अलीपुर संग्रहालय – कोलकाता का ऐतिहासिक कारागृह

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कोलकाता का अलीपुर संग्रहालय पूर्व में एक केंद्रीय कारागृह था। आरंभ में मैं इस संग्रहालय के भ्रमण के लिए आतुर नहीं थी क्योंकि कारागृहों के विषय में सदा यह अवधारण बनी रहती है कि वे भयावह संस्थान होते हैं। साथ ही ऐसा भी माना जाता है कि वे अत्यंत अस्वच्छ होते हैं। किन्तु इस संग्रहालय के विषय में मेरी ये सभी अवधारणाएँ असत्य सिद्ध हुईं।

मेरा अलीपुर संग्रहालय भ्रमण एक अविस्मरणीय अनुभव था जिसे मैं पुनः दुहराना चाहूँगी। यह संग्रहालय हमारे भीतर एक गौरव की भावना उत्पन्न करता है। मैं यह कहूँगी कि यह वास्तव में एक उत्तम रूप से संरक्षित व प्रदर्शित संग्रहालय है। इसे स्वतंत्रता संग्रहालय तथा अलीपुर जेल संग्रहालय भी कहते हैं। किन्तु इस संग्रहालय के अधिकारिक वेबस्थल पर प्रदर्शित छायाचित्र प्राचीन हैं जो नकारात्मक परिप्रेक्ष्य प्रस्तुत करते हैं।

अलीपुर संग्रहालय
अलीपुर संग्रहालय

यह संग्रहालय कोलकाता के लोकप्रिय काली मंदिर के निकट स्थित है। यहाँ पहुँचना अत्यंत सुगम्य है।

अलीपुर संग्रहालय अपने समृद्ध इतिहास का प्रस्तुतिकरण करता है। यह जिस कारागृह में स्थित है, उस कारागृह से अंग्रेजों के विरुद्ध हमारे स्वतंत्रता संग्राम का प्रगाढ़ सम्बन्ध है। स्वतंत्रता संग्राम में भाग लेने वाले हमारे वीर स्वतंत्रता सेनानियों में से अनेक महारथियों को इस कारागृह में बंदी बनाकर रखा गया था। जैसे नेताजी सुभाष चन्द्र बोस, पंडित जवाहर लाल नेहरु आदि। उनके कालकोठरियों को उनके नाम दिए गए हैं। यद्यपि यह संग्रहालय स्वतंत्रता सेनानियों की गाथाएँ कहता है तथापि इस संग्रहालय में भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में बंगाल प्रेसीडेंसी की भूमिका पर अधिक प्रकाश डाला गया है।

इस संग्रहालय से मुझे एक महत्वपूर्ण जानकारी यह भी प्राप्त हुई कि स्वतन्त्र भारत के लिए किये गए संघर्ष में अनेक संन्यासियों एवं फकीरों ने भी भाग लिया था। इन सेनानियों की जीवनी वास्तव में आश्चर्यचकित कर देती है। इनमें से अधिकाँश ऐसे परिवारों से संबंध रखते थे जो आसानी से एक सुगम व सुखी जीवन व्यतीत कर सकते थे। लेकिन उन्होंने उन सब का त्याग कर यातनापूर्ण जीवन अपनाया तथा स्वयं को इस संग्राम में झोंक दिया। उन सबका स्वप्न था, औपनिवेशिक सत्तावाद से मुक्त मातृभूमि। इस स्वप्न के लिए अनेक स्वतंत्रता सेनानियों ने प्रसन्नता से अपने प्राण न्योछावर कर दिए थे।

अलीपुर संग्रहालय का इतिहास

इस भवन परिसर का निर्माण ब्रिटिश शासन द्वारा सन् १९०६ में एक केंद्रीय कारागृह के रूप में किया गया था। संग्रहालय के अधिकारिक वेबस्थल के अनुसार उस काल में इसे एक आधुनिक कारागृह माना जाता था। सन् २०१९ तक इस परिसर का एक कारागृह के रूप में उपयोग किया जा रहा था।

अलीपुर कारागृह संग्रहालय का भ्रमण पूर्ण करने के पश्चात मुझमें यह जानने की तीव्र  जिज्ञासा उत्पन्न हुई थी कि स्वतंत्रता के पश्चात तथा इस कारागृह को संग्रहालय में परिवर्तित किये जाने से पूर्व तक यहाँ बंदियों को किस प्रकार रखा जाता था। इस कारागृह का स्वतंत्रता-पश्चात् का इतिहास अधिक दीर्घ होने के पश्चात भी यहाँ एक भी दीर्घा इस कालखंड का चित्रण नहीं करती है। मुझे इसका अनुताप अवश्य हुआ।

अलीपुर कारागृह संग्रहालय में क्या देखें?

