बोर्रा गुफाएँ भारत के पूर्वी घाटों में अरकू घाटी के अनंथगिरी पहाड़ियों में, विशाखापटनम के तटीय शहर से लगभग 90 की.मी. की दूरी पर बसी हुई हैं। बोर्रा गुफाएँ भारत का अद्वितीय प्रकृतिक अजूबा है। भारत में, प्रकृतिक स्टैलैग्माइट और स्टैलैक्टाइट की यह सबसे बड़ी गुफा है। इस प्रकार की गुफाएँ आप विश्व के अलग-अलग भागों में देख सकते हैं। जैसे कि, मैंने ऐसी ही गुफाएँ अमरीका में टेक्सास में, यूरोप में स्लोवाकिया में और हमारे अपने मेघालय में भी देखी हैं जो एक-दूसरे के काफी समान हैं। ये गुफाएँ सैकड़ों लाखों साल पुरानी मानी जाती हैं।
इन गुफाओं की छत और फर्श से प्रकृतिक निक्षेप उपजते हैं, जिन्हें स्टैलैग्माइट और स्टैलैक्टाइट कहा जाता है। इनकी बेतरतीब सी संरचनाएं आपकी कल्पनाओं को दिशाहीन बना देती हैं। लेकिन कभी-कभी जब ये निक्षेप आपस में घुल जाते हैं तो एक स्तंभ जैसी दिखने वाली संरचना निर्मित होती है।
ये गुफाएँ आम तौर पर किसी नदी के मार्ग पर बसी होती हैं, जिसके कारण नदी का पानी इन गुफाओं में से गुजरते हुए बहता है। गुफाओं के भीतर घूमते हुए आप इस बहती हुई नदी को देख सकते हैं। बोर्रा गुफाएँ गोस्थानी नदी का उद्गम स्थल है। यह नदी इन गुफाओं से बहते हुए विशाखापटनम तक जाती है।
भारत के प्रकृतिक अजूबे – बोर्रा गुफाएँ – अरकू घाटी
भारत संस्कृति में डूबा हुआ देश है। हमारी संस्कृति में प्रत्येक वस्तु में दिव्यता देखने की परंपरा रही है। इन गुफाओं में जमीन से उपजे हुए निक्षेपों को अक्सर शिवलिंगों के रूप में देखा जाता है। इस गुफा में आपको ऐसे बहुत सारे शिव लिंग देखने को मिलेंगे। इन्हीं में से एक शिवलिंग को छोटे से मंदिर में परिवर्तित किया गया है, जहां तक पहुँचने के लिए आपको पतली सी सीढ़ियों से होते हुए उपर तक जाना पड़ता है। इसी प्रकार इन निक्षेपों से बनी बाकी की संरचनाओं को अन्य देवताओं के अवतारों के रूप में या फिर उनके वाहन या शुभ प्रतिकों के रूप में देखा जाता है। कभी-कभी तो इन्हें ऐतिहासिक किताबों के उपाख्यानों से भी जोड़ा जाता है।
ऐसे विश्वासों के चलते, भारत में इन गुफाओं का अच्छी तरह से अनुरक्षण नहीं हो पाया है। मानवीय स्पर्श के कारण इन प्रकृतिक निक्षेपों की संख्या कम होती जा रही है। इसके बावजूद भी उन्हें स्पर्श करने पर कोई प्रतिबंध नहीं लगाए गए हैं। यहां के लोगों का मानना है कि ये गुफाएँ किसी भी वैज्ञानिक या पुरातात्विक खोज का परिणाम न होकर यहां के सांस्कृतिक जीवन का एक अभिन्न अंग हैं।
गिरते जल से बनी संरचनाएं
बोर्रा गुफाओं में गिरते हुए जल से बनी इन संरचनाओं को स्थानीय भाषा में जलशीला कहा जाता है। यहां पर आपको साई बाबा तथा अन्य मंदिर भी देखने को मिलेंगे। यहां पर सीता का शयनकक्ष और स्नानकक्ष भी है, जहां से पीला जल बहता है। ऐसा माना जाता है की माता सीता हल्दी से स्नान कर रही हैं, और यह जल उनके स्नानकक्ष से आता है। लेकिन वैज्ञानिक रूप से देखे, तो यह सिर्फ सल्फर धातु है जिसके कारण यह जल पीला दिखाई देता है। यहां पर मनुष्य का दिमाग, भुट्टा, बंदर, बैठा हुआ हाथी, भागता हुआ घोड़ा, मनुष्य का पैर और उसकी गदा आदि आकारों की संरचनाएं देखने को मिलती हैं। इन में से मानव दिमाग वाली संरचना बहुत ही निराली है, क्योंकि वह बाकी के स्टैलैग्माइट और स्टैलैक्टाइट की संरचनाओं से बिलकुल अलग है।
यहां पर एक बड़ी सी चट्टान है जिसके दोनों सिरों को एक लंबी सी संधि से जोड़ा गया है। स्थानीय लोग, इस संधि द्वारा विभाजित इन दोनों भागों को लव और कुश यानि माता सीता के दोनों बेटों के नाम से पुकारते हैं। यह अप्रतिम दृश्य देखने लायक है। इस गुफा की छत पर एक छेद है, जहां से भीतर आती हुई रोशनी गुफाओं को खूबसूरती से अनेक प्रकारों में प्रकाशित करती है। गुफा में अलग-अलग स्थानों पर खड़े होकर आप इस रोशनी के विभिन्न रंग-रूप देख सकते हैं।
