मेरी प्रत्येक यात्रा मेरे लिए नवीन अनुभव का भण्डार लेकर आती है। इस वर्ष मेरी मध्य प्रदेश यात्रा के समय मुझे बांधवगढ़ राष्ट्रीय उद्यान एवं कान्हा राष्ट्रीय उद्यान के मध्य एक अनोखा व अद्वितीय अनुभव प्राप्त हुआ। मार्ग में हम एक स्थान पर कुछ क्षणों के लिए रुके थे। जो स्थान मुझे आरम्भ में किंचित विश्राम के लिए लिया गया अल्पावकाश प्रतीत हुआ, वह स्थान वास्तव में एक अचम्भा था। कदाचित वह विश्व का सर्वाधिक प्राचीन स्थान हो सकता है। वह घुघुआ जीवाश्म उद्यान था।।
वहां मुझे ६.५ करोड़ वर्ष पूर्व, गोंडवाना महाद्वीप के काल के जीवाश्म देखने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। उन्हें देखते ही मेरी उत्सुकता तीव्र हो उठी। मैंने उनके विषय में जानने के लिए किसी जानकार परिदर्शन को ढूँढना आरम्भ कर दिया। उद्यान के टिकट के साथ हमें एक परिदर्शक अर्थात् गाइड भी उपलब्ध कराया गया।
घुघुआ जीवाश्म उद्यान – एक राष्ट्रीय उद्यान
घुघुआ जीवाश्म उद्यान एक मुक्त आँगन है। जो वस्तु ६.५ करोड़ वर्ष से हर प्रकार के थपेड़ों को सहन कर चुकी हो, उसे खुले आकाश में कौन नष्ट कर सकता है? किन्तु शीघ्र ही मुझे इसका उत्तर भी प्राप्त हो गया। इस अनमोल धरोहर को हमारी ही पीढ़ी ने सस्ते रंगों से चिन्हित कर अत्यंत क्षति पहुंचाई है। यह एक विस्तृत उद्यान है जहां घास के विशाल मैदान हैं। पगडंडी के दोनों ओर वृक्ष हैं। इन प्राचीन अनमोल धरोहरों का अवलोकन करते हुए आप उद्यान में शांति से समय व्यतीत कर सकते हैं।
विभिन्न वृक्षों के जीवाश्म
विशेष रूप से निर्मित गोलाकार मंचों पर विभिन्न वृक्षों के जीवाश्मों को रखा गया है। एक छोटे सूचना पटल पर जीवाश्मों के विषय में लघु जानकारी दी गई है किन्तु वह कदाचित प्रदर्शित जीवाश्मों के विषय में ना हो। जीवाश्म कैसे बनाते हैं तथा उनका हमारे जीवन में क्या महत्त्व है, इस पर संक्षिप्त में जानकारी दी गयी है। हमारे गाइड ने वृक्षों की परतों के मध्य फंसे कुछ कीटों एवं बीजों की ओर संकेत किया जो अपने स्थान पर ही जीवाश्म में परिवर्तित हो गए थे। उसने अनेक जीवाश्मों पर पत्तियों के चिन्हों की ओर संकेत किया। देखने पर ये जीवाश्म वृक्ष के तने के टुकड़े प्रतीत होते हैं किन्तु स्पर्श करने पर अनुभव होता है कि वे शिला बन चुके हैं। जहां वृक्ष का अनुप्रस्थ परिच्छेद(cross-section) दृष्टिगोचर होता है, वहां वह स्फटिक के अन्तर्भाग सा प्रतीत होता है। वह उज्जवल रूप से चमकीला होता है।
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इस उद्यान में सर्व ओर जीवाश्म रखे हुए हैं। मैं नहीं जानती कि प्रत्येक जीवाश्म का कोई लेखा-जोखा रखता है अथवा उद्यान में आये पर्यटक कुछ टुकड़े उठा भी लें तो किसी को इसकी भनक भी ना हो। यद्यपि इस उद्यान में अधिक पर्यटक नहीं आते हैं, तथापि उन जीवाश्मों का व्यवस्थित रूप से संरक्षण व लेखा-जोखा किया जाना चाहिए।
