आधुनिक दिल्ली के प्राचीन मंदिर जो आज भी जीवंत हैं

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दिल्ली! विश्व के प्राचीनतम जीवंत नगरों में से एक! महाभारत के पांडवों की राजधानी इन्द्रप्रस्थ के रूप में इसकी स्थापना की गयी थी। इसने अपने जीवनकाल में अनेक सम्राटों व उनके साम्राज्यों को देखा है। अनेक युगों को जिया है। वे सभी युग इस महानगरी में किसी ना किसी रूप में अब भी जीवित हैं। आज इस महानगरी का रूप परिवर्तित हो गया है। लाल बलुआ शिलाओं द्वारा निर्मित अनेक विशालकाय संरचनाएं अब इसकी पहचान बन चुकी हैं।

दिल्ली के प्राचीन मंदिर

दिल्ली में प्राचीनकाल से अनेक मंदिर निर्मित किये जाते रहे हैं। उनमें से अनेक प्राचीन मंदिर अब भी उपस्थित हैं एवं जीवंत हैं किन्तु वे इस विशालकाय आधुनिक नगर की पृष्ठभूमि में चले गये हैं। आईये मेरे साथ, हम सब मिलकर दिल्ली के कुछ प्राचीन जीवंत मंदिरों की धरोहरों को पुनः उजागर करें।

दिल्ली के देवी मंदिर

एक काल में दिल्ली का नाम योगिनीपुर था। जहाँ तक मुझे जानकारी है, यहाँ अनेक योगिनी मंदिर थे जिन्हें कदाचित यन्त्र की रूपरेखा में स्थापित किया गया था। क्या यह संभव है कि २७ हिन्दू एवं जैन मंदिरों को ध्वस्त कर निर्मित किया गया कुतुब संकुल वास्तव में योगिनी मंदिरों का केंद्र था? कदाचित! आईये मैं आपको दिल्ली के कुछ प्राचीनतम देवी मंदिरों के विषय में बताऊँ, जो अब भी जीवंत हैं:

महरौली का योगमाया मंदिर

देवी योगमाया मंदिर - दिल्ली
देवी योगमाया मंदिर – दिल्ली

इस क्षेत्र में यह इकलौता मंदिर है जो असंख्य यातनाएं सहन करने के पश्चात भी जीवित बच गया है। यह कुतुब मीनार के पृष्ठभाग में स्थित है। यह एक लघु मंदिर हैं जिसमें देवी को पिंडी के रूप में पूजा जाता है। ऐसा माना जाता है कि देवी यहाँ कन्या रूप में विराजमान हैं। यह वही कन्या है जिसने गोकुल में यशोदा माता की संतान के रूप में जन्म लिया था। एक आकाशवाणी के उपरांत वासुदेव ने उसके स्थान पर मथुरा के कारागृह में जन्मे नन्हे कृष्ण को सुला दिया था तथा नवजात कन्या को अपने साथ मथुरा ले आये थे। कंस के हाथों से मुक्त हो कर वह कन्या विंध्यांचल में देवी विंध्यवासिनी के रूप में स्थपित हो गयी थी।

दिल्ली के योगमाया मंदिर पर हमारा संस्करण पढ़ें तथा उनके विषय में विस्तार में जानें।

कालकाजी मंदिर

श्री कालकाजी मंदिर - नई दिल्ली
श्री कालकाजी मंदिर – नई दिल्ली

कालकाजी मंदिर नई दिल्ली के प्राचीनतम शक्ति मंदिरों में से एक है। इस मंदिर के कारण इसके आसपास के क्षेत्र का तथा अब नवीन मेट्रो रेल स्थानक का नाम भी कालकाजी पड़ा है। जिस पहाड़ी पर यह मंदिर स्थित है, उस पहाड़ी को प्राचीन काल में सूर्यकूट कहा जाता था। इसी कारण देवी को सूर्यकूट निवासिनी भी कहा जाता है। इसी तथ्य को मंदिर के १२ द्वार भी वर्णित करते हैं। मंदिर के १२ द्वार १२ आदित्यों एवं १२ राशियों का प्रतिनिधित्व करते हैं जिनमें वर्ष भर में सूर्य का प्रवास होता है।

दुर्गासप्तशती की कथा में भी कालका देवी का उल्लेख किया गया है जहां कालका देवी चंड-मुंड एवं रक्तबीज जैसे असुरों पर विजय प्राप्त करती हैं।

