ है। गांधी स्मारक की आंतरिक संरचना ७९ फीट ऊंची है जो महात्मा गांधी की मृत्यु के समय की आयु का प्रतीक है। इस स्मारक को इस तकनीक के साथ निर्मित किया गया कि प्रत्येक वर्ष २ अक्टूबर के दिन दोपहर के समय सूर्य की किरणें उसी स्थान पर पड़ती हैं जहाँ पर विसर्जन से पूर्व उनकी अस्थियाँ रखी गई थीं। मेरे अनुमान से इस मंडपम की संरचना मोढेरा के सूर्य मंदिर जैसे मंदिरों से प्रेरित है जहाँ किसी विशेष दिवस पर सूर्य की प्रथम किरण भगवान के चरणों पर पड़ती हैं।
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कामराज स्मारक
गांधी स्मारक के समीप कामराज स्मारक है जो तमिल नाडु के पूर्व मुख्य मंत्री एवं स्वतंत्रता सेनानी श्री कामराज को समर्पित है। यह एक विशाल कक्ष है जहाँ कामराज के अनेक चित्र हैं। यह स्मारक वहीं निर्मित किया गया है जहाँ पर विसर्जन से पूर्व, जनता के दर्शनों के लिए उनकी अस्थियाँ रखी गई थीं।
त्रिवेणी संगम – संगम में पवित्र स्नान
गांधी स्मारक के समीप त्रिवेणी संगम है जहाँ तीन समुद्रों का संगम है। इस तट पर आप यदि दक्षिण की ओर मुख कर खड़े हो जाएँ तो आपके बाईं ओर बंगाल की खाड़ी, दाईं ओर अरब महासागर तथा समक्ष हिन्द महासागर है। इस संगम में स्नान करना पापों से मुक्ति दिलाने वाला अत्यंत पवित्र स्नान माना जाता है। यहाँ का समुद्र तल चट्टान युक्त है, अतः अपनी सुरक्षा का ध्यान रखते हुए गहरे समुद्र में ना जाएँ।
कन्याकुमारी के समुद्र को वास्तव में लक्षद्वीप समुद्र कहा जाता है।
अंतर्क्षेत्र के परिदृश्य
वर्षा ऋतु के पश्चात किसी उजले दिवस में यदि आप कन्याकुमारी में हैं तो वहाँ के हरे-भरे खेत तथा नारियल के वृक्षों एवं अप्रवाही जल से युक्त समुद्र तट के भीतरी क्षेत्रों के परिदृश्यों को देखना ना भूलें।
ताड़ के फल एवं कोमल नारियल का पानी
कन्याकुमारी आर्द्रता से परिपूर्ण, अत्यंत उष्ण प्रदेश है। इस वातावरण में स्थानीय ताड़ के ताजे फलों एवं कोमल नारियल का पानी शामक व शांतिदायक होता है। ये अत्यंत स्वादिष्ट, रसदार एवं पौष्टिक फल होते हैं।
कन्याकुमारी के आस-पास एक-दिवसीय दर्शनीय स्थल
इस स्थलों को आप कन्याकुमारी में ठहरते हुए एक-दिवसीय यात्रा के रूप में अथवा त्रिवेंद्रम जैसे अन्य पर्यटक स्थलों की ओर जाते समय विमार्ग लेते हुए कर सकते हैं। अपने चयनित स्थलों के अनुसार अपनी यात्रा नियोजित करें।
पद्मनाभपुरम महल एवं दुर्ग
पद्मनाभपुरम का पद्मनाभपुरम महल एशिया का विशालतम काष्ठी संरचना है। यह विशेष महल त्रावणकोर के भूतपूर्व राजाओं का है जिन्होंने सन् १५५२-१७९० तक यहाँ शासन किया था। इस में इस वंश के प्रसिद्ध राजा मार्तंड वर्मा का शासन भी सम्मिलित है।
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सुचिन्द्रम मंदिर अथवा श्री थानुमलायन मंदिर
सुचिन्द्रम मंदिर त्रिवेंद्रम – कन्याकुमारी मार्ग पर है। इस मंदिर की विशेषता है इसके प्रमुख देव जो ब्रह्म, विष्णु एवं शिव का सम्मिलित रूप है। तीनों त्रिदेवों को एक ही प्रतिमा में प्रदर्शित किया गया है।
इस मंदिर का संबंध कन्याकुमारी की कथा से भी है। किवदंतियों के अनुसार कन्याकुमारी देवी वधू के वेश में समुद्र में स्थित शिला के ऊपर बैठी भगवान शिव की प्रतीक्षा कर रही थी। मुहूर्त के अनुसार उनका विवाह उसी दिन सम्पन्न होना था। भगवान शिव को किसी कार्य हेतु अन्यत्र जाना पड़ा। शिला तक पहुँचने से पूर्व वे इस मंदिर में पहुंचे। स्वभाव के अनुसार नारद मुनि को उपहास सूझा तथा उन्होंने सर्वत्र दिवस सम्पूर्ण होने का आभास दिलाया। अतः देवी अविवाहित ही रह गई तथा कन्याकुमारी कहलायी। आज भी शिव की प्रतीक्षा में खड़ी वधू के रूप में उन्हे पूजा जाता है।
