लंढौर – मसूरी के स्वर्ग में विचरण कराती यात्रा

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भारत के उत्तराखंड राज्य के देहरादून जिले में स्थित लंढौर पदभ्रमण के लिए एक उत्तम नगर है। मसूरी के निकट स्थित इस मनमोहक पर्वतीय नगर में एक छोटी छावनी, कुछ निवासस्थान, कुछ गिरिजाघर, एक मंदिर तथा कुछ दुकानें हैं। कुल मिलकर यही लंढौर है। मसूरी के कुछ ऊपर स्थित लंढौर एक प्रकार से मसूरी के शीष पर स्थित है।

मसूरी एक लोकप्रिय व परिचित पर्वतीय स्थल होने के कारण सदा पर्यटकों से खचाखच भरा रहता है। किन्तु पर्यटकों की इस भीड़ से दूर लंढौर एक शांत पर्वतीय स्थल है। यह इतना छोटा है कि पदभ्रमण करते हुए सम्पूर्ण लंढौर का अवलोकन किया जा सकता है। वास्तव में पदभ्रमण द्वारा ही इस चित्ताकर्षक पर्वतीय नगर का सर्वोत्तम आनंद उठाया जा सकता है।

बादलों से घिरे वृक्ष
बादलों से घिरे वृक्ष

लंढौर के सभी मार्ग पक्के हैं जिन पर आसानी से पदभ्रमण किया जा सकता है भले ही वर्षा हो रही हो, यद्यपि उत्तराखंड के इस भाग में अधिक वर्षा नहीं होती है। ऊँचे ऊँचे देवदार के वृक्ष आपको इस प्रकार घेर लेते हैं कि आप बाह्य जीवन से पूर्णतः शून्यचित्त हो जाते हैं। वहाँ केवल हम एवं हमारा अंतर्मन शेष रह जाता है।

भारत के अधिकाँश नगरों की तुलना में लंढौर एक अत्यंत ही स्वच्छ नगर है। लंढौर की यह विशेषता भी आपको पद भ्रमण करने के लिए प्रेरित करती है। लंढौर में मैंने अनेक मार्गों पर पदभ्रमण किया है। आईये मैं आपको उन्ही में से कुछ पदभ्रमण पर पुनः ले चलती हूँ।

गोल चक्कर पदभ्रमण – लंढौर लूप

यह लंढौर का सर्वप्रचलित गोल चक्कर पदभ्रमण है। इस पथ पर कहीं से भी आरम्भ कर हम अंततः लाल टिब्बा की ओर ही जाते हैं।

लंढौर के पहाड़ी रास्ते
लंढौर के पहाड़ी रास्ते

यदि आप दक्षिणावर्त जाएँ तो सर्वप्रथम आप सेंट पॉल गिरिजाघर पर पहुंचेंगे। यह एक प्राचीन गिरिजाघर है। कुछ काल पूर्व ही शैल तोरणों द्वारा इसका नवीनीकरण भी किया गया है।

चार दुकान

एक काल में लंढौर के इस स्थल पर केवल चार ही दुकानें होती थीं। इसीलिए इसका नाम चार दुकान पड़ा। अब यहाँ चार से कुछ अधिक दुकानें हो गयी हैं। इनमें से अधिकाँश दुकानों में स्थानीय व्यंजन उपलब्ध हैं, जैसे पैनकेक्स। अपने पदभ्रमण के समय आप यहाँ कुछ क्षण विश्राम करते हुए पैनकेक्स एवं कॉफी का आनंद अवश्य उठायें। उस दिन प्रातः कालीन भ्रमण के समय यहाँ मेरी भेंट कुछ दुपहिया सायकल प्रेमियों से हुई थी जो लंढौर के मार्गों पर सायकल चलाकर थक गए थे तथा अपनी थकान व क्षुधा शांत करने के लिए यहाँ रुके थे। मैंने यहाँ सम्पूर्ण दिवस पर्यटकों को रूककर यहाँ के व्यंजनों का आनंद लेते देखा है।