दक्षिण दिल्ली की भीड़-भाड़ के मध्य स्थित यह मंदिर हमें अतीत में ले जाता है। मंदिर के बाहर दुकानों की वैसी ही पंक्ति है जैसे किसी भी अन्य मंदिर के बाहर होती है। इन दुकानों में देवी को अर्पित किये जाने वाले चढ़ावे की वस्तुओं की विक्री होती है।

यद्यपि मंदिर किंचित छोटा है तथापि भीतर स्थापित देवी का विग्रह अत्यंत सुन्दर प्रतीत होता है। अपनी अव्यक्त उर्जा से वह हमें सम्मोहित सा कर देता है। समीप ही दूधिया भैरव का एक मंदिर है जहां दूध चढ़ाया जाता है। मुझे मंदिर के आसपास अनेक छोटे मंदिर दृष्टिगोचर हुए किन्तु उनके विषय में वर्णन करने से पूर्व मुझे शांति से उनके दर्शन करने होंगे। मुझे स्मरण है मैंने वहां मंदिर के निकट निवास करते एक बाबा की छोटी सी कुटिया देखी थी। उस कुटिया का दर्शन स्वयं में एक अनोखा अनुभव था।

वर्तमान में जो मंदिर यहाँ स्थित है उसका निर्माण १८वीं सदी में मराठाओं ने करवाया था। प्राचीन मंदिर अवश्य इसी स्थान पर स्थित रहा होगा। लोगों का मानना है कि महाभारत युद्ध से पूर्व कृष्ण एवं अर्जुन ने योगमाया मंदिर एवं इस कालकाजी मंदिर में देवियों के दर्शन किये थे। यह वही स्थान है जहां आक्रान्ता मोहम्मद घोरी के आक्रमण से स्वयं का रक्षण करने हेतु चौहान वंश की स्त्रियों के साथ महारानी संयोगिता चौहान ने भी अग्नि में आत्मदाह किया था। कुछ ऐतिहासिक सन्दर्भों में इसे ‘सतियों की याद’ भी कहा जाता है।

झंडेवाला देवी का मंदिर

झंडेवाला देवी मंदिर आदि शक्ति का मंदिर है। इसकी खोज बदरी भगत नामक एक भक्त द्वारा हुई थी। ऐसा माना जाता है कि देवी ने स्वयं उसके स्वप्न में आकर उसे अपने विग्रह के विषय में जानकारी प्रदान की थी। प्राप्त विग्रह में दोनों हाथ नहीं थे। अतः उस विग्रह में चाँदी के हाथ जोड़े गए हैं। आज भी वह मूर्ति मुख्य गुफा मंदिर में पूजी जाती है जो मंदिर के निचले तल पर स्थित है।

झंडेवाला आदि शक्ति मंदिर - दिल्ली के प्राचीन मंदिर
झंडेवाला आदि शक्ति मंदिर – दिल्ली के प्राचीन मंदिर

मुख्य मन्दिर में इसी विग्रह का प्रतिरूप स्थापित किया गया है। मुख्य मूर्ति के एक ओर महाकाली तथा दूसरी ओर महासरस्वती की प्रतिमाएं हैं। अर्थात् मुख्य मूर्ति महालक्ष्मी का रूप है। मंदिर का शिखर कलश की आकृति का है। परम्पराओं के अनुसार कलश देवी का प्रतिनिधित्व करता है। बाह्य भित्तियों पर नवदुर्गा की प्रतिमाएं हैं।

समीप ही महालक्ष्मी, गणेश, अन्नपूर्णा, दुर्गा, शीतला माता एवं कामधेनु के छोटे छोटे मंदिर हैं। कोने में स्थित एक मंदिर के भीतर देवी की अखंड ज्योत प्रज्वलित रहती है। मंदिर के पृष्ठभाग में किंचित ऊँचे तल पर स्थित एक विशाल कक्ष में एक शिवलिंग स्थापित है। यह शिवलिंग अपेक्षाकृत आधुनिक प्रतीत होता है।

मंदिर की कथा की प्रतिलिपि प्रवेशद्वार पर स्थित मंदिर कार्यालय से प्राप्त की जा सकती है।

काली मंदिर – बंगला साहिब मार्ग

यह एक छोटा सा मंदिर है जिसके विषय में मुझे इसलिए ज्ञात हुआ क्योंकि मैं इसके निकट ही रह रही थी। उत्तर भारत के अन्य देवी मंदिरों के अनुरूप इस मंदिर में भी देवी का एक छोटा विग्रह है जिसके चारों ओर चाँदी के उत्कीर्णित पटल हैं। मैं प्रातः काल देवी के दर्शनार्थ पहुँची थे। देवी के विग्रह पर ताजे पुष्पों का श्रृंगार किया हुआ था।

