रणकपुर का जैन मंदिर उदयपुर से एक-दिवसीय यात्रा

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राजस्थान की सरोवर नगरी उदयपुर से लगभग ९० किमी दूर स्थित रणकपुर एक मंदिर नगरी है। यह राजस्थान के पाली जिले में सदरी नगरी के निकट स्थित है। आप कुम्भलगढ़ एवं रणकपुर दोनों का भ्रमण एक साथ एक ही दिन में कर सकते हैं। आप उदयपुर से एक-दिवसीय यात्रा के रूप में यह भ्रमण आसानी से कर सकते हैं।

रणकपुर में प्रमुख रूप से कुछ पुरातन जैन मंदिर हैं। रणकपुर का मुख्य आकर्षण एक भव्य चौमुखा जैन मंदिर है जो रणकपुर जैन मंदिर के नाम से अधिक लोकप्रिय है। इसे चतुर्मुख धारणा विहार भी कहते हैं। यह मंदिर जैन तीर्थंकर आदिनाथ के सम्मान में बनाया गया है।

रणकपुर जैन मंदिर – संगमरमरी चमत्कार

चौमुखा मंदिर

रणकपुर के जैन मंदिरों में विशालतम व सर्वाधिक महत्वपूर्ण मंदिर है, चौमुखा मंदिर। यह मंदिरों से संबंधित किसी भी मापदंड से अत्यधिक विशाल है।

चौमुखा जैन मंदिर - रणकपुर
चौमुखा जैन मंदिर – रणकपुर

इस मंदिर का निर्माण १४वीं सदी में राणा कुम्भा के एक मंत्री ने करवाया था। किन्तु जब आप इसे देखेंगे, आप विश्वास ही नहीं कर पायेंगे कि यह मंदिर लगभग ७००-८०० वर्ष प्राचीन है। किसी भी दिशा से यह मंदिर पुरातन प्रतीत नहीं होता है।

मुगलों ने इस मंदिर को ध्वस्त कर दिया था। कालांतर में इसका पुनरुद्धार किया गया। मंदिर के पुनरुद्धार का कुछ कार्य अब भी जारी है मानो मंदिर का यह कार्य उस काल से अनवरत चल रहा है।

मंदिर स्तंभ

१०२ फीट ऊँचे इस मंदिर में तीन तल हैं तथा यह लगभग ४५००० वर्गफीट के क्षेत्रफल में पसरा हुआ है। इस मंदिर के निर्माण में संगमरमर का विपुलता से प्रयोग किया गया है।

इस मंदिर में कुल १४४४ स्तंभ हैं जिनमें प्रत्येक स्तंभ दूसरे से भिन्न है। लोगों का कहना है कि मंदिर की जो रूपरेखा है उसके कारण मंदिर के स्तंभों की सटीक संख्या की गणना करना अक्षरशः असंभव है। हमने भी स्तंभों की संख्या का स्थूल अनुमान लगाने का प्रयास किया किन्तु हमें शीघ्र ही यह ज्ञात हो गया कि सही संख्या की गणना करने के लिए कुछ परिश्रम एवं पर्याप्त समय की आवश्यकता होगी।

कुछ स्तंभ हैं जो एक तल तक सीमित हैं वहीं कुछ स्तम्भ हैं जो तीन तलों को भेदते हैं। मंदिर के सभी स्तंभों, छतों एवं भित्तियों समेत सम्पूर्ण मंदिर में विपुलता से उत्कृष्ट उत्कीर्णन किया गया है। उन्हें देखकर आँखें चकाचौंध हो जाती हैं। मन सम्मोहित हो जाता है।

आदिनाथ मंदिर का संगमरमरी तोरण

अधिकांश तोरणों में प्राचीन दंतकथाओं एवं पौराणिक कथाओं को दर्शाया गया है। उनमें एक सर्प था जिसका पृष्ठ भाग अनेक अंतहीन भागों में बंटा हुआ था। स्तंभों पर भिन्न भिन्न नृत्य मुद्राओं में अप्सराओं को उत्कीर्णित किया गया है। छतों पर उत्कीर्णित आकृतियाँ इतनी सूक्ष्म एवं जटिल हैं कि उन्हें स्पष्ट देखने के लिए दूरबीन की आवश्यकता प्रतीत होती है।

एक स्तंभ को जानबूझ कर किंचित टेढ़ा बनाया गया है। यदि आप मंदिर की ओर मुख कर के खड़े हों तो यह स्तम्भ आपके दाहिनी ओर स्थित है। वहाँ के पुरोहितजी ने बताया कि ऐसा मंदिर को किसी भी कुदृष्टि से बचाने के लिए किया गया है। क्यों ना हो! यह मंदिर उत्कृष्टता एवं सुन्दरता में इतना अद्भुत है कि इस अद्वितीय मंदिर किसी की भी कुदृष्टि पड़ सकती है।

