यह वर्ष का वह समय है जब चारों ओर का वातावरण गणेश चतुर्थी त्यौहार के उल्हास से ओतप्रोत होता है और गणपति भजन गुंजायमान होते हैं। यद्यपि गणेश चतुर्थी का पर्व विश्व के उन सभी क्षेत्रों में मनाया जाता है जहां भारतीय मूल के हिन्दू नागरिक निवास करते हैं, तथापि भारत में प्रमुखतः महाराष्ट्र, कर्णाटक, गोवा तथा तेलंगाना में गणेश चतुर्थी पर्व की भव्यता व गरिमा अद्वितीय है। किसी भी पावन अथवा महत्वपूर्ण आयोजन का आरम्भ गणेश भगवान् की आराधना से ही किया जाता है। गणेश भगवान् को प्रथम वंदनीय, सुखकर्ता एवं विघ्नहर्ता माना जाता है। वे भारत भर में सभी हिन्दुओं के सर्वप्रिय देवता माने जाते हैं।
यद्यपि गणेश भगवान् की स्तुति में अनेक भजन एवं गीत हैं, तथापि उनमें से कुछ भजन एवं गीत विशेषतः गणेश चतुर्थी के उत्सव में सर्वाधिक गाये एवं बजाये जाते हैं। आपके इस गणेश चतुर्थी पर्व के उल्हास को द्विगुणित करने के लिए यहाँ मैं उन्ही में से कुछ चुने भजन एवं गीत आपके लिए पुनः लेकर आयी हूँ।
भारत के अतिरिक्त, गणेश भगवान का प्रभाव पूर्वी एशिया के भी अनेक देशों में देखा जाता है। जैसे जापान(जापान में हिन्दू देवी देवता और भारतीय संस्कृति), थाईलैंड(राचाप्रसॉन्ग भ्रमण – बैंकॉक में हिन्दू देवी देवताओं के दर्शन), इंडोनेशिया इत्यादि।
श्लोकों में निहित सार्थक अर्थ, संतों व कवियों द्वारा रचित अप्रतिम काव्य, सभी भारतीय भाषाओं के सुप्रसिद्ध गायकों द्वारा गाई गयीं भक्तिपूर्ण रचनाएँ, पारंपरिक सुमधुर संगीत तथा भक्ति भाव से सराबोर गणेश के चिरकालीन भजन एवं गीत आपके समक्ष प्रस्तुत हैं।
बंगाल के बिश्नुपुर में भ्रमण करते समय मुझे पंचमुखी गणेश की यह अद्वितीय शैल प्रतिमा दृष्टिगोचर हुई थी जो कई सौ वर्ष पुरातन है ।
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मेरे इस संस्मरण में प्रस्तुत सभी भजनों एवं गीतों को पूर्ण भक्तिभाव से सुनने के लिए पर्याप्त समय की आवश्यकता होगी। आप इन्हें पुनः पुनः सुनना चाहेंगे। अतः मेरे इस संस्मरण को चिन्हित करना न भूलें।
संस्कृत भाषा में गणपति भजन
मैंने यहाँ कुछ भारतीय भाषाओं में गणेश भजनों का संकलन किया है। आपने अब तक राष्ट्रीय भाषा के अतिरिक्त अपनी मातृभाषा में इन भजनों को सुना होगा। कदाचित संस्कृत भजन भी सुने होंगे। अब कुछ अन्य भाषाओं में भी इन भजनों को अवश्य सुनिए। मेरा विश्वास है कि आपको उतने ही आनंद का अनुभव होगा। मैंने यहाँ गणपति के मुख्यतः संस्कृत, हिन्दी, मराठी, कन्नड़ इत्यादि भाषाओं के भजनों का संग्रह प्रकाशित किया है। इस संग्रह में कुछ भजन केवल संगीत वाद्यों द्वारा भी प्रस्तुत किये गए हैं। मैंने इस संग्रह में चित्रपटों में गाये गए भजनों को सम्मिलित नहीं किया है। उसी प्रकार आधुनिक प्रस्तुतियों को भी वर्ज्य किया है। अन्यथा सूची अत्यधिक लम्बी हो जाती जिसे एक संस्करण में समाहित करना असंभव होता।
