कलकत्ता के पुराने इलाकों की सैर करते हुए आप समय के उस दौर में पहुँच जाते हैं, जब कलकत्ता अंग्रेजों का शासनकेंद्र हुआ करता था। तब सभी बड़ी-बड़ी कंपनियों के कार्यालय कलकत्ता में अपने पैर जमा रहे थे और यहां की वास्तुकला भी उपनिवेशियों की शैली में ढलती जा रही थी। इस औपनिवेशिक काल ने कोलकाता में बहुत ही मौलिक विरासत पीछे छोड़ी है।
तो आइए आपको औपनिवेशिक दृष्टि से कोलकाता के कुछ महत्वपूर्ण और देखने लायक स्थलों की सैर कराते हैं।
कलकत्ता की विरासत यात्रा करना यानी कलकत्ता के इतिहास के गलियों की सैर करने जैसा है, जिसकी जड़ें भारत में अंग्रेजों के शासन काल से जुडी हैं। वे अंग्रेज़ ही थे जिन्होंने अपनी सुविधा के लिए कलकत्ता शहर का निर्माण किया था और इसके साथ ही उन्होंने पश्चिमी तटीय क्षेत्र पर मुंबई और पूर्वी तटीय क्षेत्र पर मद्रास जैसे शहरों का भी निर्माण किया था।
इस बार जब मैं कोलकाता गयी थी तब मैंने वहां के इतिहास को जानने और समझने का निश्चय किया। मैं कोलकाता के इतिहास के उन पन्नों को समझना चाहती थी जब वह कलकत्ता में परिवर्तित हो रहा था। इस यात्रा पर मेरे गाइड थे श्री रंगन दत्त, जो कोलकाता से भली-भांति परिचित है, जो एक ब्लॉगर भी है और मेरे अच्छे दोस्त भी। उन्होंने बड़ी विनम्रता से मुझे औपनिवेशिक कलकत्ता की पूरी सैर कराई। गर्मियों की कड़कती धूप से बचने के लिए हम सुबह के 6:30 बजे ही अपनी यात्रा पर निकाल चुके थे। और मैं आपको भी यही सलाह दूँगी कि आप भी सूर्य की नर्मी पिघलने से पहले ही अपनी यात्रा शुरू करें, ताकि आपको सूर्य की कड़कती धूप का सामना न करना पड़े। ऐसे में आप कोलकाता की सड़कों पर बढ़ते ट्रेफिक से भी बच सकते हैं।
कोलकाता में स्थित विरासत की इन महत्वपूर्ण जगहों पर जरूर जाना चाहिए।
कलकत्ता की विरासत यात्रा – कोलकाता में घूमने की जगहें
कलकत्ता की विरासत यात्रा आप किसी गाइड के बिना स्वयं भी कर सकते हैं। पश्चिम बंगाल के पर्यटन विभाग द्वारा कोलकाता के धरोहर स्थलों पर स्थित प्रमुख संरचनाओं के आस-पास सूचना पट्ट लगाए गए हैं, ताकि यात्रियों को घूमते समय कोई मुश्किल न हो। ये सूचना पट्ट इन संरचनाओं का संक्षिप्त लेकिन महत्वपूर्ण इतिहास प्रदान करते हैं और कुछ विशेष स्थलों का उल्लेख भी करते हैं जिन्हें देखे बिना आपकी यात्रा पूरी नहीं होती। ऐसे में अगर आपके साथ कोई ऐसा व्यक्ति हो, जो 20 सालों से भी अधिक समय के लिए कोलकाता में रहा हो और जिसे यहां का चप्पा-चप्पा मालूम हो, जो यहां की हर बात की जानकारी रखता हो, तब तो आपकी यात्रा और भी मजेदार और उत्सुकतापूर्ण हो जाती है।
तो चलिये मैं आपको अपनी इस इतिहासपूर्ण यात्रा की कुछ झलकियाँ देती हूँ।
एस्प्लेनेड मैनशन