ठेठ चोल शैली में निर्मित सुचिन्द्रम मंदिर में लंबे गलियारे हैं जिनमें दोनों ओर उत्कीर्णित स्तंभ हैं तथा चित्रित छत है। मंदिर के बाहर विशाल अलंकृत रथ हैं जो मेरे जैसे भक्तों के साथ वर्षा में भीग रहे थे।
कन्याकुमारी में मेरी इच्छा-सूची के अन्य दर्शनीय स्थल
कन्याकुमारी नगरी अनेक अप्रतिम पर्यटन एवं आध्यात्मिक स्थलों से परिपूर्ण है। इच्छा होते हुए भी समय की कमी के कारण मैं वहाँ के कुछ स्थलों के अवलोकन नहीं कर पायी। उन स्थलों का यहाँ उल्लेख करना चाहती हूँ ताकि आप अपने कन्याकुमारी भ्रमण की योजना बनाते समय इन स्थलों पर भी विचार कर सकते हैं।
विवेकानंद केंद्र
यह केंद्र स्वामी विवेकानंद के सिद्धांतों को प्रसारित करने के उद्देश्य से स्थापित एक संस्था है जो महान विचारक विवेकानंद को आदर्श मानकर उनके बताए मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करती है। उनके कार्यक्षेत्र में योग, उपनिषदों का अध्ययन, संस्कारों द्वारा व्यक्तित्व का विकास इत्यादि सम्मिलित हैं। रामायण दर्शनम्-भारतमाता सदनम् उनकी नवीनतम परियोजना है जिसमें भित्तिचित्रों द्वारा रामायण के महत्वपूर्ण दृश्यों को चित्रित करना, भारतमाता का मंदिर तथा हनुमान की विशाल प्रतिमा प्रमुख योजनाएं हैं।
भटकते भिक्षु का संग्रहालय
समुद्र तट से पैदल दूरी पर एक छोटा किन्तु महत्वपूर्ण संग्रहालय स्थित है जो स्वामी विवेकानंद की जीवनी पर आधारित है। यह संग्रहालय विवेकानंद के कार्यों एवं उपलब्धियों से भेंटकर्ताओं का परिचय कराता है।
थिरुप्परप्पु जल प्रपात
यह लगभग ३०० फीट ऊंचा एवं ५० फीट गहरा जल प्रपात है। थिरुप्परप्पु जलप्रपात नगर से लगभग ५५ किलोमीटर दूर स्थित है। इस प्रपात के समीप एक प्राचीन शिव मंदिर भी है जिसे महादेव कोविल कहते हैं। इस मंदिर में ९ वीं. सदी के पाण्ड्या वंश के अभिलेख हैं।
थिरुप्परप्पु जल प्रपात कोथायर नदी पर है। कोथायर नदी की ढलान थिरुप्परप्पु से आरंभ होती है। यहाँ से ढलान की ओर १३ किलोमीटर की दूरी पर पेचिपरै बांध है। यह वर्षा से पोषित मौसमी जल प्रपात है। अतः वर्षा ऋतु से आगामी ६ मास तक यह एक अत्यंत रोमांचक एवं सुंदर पर्यटन स्थल रहता है।
मरून्थुवाड मलय पहाड़ी
पश्चिमी घाट का सर्वाधिक दक्षिणी भाग इस जिले में है। इसे मरून्थु वाडम् भी कहते हैं जिसका अर्थ है औषधिक जड़ी-बूटियों का स्थल। पौराणिक कथाओं के अनुसार मरून्थुवाड मलय पहाड़ी उस द्रोणगिरी पर्वत का टूटकर गिरा हुआ एक टुकड़ा है जिसे हनुमान हिमालय से उठाकर श्री लंका ले जा रहे थे। श्रीलंका से युद्ध के समय मूर्छित हुए भगवान राम के भ्राता लक्ष्मण की मूर्छा भंग करने के लिए जिस जड़ी-बूटी की आवश्यकता थी वह द्रोणगिरी पर्वत पर ही उपलब्ध थी। किन्तु जड़ी-बूटी को पहचानने में असमर्थ हनुमान सम्पूर्ण पर्वत ही उठाकर लंका की ओर उड़ चले थे।
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मरून्थुवाड मलय पहाड़ी के शीर्ष तक पहुँचने के लिए शिलाओं की सीढ़ियाँ हैं। इस पहाड़ी की ऊंचाई ८०० फीट तथा चौड़ाई लगभग एक किलोमीटर है।
चितरल का प्राचीन जैन मंदि
थिरुप्परप्पु जल प्रपात की ओर जाते मार्ग पर शैलकर्तित गुफ़ाएं हैं जिनके भीतर दिगम्बर जैन मंदिर हैं। इन्हे मलई कोविल कहा जाता है। यहाँ जैन तीर्थंकरों के अनेक शिल्प हैं। ९ वीं. सदी में राजा महेंद्रवर्मा-१ के शासनकाल में किये गए उत्खनन में ये गुफ़ाएं प्राप्त हुई थीं। मेरे अनुमान से ये भारत के सर्वाधिक दक्षिणी जैन मंदिर हैं।
