स्ट्रीट फूड वो स्वादिष्ट व्यंजन होते हैं जो चहल-पहल भरे मार्गों के किनारे लगे ठेलों, गुमटियों व छोटी दुकानों में ताजे-ताजे मिलते हैं। आप भले ही एक अच्छे रसोइया हों या व्यंजन बनाने में निपुण हों, किन्तु अपने व्यंजनों में वही स्वाद उत्पन्न करना लगभग असंभव होता है जो इन गलियों के व्यंजन देते हैं। कदाचित यह स्वाद के साथ वहाँ के चहल-पहल भरे वातावरण का प्रभाव हो। या उन फेरीवालों से बने आत्मीय संबंधों का प्रभाव हो, जिसके कारण वे बड़े ही प्रेम से हमें अपने व्यंजन खिलाते हैं। या कदाचित उसी अनुभव की पुनरावृत्ति की चाह हमें वहाँ खींच कर ले जाती है। मेरे अनुमान से इसका उत्तर किसी के पास नहीं होगा। सत्य कहूँ तो जब तक सड़क के किनारे हमें हमारे प्रिय व्यंजनों का आस्वाद लेने का अवसर प्राप्त हो रहा है, किसी को इस प्रश्न के उत्तर की प्रतीक्षा भी नहीं होगी।
सड़क किनारे बिकते भारतीय स्वादिष्ट गलियों के व्यंजन उतने ही विविधतापूर्ण हैं जितना हमारा भारत देश। इन व्यंजनों के एक प्रकार वो होते हैं जो देश भर में उपलब्ध होते हैं। दूसरे वो जो एक क्षेत्र की विशेष पहचान होते हैं। प्रत्येक गाँव, नगर व शहर से संबंधित कुछ विशेष व्यंजन होते हैं जो केवल उसी क्षेत्र में उपलब्ध होते हैं। अन्यत्र नहीं। कुछ ऐसे विक्रेता होते हैं जो अनेक वर्षों से अपने ग्राहकों की चटोरी जिव्हा को संतुष्ट करते आ रहे हैं। उनके अनेक निष्ठावान प्रशंसक होते हैं जिन्हे वे विक्रेता अपने स्वादिष्ट व्यंजनों की सहायता से जोड़ते हैं। ऐसे विक्रेता एक प्रकार से उस नगरी की अप्रत्यक्ष धरोहर होते हैं। लखनऊ जाएँ एवं वहाँ की टोकरी चाट का आस्वाद ना लें अथवा मुंबई जाएँ तथा वहाँ का वड़ा-पाव चखे बिना ही लौट आयें, क्या आप ऐसी कल्पना भी कर सकते हैं?
भारत की मार्गों के किनारे हर दिन सैकड़ों प्रकार के विभिन्न स्वादिष्ट व्यंजनों का आस्वाद लिया जाता है। क्या आप जानना चाहते हैं कि इन व्यंजनों में कौन कौन से सर्वाधिक लोकप्रिय व्यंजन हैं? आईए मैं आपको भारत की इन्ही चटोरे मार्गों की सैर कराती हूँ।
वैधानिक चेतावनी – सावधान! आपके मुँह में पानी आ सकता है।
लोकप्रिय भारतीय चटोरी गलियों के व्यंजन
गोल गप्पे या पानी पूरी
सड़क किनारे बिकते लोकप्रिय भारतीय गलियों के व्यंजन की सूची में सर्वोच्च स्थान गोल गप्पे या पानी पूरी का है, इसमें कोई शंका नहीं है। आकार में २ इंच की छोटी सी पूरी या गोलगप्पा जिसमें मसाले वाले उबले आलू तथा चने का मिश्रण भरकर उसमें चटपटा मसालेदार पानी लबालब भरा जाता है। इसे ऐसे ही सम्पूर्ण खाना पड़ता है जिसके लिए मुंह बड़ा खोलना पड़ता है। जैसे ही हम मुंह बंद करते है, यह कुरकुरी पूरी टूट जाती है तथा मुंह में विभिन्न स्वादों की आंधी आ जाती है। हमारी सभी इंद्रियों पर विस्फोट हो जाता है। कानों में कुरकुरी पूरी के टूटने की ध्वनि, जिव्हा पर भिन्न भिन्न स्वाद, मुख पर हंसी, आँखों में कदाचित पानी, त्वचा पर तृप्ति के रोंगटे तथा हृदय में ऐसे ही एक और उपद्रव का लोभ।
