अनुराधा गोयल : प्रिय मित्रों, आज मैं आपको अप्रतिम प्रकृति के आँचल में जड़ी एक मणि, भूटान की यात्रा पर ले चलती हूँ। हिमालय पर्वत क्षेत्र में समाये इस सुन्दर देश के विषय में जानने के लिए रुचिरा कंबोज जी से उत्तम कौन होगा, जो इस समय भूटान में हमारी राजदूत हैं। कई वर्षों पूर्व मैं रुचिरा जी के संपर्क में आयी थी। उस समय रुचिराजी भारत के स्थाई प्रतिनधि के रूप में यूनेस्को, पेरिस में नियुक्त थीं। जब नालंदा एवं चंडीगढ़ को यूनेस्को ने चयनित किया था तब हम दोनों ने साथ में उस उत्सव में भाग लिया था। यूनेस्को द्वारा मनोनीत करवाने के लिए रुचिरा जी ने ऐसे अनेक स्थलों के लिए महत्वपूर्ण कार्य किया है। आज हम भूटान, उसके इतिहास एवं संस्कृति पर उनसे चर्चा करेंगे। रुचिरा जी, डिटूर्स के इस संस्करण में आपका हृदयपूर्वक स्वागत है।
रुचिरा कंबोज : धन्यवाद अनुराधा। मुझे भी इस चर्चा में भाग लेते हुए अत्यंत प्रसन्नता हो रही है। मुझे स्मरण है, २०१४-२०१७ के मध्य जब मैं यूनेस्को में नियुक्त थी, तब से हमारा परिचय है। भारत की समृद्ध संस्कृति के विषय में आपके ज्ञान एवं उत्साह की मैं सदा से ही प्रशंसक रही हूँ। मेरे विचार से प्रत्येक भारतीय को अपने भारतीय होने का तथा महान भारतीय सभ्यता का अंग होने पर गर्व होना चाहिए। आप उसी समृद्ध संस्कृति एवं अतुलनीय धरोहर का सराहनीय प्रतिनिधित्व करती हैं। आपके इस प्रकल्प में भाग लेना मेरे लिए भी एक सौभाग्य है।
भूटान के इतिहास, धरोहर एवं संस्कृति पर रुचिरा कंबोज से एक चर्चा
भारतीय राजदूत रुचिरा कंबोज जी से भूटान के इतिहास, धरोहर एवं संस्कृति पर चर्चा का विडियो देखिये।
अनुराधा : धन्यवाद रुचिरा जी। मैंने लगभग १३ वर्षों पूर्व भूटान का भ्रमण किया था। उस समय वह एक राजसत्तात्मक देश था। वहां प्रथम चुनाव भी नहीं हुआ था। इस यात्रा की मेरी अत्यंत सुखद स्मृतियाँ हैं। वह एक स्वप्नवत देश है। हिमालय पर्वत श्रंखलाओं के मध्य, अनेक कथाओं को छुपाये, यह एक गूढ़ प्रदेश है। मैं रुचिरा जी से निवेदन करती हूँ कि वे हमें भूटान के उत्कृष्ट एवं बहुमूल्य विशेषताओं के कोष को उजागर करें।
रुचिरा जी, भूटान कितना प्राचीन है? इस देश में कब से लोगों ने सभ्यता बसाई? यहाँ की कौन कौन सी प्राचीनतम धरोहर हैं जिन्हें हम देख सकते हैं?