लंढौर की जानी मानी चार दुकान
लंढौर की जानी मानी चार दुकान

मुझे ज्ञात हुआ कि जिस संरचना के भीतर ये चार दुकानें स्थित हैं, वह पूर्व में सेना का डिपो हुआ करता था। यहाँ के एक प्रवेश द्वार पर डेपो क्रमांक ३१ अब भी देखा जा सकता है।

एक लघु सेतु को पार कर हम एक ऐसे मार्ग पर पहुँचते हैं जो स्वर्ग सा प्रतीत होता है। मैं जिस दिन यहाँ भ्रमण कर रही थी, मेरे चारों ओर मेघ छाये हुए थे जो सम्पूर्ण वातावरण को अधिक रोमांचक व गूढ़ बना रहे थे। मेघों के मध्य से यदा-कदा कुछ घर दृष्टिगोचर हो रहे थे जो अन्यथा देवदार के वृक्षों में लगभग लुप्त हो जाते थे। इन में से एक घर भी ऐसा नहीं था जो मार्ग के समतल था। वे मार्ग के दोनों ओर या तो ऊपरी ढलान पर स्थित थे अथवा निचली ढलान पर। मानो प्रकृति ने हमारे शरीर को स्वस्थ रखने के लिए व्यायाम का प्रबंध कर दिया हो।

लाल टिब्बा

लाल टिब्बा इस पदभ्रमण का सर्वप्रसिद्ध भाग है। यदि आप प्रातः शीघ्र ही अपना पदभ्रमण आरम्भ करते हैं तो आपको केवल दो दृश्य दृष्टिगोचर होंगे, अपने घोड़ों को स्नान करवाते लोग एवं लाल रंग का एक बंद भवन। अन्यथा आकाश निर्मल व स्वच्छ हो तथा धुंध ना हो तो यह स्थान विभिन्न क्रियाकलापों से व्यस्त रहता है क्योंकि उस समय यहाँ से हिमालय पर्वत श्रंखला स्पष्ट दिखाई देती है। विभिन्न स्थानों पर दूरबीन उपलब्ध हैं जिनके द्वारा आप इन शिखरों को समीप से देख सकते हैं। लाल टिब्बा एक प्रकार से पहाड़ी का अंतिम छोर है जहाँ से आप नीचे घाटी देख सकते हैं तथा समक्ष पर्वत श्रंखला!

लंढौर के मनमोहक घर
लंढौर के मनमोहक घर

पहाड़ की ऊपरी ढलान पर एक सुरचित व उत्तम रखरखाव युक्त भवन है जहाँ पहुँचने के लिए सुन्दर सोपान निर्मित हैं। यह भवन स्वर्ग से अवतरित प्रतीत होता है। कितना सौभाग्यशाली है वह परिवार जो अप्रतिम प्रकृति के सानिध्य में यहाँ निवास करता है!

मार्ग में शिलाओं द्वारा निर्मित भित्ति दिखाई दी जिसके प्रवेश द्वार की चौखट भी शिलाओं द्वारा निर्मित थी। ऐसे प्रवेशद्वार सदा जिज्ञासा उत्पन्न करते हैं। मैंने भी इसके भीतर झाँककर देखने का प्रयास किया। भीतर झाँकते ही मैं स्तब्ध रह गयी। वह ईसाईयों का समाधिक्षेत्र था। वहाँ अनेक उत्कीर्णित समाधियाँ थीं जिन पर पुष्प अर्पित थे। सभी समाधियाँ लगभग मार्ग से सटी हुई थीं। ऐसा प्रतीत हो रहा था मानो वे राहगीरों को सावधान कर रही हों कि किसी काल में वे भी इसी मार्ग पर चलते थे तथा आज वे उन समाधियों के नीचे हैं।