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वातापि गणपतिं भजे – येसुदास
‘वातापि गणपतिं भजे’ एक संस्कृत कीर्ति गीत है जिसके रचनाकार दक्षिण भारत के कवि मुथुस्वामी दिक्षितर हैं। यह मुथुस्वामी दिक्षितर की रचनाओं में से सर्वश्रेष्ठ ज्ञात काव्य है तथा कर्नाटक संगीत में सर्वाधिक लोकप्रिय रचना है। पारंपरिक रूप से इस स्तोत्र का स्तवन किसी भी कर्नाटक संगीत कार्यक्रम के आरम्भ में किया जाता है। इस काव्य की रचना तमिल नाडू में २-३ शताब्दी से भी पूर्व की गयी थी जिसे यहाँ येसुदास जी ने अपनी प्रभावशाली स्वर में प्रस्तुत किया है। यह कदाचित संगीत के विश्व को अब तक का सर्वोत्तम योगदान है।
के. जे. येसुदास जी भारतीय शास्त्रीय संगीत, भक्ति संगीत एवं चित्रपट गीतों के सुप्रसिद्ध गायक हैं। उन्हें भारत सरकार ने पद्मश्री, पद्म भूषण व पद्म विभूषण की उपाधियों से विभूषित किया है।
येसुदास जी द्वारा प्रस्तुत ‘वातापि गणपतिं भजे’ की एक घंटे लम्बी प्रस्तुति यहाँ सुनिए।
भारतीय शास्त्रीय संगीत के विभिन्न गणमान्य संगीतज्ञों द्वारा प्रस्तुत ‘वातापि गणपतिं भजे’ के अन्य संस्करण
- एम. एस. सुब्बलक्ष्मी – कर्नाटक संगीत की महान शास्त्रीय गायिका एम. एस. सुब्बलक्ष्मी जी द्वारा प्रस्तुत ‘वातापि गणपतिं भजे’ यहाँ सुनिए। एम. एस. सुब्बलक्ष्मी जी प्रथम संगीतज्ञ हैं जिन्हें भारत का सर्वोच्च सम्मान, भारत रत्न से विभूषित किया गया है। कर्नाटक संगीत में उनका योगदान अविस्मरणीय है।
- डॉ. एम्. बालमुरलीकृष्ण – इनके द्वारा प्रस्तुत ‘वातापि गणपतिं भजे’ यहाँ सुनें। पद्म विभूषण से विभूषित डॉ. बालमुरलीकृष्ण कर्नाटक संगीक के महान गायक हैं।
- घंटसाला वेंकटेश्वर राव – इनके द्वारा प्रस्तुत ‘वातापि गणपतिं भजे’ यहाँ सुनें। पद्म श्री से विभूषित घंटसाला वेंकटेश्वर राव जी महान संगीतज्ञ एवं पार्श्वगायक हैं। इन्हें गान गन्धर्व भी कहा जाता है।
- एस. जानकी – इनके द्वारा प्रस्तुत ‘वातापि गणपतिं भजे’ यहाँ सुनें। डॉ. जानकी दक्षिण भारत की सर्वाधिक लोकप्रिय बहुमुखी पार्श्वगायिका हैं। उन्होंने अनेक भाषाओं में कई लोकप्रिय गीत गाये हैं। २०१३ में उन्हें पद्म विभूषण की उपाधि प्रदान की गयी थी किन्तु कुछ कारणों से उन्होंने उसे नकार दिया था।
- पंडित अजोय चक्रबोर्ती – राग हंसध्वनी में पंडित अजोय चक्रबोर्ती द्वारा गाया ‘वातापि गणपतिं भजेहं’ यहाँ सुनें। पंडित अजोय चक्रबोर्ती हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत के सुप्रसिद्ध गायक हैं।