पानी पूरी कभी भी पर्याप्त नहीं होती। खाते खाते भले ही पेट भर जाए लेकिन मन नहीं भरता।
इसे उत्तर भारत में गोल गप्पे, पश्चिम भारत में पानी पूरी, पूर्वी भारत में पुचका तथा मध्य भारत में पानी बताशे, बताशे अथवा गुपचुप कहते हैं।
तकनीकी रूप से भी इनमें किंचित भिन्नता होती है। जैसे गोल गप्पों में सदा ठंडा मसाला-पानी डाला जाता है। वहीं, पानी पूरी में गुनगुना तथा पुचका में कुछ डाले के बिना केवल मसाला-पानी डाला जाता है। इन सब में समान तत्व चटपटा खट्टा स्वाद होता है जो आपके जीभ पर कुछ समय तक रहता है।
आप भारत के किसी भी कोने में जाएँ, आपको गोल गप्पे का कोई ना कोई प्रकार अवश्य चखने मिलेगा।
समोसा/कचौरी
तिकोना समोसा अपनी गोल गोल मौसेरी बहिन कचौरी के संग उत्तर भारतीयों को विशेष रूप से प्रिय हैं। ये लोकप्रिय संध्याकालीन नाश्ते हैं। राजस्थान एवं उत्तर प्रदेश जैसे क्षेत्रों में तो अनेक लोग अपने दिन का आरंभ ही इन्ही से करते हैं। मेरे शालेय एवं विद्यार्थी दिवसों में गर्म गर्म समोसे के साथ एक गर्म चाय की प्याली हमें प्रसन्न कर देती थी। मेरे महाविद्यालय के जलपान गृह में केवल समोसे एवं चाय उपलब्ध थे। इनके अतिरिक्त हमें किसी अन्य व्यंजन की आवश्यकता भी नहीं पड़ती थी।
स्वाद के सामान्य हेरफेर के साथ समोसा भारत के सभी क्षेत्रों में लगभग सार्वभौमिक हैं। गोवा में इसका एक अन्य प्रकार, मशरूम समोसा भी बिकता है।
कचौरी अनेक प्रकार की होती है, जैसे दाल कचौरी, प्याज की कचौरी, पिट्ठी कचौरी इत्यादि।
सुझाव – आप दुकान में उसी समय पहुंचे जब समोसे/कचौरियाँ गर्म गर्म तली जा रही हों। सर्वोत्तम खस्ता स्वाद के लिए कढ़ाई से सीधे अपनी थाली में लें।
वड़ा पाव, पाव भाजी एवं बन मस्का
पाव अथवा पाओ का शाब्दिक अर्थ है, रोटी का एक चौथाई भाग। इसका प्रचलन तब आरंभ हुआ जब मुंबई के मिल कामगारों को जलपान के लिए बहुत कम समय की छुट्टी दी जाती थी। उस समय वे चाय के साथ एक पाव खाकर तुरंत कार्य पर लग जाते थे। मिल के जलपानगृह में यही पाव रस्से वाली भाजी के साथ उपलब्ध होती थी। शनैः शनैः मुंबई के अन्य जलपानगृहों एवं सड़क के किनारे गुमटियों व ठेलों में भी पाव-भाजी की बिक्री होने लगी।
मुंबनी के ईरानी कैफै ने पाव को भरपूर मक्खन के साथ परोसना आरंभ किया जो आज भी बन-मस्का के नाम से लोकप्रिय है।
