पुरानी दिल्ली के बाजारों के बारे में बात करें तो शायद खरीदारी से हमारा मन कभी नहीं भरेगा। यहां के कुछ जाने-माने बाजारों के बारे में तो आपको पता ही होगा। जैसे कि चाँदनी चौक के बारे में तो आपने सुना ही होगा। यहां पर बहुत अच्छा और स्वादिष्ट खाना मिलता है। भोजन प्रेमियों के बीच यह जगह बहुत प्रचलित है। लेकिन चाँदनी चौक का यह क्षेत्र अब बहुत बड़े बाजार में तब्दील हो गया है। आज दिल्ली का यह सबसे चर्चित स्थान खरीदारी के लिए स्वर्ग माना जाता है। तथा भारत के व्यापक हिस्से के लिए यह व्यापार के प्रमुख केंद्र का कार्य भी करता है।
वैसे देखा जाए तो अपने पसंदीदा बाजार तक पहुँचने के लिए पुरानी दिल्ली की इन भीड़ भरी पतली सी गलियों से गुजरते हुए जाना बहुत कठिन है। तो चलिये चाँदनी चौक के कुछ नामी बाजारों में घूम कर आएं, जो दिल्ली के सबसे अच्छे बाजारों में गिने जाते हैं।
खारी बावली – मसालों का सबसे बड़ा बाजार
खारी बावली पुरानी दिल्ली का सबसे सुरभित बाजार है, जो हमेशा विविध प्रकार के मसालों की सुगंध से महकता रहता है। यह शायद, दुनिया में मसालों का सबसे बड़ा बाजार है। लेकिन यात्रा और पाक काला के पेशेवरों द्वारा मसालों से भरे-पूरे इस बाजार के साथ पूरा न्याय नहीं हो पाया है। अगर आप इस बाजार में घूमेंगे तो आपको यहां की दुकानों में व्यवस्थित रूप से रखे हुए मसालों के ढेर दिखेंगे। तो दुकानों के बाहर बोरियों में रखी हुई मसालों की सामग्री की वस्तुएं, जैसे लाल मिर्च नज़र आएगी। इन में से जो मसाले थोडे महंगे होते हैं, जैसे केसर, उन्हें छोटे-छोटे बक्सों में रखा जाता है, जिनपर उनकी कीमत लिखी गयी होती है।
यहीं पे पास में ही गड़ोडिया हवेली है, आप चाहें तो वहां जा सकते हैं। इस हवेली की छत से शाहजहांबाद में फैली विरासत देखी जा सकती है। यहां से आप नीचे स्थित खारी बावली का उपर से दिखनेवाला सुंदर सा नज़ारा भी देख सकते हैं। जहां पर मसालों की विविध सामग्री, जैसे हल्दी के टुकडे, लाल मिर्च तथा सामग्री की अन्य वस्तुओं को सुखाते हुए देखा जा सकता है।
खारी बावली फतेहपुरी मस्जिद के ठीक पीछे बसा हुआ है, जिसे ढूंढने में आपको ज्यादा कठिनाई नहीं होती। अगर आपको लगे कि आप रास्ता भटक गए हैं, तो बेझिजक किसी से भी पूछ लीजिये या फिर मसालों की सुगंध की ओर चलते जाइए।
दरीबा कलां – चाँदी की गली
यह महिलाओं की पसंदीदा गली है, खासकर उन महिलाओं की जिन्हें चाँदी के गहने बहुत पसंद है। यहां के छोटे-बड़े सारे दुकान चाँदी की वस्तुओं से भरे हुए हैं, जिनमें से अधिकतर गहने बेचते हुए दिखाई देते हैं। लेकिन इन में कुछ दुकानें ऐसी भी हैं, जो चाँदी के बर्तन और चाँदी की बनी देवी-देवताओं की मूर्तियाँ भी बेचते हैं। ये दुकानें छोटी जरूर लगती हैं पर अगर आप उन्हें कुछ भी