सतपुड़ा के वनों के विषय में कवि भवानी प्रसाद ने सुन्दर उद्गार व्यक्त किये हैं, घने किन्तु उनिंदे। मैं उनसे पूर्णतः सहमत हूँ। लताओं व मकड़ियों से भरे वन वास्तव में उनिंदे हैं। एक समय बाघों से भरे इन वनों में अब उतने बाघ नहीं हैं जितने कदाचित कवि भवानी प्रसाद ने देखे होंगे।
इस मास के आरम्भ में हमें पगडण्डी सफारी से आमंत्रण मिला था कि हम देन्वा नदी के तट पर स्थित उनके मनमोहक देन्वा बैकवाटर एस्केप रिसोर्ट (Denwa Backwater Escape resort) में ठहरे व उसका आनंद उठायें। रिसोर्ट के समक्ष ही सतपुड़ा राष्ट्रीय उद्यान स्थित है। तीन दिवसों तक हम रिसोर्ट एवं राष्ट्रीय उद्यान में पूर्णतः मग्न रहे। देन्वा के अप्रवाही जल को पार कर राष्ट्रीय उद्यान का विभिन्न किन्तु रोचक रीति से अवलोकन करना अत्यंत रोमांचक अनुभव था। इस राष्ट्रीय उद्यान में हमने भिन्न भिन्न सफरियों का कैसे आनंद उठाया, उसका विस्तृत विवरण एवं अनुभव मैं आपके साथ बांटना चाहती हूँ।
सतपुड़ा राष्ट्रीय उद्यान के वनों का आनंद उठाने के ५ प्रकार
जीप सफारी
यह राष्ट्रीय उद्यानों के अवलोकन का सर्वसामान्य मार्ग है। लगभग सभी राष्ट्रीय उद्यानों में जीप सफारी की सुविधा होती है। वन विभाग का वनरक्षक आपको जीप में बिठाकर पूर्व निर्धारित मार्गों द्वारा वन के आतंरिक भागों में ले जाता है ताकि हमें वन्य पशु-पक्षियों को उनके प्राकृतिक परिवेश में देखने का अवसर प्राप्त हो सके। हमने भी दो सफारियाँ की, एक प्रातः काल में जो लगभग ६:३० बजे आरम्भ होती है तथा दूसरी संध्या में जो लगभग संध्या ४ बजे आरम्भ होती है। ऋतुओं के अनुसार इन समयों में किंचित फेरबदल हो सकता है।
हमारे रिसोर्ट के कुछ रहवासियों को एक सफारी में एक तेंदुआ एवं एक रीछ दृष्टिगोचर हुए थे। इस समाचार ने हमारी आशाओं में पर्याप्त वृद्धि कर दी तथा हम भी इन वन्य पशुओं के दर्शन करने के लिए आतुर हो उठे। सफारी के समय हमने हिरणों व बंदरों की हांक सुनी जो यह दर्शाती है कि कोई मांसाहारी वन्य पशु निकट ही है। किन्तु बाघ, रीछ अथवा तेंदुए जैसे विशाल वन्य पशुओं को देख पाने के लिए भाग्य एवं सही समय की आवश्यकता होती है।
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हमारा सौभाग्य नहीं था कि हम उस सफारी में बाघ, रीछ अथवा तेंदुए देख पाते। किन्तु हमने बड़ी संख्या में भारतीय गौर अथवा जंगली भैंसे तथा सांभर हिरण देखे जो विभिन्न क्रियाकलापों में व्यस्त थे। हमने लंगूर, बन्दर तथा चित्तीदार हिरणों के अनेक झुण्ड देखे। वन में अनेक पक्षी भी देखे। वास्तव में ये पक्षी ही थे जिनके कारण हम पुनः पुनः वन में जाने के लिए इच्छुक हो रहे थे।
सतपुड़ा के वनों में हमारी सर्वोत्तम खोज थी, विशालकाय मकड़ियाँ। उनके जाले इतने विस्तृत थे कि उनके द्वारा ऊँचे ऊँचे वृक्ष आपस में जुड़कर एक हो रहे थे। ऐसा प्रतीत हो रहा था मानो वे विशालकाय मकड़ियाँ वृक्षों के ऊपर एक छत बुन रही हों। रात्रि के अन्धकार में अन्य वृक्ष लुप्त हो जाते थे किन्तु भूतिया वृक्ष अथवा कटीरा अपने उजले तने के कारण चन्द्रमा के प्रकाश में भूत के समान चमकता रहता था।