बंगला साहिब मार्ग स्थित काली मंदिर
बंगला साहिब मार्ग स्थित काली मंदिर

मंदिर के भीतर एक गुफा है जहां देवी की पिंडी रूप में पूजा-अर्चना की जाती है। बालाजी एवं महालक्ष्मी का भी एक गुफा रूपी मंदिर है। एक शिवलिंग भी है जिसे स्वयंभू माना जाता है। साथ ही एक नवग्रह मंडल है।

मंदिर की सूचना पटल के अनुसार मंदिर कम से कम ५०० वर्ष प्राचीन है। उस काल में यहाँ एक टीला था जिस पर साधू आराधना किया करते थे। नई दिल्ली के निर्माण की रूपरेखा आकलन के समय भी इस मंदिर को इसके मूल स्थान पर ही रखा गया था।

दिल्ली के अन्य प्राचीन मंदिर

भैरों मंदिर

पांडवकालीन भैरों मंदिर
पांडवकालीन भैरों मंदिर

पुराना किला के बाह्य प्रांगण में स्थित यह भैरों मंदिर महाभारत कालीन माना जाता है। ऐसी मान्यता है कि यह मूर्ति पांडू पुत्र भीम द्वारा यहाँ लाई गयी है। किवदंतियों के अनुसार भीम ने यहाँ सिद्धियाँ प्राप्त की थी। भैरव मंदिर एकमात्र मंदिर है जहां भक्त उन्हें मदिरा अर्पित कर सकते हैं। अनेक श्रद्धालु मदिरा की लत को त्यागने की प्रतिज्ञा करते हुए अंतिम मदिरा विग्रह को अर्पित करने आते हैं। रविवार के दिन बड़ी संख्या में दर्शनार्थी यहाँ आते हैं।

कुंती मंदिर

पुराना किला स्थित कुंती देवी मंदिर
पुराना किला स्थित कुंती देवी मंदिर

यह मंदिर भी पुराना किला परिसर के भीतर स्थित है। नाम से ऐसा प्रतीत होता है कि यह मंदिर पांडवों की माता कुंती का है। यह एक अत्यंत ही छोटा मंदिर है जिसने काल के थपेड़ों को आश्चर्यजनक रूप से सफलतापूर्वक सहन किया है।

पुराना किला परिसर में एक शीतला माता मंदिर भी था किन्तु कुछ दशक पूर्व वह विकास कार्य को समर्पित हो गया है।

कटरा नील का शिवालय

कटरा नील पुरानी दिल्ली के चांदनी चौक क्षेत्र में स्थित एक प्राचीन बस्ती  है। इस क्षेत्र में अनेक प्राचीन शिवालय हैं जिनमें अधिकाँश शिवालय हवेलियों के भीतर स्थित हैं। जिन शिवालयों के मैंने दर्शन किये, उनमें से कुछ हैं, धूमीमल शिवालय, घंटेश्वर महादेव आदि। दिल्ली के छोटे से क्षेत्र में इतनी बड़ी संख्या में छोटे छोटे  शिवालय अथवा प्राचीन मंदिरों की उपस्थिति कदाचित इस ओर संकेत करती है कि दिल्ली के सम्पूर्ण इस्लाम काल में इस क्षेत्र में सशक्त हिन्दू वसाहत उपस्थित रही होगी।

गौरी शंकर मंदिर

यह मंदिर लाल किले से भी दृष्टिगोचर होता है। दिल्ली वासियों ने प्रतिवर्ष स्वतंत्रता दिवस समारोह के समय इस मंदिर को लाल किले से अवश्य देखा होगा। इस मंदिर के भीतर उपस्थित शिवलिंग को ८०० वर्षों से भी अधिक प्राचीन माना जाता है। दंतकथाओं के अनुसार यह लिंग एक वृद्ध पीपल वृक्ष के समीप स्थित था। मराठा योद्धा अप्पा गंगाधर राव ने इस मंदिर के निर्माण का स्वप्न देखा था। उन्होंने प्रतिज्ञा की कि युद्ध में विजय प्राप्त करने पर वे यहाँ मंदिर का निर्माण करायेंगे। वे युद्ध में विजयी हुए तथा उन्होंने इस मंदिर का निर्माण भी कराया।

