रामपुर बुशहर एवं उसका पदम् प्रासाद हिमाचल प्रदेश

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शिमला एवं किन्नौर क्षेत्र में दीर्घ काल तक शासन करते बुशहर राजवंश की राजधानी थी, रामपुर बुशहर। यदि किवदंतियों एवं लोककथाओं की मानें तो बुशहर नगर की वंशावली भगवान कृष्ण के पुत्र प्रद्युम्न तक जाती है। आप बुशहर क्षेत्र में अनेक विष्णु मंदिर देखेंगे जो इस मान्यता के आधार को दृढ़ करते हैं। प्रलेखित ऐतिहासिक सूत्रों के अनुसार बुशहर राजवंश ने सांगला के निकट स्थित कामरू दुर्ग से शासन का कार्यभार संभाला था। तत्पश्चात वे वहां से सराहन स्थानांतरित हो गए थे। अंततः, लगभग १०० वर्ष पूर्व वे सतलुज नदी के तट पर स्थित रामपुर में बस गए थे।

रामपुर बुशहर का पद्म महल
रामपुर बुशहर का पद्म महल

जब मैं रामपुर से सराहन तथा उसके पश्चात कामरू के भ्रमण पर जा रही हूँ, मेरी यह यात्रा मुझे इतिहास में विपरीत दिशा की ओर ले जाने वाली है। यात्रा आरम्भ करने से पूर्व आईये मैं रामपुर एवं उसके पदम् पैलेस से आपका परिचय करा दूं।

हिमाचल प्रदेश का रामपुर बुशहर नगर

शिमला से जब आप रामपुर में प्रवेश करेंगे, तब दो अद्भुत दृश्य आपका स्वागत करेंगे। एक है, गर्जना करती सतलुज नदी तथा दूसरा है, हनुमान जी की एक विशाल मूर्ति। तत्पश्चात आपकी दृष्टि नदी के ऊपर निर्मित एक छोटे से सेतु पर पड़ती है। इस उर्जावान नदी की तुलना में यह सेतु अत्यंत गौण प्रतीत होता है किन्तु वह अब भी लोगों को नदी के उस पार ले जाने में सक्षम है। रामपुर नगर नदी के दोनों तटों पर समान रूप से विभाजित प्रतीत होता है।

रामपुर बुशहर में सतलुज नदी
रामपुर बुशहर में सतलुज नदी

नदी के समान्तर जाती सड़क कार्यालय भवनों के भीतर-बाहर जाते लोगों के क्रियाकलापों  में व्यस्त था। ग्राहकों को आकर्षित करने के लिए भाजी के दुकानदारों ने सुन्दर रीति से अपनी दुकानें सजा रखी थीं। बस स्थानक के आसपास की गतिविधियाँ इस ओर संकेत कर रही थीं कि यह इस क्षेत्र का एक महत्वपूर्ण नगर है।

प्राचीन हिंदुस्तान – तिब्बत मार्ग पर स्थित रामपुर सदैव ही भारत एवं तिब्बत के मध्य स्थित एक महत्वपूर्ण व्यापार केंद्र रहा है। यह दो पारंपरिक व्यापार मेलों का भी स्थल है, नवम्बर माह में लवी मेला तथा मार्च मास में फाग मेला। इन मेलों में आसपास से अनेक व्यापारी अपने उत्पाद विक्री करने आते हैं। रामपुर के निवासियों द्वारा धारण की जाने वाली सुविख्यात एवं हिमाचल में सर्वव्यापी किन्नौरी टोपियाँ भी यहाँ के परिदृश्यों का अभिन्न अंग हैं। यहाँ मुझे लगभग सभी पुरुषों के शीष पर यह हरी टोपियाँ दृष्टिगोचर हुईं जैसी आपने वीरभद्र सिंह के शीष पर देखी होंगी। इन टोपियों से सम्बंधित कथाएं मुझे कुछ समय पश्चात ज्ञात हुईं।

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रामपुर के स्नेहपूर्ण निवासी

रामपुर के सादगीपूर्ण जीवन में स्वयं को सराबोर करने के उद्देश्य से हम नदी के तट पर पैदल चलने लगे। हम चाय की एक दुकान पर बैठ गए तथा तेल से ताजे निकले हुए कुरकुरे समोसों का आनंद लिया। सादगी से भरपूर व स्नेह से परिपूर्ण हिमाचली स्थानिकों से वार्तालाप किया।  चाय की दुकान पर बैठे एक वयस्क दंपत्ति ने हमसे अत्यंत स्नेह से चर्चा की। जब उन्हें यह ज्ञात हुआ कि हम हिमाचल प्रदेश के अछूते अद्भुत दर्शनीय स्थलों का भ्रमण करने निकलें हैं तो उन्होंने हमसे उनके साथ कुछ दिवस व्यतीत करने का आग्रह किया। उनके स्नेह ने हमारे हृदय को भीतर तक पिघलाकर रख दिया।

