म्हालसा नारायणी मंदिर अथवा महालसा नारायणी मंदिर गोवा के प्रमुख मंदिरों में से एक है। फोंडा के मार्दोल में स्थित म्हालसा नारायणी मंदिर के मैंने अनेक बार दर्शन किये हैं। कुछ वर्ष पूर्व मैंने गोवा के मंदिरों के विषय में Goa Temple Trail नामक संस्करण लिखा था। मार्दोल का म्हालसा नारायणी मंदिर उस संस्करण में सम्मिलित है। किन्तु जब मैंने देवी से सम्बंधित प्राचीन साहित्यों का वाचन आरम्भ किया, एक तथ्य ने मेरा ध्यान खींचा। अनेक स्थानों पर म्हालसा देवी का उल्लेख गोमान्तक क्षेत्र से जोड़कर किया गया था। इसने मुझे यह सोचने पर बाध्य कर दिया कि कदाचित वे गोवा की प्राचीनतम अधिष्ठात्री देवी हैं।
तब मैंने डॉ. मोहन पाई द्वारा लिखित पुस्तक ‘For the love of Mandovi’ पढ़ी जिसमें १६वीं शताब्दी के गोवा के विषय में वर्णन किया गया है, जब पुर्तगालियों ने इस धरती पर अपना अधिपत्य जमाकर यहाँ के मंदिरों को ध्वस्त करना आरम्भ किया था। इस पुस्तक में वरण्यपुरम अथवा वरुणापुरम में स्थित देवी म्हालसा के मंदिर के विषय में प्रमुखता से वर्णन किया गया है। जैसे पुराण में लिखा गया है, इस पुस्तक से भी यही अनुमान लगता है कि यह मंदिर इस क्षेत्र के विशालतम मंदिरों में से एक था।
म्हालसा देवी से सम्बंधित दंतकथाएं
मंदिर के पुरोहितजी के अनुसार, अनेक वर्ष पूर्व देवी वायु के रूप में गोमान्तक आयी थीं। विराजमान होने के लिए उन्होंने उपयुक्त स्थान की खोज आरम्भ की। अंत में वे वरण्यपुरम में स्थायी हो गयीं। वहां के लोगों ने उन्हें पेयजल की कमी के विषय में जानकारी दी। तब देवी ने अपने पैर के अंगूठे से धरती को भेदकर एक सरोवर की रचना की, जहां से पेयजल का सोता फूट पड़ा।
उस स्थान का नाम पड़ा, नुपुर तीर्थ। नुपुर देवी के चरणों के आभूषण का नाम है। देवी के यहाँ विराजमान होते ही उनके लिए एक मंदिर की रचना हुई। समीप ही लेटराइट (लोह खनिज) की शिलाओं द्वारा एक अन्य विशाल जलकुंड की भी संरचना की गयी। मेरे अनुमान से ये दोनों जलकुंड धरती के भीतर एक ही जलस्त्रोत से जुड़े हुए हैं। यह स्थान वरण्यपुरम के सामाजिक जीवन का केंद्र बिंदु बन गया था जो साथ ही साथ, एक प्रमुख व विशाल व्यापारिक केंद्र भी बना।
सागर मंथन कथा
म्हालसा नारायणी का सम्बन्ध सागर मंथन की पौराणिक कथा से भी है। भगवान विष्णु ने सागर मंथन से प्राप्त अमृत का वितरण करने के लिए मोहिनी अवतार धारण किया था। अमृत का पान करने के लिए स्वरभानु नामक एक असुर भी देवताओं की पंक्ति में कपट से बैठ गया था। भगवान विष्णु ने सुदर्शन चक्र से उस असुर के दो भाग कर दिए थे। असुर का सर राहु कहलाया तथा उसके धड़ को केतु कहा गया। भगवान विष्णु ने मोहिनी के रूप में राहु का पीछा किया। म्हालसा नामक पहाड़ी पर जाकर मोहिनी ने राहु का वध किया तथा उसके ऊपर खड़ी हो गयी। भगवान विष्णु का यही अवतार म्हालसा नारायणी के रूप में अमर हो गया। उन्हें राहु मर्दिनी भी कहा जाता है। यद्यपि मुझे यह जानकारी नहीं मिल पायी कि क्या राहु से सम्बंधित कोई धार्मिक अनुष्ठान का यहाँ आयोजन किया जाता है।