पेचिपरै बांध
थिरुप्परप्पु जल प्रपात से कुछ ही दूर, कोथायर नदी पर यह पेचिपरै बांध है। त्रावणकोर राज्य के शासनकाल में निर्मित यह बांध अत्यंत दर्शनीय है।
वट्टकोट्टई दुर्ग
वट्टकोट्टई का शाब्दिक अर्थ है गोलाकार दुर्ग। यह लघु दुर्ग भारत के दक्षिणी छोर पर स्थित है। इस दुर्ग के विषय में एक विचित्र किन्तु विशेष तथ्य यह है कि इसका निर्माण त्रावणकोर के प्रसिद्ध राजा मार्तंड वर्मा के शासनकाल में हुआ था किन्तु इसका निर्माण एक डच नौसेना अधिकारी की निगरानी में हुआ था जो त्रावणकोर सेना का सेनाध्यक्ष था।
कन्याकुमारी के कुछ अन्य दर्शनीय स्थल भी हैं जिन्हे आप समय के अनुसार देख सकते हैं:
- मट्टम समुद्र तट
- नागरकोइल समुद्र तट
- केप कोमॉरिन
- पवनचक्की बगीचा
- मथु जलसेतु
- मनकुडी सेतु
- फ्लेमिंगो पक्षी के दर्शन
व्यक्तिगत रूप से विवेकानंद स्मारक शिला के दर्शन करना मेरे लिए एक ऐसे अवरोध के समान था जिसे मैं अनेक वर्षों से पार करना चाह रही थी। मैं अत्यंत प्रसन्न हूँ कि अंततः मैंने अपने एक स्वप्निल गंतव्य के दर्शन कर ही लिए।
कन्याकुमारी के लोकप्रिय पर्यटन स्थलों के विषय में कुछ यात्रा सुझाव
- कन्याकुमारी में इन लोकप्रिय पर्यटन स्थलों के दर्शन हेतु ३-४ दिनों का समय आवश्यक है।
- यहाँ कभी भी मेघ छा जाते हैं तथा अकस्मात वर्षा हो जाती है। अतः यथोचित तैयारी रखें।
- धूप के दिन अत्यंत उष्ण एवं नमी पूर्ण होते हैं।
आप जब भी कन्याकुमारी के भ्रमण के लिए जाएँ तो इन पर्यटक स्थलों के दर्शन के पश्चात अपने अनुभव हमसे बाँटना ना भूलें। प्रतीक्षारत।
अनुराधाजी, मीताजी,
भारत के सुदूर दक्षिण छोर पर स्थित प्रसिद्ध पर्यटन स्थल कन्याकुमारी का बहुत ही सुंदर शब्द चित्रण । बीच समुद्र में स्थित प्रसिद्ध विवेकानंद स्मारक शिला तथा समीप ही खड़ी पाषाण की भव्य थिरूवलुवर प्रतिमा के बारे में पढ़ना स्वयं को रोमांचित करने के लिए पर्याप्त हैं । सही मे यह प्रकृति का चमत्कार ही हैं कि यहाँ समुद्र में एक ही स्थान से सूर्योदय तथा सूर्यास्त का अद्भुत दृश्य हम देख सकते हैं तथा यह और भी आश्चर्यजनक है कि यह घटना विश्व में केवल दो स्थानों पर ही होती हैं !
विवेकानंद मंदिर के अंधेरे ध्यान कक्ष में ध्यान मग्न होने पर वास्तव में आत्मिक शांति की अनुभूति होती होगी ।कन्याकुमारी देवी के बारे में किंवदंती भी रोचक है ।आलेख में यहाँ के अन्य दर्शनीय स्थलों की भी सुंदर जानकारी समाहित की गई हैं ।
पठनीय आलेख हेतु धन्यवाद ।
धन्यवाद प्रदीप जी
मीताजी एवं अनुराधाजी
लेखक की बहुत ही सुंदर शुरुआत.ऐसा लग रहा था जैसे हम ही उस दौर से गुजर रहे है.इतने खतरों से खेलते हुए आपने जब उस शिला को स्पर्श किया तब मन बहुत ही प्रसन्न हुआ.जब आप अथाह सागर से घिरे हो और मौसम के मिजाज का पता न हो तब तो सिर्फ हिंमत से ही काम चल सकता है. फोटो के साथ आपने जो विवेकानंद शिला,मंडप का वर्णन किया वह और वहां से दिखने वाली कन्याकुमारी मन को बहुत ही लुभावने वाले थे. अन्य दर्शनीय स्थलो के बारे में भी आपने जो जानकारी दी है वह दिल को छूने वाली है और मन को वहाँ जाने के लिए मजबूर करने वाली है.
जिस स्थल पर दो सागर और एक महासागर का मिलन होता हो तथा जहां विवेकानंद और आदि शंकरचार्य जैसे महान संतो का चरण स्पर्श हुआ हो वह अत्यंत पुण्यस्थली ही है.
सुंदर माहिती से भरपूर लेख हेतु बहुत बहुत धन्यवाद.