आईये मैं आपको इस संग्रहालय का कल्पित भ्रमण कराती हूँ।

आजाद हिन्द फौज पर आधारित कॉफी हाउस (INA Themed Coffee House)

यहाँ एक जलपान गृह अथवा कॉफी हाउस है जो आजाद हिन्द फौज के विषयवस्तु पर आधारित है। यह आधुनिक जलपानगृह संग्रहालय के प्रवेश स्थल पर स्थित भवन के प्रथम तल पर कार्यरत है। इसकी एक भित्ति इस कारागृह के पुरातन काल के चित्रों से अलंकृत है। दूसरी भित्ति पर आजाद हिन्द फौज का इतिहास प्रलेखित है।

आजाद हिन्द फौज पर आधारित कॉफी हाउस
आजाद हिन्द फौज पर आधारित कॉफी हाउस

हरे रंग के काष्ठ निर्मित झरोखों से सज्ज लाल रंग के अनेक कारागृह भवन इस कैफे से दिखाई देते हैं। कैफे की भीतरी सज्जा इतनी अनुपम है कि मुझे इसके भीतर बैठकर अपना कार्य करने की प्रेरणा प्राप्त हो रही थी। मैंने अनेक कथाओं में पढ़ा था कि कारागृह में बंदियों को निःस्वाद भोजन दिया जाता है इसलिए मैं इस कैफे से भी ऐसे ही भोजन की आशंका कर रही थी। किन्तु यहाँ के व्यंजनों ने मेरी इस धारणा का पूर्णतः खंडन कर दिया था। मुझे यहाँ अत्यंत स्वादिष्ट व्यंजनों का आस्वाद लेने का अवसर प्राप्त हुआ।

पुनरावलोकन करूँ तो मुझे आश्चर्य होता है कि मेरे संग्रहालय भ्रमण काल में मैंने अपने मस्तिष्क में मथते विचारों के विषयों को नाटकीय रूप से कितनी ही बार परिवर्तित कर दिए थे, उसकी गणना नहीं है। यह एक कारागृह था जहाँ बंदियों को रखा जाता था तथा जो मानवता के सर्वाधिक विकृत रूप का साखी था, यह विषय सर्वोपरि है। मेरी मान्यता है कि ऐसी ही परिस्थिति विश्व के अनेक स्थानों के लिए सत्य है। जीवन में अनेक परिस्थितियाँ आती हैं जहाँ हमारा साक्षात्कार मानवता के विकृत रूप से होता है। यहाँ मुझे इस सत्य ने झकझोर दिया था।

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शहीद स्मारक

संग्रहालय के भीतर प्रवेश करते ही दाहिनी ओर एक शहीद स्मारक है। यह उन वीर स्वतंत्रता सेनानियों के बलिदानों की स्मृति में बनाया गया है जिन्हें यहाँ मृत्युदंड दिया गया था अथवा जिन्होंने यहाँ कारावास में हुए अत्याचार में प्राण गँवा दिए या अत्याचारों के चलते आत्महत्या कर ली अथवा अस्वच्छ कोठरियों में रोगग्रस्त होकर मृत्यु को प्राप्त हो गए थे।

शहीद स्मारक
शहीद स्मारक

एक पटल पर उन सभी सेनानियों के नाम अंकित हैं।

स्वतंत्रता सेनानियों की कालकोठरियाँ

किंचित आगे जाकर, बाईं ओर हम एक एकांत क्षेत्र में पहुंचे जहाँ एक गलियारे में कुछ कालकोठरियाँ थीं। यहीं एक कोठरी में नेहरु को सन् १९३० में कुछ मास के लिए रखा था। उनकी पुत्री इंदिरा हर पखवाड़े उनसे इसी गलियारे में भेंट करती थी। इस कोठरी का नामकरण अब नेहरु के नाम पर किया गया है।

नेहरु ने अपनी पुस्तक, ‘The Discovery of India’ में लिखा था, “निवास करने के लिए कारागृह कोई सुखद स्थान नहीं है, भले ही निवासकाल कुछ ही दिवसों का भी क्यों ना हो”। मैं उस काल की परिस्थिति का वर्तमान की परिस्थिति से तुलना करने से स्वयं को रोक नहीं पायी। आज यह स्थान स्वच्छ, हराभरा एवं अत्यंत सुखदाई प्रतीत होता है।

नेहरु की कोठरी के पश्चात नेताजी सुभाष चन्द्र बोस, बी सी रॉय, सी आर दास एवं जे एम गुप्ता जैसे स्वतंत्रता सेनानियों की कोठरियाँ हैं।

