भूमिगत गुहानगरी पाताल भुवनेश्वर! हिमालय की गोद में विराजमान है एक ऐसी भूमिगत नगरी जिसे देख आप अचंभित हो जाएंगे। वह नगरी है, पाताल भुवनेश्वर जिसका प्रवेश द्वार देवभूमि उत्तराखंड राज्य के कुमाओं क्षेत्र में स्थित है। लोगों का मानना है कि यह एक व्यापक भूमिगत नगरी है जिसके आंतरिक पथ कैलाश मानसरोवर, चार धाम, काशी, यहाँ तक कि रामेश्वरम तक जाते हैं।
भूमि से लगभग ९० फुट नीचे, लगभग १६० वर्ग मीटर विस्तृत क्षेत्र में फैला हुआ इस नगरी का प्रवेश स्थल आपको आमंत्रित कर रहा है।
पाताल भुवनेश्वर का इतिहास
इस गुहा की खोज राजा ऋतुपर्ण ने की थी जो सूर्यवंश के राजा थे तथा त्रेता युग में अयोध्या पर शासन करते थे।
राजा ऋतुपर्ण ने इस गुहा का भ्रमण किया था। ऐसी मान्यता है कि स्वयं शेषनाग ने उन्हे इस गुहा का भ्रमण कराया था। द्वापर युग में पांडवों ने इसकी पुनः खोज की थी जब वे द्रौपदी के साथ हिमालय भ्रमण के अंतिम चरण पर थे।
बारहवी सदी के अंत में, सन् ११९१ में आदि शंकराचार्य ने भी इस गुहा में ध्यान साधन की थी। भण्डारी परिवार के पुरोहित इस गुहा मंदिर में धार्मिक अनुष्ठान एवं पूजा-अर्चना करते हैं। हमें बताया गया कि आदि शंकराचार्य के काल से उन्ही के परिवार के पुरोहित इस मंदिर में सभी अनुष्ठान करते आ रहे हैं तथा इस गुहा मंदिर की देखरेख का दायित्व निभा रहे हैं। उनके परिवार के सदस्य यहाँ गाइड का भी कार्य करते हैं। इस गुहा मंदिर का उल्लेख स्कन्द पुराण के मानसखंड में भी प्राप्त होता है।
पाताल भुवनेश्वर गुहा
चौकोड़ी में रात्री विश्राम करने के पश्चात हम प्रातः शीघ्र ही पाताल भुवनेश्वर के लिए निकल गये। जहाँ दर्शनार्थियों के वाहन रखने की व्यवस्था है, वहाँ से मंदिर के प्रवेश द्वार तक पहुँचने के लिए लगभग ८०० मीटर तक पदयात्रा करती पड़ती है। मार्ग में स्थित सुरक्षा बाड़ की छड़ें भक्तगणों द्वारा बांधी घंटियों एवं मस्तक फीतों से भरे हुए हैं मानो इस पावन स्थल पर दर्शनार्थियों का स्वागत कर रहे हों।
मंदिर के प्रवेशद्वार पर पहुंचकर टिकट क्रय करना पड़ता है। अपने सभी व्यक्तिगत वस्तुओं को सुरक्षित भंडार कक्ष में जमा कराना पड़ता है। गुहा मंदिर के भीतर कैमरा, मोबाईल फोन आदि ले जाने की अनुमति नहीं है। यदि आप छायाचित्रीकरण करना चाहते हैं तो आपको पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग से छायाचित्रीकरण एवं चलचित्रीकरण आदि की पूर्व अनुमति प्राप्त करनी होगी। मंदिर परिसर में स्मारिका विक्रय केंद्र हैं जहाँ से आप भीतर के चित्र क्रय कर सकते हैं।
चप्पल-जूते उतारने के पश्चात लगभग २० दर्शनार्थियों का समूह बनाया जाता है। भण्डारी पुरोहित के सहायक उन्हे गुहा के सँकरे प्रवेश के भीतर ले जाते हैं।
लोहे की श्रंखला को पकड़े हुए, मंद ज्योति के प्रकाश में रेंगते हुए हम भीतर प्रवेश करते हैं। प्रवेश स्थल से ७५ अंश की तीव्र ढलान उतरते हुए, लगभग अंधकार में हम गुहा में प्रवेश करते हैं। सँकरी गुहा के भीतर फिसलन भरी चिकनी पगडंडियों पर लगभग अंधेरे में रेंगते हुए एक सुरंग से दूसरे सुरंग में प्रवेश करना उसी के लिए संभव है जो शारीरिक एवं मानसिक रूप से सुदृढ़ हो।
प्राणवायु ऑक्सीजन का स्तर
गुहा के भीतर प्राणवायु ऑक्सीजन का स्तर अत्यंत निम्न रहता है। छोटा मुख होने के कारण ऑक्सीजन भरपाई की दर भी कम रहती है। इसीलिए दर्शनार्थियों को छोटे छोटे समूह में भीतर ले जाया जाता है। यदि आपको किसी भी प्रकार की असुविधा प्रतीत हो तो तुरंत पण्डितजी को इसकी सूचना दें। वे गुहा के भीतर ऑक्सीजन के कुछ सिलिन्डर रखते हैं ताकि भक्तों को गुहा के वातावरण में अविलंब सहज होने में सहायता हो सके।