संगीत वाद्य पर बजाया गया ‘वतपि गणपतिं भजे’
- मैन्डोलिन पर यू. श्रीनिवास – इनके द्वारा बजाया गया ‘वातापि गणपतिं भजे’ यहाँ सुनें। पद्म श्री से विभूषित श्रीनिवास जी एक खाति-प्राप्त मैन्डोलिन वादक थे तथा कर्नाटक शास्त्रीय संगीत के प्रख्यात संगीतकार थे।
- डॉ. कादरी गोपालनाथ – डॉ. कादरी गोपालनाथ द्वारा सैक्सोफोन पर बजाया गया ‘वातापि गणपतिं भजे’ यहाँ सुनें। पद्म श्री से विभूषित डॉ. कादरी गोपालनाथ सैक्सोफोन पर कर्नाटक संगीत बजाने वाले अग्रदूतों में से एक हैं।
श्री विघ्नेश्वर सुप्रभातं
गणेश मंत्र – ॐ गण गणपतये नमो नमः – १०८ आवर्तन
जय गणेश जय गणेश – सूर्य गायत्री एवं कुलदीप एम. पै. द्वारा गाया गणेश पंचरत्नं
गणेश पंचरत्नं सदियों पूर्व आदि शंकराचार्य द्वारा रचित श्लोक है।
सुश्री सूर्य गायत्री एक विलक्षण बाल प्रतिभा है जिसने अपने कर्नाटक शास्त्रीय संगीत गायन के द्वारा यू-ट्यूब पर धूम मचाई हुई है। कुलदीप जी कर्नाटक शास्त्रीय संगीत के प्रसिद्ध गायक, संगीतज्ञ, संगीतकार एवं निर्माता हैं।
गणेश श्लोक – गजाननं भूतगणादि सेवितं
महा गणपतिं मनसा स्मरामि – येसुदास
येसुदास जी के स्वरों से अलंकृत कवि मुथुस्वामी दिक्षितर द्वारा रचित एक अन्य प्रसिद्ध रचना
मराठी भाषा में गणपति की आरतियाँ
भारत में गणेश पूजन का सार्वजनिक समारोह मूलतः भारत स्वतंत्रता आन्दोलन से आरम्भ हुआ था। बाल गंगाधर तिलक जैसे राष्ट्रवादी नेताओं ने गणपति पूजन के सार्वजनिक आयोजनों का आरम्भ किया था जिसके द्वारा उन्होंने जनमानस में राष्ट्रवाद जगाने का प्रयास किया था। लोकमान्य तिलक एक भारतीय राष्ट्रवादी नेता, अध्यापक, समाज सुधारक एवं वकील थे जिन्होंने भारत स्वतंत्रता आन्दोलन के प्रारंभिक काल में सक्रिय भाग लिया था। ‘स्वराज्य मेरा जन्म सिद्ध अधिकार है। मैं इसे लेकर ही रहूँगा’ यह उनके द्वारा दिया नारा था जो भारतीय इतिहास में अमर हो गया है। कुछ वर्षों पूर्व मैं उनके गृहनगर रत्नागिरी गयी थी जो कोंकण समुद्रतट का एक दमकता मणि है। रत्नागिरी के साथ मैंने निकटवर्ती गणपतिफुले नामक स्थान का भी भ्रमण किया था। गणपतिफुले में लम्बोदर गणपति मंदिर अत्यंत लोकप्रिय है जो समुद्र तट पर स्थित है।
महाराष्ट्र में गणपति उत्सव एक प्रमुख उत्सव है जिसे सार्वजनिक एवं घरेलु, दोनों स्तर पर धूमधाम से मनाया जाता है। महाराष्ट्र में मुख्यतः मुंबई एवं पुणे के गणेश उत्सव एवं उनकी धूम जगप्रसिद्ध है। अनेक कलाकार अपनी कला का प्रदर्शन कर भव्य एवं आकर्षक पंडाल निर्मित करते हैं। गणेश उत्सव के समय महाराष्ट्र के इन प्रमुख नगरों का भ्रमण करें तथा उसके उल्हास में सम्मिलित होइए।