वैसे तो हम अपनी यात्रा का आरंभ राज भवन से करनेवाले थे, लेकिन इस सुंदर सी सफ़ेद इमारत ने हमे अपनी मंजिल तक पहुँचने से पहली ही बीच में ही रुकने पर मजबूर किया। हम उसकी सुंदरता की प्रशंसा में पूरी तरह डूब चुके थे। इस इमारत के प्रवेश द्वार पर ही एक छोटा सा तख़्ता लगा हुआ था, जिस पर लिखा था – ‘एस्ल्पेनेड मैनशन’। मूलतः एक आवासीय भवन के रूप में निर्मित इस इमारत पर, दूसरे विश्व युद्ध के दौरान अमरीकियों ने कब्जा कर लिया था। यह वही इमारत है जहां पर कभी अमरीकी पुस्तकालय हुआ करता था।
एस्प्लेनेड मैनशन यहूदी (जुविष) व्यापारी, एलियास डेविड जोसफ एजरा द्वारा 1910 में बनवाया गया था।
राज भवन
लॉर्ड वेलेसले, 1799 में भारत के गवर्नर जनरल बने थे। उस समय वे चितपुर के नवाब की जमीन पर बने एक बहुत बड़े बंगले में रहते थे। न जाने उन्हें कौनसी बात खटकी और उन्हें अचानक से एहसास हुआ कि भारत महलों और प्रासादों का देश होने के कारण, इस भूमि पर शासन करनेवाले शासक को भी इसी प्रकार के महल से अपना राज्य चलाना चाहिए। इसी बात पर उन्होंने अपने लिए एक खास सरकारी आवास बनवाने का निश्चय किया और यहीं से राज भवन की धारणा जन्म हुआ। हाँ, जिसे हम आज राज भवन कहते हैं उसे पहले सरकारी आवास के रूप में जाना जाता था।
यह भवन वास्तुकार चार्ल्स वायट द्वारा नियोक्लासिकल शैली में बनवाया गया था, जो डर्बिशायर के कर्ज़न परिवार की हवेली से प्रेरित है। और इत्तेफाक तो देखिये कि, 100 साल बाद जब लॉर्ड कर्ज़न भारत के वाइसरॉय के रूप कलकत्ता में पधारे तो वे इसी राज भवन के निवासी थे।
इस राज भवन में कुल 6 प्रवेश द्वार हैं, उत्तर और दक्षिण दिशा में एक एक प्रवेशद्वार और पश्चिम और पूर्वी दिशा में दो दो प्रवेशद्वार हैं। इस आलीशान से भवन की झलक पाने का एकमात्र जरिया यही प्रवेश द्वार हैं। क्योंकि, इन प्रवेश द्वारों के पार जाने की अनुमति किसी को नहीं दी जाती। इस भवन के पूर्वी और पश्चिमी प्रवेश द्वारों पर सिंहचतुर्मुखी संरचना है, जो शायद अशोक स्तंभों पर स्थित सिंहचतुर्मुख से प्रेरित हो सकता है। यह पूरा राज भवन 27 एकड़ की जमीन पर फैला हुआ है, जो लगभग 84,000 स्क्वेर फूट की है। इसके विविध निवासियों ने इसमें अपने अनुसार बहुत से सुधारणिकरण किए हैं, तथा इसमें कुछ नवीन विशेषताएँ भी जोड़ी हैं, जैसे कि, गुबन्द, लिफ्ट इत्यादि।
वैसे तो इस राज भवन के आंतरिक भागों को देखने की अनुमति किसी को नहीं दी जाती। लेकिन मेरे हिसाब से तो इस राज भवन कि सबसे रोचक बात उसके बाहर ही स्थित है, जिसे कोई भी आसानी से देख सकता है। इस भवन के बाहर ही दो पुरानी घुडशालाएँ हैं जो एक-दूसरे के ठीक आमने-सामने हैं। मुझे बताया गया कि अब उन्हें वरिष्ठ आइ.ए.एस. अधिकारियों के आवासों में परिवर्तित किया गया है, जो राज भवन का ही विस्तारित भाग है। इनके अगवाड़े की सीढ़ियाँ जो इमारत के बाहरी तरफ हैं और जो पहले मजले की ओर जाती हैं, सच में तस्वीरें खिचने योग्य थी, जैसे कि उन्हें इसी उद्देश्य से बनाया गया हो। वे अन्य इमारतों की सीढ़ियों से कुछ अलग ही थी।
