लोथल उस भारत का चिन्ह है जिस काल में भारतीय उपमहाद्वीप में बहती सरस्वती नदी के किनारे पर मानव जीवन का वास हुआ करता था। जिसके प्रमाण आज भी सरस्वती नदी और उसकी उप-नदियों के आस-पास बिखरे अवशेषों के रूप में पाए जाते हैं।
पिछली कई शताब्दियों से इस क्षेत्र में पुरातन नगरीय केन्द्रों की खोज जारी है, जिनमें कभी सुनियोजित शहर बसा करते थे। यहाँ मिले स्थल जैसे यहाँ की संस्कृति को और भी रहस्यपूर्ण बना रहे थे। इस सभ्यता के दक्षिणी छोर पर यानी खंभात की खाड़ी में बसे लोथल गाँव में एक गोदी बाड़ा है, जो समुद्री मार्ग से अन्य सभ्यताओं के साथ हो रहे व्यापार की गतिविधियों के लिए प्रयोग किया जाता था।
सिंधु घाटी सभ्यता के भग्नावशेष – लोथल, गुजरात
आज अगर आप लोथल की स्थिति देखे तो वह किसी परित्यक्त नगर की भांति नज़र आता है, जहाँ पर अब सिर्फ टूटी-फूटी नींवें ही बची हैं, जो उसके गौरवपूर्ण अतीत की कहानियाँ बयान करती हैं। एक साधारण व्यक्ति के रूप में आपके लिए यह सब कुछ समझना थोड़ा मुश्किल हो सकता है। यहाँ पर भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (भा.पु.स.) द्वारा कुछ सूचना फ़लक लगाए गए हैं, जिन पर कुछ जटिल सी जानकारी दी गयी है जिसे भी समझ पाना थोड़ा मुश्किल है।
शुक्र है कि मैं अपने साथ लोथल पर आधारित भा.पु.स. की पुस्तिका लायी थी, जो मैंने सालों पहले दिल्ली में स्थित उनके मुख्य केंद्र से ली थी। इस यात्रा में मेरे लिए वह पुस्तिका बहुत ही उपयोगी सिद्ध हुई। वरना मेरा आधा समय तो वहाँ खड़े होकर कौनसी चीज क्या है यही समझने में गुजर जाता।
जैसे ही आप इस खुदाई स्थल पर पहुँचते हैं तो सबसे पहले आपको वहाँ पर लोथल का संग्रहालय नज़र आता है। इस संग्रहालय के पास ही मुख्य खुदाई स्थल बसा हुआ है और वहाँ तक पहुँचने के लिए आपको धूल भरे रास्ते से होकर गुजरना पड़ता है।
पहली नज़र में तो यह स्थान किसी विशाल परिसर की तरह लगता है जिसे नींव रखने के पश्चात ही अनाथ छोड़ा गया हो। यहाँ पर एक उठे हुए मंच पर कुछ कक्ष बने हुए थे, जो असल में एक गोदाम था जहाँ पर व्यापार की वस्तुएं रखी जाती थीं। यह जगह वैसे तो उतनी बड़ी नहीं है लेकिन जैसे ही हम आगे बढ़े तो यह पूरा शहर काफी छोटा सा प्रतीत होता है। पर जल्द ही मुझे इस बात का एहसास हुआ कि मेरे लिए तो शहर यानी आधुनिक काल के वे बड़े-बड़े नगर हैं, जो कि एक जमाने में अपने वर्तमान आकार से कहीं छोटे हुआ करते थे।
सिंधु घाटी में मनकों का कारख़ाना, लोथल
गोदाम से आगे बढ़ते ही आपको मनके बनाने का कारख़ाना नज़र आयेगा जो खुदाई के दौरान पाया गया था। यहाँ पर भट्टियाँ और कुछ चूल्हे भी थे, जिनपर बड़े से मटके के समान दिखनेवाले कुछ ढांचे से बने हुए थे। इन में से अधिकतर संरचनाओं को उनके मूलस्थान से विस्थापित किए बिना ही पुनःनिर्मित किया गया था।
इस कारखाने में बनाए जानेवाले मनके बहुत ही बारीक हुआ करते थे। इन मनकों के कुछ नमूने आप लोथल के संग्रहालय में देख सकते हैं। सफ़ेद रंग के इन बरीक मनकों को आप खुली आँखों से नहीं देख सकते। संग्रहालय में प्रदर्शित इन मनकों के सामने आवर्धक शीशा डाला गया है। इससे आप इन मनकों को परखनली की शीशी में स्वतंत्र रूप से देख सकते हैं और उनसे बनाए गए गहने भी देख सकते हैं। इन मनकों की सराहना करते-करते आप हमारे पुरखों की शिल्पकला की प्रशंसा में खो जाते हैं, जो शायद 3000 से भी अधिक वर्ष पुरानी है।
मैं चाहती हूँ कि भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण / पर्यटन विभाग / संस्कृति विभाग इस पूरी प्रक्रिया का एक संपूर्ण नमूना पुनःनिर्मित करे और हो सके तो स्थानीय लोगों को भी इस प्रक्रिया का ज्ञान दे ताकि उन्हें भी अपनी रोजी-रोटी कमाने का जरिया मिल जाए। लगभग सभी लोग जो इन मनकों को देखते हैं, उन्हें स्मारिका या स्मृतिचिह्न के रूप खरीदना चाहते हैं।