दिखाने को कहे तो वह चीज उनके पास जरूर मिलती है। चाँदी के अलावा आपको यहां पर रत्न और जवाहर बेचती हुई दुकानें भी नज़र आएंगी। जिनमें इन कीमती पत्थरों से बनाई गयी मालाएँ बेची जाती हैं, जैसे लापिस लाजुली, कोरल्स, बाघ की आँख और रोज क्वोर्ट्ज। आप इनमें से छोटी बड़ी कोई भी माला ले सकते हैं। बड़े-बड़े चमकीले दुकानों की तुलना में यहां पर इन गहनों की कीमत बहुत कम होती है। यहां पर मोती भी बेचे जाते हैं, लेकिन मेरे खयाल से मोतियों की खरीदारी के लिए हैदराबाद सबसे अच्छी जगह है। इसलिए अगर आपको मोती पसंद है तो मैं आपको हैदराबाद से ही मोती खरीदने की सलाह दूँगी। लेकिन अगर आप चाहें तो यहां से भी अपने पसंदीदा मोतियों की खरीद कर सकते हैं।
दरीबा कलां में आपको हाथों से बनाए गए इत्तरों की दुकानें भी मिलेंगी, जैसे ‘गुलाब सिंह जोहरी माल दुकान’। दरीबा कलां की गली लाल किले से ज्यादा दूर नहीं है। यहां से आप गौरी शंकर मंदिर और सीसगंज गुरुद्वारे के बीच में स्थित एक छोटी सी गली से गुजरकर लाल किले तक पहुँच सकते हैं। अगर आप जामा मस्जिद की ओर से आ रहे हैं, तो यही वह रास्ता है जो जामा मस्जिद के पृष्ठ भाग को चाँदनी चौक से जोड़ता है।
मीना बाजार – जिसके बारे में आपने सुना तो होगा, पर कभी देखा नहीं होगा
मीना बाजार मुगल काल का सबसे प्रसिद्ध बाजार है। आज यह नाम कपड़ों के प्रसिद्ध ब्रांड द्वारा अपनाया गया है जो दिल्ली की बड़ी-बड़ी दुकानों में नज़र आता है। इसी नाम से प्रेरित होकर ‘दिल्ली शहर का सारा मीना बाजार लेकर…’ जैसे गाने भी बनवाए गए थे। मुझे लगता है कि शायद यह नाम मीनाकारी काम, जो लाख के कंगनों पर किया जाता था, से लिया गया होगा। इस प्रकार की कारीगरी आप आज भी हैदराबाद और राजस्थान के कुछ हिस्सों में देख सकते हैं। मुझे याद है कि जब हम लाल किले में प्रकाश और ध्वनि का कार्यक्रम देखने गए थे, तो वहां पर इस कार्यक्रम के द्वारा मीना बाजार की ध्वनियों को पुनः निर्मित करने का प्रयास किया गया था, जहां महिलाओं की हंसी के बीच झनझनाती घंटियों और खनकते हुए कंगनों की आवाजें गूँजती हुई सुनाई देती थी।
मीना बाजार के इस गौरवशाली अतीत का एक छोटा सा अंश आज जामा मस्जिद के पीछे देखा जा सकता है। आज भी आप यहां पर रंगीन साड़ियाँ और कपड़े खरीद सकते हैं। समाज का एक छोटा सा भाग आज भी यहां पर अपनी खरीदारी करने आता है। मेरे जैसे यात्रियों के लिए तो यह एक प्रसिद्ध बाजार है, जिसने कभी इससे भी अच्छे दिन जरूर देखे होंगे। मीना बाजार जामा मस्जिद और लाल किले के ठीक बीचो-बीच ही बसा हुआ है।
नई सड़क – किताबों की दुनिया
