तांबेकर वाड़ा – भित्तिचित्र
एक जमाने में हमारे घर की दीवारें हमारी चित्रकारी की कार्यशालाएं हुआ करती थीं, जो हमारी बेशकीमती संपत्ति थी। जो कुछ हमे अच्छा लगता था या जो हमारे मन में आता था उसे हम अपनी दीवारों पर चित्र के रूप में उतार देते थे। हमे हमेशा प्रसन्नता प्रदान करनेवाले या फिर किसी विशेष व्यक्ति या घटना की याद दिलाने वाले इन चित्रों के बीच हम रहा करते थ। लेकिन दुख की बात तो यह है कि, इन में से अधिकतर जगहें गुजरते समय के साथ क्षीण होती चली गयी हैं।
जब हमने तांबेकर वाड़ा के बारे में सुना, जो बरोड़ा के भूतपूर्व दीवान श्री विट्ठल खंडेराव तांबेकर या भाऊ तांबेकर जी की हवेली है और जिसमें आज भी ऐसे भित्तिचित्र देखने को मिलते हैं, तो हम तुरंत ही उनके दर्शन लेने हेतु पुराने शहर चले गए। हम इतनी जल्दबाज़ी में वहाँ गए जैसे कि अगर हम समय से वहाँ नहीं पहुंचे तो वे चित्र कहीं गायब हो जाएंगे। अनेक मोड़ों से गुजरते हुए आखिरकार हम एक साधारण सी दिखने वाली ऊंची सी इमारत के सामने पहुंचे जिसके बाहर भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण का तख़्ता लगा हुआ था।
हम उनके कार्यालय में गए जहाँ पर जमना बेन नामक एक सुंदर सी महिला ने बड़ी सी मुस्कुराहट के साथ हमारा स्वागत किया। बाद में उन्होंने ही हमे वहाँ के भित्ति चित्रों के दर्शन करवाए। हमे इस छोटी सी यात्रा पर ले जाने से पहले उन्होंने एक बार हमारी ओर देखकर यह सुनिश्चित किया कि हम वहाँ की ऊंची खड़ी सीढ़ियाँ चढ़ पाएंगे या नहीं और फिर प्रसन्नतापूर्वक उन्होंने हमारा मार्गदर्शन किया। वे सीढ़ियाँ सच में बहुत सीधी खड़ी थीं और बहुत ऊंची भी थीं।
रंगों का कोलाहल – दीवारों पर बनी चित्रकारी
जैसे ही उन्होंने तीसरी मंजिल पर स्थित चित्रकारी से भरे उस कमरे का पाट खोला तो ऐसा लगा जैसे किसी ने हमे रंगों के कोलाहल में धकेल दिया हो। इस नए वातावरण में स्वयं को ढालने में मुझे थोड़ा समय लगा, लेकिन जैसे-जैसे मैं इन चित्रों को देखती गयी, मैं पूर्ण रूप से उनमें खो गयी। मैं इतनी उत्साहित थी कि समझ नहीं पा रही थी कि उन चित्रों की तस्वीरें खींचूँ या बस उन चित्रों को निहारती रहूँ या फिर उनमें चित्रित आकृतियों का निरीक्षण करूँ।
उस कमरे की छत पारंपरिक रूप से हरे और पीले रंगों से रंगवाई गयी थी तथा वहाँ की दीवारों का प्रत्येक भाग चित्रकारी से ढका हुआ था। यहाँ तक कि दरवाजे के चौखटे पर भी जीवन से जुड़े विविध पहलुओं जैसे संगीत, प्रेम, कुश्ती आदि से संबंधित प्रकरण चित्रित किए गए थे और उन्हें गंजीफ़ा पत्तों के रूप में प्रस्तुत किया गया था। इन चित्रों के चारों ओर उज्जवलित रंगों के पुष्पों की किनारी बनी हुई थी जो उनकी सीमा को निर्धारित कर रही थी। तो कभी-कभी दरवाजों के चौखटों के किनारों पर भी इसी ढांचे का प्रयोग किया गया था।
महाभारत के दृश्य
तांबेकर वाड़ा की दीवारों पर महाभारत के कुछ पारंपरिक दृश्य भी चित्रित किए गए थे जिनमें कृष्ण के जीवन से जुड़े उपाख्यान भी शामिल थे। इसके अलावा वहाँ पर 19वी शताब्दी के आंग्ल-मराठा युद्ध के भी बहुत सारे समकालीन दृश्य चित्रित किए गए थे। दरवाजों के ऊपर वाली दीवारों पर भी बड़े-बड़े चित्र थे जिन में आम तौर पर युद्ध से जुड़े दृश्य दर्शाए गए थे।
दरवाजों और चित्रों के बीच नज़र आती दीवार की पतली सी पट्टी पर संगीत और नृत्य के दृश्य दर्शाए गए थे। और जैसा कि मैंने बताया था, दरवाजों के चौखटों पर किसी एक विषय से संबंधित सूक्ष्म आकार के चित्र बनाए गए थे। यहाँ पर कुछ बड़े-बड़े चित्र सूचीपत्र के स्वरूप में बनाए गए थे, जिन में छोटे-छोटे दृश्यों द्वारा पूरी कहानी बतायी गयी थी।
तांबेकर वाड़ा – एक धरोहर
ये चित्र 1870 के दौरान बनवाए गए थे, जिन्हें बनाने के लिए स्टक्को तकनीक का प्रयोग किया गया था। ये चित्र शायद उच्च कोटी के न हों, लेकिन ये चित्र हमे यह जरूर बताते हैं कि किस प्रकार से ये लोग अपनी दीवारों को बड़े ही आकर्षक ढंग से चित्रों से सजाते थे। मैंने ऐसे ही भित्तिचित्र झाँसी में रानी के महल में भी देखे थे, जिन में मुख्यतः लाल रंग का प्रयोग किया गया था।
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वहाँ पर एक छोटी सी जाली की विभाजिका थी, जो बड़े ही सुंदर तरीके से उत्कीर्णित की गयी थी। उन चित्रों के बीच वह उत्कीर्णित जाली बहुत ही आकर्षक लग रही थी। वहाँ पर कुछ लकड़ी के चौखटे भी थे, जो इन भित्तिचित्रों को तीन आयामी प्रभाव प्रदान कर रहे थे और उन्हें लकड़ी की सी तासीर भी दे रहे थे।
इन दो कमरों को छोड़कर, जो आज भी सही-सलामत हैं और जिनका भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण द्वारा संरक्षित किया जा रहा है, बाकी की पूरी हवेली किसी खंडहर के समान लग रही थी। हमने हवेली की तरफ खुलते दरवाजों से वहाँ की कुछ झलकियाँ देखी, जिससे हमे वहाँ की बस गिरती दीवारें और बिखरे हुए अवशेष ही दिखे।
तांबेकर वाड़ा में कोई प्रवेश शुल्क नहीं है। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के कार्यालय से अनुमति लिए बिना वहाँ पर तस्वीरें खींचना मना है। हर कला प्रेमी को वड़ोदरा की इस धरोहर के दर्शन जरूर करने चाहिए।