आदिनाथ मंदिर के बाहर एक तोरण पर अत्यंत सूक्ष्म एवं जटिल शिल्पकारी की गयी है। यह ठीक वैसा ही है जैसा आप खजुराहो में देख सकते हैं। केवल भिन्नता यह है कि यह तोरण मकर तोरण नहीं है। यहाँ तक कि इस तोरण का रंग भी चन्दन के रंग का है। इसी कारण अन्यथा पूर्णतः श्वेत मंदिर में यह तोरण उठकर दिखाई पड़ता है।

चतुर्मुख मंदिर के चार फलक

मंदिर के चार फलक हैं। इसी कारण इसे चतुर्मुख मंदिर कहा जाता है। इसकी संरचना इस प्रकार की गयी है कि किसी भी समय तथा किसी भी मौसम में मंदिर के भीतर पर्याप्त मात्रा में उजाला एवं वायु का संचार होता रहता है। स्तंभों को इस प्रकार उत्कीर्णित किया गया है कि आप एक स्तंभ को किसी भी दिशा से देखें, आपको वही आकृतियाँ दृष्टिगोचर होंगी।

पत्थर में गढ़ी तोरण
पत्थर में गढ़ी तोरण

मंदिर के दोनों ओर हाथियों के विशाल शिल्प हैं जिन पर साड़ी धारण कर स्त्रियाँ सवारी कर रही हैं। ये स्त्रियाँ किनका प्रतिरूप हैं हमें ज्ञात नहीं हुआ। कदाचित ये इस क्षेत्र की उन सभ्रांत महिलाओं के शिल्प हों जिनका इस मंदिर के निर्माण में बड़ा सहयोग हो। इसी कारण उन्हें भी उचित स्थान प्रदान किया गया है।

मंदिर के ऊपर अनेक गुंबज हैं। उनमें से कुछ के ऊपर लाल-श्वेत ध्वज फहराए हुए हैं। जब आप मंदिर के चारों ओर भ्रमण करें, कुछ दिशाओं से यह मंदिर कम, दुर्ग अधिक प्रतीत होता है। मंदिर के समक्ष सुन्दर बागीचा है। यदि वातावरण सुखद हो तो आप उस बगीचे में भ्रमण कर सकते हैं।

आपको मंदिर के भीतर किसी भी प्रकार की चमड़े की वस्तु एवं तम्बाखू उत्पाद ले जाने की अनुमति नहीं है। मंदिर परिसर में आपसे यह अपेक्षा की जाती है कि आपके परिधान आपको पूर्णतः ढंकने में सक्षम हैं। अतः आप मंदिर परिसर में ऐसे वस्त्र धारण ना करें जो अंग प्रदर्शन करते हों।

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तीर्थंकर आदिनाथ

चौमुखा मंदिर प्रथम जैन तीर्थंकर आदिनाथ को समर्पित है। मंदिर परिसर में अन्य जैन तीर्थंकरों के लिए भी अनेक छोटे छोटे मंदिर हैं। मुख्य मंदिर संकुल के बाहर सूर्य मंदिर स्थित है। इस परिसर में छोटे से छोटे मंदिर पर भी विपुल मात्रा में उत्कृष्ट शिल्पकारी की गयी है। इसके पश्चात भी चौमुखा मंदिर की भव्यता इन सभी से कई गुना ऊपर है। ठीक उसी प्रकार जैसे खजुराहो में कंदरिया महादेव मंदिर कला की उत्कृष्टता की चरमसीमा है।

सुविधाएं

देश के अधिकाँश जैन मंदिरों के समान इस मंदिर में भी भक्तों एवं दर्शनार्थियों के लिए अनेक सुविधाएं उपलब्ध हैं। वे यहाँ आकर यहाँ की धर्मशाला में रह सकते हैं। कुछ दिवस यहाँ व्यतीत कर यहाँ के मंदिरों की सुन्दरता का आनंद उठाइये। मुझे यह जानकारी नहीं है कि इस धर्मशाला में रहने के लिए क्या क्या औपचारिकताएं हैं।

यदि आपको मंदिर वस्तु कला एवं स्थापत्य शैली में रूचि हो तो यह स्थान आपके लिए सर्वोत्तम स्थलों में से एक सिद्ध होगा।

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यात्रियों के लिए रणकपुर जैन मंदिर से संबंधिक कुछ आवश्यक जानकारियाँ