इस घुडशाला के प्रवेश द्वार के ऊपरी भाग पर एक उभड़ा हुआ नक्काशी का काम है, जिसमें एक आदमी दो घोड़ों की लगाम को संभाले हुए है।
स्टैण्डर्ड लाइफ अस्युरंश कंपनी की इमारत
कलकत्ता की विरासत यात्रा के दौरान मिली अनेक लाल इमारतों में से यह लाल इमारत हमने सबसे पहले देखी थी। ऐसा लगता है औपनिवेशिक कलकत्ता में बीमा कंपनियाँ बहुत अच्छा व्यवसाय कर रही थी। इन उपनिवेशियों द्वारा निर्मित इन विराट इमारतों को देखकर कोई भी बिना किसी हिचकिचाहट के यह अंदाज़ा लगा सकता है कि, उनके पास अपार निधि भी थी और कर्मचारी वर्ग भी जो इन इमारतों को खड़ा कर सके और जो इन इमारतों में निवास कर सके। वास्तव में, लाल दीघी के चारों ओर फैली इमारतों में से यह इमारत सबसे बेहतरीन है। इसके उत्तर पूर्वीय कोने के ऊपर पंच रत्न शैली में बने समूहिक गुबन्द की संरचना है जो इस इमारत की शोभा को बढ़ाते हुए शान से खड़ी है। थोड़ा नजदीक से देखने पर आपको वहां के मेहराबों के ऊपरी भाग पर प्लास्टर की सुंदर और महीन कारीगरी नज़र आती है। यद्यपि इस चित्रकारी को समझने के लिए आपको ईसाई कथाओं और मूर्तिविज्ञान की जानकारी होना आवश्यक है।
कलकत्ता की स्टैण्डर्ड लाइफ अस्युरंश कंपनी की इमारत के वास्तुकार फ्रेडेरिक डब्ल्यू स्टीवन्स ने बंबई के विक्टोरिया टर्मिनस का खाका भी तैयार किया था।
स्टैण्डर्ड लाइफ अस्युरंश कंपनी के मूल एडीनबर्ग में पाये जाते हैं। अंग्रेजों के उपनिवेशों में लोगों को बीमा प्रदान करनेवाले अग्रदूत वे ही थे। कलकत्ता में स्थित यह कार्यालय उनका मुख्यालय है, तथा बंबई में भी उनका एक कार्यालय है।
डैड लेटर ऑफिस
लाल और सफ़ेद रंगों में सजी यह खूबसूरत सी इमारत अपने उत्तर पूर्वीय कोने के उपर स्थित लंबे से मीनार के साथ बहुत ही आकर्षक लगती है। यह पुराने जमाने का टेलीग्राफ कार्यालय हुआ करता था। बंगाल के सभी आवक पत्र यहीं पर छाँटे जाते थे। इसका यही अर्थ हुआ कि जो पत्र अपनी मंजिल तक नहीं पहुँच पाते थे, वे यहीं पर रह जाते थे, जिसके चलते इस भवन का नाम डैड लेटर ऑफिस पड़ गया। यह इमारत आज भी भारतीय डाक विभाग द्वारा इस्तेमाल होती है, यद्यपि कलकत्ता का मुख्य डाकघर इस कार्यालय से कुछ ही समय की दूरी पर स्थित है।
यहां पर पड़े इन अप्राप्य पत्रों के बारे में सोचकर मुझे आश्चर्य हुआ कि न जाने वे उन सारे पुराने पत्रों का क्या करते होंगे। मुझे तो लगता है कि शायद उन सारे पत्रों में बहुत सारा इतिहास वैसा ही कैद पड़ा होगा।