सन् १९७० में वड़ा पाव का स्वरूप किंचित परिवर्तित हो गया जब दो पाव के बीच में आलू का बोंडा व चटनी भरकर एक नवीन प्रकार तैयार हुआ। यह प्रकार सर्वप्रथम दादर रेलस्थानक के आसपास अत्यंत लोकप्रिय हुआ। आज यह मुंबई की दौड़ती हुई जनता का प्रिय नाश्ता है। एक वड़ा-पाव उठाइए तथा खाते खाते अपने गंतव्य की ओर जाईए।
ये तीनों नाश्ते सम्पूर्ण महाराष्ट्र, विशेषतः मुंबई में अत्यंत प्रसिद्ध है। इन तीन पाव के व्यंजनों में मुझे पाव-भाजी सर्वाधिक प्रिय है। आप इन तीनों का आस्वाद लीजिए तथा बताईए आपको कौन सा सर्वाधिक प्रिय प्रतीत हुआ।
पाव के इन व्यंजनों का एक रूप मिसल-पाव भी है। इसमें पाव मिसल नामक रसे के साथ परोसी जाती है। मिसल की प्रमुख सामग्री अंकुरित मटकी के दानों की उसल होती है।
पकोड़ा या भजिया
कोई भी भाजी लीजिए, उसे बेसन के घोल में डुबोइए, तत्पश्चात गर्म तेल में तल लीजिए। आपके भजिए तैयार! अपनी प्रिय चटनी के साथ खाइए। पकोड़ों के साथ टमाटर, पुदीना तथा इमली की चटनियाँ अधिक लोकप्रिय हैं। दक्षिण भारत में तो पकोड़ों के साथ सर्वव्यापी नारियल की चटनी परोसी जाती है।
सम्पूर्ण भारत देश में सर्वाधिक लोकप्रिय पकोड़े प्याज के हैं। स्वाद व आकार में किंचित परिवर्तन हो सकता है। कुछ प्रदेशों में बेसन में अन्य आटे मिलाए जाते हैं, जैसे चावल का आटा। किन्तु मूल स्वाद एवं बनाने की रीत लगभग समान ही होती है। पकोड़ों में दूसरा प्रिय चयन है आलू। आलू भी भारत में सर्वत्र उपलब्ध है। इसके पश्चात फूल गोभी का स्थान है जो बहुधा उत्तर भारत में अधिक पसंद किया जाता है।
दक्षिण भारत में मिर्ची की भज्जी अत्यंत लोकप्रिय है। इसके लिए बड़ी मिर्चों का प्रयोग किया जाता है जो अधिक तेज नहीं होती।
सम्पूर्ण भारत में विद्यार्थीगणों में ब्रेड पकोड़ा अत्यंत लोकप्रिय है क्योंकि यह क्षुधा शांत करने में अत्यंत कारगर होता है।
कुछ सम्पन्न स्थानों में पनीर के पकोड़े भी खाए जाते हैं। कुल मिलाकर कहा जाए तो आप पत्तीदार शाकभाजी समेत लगभग किसी भी भाजी से भजिए बना सकते हैं। भजियों के संसार मे मुंगोडे अथवा मूंग बड़े एक अहम अध्याय है। अधछिली मूंग दाल से बने छोटे छोटे मुंगोडे वर्षा ऋतु मे खाते ही बनते है।
आलू टिक्की
गोल चपटी आलू की टिकिया जो आपके समक्ष तेल में सेंककर आपके चुने मसाले, दही, हरी चटनी, कटे प्याज, धनिया, सेव इत्यादि के साथ सजाकर जब परोसी जाती है, तो उसे देखकर ही मुंह में पानी आ जाता है। यह आलू टिक्की भी देश के चहल-पहल भरे मार्गों के किनारे स्थित ठेलों पर बहुतायत में उपलब्ध होती है।
