८४, यह अंक हिन्दू मान्यताओं के अनुसार एक महत्वपूर्ण अंक है। ऐसा माना जाता है कि इस धरती पर लगभग ८४ लाख प्रजातियाँ हैं। एक अन्य मान्यता के अनुसार जीवात्मा ८४ लाख योनियों में भटकने के पश्चात फिर मनुष्य जन्म पाती है। इसलिए जब मैंने ऋषिकेश के ८४ कुटिया के विषय में सुना, मेरे मन में जिज्ञासा उत्पन्न हुई। बताने वाले ने मुझे तुरंत यहाँ स्थित ‘बीटल्स’ आश्रम के विषय में भी बताया।
मेरे मष्तिष्क ने दोनों जानकारियों को जोड़ने की चेष्टा की और मैंने झट से पहचान लिया कि यह भूतपूर्व महर्षि महेश योगी का आश्रम है। जिन्हें ‘बीटल्स’ के विषय में जानकारी नहीं है उन्हें बताना चाहूंगी कि ‘बीटल्स’ ब्रिटेन स्थित एक विश्व प्रसिद्ध ‘पॉप बैंड ग्रुप’ था। इस दल के सदस्य आध्यात्मिक जागृति की खोज में लगभग ५० वर्ष पूर्व भारत आये थे तथा महर्षि महेश योगी के आश्रम में ही ठहरे थे। तो यही ८४ कुटीर एवं ‘बीटल्स’ आश्रम के विषय में अपनी जिज्ञासा शांत करने के लिए मैं महर्षि महेश योगी के आश्रम में पहुँच ही गयी।
मेरी कार आश्रम प्रवेश द्वार के ठीक सामने जाकर रुकी। वहां एक छोटी टिकट खिड़की थी। मैंने अपना टिकट खरीदा। टिकटघर में बैठे व्यक्ति से कुछ प्रश्न पूछे किन्तु वहां से चुप्पी के सिवाय मुझे कुछ प्राप्त नहीं हो पाया। आसपास कोई पर्यटक भी दिखाई नहीं पड़ रहा था। मैंने ऊंची चढ़ाई चढ़नी आरम्भ की। इस चढ़ाई के अंत में मैं ८४ कुटिया के वास्तविक प्रवेश द्वार पर पहुँची। आसपास के हरेभरे परिदृश्य किसी वन का भाग प्रतीत हो रहे थे। टिकट के साथ प्राप्त पत्रक खंगालने पर एक और जानकारी मिली कि यह स्थान राजाजी बाघ आरक्षित वन का भाग है।
८४ कुटिया का इतिहास
महर्षि महेश योगीजी ने सर्वप्रथम १९६० में इस स्थान का दौरा किया था। गंगा के किनारे स्थित इस निर्मल स्थान पर वे इतने मंत्रमुग्ध हो गए कि उन्होंने उत्तर प्रदेश सरकार से १५ वर्षों हेतु इसे पट्टे पर देने का अनुरोध किया। १९६१ में उन्हें यह स्थल ४० वर्षों के लिए पट्टे पर प्राप्त हुआ जिस पर उन्होंने आश्रम बनाया। १९६० के दशक के अंतिम वर्षों से इस आश्रम को ख्याति प्राप्त होने लगी।
आश्रम को स्थिरता प्रदान करने के पश्चात महर्षि महेश योगीजी ने अपने कार्यकलापों को पश्चिमी देशों, मुख्यतः यूरोप में स्थानांतरित किया। उनके जाने के पश्चात कुछ समय आश्रम क्रियाशील रहा किन्तु १९९० के दशक में अंततः आश्रम परित्यक्त हो गया। आश्रम की इमारतें शनैः शनैः खँडहर में परिवर्तित होने लगीं। सन २००० के आरम्भ में आश्रम की धरती पुनः वन विभाग को दे दी गयी।
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भला हो राजाजी राष्ट्रीय उद्यान के प्रबंधकों का जिन्होंने इसे टिकट युक्त पर्यटन आकर्षण में परिवर्तित करने का निश्चय किया।
‘बीटल्स’ आश्रम