वहाँ से थोड़ा आगे जाने के बाद हमे लोथल का नगर नज़र आया। यहाँ की नगर व्यवस्था मुझे कुछ अजीब सी लगी। यहाँ के सभी घर और कक्ष बहुत ही छोटे थे, जिनमें मनुष्यों का रहना असंभव था। यद्यपि उनकी समरूपता सराहनीय थी। यहाँ पर लगे सूचना फलक के अनुसार इस नगर के दूर किसी कोने में एक शवाधान भूमि थी, लेकिन उसपर दी गयी जानकारी से मैं ज्यादा कुछ नहीं जान पायी। इस नगर में घूमते हुए रास्ते में हमे बहुत सारी पानी की नहरें मिली जो नगर के एक ओर से दूसरी ओर जा रही थीं। शायद ये नहरें सिंधु घाटी सभ्यता की उस प्रसिद्ध जल निकास प्रणाली का एक भाग थीं, जिनके बारे में हमने इतिहास की किताबों में पढ़ा था।
विश्व का प्राचीनतम गोदी बाड़ा – लोथल
इस नगर के पास में ही एक कुंआ है जो आम आयताकार ईंटों के बजाय समद्विबाहु समलंब के आकार की ईंटों से बनाया गया है, ताकि उन्हें एक साथ जोड़ने पर वे वृत्ताकार रूप ग्रहण करे। इससे पहले मैंने इस प्रकार की संरचना कहीं नहीं देखी थी। इसी के बगल में लोथल का गोदी बाड़ा बसा हुआ है।
यह गोदी बाड़ा यानी एक आयताकार झील है जिसमें बनी हुई नाली उसे एक नहर से जोड़ती है जिससे कि जरूरत के हिसाब से उसमें पानी का स्तर बना रहे। यह गोदी बाड़ा अन्य किसी भी जल स्रोत के जैसा ही है, सिवाय उसके ईंट चिनाई के जो बहुत ही प्राचीन शैली की लगती है। और फिर इस पूरे दृश्य को संपूर्ण बनाने के लिए आपको अपनी कल्पना शक्ति से माल से लदी उन छोटी-छोटी नावों की कल्पना करनी है, जो यहाँ पर आती थीं, खड़ी होती थीं और लाए हुए माल को उतारकर, लोथल या आस-पास के शहरों में उत्पादित वस्तुओं को फिर से लादकर सिंध – जो अरब सागर के उस पार बसा हुआ है, जाने के लिए निकलती थीं।
सिंधु घाटी सभ्यता
सिंधु घाटी सभ्यता के बारे में इतना सबकुछ पढ़ने के बाद उससे जुड़ी यह पहली जगह है जो मैंने वास्तव में देखी है। लेकिन इससे भी अधिक मैं हरप्पा और मोहेंजोदारों के शहरों को देखना चाहती हूँ। यद्यपि जो विद्वान वहाँ पर जाकर आए हैं, उनका कहना है कि वहाँ पर जाकर आपको निराशा के अतिरिक्त और कुछ नहीं मिलेगा।
लोथल जाते समय भी मैंने मानसिक रूप से अपनी पूरी तैयारी कर ली थी, कि वहाँ पर हमे शानदार सा कुछ भी देखने को नहीं मिलेगा; लेकिन फिर भी मुझे एक बार तो उस जगह पर खड़ा होना था जहाँ पर एक जमाने में बहुत ही परिष्कृत सभ्यता विकसित हुई थी। ऐसी प्राचीन सभ्यता के अवशेषों के साथ बिताए हुए वे पल बहुत ही खास थे। वहाँ की अधखड़ी दीवारें और उनकी ईंटों को छूना, अपनी आँखों से उन मनकों को देखना और इसी के साथ यहाँ से पायी गयी अन्य कलाकृतियों को देखना मेरे लिए बहुत ही सौभाग्य की बात थी।
विश्व की प्राचीनतम जीती जागती जगह – लोथल के दर्शन करना मेरे लिए किसी स्वप्न के सत्य होने जैसा था।
अनुराधा जी,
अभी पिछले सप्ताह ही लोथल भ्रमण का अवसर मिला. आपका कथन बिल्कुल सही है, राष्ट्रिय धरोहर होते हुए भी भारतीय पुरातत्व विभाग द्वारा यहां सरल शब्दों में सविस्तर जानकारी की पट्टीकायें प्रदर्शित नहीं की हैं। और ना ही वहां मौजूद कर्मचारी ठीक से समजा सके ।हां,संग्रहालय में प्रदर्शित हो रहे विडियो शो से इस स्थल के बारे में थोडी बहुत जानकारी प्राप्त हुई ।
वैसे यहां मिले अवशेसो के अवलोकन से सिंधु घाटी की सभ्यता के बारे कल्पना की जा सकती है तथा छोटे ही रूप मे सही, प्रत्यक्ष देखने का समाधान और आनंद प्राप्त होता है ।
धन्यवाद ।
प्रदीप जी – लोथल एवं बाकि सिन्धु घटी सभ्यता से जुड़े स्थान, हमारी सबसे पुराणी धरोहर हैं, वहां कितने पर्यटक आ सकते हैं इसका हमारी सर्कार को अंदाजा ही नहीं है. वो हमें फिर से अपनी जड़ों से जोड़ सकते हैं – यह किसी ने सोचा ही नहीं है।
Ya. Mam are you right. Aap shi or such bol rhe ho
Anuradha Ji, Namskra , men 21/02/2021 ko hi Lothal ghoom ke aya . mujhe bhi bahut achcha laga. Apka lekh aksharsha satya hai jo apne likha hai wahi paya. ye bat bhi bilkul satya hai ki road bikul achchi nahi hai, sarkar ko is jagah par vishesh dhayan dena chahiye.
लोथल एक अनमोल धरोहर है