जब आलू टिक्की बनाने वाला आपसे पूछकर आपके पसंद के मसाले, दही तथा चटनी इत्यादि डालता है तथा गर्म गर्म परोसता है तो स्वाद के साथ आत्मीयता का भी आभास होता है। आपके मुंह को मानो वरदान प्राप्त हो जाता है।
आलू टिक्की का एक दूर का भाई है, आलू बोंडा। उबले आलुओं में मसाले डालकर उसके गोलों को बेसन के घोल में डुबोकर तेल में तला जाता है। लोग इसे हरी चटनी तथा तली मिर्च के साथ खाते हैं। जहां तक मेरा प्रश्न है, मैं आलू टिक्की से ही अत्यंत प्रसन्न रहती हूँ।
पापड़ी चाट/सेव पूरी/मसाला पूरी
चपटे गोल गप्पों को पापड़ी कहा जाता है। मेरे अनुमान से जो गोलगप्पे फूलते नहीं उन्हे पापड़ी के रूप में प्रयोग में लाया जाता है। ये किसी भी व्यंजन को कुरकुरापन प्रदान करते हैं। इस पापड़ी से आप विभिन्न प्रकार के चाट बना सकते हैं। इन पर दही, आलू, मसाले, चटनी इत्यादि डालें तो यह पापड़ी चाट बन जाती है। इन पर मसले हुए उबले मटर भी डाल दें तो यह मसाला पूरी बन जाती है। उसी प्रकार इन पर यदि बहुत सारा बारीक सेव छिड़क दें तो यह सेव पूरी बन जाती है। आप अपनी पसंद से जो चाहे, जितना चाहे डालकर अपनी पसंद की चाट बना सकते हैं।
भेल पूरी/ झाल मूरी
इस व्यंजन की प्रमुख सामग्री है मुरमुरा। करारे ताजे मुरमुरे में अपनी पसंद की खट्टी-मीठी चटनियाँ, सेव, प्याज, पापड़ी के टुकड़े तथा चटपटे मसाले डालिए, आपकी भेलपूरी तैयार! मुझे यह प्रायः खिली खिली प्रिय लगती है। यदि आपको भीगी भीगी भेल प्रिय हो तो चटनी का प्रमाण बढ़ाना पड़ेगा। आरंभ में यह मुंबई वासियों का प्रिय नाश्ता होता था। अब यह भारत के सभी क्षेत्रों में मिलने लगा है।
बंगाल में इसमें आम का आचार एवं सरसों का तेल भी डाला जाता है। ये सामग्रियाँ भेल को एक ठेठ बंगाली स्वाद प्रदान करते हैं। बंगाल में इसे झाल मूरी कहते हैं।
दोसा/इडली/वड़ा
कर्नाटक की एक छोटी सी नगरी में प्रातःकालीन सैर के पश्चात भाप छोड़ती गर्म गर्म इडली खाना मेरे अनुभव से इसके लिए सर्वोत्तम समय एवं स्थान है। ऐसे नगरों में प्रातः लोगों के नींद की गोद से उठने से पूर्व ही ये विक्रेता अपने ठेलों, गाड़ियों, साइकलों एवं सड़क किनारे स्थित गुमटियों में इडली बिक्री करने के लिए तैयार हो जाते हैं। इनके अतिरिक्त आप इडली, दोसा, उत्तप्पा तथा मेरा प्रिय मेदु वड़ा किसी भी उडुपी जलपानगृह में खा सकते हैं। उडुपी जलपानगृह यूँ तो सम्पूर्ण भारत में उपलब्ध हैं, किन्तु ये दक्षिण भारत में बहुतायत में हैं तथा आसानी से उपलब्ध हो जाते हैं।