८४ कुटिया ‘बीटल्स’ आश्रम के नाम से भी लोकप्रिय है।
सन १९६८ में इस दल के सदस्य महर्षिजी से अतीन्द्रिय ध्यान की कला सीखने ऋषिकेश आये थे तथा वे इसी आश्रम में ठहरे थे। उन्होंने महर्षी महेश योगी से आध्यात्म एवं योग की दीक्षा ली थी। आध्यात्म एवं योगध्यान को आत्मसात करते हुए इसी आश्रम में उन्होंने कई गीतों की रचना की थी। ऐसा कहा जाता है कि संगीतज्ञ के रूप में यह समय उनका सर्वाधिक फलदायी समय था। इसी दौरान दल के सदस्य जॉर्ज हैरिसन ने सितार बजाना भी सीखा। वास्तव में इस आश्रम से उनका सम्बन्ध चिरस्थायी व शाश्वत हो गया है। मैं विश्वास से नहीं कह सकती कि ‘बीटल्स’ ने इस आश्रम की ख्याति पश्चिमी दुनिया तक पहुंचाई अथवा आश्रम ने पश्चिमी देशों में अनुयायियों की संख्या बढ़ाने के लिए ‘बीटल्स’ के नाम का इस्तेमाल किया था।
तो आईये देखते हैं ‘बीटल्स’ आश्रम के नाम से प्रसिद्ध यह ८४ कुटिया आज कैसी है।
८४ कुटिया में सर्वप्रथम मैंने एक कक्ष में स्थित चित्र दीर्घा देखी। इनमें से एक दीर्घा, ‘बीटल्स’ द्वारा इस आश्रम को दी गयी भेंट को समर्पित है। मैंने इससे पूर्व उनकी इस तथाकथित यात्रा के विषय में थोड़ा बहुत पढ़ रखा था। उससे मैंने अनुमान लगाया कि सब इतना सुनहरा नहीं था जितना लोगों को लगता है। ‘बीटल्स’ के सदस्य एक एक कर आश्रम को छोड़ कर चले गए थे। कुछ को यहाँ का मसालेदार भोजन एवं कीड़े-मकोड़े रास नहीं आये तो कुछ, लोगों द्वारा उनको मिलते अतिरिक्त ध्यान से विक्षुब्ध थे तो कुछ को लगा कि योगध्यान उनके बस की बात नहीं है। यहाँ तक कि आश्रम में एक अनुचित व्यवहार का भी मामला हुआ था।
‘बीटल्स’ के ४ सदस्य यहाँ केवल एक महीना ठहरे थे। इतनी छोटी अवधि पर एक स्थान का नाम परिवर्तित कर देना, क्या यह उचित है? वह भी उनके प्रवास के विषय में विस्तृत जानकारी प्राप्त किये बिना!
फिर भी लोग इस आश्रम को ऐसे ही पहचानते हैं – ‘बीटल्स’ आश्रम
भारत में ‘बीटल्स’ के प्रवास के विषय में यहाँ पढ़ें।
ऋषिकेश की ८४ कुटिया का भ्रमण
टिकट खिड़की से मैं जैसे ही आगे बढ़ी, मेरी दृष्टी भित्ति पर बनाये चित्र पर पड़ी। यह चित्र गर्व से कह रहा था – “वी लव ऋषिकेश” अर्थात् हमें ऋषिकेश से प्रेम है। एक ओर भित्ति चित्रों से भरी दीवार थी तो दूसरी ओर वृक्षों से आच्छादित, बेंचों की सुव्यवस्थित कतारें थी। चलते चलते थोड़ा और आगे बड़ी। समक्ष मुख्य द्वार था। उस पर नाम लिखा हुआ था- ८४ कुटिया। प्राकृतिक पत्थरों के ढँकी, बीजकोष की भान्ति दिखाई पड़ती कुटियायें समक्ष प्रकट होने लगीं। तो क्या ये थीं वे प्रसिद्ध कुटियायें जिन पर इस स्थान का नामकरण हुआ था? उनको देखते ही कुतूहल और बढ़ने लगा था।