डल्हौज़ी चौक के दक्षिण पूर्वीय कोने में स्थित यह इमारत 1873 – 76 के बीच में बनवाई गयी थी।
लाल दीघी – कलकत्ता की विरासत यात्रा का केंद्र
यह छोटा सा आयताकार जलाशय औपनिवेशिक कोलकाता के केंद्र में बसा हुआ है और इसलिए हमारी कलकत्ता की विरासत यात्रा का भी केंद्रीय स्थल है। इस स्थान को मूलतः लाल दीघी ही कहा जाता था। कहते हैं कि, दोल उत्सव के समय इस जलाशय का पानी लाल रंग में बादल जाता था जिसके कारण उसे यह नाम दिया गया था। और इत्तेफाक की बात तो यह है, कि आज इस जलाशय के चारों ओर जितनी भी इमारतें खड़ी हैं, सभी लाल रंग की ही हैं। बाद में 1848-56 तक जब लॉर्ड डल्हौज़ी भारत पर शासन कर रहे थे, तब इसे डल्हौज़ी चौक के नाम से जाना जाता था। और स्वतंत्रता के पश्चात यह बी.बी.डी. बाग के नाम से जाना जाने लगा, जब तीन भारतीय राष्ट्रवादियों ने देश के लिए इसी स्थान के आस-पास अपन जीवन समर्पित किया था।
अगर आपके पास ज्यादा समय नहीं है तो आप लाल दीघी का बस एक चक्कर लेते हुए कलकत्ता की सबसे अच्छी औपनिवेशिक इमारतें देख सकते हैं।
सेंट एंड्रूस चर्च
यह साधारण सी दिखनेवाली सफ़ेद चर्च जिसके उपर एक लंबी सी शिखर है कोलकाता की सबसे पहली और एकमात्र स्कॉटिश चर्च है। 1818 में इसका निर्माण हुआ था। मैंने कहीं पर पढ़ा था कि, यद्यपि अग्रेज़ों ने कलकत्ता में अपना शासन कायम किया हो, लेकिन वे स्कॉटिश ही थे जिन्होंने कलकत्ता में काफी व्यापार घरों का निर्माण किया था।
राइटर्स बिल्डिंग
राइटर्स बिल्डिंग कोलकाता के बी.बी.डी. बाग के क्षेत्र में सबसे मशहूर भवन है। गहरे लाल रंग की ये इमारत लाल दीघी के पूरे उत्तरी छोर को व्याप्त किए हुए है। इस इमारत के पास ही एक खूबसूरत सा बगीचा है जो कलकत्ता की विरासत यात्रा का सबसे सुखमय हिस्सा है।
राइटर्स बिल्डिंग एक समय पर ईस्ट इंडिया कंपनी के लिपिक और प्रशासकीय कर्मचारियों का कार्यालय हुआ करती थी। लेकिन अब वह पश्चिम बंगाल के राज्य सचिवालय में परिवर्तित हो गयी है। इन भवन का निर्माण 1777 में हुआ था। और तब से लेकर आज तक यहां के निवासियों द्वारा इस इमारत में बहुत कुछ नया जोड़ा गया है।
इस भवन की मुख्य इमारत पर भारत का सिंहचतुर्मुख वाला राज्य प्रतीक देखा जा सकता है, जो स्वर्णिम रंग का है। इसी के ऊपर ग्रीक देवी मिनेर्वा की मूर्ति स्थित है। इसके अलावा यहां पर और भी मूर्तियाँ हैं लेकिन जब तक कोई आपको उनके बारे में न बताए उन्हें ढूंढ पाना थोड़ा कठिन है।
दिसम्बर 1930 में राष्ट्रवादी बिनोय बासू, बादल गुप्ता और दिनेश गुप्ता की इस तिगड़ी ने राइटर्स बिल्डिंग पर हमला किया था। इस कांड में उन्होंने भले ही पुलिस इंस्पेक्टर जनरल कॉल सिम्पसन को मार दिया था, लेकिन इसके दौरान उन तीनों की भी मौत हो गयी थी। उन तीनों राष्ट्रवादियों की स्मृति में राइटर्स बिल्डिंग के ठीक सामने वाले बगीचे उनकी मूर्तियाँ बनवाई गयी हैं।
