अरुणाचल प्रदेश जाते समय हमने नामेरी राष्ट्रीय उद्यान की पहली झलक देखी थी, लेकिन उस समय हम उसके दर्शन नहीं कर पाए थे। बाद में अरुणाचल से वापस आते समय जब हम रास्ते में स्थित पर्यावरण शिविर में रुके थे, तब कई बार हमे इस उद्यान की अनेक झलकियाँ देखने को मिली।
नामेरी राष्ट्रीय उद्यान
अरुणाचल जाते वक्त हमे रास्ते में एक खोदे हुए मार्ग से गुजरना पड़ा था, जिस पर से जाते समय मुझे ऐसा महसूस हुआ जैसे हम किसी रोलर कोस्टर की सवारी पर बैठे हो। अरुणाचल से जुड़ा यह मेरा पहला यादगार पल था। इसी बीच अचानक से एक हाथी ने आकर हमारा रास्ता रोक दिया और अपनी सूंढ से गाड़ी-चालक की खिड़की खटखटाने लगा। मैं उत्सुकतापूर्वक यह सब देखती रही।
हमारे चालक ने अपनी खिड़की का काँच नीचे किया और उस हाथी को 10 रूपय का नोट दे दिया और पैसे लेकर वह हाथी दूसरी गाड़ी की ओर बढ़ गया। उसके जाने के बाद हमारे चालक ने हमे बताया कि जब तक आप इन हाथियों को पैसे नहीं देते तब तक वे आपको आगे बढ़ने नहीं देते। वैसे कहा जाए तो यह एक प्रकार का हाथी कर ही है। जाहीर है कि उनके मालिकों ने उन्हें इस कार्य के लिए प्रशिक्षित किया होगा।
जो भी यहाँ पर पहली बार आता है, उसके लिए यह सबकुछ बहुत ही मनोरंजक होता है। क्योंकि अचानक से किसी हाथी का इस प्रकार से गाड़ी के पास आकर शहरों की सड़कों पर मिलनेवाले भिखारियों की तरह या फिर शायद पुलिस वालों की तरह व्यवहार करना कुछ अजीब सा है।
नामेरी पर्यावरण शिविर
वापस आते समय जब तक हम भालुकपोंग पार कर चुके थे हम सब एक लंबी यात्रा के कारण काफी थक चुके थे और रात भी अपनी काली चादर ओढ़ते हुए दस्तक देने लगी थी। ऐसे में यहाँ की सुनसान सड़कों पर सफर करना थोड़ा खतरनाक हो सकता था। थोड़ा आगे जाने के बाद हमे रास्ते में नामेरी पर्यावरण शिविर का एक तख़्ता दिखा और हमने वहाँ पर जाने का निश्चय कर लिया। शुक्र है कि यह पर्यटन का मौसम नहीं था, जिसकी वजह से हमे यहाँ पर रहने की जगह मिल गयी और हम सब रात को यहीं पर रुक गए।
पर्यावरण शिविर एक ऐसी जगह है जहां पर कोई भी निसर्ग प्रेमी जरूर रहना पसंद करेगा। लेकिन एक बात है कि यहाँ पर भिनभिनानेवाले मच्छरों से आपको अपनी रक्षा स्वयं ही करनी पड़ती है। यहाँ पर बहुत ही सुंदर झोपड़ियाँ और तम्बू हैं और उन्हीं से जुड़कर उनके स्नानकक्ष बनवाए गए हैं। इनके पास ही एक खुला मैदान है जहाँ पर लकड़ी के लट्ठों से बनी बैठकें और रंगबिरंगी झूले हैं। यहाँ पर एक भोजनालय भी है जहाँ पर साधारण लेकिन पौष्टिक भोजन परोसा जाता है। इस भोजनालय में यहाँ-वहाँ उद्यान से जुड़ी जानकारी प्रदर्शित की गयी है। यह संपत्ति किसी पुरानी मछली पकड़ने वाली समिति की है जो आज भी यहाँ से संचालित होती है।
जंगलों की सैर
