दिल्ली और हैदराबाद की तरह अहमदाबाद में भी एक प्राचीन नगर बसा हुआ है, जो आज भी पुरातन काल के उसी दौर में जी रहा है। ये प्राचीन जगहें आपको वापिस पुराने जमाने में ले जाती हैं जब इन नगरों का नया-नया निर्माण हो रहा था और जहाँ धीरे-धीरे वे विकसित हो रहे थे। इन क्षेत्रों की अपनी एक विशेष पहचान है जो वहाँ के वातावरण से साफ प्रतीत होती है।
अहमदाबाद की सबसे बड़ी खासियत है इस प्राचीन नगर की आवासीय व्यवस्था जो उसे अद्वितीय बनाती है। यहाँ पर विविध समुदाय स्वतंत्र रूप से रहते हैं, लेकिन फिर भी वे एक दूसरे बंधे हुए हैं।
अहमदाबाद नगरपालिका निगम द्वारा हर दिन अहमदाबाद की विरासत यात्रा का आयोजन किया जाता है जो आपको इस शहर के पुराने भागों की सैर कराती हैं। सालों से इन यात्राओं का आयोजन करते-करते अब वे इस कार्य में बहुत ही निपुण हो गए हैं। मैं लगभग 13 साल पहले पहली बार इस पदयात्रा पर गयी थी और फिर उसके 10 साल बाद, यानी 3 साल पहले मुझे फिर से इस यात्रा पर जाने का मौका मिला और दोनों ही बार मुझे इन यात्राओं के दौरान बहुत आनंद आया।
अहमदाबाद की विरासत यात्रा से जुड़े अनुभव
इस यात्रा का आरंभ कालूपुर स्वामीनारायण मंदिर से होता है, जो इस शहर के ठीक बीचोबीच स्थित है। अगर आप चाहें तो सुबह-सुबह 8 बजने से थोड़ा पहले वहाँ पर पहुँचकर मंदिर के बाहर खड़ी दुकानों पर मिलनेवाले ताजे और गरमा-गरम नाश्ते का लुत्फ उठा सकते हैं। आपको वहाँ पर मिलने वाला फाफड़ा जो पपीते की चटनी के साथ परोसा जाता है और जलेबी जरूर खानी चाहिए।
इस पदयात्रा की शुरुआत करने से पहले यात्रियों को इस मंदिर में यहाँ की विरासत पर आधारित एक छोटा सा चलचित्र दिखाया जाता है। एक यात्रा विवरणिका भी दी जाती है, जिससे कि यात्रा के दौरान उन्हें कोई दिक्कत न हो।
कवि दलपत राय का घर
इस यात्रा का सबसे पहला पड़ाव है कवि दलपत राय का घर, जहाँ पर अगवाड़े के सिवाय और कुछ नहीं है, जिसमें एक खुला आँगन है जहाँ पर उनकी एक बड़ी सी मूर्ति खड़ी है। हमारे गाइड ने हमे उनके जीवन और उनके दार्शनिक विचारों के बारे में विस्तार से समझाया तथा यह भी बताया कि कैसे इस आँगन के द्वारा उन्हें जीवित रखने का प्रयास किया गया है।
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पक्षियों का चबूतरा
अहमदाबाद की गलियों में घूमते हुए हमे अनेक प्रकार के पक्षियों के चबूतरे दिखाये गए थे। ये चबूतरे कुछ-कुछ पेड़ों की तरह लग रहे थे, जो इन अतिप्रजनक गलियों में कहीं भी नज़र नहीं आ रहे थे।
अहमदाबाद का यह पुराना शहर आवासीय समूहों में विभाजित है, जहाँ पर कुछ विशेष समुदाय रहते हैं। ये समुदाय या तो जाति के आधार पर बनते हैं, या फिर धर्म या व्यवसाय के आधार, या फिर इन तीनों के समिश्रण के आधार पर भी बनाए जाते हैं।
यहाँ पर कुछ गुप्त मार्ग हैं जो किसी पहेली की तरह इन आवासों को एक-दूसरे से जोड़ते हैं। किसी भी बाहरवाले के लिए इन रास्तों को समझा पाना असंभव है, जो की आक्रमण की स्थिति में बहुत ही सुविधाजनक सिद्ध होता है। यहाँ पर इस प्रकार की निर्माण शैली देखकर मेरे मन में यही विचार आया कि, क्या आक्रमण और लड़ाइयाँ हमेशा से इस शहर की संस्कृति का एक अटूट हिस्सा रहे हैं; जिसके चलते उन्हें इस पद्धति का प्रयोग आवासीय भागों में भी करना पड़ता था, जैसा कि अक्सर राजसी प्रासादों में होता है।