  • जैन श्रद्धालुओं के लिए यह विश्व भर का सर्वाधिक महत्वपूर्ण तीर्थस्थल है।
  • मंदिर के भूतल का क्षेत्रफल लगभग ५०,००० वर्गफीट है।
  • मंदिर संकुल के अन्य प्रमुख मंदिर हैं, पार्श्वनाथ मंदिर, अम्बा माता मंदिर तथा सूर्य मंदिर।
  • ऐसा कहा जाता है कि इस मंदिर के निर्माण में ५ दशकों से भी अधिक का समय लगा।
  • मंदिर में प्रवेश शुल्क नहीं है।
  • मंदिर में जाने के लिए परम्परागत परिधान धारण करें।
  • चमड़े की वस्तुएं, जैसे बेल्ट, पर्स, हैंडबैग आदि तथा मोबाइल फोन मंदिर के भीतर ले जाने की अनुमति नहीं है। आप उन्हें मंदिर परिसर के प्रवेश द्वार पर जमा करा दें तथा वापिस जाते समय उन्हें ले लें।
  • कैमरे भीतर ले जाने की अनुमति है। इसके लिए नाममात्र का शुल्क लिया जाता है। किन्तु ध्यान रखें कि बिना अनुमति लिए अन्य भक्तों के छायाचित्र ना लें।
  • रणकपुर जैन मंदिर की वास्तुकला, स्थापत्य, शिल्पकारी, संगमरमर पर सूक्ष्म व जटिल उत्कीर्णन, आराधना-अनुष्ठान तथा परिसर के अन्य मंदिरों के दर्शन करते हुए २-३ घंटे व्यतीत हो जाते हैं।
  • मंदिर में दर्शन की समयावधि प्रातः ६:३० बजे से रात्रि ८ बजे तक है। हमने उदयपुर से एक-दिवसीय यात्रा की थी। यहाँ पहुँचने से पूर्व हमने मार्ग में कुम्भलगढ़ दुर्ग का अवलोकन किया तथा तथा रणकपुर पहुँचते पहुँचते दोपहर हो गयी थी। हमें कहा गया कि प्रातः का समय भक्तों के लिए नियत है तथा पर्यटकों के लिए दोपहर १२ बजे से संध्या ५ बजे तक का समय है। यहाँ पहुँचने से पूर्व अपने विश्राम गृह, स्थानिक मार्गदर्शक अथवा वाहन चालक से समयावधि की पुष्टि कर लें।
  • उदयपुर से सार्वजनिक परिवहन सुविधाएं, जैसे बस आदि नियमित अंतराल पर उपलब्ध हैं।
  • यदि आपके पास वाहन की सुविधा हो तो आप एक-दिवसीय यात्रा में रणकपुर के साथ कुम्भलगढ़ दुर्ग, कुम्भलगढ़ वन्यप्राणी अभयारण्य, रणकपुर घाटी आदि भी देख सकते हैं।
  • आप यहाँ घुड़सवारी सफारी भी कर सकते हैं।

स्तंभों की सर्वाधिक संख्या से अलंकृत रणकपुर जैन मंदिर

जब तक मैंने इस मंदिर के दर्शन नहीं किये थे, मेरा अनुमान था कि मदुरै के मीनाक्षी मंदिर में सर्वाधिक संख्या में स्तंभ हैं। मीनाक्षी मंदिर के मंडप में कुल ९८५ स्तंभ हैं। किन्तु रणकपुर के जैन मंदिर के दर्शनोपरांत मेरा यह भ्रम टूट गया।  अब मैं जानना चाहती हूँ कि विश्व में ऐसी कौन सी एकल संरचनाएं हैं जहाँ इससे भी अधिक स्तंभ हैं। गूगल बाबा ने मेरी कोई सहायता नहीं की है। यदि आप में से किसी को यह जानकारी हो तो अवश्य बताएं।

अनुवाद: मधुमिता ताम्हणे

1 COMMENT

  1. रणकपुर का जैन मंदिर भव्य, विशाल व नयनाभिराम है उससे बढ़कर वहाँ दर्शन करने पर जो मन की शांति व सुकून मिलता है वह अकल्पनीय है, मैं काफी समय पहले गया था, तब तो धर्मशाला भी पुरानी तरह की थी, हमने वहाँ रात्रिविश्राम भी किया था, लेकिन उस जगह पर उस वक्त तब वहां ज्यादा सुविधाएं नही थी। फिर भी ऐसी जगह पर जो मन को शांति मिलती है वह अभूतपूर्व है, आपने जो मन्दिर का चित्रण किया है काबिलेतारीफ है, अब काफी समय से मन में विचार है कि फिर से रणकपुर मन्दिर के दर्शन करने का, अब देखो कब इच्छा पूरी होती है🙏🙏

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