सहस्त्रलिंग तलाव – एक प्राचीन विरासत, पाटण गुजरात

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सहस्त्रलिंग तलाव - पाटन गुजरात
सहस्त्रलिंग तलाव – पाटण गुजरात

मंत्रमुग्ध कर देनेवाली रानी की वाव के ठीक पीछे सहस्त्रलिंग तलाव स्थित है। अगर आज भी यह संरचना अपने पूर्ण स्वरूप में होती तो रानी की वाव से अधिक शानदार हो न हो पर शायद उतनी ही सुंदर और रमणीय जरूर होती। इस तलाव का निर्माण रानी की वाव से पहले किया गया था जो कि सरस्वती नदी के किनारे पर स्थित जल प्रबंधन की और एक संरचना थी। यह तलाव एक नहर द्वारा सरस्वती नदी से जल प्राप्त करता था। यह न सिर्फ नदी के पानी का संचयन करता है बल्कि उस पानी को साफ भी करता है।

सहस्त्रलिंग तलाव – गुजरात में देखने की जगहें 

सहस्त्रलिंग तलाव पाटण में मंदिर के स्तम्भ
सहस्त्रलिंग तलाव पाटण में मंदिर के स्तम्भ

रानी की वाव से सहस्त्रलिंग तलाव की ओर जाते हुए, भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण का कार्यालय और संग्रहालय पार करते ही पूरे रास्ते में आपको एक दीर्घीभूत खाई नज़र आएगी, जिसके तल भाग में सीढ़ियाँ बनी हुई हैं। इस खाई में बने मार्ग पर कुछ स्तंभ थे जो बिना किसी सहारे के खड़े हैं तथा किसी प्राचीन मंदिर जैसी दिखनेवाली एक संरचना भी थी। इस खाई के आस-पास घूमते हुए आपको वहाँ पर एक और खाई नज़र आएगी जो मेहराब के आकार में बने द्वार जैसी दिखनेवाली संरचना से इस खाई से जुड़ी हुई है।

सीढ़ियों वाली बावड़ी 
जल आवागमन को संचालित करती प्रणालियाँ – सहस्त्रलिंग तलाव -पाटण
जल आवागमन को संचालित करती प्रणालियाँ – सहस्त्रलिंग तलाव -पाटण

जैसे-जैसे आप सीमा के अंतिम छोर तक पहुंचेंगे, आपको सामने ही एक विशाल और गोलाकार सीढ़ियों वाली बावड़ी दिखेगी जो बिलकुल सूखी पड़ी है। ऐसी स्थिति में यह बावड़ी किसी रंगभूमि के समान लग रही थी जिसमें सिर्फ एक मंच की कमी थी। एक स्थान पर यह बावड़ी खाईयों से जुड़ी हुई है, जो अनेक मोड़ों पर घूमते हुए आगे बढ़ती हैं। ये खाइयाँ करीब-करीब आधुनिक पानी व्यवस्था के अभिन्यास के समान लग रही थीं। आगे जाकर दूसरे छोर पर यह विस्तृत खाई एक मंदिर से जाकर जुड़ती है।

यहाँ पर घूमते हुए मैंने कुछ गांववालों से बातचीत करने की कोशिश की जो यहाँ पर अपनी गाय-भैसों को चराने के लिए लेकर आए थे। उनका कहना था कि सहस्त्रलिंग तलाव तो सूखा पड़ा हुआ है, तो आप वहाँ पर जाकर क्या देखना चाहते हैं? और जब मैंने उनसे वहाँ पर स्थित मंदिर के बारे में पूछा, तो उन्होंने कहा कि वह मंदिर नहीं है और वहाँ से कुछ दूर खड़े एक और मंदिर की ओर इशारा किया। शायद वे हमे यही सूचित करना चाहते थे कि इस मंदिर में कोई पूजा-पाठ नहीं होता और इसलिए उन्होंने वास्तव में पूजे जाने वाले मंदिर की ओर इशारा किया था।

जसमा ओडन से जुडे उपाख्यान 
जल प्रबंधन का उत्कृष्ट उदहारण – सहस्त्रलिंग तलाव – पाटण
जल प्रबंधन का उत्कृष्ट उदहारण – सहस्त्रलिंग तलाव – पाटण