इसके पश्चात आप केलोग गिरिजाघर एवं भाषा शिक्षण संस्थान पहुँचते हैं जो इस पदभ्रमण का अंतिम चरण है।

भाषा शिक्षण संस्थान

भाषा शिक्षा संस्थान एवं कल्लोग गिरिजाघर
भाषा शिक्षा संस्थान एवं कल्लोग गिरिजाघर

मैं इस भाषा शिक्षण संस्थान के भीतर गयी तथा प्राचार्य श्री चितरंजन दास जी से भेंट भी की। मेरा उनसे एक रोचक व ज्ञानवर्धक वार्तालाप भी हुआ। उन्होंने मुझे इस शिक्षण संस्थान के इतिहास की जानकारी दी। उन्होंने मुझे बताया कि किस प्रकार इस संस्थान ने ब्रिटिश अधिकारियों को स्थानीय भाषा सीखने में सहायता की थी तथा कैसे यहाँ अनेक भारतीय भाषाओं के शिक्षण के लिए पाठ्यक्रम सामग्री विकसित की गयी थी। यह गौरव का विषय है कि यह संस्थान अब भी विश्व भर के अनेक जिज्ञासु विद्यार्थियों को हिन्दी तथा अन्य स्थानीय भाषा सिखाने के पावन कार्य को अखंड रूप से कर रहा है।

सिस्टर्स बाजार पदभ्रमण

गोल चक्कर पदभ्रमण के समय यदि आप केलोग गिरिजाघर से विमार्ग लें तो आप सिस्टर्स बाजार की ओर जायेंगे। किसी काल में यहाँ स्थानीय सैन्य अस्पताल में कार्यरत परिचारिकाओं के लिए एक छोटा सा बाजार हुआ करता था। वर्तमान में यह स्थान पीनट बटर के लिए प्रसिद्ध है।

काष्ठ एवं पाषण से बने स्थानीय घर
काष्ठ एवं पाषण से बने स्थानीय घर

पदभ्रमण का यह मार्ग भी ऊँचा-नीचा किन्तु पक्का मार्ग है जहाँ से घाटियों के परिदृश्य अनवरत दृष्टिगोचर होते रहते हैं। यदि धुंध रहित वातावरण हो तो यहाँ से वुडस्टॉक पाठशाला का परिसर एवं उसके सुन्दर छात्रावास दिखाई पड़ते हैं। सम्पूर्ण पदभ्रमण में अप्रतिम परिदृश्यों के मध्य सुन्दर पुरातन भवन दृष्टिगोचर हो जाते हैं। अनेक स्थानों पर वर्षा आश्रय बने हुए हैं। इनके निर्माण में स्थानीय पत्थरों का प्रयोग किया गया है जिसके फलस्वरूप ये आसपास के परिदृश्यों में आसानी से समाहित हो जाते हैं। ये वर्षा आश्रय अत्यंत आकर्षक व आधुनिक हैं तथा पुरातन कालीन प्रतीत नहीं होते।

सिस्टर्स बाजार में बेक हाउस में अवश्य जाएँ जहाँ कुछ स्वादिष्ट बेकरी उत्पाद उपलब्ध रहते हैं। आप यहाँ से स्थानीय लेखकों द्वारा लिखित पुस्तकें भी क्रय कर सकते हैं। आप जानते ही हैं कि लंढौर में रस्किन बांड, बिल ऐटकिन तथा स्टीफन आल्टर जैसे अनेक दिग्गज लेखकों का निवास है। संयोग से इन सभी लेखकों ने इस स्थान के विषय में भी लिखा है। अतः यह आपकी रूचि अनुसार पुस्तक क्रय करने के लिए उत्तम स्थान है।