नीचे उतरते हुए जैसे ही हम गुहा के तल पर पहुँचे, मुझे ऐसा प्रतीत हुआ कि चारों ओर यह गुहा अनंत है। भूमि अत्यंत शीतल थी। हमारे चरण आर्द्र मिट्टी में सन चुके थे। अब यहाँ से हमारा गुहा भ्रमण आरंभ होने वाला था।
शेषनाग
हिन्दू धार्मिक ग्रंथों के अनुसार शेषनाग एक विशालकाय दैवी सर्प है जो धरती माता को अपने फन के ऊपर धारण करता है। इस गुहा के विषय में यह कहा जाता है कि शेषनाग के मुख से ही पाताल लोक आरंभ होता है।
गुहा के तल पर पहुँचते ही भक्तों का अभिनंदन करती शेषनाग की एक आकृति दृष्टिगोचर होती है। गुहा के भीतर टपकते चुना मिश्रित जल के अवक्षेपण से निर्मित यह आकृति शेषनाग के अनुरूप प्रतीत होती है। गुहा के पार्श्व भाग में शेषनाग के लंबे नुकीले दांत देखे जा सकते हैं, वहीं हमारे चरणों के समीप की आकृति उसकी लंबी देह प्रतीत होती है।
वासुकि एवं यज्ञ कुंड
गुहा की सतह पर एक अन्य लंबे सँकरे सर्प की आकृति स्पष्ट दृष्टिगोचर होती है। वह वासुकि की आकृति है। यह सर्प भगवान शिव के काँधे पर विराजमान है। इसके ठीक नीचे एक यज्ञ कुंड है। पण्डितजी ने हमें बताया कि राजा जनमेजय ने अपने पिता की मृत्यु का प्रतिशोध लेने के लिए इस यज्ञ कुंड में एक सर्प यज्ञ का अनुष्ठान किया था तथा यज्ञ की अग्नि में पृथ्वी लोक एवं पाताल लोक के सभी सर्पों की आहुति दी थी।
आदि गणेश -गणेश का मूल रूप
गुहा के भीतर आगे बढ़ते हुए आप एक ऐसे स्थान पर पहुँचते हैं जहाँ चूने द्वारा रचित आदि गणेश की रचना है। वह संरचना शीष रहित शिशु के देह की प्रतीत होती है। उसकी सतह पर तीन छिद्र हैं जो मेरुदंड, श्वास एवं भोजन के लिए हैं। इसके ठीक ऊपर एक बड़े ब्रह्मकमल की शैल रचना है जिससे अनवरत रिसता जल नीचे स्थित संरचना को पोषित करता है।
ऐसी मान्यता है कि यह भगवान गणेश का मूल रूप है जब उनके शीष का उनकी देह से विच्छेद किया गया था। ब्रह्मकमल से रिसते जल ने उनकी देह को तब तक जीवित रखा था जब तक उनकी देह पर एक गज का शीष ना लगाया गया था।
चारधाम एवं अमरनाथ
कुछ आगे जाते ही भित्तियों पर लघु गुहा सदृश संरचनाएं हैं। उसके समक्ष प्राकृतिक रूप से रचित शिव लिंग हैं। तीनों गुहायें भिन्न भिन्न ऊंचाइयों पर स्थित हैं। ये केदारनाथ, बद्रीनाथ, अमरनाथ एवं अमरनाथ गुहा की लघु प्रतिकृतियाँ हैं।
ऋषि मार्कन्डेय की गुहा
आप देखेंगे कि आपके एक ओर अनेक गुहायें हैं जो एक के पश्चात एक स्थित हैं। एक गुहा के भीतर आपको पद्मासन में आसनस्थ एक ऋषि के प्रतिबिंब का आभास होगा। पंडितजी के बताया कि ऋषि मार्कन्डेय ने इस गुहा के भीतर ध्यान किया था। उन्होंने अपने सूक्ष्म शरीर का दृश्य प्रतिबिंब यहाँ स्थापित किया है।
पाताल भुवनेश्वर के द्वार
एक चौमार्ग पर आप अपने समक्ष केवल एक प्रवेश द्वार देखेंगे जो खुला है। अन्य द्वार प्राकृतिक रूप से बंद हैं।
उनमें से पाप द्वार त्रेता युग में केवल एक अवसर पर खुला था। रावण के विनाश के पश्चात यह द्वार बंद कर दिया गया। द्वापर युग में कुरुक्षेत्र के महान युद्ध के पश्चात रण द्वार भी बंद कर दिया गया। कलियुग के कगार पर सतयुग के मोक्ष द्वार को पुनः खोला गया था।
धर्म द्वार के मुख से मोक्ष द्वार में प्रवेश किया जाता है तथा वहाँ से पाताल भुवनेश्वर की की यात्रा आगे बढ़ती है।
शिव जटा