नई सड़क का नयापन सिर्फ उसके नाम तक ही सीमित है। यहां पर आस-पास आपको कुछ भी नया नहीं दिखाई देता। एक जमाने में यह सड़क नर्तकियों के लिए मशहूर हुआ करती थी। अगर आप अपने आस-पास देखे तो, यहां के छज्जे आपको अपने अतीत की दास्तां बयां करते हुए नज़र आएंगे। लेकिन आज इस जगह पर थोक में किताबों की बिक्री होती है। यहां के दुकानदार फुटकर ग्राहकों में ज्यादा रुचि नहीं लेते क्योंकि वे थोक व्यापारियों की ताक में होते हैं। फुटकर ग्राहक उनके व्यस्त से जीवन में किसी बाधा के समान होते हैं। मुझे याद है, जब मैं वहां पहली बार गयी थी तो मुझे किस प्रकार से उनसे निपटना पड़ा था।
नई सड़क ऐसी जगह है, जहां पर विविध विषयों की किताबें उपलब्ध होती हैं। एक पुस्तक प्रेमी होने के नाते इतनी सारी किताबों के पास से गुजरते हुए जाना एक अलग ही अनुभव है। अगर आपको कुछ गिनी-चुनी किताबें, खासकर हिन्दी की किताबें चाहिए हो तो उसके लिए इससे अच्छी जगह आपको नहीं मिलेगी। यहां पर आप स्वयं ही अपनी मनपसंद किताब ढूंढ सकते हैं, जिसके लिए आपको पता होना जरूरी है कि आप क्या चाहते हैं। आज मेरा व्यक्तिगत पुस्तकालय नई सड़क की विलक्षण दुकानों से खरीदी गयी काफी सारी किताबों से सुसज्जित है।
मुझे याद है, एक बार मैं किताबों की किसी दुकान में गयी थी जहां पर आयुर्वेद तथा अन्य औषधि विज्ञानों से संबंधित किताबें बेची जाती थी। सिर्फ एक ही विषय पर इतना सारा साहित्य पाकर मैं हैरान रह गयी थी।
नई सड़क की गली चाँदनी चौक के नगर सभागृह के ठीक सामने ही है। या फिर आप चावडी बाजार तक दिल्ली की मेट्रो ले सकते हैं और वहां से नई सड़क तक पैदल ही जा सकते हैं।
भागीरथ महल – आपके घर का विभूषक
जो जगह कभी बेगम समरू का महल हुआ करती थी, आज उसे दो भागों में विभाजित कर, एक को बैंक और दूसरे भाग को दीयों के बाज़ार में तब्दील किया गया है। यह वही जगह है जहां बहादुर शाह जफर को 1857 की क्रांति के बाद बंदी बनाकर रखा गया था। लेकिन आज इस स्थान का बदला हुआ रूप देखकर इसके अतीत की कल्पना करना थोड़ा कठिन है। अब यह महल विरासत भवन बन गया है, जिसमें आपको अनेक प्रकार की दुकानें मिलेंगी और दिन भर ग्राहकों की चहल-पहल भी दिखेगी। इस जगह को अपना नाम सेठ भागीरथ माल से प्राप्त हुआ है, जो इस महल के खरीदार और मालिक थे।
अगर आप अपने घर के नवीकरण के बारे में सोच रहे हैं तो आपको यहां पर जरूर जाना चाहिए। मुझे वहां के लोगों द्वारा बताया गया कि दिवाली के समय यहां पर बहुत भीड़ रहती है। यह सुनकर मैं सोच में पड़ गयी कि इतनी भीड़ भरी जगह पर लोग कैसे खड़े रहते होंगे और अपनी खरीदारी कैसे करते होंगे।
भागीरथ महल चाँदनी चौक के मेट्रो स्टेशन से ज्यादा दूर नहीं है।
सीताराम बाजार – सजीले गहने
यह बाजार तुर्कमान दरवाज़े, जो शाहजहांबाद में सुरक्षित बचे कुछ ही प्रवेश द्वारों में से एक है, के पास ही स्थित है। अगर आपको कृत्रिम और सजीले गहने पसंद हो तो यह स्थान आपके लिए एकदम सही है। ये गहने विविध रंगों और आकारों के तराशे हुए मनकों से बनवाए गए हैं। इनमें से कुछ गहने जानवरों की हड्डियों से भी बनवाए गए हैं।