पदयात्रा सफारी
वन के मूल क्षेत्र की सीमा पर पगडंडियाँ बनाई गयी हैं जहां पदयात्रा करने की अनुमति होती है। टिकट क्रय करने के पश्चात वन संरक्षक आपको एक परिदर्शक प्रदान करता है जो आपको उन पगडंडियों के द्वारा वन का भ्रमण करवाता है। वन में वृक्षों के मध्य पक्षियों, पशुओं, मकड़ियों एवं तितलियों को ढूँढने में आपकी सहायता करता है। वन एवं आसपास के क्षेत्रों में उगने वाले वृक्षों एवं अन्य पौधों की जानकारी भी देता है। किन वृक्षों व पौधों के समीप जाना जोखिम भरा हो सकता है तथा किन के समीप जाना सुरक्षित है, इसकी भी जानकारी देता है। वन के कुछ पौधे अथवा झाड़ियाँ काँटों से भरी होती हैं, कुछ हमारे वस्त्रों में अटक जाती है अथवा खाज उत्पन्न कर सकती हैं, इत्यादि जानकारी हमारा परिदर्शक भी हमें निरंतर दे रहा था। हमारे सचेत परिदर्शक ने हमें झाड़ियों में छुपी सरीसर्प जैसी कई प्रजातियाँ दिखाई।
१४ वर्ष से कम आयु के बालक-बालिकाओं को इस सफारी की अनुमति नहीं होती है। इस सफारी के लिए ऐसे वस्त्र एवं जूते धारण करें जो आपके अधिकतम अंगों को पूर्णतः ढँक सकें, सुखद हों तथा वन के सामान्य परिवेश से साम्य रखते रंगों के हों। इससे आप स्वयं को सुरक्षित रख पायेंगे तथा वन्य पशु-पक्षियों को आशंकित भी नहीं करेंगे।
सतपुड़ा के अप्रवाही जल में नौका सफारी
यह सफारी लगभग एक घंटे की है जो देन्वा नदी के अप्रवाही जल पर नौका द्वारा की जाती है। नदी में अनेक लघु द्वीप हैं जो पक्षियों के लिए सर्वोत्तम वास हैं। इस सफारी में हरेभरे घने वन आपको चारों ओर से घेर लेते हैं। यहाँ का सर्वोत्तम आकर्षण है, उड़ते हुए पक्षियों को देखना। उन्हें देख आपकी आँखे स्तब्ध रह जायेंगी। पक्षी कभी एकल, कभी जोड़े में तो कभी झुण्ड में उड़ते हुए आपका मन मोह लेंगे।
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दोपहर की सफारी का एक अन्य आकर्षण है जल में डूबते हुए सूरज को देखना। यह दृश्य प्रतिदिन एवं प्रतिक्षण परिवर्तित होता रहता है। जिस दिन हम यहाँ आये थे, सूर्य जल को केसरिया एवं नीले रंगों की सम्मिश्रित छटा प्रदान कर रहा था। उस दृश्य को शब्दों में सीमित करना अन्याय होगा। उसका आनंद उठाने के लिए आपको यहाँ प्रत्यक्ष आना होगा ताकि आप स्वयं प्रकृति के विभिन्न आयामों का अद्भुत आनंद उठा सकें तथा उन रंगों की अठखेलियों से एकाकार हो सकें।
रात्रिकालीन जीप सफारी
यह अत्यंत रोमांचक सफारी है। रात्रि के अन्धकार में खुली जीप में वनों में घूमना, भयावह प्रतीत होता है। वर्षों के अनुभव से सफारी के परिदर्शक को पशु-पक्षियों की उपस्थिति का आभास हो जाता है। तब वह तेज बत्ती अथवा टॉर्च का प्रयोग कर उसके प्रकाश में हमें वन्य पशु दिखाता है। यह सफारी नदी के तट पर की जाती है। सामान्यतः यह सफारी रिसोर्ट द्वारा ही आयोजित की जाती है। प्रकृति तज्ञ परिदर्शक भी रिसोर्ट ही प्रदान करता है जो रात्रि में पशुओं को देख पाने में हमारी सहायता करता है, विशेषतः निशाचर पशु।