सम्पूर्ण भारत में महाराष्ट्र राज्य का गणेश उत्सव सर्वाधिक भव्य एवं उल्हासपूर्ण होता है। इसीलिए गणेश भगवान का स्मरण होते ही मराठी भाषा के भजन एवं आरतियाँ मस्तिष्क में उभरकर आती हैं। उन्ही में से कुछ लोकप्रिय भजन एवं आरतियाँ यहाँ प्रस्तुत हैं।
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प्रथम तुला वंदितो – वसंतराव देशपांडे एवं अनुराधा पोडवाल
वसंतराव देशपांडे जी एक सुप्रसिद्ध हिन्दुस्तानी शास्त्रीय गायक थे। वे नाट्य संगीत के एक महान कलाकार थे। पद्मश्री से अलंकृत सुश्री अनुराधा पोडवाल एक लोकप्रिय पार्श्वगायिका हैं। उन्होंने अनेक लोकप्रिय भजन भी गाये हैं।
सुखकर्ता दुःखहर्ता – गणपति की आरती
इस आरती की रचना समर्थ रामदास स्वामी ने की थी। गणेश भगवान के मयूरेश्वर रूप से प्रभावित होकर रामदास स्वामी ने इस आरती की रचना की थी।
भारत रत्न विभूषित सुश्री लता मंगेशकर एवं अनेक अन्य प्रसिद्ध गायकों ने इन मराठी भजनों एवं आरतियों को अपने सुमधुर स्वर में गया है।
तुज मागतो मी आता
गजानना श्री गणराया
उठा उठा हो सकळीक
गणराज रंगी नाचतो
जयदेव जयदेव जय मंगल मूर्ती – आरती
सुश्री साधना सरगम द्वारा गाया जयदेव जयदेव का एक अन्य संस्करण यहाँ सुनें। साधना सरगम एक लोकप्रिय भारतीय पार्श्वगायिका हैं। वे भक्ति गीत, शास्त्रीय गायन, गजल एवं लोकप्रिय आधुनिक गीतों की सुप्रसिद्ध गायिका हैं।
हिन्दी भाषा में गणपति भजन एवं गीत
गणपति बाप्पा मोरया
वक्रतुंड महाकाय श्लोक – पंडित जसराज
पद्म भूषण एवं पद्म विभूषण की उपाधि से सम्मानित पंडित जसराज एक लोकप्रिय भारतीय शास्त्रीय गायक हैं।
कन्नड़ भाषा में गणपति भजन
कन्नड़ भाषा में गाये गणपति के कुछ लोकप्रिय भजन यहाँ प्रस्तुत हैं। वे अत्यंत मधुर हैं। महाराष्ट्र के पश्चात कदाचित कर्णाटक वह राज्य है जहां गणेश उत्सव की भव्यता एवं उल्हास उल्लेखनीय है।
गजमुखने गणपथिये निनगे वन्दने
भजन के इस संस्करण को सारदा भगवतुला ने स्वर प्रदान किया है। इस भजन के बोल श्री विजयनरसिम्हा ने लिखे हैं। इस भजन की मूल गायिका सुश्री एस. जानकी हैं।
शरणु शरणय्या बेनका – पी. बी. श्रीनिवास
डॉ. पी. बी. श्रीनिवास दक्षिण भारतीय भाषा के एक अनुभवी पार्श्वगायक हैं।
भाद्रपद शुक्लदा चवथिअन्दु – पी. बी. श्रीनिवास एवं एस. जानकी
तेलंगाना का हैदराबाद भी अब गणेश चतुर्थी आयोजन की होड़ में सम्मिलित होने लगा है। मुझे भी हैदराबाद में गणेश उत्सव मनाने का एक अवसर प्राप्त हुआ था। मेरे उस अनुभव पर मेरा संस्मरण, ‘गणेश एवं उसके लड्डू – हैदराबाद में गणेश उत्सव’ पढ़ना ना भूलें।
इन भाषाओं के अतिरिक्त अन्य भारतीय भाषाओं के लोकप्रिय गणेश भजनों के विषय में निम्न दर्शित टिप्पणी खंड के द्वारा मुझे अवश्य अवगत कराएं। मैं इस संकलन में उन्हें सम्मिलित करने का प्रयास करूंगी।