कुछ जगहों पर गुफाओं की दीवारें मैग्नीशियम और सिलिका जैसे खनिज पदार्थों की उपस्थिती के कारण चमकती हुई नज़र आती हैं। गुफा के अंतिम छोर की तरफ, पानी में गुफा का प्रतिबिंब दिखाई देता है, जो गुफा की आकृति को अचानक से दुगुना बनाता हुआ उसे अद्भुत रूप से प्रकाशित करता है।
बोर्रा गुफाएँ – तीन पड़ाव
बोर्रा गुफाएँ तीन पड़ावों में विभाजित हैं, जिनमें से सिर्फ बीच वाला पड़ाव ही लोगों को घूमने के लिए खुला है। नीचे का पड़ाव और ऊपर का पड़ाव सामान्य यात्रियों के लिए सुरक्षित नहीं है, जिसके कारण वहां पर जाने की अनुमति नहीं है। निम्न पड़ाव नीचे बहती हुई नदी से जुड़ा होने के कारण खतरनाक हो सकता है। लेकिन ऊपर से देखने पर नदी का यह नज़ारा बहुत ही सुंदर दिखता है। इस क्षेत्र में आम तौर पर पाए जाने वाले सफ़ेद संगमरमर के पत्थरों के बीच से बहती हुई यह नदी किसी चंचल युवती सी लगती है।
हमारे गाइड ने हमे बताया कि शिवरात्रि के दिन इन गुफाओं में जाने के लिए कोई प्रवेश शुल्क नहीं लगता है। इस दिन आस-पास के सभी आदिवासी समुदाय यहां पर पुजा करने आते हैं। इस गुफा का प्रवेश द्वार बहुत बड़ा है। यहीं से आप गुफा के फैलाव को देख उसके विस्तार का अंदाज़ा लगा सकते हैं। यहां से गुफा के भीतर देखने पर आपको लोग भी बौने से नज़र आते हैं। इस प्रवेश द्वार पर नंदी की दो मूर्तियाँ स्थापित की गयी हैं, जो पूरी गुफा को शिव मंदिर का रूप प्रदान करती हैं। और क्यों न हो शिवजी स्वयं एक गुफा निवासी जो ठहरे।
बोर्रा का अर्थ
इस क्षेत्र की स्थानीय भाषा के अनुसार बोर्रा का अर्थ है छेद। बोर्रा गुफाओं के शीर्ष पर एक बड़ा सा छेद है जिसके कारण उसे यह नाम दिया गया है। उपाख्यान बताते हैं कि, एक बार एक गाय इस छेद में गिर गयी और इस प्रकार से स्थानीय आदिवासी लोगों को इस गुफा के बारे में पता चला। इसके साथ ही उन्हें नदी के उद्गम स्थान का भी पता चला। इसलिए इस घटना के आधार पर इस नदी को गोस्थानी ( गाय के थन ) नाम दिया गया। इस गुफा में आपको एक जगह पर गाय के थन जैसी संरचना दिखेगी जहां से जल टपकता रहता है, जो सीधे उसके नीचे स्थित शिवलिंग पर गिरता है।
आधुनिक इतिहास के अनुसार बोर्रा गुफाओं की खोज ब्रिटिश काल के दौरान बताई जाती है। कहा जाता है कि, राजा विलियम जॉर्ज ने लगभग 200 साल पहले भारतीय भूगर्भीय सर्वेक्षण के द्वरा इन गुफाओं की खोज की थी। तथा मानवविज्ञानियों का मानना है कि, इन गुफाओं से प्राप्त पत्थर से बने हथियारों की पुरातनता के हिसाब से लगभग 30,000 – 50,000 साल पहले इन गुफाओं में लोग रहा करते थे।
बोर्रा गुफाएँ और भारतीय रेल
अगर आप पूर्व तटीय रेल्वे की ट्रेन से बोर्रा गुहलू की यात्रा पर जा रहे हैं, तो वहां का गाइड आपको जरूर बताएगा कि स्टेशन तक पहुँचने से ठीक पहले यह ट्रेन वास्तव में बोर्रा गुफाओं के ऊपर से गुजरती हुई जाती है। और गुफाओं के भीतर भी आपको रेल्वे के सूचना पट्ट दिखेंगे जो आपको इस ट्रेन की पूरी जानकारी देते हैं। आंध्र प्रदेश पर्यटन ने इन गुफाओं में पक्के रास्ते बनाने का बहुत ही बढ़िया काम किया है। तथा गुफाओं के भीतर कुछ बत्तियाँ भी लगायी हैं, जिससे पर्यटकों को गुफाओं में घूमने की सुविधा मिलती है।
मेरे विचार से आपको बोर्रा गुफाएँ जरूर देखनी चाहिए। ये गुफाएँ सच में भारत का अद्वितीय प्रकृतिक अजूबा है। तथा इन गुफाओं तक जानेवाली ट्रेन, जो अनेकों सुरंगों से गुजरते हुए जाती है, की यात्रा का अनुभव भी अवश्य लेना चाहिए।
कार्तिकी झरना
बोर्रा गुफाओं के पास ही एक मौसमी झरना है, जिसे कातिकी झरना कहा जाता है। अगर आप तरुण और साहसी हैं तो यह झरना देखने जरूर जाइए। लेकिन ऐसे झरनों पर जाते समय समूह में जाइए और अपना तथा अपने आस-पास का ध्यान जरूर रखिए।
wonderful place to visit