प्राचीन आकर्षण
रुचिरा : भूटान के लिए १९०७ एक महत्वपूर्ण तिथि है। उस समय भूटान में सर्वप्रथम राजतंत्र की स्थापना हुई थी. जब प्रथम वंशानुगत राजशाही का नामांकन हुआ था। गोंग्सर उग्येन वांगचुक को प्रथम ड्रक ग्यालपो अर्थात् भूटान का प्रथम राजा घोषित किया था।
अस्थायी एवं धर्मनिरपेक्ष प्रशासन को संगठित एवं एकीकृत कर महाराज के शासन के अंतर्गत लाया गया था। महाराज ने भूटान को संयुक्त रखा, घरेलू शान्ति सुनिश्चित की तथा भूटान एवं ब्रिटिश भारत के मध्य मैत्री एवं सहयोग को दृढ़ किया। तो ऐसा कहा जा सकता है कि भूटान राष्ट्र के बीज लगभग १९०७ में बोए गए थे। लगभग एक शताब्दी के पश्चात, सन् २००८ में, यहाँ का संविधान अस्तित्व में आया। आज भूटान राजशाही एवं संवैधानिक लोकतंत्र दोनों है। यह है इस देश का संक्षिप्त इतिहास।
भारत के समान, भूटान की भी अत्यंत समृद्ध सांस्कृतिक धरोहर है जो समय के साथ शनैः शनैः आधुनिकता की ओर अग्रसर है। सन् १९९९ में भूटान ने पृथकतावाद की नीति को समाप्त किया तथा स्वयं को मुख्य धारा में सम्मिलित किया। आज आपको इसका एक नवीन रूप दृष्टिगोचर होगा।
भूटानी वास्तुशैली के विभिन्न रूप
भूटान ने आधुनिकता की दौड़ में स्वयं को अग्रसर रखते हुए अपनी विशिष्ट शैली को अटल रखा है। भूटान में चारों ओर आप मंत्रमुग्ध करने वाली प्राचीन, विशिष्ट एवं मनमोहक भूटानी वास्तुशैली के सम्मिश्रण देख सकते हैं। द्जोंग या किले, भूटान के लोकप्रिय बौद्ध मठ, चोर्टेन अथवा स्तूप, ल्हाखांग या मंदिर तथा पारंपरिक भूटानी घर इत्यादि को देखकर आपको इसका अनुभव हो जाएगा।
थिम्पू में सिम्टोखा द्जोंग इसका प्रत्यक्ष उदहारण है। भूटान के इस प्रथम द्जोंग का निर्माण सन् १६२९ में शब्दरूंग नामग्याल ने करवाया था। जब हमारे प्रधान मंत्री श्री नरेन्द्र मोदी भूटान की यात्रा पर थे, तब उन्होंने भूटान की जनता को शब्दरूंग नामग्याल की एक सुन्दर प्रतिमा उपहार में दी थी। वह भारत सरकार एवं जनता की ओर से भूटान एवं उसके लोगों को एक अविस्मरणीय भेंट थी।
टाइगर नेस्ट
भूटान की एक अप्रतिम धरोहर है तक्तसांग मठ जिसे टाइगर नेस्ट भी कहते हैं। भूटान की यात्रा पर जो भी पर्यटक आता है उसने इस अप्रतिम एवं भव्य मठ के दर्शन अवश्य करना चाहिए। इसके अतिरिक्त पारो में भूटान का राष्ट्रीय संग्रहालय है जो अत्यंत दर्शनीय है। पारो के ताचोगांग ल्हाखांग में लोहे का एक प्राचीन सेतु है। थिम्पू का ज़ोरिग चुसुम राष्ट्रीय संस्थान है जो भूटान के तेरह पारंपरिक हस्त एवं शिल्प कलाओं की सांस्कृतिक धरोहर एवं विरासत को संजोये हुए है।