अन्य पौराणिक मान्यताओं के अनुसार देवी म्हालसा मल्हारी मार्तंड अर्थात् खंडोबा की पत्नी है। खंडोबा भगवान शिव के ही एक रूप हैं जिन्हें देश के पश्चिमी भागों में बड़ी श्रद्धा से पूजा जाता है। म्हालसा नारायणी मंदिर से कुछ ही दूरी पर मल्हारी मार्तंड का मंदिर भी है। कदाचित मल्हारी मार्तंड का यह मंदिर पूर्वकालीन म्हालसा नारायणी मंदिर परिसर का ही एक भाग रहा होगा। एक प्रकार से देखा जाए तो यह कथा पहली कथा से असम्बद्ध नहीं है। ऐसा कहा जाता है कि भगवान शिव मोहिनी पर मोहित हो गए थे। इसी कारण उन्होंने खंडोबा का मानवी अवतार ग्रहण किया था ताकि वे म्हालसा से विवाह कर सकें।
एक अन्य दंतकथा के अनुसार म्हालसा देवी पार्वती का ही एक रूप है। मणि एवं मल्ला नामक असुरों का वध करने के लिए भगवान शिव ने भैरव का तथा देवी पार्वती ने म्हालसा का अवतार ग्रहण किया था।
वेर्णा का म्हालसा नारायणी मंदिर
आज मैंने वेर्णा के म्हालसा मंदिर के दर्शन की योजना बनाई है। इसके परिसर व मंदिर का इन्ही दिनों उसी स्थान पर पुनर्निर्माण किया गया है, जहां वह पूर्व में स्थित था। आज वेर्णा गोवा का आद्यौगिक जिला बन चुका है। उसमें विभिन्न प्रकार के अनेक कारखाने एवं कार्यालय हैं। यहाँ तक कि, जब मैं सर्वप्रथम गोवा आयी थी, मेरा कार्यालय भी वेर्णा में ही था। वह भी इस मंदिर के समीप। किन्तु इस मंदिर के दर्शन की योजना को साकार होने में सात वर्ष व्यतीत हो गए। एक कहावत भी है कि आप देवी के मंदिर तभी जा सकते हैं, जब देवी स्वयं ऐसा चाहे।
पहाड़ी की तलहटी पर स्थित यह नवीन मंदिर कदाचित गोवा के विशालतम मंदिरों में से एक है।
मंदिर का जलकुंड भी मेरे द्वारा देखे गए गोवा के अन्य मंदिरों के जलकुण्डों से अपेक्षाकृत विशाल है। स्वच्छ लेटराइट शिलाओं द्वारा निर्मित जलकुंड अत्यंत सुन्दर प्रतीत होता है।
जलकुंड के एक कोने में एक गोलाकार कुआं है। वह इतना स्वच्छ था कि मुझे लगा, वह भी मंदिर के समान एक नवीन संरचना है। किन्तु मुझे बताया गया कि वह कुआं प्राचीन मंदिर का मूल प्राचीन कुआं है।
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म्हालसा नारायणी मंदिर का इतिहास
आरम्भ से ही यह मंदिर वरुणापुरम में स्थित था जिसे अब वेर्णा कहते हैं। १६वीं शताब्दी में पुर्तगालियों ने इसे पूर्णतः ध्वस्त कर दिया था। कालांतर में फोंडा के मर्दोल गाँव में इस मंदिर की स्थापना की गई, जहां वह अब भी स्थित है। मंदिर के मूल स्थान पर अब एक नवीन मंदिर की संरचना की गयी है। म्हालसा के अन्य मंदिर पैठन, नेवासा, कारवार, कुमटा, कासरगोड तथा हरिखंडिगे इत्यादि स्थानों में भी हैं। म्हालसा अनेक सारस्वत ब्राह्मण परिवारों एवं कुछ अन्य समुदायों की कुलदेवी हैं।
म्हालसा नारायणी मंदिर का स्थापत्य
इस मंदिर का स्थापत्य अत्यंत अनूठा है। इसे एक संकुल के समान निर्मित करने की योजना है जिसके कुछ भागों का निर्माण अब भी शेष है। प्रवेश द्वार पर लगे मानचित्र में मंदिर संकुल के विभिन्न भागों का वर्णन है।
मुख्य मंदिर में एक अत्यंत ही विशाल मंडप है जिसकी छत आयताकार वक्रीय गुम्बद के समान है। ग्रेनाइट शिलाओं द्वारा निर्मित इसके चमचमाते तल पर इस गुम्बद का प्रतिबिम्ब इतना स्पष्ट झलकता है कि जब आप उस तल पर चलते हैं तो ऐसा प्रतीत होता है मानो आप गुम्बद से लटके हैं। इसका श्रेय मंदिर प्रबंधन को भी जाता है जो मंदिर को अत्यंत स्वच्छ रखते हैं। इस मंदिर के निर्माण में प्रचुर मात्रा में ग्रेनाइट शिलाओं का प्रयोग किया गया है।