आजकल दोसा के अनेक प्रकार भी प्रचलन में हैं, जैसे सेट दोसा जो एक मोटा व छोटा दोसा होता है। नीर दोसा जो अत्यंत महीन एवं जाली युक्त दोसा है। मूंगदाल दोसा तथा रवा दोसा भी लोग चाव से खाते हैं। यहाँ तक कि हैदराबाद में एम एल ए (विधायक) दोसा भी बिकता है। डोसे की भरावन भी क्षेत्र के अनुसार परिवर्तित हो जाती है। सामान्यतः आलू की भाजी दोसा के भीतर भरी जाती है। मुंबई में आपको चीनी दोसा भी मिलेगा जिसके भीतर नूडल भरा जाता है। कुछ उच्च स्तर के जलपानगृहों में पनीर अथवा चीस दोसा भी मिलता है। किन्तु मुझे इनमें से ठेठ आलू की भरावन ही भाती है।
इडली लगभग सार्वभौमिक है। रवा इडली भी एक लोकप्रिय प्रकार है। इनके अतिरिक्त, जब भी आपको अवसर प्राप्त हो, आप घी में भीगी गुन्टूर इडली तथा बहु-अनाज कांचीपुरम इडली का स्वाद भी अवश्य चखें।
मेदु वड़ा भी यूँ तो अपने मूल स्वरूप में सर्वाधिक स्वादिष्ट होता है, किन्तु इसके कुछ भिन्न प्रकार भी मिलते हैं, जैसे मैसूर वड़ा, दाल वड़ा, मंगलुरु भज्जी इत्यादि।
जलेबी
जलेबी उन कुछ मिठाइयों में से एक है जो उत्तर एवं मध्य भारत में किसी भी चटपटे नाश्ते के समान चाव से खायी जाती है। इसके अंदर एवं बाहर शक्कर की मिठास लबालब भरी होती है। कुछ स्थानों में यह शक्कर की चाशनी से भरी तथा नर्म होती हैं तो कुछ स्थानों में किंचित कम मीठी व कुरकुरी होती हैं। कहीं कहीं इसमें मावा मिलाकर बनाया जाता है जिसे मावा जलेबी कहते हैं। चटक नारंगी रंग की ये जलेबियाँ दूर से ही आकर्षित करती हैं। व्यक्तिगत रूप से मुझे कुरकुरी भूरे रंग की जलेबियाँ प्रिय है जो मुंह मे भीतर जाकर चरमराते हुए मिठास घोलती हैं।
जलेबी का ही एक परिवर्तित रूप है, इमरती। इसे बनाने में मैदा के स्थान पर उड़द दाल अथवा चना दाल का प्रयोग किया जाता है। यह मुझे इतना भाता है कि यदि कोई मुझसे मेरी अंतिम इच्छा पूछे तो मैं इमरती का नाम लूँगी।
मूँगफलियाँ
मूँगफलियाँ भी सम्पूर्ण भारत की प्रिय खाद्य वस्तु है जिसे लोग चलते-फिरते एक एक कर मुंह में डालकर चाव से खाना पसंद करते हैं। उत्तर भारत में ये सामान्यतः भूनकर बिकते हैं, वहीं दक्षिण भारत में इन्हे उबालकर खाया जाता है। स्वाद के लिए इसमें नमक डाला जाता है। कुछ स्थानों में इसमें कटे प्याज व टमाटर डालकर, चटपटा बनाकर खाया जाता है। मूगफलियाँ अन्य अनेक व्यंजनों का भी अभिन्न अंग होती हैं।
दाना – यह भट्टी में भुना हुआ बहु-अनाज नाश्ता है जो पूर्वी उत्तर प्रदेश में लोकप्रिय है। आपको इससे अधिक पौष्टिक नाश्ता नहीं मिलेगा। इसमें अनेक प्रकार के भुने हुए अनाज के दाने होते हैं जिन्हे आपके चुने हुए मसाले डालकर स्वादिष्ट बनाया जाता है। इसका आस्वाद लेने के सर्वोत्तम स्थान वाराणसी के घाटों के किनारे हैं।