ये भूटान के समृद्ध सांस्कृतिक एवं ऐतिहासिक धरोहरों में से कुछ प्रमुख नाम हैं। प्राचीन होने के पश्चात भी उत्तम संरक्षण एवं संवर्धन के रहते ये सब अब भी अत्यंत सुन्दर एवं दर्शनीय हैं। पर्यटकों को इनके दर्शन अवश्य करना चाहिए।
भूटान के सांस्कृतिक धरोहरों का संरक्षण एवं संवर्धन
भूटान का संविधान देश के सांस्कृतिक एवं ऐतिहासिक धरोहरों के संरक्षण एवं संवर्धन को अत्यधिक महत्त्व देता है। संविधान में इसके लिए संस्थागत ढांचा बनाया गया है। जैसे, संविधान के अनुच्छेद ४ के खंड १ में देश के सांस्कृतिक एवं ऐतिहासिक धरोहरों के संरक्षण एवं संवर्धन तथा हस्त व शिल्प कला के महत्त्व का स्पष्ट रूप से उल्लेख किया गया है। मूर्त एवं अमूर्त कला के संवर्धन पर भी जोर दिया गया है, जिसमें भूटान का लोकप्रिय मुखौटा नृत्य भी सम्मिलित है।
ड्रामेत्से उत्सव
ड्रामेत्से जनजातियों का मुखौटा नृत्य एक पवित्र नृत्य प्रदर्शन है। ड्रामेत्से उत्सव में किया जाने वाला यह नृत्य गुरु पद्मसंभव को समर्पित किया जाता है जिन्हें भूटान में द्वितीय बुद्ध माना जाता है। यूनेस्को ने सन् २००८ में मानवता की अमूर्त सांस्कृतिक धरोहर की प्रतिनिधि सूची में इसे अंकित किया है।
भारत का भूटान से अत्यंत महत्वपूर्ण एवं सौहार्द पूर्ण सम्बन्ध हैं। भारत के प्रत्येक पर्यटक को पर्याप्त पूर्व जानकारी प्राप्त करने के पश्चात इन सांस्कृतिक एवं ऐतिहासिक धरोहरों के दर्शन करना चाहिए।
राष्ट्रीय संग्रहालय – भूटान के इतिहास, धरोहर एवं संस्कृति का दर्पण
अनुराधा : मैंने पारो के राष्ट्रीय संग्रहालय का अवलोकन किया था। मुझे स्मरण है, वह शंख के आकार का था। भूटान के विषय में मेरी धारणा है कि वह अपने सांस्कृतिक एवं ऐतिहासिक धरोहरों के संरक्षण के साथ साथ अपने भविष्य की ओर भी आधुनिक रूप से अग्रसर है तथा स्वयं को विश्व की मुख्य धारा से जोड़कर रखना चाहता है। भूटान में आप इसका प्रत्यक्ष अनुभव ले सकते हैं।
रुचिरा : आपने सही कहा। आदर्श रूप से यही आवश्यक है। समकालीन बनने के साथ अपनी धरोहरों से दृढ़ता से जुड़े रहना अत्यंत आवश्यक है। यह किसी भी देश के नैतिक मूल्यों के लिए अत्यंत आवश्यक है। भूटान इस सिद्धांत में परिपक्व है। पारो के राष्ट्रीय संग्रहालय का हाल ही में जो आधुनिकीकरण किया गया है, वह इस सिद्धांत का उत्कृष्ट उदहारण है।
इस प्रकल्प में भारत ने भी सहयोग किया है। संग्रहालय का सौन्दर्यीकरण तो किया ही है, साथ ही जिस प्रकार कलाकृतियों को प्रदर्शित किया गया है, वह भी अप्रतिम है। यह भारत के लिए भी गर्व का विषय है।
पारो
अनुराधा: पारो एक छोटा किन्तु सुन्दर नगर था। यहाँ मुख्य रूप से विमानतल तथा अप्रतिम प्राकृतिक सौंदर्य था। क्या वहाँ कुछ विकास अथवा परिवर्तन हुए है?