नवीन मंदिर एवं प्राचीन जलकुंड एक दूसरे के समक्ष स्थित हैं। मंदिर के एक ओर बच्चों की पाठशाला है तथा दूसरी ओर कल्याणमंडप अथवा विवाह मंडप है। मंदिर एवं जलकुंड के चारों ओर सुन्दर बगीचे हैं जिनका उत्तम रखरखाव किया जाता है।
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म्हालसा नारायणी का विग्रह
देवी की प्रतिमा कृष्ण वर्णीय शिला में निर्मित है। मुझे बताया गया कि यह प्रतिमा गोवा में ही स्थानीय शिल्पकारों ने गढ़ी है। मेरी तीव्र अभिलाषा है कि मुझे उन उत्कृष्ट शिल्पकारों से भेंट करने का अवसर शीघ्र ही प्राप्त हो ताकि मैं उनका अभिनन्दन कर सकूं तथा उनकी कला के विषय में जान सकूं।
देवी ने अपनी चार भुजाओं में क्रमशः त्रिशूल, तलवार, असुर का शीष तथा एक पात्र पकड़ा है। उन्होंने यज्ञोपवीत भी धारण किया हुआ है। यह किंचित असाधारण है क्योंकि यज्ञोपवीत साधारणतः पुरुष धारण करते हैं। वे एक असुर के ऊपर खड़ी हैं जिसका कदाचित उन्होंने वध किया है।
मेरे अनुमान से यह उनका देवी अवतार है क्योंकि खंडोबा की पत्नी के रूप में उन्हें सामान्यतः खंडोबा के साथ अश्वारोहण करते दर्शाया जाता है।
मुख्य विग्रह के दोनों ओर दो अन्य प्रतिमाएं हैं। वे भी उत्कृष्ट रूप से उत्कीर्णित हैं। उनके बाईं ओर अर्धनारीश्वर की प्रतिमा है जो भगवान शिव तथा देवी पार्वती का संयुक्त रूप है। दाहिनी ओर हरिहर की प्रतिमा है जो भगवान शिव एवं भगवान विष्णु का संयुक्त रूप है।
देवी के बायीं ओर एक लघु मंदिर है जिसके भीतर शारदाम्बा की प्रतिमा है। वहीं, दाहिनी ओर भी एक लघु मंदिर है जो आदि शंकराचार्यजी को समर्पित है। प्रत्येक मंदिर के प्रवेशद्वार पर सुन्दर चंद्रशिला है, जैसा हमारे प्राचीन मंदिरों में सामान्यतः होता था।
६४ योगिनी मंदिर
मुख्य मंदिर के बाहर, दाहिनी ओर स्वर्णाकर्षण भैरव का मंदिर है। इसका शाब्दिक अर्थ है, भैरव जो स्वर्ण को आकर्षित करने में समर्थ है। उनके दाहिनी ओर एक अनूठा ६४ योगिनी मंदिर है। मैंने इससे पूर्व ओडिशा के ६४ योगिनी मंदिर एवं मध्य प्रदेश का ६४ योगिनी मंदिर देखे हैं। किन्तु मुझे यह ज्ञात नहीं था कि मेरे अपने गोवा के आँगन में भी एक ६४ योगिनी मंदिर है। यह मंदिर मेरे द्वारा देखे गए अन्य ६४ योगिनी मंदिरों की तुलना में अत्यंत लघु है किन्तु इसमें भी पूर्ण रूप से उसी क्रम व रचना का पालन किया गया है।
इसमें भी एक गोलाकार में ६४ योगिनियाँ हैं। मंदिर के बाहर एक फलक पर सभी ६४ योगिनियों के क्रमवार नाम लिखे हुए हैं। मध्य में संहार भैरव की प्रतिमा है जो संहार का प्रतीक है। गोलाकार में अप्रतिम रूप से उत्कीर्णित सभी ६४ योगिनियों को देखते ही मेरे रोंगटे खड़े हो गए। मैं अत्यंत रोमांचित हो गयी। मंदिर का जालीदार द्वार बंद था जिसके कारण मैं उन्हें दूर से ही देख पायी। मंदिर के पट खोलने के लिए वहां कोई उपस्थित नहीं था। अन्य ६४ योगिनी मंदिरों की तुलना में इसमें दो भिन्नताएं हैं। एक, यह अत्यंत लघु है। दूसरा, अन्य मंदिरों के समान सभी ६४ योगिनियों को मुक्तांगण में ना रखते हुए उन्हें एक छोटे से मंदिर के भीतर रखा गया था, जिस पर छत भी थी।