वे रामपुर से लगभग २० किलोमीटर दूर स्थित एक गाँव के निवासी थे। पर्वतीय परिवेश में २० किलोमीटर एक लम्बी दूरी होती है। वे हमसे उनके अतिथि बनने का आग्रह कर रहे थे ताकि वे हमें राज्य के उन भागों का दर्शन करा सकें जहां वे रहते हैं। ऐसा स्नेह एवं आतिथ्य का आग्रह आपने कब और कहाँ अनुभव किया था, क्या आपको स्मरण है? उन्हें ना कहना हमारे लिए कठिन हो रहा था। सादगी भरे उन लोगों को कदाचित यह कभी विश्वास नहीं होगा कि वास्तव में वे इस विश्व में इतनी सकारात्मकता फैला रहे हैं।

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रामपुर बुशहर का पदम् पैलेस

रामपुर के मुख्य मार्ग के एक ओर रामपुर का भव्य गौरव स्थित है, इसका अप्रतिम, आकर्षक एवं उत्तम रखरखाव युक्त पदम् पैलेस। पैलेस शब्द से हमारी स्मृतियों में अनेक मनमोहक एवं सुन्दर भवनों की छवियाँ उभर कर आ जाती हैं क्योंकि हम पैलेस अथवा महल का सम्बन्ध सदा प्राचीन काल के उच्चकुलीन रजवाड़ों एवं राजघरानों से जोड़ते हैं। महलों एवं दुर्गों की यह विशेषता होती है कि वे अपने समयकाल के जीवंत प्रलेखन होते हैं। उन राजा-महाराजाओं का व्यक्तित्व कैसा था, उस काल में कैसी जीवनशैली होती थी, किस प्रकार के पहवावे एवं वस्त्र होते थे, उनके जीवनकाल की उपलब्धियां क्या थीं इत्यादि अनेक प्रश्नों के उत्तर हमें इन महलों से प्राप्त होते हैं।

रामपुर बुशहर का पद्म महल
रामपुर बुशहर का पद्म महल

कुछ सीढ़ियाँ चढ़कर हम पदम् पैलेस के प्रांगण में पहुंचे। मेरे समक्ष लकड़ी में निर्मित दो भवन थे जिन पर फिरोजी नीले एवं भूरे रंगों का अद्वितीय सम्मिश्रण था। लकड़ी पर की गयी अप्रतिम नक्काशी ने मेरा मन मोह लिया था। वहां से आगे जाकर एक छोटा प्रांगण था। उस प्रांगण की भित्ति के उस पार स्थित एक ऊंची उत्कीर्णित संरचना मेरा लक्ष वेध रही थी।

विशाल परिसर

उस भव्य एवं लम्बे भवन के अवलोकन के लिए मैंने मुख्य प्रांगण के भीतर प्रवेश किया। भवन के चारों ओर विस्तृत उद्यान थे। उसके अग्रभाग में एक रंगबिरंगा फुहारा था तथा उसके पृष्ठभाग में पहाड़ियां थीं। सम्पूर्ण दृश्य ने मुझे विस्मित कर दिया था। इस लम्बवत भवन में धूसर रंग के शिलास्तंभ थे। प्रथम तल भूरे रंग का था जो काष्ठ से निर्मित था। इसकी ढलुआ छत लाल रंग की थी। ऊँचे शिलास्तंभ सम्पूर्ण भवन को रम्यता प्रदान कर रहे थे। उनके ऊपर विपुलता से उत्कीर्णित काष्ठ के पटल किसी मुकुट के समान प्रतीत हो रहे थे। हरे भरे पहाड़ों की पृष्ठभूमि में स्थानीय कलाशैली की उत्कृष्टता तथा लाल रंग के ढलुआ छत सम्पूर्ण भवन की सुन्दरता को कई गुना बढ़ा रहे थे।

पद्म महल की काष्ठ कला
पद्म महल की काष्ठ कला

भवन के निचले तल पर नीलवर्ण द्वार तथा उन पर लगे रंगबिरंगे कांच भवन को समृद्ध कर रहे थे। कांच से भीतर झांकने पर हमने अनेक विशाल कक्ष देखे जिनके भीतर साज-सज्जा की वस्तुएं अधिक नहीं थीं तथा दूसरी ओर भी इसी प्रकार के द्वार थे। इन रंगबिरंगे कांच से भीतर प्रवेश करती सूर्य की किरणें कक्ष के भीतर अनेक रंग बिखेर रही थीं। गलियारों की छत पर श्वेत, हरे एवं लाल रंगों में अनेक ज्यामितीय आकृतियाँ चित्रित थीं जिन्हें कांच के टुकड़ों से अलंकृत किया गया था।