राइटर्स बिल्डिंग के चारों ओर फैले सुरक्षा कर्मी आपको इस भवन की तस्वीरें खीचने की अनुमति नहीं देते। इसलिए इन सुरक्षा कर्मियों से हमारा सामना होने से पहले ही मैं दूर से ही इस भवन की कुछ तस्वीरें खीच ली थी। लेकिन हैरानी की बात तो यह है कि उन्होंने मुझे पश्चिम बंगाल के पर्यटन संबंधी सूचनाफलक की तस्वीर लेने से भी मना कर दिया।
राइटर्स बिल्डिंग के विस्तृत इतिहास की जानकारी के लिए टेलीग्राफ में लिखे गए पोस्ट को जरूर पढ़िये।
कलेक्ट्रेट भवन कलकत्ता
कलेक्ट्रेट भवन यहां की और एक सुंदर ईमारत है जो लाल रंग में सजी है। इस भवन की बहुत अच्छे से देखरेख की गयी है। 1890 में निर्मित यह इमारत इस क्षेत्र की अन्य इमातों की तुलना में काफी बाद में बनवाई गयी थी। इस कलेक्ट्रेट भवन को बनवाने के लिए यहां पर स्थित प्राचीन कस्टम भवन की इमारत को तोडा गया था। यह कलेक्ट्रेट भवन अब कोलकाता के अधिकारी विभाग के कमिशनर के कार्यालय में परिवर्तित किया गया है। इस भवन का अधिकतम भाग एक विशाल से पेड़ के पीछे छुपा होने के कारण आप इसके मशहूर अलंकरण को ठीक से नहीं देख पाते।
मैंने कलकत्ता की बहुत सी इमारतों के बारे में सुना था लेकिन कलकत्ता की विरासत से जुड़ा यह भवन मेरे लिए किसी अजूबे से कम नहीं था।
जनरल पोस्ट ऑफिस, कोलकाता
कोलकाता का जनरल पोस्ट ऑफिस लाल दीघी का एकमात्र ऐसा भवन है, जो अपने प्रज्वलित शुभ्र रंग से देखनेवालों को अपनी ओर आकर्षित करता है। तथा इसके ऊपर स्थित विशाल गुबन्द आपकी नज़र को अपनी ओर खीचे बिना नहीं रह सकता।
आज यह पोस्ट ऑफिस जिस स्थान पर खड़ा है, वहां पर 18वी शताब्दी के प्रारंभिक काल के दौरान फोर्ट विलियम बसा हुआ था। लेकिन 1756 में सिराज-उद-दौला ने उस पर कब्जा कर लिया और 1868 के आस-पास यहां पर जनरल पोस्ट ऑफिस का निर्माण हुआ। इस भवन की सीढ़ियों पर लगी पीतल की पट्टी आज भी उस प्राचीन किले के अस्तित्व की निशानियों को बयां करती है।
काल कोठरी या ब्लैक होल, कलकत्ता
कलकत्ता की काल कोठरी एक जगह भी है और एक ऐतिहासिक घटना भी। यह काल कोठरी एक छोटा सा कमरा है जो कभी सैन्य जेल हुआ करती थी। इस जगह पर 20 जून 1756 को सिराज-उद-दौला के आक्रमण के दौरान 146 लोगों को बंदी बनाकर रखा गया था। इन में से 123 लोग अगली सुबह तक घुटन के मारे मर चुके थे। इन्हीं मृत लोगों की स्मृति में इस जेल के ठीक बाहर ही एक स्मारक बनवाया गया था। कुछ इतिहासकारों के अनुसार यह स्मारक यानी जनरल पोस्ट ऑफिस और कलकत्ता कलेक्ट्रेट भवन के बीच का छोटा सा अंतर है। यह जगह 146 लोगों के हिसाब से बहुत ही छोटी है, लेकिन इसके साथ ही वहां पर बंद लोगों की संख्या पर भी थोड़ी आशंका जतायी जाती है। 1901 में लॉर्ड कर्ज़न ने इसी स्थान पर एक और स्मारक बनवाया था जिसे बाद में सेंट जॉन्स चर्च के परिसर में स्थानांतरित किया गया था, जो यहां से ज्यादा दूर नहीं है। यहां के आधे लोगों का मानना है कि यह घटना कभी घटित ही नहीं हुई थी, तो आधे लोग मानते हैं कि यह सब कुछ सच में घटित हुआ था।