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तांतकल अथवा बुनकर कक्ष

हमने संगोष्ठी कक्ष में प्रवेश किया तथा वहाँ से उस पार निकलकर एक विशाल प्रांगण में पहुंचे। उस प्रांगण को पार कर हम बंदियों के बुनाई कक्ष में पहुँचते हैं। ऐसा कहा जाता है कि अन्य काराग्रहों के विपरीत, इस काराग्रह में कैदियों से सभ्य रूप से परिश्रम कराया जाता था।

वर्तमान में इस बुनकर कक्ष में हथकरघे रखे हुए हैं। मिट्टी द्वारा निर्मित कैदियों के प्रतिरूप चरखे चलाते हुए प्रदर्शित किये गए हैं।

लोकप्रिय पारंपरिक बंगाली साड़ियों को तांत कहते हैं।

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कालकोठरियाँ

हम वहाँ से वापिस आते हुए अवलोकन दुर्ग की ओर गए। अवलोकन दुर्ग पर ऊपर चढ़ने के लिए पर्यटकों की लम्बी पंक्ति पहले से ही प्रतीक्षा कर रही थी। अतः हमने अवलोकन दुर्ग पर चढ़ने की योजना को टाल देने में भलाई जानी। परिसर में आगे बढ़ते हुए हमने सामूहिक कालकोठरियों की पंक्तियाँ देखीं। साथ ही यूरोपीय बंदियों के लिए पृथक कालकोठरियाँ देखीं। बंदियों के सामाजिक एवं आर्थिक स्तर के अनुसार उनको प्राप्त हुई सुविधाओं में भिन्नता स्पष्ट देखी जा सकती है।

सिक्कों की दीर्घा

आगे बढ़ते हुए हम एक ऐसी दीर्घा में पहुँचे जहाँ सिक्कों को प्रदर्शित किया गया था। उनमें स्वतंत्रता के पश्चात जारी किये गए सिक्कों की एक बड़ी मात्रा है।

सिक्कों की दीर्घा
सिक्कों की दीर्घा

वहाँ कुछ अतिविशाल अनोखे सिक्के भी थे। मानव आकार के सिक्कों पर स्वतंत्रता सेनानियों की छवियों को उत्कीर्णित कर प्रदर्शित किया है। दुर्गा माँ की भी छवि एक सिक्के पर उत्कीर्णित है।

कालांतर में मुझे ज्ञात हुआ कि इन सिक्कों को सन् २०२२ में कोलकाता के एक दुर्गा पूजा पंडाल से लाया गया है। दुर्गा पूजा बंगाल का सर्वाधिक लोकप्रिय वार्षिक उत्सव है।

दुर्गा प्रतिमा सिक्के की आकृति में
दुर्गा प्रतिमा सिक्के की आकृति में

कोलकाता में दुर्गा पूजा अत्यंत भव्य रीति से आयोजित किया जाता है। प्रत्येक जाते वर्ष के साथ इसकी भव्यता में अधिकाधिक वृद्धि होती जा रही है। दुर्गा पूजा पंडाल में प्रदर्शित अतिविशाल झांकियों एवं देवी-देवताओं की विशाल प्रतिमाओं को अत्यंत धैर्य के साथ बनाया जाता है। यद्यपि ये पंडाल एवं सभी संरचनाएं अल्पकालिक होते हैं, तथापि उनके निर्माण में प्रयुक्त संसाधनों एवं रचनात्मक प्रयासों में किसी भी प्रकार की कोताही नहीं की जाती है। यदि आपने दुर्गा पूजा काल में कोलकाता का भ्रमण नहीं किया है तो आप उसकी एक छोटी सी झलक इस संग्रहालय में देख सकते हैं।

यूनेस्को ने कोलकाता के दुर्गा पूजा को अपने अमूर्त सांस्कृतिक धरोहरों की सूची में सम्मिलित किया है। यूँ तो दुर्गा पूजा के पंडाल में देवताओं के विग्रह एवं झाँकियाँ सभी अल्पकालिक अवधि के लिए प्रदर्शित होते हैं, फिर भी उन पर बड़ा परिश्रम किया जाता है। ये अनेक व्यक्तियों के क्रियात्मक विचार, उनके अथक परिश्रम का फल होते हैं। पूजा के पश्चात यहाँ प्रयुक्त सभी वस्तों को ऐसे ही समाप्त करने के स्थान पर उन वस्तुओं को इस संग्रहालय में प्रदर्शित किया गया है।

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अलीपुर केंद्रीय कारागृह चिकित्सालय

सिक्कों की दीर्घा को पार कर हम परिसर के ऐसे भाग में पहुँचे जहाँ पूर्व में अलीपुर कारागृह चिकित्सालय था। उस चिकित्सालय के कक्षों को परिवर्तित कर अनेक प्रदर्शन दीर्घाएं बनाई गयी हैं। ये दीर्घाएं बंगाल प्रेसीडेंसी के क्रांतिकारियों की गाथाएँ कहती हैं। इन दीर्घाओं में बड़ी संख्या में पठन सामग्री उपलब्ध है। आप यहाँ पर्याप्त समय व्यतीत कर सकते हैं।

