सूरजकुंड – एक ऐतिहासिक धरोहर हरियाणा के इतिहास से

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सूरजकुंड हरियाणासूरजकुंड – यह नाम सुनते ही आपके सामने उस प्रसिद्द मेले का रंगीन सा दृश्य उभर आता है, जो पूरे भारत को एक साथ आपके सामने प्रस्तुत करता है। यहां पर आप भारत के विभिन्न क्षेत्रों की विशेष और परिचयात्मक वस्तुएं एक ही स्थान पर एकत्रित पाते हैं। देश भर के कारीगर इस मेले में अपनी हस्तकलाओं की वस्तुएं लेकर आते हैं। तथा लोक कलाओं के कलाकार अपने नृत्य, नाटकों से यहां के वातावरण में जीवंतता भर देते हैं। आपको यहां पर देश के विभिन्न भागों के खास व्यंजन खाने का मौका भी मिलता है। ये सारे नजारे मिलकर सूरजकुंड मेले को और भी आकर्षित बनाते हैं। यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगा कि सूरजकुंड का मेला भारत को अपने उत्तम रूप में प्रस्तुत करता है। यहां की विशाल प्रतिमाएँ जो खास तौर पर मेले के लिए बनवाई गईं थी, अब साल भर वहां पर देखी जा सकती हैं। यह जगह भारत के पारंपरिक रूप से जुडने का अच्छा जरिया है।

आइए तो मैं आपको सूरजकुंड मेले के मैदानों के पीछे ले चलती हूँ, जहां पर वास्तव में सूरजकुंड बसा हुआ है, जो इस विश्व-प्रसिद्ध मेले को अपना नाम प्रदान करता है।

सूरजकुंड का जलाशय

सूरज की और झुकता हुआ सूरजकुंड
सूरज की और झुकता हुआ सूरजकुंड

मेले के मैदान के ठीक पीछे ही एम्फीथिएटर या सभागार जैसा एक बड़ा सा कुंड या जलशात है, जो 6 एकड़ जमीन पर फैला हुआ है। इस जलाशय के तल भाग की चौढ़ाइ 130 मीटर की है। इससे आप अंदाज़ा लगा सकते हैं कि अपने पूरे ढांचे को मिलाकर यह जलाशय कितना व्यापक होगा। सूर्य को श्रद्धांजलि देने हेतु बनाया गया यह कुंड, पूर्वी दिशा में ढला हुआ होने के कारण देखने वाले को यह दृश्य उगते हुए सूर्य सा प्रतीत होता है। भारत में व्यापक रूप से उगते हुए सूर्य को पूजा जाता है।

पहली बार सूरजकुंड के जलाशय को देखते ही आपको वह किसी रोमन एम्फीथिएटर जैसा लगता है, जहां पर चारों ओर पत्थरों की बड़ी-बड़ी सीढ़ियाँ बनी हुई हैं। और इन सीढ़ियों के बीचोबीच एक बड़ा सा खुला मैदान है। इस जलाशय की एक ओर एक मंच जैसी संरचना है जो जलाशय के सामान्य स्तर से थोड़ा उभरा हुआ है। यह मंच पुराने जमाने में राजाओं को बैठने के लिए हुआ करता था।

इसके अलावा यहां पर एक छोटी सी ढलान या घाट जैसा है, जो इस ढांचे के ऊपरी स्तर को निचले भाग या जमीन से जोड़ती है। इस घाट को देखने पर जो सबसे पहला विचार मेरे दिमाग में आया था वह यह था कि शायद उस जमाने में भी अपाहिज लोगों के लिए खास जगहें बनवाई जाती होंगी। या फिर यह पथ बड़े-बड़े जानवरों, जैसे कि हाथी, को आने-जाने हेतु बनवाया होगा, जिन्हें यहां पर आयोजित कार्यक्रमों में भागीदार बनाया जाता है। लेकिन यह सिर्फ मेरी कल्पना है।

सूर्य पुष्कर्णी जलाशय

सूरजकुंड जलाशय
सूरजकुंड जलाशय

सूरजकुंड या सूर्य पुष्कर्णी वास्तव में एक सुनियोजित जलाशय है जो आस-पास के क्षेत्र की पानी संबंधी जरूरतों को पूरा करता है। इस जलाशय को निकट स्थित एक छोटी सी नदी से जोड़ा गया है, जो कुछ ही कि.मि. आगे जाकर अनंग बांध से जुड़ती है। यह सबकुछ इस प्रकार से बनाया गया है कि जब नदी के पानी की मात्र बढ़ती है तो उसके अतिप्रवाहित पानी को इस जलाशय की तरफ मोड़कर यहां पर जलसंचयन किया जाता है। इसके अतिरिक्त यह जलाशय वर्षा ऋतु के समय अपने चारों ओर के अरावली पर्वतों से आने वाले पानी का भी संचयन कर सकता है।