जैसे ही उनके समीप पहुँची, मेरे ध्यान में आया कि सब दुमंजिली कुटिया थीं। प्रत्येक कुटिया के भीतर दोनों मंजिलों को जोड़ती छोटी मूलभूत सीड़ियाँ थी। मेरे समक्ष एक काल्पनिक दृश्य उभरने लगा। साधक इन कुटियाओं में बैठकर, जंगल में पसरती इकलौती ध्वनी, गंगा का कलरव सुनते आँखे मूंदकर ध्यान कर रहे हैं।
८४ कुतिया की छायाचित्र प्रदर्शनी
सामने की इमारत में एक अल्पाहार गृह था। उसे देख आभास हुआ कि भूख लग आयी थी। जल्दी से कुछ खाया और अल्पाहार गृह के निकट स्थित छायाचित्र प्रदर्शनी कक्षों की ओर बढ़ गयी। ३ कक्षों में छायाचित्र प्रदर्शित किये गए हैं। पहले कक्ष में अतीन्द्रिय ध्यान एवं महर्षी महेश योगी से सम्बंधित चित्र हैं। दूसरा कक्ष आश्रम के प्रसिद्ध अतिथि, “बीटल्स”, को समर्पित है तथा तीसरा कक्ष राजाजी बाघ आरक्षित वन के जंगली जानवरों से आपका परिचय कराता है।
प्रदर्शनी कक्ष से बाहर आकर मैं खंडहरों को देखने के लिए चल पड़ी। सर्वप्रथम मेरी दृष्टी पड़ी एक छोटे से शिव मंदिर पर। वहां दो शिवलिंग व एक नंदी की मूर्ति थी। वहां से आगे बढ़ते ही विध्वस्त इमारतें मेरे समक्ष प्रकट होने लगीं। मेरे बाईं ओर एक रसोईघर था। सूचना पट्टिका के अनुसार किसी समय यह आश्रम के ५०० रहवासियों का पेट भरता था। आज इसे देख ऐसा प्रतीत नहीं होता कि कभी यह रसोईघर रहा होगा।
मेरे दाहिने ओर स्थित खंडित इमारत कभी छापाखाना हुआ करती थी। सूचना पट्टिका ने जानकारी दी कि महर्षि महेश योगी की “साइंस ऑफ़ बीइंग आर्ट ऑफ़ लिविंग” जैसी कई प्रसिद्ध पुस्तकों तथा श्रीमद भागवतम पर उनकी टिप्पणियों की प्रथम प्रतियां यहीं प्रकाशित हुई थीं। मुझे तो केवल कुछ खंडित अलमारियों के ताक दिखाई पड़े। स्पष्टतः मुद्रण यंत्रों को वहां से हटा दिया गया था।
वेद भवन
एक चौड़ा, पत्थरों से जड़ा पथ, जिसके दोनों ओर खँडहर हैं, आपको आगे ले जाता है। बाईं ओर स्थित वेद भवन एक व्याख्यान कक्ष है। बाईं ओर ही एक और कक्ष है जिसके बाहर लगे सूचना पट्टिका पर अतीन्द्रिय ध्यान की मूल परिभाषा अंकित है। इस कक्ष के भीतर एक मंच है जिस पर मेरे अनुमान से गुरूजी बैठते थे। दोनों ओर की खिड़कियों से जंगल का दृश्य दिखाई देता है। वर्तमान में भित्तियाँ अध्यात्मिक चित्रों से भरी हुई हैं। उस समय, जब आश्रम साधकों से भरा रहता था, तब भी क्या ये ऐसे ही थे? मैं विश्वास पूर्वक नहीं कह सकती।
आगे अंतर्राष्ट्रीय अतिथियों एवं गणमान्य व्यक्तियों को ठहराने हेतु अतिथि गृहों का समूह है। इसे पंचकुटी कहा जाता था। थोड़ा आगे जाकर प्रसिद्ध सप्तपुरी संकुल है जहां “बीटल्स” के सदस्य ठहरे थे। इन्टरनेट से मुझे जानकारी प्राप्त हुई थी कि यहाँ के कक्ष सर्व पाश्चात्य सुख-सुविधाओं से लैस थे।
आनंद भवन तथा सिद्धी भवन