पीनट बटर

लंढौर की स्मृति में यहाँ से क्या क्रय करें? यह प्रश्न उठे तो उत्तर है, पीनट बटर। पीनट बटर लंढौर का सर्वाधिक लोकप्रिय स्मृति चिन्ह है जिसे आप प्रकाश किराना दुकान से ले सकते हैं। यद्यपि यह एक सामान्य किराना दुकान है, तथापि इस दुकान में एक सम्पूर्ण ताक पीनट बटर एवं जैम के लिए आरक्षित है। मुझे यह एक पारिवारिक उद्यम प्रतीत हुआ।

प्रकाश पीनट बटर
प्रकाश पीनट बटर

मुझे इस दुकान के मालिक श्री इन्दर प्रकाश से चर्चा करने का अवसर प्राप्त हुआ। उन्होंने ही लंढौर में पीनट बटर के उद्योग का शुभारम्भ किया था। उन्होंने बड़े उत्साह से इस उद्योग के विषय में जानकारी दी। उन्होंने बताया कि सन् १९४७ से पूर्व तक अमेरिका से पीनट बटर का आयात किया जाता था। स्वतंत्रता के पश्चात कुछ स्थानीय उद्यमियों ने यहीं पीनट बटर का उत्पादन आरम्भ किया। प्रकाश जी ने भी अपने निवासस्थान पर ही पीनट बटर का उत्पादन आरम्भ किया तथा निवासस्थान के पार्श्वभाग में स्थित अपनी दुकान से इसकी विक्री आरम्भ की।

श्री प्रकाश स्वयं को भारत का प्रथम ऐसा उद्यमी मानते हैं जिसने भैंस के दूध से चेडर चीस का उत्पादन किया। उन्होंने हमें ब्लैकबेरी अथवा जामुन के जैम के विषय में भी बताया जिसे वे अपने उद्यान से प्राप्त जामुनों से बनाते हैं। जब मैंने उन से उनके लोकप्रिय व स्वादिष्ट पीनट बटर की गोपनीय सामग्री एवं विधि के विषय में पूछा तो उसका उत्तर उन्होंने केवल स्मित हास्य से दिया। उन्होंने कहा कि इसका गूढ़ दानों को सही तापमान एवं सही समय तक भूनने में सन्निहित है। अन्यथा इसकी सामग्री एवं विधि सामान्य है।

इस पदभ्रमण के समय आप पीनट बटर अवश्य क्रय करें।

जबरखेत नेचर रिजर्व में पदभ्रमण

लंढौर के समीप जबरखेत वन है जो एक प्राकृतिक आरक्षित भूमि है। यह पहाड़ी क्षेत्र के वन में पदभ्रमण करने के लिए सर्वोत्तम है। यह एक व्यक्तिगत संपत्ति है जहाँ प्रवेश करने के लिए अनुमति एवं प्रवेश शुल्क आवश्यक है। इसलिए आपको यहाँ अधिक पर्यटक नहीं दिखेंगे। वनीय क्षेत्रों में रूचि रखने वाले पर्यटकों के लिए यह अत्यंत अनुकूल परिस्थिति होती है। मैंने इसके विषय में सर्वप्रथम स्टीफन आल्टर द्वारा लिखित पुस्तक, The Secret Sanctuary में पढ़ा था। पुस्तक समाप्त होते होते मेरे भीतर इस वन में भ्रमण करने की अभिलाषा तीव्र से तीव्रतम हो गयी थी। कहते हैं कि हृदय से किसी अवसर की अभिलाषा व्यक्त करो तो वह अवसर स्वयं आपके समक्ष उपस्थित हो जाता है। मेरे साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ।

जबरखेत प्राकृतिक केंद्र
जबरखेत प्राकृतिक केंद्र

मुझे जबरखेत प्राकृतिक आरक्षित वन में भ्रमण करने का स्वर्णिम अवसर प्राप्त हुआ। इस वन में अनेक पदभ्रमण पगडंडियाँ हैं जिन पर आप चल सकते हैं। मुझे उन पगडंडियों के नाम भी अत्यंत भाये, जैसे तेंदुआ पगडंडी (Leopard trail), कुकुरमुत्ता पगडंडी (Mushroom trail) आदि। इन पगडंडियों पर पदभ्रमण करते हुए वनीय परिवेश से एकाकार हो जाने का अनुभव प्राप्त होता है।