इसी घटना के कारण ‘कोलकाता की काल कोठरी’ मुहावरे का निर्माण हुआ होगा। जिसका अर्थ है वह भीड़ भरी जगह जहां पर सांस लेना बहुत मुश्किल हो।
कलकत्ता की विरासत यात्रा के दौरान सीखा गया यह नया यात्रा वाक्यांश था।
कलकत्ता की काली कोठरी के बारे में विस्तृत जानकारी पाने के लिए दीपंजन के बोल्ग पोस्ट को जरूर पढ़िये।
रॉयल इंश्योरेंस बिल्डिंग
जनरल पोस्ट ऑफिस के पास ही रॉयल इंश्योरेंस की खूबसूरत सी इमारत खड़ी है जो 1905 में बनवायी गयी थी। इस भवन का रूप-आकार आपको स्वतंत्रता के पूर्व की बीमा कंपनियों के वैभव के बारे में बताते हैं। यह उस समय की बात है जब भारतवासियों को बीमा करने की अनुमति भी नहीं दी जाती थी।
वॉलेस हाउस
यह भवन पहले स्कॉटिश कंपनी शॉ वॉलेस का कार्यालय हुआ करता था, जो हाल ही में यूनाइटेड ब्रुवरीज (यू.बी. ग्रुप) द्वारा अधिग्रहित किया गया है।
मेटकैफ हॉल
इस भवन को बनाने की प्रेरणा एथेंस के ‘टावर ऑफ द विंड्स’ से प्राप्त की गयी थी। इस इमारत के लंबे-लंबे खंबे बहुत ही आकर्षक लगते हैं। 1840-42 के बीच में निर्मित इस भवन में कलकत्ता की इंपीरियल लाइब्ररी हुआ करती थी, जो बाद में भारत की नेशनल लाइब्ररी बन गयी। आज यहां पर ‘एशिएटिक सोसाइटी’ की लाइब्ररी भी अपना स्थान ग्रहण कर चुकी है।
लाल दीघी की अन्य इमारतों की तुलना में यह ऊंचा सफ़ेद भवन अपनी हरी खिड़कियों के साथ अपना एक अलग ही रूप प्रदर्शित करती है जो अत्यंत सुंदर है।
यहां से निकलकर हम कुछ समय के लिए विश्राम करने हेतु हूगली नदी पर बसे फ्लोटेल होटल गए जो वास्तव में पानी पर तैरता हुआ सा नज़र आता है। इसका डेक जो परिदृश्य दर्शन के लिए बनवाया गया है, कोलकाता के दो मशहूर पुल – दाईं ओर हावड़ा ब्रिज और बाईं ओर विद्यासागर सेतु, के ठीक बीच में बसा हुआ है। इस डेक पर खड़े होकर हम इन दोनों पूलों और हमारे सामने से गुजरती हुई नावों की प्रशंसा कर रहे थे। हमारे ठीक पीछे स्टेट बैंक की इमारत थी जो कलकत्ता की विरासत का ही भाग है।
कलकत्ता हाइ कोर्ट
कलकत्ता का हाइ कोर्ट 1862 से चलता आ रहा है, जो देश का सबसे पुराना कोर्ट है। 1911 में भारत की राजधानी दिल्ली में स्थानांतरित होने से पहले यह भारत का सूप्रीम कोर्ट हुआ करता था। पश्चिम बंगाल के पर्यटन बोर्ड के अनुसार निओ-गोथिक शैली में बनवायी गयी इस इमारत पर ऑक्सफोर्ड महाविद्यालयों का प्रभाव स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है। यह इमारत 1872 में बनवायी गयी थी।