ये इस परिसर के सर्वाधिक विशाल इमारतें हैं। सूचना पट्टिका कहती है कि ये उन साधकों के निवास थे जो उच्च पाठ्यक्रम में भाग लेने अथवा गुरु बनने हेतु प्रशिक्षण प्राप्त करने यहाँ आये थे। इसकी पिरामिड के आकार की अर्थात् शुण्डाकार तिरछी भित्तियाँ अत्यंत रोचक हैं। ऐसा प्रतीत हो रहा था मानो इमारत के भीतर सम्पूर्ण ऊर्चा संचित करने की मंशा से इन्हें ऐसा आकार दिया गया हो। इसकी असाधारण संरचना अत्यंत रहस्यमय प्रतीत हो रही थी।
सशंकित मन से मैंने इमारत के भीतर प्रवेश किया। और कक्षों की भूलभुलैया में मैं खो सी गयी। ऊपरी मंजिल पर जाने की हिम्मत ही नहीं हुई। ये सब रहवासी इकाईयां हैं, यह मेरी समझ में आ रहा था, फिर भी यहाँ कुछ तो अत्यंत रहस्यमयी प्रतीत हो रहा था। भित्तियों पर लिखी पंक्तियाँ तथा आसपास की अस्वच्छता मेरी बेचैनी और बढ़ा रही थीं। कुछ क्षण वहां बिता कर मैं बाहर आ गयी।
चौरासी कुटिया
प्राकृतिक पत्थरों के ढँकी, बीजकोष की भान्ति दिखाई पड़ती कुटियायें जो मैंने बाहर देखी थीं, उन्हें चौरासी कुटिया नहीं कहा जाता। बल्कि परिसर के भीतर एक इमारत है जिसे चौरासी कुटिया कहा जाता है। यह एक अनोखी इमारत है। भीतर प्रवेश करते ही इमारत दो भागों में बंट जाती है। आप किसी भी भाग का चयन कर भीतर आ जाईये।
जैसे ही आप अन्दर जायेंगे, आपके समक्ष दो लंबे गलियारे होंगे। दोनों ओर स्थित ये गलियारे सामान अंतराल पर प्रकाश परावर्तित करते हैं। गलियारे में चलते समय मेरे ध्यान में आया कि दोनों ओर स्थित, छोटी खिड़की युक्त छोटे छोटे कक्ष वास्तव में साधकों हेतु ध्यान लगाकर बैठने के लिए बनाए गए थे। ये एक एक कर जुड़े कुल ८४ कक्ष हैं। अत्यंत छोटे होने के कारण केवल एक साधक ही एक कक्ष में आसानी से बैठ सकता है। पास लगे सूचना फलक के अनुसार ये योग के ८४ मुद्राओं पर आधारित हैं। कौन सी व किस प्रकार, मैंने अनुमान लगाने की चेष्टा की।
गलियारा पार करते ही एक खुला प्रांगण है जिस में एक ऊंचा मंच भी है। यहाँ से गंगा एवं ऋषिकेश नगरी दिखाई पड़ती हैं। गंगा को उस पर लटकते लक्षमण झूले के साथ देखना किसी वरदान से कम नहीं।
आगे जाकर मैंने महर्षि महेश योगी का बड़ा सा निवास स्थान देखा। यह आवास भले ही सादा है, किन्तु गंगा के समीप निर्मित है। जब वे यहाँ निवास करते रहे होंगे, रात्रि के सन्नाटे में गंगा नदी ने अपने मधुर कलरव से उन्हें लोरी अवश्य सुनायी होगी। इस इमारत के नीचे एक तलघर है जो मुझे अत्यन्त भयावह प्रतीत हुआ। कभी बागों व जलाशयों के अलंकृत इस त्यक्त इमारत की देखरेख ना होने के कारण इसकी यह दुर्दशा हो गयी है। कुछ क्षण वहां बैठकर मैं अपने आसपास सुन्दर बागों एवं जलाशयों की कल्पना करने लगी। अपने चरम समय में यह परिसर अवश्य एक मनोरम स्थल रहा होगा।
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अब मैंने इस परिसर में वापसी की यात्रा आरम्भ कर दी थी। इस बार मैं बीजकोष सदृश कुटियों की माला के मध्य से चलने लगी। क्रम संख्या द्वारा अंकित ये कुल १०० कुटियायें थीं।