रुचिरा : आप यहाँ अनेक वर्ष पूर्व आईं थी। विमानतल के अतिरिक्त अब यहाँ अनेक अप्रतिम होटल बनाए गए हैं तथा अनेक दर्शनीय स्थल विकसित किये गए हैं। भूटान यात्रा में आये पर्यटक यदि पारो को धुरी बनाकर भ्रमण करें तो निराश नहीं होंगे।
भारत-भूटान सम्बन्ध
अनुराधा : कृपया भारत-भूटान सम्बन्धों पर कुछ प्रकाश डालें।
रुचिरा : भूटान सदा से एक स्वतन्त्र देश रहा है। वह भारत का एक परममित्र देश है। सदियों से विभिन्न क्षेत्रों में दोनों देशों ने एक दूसरे का सहयोग किया है। दो पड़ोसी देश किस प्रकार एक दूसरे के साथ सौहार्दपूर्ण सम्बन्ध निभाते हुए सहयोग कर सकते हैं, भारत-भूटान सम्बन्ध सम्पूर्ण विश्व के लिए इसका जीता जागता उदाहरण है। भारत के प्रधानमंत्री ने सर्वप्रथम १९५८ में भूटान की यात्रा की थी। वह एक ऐतिहासिक घटना थी जिसने भारत-भूटान संबंधों की नींव रखी थी।
समय के साथ इन संबंधों में बढ़ोतरी होती गयी। यहाँ के राजाओं एवं भारत के नेताओं ने इसमें सदा सकारात्मक भूमिका निभाई है। २०१४ में इन संबंधों में तीव्रता से वृद्धि हुई जब प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी जी भूटान पहुंचे। प्रधान मंत्री का कार्यभार स्वीकार करने के उपरान्त वह उनकी प्रथम विदेश यात्रा थी। २०१९ में भी अपने द्वतीय कार्यकाल के आरम्भ में उन्होंने भूटान को अपनी विदेश यात्रा की सूची में सम्मिलित किया था। भारत ने भूटान के संग अपने संबंधों को सदा ही महत्वपूर्ण माना है।
भूटान ने भी इन संबंधों को उत्साहपूर्वक निभाया है। २०१८ में यहाँ के प्रधान मंत्री डॉक्टर लोटे त्शेरिंग ने अपना कार्यभार स्वीकारने के पश्चात् सर्वप्रथम भारत का दौरा किया था। भारत-भूटान संबंधों में राजनैतिक, वित्तीय, सांस्कृतिक, जनमानस, विज्ञान एवं तकनीकी, सभी स्तरों पर वृद्धि हुई है। आज भारत में अनेक भूटानी विद्यार्थी अध्ययन कर रहे हैं। हम कह सकते हैं कि भूटान एवं भारत एक दूसरे के परम मित्र एवं सहयोगी हैं।
भूटान में आध्यात्मिकता
अनुराधा : भूटान के आध्यात्मिकता की चर्चा करें तो वह मूलतः एक बौद्ध देश है। वहीं, बौद्ध धर्म का उद्भव भारत के पूर्वी भागों से हुआ है। अतः, एक प्रकार से भारत एवं भूटान इस विषय में भी कुछ साम्यता रखते हैं?