गांववालों से हुई इस बातचीत के दौरान हमे जसमा ओडन की कथा को जानने का मौका मिला। जसमा ओडन कुआँ खोदने वाले समुदाय की एक महिला थी। तत्कालीन राजा, महाराज सिद्धराज जयसिंह किसी भी कीमत पर जसमा ओडन से विवाह करना चाहते थे। महाराज द्वारा जबरदस्ती उठा ले जाने के बजाय जसमा ओडन ने आत्मदहन करना उचित समझा। परंतु सती होने से पूर्व उसने महाराज को यह शाप दिया कि वे हमेशा निस्संतान ही रहेंगे और जो कुआँ वे खोद रहे थे वह भी हमेशा निर्जल ही रहेगा।

उपाख्यानों के अनुसार आगे चलकर यह शाप सच हो गया और महाराज हर हाल में इस शाप से मुक्त होने के अनेक उपाय ढूँढने लगे। किसी ने उन्हें बताया कि अगर 32 लक्षणों वाले व्यक्ति अर्थात मंगल व्यक्ति, यानी अनिवार्य रूप से किसी सद्गुणों वाले व्यक्ति की बलि चढ़ा दी जाए तो वे इस शाप से हमेशा के लिए मुक्त हो सकते हैं। महाराज ने तुरंत 32 लक्षणों वाले व्यक्ति की खोज जारी की। जिसके चलते मायो नाम के किसी व्यक्ति को लाकर उसकी बलि चढ़ा दी गयी। फिर उसके नाम से यहाँ पर एक मंदिर का निर्माण किया गया। यह वही मंदिर है जिसे आज भी गांववालों द्वारा पूजा जाता है। समय की कमी के कारण मैं इस मंदिर के दर्शन तो नहीं कर पायी लेकिन गांववालों से इस मंदिर की कहानियाँ सुनना भी एक अलग ही अनुभव था।

भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण का संग्रहालय   
पाटण संग्रहालय में पुरातत्त्व अवशेष
पाटण संग्रहालय में पुरातत्त्व अवशेष

सहस्त्रलिंग तलाव के ठीक बगल में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण का कार्यालय और संग्रहालय स्थित है। जब हम वहाँ पर पहुंचे तो खुली हवा में बसे इस संग्रहालय के प्रवेश द्वार पर ताला लगा हुआ था। हमने संग्रहालय के अधिकारियों से प्रवेश द्वार खोलने का निवेदन किया ताकि हम इस संग्रहालय के दर्शन कर सके। इसपर उनका जवाब यह था कि यह संग्रहालय आम जनता के लिए नहीं है। यह सुनकर मैं हैरान रह गयी और मैंने उनसे पूछा कि, फिर यह संग्रहालय किसके लिए बना है?

तो उनके पास इसका कोई जवाब नहीं था। उस व्यक्ति ने फिर से हमसे कहा कि उन्होंने अपने पूरे कार्यकारी जीवन में कभी भी यह संग्रहालय आम लोगों के लिए नहीं खोला था। मैंने उन्हें मुझे यही बात लिखित रूप में देने के लिए कहा, कि वे यह संग्रहालय आम जनता के लिए नहीं खोल सकते। या फिर विडियो रिकॉर्डिंग द्वारा उनका बयान लेने पर जोर दिया, ताकि मैं वह दिल्ली में स्थित भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के मुख्य कार्यालय में भेज सकूँ और उनसे आम जनता के लिए इस संग्रहालय के द्वार न खोलने का कारण भी पूछ सकूँ। तब जाकर उन्होंने यहाँ-वहाँ कुछ फोन लगाए औए फिर संग्रहालय के द्वार खोले।

यह द्वार काफी लंबे समय से बंद होने के कारण उसके जंग लगे जंगलों ने खुलने में थोड़ा समय लिया। और दरवाजा खुलते ही लगभग और 20 लोग हमारे साथ भीतर आए और उन्हें भी संग्रहालय के दर्शन करने का मौका मिला। इस पूरे संग्रहालय में मुझे रानी उदयमती की मूर्ति कहीं पर भी नहीं दिखी, जो मुझे लगता था कि शायद यहाँ हो सकती है। इसके बावजूद भी इस संग्रहालय के दर्शन करके मुझे एक छोटी सी जीत हासिल करने की खुशी थी, जिसके कारण हम संग्रहालय में रखी गयी अन्य मूर्तियाँ तो देख पाए थे।

अगर आप कभी पाटण गए तो सहस्त्रलिंग तलाव जरूर जाइए और वहाँ की प्राचीन अभियांत्रिकी उपलब्धियों को जरूर देखिये जो सार्वजनिक हित के लिए निर्मित की गयी थीं।

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