चिकित्सालय
चिकित्सालय

इस इमारत में भी एक कैफे है जिसका नाम एकांत है। यह जलपानगृह पूर्व में कारागृह के रसोइगृह में था। इसका वातावरण आजाद हिन्द फौज कैफे से भिन्न है। हम यहाँ रविवार के दिन आये थे। यह जलपानगृह ग्राहकों से खचाखच भरा हुआ था।

चिकित्सालय से लगा हुआ एक विस्तृत उद्यान है जो कारागृह की ऊंची भित्तियों से सीमांकित है। यह उद्यान पारिवारिक उद्यानभोज के लिए एक लोकप्रिय स्थल बन गया है। विडम्बना यह है कि ये भित्तियाँ जो अब परिवारों की प्रसन्नता एवं उल्हास की साक्षी हैं, एक समय यही भित्तियाँ बंदीगृह के बंधकों को इसके उस पार स्थित अपने परिवारजनों का स्मरण करती होंगी जिनसे भेंट की प्रतीक्षा में इन्होंने यहाँ वर्षों व्यतीत किये होंगे।

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मृत्यु दंड स्थल

चिकित्सालय एवं उद्यान अवलोकन के पश्चात् हम प्रवेश द्वार की ओर वापिस मुड़े। वापसी मार्ग पर हम ऐसे भाग में पहुँचे जहाँ दोषियों को दिया गया मृत्यु दंड कार्यान्वित किया जाता था। यहाँ तीन कक्ष हैं जहाँ मृत्यु दंड प्राप्त बंदी अपने अंतिम कुछ क्षण व्यतीत करते थे। यहाँ यदि किसी बंदी की मांग हो तो उन्हें पढ़ने के लिए गीता दी जाती थी। उन्हें अंतिम भोजन के रूप में उनका प्रिय भोजन भी दिया जाता था।

मृत्यु दंड स्थल
मृत्यु दंड स्थल

ये तीनों दोषी कक्ष एक प्रांगण में खुलते हैं जहाँ दोषियों के दंड को क्रियान्वित करने के लिए फाँसी का चबूतरा है। वस्तुतः, इस चबूतरे के समक्ष कारागृह की एक इमारत है जिसकी कोठरियों में अनेक बंदियों को इसलिए रखा जाता था ताकि वे अपने साथी बंदियों को दी जा रही फाँसी को प्रत्यक्ष देखें तथा भयभीत होकर ब्रिटिश साम्राज्य को क्रान्ति व क्रांतिकारियों के विषय में सभी गुप्त जानकारियाँ दे दें।

अलीपुर संग्रहालय का मानचित्र
अलीपुर संग्रहालय का मानचित्र

फाँसी के चबूतरे के निकट एक कक्ष है जहाँ शव परीक्षा की जाती थी।

अलीपुर संग्रहालय के अन्य आकर्षण

प्रत्येक सांध्य के समय यहाँ श्रव्य एवं दृश्य प्रदर्शन किया जाता है। यह प्रदर्शन चिकित्सालय के निकट स्थित एक मुक्तांगन में किया जाता है। यहाँ बैठने के लिए विस्तृत व्यवस्था है।

इनके अतिरिक्त इस परिसर में एक स्मारिका दुकान एवं एक कारागृह मुद्रणालय है।

यात्रा सुझाव

  • इस संग्रहालय में आप २ से ४ घंटों का समय आसानी से व्यतीत कर सकते हैं।
  • संग्रहालय के समीप निजी वाहन रखने के लिए पर्याप्त स्थान है। आप यहाँ सार्वजनिक परिवहन साधनों द्वारा भी पहुँच सकते हैं।
  • मैं यहाँ रविवार के दिन आयी थी, वह भी संध्या लगभग ४ बजे। उस समय यहाँ पर्यटकों की बड़ी भीड़ थी। अतः आप अपना कार्यक्रम अपनी सुविधाओं को ध्यान में रखकर सुनियोजित करें।
  • यहाँ नाममात्र का प्रवेश शुल्क लिया जाता है। वर्तमान टिकट मूल्य एवं समयावधि के लिए संग्रहालय के अधिकारिक वेब स्थल पर जाएँ।

यह खुशबू ललानी द्वारा प्रदत्त एक अतिथि संस्करण है। खुशबू ललानी ने सॉफ्टवेर उद्योग में १३ वषों तक कार्य किया है। अब वे मानवी अनुगमन के दीर्घकालीन परिणामों पर शोध कर रही हैं तथा उनसे सीख प्राप्त करने की प्रणाली पर लक्ष्य केन्द्रित कर रही हैं।

अनुवाद: मधुमिता ताम्हणे

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