रुचिरा : भारत एवं भूटान के मध्य प्रगाढ़ आध्यात्मिक सम्बन्ध है। भूटान में बौद्ध धर्म भारत से ही पहुंचा है। हम सब सिद्धार्थ गौतम के भगवान बुद्ध बनने की कथा जानते ही हैं। हम द्वितीय बुद्ध गुरु पद्मसंभव के विषय में भी जानते हैं जो एक भारतीय संत थे। यहाँ उन्हें गुरु रिन्पोचे भी कहते हैं। ऐसी मान्यता है कि वे ओड्डियान राज्य के धनकोष झील में उगे कमल से उत्पन्न हुए हैं।
गुरु रिन्पोचे ने ८वीं सदी में यहाँ की यात्रा की थी जिन्हें आज भूटान के संरक्षक संतों में से एक माना जाता है। यहाँ के निवासियों के जीवन में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका मानी जाती है। आप उनकी प्रतिमाएं घरों, मठों, मंदिरों तथा उत्सवों में देख सकते हैं। वे भूटानी आध्यात्म एवं धार्मिक संस्कृति का केंद्र हैं। अतः भगवान बुद्ध के अतिरिक्त गुरु रिन्पोचे भी भारत एवं भूटान के मध्य एक सशक्त कड़ी है जो दोनों के मध्य संबंधों को विशेष बनाता है।
ओड्डियान के पद्मसंभव पर पुस्तक
२०१८ में दूतावास में हमने पद्मसंभव पर महत्वपूर्ण शोधकार्य किया था जिसके अंतर्गत हम ने “Padmasambhava of Oddiyana” इस पुस्तक का अंग्रेजी भाषा में प्रकाशन किया था। तत्पश्चात इसका स्थानीय राष्ट्रीय भाषा द्जोंग्खा में अनुवाद भी किया था। भूटान की रॉयल यूनिवर्सिटी में ९ जनवरी के दिन इस अनुवादित पुस्तक का विमोचन हुआ था। यह पुस्तक दोनों देशों के मध्य महान आध्यात्मिक जुड़ाव की ओर ध्यान केन्द्रित करती है।
भूटान- एक आध्यात्मिक देश
अनुराधा : मेरी भूटान की स्मृतियाँ एक अत्यंत आध्यात्मिक देश के रूप में है। चारों ओर अनेक लोग हाथों में प्रार्थना चक्र घुमाते दिखते हैं। वे जहां जाएँ, आपको किसी का किसी आकार तथा रूप में प्रार्थना चक्र अवश्य दृष्टिगोचर होगा, चाहे मंदिर या मठ हो अथवा होटल या जलपानगृह। एक स्थान पर मैंने जल-चालित चक्र भी देखा था।
रुचिरा : जी हाँ, हमारे दूतावास में भी एक सुन्दर जल-चालित प्रार्थना चक्र है। यहाँ प्रार्थना चक्र सर्वव्यापी है। यहां के वायुमंडल में ही आध्यात्म समाया हुआ है। अतः मैं पर्यटकों से कहना चाहूंगी कि जब वे अपनी यात्रा के समय स्मारकों एवं मठों का अवलोकन करेंगे, तब वहां के आध्यात्म का अनुभव भी अवश्य लें। भूटान यात्रा आपको आध्यात्म एवं शान्ति के एक भिन्न आयाम तक पहुंचा देती है।
मठ दर्शन
अनुराधा : भूटान प्रथम देश है जहां मैंने वास्तव में मठ के भीतर प्रवेश किया था। वह मठ थिम्पू की सीमा पर स्थित था। वहां उन्होंने प्रेम से मेरा स्वागत किया था तथा बटर चाय भी प्रस्तुत की थी। मैंने कई लामाओं से, जो भाषा वे समझ पायें, उसमें उनसे वार्तालाप भी की था। वह मठ दर्शन मेरे लिए अविस्मरणीय अनुभव था। मठ के भीतर भौतिक सौंदर्य से अधिक आध्यात्मिक उर्जा मंत्रमुग्ध कर देती है।
मुझे भूटान के वस्त्रों ने भी अत्यंत आकर्षित किया था। यह एक छोटा सा देश है जहां वस्त्रों की अनेक दुकानें नहीं हैं। फिर भी वहां का वस्त्र संग्रहालय प्रसिद्ध है। मैंने लगभग सभी घरों में हाथकरघा देखा था। यह दर्शाता है कि वे अपने पारंपरिक वस्त्रों को अत्यधिक महत्त्व देते हैं। संग्रहालय में भी पारंपरिक वस्त्रों एवं परिधानों को उत्कृष्टता एवं गरिमा से प्रदर्शित किया है।