जीवाश्म उद्यान की स्थापना सन् १९७० में डॉ. धर्मेन्द्र प्रसाद ने की थी जो उस समय मध्य प्रदेश के मंडला जिले के सांख्यिकीय अधिकारी तथा जिला पुरातत्व इकाई के मानद अधिकारी थे। इस उद्यान को सन् १९८३ में राष्ट्रीय उद्यान घोषित किया गया। इस उद्यान की विशेषता वनस्पतियों का वह गौरवशाली इतिहास है जिसका यह प्रतिनिधित्व करता है। यहाँ विभिन्न प्रकार के अनेक पौधों, पत्तियों, फलों, बीजों तथा सीपियों के जीवाश्म हैं।
उनमें सर्वाधिक महत्वपूर्ण है, ताड़ का जीवाश्म। मुझे बताया गया कि यहाँ स्थित अनेक जीवाश्म ऐसे वृक्षों के हैं जो इस क्षेत्र के स्थानीय उपज नहीं हैं। यह दीर्घकालीन जलवायु परिवर्तन की ओर संकेत करते हैं।
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इन जीवाश्मों के सर्वाधिक महत्वपूर्ण प्रदर्शनों में नीलगिरी वृक्ष का एक जीवाश्म भी सम्मिलित है जिसे इस प्रकार का सर्वाधिक प्राचीन जीवाश्म माना जाता है। ऐसे वृक्ष ऑस्ट्रेलिया में पाए जाते हैं। ताड़ वृक्ष का जीवाश्म भी अनोखा है क्योंकि यह भी इस क्षेत्र का नैसर्गिक वृक्ष नहीं है। अन्य जीवाश्मों में रुद्राक्ष एवं आंवले के वृक्ष भी सम्मिलित हैं।
उद्यान में जीवित जामुन वृक्ष भी हैं। यदि आपकी यात्रा के समय जामुनों का मौसम हो तो आपको ताजे जामुनों का आस्वाद लेने का भी अवसर प्राप्त होगा।
संग्रहालय
संग्रहालय की इमारत के भीतर कुछ प्राचीनतम जीवाश्मों को संरक्षित किया गया है। जीवाश्म बनने की प्रक्रिया को विस्तृत चित्रों व विवरणों समेत दर्शाते हुए कुछ सूचना पटल हैं। जीवाश्मों के विषय में अन्य जानकारी भी दी गयी हैं जैसे, जीवाश्मों के प्रकार इत्यादि। यहाँ का सर्वाधिक अनोखा आकर्षण है, डायनासोर का अंडा, जिसने इस उद्यान को विशेष प्रसिद्धि प्रदान की है।
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आप जब भी कान्हा अथवा बांधवगढ़ या दोनों राष्ट्रीय उद्यानों की यात्रा का नियोजन करें, तब आप गोंडवाना महाद्वीप के इन प्राचीनतम वृक्षों के दर्शन को अपने यात्रा कार्यक्रम में अवश्य सम्मिलित करें। यह भारत का एक अति विशेष उद्यान है जहाँ प्रदर्शित जीवाश्म एक महान शैक्षिकीय अनुभव सिद्ध हो सकते हैं। यह प्रदर्शन आपके भीतर स्थित, प्राचीन युग के प्रति वैज्ञानिक कुतूहलता को जगाता है।
अनुराधा जी,
इस बार , मेरे लिये ,लीक से हटकर आलेख पढ़ने को मिला । एक नये विषय पर रोचक जानकारी मिली । मेरे अपने प्रदेश में एक राष्ट्रीय स्तर का घुघुआ जीवाश्म उद्यान भी हैं जहां करोड़ों वर्षों पुराने जीवाश्म संग्रहीत है
यह जानकारी पहली बार प्राप्त हुई । आलेख में दिये गये एक चित्र से जीवाश्म बनने की प्रक्रिया के बारे में थोड़ी सी जानकारी प्राप्त हुई ।अन्य छायाचित्रों से ज्ञात होता है कि हमारी इतनी पुरानी जीवाश्म संपदा को कितनी असुरक्षित अवस्था में छोड़ दिया गया है और वह भी एक राष्ट्रीय उद्यान में ! शासन-प्रशासन को इस ओर निश्चित रूप से ध्यान देना चाहिए ।
एक नये विषय पर सुंदर जानकारी हेतु धन्यवाद ।
धन्यवाद प्रदीप जी