इस संकुल में ६४ योगिनी मंदिर के दर्शन के पश्चात मेरे मस्तिष्क में एक प्रश्न कौंधने लगा। क्या गोवा में पूर्व से ही ६४ योगिनी मंदिर उपस्थित था? यदि नहीं, तो मंदिर के नवीन निर्माताओं के मस्तिष्क में यह योजना कैसे आयी? उन्होंने इस मंदिर के लिए ६४ योगिनियों के क्रमवार नाम कैसे चुने? उन्होंने किस अगम का पालन किया था? मेरी खोज अब भी जारी है।
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म्हालसा नारायणी मंदिर के उत्सव
देवी मंदिर का सर्वाधिक महत्वपूर्ण एवं बड़ा उत्सव, बिना किसी संदेह के, नवरात्रि ही है।
इसके अतिरिक्त, मंदिर में राम नवमी का उत्सव भी धूमधाम से मनाया जाता है जिसमें भगवान राम की उत्सव मूर्ति का पूजन किया जाता है। इस अवसर पर झूले का भी आयोजन किया जाता है।
म्हालसा नारायणी मंदिर का वार्षिक उत्सव प्रति वर्ष चैत्र मास के कृष्ण पक्ष की षष्ठी से अष्टमी तक मनाया जाता है। यह लगभग चैत्र नवरात्रि के पश्चात आता है।
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नुपुर तीर्थ एवं हनुमान मंदिर
ऐसी मान्यता है कि नुपुर तीर्थ को देवी ने खोद कर स्वयं बनाया था। यह मुख्य मंदिर से कुछ ही दूरी पर स्थित है। यह एक छोटा चौकोर जलकुंड है जो एक भूमिगत जलस्त्रोत से जुड़ा हुआ है। इसके एक कोने में एक छोटा सा मंदिर है जिसके भीतर एक शिवलिंग है।
जलकुंड के भीतर जाने का द्वार बंद था। आप बाहर से ही जलकुंड के दर्शन कर सकते हैं। जलकुंड के समीप लगे सूचना पटल के अनुसार यह प्राचीन जलकुंड उसके भीतर स्थित जलस्त्रोत के पुनरुद्धार एवं जल संचयन परियोजना का भाग है।
तीर्थ के समीप, वास्तव में सड़क के समीप एक नवीन हनुमान मंदिर है। हनुमान मंदिर का स्थापत्य भी मुख्य म्हालसा मंदिर के स्थापत्य से मेल खाता है। हनुमान के विग्रह के दाहिनी ओर परशुराम का मंदिर है तथा बाईं ओर काल भैरव का मंदिर है।
मल्हारी मार्तंड अथवा खंडोबा मंदिर
यह मंदिर म्हालसा नारायणी मंदिर का ही एक भाग होते हुए भी उससे कुछ किलोमीटर दूर स्थित है। दोनों ही मंदिर वेर्णा औद्योगिक क्षेत्र में स्थित हैं। इस मंदिर का मंडप अब भी निर्माणाधीन है।
मुख्य मंदिर के भीतर एक शिवलिंग स्थापित है। मंदिर की चौखट पर की गयी अप्रतिम उत्कीर्णन ने मेरा मन मोह लिया था। उस पर दोनों ओर द्वारपाल भी उत्कीर्णित थे।
बाहर एक छोटा सा मंदिर है जिसके भीतर एक प्राचीन मूर्ति के अवशेष तथा एक त्रिशूल संरक्षित किया गया था। उसके बाहर लगे पटल पर ‘श्री मल्हाराया नमः’ लिखा हुआ था।
म्हालसा नारायणी मंदिर एवं संकुल के अन्य मंदिरों के दर्शन के पश्चात घर वापिस आते समय मुझे ऐसा प्रतीत हो रहा था मानो गोवा के इतिहास से मेरी अन्तरंग भेंट हुई है। गोवा के इतिहास का वह भाग, जिसका उल्लेख पुराणों में है तथा जिसका पुनरुद्धार किया जा रहा है। उसने मेरे मन में उसे अधिक विस्तार से जानने की आकांक्षा उत्पन्न कर दी है। खोज करने के लिए मन में अनेक जिज्ञासाएं उत्पन्न हो गयी हैं।
आप जब भी गोवा में आयें, इस मनमोहक म्हालसा नारायणी मंदिर संकुल के दर्शन अवश्य करिए। मंदिर के विषय में अधिक जानकारी के लिए मंदिर के इस अधिकारिक वेबस्थल पर संपर्क करें।