पारंपरिक वस्त्र एवं परिधान
रुचिरा : जी हाँ। आपके पास भूटान के विषय में अथाह जानकारी है। यहाँ के लगभग सभी घरों में हथकरघा होना अत्यंत सामान्य है। भूटान के प्रत्येक क्षेत्र की बुनाई की पद्धति एवं रूपरेखा भिन्न होती है। उनमें भी, शाही परिवार के पैतृक क्षेत्र ल्हुन्त्से, जो देश का पूर्वी क्षेत्र है, वस्त्रों एवं बुनाई के लिए विशेष रूप से प्रसिद्ध है। भूटानी वस्त्र एक सम्पूर्ण कलाशैली का समृद्ध व जटिल कोष है।
भूटानी वस्त्रों की विशेषताएं हैं, भरपूर रंग, आकृतियों में विस्तृत भिन्नता तथा जटिल रंगाई व बुनाई तकनीक। भारत के समान यह भी चटक व आकर्षक रंगों का देश है। यहाँ अधिकांशतः स्त्रियाँ ही हथकरघे पर बुनाई करती हैं। सदियों से सहेज कर रखने के कारण उनकी अभिनवता एवं कलाकौशल अत्यंत विकसित है। उन्हें बुनाई करते देखना स्वयं में एक विशेष अनुभव है।
अनुराधा : भूटान में परिधान करने के लिए स्वयं ही अपने वस्त्र बुनने की परंपरा है। तो क्या वे व्यवसाय के रूप में हथकरघे का प्रयोग नहीं करते?
रुचिरा : प्राचीन काल में उन धागों से वस्त्रों की बुनाई होती थी जिन्हें बिछुआ घास तथा याक व भेड़ जैसे पशुओं के केश से प्राप्त किया जाता था। कालान्तर में कृत्रिम धागों का प्रवेश हुआ तथा आधुनिकता के चलते लोगों ने कृत्रिम वस्तुओं को अधिक प्राधान्यता देना आरम्भ कर दिया है। बाजार में भी ऐसी वस्तुओं की आवक में वृद्धि होने लगी। इसके अतिरिक्त. प्राचीन पद्धति अत्यंत लम्बी तथा श्रमशील है।
वर्तमान में लोग स्वास्थ्य के प्रति जागरूक हो रहे हैं। अब कृत्रिम वस्त्रों की अपेक्षा जैविक रंगों एवं वस्त्रों की ओर उनका रुझान बढ़ रहा है। अतः वस्त्र बुनाई की प्राचीन परंपरा अब भी जीवित है। यह भूटान के समृद्ध संस्कृति एवं परंपरा का द्योतक है।
खादी एवं थाक्जो
गत वर्ष हमने एक अनोखा प्रयोग किया था। रॉयल टेक्सटाइल अकादमी, खादी एवं ग्रामोद्योग आयोग के अध्यक्ष एवं भारत के फैशन डिजाईन कौंसिल, तीनों के सहयोग से खादी व थाक्जो को बढ़ावा देने के लिए एक फैशन शो का आयोजन किया था। महात्मा गाँधी के जन्मदिवस पर आयोजित इस समारोह में भारत एवं भूटान के अनेक मॉडलों ने खादी व थाक्जो वस्त्रों का प्रचार व प्रसार किया था। इस आयोजन को देखने व इसकी शोभा बढाने के लिए शाही रानी माँ जिग्मे सिंग्ये वांगचुक भी पधारी थीं।
अनुराधा : वे बहुत अच्छी वक्ता हैं। मैंने उन्हें जयपुर साहित्य उत्सव में सुना था।
रुचिरा : जी, हमारा सौभाग्य था कि उन्होंने हमारे उत्सव को भी एक राजसी छटा प्रदान की थी। यहाँ यात्रा पर आये पर्यटकों ने रॉयल टेक्सटाइल अकादमी अवश्य देखना चाहिए।
भूटान के उत्सव
अनुराधा : जी। रुचिरा जी, भूटान के कुछ प्रमुख उत्सवों के विषय में बताएं। भारत जैसे अत्यधिक जनसँख्या वाले देश से भूटान जैसे छोटे से देश में जाकर रहना आपके लिए कैसा अनुभव था?