यहां पर मिलनेवाले गहने आप दिल्ली के हाट बाजारों तथा देश में फैले गहनों के अनेक दुकानों में भी देख सकते हैं। फर्क सिर्फ इतना है कि यहां पर आपको इन गहनों के ढेर दिखाई देते हैं जो अस्थ-व्यस्त से जमीन पर पड़े होते हैं या फिर उनका समूह बनाकर उन्हें किसी रस्सी या लटकन से लटकाया जाता है। जबकि बड़ी-बड़ी दुकानों में इन्हें व्यवस्थित रूप से प्रदर्शित किया जाता है। यहां की अव्यवस्था में आपको अपने पसंदीदा गहने ढूंढने के लिए इन सारी वस्तुओं को ध्यान से देखना पड़ता। इनका मूल्य ज़्यादातर निर्धारित ही होती है। लेकिन देखा जाए तो शहर के अन्य दुकानों की तुलना में यहां के दुकानों में ये गहने इतने सस्ते में मिलते हैं कि, आपको मोल-भाव करने की जरूरत ही महसूस नहीं होती।
किनारी बाजार – पुरानी दिल्ली का सबसे रंगीन बाजार
यह दिल्ली की सबसे रंगीन, चमकीली और जगमगाने वाली गली है। मेरे हिसाब से यह दिल्ली की सबसे प्रज्वलित गली है। यह गली चाँदनी चौक के समानांतर ही है, जिसके एक छोर पर आपको परांठेवाली गली मिलती है। किनारी बाजार वह जगह है जहां पर आपको अपने कपड़ों और घर को सजाने की सारी आवश्यक वस्तुएं उपलब्ध होती हैं। दर्जी, पोशाक डिज़ाइनर, फ़ैशन डिज़ाइनर, जैसे लोगों के लिए यह जगह किसी स्वर्ग से कम नहीं है। आते-जाते हुए यात्रियों के लिए तो यह सिर्फ विविध प्रकार के रंगीन फीतों का ढेर है, जो वे अपनी साड़ियों और दुपट्टे को और भी आकर्षक बनाने हेतु उपयोग कर सकते हैं। अगर महिलाओं को यहां पर अकेले ही छोड़ दिया जाए तो वे यहां के माहौल में इतनी लीन हो जाएंगी कि शायद यहां से बाहर निकलना ही भूल जाएं।
मैं किनारी बाजार में वहां की रंगीनता का आनंद लेने और वहां पर मिलने वाली खुरचन मिठाई खाने जाती हूँ।
चोर बाजार – जहां विक्रेता चोर होते हैं और आप ग्राहक
हर बड़े शहर में चोर बाजार या फिर उनका कोई और दूसरा रूप जरूर होता है, जहां पर चोर अपनी लूट का सामान बेचते हैं। पुरानी दिल्ली का यह चोर बाजार जामा मस्जिद के पीछे ही स्थित है। अगर आप इस बाजार में जाए तो आपको अपने आस-पास सिर्फ ऑटो पार्ट्स ही नज़र आएंगे। पुरानी दिल्ली के लोगों का कहना है कि अगर आपकी गाड़ी का कोई भी पार्ट चोरी हो जाए तो आप अगले ही दिन चोर बाजार जाकर उसे खरीदकर वापस ला सकते हैं। बेशक, अगर आपकी किस्मत इसमें आपका थोड़ा सा भी साथ दे तो आपको अपनी वस्तु जरूर मिलेगी।
इन्हीं सारी बातों को ध्यान में रखकर जब आप पुरानी दिल्ली के चोर बाजार में जाते हैं, तो आप अनायास ही वहां की सारी वस्तुओं का निरीक्षण करने लगते हैं, जैसे कि यहां पर पड़ा कोई पार्ट आपकी गाड़ी का भी हो।