मैं यहाँ जून मास में आई थी। उस समय यहाँ अनेक प्रकार के कुकुरमुत्ते उगे हुए थे। मुझे पक्षियों की चहचहाहट सुनाई पड़ रही थी किन्तु वन इतना सघन है कि उनके चित्र लेना तो दूर, उन्हें ढूंढ पाना भी कठिन हो रहा था। तितलियों को देखने के लिए भी हमें प्रयास करना पड़ रहा था। इसके पश्चात भी हमने कई तितलियाँ देखी। उनके रंगबिरंगे पंख हमारे नेत्रों को सुख पहुंचा रहे थे। उड़ती तितलियाँ दृष्टि से ओझल ना हों, इस प्रयास में हमारे नेत्र थक गए किन्तु तितलियाँ नहीं थकीं।

एक ओर बलूत (Oak) के वृक्ष थे जिनके तनों पर उगे शैवाल भुतहा परिवेश उत्पन्न कर रहे थे। एक स्थान पर कुछ शिलाखंडों को सजाकर बैठक बनाया था। उसे देख मुझे एक चित्रपट का स्मरण हो आया जहाँ कुछ मित्र रात्रि में आग सेंक रहे थे कि अकस्मात् उनके समक्ष भूत उपस्थित हो गए।

यहाँ एक छोटा सा व्याख्या केंद्र है जो इस वन के पशु-पक्षी एवं वनस्पतियों से पर्यटकों का परिचय कराता है। मुझे बताया गया कि जबरखेत में वनीय पुष्पों का आनंद लेने के लिए मार्च एवं अप्रैल मास में यात्रा उत्तम हैं। जून मास में पक्षियों को ढूंढ पाना कठिन होता है। साथ ही पुष्पों का पल्लवन भी समाप्त हो जाता है।

लंढौर के प्राचीन शिव मंदिर तक पदभ्रमण

मेरे लिए यह लंढौर का सर्वाधिक छोटा किन्तु सर्वाधिक कठिन पदभ्रमण था। एक सूचना पटल पर अंकित था, ‘२०० मीटर पर प्राचीन शिव मंदिर’। आप कल्पना कीजिये कि २०० मीटर पदभ्रमण अधिक से अधिक कितना कठिन हो सकता है! क्या सूचना पटल पर लिखी दूरी सही है? मैंने चलना आरम्भ किया। अथवा यह कहिये कि चढ़ना आरम्भ किया। शनैः शनैः ढलान की तीव्रता बढ़ती जा रही थी। मेरे लिए यह रोहण कष्टकर होता जा रहा था। विश्राम की आवृत्ति भी बढ़ती जा रही थी।

लंढौर का प्राचीन शिव मंदिर
लंढौर का प्राचीन शिव मंदिर

सौभाग्य से आसपास के परिदृश्य इतने सुरम्य थे कि विश्राम अत्यंत सुखकर सिद्ध हो रहे थे। लगभग १५-२० मिनटों तक रोहण करने के पश्चात हमारे समक्ष एक मंदिर अवतरित हुआ। यह एक शिव मंदिर है। इसके प्राचीन होने के कोई चिन्ह मुझे दिखाई नहीं दिए। यह एक सुन्दर मंदिर है। मुझे यह मंदिर अत्यंत स्वच्छ व सुडौल प्रतीत हुआ जिसने मुझे आनंदित कर दिया था।

मेरा यह पदभ्रमण अथवा रोहण एक धरोहर भ्रमण है। अतः यह एक स्वतन्त्र संस्करण के योग्य है जो शीघ्र ही प्रकाशित होगा।

अनुवाद: मधुमिता ताम्हणे

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