बनखंडी महादेव

पुरानी दिल्ली रेलवे स्टेशन के पास स्थित बनखंडी महादेव मंदिर
पुरानी दिल्ली रेलवे स्टेशन के पास स्थित बनखंडी महादेव मंदिर

यह मंदिर प्राचीन दिल्ली रेल स्थानक के समक्ष स्थित है। इसका नाम इस ओर संकेत करता है कि यह एक शिव मंदिर है जो प्राचीन काल में वन के भीतर स्थित था। मैंने अनेक वर्ष पूर्व इस मंदिर के दर्शन किये थे। उस समय अनेक साधू यात्री यहाँ निवास कर रहे थे। यह एक मंदिर संकुल है जिस के भीतर अनेक छोटे छोटे मंदिर हैं। मंदिर के बाहर घंटियाँ लटकाई हुई हैं। भक्तगण बाहर से भी घंटियाँ बजाकर प्रार्थना करते हुए आगे जा सकते हैं।

चित्रगुप्त मंदिर

एक काल में दिल्ली को कायस्थों की नगरी कहा जाता था। कायस्थों को संपत्ति का लेखा-जोखा रखने व बही खाता लिखने वाले मुनीमों का वंश कहा जाता है। हिन्दू धर्म की मान्यताओं के अनुसार कायस्थ धर्मराज श्री चित्रगुप्त की सन्तानें  हैं। चित्रगुप्त मनुष्यों के पाप-पुण्य का लेखा-जोखा कर उनके साथ न्याय करते हैं। अतः, बहीखाते रखने वाले देव चित्रगुप्त कायस्थों के आराध्य हैं, इसमें आश्चर्य नहीं है। दिल्ली के हृदयस्थल में चित्रगुप्त भगवान के नाम पर एक मार्ग भी है। उसी मार्ग के एक छोर पर भगवान चित्रगुप्त का हवेली सदृश मंदिर है।

चित्रगुप्त मंदिर नई दिल्ली
चित्रगुप्त मंदिर नई दिल्ली

इन्ही दिनों ही मैंने इस मंदिर के दर्शन किये थे, तभी मुझे ज्ञात हुआ कि यह मंदिर एक परिवार के स्वामित्व के अंतर्गत आता है। वह पुरोहित परिवार छः पीढ़ियों से इस मंदिर की सेवा करता आ रहा है। मुझे यह भी बताया गया कि कायस्थों के १२ गोत्र वास्तव में चित्रगुप्त एवं उनकी दो पत्नियों, इरावती एवं नंदिनी के १२ पुत्र हैं। वे हैं, कुलश्रेष्ठ, माथुर, गौड़, भटनागर, सक्सेना, अम्बष्ठ, निगम, कर्ण, श्रीवास्तव, सुर्यध्वज, वाल्मिकी एवं अष्टाना(अस्थाना)।

एक अत्यंत विशाल परिसर के भीतर स्थित यह चित्रगुप्त मंदिर किंचित छोटा है। परिसर के भीतर मुख्य मंदिर के पृष्ठभाग में एक शनि मंदिर है। परिसर में अनेक देवी-देवताओं के विग्रह हैं जिनमें एक विग्रह हनुमान जी का भी है।

पुजारीजी ने मुझे बताया कि भाई दूज के दिन मंदिर में चित्रगुप्त की कथा बांची जाती है। भाई दूज को यम द्वितीया भी कहते हैं जो दीपावली पर्व के दो दिवस पश्चात आती है। यह कथा सम्पूर्ण वर्ष में केवल एक दिवस ही कही जाती है। मैंने यहाँ भक्तगणों को संध्या के समय मंदिर परिसर में स्थित पौधों के नीचे कार्तिक दीप प्रज्ज्वलित करते भी देखा। मंदिर की भित्तियों पर अभिलेखित आरती में कायस्थ समाज की कथा प्रस्फुटित होती है।

