बाटु गुफाएं मानवी हस्तक्षेपों द्वारा अलंकृत एवं प्राकृतिक अचंभों का अप्रतिम संगम है। हजारों वर्षों पूर्व से अस्तित्व में रही इन प्राचीन प्राकृतिक गुफाओं के मुहाने पर मुरूगन की एक ऊंची सुनहरी मूर्ति है। ऐसा प्रतीत होता है मानो रचना करने में मानव भगवान से स्पर्धा कर रहा हो।
मलेशिया के कुआला लम्पूर की सीमा पर, चूने के पत्थर की पहाड़ी पर ये प्राकृतिक गुफाएं अस्तित्व में हैं जिन्हे बाटु गुफाएं कहा जाता है। इन गुफाओं की ओर जाते समय आपको यह आभास भी नहीं होता कि आप नगर से बाहर आ गए हैं। इन प्राकृतिक गुफाओं के अस्तित्व का एकमात्र चिन्ह है, शिलाओं से युक्त एक पहाड़ी की उपस्थिति। किन्तु, इन गुफाओं के समीप पहुंचते ही हमारी दृष्टि को बांधती है, सुनहरे रंग में रंगी मुरूगन की विशालकाय प्रतिमा। जैसे ही यह दृष्टिगोचर हो आप समझ जाईए कि आप अपने गंतव्य पर पहुँच गए हैं। नगर की ओर मुख किए खड़ी मुरूगन की प्रतिमा की पीठ गुफाओं की ओर है। यह दृश्य देख ऐसा आभास होता है मानो यह मुरूगन गुफाओं के रखवाले हैं तथा साथ ही नगर का निरीक्षण भी कर रहे हैं।
बाटु गुफाओं का भ्रमण – कुआला लम्पूर के दर्शनीय स्थल
बाटु गुफाओं की मुरूगन प्रतिमा
एक भारतीय मूल के तमिल व्यापारी ने यहाँ मुरूगन की प्रतिमा की स्थापना करवाई थी क्योंकि उन्हे यह गुफा मुरूगन के भाले के समान प्रतीत होती थी। १९ वीं सदी से यह स्थान वार्षिक थाईपुसम उत्सव का आयोजन स्थल बन गया है। यह एक तमिल उत्सव है जो जनवरी अथवा फरवरी मास के आसपास मनाया जाता है। इस उत्सव के समय नगर के भीतर स्थित महामरिअम्मा मंदिर से इस मुरूगन मंदिर तक भव्य शोभा यात्रा आती है। आज भी यह प्रथा अनवरत चली आ रही है।
मुरूगन की इस अतिविशाल प्रतिमा की ऊंचाई १४० फुट है। यह मलेशिया की सर्वाधिक ऊंची हिन्दू भगवान की मूर्ति है तथा विश्व की तीसरी सर्वाधिक ऊंची मूर्ति है। इसे बनाने में तीन वर्षों का समय व्यतीत हुआ जिसके लिए भारत से १५ शिल्पी बुलवाए गए थे। इसकी स्थापना २००६ के थाईपुसम उत्सव के समय की गई थी।
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इस गुफा का मुख लगभग पहाड़ी की शीर्ष पर है। गुफा के प्रवेश स्थल तक पहुँचने के लिए आपको २७२ सीढ़ियाँ चढ़नी पड़ेंगी। दूर से श्वेत एवं लाल रंग की ये सीढ़ियाँ अत्यंत आसान प्रतीत होती हैं किन्तु इन्हे चढ़ना उन पर्यटकों के लिए किंचित कठिन हो सकता है जिनका स्वास्थ्य उत्तम ना हो। पूर्व में ये सीढ़ियाँ भिन्न थीं। सन् १९२० में पहाड़ी के शीर्ष तक पहुँचने के लिए सर्वप्रथम काष्ठी सोपान बनाए गए थे। कालांतर में इन्हे कंक्रीट की सीढ़ियों में परिवर्तित कर दिया गया है।
मंदिर की गुफा
गुफा के प्रवेश स्थान पर आप अनेक दुकानें देखेंगे जो साधारणतः किसी मंदिर के बाहर स्थित ठेठ दुकानों के समान हैं। उन दुकानों में पुष्प, खिलौने तथा विभिन्न देवी-देवताओं के भिन्न भिन्न अवतारों के काल्पनिक चित्र उपलब्ध हैं। अंधकार में लीन, ऊंची गुफा में प्रवेश करने से पूर्व, प्रवेश स्थल पर एक रंगबिरंगा तोरण आपका स्वागत करता प्रतीत होता है। एक विशाल कक्ष को पार करते ही आपके समक्ष पुनः कुछ श्वेत-लाल सीढ़ियाँ उपस्थित हो जाएंगी जो आपको मंदिर तक ले जायेंगी। गुफा के भीतर का वातावरण अत्यंत भक्तिपूर्ण प्रतीत होता है। किसी भी दक्षिण भारतीय मंदिर के समान यह गुफा भी दर्शनार्थियों की चहल-पहल से भरी रहती है। किन्तु खेद यह होता है कि गुफा का प्राकृतिक रूप एवं आभास कहीं लुप्त सा हो जाता है।
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पहाड़ी की तलहटी पर दो अन्य मंदिर, एक कला दीर्घा एवं एक संग्रहालय भी है।
प्राकृतिक बाटु गुफाएं
अरकू घाटी में स्थित बोर्रा गुफाओं के समान इन गुफाओं की छत पर भी एक छिद्र है जिनके द्वारा सूर्य का प्रकाश भीतर आता है। जैसे जैसे सूर्य की दिशा परिवर्तित होती है, गुफा के भीतर का दृश्य भी परिवर्तित होता रहता है, मानो सूर्य की किरणें इन दृश्यों से अठखेलियाँ कर रही हों।