रुचिरा : यह मेरा सौभाग्य एवं सम्मान है कि मैं भूटान की वर्तमान राजदूत हूँ। भारत एवं भूटान के बढ़ते संबंधों को मैंने समीप से अनुभव किया है। प्रवेश करते ही यह छोटा सा देश एवं इसकी सुन्दरता आपको मंत्रमुग्ध कर देती हैं।भूटान के निवासी अत्यंत अनुशासित तथा संयुक्त हैं। वे अत्यंत मृदु भाषी एवं मित्रतापूर्ण हैं। आपने भी इसका अनुभव किया होगा।
अनुराधा : मैं यहाँ सड़क मार्ग से आयी थी, तब ना तो मोबाइल फोन थे, ना ही इन्टरनेट। अतः वहां जाने से पूर्व मुझे उसके विषय में अधिक जानकारी प्राप्त नहीं हो पायी थी। भूटान ने मेरे समक्ष अनेक अचम्भे प्रस्तुत किये थे। यहाँ के निवासी मुझे अत्यंत आत्मीय प्रतीत हुए थे।
रुचिरा : अपनी आगामी यात्रा आप हवाई जहाज द्वारा कीजिये। आप सीधे पारो में पहुंचेंगीं जो प्राकृतिक सौंदर्य से परिपूर्ण है।
रुचिरा : भारत के समान, भूटानी लोगों के जीवन में भी धर्म की एक महत्वपूर्ण भूमिका है। यहाँ की संस्कृति ने इतनी सुन्दरता से सम्पूर्ण देश को जोड़ रखा है। भूटान का राजतंत्र अत्यंत प्रबुद्ध होने के साथ अत्यंत सेवा-समर्थक व जन-समर्थक भी है। लोगों में किसी भी प्रकार का मतभेद दृष्टिगोचर नहीं होता। सभी बौद्ध धर्म के अनुयायी हैं तथा अपने राजा एवं गुरु दोनों का समान रूप से सम्मान करते हैं।
अनुराधा : मुझे स्मरण है, भूटान में लोग अपने राजा से अत्यंत प्रसन्न थे। वे अपने राजा को मन भर के आशीष दे रहे थे। उस समय उन्हें लोकतंत्र की रत्तीभर भी समझ नहीं थी। रुचिरा जी, आईये भूटान के व्यंजनों पर कुछ स्वादिष्ट चर्चा करते हैं.
भूटान के विशेष व्यंजन
रुचिरा : भूटान के एक विशेष व्यंजन के विषय में बताना चाहती हूँ। एमा दात्सी, जो भूटान का राष्ट्रीय व्यंजन है। इसमें प्रमुख रूप से हरी मिर्चों एवं पनीर का प्रयोग किया जाता है। इस स्वादिष्ट व्यंजन को चावल के साथ परोसा जाता है।
यहाँ चावल, गेहूं, मक्का, सोयाबीन एवं कुछ पारंपरिक अनाजों की खेती की जाती है, जैसे जौ, मटर, बाजरा, सरसों, कुट्टू। इन्हें ड्रूनगु के नौ मूल अनाज कहते हैं। इनके अतिरिक्त आलू, गन्ना, इलायची, अखरोट एवं नारंगी का भी उत्पादन किया जाता है। यहाँ के होटलों में भूटानी व्यंजनों के साथ विदेशी व्यंजन भी उपलब्ध हैं। यहाँ की बटर चाय प्रसिद्ध है जिसे सुजा कहते हैं।
भूटान के संगीत एवं उत्सवों में अनेक पारंपरिक गीतों एवं नृत्यों का समावेश है, जैसे भूटान का लोकप्रिय मुखौटा नृत्य। उनका आनंद अवश्य उठायें। मैंने भी अपने राजदूत काल में अनेक ऐसे उत्सवों का आनंद उठाया है। सामूहिक नृत्यों में भी भाग लिया है।