दूसरे दिन सुबह-सुबह हम सब चलते हुए जिया–भोरोली नदी (और उसकी उप-नदियां यानी डीजी, दिनाई, डोईगुरुंग, नामेरी, डिकोराइ, खारी आदि) के किनारे चले गए जो नामेरी राष्ट्रीय उद्यान से आड़े-तिरछे तरीके से होते हुए गुजरती है। यहाँ पर एक कीचड़वाला मार्ग है, जिसमें बने हुए पैरों के निशान ये साफ बता रहे थे कि अभी कुछ घंटों पहले ही यहाँ से एक हाथी गुजरा था।
हमे इसी मार्ग के आधार पर आगे बढ़ने के लिए कहा गया था और जंगल में जाने से मना किया गया था। हमने हमारे गाइड की इस सलाह का पूरी तरह से पालन किया। इतनी सुबह-सुबह नदी का यह पूरा नज़ारा सचमुच बहुत ही सुखदायक था। कलकल बहता हुआ नदी का साफ नीला पानी, किनारे पर पड़े हुए पत्थर, नदी पार करती हुई एक नाव और वहाँ पर मौजूद कुछ लोग। यह सबकुछ जैसे किसी खूबसूरत सपने की भांति लग रहा था।
ऐसे वातावरण में नदी के किनारे किसी बड़े से पत्थर पर बैठकर पानी में पाँव डुबोना और बालों के साथ खेलती ठंडी हवा का आनंद लेना, ये सारे पल जैसे इस पूरी यात्रा को और भी खूबसूरत बना रहे थे। यहाँ पर आकर आप जैसे अपनी सारी मुश्किलें भूल जाते हैं और सिर्फ इस मंत्रमुग्ध कर देनेवाले वातावरण में खो जाना चाहते हैं और इस पल को पूरी तरह से जीना चाहते हैं। अगर आपकी किस्मत अच्छी हुई तो आपको नदी के उस पार कुछ जंगली जानवर भी दिखाई दे सकते हैं। इस वक्त मुझे अपनी दूरबीन की बहुत ज्यादा याद आ रही थी। ये पल मेरी पूरी उत्तर पूर्वीय भारत की यात्रा के सबसे शांतिपूर्ण और यादगार पल थे।
उद्यान और आस-पास के जगहों की सैर
आपको इस उद्यान के आस-पास की जगहें जरूर देखनी चाहिए। वहाँ पर एक छोटा सा मंदिर है जो एक सुंदर से पेड़ की छाया में खड़ा है। उज्वलित लाल रंग का यह पेड़ यहाँ के पूरे हरे-भरे परिदृश्य को और भी आकर्षक बनाता है। यहाँ पर एक मत्स्य पालन केंद्र भी है जहाँ पर मछलियों की नयी-नयी जातियों को लाकर उनका पोषण किया जाता है। इसी के साथ उन मछलियों पर संशोधन भी किया जाता है और फिर उसका दस्तावेजीकरण किया जाता है। बाद में संशोधन पूर्ण होने के पश्चात इन मछलियों को नदी में छोड़ दिया जाता है।
यहाँ पर रंगबिरंगी तितलियाँ और पक्षी भी हैं जो आपको उन्हें अपने कैमरे में कैद करने के लिए लुभाते हैं, लेकिन वे इतनी आसानी से आपकी पकड़ में नहीं आते। इसके अतिरिक्त यहाँ पर एक आवासशाला भी है जो 12-15 लोगों एक साथ अपनी छत्रछाया में ले सकता है, ताकि लोगों को कोई असुविधा ना हो। पर्यटन के मौसम में आप चाहे तो यहाँ पर रिवर राफ्टिंग के लिए जा सकते हैं, मछली भी पकड़ सकते हैं और वहाँ के जंगली प्राणियों को देखने के लिए आरक्षित क्षेत्रों में भी जा सकते हैं।
मुझे तो लगता है कि वन्यजीवन के सरगर्मों को एक बार तो नामेरी राष्ट्रीय उद्यान जरूर जाना चाहिए।