हाइ कोर्ट की इमारत के ठीक सामने ही एक बहुत ही आकर्षक सिंह मुखी फव्वारा है जिस पर दो तारीखें लिखी हुई हैं, 1850 और 1886। यह फव्वारा विलियम फ्रेजर मैकडोनेल की स्मृति में बनवाया गया था। कलकत्ता की विरासत यात्रा का यह अदृश्य मणि था जो एक अनूठी खीज थी।
इसके बारे में अगर आपको और जानकारी पानी हो, तो आपको रंगन दत्त का ब्लॉग पढ़ सकते हैं।
टाउन हॉल
टाउन हॉल एक सार्वजनिक भवन है जो 1814 में बनवाया गाया था। यह सभागृह सार्वजनिक समारोह आयोजित करने हेतु बनवाया गया था। लेकिन अब कोलकाता व्यापारसंघ द्वारा इसकी देखरेख होती है, और अब यहां पर चित्रकला के प्रदर्शन आयोजित किए जाते हैं।
शायद अंग्रेजों ने हर जगह पर टाउन हॉल की इमारतों के लिए एक ही प्रकार की शैली अपनायी थी। क्योंकि, उनके द्वारा निर्मित सभी टाउन हॉल एक समान लगते है। और अगर इस ब्लॉग में उल्लेखित सारी इमारतों में से हमे टाउन हॉल पहचानने के लिए कहा गया होता तो हम आसानी से बता देते कि अमुक इमारत टाउन हॉल है।
सेंट जॉन्स चर्च
1787 में निर्मित सेंट जॉन्स चर्च कलकत्ता या कोलकाता की तीसरी पुरानी चर्च है। स्थानीय लोग इसे ‘पत्थर गिरजा’ बुलाते हैं क्योंकि, उस काल के दौरान पत्थर से बनवायी गयी इमारतों में से यह एक है। सेंट जॉन्स चर्च में ‘लास्ट सप्पर’ का एक चित्र है जो लियोनार्ड के चित्र से थोड़ा मिलता-झूलता है, लेकिन इसमें आप भारतीयता को महसूस कर सकते हैं। यह चित्र इस चर्च की अनेक विशेषताओं में से एक है।
इसके अलावा आपको यहां पर काली कोठरी के बनाए गए स्मारक को जरूर देखना चाहिए जिसका उल्लेख मैं पहले भी कर चुकी हूँ।
एक दिन के लिए इतना सारा इतिहास बहुत था। हमारी यात्रा वास्तव में 2 घंटों में पूरी होनी चाहिए थी, लेकिन हमने उसे 4-5 घंटों के लिए खीच दिया।
कलकत्ता की विरासत यात्रा को सफल बनाने में मेरी सहायता आय.टी.सी. सोनार के कंसीयज ने की थी, जो कोलकाता में मेरे मेजबान थे। उनके पास कोलकाता से जुड़े ऐसे बहुत से अनुभव हैं, और वे अपने अतिथियों के लिए भी ऐसी यात्राओं का आयोजन जरूर करते हैं।
अनुराधा जी आपके इस लेख को पढने के बाद और कई बार कलकत्ता घूमने के बाद आज इस बात का एहसास हुआ कि मैंने तो कलकत्ता घूमा ही नहीं।पूरे शहर का अद्भुत विवरण वो भी इतने विस्तार से ……
शालिनी जी, आगे आने वाले लेखों में हम आपको कलकत्ता के कई और रंग दिखायेंगे.
Writer’s Building and Deal Letter Office always intrigued me, thanks for the lovely post. Need a similar article on Chennai.
Vandy, as soon as Chennai calls me, I will be there to bring back stories for you.