हमारे परिदर्शक अथवा सफारी गाइड ने हमें चमकती आँखों को ढूँढते रहने का महत्वपूर्ण परामर्श दिया। रात्रि में पशुओं को ढूँढने का यह एक कारगर व एकमात्र उपाय है। इसका अर्थ है कि उस समय आप उन पशुओं के समीप भी हों तथा वे आपकी ओर देख भी रहें हों। इसके लिए अच्छे भाग्य की अत्यंत आवश्यकता होती है। आरम्भ में हमने केवल कुछ भारतीय खरगोश यहाँ-वहां कूदते-फांदते देखे। वे मानो हमारे लिए सौभाग्य का पिटारा ही ले आये।
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इसके पश्चात, सर्वप्रथम हमने दो भारतीय रीछ देखे, उनमें से एक ने हमारी जीप के समक्ष ही सड़क पार की। उसे देख तो मानो हमारी सफारी सफल हो गयी। इसके पश्चात हमने कुछ निशाचर पक्षी भी देखे। उनमें इंडियन नाईट जार अथवा चपका पक्षी को देखना हमारे लिए विशेष था।
पक्षी दर्शन पगडंडी
पक्षियों के दर्शन का सर्वोत्तम उपाय है, पैदल चलना। उस पर, यदि आप विशाल समूह में ना हो तो अति उत्तम। हमने अपने रिसोर्ट के चारों ओर स्थित जलभूमि के चारों ओर पैदल भ्रमण किया। हमने जलाशय के आसपास अनेक पक्षी देखे, जैसे कठफोड़वा, नीलकंठ, तुइया तोता एवं कुछ रंगबिरंगी बतखें। पक्षी दर्शन का सर्वोत्तम समय सूर्योदय एवं सूर्यास्त होता है। पक्षी दर्शन के समय मेरे पतिदेव तो पक्षियों के छायाचित्रीकरण में जुट गए।
वहीं मैंने पक्षियों के साथ इस क्षेत्र में उगते अनेक औषधिक पौधों को भी देखा। इन वनों में तेंदू पत्तों के अनेक वृक्ष हैं जिनका प्रयोग बीड़ी बनाने में होता है। यह इन वनों से प्राप्त राजस्व का प्रमुख स्त्रोत है। यहाँ उपलब्ध घिरिया के वृक्षों के भी अनेक उपयोग हैं। इसके पत्तों का प्रयोग मच्छरों को भगाने के लिए तथा रोगाणुरोधक के रूप में किया जाता है। इसकी लकड़ी से हल के हत्थे बनाये जाते हैं क्योंकि यह हल्के होने के पश्चात भी इनमें अपार शक्ति व दृढ़ता होती है।
रिमझा वृक्ष की लकड़ी से बैलगाड़ी के चक्के बनाए जाते हैं क्योंकि यह शीघ्र झिरता नहीं है। जंगली तुलसी का प्रयोग यहाँ के लोग औषधि निर्माण में किया जाता है।
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इन सफारियों के अतिरिक्त, हाथी पर सवार होकर सफारी करने का विकल्प भी उपलब्ध है। इस सफारी की विशेषता यह है कि आप ऊँचाई से वन्य परिवेश का अवलोकन कर सकते हैं। इसके अतिरिक्त ग्रामीण परिवेश के अवलोकन के लिए ग्राम-सफारी भी होती है। यह विशेष रूप से विदेशी पर्यटकों के लिए अत्यंत रोचक हो सकती है एवं हमारे ग्रामीण परिवेश से परिचित होने में उनकी सहायक हो सकती है।
हमने जिन वनस्पतियों, वृक्षों व पौधों, पशु-पक्षियों एवं अन्य जीवों को यहाँ देखा उनके अन्य चित्र हम शीघ्र ही आपसे साझा करेंगे।