यह मंदिर दिल्ली की ऐसी धरोहर है जिसके विषय में अधिक लोगों को जानकारी नहीं है।

सूर्य मंदिर

हम सब जानते हैं कि एक सूर्य मंदिर सूरजकुंड में स्थित था जो तकनीकी रूप से हरियाणा में स्थित है किन्तु राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र(NCR) का एक भाग है। दिल्ली में अन्य सूर्य मंदिर भी अवश्य रहे होंगे क्योंकि दिल्ली में सूर्य परिवार के अन्य सदस्यों की भलीभांति उपस्थिति है। दिल्ली में अनेक शनि मंदिर हैं जो सूर्य के पुत्र हैं। दिल्ली से बहने वाली यमुना नदी सूर्य की पुत्री है। दिल्ली के प्राचीनतम क्षेत्र को महरौली कहते हैं जिसकी व्युत्पत्ति मिहिर शब्द से हुई है। सूर्य का एक नाम मिहिर भी है।

कोणार्क, मोढेरा अथवा कश्मीर जैसे भारत के अन्य स्थानों के सूर्य मंदिरों की तुलना में कदाचित दिल्ली में उपस्थित कोई भी सूर्य मंदिर के अब अवशेष मात्र भी बचे नहीं हैं।

दिल्ली के जैन मंदिर

सम्पूर्ण दिल्ली में अनेक जैन मंदिर हैं। वे दिल्ली के प्राचीनतम जीवंत पुरातन मंदिरों में से हैं। उनमें से कुछ इस प्रकार हैं:

लाल मंदिर

यह दिल्ली के सभी जैन मंदिरों में से सर्वाधिक लोकप्रिय जैन मंदिर है क्योंकि यह लाल किले के ठीक समक्ष स्थित है तथा इसका भी वही रंग है जो लाल किले का है। यह मंदिर दिगंबर जैन अनुयायियों का मंदिर है। इसमें सभी जैन तीर्थंकरों की प्रतिमाएं हैं। परिसर के भीतर एक विशाल पुस्तकालय भी है।

दिगंबर जैन लाल मंदिर दिल्ली
दिगंबर जैन लाल मंदिर दिल्ली

इस मंदिर से सम्बंधित मेरी स्मृतियों में पक्षियों के एक अस्पताल का प्रमुख स्थान है जो मंदिर परिसर का ही एक भाग है। यह स्वयं में एक अत्यंत विशेष अस्पताल है जहां सभी रोगग्रस्त एवं घायल पक्षियों पर उपचार किया जाता है। यहाँ पक्षियों को तब तक रखा जाता है तथा उनकी देखभाल की जाती है, जब तक वे पूर्णतः स्वस्थ होकर स्वतन्त्र रूप से जीवन जीने में सक्षम ना हो जाएँ।

नौघारा जैन मंदिर

श्वेताम्बर जैन अनुयायियों का यह मंदिर नौघरा में, किनारी बाजार एवं परांठे वाली गली, दोनों के अंत में स्थित है। प्रथम तल पर स्थित यह मंदिर अविश्वसनीय रूप से सुन्दर है। मंदिर की सुन्दरता का आनंद उठाते हुए आप कुछ समय यहाँ आसानी से व्यतीत कर सकते हैं। हमने जब इस मंदिर के दर्शन किये थे तब वहां के पुरोहितों ने हमें अत्यंत आत्मीयता व प्रेम से सम्पूर्ण मदिर के दर्शन कराये थे तथा तीर्थंकरों की कथाएं भी सुनाई थीं।

मंदिर में छायाचित्रीकरण की अनुमति नहीं है।

दादाबाड़ी जैन मंदिर

प्राचीन दादाबाड़ी जैन मंदिर
प्राचीन दादाबाड़ी जैन मंदिर

यह मंदिर महरौली-गुरुग्राम मार्ग पर स्थित है। अधिकतर यात्री मंदिर का पटल तो देखते हैं किन्तु मंदिर के लिए एक लघु विमार्ग लेने में चूक जाते हैं।

दादाबाड़ी जैन मंदिर के विषय में हमारा विस्तृत संस्करण पढ़ें।

इन मंदिरों के अतिरिक्त कालीबाड़ी एवं बिरला मंदिर भी हैं जो मंदिर मार्ग पर स्थित हैं। ये दोनों मंदिर लगभग १०० वर्ष प्राचीन हैं। ये दिल्ली के नवयुगीन मंदिरों में सर्वप्रथम मंदिर हैं।

इनके अतिरिक्त यदि आप दिल्ली के किसी अन्य प्राचीन मंदिर अथवा मंदिरों के विषय में जानते हैं, जिनका उल्लेख करने में मैं चूक गयी हूँ, तो मुझे उनकी जानकारी अवश्य दें। हम उन्हें इस संस्करण में अवश्य सम्मिलित करेंगे।

अनुवाद: मधुमिता ताम्हणे

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