८४ कुटिया के भित्ति लेखन
सभी खंडहरों पर भित्ति लेखन व चित्र थे। नीरस से दिखते खंडहरों पर अचानक रंगों की छटा दिखाई पड़ती है। मुझे ये अपेक्षाकृत नवीन प्रतीत हुए। कदाचित पिछले २ वर्षों में इन्हें बनाया गया है। इन भित्ति लेखनों व चित्रों की जो बात मुझे अत्यंत भायी वह यह कि इनकी विषयवस्तु परिसर के मूलभूत तत्वों से मेल खाती हैं। एक ओर जहां ये रूढ़िमुक्त विचार व्यक्त करते हैं तो दूसरी ओर आध्यात्म से भी सम्बन्ध दर्शाते हैं, जैसे जहां तहां ॐ अथवा श्री यंत्र या योग मुद्राएँ भी दृष्टिगोचर हो जाते हैं। प्रयोग किये गए रंग बहुधा कोमल हैं। कहीं कहीं एक ही रंग का प्रयोग किया गया है। कहीं कहीं रंगबिरंगे पुष्प व मोर जैसे पक्षी भी चित्रित हैं।
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विशाल कक्ष में महेश योगी के कुछ चित्र है जिनमें उनके प्रसिद्ध शिष्यगण भी साथ हैं। बाकी स्थानों पर निराकार कलाकारी की गयी है जिनमें कुछ अत्यंत आकर्षक हैं। पता नहीं कि यह पूर्व नियोजित कलाकारी है अथवा किसी ने रिक्त स्थान पाकर अपनी कलाकारी दर्शाई है।
८४ कुटिया कहाँ है?
ऋषिकेश में गंगा के उस पार स्वर्ग आश्रम क्षेत्र में यह ८४ कुटिया स्थित है। मैं यहाँ चीला की ओर से आयी थी। इसीलिए सीधे यहाँ पहुँच गयी। यदि आप ऋषिकेश की ओर से आ रहे हैं, तो सर्वप्रथम परमार्थ निकेतन पहुचें। तत्पश्चात वानप्रस्थ आश्रम की ओर पैदल चलें। वेद निकेतन आश्रम पहुँचने तक चलते रहें। इसके पश्चात जंगल की दिशा में जाएँ। आपको शीघ्र ही ८४ कुटिया का फलक दिखाई पड़ेगा।
८४ कुटिया जंगल से घिरी हुई है। इसके परिसर में भ्रमण करते समय आपको अपने चारों ओर जंगल दृष्टिगोचर होगा। कानों में पड़ती जंगल की ध्वनि आपको रोमांचित कर देगी। यूँ तो गंगा आश्रम के पास में ही बहती है, पर इस आश्रम तक पहुँचने के लिए आपने थोड़ी चढ़ाई की थी, इसलिए आपको गंगा का शीर्ष-दृश्य दिखाई पडेगा।
ऋषिकेश की ८४ कुटिया भ्रमण के लिए कुछ सूचनायें
• चौरासी कुटिया हर दिन प्रातः ९ बजे से संध्या ४ बजे तक खुली रहती है।
• दर्शन शुल्क भारतीयों के लिए १५० रु., विदेशियों के लिए ६०० रु., वरिष्ठ नागरिकों के लिए ७५ रु. तथा छात्रों के लिए ४० रु. है।
• परिसर के भीतर छोटा अल्पाहार गृह है किन्तु यहाँ खाद्य पदार्थों के सीमित विकल्प हैं।
• चूंकि यह जंगल का एक भाग है, जंगली जानवरों के भी आपको दर्शन हो सकते हैं। सतर्क रहें।
• आश्रम का पूर्ण पैदल भ्रमण करने में १ से २ घंटों का समय लग सकता है। हो सके तो सांझ बेला में यहाँ आने का प्रयत्न करें। इस समय शान्ति से बैठकर गंगा को देखने का असीम आनंद प्राप्त होता है।
• आप किसी भी कुटिया में बैठ कर ध्यान लगा सकते हैं। केवल कुटिया स्वच्छ करने की आवश्यकता होगी।