इस कुंड के एक ओर बना हुआ घाट वास्तव में गायों के लिए है, ताकि वे आराम से कुंड में उतरकर पानी पी सके। इस घाट को गौ घाट कहा जाता है। इस कुंड का एक भाग ऐसा है जिसके बारे में मुझे ठीक जानकारी नहीं मिल पायी है। इस जलाशय के चारों ओर बीच-बीच में सीढ़ियों से बाहर झाँकते हुए पत्थर नज़र आते हैं। इस प्रकार के निर्माण के पीछे का कारण मैं नहीं जन पायी हूँ। इस संबंध में जितना भी साहित्य उपलब्ध है उसे पढ़ने के बाद भी मुझे इन पत्थरों से जुड़ा कोई स्पष्टीकरण कहीं नहीं मिला। शायद ये किसी वस्तु को रखने के लिए या फिर किसी को आधार देने के लिए बनवाए गए होंगे।

तोमर कुल – सूर्य के उपासक

पत्थर की सीढियां - सूरजकुंड
पत्थर की सीढियां – सूरजकुंड

इस कुंड को सूरजकुंड नाम देने के पीछे कुछ खास कारण हैं। पहला तोमर कुल, जिनके द्वारा 10वी शताब्दी में यह कुंड बनवाया गया था वे सूर्य उपासक हुआ करते थे। दूसरा, इस कुल के किसी राजा का नाम सूरज पाल था और संभवतः इस कुंड का नामकरण उन्हीं के नाम पर किया गया होगा। कहा जाता है कि जिस स्थान पर सूरजकुंड स्थित है वहां पर पहले तोमर राजाओं की राजधानी हुआ करती थी। जो बाद में उनके द्वारा लालकोट में स्थानांतरित की गयी थी। जिसके पीछे आज कुतुब मीनार स्थित है। कहते हैं कि, इस जलाशय के पश्चिमी छोर पर एक सूर्य मंदिर था जिसके कोई निशान आज वहां नहीं मिलते। इस संबंध में लोगों का कहना है कि इस मंदिर के अवशेषों का प्रयोग यह जलाशय बांधने में किया गया था। लेकिन आस-पास देखने पर मुझे इस प्रकार के कोई भी उत्कीर्णित अवशेष नहीं मिले जो इस मंदिर के अस्तित्व की कथा को बयान करते हो। लेकिन वहां पर कुछ उत्कीर्णित से पत्थर जरूर हैं, जिन पर किसी खेल के तख्ते के नक्शे जैसे बने हुए हैं। हालांकि उन्हें 10वी शताब्दी में निर्मित मंदिर के उत्कीर्णित अवशेष मानना थोड़ा कठिन है। कुछ मौखिक स्रोतों द्वारा सूरजकुंड की निर्मिति 7वी शताब्दी के उत्तरार्ध में भी मानी जाती है।

सूरजकुंड का जलस्रोत

सूरजकुंड मेले की कलाकृतियाँ
सूरजकुंड मेले की कलाकृतियाँ

ब्रिटिश काल तक सूरजकुंड का प्रयोग जलस्रोत के रूप में हुआ करता था। मध्यकाल के आरंभिक काल के दौरान दिल्ली पर शासन चलानेवाले तुगलक वंशजों द्वारा इस जलाशय की देखरेख होती थी। और जरूरत पड़ने पर समयानुसार उसका सुधारणिकरण भी किया जाता था। जिस स्थान पर कभी मंदिर हुआ करता था वहां पर तुगलकों द्वारा एक छोटी सी गढ़ी भी बनवाई गयी थी।

कहा जाता था कि, इस चौढ़ाइ का जलाशय पूरे दक्षिण दिल्ली की पानी संबंधी जरूरतों का जिम्मा उठा सकता है। लेकिन आज अगर दिल्ली की आबादी देखी जाए तो शायद इस बात पर थोड़ी आपत्ति हो सकती है। लेकिन फिर भी यह जलाशय दिल्ली की आबादी के व्यापक भाग का पोषण करने में सक्षम है।

रंग रंगीला सूरजकुंड मेला
रंग रंगीला सूरजकुंड मेला

जुलाई के अंतिम दिनों में जब मैं सूरजकुंड देखने गयी थी तो उस समय वह पूर्ण रूप से सुख गया था और आप वहां पर फैली हरयाली पर आसानी से चल सकते थे। हो सकता है कि, कुंड के आस-पास धीरे-धीरे अपना सिर उठा रहे निर्माण कार्यों के कारण इस क्षेत्र के जल स्तर पर उसका गहरा प्रभाव पड़ा हो।

सूरजकुंड जैसा जलाशय किसी क्षेत्र का जलस्तर सामान्य रखने में बहुत बड़ी भूमिका निभाता है। हमारा कार्य सिर्फ इतना है कि, हमे इस जलाशय में पानी के संचयन की सुविधा करनी है और बाकी सबकुछ यह जलाशय स्वयं ही संभाल लेता है।
सूरजकुंड उन विरासत की जगहों में से एक है, जिसका प्रयोग आज भी किया जा सकता है। अगर आपके इरादे पक्के हैं तो आप व्यवस्थित ढंग से इसका लाभ उठा सकते हैं।

अगर आप कभी सूरजकुंड मेला देखने गए तो वहां की सुंदर और अप्रतिम विरासत की प्रशंसा में कुछ पल जरूर बिताईए।

3 COMMENTS

  1. I like all my indain place .i so lucky that i m born in pure India place .when i reach this place i m felling better nd peace full .

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