अनुराधा : मैं जब भूटान यात्रा पर थी, वह उत्सव का समय नहीं था। अतः मैंने वह उत्सव नहीं देखा है। किन्तु मुझे स्मरण है, मैंने थिम्पू में मेरी जीवन का सर्वाधिक स्वादिष्ट पिज़्ज़ा खाया था।
रुचिरा : मैं इसमें आपका समर्थन करती हूँ। मैंने भी वहां क्लाउड नाइन नामक जलपानगृह में सर्वोत्तम पिज़्ज़ा खाया था। उसमें सभी सामग्रियां स्थानीय एवं जैविक होने के कारण वह अत्यंत स्वादिष्ट व ताजा था।
धनुर्विद्या – भूटान का राष्ट्रीय खेल
रुचिरा : भूटान की एक अन्य विशेषता है, खेल। खेल भूटान के सांस्कृतिक परिवेश का अभिन्न अंग है। उनका राष्ट्रीय खेल धनुर्विद्या है। उनके पारंपरिक खेलों में एक खेल कुरु भी है जिसमें लक्ष्य पर छोटी बरछियाँ फेंकते हैं। वहीं, एक कदम आगे बढ़ाते हुए वे आधुनिक खेलों में भी रूचि रखते हैं, जैसे फुटबाल, गोल्फ, टेनिस, बैडमिंटन, वॉलीबॉल, क्रिकेट इत्यादि। उनकी एक महिला क्रिकेट संघ भी है। इस प्रकार, भूटान परम्पराओं से जुड़ते हुए आधुनिकता की ओर अग्रसर है।
अनुराधा : भारतीय परम्परा के अनुसार, आपकी जड़ें जितनी गहरी हों, उतना ही आप फलेंगे-फूलेंगे। भूटान इसका जीवंत उदहारण है। वहां के स्त्री-पुरुषों को अपने राष्ट्रीय परिधान पर भी गर्व है जिसे वे दैनन्दिनी जीवन में भी ठाठ के साथ धारण करते हैं।
भूटान का राष्ट्रीय परिधान
रुचिरा : भूटान के राष्ट्रीय परिधान अत्यंत आकर्षक हैं। वहां की स्त्रियाँ लम्बा स्कर्ट ‘केरा’ व उसके ऊपर ‘टेगो’ धारण करती हैं तथा पुरुष ‘घो’ धारण करते हैं। ये विशेष परिधान हैं जिन्हें वे प्रत्येक सार्वजनिक आयोजनों तथा औपचारिक अवसरों में पहनते हैं। वे बहुधा अपने कार्यक्षेत्रों में भी राष्ट्रीय परिधान धारण करते हैं।
अनुराधा : यदि आप चाहते हैं कि विश्व आपकी संस्कृति का सम्मान करे, तो सर्वप्रथम आपको स्वयं उसका सम्मान करना होगा।
रुचिरा : सही कहा। भूटान इसका उत्कृष्ट उदहारण है।
अनुराधा : रुचिरा जी, इस ज्ञानवर्धक व रोचक दर्शन करवाने के लिए आपका हार्दिक अभिनन्दन! आपने भूटान के अनेक आयामों से सम्बंधित महत्वपूर्ण जानकारी देते हुए हमें भ्रमण भी करा दिया। आशा है, ऐसे ही अनछुए एवं आकर्षक मणियों के साथ पुनः वार्तालाप करने के लिए आप अपना बहुमूल्य समय देंगीं। आपका हृदयपूर्वक धन्यवाद करती हूँ।
रुचिरा : अवश्य। मुझे भी इस विषय में चर्चा करने में प्रसन्नता होगी। मुझे आमंत्रित करने के लिए धन्यवाद।
मूल वार्ता को लिखित संस्करण के रूप में प्रकाशित करने के लिए आवश्यकनुसार संशोधित किया गया है।
IndiTales Internship Program के अंतर्गत इस श्रव्य वार्तालाप की लिखित प्रतिलिपि अंशिका गर्ग ने तैयार की है।