पदम् पैलेस का इतिहास

पद्म महल का ऊपरी भाग
पद्म महल का ऊपरी भाग

पदम् पैलेस बुशहर के राजपरिवार की निजी संपत्ति है। यदि आज राजशाही जीवित होती तो आज यहाँ के राजा श्री वीरभद्र सिंह होते जो संयोग से हिमाचल प्रदेश के मुख्य मंत्री थे। उन्हें आज भी यहाँ राजा साहेब के नाम से संबोधित किया जाता है। उनके पिता पदम् सिंह ने इस महल का निर्माण कराया था। वे इसका वंश की वंशावली के १२२वें राजा थे। मैंने वहां उपस्थित कुछ लोगों से वार्तालाप किया एवं महल के विषय में जानकारी प्राप्त की। उनके अनुसार यह महल लगभग ३००-४०० वर्ष प्राचीन है। कुछ तो इसे उससे भी प्राचीन बता रहे थे। ये जानकारी भ्रमित कर रही थी।

मनोहारी नील द्वार
मनोहारी नील द्वार

मुझे इस महल की स्थापत्य कला पूर्णतः औपनिवेशिक प्रतीत हो रही थी। अतः मेरे अनुमान से यह १९-२०वीं सदी का  न निर्माण प्रतीत होता है। भित्ति पर लगे एक अभिलेख ने यह गुत्थी सुलझाई, जिस पर लिखा था कि राजा पदम् सिंह ने सन् १९१९ में इस महल की आधारशिला रखी थी। इस अभिलेख के अनुसार यह महल अपेक्षाकृत नवीन है। महल के प्रवेश द्वार के निकट बालाजी की उत्कृष्ट रूप से उत्कीर्णित लकड़ी की प्रतिमा रखी हुई थी। दक्षिण भारतीय कलाशैली में गढ़ी इस प्रतिमा के निकट उत्तर भारतीय कलाशैली में उत्कीर्णित गणेश जी की प्रतिमा रखी थी।

उत्कृष्ट रूप से उत्कीर्णित काष्ठ संरचनाएं

खुले आंगन में राज दरबार
खुले आंगन में राज दरबार

उद्यान के एक छोर पर नीले रंग का एक सुन्दर भवन था । उस बहुरंगी भवन पर उत्कृष्ट नक्काशी की गयी थी। रंगों एवं उत्कृष्ट नक्काशी के इस अद्वितीय व अद्भुत संगम ने मुझे एवं मेरे कैमरे को स्तंभित कर दिया था। उसकी सुन्दरता से हम दोनों अभिभूत हो गए थे। यह गोलाकार भवन उत्कीर्णित संकरे स्तंभों पर खड़ा था जिस पर धूसर रंग की ढलुआ दुहरी छत थी। हरी भरी पृष्ठभूमि में नीले व धूसर रंग का यह भवन मनमोहक प्रतीत हो रहा था। मुझे बताया गया कि महल के इस भाग में राजा अपनी प्रजा से भेंट करते थे। इसे मछकंदी कहते हैं।

रंगों से सुसज्जित राज दरबार
रंगों से सुसज्जित राज दरबार

मैंने एक रानी के समान भवन के भीतर प्रवेश किया। लकड़ी के मंच पर खड़े होकर चारों ओर एवं ऊपर दृष्टि दौड़ाई। इसकी छत एक मंदिर की छत प्रतीत हो रही थी। उस पर राम नाम एवं शुभ चिन्ह अंकित थे। उनके साथ बुशहर महाराजा पदम् सिंह का नाम भी चिन्हित था। स्वाभाविक ही है, प्राचीन काल में महाराजाओं को धरती पर भगवान का अवतार ही माना जाता था। वहां व्यतीत किये कुछ क्षणों में मुझे ऐसा प्रतीत हुआ मानो मैं भी एक रानी हूँ तथा प्रजा के दुखों को दूर करने में सक्षम हूँ। मैं भी ऐसी स्थिति में हूँ कि लोगों को ‘दे’ सकूं। क्या यह ऐसे महलों की महिमा है जो वहां बैठकर निर्णय लेने वालों की मनःस्थिति पर ऐसा सद्प्रभाव डालती है?