रामजी मंदिर – हवेली मंदिर
हमने अहमदाबाद के लगभग 450 साल पुराने रामजी मंदिर के दर्शन किए जिसे हवेली मंदिर के रूप में भी जाना जाता है। इस मंदिर के कर्ता-धर्ता यानी मंदिर का विस्तारित संयुक्त परिवार आज भी यहाँ पर निवास करता है। यह पारिवारिक मंदिर आम जनता के लिए भी खुला रहता है। यहाँ की लकड़ी की बनी संरचनाएं जो आज भी इस हवेली का भार संभाले हुए है, सच में बहुत प्रशंसनीय है।
अष्टपदी जैन मंदिर
अष्टपदी जैन मंदिर बहुत ही सुंदर है जिसकी ठेठ जैन वास्तुकला प्रशंसनीय है। इस दौरान हमारे टूर गाइड ने हमे वहाँ की अनोखी वर्षा जल संचयन प्रणाली के बारे में बताया जो उपलब्ध उपभोग्य बारिश के पानी को पूरे साल तक संरक्षित रख सकती है। इस बेतरतीब सी संरचना को देखरकर आपको आश्चर्य जरूर होगा, जिसकी संरचना में भी अनेक विधियाँ छिपी हुई हैं।
यहाँ पर सिर्फ बारिश का पानी एकत्रित ही नहीं किया जाता बल्कि, चूने और तांबे की पाइपिंग के इस्तेमाल से उसका इस प्रकार संचयन किया जाता है कि उसकी उपयोगिता बनी रहे और वह किसी भी प्रकार के जीव-जंतुओं या बीमारी से मुक्त रहे। कभी-कभी मैं सोचती हूँ कि हमने अपने पूर्वजों की इस समान्यतः उपलब्ध बुद्धिमत्ता को न जाने क्यों और कहाँ खो दिया है, जिनके पास हमारी हर जरूरत के लिए कोई न कोई स्थानीय और आसान उपाय जरूर होते थे।
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अंतिम पड़ाव की ओर पहुँचते-पहुँचते यह पदयात्रा बाज़ारों से होते हुए आगे बढ़ती है, जहाँ पर दुकानदार अपनी दुकान खोलते हुए अपने दिन की शुरुआत करते हुए नज़र आते हैं। भारत की अन्य प्राचीन जगहों की तरह इस जगह से भी कुछ रोचक सी कहानियाँ जुड़ी हुई हैं, लेकिन इस बार मैं इन कहानियों को आपके साथ साझा नहीं करूंगी, ताकि जब आप वहाँ पर जाए तो स्वयं उनका आनंद ले सके।
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इन बाज़ारों में घूमते हुए हमारे गाइड ने हमे यहाँ की नक्काशीदार लकड़ी की विविध वस्तुओं को ध्यान से देखने के लिया कहा, जिनमें बहुत सी कहानियों के सूत्र उत्कीर्णित थे। जैसे कि आप इन वस्तुओं पर उत्कीर्णित विश्व की विविध जगहों के प्रभावों को देख सकते हैं। अक्सर इन वस्तुओं के आकार उनकी प्रतिष्ठा की निशानी होते हैं।
जामी मस्जिद
इस पदयात्रा का अंतिम पड़ाव है जामी मस्जिद, जो ताज महल से 200 साल पुराना है, संभवतः किसी प्राचीन मंदिर पे बना।
अहमदाबाद नगरपालिका निगम द्वारा इस विरासत यात्रा के पूरे मार्ग पर छोटे-छोटे सूचना फ़लक लगाए गए हैं जो यहाँ की विविध जगहों के बारे में आपको विस्तृत जानकारी देते हैं। ताकि अगर आप खुद से इस यात्रा पर जाए तो आप आसानी से उस जगह से संबंधित जानकारी को ग्रहण कर उसे समझ सके।
मेरे खयाल से हर किसी को अहमदाबाद की इस विरासत यात्रा पर जरूर जाना चाहिए।