पाताल भुवनेश्वर के गहनतम भागों की ओर बढ़ते हुए हम शिव जटा पहुँचते हैं। यह एक बर्फीली शीतल संरचना है जिसे शिव की जटा कहते हैं। यहाँ की भूमि चिकनी एवं अत्यंत शीतल है। इस संरचना का आधा भाग चूने का तथा आधा भाग जमे हुए हिम का है।
इस जटा के नीचे प्राकृतिक रूप से निर्मित एक शिवलिंग एवं ३३ कोटि (प्रकार के) हिन्दू देव हैं। एक लघु जलकुंड भी है। ऐसा कहा जाता है कि दैवी स्थापत्य शास्त्री विश्वकर्मा ने स्वयं इस कुंड की रचना की है। जलकुंड के निकट उनके हाथ जैसी एक शैल संरचना भी है।
शिव शक्ति लिंग
पाताल भुवनेश्वर के गहनतम भाग में शिव शक्ति लिंग है। स्फटिक मणि में निर्मित यह लिंग ब्रह्मा, विष्णु एवं महेश त्रिदेवों का द्योतक है।
ऐरावत एवं पारिजात वृक्ष
गुहा की छत पर दैवी गज ऐरावत के पदचिन्ह हैं। आश्चर्यजनक रूप से गुहा के भीतर पारिजात का एक जीवित वृक्ष भी है। ऐसी मान्यता है कि भगवान कृष्ण एवं इन्द्र के मध्य युद्ध के समय यह वृक्ष धरती एवं पाताल लोक के मध्य फंस गया था। इस वृक्ष पर पत्ते नहीं थे लेकिन आश्चर्यजनक रूप से उस पर फल लगे हुए थे।
वृद्ध भुवनेश्वर मंदिर
पाताल भुवनेश्वर के दर्शन के पश्चात भक्तों को वृद्ध भुवनेश्वर मंदिर जाने के लिए कहा जाता है जो पहाड़ी के दूसरी ओर स्थित है। मंदिर के पार्श्व भाग में एक शिल्प संग्रहालय है जिसमें पाताल भुवनेश्वर के भीतर एवं उसके आसपास के भागों से उत्खनित शिल्पों का संग्रह प्रदर्शित किया गया है।
इनके पश्चात आप निकट स्थित अन्य तीर्थ स्थानों के दर्शन कर सकते हैं जैसे बेरीनाग एवं गंगोलीहाट। २५ किलोमीटर की दूरी पर स्थित बेरीनाग में नाग देवता का प्राचीन मंदिर है। आसपास चाय के सुंदर उद्यान हैं। पाताल भुवनेश्वर से लगभग १३ किलोमीटर की दूरी पर गंगोलीहाट में हाट कालिका मंदिर है। यह एक शक्तिपीठ है जिसकी स्थापना सहस्त्र वर्ष से भी पूर्व आदि शंकराचार्य जी ने की थी।
पाताल भुवनेश्वर गुहा के दर्शन-अवलोकन के लिए एक घंटे का समय लगता है लेकिन इसके लिए उच्चतम स्तर का शारीरिक एवं मानसिक स्वास्थ्य आवश्यक है। मेरे लिए यह एक अद्वितीय, अद्भुत व अवास्तविक अनुभव था। जो भी शारीरिक एवं मानसिक रूप से स्वस्थ है तथा जिसे कम ऑक्सीजन स्तर में गुहा के भीतर अस्वाभाविक अनुभव नहीं होता, उसने यह दैवी अनुभव अवश्य प्राप्त करना चाहिए।
यदि आप देवभूमि उत्तराखंड की यात्रा कर रहे हैं तो इस अनोखे प्राचीन शैल संरचना का अवलोकन अवश्य करें।
यात्रा सुझाव
आवासीय सुविधाएं – पाताल भुवनेश्वर परिसर में कुछ धर्मशालाएं एवं विश्राम गृहों की सुविधाएं उपलब्ध हैं। उच्च स्तर के विश्रामगृह एवं होटल-रिज़ॉर्ट ३७ किलोमीटर दूर स्थित चौकोड़ी में उपलब्ध हैं अथवा २५ किलोमीटर बेरीनाग में भी उपलब्ध हैं।
सर्वोत्तम यात्रा काल – मानसून अथवा वर्ष ऋतु में पाताल भुवनेश्वर की यात्रा कठिन होती है क्योंकि इस काल में ऑक्सीजन स्तर में अत्यधिक कमी आ जाती है। यात्रा का सर्वोत्तम काल फरवरी से जून मास है।
परिवहन सुविधाएं – पाताल भुवनेश्वर पहुँचने के लिए निकटतम रेल स्थानक १५४ किलोमीटर दूर स्थित टनकपुर है। निकटतम विमानतल पंतनगर है जो यहाँ से २४४ किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। इन दोनों स्थानों से नियमित टैक्सी एवं बस सुविधाएं उपलब्ध हैं जो आपको पाताल भुवनेश्वर तक पहुँचाएंगी।
IndiTales Internship Program के अंतर्गत यह यात्रा संस्करण अक्षया विजय ने लिखा है।
Thank you for taking us on a virtual tour of so many new places