चना – भट्टी में भुने काले चने पर मसाले छिड़ककर खाते समय मुझे सदा मेरे बालपन की रेलयात्राओं का स्मरण हो आता है। हम चना बेचने वाले की आतुरता से प्रतीक्षा करते थे। चना जोर गर्म तो सबका प्रिय होता है जिसमें चपटे किये हुए चने के मसालेदार दाने होते हैं।
भारत के खाऊ गलियों के लोकप्रिय क्षेत्रीय व्यंजन
पोहा
मध्य भारत में, विशेषतः मध्य प्रदेश में जलेबी के साथ पोहा खाना लोगों को अत्यंत भाता है। मध्य भारत की सड़क यात्रा करते समय आप वास्तव में पोहे पर जी सकते हैं। अत्यंत कम खर्चे पर आपका भरपेट नाश्ता हो जाता है। कुछ छोटे नगरों में पोहे समाचार पत्र के कागज पर भी दिए जाते हैं।
भारत के अनेक स्थानों में सुबह के नाश्ते में पोहे के साथ जलेबी खाने का चलन है।
ढोकला
हमारे बालपन में हम ढोकले को गुजराती नाश्ते के रूप में जानते थे। अनेक अवसरों पर हम हमारे गुजराती परिचितों के घर जाकर ढोकला खाते थे। गुजरात जाकर भी हमने मन भर कर ढोकला खाया था। आज यही ढोकला सर्वत्र उपलब्ध है। ढोकला उपरोक्त तले हुए गरिष्ठ नाश्तों को नापसंद करने वाले लोगों का प्रिय नाश्ता है। बेसल के घोल में मसाले इत्यादि मिलाकर उसे भाप में पकाया जाता है। ऊपर से उसमें थोड़ा सा तड़का दिया जाता है।
साबूदाना वड़ा
यह उपवास का सर्वोत्कृष्ट मराठी नाश्ता है जो अत्यंत स्वादिष्ट होता है। मेरी स्मृति में साबूदाना वड़ा का सर्वाधिक आनंद मुझे अंबोली घाट के बड़े जलप्रपात के समीप बैठकर खाने में आया था।
भारत के खाऊ गलियों के भारतीय शैली में चीनी नाश्ते
मंचूरियन – दक्षिण भारत के निवासी मंचूरियन को उत्तर भारतीय नाश्ता समझते हैं। वहीं उत्तर भारत के निवासी मंचूरियन को वह व्यंजन मानते हैं जो चीनी भोजनालय व जलपानगृह में मिलती है। यही व्यंजन यदि किसी चीनी व्यक्ति को परोसा जाए तो वह कदाचित इस व्यंजन को पहचान भी नहीं पाएगा। भारत की ‘खाऊ गलियों के नाश्ते’ की मेरी कल्पना में यह एक कर्नाटकी नाश्ता है जो खाने के पश्चात जिव्हा पर नारंगी छोड़ता है। इसे सामान्यतः फूलगोभी से बनाया जाता है किन्तु अब इसके अनेक प्रकार भी उपलब्ध हैं।
मोमो – मोमो भारत का एक नव-युगीन व्यंजन है जो भारत के खाऊ मार्गों में नवीन अनुवृद्धि है। जब मैं उत्तर-पूर्वी भारत में भ्रमण कर रही थी तब मैंने सर्वत्र मोमो को बिकते देखने की कल्पना की थी। किन्तु कालांतर में मुझे आभास हुआ कि उत्तर-पूर्वी भारत की मार्गों की अपेक्षा मोमो दिल्ली की मार्गों में अधिक बिकते हैं। ये एक प्रकार के भाप में पकाये पकोड़े हैं जो युवा पीढ़ी में अधिक लोकप्रिय हैं। किन्तु मुझे इसका तला हुआ कुरकुरा प्रकार पसंद है।
नूडल – भारत की खाऊ मार्गों में आप अनेक प्रकार एवं आकार के नूडल देख सकते हैं। विक्रेता इन्हे आपकी रुचि एवं स्वाद के अनुसार तैयार करता है। आप जैसा चाहे इन्हे खा सकते हैं।