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एक छोर पर नीले रंग का लघु शीश महल है जो कदाचित पदम् पैलेस से प्राचीन है। पदम् पैलेस के एक भाग को अब होटल में परिवर्तित किया गया है जहां आप ठहर सकते हैं तथा राजसी ठाठबाट का आनंद उठा सकते हैं।

रामपुर बुशहर के मंदिर

नरसिंह मंदिर

रामपुर बुशहर का नरसिंह मंदिर
रामपुर बुशहर का नरसिंह मंदिर

रामपुर के मुख्य मार्ग पर चलते हुए हम पत्थर के छोटे से भवन के निकट पहुंचे। वह भवन एक प्राचीन मंदिर प्रतीत हो रहा था। एक श्वेत द्वार से हमने भीतर प्रवेश किया। उस द्वार पर सिंह मुख की धातुई घुन्डियाँ थीं। शैल चबूतरे पर स्थित वह एक अत्यंत छोटा सा पत्थर का मंदिर था। उसके चारों ओर एवं ऊपर लकड़ी के स्तम्भ एवं छत थी। मंदिर की शिलाओं पर स्थित जीर्ण उत्कीर्णन यह संकेत कर रहे थे कि मंदिर की शिलाएं अत्यंत पुरातन हैं। हमने मंदिर को चारों ओर से देखा तथा जाना कि यह विष्णु के नरसिम्ह अवतार को समर्पित एक पुरातन मंदिर है। हिमाचल प्रदेश में नरसिंह मंदिर देख मुझे अत्यंत विस्मय हुआ क्योंकि इससे पूर्व मैंने भारत के दक्षिणी भागों में ही नरसिंह के मंदिर देखे थे। पुरोहित जी ने मुझे बताया कि इस क्षेत्र में विष्णु के नरसिंह अवतार की आराधना की जाती है। यहाँ नरसिंह के अनेक मंदिर हैं।

नरसिंह मंदिर की कला
नरसिंह मंदिर की कला

मंदिर के ऊपर लकड़ी की छत, खजुराहो के मंदिरों की छतों के समान उत्कीर्णित थी। वर्ष के ६ मास हिमाच्छादित रहने के कारण मंदिर एवं लकड़ी को क्षति पहुँचती है जिसके कारण ये असंरक्षित प्रतीत होते हैं। लकड़ी के भागों का नियमित रखरखाव आवश्यक हो जाता है तथा अनेक भागों को नियमित अंतराल में प्रतिस्थापित किया जाता है। वहीं, शैल संरचना पुरातन है। मंदिर का आधार शैल में उत्कीर्णित कमल का पुष्प है। ऐसा प्रतीत होता है मानो कमल के पुष्प से मंदिर का उद्भव हो रहा है। हमारे नेत्रों के स्तर पर, भित्तियों पर, अति लघु मंदिर के रूप में अनेक आले हैं जिनके भीतर विभिन्न देवताओं की प्रतिमाएं हैं। मंदिर का प्रत्येक अवयव मंदिर स्थापत्य की नागर शैली का आभास करता है।

यह एक लघु मंदिर है किन्तु सतलुज नदी के तट पर स्थित इस मंदिर में आध्यात्मिक उर्जा का आभास होता है। यह मंदिर युगों युगों से अर्पित करोड़ों प्रार्थनाओं की उर्जा से ओतप्रोत है। आपको भी इसका अनुभव अवश्य होगा।

रघुनाथ मंदिर

मार्ग के दूसरी ओर एक अन्य शैल मंदिर है जो अपेक्षाकृत अधिक जाना-पहचाना रघुनाथ मंदिर है। अब इसके चारों ओर धर्मशाला है। मुख्य मंदिर के बाहर हनुमान की शैल प्रतिमा है। मंदिर की भित्तियों पर भी हनुमान की प्रतिमाएं हैं। यह विष्णु के राम अवतार का मंदिर है।

दुन्ग्युर मंदिर

बस स्थानक के समीप एक ऊँची रंगबिरंगी संरचना है जो दुन्ग्युर मंदिर नामक बौद्ध मंदिर है। इसका उद्घाटन सन् २००६ में दलाई लामा ने किया था। इसका मुख्य द्वार अत्यंत मनमोहक एवं दर्शनीय है।

रामपुर बुशहर का बौद्ध मंदिर
रामपुर बुशहर का बौद्ध मंदिर

रामपुर के सार्वजनिक स्थलों के विषय में एक विशेषता का उल्लेख करना चाहूंगी। वे सभी सामान्य जनमानस के लिए दुर्लभ, दर्शनीय स्थल मात्र नहीं हैं, अपितु वहां के लोग उनका पूर्णतः उपयोग करते हैं। लोग पदम् पैलेस के उद्यान में एवं बाहर स्थित मंडप के नीचे बैठते हैं। मंदिर के बाहर एवं भीतर स्थित चबूतरों पर बैठते हैं। चर्चा वार्तालाप करते हैं। अंततः ऐसे स्थलों की रचना ही इसलिए की जाती थी कि लोग वहां बैठें, एक दूसरे से भेंट करें, एक दूसरे के सुख-दुःख बांटे, एक दूसरे की सहायता करें व उन्हें सुझाव दें। मुझे प्रसन्नता है कि रामपुर अपनी धरोहर का उपभोग ठीक उसी प्रकार कर रहा है जैसा कि होना चाहिए।

अनुवाद: मधुमिता ताम्हणे

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