गुफा अत्यंत नम है तथा अनेक स्थानों पर जल की बूंदें टपकती रहती हैं। इनसे यह आभास होता है कि ये गुफाएं अब भी जीवंत हैं तथा अपने परिवर्तन एवं नवीनीकरण की ओर निरंतर अग्रसर हैं। गुफाओं का केवल यही भाग आपको स्मरण कराता है कि ये प्राकृतिक गुफाएं हैं जिनकी संरचना में कुछ ४०० करोड़ वर्ष व्यतीत हो गए हैं। निचले स्तर पर स्थित अधिकतर स्टलैक्टाइट एवं स्टलैग्माइट संरचनाएं लोगों द्वारा निरंतर छूने एवं छेड़छाड़ करने के कारण नष्ट हो गई हैं। किन्तु गुफा की छत के ऊंची भागों पर, जहां मानवी हस्तक्षेप कठिन है, वहाँ आप इन स्टलैक्टाइट एवं स्टलैग्माइट संरचनाओं को देख सकते हैं। दैनिक स्तर पर इनमें होते परिवर्तन को भी ध्यानपूर्वक देख सकते हैं।
ज्ञात सूत्रों के अनुसार तेमुअन जनजाति के लोग इन गुफाओं के सर्वाधिक प्राचीन निवासी थे। १८६० के दशक में चीनी कर्मचारी अपने खेतों को उपजाऊ बनाने के लिए इन गुफाओं के भीतर से मछली की खाद ले कर आते थे। १८७० के दशक तक ब्रिटिश औपनिवेशिक सेना शक्तियों के लिए कार्यरत एक अमरीकी पर्यावरणवेत्ता ने इस गुफा की सूचना दे दी थी।
बाटु नदी
कहा जाता है कि इन गुफाओं का नाम बाटु गुफाएं, वास्तव में इसके चारों ओर बहती बाटु नदी के नाम पर पड़ा था। किन्तु मुझे आसपास कोई नदी दृष्टिगोचर नहीं हुई। मलय भाषा में बाटु का अर्थ शिला होता है। अतः, बाटु गुफा का अर्थ शिलाओं की गुफा भी हो सकता है। यह मुझे अधिक सटीक प्रतीत होता है क्योंकि ये गुफाएं प्राकृतिक रूप से चूने के पत्थरों द्वारा निर्मित हैं।
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पर्यटकों को बढ़ावा देने के लिए, पहाड़ी के आसपास पर्याप्त वाहन स्थल, सार्वजनिक परिवहन एवं विविध खाद्य पदार्थ इत्यादि की भरपूर सेवाएं उपलब्ध हैं। यदि आप भारत से आए हैं तो आपके लिए ठेठ तमिल भोजन भी उपलब्ध है। यदि आप तमिल भाषा में वार्तालाप कर सकते हैं तो आपको उपहार स्वरूप दुकानदारों का उत्तम व्यवहार एवं स्मित हास्य से भरा स्वागत भी उपलब्ध होगा।
यदि आपको सीढ़ियाँ चढ़ने में कष्ट न होता हो तो नगर के बाहर यह एक उत्तम भ्रमण सिद्ध हो सकता है।
यदि आपको रोमांच भाता है तो आप इन अंधकार भरी गुफाओं का विस्तृत एवं रोमांच भरा अवलोकन कर सकते हैं। अथवा आप चट्टानों की चढ़ाई भी कर सकते हैं। इन गुफाओं के आसपास स्थित विभिन्न वनस्पतियों एवं जीव-जंतुओं को खोजने यहाँ अनेक पर्यटक आते हैं।
कुआला लम्पूर से इन गुफाओं तक आना अत्यंत आसान है। इसके लिए आप मेट्रो अथवा बस जैसे स्थानीय परिवहन के साधनों का प्रयोग कर सकते हैं। आप स्वयं के उपयोग के लिए गाड़ी किराये पर लेकर भी यहाँ आ सकते हैं। आप नगर भ्रमण के एक भाग के रूप में भी गाड़ी द्वारा यहाँ पहुँच सकते हैं। ये गुफाएं अत्यंत लोकप्रिय पर्यटन स्थल हैं। अतः यहाँ तक पहुँचने में आपको कोई कठिनाई नहीं होगी। आप किसी से भी यहाँ का मार्ग जान सकते हैं।
अनुराधा जी एवम् मीता जी,
हज़ारों वर्षों पूर्व से अस्तित्व में रही प्राचीन बाटु गुफाओं की जानकारी प्रदान करता सुंदर आलेख । आलेख पढ़ते हुए लगभग दस वर्षों पूर्व की हुई मलेशिया यात्रा की यादें फिर ताज़ा हो गई । ऊँची पहाड़ी पर स्थित गुफाओं की बराबरी करती भगवान मुरूगन की विशाल सुनहरी मूर्ति की सुंदरता वास्तव में अवर्णनीय है ।मूर्ति के पास से ही उपर जाती श्वेत-लाल सीढ़ियाँ पूरी चढ़ने पर ही हमें गुफाओं की वास्तविक ऊँचाई का पता चलता है । गुफा में प्रवेश करने पर हमें दक्षिण भारत के किसी मंदिर में होने का आभास होता है । आलेख से मलेशिया के इस विश्व प्रसिद्ध पर्यटन स्थल के बारे में विस्तृत जानकारी प्राप्त होती हैं ।
सुंदर, पठनीय आलेख हेतु धन्यवाद !
धन्यवाद् प्रदीप जी