भारत के खाऊ गलियों के मौसमी चटखारे
भुट्टा
भुट्टा मक्के का एक विनम्र फल है। भारत में यह एक मौसमी नाश्ता है। यह सामान्यतः वर्षा ऋतु में आता है। आप में से अनेक लोगों की स्मृतियाँ भुट्टे से जुड़ी हुई होंगी जब आपने रिमझिम वर्षा में भीगते हुए गर्म ताजा भुना हुआ भुट्टा खाया होगा अथवा किसी जलप्रपात के किनारे बैठकर उसकी फुहारों में भीगते हुए इसका आनंद उठाया होगा।
भुट्टा प्रायः आग में सेंककर अथवा गर्म रेत में भूनकर, उस पर नमक, मिर्च तथा नींबू चुपड़कर खाया जाता है। दक्षिण भारत के अनेक स्थानों पर इन्हे उबालकर भी खाया जाता है
पॉप-कॉर्न – यह लंबे समय से भारत वासियों का लोकप्रिय नाश्ता रहा है। मकई के सूखे दानों को भट्टी इत्यादि में फुलाकर पॉप-कॉर्न बनाया जाता है। पारंपरिक रूप से इन्हे गर्म रेत अथवा नमक में रखकर, बिना तेल लगाए फुलाया जाता था।
आजकल इसके लिए बिजली के अनेक उपकरण बाजार में उपलब्ध हैं। आप घर पर भी इन्हे आसानी से तैयार कर सकते हैं। नमकीन मक्खन के साथ यह अत्यंत स्वादिष्ट होता है। आप इन्हे अधिक चटपटा अथवा मीठा भी बना सकते हैं।
भुना शकरकंद
भुना हुआ शकरकंद अत्यंत स्वादिष्ट होता है। इसके ऊपर चाट मसाला एवं नींबू का रस छिड़ककर आप उन्हे और अधिक स्वादिष्ट बना सकते हैं।
भारत के औपनिवेशिक गलियों के व्यंजन
सैंडविच – भारत में भी अनेक प्रकार के सैंडविच मिलते हैं। सादे, ग्रिल किये हुए, पनीर-चीस के साथ, चटनी वाले, इत्यादि। इनके भरावन भी अनेक प्रकार के होते हैं। डबलरोटी के दो कतलों के बीच अपनी पसंद की भरावन भरकर, चटनी इत्यादि से और अधिक स्वादिष्ट कर इन्हे ऐसे ही खा सकते हैं अथवा सेंक कर खा सकते हैं। यह ऐसा नाश्ता है जो किसी भी समय खाया जा सकता है तथा यह होटल में किसी भी समय उपलब्ध हो जाता है।
फिंगर चिप्स – आलू के लंबे टुकड़ों को तेल में तलकर नमक इत्यादि से स्वादिष्ट बनाकर खाया जाता है। बाहर से कुरकुरे तथा भीतर से नर्म इस नाश्ते को कोई भी ना नहीं कहेगा।
भारत की सर्वोत्तम गलियों के व्यंजन का आनंद लेने कहाँ जाएँ?
- इंदौर में सराफा एवं छप्पन दुकान
- अहमदाबाद में मानेक चौक
- लखनऊ में चौक तथा हजरतगंज
- बंगलुरु में लॉ कॉलेज के समीप का रात्रि बाजार
- दिल्ली में चाँदनी चौक तथा बंगाली बाजार
- जयपुर नगरी
- मुंबई की खाऊ गली
तो इन नाश्तों में आपका प्रिय नाश्ता कौन सा है?
मुंह में पानी लाने वाले २५ स्वादिष्ट भारतीय गलियों के व्यंजनों का बहुत ही स्वादिष्ट वर्णन किया है, लेकिन गोल गप्पे की इतनी कुरकुरी, चटपटी व झन्नाटेदार गाथा पढ़कर ही मुँह में पानी आ गया। बहुत बढ़िया लेख।🙏🙏👍🏽👍🏽