यह एक अजीब सा बाजार है, जहां पर गाड़ी प्रेमी मुश्किल से मिलने वाले स्पैर पार्ट्स ढूंढने आते हैं। कभी-कभी जब मैं इस बाजार से गुजरती हूँ तो मैं ऐसे ही वहां के एकाध लड़के से बातचीत करने के लिए ठहरती हूँ ताकि उनके व्यापार की कुछ जानकारी प्राप्त कर सकू। और हर बार उनके पास बताने के लिए कोई न कोई कहानी जरूर होती है। ये कहानियाँ सच्ची हैं या काल्पनिक यह तो वे ही जानते हैं।
चावडी बाजार – निमंत्रण पत्रों की कलाकारी
यह बाजार शादियों के निमंत्रण पत्र बनावने के लिए बहुत प्रसिद्ध है। यह पूरी गली ही शादी के कार्ड बेचनेवालों की दुकानों से भरी है। यहां पर भी थोक में खरीदारी करनेवाले ग्राहक ही आते हैं। शादियों के समय के ठीक पहले यहां की दुकानों में बैठकर अनेकों परिवार निमंत्रण पत्रों के रंग और प्रकार पर बहस करते हुए नज़र आते हैं। जब भी मैं चावडी बाजार से गुजरती हूँ, एक ही खयाल हमेशा मेरे दिमाग में आता है, कि ऐसे में ये लोग न जाने शादी के कितने सारे निमंत्रण पत्र बेचते होंगे, कि उन्हें अपने लिए पूरे बाजार की ही जरूरत हो।
इससे पहले कि आप सोचे कि मैं शादियों के निमंत्रण पत्रों के बाजार में क्या कर रही हूँ, तो मैं आपको बता दूँ कि यहां पर शादियों के पत्रकों के अतिरिक्त और भी कुछ है जो शायद आपकी जरूरत का हो सकता है। यहां स्टेशनरी की सबसे अच्छी वस्तुएं किफायती मूल्य में उपलब्ध होती हैं। मैं 2011 में दिल्ली से स्थानांतरित हुई थी, लेकिन आज भी मेरे कार्य तालिका पर चावडी बाजार की बहुत सी वस्तुएं हैं।
आप चावडी बाजार की प्राचीन वस्तुओं की दुकानों में भी जा सकते हैं, जहां पर पीतल की बनी पुरानी वस्तुएं बेची जाती हैं।
आप चावडी बाजार के मेट्रो स्टेशन से आसानी से यहां पहुँच सकते हैं।
बल्लीमारान – चमड़े के सामान के लिए मशहूर
बल्लीमारान, कासिम जान की गली में स्थित वह जगह है जहां मिर्ज़ा ग़ालिब रहा करते थे। यहीं पर उन्होंने अपने लिए किराए पे एक हवेली ली थी, जहां पर उन्होंने अपने जीवन के अंतिम दिन गुजारे थे। यह हवेली अब एक संग्रहालय बन गयी है। यह विडंबना की ही बात है, कि जिस हवेली में वे रहा करते थे, उस के बाहर आज जूतों का या चमड़े का बाजार लगता है। यहां पर सड़क के दोनों तरफ जूते बेचनेवाले नज़र आते हैं। इसके अलावा यहां पर ऐनक भी बेचे जाते हैं।
बल्लीमारान फतेहपुरी मस्जिद के पास ही स्थित है।
चाँदनी चौक में इनके अलावा और भी छोटे-बड़े बाजार हैं। मैं कपड़ों के बाजार में नहीं गयी हूँ क्योंकि, वहां पर फुटकर ग्राहकों को ज्यादा भाव नहीं दिया जाता है।
तो अब आप पुरानी दिल्ली के किस बाजार में जाने की सोच रहें हैं?
mujhe thok me shadi card lena hai
aap mujhe disbuter se sampark kra sakte hai mai ranchi jharkhand se hu
mera mo. na. 7979089370